छत पर चाँदनी की चादर बिखरी हुई थी, लेकिन उमेश और खुशबू की वो जलती आग ठंडी होने का नाम न ले रही थी —लंड चूत की गहराइयों में गहरा धँसा हुआ था, धीमे-धीमे धक्कों से लय बना रहे, जैसे दिल की धड़कनें आपस में बंधी हों। लेकिन बातें... वो रुकने का नाम ही न ले रही। खुशबू ने गहरी सिसकी ली, अपनी उँगलियाँ उमेश के निप्पल्स पर रगड़ते हुए, आँखों में वो भूखी चमक लिए—"पापा... दीदी का वो मुँह चुदाई... उफ्फ, वीर्य से सना चेहरा, लार और रस की गर्माहट! लेकिन अगला... माँ की पैंटी चोरी के बाद की वो रातें? " उमेश की साँसें भारी हो गईं, वह खुशबू की कमर को कसकर पकड़ते हुए एक जोरदार धक्का मारा, चूत की दीवारें सिहर उठीं—"हाँ बिटिया... अगला दिन... वो पागलपन की दहलीज, जहाँ हवस ने सब कुछ बदल दिया। माँ की नंगी बॉडी की वो चुराई झलक... फिर रोशनी को खेतों में बुलाया। सुन साली... पहले फुल चुदाई...!" खुशबू की चूत सिकुड़ गई, गर्म रस की लहर बह निकली, उसके होंठों पर एक कामुक मुस्कान तैर गई—"पापा... बताओ न... माँ हमेशा अनजान रही न?" उमेश ने झुककर चूचियों को मुँह में लिया, निप्पल्स को जीभ से घुमाते हुए चूसा, दाँतों से हल्का काटा—"हाँ रंडी बिटिया... माँ को अभी तक एक धागा भी न पता चला था । लेकिन वो दिन... हवस की आग लग गई, जो कभी बुझी ही न!"
**फ्लैशबैक: 30 साल पहले...**
सुबह की सुनहरी धूप गाँव की मिट्टी पर सरक रही थी—खेतों का नया दिन शुरू हो चुका था, लेकिन उमेश का मन एक तूफान सा बेचैन। रात भर रोशनी का वो मुँह चुदाई का नशा घूमता रहा था —वीर्य से चिपचिपा चेहरा, लार की बूंदें गालों पर, लेकिन वो भूख... वो तो और भड़क गई थी, जैसे जंगल की आग। माँ मालती देवी आँगन में नहाने लगीं—साड़ी धीरे-धीरे उतारी, पेटीकोट भी खींचा नीचे, और नंगी बॉडी लालटेन की आखिरी मद्धम झिलमिल में चमक उठी। 46 साल की वो औरत, लेकिन जवानी की तरह ताज़ा और रसीली—चूचियाँ भारी-भरकम, थोड़ी लटकती हुईं लेकिन सख्त और उभरी हुईं, निप्पल्स काले-भूरे, जैसे कटे आम के बीज, हवा में सिहरते। कमर पतली लेकिन मांसल, और गांड... उफ्फ, दो बड़े-बड़े गोल गोले, नरम मांस से लबालब, हर हलचल पर हिलते-डुलते। माँ ने बालों पर ठंडा पानी उँचा किया, साबुन की झाग मलने लगीं—हाथ चूचियों पर फेरा, गोले उछल पड़े, पानी की बूंदें निप्पल्स से सरकती हुईं नीचे, सपाट पेट पर, फिर चूत की उस गहरी दरार में समा गईं। चूत... काले घने बालों से आधी ढकी, लेकिन होंठ फूले हुए, गुलाबी चमक के साथ, जैसे कोई रहस्यमयी फूल। माँ ने कमर मटकाई, गांड थोड़ी ऊपर की—पानी की बूंदें दरार से टपकतीं, छोटा छेद चमकता हुआ, नम। "उफ्फ... सुबह की ये ताज़गी... आह!" माँ की सिसकियाँ हल्की-हल्की, अनजान कि बेटा छत की दरार से झाँक रहा, उसकी हर हरकत को निगलता हुआ।
उमेश का पूरा शरीर जल उठा—लंड पैंट में फड़कने लगा, सख्त होकर इतना कि दर्द होने लगा, नसें उभर आईं। "माँ रंडी... तेरी चूचियाँ... इतनी भारी, दूध से लबालब! गांड... उफ्फ, फाड़ दूँगा चोदते हुए, चूत चाटूँगा रस तक!" मन में चीखें उमड़ पड़ीं, हाथ पैंट में सरकाया, लंड को कसकर पकड़ा—जोर-जोर से हिलाने लगा, लेकिन आग बुझने का नाम न ले। रुका, साँसें संभाली—नीचे उतरा चुपके से, आँगन के किनारे। रोशनी नज़र आई—सलवार कमीज में मटकती हुई, आँगन के पास। आँखों से इशारा किया, हाथ का इशारा किया —तेज़, —"खेतों में आ... अभी, जल्दी!" रोशनी का चेहरा पीला पड़ गया, राज़ की जंजीर याद आ गई, सिर हिला दिया। माँ अभी भी नहा रही, अनजान—साबुन चूत पर मल रही, उँगलियाँ दरार में सरकतीं, सिसकारियाँ दबी हुईं, जैसे कोई गुप्त सुख। उमेश दौड़ा खेतों की ओर, रोशनी पीछे-पीछे, दिल धड़कते।
खेतों की मेड़ पर पहुँचे—झाड़ियाँ घनी और ऊँची, छिपने को परफेक्ट गोपनीयता, सूरज ऊपर चढ़ आया था लेकिन मन का अंधेरा और गहरा। उमेश ने रोशनी को ज़मीन पर पटक दिया, सलवार ऊपर सरका दी एक झटके में—"साली रंडी... कल तेरी मुँह चुदाई की थी , आज फुल चुदाई होंगी ! माँ की चूचियाँ देखीं नंगी, तेरी चूत फाड़ूँगा उसी आग से!" रोशनी काँप गई, आँखों में डर लेकिन बॉडी में वो अजीब सी गर्मी—"भैया... डर लग रहा... कोई देख लेगा तो?" लेकिन उमेश हवस का भूत था—हाथ सलवार के अंदर घुसेड़ा, चूत पर उँगली रगड़ी, गीली मिली... रस की चिपचिपाहट। "उम्म साली... चूत तो गीली हो रही तेरी कुतिया? झुका, होंठों पर होंठ लगा दिए —जीभ अंदर धकेली, लिपटा लिया। रोशनी सिहर उठी, लेकिन जवाब दे दिया—अपनी जीभ लपेट दी, लारें मिक्स हो गईं, मीठी और नमकीन। "भैया... उम्म... तेरी जीभ... चूत तक सिहरन पहुँचा रही!" चुम्बन लंबा खिंचा, पूरे पाँच मिनट—होंठ काटे हल्के, गर्दन पर चूमा, कान में फुसफुसाया—"मेरी रण्डी बहन ... तेरी बॉडी... माँ जैसी गर्म, रसीली है !" रोशनी इठलाई, हाथ उमेश के लंड पर दबा दिया, महसूस किया वो सख्ती।
उमेश ने सलवार पूरी खींच ली—रोशनी नीचे से नंगी, जांघें फैला दीं, हवा में सिहरन। "अब चाटूँगा साली... तेरी चूत और गांड, रस तक चूस लूँगा!" झुका, जीभ चूत के होंठों पर लगाई—चाटा लंबा, क्लिट पर घुमाई धीरे-धीरे। "उफ्फ साली .. तेरी चूत... इतनी मीठी, रस से भरी हुई है !" जीभ अंदर धकेली, चपचप चूसने लगा—रस निगला गटक-गटक, बालों को जीभ से खींचा। रोशनी की चीखें दबीं लेकिन गहरी—"आह भैया... जीभ... चूत फाड़ रही अंदर से! हाय... चाटो जोर से, निगलो सब!" कमर ऊपर उठाई, चूत दबा दी उमेश के मुँह पर, रस की बौछार हो गयी । उमेश पागल हो गया—जीभ तेज़ चलाई, क्लिट को हल्का काटा दाँतों से। "साली... झड़ जा रंडी... भैया का सुबह का नाश्ता बन जा!" रोशनी काँप उठी, रस की लहर बह निकली—उमेश ने चेहरा गीला होने दिया, सब चाट लिया। फिर पलटा, रोशनी को उल्टा किया—गांड ऊपर, गोल और मांसल। "अब तेरी गांड रंडी... छेद चाटूँगा, चखूँगा!" जीभ दरार में सरकाई—स्लर्प की आवाज़, पसीने का नमकीन स्वाद चूसा। "उम्म... गर्म, नमकीन! तेरी गांड... माँ की तरह मोटी, चुदने लायक!" रोशनी सिसकी भर रही—"भैया... दर्द हो रहा... लेकिन मजा आ रहा है ... जीभ अंदर धकेलो आह!" उमेश ने जीभ छेद में घुसाई, चाटा लंबा—पाँच मिनट, गांड गीली चमकदार कर दी। रोशनी फिर झड़ी, बॉडी कंपकंपाती, सिसकारियाँ हवा में।
लेकिन उमेश की भूख कहाँ मिटने वाली—लंड बाहर निकाला, मोटा और सख्त, नसें फूली हुईं, सिरा चमकता रस से। "अब असली चुदाई साली... तेरी कुंवारी चूत फाड़ूँगा, खून बहाऊँगा!" रोशनी घबरा गई, आँखें गोल—"भैया... धीरे से... पहली बार है न!" लेकिन उमेश ने जांघें और फैलाईं, लंड चूत पर रगड़ा—रस से चिकना हो गया। "ले रंडी ... भैया का लंड, तेरी माँ जैसी चूत के लिए!" धक्का!—जोरदार, आधा अंदर सरक गया। रोशनी चीखी ऊँची—"आह्ह्ह... दर्द! चूत फट गई भैया!" खून का हल्का धब्बा मिट्टी पर, लेकिन उमेश रुका न—दूसरा धक्का, जड़ तक धँसा। "उफ्फ साली... कितनी टाइट चूत... माँ की तरह गर्म, चिपचिपी!" धक्के शुरू हुए—धीमे-धीमे, फिर तेज़, पतत-पतत की गूँज, झाड़ियाँ हिलने लगीं। "ले साली .. चोद रहा है भैया! तेरी चूचियाँ... मसलूँगा बेदर्दी से !" हाथ कमीज के अंदर, चूचियाँ पकड़ीं—जोर से मसला, निप्पल्स मरोड़े, दर्द की लहर दौड़ आयी । रोशनी रोई आँसूओं से, लेकिन बॉडी ने साथ दिया—"ओह भैया... मोटा लंड... चूत भर दी पूरी! हाँ... चोदो अपनी रंडी बहन को, फाड़ दो!" कमर हिलाई, धक्कों का जवाब दिया।
उमेश ने पोजीशन बदली—रोशनी को घुमाया, डॉगी स्टाइल में, गांड ऊपर। "अब पीछे से साली... तेरी गांड देखकर चुदूँगा, थप्पड़ मारूँगा!" लंड फिर चूत में घुसेड़ा, धक्कों की बौछार—जोर-जोर से, गांड पर थप्पड़ चटाक-चटाक! लाल निशान उभर आए। "साली हरामी... तेरी गांड... कल किसी लड़के को दी थी? अब भैया फाड़ेगा, चोदेगा!" धक्के और तेज़, पसीना टपकता मिक्स रस के साथ, चूत से आवाज़ें चपचप आने लगी । रोशनी चीख रही थी —"हाय भैया... गांड जल रही थप्पड़ों से... लेकिन चूत... आग लगी! चोदो जोर से, अंदर तक !" उमेश ने बाल पकड़े, सिर पीछे खींचा—धक्के और गहरे, दस मिनट की जंग, बॉडी चिपक गईं, सिसकारियाँ आपस में घुलीं। फिर बदला—रोशनी को ऊपर बिठाया, काउगर्ल में। "उठ रंडी... खुद हिलाओ लंड पर, चूत गुलाओ!" रोशनी बैठी धीरे, ऊपर-नीचे होने लगी—चूत लंड को निगलती, चूचियाँ उछलतीं हवा में। "आह भैया... इतना गहरा... झड़ रही हूँ फिर!" उमेश नीचे से धक्के मारे, हाथ गांड पर—उँगली छेद में सरकाई। "ले साली... गांड भी कल चुदवाएगी, भैया का वादा रहा !" रोशनी तेज़ हिलाई, चूत सिकुड़ गई—झड़ी जोर से, रस बहा लंड पर गर्म लहर।
उमेश सह न सका, लंड फूल गया—"झड़ रहा हुँ साली ... ले मेरा वीर्य, भर लूँ तेरी चूत!" गर्म रस की बौछारें, चूत भर दी, बाहर टपकने लगा चिपचिपा। धक्के रुके न आखिरी तक, बॉडी थरथरा। रोशनी गिर पड़ी उसके सीने पर, हाँफती हुई—"भैया... पहली चुदाई... पागल कर दी, आग लगा दी!" उमेश ने चूमा गाल पर—"कल फिर आना... राज़ रखना ये सब वरना माँ को सब खोल दूँगा!" रोशनी मुस्कुराई हल्के, लेकिन आँखों में डर की छाया। माँ घर में अनजान, चूल्हे पर खाना बना रही—बेटे-बेटी की इस जंगली आग का सुराग तक न था।
उमेश ने आँखें खोलीं, खुशबू की चूत में फिर एक गहरा धक्का मारा, सिसकी उभरी—"फिर क्या हुआ पापा ... रोशनी की चुदाई रोज़ की आदत बनी।" खुशबू झड़ गई जोर से, नाखून उमेश की पीठ पर गाड़ते हुए—"पापा... दीदी की पहली चुदाई... उफ्फ, वो जोर... वो आग... कल्पना से परे!"