रमा: "अरे जात-पात मानते हैं या नही..आप ठहरे ऊंची जाति के और हम नीची जाति के...!"
मैं: "ये सब कोरी बकवास है...मैं तुमको अपने बराबर का मानता हूं..!" और बोल कर चुस्की लगाते हुए उसके कंधे और गले के बीच एक हथेली रखते हुए कप वापस उसके होंठो पर लगाया...वो एक अजीब असमंजस में मेरी आँखों मे देख रही थी...मैने मुस्कुराते हुए आंखों से इशारा किया "कॉफी तुम्हारे साथ ही पीनी है मुझे...!"
रमा ने भी चुस्की लगाई...और हम दोनों ने मिल कर वो कप खत्म की...
बड़ी मीठी से शांति थी...दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते रहे...इसके आगे कुछ बढ़ने का दिल नही किया...क्योकि उसके लिए दिल मे एक कृतज्ञता सी थी...और ये कुछ ऐसा था जो मेरे जैसे अखण्ड चोदू के स्वभाव के विपरीत था..! मैं बस उसके कंधे को एक हाथ से पकड़े रहा और दूसरे हाथ से उसके कंधे और गले के बीच पकड़ के उसकी कान के नीचे अंगूठा घुमाता रहा..! ये अनैच्छिक ही था उस समय...
रमा कुछ समय पश्चात कुछ असहज सी हो गयी...वो उठी और बिना कुछ कहे चली गयी..!
अपडेट #16
रमा के इस अजीब बर्ताव के बाद सारा दिन सोचता रहा मैं... और फिर शाम हुई। चूंकि मैं अपने स्वास्थ को लेकर सदैव ही काफी जागरूक रहा करता था तो विटामिन टेबलेट्स और कुछ आयुर्वेदिक औषधियां लेता रहता था। मेरा स्टॉक थोड़ा कम हुआ देख कर बगल वाली मेडिकल शॉप पर पंहुचा...वहां दुकानदार एक कस्टमर का बिल बनाते हुए उसको एक विचित्र सी मुस्कान दे रहा था..
मैंने एक झलक देखा तो वो उसके लिए 'Sildenafil Citrate' की गोलियां पैक कर रहा था...मैंने एक टेढ़ी नज़र में देखा तो मेरे उम्र का लड़का खड़ा था हाथ मे दारू की बोतल का पैकेट लेकर...उससे गांजे की बड़ी तीव्र महक आ रही थी..!
उसने दुकानदार से बोला "भैया वो वाली दवा भी आई क्या स्टॉक में..?"
दुकानदार : "भैया कल आ जायेगी...पर आप पहले अपनी वो आदत छोड़िये तब कुछ काम करेगी वो...और वैसे भी...आपको क्या ज़रूरत...आप तो बस हवाई-फायर करते हैं ना...??"
लड़का: मेरी उपस्थिति भांपते हुए "भैया बाद में डिसकस करते हैं..!" और पैसे देकर निकल गया..
उसके निकलने के पश्चात मैंने दुकानदार शैलेश जी से मुस्कुरा कर अपनी विटामिन की गोलियों और आयुर्वेदिक औषधियों का फ़र्रा दिया..जब वो बिलिंग कर रहे थे तो मैने पूछ ही लिया "शैलेश भाई... ये हवाई-फायर वाला क्या सीन है..??
शैलेश भी जिम के शौकीन थे और मेरे ही जिम में आते थे...वो मुझसे वर्कआउट टिप्स लेते रहते थे...वो बोले "अरे आप ही कि सोसाइटी में रहता है ये...और (धीरे से इधर उधर देख कर) इसका इसकी भाभी से चक्कर है....पर अंदर डिस्चार्ज नही करता..!"
एंटीना खड़ा हो गया अपुन का..."क्या नाम है...?"
शैलेश भाई: "पूरा नाम तो पता नही...मुझसे ही पूछ-पूछ अपनी दवाएं लेता है...इसलिए खुल कर बताता गया मुझे एक दिन नशे में को...'गुप्ता' लिखता है नाम के आगे..."
ईस्की माँ का साकीनाका...गुप्ताइन के देवर है ये झींगुर...!!!
मैं: "और वो कौन सी दवा का पूछ रहा था..??"
शैलेश भाई: "अरे भैया...गंजेड़ी है ये साला...वीर्य-शून्य हो गया है इसका...मैंने ही टेस्ट करवाया था इसका...और उसी गांजे की वजह से इसका अब खड़ा भी नही होता मैनफोर्स की डबल डोज़ के बिना..!
तो ई मामला है बहनचोद....गुप्ताइन को पता है कि देवर नल्ला है...तभी बेख़ौफ़ उसके फुससी-लौड़े पे उछल-उछल कर मज़े ले रही है...वह रे हरामन..!
मैं: "ईस्के भाई की क्या कहानी है..?"
शैलेश भाई: "खानदानी अमीर है भाई...पड़ा रहता है शराब के नशे में वो अपनी रखैल के घर...एक कंटीली टेलर ने फंसाया हुआ है इसको...मनीषा नाम है उसका...एक अलग फ्लैट ले रखा है गुप्ता जे ने अय्याशी के लिए..! वो मनीषा का पति गांजा सप्लाई करता है...उसी ने गुप्ता के छोटे भाई को गांजे की लत लगवाई है..!
"मनीषा....कंही रमा की मनीषा-दी तो नही...??"
ईन सब घटनाक्रम ने अपनी रात को एक मस्त सपने के लिए तैयार कर दिया था..! रात के सपने में देखा वो गंजेड़ी गुप्ता अपनी भाभी को कुतिया बना कर चोद रहा था अपने डबल डोज़ की गोली खाकर....!
सुबह थोड़ी जल्दी नीड खुली दरवाज़े की घण्टी से...आंख मलते हुए गया, और दरवाज़े के खुलते ही सुबह का मौसम बन गया...वो डीप ब्लाउज़...वो लम्बे बाल...वो कजरारी आंखे...वो मदमस्त शरीर...वो मुस्कान और थोड़ा पसीना....
अगला दृश्य:
मैं आंखे बंद कर के मस्ती भरी सिसकिया ले रहा था सोफे पर बैठ कर...और लुंगी की आड़ में बाबूराव मस्त गर्म मुंह की चुसाई का परमानंद ले रहा था...! मेरे एक हाथ मे एक बड़ी गदराई चुंची और दूसरे में घने बैलों का जूड़ा..!! हचक कर लन्ड को मुंह मे खिंच कर पटकने का आनन्द ले रहा था..!
हर झटके से वो मंगलसूत्र झटक के गुर रहा था उन मदमस्त पसीने से लथपत मोटी चुंचियों पर..! किसी और कि 'लाइसेंसी माल' का हुस्न पीने का मज़ा कुछ अलग ही है मादरचोद...तभी इस उत्कृष्ट गाली 'मादरचोद' का ईजाद हुआ होगा..! उन परायी शादीशुदा चुंचियों को कस के मींजने पर जो 'आन्ह' निकली उसने लन्ड को मुंह के अंदर झटके देने शुरू कर दिए..!!!
थोड़ा अधिक तेज़ी से जीभ पर रगड़ से हल्का सा कराह उठा...आखिर ज़ख्म पूरा भरने में थोड़ा रह जो गया था..!
मैं: "आह मादरचोद...जलना भी था तो पूरे शरीर मे बस ये लौड़ा ही...पर कोई नही...बहुत हुआ ये चन्दन...अब तो बाकी का ये मुंह की गर्मी ही पूरा करेगी...!!"
मेरे दाहिने पैर के अंगूठे से, जो साड़ी के नीचे से चूत में फंसा था, चूत के अंदर-बाहर करना शुरू किया...और थोड़ी ही देर में लौड़े के चूसे जाने की 'सडप-सडप' ने चूत की फिंगरिंग की फच-फच से मिल कर एक मधुर संगीत को जन्म दे दिया..! लन्ड बस फटने को था...3 दिनों से उसे रिलीस नही मिला था...अपुन ने बालो के जूड़े को और कस के जकड़ के लन्ड को गले की गहराई में उतारना चालू कर दिया..!
उस सांस की घूँटने की "गू-गू' ने कानो में शहद से घोल रखा था...और तभी उस गुप्ताइन के मुख पर फैले उसके उस नल्ले देवर के शुक्राणु-हीन माल का सोचते हुए अपुन ने लौड़े को निकाल कर एक तेज़ धारदार फेशियल कर डाला..एक-दो-तीन-और चौथे धार को मुंह के अंदर डाल कर स्खलित हो गया..!!
तभी...दरवाज़े की घण्टी ने गांड में एक विस्फोट से कर दिया..!
मैं: "तुम किचन में जाओ...मैं देखता हूं..."
लुंगी नीचे करके गया दरवाज़ा खोलने...और दरवाज़ा खोलते ही गोटे गले तक आ गए....!
रमा अपने समय से आधे घण्टे पहले आकर खड़ी मुस्कुरा रही थी..!
मेरी 'बत्ती-डाउन' हो चुकी थी...गला सूख रहा था...रमा ने भड़ से बाकी का दरवाजा खोला और मुस्कुराते हुए अंदर आ कर चप्पल उतारी..!
मैं: "क.. क.. क्या हुआ आज इतनी जल्दी...??
रमा: "क्यो...मैं जल्दी नही आ सकती क्या..??"
मैं: "न..न..नही...मेरा मतलब...वो..वो...."
रमा का एंटीना 'एक्टिव' हुआ....और ढले ही पल उसने नीचे देखा तो लुंगी में बने धब्बे को देख कर मुस्कुराई...
रमा: "इसीलिए जल्दी आई... क्योके पता है मुझको के आजकल के जवान मुयों का हल थोड़ा सुबह ही तैयार हो जाता है...सोचा कि आपके तैयार होने से पहले आ कर लेप लगा दु.....पर ये आपका मुयाँ बदचलन बाबुराव तो पहले ही उल्टी किये बैठा हैं...! चलिए हटिये अब..."
वओ अंदर जाने लगी...और में बकरे की तरह मिमियाते हुए बोला..."न...न...नही रमा...व..व...वो...थोड़ा बाद में आओगी क्या...कसरत करनी है...उसके बाद तुम आ जाओ..??"
रमा थोड़ी ठिठकी...फिर कुछ सोच कर मेरी तरफ देख कर एक टेढ़ी मुस्कान देती हुई अंदर की ओर बढ़ गयी..."ये शेफाली भाभी भी ना...सब्र नही होता इनसे भी..!"
दीवाली के 21 फायरा वाले पटाखों की गूंज मेरी गांड से आना शुरू हो गया था..!!!!!!
फट फट फट...फटाक..!!!!