नई दुल्हन
बाप रे बाप भाग-3
कुत्ता लगातार झटके लगा रहा था और हर झटके के साथ कुत्तिया के मुह से चिल्लाने की आवाज आ रही थी लेकिन वह भागने की कोशीश नहीं कर रही थी..
,, रबड़ी को भी यह ना जाने कयों अब अच्छा लगता है. और उसकी योनी मे बहुत तेज़ खुजली सुरु हो जाती है मन मे सोचती है औरत कितना भी चिल्लाये रोये यह बहरेहम मर्द बुर फाड कर ही मजा देते है और फिर फाडे काहे नाही जब फटना ही इसकी गति है
तभी अचानक लाला धोती सभलाते आये
अरे रबड़ी तु कब आई मै मूतने गया था जादा देर तो नही हुई
अब आगे
नही चाचा मै तो अभी अभी ही आई हूँ
अच्छा अच्छा बेटी
अपनी धोती के ऊपर लंड मसलते हुये वो थोड़ा पेशाब करने चला गया था तु बोल कैसे आई
रबड़ी : ''लाला जी, लालाजी , दाल तेल दे दो और 1 चॉकलेट का पैकेट , पैसे बाबू जी शाम को देंगे...''
काहे झूठ बोलती है वो शराबी पैसा देगा अपनी माॅ को भेजती तो भले कुछ चुकता करती
लाला जी ने नज़र भर कर रबड़ी को देखा
उनके सामने पैदा हुई ये फूलों की कलि पूरी तरह से पक चुकी थी
उसकी छोटी-2 स्कर्ट के साथ - साथ कसी हुई टी शर्ट पहनी हुई थी..जिसके नीचे ब्रा भी नही थी..
उसके उठते-गिरते सीने को देखकर
और उनकी बिना ब्रा की छातियो के पीछे से झाँक रहे नुकीले गुलाबी निप्पल्स को देखकर
उन्होने अपने सूखे होंठो पर जीभ फेरी..
अब तु आई ही गई है तो ले जा जो लेना है रबड़ी, बैसे पैसे कौनसा भागे जा रहे है तेरी माँ या तु कभी तो उधार चुकता कर ही देगी वैसे तु भी सयानी हो गई है ... चल जा , अंदर से निकाल ले चॉकलेट जो चाहिये ..''
उन्होने दुकान के पिछले हिस्से में बने एक दूसरे कमरे में रखे फ्रिज की तरफ इशारा किया..
रबड़ी मुस्कुराती हुई अंदर चल दी
इस बात से अंजान की उस बूढ़े लाला की भूखी नज़रें उनके थिरक रहे नितंबो को देखकर, उनके आकार प्रकार का मुआयना कर रहे है
पर उसमे भरी जवानी की चर्बी को वो सही से तोल भी नही पाए थे की उनके दिल की धड़कन रोक देने वाला दृश्य उनकी आँखो के सामने आ गया..
रबड़ी ने जब झुककर फ्रीज में से चाकलेट निकाली तो उसकी नन्ही सी स्कर्ट उपर खींच गयी, और उसकी बिना चड्डी की गांड लाला जी के सामने प्रकट हो गयी...
गोरी चुतड़ो मे छुपा भूरा गांड का छेद जो एकदम कसा था और उसके नीचे चुत के दबे आधे छोठ साफ झलक रहे थे,
कोई और होता तो वहीं का वहीं मर जाता
पर लाला जी ने बचपन से ही बादाम खाए थे
उनकी वजह से उनका स्ट्रॉंग दिल फ़ेल होने से बच गया..
पर साँस लेना भूल गये बेचारे ...
फटी आँखो से उन नंगे कुल्हो को देखकर उनका हाथ अपनी घोती में घुस गया...
और अपने खड़े हो चुके लंड की कसावट को महसूस करके उनके शरीर का रोँया-2 खड़ा हो गया..लंड से निकल रहा प्रीकम उनके हाथ पर आ लगा
उन्होने झट्ट से सामने पड़े मर्तबान से 1 क्रीम रोल निकाल और उसे अपनी धोती में घुसा कर अपने लंड पर रगड़ लिया
उसपर लगी क्रीम लाला जी के लंड पर चिपक गयी और लाला जी के लंड का पानी का धार क्रीम रोल पर.. पानी इतना की क्रीम रोल के चारों तरफ बहकर कोन को एक हिस्से को भिगाते टपकने लगा
जब रबड़ी बाहर आई तो लाला जी ने तेल के पैकेट के साथ वो क्रीम रोल भी उसे थमा दिए
और बोले : "ये लो , ये स्पेशल तेरे लिए है...मेरी तरफ से एकदम ताजा है सेलर अभी दे गया
रबड़ी उसे देखते ही खुश हो गयी, ये उनका फेवरेट जो था, उसने तुरंत वो अपने हाथ में लिया और उस रोल
को मुँह में ले लिया...
लाला सच तेरे यह नमकीन मीठा क्रीम रोल तेरे अलावा कोई नही बेचता बड़ा मस्त है
लाला जी का तो बुरा हाल हो गया
जिस अंदाज से उसने उसे मुँह में लिया था
उन्हे ऐसा लग रहा था जैसे वो उनका लंड चूस रही है
लालाजी के लंड का प्रीकम उन्होंने अपनी जीभ से समेट कर निगल लिया
उन्हे तो कुछ पता भी नही चला पर उस को अपने लंड का पानी चाटते देखकर लाला जी का मन आज कुछ करने को मचल उठा.. .
लालाजी की नज़रें एक बार फिर से उसके कूल्हों पर चिपक कर रह गयी...
और हाथ अपने लंड को एक बार फिर से रगड़ने लगा
रुक थोड़ा हिसाब कर लूँ फिर तेरी दाल तोलता हूँ
कोई बात नही चाचा मुझे भी कोई जल्दी नही तेरा यह क्रीम रोल बड़ा मस्त है
अरे हाये रबड़ी तु भी तो कम मस्त नही
हाये चाचा मै तेरी बेटी समान हूँ
तभी बगल चुदाई करते कुत्ते ने शायद तेजी से धक्का मारा की छोटी कुत्तीया चिल्ला उठी
तभी लाला ने कागज का गोला बना कुत्ते को मारा
चल भाग बेटीचोद अपनी बेटी को चोद रहा है चल भाग साला, तेरी जनी है उसी पर चढ़ा है
इतना सुनते ही रबड़ी की बुर ने पानी फेक दिया रबड़ी ने दोनों पैरो को आपस मे भिड़ा लिया
साला कुत्ता अपनी बिटिया पर ही चढ़ा है, क्या जमाना आ गया है जानवर तक अपनी बिटिया को हचक कर चोद रहे है
हॉ बिटिया तो तेरी दाल ले आऊ और कहते हुये वो अंदर चला गया
रबड़ी तो बुत बनी थी वो समझ रही थी लाला का इशारा किधर है रबड़ी पूरी तरह गरमा गई थी
लाला जब आये तो हाथ मे दाल थी वो तोलने लगे मगर उनका एक हाथ कमर पर था
रबड़ी- क्या हुआ चाचा
लाला : "देख ना..कल रात से तबीयत ठीक नही है...पूरी पीठ दुख रही है...वैध जी से दवाई भी ली..उन्होने ये तेल दिया है...बोले पीठ पर लगा लेना, आराम मिलेगा...अब अपनी पीठ तक मेरा हाथ तो जाएगा नही....इसलिए किसी को मेरी मदद करनी पड़ेगी...'' तु तो जानती है मै रंडवा हूँ, तु बेटी मेरी मदद कर सकती है, फिर तु समान ले जा
लालाजी तो ऐसे हक़ जता कर बोल रहे थे जैसे पूरे गाँव में कोई और है ही नही जो उनकी मदद कर सके..
और उनके कहने का तरीका ठीक वैसा ही था, कि वो मदद कर रहे है पैसो वा समान से तो उस भी कुछ तो करना पड़ेगा ...
इसलिए वो भी समझ गयी की उसे भी लालाजी की मदद करनी ही पड़ेगी...
रबड़ी ने सिर हिला कर हामी भर दी..
लालजी ने तुरंत शटर आधा गिरा दिया और रबड़ी को लेकर दुकान के पिछले हिस्से में बने अपने घर में आ गए...
रबड़ी का दिल धाड़ -2 कर रहा था...
ये पहला मौका था जब वो यहाँ घर मे लालाजी के पास आई थी...
और धूर्त लाला ने मौका देखते ही उसे अपने झाँसे में ले लिया..
अंदर जाते ही लालजी ने अपना कुर्ता उतार दिया..
उनका गठीला बदन देखकर रबड़ी के रोँये खड़े हो गये...
जाँघो के बीच रसीलापन आ गया और आँखों में गुलाबीपन..
लालाजी अपने बिस्तर पर उल्टे होकर लेट गये और रबड़ी को एक छोटी सी शीशी देकर पीठ पर मालिश करने को कहा...
रबड़ी ने तेल अपने हाथ में लेकर जब लालाजी के बदन पर लगाया तो उनके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी...
''आआआआआआआआअहह ...... वाााहह रबड़ी..... तेरे हाथ कितने मुलायम है.... मज़ा आ गया.... ऐसा लग रहा है जैसे रयी छुआ रही है मेरे जिस्म से....आआआअहह शाबाश..... थोड़ा और रगड़ के कर ....आहह''
लालाजी उल्टे लेटे थे और इसी वजह से उन्हे प्राब्लम भी हो रही थी...
उनका खूँटे जैसा लंड खड़ा हो चुका था...
लालाजी ने अपना हाथ नीचे लेजाकर किसी तरह से उसे एडजस्ट करके उपर की तरफ कर लिया...
उनके लंड का सुपाड़ा उनकी नाभि को टच कर रहा था...
पर अभी भी उन्हे खड़े लंड की वजह से उल्टा लेटने में परेशानी हो रही थी...
रबड़ी ये सब नोट कर रही थी...
और उसे लालाजी की हालत पर हँसी भी आ रही थी.
उसने उन्हे सताने का एक तरीका निकाला..
वो बोली : "लालाजी ..ऐसे हाथ सही से नही पड़ रहा...क्या मैं आपके उपर बैठ जाऊं ..''
लालाजी की तो आँखे फैल गयी ये सुनकर...
नेकी और पूछ -2...
लालाजी ने तुरंत लंबी वाली हाँ कर दी...
बस फिर क्या था, रबड़ी किसी बंदरिया की तरह उछल कर उनके कूल्हों पर बैठ गयी...
लालाजी तो जैसे जीते-जागते स्वर्ग में पहुँच गये...
ऐसा गद्देदार एहसास तो उन्हे अपने जीवन में आजतक नही मिला था...
ये रबड़ी के वही कूल्हे थे जिन्हे इधर-उधर मटकते देखकर वो अपनी आँखे सेका करते थे...
आज उसी डबल रोटी जैसी गांड से वो उनके चूतड़ों पर घिसाई कर रही थी...
रबड़ी ने अपनी टांगे मोड़ कर साइड में लगा दी और दोनो हाथो से उनकी पीठ को उपर से नीचे तक उस तेल से रगड़ने लगी..
लालाजी को एक तरफ मज़ा तो बहुत आ रहा था पर उनकी वो तकलीफ़ पहले से ज़्यादा बढ़ चुकी थी...
उनका लंड नीचे दबकर पहले ही फँसा हुआ सा पड़ा था, उपर से रबड़ी का भार आ जाने की वजह से उसका कचुंबर सा निकालने को हो गया था...जैसे कोई मोटा अजगर किसी चट्टान के नीचे दब गया हो
रबड़ी भी अपना पूरा भार अपने कुल्हो पर डालकर लालाजी के चूतड़ों की चटनी बनाने पर उतारू थी...
वो एक लय बनाकर लालाजी के बदन की मालिश कर रही थी...
जिस वजह से लालाजी का शरीर उपर से नीचे तक हिचकोले खाने लगा...
रबड़ी भी लालाजी की शरीर नुमा नाव पर बैठकर आगे पीछे हो रही थी...
और इस आगे-पीछे का स्वाद लालाजी को भी मिल रहा था...
उनके लंड पर घिस्से लगने की वजह से वो उत्तेजित हो रहे थे...
ये एहसास ठीक वैसा ही था जैसे वो किसी की चूत मार रहे हो अपने नीचे दबाकर...
अपनी उत्तेजना के दौरान एक पल के लिए तो लालाजी के मन में आया की पलटकर रबड़ी को अपने नीचे गिरा दे और अपना ये बोराया हुआ सा लंड उसकी कुँवारी चूत में पेलकर उसका कांड कर दे...
पर उन्हे ऐसा करने में डर भी लग रहा था की कहीं उसने चीख मारकर सभी को इकट्ठा कर लिया तो उनकी खैर नही...
इसलिए उन्होंने अपने मन और लंड को समझाया की पहले वो रबड़ी के मन को टटोल लेंगे...
थोड़े टाइम बाद जब उन्हे लगेगा की वो उनसे चुदने के लिए तैयार है और वो इसका ज़िक्र किसी से नही करेगी, तभी उसे चोदने में मज़ा आएगा...
और वैसे भी, अभी के लिए भी जो एहसास उन्हे मिल रहा था वो किसी चुदाई से कम नही था...
उपर से रबड़ी के बदन का स्पर्श भी उन्हे उनकी उत्तेजना को पूरा भड़काने में कामगार सिद्ध हो रहा था...
इसलिए वो उसी तरह, अपने लंड को बेड पर रगड़कर , अपने ऑर्गॅज़म के करीब पहुँचने लगे..
और अंत में आकर , ना चाहते हुए भी उनके मुँह से आनंदमयी सिसकारियाँ निकल ही गयी..
''आआआआआआहह रबड़ी.......मज़ा आ गया.......हायययययययययी..............''
रबड़ी को तो इस बात की जानकारी भी नही थी की लालाजी पुरे ताव मे आ चुके थे....
वो तो उनके अकड़ रहे शरीर को देखकर एक पल के लिए डर भी गयी थी की कहीं बूड़े लालाजी को कुछ हो तो नही गया...
पर जब लालाजी ने कुछ बोला तो उसकी जान में जान आई..
लालाजी : "शाबाश रबड़ी...शाबाश....ऐसी मालिश तो मेरी आज तक किसी ने नही की है.....
पर रबडी शायद उनके खड़े लंड को देखना चाहती थी...
'थोड़ा पलट भी जाइए लालाजी , आपकी छाती पर भी मालिश कर देती मैं ...''
लाला को तो जैसे मन माँगी मुराद पूरी हो गई हो