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Horror नदी का रहस्य (Completed)

Darkk Soul

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bhut hi mast story....but ek jaga samaz nhi aayi....mithun ka mirder kasie...wo to keh rahi thi ki usko posion deke mara lekin fir uska dil kaise gayab tha

दोबारा पढ़िए, कॉन्फेशन वाले हिस्से में आपको कारण मिल जाएगा.

धन्यवाद. :)
 

Darkk Soul

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नेक्स्ट स्टोरी :waiting: Darkk Soul

सच में?! :oops:

मुझे तो लगा की इस कहानी को पढ़ने के बाद फिर कभी कोई नयी कहानी के लिए नहीं बोलेगा. :confused3:

उल्टे कहेंगे की भाई, तू रहने दे... तेरे से न होगा. हम कोई और कहानी पढ़ लेंगे. :lol1::lol1:
 

Moon Light

Prime
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सच में?! :oops:

मुझे तो लगा की इस कहानी को पढ़ने के बाद फिर कभी कोई नयी कहानी के लिए नहीं बोलेगा. :confused3:

उल्टे कहेंगे की भाई, तू रहने दे... तेरे से न होगा. हम कोई और कहानी पढ़ लेंगे. :lol1::lol1:
ऐसा नहीं है !
अच्छा लिखते हो,
ऐसा ही कुछ और लिखो
नए साल में
 

Darkk Soul

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ऐसा नहीं है !
अच्छा लिखते हो,
ऐसा ही कुछ और लिखो
नए साल में
प्रयास करूँगा... विचार तो है कुछ लिखने का. देखते हैं क्या होता है आगे. :)

वैसे भी, प्राइवेट मैसेज में कईयों से गाली पड़ चुकी है नया कुछ नहीं लिखने के कारण. :lol1:
 

Lutgaya

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प्रयास करूँगा... विचार तो है कुछ लिखने का. देखते हैं क्या होता है आगे. :)

वैसे भी, प्राइवेट मैसेज में कईयों से गाली पड़ चुकी है नया कुछ नहीं लिखने के कारण. :lol1:
आप की नई कहानी का इन्तजार है भाई।
और मेरा मैसेज भी चैक कर लो।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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७)

सुबह जब कालू सो के उठा तो उसे अपने सीने पर हल्का चुभता हुआ दर्द महसूस हुआ. एक टीस सी... जलन महसूस हो रही थी.

अपने सीने की ओर देखते ही वो चौंका. वहाँ तीन लकीर सी खरोंचें थीं जो सीने के दाएँ ओर से शुरू हो कर सीने के बाएँ तरफ़ तक गई थी. कालू बुरी तरह डर गया. वो जल्दी से एक छोटा आइना लेकर अपने सीने पर हुए उस घाव को देखने लगा.

सीने के जिस जगह वो तीन खरोंचें थीं.. उसके आस पास के जगह में सूजन आ गई थी.

कालू को बहुत आश्चर्य हुआ.

आश्चर्य होना स्वाभाविक भी है क्योंकि रात को सोते समय तो ऐसा कुछ नहीं था उसके सीने पर... और फ़िर सीना ही क्या पूरे शरीर में इस तरह का कोई दाग कोई निशान नहीं था.

सीने पर उभर आईं उन तीन खरोंचों के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक से उसे पिछली शाम उस चाय दुकान में शुभो और देबू के साथ हुई अपनी दीर्घ वार्तालाप याद आ गई.

और साथ ही याद आई उस वार्तालाप का प्रमुख विषय... ‘रुना और मिथुन!’...

हालाँकि और भी कई सारी बातें हुईं थीं उन तीन दोस्तों में पर जैसे ही ‘रुना भाभी और मिथुन की मृत्यु’ से संबंधित हुई वार्तालाप वाला अंश उसे याद आया; पता नहीं क्यों कालू के पूरे शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई.

अनायास ही उसे एक अपरिचित से भय का अनुभव होने लगा.

उसका मन इस संदेह का गवाही देने लगा की हो न हो, इन खरोंचों का सम्बन्ध कहीं न कहीं मिथुन की मृत्यु से हो सकती है... या फ़िर शायद साँझ के समय ऐसी विषयों पर बात करने के फलस्वरुप कोई बुरी शक्ति उन लोगों के तरफ़ आकर्षित हो गई होगी और उचित समय मिलते ही चोट पहुँचा दी.

कालू अब बहुत बुरी तरह घबराने लगा.

घरवालों से अपनी घबराहट किसी प्रकार छुपाते हुए नित्य क्रिया कर्म से फ़ौरन निवृत हो, नहा धो कर तैयार हो, चाय नाश्ता खत्म करके दुकान खोलने के नाम पर जल्दी से घर से निकल गया.

तेज़ कदमों से चलता हुआ कालू शुभो के घर पहुँचा..

शुभो हमेशा से ही सूरज उगने के पहले ही उठ जाने का आदि था और इसलिए जब कालू उसके घर पहुँचा तो वो उसे जगा हुआ ही मिला.

कालू ने अपने साथ हुई घटना को बताया और प्रमाण हेतु अपना टी शर्ट उतार कर खरोंचों को दिखाया. शुभो को भी विश्वास नहीं हुआ... आम तौर पर इस तरह के खरोंच गिरने से या किसी नुकीली चीज़ के शरीर पर रगड़ जाने से नहीं बनते हैं. सीने पर दाएँ से बाएँ तक बनी ये खरोंच देखने में ही अजीब सी हैं और इनमें तो अब सूजन भी है. शुभो को एकदम से कुछ समझ में नहीं आया की वो बोले तो क्या बोले. पर कालू के मन में बहुत सारी जिज्ञासाओं का जन्म होने लगा था... और ये जिज्ञासाएँ कालू से ही शांत हो जाए ऐसा अकेले उसके बस की बात नहीं.

इसलिए प्रश्न करने की पहल उसी ने करने की सोची,

“शुभो... क्या लगता है यार?”

शुभो अब भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था... वो तो हतप्रभ सा बस उन्हीं खरोंचों को देखे जा रहा था. कालू के दोबारा पूछने पर कहा,

“पता नहीं यार. मुझे ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा है.”

“बिल्कुल भी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?”

“नहीं!”

“पर मैं कुछ कुछ समझ रहा हूँ.”

कहते हुए कालू का चेहरा डरा हुआ सा हो गया.. आँखें भी उसकी भय से पथराई सी लगने लगी. कालू की ये स्थिति देख कर शुभो उत्सुकता और जिज्ञासा से भर गया.

कुछ क्षण उसकी तरफ़ अपलक देखता रहा और जब रहा नहीं गया तब बोल उठा,

“अबे बोल न.. क्या समझ में आ रहा है तेरे को?”

कालू तुरंत कुछ न बोला.

बेचारा बुरी तरह डरा और घबराया हुआ था. थूक निगला.. आस पास देखा... सामने टेबल पर पानी का बोतल रखा हुआ था. लपक कर बोतल उठा लिया और गटागट पूरा पानी पी गया. शुभो इसे गंभीर मामला मानते हुए जल्दी से उसे अपने गद्देदार बिस्तर पर बिठाया और स्टोव पर रखी केतली को हल्के आंच में गर्म कर एक कप में चाय परोस कर कालू की ओर बढ़ाया.

लेने से पहले कालू एक क्षण ठिठका.. फ़िर हाथ बढ़ा कर कप ले कर थोड़ा थोड़ा फूँक कर पीने लगा. इतने देर में शुभो ने दो बिस्कुट भी बढ़ा दिया था कालू की तरफ़.

पाँच मिनट बाद,

“हाँ भई, अब बोल... तू क्या कह रहा था उस समय... क्या समझ रहा था तू?”

कालू को अब थोड़ा नार्मल देख कर शुभो ने पूछने में समय नहीं गँवाया.

कालू ने शुभो की तरफ़ देखा, एक गहरी साँस लिया और बोलने लगा,

“यार क्या बताऊँ.. तुझे याद है न .. कल शाम हम तीन, मैं, तू और देबू; चाय दुकान में थे... और कई सारी बातें हो रही थी हमारे बीच. बहुत सी बातों के बीच हमने; खास कर मैंने रुना भाभी को लेकर कुछ बातें की थीं?”

“हाँ भाई, याद है.. ऐसी कुछ बातें हुई तो थी हमारे बीच... क्यों... क्या हुआ?”

“यार... रुना भाभी और मिथुन के जंगल वाली घटना को बताने के बाद से ही न जाने क्यों मुझे ऐसा लगने लगा था कि हम तीनों की बातों को हमारे अलावा कोई और भी सुन रहा था...या... या शायद ..... खैर, पहले तो मुझे लगा कि दुकान मालिक घोष काका हमारी बातें सुन रहे हैं पर मैंने गौर किया... ऐसा नहीं था.. वो ग्राहकों के साथ व्यस्त थे.. फ़िर पता नहीं.. क्यों मुझे लगने लगा की जो हमारी बातें सुन रहा है.. वो शायद सामने नहीं आना चाहता... या दिख नहीं सकता... या उसे मैं चाह कर भी नहीं देख सकता.... म.. मैं....”

“अबे... रुक ...रुक भाई ..रुक.. क्या अनाप शनाप बक रहा है...? सामने आ नहीं सकता.. दिख नहीं सकता... तू देख नहीं सकता.... साले मुझे गधा समझा है क्या... या एकदम भोर में एक बोतल चढ़ा लिया?”

“अरे नहीं यार... मैं... मैं.. पता.. नहीं कैसे समझाऊँ.. यार... म....”

शुभो ने फ़िर कालू की बात को बीच में काटते हुए बोला,

“सुन भाई... तू अभी ठीक से सोच नहीं रहा है.. तू अंदर से डरा और हिला हुआ है... घर जा.. दवाई लगा... आराम कर.. आज दुकान मत जा... समझा? मुझे देर हो रही है.. समय से पहले दुकान खोलना होता है मेरे को... नहीं तो न जाने कितने ग्राहक लौट जाएँगे... शाम को मिल.. चाय दुकान पे.. वहीँ बात करते हैं.. ठीक है?”

कालू बेचारा और क्या बोले...

शुभो तैयार हुआ.. कालू उसी के साथ घर से निकल गया.

कोई बीस – पच्चीस कदम आगे चल कर शुभो को दाएँ मुड़ जाना था जबकि कालू को वहीँ से बाएँ मुड़ कर अपने घर की ओर जाना था. इसलिए थोड़ी दूर तक दोनों साथ साथ चले. जब तक साथ चले; शुभो कालू को हिम्मत देता रहा, मन बहलाता रहा. कालू को भी थोड़ा अच्छा लग रहा था. मोड़ के पास पहुँच कर शुभो कालू से विदा लिया और चल दिया अपने गन्तव्य की ओर.

कालू भी सोचता विचारता अपने घर की ओर जाने लगा. सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि शुभो के बहुत तरह से समझाने के कारण कालू के मन से डर बहुत हद तक दूर हो गया था. वो अब नार्मल फ़ील करने लगा था.


लेकिन सीने पर लगे खरोंचों के निशान अभी भी दर्द कर रहे थे. शुभो के साथ होती बातों के बीच कालू तो इस दर्द को लगभग भूल ही चुका था पर अब अकेला होते ही दर्द ने अपनी ओर उसका ध्यान खींचना आरंभ कर दिया.


डर तो निकल चुका था उसके दिल और दिमाग से पर ये खरोंच लगे कैसे यही सोचता हुआ कालू तनिक तेज़ी से आगे बढ़ता जा रहा था. वैसे भी शुभो के घर जा कर कुछ देर ठहरने और अब आते आते बहुत समय निकल गया है. अतः अपनी चाल में तेज़ी लाना तो स्वाभाविक ही है.

अचानक वो किसी से ज़ोर से टकराया.


एक महिला की ‘आआऊऊऊ...’ आवाज़ से कालू अपनी विचारों के दुनिया से बाहर आया. हालाँकि इतना वो समझ चुका था कि वो अभी अभी जिससे टकराया है वो.. और कालू खुद एक दूसरे के विपरीत दिशा में गिर चुके हैं.

कालू झटपट उठ कर इधर उधर देखा.

दूर से आती एक रिक्शा के अलावा आस पास कोई नहीं था.

कालू अब नीचे गिर पड़े व्यक्ति की ओर देखा....

अरे ये क्या?!


ये तो रुना भाभी हैं..!!


रुना अब तक उठ कर बैठ चुकी थी.. अपने हाथों और कोहनियों को झाड़ रही थी. वाकई काफ़ी धूल लग गया था उनके कपड़ों और हाथों पर. बाएँ कोहनी के पास तो थोड़ा छिल भी गया है.

खीझ भरे स्वर में डांटते हुए बोली,

“आँखें क्या केवल लोगों को दिखाने के लिए है? देख कर नहीं चल सकते क्या? कम से कम सही जगह तो नज़र होनी चाहिए! रास्ते केवल खुद के चलने के लिए नहीं होते.”

इसी तरह न जाने और कितना ही कुछ कहती चली गई रुना.

पर कालू का ध्यान अब तक उठ बैठी रुना भाभी द्वारा उनके थैली से गिर पड़े सामानों को एक एक कर के डालते समय आगे की ओर थोड़ा झुके होने के कारण वक्षों के उभार पर थी.


सामान थैले में डालने के उपक्रम में ही रुना का आँचल थोड़ा और साइड हुआ और अब आसमानी रंग के शार्ट स्लीव ब्लाउज के बड़े गले से झाँकते बाहर आने को तत्पर उनका दायाँ स्तन किसी भरे हुए बड़े से गोल फल की तरह लग रहा था और गले की सोने की पानी चढ़ी चेन तो जैसे उस लंबी क्लीवेज की गहराईयों में कहीं फँस गई थी शायद.

कालू तो जैसे पलक झपकाना ही भूल गया.

जीवन में ऐसा दृश्य आज से पहले कभी नहीं देखा था उसने. एक स्त्री का अर्ध नग्न स्तन इस तरह से किसी का मन भ्रमित कर सकता है, मोह सकता है ये आज उसने पहली बार अनुभव किया. ब्लाउज कप से फूल कर उठे हुए स्तन ही नहीं अपितु बाहर निकल आई करीब पाँच इंच लंबी क्लीवेज भी रह रह कर कालू की दिल की धड़कन को किसी हाई स्पीड ट्रेन की तरह दौड़ा दे रही थी.

कालू को पहली बार नारी देह की महत्ता का पता चला. नारी देह की शक्ति, क्षमता, सामर्थ्य और सुन्दरता, उसकी वैभवता... मानो ईश्वर ने सभी सर्ववांछित गुण एक देह में ही डाल दिया है.

सभी सामान थैले में डाल लेने के बाद रुना भाभी उठी..

उठ कर कालू को कुछ कहने जा रही थी कि ठिठक गई... कालू की नज़रें अब भी रुना भाभी की वक्षों की ओर था... सुध बुध खोया हुआ सा रुना के शारीरिक कटावों और सौन्दर्य को देखे जा रहा था... रुना दो मिनट के लिए रुक गई... सोची, ‘देखूँ ज़रा.. कब तक.. कहाँ कहाँ ... और क्या क्या देखता है...?’ पर वो जानती थी कि हर किसी के तरह ही कालू भी उसके पूरे शरीर पे केवल एक ही जगह पूरा ध्यान केन्द्रित करेगा और वाकई में ऐसा हुआ भी.

हाथों और कोहनियों पर लगे चोट को भूल रुना अपने चेहरे पर गर्वीली मुस्कान की एक आभा लिए कालू को उसके इस प्रकार के व्यवहार और रास्ते में यूँ ऐसे चलने पर थोड़ा झिड़की और अब तक पास आ चुकी रिक्शा वाले को रुकवा कर उसपे सवार हो कर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ गई.

पीछे कालू अब भी रास्ते पर उसी जगह खड़ा हो कर धीरे धीरे दूर होती जा रही रिक्शे पर बैठी रुना को देख रहा था.

पूरे दिन बेचारे कालू का ज़रा भी मन न लगा कहीं.


घर लौटने के थोड़ी ही देर बाद दुकान पर गया तो ज़रूर.. पर दिमाग अब भी रुना के क्लीवेज पर अटका पड़ा था. आज पहली बार एक महिला, एक भाभी के यौवन रस को एक ज़रा चखने का मन कर रहा था उसका. रह रह कर उसके आँखों के सामने रुना का गुब्बारे जैसा फूल कर ऊपर उठे हुए दाएँ चूची का नज़ारा छा जाता. दिन भर बीच बीच में मन करने पर दुकान से बाहर निकल कर पीछे झाड़ियों की ओर जाता और झाड़ियों में ही थोड़ा अंदर घुस कर अपना पैंट उतार कर काले लंड को बाहर निकाल कर बेरहमी के साथ मसल मसल कर हस्तमैथुन करता.

शाम को अपने दोस्तों से मिलने घोष काका के चाय दुकान पर भी नहीं गया.

मन बेचैन था.. रह रह कर मन में एक हुक सी लगती... कुछ पाने की चाह उसके कोमल हृदय पर एक ज़ोर का प्रहार करती... पर वो अपने मन को समझाते हुए अपना काम करता रहा.

मन ही मन सोच लिया था कि आज उसे हर हाल में रिमी के पास जाना ही होगा.

रिमी गाँव की ही एक मनचली लड़की थी जिसपे कालू का दिल आ गया था.

पिछले कई महीनों से नैन मटक्का के बाद कुछ ही दिन पहले दोनों पहली बार एक दूसरे के करीब... बहुत करीब आये थे. हालाँकि सेक्स होते होते रह गया था.. पर उस दिन ऊपर ही ऊपर जो आनंद मिला था कालू को उसे वो भूले से भी भूल नहीं पाया था. दोनों ने एक दूसरे से वादा भी किया था कि जल्द ही एक दिन दोनों सब कुछ नज़रअंदाज़ कर के एक सुखद समागम करेंगे. अपने पहले संसर्ग को कुछ ऐसा करेंगे की वह ताउम्र यादगार बन जाए.


जल्दी से काम निपटा कर कालू दुकान बढ़ाया (बंद किया) और रिमी की घर के रास्ते चल पड़ा. सुबह रुना को देखने के बाद से ही उसके दिमाग में सेक्स के कीड़े उछल कूद कर रहे थे. इसलिए उसका इस बात पे जल्दी ध्यान नहीं गया कि आज उसे लौटने में काफ़ी देर हो गई है. और दिनों में संध्या सात होते होते दुकान बढ़ा दिया करता है और कभी कभी तो छह बजने से पहले ही दुकान बढ़ा कर दोस्तों के साथ चाय दुकान में गप्पे शप्पे हांका करता.. और फ़िर घर लौटते लौटते नौ बज जाते.

पर आज तो साढ़े आठ यहीं बज गए.

वह तेज़ क़दमों से रिमी के घर की ओर बढ़ा जा रहा था. चाहे कुछ भी हो जाए... चाहे सेक्स न हो... पर थोड़ी शांति तो आज उसे चाहिए ही. रिमी का कमरा घर के पीछे तरफ़ था जहाँ वो आराम से जा सकता है और उतने ही आराम से रिमी के कमरे में घुस सकता है. उसके माँ बाप और बूढ़ी दादी उसके कमरे में जल्दी नहीं आते. कुछ कहना होता तो बाहर से आवाज़ देते या दरवाज़ा खटखटाते. इसलिए सेक्स के संभावना तो बनती ही बनती है.. और कुछ नहीं तो ऊपर ऊपर से ही मज़े ले लेगा. वो भी तो कितना तरसती है उसके आलिंगन के लिए. होंठों पर भी चुम्मा लिया जाता है ये तो उसे पता ही नहीं था. ये भी रिमी ने ही उसे कर के दिखाया था. ‘आहा! सच में. कितना मज़ा आता है न... खास कर संतरे जैसे कोमल नर्म ताज़े उगे चूचियों को कस कर मुट्ठियों में भींच कर गोल गोल घूमाते हुए मसलने में तो एक अलग ही आनंद है.’ मन ही मन ऐसा सोचता चहकता हुआ कालू बढ़ा चला जा रहा था रिमी के घर.


अभी मुश्किल से कोई आधा किलोमीटर दूर होगा वो रिमी के घर से कि अचानक उसे लगा की उसने कुछ सुना.

वो फ़ौरन पलट कर पीछे घूम कर देखा.

रात के अँधेरे में जहाँ तक और जितना स्पष्ट देखा जा सकता है... देखा.

नहीं... कहीं कुछ नहीं.

‘तो फ़िर... वो आवाज़... कहीं भ्रम तो नहीं? शायद सुनने में गलती हुई है.’

कुछ कदम और चलने पर फिर वैसी ही एक आवाज़.

कालू फिर रुका...

इधर उधर देखा..

पीछे मुड़ कर भी देखा.

पर कहीं कुछ नहीं दिखा. दूर दूर तक कोई इन्सान तो छोड़िये; परिंदा तक नहीं था.

सन्नाटा गहरा रहा था.


इस गाँव में आठ बजते बजते सब अपना अपना दुकानदारी वगैरह निपटा कर अपने घरों की ओर प्रस्थान करने के लिए प्रस्तुत होने लगते हैं. साढ़े आठ या पौने नौ होते होते अधिकांश घरों के दरवाज़े बंद हो जाते हैं और कई के घरों के तो लालटेन, मोमबत्ती, बल्ब इत्यादि बुझ जाते हैं. कुछ आवारा मवाली टाइप लड़के और पियक्कड़ प्रौढ़ ही जगह जगह रास्तों में मिल जाते हैं. वो भी हर रात नहीं.

आज की रात भी शायद ऐसी ही एक रात है.

कालू आगे बढ़ने के लिए जैसे ही अपना दायाँ कदम उठाया; वही आवाज़ फिर सुनाई दी.

वो सिहर उठा. रिमी से मिलने के रोमांच के जगह अब धीरे धीरे डर अपना घर करने लगा उसके मन में.

अब भला रात के ऐसे माहौल में किसे डर न लगे.

डरते डरते किसी तरह कदम आगे बढ़ाया.. अब कोई आवाज़ नहीं... वो अब पहले से थोड़ा तेज़ गति में चलने लगा. पर रह रह कर उसके टांग काँप उठते. वो लड़खड़ा जाता. खुद को स्थिर करने के लिए उसने अपने कमीज़ की पॉकेट से माचिस और एक बीड़ी निकाल लिया. जलाने लगा. पर तीली जली नहीं. फिर कोशिश किया.. फिर नाकाम रहा. उसने गौर किया; उसके हाथ कांप रहे हैं.

दो बार और कोशिश किया उसने. तीसरी बार में सफल रहा.

बीड़ी फूँकते हुए कुछ कदम आगे बढ़ा कि फिर वही आवाज़. पर इस बार वो आवाज़ को पहचान गया. पायल की आवाज़ थी!

और इस बार तुरंत ही एक और आवाज़ भी सुनाई दिया जो स्पष्टतः एक महिला की थी.

कालू एक झटके में पीछे घूमा... और पीछे जिसे देखा उसे अभी इस समय देखने की उसने कल्पना तक नहीं की थी.

घोर आश्चर्य में बरबस ही उसके मुँह से निकला,

“अरे भाभी जी... आप??!!”

रुना ही खड़ी थी..!


बड़ी ही अदा से मुस्कराई. आँखें तो ऐसी लग रही थी मानो पूरा एक बोतल गटक कर आई हो... नशा ही नशा छाया था उन आँखों में. करीने से काजल लगा हुआ. होंठों पर बड़ी खूबसूरती से लगी लाल लिपस्टिक. पहले कभी गौर किया नहीं पर आज देखा की निचले होंठ के बायीं तरफ एक बहुत ही छोटा सा तिल भी है. बालों को भी बिल्कुल अलग ही अंदाज़ में कंघी की हुई है उसने. खोपा में एक छोटा सा लाल गुलाब खोंसा हुआ. सामने चेहरे पर दोनों साइड से दो लटें लटकी हुईं.

कालू की नज़रें अब नीचे फिसली.


लाल रंग की शोर्ट स्लीव ब्लाउज.. लाल साड़ी जिसे बहुत कस कर लपेटा गया है बदन पर... आँचल दाएँ वक्ष पर से हट कर पूरी तरह से बाएँ पर है. इससे उस टाइट ब्लाउज में उसके भरे स्तन और भी फूल कर ऊपर को उठे हुए दिख रहे हैं. सोने की चेन बिना रौशनी पाए ही चमचम कर रही है... और सुबह की ही तरह ब्लाउज से ऊपर निकल आए उस लम्बे क्लीवेज के अंदर घुसी हुई है. ब्लाउज के पहले दो हुक आपस में ऐसे लगे हुए हैं मानो थोड़ा और दबाव पड़ते ही टूट जाएँगे. दोनों हाथों में लाल चूड़ियाँ और बंगाली औरतों के हाथों में पहनी जाने वाली सफ़ेद शाखा चूड़ी भी है.

साड़ी कमर पे पीछे से अच्छे से लिपटी हुई पर आगे आते आते नीचे की ओर झुक गई है. इससे नाभि स्पष्ट दिख रही है. कमर पर भी एक सोने की कमरबंद है जोकि गले की चेन की ही तरह बिना किसी रौशनी के चमक रही है.

कालू को तो रत्ती भर का विश्वास नहीं हो रहा कि जिसे पूरा गाँव एक शालीन वधू और सुशिक्षित शिक्षिका के रूप में जानता है; वो आज, अभी उसके सामने एक खेली खिलाई औरत की भांति इतराते हुए खड़ी है!

बहुत मुश्किल कालू के मुँह से शब्द निकले,

“भाभी.. आप.. इस...इस समय... यहाँ.... क्यों?”

रुना हँसी... उसकी वो हँसी वहां गूँजती हुई सी प्रतीत हुई,

“हाहाहा... क्यों कालू... मैं आ नहीं सकती क्या?”

कहते हुए अपना मुँह एक रुआँसे बच्चे के जैसे बना ली.

कालू के मुँह से शब्दों ने जैसे न निकलने की ठान ली हो. डर तो उसे ज़रूर लग रहा था और अब भी लग रहा है पर अब डर के साथ साथ कामोत्तेजना भी हावी होने लगी है.

कालू की नज़रें एक बार फिर रुना की काजल लगी आँखों से होते धीरे धीरे उसके लाल होंठ और फिर वहाँ से सीधे ब्लाउज कप्स में समाने से मना करते ऊपर की ओर निकल आए स्तनों और उनके बीच की गहरी घाटी में जा कर रुक गई. कुछ क्षण अच्छे से देखने के बाद उसने जल्दी से एक नज़र रुना की गोल गहरी नाभि और थोड़ा नीचे बंधे कमर के कटाव की महत्ता बढ़ाती कमरबंद पर डाली.

बेचारा बुरी तरह कंफ्यूज होने लगा कि जी भर कर क्या देखे....

रसीले, फूले हुए स्तनों और बीच की घाटी को.... या फिर गहरी नाभि और कमर को?

रुना इठलाती, मुस्कराती हुई तीन कदम चल कर कालू के और पास आई. उसकी आँखों में देखते हुए खनकती आवाज़ में बोली,

“सुनो.. मेरा एक बहुत ज़रूरी काम है.... कर दोगे?”


रुना के ये शब्द कालू के कानों में कोयल की मधुर आवाज़ सी सुनाई दी. कालू मन ही मन एक बार फिर ऐसा ही कुछ सुनने को मतवाला होने लगा. वो अपनी इस आदरणीय आकर्षणीय भाभी से ऐसी ही खनकती आवाज़ को फिर से सुनाने के लिए विनती करने की सोचने लगा. पर बेचारा सोच भी कहाँ पा रहा था... रुना उसके इतने करीब आ गई थी कि उसकी नज़र तो अब सीधे रुना के चेहरे और वक्षों पर ही जा कर रुक रही थीं.

कालू को कुछ न बोलते देख रुना मुस्कराते हुए अपना दायाँ हाथ कालू के सीने के बाएँ तरफ उसके दिल के ठीक ऊपर रखती हुई बोली,

“कालू.... तुम मेरा काम कर दोगे न?”

बात ख़त्म करते करते रुना हौले हौले कालू के दिल के ऊपर रखे अपने हाथ को गोल गोल घूमाने लगी.

“हाँ भाभी... करूँगा.”

कालू बोला तो सही; पर उसे खुद नहीं पता की उसने क्या बोला और किस बात पे बोला.

पर शायद रुना को इस बात से कोई मतलब नहीं था.

एक बार फिर एक बहुत ही खूबसूरत मुस्कान होंठों पर लाई, अँगुलियों के एक छोटी सी करतब से कालू के शर्ट के एक बटन को खोल कर उसके सीने पर नए नए उगे बालों पर एक ऊँगली फिरा कर बोली,

“तो फिर आओ मेरे साथ....”

“क...क...हाँ... भाभी...”

“अरे आओ तो सही... आओगे तो खुद पता चल जाएगा... है न?”

“ज....जी भा...भाभी.”

रुना एक बार फिर हँसी... वही खनकदार... मीठी... कोयल से स्वर में.

हँस कर वो एक तरफ चल दी. आगे आगे वो.. पीछे पीछे कालू उसके मटकते पिछवाड़े को देखता हुआ चला जा रहा था.

इस पूरे घटनाक्रम को दो जोड़ी आँखें देख रही थीं.

एक तो अपने घर के पीछे वाले कमरे की खिड़की से खुद रिमी और दूसरा एक मताल पियक्कड़... जो दो बोतल खाली करने के बाद बेहोश होने के कगार पर था. वो शराबी न तो ठीक से कुछ देख सका और न ही अधिक देर तक होश में रह पाया; पर रिमी... जिसका घर अपेक्षाकृत थोड़ा नजदीक था और जिसकी खिड़की से कालू जहाँ खड़ा था; रास्ते के उस हिस्से को आसानी से देखा जा सकता है; वो भी ठीक से कुछ देख न पाई. एक तो वैसे ही स्ट्रीट लाइट की कोई व्यवस्था नहीं है और दूसरे, थोड़ा ही सही पर कालू दूर तो था ही...


रिमी को सिर्फ इतना ही दिखा की एक कोई मर्द खड़ा है और एक औरत. दोनों में कुछ बातें हो रही हैं और फिर औरत के पीछे पीछे मर्द एक ओर चल देता है. दोनों ही कुछ कदम चले होते हैं कि अचानक कोहरा सा एक धुंध सामने प्रकट हो जाता है और कुछ क्षण बाद जब धुंध हटता है तो वो आदमी और औरत कहीं दिखाई नहीं देते.

ऐसा दृश्य चूँकि रिमी ने आज पहली बार देखा इसलिए बेचारी बहुत डर गई और झट से खिड़की बंद कर के अंदर चली गई.

इधर,

कालू रुना के पीछे चलते चलते एक वीरान मैदानी जगह के बीचोंबीच पहुँच गया... अब जहाँ वो और रुना थे उससे यही कोई दस बारह क़दमों की दूरी पर चारों तरफ खंडहर नुमा घरों के बचे खुचे अवशेष उन्हें घेरे हुए थे.

कालू कहाँ पहुँच गया... क्यों आया... और सबसे बड़ी बात कि किसके साथ आया... ये सब कुछ भी उसे नहीं पता... किसी भी बात का होश नहीं.

वो तो बस अपने सामने उसकी तरफ पलट कर खड़ी स्वर्ग से भी सुन्दर अप्सरा को अप्रतिम कामेच्छा से निहार रहा था... उसे आमंत्रित करते रुना के लाल होंठों की मुस्कान, पुष्ट वक्ष और कटावदार कमर बस जैसे उसी के लिए बने थे.

कालू की आँखें धीरे धीरे बोझिल हो आई थीं.

धीरे धीरे सुध बुध खोता जा रहा था..

पूरी तरह से आँखें बंद होने के पहले का जो अंतिम दृश्य उसने देखा वो उसके अंदर की कामोत्तेजना में कई गुणा वृद्धि कर गई. अपनी लगभग बंद हो आई आँखों से उसने रुना के कंधे से आँचल के सरकने और क्षण भर बाद ही उस टाइट लाल ब्लाउज को रुना के बदन से अलग होते देखा.....
रुना के रूप में कोई है या रना के शरीर में??
 
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