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Horror नदी का रहस्य (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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रह रह कर कालू के आँखों के सामने कुछ दृश्य उभर आते और उसी के साथ कालू का सिर दुखने लगता. इसी दर्द से कालू बिस्तर पर पड़े पड़े छटपटाने लगता.

बंद आँखों से सजग रहते हुए ही उन दृश्यों को समझने का प्रयत्न करता; पर जैसे ही दिमाग पर जरा सा ज़ोर क्या लगाता सिर फिर से दुखने लगता. कुछ टूटे बिखरे से रंगीन दृश्य; जो यदि जरा सा थम जाए या धीमे हो जाए तो तब शायद कुछ समझ पाए कालू... पर.... पर... दृश्य तो जैसे सब खिचड़ी से आते जाते.

बस इतना ही समझ पाया था कालू कि इन दृश्यों का उससे अवश्य कोई सम्बन्ध है अन्यथा वो स्वयं को इन दृश्यों में नहीं पाता.

पर... पर... ये दूसरा व्यक्ति कौन है?

जिन दृश्यों को अपने बंद आँखों से देख रहा है... जिन्हें वो सपना समझ रहा है.... उन सपनों में उसके अलावा कोई और भी है जिसे वो महसूस तो कर पा रहा है पर स्पष्ट देख नहीं पा रहा.

तभी किसी ने उसे ज़ोर से हिलाया, झकझोरा...

एक झटके से उठ बैठा वो.

देखा, उसके आस पास उसे घेरे हुए बहुत लोग हैं; दोस्त हैं, सम्बन्धी हैं, गाँव के कुछ लोग हैं, पड़ोसी हैं, पिताजी बिस्तर पर उसके पास बैठे हुए हैं, माताजी सिरहाने बैठी उसे हाथ वाले पंखे से हवा कर दे रही हैं.

कालू अपनी आँखें मलता हुआ चारों ओर और अच्छे से देखा तो पाया कि वो इस समय अपने कमरे में ही है.

कालू हैरानी से सबको देखने लगा. खास कर माँ की आँखों में आँसू और पिताजी के चेहरे पर गहरी चिंता देख कर उसे बहुत ज्यादा हैरानी हुई. शुभो और देबू थोड़ा पास आ कर उसकी ओर झुक कर पूछे,

“कालू... यार... कैसा है तू... क्या हुआ था तुझे?”

उनका ये पूछने भर की देरी थी कि जितने भी लोग वहाँ उपस्थित थे, सब के सब यही प्रश्न एक साथ करने लगे.

गहरी नींद से उठा कालू बेचारा कुछ समझ ही नहीं पा रहा था की देबू और शुभो ने उससे क्या पूछा और उसके परिवार जनों के साथ साथ बाकी के लोग भी आखिर उससे क्या जानना चाहते हैं. उसने असमंजस भरी निगाहों से अपने माँ बाबूजी की ओर देखा. दोनों को देख कर ये साफ़ महसूस किया उसने की दोनों अभी अभी किसी गहरी दुष्चिन्ता से बाहर निकले हैं.

उसे घेर कर खड़े लोगों ने फिर से प्रश्नोत्तर का पहला चरण शुरू कर दिया और इसी में पूरा दिन पार हो गया.

शाम को वो घर पर ही रहा.

लोगों के प्रश्नों के बारे में सोचता रहा.

सबके प्रश्न उसे बहुत अटपटे और मजाकिया लग रहे थे.

“तुम्हें क्या हुआ था... कहाँ चले गए थे... ऐसा क्यों हुआ... और कौन था साथ में....” इत्यादि इत्यादि प्रश्न.

इन सबके अलावा जो चीज़ उसे सबसे अजीब लग रही थी वो ये कि उसे कुछ भी याद क्यों नहीं है. यहाँ तक की उसे शुभो के घर जाने के बारे में भी कुछ याद नहीं. वो तो शुभो ने उससे जब पूछा की उसके घर से जाने के बाद वो कहाँ गया था और शाम को मिलने क्यों नहीं आया था.. तब कालू को पता चला की वो शुभो के घर गया था और शाम को मिला भी नहीं अपने दोस्तों से.

कालू ने शर्ट के बटन खोल कर अपने सीने पर अभी भी ताज़ा लग रहे उन तीन खरोंचों को देखा.

आश्चर्य..

इनके बारे में भी कुछ याद नहीं उसे.

बस यही समझ पाया की इनमें अब सूजन और दर्द नहीं है.

अगले दिन सुबह आठ बजे शुभो उसके घर आया.

जल्दी ही आया क्योंकि उसे फिर जा कर अपनी दुकान भी खोलनी थी.

कालू अपने कमरे में ही बैठा चाय पी रहा था. दोस्त को आया देख बहुत खुश हुआ और बैठा कर उसे भी चाय बिस्कुट दिया. थोड़ी देर के कुशल क्षेम और इधर उधर की बातचीत के बाद कालू गम्भीर होता हुआ बोला,

“यार, कुछ पूछना है तेरे से... पूछूँ?”

गर्म चाय की एक सिप लेता हुआ शुभो बोला,

“हाँ ... पूछ.”

“यार.... हुआ क्या था?”

होंठों तक चाय के कप को लाते हुए शुभो रुक गया और शंकित लहजे में कालू से पूछा,

“मतलब?”

“मतलब, मेरे साथ क्या हुआ था... मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं है? आधे से ज्यादा गाँव वाले, दोस्त, रिश्तेदार, माँ बाबूजी.. सब के सब मुझे घेर कर क्यों खड़े थे? मामला क्या है?”

चाय खत्म कर कप को एक साइड रखते हुए पॉकेट से बीड़ी निकाल कर होंठों के बीच दबाते हुए शुभो पूछा,

“यार एक बात तो मुझे समझ नहीं आ रही और वो यह कि तू सच बोल रहा है या झूठ ... की तुझे कुछ भी याद नहीं. वैसे तू जिस हालत में मिला था, उससे तो तेरी इस बात पे की तुझे कुछ पता नहीं या कुछ भी याद नहीं; पर विश्वास किया जा सकता है.”

“हालत? कैसी हालत?”

कालू उत्सुक हो उठा.

बीड़ी सुलगाते हुए शुभो बोला,

“नंगा!”

कालू समझा नहीं... इसलिए दोबारा पूछा,

“क्या? क्या बोला तू?”

कालू की ओर देख कर शुभो फिर अपनी बात को दोहराया; पर इस बार थोड़ा अच्छे से बोला,

“अबे तू नंगा था... नंगा ! एकदम निर्वस्त्र!... नंगी हालत में गाँव के ताल मैदान में मिला था तू. नंगा तो था ही... साथ ही बुखार से तड़प रहा था... और...”

“और?”

“और धीमे आवाज़ में एक ही बात को बार बार दोहरा रहा था... ‘और चाहिए... और चाहिए’... सबने सुना पर किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया. अब ये ‘और क्या चाहिए’ ये तो तू ही बता सकता है. है न?”

व्यंग्य करता हुआ शुभो कालू को तीक्ष्ण दृष्टि से देखा.

कालू तो शुभो की बात सुनकर ही हैरान परेशान हो गया. अभी अभी शुभो ने उसे जो कुछ भी बताया; उनसे वो कुछ भी नहीं समझा... पर कालू के चेहरे पर उमड़ते चिंता के बादल से इतना तो तय है कि कालू वाकई में कुछ नहीं जानता है.

शुभो सामने दीवार घड़ी पर नज़र डाला.

अब उसके उठने का समय हो आया है अतः बीड़ी को जल्दी खत्म कर के उठता हुआ बोला,

“देख भाई, सही गलत, याद आना या नहीं आना बाद की बात है. सबसे पहले तो तू कुछ दिन और आराम कर... चंगा हो जा, हम लोग के साथ चाय दुकान पर बैठना शुरू कर, पहली वाली दिनचर्या शुरू होने दे.. फिर इस बारे में कभी सोचेंगे. ठीक है? अब चलना चाहिए मेरे को. समय हो रहा है.”

कहते हुए शुभो कालू के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रखा, फिर पलट कर जाने लगा.

दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि कालू ने पीछे से पूछा,

“यार... देबू नहीं आया?”

ठीक दरवाज़े के पास जा कर ठिठक कर रुका शुभो; कालू की ओर पीछे मुड़ा और एक मुस्कान लिए बोला,

“वो तो अभी नहीं आ सकता न... सुबह सुबह सबको दूध पहुँचाता है... पर कह रहा था कि तुझसे ज़रूर मिलेगा. उसे भी तेरी बहुत चिंता हो रही थी.”

इतना कह कर शुभो कमरे से निकल गया.

इस समय कालू शुभो का चेहरा नहीं देखा पाया; अन्यथा बड़ी आसानी से बता देता की शुभो ने उससे झूठ बोला.

इधर कालू के घर से निकल कर शुभो अपनी दुकान की ओर साइकिल चलाता कालू के बारे में सोचता हुआ जा रहा था.

अभी कुछ दूर गया ही होगा कि तभी उसे दूर से देबू आता दिखा. वो भी अपनी साइकिल पर दूध के बड़े बड़े तीन कैन लिए मस्ती में झूमता हुआ सा चला आ रहा था. सुबह सुबह अपने एक और जिगरी यार को देख कर शुभो बहुत खुश हुआ और साइकिल तेज़ चलाता हुआ आगे बढ़ा.

पर उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा जब उसने देखा की देबू न सिर्फ अपनी धुन में उस के आगे आया, अपितु उसके बगल से ऐसे निकल गया मानो शुभो वहाँ है ही नहीं. शुभो की ओर नज़र फेर कर भी नहीं देखा.

शुभो के बिल्कुल बगल से निकल जाने के बाद भी देबू के साइकिल के स्पीड में कोई कमी नहीं आई. पहले की ही भांति अपनी ही दुनिया में मग्न वह चला जा रहा था. शुभो पीछे मुड़ कर देबू को आवाज़ लगाया ये सोच कर कि अगर देबू ने उसे वाकई में नहीं देखा होगा तो कम से कम आवाज़ सुन कर रुक जाएगा.

पर ऐसा हुआ नहीं.

उल्टे ऐसा लगा मानो देबू ने अपना स्पीड बढ़ा दिया है.

शुभो को कुछ ठीक नहीं लगा. देबू उसे ऐसे नज़रंदाज़ भला क्यों करे? शुभो को ये बात अजीब लगा. उसने साइकिल घूमाया और चल पड़ा देबू के पीछे. पर जान बूझ कर देबू से दूरी बनाए रखा.

देबू सीधे नबीन बाबू के घर जा कर रुका.

सीटी बजाते हुए साइकिल का स्टैंड लगाया, कैन उतारा और दरवाज़ा खटखटाया. अंदर से शायद किसी ने पूछा होगा कि ‘कौन है?’ तभी तो देबू ने बाहर से आवाज़ लगाया,

“मैं हूँ भाभी जी. दूध ले लीजिए.”

दो मिनट बाद दरवाज़ा खुला और अंदर से रुना भाभी मुस्कराती हुई बाहर निकली. लाल साड़ी-ब्लाउज में एक लंबी वक्षरेखा दिखाती रुना इतनी सुंदर लग रही थी कि उसे देखने के बाद शुभो तो क्या; गाँव का अस्सी – नब्बे साल का बूढ़ा भी उसके प्रेम में पड़ जाए.


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दोनों में थोड़ी सी बातचीत हुई और फिर रुना भाभी अंदर चली गई.

देबू भी एक मिनट बाद अपने चारों ओर अच्छे से देखने के बाद अंदर घुसा और दरवाज़ा बंद कर दिया.

शुभो पहले तो कुछ समझा नहीं. और फिर जो कुछ भी वो समझा, उसे मानने के लिए वो कतई तैयार नहीं हुआ. देबू एक अच्छा लड़का है और उसका दोस्त भी. वहीँ रुना भाभी भी एक सुशिक्षित और अच्छे आचार विचार वाली महिला हैं. ऐसे कैसे वो कुछ भी समझ और मान ले.

करीब दस मिनट तक वो अपनी जगह पर ही खड़ा देबू के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा.

जब देबू दस मिनट बाद भी नहीं निकला तब उसका सब्र का बाँध टूट गया. साइकिल बगल की झाड़ियों के अंदर खड़ी कर के शुभो घर के मुख्य दरवाज़े तक आया. हाथ बढ़ा कर दस्तक देने ही वाला था कि रुक गया. सोचा, ‘ये ठीक नहीं होगा. कुछ और करना चाहिए.’ कुछ पल सोचा और फिर कुछ निश्चय कर दरवाज़े से हट गया. बाहर से खड़े खड़े ही पूरे घर को अच्छे से निहारा और घूम कर घर के पिछवाड़े की ओर चल दिया.

घर के पीछे एक छोटा सा मैदान जैसा ज़मीन था जिसे देख कर साफ पता चलता है की एक समय यहाँ एक सुंदर बगीचा हुआ करता था. अभी भी कुछ छोटे छोटे पौधे लगे हुए थे. खास कर गेंदे के पौधे... कुछ सूखे हुए तो कुछ हरे भरे. कुछेक बांस को काट कर उन्हीं से बाउंड्री बनाया गया था कभी पर आज अधिकांश हिस्सा टूटा हुआ है.

शुभो आगे कुछ सोचता कि तभी उसे ऊपर के कमरे से हँसने की आवाज़ आई. अब वो और देर नहीं करना चाहता. जल्दी अपने चारों ओर देखा. थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा सा पेड़ दिखा. दौड़ता हुआ गया और जितनी जल्दी हो सके पेड़ पर चढ़ने लगा. थोड़े से प्रयास के बाद शुभो पेड़ के सबसे ऊँची डाली पर पहुँच गया. खुद को अच्छे से डालियों पर जमा लेने के बाद वो रुना के घर की तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा. खास कर उस कमरे की ओर जहाँ से कुछ मिनट पहले उसने हँसी की आवाजें सुनी थी.

वहीँ एक डाली पर बैठे बैठे एक अनजाना तीव्र कौतुहल के साथ साथ भय भी घर किए जा रहा था शुभो के मन में,

‘क्या हो अगर किसी ने उसे इस तरह पेड़ पर बैठे देख लिया? क्या होगा अगर वो रुना भाभी के कमरों की ताक – झाँक करते हुए पकड़ा गया?? अपने इस उद्द्दंड शरारत का क्या स्पष्टीकरण देगा वो???’

इस तरह के अनगिनत भयावह परिस्थितियाँ और प्रश्नों के घेरे में खुद को संभावित तौर पर फँसता देखने में व्यस्त शुभो शायद थोड़ी ही देर बाद उतर जाने का निर्णय ले लेता कि तभी....

तभी उसे उसी कमरे में एक हलचल होती दिखाई दी.

सामने की तीन कमरों में एक कमरे में एक स्त्री दिखाई दे रही है.

रुना भाभी ही है वो.

मस्त अल्हड़ जवानी लिए किसी के साथ मदमस्त हो झूम रही है. शायद जिसके साथ वो है; उसकी बाँहों में आने से बचने की कोशिश कर रही है. और जिससे बचने की कोशिश कर रही है.. वो और कोई नहीं, देबू है.

रुना के चेहरे पर एक बहुत ही अलग तरह की रौनक है... और... देबू भी कितना खुश लग रहा है. अजीब, अलग सी ख़ुशी. जैसे बहुत जिद, मिन्नत, विनती और एक लंबी प्रतीक्षा के बाद एक बच्चे को उसका मनपसंद कोई सामान.. कोई खिलौना मिलता है तो वो कैसे खुश होता है... बिल्कुल वैसे ही.

पेड़ की ऊँची डाली पर बैठा शुभो देख रहा था कि कैसे देबू ने अंततः रुना भाभी को अपनी बाँहों में ले लिया और फिर एक दीवार से भाभी की पीठ को लगा कर उनकी आँखों, गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगा. रुना कुछ पलों के लिए चुपचाप बुत सी खड़ी रही... फिर... धीरे धीरे... अपने दोनों हाथों को देबू के पीछे, उसके पीठ पर ले जाकर अच्छे से पकड़ ली.

देबू रुके नहीं रुक रहा था. या शायद खुद को रोकना ही नहीं चाह रहा था. गालों और होंठों को चूमते हुए वह थोड़ा नीचे आया और रुना के चेहरे को थोड़ा ऊपर उठा कर, उनकी गर्दन को चूमने और चूसने लगा. जैसे ही देबू ने भाभी की गर्दन को चूसना शुरू किया ठीक तभी उनकी होंठों पर एक मुस्कान तैर गई और ये मुस्कान साफ़ बता रही थी कि भाभी को न सिर्फ इस क्रिया से एक अपरिचित सुख मिल रहा है अपितु उन्होंने तो शायद ऐसे किसी क्रिया और उससे मिलने वाली सुख के बारे में कभी कल्पना भी नहीं की होगी.

देबू कभी उनकी जीभ को चूसता तो कभी गालों को. रह रह कर रुना की पूरी गर्दन को चुम्बनों से भर देता. इस पूरे काम क्रिया के दौरान रुना हँसती रही और देबू के पीठ और सिर के बालों को सहलाती रही.

इधर देबू के हाथ भी हरकत में आ रहे थे. धीरे धीरे उसने रुना के ब्लाउज के सभी हुक खोल दिया. ब्लाउज के खुले दोनों पल्लों को साइड कर वो रुना के गदराई दुधिया स्तनों का ब्रा के ऊपर से ही हस्त मर्दन करने लगा. उसके हाथों का स्पर्श पाते ही रुना ऐसे चिहुंक उठी मानो बरसों की तड़प पर आज किसी ने पानी डाल कर शांत किया हो.

वो और कस कर जकड़ ली देबू को.

देबू भी तो यही चाह रहा था. दरअसल वो हमेशा से ही ऐसी गदराई महिलाओं का दीवाना रहा है जिनका नैन नक्श अच्छा हो, बड़े स्तनों के साथ गदराया बदन हो, अपेक्षाकृत पतली कमर हो और सहवास के समय जो अपने साथी को अपने बदन से जम के जकड़ ले.

यौन उन्माद की अतिरेकता में देबू ने ब्रा उतारने का झंझट न ले कर ब्रा कप्स को एक झटके में नीचे कर दिया. कठोर मर्दन के कारण दुधिया रंग से सुर्ख गुलाबी हो चुके दोनों स्तन एकदम से कूद कर बाहर आ गए. दोनों स्तनों के बस बाहर आने की ही देर थी; देबू ने उन्हें लपकने में क्षण भर का भी समय नहीं गँवाया. कॉटन से भी अधिक मुलायम दोनों स्तनों के स्पर्श का आनंद अपने हथेलियों द्वारा लेते हुए सुध बुध खोया सा देबू ने अपना मुँह दोनों स्तनों के बीच में घुसा कर दोनों तरफ से मुलायम दुदुओं का दबाव अनुभव करने लगा.

बहुत ही भिन्न और दिमाग के सभी बत्तियों को गुल कर देने वाली एक मीठी सुगंध आ रही थी रुना के शरीर से... विशेषतः उसके स्तन वाले क्षेत्र से.

और इसी मीठी सुगंध से पागल सा हुआ जा रहा था देबू. जीवन में अभी तक शायद ही कभी ऐसी सुगंध से वास्ता हुआ होगा. जैसे एक मतवाला हाथी हरे भरे खेत में बेलगाम घुस कर सभी फ़सल को ध्वस्त कर देता है; ठीक वैसे ही देबू भी मतवाला हो चुका था और बेलगाम हो कर उस हसीन तरीन गदराई स्त्री देह को रौंद देना चाहता था.

इधर,

दो जवान सख्त हाथों के द्वारा अपने सुकोमल नग्न स्तनों पर पड़ते दबाव से बुरी तरह तड़पते हुए कसमसा रही थी रुना. पुरुषों की एक प्राकृतिक एवं स्वाभाविक लालसा होती है स्त्री देह पर ... विशेष कर उसके वक्षों के प्रति... ऐसा अपनी जवानी के पहले पायदान पर कदम रखते ही सुना था रुना ने. पर फूले, गदराए वक्षों के प्रति ऐसा दीवानापन होता है इन मर्दों का ये कदाचित इतने लंबे समय बाद अनुभव कर रही थी वो. निःसंदेह विवाह के पश्चात अपने पति के हाथों अपना कौमार्य भंग करवाते हुए यौन सुख भोगी थी... पर... पर आज तो एक पराए मर्द... नहीं.. एक पराए लड़के के द्वारा....

‘आह्ह!’

एक हल्की सिसकारी ले उठी वह.

उन्माद में देबू ने कुछ ज्यादा ही ज़ोर से उसका स्तन दबा दिया था.

प्यार भरे शब्दों से रुना ने देबू को डांटना चाहा... ये कहना चाहा की अभी बहुत समय है.. आराम से करे... उसे पीड़ा होती है.

पर, जिस अनुपम कलात्मक ढंग से देबू के हाथ और उसकी अंगुलियाँ दोनों स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके दोनों निप्पल से छेड़छाड़ कर रहे थे और जिस दीवानगी से देबू उन सुंदर अंगों पर अपने चुम्बनों की वर्षा करते हुए चाटे जा रहा था; उससे रुना के मन में अपने लिए गर्व और देबू के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा. इसलिए कुछ कहे बिना बचे हुए लाज को ताक पर रख कर अधखुली आँखों से देबू के कामक्रियाओं को देखने लगी.

इधर पेड़ की डाल पर खुद को किसी तरह से बिठा कर कमरे के अंदर का पूरा दृश्य को देख कर चरम उत्तेजना से भरा हुआ शुभो वहीं हस्तमैथुन करने लगा था. थोड़ी ही देर में उसका वीर्य निकलने वाला था कि अचानक उसे ऐसा लगा मानो उस कमरे से देबू से प्यार पाती और उसे प्यार करती रुना की नज़रें सीधे उस पर यानि शुभो पर टिकी हुई हैं... वो... वो... शायद शुभो को ही देख रही थी...

‘पर...पर ये कैसे संभव है?!’

मन ही मन सोचा शुभो.

‘मैं तो अच्छे से एक ऐसे डाल पर बैठा हुआ हूँ जिसके आगे पत्तों का झुरमुठ है. इतनी सरलता से मुझे देख पाना; वो भी इस दूरी से... असंभव हो न हो, एक कठिन दुष्कर कार्य तो ज़रूर है. उफ़.. क्या करूँ... पकड़े जाने का खतरा मैं नहीं ले सकता. गाँव वाले पूछेंगे की मैं क्या कर रहा था... या.. क्यों बैठा हुआ था एक डाली पर... वो भी रुना भाभी के कमरे की ओर मुँह कर के... तो मैं क्या उत्तर दूँगा..?? न भाभी की इज्ज़त को दांव पर लगा सकता हूँ और न खुद की. उफ़... नहीं.. अब और नहीं.. बहुत देर बैठ लिया.. अब मुझे जाना चाहिए. ज्यादा दिमाग लगाना ठीक नहीं होगा.’

शुभो बिना आवाज़ किए; आहिस्ते से पेड़ से उतरा, अपने कपड़े झाड़ा और दबे पाँव लंबे डग भरते हुए वहाँ से निकल गया.

देखा जाए तो ये भी अच्छा ही हुआ शुभो के लिए क्योंकि कुछ ही क्षणों बाद रुना देबू को अपने गद्देदार बिस्तर पर ले गई जोकि खिड़की से काफ़ी परे हट कर था. तो शुभो अगर बैठा भी रहता डाली पर तब भी उसे कुछ दिखने वाला नहीं था.

अपनी साइकिल उठा कर जल्दी जल्दी पैडल मारते हुए शुभो अपने दुकान पहुँचा. करीब बीस मिनट की देरी हो गई थी. दो – तीन ग्राहक आ चुके थे. जल्दी से दुकान खोल कर, हाथ धो कर भगवान श्री गणेश एवं माता लक्ष्मी जी की छोटी मूर्तियों को अगरबत्ती दिखा कर दुकानदारी शुरू कर दी.

पूरा दिन दुकानदारी में अच्छे से दिमाग लगाया. हालाँकि बीच बीच में बेकाबू हो जा रहा था पर जैसी तैसे मन को समझाया.

संध्या में यथासमय दुकान को बढ़ा कर (बंद कर) कालू को साथ ले एक अन्य चाय दुकान में ले गया.

कुछ देर एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछने के बाद चाय पीते पीते शुभो ने कालू को दिन की सारी घटना विस्तार से कह सुनाया. कालू को विश्वास तो नहीं हो रहा था पर चूँकि शुभो फालतू के लंबे लंबे गप्पे हांकने का शौक़ीन नहीं था और ना ही आज से पहले इस तरह की बातें जो की झूठ साबित हो जाए; कभी किया था इसलिए उसकी बातों को मानने के अलावा फिलहाल कालू के पास और कोई चारा न था.

जब पूरी घटना सुनाने के बाद शुभो चुप हुआ तब थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच शांति छा गई.

एक कुल्हड़ चाय मँगाते हुए कालू ने कहा,

“यार.. अपनी दृष्टि से देखें तो पूरी बात बहुत संदेहास्पद है. पर.. ये दो लोगों के बीच का मामला है... भाभी को नहीं तो क्या देबू से इस बारे में बात किया जा सकता है?”

बहुत गम्भीर हो कर कुछ सोचता हुआ शुभो बोला,

“यार कालू, हमें देबू से ही बात करनी होगी.”

“देबू से ही बात करनी होगी...?! क्यों भई?”

“कालू... ये जो पूरी घटना है... ये केवल संदेहास्पद ही नहीं अपितु भयावह भी है.”

“वो कैसे?”

“यार, पेड़ की डाली पर बैठा जब मैं उस घर के ऊपरी तल्ले के कमरे में भाभी और देबू के काम क्रीड़ा को देख रहा था और जब अचानक से मुझे ऐसा लगा कि भाभी मेरी ही ओर देख रही है; तब मैंने एक बात पर गौर किया.”

“किस बात पर?”

“भाभी की आँखें... उ..उन.. की आँखें.....”

“भाभी की आँखें का क्या शुभो?” एक तीव्र कौतुक जाग उठा कालू के मन में.

“यार, भाभी की आँखें पूरी तरह से काली थीं!”

“क्या?! क्या मतलब??”

“मतलब की, हमारी आँखों में जो सफ़ेद अंश होता है... वो.. वो भाभी की आँखों में नहीं था! पूरी आँखें काली थीं!!”

बोलते हुए शुभो का गला काँप उठा.

और कालू के हाथ से भी कुल्हड़ छूट कर जमीन पर धड़ाम से गिरा....
जबरदस्त

मतलब ये रूना नही कोई और ही है उसके भेष में।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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(जारी.....)


कालू के घर से ले कर अपने दुकान तक और फ़िर अपने दुकान से लेकर देर शाम अपने घर तक हर पल शुभो को ऐसा लगता रहा की वो अकेला नहीं है. कोई न कोई हर पल उसके साथ है. उस पूरे दिन उसके दिमाग में एक साथ इतनी बातें चल रही थी कि वो किसी भी काम पे ध्यान नहीं दे पाया. हरेक काम में कोई न कोई गलती होती रही उससे. यहाँ तक की अपने सीने पर उभर आए उन तीन खरोंचों के निशान तक को भी भूल गया.

देर शाम जब वो किसी दूसरे चाय दुकान में एक छोटी बेंच पर बैठा चाय पी रहा था तब हरिपद के साथ भेंट हुई. दरअसल हरिपद अपने अधीनस्थ दोनों नाविकों को उस दिन का खर्चा दे कर बचे हुए पैसे लेकर घर की ओर ही जा रहे थे कि अचानक से तेज़ बारिश होने लगी. ये चाय दुकान बगल में ही था तो बचने के लिए तुरंत वहीं घुस गए.

गाँव के चाय दुकान वाले हो या दैनिक बिक्री वाले दूसरे दुकानदार.. हमेशा बड़े और खुले जगह पर दुकान खोला करते हैं. दुकान ऐसा रखते हैं की एक साथ दस आदमी अंदर आराम से बैठ जाए.

उस समय शुभो और चाय वाले जिष्णु काका को लेकर कुल चार लोग थे. अब हरिपद भी शामिल हो गए. हरिपद और जिष्णु काका अच्छे दोस्त थे. उनमें बातें शुरू हो गई. शुभो अपने ख्यालों में खोया हुआ चाय - बीड़ी ले रहा था. बारिश अभी और तेज़ हुई ही थी कि दौड़ता हुआ बिल्टू भी घुस आया दुकान में. वो भी घर की ओर जा रहा था. अचानक बेमौसम बरसात का किसी को अंदाज़ा नहीं था. इसलिए सब बिना छाता के थे.

बिल्टू तो भीग भी गया था. जल्दी से एक आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक चाय का आर्डर दे बैठा.

शुभो को देख चहकते हुए पूछा,

“और दोस्त... कैसे हो?”

शुभो ने एक नज़र बिल्टू की ओर देखा और फिर बीड़ी का एक कश लगाते हुए बोला,

“ठीक हूँ... अपनी सुनाओ.”

“बस यार... सब ठीक चल रहा है जगदम्बे की कृपा से.”

“हम्म.”

बिल्टू के उत्तर पर बहुत छोटा सा ‘हम्म’ कर के शुभो दोबारा अपने ख्यालों में खो गया.

“क्या बात है यार? मन उदास है क्या?”

“नहीं यार. ऐसी बात नहीं?”

“क्या ऐसी बात नहीं.. अभी मुझे आए दस मिनट भी नहीं हुए हैं कि तुमने इतने ही देर में दो बीड़ी खत्म कर के तीसरी जला ली. कोई तो बात है. कोई प्यार व्यार का चक्कर है क्या?”

“नहीं.. वो भी नहीं.”

“तो फिर क्या बात है... बताओ भाई.”

बिल्टू के ज़ोर देने पर शुभो ने उसे रुना भाभी के बारे में बताने का सोचा. कहने ही जा रहा था कि उसकी नज़र गई पाँच कदम दूर बैठे हरिपद पर. एक हाथ में चाय की ग्लास और दूसरे में बेकरी वाला मोटा बिस्कुट लिए जिष्णु काका के साथ गप्पे लड़ाने में व्यस्त हैं.

हरिपद जिष्णु काका से कह रहे हैं,

“भाई.. सुना तुमने... परसों नदी के उस पार के तट पर फ़िर एक शव मिला... एक बत्तीस वर्षीया महिला का.”

“हाँ भई, सुना मैंने... बहुत बुरा. ये भी सुना की अभी चार साल ही हुए थे उसकी शादी को. पता नहीं अब उसके बच्चे का क्या होगा?”

कहते हुए जिष्णु काका अफ़सोस करने लगे.

उन दोनों की बातें सुनकर शुभो के मन में कुछ खटका. उसने ऐसी ही कोई बात करने की सोची बिल्टू के साथ...पर सीधे नहीं, घूमा कर,

धीरे से बोला,

“यार बिल्टू, एक बात पूछूँगा.. सही सही बताना.”

“हाँ बोल न.” सहमति जताने में बिल्टू ने देर नहीं की.

थोड़ा रुक कर शुभो पूछा,

“यार... तेरे को.. ये.. अम... ये... रु..रुना भाभी कैसी लगती है?”

प्रश्न सुनते ही बिल्टू आँखें बड़ी बड़ी कर के शुभो को देखने लगा. पूछा,

“क्यों बे? अचानक भाभियों में कब से तेरी रूचि जाग गई? और वो भी कोई ऐसी वैसी नहीं.. रुना भाभी!”

“अबे तू जो समझ रहा है वैसी कोई बात नहीं है. पर मैं जो कहना चाहता हूँ उसी से जुड़ा हुआ है.” शुभो ने उसे समझाते हुए कहा.

“हम्म.. देख भई, वैसे तो बड़ी मस्त लगती है. रस से भरपूर. पर मैं उन्हें गलत नज़र से नहीं देखता. बहुत सम्मानीय महिला हैं.” कहते हुए बिल्टू आँख मारी.

शुभो भी मन ही मन हँस पड़ा.

“सम्मानीय! हा हा हा”

फिर बोला,

“और?”

“और क्या?”

“पिछले कुछ दिनों से तुझे उनमें कोई परिवर्तन नहीं दिखा?”

“नहीं. और वैसे भी उतना देखना का समय कहाँ? सबको ताड़ता फिरूँगा तो काम कब करूँगा.. और जब काम नहीं कर पाऊँगा तब खाऊँगा क्या?”

तभी काका एक प्लेट आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक ग्लास चाय दे गए और बिल्टू चटकारे ले ले कर खाने लगा. उसे खाते देख शुभो को भी भूख लग गई और उसने भी आमलेट और चार अंडे आर्डर कर दिया.

उसने अभी आमलेट का एक टुकड़ा मुँह में रखा ही था कि अचानक उसे लगा जैसे किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा है. वो डर कर पीछे पलटा.

उसे यूँ पलटते देख कर बिल्टू पूछा,

“क्या हुआ?”

“क.. कु.. कुछ नहीं... बस ऐसे ही.”

शुभो ने खाने को निगलते और डरते हुए कहा.

पीछे कोई नहीं था.

मन का वहम समझ कर वो फिर खाने पर ध्यान दिया. इस बार फिर किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा. हाथ इसबार कंधे पर नहीं रुका. वो धीरे धीरे फिसलते हुए उसके पीठ पर से होते हुए उसके कमर पर आ कर रुक गया, जैसे उसके पीठ को सहला रहा हो.

शुभो ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया. उसने गौर किया... ये हाथ मरदाना हाथ जैसा सख्त नहीं अपितु बहुत कोमल है. तभी उसे अपने पीठ के निचले हिस्से पर कुछ चुभता हुआ सा प्रतीत हुआ.

वो लगभग उछल पड़ा.

उसके ऐसा करने से बिल्टू भी थोड़ा डर गया.

“अबे क्या हुआ?”

“क... कुछ...नहीं... म.. मच्छर!”

“तो कोई ऐसे उछलता है क्या... साला पूरा मूड ख़राब कर दिया.” बिल्टू गुस्सा करते हुए बोला.

अब तक वहाँ उपस्थित बाकी लोगों का भी ध्यान उन दोनों पर आ गया था.

शुभो फटाफट अपना खाना खत्म कर हाथ धो कर काका के पास गया बिल देने. जब पैसे देने लगा तब एक और घटना घटी. दो हाथों की चूड़ियाँ उसके ठीक कानों के पास खनक उठी. शुभो हड़बड़ा कर इधर उधर देखने लगा. इस बार भय से उसके होंठ सूख गए. सांसे तेज़ हो गई. उसकी ऐसी स्थिति देख कर जिष्णु काका और हरिपद काका को भी बहुत अचरज हुआ.

वो कुछ पूछे इसके पहले ही शुभो पैसे दे कर वहाँ से चलता बना.

साइकिल चलाते हुए अपने घर को जाता शुभो को रास्ते भर ऐसा लगता रहा कि कोई उसके साइकिल पर... पीछे बैठा ... या.. बैठी हुई है. बार बार लगता रहा कि कोई उसके कमर को पकड़ी हुई है और रह रह कर उसके पुरुषांग को छू रही है.

रात को खाते समय भी उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में था कि आखिर कालू कैसे रुना भाभी के चक्कर में फंस गया? एक तो भाभी पहले से ही विवाहिता हैं.. दूसरे, उन्होंने देबू को फँसा रखा है... तो फ़िर अब कालू के साथ क्यों? क्या भाभी सच में इतनी बुरी हैं? क्या उनका एक से मन नहीं भरता? क्या यही है एक पढ़ी लिखी सम्भ्रांत भाभी का असली चेहरा?

खाना खत्म कर के अपने कमरे में सोने गया. एक पुरानी कहानी की किताब ले कर पढ़ने बैठ गया. देर तक रात तक बीड़ी फूँकता हुआ कहानी पढ़ता रहा और अपने साथ घट रही घटनाओं के बारे में सोचता रहा. उस कहानी के नायक को हमेशा कुछ न कुछ लिखने का शौक था और हमेशा ही थोड़ा सा समय निकाल कर एक मोटी डायरी में लिखता रहता था. शुभो के भी दिमाग में कुछ लिखने का आईडिया आया और ऐसा ख्याल दिमाग में आते ही एकदम से उठ बैठा और एक मोटी कॉपी ले कर शुरू के कुछ पन्ने छोड़ कर उसमें कुछ लिखने लगा.

करीब चालीस मिनट तक लिखने के बाद उसे अच्छे से अपने सिरहाने बिस्तर के गद्दे के नीचे रख दिया और सो गया.

उसे सोए घंटे भर से ज्यादा का टाइम बीता होगा कि कमरे में हो रही कुछ खटपट की आवाज़ों से उसकी नींद टूट गई.

उसने जैसे ही उठने का कोशिश किया; आश्चर्य का ठिकाना न रहा.

वो तो हिल भी नहीं पा रहा है!

उसने फिर प्रयत्न किया... वही नतीजा!

घबराहट में वो छटपटाने लगा. पर सिवाय अपने सिर को दाएँ बाएँ घूमाने के और कुछ न कर सका. शुभो ऐसा लड़का है जो ऐसी परिस्थितियों के कल्पना मात्र से ही बुरी तरह सिहर उठता है.. लेकिन आज.. अभी... ऐसा ही कुछ साक्षात् घटित हो रहा है उसके साथ. वो बुरी तरह हांफने और कांपने लगा. साँसें इतनी तेज़ हो गई कि साँस ठीक से लेना भी एक चुनौती बन गई.

और तभी!

कमरे में पायल की रुनझुन सुनाई दी ! बहुत मीठी आवाज़!

लेकिन ऐसी परिस्थितियों में ऐसी आवाजें डर को बढ़ा देती है.. सुकून नहीं देती.


अपनी साँस पर नियंत्रण पाने की व्यर्थ चेष्टा करता शुभो दरवाज़े के पास एक हिलती परछाई देख कर और भी ज्यादा डर गया. बगल के कमरे में सो रहे अपने माँ बाबूजी को आवाज़ लगाना चाहा.. पर ये क्या? उसकी तो आवाज़ भी नहीं निकल रही. रात के सन्नाटे में ज़ोरों से चलती धड़कन उसे अपने सीने पर हथौड़े से पड़ते मालूम होने लगे. पूरे बदन पर पसीने की बूँदे छलक आईं. इतने देर बाद उसने गौर किया... उसके बदन पर से उसकी सैंडो गंजी (बनियान) गायब है!

‘मैं तो पहन कर ही सोया था...त... तो...’ इसके आगे सोचने से पहले ही उसकी नज़र उसी काली परछाई पर चली गई जो अब उसके बहुत पास आ गई थी.

‘ये.. ये... तो... कोई.... स्त्री.... है...’

डरते हुए शुभो ने धीरे से पूछा,

“क.. कौन हैं... आप?”

“श्श्शश्श्श...”

उस स्त्री के होंठों से एक शीत लहरी जैसी धीमी आवाज़ निकली. उसकी दायीं हाथ की तर्जनी ऊँगली उठी और धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई शुभो के होंठों पर जा कर रुकी. फिर धीरे से नीचे उतरते हुए उसके सीने पर लगे खरोंचों तक पहुंची और उन घावों पर ऊँगली गोल गोल घूमने लगी.

और एकदम अचानक से तीन ऊँगलियों के नाखून उन घावों में धंस गए. अत्यधिक पीड़ा से बेचारा शुभो तड़प उठा. मारे उस दर्द के वो ज़ोरों से चीखना चाहा पर आवाज़ तब भी न निकली.

अब वो औरत धीरे से अपने नाखूनों को उसके सीने के घावों में से निकाली और अपने होंठों पर रख दी. इस अंधकार में भी शुभो कैसे उस औरत के अधिकांश हिस्सों को देख पा रहा है ये भी एक बहुत बड़ा आश्चर्य था उसके लिए.

नाखूनों पर लगे खून को अपने लंबे लाल जीभ से चाटने लगी वो. स्वाद लेने का तरीका ही बता रहा था कि उसे वो खून बहुत स्वादिष्ट लगा है. इधर शुभो के सीने पर से खून की एक धारा बह निकली जो अब धीरे धीरे बिस्तर पर बिछे चादर पर लग कर फैलने लगी.


पीड़ा और भय के मिले जुले भाव चेहरे पर लिए शुभो अब उस औरत के अगले कदम के बारे में सोचने लगा. अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. वो औरत उसके पास से उठ कर उसके पैरों के तरफ गई. बिस्तर पर नहीं बैठ कर शुभो के नज़रों के एकदम सीध में ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ कर शुभो के पैरों के तलवों को अपने नाखूनों से सहलाने लगी. सहलाते सहलाते वो ऊपर उठी और धीरे धीरे उसके जाँघों तक आई और एक झटके में उसके हाफ पैंट को दोनों साइड से पकड़ कर नीचे खींच दी.

अब शुभो का नग्न पुरुषांग उन दोनों के ही सामने था.

उस औरत ने दाएँ हाथ की अंजुली बना कर बड़े प्यार से उसके अंग (लंड) को हाथ में ली और अंगूठे के हल्के स्पर्श से मसलने लगी. तभी बादलों से ढके आसमान में एक ज़ोरदार गर्जन हुई और बिजली चमकी.

बाहर भयानक तूफ़ान शुरू हो गया था...

बिजली के चमकने से कमरे में थोड़ी रौशनी हुई और उसी रौशनी में शुभो ने गौर किया कि इस औरत के कपड़े बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा सुबह रुना भाभी के बदन पर देखा था!

दुर्भाग्य से चेहरा न देख सका उस औरत का.

बीच बीच में उस औरत की हँसी सुनाई दे रही थी. दबी हुई हँसी. मानो लाख चाह कर भी अपना हँसी नहीं रोक पा रही है वो औरत.

उस औरत के हाथ के स्पर्श से ही शुभो का पुरुषांग धीरे धीरे फूलने लगा और कुछ ही क्षणों पश्चात् अपने पूरे रौद्र रूप में आ गया. उस औरत का हाथ उसके पूरे अंग पर फिसलने लगा और पतली उँगलियाँ मानो उस अंग की मोटाई और लम्बाई माप रही हो. और मापने का भी क्या अंदाज़ है.... चरम उत्तेजना में पहुँचा दे रही है.

तभी फिर बिजली चमकी.

और इस बार जो देखा शुभो ने वह देख उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ... भय से रोम रोम उसका खड़ा हो गया. कुछ देर पहले तन मन में छाई यौन उत्तेजना अब क्षण भर में गायब हो गई.

उस औरत की आँखें पूरी तरह से काली थीं और आँखों के कोनों से खून की पतली धारा बह रही थी. आँचल कई फोल्ड लिए बाएँ वक्ष के ऊपर थी. दायाँ स्तन ब्लाउज कप के ऊपर से ऐसे फूल कर उठी हुई थी मानो अभी फट पड़ेगी. गले पर चमकती एक मोटी चेन उसके लंबे गहरे वक्षरेखा में घुसी हुई थी. दोनों हाथों में सोने की मोटी मोटी चूड़ियाँ... कानों में सोने के चमकते झुमके. दोनों भवों के बीचोंबीच एक लम्बा पतला तिलक... शायद काले रंग का है...


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“आ...आप....?!”

बस इतनी सी ही आवाज़ निकली शुभो की. उसके बाद तो शब्दों ने जैसे साफ़ मना कर दिया बाहर आने से.

होंठों के कोने में दुष्टता वाली मुस्कान लिए एकटक शुभो को कुछ देर तक देखने के बाद धीरे धीरे झुकते चली गई... और तभी शुभो को अपने जननांग पर कुछ गीला सा लगा. सिर उठा कर देखा... तो... वह औरत उसके पुनः खड़े हो चुके अंग को अपने मुँह में भर ली थी और किसी छोटे बच्चे के मानिंद आँखें बंद कर बड़े चाव और सुख से उसे चूसने लगी थी.

झुके होने के कारण स्त्री के दोनों वक्षों के अनावृत अंश रह रह कर उसके जाँघों पर रगड़ खा रहे थे जोकि शुभो के बदन में एक सनसनाहट पैदा कर रही थी.

सारा डर भूल कर शुभो आँखें बंद कर अब सिर्फ़ मुखमैथुन का आनंद लेने लगा.

मन ही मन कहने लगा,

“प्लीज़... मत रुकना... रुकना... मत...”

पल प्रति पल जैसे जैसे उस स्त्री का चूसने का गति बढ़ता गया वैसे वैसे शुभो चरम सुख से आत्मविभोर हो पागल सा होता गया. शहर जा कर कुछेक बाजारू लड़कियों से यौन सुख प्राप्त किया अवश्य था पर किसी के इस तरह चूसने से भी ऐसी चरम सुख वाली अवस्था प्राप्त होती है यह आज उसे पहली बार पता चला.

वो औरत बड़ी ही दक्षता से उसके पुरुषांग के मशरूम से लेकर जड़ तक और फिर जड़ से लेकर मशरूम सिर तक जीभ से भिगाती हुई चूम और चूस रही थी. ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर तक... हरेक इंच को छूती, हर शिराओं का अहसास करती और कराती वो औरत शुभो को यौनोंमांद में पागल किए दे रही थी.

ऐसा कुछ भी आज से पहले उसने कभी अनुभव नहीं किया था.

इसलिए ज्यादा देर तक मैदान में न टिक सका.


कुछ ही समय बाद उसका वीर्यपात हो गया. लेकिन वो औरत फ़िर भी नहीं रुकी... चूसते रही. चूसते ही रही.

उसके वीर्य के एक बूँद तक को व्यर्थ नहीं जाने दी... सब निगल गई. एक क्षण के लिए रुक कर बड़े कामुक अंदाज़ में अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर सम्भावित बचे हुए वीर्य की बूँदों को चाट ली और फ़िर उसके जनेन्द्रिय को पूरे अधिकार से अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर चूसना प्रारंभ कर दी.


शुभो को वाकई बहुत मज़ा आया लेकिन वीर्यपात होने के साथ ही वो आहिस्ते आहिस्ते चेतनाशून्य हो गया.


कुछ और समय बीता....


बाहर उठा तूफ़ान अब शांत हो चुका था...


और इधर धीरे धीरे शुभो का शरीर भी ठंडा होता चला गया.....



.....निष्प्राण.
तो क्या उसका ताबीज झाड़ियों में गिर गया??
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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हम सभी को पता है कि यहां कोई स्टोरी लिखने से उजरत नहीं हासिल होने वाली है.... कोई अवार्ड भी नहीं मिलने वाला है इसके बावजूद भी यहां लोग लिखते हैं.... किसलिए ?

अपनी दबी हुई लालशा को उजागर करने के लिए.... अपने अरमानों को... अपने लिखने के हूनर को इस फोरम के द्वारा पाठकों तक पहुंचा सकें ।

मैंने पहले भी कहा था कि बुक्स प्रोडक्ट होता है , राइटर्स मैनुफैक्चरर होता है और रीडर कंज्यूमर होता है - अगर रीडर ही न रहे तो फिर राइटर्स और उनके बुक्स का क्या काम !

रीडर के किसी भी प्रश्न का उत्तर देना राइटर्स का पहला कर्तव्य होता है ।
आप अच्छा लिखते हो....इसको मैंने ही नहीं बल्कि इस फोरम के कई लोगों ने माना है लेकिन इसका मतलब ये नहीं हुआ कि आप रीडर के भावनाओं से खिलवाड़ करें ।

इसी फोरम पर एक लड़की ने कहानी लिखी थी.... उसकी ये पहली कहानी थी.... कहानी अच्छी चल रही थी.... कमेन्टस भी अच्छे अच्छे आ रहे थे.... लेकिन एकाएक लोगों ने उसके कहानी पर अपशब्दों का इस्तेमाल शुरू कर दिया...... उसकी गलती सिर्फ यही थी कि उसने " इन्सेसट " का टैग डालकर " एडल्टरी " में लिखना शुरू कर दिया ...... ये एक मामूली सी गलती थी लेकिन रीडर ने उसकी ऐसी की तैसी कर दी ।...... कोई दूसरा राइटर्स होता तो पता नहीं क्या करता ? लेकिन उस लड़की ने बहुत ही मासुमियत से अपने गलती की माफी मांगी..... उनसे भी जिन्होंने उस पर बहुत ही खराब कमेन्टस किए थे ।.......... सच कहूं तो राइटर्स ऐसे होते हैं ।
इंसेस्ट रीडर्स जो होते हैं वो एक मनोरोग से ग्रस्त होते है, आपका ये कमेंट 2 साल पुराना है, लेकिन उनकी गाली देने की क्षमता में कमी नही आई है।
 

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बाबा जी की आँखों में आँखें डाल कर उन्हें देखती अवनी की आँखें और अधिक चमक उठीं और इसी के साथ बाबा जी को ठीक उसी क्षण अपनी आँखों के आगे एक चलचित्र चलता हुआ सा अनुभव होने लगा..

वाद्य यंत्र बजने बंद हो चुके थें.

केवल मंत्रों की ध्वनियाँ ही गूँज रही थीं वहाँ... जो कि निकल रहे थे बाबा जी के दोनों सहयोगियों और शिष्यों के कंठों से...

और बाबा जी किसी बुत की भांति चुपचाप अवनी की आँखों में देखते हुए खड़े थे..

थोड़े समय बाद... यही कोई पंद्रह मिनट बीते होंगे,

बाबा जी के शरीर में एक तीव्र कंपन हुई... और वे तुरंत आँखें बंद कर उन्हें मसलने लगे..

“ओह... बुरा हुआ... बहुत बुरा हुआ...”

स्तंभित स्वर में शोकाकुल होते हुए बोले.

रुना कब देबू का बायाँ हाथ पकड़ ली थी ये किसी के नज़रों में नहीं आया था; परन्तु अब उसका हाथ छोड़ते सबने देखा.

देबू और रुना की आँखें भीगी हुई थीं.

सहयोगियों का तो पता नहीं पर दोनों शिष्य गोपू और चांदू को बड़ा अचरज होने लगा था ये पूरा दृश्य यूँ बदलता हुआ देख कर. कहाँ तो अब तक दोनों ही पक्षों में तीखे शब्दों और व्यंग्य बाणों के प्रयोग हो रहे थे... दोनों में से कोई भी पहले प्रहार के लिए तत्पर था.. पर अब.. दोनों ही पक्ष ऐसे भावुक क्यों हो रहे हैं?

“हाँ.. बुरा तो हुआ... बहुत बुरा हुआ था... पर आपको को बुरा लगा... लेकिन उसका क्या; जिसके साथ इतना बुरा हुआ... जिसके सम्मान की हत्या हुई.. जिसके विश्वास का गला घोंटा गया...” रुंधे स्वर में रुना बोली.

बाबा जी चुप थे.. कुछ कहना अवश्य ही चाह रहे थे परन्तु इस समय कदाचित चुप रहना ही उन्हें श्रेयस्कर लगा.

रुना ने कहना जारी रखा,

“हर व्यक्ति यही दो तो चाहता है... सम्मान और विश्वास... यदि यही दो न मिले... या जिसकी ओर सहारा समझ कर हम देखे.. वही यदि इन दो बातों का हत्यारा निकल जाए तो...?? फिर क्या कोई और मार्ग शेष रह जाता है?? …. आत्महत्या करने के सिवाय???”

बाबा जी अब भी बहुत दुखी थे..

सच में...

यदि कोई इस तरह किसी के साथ व्यवहार करे... भरोसा तोड़े... तब तो...

‘नहीं...’

मन ही मन सोचा बाबा ने..

‘ये ठीक नहीं.. मुझे कुछ कहना होगा...’

अवनी की ओर देख कर दृढ़ स्वर में बाबा ने कहा,

“सुनो बेटी, तुम दोनों के साथ ही बहुत अन्याय हुआ ये बात मैं मानता हूँ... और बेटी तुम्हारे साथ अन्याय तो क्या, घोर पाप हुआ है. परन्तु इसका अर्थ ये तो नहीं कि तुम दोनों अपने हाथों को वर्ष दर वर्ष, अविराम रक्तरंजित करते जाओ.. क्योंकि इतने वर्षों में कई ऐसे भी मारे गए जिनका तुम्हारे; तुम दोनों के साथ हुए दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के साथ कोई संबंध नहीं था. प्रतिशोध की अग्नि ऐसी होती है पुत्री की यदि समय पर न बुझी तो बाद में कई सारे जतन करने के बाद भी शांत नहीं होती और एक समय बाद व्यक्ति विशेष; चाहे वो मृत हो या जीवित; के स्वभाव, चरित्र, प्रकृति, इत्यादि सब कुछ जला कर भस्म कर देती है. तुम दोनों ने कईयों के रक्त से अपने हाथ लाल कर लिए हैं... बहुत हुआ... अब अपने क्रोधाग्नि को शांत करने का यत्न करो और ये सब छोड़ दो. यदि इतना करते हो तो मैं तुम्हें ये वचन देता हूँ कि मैं स्वयं तुम दोनों को इस योनि से आज ही मुक्ति दिलाऊँगा और एक सुखी जीवन के लिए अगले जन्म का मार्ग प्रशस्त करूँगा.”

इतना कह कर बाबा चुप हुए....

शौमक और अवनी भावहीन मूर्ति समान बाबा की बातों को सुन रहे थे... उनके चुप होते ही दो पल बाद दोनों ने एक दूसरे को देखा.

अवनी के होंठों पर एक हल्की मुस्कान बिखर गई.

शौमक उसका आशय समझ गया. उसने भी मुस्कराते हुए सहमति में सिर हिलाया.

फ़िर दोनों एक साथ बाबा जी की ओर देखा.

और एक साथ ही कहा,

“नहीं.!!”

“नहीं??!”

“हमारी प्रतिशोध की अग्नि कब और कैसे शांत होगी ये हम स्वयं निश्चित करेंगे. कोई बाहरी आ कर हमें नहीं बतायेगा कि हमें कब, क्या करना है.”

बाबा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ.

“लेकिन क्यों... क्यों ऐसा करते रहना चाहते हो तुम लोग? आखिर कब तक?”

“तब तक.. जब तक कि इस गाँव के सभी दोषी मारे नहीं जाते.”

“लेकिन सभी तो दोषी नहीं हैं!?”

“कौन दोषी है या नहीं है; इसका निर्णय भी हम करेंगे!”

इस बार भी दोनों ने एक साथ कहा.

“देखो बेटी, (बाबा अवनी की ओर देखते हुए बोले) मैं समझता हूँ तुम्हारी पीड़ा को. तुम्हारे साथ बहुत बहुत बुरा हुआ है और दोषी को दंड तो मिलना ही चाहिए. परन्तु इन गाँव वालों का इतना भी भयंकर दोष नहीं की इस तरह सब को एक एक कर के मार दिया जाए....”

बाबा के बात को बीच में ही काटते हुए बोली अवनी,

“तो क्या उन लोगों से निवेदन कर के उन्हें मारूँ?? ये गाँव वाले भी कम दोषी नहीं हैं.. अतएव इन्हें भी उचित दंड मिलना ही चाहिए और ये दंड मृत्युदंड ही है.”

“मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगा.”

“तू रोकेगा??”

“हाँ.”

“फिर तो तू भी मारा जाएगा!”

“चिंता नहीं.”

“सोच ले.”

“इसमें सोचना कैसा? मैं यहाँ अच्छे से सोच कर ही आया था. गाँव वाले मेरी शरण में हैं अब... मैं उनका कोई अहित नहीं होने दूँगा.”

“हाहाहा.. तेरी ही शरण में रहते हुई ही आठ लोग मारे गए इतने दिनों में.!!”

“हाँ.. वो भी इसलिए क्योंकि उन लोगों ने मेरी बात नहीं मानी थी.”

“तू फिर भी नहीं रोक पाएगा उन्हें मरने से ऐ साधक!”

“प्रयास कर लो.”

“क्या ये तुम्हारी चुनौती है, साधक?”

“हाँ... चुनौती है.”

दोनों की ही आँखें अत्यधिक क्रोध से लाल हो गए.

उनके क्रोध और तेज़ से आस पास के पेड़ हिलने लगे और तेज़ हवाएँ चलने लगीं.

बाबा तो तैयार हो कर ही आए. थे. तुरंत उन्होंने अब तक अधबुझी हो चुकी हवन से एक लकड़ी का टुकड़ा उठा लिया और उन दोनों की ओर फेंक दिया. दोनों हवा में ही लड़खड़ा गए.

अधिक समय नहीं था हाथ में. कुछ क्षणों बाद ही वे संभल जाएँगे.

बाबा भी तैयार...

हवन से एक छोटी लकड़ी निकाला.. दूसरे हाथ में थोड़ा सा भस्म लिया.. दोनों का आपस में स्पर्श कराया और फिर उस लकड़ी को एक ओर रख कर उस भस्म से शरीर पर भस्म-लेप किया, धारण किए हुए उन तांत्रिक-आभूषणों को पोषित किया, छोटे से बर्तन में रखे रक्त के घोटे से माथे को सुसज्जित किया! और फिर अपना त्रिशूल निकाला! बाएं गाड़ा! आसान बिछाया और उस पर थोड़े अनाज रख दिया...

फिर चिमटा निकाला, चारों दिशाओं में खड़खड़ाया और क्षण भर में दिशा-पूजन किया!

झोले में से दो कपाल निकाले. एक कपाल को सामने रख कर दूसरे कपाल को त्रिशूल पर टांग दिया!

पीछे बैठे उनके एक सहयोगी ने दो हाथों की अस्थियां बाबा को दिया... बाबा ने उन अस्थियों को सामने रखे कपाल पर रखा और क्रंदक-मंत्र पढ़ा!

दोनों अस्थियों को आपस में जो से दे मारा.. और फिर से उस कपाल से छुआ दिया..

ऐसा करते ही दोनों अस्थियाँ काँप उठी और कपाल भी अपने स्थान पर ज़ोर से हिला !

वातावरण में एक अत्यंत ही दिल दहला देने वाला कानफोड़ू अट्ठहास हुआ!

तंत्र क्रिया सक्रिय एवं आरम्भ हो गई..!

और अब तक संभल चुके शौमक और अवनी भी इस पूरे व्यवस्था को आश्चर्य से आँखें फाड़े देख रहे थे.

बाबा को उन्होंने कम कर के आँका तो नहीं था पर अब तो बाबा उनके कल्पना से भी कहीं अधिक तंत्र ज्ञाता निकले!

कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई वहाँ..

सहयोगी और शिष्य अब अत्यंत धीमे स्वर में मंत्रपाठ कर रहे थे..

इनके अलावा अगर और कहीं से आवाज़ें आ रही थीं तो बस सम्मुख जल रही हवन की लकड़ियों से आती चट-चट की आवाज़ें...!

मरघट की सी शांति चारों ओर छाई हुई थी...

बाबा काफ़ी सतर्कता से तीक्ष्ण दृष्टि से उन दोनों को देख रहे थे..

शौमक और अवनी भी बराबर सावधानी बरतते हुए बाबा, उनके सहयोगियों और शिष्यों को देख रहे थे.

बाबा ने एक विशेष संकेत किया.. शिष्यों ने मंत्रपाठ के उच्चारण की गति और स्वर; दोनों को तनिक बढ़ा दिया. वातावरण में अब मंत्र ऐसे गूँज रहे थे जैसे शिथिल पड़े हुए धौंकनी रुपी श्मशान में हवा भर दी जा रही हो जिसके परिणामस्वरूप वो अब फुफकारने लगी है!

हवन से उठता धुआँ वहाँ उपस्थित सभी के अस्तित्व की पहचान लिए इस भूलोक से विदा लिए जा रहा था!

शौमक कदाचित अब भी असमंजस में था परन्तु अवनी ने मानो कुछ ठान लिया था.

उसके दोनों हथेलियाँ सख्ती से मुट्ठी में परिणत हो गए थे और दोनों मुट्ठियों से एक चमक बिखरने लगी थीं..

ये देख बाबा यूँ धीमे हँसे जैसे कोई अभिभावक एक बच्चे के भोले शरारत को देख हँसता है. बाबा ने पास ही रखा एक कपाल उठाया, सहयोगी ने तुरंत उसमें मदिरा डाला.. बाबा ने एक मंत्र पढ़ा और एक महानाद करते हुए मदिरा कंठ से नीचे उतार लिया!

फिर बाबा जी ने वाचाल-प्रेत का आह्वान किया, वो उपस्थित हुआ! उसके बाद कर्ण-पिशाचिनी का आह्वान कर उसको भी राजी कर लिया. फिर वे दोनों मुस्तैद हो गए!

फिर आरम्भ हुआ तंत्र युद्ध!!

दोनों और से तंत्रों का अद्भुत टकराव होने लगा.

बाबा के पास उन दोनों के हरेक वार – प्रहार का पर्याप्त उत्तर था.. और बड़ी ही सरलता से उन दोनों के वारों से निपट रहे थे.

बाबा पर रत्ती भर भी अपने वारों का प्रभाव न होता देख कर अवनी प्रतिक्षण अत्यंत क्रोधित होती हुई और भी अधिक शक्ति से वार करने लगी और शौमक अपनी पूरजोर दम लगा कर बाबा के वारों से अवनी को सुरक्षित रखने का प्रयास करने लगा.

वैसे, बाबा केवल अवनी के प्रहारों से स्वयं की रक्षा ही कर रहे, पलट कर वार नहीं कर रहे थे.

तभी उनका एक सहयोगी उठ कर बाबा के कानों में कुछ कहा... बाबा ने ऊपर गगन में देखा.. समय निकला जा रहा था... इन दोनों से अधिक समय तक यूँ ही लड़ते रहने का कोई अर्थ नहीं था.

तंत्र युद्ध में उनकी शक्ति देख बाबा जी समझ गए थें कि इन्हें ये शक्तियाँ चंडूलिका से मिल रही हैं... क्योंकि ऐसे तंत्र और वार करने की शक्ति साधारण आत्माओं में तो कभी होती ही नहीं है...

तुरंत ही स्वयं को एक तंत्र कवच में सुरक्षित कर के बाबा ने नेत्र बंद कर के मंत्र पढ़ना शुरू किया. उनके चेहरे पर आते जाते भावों ने ये बिल्कुल ही स्पष्ट कर दिया की अब बाबा इस खेल को यहीं समाप्त करने हेतु किसी महा शक्ति का आह्वान कर रहे हैं.

और कुछ ही पलों बाद वो शक्ति वहाँ उपस्थित भी हो गई.

एक महा गर्जन के साथ!

महाप्रेत था ये...

सभी प्रकार की आत्माओं, भूत – पिशाच, चुड़ैल, डायन, इत्यादि का बाप!

बाप क्या... अगर इसे इन सबका भगवान भी कह दिया जाए तो कदचित कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

अब तो अवनी का भी हालत ख़राब!

और किसी से भी लड़ लेगी.. कुछ समय तक टक्कर दे देगी.. परन्तु ये..?! ये तो महाप्रेत है.. अवनी जैसी आत्माओं का मास्टरजी!

इससे पहले की शौमक और अवनी कोई उपाय सोचते; बाबा जी ने त्वरित गति से एक ऊर्जा पाश से दोनों को घेर लिया. अब चंडूलिका लाख चाह कर भी इनकी किसी तरह कोई सहायता नहीं कर पाएगी.

“इन्हें उचित दंड दो!”

बाबा के मुख से हुंकार रुपी आदेश निकला.

महाप्रेत न एक क्षण भी न गँवाया.. दोनों को पकड़ा और शुरू हो गई उठा पटक..

आख़िर कितनी देर और टिकते.

दया की भीख माँगने लगे.

अवनी की हेकड़ी निकली हो न हो... चाहे क्रोध शांत हुआ हो या न हो.. लेकिन महाप्रेत के हाथों शौमक की दुर्गति होते और न देख सकी.

उसने भी हाथ जोड़े.

क्षमा माँगी.

“ठहरो!”

महाप्रेत रुका. पलट कर बाबा जी की ओर देखा.. अगले आदेश के लिए.

पर बाबा ने और कोई आदेश नहीं दिया. महाप्रेत के लिए पहले से तैयार भोग को आगे बढ़ाया.

महाप्रेत तो अति प्रसन्न!

भोग स्वीकार किया और बाबा को प्रणाम कर के अदृश्य हो गया.

बाबा अब उन दोनों प्रेमी आत्माओं की ओर देखा.

मुस्कराए,

पूछा,

“अब भी टक्कर लेना है?”

“नहीं...” दोनों ने कराहते हुए कहा.

“तो अब....?”

“हम अपनी भूल स्वीकार करते हैं.”

“ह्म्म्म...तो.. अवनी.. तुम्हारे साथ हुए पूरे घटना को सविस्तार सुनाओ.”

“पर मैंने तो तुम... आपको सब दिखा दिया.”

“केवल मैंने देखा.. और किसी ने नहीं.”

“तो?”

“तो यह कि अब तुम वो सारी घटना सुनाओगी.. यही तुम्हारी एक प्रकार की स्वीकारोक्ति भी होगी.”

समय व्यर्थ न गँवाते हुए वह बोलना शुरू की,

“जब गाँव वाले मेरे पीछे पड़े थे तब मैं अपने परिवार वालों के साथ न जा कर अलग जाने का निर्णय लिया. मैं जंगल के रास्ते भागी. ऐसे संकट की घड़ी में केवल और केवल शौमक के गुरु ही मुझे बचा सकते थे. मैं भागते भागते उनके पास गई और उनसे भेंट होते ही उनके पैर पकड़ ली. प्राणों की भीख माँगने लगी.

उस साधक ने मुझे पकड़ कर उठाया. दो मीठे बोल बोला. सान्तवना दिया की सब ठीक हो जाएगा. मुझे अंदर जा कर सोने के लिए कहा. उससे पहले कुछ खाने पीने को दिया. खा पी कर मैं सो गई.

अगले दिन सो कर उठी. अच्छा लगने के बजाए पूरा शरीर मानो टूट सा रहा था.

बदन के सभी कपड़े अस्त व्यस्त थे.

शौच के लिए गई तो देखा की योनि से रक्तस्राव हो रहा है. एक अलग ही पीड़ा है वहाँ. समझते देर न लगी मुझे.

रात में मेरे निद्रा में ही कल तक अक्षत रही कौमार्य को तोड़ दिया गया है! धर्षण हुआ है मेरा!

ये एक सदमा था मेरे लिए.

उस साधक से आमने सामने बात करने के लिए मैं उन्हें ढूँढने लगी. पर वो कहीं नहीं मिले. मैं वहाँ से, उनकी कुटिया से तुरंत निकल जाना चाही.. पर आश्चर्य!! कितना भी प्रयास कर लूँ.. कुटिया से पाँच कदम दूर जाने के बाद मैं आगे बढ़ ही नहीं पा रही थी. जब भी आगे बढ़ती, किसी अदृश्य दीवार से टकरा जाती! निरंतर प्रयास करती रही पर विफ़ल रही. थक हार कर मैं कुटिया में ही रोते रोते सो गई.. भूखे पेट...

संध्या समय वो साधक लौट आया.

हाथ में कुछ सामान भी था.

मुझे खाने को दिया.

मैं मना करना चाहती थी पर उस साधक की आँखों में देखते ही मैं अपने सारे प्रतिरोध, कुंठा इत्यादि को भूल गई... खाना खाने के बाद मुझे परोसे गए एक कपाल में मदिरा को भी पी गई.

आँखें भारी होने लगी.. नींद आने लगी बहुत ज़ोरों से...

वहीँ लुढ़क गई.

फिर रात भर मेरे साथ मेरे इच्छा विरुद्ध यौन क्रीड़ा चलता रहा. मेरे बदन के हरेक इंच को जैसे कच्चा ही चबा जाना चाहता था वह. पिछली रात तो कदाचित बदन पर कपड़े रह गए थे.. लेकिन आज पूरी तरह से निर्वस्त्र कर के ही माना वो नीच.. इतनी बुरी तरह से पूरे शरीर के हरेक अंगों का माँस मर्दन हुआ; जिसका मैंने कभी अपने सबसे बुरे स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी.

लेकिन इस बुरे स्वप्न का यहीं अंत नहीं था..

क्योंकि...

केवल योनि से मिले सुख से संतुष्ट नहीं हुआ वो. कुछ अलग चाहता था.. मैं समझ गई थी कि ये क्या चाहता है... पर मैं मना कर पाऊँ; इतनी शक्ति नहीं बची थी मेरे अंदर.

फ़िर उसने वही किया जो वो चाह रहा था..

अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित किया मेरे साथ... बहुत तड़पी मैं.. पर उसे तो केवल स्वयं के आनंद से ही मतलब था.

अगले दिन मुझे पता चला की वो इसी तरह हर गाँव से ऐसे पाँच लड़कियों से संसर्ग करता है जिनका कौमार्य पर कोई दाग न हो.. फिर एक महाशक्ति को एक विशिष्ट रात्रि में बलि देता है.. नर बलि!

उसने स्वयं हँसते हुए कहा की इसकी ये तंत्र क्रिया दूसरे सभी तंत्रों से भिन्न है; बल्कि दूसरे शब्दों में देखा व कहा जाए तो ये कोई तंत्र क्रिया नहीं कुछ और ही था.. कुछ ऐसा जो इस दुनिया में विरले लोगों को ही पता है.

हर किसी में साहस नहीं होता है ये क्रिया करने का!

इस क्रिया व पद्धति को करने से उसे और अधिक विशिष्ट शक्तियां मिलेंगी. वो और अधिक शक्तिशाली हो जाएगा.

इस गाँव में आने के कुछ ही समय में उसने इसी गाँव की चार लड़की के साथ दुराचार कर के उनका बलि दे चुका था.. अंतिम की खोज थी उसे. एक दिन गाँव के हाट (बाजार) में मुझे शौमक के साथ देख लिया था.

उसके चेले की इतनी सुंदर, देह से पूर्ण एक प्रेमिका हो सकती है ऐसा उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था.

शौमक के द्वारा मेरे ऊपर से वशीकरण हटा लेने के तुरंत बाद ही उस साधक ने भी मुझ पर वशीकरण अस्त्र चलाया और मुझे शौमक पर मुग्ध करवा दिया.

संसर्ग करते समय उस साधक ने मुझसे कहा था कि उसे पता था कि मैं और शौमक इस गाँव से बाहर नहीं जा सकते.. और मैं स्वयं ही इनके पास आऊँगी.. ये उस रात मेरी ही प्रतीक्षा में थे... तैयार!

अगले दो दिनों तक मेरे साथ यही कुकर्म चलता रहा..

चौथे दिन की रात्रि को मेरा बलि होना था... और संयोग से उस दिन उस साधक ने दिन भर और जी भर कर मदिरा पान किया. उसे बेहोश देख मैंने एक बार फिर वहाँ से भाग जाने का प्रयास करने का निर्णय लिया.

कदाचित उस दिन उस कुटिया को चारों ओर से बाँधने भूल गया था वो नीच... इसलिए मैं बड़े आराम से वहाँ से निकल गई.

पर अब भाग कर जाती कहाँ...

कौमार्य नष्ट हो चुका था मेरा... शौमक का क्या हुआ... वो जीवित रहा भी या नहीं... क्या ऐसी दशा में मुझे अपनाएगा? और यदि अपना भी लिया; तो क्या मुझे ये शोभा देगा की मैं अपने देवता को झूठे, बासी फूल अर्पण करूँ?

क्या मुँह ले कर घर जाऊँ? क्या वापस लौट आने के लिए ही घर से भाग कर प्रेमी के साथ शादी की थी? समस्त गाँव वालों के सामने तो परिवार वालों के मुँह पर कालिख पोत ही चुकी थी मैं.. तो अब कैसे... परिवार वाले मुझे स्वीकार कर अपनाना भी चाहे तो समाज उन्हें ऐसा करने नहीं देगा...

कहेंगे की ऐसा करने से एक ऐसे उदाहरण की सृष्टि होगी जिससे भविष्य पर गाँव की कई जवान – नादान लड़कियों पर गलत प्रभाव पड़ेगा.

किसी और के घर नहीं जा सकती. कोई रख भी ले तो कहीं वो भी उस नीच साधक की ही भांति न निकले..

चलते चलते इसी स्थान पर, इसी पेड़ के नीचे आ कर बैठी मैं. रुलाई छूट गई मेरी. बहुत देर तक रोती रही..

और कोई मार्ग शेष न था.. अतः एक भयानक निर्णय ले ली.

आत्महत्या!!

हत्या तो मेरी उसी रात हो गई थी; जिस रात उस नीच ने मेरा देह धर्षण कर के कौमार्य ले लिया था..

अब तो बस खानापूर्ति करनी थी.

स्वयं को दैहिक रूप से मार कर...

कार्य सहज न था. भला स्वयं के प्राण लेना भी कभी सहज होता है??

अपने भगवान और पूर्वजों से क्षमा माँगी..मन को दृढ़ की... और इसी पेड़ की सबसे ऊँची डाली से.... लटक गई.

समाप्त... मेरी इहलीला.”

अवनी की आपबीती ने सबकी आँखों को भीगा दिया.

अंदर से हर कोई बुरी तरह से हिल गया.

कुछ पलों की चुप्पी के बाद बाबा ने पूछा,

“अब वो शैतान तांत्रिक कहाँ है?”

अवनी के बदले शौमक ने उत्तर दिया,

“अवनी के उसके चंगुल से छूट कर निकल जाने और बाद में आत्महत्या कर लेने के कारण उसका बलि का कार्यक्रम अधूरा रह गया था. जो सिद्धि उसे कुछ ही समय पश्चात मिलने वाली थी अब उसमें और भी अधिक विलम्ब हो गया. इसी कारण वो क्रोध से अत्यंत पागल हो उठा था. लक्ष्य के इतने निकट पहुँच कर असफ़ल होना किसी से भी सहन नहीं होता है.

अवनी के इस हरकत से उसे जो असफ़लता मिली और जो क्षति हुई; क्रोध के उन्माद में इसका प्रतिशोध वो पूरे गाँव से लेने की सोचा और एक रात यहाँ से जाने से पहले एक भयंकर क्रिया का संपादन किया. एक ऐसा अनुष्ठान जो कि किसी भी साधारण मनुष्य की कल्पना से परे थी.

चंडूलिका को जाग्रत किया उसने!

और हमें उसके अधीन कर दिया.

(कहते हुए कुछ क्षणों के लिए शौमक रुक गया. देखा की सभी उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे.. मुख से निकलते एक एक शब्दों को. पेड़, पौधे, घास, इत्यादि सभी वनस्पतियाँ भी मानो ठहर कर उसकी बातें सुनने को उत्सुक थे.)

(शौमक ने कहना जारी रखा...)

शादी की पहली रात से ही एक साथ घटी इतने सारे घटनाओं का हम दोनों पर बहुत गहरा धक्का लगा था जिसका प्रभाव हमारे मरणोपरांत भी रहा. उस तथाकथित तांत्रिक घेतांक और चंडूलिका ने हम दोनों को और भी अधिक वहशी बना दिया. अब हम दोनों को ही यौन संतुष्टि चाहिए थी.. हम दोनों ही गाँव वालों के बुद्धि को भ्रमित कर उनसे यौन सम्बन्ध स्थापित करते और जब काम हो जाता तब चंडूलिका के इशारे पर ही उन्हें मार भी दिया करते थे.. वैसे भी गाँव वालों को लेकर हमारे मन में अब तो कोई अच्छा विचार रहा नहीं था.. इसलिए उन लोगों को मारने में रत्ती भर का भी संकोच नहीं होता था.”

इतना कह कर शौमक अपनी बात ख़त्म किया.

कदाचित बाबा से रहा नहीं गया; ज़ोर से बोल पड़े,

“बस... !! बहुत हुआ... अब और नहीं.. अब और कष्ट नहीं!!”

कहते हुए आसन पर बैठ गए.

मंत्रोच्चारण प्रारंभ किया.

अब की बार अलग ही उद्देश्य था बाबा का जो शीघ्र ही सामने आ गया.

एक नारियल लिया. लम्बा सा लाल तिलक लगाया. मंत्रोच्चारण चलता रहा.

और थोड़े ही समय पश्चात् एक मद्धम नील प्रकाश से आलोकित हो गया वह नारियल. थोड़े और मंत्रोच्चारण के बाद अचानक न जाने कहाँ से एक सफ़ेद तेज़ रौशनी आई और उस नारियल में समा गई!

बाबा सामने देख कर बोले,

“तुम दोनों ने बहुत कष्ट झेला है.. अब विश्राम करो. मैं कल सुबह ही तुम दोनों की अंत्येष्टि एवं अन्य क्रियाकर्म कर दूँगा. साथ में पिंडदान की व्यवस्था भी. अब जाओ! विश्राम करो!!”

बाबा के हुंकार रुपी आदेश का तुरंत प्रभाव देखने को मिला.

धीरे धीरे शौमक और अवनी हवा में विलीन हो गए. मुखमंडल में एक सुखद प्रसन्नता, आभार एवं संतुष्टि लिए.

बाबा ने भुजंग का आह्वान किया. उसके आते ही बाबा ने सामने धरा पर बेसुध पड़े देबू और रुना को उनके घर पहुँचा देने का आदेश दिया.

तत्क्षणात् आदेश का पालन हुआ.

-----

अगले दिन सुबह,

अपने वचनानुसार बाबा ने सभी कार्य संपन्न कर दिया.

फ़िर अपने साथ सहयोगियों और शिष्यों को लेकर जंगल के बहुत अंदर एक सुनसान स्थान पर गए. जंगल के और सभी स्थानों से ये स्थान तनिक हट कर था.

बाबा ने गणना कर के ज़मीन पर एक बहुत गहरा गड्ढा खुदवाया.

तत्पश्चात वहाँ उस गड्ढे के अंदर मंत्रोच्चारण के बीच उस नारियल को झोले में से निकाल कर बहुत सावधानी से एक लाल कपड़े में पूरी तरह से लपेट कर ढक कर रख दिया और फिर मंत्रोच्चारण के साथ ही उस गड्ढे को भरने का आदेश दिया.

गड्ढा भरते ही चांदू बहुत उत्सुकतावश पूछ बैठा,

“गुरूदेव... इस नारियल में क्या है? कल एक अद्भुत प्रकाश को इसमें प्रविष्ट होते देखा था.”

“इसमें उस चंडूलिका की प्रतिछाया है वत्स... महाप्रेत को बुलाते समय मैंने शौमक और अवनी को अपने तंत्र पाश में बाँध दिया था. ऐसा करते ही उस चंडूलिका को पता चल गया था की कदाचित कल उसकी पराजय निश्चित है. जो महाप्रेत को बुलाने की क्षमता रखता हो वो और कई तरह की सिद्धियाँ भी अवश्य ही रखता होगा.

यह सोच कर ही वह फ़ौरन इस गाँव को छोड़ कर अन्यत्र कहीं चली गई. जाने से पहले अपनी प्रतिछाया को छोड़ गई. क्यों... इसका कोई सटीक उत्तर नहीं है मेरे पास.

इस बात का सदैव ध्यान रहे वत्स... की ये है तो चंडूलिका की प्रतिछाया मात्र; पर कम शक्तिशाली नहीं है. अतः ये इस सुनसान... इस वीराने में ही इस गड्ढे के अंदर नारियल में कैद रहनी चाहिए.. किसी भी प्रकार से यदि बाहर निकलने में सफ़ल हो गई तो घोर अनर्थ हो जाएगा...

..... वैसे..”

“वैसे.. क्या गुरूदेव?”

“ऐसा कहते हैं कि इन्हें जो कोई भी स्वतंत्र करता है ये उन्हीं की हो कर रह जाती हैं... संसार का समस्त सुख, हर प्रकार का सुख अपने उद्धार करने वाले की झोली में डाल देती है. कभी कभी तो कई प्रकार की शक्तियाँ भी प्रदान करती हैं.

पर ये सब कहने सुनने की बातें हैं.. वास्तविकता से इनका कोई लेना देना है या नहीं; ये कोई नहीं जानता आज तक.”

“परन्तु गुरूदेव... गाँव वालों ने वाकई बहुत बुरा किया था न शौमक और अवनी के साथ.”

“गाँव वाले क्या कर रहे थे ये स्वयं गाँव वालों को भी पता नहीं था क्योंकि वे सभी उस शैतान घेतांक के सम्मोहनी विद्या से प्रभावित थे. गाँववालों को अपनी करनी केवल दिख रही थी; अपने सोच पर कदापि नियंत्रण नहीं था उन लोगों का.”

अब गोपू ने एक प्रश्न किया,

“गुरूदेव, ये शौमक और अवनी की आत्माएँ देबू और रुना के शरीर में क्यों प्रवेश कर गए थे... कारण क्या था?”

“देबू और रुना, दोनों ही काफ़ी हद तक शौमक और अवनी के जैसे दिखने में थे. अति संयोग ही है यह कि देबू और रुना के जन्म के समय की ग्रह – नक्षत्र की दिशा दशा बिल्कुल वैसी ही थी जैसी शौमक और अवनी की. और देबू भी रुना की ओर आकर्षित था कुछ समय से. इन्हीं सब कारणों ने ऐसी अवांछनीय परिस्थितियों को बल दिया.”

“घेतांक और चंडूलिका का क्या होगा गुरूदेव... क्या वो फिर कभी गाँव वापस आएँगे?”

“चंडूलिका तो नहीं आएगी वत्स. इनका एक स्वभाव होता है कि जिस स्थान को एक बार ये छोड़ देती है, वो वहाँ दोबारा कभी नहीं जाती. अतः गाँव वाले चंडूलिका के आतंक से अब पूर्णतः मुक्त हैं और सदैव रहेंगे. रहा प्रश्न घेतांक का तो उसका कुछ कह नहीं सकता. वापस आ भी सकता है... और नहीं भी. वैसे, न आने के ही संभावनाएँ अधिक हैं; क्योंकि अगर आ गया, तो अब गाँव वाले उसे जीवित नहीं छोड़ेंगे.”

इसके बाद बाबा और उनके दो सहयोगियों ने कुछेक क्रियाएँ और की वहाँ और फिर सब वहाँ से चले गए.

गाँव में कुछेक दिन और रह कर, सब के धन्यवाद स्वरूप अनेक प्रकार के भेंट पा कर; एक निश्चित दिन, निश्चित घड़ी देख कर बाबा अपने सहयोगियों और शिष्यों के साथ गाँव वालों से विदा ले कर चले गए. गाँव वालों ने नम आँखों से उन्हें विदा किया.







*समाप्त*
अदभुत

कहानी भी और कहानी को लिखने की कला भी, दो बेजोड़ हैं।

डार्क सोल जी, लाजवाब है आप।
 
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Darkk Soul

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इंसेस्ट रीडर्स जो होते हैं वो एक मनोरोग से ग्रस्त होते है, आपका ये कमेंट 2 साल पुराना है, लेकिन उनकी गाली देने की क्षमता में कमी नही आई है।

बहुत सही कहा है आपने. :lotpot:
 

Darkk Soul

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अदभुत

कहानी भी और कहानी को लिखने की कला भी, दो बेजोड़ हैं।

डार्क सोल जी, लाजवाब है आप।

आपका बहुत धन्यवाद, जो आपने पूरी कहानी पढ़ी और अंत में अपना विचार रखा... प्रशंसा की. :)

आभार. 🙏 😊
 

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread

Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread



Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
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Regards :- XForum Staff
 

Shetan

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आज दिन भर स्कूल में बहुत व्यस्त रही रुना. कक्षा ३ से ६ तक के बच्चों का वीकली टेस्ट था. सभी कक्षाओं में हिंदी, अंग्रेज़ी और पर्यावरण विज्ञान पढ़ाती है वो. छोटे बच्चों को पढ़ाने में बहुत दक्ष है एवं कड़ी अनुशासन में भी रखना जानती है. लगातार पाँच घंटे से टेस्ट लेते लेते थक गई है बेचारी इसलिए कक्षा ३ में कुर्सी पर बैठ कर सुस्ता भी रही है और टेबल पर रजिस्टर रख कर बच्चों की उपस्थिति का अवलोकन कर रही है... बच्चे चुपचाप रुना द्वारा दिए गए टास्क को बनाने में लगे हैं...


रजिस्टर चेक करते करते अचानक से रुना को आज सुबह घटी घटना याद आ गई..


सुबह जिस तरह से उसका देबू दूधवाले से आमना सामना हुआ, उसकी देह को देख कर देबू जिस तरह से मोहित हो गया था एवं उसके चेहरे के जो हाव भाव हो गए थे... सब याद आते ही रुना के दिल में एक गुदगुदी हो गई.
वो मन ही मन मुस्करा उठी.

मुस्कराने का एक कारण ये भी था कि देबू की नज़रों ने उसके देह और मन में कामोत्तेजना की एक धीमी आँच प्रज्ज्वलित कर दी थी... जैसे जैसे देबू की नज़रें रुना के बदन पर जमते जा रहे थे वैसे वैसे शर्मो ह्या के साथ साथ थोड़ी थोड़ी कर के काम वासना का भी संचार होने लग रहा था रुना में. ब्रा विहीन ब्लाउज के अंदर उसके निप्पल्स धीरे धीरे सख्त हो उठे थे जिस वजह से ब्लाउज पर उनकी छाप से बनने लगी थी और यह चीज़ देबू की नज़रों से छुपी न रह सकी थी.

उसके ब्लाउज पर निप्पल्स वाले स्थान को देख आकर जिस तरह से देबू ने अविश्वास के साथ ज़ोर से थूक निगला था उससे तो रुना लगभग हँस ही पड़ी थी.


देबू के चले जाने के बाद रुना दूध के बर्तन को रसोई में सही जगह रखने के बाद सीधे अपने कमरे में गई और जा कर खड़ी हो गई थी ड्रेसिंग टेबल के सामने. आदमकद दर्पण के सामने खड़ी हो कर अपने जिस्म को स्वयं ही बड़े मनमोहक ढंग से निहारने लगी थी. देबू की दृष्टि ने जो आँच लगाया था रुना के अंदर; उसे अब धीरे धीरे कई महीनों की यौन तृष्णा हवा देने लगी थी.

रुना की बढ़ी हुई धड़कन बीच बीच में एक बार के लिए धौंकनी की तरह तेज़ हो जाती और फ़िर कम होती जाती.

‘टन टन टन टन टन!!!’

स्कूल की घंटी बजी...

और इसी के साथ रंगीले मनोरम सपनों से एक झटके में बाहर आ जाना पड़ा उसे.

बच्चों को विदा कर, साथी शिक्षक-शिक्षिकाओं से विदा ले कर रुना चल पड़ी अपने घर की ओर... अर्थात् नदी की ओर... मतलब यह कि घर पहुँचने के लिए उसे पहले नदी को पार करना पड़ेगा और फ़िर यही कोई पन्द्रह बीस मिनट चलने के बाद ही सीधे अपने घर पहुँचेगी.

नदी तट पर पहुँचने के साथ ही उसे नाव भी मिल गई.


नाव में ही उसे अपने घर के पास ही रहने वाली एक औरत मिल गई.. मीना.. मीना नाम है उसका. रुना के घर से दो घर आगे रहती है. कई दिनों से एक ही रट लगाए रखी है की उसे भी कहीं छोटी मोटी सी नौकरी करनी है और स्कूल से बढ़िया जगह और कौन हो सकती है... इसलिए रुना के पीछे पड़ी रहती है हमेशा... ताकि वो अपने स्कूल में बात करके मीना के लिए कुछ कर दे.

नाव में दोनों साथ ही बैठी इधर उधर की बातें कर रही हैं...

नाव नदी के दूसरे तट के पास पहुँचने के बहुत पहले ही अचानक से धीरे हो गई और धीरे धीरे ही जिस रास्ते चल रही थी उससे परे हट गई.

इस बात पे रुना का ध्यान गया..

हालाँकि ऐसा वो अपने शादी हो कर यहाँ आने के बाद से ही ऐसा होता हुआ देख रही है पर कभी इस विषय पर बात नहीं कर पाई. जिस किसी से भी बात करना चाही; उसने या तो बात को जल्दी से रफ़ा दफ़ा कर दिया या फ़िर आधा अधूरा ही बताया.

रुना के मन में अचानक से एक बेचैनी सी होने लगी.

उसे ऐसा लगने लगा की आज उसे ये बात जानना ही होगा कि सच क्या है...? क्या बातें होती हैं नदी को लेकर...? लोग क्यों भयभीत होते हैं इस नदी के दक्षिण दिशा को लेकर?

वो इधर उधर देखी..

बगल में ही मीना एक पत्रिका पढ़ने में मग्न थी.

रुना को मीना से बढ़िया कोई और न सूझा जो इस विषय पर उससे बात करे.

कोहनी से ज़रा सा धक्का दे कर मीना से पूछी,

“ए.. क्या पढ़ रही है?”

“कुछ नहीं दीदी.. बस यह फ़िल्मी पत्रिका पढ़ रही हूँ... घर में बैठे बैठे बोर हो जाती हूँ न.. इसलिए आज घर से ये सोच कर ही निकली थी कि शहर वाले मार्किट से तीन – चार किताबें खरीदनी ही खरीदनी है... कुल पाँच खरीद ली.. ही ही...”

बोल कर शरारत से खिलखिला उठी मीना.

रुना भी बिना मुस्कराए न रह पाई.

मीना की यही एक बात उसे बहुत भाती है. शादी हुए कितने साल हो गए पर बचपना अब तक नहीं गया उसका. पता नहीं पति से चुदती समय क्या करती होगी..!!

‘चुदती’ शब्द मन में आते ही रुना शर्मा गई.

‘हाय... ये कैसे कैसे शब्द आ रहे हैं दिमाग में... छी...’ मन ही मन सोची.

“क्यों दीदी.. तुम्हें भी पढ़ना है क्या.. पढ़ना है तो बोलो... अभी एक देती हूँ.”

रुना को चुप देख मीना पूछी.

मीना के सवाल से रुना अपने विचारों से बाहर आई..

“नहीं मीना.. पढ़ना नहीं है.. कुछ पूछना है..”

“हाँ पूछो.”

“वादा कर मैं जो भी पूछूँगी वो तू ज़रूर बताओगी...?”

“बिल्कुल दीदी... बिल्कुल बताऊँगी... पक्का.. वादा..”

“और किसी को बताओगी नहीं कि मैंने तुमसे कभी कुछ पूछा और तुमने मुझे उसका जवाब दिया था... यहाँ तक की मेरे पति को भी नहीं.”

रुना के इस बात पे मीना सशंकित हो गई.

थोड़ा रुक कर सोची...

कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी उसकी नज़र नदी के दक्षिण दिशा की ओर चली गई..

और मानो उसे अपने आप ही जवाब मिल गया की रुना उससे क्या पूछना चाहती है...

उसने तुरंत ही अपना निर्णय सुना दिया,

“देखो दी, अगर और कुछ पूछना चाहती हो तो ठीक है.. पर अगर इस दक्षिण दिशा के बारे में कुछ पूछना है तो पहले ही बता देती हूँ की मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है.. माफ़ करो.”

कह कर दूसरी तरफ़ थोड़ा सा घूम कर पत्रिका को दुबारा पढ़ने लगी.

रुना को मीना के इस तरह मना कर देने पर बुरा लगा. कुछ पल सोच कर उसने भी अपना निर्णय सुना दिया,
“ठीक है... मैं तुमसे कुछ पूछना और जानना चाहती थी इस भरोसे के साथ कि तुम ही एकमात्र मेरी वो करीबी हो जो सब खुल कर बताओगी.. पर नहीं.. तुमसे इतना सा भी नहीं हुआ.. कोई बात नहीं... तुम इतना छोटा सा काम नहीं कर सकती तो मैं भी भला स्कूल में तुम्हारी नौकरी की बात करने जैसी भारी काम कैसे कर पाऊँगी... ना बाबा.. माफ़ करो.”

कह कर रुना भी मुँह फूला कर दिखावटी गुस्सा करते हुए दूसरी तरफ़ घूम कर बैठ गई.

रुना के इस बात पे तो जैसे मीना को काठ मार गया.

‘हे भगवान... ये मैं क्या सुन रही हूँ... रुना दी मेरा काम नहीं कर देगी.. बस इतनी सी बात के लिए कि मैं उन्हें नदी के दक्षिण दिशा के बारे में बताने से मना कर दिया... उफ्फ्फ़... क्या करूँ.. वैसे बात तो सही है... ये पूछेंगी... और मैं बताऊँगी... छोटा सा ही तो काम है.. और वैसे भी दीदी कितनी हेल्पफूल है... मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए.’

ऐसा सोच कर मीना रुना की बायीं बाँह हल्के से पकड़ कर बोली,

“सॉरी दी.. दरअसल ये बात ही ऐसी है की बोलना तो छोड़ो... सोच कर ही जी घबराने लगता है.. तुम पूछो दी.. क्या क्या पूछना है?”

रुना पलट कर मीना को देखी...

मुस्कराई..

बोली,

“ज़्यादा कुछ नहीं.. बस, इस नदी और इसके दक्षिण दिशा को लेकर यहाँ के लोगों के मन में जो आतंक है.. उसके बारे में जानना है.”

मीना धीरे से बोली,

“ठीक है दी.. पर मेरी भी एक शर्त है...”

“क्या?”

“वादा करो की तुम किसी को भी नहीं बताओगी कि मैंने तुम्हें इस नदी और इसके दक्षिण दिशा के बारे में कुछ भी बताया है.”

“ठीक है.. वादा करती हूँ की कभी किसी को नहीं बताऊँगी... और वैसे भी, तू ही सोच.. किसी को ये बता कर मुझे किसी झमेले में फँसना है क्या?” रुना होंठों पर विजयी मुस्कान लिए बोली.

मीना एक गहरी साँस ले कर बोलना शुरू की,


“दीदी, बात है तो छोटी सी... पर है खतरनाक.. कई साल पुरानी बात है. तब हमारा ये गाँव था तो सही पर.. उस समय ये गाँव कम और जंगल का एक विशाल टापू सा लगता था. आज ही की तरह उस समय भी गाँव के लोग काफ़ी मिलनसार और एक दूसरे की मदद को हमेशा तैयार रहने वाले थे. पैसे वाले हो या गरीब, बहुत अच्छी सद्भावना थी लोगों में. बहुत ही अच्छा वातावरण हुआ करता था. इसी गाँव का एक लड़का इसी गाँव की ही एक लड़की के प्यार में पड़ गया. लड़की पैसे वाली थी... लड़का गरीब तो न था पर लड़की जैसा पैसा वाला भी नहीं था. खैर, इधर लड़की भी उसको चाहने लगी थी. दोनों अक्सर चोरी छिपे मिला करते थे. धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के बहुत घनिष्ठ हो गए. बहुत करीबी हो गए एक दूसरे के. एक दिन गाँव वालों ने दोनों को रंगे हाथ आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ लिया.

पंचायत बैठी.

गाँव के वरिष्ठ और गणमान्य लोग भी थे सभा में.

लड़के और लड़की को बहुत खरी खोटी सुनाई गई.

दोनों को ही गाँव और उनके परिवारों के संस्कार आदि की घुट्टी पिलाई गई. चूँकि इस तरह की ये पहली घटना थी गाँव के इतिहास में; इसलिए इस बात पे की आज के बाद दोनों एक दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे, एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देखेंगे... दोनों को छोड़ दिया गया. साथ में ये भी घोषणा कर दी गई भरी सभा में की यदि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति होती है तो चाहे वो कोई भी हो... उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. दया और माफ़ी की कोई गुंजाइश नहीं होगी.”

“फ़िर?” मीना को एक क्षण के लिए चुप होती देख रुना व्यग्रता से पूछ उठी.


“फ़िर काफ़ी दिनों तक दोनों ने एक दूसरे को देखा तक नहीं.. दोनों के आपस में मिलने, भेंट करने वाली जैसी कोई बात गाँव वालों के नज़रों में नहीं आई. धीरे धीरे गाँव वाले इस बात को भूल गए. उन्होंने यही सोचा होगा कि शायद दोनों सुधर गए होंगे. पर वास्तविकता कुछ और थी. वह लड़का उस लड़की से मिलता रह रहा था. कैसे... यह किसी को पता नहीं चला. एक दिन अचानक लड़की के घर में कोहराम मच गया. सुबह से लड़की घर से गायब थी... लड़की को अहले सुबह सबसे पहले उठ जाने की आदत थी. उस दिन जब काफ़ी देर बाद भी अपने कमरे से नहीं निकली तो उसकी माँ ने लड़की को जगाने के लिए उसके कमरे के दरवाज़े पर कई बार दस्तक दी थी... पर जब काफ़ी देर तक दस्तक और आवाज़ देने के बाद भी अंदर से कोई जवाब जब न आया तब उसकी माँ ने शोर मचाया. घर के मर्द जब दरवाज़ा तोड़ कर अंदर घुसे तब कमरे से लड़की नदारद थी.

बात फैलते देर नहीं लगी.

लड़की की खोज शुरू हो गई. उस लड़की से संबंधित हर उस स्थान को तलाशा गया जहाँ उसके होने की सम्भावना हो सकती थी. जब काफ़ी खोजबीन के बाद भी लड़की का पता न चला तब लड़की के घर वाले एवं गाँव वालों ने लड़के से पूछना ज़रूरी समझा. हालाँकि लड़की के गायब होते ही लड़के के घर में छापा पड़ चुका था... लड़का भी घर से गायब था. लड़की के माँ बाप से कड़ाई से पूछताछ करने पर पता चला था कि लड़का अहले सुबह ही पास के गाँव अपने दोस्त के यहाँ गया था... उसके साथ मिलकर फसलों की देख रेख करने.


गाँव वाले उस बगल वाले गाँव जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि अचानक हल्ला हुआ की कुछ ही देर पहले इसी गाँव के ही मंदिर में से लड़का लड़की को निकलते हुए देखा गया है. संभवतः दोनों ने शादी कर ली है.
शादी कर लेने वाली बात सुन कर लड़की के घर वाले गुस्से से तमतमा गए और गाँव वालों को साथ ले कर चल दिए मंदिर की ओर. पुजारी से तो कुछ खास पता न चल सका पर मंदिर से दस कदम दूर स्थित एक चाय दुकान के आदमी ने बताया की एक लड़का और लड़की को मंदिर की ही कच्ची सड़क से नीचे उतर कर दक्षिण की ओर जाते देखा था. लड़की दुल्हन के जोड़े में थी.

तुरंत ही उस जगह का पता लग गया जहाँ वे दोनों उपस्थित थे.


एक पुराना घर था. वर्षों से वहाँ किसी का आना जाना नहीं था. सबने बाहर से देखा की उसी घर के एक कमरे में मद्धिम बत्ती जल रही है.. रोशनी बस इतनी सी ही थी की उस कमरे में मौजूद आदमी किसी तरह अपने आस पास देख सके. लड़की के घर वालों ने गाँव वालों को बाहर ही रहने का इशारा किया और खुद चुपचाप उस कमरे की ओर बढ़े.

दरवाज़े के पास पहुँच कर एक साथ मिलकर दरवाज़े पर ज़ोर लगाया और तोड़ दिया.. वर्षों पुराना बुरी तरह जर्ज़र हो चुका दरवाज़ा दो ही लात में टूट गया.

अंदर वाकई में वे ही दोनों उपस्थित थे.... और.... बेहद आपत्तिजनक अवस्था में थे...


दोनों को ऐसी हालत में देख कर लड़की के घर वालों का पारा चढ़ गया और वहीँ लड़के को पटक पटक कर पीटने लगे. लड़की विरोध करना चाही पर चाह कर भी कर न पाई. वो बेचारी खुद अपनी वर्तमान स्थिति के कारण शर्मसार थी. घर की महिलाओं ने भी उस लड़की को वहीँ जमकर खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया और साथ ही पाँच – छह हाथ भी जमा दिए. अब तक गाँव वाले भी वहाँ आ चुके थे और लड़की के घर वालों के साथ मिलकर उस लड़के को कूटने लगे. इस पूरे हो - हंगामे के बीच लड़की को किसी तरह से मौका मिला और मौके का फ़ायदा उठाते हुए टूटी हुई खिड़की से छलांग लगा कर भाग निकली. लड़की को अँधेरे में बाहर भागते देख घर वालों के होश उड़ गए और वो भी उस लड़की के पीछे चीखते चिल्लाते हुए भागने लगे. कुछ मिनटों के लिए सबका ध्यान लड़की की ओर गया और इसी बात का फ़ायदा उठा कर लड़का भी किसी तरह वहाँ से निकल भागा.

दोनों दो विपरीत दिशा में भाग रहे थे.

इसलिए कुछ गाँव वाले लड़की के घर वालों के साथ हो लिए और बाकी उस लड़के को पकड़ने उसके पीछे भागे.”

इतना कह कर मीना चुप हुई..

अपने हैण्ड बैग से पानी की बोतल निकाली और इधर उधर देखते हुए थोड़ा थोड़ा कर पीने लगी.

रुना से ज़रा सी देरी सही न गई और व्यग्रता से पूछने लगी,

“अरे आगे बोल न... आगे क्या हुआ..? दोनों पकड़े गए? पकड़ कर क्या किया गया उन दोनों के साथ?”
बोतल को वापस बैग में भरते हुए मीना बोली,

“नहीं दी, पकड़े नहीं गए... कहते हैं कि गाँव वालों के प्रचंड गुस्से से बुरी तरह डर कर अपने होशोहवास खो कर बेतहाशा इधर उधर भागता हुआ वह लड़का अपनी जान बचाने के लिए नदी में कूद गया... काफ़ी दूर तक हाथ पाँव मारते हुए तैरते हुए निकल गया... इधर गाँव वाले भी कुछ कम न थे.. जल्द से जल्द पास ही लगी कुछ नावों को लिया और उनपे सवार हो कर लड़के के पीछे लग गए. अपने को घिरता देख कर लड़का नदी के दक्षिण दिशा की ओर बढ़ गया. उन दिनों पिछले एक सप्ताह से काफ़ी बारिश हो रही थी. सावन का महीना हो या भारी वर्षा वाले दिन... इस नदी का दक्षिण दिशा हमेशा से ही कुछ अधिक ही गहरा हो जाता है.. ऐसा और कहीं होता है की नहीं ये पता नहीं दी, पर यहाँ... इस नदी में ऐसा ही होता आ रहा है न जाने कब से... लड़का दक्षिण दिशा में थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि गहराई ने उसे अपने में समेट लिया. लड़का चीखता चिल्लाता रहा... हाथ जोड़ता रहा... गाँव वालों की ओर ... की उसे बचा ले... लेकिन गाँव वाले तो खुद ही दूर थे उससे... जब तक उस क्षेत्र विशेष तक पहुँचते... लड़का गहराई में समा गया था... हमेशा के लिए.”

“और लड़की का क्या हुआ?”

“उस दिन अँधेरे का लाभ उठा कर वह कहाँ चली गई थी किसी को पता नहीं चला था.. हालाँकि खोजना बदस्तूर जारी था... दो दिन बाद पास ही के एक जंगल में; एक पेड़ की ऊँची डाली पर से लड़की का शव बरामद हुआ था... फाँसी लगा ली थी... बेचारी... न घर की रही थी न घाट की...”

“ओह!”

पूरी कहानी को सुन कर रुना का मन उदास हो गया.


दोनों लड़के लड़की की मौत जिस प्रकार हुई... उसे जान कर रुना का मन रुआंसा हो गया...

उसके कान और कुछ सुनना नहीं चाहते थे.. पर मन जानता था कि अभी कुछ और जानना शेष रह गया है...

“पर.. दक्षिण दिशा से डरने का कारण क्या हुआ मीना... यही की वो लड़का उस दिन वहाँ डूब कर मर गया था...? इसलिए लोग उस तरफ़ से नहीं जाते की कहीं उनकी भी हालत उस लड़के जैसी न हो जाए.. अंधविश्वास?”

रुना के इस सवाल पर मीना ने उसे पैनी नज़रों से देखा... मानो समझ नहीं पाई की रुना केवल प्रश्न कर रही है या प्रश्न के आड़ में कटाक्ष...?

कुछ क्षण चुप रह कर बोली,

“नहीं दी.. अंधविश्वास नहीं.. वास्तविकता है.”

“क्या वास्तविकता है?”

“जिस दिन वो लड़का उस दिशा में उस विशेष जगह डूबा था.. उसके सप्ताह भर बाद से ही उस दिशा में उसी विशेष जगह और उसके आस पास निरंतर दुर्घटनाओं का एक सिलसिला शुरू हो गया... नावें डूबने लगीं... लोग मरने लगे... कई के शव मिलते तो कई के नहीं... उस हादसे वाले दिन के बाद अगले लगातार दो महीने में पचास से ज़्यादा लोगों की या तो मृत्यु हो गई... या फ़िर... गायब ही हो गए... जो गायब हो गए.. उनका कभी कुछ पता नहीं चला..”

नाव अब तक किनारे पर लग चुकी थी;

इसलिए अपनी बात को अधूरी छोड़ते हुए मीना उठ गई... मीना और रुना के साथ साथ नाव में जितने लोग सवार थे वे सब भी उतर गए.. वैसे कुछ खास नहीं थे.. उन दोनों और नाविक को मिला कर कुल सात जन थे नाव पर... चूँकि दोनों काफ़ी धीमे स्वर में बात कर रही थीं इसलिए और कोई उन दोनों के बीच हो रही बातों को सुन नहीं पाया..

घर की ओर चलते हुए रास्ते में मीना ने कहा,

“एक और बात है दी; नाव में चाहे एक ही महिला क्यों न हो... नाव उस दिशा से और भी अधिक दूरी बना कर अपने गन्तव्य की ओर जाते हैं... महिलाओं को विशेष रूप से उस दिशा से दूर रखा जाता है.”

रुना अचरज भरे स्वर में पूछी,

“ऐसा क्यों?”

“क्योंकि आज तक जितनी भी महिलाओं की उस दिशा में उस जगह में डूबने से मृत्यु हुई है... उनके शव तो अवश्य मिले हैं... पर जब डॉक्टरी जाँच की गई तो पता चला है कि उस महिला से जी भर कर दरिंदगी की गई है... जम कर शोषण किया गया है उसका... ऐसा समझो की बिना चबाए उस महिला के जिस्म को हर जगह से खा लिया गया है.”

भय से रुना का चेहरा फक पड़ गया...

धीरे से बोली,

“तुम्हारा मतलब...र... रेप?”

“हाँ दी.”

मीना ने छोटा सा जवाब दिया.

फ़िर पूरे रास्ते चलते हुए दोनों में से किसी ने भी एक दूसरे से कुछ नहीं कहा.

लेकिन इधर दोनों को ही पता नहीं था कि नदी से लेकर किनारे तक और फ़िर किनारे से लेकर उनके घर तक कोई उन्हें लगातार देख रहा था..!
Amezing....
 
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