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अध्याय-१,( भाग-३ अंंतिम भाग)
वह यह भी सोच चुकी है कि यदि उसका बेटा सचमुच उसक साथ कौटुबिक व्यभिचार करने का इच्छुक हुआ तो परिणाम स्वरूप उसका अपना मुँह खोलने के साथ ही उस अपनी माँ क करारा थप्पड. का सामना करना पडेगा और जो निश्चित उसकी घर-निकासी तक भी जा सकता था।
अभिमन्यु- “मै तुम्हार साथ सेक्स नही करना चाहता मम्मी मगर?” काफी सोचने-विचारने के उपरान्त अभिमन्यु ने अपना अंतिम और निर्णायक फैसला सुना दिया। जिसे सुनकर वैशाली भी तत्काल अपनी मुंदी हुई आँख खोल देती है। उसकी प्रसन्नता का कोई पार नहीं था जब उसे उसके बेटे द्वारा सकारात्मक उत्तर की प्राप्ति हई।
लेकिन ज्यों ही उसकी नजर बेटे के चूतड़ के नीचे पूर्व के पड़ी अपनी कच्छी पर गई तो उसकी प्रसन्नता मानो हवा हो गई। उसकी अपनी आँखे मुदने के पश्चात अभिमन्यु ने उसकी कच्छी को गायब कर चुका था और अपने इस घृणित कार्य को उसने बहुत सफाई से अंजाम दिया था, जिसकी जरा सी भी भनक आख मूंदे लेटी वैशाली को नही हो पाई थी।
वैशाली- “मगर क्या? है…”
अपने नंगे बाए तलवे पर अपने जवान बेटे के पूर्ण विकसित कठोर लण्ड का घिसाव वैशाली को अजीब सी सनसनाहट से भरने लगा था पर उस घिसाव और उससे होती सनसनाहट को भूलाकर वह बेटे से उसके अधुरे उत्तर का स्पष्टीकरि माँगती है। अपनी तीन उगलियों से निरंतर तेजी से अपनी चुत को चोदती उस अत्यंत सुंदर माँ ने अपनी आँखे खोलने के उपरान्त भी अपनी अश्लील कार्यवाही को बंद नहीं किया था, अपितु अपने दाए निप्पल को भी वह लगातार बलपुरवक उमेठे जा रही थी।
अभिमन्यु- “मगर मे तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ, तुम्हे अपना सबसे करीबी दोस्त बनाना चाहता हुँ…” कहते हए अभिमन्यु वैशाली के बाए नंगे पैर की घुटनों तक मालिश करना शुरू कर देता है। उसकी जवान आँखे अपनी माँ को प्रत्यक्ष मुट्ठ मारने का लुफ्त उठा रही थी।
ऐसा आनंद तो उसे तब भी कभी नही आया था जब वह छुप-छुपकर उसे पुरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारते हुए देखता था। विपरीत लिंग के आकषण के अद्भुत प्रभाव ने उसे नय-नवेले मर्द को यहां तक गिरा दिया था की वैशाली को नग्ने देखने का वह कोई मौका अपने हाथ से जाने नहीं िदेता था। फिर चाहे उसकी माँ बाथरूम में नहाए या जब तब अपने पति से चुदवाए।
वैशाली- “क्या मे तुम्हे माँ रूप मे अच्छी नही लगती? जो तुम मुझ बुढ़ी को अपना सबसे खास दोस्त बनाना चाहते हो?” बेटे के बलिष्ठ हाथों की मालिश से हौले-हौले खुद को चरम पर पहुचते महसुस करके वैशाली ने पूछा- “इश्श्श्श… यह क्या कर रह हो अभिमन्यु? उफफ्फ… माँ को, माँ को दर्द हो रहा है बेटा…” हस्तमैथुन और बेटे की मालिश से उत्पन्न होती उत्तेजना को पीड़ा का नाटकीय रूप देती वह कामुक अधेड़ माँ जोर से भसभसयाते हुए बोली।
अभिमन्यु- “नाटक मत करो मोम, मुझे पता है कि तुम्हे कोई दर्द वर्ड नहीं हो रहा। खैर, हम अगर बेस्ट-फ्रेंड बनते हैं, तो उससे हमै बहुत फायदा होंगा। एकदूसरे से हमारी शर्म खत्म हो जाएगी, अपनी बाडी की जरूरतों को हमें छुप-छुपाकर पुरा नही करना पडे़गा। हम दोनों अडल्ट है, तुम भी जानती होगी कि मै भी हस्तमैथुन करता हूँ। तुम जानती हो ना माँ?”
वैशाली के बाँए पैर को दाँए से दूर खीचकर अभिमन्यु ने उनके बीच एक निश्चित चौड़ाई उत्पन्न करते हए पुछा। उसकी इस शरमनाक हरकत के नतीजतन उसकी माँ की साड़ी उसके पेटीकोट समेत उसकी ढकी हई मासल जाघों के काफी ऊपर तक पँहुच जाती है, इतनी ऊपर की अब वह अपनी माँ के दाँए हाथ की तीव्रता से दहलती हई कलाई को साफ देख सकता था।
वैशाली मन में- “रुक जा वैशाली, यही रुक जा। अब भी कछ नही बिगड़ेगा। तेरे बेटे के विषय मे तु पहले से ही वह सब कुछ जानती है, जिसे जानने का स्वांग रचकर बस तु अपनी शारीरिक काम इच्छा की प्राप्ति करने का उद्डित प्रयास कर रही है…” सहसा वैशाली के कानों मे उसके अंतरमन की यह नैतिक आवाज गुंजने लगी।
मगर अब उस आवाज से मोल-भाव करने का वक्त बीत चुका था। तेजी से अपनी चुत के भीतर अपनी उगलियाँ दहलाती अपनी पति द्वारा तिरस्कृत वह विवाहित माँ अपने अंतर्मन को यह सोचकर फौरन झुठला देती है कि उसके बेटे से उसकी पुछताछ अभी पूरी नही हो पाई है।
वैशाली- “उन्हे… तुम एक निहायत बेशर्म और गंदे. लड़के हो अभिमन्यु, जब तुम जानते हो कि तम्हारी माँ तम्हारे रंग-रंग से वाकिफ है, फिर भी तुम यदि उसके ही मुँह से सुनना चाहते हो तो सुनो। हा, मुझे तुम्हारी मचट्ठ मारने की घिनौनी हरकत का पता है। ओह्ह… उन्हे… और यह भी पता है कि मेरा बतमीज बेटा कभी-कभार अपनी माँ को सोचकर भी मुट्ठ मारा करता है…” अब वैशाली नहीं मात्र उसकी उत्तेजना बोल रही थी।
सिसकिया लेते हुए वह पहले से कही ज्यादा तीव्रता से अपनी उगलियाँ अपनी निरंतर रस उगलती चूत के अंदर बाहर करने लगी थी, जिसकी संकीण गहराई में एकाएक अधिक से अधिक गाढ़ा कामरस उमड़ने लगा था। उसके निप्पल बुरी तरह से ऐठ गए थे और साथ ही उसकी गाण्ड के छेद मे अविश्वसनीय सिहरन की लबी-लंबी लहरें दौड़ना शरू हो गई थी, कुल मिलाकर वह स्खलन से पुर्व महसूस होने वाली आंनदमयी तरगों मे पूर्णरूप से खो चुकी थी।
अभिमन्यु- “हाय मम्मी। तुम मेरे, अपने इकलौते बेटे के बारे में इतना गलत सोचती होगी, मुझे बिल्कुल नही पता था? लेकिन कोई बात नहीं, अब हम बेस्ट-फ्रेंड जो बन गए है। इसके अलावा मुझे लगता है कि हमें अपनी नग्नता को भी कोई खास वैल्यु नही देनी चाहिए। बल्कि मैं तो कहुँगा कि अगर हमारे बीच अच्छी अडरस्टैड़िग है तो हम अपने मनमाने ढंग से घर में रह सकते हैं…” अपनी माँ की कामकु सिसकियों से भड़के जवान अभिमन्यु ने बखौफ उसे अपनी उम्र मुताबिक ही अपनी कामलोलुप इच्छाएँ बताना जारी रखा।
फिलहाल तो बस उसे वैशाली से गहरी दोस्ती ननभान की चाह थी, एक इतनी गहराई युक्त दोस्ती, जिससे वह दोनों एकदूसरे से अपना कोई राज ना छिपा सके, और उनके मर्यादित रिश्ते मे हर संभव खुलापन आ सके। वह उसके साथ कोई जबदस्ती नही करना चाहता था। वह चाहता था कि उसकी माँ खुद उसे आमंत्रित करे, उसे ललचाए और अगर वह स्वयं ऐसा करती है तब वह उसकी मर्ज़ी से उसे जरूर चोदेगा।
वैशाली- “तो क्या? तो क्या नग्नता से तुम्हारा यह मतलब है कि घर पर मै तुम्हारे सामने नंगी रहा करू? तुम्हारी अपनी सगी माँ? ओह्ह… अभिमन्यु। तुम सच में एक घटिया सोच रखने वाल लड़के हो, उन्हे… उन्हे… अपनी मोम आह्ह… अपनी मोम को घर में नंगी होकर काम करते देखकर तुम्हे शर्म नही आएगी बेशर्म लड़के? उफफ्फ… मै घर मे नंगी घुमू, जबकी मेरे साथ मेरा अपना जवान बेटा भी घर मे मौज करता हो। आह्ह… अभिमन्यु आह्ह… क्या बहुत चाहत है तुम्हारी?”
वैशाली स्खलन के बहुत करीब पहुचते हुए फुफकारी। एक तो बेटे की उपस्थिति और ऊपर से उसकी वर्जित और निषिद्ध चाहतों ने उसे अब तक रही संस्कारी माँ को से निलज्ज बना दिया था। अभिमन्यु की सुर्ख लाल आखों में खुद अपनी आखों के समान तैरती वासना देखकर बिस्तर पर लेटी खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारती वह शिष्ट माँ घबराहटवश अपना बाँया हाथ अपने कड़क निप्पल से हटाकर तुरंत उसे अपने बेटे की ओर बढ़ा देती है।
वैशाली- “ओह्ह… अभिमन्यु, जब तुम्हारी बेशर्म माँ को तुम्हारे सामने यु खुलेआम मुट्ठ मारने में शर्म महसुस नहीं हो रही है, तो क्या पता कल से वह सचमुच ही घर मे नंगी ना घुमने लग जाए और क्या पता की आग वह तमसे च… आह्ह… आह्ह… आह्ह…” अभिमन्यु न ज्यों ही अपनी माँ के बाए हाथ को थामा, उसकी आँखों मे देखते हुए वह तीव्रता से झडं पड़ी।
वैशाली- “उफफ्फ… अभिमन्यु उफफ्फ… आह्ह… आह्ह… अभिमन्यु मैं गई…” और पुरा बेडरूम वैशाली की सीत्कारों से गुंज उठा। अभिमन्यु- “कोई बात नहीं मोम, कोई बात नही। मै हुँ ना यहाँ, तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही है घबराओ मत…”
कहते हुए अभिमन्यु अपनी माँ का काँपता बाँया हाथ अपने दोनों पजों से सहलाने लगता है- “फिकर मत करो, मै तुमसे सेक्स नही करना चाहता। आह्ह… नेवर मोम, और तुम कोई बेशर्म नही हो, बेशर्म तो मै हूँ। देखो जिसने तुम्हे रुला दिया, अपनी बेस्ट-फ्रेंड को रुला दिया…” कुछ मनभावन स्खलन और कुछ आतिरिकत लज्जा के प्रभाव से वैशाली की आँखे बहने लगी थी।
जिन्हे देखकर अभिमन्यु भी लगभग रोने सा लगता है। भले ही वह जवान था, कई बार चुदाई कर चुका था, मगर जिस तरह के अद्भुत, अकल्पनीय स्खलन को वह अभी तत्काल में देख रहा था, मानो उसका सम्पूर्ण शरीर एक अनजान भय से थरथरा उठा था।
उसके लण्ड की कठोरता सन्न सी हो चुकी थी, माथे से बहकर पशीना उसके गालों से होता हुआ उसकी शर्ट को भिगोने लगा था। सख्लन के दौरान वैशाली की पीठ एकाएक बिस्तर से ऊपर को उठ गई। उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उमड आये थे, चीखते हुए वह रोने लगी थी। उसके शारीरिक कंपन की तो कोई सीमा ही नही रही थी, और जिसने प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देखकर सहसा अभिमन्यु के जबड़े जोरों से भीच गए, जैसे अपनी माँ के स्खलन के आग्नि को वह दर्द स्वरूप स्वयं महसूस करने लगा था।
कुछ देर तक हाँफते रहने के उपरान्त वैशाली का ऐठा हआ शरीर स्थिर हो गया, और ज्यों ही वह शांत हई, अभिमन्यु फौरन उसकी साड़ी को नीच खीचकर उसके घुटनों तक ढक देता है। ताकी स्खलन के साथ बाहर आए अपने कामरस को देखकर पुनः उसकी माँ को लज्जा का सामना नही करना पड़े। वैशाली ने जब यह देखा तो उसकी नम आँखें उसके बेटे की नम आँखों से जा टकराईं। और यही वह क्षण था जब क्रोधित या शर्मिंदा होने की बजाए वह अभिभमन्यु को अपने बाए हाथ से अपनी ओर खीचते हुए उसे अपने सीने से चिपका लेती है।
वह यह भी सोच चुकी है कि यदि उसका बेटा सचमुच उसक साथ कौटुबिक व्यभिचार करने का इच्छुक हुआ तो परिणाम स्वरूप उसका अपना मुँह खोलने के साथ ही उस अपनी माँ क करारा थप्पड. का सामना करना पडेगा और जो निश्चित उसकी घर-निकासी तक भी जा सकता था।
अभिमन्यु- “मै तुम्हार साथ सेक्स नही करना चाहता मम्मी मगर?” काफी सोचने-विचारने के उपरान्त अभिमन्यु ने अपना अंतिम और निर्णायक फैसला सुना दिया। जिसे सुनकर वैशाली भी तत्काल अपनी मुंदी हुई आँख खोल देती है। उसकी प्रसन्नता का कोई पार नहीं था जब उसे उसके बेटे द्वारा सकारात्मक उत्तर की प्राप्ति हई।
लेकिन ज्यों ही उसकी नजर बेटे के चूतड़ के नीचे पूर्व के पड़ी अपनी कच्छी पर गई तो उसकी प्रसन्नता मानो हवा हो गई। उसकी अपनी आँखे मुदने के पश्चात अभिमन्यु ने उसकी कच्छी को गायब कर चुका था और अपने इस घृणित कार्य को उसने बहुत सफाई से अंजाम दिया था, जिसकी जरा सी भी भनक आख मूंदे लेटी वैशाली को नही हो पाई थी।
वैशाली- “मगर क्या? है…”
अपने नंगे बाए तलवे पर अपने जवान बेटे के पूर्ण विकसित कठोर लण्ड का घिसाव वैशाली को अजीब सी सनसनाहट से भरने लगा था पर उस घिसाव और उससे होती सनसनाहट को भूलाकर वह बेटे से उसके अधुरे उत्तर का स्पष्टीकरि माँगती है। अपनी तीन उगलियों से निरंतर तेजी से अपनी चुत को चोदती उस अत्यंत सुंदर माँ ने अपनी आँखे खोलने के उपरान्त भी अपनी अश्लील कार्यवाही को बंद नहीं किया था, अपितु अपने दाए निप्पल को भी वह लगातार बलपुरवक उमेठे जा रही थी।
अभिमन्यु- “मगर मे तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ, तुम्हे अपना सबसे करीबी दोस्त बनाना चाहता हुँ…” कहते हए अभिमन्यु वैशाली के बाए नंगे पैर की घुटनों तक मालिश करना शुरू कर देता है। उसकी जवान आँखे अपनी माँ को प्रत्यक्ष मुट्ठ मारने का लुफ्त उठा रही थी।
ऐसा आनंद तो उसे तब भी कभी नही आया था जब वह छुप-छुपकर उसे पुरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारते हुए देखता था। विपरीत लिंग के आकषण के अद्भुत प्रभाव ने उसे नय-नवेले मर्द को यहां तक गिरा दिया था की वैशाली को नग्ने देखने का वह कोई मौका अपने हाथ से जाने नहीं िदेता था। फिर चाहे उसकी माँ बाथरूम में नहाए या जब तब अपने पति से चुदवाए।
वैशाली- “क्या मे तुम्हे माँ रूप मे अच्छी नही लगती? जो तुम मुझ बुढ़ी को अपना सबसे खास दोस्त बनाना चाहते हो?” बेटे के बलिष्ठ हाथों की मालिश से हौले-हौले खुद को चरम पर पहुचते महसुस करके वैशाली ने पूछा- “इश्श्श्श… यह क्या कर रह हो अभिमन्यु? उफफ्फ… माँ को, माँ को दर्द हो रहा है बेटा…” हस्तमैथुन और बेटे की मालिश से उत्पन्न होती उत्तेजना को पीड़ा का नाटकीय रूप देती वह कामुक अधेड़ माँ जोर से भसभसयाते हुए बोली।
अभिमन्यु- “नाटक मत करो मोम, मुझे पता है कि तुम्हे कोई दर्द वर्ड नहीं हो रहा। खैर, हम अगर बेस्ट-फ्रेंड बनते हैं, तो उससे हमै बहुत फायदा होंगा। एकदूसरे से हमारी शर्म खत्म हो जाएगी, अपनी बाडी की जरूरतों को हमें छुप-छुपाकर पुरा नही करना पडे़गा। हम दोनों अडल्ट है, तुम भी जानती होगी कि मै भी हस्तमैथुन करता हूँ। तुम जानती हो ना माँ?”
वैशाली के बाँए पैर को दाँए से दूर खीचकर अभिमन्यु ने उनके बीच एक निश्चित चौड़ाई उत्पन्न करते हए पुछा। उसकी इस शरमनाक हरकत के नतीजतन उसकी माँ की साड़ी उसके पेटीकोट समेत उसकी ढकी हई मासल जाघों के काफी ऊपर तक पँहुच जाती है, इतनी ऊपर की अब वह अपनी माँ के दाँए हाथ की तीव्रता से दहलती हई कलाई को साफ देख सकता था।
वैशाली मन में- “रुक जा वैशाली, यही रुक जा। अब भी कछ नही बिगड़ेगा। तेरे बेटे के विषय मे तु पहले से ही वह सब कुछ जानती है, जिसे जानने का स्वांग रचकर बस तु अपनी शारीरिक काम इच्छा की प्राप्ति करने का उद्डित प्रयास कर रही है…” सहसा वैशाली के कानों मे उसके अंतरमन की यह नैतिक आवाज गुंजने लगी।
मगर अब उस आवाज से मोल-भाव करने का वक्त बीत चुका था। तेजी से अपनी चुत के भीतर अपनी उगलियाँ दहलाती अपनी पति द्वारा तिरस्कृत वह विवाहित माँ अपने अंतर्मन को यह सोचकर फौरन झुठला देती है कि उसके बेटे से उसकी पुछताछ अभी पूरी नही हो पाई है।
वैशाली- “उन्हे… तुम एक निहायत बेशर्म और गंदे. लड़के हो अभिमन्यु, जब तुम जानते हो कि तम्हारी माँ तम्हारे रंग-रंग से वाकिफ है, फिर भी तुम यदि उसके ही मुँह से सुनना चाहते हो तो सुनो। हा, मुझे तुम्हारी मचट्ठ मारने की घिनौनी हरकत का पता है। ओह्ह… उन्हे… और यह भी पता है कि मेरा बतमीज बेटा कभी-कभार अपनी माँ को सोचकर भी मुट्ठ मारा करता है…” अब वैशाली नहीं मात्र उसकी उत्तेजना बोल रही थी।
सिसकिया लेते हुए वह पहले से कही ज्यादा तीव्रता से अपनी उगलियाँ अपनी निरंतर रस उगलती चूत के अंदर बाहर करने लगी थी, जिसकी संकीण गहराई में एकाएक अधिक से अधिक गाढ़ा कामरस उमड़ने लगा था। उसके निप्पल बुरी तरह से ऐठ गए थे और साथ ही उसकी गाण्ड के छेद मे अविश्वसनीय सिहरन की लबी-लंबी लहरें दौड़ना शरू हो गई थी, कुल मिलाकर वह स्खलन से पुर्व महसूस होने वाली आंनदमयी तरगों मे पूर्णरूप से खो चुकी थी।
अभिमन्यु- “हाय मम्मी। तुम मेरे, अपने इकलौते बेटे के बारे में इतना गलत सोचती होगी, मुझे बिल्कुल नही पता था? लेकिन कोई बात नहीं, अब हम बेस्ट-फ्रेंड जो बन गए है। इसके अलावा मुझे लगता है कि हमें अपनी नग्नता को भी कोई खास वैल्यु नही देनी चाहिए। बल्कि मैं तो कहुँगा कि अगर हमारे बीच अच्छी अडरस्टैड़िग है तो हम अपने मनमाने ढंग से घर में रह सकते हैं…” अपनी माँ की कामकु सिसकियों से भड़के जवान अभिमन्यु ने बखौफ उसे अपनी उम्र मुताबिक ही अपनी कामलोलुप इच्छाएँ बताना जारी रखा।
फिलहाल तो बस उसे वैशाली से गहरी दोस्ती ननभान की चाह थी, एक इतनी गहराई युक्त दोस्ती, जिससे वह दोनों एकदूसरे से अपना कोई राज ना छिपा सके, और उनके मर्यादित रिश्ते मे हर संभव खुलापन आ सके। वह उसके साथ कोई जबदस्ती नही करना चाहता था। वह चाहता था कि उसकी माँ खुद उसे आमंत्रित करे, उसे ललचाए और अगर वह स्वयं ऐसा करती है तब वह उसकी मर्ज़ी से उसे जरूर चोदेगा।
वैशाली- “तो क्या? तो क्या नग्नता से तुम्हारा यह मतलब है कि घर पर मै तुम्हारे सामने नंगी रहा करू? तुम्हारी अपनी सगी माँ? ओह्ह… अभिमन्यु। तुम सच में एक घटिया सोच रखने वाल लड़के हो, उन्हे… उन्हे… अपनी मोम आह्ह… अपनी मोम को घर में नंगी होकर काम करते देखकर तुम्हे शर्म नही आएगी बेशर्म लड़के? उफफ्फ… मै घर मे नंगी घुमू, जबकी मेरे साथ मेरा अपना जवान बेटा भी घर मे मौज करता हो। आह्ह… अभिमन्यु आह्ह… क्या बहुत चाहत है तुम्हारी?”
वैशाली स्खलन के बहुत करीब पहुचते हुए फुफकारी। एक तो बेटे की उपस्थिति और ऊपर से उसकी वर्जित और निषिद्ध चाहतों ने उसे अब तक रही संस्कारी माँ को से निलज्ज बना दिया था। अभिमन्यु की सुर्ख लाल आखों में खुद अपनी आखों के समान तैरती वासना देखकर बिस्तर पर लेटी खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारती वह शिष्ट माँ घबराहटवश अपना बाँया हाथ अपने कड़क निप्पल से हटाकर तुरंत उसे अपने बेटे की ओर बढ़ा देती है।
वैशाली- “ओह्ह… अभिमन्यु, जब तुम्हारी बेशर्म माँ को तुम्हारे सामने यु खुलेआम मुट्ठ मारने में शर्म महसुस नहीं हो रही है, तो क्या पता कल से वह सचमुच ही घर मे नंगी ना घुमने लग जाए और क्या पता की आग वह तमसे च… आह्ह… आह्ह… आह्ह…” अभिमन्यु न ज्यों ही अपनी माँ के बाए हाथ को थामा, उसकी आँखों मे देखते हुए वह तीव्रता से झडं पड़ी।
वैशाली- “उफफ्फ… अभिमन्यु उफफ्फ… आह्ह… आह्ह… अभिमन्यु मैं गई…” और पुरा बेडरूम वैशाली की सीत्कारों से गुंज उठा। अभिमन्यु- “कोई बात नहीं मोम, कोई बात नही। मै हुँ ना यहाँ, तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही है घबराओ मत…”
कहते हुए अभिमन्यु अपनी माँ का काँपता बाँया हाथ अपने दोनों पजों से सहलाने लगता है- “फिकर मत करो, मै तुमसे सेक्स नही करना चाहता। आह्ह… नेवर मोम, और तुम कोई बेशर्म नही हो, बेशर्म तो मै हूँ। देखो जिसने तुम्हे रुला दिया, अपनी बेस्ट-फ्रेंड को रुला दिया…” कुछ मनभावन स्खलन और कुछ आतिरिकत लज्जा के प्रभाव से वैशाली की आँखे बहने लगी थी।
जिन्हे देखकर अभिमन्यु भी लगभग रोने सा लगता है। भले ही वह जवान था, कई बार चुदाई कर चुका था, मगर जिस तरह के अद्भुत, अकल्पनीय स्खलन को वह अभी तत्काल में देख रहा था, मानो उसका सम्पूर्ण शरीर एक अनजान भय से थरथरा उठा था।
उसके लण्ड की कठोरता सन्न सी हो चुकी थी, माथे से बहकर पशीना उसके गालों से होता हुआ उसकी शर्ट को भिगोने लगा था। सख्लन के दौरान वैशाली की पीठ एकाएक बिस्तर से ऊपर को उठ गई। उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उमड आये थे, चीखते हुए वह रोने लगी थी। उसके शारीरिक कंपन की तो कोई सीमा ही नही रही थी, और जिसने प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देखकर सहसा अभिमन्यु के जबड़े जोरों से भीच गए, जैसे अपनी माँ के स्खलन के आग्नि को वह दर्द स्वरूप स्वयं महसूस करने लगा था।
कुछ देर तक हाँफते रहने के उपरान्त वैशाली का ऐठा हआ शरीर स्थिर हो गया, और ज्यों ही वह शांत हई, अभिमन्यु फौरन उसकी साड़ी को नीच खीचकर उसके घुटनों तक ढक देता है। ताकी स्खलन के साथ बाहर आए अपने कामरस को देखकर पुनः उसकी माँ को लज्जा का सामना नही करना पड़े। वैशाली ने जब यह देखा तो उसकी नम आँखें उसके बेटे की नम आँखों से जा टकराईं। और यही वह क्षण था जब क्रोधित या शर्मिंदा होने की बजाए वह अभिभमन्यु को अपने बाए हाथ से अपनी ओर खीचते हुए उसे अपने सीने से चिपका लेती है।
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