नई दुल्हन
काका की दुल्हन भाग-5
हाये ससुरजी आप चाहोगे तो मेरा सगा बाप भी इस बुर को चोदेगा, आप जहाँ चाहोगे उसके सामने यह बुर खुल जायेगी ससुरजी
तभी काका ने स्पीड बढा दी रबड़ी भी चुतड़ पटकने लगी तभी रबड़ी ने पैरो हाथ से काका के कस कर पकड़ लिया उसकी बुर ने पानी छोड़ दिया मगर काका की स्पीड जारी रही
हाये काका हाये ससुरजी चोद लो इस रांड को हाय ससुरजी अपना बच्चा दे दो, इस बुर मे अपना बीज वो दो, एक और हराम की जनी पैदा कर दो इस बुर से
तभी काका ने भी अपना वीर्य उतार दिया रबड़ी की बुर वीर्य से भर गई और वीर्य बुर से निकलता हुआ इसके गाड की ओर बहने लगा जैसे उसमे भी भर जाना चहाता हो
अब आगे
दोनो थक चुके थे आपस मे चुपके हुये बुर पानी से भर चुका था और पानी लुड़कते लुड़कते चुतड़ो से होते हुये गांड मे समा रहा था तो कुछ धरती पर टपक रहा था लंड मुरझा गया था मगर बुर मे एक चौथाई लंड अब भी फंसा हुआ था
रबड़ी काका के बालो से घने सीने से हलका मुम्का मारती हुई बोली
हाये बाबूजी आज आपने अपनी बहु की बुर फाड डाली
काका सच रबड़ी बड़ी मस्त बुर है तेरी जी चहाता है तेरी बुर मे दिन रात लंड डाले पड़े रहूँ
रबड़ी हाये ससुरजी जल्दी से मेरा हाथ घर वालो से माॅग लो फिर तो तेरी बुर है, सच कहती हूँ बाबूजी कभी मना नही करूगी, तु कहेगा तो तेरे बेटे के आगे बुर खोल तुझसे चटवाऊ
काका वो तो मै चटूंगा ही, मेरा बेटा दोनो मिलकर चाटेंगे, तेरे हाथ परसो माँगने आऊँगा, मै, तेरा असली वाप आयेगे सगुन लेकर समझी
रबड़ी हाये बाबूजी अब अपना मोटा लंड निकाल लो पेशाब लग रही है जोर से
काका हाये तो कर ले
रबड़ी हाये ससुर जी आपके ऊपर
काका तो क्या हुआ अभी तो थोड़ी देर पहले मेरे मुँह पर की थी
रबड़ी हाये वो तो भूल से हो गई थी
काका तो अब जानबूझ कर कर ले मगर थोड़ा मुझे पिला और थोड़ा इसे( लंड) चटा दे
रबड़ी ने थोड़ी कमर उठाई जिससे बुर मे फँसा लंड पोप की आवज करते हुआ बाहर आ गया रज वीर्य का मिलजुला रूप बचा खुचा भी बाहर निकल आया, रबड़ी उठते हुये बुर काका के मुॅह को ओर लाई काका अपने मुंह के ऊपर गोरी बुर की खुली फुत्तियो को देख मुंह लार से भर गया क्या गजब की बुर थी बुर की फुत्तियो की किनारे पर जमे लाल रंग गवाही दे रहा था कि उसने ही इस बुर को चुत बनाया है उसने झट से बुर मे मुंह सटा दिया
रबड़ी कितना हरामी ससुर मिला है बहु की बुर फाड़ने के बाद मूत तक चाट जा रहा है हाये, ले चाट ले अपनी बहु की बुर, शादी के बाद तेरा बेटा, तेरे यार इसको चाटेंगे, देख कितनी टाईट है, देख किनारी इसकी यह लाल रंग, तेरे इस नालायक ने बाहाया है
रबड़ी काका के मुरझाये लंड को कस के एक चपत लगाती है काका दर्द से तड़प उठते है और बुर के एक होठ पर दॉत गड़ा देते है
रबड़ी उई करके मुंह से होठ दबाते हुये उस दर्द को पी जाती है
चल उठ हरामी अब सोया पडा है मेरी बुर फाड के, तभी रबड़ी काका के मुरझाये लंड को पकड के चमड़ी खीच देती है लाल सुपड़ा बाहर निकल आता है
कितना मासूस लग रहा है कमीना, तेरी बहु की बुर इसने कितनी बेदर्दी से फाड़ी, अब इसके ख्याब है तेरे बेटे के सामने मेरी गाड फाड़ने का, बाप रे इतना मोटा कितना दर्द देगा, बेचारा तेरा बेटा मेरे चुतड पकड़के फैलायेगा, मुझे रोते देखेयेगा
काका बुर चाटते हुये चिंता ना कर तेरे संगे बाप को बुला लुंगा वो लंड तेरे मुँह मे डालेगा जिससे तु जादा चिल्लाये ना, मेरा बेटा तेरे चुतड फैलायेगा और ये तेरी कमसीन गांड फाड़ेगा
रबड़ी हाये बड़े खतरनाक इरादे है इस कमीने के, बड़ा दर्द देगा फिर तु मुझे, मगर खेर तेरा काम ही है
गाड़ फाड़ना दर्द देना वैसे भी बिना दर्द के गाड नही मारी जाती, फिर बच्चा भी तेरे बीज देगा तो बीज बोना तो गहराई तक तो खुदाई करनी पड़ेगी ही, मगर कितना हरामी है बेटे से बेटे की महरारू( पत्नी) का चुतड फैलवा कर उसकी महरारू की गाड मरेगा
हलका हलका काका के लंड पर तनाव आना चालू हुआा था कि रबड़ी ने एक जोरदार तमाचा फिर मार दिया
हरामी मेरी माॅ की गाड मारी फिर अपनी बहु की गाड भी मरेगा
काका दर्द से बुर के होठ को काट लिया
रबड़ी दर्द से चिल्ला उठी उई मार डाला सी ईई ई.. और इसके साथ उसका मूत निकल गया जो काका के मुंह से जाते हुये हलक मे पहुंचने लगा, नमकीन सुनहला पानी की धार इतनी जादा थी कि काका का पुरा मुॅह नहा रहा था इस गर्म पानी से तभी अचानक रबड़ी ने मूत रोक लिया
काका क्या हुआ रानी हो गया बस इतना
रबड़ी अरे ससुर जी थोड़ा इस बेचारे को नहला दूँ बेचारा लाल रंग से सना है
रबड़ी उठ कर काका के घुटनो पर बैठते हुये मुरझाये लंड को बुर की दरार पर रगड़ने लगी फिर मूतने लगी लंड गर्म मूत के एहसास से झनझना उठा और मूत खत्म होते होते वो बुर पर ठोकरे मारने लगा
रबड़ी बेचारा फिर बुर चोदने के लिए मुंह उठा रहा है
काका क्या करे बेचारा पहली बार बहु की बुर पाया है ना
चल झोपड़े मे चल, काका रबड़ी को बाग मे बने अपने झोपडे मे ले आया
पेशाब और कामरस की महक काका के नथुनों तक पहुंची तो काका का लंड बूर में घुसने के लिए हल्का हल्का ठुमकने से लगा था, झोपडे मे पहुंचते ही काका रबड़ी के ऊपर चढ़ गया और उसका लंड सीधा रबडी की बूर पर जा लगा, दोनों की सिसकियाँ निकलने लगी, रबड़ी ने पहले तो जानबूझकर अपनी बूर को जांघों के बीच भींचकर छुपा रखा था पर जैसे जैसे लंड की हल्की हल्की ठोकरें बूर के ऊपरी हिस्से पर लगती गयी, रबडी बेसुध होकर सिसकते हुए उस दहकते लंड को अपनी बूर की फांकों के बीच महसूस करने के लिए लालायित होकर धीरे धीरे अपनी जांघे खोलकर अपने पैर हवा में फैलती चली गयी, जैसे जैसे जांघे खुलती गयी, लंड जो पहले ऊपर चिकनी बुर पर रगड़ रहा था जैसे ही महकती बूर की फाँकों पर लगा, दोनों मानो जन्नत में पहुंच गए, "आआआआआआआआ हहहहहहह.... हाय.... मेरे ससुर जी.... मेरे साजन.....कितना प्यारा अहसाह है ये"
"ओओह..... बहु क्या बूर है तेरी....मेरा लंड पागल हो गया है तेरी बूर में घुसने के लिए.....कितनी नरम नरम फांकें हैं .....बूर भी क्या चीज़ है और वो भी अपनी बहु की"
काका मदहोशी में पागल होकर अपना लंड धीरे धीरे बूर की फाकों पर रगड़ रहा था जिससे रबड़ी का बदन रह रहकर थरथरा जाता, वो बार बार जोर जोर से सिसकते हुए अपनी बूर को थोड़ा नीचे करती ताकि लंड उसके छेद पर न पड़े, काका कराहते हुए बहुत संभाल संभाल के अपना लंड अपनी बहु की बूर की फाँकों के बीच रगड़ रहा था ताकि जल्दबाजी मे झड ना जाए, पर तभी रबड़ी धीरे से सिसकी "आह ससुर... धीरे धीरे"।
कुछ देर बाद काका रबड़ी की जांघों के बीच उठ कर बैठ गया रबड़ी ने मदहोशी से भरी बोझिल आंखों से काका को देखा फिर उसकी नज़र काका के लंड पर गयी जो बूर के रस से चमकते हुए रह रहकर अति उत्तेजना में हल्की हल्की ठुमकी मार रहा था, रबड़ी ने बड़ी वासना भरी नजरों से काका को देखा और मुस्कुराते हुए पास ही पड़े ऊन के गोले को उठाया उसमें से लगभग तीन बित्ता ऊन तोड़ा, थोड़ा उठकर बैठ गयी, काका सिसकता हुआ थोड़ा और आगे आ गया, अल्का ने लंड पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा और धीरे से सहलाया, लंड इतना सख्त हो चुका था कि उसका सुपाड़ा अलग ही दिख रहा था, सुपाड़ा फूलकर अपने आकार से थोड़ा और ही बड़ा हो गया उसकी चमड़ी उसे पूरी तरह अब ढक पाने में असमर्थ हो रही थी, अल्का ने चमड़ी को पकड़कर हल्का सा खींचकर आगे इकठ्ठा किया, काका बस रबड़ी को निहारे ही जा रहा था, लंड की चमड़ी को थोड़ा आगे इकट्ठा करके रबड़ी ने उसे ऊन से इस कदर बांधा की बचे हुए ऊन को पकड़कर खींचने पर गांठ खुल जाए, गाँठ बांध लेने के बाद दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूमा और रबड़ी बड़ी मादकता से पलंग पर लेट गयी, काका ने जैसे ही तकिया उठाया रबड़ी समझ गयी और उसने खुद ही अपनी गांड को ऊपर उठ लिया काका ने तकिया इस कदर गांड के नीचे रखा कि रबड़ी की मखमली महकती हुई बूर पूरी तरह खुलकर काका के सामने आ गयी, बूर उत्तेजना में फूलकर पावरोटी की तरह हो चुकी थी, ऊपर से रबड़ी ने मचलते हुए अपनी जांघे फैलाकर अपनी प्यासी बूर को पूरी तरह अपने ससुर को खाने के लिए परोस दिया। जांघे फैलाने से बूर मुस्कुराती हुई खुलकर बाहर आ गयी। रबड़ी ने मस्ती में आंखें बंद कर ली।
काका ने रबड़ी का दाहिना पैर ऊपर उठाया और अपने कंधे पर रख लिया, शर्म के मारे रबड़ी ने एक हाँथ से अपना चेहरा ढँक लिया पर अपने ससुर को रिझाने के लिए एक हाँथ से धीरे से अपनी बूर की फांकों को चीरकर हल्का सा खोल दिया, बूर का महकता हुआ गुलाबी छेद पूरी तरह दिखने लगा, काका ने एक हाँथ रबड़ी की मांसल गांड के नीचे लगाया और हल्का सा उठाकर तकिए को और मोड़ा अब रबड़ी की गांड थोड़ा और उठ गई, रबड़ी ने हल्का सा सिसकी ली और रबड़ी ने बूर को थोड़ा और फैला दिया, रबड़ी की इस अदा और सहयोग को देखकर काका इस कदर उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लंड अब बगावत कर देगा और बांधा हुआ ऊन टूटकर खुल जायेगा, किसी तरह खुद को संभाला, जब रबड़ी ने बूर को और चीरा और मुस्कराते हुये हाये मजा ले लो ससुरजी अपनी बहु का काका ने फिर उसने अपने लंड को पकड़ा और कसमसाती हुई अपनी बहु की बूर के छेद पर भिड़ाया, जैसे ही हल्का सा दबाया रबड़ी सिसकी, बूर के छेद की तुलना में लंड का सुपाड़ा चार गुना मोटा होने की वजह से आसानी से घुस पाना असंभव था ये बात दोनों जानते थे, भले अभी चुदी है मगर नई बुर है काका ने जब थोड़ा और जोर लगाया तो रबड ी थोड़ा जोर से कराह पड़ी, "ऊऊऊऊऊईईईईईई माँ.....आह, धीरे धीरे ससुरजी, काका झट से उठा और थोड़ी दूर पर रखा नारियल का तेल उठा लाया, नारियल का तेल थोड़ा ठंड होने की वजह से जम गया था पर जैसे ही काका ने उंगली से निकालकर लंड पर लगाया झट से तेल गरम लंड की चमड़ी पर पिघल गया, लंड के मुहाने पर अच्छे से नारियल का तेल लगाया और थोड़ा सा रबड़ी की बूर के छेद पर लगाया, काका ने अच्छे से पोजीशन ली और एक बार फिर कोशिश करने लगा, लंड को दहकती बूर के छेद से लगाया और थोड़ा जोर लगाकर रबड़ी की गांड को हथेली से थामकर थोड़ा उठाते हुए लंड का दबाव बूर पर लगाया तो लंड ठेलता हुआ बूर की रसीली फांखों को फैलता हुआ छेद में घुसने लगा। रबड़ी का हाँथ बूर पर से हट गया और वो जोर से कराही "आआआआआआह आआममम्मा.....आआआह मईया....आआआह धीरे से.....कितना मोटा है ससुर जी आपका.....आआआह मेरी बूर"
तेल की फिसलन से धीरे धीरे लंड अंदर जाने लगा, बूर फैलते हुए लंड को लीलने लगी कराहते हुए एक बार तो रबड़ी ने काका की कमर को थाम लिया, आज पहली बार काका का लंड बूर चख रहा था, बूर कैसी होती है, क्या चीज़ होती है, अंदर कैसा महसूस होता है आज पहली बार उसे अहसाह हो रहा था, दोनों को ही मानो होश नही था, काका हल्का सा रबड़ी पर झुका और उसकी चूचीयों को दबाने और सहलाने लगा, कड़क हो चुके निप्पलों को मुंह मे भर भरकर पीने लगा, रबड़ी का दर्द कम हुआ और वो सिसकने लगी, अपने ससुर की पीठ और गांड को सहलाने लगी, लंड एक चौथाई बूर में घुसा हुआ था।
जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो काका फिर उठा और लंड को बूर से बाहर निकाला, रबडी अच्छे से अपनी जांघों को फिर फैलाया, काका ने रबड़ी की गांड को थोड़ा उठाते हुए पोजीशन बनाई और लंड को बूर की छेद पर रखा, हल्का हल्का धक्का देना शुरू किया, तेल की फिसलन और बूर के रस से लंड इस बार थोड़ा आसानी से फांकों को फैलता हुआ फल को ठेलता हुआ अंदर घुसने लगा, दोनों के मुंह से एक साथ मस्ती भरी सिसकारी निकली, काका ने रबड़ी के ऊपर झुककर उसके नरम नरम होंठो को मुँह में भर लिया, रबड़ी की आंखें मस्ती में बंद होने लगी, धीरे धीरे लंड बूर में घुसता चला गया, अल्का परम आनंद में सिसकते हुए कस के काका से लिपट गयी, अपने ससुर का लंड अपनी बूर में पाकर रबड़ी के बदन में मस्ती की तरंगें उठने लगी, इतना आनंद उसे कभी नही आया था, काका ने अभी तक पूरा लंड अपनी बहु की बूर में नही पेला था, बस लंड धीरे धीरे सरकता हुआ आधे से थोड़ा ज्यादा ही बूर में समाया हुआ था, दोनों एक दूसरे को पाकर बेसुध हो गए, एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे, परम उत्तेजना में रबड़ी का चेहरा गुलाबी हो चुका था, आज एक ससुर अपनी बहु को पलंग पर नंगी करके चोदने जा रहा था।
दोनों ने उत्तेजना में बोझिल आंखों से एक दूसरे को देखा, रबड़ी शर्माते हुए मुस्कुरा उठी।
काका हल्का सा रबड़ी के ऊपर से उठा और झुककर अपने दहकते लंड को देखने लगा, की वो कैसे रसीली बूर में आधे से ज्यादा समाया हुआ है रबड़ी ने भी हल्का सा सर उठा कर नीचे देखा, लंड का एक चौथाई भाग बाहर दिख रहा था बाकी का तो बूर लील चुकी थी, बूर की फांके किसी रबर के छल्ले की तरह फैल गयी थी, काला सा ऊन का धागा बाहर निकला हुआ था, दोनों बूर और लंड को देख रहे थे कि तभी काका ने लंड को बड़े प्यार से बाहर खींचा और उसे देखते हुए की वो बहु की बूर में कैसे जा रहा है धीरे धीरे सिस्कारते हुए बूर में पेलने लगा,रबड़ी मस्ती में मचल उठी, काका की कमर और गांड को मस्ती में सहलाने लगी वो भी अपनी गांड को जब भी लंड बूर में सरकता ऊपर को उठाकर ताल से ताल मिलाती, काका ने ऐसे ही कई बार किया, जब भी लंड सरककर रबड़ी की रसभरी बूर की गहराई में उतरता वो हर बार गनगना कर कभी काका को बाहों में भींच लेती, कभी पीठ को सहलाते हुए मस्ती में नाखून ही गड़ा देती, कभी काका की गांड को सहलाने लगती, कुछ देर ऐसा करने के बाद काका ने रबड़ीसे कहा-
काका - बहु
रबड़ी - हम्म्म्म
काका- कितनी रसीली तेरी ये....
रबड़ी- "आआआह.......क्या मेरे राजा?
काका - तेरी बूर...मेरी रानी...कितनी नरम नरम और मखमली फांकें है.....आआआह ह ह ह ह।
रबड़ी
- हाय.. तो चोदिये न...अपनी बहु की बूर...कितना तरसी है तुम्हारी बहु लंड के लिए मेरे ससुर जी..... कितना तगड़ा और मोटा है आपका लंड.... आज अपनी बहु की प्यासी बूर को चोद दीजिए।
रबड़ी
आंखे बंद किये मस्ती में ये बोलती गयी पर जब हल्का सा मदहोशी में अपनी आँखें खोली तो काका उसे निहारे जा रहा था, रबड़ी शर्माकर उससे लिपट गयी।
काका- बहु...देख कैसे तेरी बूर मेरा लंड खा रही है, जैसे कोई भूखा बच्चा डंडी वाली कुल्फी को मुँह में भरकर लपक लपक के चूसता है।
काका रबड़ी की आंखों में देखकर बोल रहा था और रबड़ी मारे शर्म से अपना गुलाबी चेहरा उसकी छाती में छुपा लेती, काका ने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और होंठों को चूमते हुए बोला- बोल न बहु...चुप क्यों हो गयी।
रबड़ी
- लंड के लिए बरसों से तरसी है तो आज जब उसे मिला है तो निचोड़ निचोड़ कर खाएगी न....कितना मस्त लंड है आपका।
काका- मेरी बहु को पसंद आया अपने ससुर का लंड?
रबड़ी
फिर शर्माते हुए- आपकी बहु अब बस आपके लंड की दीवानी हो चुकी है... अब यह रंडी है आपकी
काका ने थोड़ा जोर से लंड बूर में और पेल दिया
रबड़ी
- "आआआह ह ह ह....ऊऊई....
कुछ देर ऐसे ही चलता रहा फिर
कुछ देर बाद रबड़ी ने धीरे से हाँथ नीचे किया तो काका ने अपनी कमर को हल्का सा उठाया और नीचे देखने लगा, काका ने ऊन को पकड़ा और हल्का सा खींचा तो वो खुल गया, धीरे से रबड़ी ने ऊन को खींचकर बाहर निकाला और अपनी बूर के अंदर से सरसराता हुआ ऊन बाहर निकलता हुआ महसूस कर उसे गुदगुदी हुई तो वो हल्का सा गनगना गयी, रबड़ी ने फिर अपने ससुर के आंड़ को हाँथ में लिया और हल्का हल्का सहलाने लगी, काका रबड़ी के गालों को झुककर चूमने लगा, रबड़ी ने फिर जितना लंड बूर से बाहर था उस पर हाँथ लगाया और उसकी चमड़ी को धीरे धीरे ऊपर को सरकाने लगी, पांच छः बार ऊपर को चमड़ी खिंचने से बूर के अंदर घुसे सुपाड़े की चमड़ी खुलने लगी और अपनी बूर के अंदर लंड के सुपाड़े पर से उसकी चमड़ी को हटता हुआ महसूस कर अल्का की आँखे मदहोशी में बंद हो गयी, किस तरह उसके ससुर के लंड का चिकना सुपाड़ा उसकी बूर के अंदर ही पड़े पड़े खुल रहा था, एक अजीब सी गुदगुदी के अहसाह से अल्का और सत्तू दोनों ही सिसक उठे।
पांच छः बार पीछे की ओर चमड़ी खिंचने से चमड़ी सुपाड़े पर से उतर गई और अल्का अपनी बूर में अपने ससुर का मोटा चिकना सा सुपाड़ा अच्छे से महसूस कर मस्ती में तड़प गयी, काका ने लंड को थोड़ा तिरछा करके सुपाड़े से एक जोर की दबिश बूर की किनारे की दीवारों पर दी तो रबड़ी ने जोर से सिसकारी लेते हुए काका को चूम लिया "ऊऊऊऊऊईईईईईई ससुर जी..... धीरे से पेलो",
बहु के मुंह से "पेलो" शब्द को सुनकर काका और उत्तेजित होता जा रहा था और हर बार रबड़ी भी "पेलो" और "चोदो" शब्द बड़ी मादकता से बोलने लगी।
काका ने कई बार हौले हौले ऐसे ही लंड को तिरछा करके बूर की रसीली दीवारों पर रगड़कर दबिश दी, हर बार रबड़ी मस्ती में कराहते हुए सिसक सिसक कर इस रगड़ाई का आनंद लेते हुए अपनी गांड को ताल से ताल मिलाते हुए मचल उठती, हर बार जब भी लंड बूर की दीवारों से रगड़ता वो कराह कर हर बार "आआआह ससुर जी धीरे से पेलो....धीरे से घुसेडो....हौले हौले डालो....हौले हौले रगड़ो....धीरे धीरे चोदो...मस्ती में जानबूझकर बोलने लगी, हर बार इतना मजा आता कि वो काका की गांड को पकड़कर जोर से भींच देती।
मस्ती और वासना चरम पर थी, रबड़ी को असीम आनंद और गुदगुदी का अहसास होता और वो हर बार मस्ती में कराह उठती, एक अलग ही रोमांचकारी अहसाह हो रहा था, एक तो दहकता हुआ बलशाली लंड बूर को चीरकर उसमें आधा घुसा हुआ था जो उसे जन्नत की सैर कर ही रहा था ऊपर से काका किसी बच्चे की भाँति दूध को चुभला रहे थे जो बहुत गुदगुदी पैदा कर रहे थे, जिससे उसके बदन में वासना की मस्ती, गुदगुदाहट, उत्तेजना, मीठी मीठी तरंगे, थरथराहट, हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द, सब एक साथ उठ रही थी,रबड़ी को होश ही नही था कि अब वो कहाँ है, दोपहर के वक्त वो बाग मे बने कमरे में पलंग पर एकदम नंगी लेटी अपने ससुर का लंड अपनी बूर में घुसवाये हुए उनसे चुदवा रही थी।
रबड़ी
ने अपने दोनों पैर उठाकर काका की कमर पर लपेट दिए जिससे बूर और खुल गयी बस एक चौथाई ही लंड बहु की बूर से बाहर था, दोनों एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे जैसे अब दुनियां की कोई ताकत उन्हें अलग नही कर सकती।
काका ने धीरे से रबड़ी के कान में कहा- और बोल न...और गंदा बोल न बहु,
रबड़ी
- आह....बोला तो...मेरे लंडराज
काका ने लंड को हल्का सा बूर में रगड़ते हुए बोला- और बोल मेरी बहु
रबड़ी
ने कुछ देर के लिए मस्ती में आँखे बंद की फिर काका के कान में धीरे से बोला- पाप करो न ससुर जी....
काका- आह!
रबड़ी
- दुनिया वाले इसे पाप कहते हैं न.....?
काका- हां मेरी प्यारी बहु... न जाने क्यों?
रबड़ी
- बहु को चोचोचोदददनननना पाप है न...
काका- दुनियां की नज़र में तो है मेरी बहु!
रबड़ी
- पर इसमें मजा कितना आ रहा है....आ रहा है न?
काका- बहुत...बहुत...ऐसा मजा आजतक नही आया.....आह बहु की बूर!
रबड़ी हल्का सा सिसकते हुए- तो...अपनी बहुको अब चोदकर उसको पाप का मजा दो न मेरे प्यारे ससुर...अब पाप करो न...मजा दो न...आपकी बहु प्यासी है....बूर चोदो न, बच्चा दे दो, शादी से पहले बुर भोसड़ा बना दो
इतना सुनते ही काका बेकाबू हो गया, रबड़ी मारे शर्म से उससे बुरी तरह सिसकते हुए लिपट गयी, काका ने दोनों हांथों से रबड़ी की मस्त मांसल गांड को हल्का सा उठाया और एक जोर का धक्का मारकर अपना समूचा लंड एक ही बार मे उसकी दहकती बूर में घुसेड़ दिया, रबड़ी जोर से कराहते हुए सीत्कार उठी, "आआआआआआआआ हहहहहहह..... ससुर जी...... हाय मेरी बूबूबूबूबूरररररररर.......ओओह..... ऊऊऊऊऊईईईईईई माँ...
पूरा बदन उसका ऐंठ गया, धनुष की भांति उसकी चूचीयाँ ऊपर तो तन गयी। लंड जड़ तक पनियानी बूर में घुस गया। काका ने हथेली से थामकर रबड़ी की गांड को अच्छे से थोड़ा ऊपर उठा रखा था
रबड़ी
मीठे मीठे दर्द और उत्तेजना में मचलते हुए सिस्कारने लगी, पूरा कमरा अब उसकी लगातार सिसकी से गूंज रहा था, काका अपनी बहु को अब धीरे धीरे धक्के मार मार कर चोदने लगा, रबड़ी का दर्द कम होने लगा, और वो मस्ताने लगी,
रबड़ी ने और अच्छे से अपनी दोनों जांघे खोलकर अपने भैया की कमर पर लपेट दी और खुद भी अपनी गांड को काका के लंड की ठोकर की दिशा में ताल से ताल मिलाकर गांड उछाल उछाल कर सिस्कारते हुए अपने ससुर का सहयोग करने लगी, कुछ देर ऐसे ही चलता रहा दोनों सिसक सिसक कर धक्के लगाते रहे काका ने रबड़ी की बूर में तेज तेज धक्के लगाते हुए उसकी बूर चोदना शुरू कर ही दिया, रबड़ी मस्ती में जोर जोर से कराहते हुए अपने ससुर से चुदने लगी, उसने अपनी जांघों को बिल्कुल खोल दिया ताकि उसके ससुर उसे अच्छे से चोद सकें, पूरे कमरे में मस्ती भरी चुदाई की सिसकारियां गुजने लगी, चुदाई की फच फच की आवाज बखूबी कमरे में गुजने लगी, काका ने रबड़ी को चोदते हुए उसकी गांड की छेद को हल्का सा सहलाया तो वो और मचल उठी, वो उसे चोदते चोदते उसकी गांड की छेद पर उंगली से सहलाता जा रहा था जिसकी वजह से अल्का मस्ती के सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी, बूर पूरी तरह खुल चुकी थी लंड का आवागमन इतना परम सुख देने वाला था जिसकी कल्पना नही की जा सकती थी।
काका का लंड बुर रस से पूरी तरह सन चुका था और रस अब बाहर रिसने लगा, वो रिसकर काका की उंगलियों और रबड़ी की गांड के छेद तक जा पहुंचा, जैसे ही गीला गीला महसूस हुआ काका ने रस को रबड़ीकी गांड पर मसल दिया, रबड़ीमस्ती में सिस्कारते हुए अपनी गांड उछाल उछाल कर काका से चुदवाने लगी, लंड जब जब उसके बच्चेदानी से टकराता वो जोर से कराह उठती, मस्ती से मचल जाती, तेज तेज धक्कों से पलंग चर्र चर्र करने लगा, काका ने अब काफी तेज तेज लंबे लंबे धक्के अपनी बहु की बूर में लगाने लगा, हर बार जब लंड भट्टी की तरह दहकती बूर की दीवारों को चीरता हुआ गहराई में उतरता रबड़ी कराह उठती, "आआआआआआह ह ह ह ह ह ह.......हाय.....दैय्या..... चोदो मेरी बूर..... आआआह......ऊऊई..... ओओओहह ह.... मैया..... कितना मजा आ रहा है....कितना अच्छा चोदते हो आप.....आह मेरे सैया ससुर.... मेरे राजा....मेरे सैयां...... चोद दो मेरी बूर को आज अच्छे से......आआआह.... फाड़ दो आज अपनी बहु की बूर.....बहुत तड़पाती है ये मुझे.......आज अच्छे से चोदो इसे..... ऊऊई माँ.....
इसी तरह रबड़ी मदहोशी में सिसकते हुए बोले जा रही थी और काका भी उसे लगातार चूमते हुए लंबे लंबे धक्के लगाते हुए उसे चोदे जा रहा था, तेज तेज धक्कों से रबड़ी का पूरा बदन हिल जा रहा था, दोनों चूचीयाँ खरबूजे की तरह धक्के की ताल में इधर उधर हिल रही थी, निप्पल तनकर खड़े हो चुके थे, पैर हवा में हिलने की वजह से पायल अलग ही झंकार पैदा कर रही थी, बहु की बूर चोदने में इतना परम आनंद आएगा ये काका ने सोचा नही था, हर धक्के पर दोनों की उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी, करीब 15 मिनट की लगातार चुदाई से कमरा मस्ती भरी सिसकारियों से भर गया, तभी काका ने फिर से रबड़ी की गांड के नीचे हाँथ लेजाकर उसकी गांड को सहला सहला कर उसे चोदने लगा, अचानक उसने पूरा पूरा लंड बूर से निकाल कर एक ही बार में कस कस के बूर की गहराई में तेज तेज घुसा घुसा कर धक्के मारने लगा और इस मस्ती भरी रगड़ को रबड़ी अब झेल नही पाई और जोर से सिस्कारते हुए काका से कस के लिपटते हुए अपनी गांड को उछाल उछाल कर झड़ने लगी, "आआआआआआआआआआआ हहहहहहहह हहहहहहहह...... ससुर.......मैं गयी........हाय मेरी बूर......
काफी देर तक रबड़ी अपनी गांड को उछाल उछाल कर अपनी बूर में अपने ससुर का लंड पेलवाते हुए झड़ती रही, उसकी बूर की गहराई में काम रस का फव्वारा फुट पड़ा, ऐसा लगा वो आसमान में उड़ रही है, इतना सुखद चरमसुख उसे आज पहली बार मिला था, मस्ती में काका की नंगी पीठ पर उसके नाखून धंस गए, रसीली बूर काफी देर तक संकुचित होते हुए झड़ती रही, और वो असीम अद्भुत आनंद की अनुभूति में काका को ताबड़तोड़ चूमने लगी, काका अभी भी अपनी बहु की बूर में घच-घच लंड पेले जा रहा था, धक्कों की रफ्तार कुछ देर के लिए रुकी जरूर थी पर काका अब पागल हो चुका था, वो फिर से तेज तेज धक्के मारने लगा और रबड़ी फिर जोर जोर कराहने लगी, फच फच की आवाज से दोनों और उत्तेजित हो रहे थे, बूर के मखमली अहसाह को अब काका झेल नही पाया और एक जोरदार धक्का मरता हुआ अपना पूरा लंड अपनी बहु की बूर में जड़ तक गाड़ता हुआ जोर से कराहते हुए थरथरा कर बूर में झड़ने लगा, ससुर के वीर्य की मोटी मोटी गरम धार जैसे ही रबड़ी को अपने बच्चे दानी पर महसूस हुई वो फिर एक बार गनगना कर झड़ने लगी, अब दोनों सिस्कारते हुए एक साथ झड़ रहे थे, काका ने रबड़ी के पूरे बदन को रगड़ रगड़ कर तोड़कर रख दिया था, उसका रोम रोम ससुर के लंड की चुदाई से पुलकित हो चुका था, काफी देर तक दोनों सिस्कारते हुए एक दूसरे को चूमते सहलाते झड़ते रहे, काका रबड़ी पर ढेर हो चुका था, वीर्य और बूर के रस के साथ बहकर तकिए पर रिस रहा था, तकिया गीला हो चुका था, रबड़ी और काका हांफते हुए एक दूसरे को चूमने लगे, काका रबड़ी पर ढेर हो गया, लंड अभी भी पूरा बूर में घुसा हुआ था,रबड़ी अपने ससुर को अपने ऊपर लिटाकर बड़े प्यार से उसे चूम चूम कर उसके सर को सहलाने लगी। अपनी जाँघो को फैला कर दिखाते हुये
रबड़ी हाये देखो ससुर जी एक दिन मे ही कितनी फैला दी बुर देख रहे हो कितना पानी डाला है आपने