मैं: "अच्छा...सच्ची...तो तुम्हारे पति का कितना बड़ा है..??"
ईस सवाल से रमा के भाव बदल गए..लन्ड छोड़ उठ खड़ी हुई "मैं चलती हु..देर हो रही है...ख्याल रखियेगा...और हाँ... कुछ दिन इसको सिर्फ मूतने के काम ही लाइएगा..!" बोल कर हंस दी..
मैं: " अरे कहा चली...कुछ देर सेंक और दे दो..!!"
रमा: "नहीं... ये हरामी वापस ठुंके लगा रहा है...कंही फिर औकात में आ गया तो मुझे नहीं भवानी अपनी मांग सफेद पानी से...वो शेफाली भाभी को ही मुबारक़..!" बोल कर दरवाज़े तक गयी और उसके खोलते हुए में बोला "सुनो....बताती तो जाओ... कितना बड़ा है तुम्हारे पति का..??"
रमा बाहर निकलते हुए दरवाज़े से अंदर झांकी और बोली "आपसे आधा..!" और निकल के चली गयी..
अपुन बिस्तर पर जा कर नंगे लेट गए और सोचने लगे कि रमा के साथ बिताये आज के पल कितनी ही चुदाईयों से बेहतर थी..!
भला हो उस चूहे का...mortein Rat-Kill कैंसिल..!!
अपडेट #15
ऑफिस में कॉल करके अपुन ने अपने चाचा के मरने का बोल कर 2 दिन की छुट्टी ले ली। ये मेरे वही बकचोद सुदीप चाचा हैं जिन्होंने मुझे हमारे घर की छत पर हमारी पड़ोसन मिसेज़ मालवीया को चोदते हुए देख लिया था और बाद में मुझे ब्लैकमेल करते हुए खुद की सेटिंग उस भोली गदराई पड़ोसन के साथ करवाने को बोले थे...उस दिन मन तो एकबार किया कि बोल दु अपने उस झुरण्ड चाचा से की जिस प्यारे नीरज को वो अपने 'जिगर का टुकड़ा' मान कर छाती चौड़ा करते हैं वो दरअसल मेरे ही लौड़े के बीज का फल है जिसे उनकी पतिव्रता कामुक पत्नी, मेरी गदराई दीपानिता चाची, ने अपनी कोख में हमारी उसी छत में की गई अनगिनत चुदाईयों के पश्चात पाल कर जना है..!! परन्तु बक्श दिया अपुन ने सुदीप चाचा को और अपना एहसान मनवाते हुए उनको दिलवा दी मिसेज़ मालवीया की चूत एक बार....और 2 मिनेट में झड़ जाने के पश्चात भगा दिया उनको उनको अपनी गुस्साई पड़ोसन ने ये बोल कर की "पहले अपने भतीजे जैसे पोटाश ले आओ अपने अंदर फिर आना मेरे पास..!" सुदीप चाचा मरे चूहे के लन्ड जैसा मुंह लेकर वापस आकर मुझसे पूछे के मेरी performance का राज़ क्या है..?? मै हंस दिया ये सोच कर की 'लवड़े तेरी बीवी भी यही पूछी थी मुझसे अपनी पलंगतोड़ चुदाई के पश्चात जब मैंने उनको अपने मोहल्ले के ठाकुर से चुंची दबवाते हुए रंगेहाथ पकड़ने के बाद ब्लैकमेल करके पेला था उस जून की गंडफाड़ू धूप में इसी छत पर..!'
ब्लैकमेल के बदले ब्लैकमेल...हिसाब बराबर...चाचा की 'परमानेंट' माल का भोंसड़ा ठोक कर गाभिन करने के सामने उनका मेरी 'टेम्पररी' माल की चूत में शर्मिंदगी भरा शीघ्रपत्तन... सौदा बुरा नही लगा मुझे! उसके बाद से आज तक मेरा झुरण्ड चाचा बड़ी तमीज़ से पेश आता रहा है मुझसे...!
वापस आज की स्तिथि में...इन दो दिनों में एक ढीली लुंगी में अपने बाबूराव को वापसी का मौका देते हुए मैं मिसेज़ पारेख की कॉल का वेट करता रहा पर उनका कोई कॉल लन्ड नही आया..! कॉल आया तो बस वो अपने ऑफिस में नई जॉइन हुई मिसेज़ निराली पटेल का..!
निराली जी ने अपने पति को कभी धोखा न देने की कसम खायी हुई थी....इसलिए उस गदराई-तबाही ने पिछले 1 महीने में कभी भी बाबूराव को अपने 'श्रीमुख' के अलावा कही आश्रय नही दिया था..! पूछने पर बताती थी कि अपनी पुत्री के लिए 'एक अच्छे वर' की लालसा में उन्होंने प्रण लिया था कि अब तक के 9 पराये लन्ड लीलने के बाद वो 10वा पराया लन्ड तभी लेंगी अपनी चूत में जब बेटी का विवाह पूर्ण हो जाये..!
'लन्ड-जलन' के दूसरे दिन निराली जी ने ये खुशखबरी दी कि उनको एक अच्छा दामाद मिल गया है और विवाह अगले सप्ताह है..! फोन पर अपनी कामुक आंहे सुना सुना कर बाबूराव की जलन बढ़ा ही देती थी बहन की लौड़ी अक्सर...पर 'डंडा लिए खड़े पारेख साहब' का सोच कर लन्ड बैठा ले रहा था..! दिल मे था के इस 48 साल की 'टैक्सी-चूत' के पहले अपुन को शेफाली भाभी की जवान 'कम-चुदी' फुद्दी का ठीक से भोंसड़ा बनाना था..!
पर, इस बीच की गंडफाड़ू समय मे बेचारी शेफाली भाभी की स्थिति के बारे में अंदाज़ा लगाते हुए उनके बारे में धैर्य रख रहा था..! मेरी भांति उनकी भी गांड फटी होगी रमा के सामने...इसीलिए बेचारी कॉल नही कर रही..!!
रमा...इस हादसे के दूसरे दिन आयी...मैं मुंह और लन्ड लटकाए लुंगी पेहेन कर TV में रूस और यूक्रेन के झगड़े को देख कर ये सोच रहा था कि इस बार तो गोआ ट्रिप में रुस्सियन मिलने से रही..! आंख लग गयी...तभी बाबूराव पर मिली ठंडक ने आंख खोल दी...रमा काम खत्म करके किसी अच्छे नर्स की भांति लन्ड पर चंदन का लेप लगा रही थी..!!
कुछ देर तो उसको बस देखता रह गया...उससे आंखे मिली तो उसने एक हल्की सी स्माइल दे कर बोला "कुछ मिलेगा नही इस मुये को अगले 2 दिन...तो खबरदार जो इसको खड़ा किया..!"
हम दोनों हंस दिए...तभी
रमा : "वो..कॉफी.."
मैं: "हाँ वही तो...न होती साली वो कॉफी..न मैं यू तुमसे लन्ड पर चन्दन घिसवा कर पड़ा रहता..!"
अचानक थोड़ा गुस्से से लन्ड से सुपाड़े को दबाते हुए रमा बोली "ये क्या परायी औरत के सामने लन्ड-लन्ड बोले जा रहे हैं...गाली लगता है..ज़रा भी तमीज़ नही ये आजकल के मुयों को...ये मुये गुप्तइन के उस करमजले देवर ने भी अपनी बेचारी भाभी की बोली खराब कर दी है...उस दिन कैसे गुप्तइन अपनी रंगरेलियों के किस्से वो 5 नम्बर वाली भाभी को बताते हुए बार-बार 'लन्ड-लन्ड' बोल रही थी...अंदर कमरे में काम करते हुए मुझे बड़ा गुस्सा आया वो मुये उनके हरामी देवर पर..!
दर्द से गोटे सरक के ऊपर की ओर आ लिए भाई...और ये सारी गलती मादरचोद लन्ड की और बेचारे लन्ड-वाले की... वो गुप्तइन तो बेचारी शिष्टाचारी नारी है जो शायद अपने पति की मंगलकामना हेतु अपने हरामी देवर से संभोगरत होने के पश्चात उसका वीर्य-पान करती है..!
"स..स..सॉरी... पर है तो ये लन्ड ही...किस नाम से बुलाऊ और इसको..??"
रमा का गुस्सा फुर्र हो गया...बात उसको सही लगी..कुछ सोच में पड़ गयी..
मैं : "लुल्ली बोलू चलेगा..?"
रमा: "धत...लुल्ली तो वो ठरकी पारेख जी की है....आपका वाला तो लौड़ा है.."
रमा के श्रीमुख से 'लौड़ा' शब्द ने जैसे कानो में शहद घोल दिया..लन्ड ने भी अपना पर्यायवाची सुनकर अपना मुख फुलाते हुए ठुंकि मार दी हौले से..!
मैं: थोड़ा डरते हुए "त..त..तो क्या लौड़ा बोलू आज से..??
रमा : "धत...वो भी गंदा लगता है...कुछ नाम देना चाहिए इसको.....'बाबू' बुलाइये इसको आज से...या फिर 'बाबूराव'....और शेफाली भाभी इसकी मस्तानी..!" ये बोलते ही खिलखिला उठी रमा...उसकी हंसी रुके नही रुक रही थी...और अपुन उस अलौकिक-संयोग पर मंत्रमुग्ध उसको देखते ही रहे..!
रमा: "वैसे वो कॉफी...आपके बगल में.."
मैं बदल वाली टेबल पर गर्म कॉफी का कप देखा और ट्रेन की सीटी सी निकलने लगी गांड से...रमा हंसते हुए बोली "अरे एक बार ऊपर क्या गिर गयी तो क्या जीवन मे आगे कॉफी नही पियेंगे..?? चलिए पी लीजिये"
मैं डरते हुए कप उठाया और चुस्की मारी..मस्त कॉफी बनाई थी रमा ने...सोफे पर बैठ कर गरम कॉफी की चुस्की के साथ लन्ड पर एक गदराई पराई नारी से चन्दन लगवाते हुए अपुन को नवाबो जैसी फीलिंग आयी..!
रमा: "कैसी बनी है..?"
कुछ शरारत सी आयी दिमाग मे..
मैं: "चीनी शायद कुछ कम है क्या..?"
रमा: "हाय.. कम रह गयी क्या...ये मुये मूसल पर चंदन लगाने का सोचते हुए ये सब गड़बड़ हो गया...मेरे तो हाथ मे चन्दन है...आप जा कर चीनी डाल आईये.."
मैं: "तुम चख के देखो ज़रा...कंही सिर्फ मुझे ही तो कम नहीं लग रही..!!" यह बोल कर झट से कप उसके मुंह के आगे कर के उसके होंटो पर टिका दिया।
रमा के कुछ सोच पाने से पहले ही कॉफी उसके होंटो पर लगी और उसके लब खुद ही खुलते चले गए..और कॉफी ने अंदर प्रवेश किया..!
रमा: "ठीक तो बनी है..पर झूटी करवा दी आपने अपनी कॉफी..लाईये दूसरी बना लाती हु..!"
मैंने मुस्कुरा कर उसकी आँखों मे देखते हुए कॉफी का कप ऊपर लाते हुए चुस्की मारी..."आह...अब अछि लग रही है...मिठास से भर गयी अब ये तो..!" बोल कर एक आंख मार दी रमा को
रमा: कुछ शर्माते हुए "धत...कुछ भी...ये रोमान्स अपनीं बीवी के साथ करिये...उम्रदराज़ महिलाओ पर क्या डोरे डाल रहे है..पर ये मुये आजकल के लड़कों को तो पके आम ही भाँते है..! और ये क्या किया आपने....मेरा झूठा क्यो पी लिया..!!!"
मैं: "क्यो...तुमने भी तो पिया मेरा झूठा...क्या हो गया..?"
रमा: "अरे जात-पात मानते हैं या नही..आप ठहरे ऊंची जाति के और हम नीची जाति के...!"
मैं: "ये सब कोरी बकवास है...मैं तुमको अपने बराबर का मानता हूं..!" और बोल कर चुस्की लगाते हुए उसके कंधे और गले के बीच एक हथेली रखते हुए कप वापस उसके होंठो पर लगाया...वो एक अजीब असमंजस में मेरी आँखों मे देख रही थी...मैने मुस्कुराते हुए आंखों से इशारा किया "कॉफी तुम्हारे साथ ही पीनी है मुझे...!"
रमा ने भी चुस्की लगाई...और हम दोनों ने मिल कर वो कप खत्म की...
बड़ी मीठी से शांति थी...दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते रहे...इसके आगे कुछ बढ़ने का दिल नही किया...क्योकि उसके लिए दिल मे एक कृतज्ञता सी थी...और ये कुछ ऐसा था जो मेरे जैसे अखण्ड चोदू के स्वभाव के विपरीत था..! मैं बस उसके कंधे को एक हाथ से पकड़े रहा और दूसरे हाथ से उसके कंधे और गले के बीच पकड़ के उसकी कान के नीचे अंगूठा घुमाता रहा..! ये अनैच्छिक ही था उस समय...
रमा कुछ समय पश्चात कुछ असहज सी हो गयी...वो उठी और बिना कुछ कहे चली गयी..!