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Adultery परिवार कैसा है

सबसे गरम किरदार

  • रमा

  • खुशबू

  • राधा

  • सोभा


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mentalslut

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स्टाफ रूम का दरवाजा बंद होते ही हवा गर्म हो गई—अधिकारी का चेहरा लाल, सांसें भारी हो गयी जैसे सालों का दबा नशा फूट पड़ा हो। खुशबू खड़ी थी, स्कर्ट की सिलवटें जांघों पर चिपकीं, टी-शर्ट के नीचे चूचियाँ ऊपर उभरीं—मोटी, भारी, जैसे दूध से भरीं। उसके मोटे होंठ अभी भी चमक रहे थे, लिपस्टिक धुंधली, लेकिन वो मुस्कान... शरारती, बुलावा देने वाली। अधिकारी ने उमेश को इशारा किया—"बाहर रहो सर... ये गिफ्ट मेरा है अब।" उमेश मुस्कुराया, बाहर चला गया, लेकिन अंदर का तूफान शुरू होने वाला था

अधिकारी आगे बढ़ा, हाथ काँपते—खुशबू की कमर पर रखा, नरम चमड़ी महसूस की। "तू... क्या माल है साली... तेरी ये बॉडी... ऑडिट भूल गया मैं तो !" धीरे से सिर झुकाया, मोटे होंठों पर फिर मुँह रखा—लेकिन धीरे,। होंठ चूसे, हल्का काटा, जीभ बाहर निकालकर लिपटाई। लार का मिश्रण, मीठा, गाढ़ा—खुशबू की सिसकी निकल गयी , "उम्म सर... धीरे... आपके होंठ गर्म हैं..." लेकिन वो भी जवाब दिया, जीभ से चाटी अधिकारी की जीभ, मुँह खोल दिया। किस लंबा चला —हाथ एक-दूसरे के बालों में, सांसें मिलने लगी लार टपकती रही ठुड्डी पर। अधिकारी का हाथ ऊपर सरका—टी-शर्ट के नीचे, पेट सहलाया, नाभि में उँगली घुमाई। "तेरी स्किन... सिल्क सी है , लेकिन गर्म... चूत तक सिहरन पहुँच रही होगी?"

खुशबू सिहर गई, कमर मटकाई—हाथ अधिकारी की शर्ट में, छाती सहलाई। "सर... आपका बदन मजबूत है ... महसूस हो रहा, लंड सख्त हो गया ना?" अधिकारी पागल सा हो गया —किस तोड़कर गर्दन पर सरका, चूमने लगा, काटा हल्का। "हाँ साली... तेरी ये मोटी जांघें... स्कर्ट चिपक रही, चूत की गर्मी महसूस हो रही कुतिया!" हाथ नीचे—स्कर्ट ऊपर सरकाया, मोटी जांघें सहलाईं, नरम, गर्म, पसीने से चिकनी। उँगलियाँ अंदरूनी तरफ रगड़ीं, चूत के होंठों को छुआ— "उफ्फ... साली, पहले से ही रस बह रही... तेरी चूचियाँ... मोटी, भारी... छूना चाहता हूँ!" टी-शर्ट ऊपर खींच दी ब्रा खोली—चूचियाँ बाहर उछल पड़ीं, गोरी, भारी, निप्पल्स गुलाबी सख्त। हाथों से पकड़ कर , मसला धीरे—गोलाकार, निप्पल्स मरोड़े। "क्या कमाल हैं... दूध निकल आएगा, चूसूँ?" एक चूचा मुँह में लिया—चूसा धीरे, जीभ घुमाई, दाँत हल्के लगाए। खुशबू की सिसकी तेज़—"आह सर... चूसो... मोटे दूध चूसो, मजा आ रहा!" दूसरा हाथ जांघों पर, स्कर्ट पूरी ऊपर—पैंटी सरकाई, चूत पर उँगली रगड़ी।

गर्म हो गया पूरा ऑफिस —अधिकारी ने खुशबू को दीवार से सटाया, स्कर्ट पूरी उतारी, टी-शर्ट फेंकी। नंगी बॉडी चमक रही थी —मोटी जांघें फैलीं, चूचियाँ हिलतीं। वो झुका, जांघों पर किस किए—अंदरूनी तरफ चूमा, काटा, चूत तक पहुँचा। "तेरी चूत... गुलाबी, फूली... रस चमक रहा मादरचोद!" जीभ लगाई—धीरे चाटा, क्लिट घुमाई। खुशबू काँप गयी —"हाय सर... जीभ... आग लगा दी!" लेकिन अधिकारी उठा, पैंट खींची—लंड बाहर, मोटा, सख्त। "!" पटक दिया डेस्क पर, पैर फैलाए—लंड चूत पर रगड़ा, फिर धक्का!—जोर से, पूरा घुसा। "आह साली... तेरी चूत टाइट है रे ... फाड़ दूँगा!" धक्के मारने लगा, जोर-जोर से, जड़ तक। पतत-पतत की आवाज़, चूत की दीवारें चिपक गईं। "ले रंडी... लंड... कैसा लग रहा है " हाथ चूचियों पर, मसला जोर से।

खुशबू चीखी—"ओह्ह सर... मोटा लंड है आपका ... फाड़ दिया चूत को! हाँ... चोदो , रंडी हूँ!" कमर ऊपर की, धक्कों का साथ दिया। अधिकारी पागल हो गया —धक्के तेज़ कर दिए , थप्पड़ चूचियों पर—चटाक! "साली हरामी... तेरी मोटी चूचियाँ... काट दूँगा!" पोजीशन बदली—खुशबू को घुमाया, गांड ऊपर, पीछे से धक्का मारा । "अब गांड... फाड़ूँगा!" लंड घुसा, जोर से—खुशबू चीखी, लेकिन मजे से —"हाँ सर... गांड चोदो... जोर से !" धक्के लगने लगे , पसीना टपकता, रस बहता। अधिकारी झड़ा—"आह... रस भर रहा चूत में!" गर्म वीर्य, बाहर टपका। खुशबू भी झड़ी—चीखकर, बॉडी काँपती हुई ।

दोनो हाँफते गिरे, लेकिन अधिकारी बोला—"कल फिर... रिपोर्ट साफ कर दूँगा।" उमेश बाहर मुस्कुराया।

 

mentalslut

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अधिकारी की कार बाहर से गायब हो चुकी थी—रिपोर्ट साफ-सुथरी, लेकिन उसके चेहरे पर वो गहरी संतुष्टि की चमक अभी भी बरकरार थी, मानो खुशबू का 'गिफ्ट' ने हर मुश्किल को चुटकियों में सुलझा दिया हो। स्टाफ रूम में खुशबू अभी भी हाँफ रही थी—टी-शर्ट किसी तरह वापस पहन ली थी, लेकिन स्कर्ट नीचे से भीगी हुई लटक रही थी, चूचियाँ लाल-लाल निशानों से जगमगा रही थीं, और होंठ सूजे हुए, जैसे किसी जंगली किस की निशानी हो। तभी उमेश अंदर घुसा, चेहरे पर शरारती मुस्कान लिए—"साली रंडी... काम तो बन गया, लेकिन तेरी चूत ने क्या तहलका मचा दिया! सर तो पूरी तरह तेरे कायल हो गए।" खुशबू ने हल्के से हँसते हुए कमर मटकाई, आँखों में शरम और शरारत का —"पापा... सर तो सचमुच पागल हो गए, लेकिन मजा... उफ्फ, क्या कहूँ, दिल चुरा लिया!" लेकिन ठीक उसी पल दरवाजा खटका—रामू अंदर दाखिल हुआ, हाथ में दारू की आधी बोतल लहराते हुए, आँखें लाल और भूखी। "सर... सुना तो है, गिफ्ट का खेल सफल हो गया? अब मेरी बारी आ गई—खुशबू बिटिया... अरे वाह, क्या कमाल का माल लग रही है आज!" रामू की नजरें चिपक गईं—स्कर्ट की कगरे पर, जांघों की मोटी, रसीली चमक पर, और टी-शर्ट के नीचे उभरी हुई चूचियों की आकृति पर।

उमेश ने ठहाका लगाते हुए दरवाजा बंद किया—"हाँ रामू भाई, आ तो गया तू आखिरकार? देख ले, साली अभी भी आग उगल रही है—अधिकारी ने इसकी चूत को अच्छे से फाड़ा है, रस अभी भी टपक रहा होगा!" रामू ने धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए खुशबू के पास पहुँचकर अपना मोटा हाथ उसकी कमर पर रखा—नरम, लेकिन कामुक स्पर्श से। "बिटिया... तेरी ये छोटी-सी स्कर्ट... उफ्फ, जांघें इतनी मोटी और गर्म, चूत की आग तो दूर से महसूस हो रही है। कल ऑफिस में तेरी गांड फाड़ी थी ना कुतिया साली रंडी... तेरी ये चूचियाँ तो मोटी-मोटी दूध वाली लग रही हैं—चूसूँ तो क्या मीठा स्वाद आएगा? और होंठ... इतने रसीले, मोटे, जैसे लंड चूसने के लिए ही बने हों!" उसने कान में गर्म साँसों के साथ फुसफुसाया, जिससे खुशबू की रूह सिहर उठी। लेकिन उमेश के सामने ही रोमांस की शुरुआत हो गई—खुशबू ने रामू की चौड़ी छाती पर हाथ फेरा, आवाज में शरम का पुट—"चाचा... इतनी गंदी बातें... पापा तो सब सुन रहे हैं, लेकिन हाँ... चूस लो ना मेरी चूचियाँ, मैं तो तेरी रंडी बिटिया हूँ!"

रामू तो जैसे पागल हो गया—उसने खुशबू को दीवार से सटा दिया, और उसके मोटे, रसीले होंठों पर अपना मुँह रख दिया। चूमा धीरे-धीरे, जीभ अंदर सरकाई, लिपटा ली गहराई से। "उम्म... बिटिया, तेरी ये लार... चूत के रस जैसी चिपचिपी और मीठी है !" किस और गहरा हो गया, लंबा खिंचा—रामू का एक हाथ टी-शर्ट ऊपर सरका गया, चूचियों को पकड़ लिया, नरम लेकिन दबाव से मसला। "क्या भारी-भरकम हैं ये... मोटे दूध से भरी हुईं... उमेश सर, देखिए ना, आपकी बिटिया की चूचियाँ मैं मसल रहा हूँ!" उमेश वहीं खड़ा देखता रहा, अपना लंड पैंट के ऊपर से मसलते हुए—"हाँ रामू भाई... जोर से मसल, साली तो एंजॉय ही कर रही है, देखो कितनी सिसकारियाँ ले रही!" रामू का दूसरा हाथ स्कर्ट के अंदर घुस गया—मोटी जांघें सहलाईं, गर्माहट महसूस की, फिर उँगली चूत पर रगड़ी, जहाँ रस बह रहा था। "बिटिया... तेरी ये जांघें... इतनी मुलायम और मोटी, चूत तो पूरी गीली हो चुकी... रस टपक-टपक रहा है!" खुशबू सिसकी भर आई—"आह चाचा... ये रोमांस... पापा सब देख रहे हैं, शर्म तो आ रही है, लेकिन चूत... उफ्फ, जल रही है जैसे!" वो भी किस का जवाब दे रही थी—जीभ घुमा रही थी , लारें मिला रही थी , होंठ चूस रही रामू के।

रोमांस अब हद पार कर चुका था—रामू ने एक झटके में टी-शर्ट उतार फेंकी, चूचियाँ नंगी हो गईं, हवा में लहराने लगीं। उसने एक चूची मुँह में ले ली—चूसी धीरे-धीरे, जीभ से घुमाया, दाँतों से हल्का सा काटा। "उम्म... मीठा-मीठा दूध बिटिया... चाचा चूस रहा हूँ तेरी चूचियाँ!" दूसरी चूची को हाथ में मसला, निप्पल को मरोड़ा, खींचा। खुशबू काँप उठी, सिहरन दौड़ गई पूरे शरीर में—उसका हाथ रामू के लंड पर पहुँच गया, पैंट के ऊपर से मसला, जो अब पत्थर सा सख्त हो चुका था। "चाचा... कितना सख्त हो गया... मेरी चूचियों ने क्या जादू कर दिया!" उमेश सामने की कुर्सी पर बैठा, आँखें फैलाए देखता रहा—"साली... रामू को तो तू पागल बना रही है, लेकिन तेरी गांड... कल तो फाड़ी थी ना रामू ने?" रामू ने हँसते हुए स्कर्ट ऊपर चढ़ाई—पैंटी को सरका दिया, चूत पर जीभ रख दी। "हाँ सर जी... लेकिन आज तो रोमांस का राजा हूँ मैं... पहले बिटिया की चूत चाटूँ!" चाटा धीरे-धीरे, रस चूसा, जीभ अंदर-बाहर की। खुशबू चीख पड़ी—"हाय चाचा... जीभ... अंदर तक करो ... मजा आ गया!" रोमांस चरम पर पहुँच चुका था—किसों की बौछार, मसलना, चाटना... उमेश की नजरों के सामने, शर्म की लाली और उत्तेजना की आग का घिनौना लेकिन लुभावना खेल ।

लेकिन रामू ने साँसें थामते हुए, आँखों में जंगली भूख चमकाते फुसफुसाया—"अब चुदाई का दौर शुरू करे कुतिया बिटिया... तेरी चूत तैयार है चाचा के मोटे लंड को अंदर तक निगलने के लिए? बोल, रंडी बिटिया... तैयार है ना?"
 

mentalslut

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शाम की लाली खेतों पर धीरे-धीरे फैल चुकी थी—सूरज अस्त हो रहा था, हवा में मिट्टी और ताजी घास की सोंधी, मादक महक घुली हुई, लेकिन दूर कोने में वो पुराना, सुनसान खेत, जहाँ कोई इंसान की परछाईं भी न पहुँचती। सोभा वहीं लेटी हुई थी, साड़ी को ऊपर सरका दिया था, पेटीकोट कमर पर लापरवाही से बंधा, लेकिन गांड पूरी तरह नंगी—गोरी-गोरी, गोलाकार, पसीने की बूंदों से चमकती हुई, जैसे कोई रसीला फल हो। राजन, उसका अपना बाप, घुटनों के बल झुका हुआ—मानो कोई भूखा जंगली जानवर शिकार पर टूट पड़ा हो। "सोभा रंडी... तेरी ये गांड... शाम की गर्मी में कितनी चिपचिपी और लुभावनी लग रही है!" राजन ने गहरी साँस लेते हुए फुसफुसाया, जीभ बाहर निकाली—लंबी, गर्म चाट मार दी, दरार से शुरू करके गोले पर घुमाई। स्लर्प! नमकीन पसीना चूसा, छेद पर जीभ दबाई, अंदर तक सरका दी। सोभा सिहर उठी, लेकिन कमर ऊपर उछाल दी—कामुक लालच में डूबी, आँखों में आग। "उफ्फ पापा... चाटो जोर से ना, बेटी की गांड... तेरी जीभ से सिहरन दौड़ रही है पूरे शरीर में! हाय... अंदर घुसाओ जीभ, गंदा रस चूस लो सब!" उसकी आँखें आधी बंद, होंठ काटे हुए, चूचियाँ साड़ी के ब्लाउज में उछल रही थीं—मोटी, भारी-भरकम, निप्पल्स सख्त होकर चुभते हुए। बॉडी पूरी तरह कामुक—कमर पतली लेकिन गांड चौड़ी और भरी हुई, जांघें मोटी फैली हुईं, नीचे चूत गीली चमक रही, रस की बूंदें टपक रही। वो इठला रही थी, बाल खुले लहराते, पसीना गालों से टपकता—रंडी की तरह लाड़कती, लेकिन बेटी का वो पापी आकर्षण सब कुछ और गंदा बना रहा था ।

राजन तो जैसे पागल हो गया—जीभ की स्पीड बढ़ा दी, छेद में अंदर-बाहर चला दी, थूक थोका और चाट लिया। "साली बिटिया... तेरी गांड का ये स्वाद... चूत से भी ज्यादा मीठा और नशेदा है , उफ्फ्फ साली तेरी गांड!" सोभा की हल्की चीख निकल गई—"आह पापा... कुत्ता बन गए हो तुम, लेकिन मजा आ रहा है ... उफ्फ, चूत से रस टपक-टपक रहा है!" तभी झाड़ियों से हल्की सरसराहट हुई—उमाकांत आ गया, आँखें फैलाकर, साँसें थमीं। "अरे वाह... राजन भाई? सोभा... ये क्या तमाशा चला रखा है?" लेकिन सोभा ने मुस्कुरा दिया, कामुक नजरों से उसे घूरते हुए—"चाचा... आ तो गए आखिरकार? देखो ना, पापा मेरी गांड चाट रहे हैं... लेकिन बिटिया की ये बॉडी... पूरी चाटनी है आज! पापा-चाचा... दोनों मिलकर चाट लो ना, रंडी बिटिया को मजा दो!" उमाकांत सिहर उठा, लेकिन लंड पैंट में सख्त हो गया—वो भी आगे बढ़ा, भूखी नजरों से।

सोभा धीरे से उठी, साड़ी को पूरी तरह सरका फेंका—अब बॉडी नंगी चमक रही थी शाम की सुनहरी रोशनी में, हर कर्व लुभावना। "पापा... चाचा... देखो मेरी ये चूचियाँ... मोटी-मोटी, दूध से भरी हुईं—पहले इन्हें चाटो!" राजन ने एक चूची मुँह में भर ली, चूसी जोर-जोर से—जीभ घुमाई, निप्पल को चाटा, काटा हल्का। उमाकांत ने दूसरी पकड़ी—दाँतों से हल्का सा गड़ाया, "उम्म बिटिया... तेरी चूचियाँ... इतनी मीठी और रसीली!" सोभा इठलाती रही, अपने हाथों से चूचियाँ मसलीं—"हाँ... चाटो और जोर से, बिटिया की बॉडी... पापा-चाचा के लिए ही बनी है!" फिर जांघें फैला दीं—"अब ये जांघें... मोटी, पसीने से भीगी हुईं—चाटो इन्हें!" राजन नीचे झुका, जांघों की अंदरूनी तरफ चाटा—नमकीन पसीना चूसा, काटा हल्का। उमाकांत दूसरी तरफ—चाटते हुए बोला, "साली रंडी... तेरी जांघें... चूत तक गर्मी पहुँचा रही हैं!" सोभा काँप उठी, सिहरन दौड़ गई—"आह... चाटो ना, रंडी की जांघें... सिहरन सीधे चूत में उतर रही!"

अंत में चूत का नंबर आया—सोभा फिर लेट गई, पैर चौड़े फैलाए, चूत खुली चमकती। "अब चूत... पापा-चाचा... मिलकर चाट लो इसे!" राजन ने जीभ लगाई—होंठों को चाटा, क्लिट पर घुमाई, अंदर सरकाई। उमाकांत नीचे से हमला—रस चूसा गटक लिया, "बिटिया... तेरी चूत... गुलाबी और रसीली, रस बह रहा है जैसे कोई नदी हो !" दोनों की जीभें मिलीं, एक-दूसरे को रगड़तीं—चपचप की गंदी आवाज़ खेत में गूँजने लगी। सोभा पागल हो गई—"हाय... दोनों की जीभें... बिटिया झड़ने वाली है! चाटो पूरी बॉडी... मैं तो रंडी हूँ तुम्हारी!" झड़ी जोरदार आ गई, रस बहा दोनों के मुँह में—राजन और उमाकांत ने निगला सब, चाटते रहे बिना रुके। खेत की शाम... पूरी तरह गंदी और उत्तेजक हो चुकी थी, हवा में वो मादक गंध फैल गई।

लेकिन सोभा ने सिसकते हुए फुसफुसाया, आँखों में अभी भी भूख—"पापा... चाचा... चाटना तो ठीक, लेकिन अब लंड... बिटिया की चूत फाड़ दो ना, शाम की गर्मी में!"
 

mentalslut

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छत पर चाँदनी की चादर बिखर रही थी, लेकिन उमेश और खुशबू के बीच का अंधेरा और भी गाढ़ा लग रहा था—दोनों लेटे हुए, बॉडीज आपस में चिपकी हुईं, हवा में उनकी साँसों की गर्माहट घुली हुई। उमेश ने खुशबू को और करीब खींच लिया, उसके मोटे, रसीले होंठों पर अपना मुँह रख दिया—चुम्मा इतना गहरा कि साँसें थम सी गईं, जीभ अंदर सरका दी, लिपटा ली उसकी जीभ से। "उम्म साली रंडी... तेरी ये लार... आज रामू और अधिकारी के रस से मिक्स होकर कितनी चिपचिपी और नशेदार लग रही है!" खुशबू सिहर उठी, लेकिन जवाब में अपनी जीभ घुमा दी, उमेश की जीभ को चूसा जैसे कोई मीठा रस हो, हाथ नीचे सरका कर लंड पर दबाव डाला—पैंट के ऊपर से ही सख्ती महसूस कर ली। दोनों ने एक-दूसरे के होंठ चाटे, लार टपकती ठुड्डी पर, सिसकारियाँ हवा में घुलीं—"पापा... ये चुम्मा... उफ्फ, चूत तो पूरी गीली हो गई, रस बह रहा है!" उमेश का हाथ स्कर्ट के अंदर घुस गया—मोटी जांघें सहलाईं, गर्माहट सोखी, फिर उँगली चूत पर रगड़ी, जहाँ नमी की चमक थी। चुम्मा-चाटी का सिलसिला जारी रहा, पूरे दस मिनट—गर्दन पर गर्म किस, कान में फुसफुसाहट, लार का गंदा खेल... लेकिन अचानक खुशबू रुक गई, आँखों में शरारती चमक लिए—"पापा... बताओ ना, तेरी जवानी के वो गंदे सेक्स के किस्से? 17-18 की उम्र में... कौन सी रंडी को चुदाई की, या फिर कोई और राज़ है ?"

उमेश शरमा गया, चेहरा लाल हो उठा—हाथ पीछे हटा लिया, नजरें नीची कर लीं। "अरे बिटिया... ये क्या पूछ रही है तू? तेरे पापा तो टीचर थे, नैतिकता सिखाते थे स्कूल में... ऐसी गंदी बातें?" लेकिन खुशबू ने लंड को जोर से मसला, पकड़ में सख्ती महसूस करते हुए—"पापा... शर्मा क्यों रहे हो? आज तो तूने मुझे रंडी बना दिया, रामू को चटवाया... बता ना, जवानी में क्या-क्या किया? वो भूख... कहाँ उतरी?" उमेश सिसका एक बार, फिर हँस पड़ा—आग भड़क उठी अंदर। "ठीक है साली रंडी... सुन ले। 30 साल पहले की बात है ... गाँव में बिजली का नामोनिशान न था, सिर्फ लालटेन की झिलमिलाती रोशनी साथ निभाती। सब खेती पर आश्रित—सुबह हल चलाते, शाम को बैलों को बाँधते। मैं 17 का जवान था, दिन भर पसीना बहाता, लेकिन रातें बेचैन—लंड सख्त होकर नींद चुरा लेता। माँ मालती देवी 46 की, साड़ी लपेटे घर संभालतीं, चूचियाँ भारी लेकिन सख्त बनी हुईं—बेटे की गंदी नजरों का तो अंदाजा भी न था। बहन रोशनी 16 की, सलवार सूट में मटकती, शरारती लेकिन मासूम। लेकिन पहला इंसिडेंट... माँ के साथ ही हुआ... पागल हो गया मैं। माँ को कभी पता न चला, वो तो अनजान रहीं हमेशा।"

**फ्लैशबैक: 30 साल पहले...**

गाँव रात में काला पर्दा ओढ़ लेता—बिजली न थी, लालटेन की हल्की झिलमिल रोशनी ही अंधेरे को चीरती। लोग खेती के मोहताज—सूरज उगते ही खेतों में, शाम ढलते बैलों को जोतना। उमेश 17 का था, जवान और बेचैन, दिन भर पसीना बहाता लेकिन रातें लंबी—लंड सख्त होकर तड़पाता, नींद हराम। माँ मालती देवी 46 की उम्र में भी हसीन, साड़ी लपेटे घर का काम संभालतीं, चूचियाँ भारी-भरकम लेकिन सख्त, कमर पतली, गांड भरी हुई—बेटे की वो गंदी भूखी नजरों से बेखबर। बहन रोशनी 16 की, सलवार में कमर मटकाती, लेकिन उमेश की आग माँ पर ही लगी।

.. एक शाम खेतों में। उमेश पानी डाल रहा था, लालटेन जलती हुई हाथ में। दूर झाड़ी के पीछे शरर की आवाज़—माँ मालती, साड़ी ऊपर सरका ली थी, पेटीकोट कमर पर बंधा, चूत पूरी नंगी। मुत्त रही थीं—गर्म रस टपकता ज़मीन पर, गुलाबी होंठ फूले हुए, काले बाल पसीने से चिपके, चमकते। "उफ्फ... ये शाम की गर्मी..." माँ सिसकी भर रही थीं, कमर हल्की सी मटका रही, चूचियाँ साड़ी के ब्लाउज में दबकर उछल रही थीं। उमेश की साँसें थम गईं—लालटेन हाथ से छूट गई, लंड पैंट में फड़क उठा, सख्त हो गया पत्थर सा। "माँ... तेरी चूत... इतनी चमकदार, रस टपकता देखा... पागल कर दिया!" मन ही मन चीखा, लेकिन छिपा रहा झाड़ी के पीछे। माँ ने मुत्त खत्म की, साड़ी नीचे की—लेकिन उमेश तो पागल हो गया। हाथ पैंट में घुसा लिया, लंड पकड़ा और हिलाने लगा जोर-जोर से। "साली माँ रंडी... तेरी चूत देख ली, फाड़ दूँगा एक दिन! चूचियाँ चूसूँगा, गांड चाटूँगा!" वीर्य गर्म झड़ी पैंट में, चिपचिपा हो गया सब, लेकिन नशा चढ़ गया सिर चढ़कर। रात भर लेटा रहा, माँ पास सो रही—कुछ न जानतीं, बस शांत साँसें ले रही।

उसके बाद... रोज़ का व्यसन बन गया। उमेश चुपके से माँ को देखने लगा, हर मौके का फायदा। कभी आँगन में नहाते हुए—लालटेन की रोशनी में माँ साबुन मल रही, चूचियाँ नंगी उछल रही पानी के साथ, कमर पर पानी सरकता, चूत की झलक मिल जाती। उमेश छत से झाँकता, लंड हिलाता—"माँ... तेरी चूचियाँ... भारी, दूध वाली... चूसूँ तो क्या स्वाद आए!" वीर्य टपकता नीचे ज़मीन पर, लेकिन माँ को पता न चला कभी —वो बस नहातीं, साड़ी लपेटतीं, अनजान। कभी धुलाई के बहाने—माँ झुककर कपड़े धोतीं, साड़ी सरक जाती, गांड उभर आती गोल-गोल। उमेश पास खड़ा, नजरें चुराता लेकिन लंड सख्त हो जाता । एक दिन... माँ की पैंटी रस्सी पर लटक रही थी —गंदी, चूत की महक आ रही दूर से। उमेश चुरा ली चुपके से, रात को नाक से लगाई—"उफ्फ माँ... तेरी चूत की ये महक... चिपचिपी, गर्म, नशेदार!" लंड हिलाया जोर से, पैंटी मुँह पर दबाई, वीर्य छूटा सीधे उस पर। माँ सुबह ढूँढती रहीं—"अरे, पैंटी कहाँ चली गई?" लेकिन उमेश मुस्कुराता—"माँ... हवा ले गई होगी!" माँ को कभी शक न हुआ—वो सख्त बनी रहीं, बेटे की गंदी भूख से पूरी तरह बेखबर।

उमेश ने आँखें खोलीं, खुशबू की चूत में उँगली तेज़ कर दी—अंदर-बाहर चला दी, रस महसूस करते हुए—"फिर क्या हुआ ... वो नशा बहन रोशनी तक फैला, लेकिन माँ कभी न जानीं। लेकिन वो झलकें... पापा को चोर बना दिया, रंडी की भूखी नजर!" खुशबू सिसकी भर आई, चूत हिलाई उँगली के साथ—"पापा... माँ की पैंटी... स्वाद कैसा था? और रोशनी... क्या किया उसके साथ?"
 

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छत की ठंडी हवा में चुम्बनों की आग अभी भी सुलग रही थी—उमेश की जीभ खुशबू के नरम होंठों से चिपकी हुई, लार की बूंदें टपक रही थीं, लेकिन उनकी साँसें थम सी गईं। खुशबू ने काँपते स्वर में सिसकी ली, अपना हाथ उमेश के सख्त लंड पर कस लिया—"पापा... और बताओ न... माँ की पैंटी चुराने के बाद क्या हुआ? दीदी रोशनी... क्या वो भी तेरी उस जलती हवस का शिकार बनी?" उमेश की साँसें भारी हो गईं, वह खुशबू की चूचियों को अपनी हथेलियों में मसलते हुए बोला—"हाँ बिटिया... वो नशा जैसे जहर बन गया... रोशनी का वो राज़ खुला, जो कभी न खुलना चाहिए था।। सुनो... अगला किस्सा... पागलपन की वो हद, जहाँ भाई-बहन की सीमाएँ धुंधली हो गईं।"

**फ्लैशबैक: 30 साल पहले...**

गाँव की शामें अनंत लगती थीं—बिजली का नामोनिशान न था, बस लालटेन की मद्धम रोशनी में अंधेरा और गहरा हो जाता। खेतों का थका-हारा दिन समाप्त हो चुका था, लेकिन उमेश के मन का वो नशा बढ़ता ही जा रहा—माँ की चूत की वो चुराई हुई झलक, पैंटी की गर्माहट से रातें कटतीं, सपनों में उलझीं। लेकिन एक शाम... खेतों की मेड़ पर उमेश छिपा बैठा, पानी भरने का बहाना बनाकर। दूर, झाड़ियों के पीछे—उसकी 16 साल की बहन रोशनी, एक गाँव के शरारती लड़के से चिपटी हुई। वो लड़का, सलवार की कमर को कसकर पकड़े, रोशनी के होंठों पर अपने होंठ चिपकाए हुए। चुम्बन गहरा था, जीभें आपस में लिपटीं, रोशनी की सिसकियाँ हवा में घुलीं—"उम्म... धीरे... कोई देख लेगा तो?" लेकिन लड़का पागल था, हवस में अंधा—हाथ सलवार के अंदर सरक गया, जांघों को सहलाता, चूचियों को ऊपर से ही मसलता। रोशनी का शरीर इठला रहा था, कमर मटक रही थी —"हाय... तेरी जीभ... चूत तक सिहरन पहुँच गई!" उमेश का खून खौल उठा—लंड सख्त हो गया, लेकिन सीने में गुस्से की ज्वाला भड़क गई। "साली दीदी... रंडी बन गई? मेरी बहन... किसी हरामी के हाथों?"

उमेश झाड़ी से कूद पड़ा, गर्जना करते हुए—"हरामी! छोड़ दे मेरी दीदी को!" लड़के पर टूट पड़ा—मुक्कों की बौछार कर दी , नाक फट गई, खून की बूंदें मिट्टी पर बिखर गईं। "तेरी हिम्मत कैसे हुई... मेरी दीदी को छुआ?" लड़का चीखा, खून बहाता भागा—गाँव की ओर, डर से काँपता हुआ । रोशनी काँप गई, सलवार समेटते हुए—"भैया... ये क्या कर दिया?..." लेकिन उमेश का गुस्सा अंधा था, वह रोशनी पर भी उतर आया—गाल पर जोरदार थप्पड़, चटाक की आवाज़ हवा में गूँजी! "साली हरामी... तू रंडी बनी घूम रही? माँ को पता चला तो तेरी चूत फाड़ दूँगा!" रोशनी की आँखों से आँसू बहने लगे, गाल लाल हो गया—"भैया... माफ़ी... गलती हो गई! प्लीज..." लेकिन उमेश की हवस ने गुस्से को मोड़ लिया—ये गुस्सा अब बहाने बन गया, एक छिपी हुई चाहत का। "घर जाकर माँ को सब बता दूँगा... तू कुत्तिया बनी हुई है , किसी के लंड के पीछे पागल है !" रोशनी का चेहरा पीला पड़ गया, हाथ जोड़ लिए—"भैया... प्लीज... मत बताना! माफ़ी माँगती हूँ... जो कहोगे, वो करूँगी! बस... राज़ रखना इसे !"

उमेश का मन भर आया—हवस की वो लहरें, जो गुस्से को निगल गईं। "ठीक है साली... लेकिन राज़ रखूँगा, अगर... खेत के अंदर चल!" रोशनी का दिल धड़क उठा, डर से काँपती चली—मेड़ पार, झाड़ियों के पीछे । उमेश ने उसे ज़मीन पर पटक दिया, सलवार ऊपर सरका दी—"साली रंडी दीदी... तेरी चूत... आज भैया देखेगा, छुएगा!" —"तेरी चूचियाँ... इतनी मोटी, दूध से भरी... किसी हरामी को मसलने दीं? अब भैया मसलेगा, चखेगा!" हाथ सलवार के अंदर घुसेड़ा, चूचियों को पकड़ लिया—बेदर्दी से मसला, निप्पल्स को मरोड़ा, दर्द की लहरें रोशनी के शरीर में दौड़ीं। रोशनी चीखी, आँसू बहते—"आह भैया... दर्द हो रहा... माफ़ कर दो ! प्लीज..." लेकिन उमेश रुका नहीं, हवस की आग में जलता—"ले रंडी... तेरी चूचियाँ काट दूँगा, चूस लूँगा!" फिर मुँह झुकाया, होंठों पर जोर से चूमा —जीभ अंदर धकेली, काटा होंठों को, लार मिक्स हो गई। "उम्म साली... तेरी लार... भैया चूस रहा हूँ, लेकिन तू रंडी हो गयी है !" किस जोरदार था , काटने वाला, लेकिन रोशनी का शरीर सिहर उठा—डर और अजीब सी गर्मी में। "भैया... मत बताना... लेकिन धीरे... प्लीज!" उमेश ने चूचियों को और मसला—जोर से, लाल कर दिया, "साली... कल फिर आना यहाँ, वरना माँ को सब बता दूँगा!" रोशनी माफ़ी माँगती रही, आँसूओं में भीगी, लेकिन राज़ का बंधन गाँठ गया—एक काला, गुप्त बंधन। माँ मालती घर में अनजान, चूल्हे पर रोटियाँ सेंकती, अपनी मासूम दुनिया में।




उमेश ने आँखें खोलीं, खुशबू के होंठों को फिर चूम लिया—सिसकी भरी आवाज़ में—"फिर क्या हुआ पापा ।" खुशबू की साँसें तेज़ हो गईं, सिसकी लेते हुए बोली—"पापा... दीदी की चूचियाँ... मसलते वक्त कैसी लगीं? वो नरमी... वो गर्माहट?"
 

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छत पर चाँदनी की चादर बिखरी हुई थी, लेकिन उमेश और खुशबू की वो जलती आग ठंडी होने का नाम न ले रही थी —लंड चूत की गहराइयों में गहरा धँसा हुआ था, धीमे-धीमे धक्कों से लय बना रहे, जैसे दिल की धड़कनें आपस में बंधी हों। लेकिन बातें... वो रुकने का नाम ही न ले रही। खुशबू ने गहरी सिसकी ली, अपनी उँगलियाँ उमेश के निप्पल्स पर रगड़ते हुए, आँखों में वो भूखी चमक लिए—"पापा... दीदी का वो मुँह चुदाई... उफ्फ, वीर्य से सना चेहरा, लार और रस की गर्माहट! लेकिन अगला... माँ की पैंटी चोरी के बाद की वो रातें? " उमेश की साँसें भारी हो गईं, वह खुशबू की कमर को कसकर पकड़ते हुए एक जोरदार धक्का मारा, चूत की दीवारें सिहर उठीं—"हाँ बिटिया... अगला दिन... वो पागलपन की दहलीज, जहाँ हवस ने सब कुछ बदल दिया। माँ की नंगी बॉडी की वो चुराई झलक... फिर रोशनी को खेतों में बुलाया। सुन साली... पहले फुल चुदाई...!" खुशबू की चूत सिकुड़ गई, गर्म रस की लहर बह निकली, उसके होंठों पर एक कामुक मुस्कान तैर गई—"पापा... बताओ न... माँ हमेशा अनजान रही न?" उमेश ने झुककर चूचियों को मुँह में लिया, निप्पल्स को जीभ से घुमाते हुए चूसा, दाँतों से हल्का काटा—"हाँ रंडी बिटिया... माँ को अभी तक एक धागा भी न पता चला था । लेकिन वो दिन... हवस की आग लग गई, जो कभी बुझी ही न!"

**फ्लैशबैक: 30 साल पहले...**

सुबह की सुनहरी धूप गाँव की मिट्टी पर सरक रही थी—खेतों का नया दिन शुरू हो चुका था, लेकिन उमेश का मन एक तूफान सा बेचैन। रात भर रोशनी का वो मुँह चुदाई का नशा घूमता रहा था —वीर्य से चिपचिपा चेहरा, लार की बूंदें गालों पर, लेकिन वो भूख... वो तो और भड़क गई थी, जैसे जंगल की आग। माँ मालती देवी आँगन में नहाने लगीं—साड़ी धीरे-धीरे उतारी, पेटीकोट भी खींचा नीचे, और नंगी बॉडी लालटेन की आखिरी मद्धम झिलमिल में चमक उठी। 46 साल की वो औरत, लेकिन जवानी की तरह ताज़ा और रसीली—चूचियाँ भारी-भरकम, थोड़ी लटकती हुईं लेकिन सख्त और उभरी हुईं, निप्पल्स काले-भूरे, जैसे कटे आम के बीज, हवा में सिहरते। कमर पतली लेकिन मांसल, और गांड... उफ्फ, दो बड़े-बड़े गोल गोले, नरम मांस से लबालब, हर हलचल पर हिलते-डुलते। माँ ने बालों पर ठंडा पानी उँचा किया, साबुन की झाग मलने लगीं—हाथ चूचियों पर फेरा, गोले उछल पड़े, पानी की बूंदें निप्पल्स से सरकती हुईं नीचे, सपाट पेट पर, फिर चूत की उस गहरी दरार में समा गईं। चूत... काले घने बालों से आधी ढकी, लेकिन होंठ फूले हुए, गुलाबी चमक के साथ, जैसे कोई रहस्यमयी फूल। माँ ने कमर मटकाई, गांड थोड़ी ऊपर की—पानी की बूंदें दरार से टपकतीं, छोटा छेद चमकता हुआ, नम। "उफ्फ... सुबह की ये ताज़गी... आह!" माँ की सिसकियाँ हल्की-हल्की, अनजान कि बेटा छत की दरार से झाँक रहा, उसकी हर हरकत को निगलता हुआ।

उमेश का पूरा शरीर जल उठा—लंड पैंट में फड़कने लगा, सख्त होकर इतना कि दर्द होने लगा, नसें उभर आईं। "माँ रंडी... तेरी चूचियाँ... इतनी भारी, दूध से लबालब! गांड... उफ्फ, फाड़ दूँगा चोदते हुए, चूत चाटूँगा रस तक!" मन में चीखें उमड़ पड़ीं, हाथ पैंट में सरकाया, लंड को कसकर पकड़ा—जोर-जोर से हिलाने लगा, लेकिन आग बुझने का नाम न ले। रुका, साँसें संभाली—नीचे उतरा चुपके से, आँगन के किनारे। रोशनी नज़र आई—सलवार कमीज में मटकती हुई, आँगन के पास। आँखों से इशारा किया, हाथ का इशारा किया —तेज़, —"खेतों में आ... अभी, जल्दी!" रोशनी का चेहरा पीला पड़ गया, राज़ की जंजीर याद आ गई, सिर हिला दिया। माँ अभी भी नहा रही, अनजान—साबुन चूत पर मल रही, उँगलियाँ दरार में सरकतीं, सिसकारियाँ दबी हुईं, जैसे कोई गुप्त सुख। उमेश दौड़ा खेतों की ओर, रोशनी पीछे-पीछे, दिल धड़कते।

खेतों की मेड़ पर पहुँचे—झाड़ियाँ घनी और ऊँची, छिपने को परफेक्ट गोपनीयता, सूरज ऊपर चढ़ आया था लेकिन मन का अंधेरा और गहरा। उमेश ने रोशनी को ज़मीन पर पटक दिया, सलवार ऊपर सरका दी एक झटके में—"साली रंडी... कल तेरी मुँह चुदाई की थी , आज फुल चुदाई होंगी ! माँ की चूचियाँ देखीं नंगी, तेरी चूत फाड़ूँगा उसी आग से!" रोशनी काँप गई, आँखों में डर लेकिन बॉडी में वो अजीब सी गर्मी—"भैया... डर लग रहा... कोई देख लेगा तो?" लेकिन उमेश हवस का भूत था—हाथ सलवार के अंदर घुसेड़ा, चूत पर उँगली रगड़ी, गीली मिली... रस की चिपचिपाहट। "उम्म साली... चूत तो गीली हो रही तेरी कुतिया? झुका, होंठों पर होंठ लगा दिए —जीभ अंदर धकेली, लिपटा लिया। रोशनी सिहर उठी, लेकिन जवाब दे दिया—अपनी जीभ लपेट दी, लारें मिक्स हो गईं, मीठी और नमकीन। "भैया... उम्म... तेरी जीभ... चूत तक सिहरन पहुँचा रही!" चुम्बन लंबा खिंचा, पूरे पाँच मिनट—होंठ काटे हल्के, गर्दन पर चूमा, कान में फुसफुसाया—"मेरी रण्डी बहन ... तेरी बॉडी... माँ जैसी गर्म, रसीली है !" रोशनी इठलाई, हाथ उमेश के लंड पर दबा दिया, महसूस किया वो सख्ती।

उमेश ने सलवार पूरी खींच ली—रोशनी नीचे से नंगी, जांघें फैला दीं, हवा में सिहरन। "अब चाटूँगा साली... तेरी चूत और गांड, रस तक चूस लूँगा!" झुका, जीभ चूत के होंठों पर लगाई—चाटा लंबा, क्लिट पर घुमाई धीरे-धीरे। "उफ्फ साली .. तेरी चूत... इतनी मीठी, रस से भरी हुई है !" जीभ अंदर धकेली, चपचप चूसने लगा—रस निगला गटक-गटक, बालों को जीभ से खींचा। रोशनी की चीखें दबीं लेकिन गहरी—"आह भैया... जीभ... चूत फाड़ रही अंदर से! हाय... चाटो जोर से, निगलो सब!" कमर ऊपर उठाई, चूत दबा दी उमेश के मुँह पर, रस की बौछार हो गयी । उमेश पागल हो गया—जीभ तेज़ चलाई, क्लिट को हल्का काटा दाँतों से। "साली... झड़ जा रंडी... भैया का सुबह का नाश्ता बन जा!" रोशनी काँप उठी, रस की लहर बह निकली—उमेश ने चेहरा गीला होने दिया, सब चाट लिया। फिर पलटा, रोशनी को उल्टा किया—गांड ऊपर, गोल और मांसल। "अब तेरी गांड रंडी... छेद चाटूँगा, चखूँगा!" जीभ दरार में सरकाई—स्लर्प की आवाज़, पसीने का नमकीन स्वाद चूसा। "उम्म... गर्म, नमकीन! तेरी गांड... माँ की तरह मोटी, चुदने लायक!" रोशनी सिसकी भर रही—"भैया... दर्द हो रहा... लेकिन मजा आ रहा है ... जीभ अंदर धकेलो आह!" उमेश ने जीभ छेद में घुसाई, चाटा लंबा—पाँच मिनट, गांड गीली चमकदार कर दी। रोशनी फिर झड़ी, बॉडी कंपकंपाती, सिसकारियाँ हवा में।

लेकिन उमेश की भूख कहाँ मिटने वाली—लंड बाहर निकाला, मोटा और सख्त, नसें फूली हुईं, सिरा चमकता रस से। "अब असली चुदाई साली... तेरी कुंवारी चूत फाड़ूँगा, खून बहाऊँगा!" रोशनी घबरा गई, आँखें गोल—"भैया... धीरे से... पहली बार है न!" लेकिन उमेश ने जांघें और फैलाईं, लंड चूत पर रगड़ा—रस से चिकना हो गया। "ले रंडी ... भैया का लंड, तेरी माँ जैसी चूत के लिए!" धक्का!—जोरदार, आधा अंदर सरक गया। रोशनी चीखी ऊँची—"आह्ह्ह... दर्द! चूत फट गई भैया!" खून का हल्का धब्बा मिट्टी पर, लेकिन उमेश रुका न—दूसरा धक्का, जड़ तक धँसा। "उफ्फ साली... कितनी टाइट चूत... माँ की तरह गर्म, चिपचिपी!" धक्के शुरू हुए—धीमे-धीमे, फिर तेज़, पतत-पतत की गूँज, झाड़ियाँ हिलने लगीं। "ले साली .. चोद रहा है भैया! तेरी चूचियाँ... मसलूँगा बेदर्दी से !" हाथ कमीज के अंदर, चूचियाँ पकड़ीं—जोर से मसला, निप्पल्स मरोड़े, दर्द की लहर दौड़ आयी । रोशनी रोई आँसूओं से, लेकिन बॉडी ने साथ दिया—"ओह भैया... मोटा लंड... चूत भर दी पूरी! हाँ... चोदो अपनी रंडी बहन को, फाड़ दो!" कमर हिलाई, धक्कों का जवाब दिया।

उमेश ने पोजीशन बदली—रोशनी को घुमाया, डॉगी स्टाइल में, गांड ऊपर। "अब पीछे से साली... तेरी गांड देखकर चुदूँगा, थप्पड़ मारूँगा!" लंड फिर चूत में घुसेड़ा, धक्कों की बौछार—जोर-जोर से, गांड पर थप्पड़ चटाक-चटाक! लाल निशान उभर आए। "साली हरामी... तेरी गांड... कल किसी लड़के को दी थी? अब भैया फाड़ेगा, चोदेगा!" धक्के और तेज़, पसीना टपकता मिक्स रस के साथ, चूत से आवाज़ें चपचप आने लगी । रोशनी चीख रही थी —"हाय भैया... गांड जल रही थप्पड़ों से... लेकिन चूत... आग लगी! चोदो जोर से, अंदर तक !" उमेश ने बाल पकड़े, सिर पीछे खींचा—धक्के और गहरे, दस मिनट की जंग, बॉडी चिपक गईं, सिसकारियाँ आपस में घुलीं। फिर बदला—रोशनी को ऊपर बिठाया, काउगर्ल में। "उठ रंडी... खुद हिलाओ लंड पर, चूत गुलाओ!" रोशनी बैठी धीरे, ऊपर-नीचे होने लगी—चूत लंड को निगलती, चूचियाँ उछलतीं हवा में। "आह भैया... इतना गहरा... झड़ रही हूँ फिर!" उमेश नीचे से धक्के मारे, हाथ गांड पर—उँगली छेद में सरकाई। "ले साली... गांड भी कल चुदवाएगी, भैया का वादा रहा !" रोशनी तेज़ हिलाई, चूत सिकुड़ गई—झड़ी जोर से, रस बहा लंड पर गर्म लहर।

उमेश सह न सका, लंड फूल गया—"झड़ रहा हुँ साली ... ले मेरा वीर्य, भर लूँ तेरी चूत!" गर्म रस की बौछारें, चूत भर दी, बाहर टपकने लगा चिपचिपा। धक्के रुके न आखिरी तक, बॉडी थरथरा। रोशनी गिर पड़ी उसके सीने पर, हाँफती हुई—"भैया... पहली चुदाई... पागल कर दी, आग लगा दी!" उमेश ने चूमा गाल पर—"कल फिर आना... राज़ रखना ये सब वरना माँ को सब खोल दूँगा!" रोशनी मुस्कुराई हल्के, लेकिन आँखों में डर की छाया। माँ घर में अनजान, चूल्हे पर खाना बना रही—बेटे-बेटी की इस जंगली आग का सुराग तक न था।

उमेश ने आँखें खोलीं, खुशबू की चूत में फिर एक गहरा धक्का मारा, सिसकी उभरी—"फिर क्या हुआ पापा ... रोशनी की चुदाई रोज़ की आदत बनी।" खुशबू झड़ गई जोर से, नाखून उमेश की पीठ पर गाड़ते हुए—"पापा... दीदी की पहली चुदाई... उफ्फ, वो जोर... वो आग... कल्पना से परे!"
 

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शाम की लाली धीरे-धीरे मिट्टी में मिल चुकी थी, और घर की छत पर उमेश-खुशबू की वो जंगली आग अभी भी कोयले की तरह सुलग रही थी। लेकिन रामा का मन बेचैन था—बाज़ार से लौटते हुए साड़ी की परतें उसके नंगे बदन से लिपटी हुईं, फिर भी चूत में वो हल्की-हल्की सिहरन रुकने का नाम न ले रही थी, जैसे कोई अदृश्य उँगली अभी भी उसके नरम होंठों को सहला रही हो। तभी रवि स्कूल से लौटा, बैग को लापरवाही से फेंक दिया और सीधा मम्मी के पास पहुँचा। "मम्मी... आज चलें मूवी? वो नई रिलीज़, भरी-पूरी रोमांटिक वाली!" रामा की होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई, मन ही मन बेटे की उन भूखी नज़रों को महसूस करते हुए जो हमेशा उसके बदन की हर वक्र को निगल जाना चाहती थीं। "हाँ बेटा... क्यों नहीं, चलें। लेकिन पापा को मत बताना, वरना लेक्चर सुनना पड़ेगा!" उमेश-खुशबू घर पर ही व्यस्त थे, तो ये मौका तो जैसे खुद-ब-खुद उनके लिए रचा गया था।

रामा तैयार हुई—काली रेशमी साड़ी, जो उसके कमर की नाजुक चिकनाहट को चिपककर लिपट गई, ब्लाउज इतना टाइट कि चूचियाँ बाहर से ही उभर आईं, जैसे दो पके आम फटने को बेताब हो । "बेटा... कैसी लग रही है मम्मी आज?" रवि की आँखें चमक उठीं, साँसें भारी हो गईं—"मम्मी... इस साड़ी में... उफ्फ, तेरी बॉडी तो आग लगाने वाली है! कमर की वो कटान, चूचियों का उभार... बस, चख लेने का मन कर रहा है !" रामा शरम से लाल हो गई, लेकिन मन की गहराई में वो आग भड़क उठी, चूत के अंदर एक मीठी गुदगुदी दौड़ गई।

सिनेमा हॉल में घना अंधेरा बिछा था, पॉपकॉर्न के कुरकुरे टुकड़े हाथों में थे, लेकिन रवि का पूरा ध्यान स्क्रीन पर न था—उसकी नज़रें मम्मी की साड़ी की उन परतों पर टिकीं, जो हल्के से सरककर उसके गोरे जांघों को झलका रही थीं। आखिरी पंक्ति की सीटें, बगल में एक मोटा-तगड़ा अंकल—पचास की उम्र, सिर पर चमकदार गंजापन, लेकिन आँखें तेज़ और भूखी, जैसे कोई शिकारी हो । मूवी शुरू हुई, स्क्रीन पर रोमांटिक सीन—हिरोइन का होंठ हीरो के होंठों से चिपका, और रवि का हाथ धीरे से सरक गया मम्मी की रेशमी जांघ पर। "मम्मी... ये साड़ी इतनी सिल्की... बस सहला लूँ थोड़ा?" रामा की बॉडी में बिजली दौड़ गई, सिहरन चूत तक उतर आई—"बेटा... धीरे-धीरे... कोई देख न ले!" लेकिन हॉल का अंधेरा उनका रक्षक था। रवि पागल हो चुका था—हाथ ऊपर चढ़ा, ब्लाउज की कगार पर पहुँचा, और चूचियों को हल्के से पकड़ लिया। "उम्म... मम्मी, तेरी ये चूचियाँ... इतनी भारी, दूध से भरी हुईं! नरम-नरम रसगुल्ले!" उँगलियों से मसलने लगा, निप्पल्स को घुमाया जैसे कोई खिलौना। रामा की सिसकी दबी हुई निकली—"आह बेटा... इतना दबा रहे हो? मम्मी की चूत... गीली हो गई, रस टपक रहा है !" रवि झुक गया, होंठ मम्मी के रसीले होंठों से चिपका—एक गहरा चुम्मा, जीभ अंदर घुसेड़ी। "मम्मी... तेरी ये मीठी लार... उफ्फ्फ साली कुतिया !" चुम्मा लंबा खिंचा, लारें मिलीं, जीभें लिपटीं—दो मिनट तक हॉल की आवाज़ें दब गईं। रामा ने जवाब दिया, अपनी जीभ बेटे की जीभ से उलझाई—"बेटा... चूसते जाओ... मम्मी की चूचियाँ और मसलो, दर्द मीठा लग रहा!"

लेकिन बगल का अंकल सब देख रहा था—उसकी आँखें चमक रही थीं, हाथ पैंट के अंदर सरक चुका, मोटा लंड हिला रहा था धीरे-धीरे। अचानक वो मुस्कुराया, फुसफुसाया—"अरे वाह... माँ-बेटे का ये गर्मागर्म रोमांस? मैं कैमरा में कैद कर लूँ, तो मजा दोगुना हो जाएगा!" रवि घबरा गया, चुम्मा रुक गया। रामा काँप उठी—"क्या... साहब, आप?" अंकल ने फोन निकाला, वीडियो प्ले किया—साफ़-साफ़, उनका चुम्मा, चूचियाँ मसलना, सब कैद हो गया था । "अब बोलो... पुलिस को भेज दूँ ये? या फिर... वॉशरूम चलो, थोड़ा असली मजा लें!" रवि-रामा के चेहरे पीले पड़ गए, लेकिन चूत और लंड में वो आग बुझने का नाम न ले रही थी—डर और उत्तेजना का घालमेल। "प्लीज साहब... मत बताना, कुछ भी कर लेंगे!" अंकल हँसा, भद्दे अंदाज़ में—"चलो रंडी माँ... बेटे को भी घसीट लाओ!" मूवी बीच में छोड़ दी, सीधे पुरुषों के वॉशरूम की ओर—खाली था, लेकिन उनकी साँसें गरम हवा भर रही थीं। अंदर घुसते ही दरवाज़ा लॉक।

अंकल ने रामा को दीवार से सटा दिया, मोटे हाथों से साड़ी की परतें खींचीं—"साली रंडी... काली साड़ी में चूचियाँ उछाल रही थी बेटे के सामने? चूत की भूख बेटे के लंड से मिटा रही?" घिनौनी बातें उसके कानों में रस घोल रही थीं—"तेरी ये चूत... बेटे के लंड की भूकी रंडी? देखूँ, कितना रस बहा रही!" हाथ साड़ी के अंदर घुसेड़ा, पेटीकोट ऊपर सरकाया, और उँगली चूत के गीले होंठों पर फेर दी। "उफ्फ... रस की बौछार कर दी है कुतिया ! बेटा, देख तेरी मम्मी कितनी गर्म रंडी बनी हुई!" रवि खड़ा था, लंड सख्त हो चुका—"साहब... छोड़ दो मम्मी को!" लेकिन अंकल ने रवि को घुटनों पर बिठा दिया—"तू चाटेगा साली... जब मैं चोदूँगा, तू अपनी मम्मी की चूत चाटेगा!" रामा की आँखों में आँसू थे, लेकिन बॉडी में वो प्यास भड़क रही थी—"नहीं साहब... लेकिन... आह!" अंकल ने साड़ी खींच ली, ब्लाउज के हुक खोले, चूचियाँ बाहर उछल आईं—गोरी, भारी, निप्पल्स कटे हुए। "ले मसलूँ रंडी... तेरी ये चूचियाँ... दूध की नदियाँ है !" जोर-जोर से मसला, मुँह से काटा—चूसा बेदर्दी से , दाँतों से निप्पल खींचा। "उम्म... स्वादिष्ट दूध! बेटा, देख तेरी मम्मी को चूस रहा हूँ, कितनी चीख रही!" रामा की सिसकारें तेज़ हो गईं—"आह साहब... दर्द हो रहा... लेकिन मजा... चूसो और!"

अब चुदाई का तूफान छिड़ गया। अंकल ने पैंट उतारी, लंड बाहर आया—मोटा, काला, नसें फूली हुईं, सिरा चमकदार। "ले रंडी... पहले मेरा लंड चूस, गले तक ले!" रामा घुटनों पर आ गई, मुँह खोला—धीरे से चूसा, जीभ से घुमाया, लंड की नसों को सहलाया। "उम्म साहब... इतना मोटा... गला फाड़ देगा!" अंकल ने बाल पकड़े, धक्के मारने लगा—"चूस साली रंडी... बेटे के सामने अपनी असली फॉर्म दिखा!" स्लर्प-स्लर्प की आवाज़ें गूँजीं, लार टपकने लगी, लंड चमक उठा। रवि नीचे बैठा, मम्मी की चूत को निहारता रहा—"मम्मी... तेरी चूत... चाटूँ मैं?" अंकल हँसा ठहाका मारकर—"हाँ बेटा... चाट ले, जब मैं घुसाऊँगा तो तू रस चूस लेना!" रामा को खड़ा किया, दीवार से सटाया—पेटीकोट ऊपर, चूत नंगी, रस चिकचिकाती। लंड चूत के होंठों पर रगड़ा—"गीली रंडी... ले पहला धक्का!" जोर से अंदर धकेला—जड़ तक घुस गया। "आह्ह... तेरी चूत कितनी टाइट है रे बेटे के लंड से रोज चुदती है न?" धक्के शुरू—जोरदार, पतत-पतत की थापें, वॉशरूम की टाइलें काँप उठीं। "ले साली... चोद रहा हूँ तुझे! तेरी ये मोटी गांड... थप्पड़ खा!" हाथ से चटाक की आवाज़ आयी —गांड लाल हो गई। रामा चीखी आनंद से—"ओह साहब... मोटा लंड..है . चूत फाड़ दी! हाँ... चोदो अपनी रंडी मम्मी को जोर-जोर से!" कमर मटकाने लगी, धक्कों का साथ दिया, चूत लंड को निचोड़ने लगी।

रवि घुटनों पर, मम्मी की चूत के ठीक नीचे मुँह लगा बैठा—लंड अंदर-बाहर जाता देखता, आग बरसाती। "मम्मी... मैं चाट रहा हुँ तेरी चूत!" जीभ लगाई, लंड के साथ-साथ चूत के नरम होंठ चाटे, रस चूसा। "उफ्फ... साहब का लंड मम्मी की चूत में... मेरा रस और उनका प्री मिक्स हो गया, कितना मीठा है !" अंकल पागल हो गया—"हाँ बेटा... चाटते रह, तेरी मम्मी का रस मेरा लंड चख रहा!" धक्के और तेज़ हो गए रवि की जीभ पर रस की बौछारें उछलने लगीं। रामा काँप उठी—"आह बेटा... तेरी जीभ... साहब का लंड... दोनों मिलकर... झड़ रही हूँ मैं!" चूत सिकुड़ गई, रस की धार बह निकली—रवि ने मुँह खोलकर निगल लिया, एक बूँद भी न बर्बाद किया । अंकल ने पोजीशन बदली—रामा को झुका दिया, डॉगी स्टाइल में। "अब पीछे से चोदूँ रंडी... तेरी ये गोरी गांड निहार लूँ!" लंड फिर घुसेड़ा, धक्के बरसाए—गांड पर थप्पड़ों की बौछार कर दी । चटाक-चटाक! "साली... बेटे के सामने चुद रही है? कल फिर आना मूवी, वरना वीडियो पूरा शहर में वायरल होगा !" रवि नीचे से चूत चाटता रहा—जीभ क्लिट पर नचाती, लंड के नीचे रगड़ती। "मम्मी... तेरी चूत इतनी गर्म... चूस रहा तेरा बेटा हर बूँद!" दस मिनट तक धक्कों का सैलाब—पसीना टपकता, चूत रस से भीगी, हवा में कामुक गंध फैली। रामा चीखती रही—"हाय साहब... और अंदर ... बेटा, चाटो क्लिट को!"

अंकल सह न सका—"झड़ रहा हूँ रंडी... ले चेहरे पर मेरा रस!" लंड बाहर खींचा, रामा को घुमाया—मुँह खुला रखा। गोला-गोला गर्म वीर्य की बौछार—चेहरा भरा दिया, आँखों पर चिपका, होंठों पर लटका, ठुड्डी पर टपका चिकचिकाता। "ले साली... मेरा गर्म रस पी ले, बेटे के साथ शेयर कर!" रामा सिहर उठी, लेकिन प्यास और भड़क गई—"उफ्फ... इतना गर्म, चिपचिपा!" रवि ऊपर आया, मम्मी के चेहरे पर मुँह सटा दिया—चाटा वीर्य की हर बूँद, जीभ से साफ़ किया। "मम्मी... साहब का वीर्य... कितना मीठा, नमकीन है " चुम्मा शुरू हो गया—लार और वीर्य का मिश्रण, होंठ चूसे एक-दूसरे को। "उम्म मम्मी... तेरे चेहरे का ये स्वाद... आह !" रामा ने जवाब दिया, जीभ बेटे की जीभ में उलझाई—"बेटा... चाटो सब साफ़... मम्मी की प्यास बुझा दो इस रस से!" पाँच मिनट तक चुम्मा-चाट का दौर चला, वीर्य साफ़ हो गया—चेहरा चमकदार, होंठ गीले। अंकल हँसा संतुष्टी से —"क्या जोड़ा है ये... कल फिर मूवी में मिलना?"

घर लौटे तो उमेश-खुशबू इंतज़ार में थे—"कहाँ गायब हो गए थे दोनों?" रामा शरमाई, चेहरे पर अभी भी वो चमक—"मूवी देखने... मजा आ गया बहुत!" लेकिन चूत में वो रस सूखा न था, रात भर बेचैनी सताती रही।
 

mentalslut

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सिनेमा हॉल से लौटते हुए रमा और रवि की बॉडी में वो आग अभी भी सुलग रही थी—चेहरा तो वीर्य के निशान साफ कर लिया था, लेकिन चूत और लंड में बाकी थी वो गर्माहट, वो चिपचिपी नमी जो हर सांस के साथ याद दिलाती जाती। घर पहुँचते ही उन्होंने चुपके से नज़रें मिलाईं; ऊपर छत पर उमेश और खुशबू की फुसफुसाहटें आ रही थीं—वो हल्की-हल्की सिसकारियाँ जो रात की ठंडक में घुली हुई लग रही थीं। रवि ने मम्मी का हाथ पकड़ा, उँगलियाँ कसकर जकड़ीं, और चुपचाप कमरे की ओर खींच लिया। "मम्मी... साहब की चुदाई ने तो मजा दिया, लेकिन तेरी गांड... अभी चाटूँगा ?" उसकी आवाज़ में बेताबी थी, सांसें तेज़। रामा सिहर उठी—ब्लैक साड़ी अभी भी बॉडी से चिपकी हुई थी, पसीने से गीली, चूचियाँ उभरी हुईं जैसे साड़ी के नीचे सांस ले रही हों। "बेटा... पापा सुन लेंगे... ऊपर की आवाज़ें... लेकिन हाय, चूत फिर से गीली हो गई!" उसकी आँखें चमकीं, होंठ काँपे।

रवि ने दरवाज़ा लॉक किया—क्लिक की आवाज़ कमरे में गूँजी, जैसे कोई राज़ सील हो गया हो। लाइट डिम कर दी, कमरा अब धुँधला-सा, सिर्फ बेडलैंप की पीली रोशनी दीवारों पर लहरा रही थी। पर्दे खींचे, बाहर की स्ट्रीटलाइट की झलक भी न घुसे। रमा को बेड पर झुकाया—वो हल्के से विरोधी मुस्कान के साथ झुकी, साड़ी की चपेट में कमर मटकाई। रवि ने पीछे से साड़ी ऊपर सरकाई, धीरे-धीरे, जैसे कोई कीमती परत हटा रहा हो। पेटीकोट भी खींचा नीचे—गांड नंगी हो गई, कमरे की हल्की हवा में वो सफेद, चिकने गोले हल्के से काँपे। दरार के बीच में गुलाबी चमक, पसीने की बूंदें चमक रही थीं, जैसे ताज़ा ओस हो । "मम्मी रंडी... तेरी गांड... साहब ने तो थप्पड़ मारे थे, लेकिन बेटा चाटेगा, धीरे-धीरे, हर कोने को।" रवि की आवाज़ भारी हो गई, घुटनों पर बैठा, हाथों से जांघें फैलाईं। रामा ने कमर और ऊपर किया, गांड फैला दी—"बेटा... सूंघ पहले... मम्मी की वो महक... चाटना है तो जोर से, लेकिन चुपके से!"

रवि ने नाक लगाई दरार पर—गर्म सांसें छू गईं, पसीने की नमकीन गंध मिली चूत के रस से, वो मिश्रित खुशबू जो सिर चकरा दे। "उम्म मम्मी... तेरी गांड... नमकीन, चूत जैसी गर्माहट वाली है !" जीभ बाहर निकाली, लंबी चाट—नीचे से ऊपर, दरार में सरकती हुई, छेद पर घुमाई। स्लर्प की आवाज़ कमरे में गूँजी, लार टपकने लगी। रमा की सिसकी निकली—"आह बेटा... जीभ अंदर डाल... हाय, गांड सिहर गई, जैसे बिजली दौड़ गई!" रवि पागल हो गया—जीभ को धकेला अंदर, चपचप चूसने लगा, हाथ जांघों पर दबाव डालते हुए फैलाए रखा। पसीना उसके माथे पर चमक रहा था, कमरे की गर्मी बढ़ गई। "साली मम्मी... तेरी गांड का रस... चूस रहा बेटा, साहब का वीर्य अभी भी मिक्स है ना!" पाँच मिनट चाटता रहा—तेज़, गीला, लार टपकती चूत तक पहुँच गई, चमकदार धारा बन गई। रमा काँपने लगी, कमर हिलाने लगी—"बेटा... चूत भी सहला... झड़ रही हूँ मैं, रोक न पाऊँगी!" रवि ने उँगली चूत में डाली, धीरे-धीरे अंदर-बाहर, जीभ गांड पर—डबल हमला, जैसे आग पर तेल। "ले मम्मी... झड़ जा... बेटे का मुँह गीला कर दे!" रमा ने चीख दबी आवाज़ में निकाली—"ओह्ह... आह बेटा... झड़ रही... रस बह रहा!" चूत सिकुड़ गई, गर्म रस उछला—रवि ने जीभ से चाट लिया, गांड पर लार चमक रही थी, चमचमाती। दोनों हाँफते हुए बेड पर गिर पड़े, पसीने से भीगे, लेकिन रामा की मुस्कान में वो तृप्ति थी—"बेटा... तेरी जीभ... जादू है, हर बार नया नशा!" ऊपर छत से सिसकारियाँ आ रही थीं—उमेश-खुशबू का रोमांस, हवा में घुला हुआ।

ऊपर चाँदनी रात में उमेश और खुशबू लेटे हुए थे, बॉडी चिपकी हुई—चुम्मा गहरा था, जीभें लिपटीं, लार की मीठी आदान-प्रदान हो रहा था । चाँद की रोशनी उनकी स्किन पर चाँदी-सी चमक बिखेर रही थी, हवा ठंडी लेकिन बॉडी गर्म। "उम्म बिटिया... तेरी लार... इतनी मीठी, जैसे शहद हो !" उमेश का हाथ स्कर्ट के अंदर सरक गया, चूत सहलाने लगा—उँगलियाँ नमी महसूस कर रही थीं, धीरे-धीरे रगड़ते हुए। खुशबू सिसकी भर उठी—"पापा... नीचे रवि-मम्मी की आवाज़ें... सुनाई दे रही हैं ना? लेकिन आप पुरानी बातें बताओ .. रोशनी की चुदाई के बाद क्या हुआ था?" उमेश हँसा, लंड को उसके जांघ पर दबवाया—कठोरता महसूस करवाते हुए। "हाँ साली... अगली रात... माँ मालती के रूम में घुस गया। वो अनजान सो रही थी, लेकिन मेरी हवस... हद पार कर गई। सुन, वो पागलपन!" —चूचियाँ मसलते हुए, सिसकारियाँ आपस में मिलतीं, लेकिन फ्लैशबैक की यादें आग भड़का रही थीं, सांसें और तेज़ हो गयी ।

**फ्लैशबैक: 30 साल पहले... **

रात गहरा चुकी थी, गाँव की गलियाँ सूनी—बिजली का नामोनिशान न था, सिर्फ चाँद की सफेद रोशनी खिड़कियों से झाँक रही थी, धूल भरी ज़मीन पर छायाएँ नाच रही थीं। रोशनी की चुदाई की यादें उमेश को बेचैन कर रही थीं—लंड सख्त हो चुका था, नींद की जगह हवस की जलन। माँ मालती का रूम... दरवाज़ा हल्का-सा खुला था, वो साड़ी लिपेटे सो रही थीं, अनजान बेटे की भूख से। उमेश चुपके से घुसा, हृदय धक्-धक् कर रहा था, पसीना माथे पर चमक रहा—रात की ठंडक में भी बॉडी गर्म थी । "माँ रंडी... तेरी बॉडी... आज सूंघूँगा, करीब से!" बेड के पास घुटनों पर बैठा, नाक लगाई साड़ी पर—कमर के पास, वो महक... साबुन की हल्की खुशबू पसीने से मिली, चूत की गर्माहट दूर से महसूस हो रही। "उफ्फ माँ... तेरी साड़ी... चूत की महक चिपकी हुई, जैसे नशा!" सांसें गहरी लीं, हाथ पैंट में सरका दिया—लंड पकड़ा, धीरे-धीरे हिलाने लगा, नसें फूल रही थीं।

माँ करवट बदल रही थीं, साड़ी हल्के से सरक गई—ब्लाउज ऊपर खिसक गया, चूचियाँ आधी नंगी, भारी गोले लटकते हुए, चाँदनी में सफेद चमकते। निप्पल्स काले, हल्के सख्त, जैसे ठंड से उभरे हों। उमेश की सांस थम गई—"माँ... तेरी चूचियाँ... दूध भरी लग रही, चूसूँ तो क्या हो!" नाक लगाई ब्लाउज पर, सूंघा—दूध जैसी गर्माहट, ममता की वो पुरानी खुशबू। "आह माँ साली... तेरी महक... पागल कर रही, सिर घुमा रही!" लंड तेज़ हिलाया, सिसकी दबी आवाज़ में निकली, हाथ काँप रहा।

माँ सो रही थीं, कोई सिसकारी न, लेकिन बॉडी गर्म लग रही—साड़ी जांघों पर और सरक गई, चूत की झलक मिली... काले बाल घने, होंठ फूले हुए, हल्की नमी चमक रही। उमेश पागल हो गया—नाक चूत के पास लाई, जोर से सूंघा—"उम्म... माँ की चूत... रस वाली, गर्म, वो नमकीन गंध!" जीभ बाहर आई, लेकिन रुका—सिर्फ सूंघा, लंड हिलाया और तेज़। "साली माँ... तेरी चूत झाड़ी में देखी थी, अब सूंघ रहा हूँ... एक दिन फाड़ दूँगा!" हाथ की स्पीड बढ़ गई, वीर्य आने को था—माँ के सामने, साड़ी पर निशाना साधा। "झड़ रहा माँ... ले बेटे का रस, गर्म!" लंड फूला, गोला-गोला छूटा—गर्म, चिपचिपा वीर्य साड़ी पर गिरा, कमर पर फैला, ब्लाउज के किनारे पर चढ़ गया। कुछ टपका चूचियों की दरार में, चमकदार धब्बा बन गया। उमेश हाँफा, चेहरा लाल, पसीना टपकता—"माँ... तेरा रस मिक्स हो गया...!" माँ हल्के से सिहरीं, लेकिन नींद में डूबी रहीं—साड़ी गीली, सुबह देखेंगी तो सोचेंगी पसीना ही होगा, शक न करेंगी। उमेश चुपके से बाहर निकला, लेकिन वो नशा चढ़ चुका था—रोज़ का व्यसन, हवस की जड़ें गहरी हो रही थी ।

उमेश ने आँखें खोलीं, खुशबू को गहरा चूमा—"फिर क्या हुआ पापा ... माँ की साड़ी पर वीर्य छोड़ आये ..." नीचे रवि-रामा हाँफ रहे थे
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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