• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

दोहे -रसभरे

Peacelover

Active Member
1,072
1,964
159
छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग।
दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग॥24॥


सिसुता = शिशुता = बचपन। जोबनु = जवानी। देह-दीपति = देह की दीप्ति, शरीर की चमक। ताफता = धूपछाँह नामक कपड़ा जो सीप की तरह रंग-बिरंग झलकता या मोर की करदन की तरह कभी हल्का और कभी गाढ़ा चमकीला रंग झलकता है। ‘धूप+छाँह’ नाम से ही अर्थ का आभास मिलता है। दिपति = चमकती है।

अभी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी। यों दोनों (अवस्थाओं) के मिलने से (नायिका के) अंगों की छटा धूपछाँह के समान (दुरंगी) चमकती है।

.....
बहुत सुंदर।
 

Peacelover

Active Member
1,072
1,964
159
कहत सबै बेंदी दियै आँकु दसगुनौ होतु।
तिय लिलार बेंदी दियै अगिनितु बढ़तु उदोतु॥41॥


आँकु = अंक। लिलार = ललाट। अगिनितु = बेहद। उदोतु = कान्ति।

सभी कहते हैं कि बिन्दी देने से अंक का मूल्य दसगुना बढ़ जाता है। (किन्तु) स्त्रियों के ललाट पर बेंदी देने से तो (उसकी) कान्ति बेहद बढ़ जाती है।
सही कहा।
 

komaalrani

Well-Known Member
21,581
54,674
259
  • Like
Reactions: Shetan

komaalrani

Well-Known Member
21,581
54,674
259
  • Like
Reactions: Shetan

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
7,115
19,963
174
एक तो मन के भाव और दूजा चेहरे की अभिवक्ति।
दोनो को एक साथ गहरे रस के भाव मे पिरो कर सम्मुख रखना बहुत की कठिन रचना होती है ।

ताजुब भी होता है और एक अचरज भरी मुस्कान भी आ जाती है ऐसे गजब के भावार्थ भरे संगम को पढ कर ।
शुक्रिया आपका काफी कुछ सिखने को मिल जाता है आपके थ्रीड से
कभी कभी तो मैने अपने जीवनसाथी के लिए आपकी रचनाओ से चुरा कर कुछ अपने दिल के भाव से मिश्रित कर उसके लिए 3 4 बार पँक्तियाँ लिखी है और वो भी बहुत ही अच्छी प्रतिक्रिया देती है ।

:secruity: ju ne mara revo na pada :idk1:
 

snidgha12

Active Member
1,506
2,695
144
ऐ जिज्जी... हम इहाँ भी अई गए थोड़ा देर से ... पर आ गए...


तुहरा हिंदी का ज्ञान अपार हैं... आप तो इस साईट कि महादेवी हैं, सरोजिनी हैं, .सुभद्रा कुमारी हैं...

हमका सरम भी आवत हैं ... हम कभी ऐसे लिखी नहीं सके... पर हमको तुहरा पर बहुते हि अभीमान है... ऐ जिज्जी...

का कहें... हमका भी बहुते जोर से कछु दोहा कबिता आया है... आप कहों तो इहाँ शेयर करि दैं...

हमहु नहीं ना लिखे हैं... सभै कोपि पैस्ट किए हैं... All credit goes to some unsung original writer...
 

komaalrani

Well-Known Member
21,581
54,674
259
ऐ जिज्जी... हम इहाँ भी अई गए थोड़ा देर से ... पर आ गए...


तुहरा हिंदी का ज्ञान अपार हैं... आप तो इस साईट कि महादेवी हैं, सरोजिनी हैं, .सुभद्रा कुमारी हैं...

हमका सरम भी आवत हैं ... हम कभी ऐसे लिखी नहीं सके... पर हमको तुहरा पर बहुते हि अभीमान है... ऐ जिज्जी...

का कहें... हमका भी बहुते जोर से कछु दोहा कबिता आया है... आप कहों तो इहाँ शेयर करि दैं...

हमहु नहीं ना लिखे हैं... सभै कोपि पैस्ट किए हैं... All credit goes to some unsung original writer...
तुंहु न,...सबेरे सबेरे,... अरे हम तो खाली एहर ओहर से लायी के बस, अपने दोस्तन, सहेलियन के लिए.



और ये कोई पूछने की बात है, हमार तोहार कउनो बांटा है, जउन चाहा जब चाहा पोस्ट करा , और हमी कौन आपन लिखा इहाँ पोस्ट करेंगे, और एही बहाने तू हमरे अंगना में एक चक्कर झाँक जाबू।
 

komaalrani

Well-Known Member
21,581
54,674
259
Eye-Makeup-Pictures-4.jpg


आँखें
Teej-B-W-d99be3e7bea1c87e369f545ef48e9435.jpg
 

komaalrani

Well-Known Member
21,581
54,674
259
खेलन सिखए अलि भलैं चतुर अहेरी मार।
कानन-चारी नैन-मृग नागर नरनु सिकार॥51॥


अलि = सखी। अहेरी = शिकारी। मार = कामदेव। कानन-चारी = कानों तक आने-जानेवाले, वन में विहारनेवाले। नागर = चतुर, शहरी। नरनु = पुरुषों का।

ऐ सखी! चतुर शिकारी कामदेव ने कानों तक आने-जानेवाले (वन में विहार करने वाले) तुम्हारे नेत्र-रूपी हिरनों को चतुर नागरिक पुरुषों का शिकार करना भली भाँति सिखलाया है।

नोट: हिरनों से आदमियों का शिकार कराना-वह भी ठेठ देहाती गँवार आदमियों का नहीं, छैल-चिकनिये चतुर नागरिकों का!-कवि की अनूठी रसिकता प्रदर्शित करता है।
 

komaalrani

Well-Known Member
21,581
54,674
259
वर जीते सर मैन के ऐसे देखे मैं न।
हरिनी के नैनानु तैं हरि नीके ए नैन॥55॥


बर = बलपूर्वक। मैन = कामदेव। मैं न = मैं नहीं।

इन नेत्रों ने कामदेव के (अचूक) बाणों को भी बलपूर्वक जीत लिया है। मैंने तो ऐसे नेत्र (कभी) देखे ही नहीं। हे कृष्ण! हरिणियों के नैन से भी ये नेत्र सुन्दर हैं।

नोट - खंजन कंज न सरि लहै बलि अलि को न बखान।
एनी की अँखिपान ते नीकी अँखियान। - शृंगार-सतसई
 
Top