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Zeus2021

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Dimag Mein तुफानी ideas hai... Har update पानी छुडा dega... साला time hi Saath नाही देता...
 

Zeus2021

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Chapter 03 : व्यसनोत्पत्ति

स्नेहा और रितेश कॉलेज के बगल वाले खंडहर की ओर जाने लगे. पीछे थोड़ी दूरी पर तृप्ति को वह दोनों दिखे तो तृप्ति ने आवाज भी लगाई लेकिन वह स्नेहा तक पहुंची नहीं. तृप्ति ने सोचा कि वह उनके पीछे जाकर देखें कि यह दोनों खंडहर की ओर क्यों जा रहे हैं... वह धीरे धीरे उनका पीछा करते हुए खंडहर की ओर बढ़ने लगी.

सूरज सर पर चढ़ा हुआ था... वैसे तो उस खंडहर की ओर ज्यादातर कोई जाता नहीं है, क्योंकि ऐसी बातें चली थी कॉलेज में कि उस खंडहर में भूतों का आवास है... इसलिए तृप्ति भी थोड़ी सी डरी हुई थी फिर भी वह आगे बढ़े जा रही थी. खंडहर के अंदर कुछ देर भटकने के बाद उसे कुछ आवाज सुनाई दी. आवाज की और बिना कोई आहट किए तृप्ति बढ़ रही थी... और फिर उसे एक आधी गिरी हुई दीवार के आड़ में रितेश और स्नेहा नजर आए. स्नेहा ने उसका टॉप उसके दाएं स्तन से उठाया हुआ था और रितेश उसके स्तन को चूस रहा था... यही चूसने की आवाज तृप्ति को कुछ दूरी पर सुनाई दी थी... नेहा के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी और वह अपने हाथों से रितेश के बालों को सहला रही थी...

यह दृश्य देख तृप्ति दंग रह गई वह हल्के से उस दीवार के पीछे खिसक गई और फिर वह उन दोनों को झांक कर देखने लगे... इधर स्नेहा का निप्पल रितेश की होठों के बीच में खींचा जा रहा था. हल्की हल्की एक ले में उसका निप्पल रितेश के होठों के अंदर बाहर हो रहा था... और स्नेहा मीठी-मीठी आहें भरने लगी. यह दृश्य देख तृप्ति अब धीरे-धीरे उत्तेजित होने लगी. तृप्ति को वह दृश्य देखने में अब मजा आने लगा... फिर बीच में ही रितेश ने स्नेहा का निप्पल अपने मुंह से बाहर निकाला और उसने एक पल नेहा को प्यार भरी नजरों से देखा... और फिर वह स्नेहा को चुंमने लगा...

काफी लंबे चुंबन के बाद रितेश ने कहा...

"स्नेहा चलो हम यहीं पर कर लेते हैं"....

"नहीं नहीं... यहां पर कोई आ गया तो?... चलो ना हम उस दिन की तरह कोई होटल में रूम बुक कर ले"...

"नहीं मेरी जान.... ऐसे खुले आसमान के तले सेक्स का अपना ही मजा है"...रितेश ने उत्कटता से कहा...

"नहीं रितेश... मुझे यहां पर बिल्कुल भी नहीं करना सेक्स.... बात को समझो... मैं सहज नहीं महसूस कर पा रही हूं... वैसे भी जो मैंने लोगों से सुना है... वह सारी बातों की वजह से मैं यहां आना ही नहीं चाह रही थी... वह तो तुम्हारी जिद की वजह से मैं आई हूं"

रितेश ने स्नेहा को मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन स्नेहा आखिर तक नहीं मानी. तृप्ति दोनों की सारी बातें बड़े चाव से सुन रही थी अंततः स्नेहा ने रितेश को कहा...

" रितेश चलो ना यहां से मुझे यहां पर डर लग रहा है मानव ना मेरी बात"...

"ठीक है स्नेहा... अब मुझे कम से कम कुछ देर के लिए तुम्हारा दूध ही पिला दो... फिर हम चलते हैं... क्या तुम्हें मेरा चूसना अच्छा नहीं लग रहा?... क्या तुम्हें मजा नहीं आ रहा?"...

"ओके बाबा... आओ पी लो... दूध... वैसे दूध तो आता नहीं है पर तुम चूसते हो तो मुझे बहुत आनंद मिलता है... थोड़ी देर चुसो... फिर हम जाते हैं... ठीक है!"...

"चलो... अगर तुम्हें नहीं करना तो मैं हिला लूंगा"

यह कहकर रितेश ने अपनी पैंट की जिप खोली और उसने अपना लिंग बाहर निकाला... और इधर उसने स्नेहा का निप्पल अपने मुंह में ले लिया और वह मजे से उसे चूसने लगा... स्नेहा के स्तन बहुत बड़े तो नहीं थे... लेकिन गोरा रंग... और गुलाबी निपल्स की वजह से वह बहुत आकर्षक दिख रहे थे. तृप्ति इस नजारे को अपनी आंखों में समा ले रही थी.

फिर तृप्ति की नजर रितेश के लिंग की ओर गई... रितेश का काला मोटा लिंग देखकर वह दंग रह गई... रितेश अपने लिंग को हिलाते हुए नेहा के स्तन को चूसे जा रहा था....मीठी-मीठी चूसाई की आवाज हवा में घुलने लगी.

इधर स्नेहा आंखें बंद करके चुसाई का मजा ले रही थी... लगभग 15 मिनट बाद रितेश का वीर्य पतन हुआ... और फिर उसने स्नेहा का निप्पल मुंह से छोड़ दिया.

"हो गया?...अच्छा लगा?..."

"हां मेरी जान... मुझे तो बहुत अच्छा लगा... पर अगर सेक्स कर पाते तो और मजा आता... पर तुम्हें कैसा महसूस हुआ... जब मैं तुम्हारे इन सुंदर से गुलाबी निप्पल को चूस रहा था?"...

"ह्म्म्म... मीठा मीठा... रितेश मैं तो यह चाहती हूं कि तुम घंटो तक मेरे निपल्स को चूसते रहो... मुझे बहुत आनंद आता है... चलो अभी हम निकलते हैं यहां से"...

दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए और वह वहां से निकलने लगे. तभी तृप्ति भी उनके आने के पहले ही वहां से आगे बढ़ चली थी. उसके मन में एक प्यारी सी गुदगुदी सी भी हो रही थी... साथ ही साथ थोड़ी सी टेंशन भी थी कि कहीं यह दोनों उसे देख ना ले.

स्नेहा और रितेश यह दोनों तृप्ति के क्लासमेट थे. और यह बात तृप्ति के कॉलेज के दिनों की है... और यह घटना जो अभी घटि... ये वह घटना है जिसकी वजह से तृप्ति की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. इसके पहले ना तो तृप्ति ने कभी कोई लिंग देखा था और ना ही उसने किसी जोड़े को यूं स्तनपान में विलीन होते हुए देखा था...

उस रात तृप्ति ठीक से सो भी नहीं पा रही थी बार-बार उसकी आंखों के सामने वही लुभावने दृश्य फेरा धरे हुए नाच रहे थे. अगले दिन रविवार था तृप्ति की आंख लगभग सुबह के 4:00 बजे लग गई तो उसे उठने में 11:00 बज गए. उठने के बाद तृप्ति अपने माँ को यह बता कर बाहर निकली कि वह स्नेहा के यहां उससे मिलने जा रही है. तृप्ति ने स्नेहा के घर का दरवाजा बजाया दरवाजा स्नेहा की मां ने खोला... कुछ ही देर बाद तृप्ति और स्नेहा स्टडी रूम में बैठकर बातें कर रहे थे.

इधर उधर की बातें होने के बाद ना रहकर तृप्ति ने आखिरकार स्नेहा से पूछ ही लिया...
"स्नेहा तू कल गुप्ता जी के लेक्चर को छोड़ कहां चली गई थी?"

"अरे मुझे कुछ काम याद आया... मम्मी ने कुछ लाने बोला था तो बाजार गई थी"...

"सच में?"

"अरे हां... क्यों... पर तू क्यों पूछ रही है?" क्या हुआ?"

"सच-सच बता... स्नेहा.. कहां गई थी तू?"

"तृप्ति तू मुझे इतना बता दे... कि तू यह सब क्यों पूछ रही है?" स्नेहा ने थोड़ी बेचैनी से कहा...

"मैं यह इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि... मुझे पता है तू कहां और किसके साथ गई थी, अब तू ही अपने मुंह से मुझे बता तब मैं जानु"

"अब जब तुझे पता ही है तो क्यों बात का बतंगड़ बना रही है... हां गई थी मैं रितेश के साथ... हम प्यार करते हैं एक दूसरे से... और तूने कब देखा हमें?"

"स्नेहा... मैंने कई आवाज लगाई पर तूने मुड़ कर देखा भी नहीं. फिर मैं तुम दोनों के पीछे आ गई" तृप्ति ने मुस्कराकर कहा

"तृप्ति तू... तू... खंडहर के यहां आई थी?"...

"हां स्नेहा... मैंने सब देख लिया"...

"क्यों तृप्ति?... क्यों... क्यों? किया तूने ऐसा" स्नेहा ने नाराजगी जताते हुए कहा.

"ठीक है स्नेहा... मैं तेरी दोस्त हूं... मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगी... अब हम बड़े हो गए हैं. ठीक है"

"वादा कर मुझे... तृप्ति वादा कर!"

"हां बाबा... वादा करती हूं, किसी को नहीं बताऊंगी."

"देख तृप्ति... मैं रितेश से बहुत प्यार करती हूं, और आगे चलकर हम दोनों शादी भी करने वाले हैं, अब अगर तूने देख ही लिया तो तुझे यह भी पता होगा कि हमने कोई संभोग वगैरा तो नहीं किया उधर" स्नेहा ने अगतिक होके कहा.

"हां... मैं जानती हूं... मुझे खुशी है कि तुझे तेरा प्यार मिल गया"

दोनों की बातें चल रही थी. फिर तृप्ति ने उसके दिल की बात स्नेहा से पूछ ली...

"अच्छा स्नेहा... मुझे एक बात बता... कैसा लगता है जब कोई हमारे स्तन को चूसता है!"

"सच बताऊं तृप्ति... मुझे तो बहुत अच्छा लगता है. बहुत आनंद आता है... वह जो मीठ मीठी गुदगुदी होती है... और वह एक रोम हर्ष जो होता है... वह मैं तुम्हें शब्दों में नहीं बता सकती... क्या तूने कभी किसी को... " स्नेहा अपनी बात पूरी करे इससे पहले ही तृप्ति ने उसकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा...

"अरे पगली अभी तक तो बिल्कुल नहीं... कल ही तो मैंने पहली बार किसी पुरुष का लिंग देखा!"

" तृप्ति सच में!?"... स्नेहा ने आंखे बड़ी करते हुए कहा...

"अरे ठीक है ना... मैं कहां उसे पकड़ने जा रही हूं!"

दोनों खिलखिलाते हुए हंसदी... फिर इधर उधर की बातें होने के बाद तृप्ति अपने घर आ गई... लेकिन अब उसके मन में स्नेहा कि वह बात रह गई... स्तनपान वाली... बहुत सोचने लगी कि कैसा लगता होगा जब कोई मेरे निप्पल चूसता होगा.
 

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Dimag Mein तुफानी ideas hai... Har update पानी छुडा dega... साला time hi Saath नाही देता...
I can understand your situation
take your time
but you know eagerness and curiosity of the story is have some limited patience
 

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Chapter 03 : व्यसनोत्पत्ति

स्नेहा और रितेश कॉलेज के बगल वाले खंडहर की ओर जाने लगे. पीछे थोड़ी दूरी पर तृप्ति को वह दोनों दिखे तो तृप्ति ने आवाज भी लगाई लेकिन वह स्नेहा तक पहुंची नहीं. तृप्ति ने सोचा कि वह उनके पीछे जाकर देखें कि यह दोनों खंडहर की ओर क्यों जा रहे हैं... वह धीरे धीरे उनका पीछा करते हुए खंडहर की ओर बढ़ने लगी.

सूरज सर पर चढ़ा हुआ था... वैसे तो उस खंडहर की ओर ज्यादातर कोई जाता नहीं है, क्योंकि ऐसी बातें चली थी कॉलेज में कि उस खंडहर में भूतों का आवास है... इसलिए तृप्ति भी थोड़ी सी डरी हुई थी फिर भी वह आगे बढ़े जा रही थी. खंडहर के अंदर कुछ देर भटकने के बाद उसे कुछ आवाज सुनाई दी. आवाज की और बिना कोई आहट किए तृप्ति बढ़ रही थी... और फिर उसे एक आधी गिरी हुई दीवार के आड़ में रितेश और स्नेहा नजर आए. स्नेहा ने उसका टॉप उसके दाएं स्तन से उठाया हुआ था और रितेश उसके स्तन को चूस रहा था... यही चूसने की आवाज तृप्ति को कुछ दूरी पर सुनाई दी थी... नेहा के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान थी और वह अपने हाथों से रितेश के बालों को सहला रही थी...

यह दृश्य देख तृप्ति दंग रह गई वह हल्के से उस दीवार के पीछे खिसक गई और फिर वह उन दोनों को झांक कर देखने लगे... इधर स्नेहा का निप्पल रितेश की होठों के बीच में खींचा जा रहा था. हल्की हल्की एक ले में उसका निप्पल रितेश के होठों के अंदर बाहर हो रहा था... और स्नेहा मीठी-मीठी आहें भरने लगी. यह दृश्य देख तृप्ति अब धीरे-धीरे उत्तेजित होने लगी. तृप्ति को वह दृश्य देखने में अब मजा आने लगा... फिर बीच में ही रितेश ने स्नेहा का निप्पल अपने मुंह से बाहर निकाला और उसने एक पल नेहा को प्यार भरी नजरों से देखा... और फिर वह स्नेहा को चुंमने लगा...

काफी लंबे चुंबन के बाद रितेश ने कहा...

"स्नेहा चलो हम यहीं पर कर लेते हैं"....

"नहीं नहीं... यहां पर कोई आ गया तो?... चलो ना हम उस दिन की तरह कोई होटल में रूम बुक कर ले"...

"नहीं मेरी जान.... ऐसे खुले आसमान के तले सेक्स का अपना ही मजा है"...रितेश ने उत्कटता से कहा...

"नहीं रितेश... मुझे यहां पर बिल्कुल भी नहीं करना सेक्स.... बात को समझो... मैं सहज नहीं महसूस कर पा रही हूं... वैसे भी जो मैंने लोगों से सुना है... वह सारी बातों की वजह से मैं यहां आना ही नहीं चाह रही थी... वह तो तुम्हारी जिद की वजह से मैं आई हूं"

रितेश ने स्नेहा को मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन स्नेहा आखिर तक नहीं मानी. तृप्ति दोनों की सारी बातें बड़े चाव से सुन रही थी अंततः स्नेहा ने रितेश को कहा...

" रितेश चलो ना यहां से मुझे यहां पर डर लग रहा है मानव ना मेरी बात"...

"ठीक है स्नेहा... अब मुझे कम से कम कुछ देर के लिए तुम्हारा दूध ही पिला दो... फिर हम चलते हैं... क्या तुम्हें मेरा चूसना अच्छा नहीं लग रहा?... क्या तुम्हें मजा नहीं आ रहा?"...

"ओके बाबा... आओ पी लो... दूध... वैसे दूध तो आता नहीं है पर तुम चूसते हो तो मुझे बहुत आनंद मिलता है... थोड़ी देर चुसो... फिर हम जाते हैं... ठीक है!"...

"चलो... अगर तुम्हें नहीं करना तो मैं हिला लूंगा"

यह कहकर रितेश ने अपनी पैंट की जिप खोली और उसने अपना लिंग बाहर निकाला... और इधर उसने स्नेहा का निप्पल अपने मुंह में ले लिया और वह मजे से उसे चूसने लगा... स्नेहा के स्तन बहुत बड़े तो नहीं थे... लेकिन गोरा रंग... और गुलाबी निपल्स की वजह से वह बहुत आकर्षक दिख रहे थे. तृप्ति इस नजारे को अपनी आंखों में समा ले रही थी.

फिर तृप्ति की नजर रितेश के लिंग की ओर गई... रितेश का काला मोटा लिंग देखकर वह दंग रह गई... रितेश अपने लिंग को हिलाते हुए नेहा के स्तन को चूसे जा रहा था....मीठी-मीठी चूसाई की आवाज हवा में घुलने लगी.

इधर स्नेहा आंखें बंद करके चुसाई का मजा ले रही थी... लगभग 15 मिनट बाद रितेश का वीर्य पतन हुआ... और फिर उसने स्नेहा का निप्पल मुंह से छोड़ दिया.

"हो गया?...अच्छा लगा?..."

"हां मेरी जान... मुझे तो बहुत अच्छा लगा... पर अगर सेक्स कर पाते तो और मजा आता... पर तुम्हें कैसा महसूस हुआ... जब मैं तुम्हारे इन सुंदर से गुलाबी निप्पल को चूस रहा था?"...

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दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए और वह वहां से निकलने लगे. तभी तृप्ति भी उनके आने के पहले ही वहां से आगे बढ़ चली थी. उसके मन में एक प्यारी सी गुदगुदी सी भी हो रही थी... साथ ही साथ थोड़ी सी टेंशन भी थी कि कहीं यह दोनों उसे देख ना ले.

स्नेहा और रितेश यह दोनों तृप्ति के क्लासमेट थे. और यह बात तृप्ति के कॉलेज के दिनों की है... और यह घटना जो अभी घटि... ये वह घटना है जिसकी वजह से तृप्ति की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. इसके पहले ना तो तृप्ति ने कभी कोई लिंग देखा था और ना ही उसने किसी जोड़े को यूं स्तनपान में विलीन होते हुए देखा था...

उस रात तृप्ति ठीक से सो भी नहीं पा रही थी बार-बार उसकी आंखों के सामने वही लुभावने दृश्य फेरा धरे हुए नाच रहे थे. अगले दिन रविवार था तृप्ति की आंख लगभग सुबह के 4:00 बजे लग गई तो उसे उठने में 11:00 बज गए. उठने के बाद तृप्ति अपने माँ को यह बता कर बाहर निकली कि वह स्नेहा के यहां उससे मिलने जा रही है. तृप्ति ने स्नेहा के घर का दरवाजा बजाया दरवाजा स्नेहा की मां ने खोला... कुछ ही देर बाद तृप्ति और स्नेहा स्टडी रूम में बैठकर बातें कर रहे थे.

इधर उधर की बातें होने के बाद ना रहकर तृप्ति ने आखिरकार स्नेहा से पूछ ही लिया...
"स्नेहा तू कल गुप्ता जी के लेक्चर को छोड़ कहां चली गई थी?"

"अरे मुझे कुछ काम याद आया... मम्मी ने कुछ लाने बोला था तो बाजार गई थी"...

"सच में?"

"अरे हां... क्यों... पर तू क्यों पूछ रही है?" क्या हुआ?"

"सच-सच बता... स्नेहा.. कहां गई थी तू?"

"तृप्ति तू मुझे इतना बता दे... कि तू यह सब क्यों पूछ रही है?" स्नेहा ने थोड़ी बेचैनी से कहा...

"मैं यह इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि... मुझे पता है तू कहां और किसके साथ गई थी, अब तू ही अपने मुंह से मुझे बता तब मैं जानु"

"अब जब तुझे पता ही है तो क्यों बात का बतंगड़ बना रही है... हां गई थी मैं रितेश के साथ... हम प्यार करते हैं एक दूसरे से... और तूने कब देखा हमें?"

"स्नेहा... मैंने कई आवाज लगाई पर तूने मुड़ कर देखा भी नहीं. फिर मैं तुम दोनों के पीछे आ गई" तृप्ति ने मुस्कराकर कहा

"तृप्ति तू... तू... खंडहर के यहां आई थी?"...

"हां स्नेहा... मैंने सब देख लिया"...

"क्यों तृप्ति?... क्यों... क्यों? किया तूने ऐसा" स्नेहा ने नाराजगी जताते हुए कहा.

"ठीक है स्नेहा... मैं तेरी दोस्त हूं... मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगी... अब हम बड़े हो गए हैं. ठीक है"

"वादा कर मुझे... तृप्ति वादा कर!"

"हां बाबा... वादा करती हूं, किसी को नहीं बताऊंगी."

"देख तृप्ति... मैं रितेश से बहुत प्यार करती हूं, और आगे चलकर हम दोनों शादी भी करने वाले हैं, अब अगर तूने देख ही लिया तो तुझे यह भी पता होगा कि हमने कोई संभोग वगैरा तो नहीं किया उधर" स्नेहा ने अगतिक होके कहा.

"हां... मैं जानती हूं... मुझे खुशी है कि तुझे तेरा प्यार मिल गया"

दोनों की बातें चल रही थी. फिर तृप्ति ने उसके दिल की बात स्नेहा से पूछ ली...

"अच्छा स्नेहा... मुझे एक बात बता... कैसा लगता है जब कोई हमारे स्तन को चूसता है!"

"सच बताऊं तृप्ति... मुझे तो बहुत अच्छा लगता है. बहुत आनंद आता है... वह जो मीठ मीठी गुदगुदी होती है... और वह एक रोम हर्ष जो होता है... वह मैं तुम्हें शब्दों में नहीं बता सकती... क्या तूने कभी किसी को... " स्नेहा अपनी बात पूरी करे इससे पहले ही तृप्ति ने उसकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा...

"अरे पगली अभी तक तो बिल्कुल नहीं... कल ही तो मैंने पहली बार किसी पुरुष का लिंग देखा!"

" तृप्ति सच में!?"... स्नेहा ने आंखे बड़ी करते हुए कहा...

"अरे ठीक है ना... मैं कहां उसे पकड़ने जा रही हूं!"

दोनों खिलखिलाते हुए हंसदी... फिर इधर उधर की बातें होने के बाद तृप्ति अपने घर आ गई... लेकिन अब उसके मन में स्नेहा कि वह बात रह गई... स्तनपान वाली... बहुत सोचने लगी कि कैसा लगता होगा जब कोई मेरे निप्पल चूसता होगा.
nice update v
 
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