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Incest पापा कमाने मेंऔर मम्मी च ुदवाने में

Bhonpuxossip

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अध्याय-१,( भाग-३ अंंतिम भाग)

वह यह भी सोच चुकी है कि यदि उसका बेटा सचमुच उसक साथ कौटुबिक व्यभिचार करने का इच्छुक हुआ तो परिणाम स्वरूप उसका अपना मुँह खोलने के साथ ही उस अपनी माँ क करारा थप्पड. का सामना करना पडेगा और जो निश्चित उसकी घर-निकासी तक भी जा सकता था।

अभिमन्यु- “मै तुम्हार साथ सेक्स नही करना चाहता मम्मी मगर?” काफी सोचने-विचारने के उपरान्त अभिमन्यु ने अपना अंतिम और निर्णायक फैसला सुना दिया। जिसे सुनकर वैशाली भी तत्काल अपनी मुंदी हुई आँख खोल देती है। उसकी प्रसन्नता का कोई पार नहीं था जब उसे उसके बेटे द्वारा सकारात्मक उत्तर की प्राप्ति हई।


लेकिन ज्यों ही उसकी नजर बेटे के चूतड़ के नीचे पूर्व के पड़ी अपनी कच्छी पर गई तो उसकी प्रसन्नता मानो हवा हो गई। उसकी अपनी आँखे मुदने के पश्चात अभिमन्यु ने उसकी कच्छी को गायब कर चुका था और अपने इस घृणित कार्य को उसने बहुत सफाई से अंजाम दिया था, जिसकी जरा सी भी भनक आख मूंदे लेटी वैशाली को नही हो पाई थी।

वैशाली- “मगर क्या? है…”

अपने नंगे बाए तलवे पर अपने जवान बेटे के पूर्ण विकसित कठोर लण्ड का घिसाव वैशाली को अजीब सी सनसनाहट से भरने लगा था पर उस घिसाव और उससे होती सनसनाहट को भूलाकर वह बेटे से उसके अधुरे उत्तर का स्पष्टीकरि माँगती है। अपनी तीन उगलियों से निरंतर तेजी से अपनी चुत को चोदती उस अत्यंत सुंदर माँ ने अपनी आँखे खोलने के उपरान्त भी अपनी अश्लील कार्यवाही को बंद नहीं किया था, अपितु अपने दाए निप्पल को भी वह लगातार बलपुरवक उमेठे जा रही थी।

अभिमन्यु- “मगर मे तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ, तुम्हे अपना सबसे करीबी दोस्त बनाना चाहता हुँ…” कहते हए अभिमन्यु वैशाली के बाए नंगे पैर की घुटनों तक मालिश करना शुरू कर देता है। उसकी जवान आँखे अपनी माँ को प्रत्यक्ष मुट्ठ मारने का लुफ्त उठा रही थी।

ऐसा आनंद तो उसे तब भी कभी नही आया था जब वह छुप-छुपकर उसे पुरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारते हुए देखता था। विपरीत लिंग के आकषण के अद्भुत प्रभाव ने उसे नय-नवेले मर्द को यहां तक गिरा दिया था की वैशाली को नग्ने देखने का वह कोई मौका अपने हाथ से जाने नहीं िदेता था। फिर चाहे उसकी माँ बाथरूम में नहाए या जब तब अपने पति से चुदवाए।

वैशाली- “क्या मे तुम्हे माँ रूप मे अच्छी नही लगती? जो तुम मुझ बुढ़ी को अपना सबसे खास दोस्त बनाना चाहते हो?” बेटे के बलिष्ठ हाथों की मालिश से हौले-हौले खुद को चरम पर पहुचते महसुस करके वैशाली ने पूछा- “इश्श्श्श… यह क्या कर रह हो अभिमन्यु? उफफ्फ… माँ को, माँ को दर्द हो रहा है बेटा…” हस्तमैथुन और बेटे की मालिश से उत्पन्न होती उत्तेजना को पीड़ा का नाटकीय रूप देती वह कामुक अधेड़ माँ जोर से भसभसयाते हुए बोली।
अभिमन्यु- “नाटक मत करो मोम, मुझे पता है कि तुम्हे कोई दर्द वर्ड नहीं हो रहा। खैर, हम अगर बेस्ट-फ्रेंड बनते हैं, तो उससे हमै बहुत फायदा होंगा। एकदूसरे से हमारी शर्म खत्म हो जाएगी, अपनी बाडी की जरूरतों को हमें छुप-छुपाकर पुरा नही करना पडे़गा। हम दोनों अडल्ट है, तुम भी जानती होगी कि मै भी हस्तमैथुन करता हूँ। तुम जानती हो ना माँ?”


वैशाली के बाँए पैर को दाँए से दूर खीचकर अभिमन्यु ने उनके बीच एक निश्चित चौड़ाई उत्पन्न करते हए पुछा। उसकी इस शरमनाक हरकत के नतीजतन उसकी माँ की साड़ी उसके पेटीकोट समेत उसकी ढकी हई मासल जाघों के काफी ऊपर तक पँहुच जाती है, इतनी ऊपर की अब वह अपनी माँ के दाँए हाथ की तीव्रता से दहलती हई कलाई को साफ देख सकता था।

वैशाली मन में- “रुक जा वैशाली, यही रुक जा। अब भी कछ नही बिगड़ेगा। तेरे बेटे के विषय मे तु पहले से ही वह सब कुछ जानती है, जिसे जानने का स्वांग रचकर बस तु अपनी शारीरिक काम इच्छा की प्राप्ति करने का उद्डित प्रयास कर रही है…” सहसा वैशाली के कानों मे उसके अंतरमन की यह नैतिक आवाज गुंजने लगी।

मगर अब उस आवाज से मोल-भाव करने का वक्त बीत चुका था। तेजी से अपनी चुत के भीतर अपनी उगलियाँ दहलाती अपनी पति द्वारा तिरस्कृत वह विवाहित माँ अपने अंतर्मन को यह सोचकर फौरन झुठला देती है कि उसके बेटे से उसकी पुछताछ अभी पूरी नही हो पाई है।

वैशाली- “उन्हे… तुम एक निहायत बेशर्म और गंदे. लड़के हो अभिमन्यु, जब तुम जानते हो कि तम्हारी माँ तम्हारे रंग-रंग से वाकिफ है, फिर भी तुम यदि उसके ही मुँह से सुनना चाहते हो तो सुनो। हा, मुझे तुम्हारी मचट्ठ मारने की घिनौनी हरकत का पता है। ओह्ह… उन्हे… और यह भी पता है कि मेरा बतमीज बेटा कभी-कभार अपनी माँ को सोचकर भी मुट्ठ मारा करता है…” अब वैशाली नहीं मात्र उसकी उत्तेजना बोल रही थी।

सिसकिया लेते हुए वह पहले से कही ज्यादा तीव्रता से अपनी उगलियाँ अपनी निरंतर रस उगलती चूत के अंदर बाहर करने लगी थी, जिसकी संकीण गहराई में एकाएक अधिक से अधिक गाढ़ा कामरस उमड़ने लगा था। उसके निप्पल बुरी तरह से ऐठ गए थे और साथ ही उसकी गाण्ड के छेद मे अविश्वसनीय सिहरन की लबी-लंबी लहरें दौड़ना शरू हो गई थी, कुल मिलाकर वह स्खलन से पुर्व महसूस होने वाली आंनदमयी तरगों मे पूर्णरूप से खो चुकी थी।


अभिमन्यु- “हाय मम्मी। तुम मेरे, अपने इकलौते बेटे के बारे में इतना गलत सोचती होगी, मुझे बिल्कुल नही पता था? लेकिन कोई बात नहीं, अब हम बेस्ट-फ्रेंड जो बन गए है। इसके अलावा मुझे लगता है कि हमें अपनी नग्नता को भी कोई खास वैल्यु नही देनी चाहिए। बल्कि मैं तो कहुँगा कि अगर हमारे बीच अच्छी अडरस्टैड़िग है तो हम अपने मनमाने ढंग से घर में रह सकते हैं…” अपनी माँ की कामकु सिसकियों से भड़के जवान अभिमन्यु ने बखौफ उसे अपनी उम्र मुताबिक ही अपनी कामलोलुप इच्छाएँ बताना जारी रखा।

फिलहाल तो बस उसे वैशाली से गहरी दोस्ती ननभान की चाह थी, एक इतनी गहराई युक्त दोस्ती, जिससे वह दोनों एकदूसरे से अपना कोई राज ना छिपा सके, और उनके मर्यादित रिश्ते मे हर संभव खुलापन आ सके। वह उसके साथ कोई जबदस्ती नही करना चाहता था। वह चाहता था कि उसकी माँ खुद उसे आमंत्रित करे, उसे ललचाए और अगर वह स्वयं ऐसा करती है तब वह उसकी मर्ज़ी से उसे जरूर चोदेगा।

वैशाली- “तो क्या? तो क्या नग्नता से तुम्हारा यह मतलब है कि घर पर मै तुम्हारे सामने नंगी रहा करू? तुम्हारी अपनी सगी माँ? ओह्ह… अभिमन्यु। तुम सच में एक घटिया सोच रखने वाल लड़के हो, उन्हे… उन्हे… अपनी मोम आह्ह… अपनी मोम को घर में नंगी होकर काम करते देखकर तुम्हे शर्म नही आएगी बेशर्म लड़के? उफफ्फ… मै घर मे नंगी घुमू, जबकी मेरे साथ मेरा अपना जवान बेटा भी घर मे मौज करता हो। आह्ह… अभिमन्यु आह्ह… क्या बहुत चाहत है तुम्हारी?”

वैशाली स्खलन के बहुत करीब पहुचते हुए फुफकारी। एक तो बेटे की उपस्थिति और ऊपर से उसकी वर्जित और निषिद्ध चाहतों ने उसे अब तक रही संस्कारी माँ को से निलज्ज बना दिया था। अभिमन्यु की सुर्ख लाल आखों में खुद अपनी आखों के समान तैरती वासना देखकर बिस्तर पर लेटी खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारती वह शिष्ट माँ घबराहटवश अपना बाँया हाथ अपने कड़क निप्पल से हटाकर तुरंत उसे अपने बेटे की ओर बढ़ा देती है।

वैशाली- “ओह्ह… अभिमन्यु, जब तुम्हारी बेशर्म माँ को तुम्हारे सामने यु खुलेआम मुट्ठ मारने में शर्म महसुस नहीं हो रही है, तो क्या पता कल से वह सचमुच ही घर मे नंगी ना घुमने लग जाए और क्या पता की आग वह तमसे च… आह्ह… आह्ह… आह्ह…” अभिमन्यु न ज्यों ही अपनी माँ के बाए हाथ को थामा, उसकी आँखों मे देखते हुए वह तीव्रता से झडं पड़ी।

वैशाली- “उफफ्फ… अभिमन्यु उफफ्फ… आह्ह… आह्ह… अभिमन्यु मैं गई…” और पुरा बेडरूम वैशाली की सीत्कारों से गुंज उठा। अभिमन्यु- “कोई बात नहीं मोम, कोई बात नही। मै हुँ ना यहाँ, तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही है घबराओ मत…”

कहते हुए अभिमन्यु अपनी माँ का काँपता बाँया हाथ अपने दोनों पजों से सहलाने लगता है- “फिकर मत करो, मै तुमसे सेक्स नही करना चाहता। आह्ह… नेवर मोम, और तुम कोई बेशर्म नही हो, बेशर्म तो मै हूँ। देखो जिसने तुम्हे रुला दिया, अपनी बेस्ट-फ्रेंड को रुला दिया…” कुछ मनभावन स्खलन और कुछ आतिरिकत लज्जा के प्रभाव से वैशाली की आँखे बहने लगी थी।

जिन्हे देखकर अभिमन्यु भी लगभग रोने सा लगता है। भले ही वह जवान था, कई बार चुदाई कर चुका था, मगर जिस तरह के अद्भुत, अकल्पनीय स्खलन को वह अभी तत्काल में देख रहा था, मानो उसका सम्पूर्ण शरीर एक अनजान भय से थरथरा उठा था।


उसके लण्ड की कठोरता सन्न सी हो चुकी थी, माथे से बहकर पशीना उसके गालों से होता हुआ उसकी शर्ट को भिगोने लगा था। सख्लन के दौरान वैशाली की पीठ एकाएक बिस्तर से ऊपर को उठ गई। उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उमड आये थे, चीखते हुए वह रोने लगी थी। उसके शारीरिक कंपन की तो कोई सीमा ही नही रही थी, और जिसने प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देखकर सहसा अभिमन्यु के जबड़े जोरों से भीच गए, जैसे अपनी माँ के स्खलन के आग्नि को वह दर्द स्वरूप स्वयं महसूस करने लगा था।

कुछ देर तक हाँफते रहने के उपरान्त वैशाली का ऐठा हआ शरीर स्थिर हो गया, और ज्यों ही वह शांत हई, अभिमन्यु फौरन उसकी साड़ी को नीच खीचकर उसके घुटनों तक ढक देता है। ताकी स्खलन के साथ बाहर आए अपने कामरस को देखकर पुनः उसकी माँ को लज्जा का सामना नही करना पड़े। वैशाली ने जब यह देखा तो उसकी नम आँखें उसके बेटे की नम आँखों से जा टकराईं। और यही वह क्षण था जब क्रोधित या शर्मिंदा होने की बजाए वह अभिभमन्यु को अपने बाए हाथ से अपनी ओर खीचते हुए उसे अपने सीने से चिपका लेती है।
 
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अध्याय-२,( भाग-१)

नई सोच नया उपाय


वैशाली- “लो जी कर लो बात। मै तो तुम्हे काफी हिम्मती लड़का समझती थी, जो कुछ दिनों पहले मेरी दोस्त, यानी कि अपनी माँ समान औरत के बाथरूम से उसकी इश्तेमाल की हुई पैंटी तक चुरा लाया था। पर तुम तो चूहा निकल…” वैशाली अपने बाँए हाथ से अभिमन्यु की पीठ सहलाते हुए बोली। उसके चेहरे पर बेहद सुंदर सी मुश्कान छा गई थी- “और पता है इस चूहे की सजा क्या है?” उसने उसे अपने सीने से हल्का सा दूर करते हुए पूछा।

अभिमन्यु- “हम्म… क्या है सजा बोलो?” अभिमन्यु धीरे से फुसफुसाया। वह अब तक अपनी माँ के उस अद्भुत स्खलन के अलावा कुछ भी अन्य सोचने-विचारने में असमर्थ था और उसके चेहरे पर छाई परेशानी और घबराहट देखकर वैशाली के मन मे एकदम से कुछ ऐसा अजीब कार्य करने की इच्छा जाग्रत हुई, जो उसके माँ होने की छवि को पुनः दागदार कर दे। उसने अभिमन्यु के होंठों को चुमने का निर्णय भ्लिया, पर फिर अचानक दूसरा ख्याल मन मे आते ही उसके चेहरे पर व्याप्त उसकी सुंदर सी मुश्कान एक दुष्ट मुश्कान मे परिवरति हो जाती है।


वैशाली- “तुम्हे तुम्हारी यह शर्ट अपने हाथों से धोनी पड़ेगी, मगर?” वैशाली ने पूछा। अभिमन्यु हैरत मे पड़ गया- “यह कैसी सजा हई मोम? मैने तो सोचा था कि इस बार तुम मुझे सीधे घर से बाहर निकाल देने से कम सजा नहीं दोगी, या फिर मेरे अगले महीने की पाकेटमनी पर भी रोक लगा दोगी…” अभिमन्यु ने उल्टा उससे प्रश्न किया। वैशाली- “ऊह… यह सजा उससे भी बड़ी है शैतान लड़के…” हसते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने दाए हाथ को अपनी साड़ी से बाहर निकाल लेती है। उसका पूरा पंजा उसके गाढ़े और चिपचिपे कामरस से भीगा हुआ था और जिस अपने बेटे की अचरज से फटी पड़ी आखों मे झाकते हुए वह नई-नवेली बेशर्मा माँ उसकी शर्ट से पोंछने लगती है।

दाईं छाती पर अपनी लसलसी उंगलियों को रगड़ने के उपरान्त बाकी बचा कामरस उसने दाईं छाती से पोंछ डाला। अभिमन्यु- “उफफ्फ… मम्मी, तुम कितनी गंदी हो? छीः छीः छोडो मेरी शर्ट को यू नाँटी बिच…” अभिमन्यु भी हसते हुए बोला, और वह फौरन वैशाली के गीले दाए हाथ से दूर होन का झूठा प्रयास करने लगता है।

उसकी नाक के दोनों नथूने उसकी माँ के कमरस की मादक सुगंध से तुरंत फूल गए थे, स्खलन के चरम को छू लेने के बाद उसका चेहरा पूर्णमासी के चाँद सा दमक उठा था, जिसके कारण अभिमन्यु की खोई उत्तेजना दोबारा लौट आती है, और अपनी उसी उत्तेजना के मि में वह कब अपनी माँ के संबोधन में ‘बिच’ जैसे गंदे शब्द को शामिल कर लेता है। इसका ख्याल जब तक उसे हो पाता तब तक काफी देर हो चुकी थी।


वैशाली- “तो मै कुतिया हुँ? घटिया इंसान, चलो अब जाओ यहाँ से, माफ किया…” वैशाली ने मुस्कुराकर कहा। उसके लगातार अभिमन्यु की छोटी-मोटी गलतियों को यू ही हमेशा से माफ करते जाने का परिणाम था जो आज उसे अपने इकलौते बेटे के मुँह से एक कुतिया की संज्ञा प्राप्त हुई थी, और इसपर भी जैसे फौरन उसने उसे माफ भी कर दिया था। अजीब तो था मगर जानकर भी वह उस अजीब शब्द को हंसी-हनसी मे भूला देती है। बिस्तर से नीच उतरने स पूर्व अभिमन्यु ने वैशाली के माथे का एक छोटा सा चुम्बन लिया और फिर बिना उसकी ओर देखे तेजी से उसके बेडरूम के खले हए दरवाजे से बाहर जान लगता है।



वैशाली- “मुझे मेरी पैंटी धुली हई वापस चाहिए…” अभिमन्यु दरवाज से मात्र कुछ कदम आग निकल पाया था की सहसा अपनी माँ की आवाज और हंसी सनकर वहीं ठिठक जाता है- “तम्हे पता था माँ। ओह्ह… मोम। यू डम फकिंग नाटी बिच। खर, तमने मेरे स्टडी दराज से मेहता आटी की पैंटी चराई तो, मैने तुम्हारी चुरा ली, हिसाब बराबर। अब यह पैंटी मेरी है…” कहकर अभिमन्यु अपनी पैंट के अगले हिस्से के भीतर हाथ डालकर वैशाली की कच्छी को बेशमों की तरह वहीं उसके सामने बाहर निकाल लेता है और अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली के ऊपर उसे लपेटकर गोल-गोल घमात हुए हंसकर उसकी नजरों से ओझल हो जाता है।


वैशाली स्तब्ध है की उसके बेटे ने उसकी कच्छी को बिल्कुल अपन लण्ड के ऊपर छुपाया था, या शायद उसने उसे सीधे अपनी अंडरवेयर के अंदर रखा था? वैशाली बिस्तर पर बैठे हुए सोच रही थी- “बिच, तुने अपनी इज्जत खुद अपने ही हाथों गवा दी और जो अब कभी वापस नही आएगी…” अपने कमरे के भीतर आकर अभिमन्यु ने दरवाजा लाँक किया और उसी दरवाजे से अपनी पीठ रगड़ते हुए नीचे फर्श पर बैठ जाता है। तत्पश्चात उसने अपने दाएं हाथ में पकडी अपनी माँ की काली कच्छी जोर से फर्श पर देमारी, अपने दोनों हाथ से अपना चेहरा ढक कर कुछ समय पीछे घटे पूरे घटनाक्रम पर सोचने-विचारने लगता है।

वह खुद को कोसते हुए बिलबिलाया- “वह बिल्कल सही कहती है, मै एक निहायती बशर्म और घटिया इंसान हू…” वैशाली का स्वभाव हमेशा उसके गर्व का कारण रहा था, उसके साथ ही उसकी माँ ने उसकी बड़ी बहन की भी एक सी परवरिश की थी, कभी कोई अंतर नहीं। हाँ यह अवश्य था कि बेटा घर का चिराग माना जाता है और इस वजह उसे भी अपने माता-पिता का अतिरिक्त स्नेह प्राप्त था। पर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि उन्होंने अपनी बिटिया को कभी अनदेखा किया हो, बल्किअनुभा की भव्य शादी की गूंज साल भर बाद भी घर की चारदीवारी मे सनाई देती थी। पिता माणिक चंद्र जैन, जिसे कभी-कभार अभिमन्यु और अनुभा माणिकचंद गुटखा के नाम से भी संबोधित कर देते थे।

मगर तब जब दोनों भाई-बहन एकांत में वातार्लाप कर रहे हों, वर्ना तो पिता के क्रोधमात्र से ही दोनों को अक्सर दस्त लग जाया करते थे। वैशाली को जब अपने पति के बिगडे़ हुए नाम का पता चला तो अपने बच्चों पर गुस्सा करने से पहले वह भी दिल खोलकर हंसी थी, और जब हसते-हसते उसके पेट मे बल पड़ गया तब वह चाहकर भी उन्हे डाँट नही पाई। क्योंकी अधेड़ उम्र की वह हंसमुख माँ खुद अपने बच्चों की शैतानी मे शामिल हो गई थी। सिलसिला आगे बढ़ा और देखते ही देखते कब अनुभा अपने ससुराल रुखसत हो गई, घर में बाकी बचे तीनों सदस्यों को पता ही नहीं चल पाया।

माणिक सरकारी नौकर था, बी॰टी॰सी॰ का एक पी॰जी॰टी॰ प्राफेसर जिसे अक्सर ट्रेनिंग प्रोग्राम्स के चक्करों में अन्य सरकारी विभागों में आना-जाना होता था। पहले-पहल इन विजिटों से उसे कोई लगाव नहीं था, आफिस से सीधे घर, घर पर उसकी सुंदर सी बीवी और दो प्यारे बच्चे, मानो यही उसका पारिवारिक और सामाजिक संसार था। अनुभा की मँहगी शिक्षा का खर्च और घर का लोन दोनों से जूझते माणिक को नये पाठ्यक्रम में एकाएक यह खबर लगी की बी॰टी॰सी॰ के ट्रेननंग प्रोग्राम की हर छोटी-बड़ी विजिट पर अब अलग से खर्चा भी मिलेगा।


टी॰ए॰, डी॰ए॰, खाना-रहना खर्चा पहले से अधिक था और फर्जी बिल भी जो कि लगभग हर सरकारी विभाग में मान्य हो जाते हैं। माणिक ने तब से एक भी विजिट अपने हाथ से नहीं जाने दी, और पिछले सात-आठ महीनों से वह लगातर सिर्फ कमाई करने में व्यस्त था। वैशाली कि बेटी की विदाई और पति की कमाई से घर सूना सा रहने लगा। सही मायने मे अब घर मे सिर्फ माँ और बेटे ही बचे थे। वैशाली को पति के प्यार की असल कमी भी तभी खलनी शुरू हई, जब माणिक के बगैर उसकी रातें बिस्तर पर महज करवट बदलते रहने में बीतने लगीं। हर विजिट पर जाने से पहले पत्नी का मुँह लटकते देखकर चुदाई क शौकीन माणिक का भी कुछ यही हाल था। मगर शर्मवश कि मात्र चुदाई के चलते वह हाथ आए पैसे कमाना छोड़ दे, वैशाली ने उसके आने-जाने पर कभी कोई रोक नहीं लगाई और माणिक भी पत्नी की इस समझदारी को समझकर संतोष कर गया।


वाकई माणिक पर बहुत कर्जा हो चुका था, उसका आधी जी॰पी॰एफ॰ भी उसने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले ही निकाल लिया था। चार से बचे तीन और तीन से बचे दो। जब माँ-बेटे घर पर अकेले रह गए, तब वैशाली का पूरा ध्यान अपने बेटे की देख-रेख पर केन्द्रित हो गया और तभी से उसे अभिमन्यु की गलत हरकतों के विषय मे पता चलने लगा। गलत हरकतें क्या? वही जवान होते हर मर्द की नई-नवेली ख्वाहिश और उन ख्वाहिशों की खानापूर्ती के जरिए को खोजने की हर संभव तलाश।

जल्द ही वैशाली को बेटे के रोजाना क्रम से मुट्ठ मारने की भनक लगी, नहाने के बाद वह अक्सर लापरवाही से अपने अंदरूनी कपड़े गीले ही बाथरूम के फर्श पर छोड़ जाया करती था, और जिन्हें धोते वक्त वह हमेशा ही उन्हें
चिपचिपा सा पाती थी। उसके बिस्तर की बेडशीट और ओढ़ने की चादर पर भी उसे पीले-पीले गाढ़े दाग लगे नजर आते थे, जिसकी सत्यता आसानी से समझना उस विवाहित स्त्री के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं थी। समस्या थी तो सिर्फ अभिमन्यु के नियम से मुट्ठ मारने की गंदी आदत, जो की बीतते समय के साथ खुद भी तीव्रता से बढ़ती ही जा रही थी। एक रोज वैशाली ने मल्टी की छत पर उस पड़ोस की कामवाली के नंगे मम्मे दबाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया।


पर बेटे को समझाने के अलावा वह ठीक से डांट तक नहीं सकी। उसकी जवान उम्र की प्यास और दोनों मेलफीमेल की रजामंदी ने उस क्रोधित माँ के क्रोधित मुँह को एकाएक मानो सिल सा दिया था, और परेशान सी वह वापस अपने फ्लैट में लौट आई थी। कुछ दिनों बाद उस कामवाली ने स्वंय वैशाली से शिकायत की कि अभिमन्यु उसे राह चलते छूता है, जब तब उसके गुप्तागों को बुरी तरह से मसलना शुरू कर देता है, और एक-दो दिन ही पहले पैसों का लालच देकर चुदाई करवाने का प्रस्ताव भी उसने उसके समक्ष रखा था।
 

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अध्याय २ (भाग -२)

वह कामवाली यहीं नहीं रुकी, बल्कि खुली ि
धमकी देकर गई की अगली बार परेशान करने पर वह अभिमन्यु की सीधे पुलिस शिकायत कर देगी। उस सारी रात वैशाली अपने बिस्तर पर लेटी मात्र रोती रही थी। बेटे से इस अश्लील विषय में बात करने में उसे बेहुत संकोच हो रहा था और अंतत: यह बात भी आई-गई सी हो गई। अकेले रात नही काट सकने की अपनी गंभीर बीमार का इलाज वैशाली को भी जल्द से जल्द ढ़ूढ़ना था, और इसे मर्ज की दवा उसे मिली उसके बेटे की पोर्न देखन की दूसरी नियमित गंदी आदत से। पढ़ी-लिखी वैशाली जब तब घर के इकलौते कम्प्यटर पर गेम आदि खेलकर अपना उबाऊ समय काटा करती थी, और साथ ही इंटरनेट पर खाना बनाने की नई रेसेपीज देखना भी उसे काफी पसंद था। एक रोज दोपहर में वह एकदम से दोड़कर किचेन से बाहर आई और बीते दिन देखी करेले की व्यंजन विधि कम्प्यटर की हिस्ट्री मे तलाशने लगी।


जल्दीबाजी मे वह यह भूल गई थी की बीती देर रात तक कम्प्यूटर को अभिमन्यु ने इश्तेमाल किया था। किचन में बनते करेले जलकर खाक हो गए और वैशाली को रेसेपी की जगह दर्जानों पोर्ना वेबसाइटों की लिंक देखने को मिली। कौतूहल और जिज्ञाशावश वह उन पोन वेबसाईटों को देखने से खुद को रोक नही पाई और तभी से उसे भी मुट्ठ मारते वक्त अपन मोबाइल पर हर तरह का पोर्न देखन की आदत सी हो गई। इसी के जरिए अभिमन्यु पर उसकी जासूसी शुरू हई, जो अब तक जारी थी।


उसे पता चल चुका था कि उसके बेटे को ‘एम॰आई॰एल॰एफ॰’ और ‘बी॰बी॰डब्ल्य॰’ पोर्न देखने में ‘टीन’ पोर्न से कहीं ज्यादा रुचि है। आगे एक रोज वह हाल में बैठा खुलेआम मुट्ठ मारते हुए पकड़ा गया था। मगर वैशाली ने अपनै आगे बढ़त कदमों को रोके बिना कोई हलचल किए, फौरन वापसी की राह पकड़ ली थी। इसके अलावा बीत कुछ महीनों से उसे शक था कि अभिमन्यु उसके एकात् कायों को छुप-छुपकर देखने की कोशिश करने लगा था। बाथरूम मे नहाते वक्त उसने बंद दरवाजे की निचली झरी से किसी व्यक्ति के पैरों द्वारा अवरुद्ध होती रोशनी से यह अनुमान लगाया था। और उसके साथ घर मे सिर्फ उसका बेटा ही रहता है तो ऐस में शक करने की तो अब कोई गुंजाइश ही नही रह गई थी।

यही नही अपने बेडरूम के भीतर भी उसने उसे लगातार ताका-झाकी करते हुए देखा था। पहले क्रोध फिर शर्म और अंत मे टूटकर वैशाली उसकी हरकतों की आदी सी हो जाती है। हाल-फिलहाल में बीते पिछले बीस दिनों पहले वैशाली की सबसे अभिन्न महिला मित्र
मिसेज़ मेहता अचानक से उसके घर आ ि
धमकी, और उसने वैशाली को अभिमन्यु की एक नई घृणित करतूत से परिचित करवा दिया की उसके घर हालचाल पूछने का बहाना बनाकर वह बाथरूम से उसकी कच्छी चुराकर ले गया है। अपने बेटे के बचाव मे मिसेज़ मेहता से उसकी काफी तू-तू मैं-मैं हो गई थी। मगर अंत तक उसने मिसेज़ मेहता की शिकायत को अपना विश्वास नहीं दिया था। बल्कि उल्टे वह अपनी सबसे अच्छी दोस्त पर ही बेगैरत होने का इल्जाम लगा देती है।

हालांकी उसने तत्काल अपने बेटे की पाकेटमनी पर रोक लगा दी थी, उसका कालेज के अलावा कहीं और घूमने फिरने जाना भी तब से बिल्कुल बंद था, और आज सुबह जब सफाई के दोरान उसे अभिमन्यु के स्टडी टेबल की दराज से वाकई मिसज़े मेहता की कच्छी बरामद हुई, तो तुरंत वह खुद की ही परवरिश पर शर्मिदा हो जाती है। माणिक उस वक्त घर पर मौजूद था, वैशाली ने निर्णय लिया कि आज वह अपने बेटे की सभी गंदी करतूतों को अपने पति के साथ साझा करके ही रहेगी, क्योंकी पानी अब सर के ऊपर जा चुका था। कुछ यही सोचते हुए वह तेजी से अपने बेडरूम की दिशा में चल पड़ी। मगर चाहकर भी बेडरूम के भीतर कदम नहीं रख पाती और इसके दो मुख्य कारण थे-

1॰ माणिक के घोर गुस्से से अभिमन्यु कही का नही रहता, क्या पता आज वह अपने लाडले को एक अंतिम बार देखती, या तो उसका पति उसके बेटे को जान से ही मार देता, या फिर हमेशा-हमेशा के लिए उसे घर से बेदखल कर ि
देता।

2॰ अभिमन्यु को बिगाड़ने मे सबसे बड़ा हाथ खुद वैशाली का ही था।


यदि समय रहते वह अपने बेटे पर सख्ती करती, उसे उसकज पिता का झूठा भय दिखाती, या स्वयं भी उसकी पिटाई कर सकती थी। मगर इन तीनों में से वैशाली ने कुछ नही किया, बल्कि बेटे की देखा-देखी खुद भी रोजाना नियम से मुट्ठ मारने लगी और पोर्न तो जैसे अब उसकी रग-रग मे बस चका था। जैसे वह अब तक अपने बेटे की जासूसी करती आई है। अब वक्त बिल गया था, उल्टा अभिमन्यु अपनी माँ की जासूसी करने लगा था, और एक तरह से उसकी जासूसी मे वैशाली की सहमति भी शामिल थी।

वर्ना अब तक या तो वह पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारना छोड चुकी होती, या ठीक उसी पूर्ण नंगी हालत मे उसने बाथरूम के भीतर नहाना बंद कर दिया होता। माणिक के घर से चले जाने के बाद वैशाली ने रोजमर्रा के सभी काम निबटाए और खुद के लिए दो परांठे बनाकर, कम्प्यटर पर पोर्न देखते हुए उन्हे खाने लगी। अभिमन्यु अपना लंच कालजे मे ही करता था, तो घर पर उसके लिए सिर्फ रात का खाना बनाया जाता था। मिसेज़ मेहता की पैंटी वाकई बेटे द्वारा चुराए जाने को लेकर और पति के इस बार पिछले टूर से भी लम्बे टूर पर चले जाने से परेशान वैशाली, हाल का दरवाजा चेक किए बिना अपने बेडरूम में आ गई।



यह सोचकर कि हाल का दरवाजा बंद है, बिना अपने बेडरूम का दरवाजा लगाए उसने अपनी पैंटी को उतारकर फौरन अपनी गीली चुत से खेलना शुरू कर दिया। अगर अभिमन्यु अचानक से बीच मे नही आता तो कुछ ही पलों बाद हमेशा के जैसे वैशाली का पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारने का इरादा था, और जो एकाएक बाधा उत्पन्न हो जाने के कारण अधुरा रह गया था।


अभिमन्यु- “शिट मैन। कितना बड़ा गदहा हूँ मै, जो जानबूझ कर मोम के प्राइवेट मोमेन्ट को तबाह करने उनके बेडरूम में चला गया था। शिट… शिट… शिट…” अपने कमरे के बंद दरवाजे से टिककर नीचे फर्श पर बैठा अभिमन्यु खुद को लतालते हुए बोला- “क्या सोच रही होंगी वह मेरे बारे में? वैसे भी मैं पहले से ही अपनी काफी इज्जत उनकी आखों मे खो चुका हूँ, और आज तो मैंने हद ही कर दी…” उसने पुनः अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया। यह बिल्कल सत्य था कि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क में अपनी माँ के प्रति कोई गलत भावना नहीं थी, बस जब तब उसे वैशाली को देखकर अपनी सबसे पसंद ‘एम॰आई॰एल॰एफ॰’ विक्की वेट्टे की याद आ जाती थी। हाँ यह जरूर सत्य था कि उसकी माँ का अंत्यन्त कामुक नंगा बदन उसके दिल के भीतर तक घर कर चुका था।



मगर इसके बावजूद उसने वैशाली पर कभी कोई जबरदस्ती नही की थी, बल्कि उसके मुट्ठ मारने या नहाने के अद्भुत दृश्य को छुप-छुपकर देखन के उपरान्त वह भी अपनी तृष्णा को अपने मनमाने ढंग से शांत कर लेता था। अभिमन्यु मन मे- “उनके तलवे को अपने खड़े लण्ड पर रगड़ना, उनकी टांगें चौडा़ई, ताकी उन्हें और शर्मिंदा कर सके? उन्हें भला-बुरा कहा जबकी वह मेरी माँ है, और तो और उनकी पैंटी तक चुरा ली मैने…”

अपनी गलतियों को सोचकर वह बहुत गंभीर और भावुक हो चुका है। और खुद की निकृष्ट इच्छाओ- “मेरे सामने नंगी होकर रहो मम्मी, छिः खुल्लम-खुल्ला मेरे सामने मुट्ठ भी मारो। क्योंकि हम बेस्ट-फ्रेंड हैं…” पर अब उसे क्रोध भी आने लगा था। अभिमन्यु सोचता हे- “बिच, मेरी मोम बिच… अच्छा तो फिर मै क्या हूँ? एक कमीना, बड़ा हरामखोर बेटा…” उसका सिर दर्द से फटने लगा है- “दूरी, हा दूरी। बस यही मेरी सजा हे कि मै अब उनसे दूरी बना लू, ताकि उन्हें मेरा यह बेशर्म चेहरा दोबारा ना देखना पड़े....” वह फर्श से उठकर सीधे अपने बिस्तर पर जा गिरा, उसने एक लंबी और गहरी नींद की सख्त आवश्यकता थी, और चंद पलों में वह सो भी गया था।


इस चूतिया से समाधान को ठीक उसी की उम्र के नौजवान निकाल सकते हैं, क्योंकी एक ही घर मे रहते हए वह अपनी माँ से और कितनी अधिक दूरी बना सकता था? अभिमन्यु की आँखों से ओझल होने के पश्चात वैशाली भी बिस्तर से नीचे उतरने लगती है कि सहसा उसकी नजर बेडशीट के उस बड़े से गीले धब्बे पर पड़ी, जो उसके कामरस के उसकी साड़ी और पेटीकोट से रिसने के बाद बेडशीट पर अंकित हुआ था। खैर, यह कोई विशेष बात नही कि उसके स्खलन न आज सबह ही उसके द्वारा बिछाई गई नई बेडशीट को इतनी जल्द गंदी कर दिया था, बल्कि वैशाली को अचरज इस बात पर हुआ कि इस तरह के लब और अधिकाधिक रिसाव के स्खलन उसे उसकी बीती हुई जवानी मे हआ करते थे।



चूकिं अब वह जवानी की दहलीज पार करके एक अधेड़ उम्र को पा चुकी है, फिर क्या कारण रहा जो एकाएक उसके स्खलन ने पुनः उसे उसकी बीती हई जवानी मे वापस पहुँचा दिया था? वैशाली धीर से फुसफुसाते हुए खुद से बोली- “इन्सेस्ट होता हो या ना होता हो, मगर उसका असर जरूर होता है?” और अपने ही व्यभिचारक कथन पर बुरी तरह से लजा जाती है। वह इतनी नंग्न और अपरिपक्व स्त्री नहीं थी जो यह जान ना सके, या मान ना सके कि उसके इस मनभावन स्खलन और अधिकाधिक रिसाव का एक मात्र कारण उसका अपना सगा जवान बेटा था।


बेटे की मौजुदगी मे यू खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारना सचमुच एक ऐसा विचित्र रोमांचकारी क्षण था, जिसकी अकल्पनीय रोमांचकता को दुनिया की कोई भी माँ नकार नही सकती थी, और फिर यह कार्य सर्वथा अनुचित भी तो था। खुद वैशाली की चूत झड़ने के उपरान्त अब भी कुलबूला रही थी, जिसे दोबारा उसे अभिमन्यु की प्रत्यक्ष उपस्थिति मे झड़ने का बेसब्री से इंतजार हो। अपने चहरे पर शर्म और कामुकता के मिलेजुले भाव लिए वह दो अत्यन्त सिर जवान बच्चों की अधेड़ मा अपनी अस्त-व्यस्त साड़ी को सभालते हए अपने बेडरूम के अटैच बाथरूम के भीतर घुस जाती है। उसने तीव्रता से खुद को नग्न किया और फिर स्वयं शावर के नीचे आकर खड़ी हो गई, ठंडे पानी की फुहार उसके तपते बदन पर गिरते ही मानो भाप में तब्दील होने लगी थी। कीसी अमचक विद्वान ने बिल्कुल सही कहा है कि तन की ज्वाला, काम की अग्नि से ज्यादा ज्वलनशील अन्य कुछ भी नही, जिसने अच्छे-अच्छे ब्रह्मचारी, ऋषि-मुनियों के वर्षों के तप को भी पल भर मे जलाकर राख कर दिया। फिर वैशाली तो एक स्त्री है, हालात की मारी एक ऐसी तिरस्कृत स्त्री जिसकी कामग्नि बीत कई महीनों से शांत नहीं हो पाई थी, जो पति के जीवति होते हुए भी किसी विधवा की भाँति बिस्तर पर लगभग अपना पूरा दिन बिता देने को बाध्य थी।
 
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Bhonpuxossip

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अध्याय २ (भाग -३)

वैशाली मन में- “अभिमन्यु क्या सोच रहा होगा मेरे बारे मज? कहीं वह मेरी पैंटी को अपने लण्ड पर लपेटकर मुट्ठ तो नही मारने लगा होगा? वैसे लड़का है तो बड़ा बेशर्म, बदतमीज। अपनी सगी माँ को कुतिया कहकर बुला रहा था…” अपनी चुत और उसके आसपास उगी बड़ी-बड़ी घुघराली झाटों को धोते वक्त भी वैशाली सिर्फ अपने बेटे के ही विषय मे सोच रही थी। एक अजीब सी सनसनाहट भरा अहसास कि अपने कामरस को छुटाते हुए भी उस माँ का ध्यान अपने जवान बेटे पर से हट नहीं पा रहा था, उस माँ की मर्याादित छवि के लिए कितना अधिक लज्जाजनक था।



वैशाली- “क्या कोई माँ अपनी नंगी चूत को छूने के दौरान कभी अपने बेटे का ख्याल अपने मन-मस्तिष्क में ला सकती है?” अचानक खुद से ऐसा अशष्टि प्रश्न पूछकर वैशाली की आँखे मूदँ जाती है और सर्वप्रथम जो चेहरा उसकी बंद पलकों में उभरा, उस चहरे और उसपर व्याप्त हंसी को देखते ही वह तेजी से अपना हाथ अपनी नंगी चूत से दूर झटक देती है। उसने अपनी मूंदी आँख भी तत्काल खोल ली, निरंतर मलते हुए उन्हे ठंडे पानी से धोया।


मगर खुली आँखों से भी चारों ओर उसे अपने बेटे अभिमन्यु का ही हँसता हुआ चेहरा नजर आ रहा था। वैशाली मन में- “तू अब उसकी माँ नही रही वैशाली। तेरी स्थिति वाकई तेरे बेटे के नीचे संबोधन, सड़क की उस बेबस बूढ़ी कुतिया समान हो गई है, जिसे जवान होकर जब तब उसका अपना पिल्ला ही चोदे जाया करता है। तेरी उच्चतम पीड़ी, शीषातम् रिश्ता, मान और सम्मान जस सब कुछ तुने स्वय ही अपनी बेशर्मी से गवा दिया। आज अभिमन्यु ने तेरे मुलह पर प्रत्यक्ष तुझे कुतिया कहकर पुकारा है, वह दिन दूर नही जब भविष्य मे तुझे रंडी कहकर भी पुकारेगा…” अतिशीघ्र वैशाली अपने दोनों हाथ बलपूर्वक अपन दोनों कानों पर दबा देती है।

यह उसकी अंतर्मन की वही आंतरिक आवाज थी, जिसने उस वक्त भी उसे कचोटा था, जब मुट्ठ मारते हुए वह बेटे के मुँह से, अपने प्रति उसके अंदरूनी गंदे और निषिद्ध विचारों को जानने की इच्छुक थी। वैशाली उससे वर्जित से वर्जित सवाल पूँछे जा रही और अपनी माँ के समान ही बेशर्म बनकर अभिमन्यु उसे अनैतिक से अनैतिक उत्तर देते हुए बारम्बार अपनी पापी इच्छाएं भी उसे बेझिझक बतलाए जा रहा था। वैशाली- “कुछ… कुछ गलत नही हआ, सिर्फ एक छोटा सा बिलाव ही तो आया है? पहले वह छुप-छुपकर मुझे मुट्ठ मारते हए देखा करता था, आज प्रत्यक्ष देख लिया। उसने सही कहा था कि हम अडल्ट हैं, एक-दूसरे के सभी रहस्यों से परिचित। फिर छुप्पन-छपाई का यह बचपना खेल कब तक खेलते रहगे?” वैशाली ने अपने अंतर्मन से तर्क-वितर्क करना शुरू कर दिया। वैशाली- “माना उसकी माँ होकर मैं उसकी एकमात्र इच्छा का समर्थन नहीं कर सकती, उसे कतई उचित नहीं ठहरा सकती, जरा सा भी स्वीकार नही कर सकती। मगर अपनी धूमिल छवि मे जरूर सुधार कर सकती हूँ। हा, मुझे उसकी दोस्ती के प्रस्ताव पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है, और बस अब मे खुद को उसी नये रूप मे ढालने की कोशिश करूगी…” अपने अतर्मन को अपना अंतिम और निर्णायक निर्णय सुनाकर वह बिना कुछ और सोचे, बहुत शांति से अपना नहाना पूरा करती है और बाथरूम मे पहले से ही मौजूद तौलिए को अपने गीले मांसल नंगे बदन पर लपेटकर बाथरूम से बाहर निकल जाती है।



अपने बेडरूम के पूर्व से खुले हए दरवाज को देखकर सहसा वैशाली की हँसी छूट जाती है कि कैसे वह एक छोट से तौलिए को अपने गदराए अधेड़ बदन पर लपेटे सरेआम अपनी निजता को स्वयं तार-तार कर रही है? अभिमन्यु घर पर मौजूद है और यह जानते हुए भी अब तक संस्कारी रही उसकी माूँ, यू खुल्लम-खुल्ला अपने नंगे बदन का निर्भीक प्रर्दशन कर रही है, जैसे उसे इस बात का कोई डर नहीं की उसके बेडरूम का दरवाजा खुला हुआ है, और उसका जवान बेटा किसी भी क्षण उसके कमरे के ओर सरलता पुर्वक झाककर उसे उसकी इस नंगी कामुक हालत मे देख सकता है।



वैशाली- “हम अपनी नग्नता को कोई खास वैल्यु नही देनी चाहिए मोम। ऐसी गंदी सोच रखने वाली गंदे लड़के, उफफ्फ… जिसने तुम्हे पैदा किया, अपनी उसी सगी माँ को पूरी तरह से नंगी देखकर तुम्हे शर्म नही आएगी भला?” अपने खुद के विध्वंशक प्रश्न पर लंबी सीत्कार भरते हुए वैशाली फौरन अपना तौलिया अपने नंगे बदन से अलग कर देती है। तत्पश्चात पूर्णरूप से नंगी हो चुकी भव्य यौवन की स्वामिनी वह विवाहित माँ अपने उस छोटे से तौलिए को एक बहुत ही निम्न स्तर की बेहूदा हरकत के साथ नीचे फर्श पर गिराकर, तत्काल अपने बेडरूम के खुले दरवाजे को निहारने लगती है। वैशाली- “तुम्हारी घटिया बात को मानकर तुम्हारी माँ सचमुच नंगी हो गई अभिमन्यु। मौका है बेटा, देख सको तो िदेख लो…” ओछी हंसी हँसते हुए इस अश्लील कथन को कहकर वैशाली ने अपने लंबे काले बालों को जोर से झटका, जिसके प्रभाव से एकाएक उसके पूर्ण विकसित मम्मे भी जोरों से उछल पड़ते है।



अपने मम्मों की अत्यंत सुंदर बनावट पर उसे शुरुआत से गुमान रहा था, लगभग हर स्त्री की भांति उसे भी अपने मम्मों का बहुत फूला और तराशा हुआ गोलाईयुक्त आकार हमेशा से भाता आया था। अपने दाए हाथ को सीधे अपने धोकनी समान धड़कते दिल पर रखकर वह हौले-हौल बेडरूम के खुले दरवाजे की ओर अपने कंपकंपाते कदम बढ़ाने लगती है, अपने जवान बेटे की घर मे मौजूदगी के कारण उसकी मत्रमुग्ध कर देने वाली चाल सामान्य से कही अधिक मादक और मतवाली हो चुकी थी। उसकी गदराई मांसल गाण्ड कुछ इस तरह से थिरक रही थी जिसे माँस की नही, पारे की बनी हो और साथ ही ज्यों-ज्यों वह खुले दरवाज के नजदीक आती जा रही थी, उसकी चूत से निरंतर बाहर उमड़ता कामरस बहकर उसकी हृष्ट-पुष्ट जाघों को भिगोने लगा था।


उन्मुक्तता, खुलापन आदि शब्दो का सही अर्थ और मूल्य महज वही समझ सकता है, जो जन्म-जन्मातर से बेड़ियों के अटूट बंधन मे जकड़ा रहा हो। फिर वह बंधन और जकंडन से भरा उसका अटूट बंधन समाजिक हो, रिश्तों का हो, हैवानियत का हो, मयार्दा का हो, या फिर किसी लालसा का हो।


बीते जीवन में पहली बार वैशाली स्वयं उस स्वच्छं, खुलेपन को प्रत्यक्ष महसूस कर रही थी, उसे लग रहा था जैसे इसी स्वतंत्रता की उसे बरसों से तलाश थी। दरवाज से बाहर झाकते वक्त उसका सम्पर्ण बदन गनगना उठा, और उसके मुखमंडल पर प्रसन्नता ही प्रसन्नता छा जाती है, जीवन मे प्रथम बार उसने खुलकर आजादी का स्वाद चखा था और वह पकड़ी नहीं गई थी। मन बावरा होता है, संतोष की प्राप्ति अमरता के वरदान की तपस्या से भी कही दुर्लभ है और वैशाली के सग भी तत्काल कुछ ऐसा ही हुआ। अपनी सफलता के मद मे चुर्ण वह अपने बेडरूम के दरवाजे की निषिद्ध दहलीज को भी पार करने का दुस्साहस कर बैठी। मगर जाने क्या सोचकर वह फौरन पलटी और बेडरूम के भीतर आकर दरवाज को लाँक करते हए गहरी-गहरी सांसें लेने लगी।


वैशाली- “त… त तू पागल है, पूरी तरह से पागल ह। पकड़ी जाती तब क्या होता?” अपनी गुलाबी जीभ को अपने मुंगिया रंगत के भर हुए होंठों से बाहर निकालकर वैशाली अपनी गलती पर अपना माथा ठोंकते हुए चहकी। वैशाली- “कुछ भी कहो लेकिन मजा बहुत आया…” किसी नवयुवती के समान उछल-कूद करते हुए वह अपने वाडरोब तक आ पहुँची, और रोजमर्रा में पहने जाने वाले अपने वस्त्रों को पहनने लगती है। लाल ब्रा और बैंगनी कच्छी के पश्चात उसने उनके ऊपर अपने हल्के क्फिरोजी रंग की काटन की मक्सी पहन ली। अपने खुले बालों का जूड़ा बनाकर उसने ड्रैसिग के काँच पर पहले से चिपकी एक छोटी सी काली बिंदी को खींचकर उसे अपने माथे के बीचोबीच चिपकाया, और माँग मे सिर िारि करके कांच में अपनी सुंदर छवि को घूरने लगती है।



वैशाली- “शायद पटीकोट की जरूरत पड़ सकती है। हह… हमेशा तो इस बिना पटीकोट के पहनती आ रही हूँ…” कांच के सामने गोल-गोल घुमते हुए अचानक वैशाली को अहसास हुआ, जैसे उसकी कच्छी की बनावट उसकी मैक्सी के ऊपर से नुमाइस हो रही है, खासकर उसकी गिराई गाण्ड का कामुक उभार उसकी कच्छी समेत मैक्सी के ऊपर से स्पष्ट नजर आ रहा है। एक पल को उसने मैक्सी के भीतर पेटीकोट पहनने का विचार बनाया मगर अगले ही पल वह अपना विचार त्याग भी देती है।

यह उसकी नियमित वेशभूषा थी और एकदम से उसमे अंतर करना उसे अपने पागलपन का शुरुआती लक्षण समझ आता है। वैशाली- “अभिमन्यु आज जल्द कालजे से लौट आया था, क्या पता लंच किया भी है या नहीं?” अपनी कामग्नि मे पिछल दो घटों से लगातार जलने वाली वह तिरस्कृत स्त्री सहसा एक ममतामयी माँ मे तब्दील हो गई और तीव

ता से अपने बेडरूम के बाहर निकलकर वह अभिमन्यु के कमरे के बंद दरवाजे पर दस्तक देने लगती है। वैशाली- “अभिमन्यु, दरवाजा खोलो बेटा, मै कितनी देर से खटखटा रही हूँ…” जब चार-पाँच बार दरवाजे पर थाप देने के बावजूद अभिमन्यु ने दरवाजा नही खोला, तब वैशाली हाथ के थापों के साथ उसे आवाज भी देने लगी।

फिर सोचा- “वैसे तो दिन में कभी नहीं सोता, जरूर मुट्ठ मारने की थकान से नींद लग गई होगी बेचार की। हाय रे मेरी पैंटी, आज बुरी फँसी तू…” अपनी ही ठरकी सोच पर वैशाली की हसी छूट जाती है। अब इसे ठरक नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे की बीते व

पिछले दो-तीन घंटे के घटनाक्रमों ने एक बहुत संस्कारी माँको कितना अधिक बदल दिया था? तत्काल वह अपना बायां कान दरवाजे से चिपका देती है, ताकि अगर उसका बेटा जानबूझ कर दरवाजा नही खोल रहा हो तो वह कमरे के ओर की हलचल सुनकर इस बात का अनुमान लगा सके। वैशाली- “बेटा सो गए क्या?” अपने कान मे कोई हलचल सुनाई ना देने के उपरान्त वह फौरन अपने घटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ गई और की-होल से कमरे के भीतर का जायजा लेनज लगती है। अभिमन्यु बिस्तर पर औंधे पड़ा था। एक पल को बेटे की नींद का ख्याल करके उसने उसे जगाने का विचार त्याग दिया मगर उसकी भूख के विषय में सोचकर फर्श पर बैठे-बैठे ही वह उसे जोरों से पुकारने लगती है।
 

Shah40

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