• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery परिवार कैसा है

सबसे गरम किरदार

  • रमा

  • खुशबू

  • राधा

  • सोभा


Results are only viewable after voting.

Sushil@10

Active Member
1,843
2,026
143
रामू का नशा अब सिर चढ़कर बोल रहा था—दारू की आग, खुशबू की चूत की महक, और वो मोटा काला लंड जो सालों से कुंवारी भूख सह रहा था। खुशबू का मुँह उसके लंड पर—चूस रही थी जैसे कोई भूखी रंडी, जीभ सिरे पर घुमाती, लार मलती, गले तक लेती। रामू की आँखें लाल, साँसें भारी। "साली... तू... उफ्फ!" पहली बार किसी जवान चूत वाली ने ऐसा किया—गांड चाटी, लंड चूसा, और वो मुस्कान जो कह रही थी, 'और ले ले चाचा, सब मुफ्त है।' रामू का दिमाग फट गया। सालों की गलतियाँ, गाँव की ठंडी रातें, सब भूल गया। वो पागल हो गया—हवस का भूत उतर आया।

अचानक रामू ने खुशबू के बाल नोचे—जोर से, जैसे कोई जानवर। "साली रंडी! तूने मुझे पागल बना दिया!" और चटाक—एक जोरदार थप्पड़ खुशबू के गाल पर। आवाज ऑफिस में गूँजी, जैसे कोई कोड़ा फट गया। खुशबू का चेहरा लाल हो गया, होंठ कट गए थोड़े, लेकिन वो चीखी नहीं—बल्कि सिसकारी भरी, "आह्ह... हाँ चाचा, मारो! रंडी को थप्पड़ मारो!" उसकी चूत और गीली हो गई, रस टपकने लगा जांघों पर। थप्पड़ की जलन से उसके निप्पल्स और सख्त, चूचे हिलने लगे। उमेश देखकर हँसा, अपना लंड सहलाते हुए, "हा हा रामू भाई, सही पकड़ा! ये साली थप्पड़ खाकर ही चुदती है। मार, जोर से मार!" रामू रुका नहीं—दूसरा थप्पड़, अब दूसरे गाल पर। चटाक! खुशबू का सिर घूमा, लेकिन वो मुस्कुराई, जीभ निकालकर लंड फिर चाटा। "और चाचा... मारो, मैं तुम्हारी रंडी हूँ आज।"

रामू अब काबू से बाहर हो गया —वो उठा, खुशबू को पटक दिया टेबल पर। कमीज पूरी खींच दी, चूचे बाहर उछल पड़े—गोरे, लाल निशान वाले थप्पड़ से। रामू झुका, एक चूचा मुँह में लिया—चूसने लगा पागलों की तरह, दाँतों से काटा। "उम्म... साली के दूध कितने मीठे है!" दूसरा हाथ चूत पर—उँगलियाँ अंदर धकेलीं, दो एक साथ। चूत की दीवारें चिपचिपी, गर्म, रस बाहर बह रहा था । खुशबू की कमर ऊपर हो गई, "आह्ह चाचा... हाँ, उँगली चोदो! पापा, देखो ना, रामू चाचा ने क्या कर दिया!" उमेश खड़ा हो गया, लंड हाथ में लिए। "चल साली, अब असली खेल शुरू। रामू भाई, तू पीछे से डाल—इसकी चूत फाड़ दे। मैं आगे से मुँह चोदूँगा।"

खुशबू टेबल पर लेटी, पैर फैलाए—चूत खुली, गुलाबी होंठ फूले, रस चमकता। रामू ने अपना काला लंड पकड़ा—मोटा, लंबा, सिरा पर रस का धागा। वो पीछे से चिपका, गांड के गोले फैलाए। "साली... ले ले चाचा का लंड!" एक झटके में धक्का—पूरा लंड चूत में घुसा। चूत की दीवारें खिंच गईं, आवाज आई चपचप की। खुशबू चीखी, "ओह्ह... मोटा है चाचा! फाड़ दिया!" रामू पागल—धक्के मारने लगा जोर-जोर से, हर बार जड़ तक। पतत-पतत की आवाज, लंड चूत से बाहर-भीतर, रस उछल रहा। "चोदूँगा साली... तेरी चूत फाड़ दूँगा! सालों का हिसाब!" उसके हाथ खुशबू की कमर पर, नाखून गाड़े, थप्पड़ मारते गांड पर—चटाक-चटाक। खुशबू की गांड लाल हो गई, लेकिन वो मजा ले रही, कमर हिलाती। "हाँ चाचा... चोदो रंडी को! पापा... मेरा मुँह..."

उमेश आगे आया, लंड खुशबू के मुँह पर रगड़ा। "खोल साली, बाप का लंड चूस।" खुशबू ने मुँह खोला—गीला, लार भरा। उमेश ने धकेला—गले तक। "चूस... कुत्तिया!" खुशबू चूसने लगी, स्लर्प-स्लर्प, जीभ लंड पर लिपटी। लेकिन रामू के धक्कों से उसका सिर झटके खा रहा—लंड मुँह में अंदर-बाहर। उमेश ने बाल पकड़े, खुद धक्के मारने लगा। "हाँ साली... दो लंड खा रही है तू! रंडी बनी हुई।" तीनों की सिसकारियाँ मिलीं—रामू पीछे से, "उफ्फ... कितनी टाइट चूत!", खुशबू बीच में, "आह्ह... चोदो दोनों... फाड़ दो!", उमेश आगे, "चूस रांड.. गला चोद रहा हूँ!"

अब पोजीशन बदली—खुशबू को उठाया, उमेश कुर्सी पर बैठा। खुशबू उसकी गोद में उल्टी, चूत ऊपर। उमेश का लंड चूत में घुसा—मोटा, घरेलू वाला। "ले बेटा... बाप की चुदाई!" धक्के ऊपर से, चूत में गहराई तक। रामू पीछे से—गांड पर थप्पड़ मारता, फिर अपना लंड गांड के छेद पर रगड़ा। "अब गांड चोदूँगा साली!" लार थूककर गीला किया, और धकेला—धीरे-धीरे, लेकिन जोर से। गांड का छेद खुला, लंड अंदर सरका। खुशबू चीखी जोर से, "ओह्ह माँ... दोनो छेद भरे! चाचा... धीरे!" लेकिन रामू रुका नहीं—धक्के मारने लगा, गांड फाड़ते।—उमेश चूत में, रामू गांड में। लंड एक-दूसरे से रगड़ रहे अंदर, पतली दीवार के पार। चपचप-पतत की आवाजें, रस बह रहा, पसीना टपक रहा था । खुशबू पागल हो गयी —हाथों से अपने चूचे मसल रही, निप्पल्स चूड़ रही। "हाँ... चोदो... दोनो लंड... रंडी मर रही हूँ मजा से!"

रामू ने फिर थप्पड़ मारा—अब चूचे पर। चटाक! "साली... ले थप्पड़!" खुशबू की चीख में मजा आया , "मारो चाचा... रंडी को मारो!" उमेश हँसा, चूत में जोर का धक्का। तीनों पसीने से तर हो गए ऑफिस में गंदी महक फैल गयी —चूत का रस, लंड का पसीना, दारू की बू। रामू पहले झड़ा— "आह्ह... साली... निकल रहा!" गर्म वीर्य गांड में भरा, बाहर टपका। खुशबू काँपी, "हाँ चाचा... भर दो!" फिर उमेश—चूत में झड़ते हुए, "ले बेटा... बाप का रस!" आखिर में खुशबू—चीखकर झड़ी, चूत सिकुड़ गई, रस छूट गया । तीनों गिर पड़े—हाँफते, हँसते।

लेकिन खत्म कहाँ? रामू बोला, "साली... कल फिर आना।" उमेश मुस्कुराया, "हाँ भाई, फैमिली बढ़ गई।"
Nice update
 

sunoanuj

Well-Known Member
4,544
11,745
159
  • Like
Reactions: bigbolls5

sunoanuj

Well-Known Member
4,544
11,745
159
रात का सन्नाटा कमरे को अपनी गिरफ्त में जकड़ चुका था। पीली लाइट की लहरें दीवारों पर नाच रही थीं, मानो कोई पुरानी यादें जाग उठी हों। रामा बिस्तर पर लेटी थी, साड़ी की सिलवटें उसके बदन से चिपकी हुईं, पेट की नरम चमड़ी पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। हवा में उसकी खुशबू फैली थी – वो गुलाबी मादकता, जो रवि के सीने को चीर रही थी। उसका दिल धड़क रहा था, जैसे कोई अनकही पीड़ा जागी हो, लेकिन आंखों में वो चमक... ममता की आड़ में छिपी वो लालसा, जो शर्म से कांप रही थी।

रावी उसके बगल में था, बदन की गर्मी माँ को छू रही थी। उसके मांसपेशियाँ तनी हुईं, सांसें भारी – जैसे कोई पुराना ज़ख्म फिर से हरा हो गया हो। धीरे से उसका हाथ रामा की जांघ पर सरका, उंगलियों की गर्माहट साड़ी को भेदते हुए। "मम्मी . कल का ट्रिप... तू मेरे साथ चलेगी न? प्लीज... मैं बिना तेरे के जाना ही नहीं चाहता। तू जानती है न, तेरे बिना ये जिंदगी... जैसे अधूरी सी लगती है। वो सब दोस्त... वो हंसी-मजाक... सब बेमानी हो जाता है। तू मेरी... मेरी ताकत है, मम्मी ।" उसकी आवाज कांप रही थी, नरमी से भरी, लेकिन आंखों में वो दर्द – जैसे बचपन की वो एकाकी रातें लौट आई हों, जब वो मम्मी की गोद में छिपा करता था। वो जानता था, ये सिर्फ ट्रिप नहीं; ये एक और कदम था उस गहरे गड्ढे की ओर, जो वो खुद खोद रहा था, लेकिन प्यार के नाम पर।

रमा का दिल बैठ गया। वो सिर घुमाकर बालों की लटें चेहरे पर गिरने देती रही – काले, रेशमी, जो उसके गालों को सहला रही थीं। "रवि.. बेटा, तू क्या कह रहा है? ये सब... ये कैसे हो सकता है?" उसकी आवाज टूट गई, जैसे कोई पुरानी चिट्ठी फट गई हो, आंसू किनारों पर ठहर गए। "तेरे चार दोस्त... वो सब जवान, भूखे। मैं तेरी माँ हूँ, रवि... तेरी वो माँ जो तुझे गोद में खिलाती थी, तेरी हर शरारत को छिपाती थी। अगर ये राज़ खुल गया – ये पाप, ये गलती जो हमने की – तो क्या बचेगा? तेरी माँ की इज्जत... तेरी ज़िंदगी, तेरी वो मुस्कान जो तू दोस्तों के बीच बिखेरता है... सब धूल में मिल जाएगा। सोच बेटा, क्या तू वो सब देख पाएगा? क्या तू अपनी माँ को... वो नजरों से देखते हुए सह पाएगा?" आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए, लेकिन हाथ अनजाने में बेटे की छाती पर चला गया। वहाँ धड़कन महसूस हो रही थी – तेज, बेकाबू, जैसे कोई तूफान दबा हो। शर्म उसे खा रही थी, लेकिन वो स्पर्श... वो गर्माहट, जो उसके निप्पल्स को साड़ी के नीचे सख्त कर रही थी, उसे रोक नहीं पा रही थी।

रवि ने धीरे से मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन आंखों में वो आग – प्यार और जलन का मिला-जुला जहर। वो और करीब सरका, होंठ माँ के कान के पास। गर्म सांसें रामा को झुरझुरी दे रही थीं, जैसे कोई पुरानी याद जगा रही हों। "मम्मी.. इज्जत? अरे, इज्जत तो तूने कल रात खुद को सौंप दी थी न कुतिया ? याद है न, जब तू मेरे... मेरे लंड को मुंह में ले रही थी, वो गर्माहट तेरी जीभ पर लिपटी हुई... वो नमकीन रस, जो तू चूस रही थी जैसे कोई भूखी हो, जैसे वो तेरी प्यास बुझा रहा हो। तू कसमसा रही थी, 'बेटा... और गहरा... मम्मी को दर्द दे, लेकिन रुको मत... ये दर्द ही तो मेरा सुख है।' और फिर जब मैं तेरी चूत में घुसाया ... वो टाइट गर्मी, वो चिपचिपा रस जो मेरे साथ बह रहा था, जैसे हम दोनों एक हो रहे हों। तू रो रही थी, 'हाय राम... ये पाप है, बेटा। तू मम्मी को रंडी बना रहा है... लेकिन ये सुख, ये तेरी गर्माहट... मुझे छोड़ ना, कभी मत छोड़ना।' मैं जानता हूँ, मम्मी. तू शर्मिंदा है। मैं भी हूँ। हर रात ये सोचकर मैं खुद को कोसता हूँ। लेकिन ये... ये हमारा राज़ है। हमारा प्यार। जो दुनिया को न दिखे, लेकिन हमें बांधे रखे।"

रमा की सांसें रुक सी गईं। चेहरा लाल हो गया, शर्म से जलता हुआ, लेकिन हाथ बेटे की कमर पर कस गया – नाखून चुभे, दर्द और मोह का मिश्रण। "रवि... चुप कर, बेटा। वो गलती थी... तेरी वो आंखें, वो स्पर्श जो मुझे कमजोर कर देते हैं। तू जानता है न, मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकती हूँ... लेकिन ये?" उसकी आवाज में आंसू थे, लेकिन गहराई में वो कशमकश – डर, प्यार, और वो गुप्त उत्तेजना जो उसे कांपने पर मजबूर कर रही थी। "लेकिन कल... वो लड़के... अजय, विक्की... अगर उन्होंने मुझे छुआ? अगर तेरी मम्मी की वो कमजोरी... वो गीलापन, वो सिहरन महसूस की? तू क्या करेगा, रवि? सोच, तेरे सीने में वो जलन... जैसे कोई आग लगी हो, जो तुझे अंदर से जला दे। क्या तू सह पाएगा वो दर्द?"

रावी ने साड़ी का पल्लू हल्का सा खींचा, माँ की चोली के ऊपर से ब्रेस्ट को छुआ – सॉफ्ट, गोल, निप्पल पर उंगली घुमाई। रामा की सिसकी निकल गई, कमर अनजाने में उभर आई। "मम्मी... हाँ, जलूँगा। वो जलन ही तो मेरा नशा है – तुझे देखकर, तुझे छूते हुए, तुझे किसी और के हाथों में कल्पना करके।" उसकी आवाज में वो दर्द साफ था, जैसे कोई पुराना घाव फिर से खुल गया हो। "कल तू मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी। कोई नहीं जानेगा तू मेरी मम्मी है। बस... थोड़ा मज़ा, थोड़ा वो दर्द जो हमें जोड़े रखे। सोच, कार में पीछे बैठी तू... अजय का हाथ तेरी जांघ पर सरकेगा, वो फुसफुसाएगा, 'रामा, तेरी ये स्किन... इतनी नरम, इतनी गर्म... मैं पागल हो जाऊँ तुझे छूकर। विक्की कान में झुककर कहेगा, 'गर्लफ्रेंड... तेरी चूत का स्वाद लूँ... जीभ से चाटूँ, वो मीठा रस निगलूँ... तू सिसकेगी मेरे नाम से, लेकिन मुझ को मत बताना – ये हमारा छोटा सा राज़ बनेगा।' रोहन तेरी गांड पर थप्पड़ मारेगा, हल्का लेकिन जलन भरा, 'रामा रानी... ये गांड... मेरा लंड खाएगी? चिपचिपा वीर्य भर दूँगा अंदर, तू कांपेगी सुख से, लेकिन वो शर्म तेरी आंखों में... वो तो मुझे और पागल कर देगी।' मनीष तेरे मुंह के पास आएगा, 'चूस ले... जैसे रवि का चूसती है, वो नमकीन स्वाद चख... लेकिन मेरा... मेरा तो और गहरा, और गाढ़ा। तू रोयेगी सुख से।' मैं आगे मिरर से देखूँगा.कितना मज़ा आएगा सोच मेरी कुतिया मम्मी.. मेरा दिल फटेगा, लेकिन तू मेरी रहेगी रांड। ये हमारा प्यार है, मम्मी.. दर्द भरा, लेकिन हमारा। जो हमें जीने का बहाना देता है।"

रामा की आंखें बंद हो गईं, सांसें तेज। कल्पना में वो खो गई – शर्म से रोना आ रहा था, लेकिन चूत में वो सिहरन... बेटे का हाथ नीचे सरक गया, पेटीकोट में उंगली डाल दी। "हाय बेटा... तू मुझे मार डालेगा इस जलन से। ठीक है... चलूँगी। लेकिन वादा कर... राज़ न खुलने देना। मैं तेरी गर्लफ्रेंड... बस। और रास्ते में... ज्यादा न होने देना, वरना ये जलन हमें खा जाएगी।" रवि ने अपना लंड बाहर किया – कड़ा, नसों भरा, टिप से रस टपकता। माँ का हाथ पकड़कर रखा, वो हिलाने लगी – गर्माहट, चिपचिपाहट। वीर्य का छींटा आया, गर्म, कमरे में वो नमकीन गंध फैल गई। दोनों गले लगे, सांसें मिलीं – प्यार, पाप, लालसा... सब एक हो गया।


सुबह की पहली किरणें खिड़की से चुपके घुसीं, कमरे को सोने सी चमक दी। रामा आईने के सामने खड़ी थी – लाल साड़ी लिपटी, उसके कर्व्स को गले लगा रही, जैसे कोई राज़मयी मूर्ति। ब्रेस्ट्स ऊपर उभरे, कमर की नाजुक चमड़ी हवा में सिहर रही। होंठों पर लाली, लेकिन आंखों में वो घबराहट – मिश्रित उत्साह और डर, जैसे कोई युद्ध का आह्वान हो। दिल धड़क रहा था, पुरानी यादों से बोझिल।

बाहर हॉर्न बजा – गूंजदार, बेस से भरा। रवि ने दरवाजा खोला, SUV खड़ी थी – काली, विशाल, इंजन की गड़गड़ाहट हवा को कांपा रही थी। अंदर चारों: अजय ड्राइव पर, विक्की बगल, पीछे रोहन-मनीष। उनकी हंसी रुकी, जैसे सांस थम गई। "रवि! रेडी हो भाई? अरे वाह... ये क्या कमाल लाया तू?" अजय की आवाज कट गई, जब रमा बाहर आई।

उसकी साड़ी हवा में लहराई, कूल्हों की मटक – सम्मोहक, लेकिन आंखों में वो शर्म। ब्रेस्ट्स हर कदम पर हिले, चूड़ियाँ खनकीं, परफ्यूम की लहर सबको मदहोश। "हेलो बॉयज... मैं रमा। रवि की... गर्लफ्रेंड।" उसकी मुस्कान शरारती लगने की कोशिश में, लेकिन आवाज में वो कांप – डर, कि कहीं राज़ न फूट पड़े। "आज का ट्रिप... मज़ेदार होगा न? लेकिन... धीरे-धीरे चलना, वरना दिल धड़क जाएगा सबका।"

विक्की का मुंह सूख गया। "फक यार रवि.. तूने छुपाया था इतना! रमा... वाह, तू तो... आग लगाने वाली लग रही है। पीछे आ ना, हम तेरी केयर करेंगे... वादा, तुझे कभी ऊबने न देंगे।" सबकी नजरें चिपक गईं – रोहन की जांघों पर, मनीष ब्रेस्ट्स पर। चलो, बैठ जाओ। जगह तेरे लिए गरम करके रखी है, लेकिन तेरी गर्मी तो सबको पिघला देगी।" रवि ने हाथ थामा, कान में फुसफुसाया: "मम्मी... देख, सब तेरे दीवाने हो रहे है । एंजॉय कर... लेकिन याद रख, ये जलन हमारी है। तू मेरी।" रमा शरमाई, SUV में घुसी – पीछे, रोहन-मनीष के बीच। विक्की बीच में घुसा। कार चल पड़ी, इंजन की दहाड़ दिलों को हिला रही।

हाईवे पर कार दौड़ी – हवा तेज, धूप चुभन वाली, रेडियो की धुनें दिल की धड़कन से ताल मिला रही। रवि ड्राइव पर, लेकिन रियरव्यू मिरर से चिपका – चेहरा तमतमाया, सीने में वो जलन, लंड पैंट में दबा, दर्द से सिहर रहा। पीछे रमा फंसी – लेदर सीटें गर्म, साड़ी चिपक रही, तीनों की बॉडी हीट उसे घेर रही। परफ्यूम मिक्स पसीने की गंध से – मदहोश करने वाली, लेकिन उसके दिल में डर था।

शुरू शांत रही, लेकिन विक्की ने हाथ सरकाया – जांघ पर, साड़ी ऊपर से रगडा। "ओप्स... रमा, जगह तंग है न? लेकिन तेरी ये स्किन... सिल्क सी लग रही है, इतनी नरम कि हाथ हटाने का मन ही न करे। रवि लकी है यार, ऐसी गर्लफ्रेंड मिली तो।" रमा सिहरी, लेकिन रवि का सिग्नल मिरर से: "हाँ..." रोहन कान में झुका, सांसें गर्म, गले पर लगीं: "रमा... तू कितनी खूबसूरत है, जैसे कोई सपनों की परी। रवि ने बताया नहीं था... अगर तू मेरी होती, तो मैं रोज तेरी चूत चाटता, जीभ से अंदर तक... वो गीला रस, मीठा-स्लिपरी, निगलता जाऊँ जैसे कोई अमृत हो। तू सिसकती रहती, 'रोहन... हाय... और गहरा... लेकिन ये गलत है, रुको न... शर्म आ रही है।' वो शर्म तेरी आंखों में... वो तो मुझे और पागल कर देगी, रमा। तू सह पाएगी ऐसी कल्पना?" उसकी आवाज में वो भूख, लेकिन रमा की आंखों में आंसू – "रोहन... मत कहो ऐसा। मैं... मैं डर रही हूँ। ये सब... रवि को चुभेगा।"

रामा की सांस तेज हो गयी, चूत में सिहरन – गीलापन महसूस हुआ, शर्म से। मनीष ने चोली पर हाथ रखा, दूध दबाया – सॉफ्ट, उभरा। "रमा... ये तो... कमाल के हैं, इतने गोल, इतने नरम कि दबाने का मन बार-बार करे। ब्रा उतार दे चुपके से, बस एक झलक... रवि सोचता होगा तू शर्मीली है, लेकिन तू... तू तो ज्वाला है अंदर से। कल्पना कर न... जंगल में रुकें, मैं तुझे लिटाऊँ घास पर। लंड तेरे मुंह में डालूँ... चूस ले धीरे-धीरे, नमकीन टिप चख, वो रस तेरी जीभ पर लिपट जाए। तू रोयेगी, 'मनीष... फाड़ दे मेरा मुंह, लेकिन धीरे... ये दर्द सुख दे रहा है, जैसे कोई पुरानी प्यास बुझ रही हो।' रवि को क्या पता, तू कितनी वाइल्ड हो सकती है।" रमा ने हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन आवाज कांपी: "मनीष... बस करो... रवि देख रहा है। ये... ये मजाक लग रहा है, लेकिन दिल डूब रहा है मेरा।"

विक्की हंसा, म्यूजिक तेज: "हाँ रमा... सुन न, मेरा लंड... मोटा, काला। तेरी चूत फाड़ देगा वो, अंदर तक घुसकर। तू चिल्लाएगी, 'विक्की... आह... तुम्हारा तो रवि से भी बड़ा है, इतना गाढ़ा, इतना गर्म... ये दर्द... हाय, ये सुख मुझे मार डालेगा।' थप्पड़ मारूँगा तेरी गांड पर – जलन वाली, लाल निशान छोड़कर। तू चिल्लाएगी दर्द से, लेकिन रुकेगी नहीं, कमर उभारेगी और कहेगी, 'और मारो... ये जलन ही तो मुझे जीने का बहाना दे रही।' हम चारों... तेरे ऊपर टूट पड़ेंगे। रस चाटेंगे तेरे बदन से, चोदेंगे हर तरफ से... तू हमारी रानी बनेगी, वीर्य से तरबतर। चेहरे पर, चूत में, गांड में... गर्म छींटे, नमकीन स्वाद। रोहन की उंगली साड़ी में – चूत छुई, गीली। चाट ली, "मम्म... रमा, तेरा रस... स्वर्ग जैसा, मीठा लेकिन नमकीन। तू कांप क्यों रही? डर या... ये चाहत जो अंदर जाग रही है?" मनीष ने निप्पल चूसा – चपचप आवाज, गीली। रमा सिसकी भर रही थी – शर्म से आंखें बंद, लेकिन कमर उभर रही, आंसू बह रहे। "बस... रुको सब... ये बहुत हो रहा। रवि.. वो देख रहा है, मेरा दिल फट रहा। लेकिन... हाय, ये सिहरन..."

रावी मिरर से देख रहा था "उफ्फ्फ कितनी बड़ी रांड है मेरी मम्मी, पहले नखरे कर रही थी साली कुतिया अब सबके बीच कैसे रंडियो की तरह खुद को मसलवा रही "
Bahut hee kamuk update
 
  • Like
Reactions: bigbolls5

sunoanuj

Well-Known Member
4,544
11,745
159
रात का घना सन्नाटा जंगल को लपेट चुका था। तंबू के अंदर, मोटी प्लास्टिक की चादर पर रामा और रवि की सांसें अभी भी उखड़ी हुई थीं – तेज़, गर्म, और भारी। रवि कुत्ते की तरह घुटनों पर लेटा हुआ था, उसकी जीभ माँ के नंगे बदन पर सरक रही थी। जांघों की नरम, पसीने से चिपचिपी त्वचा पर, फिर चूत के आसपास के उन सूखे, चिपचिपे वीर्य के निशानों पर – सबका मिश्रण, नमकीन और गाढ़ा। वो हर लीस को चाव से चाटता, निगलता, जैसे कोई भूखा जानवर हो । "माँ... तेरा ये स्वाद... सबका . पागल कर देगा मुझे। इतना गंदा, इतना अपना।" उसकी आवाज कांप रही थी, गले में गड़गड़ाहट की।

रामा ऊपर लेटी हुई थी, पैरों को और फैलाए, बालों में उंगलियाँ फेरते हुए इठला रही। उसकी आँखें आधी बंद, होंठों पर एक शरारती मुस्कान – थकान की लाली उसके गालों पर चढ़ी हुई। "हाँ मेरे बेटे... चाट ले अच्छे से। तेरी माँ की चूत... तेरे दोस्तों के रस से भरी हुई। तू तो बस एक कुत्ता है, चाटने वाला। कुछ और हक़ नहीं तेरा।" रवि की कमर सिहर उठी, उसका लंड फड़क रहा था पैंट के बाहर – बेइज्जती की चुभन सीधे उत्तेजना में बदल रही थी , जैसे कोई जहर मीठा हो गया हो। लेकिन बाहर, झाड़ियों के पीछे, रोहन का दिल धक्-धक् कर रहा था। वो पानी की बोतल लाने का बहाना बनाकर निकला था, लेकिन ये दृश्य... आँखें फटी की फटी रह गईं। माँ-बेटा? वीर्य चाटना? चट्टानों की ठंडी सतह पर उसका चेहरा पीला पड़ गया, पसीना छूटने लगा। लेकिन नीचे, पैंट में उसका लंड कड़ा हो चुका था, दर्द भरी सिहरन के साथ। "फक... ये क्या राज़ है भाई? ये तो... गंदगी की हद है ।" वो चुपके से लौटा, तंबू में लेटा रहा लेकिन नींद कहाँ? दिमाग में वो सीन घूमता रहा – जीभ की हर हरकत, सांसों की गर्मी। सुबह सबको बताना था

सुबह की पहली किरणें कैंप पर चुपचाप सरक आईं, जैसे कोई चोर। हवा में चाय की भाप वाली महक फैल गई – अदरक की तीखी, चीनी की मीठी। आग की लकड़ियाँ अभी भी हल्की गर्माहट दे रही थीं। सब इकट्ठे हो गए थे – अजय, विक्की, मनीष, रोहन – प्लास्टिक की तहों पर बैठे, ब्रेड-पनीर की प्लेटें सेट। रावी और रामा थोड़ी देर बाद आए, चेहरों पर वो चमक – रात की थकान मिक्स शर्म, आँखें नीची, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान के साथ । रोहन चाय का पहला घूंट भरते हुए बोला, आवाज़ भारी और काँपती हुई, जैसे गले में कुछ अटका हो। "यार... रात को कुछ ऐसा देखा मैं... जो... जो दिमाग हिला दे। रमा... रवि की माँ है? तंबू में..... रवि कुत्ते की तरह चाट रहा था... वीर्य... हम सबका?"

सन्नाटा पसर गया, इतना गहरा कि जंगल के पक्षियों की चहचहाहट भी दूर लगी। अजय का मुँह खुला रह गया, चाय का कप हाथ से फिसला, "क्या बकवास कर रहा है तू रोहन? रमा... माँ? हमने... हमने कल रात चोदा उसे... माँ को?" विक्की ने हँसने की कोशिश की, लेकिन हँसी फीकी निकली, आँखें गंभीर हो गईं, "सच बोल रहा है? रमा आंटी... नहीं, मम्मी? हमने... फक, हमने अपनी दोस्त की मम्मी को रंडी बना दिया? और रवि.. वो देखता रहा?" मनीष ने रवि की ओर देखा, आँखें सिकुड़ी हुईं, प्लेट को धक्का देकर दूर सरका दिया, "भाई... तूने क्यों न बताया? हम तेरी मम्मी को... उफ्फ, क्या-क्या किया हमने। डांस में छुआ, चोदा... और तू चुप रहा ?" सबकी नज़रें रवि पर टिक गईं – आश्चर्य की लहर, गुस्से की चिंगारी, लेकिन कहीं गहरे में वो गंदी चमक, जैसे कोई नई लालसा जाग उठी हो। रमा चुपचाप चाय पीती रही, कप के किनारे से भाप उठती देखती, लेकिन अंदर वो सिहरन दौड़ रही थी – राज़ खुल गया , डर की जगह उत्तेजना ने ले ली। उसकी जांघें आपस में रगड़ रही थीं, चूत में हल्की गीलापन महसूस हो रहा था ।

ब्रेकफास्ट की प्लेटें अब ठंडी पड़ीं, लेकिन बातें गर्म हो गईं। सबने रवि को घेर लिया, जैसे कोई अदालत में आरोपी। अजय ने कंधा थपथपाया, लेकिन जोर से –, "रवि... तू पागल है क्या? अपनी माँ को शेयर कर रहा था ? कल डांस में हमने छुआ उसे, चोदा... और तू बस देखता रहा? ये तो इंसेस्ट है!" विक्की ने हँसते हुए कमर पर धौल जमाया, लेकिन हँसी में कड़वाहट, "हाहा... इंसेस्ट किंग! तेरी मम्मी की चूत... हमने फाड़ दी, तू बस हिलाता रहा.. शर्म आनी चाहिए तुझे, या मज़ा आया?" मनीष ने प्लेट को ज़ोर से पटका, आवाज़ गूंजी, "बता ना भाई... कब से ये सब चल रहा है ? रात को कुत्ता बनकर चाट रहा था हमारा वीर्य? फक... तू तो हमारी सफाई वाला कर्मचारी निकला!" रोहन ने बोला , चाय का आखिरी घूंट उलीचते हुए, "मैंने सब देखा। रामा... माँ कह रही थी, 'गुलाम, चाट ले।' रवि तू नीचे घुटनों पर, हम ऊपर से... क्या मज़ा लेता है तू यार? ये तो गंदगी की इंतहा है ।"

रवि मुँह झुकाए बैठा रहा, प्लेट को छुआ तक नहीं – गाल लाल जल रहे थे, आँसू चुपचाप टपक रहे गालों पर। लेकिन नीचे, पैंट में लंड दबा हुआ फड़क रहा था, दर्द और उत्तेजना का मिश्रण। "म... मैं... सॉरी यार... मैं... बस..." बस इतना ही निकला गले से, आवाज़ टूटकर। सब हँसे जोर से, जलील किया – "अरे मम्मी का चाटने वाला बेटा! कुत्ता नंबर वन!" रमा दूर से देखती रही, चाय का आखिरी घूंट भरते हुए होंठ चाटे, मन में बड़बड़ाई, "हाय... मेरा बेटा... ऐसे जलील हो रहा... लेकिन कितना प्यारा लग रहा। उसकी शर्म... मुझे गर्म कर रही।" चूत में सिहरन दौड़ी, वो पैर सिकोड़ लीं।

ब्रेकफास्ट खत्म हुआ दिन की प्लानिंग हुई – झरने की तरफ शॉर्ट ट्रेक, फिर पिकनिक। हवा में नमी की महक, पत्तों की सरसराहट। "चलो, तैयार हो जाओ। लेकिन रवि... आज तू पीछे चलेगा, जैसे मम्मी का वफादार कुत्ता।" विक्की ने मज़ाक में कहा, सबकी हँसी गूंज गयी । थोड़ी देर आराम कर – सब तंबू में घुस गए। रवि और रमा कोने में अकेले। रामा ने बेटे का हाथ पकड़ा, नरम लेकिन मजबूत पकड़, कान में फुसफुसाया – गर्म सांसें गर्दन पर लगीं। "बेटा... सुना सब? तेरी जलील... मज़ा आया ना? रोहन ने देख लिया... अब सब जानते हैं। लेकिन देख... तेरी माँ गीली हो गई है। तू बेइज्जत हो रहा, मैं उत्साहित।" रवि काँपा, माँ की जांघ पर हाथ सरका दिया – नरम, गर्म त्वचा। "माँ... हाँ... जलन हो रही है... लेकिन तेरा मज़ा देखकर... लंड सख्त हो गया। कल रात तूने गुलाम बनाया, आज सब... तेरी चूत दोबारा चाहता हूँ।" रमा हँसी, हल्की, कामुक – साड़ी को सरकाया, चूत दिखाई, उंगली डालकर हिलाई। गीलापन चमक गया । "हाँ बेटा... गंदी बातें ही तो मज़ा देती हैं। सोच... आज झरने पर सब चोदेंगे मुझे... तू बस देखेगा। रोहन का लंड... मोटा, तेरे से बड़ा। वो चिल्लाएगा, 'रमा मम्मी... चोद रहा हूँ!' तू क्या करेगा? बाद में चाटेगा सब?" रवि सिसका, सांसें तेज़ हो गयी "माँ... हाँ... सब चाटूँगा। तेरी गांड... विक्की की थप्पड़ों से लाल। मनीष का वीर्य... मुंह में लूँगा। तू रानी... मैं कुत्ता।" रमा ने थूक का गोला उसके मुँह में गिराया, चिपचिपा, गर्म। "निगल ले... गंदा मेरा बेटा। आज सबके सामने... तू चाटेगा। मेरा राज़... अब उनका खेल बन गया।" दोनों की सांसें तेज़ हो गईं...

दिन चढ़ा, ट्रेक शुरू – जंगल की गहराई में पगडंडी, झरने की दूर से गूंजती आवाज़, हवा में मिट्टी और पत्तों की सोंधी खुशबू। रमा बीच में चल रही, साड़ी लहराती, दूध हर कदम पर हल्के उछाल के साथ। चारों दोस्तों ने रावी को घेर लिया, मज़ा लेना शुरू – लेकिन अब ये मज़ाक कड़वा लग रहा। अजय ने कंधा पकड़ा, नाखून गड़ाए, "चल कुत्ता... मम्मी को देख। आज तेरी मम्मी हमारी रंडी है। तू बस पीछे-पीछे चल ।" विक्की ने हल्का धक्का दिया, पेड़ से टकराया रवि, "हाहा... इंसेस्ट बॉय, तू आगे मत आना। हम झरने पर... तेरी माँ को नहलाएंगे। अच्छे से, गीला करके।" रोहन ने कान में फुसफुसाया, सांस गर्म, "रात का सीन... सबको बता दिया। अब तू जलील है... लेकिन मज़ा ले ना। देख तेरी माँ की चीखें, कैसे मटकती है कमर।" मनीष ने हँसते हुए जोड़ा, .. तेरे सामने फाड़ेंगे चूत। तू बस ताली बजा।" रवि मुँह झुकाए चला, कदम भारी, लेकिन दिल धड़क रहा था – जलन की आग लंड को जला रही, पसीना छूट रहा पीठ पर। रमा पीछे से मुस्कुराई, "बेटा... सह ले। मेरा मज़ा... तेरा दर्द। ये ही तो हमारा राज़ है।"

झरने पर पहुँचे – पानी की ठंडी, चाँदी जैसी धार चट्टानों पर गिर रही, हवा नम और ठंडी, आसपास काई की हरी चमक। सब नंगे हो गए, पानी की छींटें त्वचा पर लगीं – ठंडक से सिहरन। रमा को घेर लिया, "रमा मम्मी... आ ना, नहाओ हमारे साथ।" अजय ने साड़ी खींची, धीरे-धीरे – दूध आज़ाद हो गए, पानी की बूंदों से चमकते, निप्पल्स सख्त। रावी को एक चट्टान पर बिठा दिया, "बैठ बेटा... अपनी माँ को देख। आज का शो तेरे लिए।" बारी-बारी शुरू हुई – रोहन पहले, लंड को चूत में धकेला, पानी की धार पर। जोर-जोर के धक्के, पानी छींटे उड़ते, "आह मम्मी... तेरी चूत कितनी गर्म... ठंडे पानी में। रवि देख... फाड़ रहा हूँ तेरी मम्मी को!" रमा चीखी, पानी में कमर मटकाई, हाथ रोहन के कंधों पर – नाखून गड़ाए, "हाय रोहन... और जोर से ... बेटा देख रहा है! आह... तेरी ताकत!" विक्की ने पीछे से गांड पकड़ी, थप्पड़ मारे – चटाक की आवाज़ गूंजी जंगल में, लाल निशान उभरे त्वचा पर। "मम्मी रंडी... ले मेरा लंड! चूस अच्छे से कुतिया ।" मुंह में डाला, गला तक – रामा की आँखें नम, लेकिन होंठ चूसे। मनीष ने दूध चूसे, दाँत गड़ा दिए, "दूध... मीठा लग रहा। रवि, तेरी माँ का स्वाद... चखना चाहेगा?" अजय ने चूत में जगह ली, "बारी मेरी... कितनी टाइट बनी हुई। पानी मिक्स रस... बह रहा।" सबने चोदा – वीर्य का गाढ़ापन चूत से टपकता रहा । रवि बैठा, लेकिन हाथ पैंट में सरकाया – हिलाता रहा चुपके से। "मेरी कुतिया मम्मी ... सबके लंड... तेरे अंदर... जल रहा हूँ मैं।"

खत्म होने पर रमा लेटी चट्टान पर, बदन गीला चमकता, वीर्य टपकता – चूत से सफेद धार, मुंह के किनारों पर चिपचिपा, ब्रेस्ट्स पर बूंदें। सब हँसे, थकान भरी हँसी, "अब तेरी बारी रवि.. चाट कुत्ता! साफ कर अपनी मम्मी को।" रवि झुका, सबके सामने – घुटनों पर, जीभ निकाली कुत्ते की तरह। पहले चूत पर – गीला रस, सबका मिश्रण, नमकीन और गर्म। जीभ अंदर सरकाई, चूस लिया। "मम्म... माँ... ये स्वाद... हम सबका।" दूध चूसे, निप्पल्स पर दाँत लगाए हल्के से, गांड के लाल निशान चाटे – त्वचा की नरमी पर जीभ। मुंह साफ किया, थूक मिक्स। सब हँसे जोर से, "देखो... बेटा कुत्ता! चाट रहा मम्मी को साफ। इंसेस्ट डॉग, वाह!" विक्की ने फोन निकाला, वीडियो बनाया – लेंस पर पानी की बूंदें, "शेयर करूँ भाई? फैमिली ग्रुप में?" रमा सिसकी भर रही, लेकिन मज़ा लेती हुई – बेटे की जीभ पर कमर उभरी, हाथ उसके बालों में। "हाँ बेटा... अंदर तक चाट। सब देख रहे... मेरा गुलाम तू। आह... अच्छा लग रहा।" रावी चाटता रहा, वीर्य निगलता – जलील की आग, लेकिन उत्तेजना की लहर। दोस्तों की हँसी जंगल भर गई, पानी की धार के साथ....
Shandaar mazedaar behtareen update
 
  • Like
Reactions: bigbolls5

mentalslut

Member
203
808
94
स्कूल से लौटते हुए उमेश का दिमाग अभी भी घूम रहा था—रामू का काला लंड, खुशबू की चीखें, और वो गंदी चुदाई जो ऑफिस की दीवारों में समा गई। लेकिन घर पहुँचते ही आग फिर सुलग उठी। सूरज ढल रहा था, शाम की लाली आसमान पर, और घर में रमा किचन में व्यस्त—कोई शक नहीं करेगी। उमेश ने दरवाजा बंद किया, खुशबू को देखा—वो अभी भी वही गुलाबी शलवार-कमीज में, चूचे आधे बाहर, होंठों पर लंड का स्वाद बाकी। "साली रंडी," उमेश फुसफुसाया, हाथ पकड़कर, "ऊपर चल, छत पर। वहाँ तेरी चूत-गांड की सफाई करूँगा। रामू ने तो चख ली, अब बाप का नंबर।"

खुशबू मुस्कुराई, वो शैतानी वाली—आँखों में चमक। "हाँ पापा... ले चलो। चूत में खुजली हो रही है, रामू चाचा के रस से।" दोनों चुपके से सीढ़ियाँ चढ़े, छत पर पहुँचे। वो पुरानी छत, जहाँ रेलिंग पर सूखे कपड़े लटक रहे थे, और कोने में एक पुरानी चारपाई। हवा ठंडी, लेकिन उमेश का लंड फिर सख्त। वो खुशबू को चारपाई पर पटक दिया—जोर से, जैसे कोई दुश्मन। "फैल साली, पैर खोल! तेरी चूत देखूँ, कितनी गंदी हो गई।" खुशबू हँसी, शलवार की नाड़ा खींची—नीचे सरका दी। चूत बाहर—गीली, लाल, रामू के वीर्य के धब्बे, रस टपकता हुआ । गांड के बीच में भी चिपचिपा निशान। "देखो पापा... चाचा ने भर दिया।"

उमेश पागल हो गया—हवस की आग में बाप की भूख। वो घुटनों पर बैठा, खुशबू के पैर फैलाए—जोर से, जांघों पर नाखून गाड़े। "साली छिनाल... तूने बाप को कैसा bana दिया, चपरासी को चुदवाया!" चटाक—एक थप्पड़ चूत पर। खुशबू सिहर गई, "आह्ह पापा... मारो रंडी को!" उमेश झुका, नाक चूत पर रगड़ी—महक आई, गंदी, मिश्रित—खुशबू का रस, रामू का वीर्य। "उफ्फ... कितनी गंदी चूत है साली!" जीभ निकाली, और सीधा चूत के होंठों पर लगा दिया। चाटने लगा पागलों की तरह—लंबी-लंबी चाट, ऊपर से नीचे। जीभ चूत के फोल्ड्स में घुसाई, रस चूसा। स्लर्प-स्लर्प की आवाज, जैसे कोई कुत्ता दूध पी रहा। "उम्म... साली, तेरी चूत का रस... रामू का माल मिला हुआ। चूस लूँगा सब!" जीभ अंदर धकेली—गहराई तक, चूत की दीवारें चाटीं। खुशबू की कमर ऊपर हो गई, हाथ उमेश के सिर पर दबाया, "हाँ पापा... चाटो जोर से! रंडी की चूत साफ करो... आह्ह!"

लेकिन उमेश रुका नहीं—वो और नीचे गया, गांड के गोले फैलाए। गांड का छेद—गुलाबी, रामू के लंड से फैला, वीर्य बाहर रिसता हुआ । "अब तेरी गांड, साली कुत्तिया! चपरासी ने फाड़ दी ना?" थूक थोका छेद पर, फिर जीभ लगाई—कुत्ते की तरह चाटा। गोल-गोल घुमाई, अंदर सरकाई। स्वाद नमकीन, गंदा, लेकिन उमेश पागल हो गया —चाटता रहा, नाक दबाई दरार में। "उफ्फ... साली गंदी गांड! बाप को ये चखा रही है... ले, चूस लूँगा तेरी गांड का रस!" जीभ तेज कर दी , छेद में अंदर-बाहर, हाथों से गोले मसला। थप्पड़ मारा गांड पर—चटाक-चटाक, लाल निशान हो गए । खुशबू चीखी, लेकिन मजा लेते हुए, "ओह्ह पापा... हाँ, चाटो गांड! कुत्ता बन जाओ... रंडी की गांड चाटो!" उसकी चूत फिर गीली हो गई, रस टपकने लगा रामू के पुराने पर।

उमेश अब बेतहाशा—चेहरा चूत-गांड पर रगड़ रहा, लार मल रहा था , थूक थूक रहा था । "साली रांड ... तूने घर फूंका दिया! बाप को चूस, चपरासी को चुदवाओ... अब ले, तेरी चूत-गांड चाट-चाट के साफ करूँगा!" जीभ चूत पर लौटी खुशबू काँपने लगी, पैर लपेटे उमेश के कंधों पर, "आह्ह... पापा... झड़ रही हूँ! चाटो... साली रंडी झड़ रही!" वो झड़ी—चूत सिकुड़ी, रस उमेश के मुँह में बहा। उमेश निगला सब, चाटता रहा। "हाँ साली... बाप का नशा!"

छत पर हवा चल रही थी, लेकिन आग बुझने का नाम न ले। नीचे रमा आवाज दे रही थी —डिनर तैयार है । लेकिन उमेश ने खुशबू को उठाया, लंड बाहर निकाला। "अब चूस साली छिनाल ... छत पर ही चुदाई होगी।"
 

mentalslut

Member
203
808
94
नीचे से रमा की आवाज़ गूँज रही थी—"उमेश! खाना तैयार है कहाँ हो?" लेकिन छत पर वो पुरानी चारपाई पर उमेश घुटनों पर था, सिर झुकाए, जैसे कोई सड़क का कुत्ता हो । हवा ठंडी सरसराती, लेकिन उसकी सांसें गर्म, भारी—सालों का टीचर, बच्चों को डंडा मारने वाला, अब बेटी के सामने गुलाम बना हुआ था। खुशबू नंगी खड़ी थी, शलवार पैरों में लटकती, चूचे उभरे, चूत गीली चमकती रामू के रस से। वो मुस्कुराई, शैतानी से, उमेश के बाल पकड़े—जोर से नोचे। "चाट कुत्ता! तेरी टीचरी का क्या हुआ? क्लास में तो तू 'डिसिप्लिन' सिखाता है, और यहाँ... मेरी बॉडी चाटने को तरस रहा! जीभ निकाल,.. चूत से शुरू कर, ऊपर तक चाट।"

उमेश सिहर गया , आँखों में शर्म की आग, लेकिन लंड पैंट में दबा फड़क रहा। वो टीचर था न—गाँव का सख्त उस्ताद, जो स्टूडेंट्स को 'फोकस' सिखाता था, 'कंट्रोल'। लेकिन अब? हवस ने उसे तोड़ दिया था । वो झुका, जीभ बाहर की —लंबी, गीली—खुशबू की चूत पर लगाई। स्लर्प! चपचप की आवाज़ छत पर गूँजने लगी, जैसे कोई भूखा जानवर हो । "साली छिनाल... तेरी ये गंदी चूत... रामू के लंड से भरी हुई! चाटूँगा सब, लेकिन याद रख रंडी—मैं तेरा बाप हूँ, टीचर हूँ! तू मेरी स्टूडेंट है, जो क्लास में किताबें पढ़ती, और यहाँ... कुत्ते को चटाना सिखा रही!" जीभ अंदर धकेली—चूत के फोल्ड्स चाटे, रस चूसने लगा , रामू का वीर्य मिक्स लार में घुल गया । नमकीन, गाढ़ा स्वाद—उमेश की नाक दब गई दरार में, महक से पागल हो गया । "उफ्फ साली कुत्तिया... तेरी चूत की महक... क्लासरूम में फैला दूँ तो सब स्टूडेंट्स पागल हो जाएंगे! ले, चाट रहा हूँ... लेकिन तू रंडी है, बाप की रंडी!"

खुशबू की कमर सिहर गई, पैर फैलाए—हाथ उमेश के सिर पर दबाया। "हाँ पापा... चाटो जोर से! लेकिन गालियाँ दो ना, टीचर वाली... जैसे क्लास में डांटते हो!" उमेश ने जीभ तेज की—ऊपर-नीचे, चूत के होंठ चाटे, निप्पल्स... नहीं, चूत पर ही फोकस, क्लिट पर जीभ घुमाई। चटाक! अचानक हाथ उठाया, खुशबू की जांघ पर थप्पड़ मारा —लाल निशान उभर गया । "साली हरामी! तूने बाप को क्या बना दिया? क्लास में तो तू 'गुड गर्ल' थी, होमवर्क करने वाली... और अब? चूत चटवाने वाली रंडी! चाट खाऊंगा तेरी बॉडी !" वो ऊपर सरका, जीभ जांघों पर फिराई —अंदरूनी तरफ, पसीना चाटने लगा, नमकीन स्वाद। फिर पेट पर—नाभि में जीभ डाली, गोल-गोल घुमाई। "उम्म... साली की नाभि... गंदी, पसीने से भरी! टीचर की जीभ से साफ हो रही, लेकिन तू फेल हो गई नैतिकता में, रंडी बेटी!"

खुशबू सिसकी भर रही, लेकिन मजा लेते हुए—कमर मटकाई, उमेश को नीचे दबाया। "और ऊपर कुत्ते... चूचे चाटो!" उमेश झुका, एक चूचा मुँह में लिया—चूसने लगा, जीभ निप्पल पर लिपटाई। स्लर्प-स्लर्प, दाँत हल्के गड़ाए। "आह साली... तेरे ये दूध वाले चूचे... क्लास में छिपाती थी साड़ी में, और अब? टीचर के मुँह में धकेल रही! ले, चूस रहा हूँ... —साली कुतिया, तेरी चूचियाँ काट दूँगा, जैसे मार्किंग करता हूँ कॉपी पर!" दूसरा चूचा हाथ से मसला, जीभ से चाटा—गोलाकार, लार मलता हुआ । फिर गर्दन पर—कान के पीछे, चाटा, काटा हल्का। "गंदी बेटी... तेरी गर्दन की महक... रंडियों वाली! टीचर तुझे सजा दे रहा, चाट-चाट के... लेकिन तू एंजॉय कर रही, है ना हरामी?"

खुशबू को घुमाया, कुत्ते की तरह झुकाया। उमेश की जीभ कमर पर सरकी—नीचे, गांड के ऊपर। "फैल साली... गांड चाटूँगा!" गोले फैलाए, जीभ दरार में घुसाई —छेद पर घुमाई, अंदर सरकाई। चपचप, थूक थोका। "उफ्फ कुत्तिया... तेरी गांड रामू ने फाड़ी, और मैं साफ कर रहा हुँ! गंदी, चिपचिपी... टीचर की जीभ तेरी सजा है, रंडी! क्लास में तो तू 'शाबाश' कमाती, यहाँ 'चूस ले' बोल रही!" थप्पड़ मारा गांड पर—चटाक! लाल हो गई। —गांड चाटने लगा, जांघों के पीछे, पैरों तक। पैरों की उंगलियाँ चाटी, । "साली के पैर... गंदे, धूल भरे... लेकिन चाट रहा टीचर! तू फेल है, बेटी—पाप में टॉप करती है तू !"

खुशबू काँप रही थी चूत से रस टपक रहा था —उमेश की पीठ पर। "आह पापा... गालियाँ दो ... और चाटो!" उमेश ने आखिर में चेहरा उठाया, होंठ चिपचिपे, लेकिन आँखों में वो टीचर वाली सख्ती—, गंदी। "झड़ी ना रंडी? बाप की जीभ से... लेकिन याद रख, कल क्लास में तू मेरी स्टूडेंट है, यहाँ मेरी कुत्तिया!" दोनों हाँफते गिरे, लेकिन उमेश फिर झुका—एक आखिरी चाट, चूत पर। नीचे से रमा पुकार रही.थी .

 

mentalslut

Member
203
808
94
शाम की लाली आसमान पर फैल चुकी थी, स्कूल का आंगन खाली हो गया था —बच्चे चले गए थे लेकिन उमेश का दिल धक्-धक् कर रहा था। रामू पीछे के गेट पर खड़ा, दारू की बोतल जेब में दबी, आँखें लाल। "सर... साली आ रही है? खुशबू" उमेश ने सिर हिलाया, लेकिन मुँह सूखा— अब असली खेल होने वाला था। तभी गेट पर साये की तरह खुशबू आई—कॉलेज से छुट्टी मिलते ही स्कूल पहुँची, जैसे कोई रंडी अपने चूत के लिए बुलाई गई हो। सलवार सूट में लिपटी, लेकिन वो साड़ी नहीं—ये तो चूत उघाड़ने वाला ड्रेस था, जो बॉडी को चिपकाकर चुदाई का न्योता दे रहा।

खुशबू की सलवार सूट... उफ्फ, क्या गंदा माल था साला! ऊपरी कमीज क्रीम कलर की, लेकिन पसीने से चिपकी हुई—जैसे कोई रंडी चुदाई के बाद पहनी हो। ब्रेस्ट्स पर टाइट फिट, चूचियाँ उभरी हुईं, निप्पल्स सख्त होकर छेद कर रही थीं कपड़े को। लाल बॉर्डर वाली, लेकिन —नीचे कमर पर सरकता हुआ, पेट की नरम चमड़ी चमक रही थी , नाभि का गड्ढा दिखने को बेताब था । "देखो रामू... साली की कमीज... चूचे तो बाहर झाँक रहे, जैसे कह रहे 'चूस लो चाचा, दूध निकालो इस रंडी के!' पसीना चिपका हुआ, महक आएगी चूत की तो!" उमेश फुसफुसाया, लंड मसलते हुए।

नीचे सलवार... नीली, ढीली लगती लेकिन कमर पर बंधी टाइट, गांड के गोले उछलते हर कदम पर। जांघों पर चिपकी, रगड़ खाती हुई—जैसे कोई कुत्तिया घूम रही हो लंड तलाशते। "साली की सलवार... चूत के होंठों को दबा रही, रस टपकेगा तो गीली हो जाएगी। कल तेरे लंड से फटी चूत... आज फिर फाड़ेंगे!" रामू हँसा, हाथ से लंड दबाया। दुपट्टा कंधे पर लटका, लेकिन हवा में लहराता—नीला, लाल धारियों वाला, जो चूचियों को ढकने का बहाना, लेकिन उछाल पर सरक जाता, ब्रेस्ट्स की गहराई दिखा देता। झुमके कान में झूलते, होंठों पर लिपस्टिक चमकती—रेड, जैसे रंडी का मुँह लंड चूसने को तैयार। बाल खुले, लहराते—पीठ पर सरकते, लेकिन कमर मटकाते।

खुशबू नज़दीक आई, मुस्कान शैतानी—"पापा... रामू चाचा? कल शाम को मजा आया था ?" लेकिन उमेश और रामू की नज़रें सलवार पर—चूत की आकृति उभरी हुई , गांड का रंग दिखता। "साली रंडी... ये सलवार सूट पहनकर आई है चुदाई के लिए? कमीज चूचियों को मसल रही, सलवार चूत को रगड़ रही—उघाड़ दूँगा सब, फाड़ दूँगा तेरी बॉडी को!" उमेश ने फुसफुसाया, हाथ बढ़ाया—सलवार की कमर पर सहलाया, लेकिन अंदर उँगली सरकाई। रामू बोला, "हाँ साली... तेरी ये गंदी ड्रेस... चूत की महक फैला रही। ऑफिस में ले चलो, लंड घुसाऊँगा तेरे सलवार फाड़कर!"

खुशबू सिहर गयी , लेकिन हँसी—"चलो चाचा... रंडी तैयार है।" तीनों ऑफिस की ओर चल पड़े... सलवार सूट की सिलवटें चुदाई की कहानी सुना रही थी

 

sunoanuj

Well-Known Member
4,544
11,745
159
स्कूल से लौटते हुए उमेश का दिमाग अभी भी घूम रहा था—रामू का काला लंड, खुशबू की चीखें, और वो गंदी चुदाई जो ऑफिस की दीवारों में समा गई। लेकिन घर पहुँचते ही आग फिर सुलग उठी। सूरज ढल रहा था, शाम की लाली आसमान पर, और घर में रमा किचन में व्यस्त—कोई शक नहीं करेगी। उमेश ने दरवाजा बंद किया, खुशबू को देखा—वो अभी भी वही गुलाबी शलवार-कमीज में, चूचे आधे बाहर, होंठों पर लंड का स्वाद बाकी। "साली रंडी," उमेश फुसफुसाया, हाथ पकड़कर, "ऊपर चल, छत पर। वहाँ तेरी चूत-गांड की सफाई करूँगा। रामू ने तो चख ली, अब बाप का नंबर।"

खुशबू मुस्कुराई, वो शैतानी वाली—आँखों में चमक। "हाँ पापा... ले चलो। चूत में खुजली हो रही है, रामू चाचा के रस से।" दोनों चुपके से सीढ़ियाँ चढ़े, छत पर पहुँचे। वो पुरानी छत, जहाँ रेलिंग पर सूखे कपड़े लटक रहे थे, और कोने में एक पुरानी चारपाई। हवा ठंडी, लेकिन उमेश का लंड फिर सख्त। वो खुशबू को चारपाई पर पटक दिया—जोर से, जैसे कोई दुश्मन। "फैल साली, पैर खोल! तेरी चूत देखूँ, कितनी गंदी हो गई।" खुशबू हँसी, शलवार की नाड़ा खींची—नीचे सरका दी। चूत बाहर—गीली, लाल, रामू के वीर्य के धब्बे, रस टपकता हुआ । गांड के बीच में भी चिपचिपा निशान। "देखो पापा... चाचा ने भर दिया।"

उमेश पागल हो गया—हवस की आग में बाप की भूख। वो घुटनों पर बैठा, खुशबू के पैर फैलाए—जोर से, जांघों पर नाखून गाड़े। "साली छिनाल... तूने बाप को कैसा bana दिया, चपरासी को चुदवाया!" चटाक—एक थप्पड़ चूत पर। खुशबू सिहर गई, "आह्ह पापा... मारो रंडी को!" उमेश झुका, नाक चूत पर रगड़ी—महक आई, गंदी, मिश्रित—खुशबू का रस, रामू का वीर्य। "उफ्फ... कितनी गंदी चूत है साली!" जीभ निकाली, और सीधा चूत के होंठों पर लगा दिया। चाटने लगा पागलों की तरह—लंबी-लंबी चाट, ऊपर से नीचे। जीभ चूत के फोल्ड्स में घुसाई, रस चूसा। स्लर्प-स्लर्प की आवाज, जैसे कोई कुत्ता दूध पी रहा। "उम्म... साली, तेरी चूत का रस... रामू का माल मिला हुआ। चूस लूँगा सब!" जीभ अंदर धकेली—गहराई तक, चूत की दीवारें चाटीं। खुशबू की कमर ऊपर हो गई, हाथ उमेश के सिर पर दबाया, "हाँ पापा... चाटो जोर से! रंडी की चूत साफ करो... आह्ह!"

लेकिन उमेश रुका नहीं—वो और नीचे गया, गांड के गोले फैलाए। गांड का छेद—गुलाबी, रामू के लंड से फैला, वीर्य बाहर रिसता हुआ । "अब तेरी गांड, साली कुत्तिया! चपरासी ने फाड़ दी ना?" थूक थोका छेद पर, फिर जीभ लगाई—कुत्ते की तरह चाटा। गोल-गोल घुमाई, अंदर सरकाई। स्वाद नमकीन, गंदा, लेकिन उमेश पागल हो गया —चाटता रहा, नाक दबाई दरार में। "उफ्फ... साली गंदी गांड! बाप को ये चखा रही है... ले, चूस लूँगा तेरी गांड का रस!" जीभ तेज कर दी , छेद में अंदर-बाहर, हाथों से गोले मसला। थप्पड़ मारा गांड पर—चटाक-चटाक, लाल निशान हो गए । खुशबू चीखी, लेकिन मजा लेते हुए, "ओह्ह पापा... हाँ, चाटो गांड! कुत्ता बन जाओ... रंडी की गांड चाटो!" उसकी चूत फिर गीली हो गई, रस टपकने लगा रामू के पुराने पर।

उमेश अब बेतहाशा—चेहरा चूत-गांड पर रगड़ रहा, लार मल रहा था , थूक थूक रहा था । "साली रांड ... तूने घर फूंका दिया! बाप को चूस, चपरासी को चुदवाओ... अब ले, तेरी चूत-गांड चाट-चाट के साफ करूँगा!" जीभ चूत पर लौटी खुशबू काँपने लगी, पैर लपेटे उमेश के कंधों पर, "आह्ह... पापा... झड़ रही हूँ! चाटो... साली रंडी झड़ रही!" वो झड़ी—चूत सिकुड़ी, रस उमेश के मुँह में बहा। उमेश निगला सब, चाटता रहा। "हाँ साली... बाप का नशा!"

छत पर हवा चल रही थी, लेकिन आग बुझने का नाम न ले। नीचे रमा आवाज दे रही थी —डिनर तैयार है । लेकिन उमेश ने खुशबू को उठाया, लंड बाहर निकाला। "अब चूस साली छिनाल ... छत पर ही चुदाई होगी।"
Jabardast update
 

sunoanuj

Well-Known Member
4,544
11,745
159
नीचे से रमा की आवाज़ गूँज रही थी—"उमेश! खाना तैयार है कहाँ हो?" लेकिन छत पर वो पुरानी चारपाई पर उमेश घुटनों पर था, सिर झुकाए, जैसे कोई सड़क का कुत्ता हो । हवा ठंडी सरसराती, लेकिन उसकी सांसें गर्म, भारी—सालों का टीचर, बच्चों को डंडा मारने वाला, अब बेटी के सामने गुलाम बना हुआ था। खुशबू नंगी खड़ी थी, शलवार पैरों में लटकती, चूचे उभरे, चूत गीली चमकती रामू के रस से। वो मुस्कुराई, शैतानी से, उमेश के बाल पकड़े—जोर से नोचे। "चाट कुत्ता! तेरी टीचरी का क्या हुआ? क्लास में तो तू 'डिसिप्लिन' सिखाता है, और यहाँ... मेरी बॉडी चाटने को तरस रहा! जीभ निकाल,.. चूत से शुरू कर, ऊपर तक चाट।"

उमेश सिहर गया , आँखों में शर्म की आग, लेकिन लंड पैंट में दबा फड़क रहा। वो टीचर था न—गाँव का सख्त उस्ताद, जो स्टूडेंट्स को 'फोकस' सिखाता था, 'कंट्रोल'। लेकिन अब? हवस ने उसे तोड़ दिया था । वो झुका, जीभ बाहर की —लंबी, गीली—खुशबू की चूत पर लगाई। स्लर्प! चपचप की आवाज़ छत पर गूँजने लगी, जैसे कोई भूखा जानवर हो । "साली छिनाल... तेरी ये गंदी चूत... रामू के लंड से भरी हुई! चाटूँगा सब, लेकिन याद रख रंडी—मैं तेरा बाप हूँ, टीचर हूँ! तू मेरी स्टूडेंट है, जो क्लास में किताबें पढ़ती, और यहाँ... कुत्ते को चटाना सिखा रही!" जीभ अंदर धकेली—चूत के फोल्ड्स चाटे, रस चूसने लगा , रामू का वीर्य मिक्स लार में घुल गया । नमकीन, गाढ़ा स्वाद—उमेश की नाक दब गई दरार में, महक से पागल हो गया । "उफ्फ साली कुत्तिया... तेरी चूत की महक... क्लासरूम में फैला दूँ तो सब स्टूडेंट्स पागल हो जाएंगे! ले, चाट रहा हूँ... लेकिन तू रंडी है, बाप की रंडी!"

खुशबू की कमर सिहर गई, पैर फैलाए—हाथ उमेश के सिर पर दबाया। "हाँ पापा... चाटो जोर से! लेकिन गालियाँ दो ना, टीचर वाली... जैसे क्लास में डांटते हो!" उमेश ने जीभ तेज की—ऊपर-नीचे, चूत के होंठ चाटे, निप्पल्स... नहीं, चूत पर ही फोकस, क्लिट पर जीभ घुमाई। चटाक! अचानक हाथ उठाया, खुशबू की जांघ पर थप्पड़ मारा —लाल निशान उभर गया । "साली हरामी! तूने बाप को क्या बना दिया? क्लास में तो तू 'गुड गर्ल' थी, होमवर्क करने वाली... और अब? चूत चटवाने वाली रंडी! चाट खाऊंगा तेरी बॉडी !" वो ऊपर सरका, जीभ जांघों पर फिराई —अंदरूनी तरफ, पसीना चाटने लगा, नमकीन स्वाद। फिर पेट पर—नाभि में जीभ डाली, गोल-गोल घुमाई। "उम्म... साली की नाभि... गंदी, पसीने से भरी! टीचर की जीभ से साफ हो रही, लेकिन तू फेल हो गई नैतिकता में, रंडी बेटी!"

खुशबू सिसकी भर रही, लेकिन मजा लेते हुए—कमर मटकाई, उमेश को नीचे दबाया। "और ऊपर कुत्ते... चूचे चाटो!" उमेश झुका, एक चूचा मुँह में लिया—चूसने लगा, जीभ निप्पल पर लिपटाई। स्लर्प-स्लर्प, दाँत हल्के गड़ाए। "आह साली... तेरे ये दूध वाले चूचे... क्लास में छिपाती थी साड़ी में, और अब? टीचर के मुँह में धकेल रही! ले, चूस रहा हूँ... —साली कुतिया, तेरी चूचियाँ काट दूँगा, जैसे मार्किंग करता हूँ कॉपी पर!" दूसरा चूचा हाथ से मसला, जीभ से चाटा—गोलाकार, लार मलता हुआ । फिर गर्दन पर—कान के पीछे, चाटा, काटा हल्का। "गंदी बेटी... तेरी गर्दन की महक... रंडियों वाली! टीचर तुझे सजा दे रहा, चाट-चाट के... लेकिन तू एंजॉय कर रही, है ना हरामी?"

खुशबू को घुमाया, कुत्ते की तरह झुकाया। उमेश की जीभ कमर पर सरकी—नीचे, गांड के ऊपर। "फैल साली... गांड चाटूँगा!" गोले फैलाए, जीभ दरार में घुसाई —छेद पर घुमाई, अंदर सरकाई। चपचप, थूक थोका। "उफ्फ कुत्तिया... तेरी गांड रामू ने फाड़ी, और मैं साफ कर रहा हुँ! गंदी, चिपचिपी... टीचर की जीभ तेरी सजा है, रंडी! क्लास में तो तू 'शाबाश' कमाती, यहाँ 'चूस ले' बोल रही!" थप्पड़ मारा गांड पर—चटाक! लाल हो गई। —गांड चाटने लगा, जांघों के पीछे, पैरों तक। पैरों की उंगलियाँ चाटी, । "साली के पैर... गंदे, धूल भरे... लेकिन चाट रहा टीचर! तू फेल है, बेटी—पाप में टॉप करती है तू !"

खुशबू काँप रही थी चूत से रस टपक रहा था —उमेश की पीठ पर। "आह पापा... गालियाँ दो ... और चाटो!" उमेश ने आखिर में चेहरा उठाया, होंठ चिपचिपे, लेकिन आँखों में वो टीचर वाली सख्ती—, गंदी। "झड़ी ना रंडी? बाप की जीभ से... लेकिन याद रख, कल क्लास में तू मेरी स्टूडेंट है, यहाँ मेरी कुत्तिया!" दोनों हाँफते गिरे, लेकिन उमेश फिर झुका—एक आखिरी चाट, चूत पर। नीचे से रमा पुकार रही.थी .
बहुत ही कामुक
 
  • Like
Reactions: bigbolls5

sunoanuj

Well-Known Member
4,544
11,745
159
शाम की लाली आसमान पर फैल चुकी थी, स्कूल का आंगन खाली हो गया था —बच्चे चले गए थे लेकिन उमेश का दिल धक्-धक् कर रहा था। रामू पीछे के गेट पर खड़ा, दारू की बोतल जेब में दबी, आँखें लाल। "सर... साली आ रही है? खुशबू" उमेश ने सिर हिलाया, लेकिन मुँह सूखा— अब असली खेल होने वाला था। तभी गेट पर साये की तरह खुशबू आई—कॉलेज से छुट्टी मिलते ही स्कूल पहुँची, जैसे कोई रंडी अपने चूत के लिए बुलाई गई हो। सलवार सूट में लिपटी, लेकिन वो साड़ी नहीं—ये तो चूत उघाड़ने वाला ड्रेस था, जो बॉडी को चिपकाकर चुदाई का न्योता दे रहा।

खुशबू की सलवार सूट... उफ्फ, क्या गंदा माल था साला! ऊपरी कमीज क्रीम कलर की, लेकिन पसीने से चिपकी हुई—जैसे कोई रंडी चुदाई के बाद पहनी हो। ब्रेस्ट्स पर टाइट फिट, चूचियाँ उभरी हुईं, निप्पल्स सख्त होकर छेद कर रही थीं कपड़े को। लाल बॉर्डर वाली, लेकिन —नीचे कमर पर सरकता हुआ, पेट की नरम चमड़ी चमक रही थी , नाभि का गड्ढा दिखने को बेताब था । "देखो रामू... साली की कमीज... चूचे तो बाहर झाँक रहे, जैसे कह रहे 'चूस लो चाचा, दूध निकालो इस रंडी के!' पसीना चिपका हुआ, महक आएगी चूत की तो!" उमेश फुसफुसाया, लंड मसलते हुए।

नीचे सलवार... नीली, ढीली लगती लेकिन कमर पर बंधी टाइट, गांड के गोले उछलते हर कदम पर। जांघों पर चिपकी, रगड़ खाती हुई—जैसे कोई कुत्तिया घूम रही हो लंड तलाशते। "साली की सलवार... चूत के होंठों को दबा रही, रस टपकेगा तो गीली हो जाएगी। कल तेरे लंड से फटी चूत... आज फिर फाड़ेंगे!" रामू हँसा, हाथ से लंड दबाया। दुपट्टा कंधे पर लटका, लेकिन हवा में लहराता—नीला, लाल धारियों वाला, जो चूचियों को ढकने का बहाना, लेकिन उछाल पर सरक जाता, ब्रेस्ट्स की गहराई दिखा देता। झुमके कान में झूलते, होंठों पर लिपस्टिक चमकती—रेड, जैसे रंडी का मुँह लंड चूसने को तैयार। बाल खुले, लहराते—पीठ पर सरकते, लेकिन कमर मटकाते।

खुशबू नज़दीक आई, मुस्कान शैतानी—"पापा... रामू चाचा? कल शाम को मजा आया था ?" लेकिन उमेश और रामू की नज़रें सलवार पर—चूत की आकृति उभरी हुई , गांड का रंग दिखता। "साली रंडी... ये सलवार सूट पहनकर आई है चुदाई के लिए? कमीज चूचियों को मसल रही, सलवार चूत को रगड़ रही—उघाड़ दूँगा सब, फाड़ दूँगा तेरी बॉडी को!" उमेश ने फुसफुसाया, हाथ बढ़ाया—सलवार की कमर पर सहलाया, लेकिन अंदर उँगली सरकाई। रामू बोला, "हाँ साली... तेरी ये गंदी ड्रेस... चूत की महक फैला रही। ऑफिस में ले चलो, लंड घुसाऊँगा तेरे सलवार फाड़कर!"

खुशबू सिहर गयी , लेकिन हँसी—"चलो चाचा... रंडी तैयार है।" तीनों ऑफिस की ओर चल पड़े... सलवार सूट की सिलवटें चुदाई की कहानी सुना रही थी
Gajab
 
  • Like
Reactions: bigbolls5
Top