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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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Update- 54

उधर नीलम की माँ अपने मायके जामुन से भरा थैला लेकर पहुँच गयी थी, नीलम की माँ का नाम नगमा था, नीलम के नाना के यहां उसके नाना और मामा मामी ही रहते थे, नीलम के मामा उसके नाना के साथ खेती बाड़ी का काम संभालते थे, नीलम के नाना उम्रदराज तो हो गए थे पर अच्छे खान पान की वजह से शरीर ज्यादा ढला नही था, खेती बाड़ी का काम करने की वजह से सेहत अच्छी थी।

नगमा जब अपने मायके पहुँची तो शाम हो चुकी थी, नीलम की मामी ने उसका स्वागत किया, उसके मामा भी शाम तक घर आ चुके थे, बस उसके नाना अभी तक खेत से नही आये थे, नीलम की माँ नगमा ने पानी वानी पिया और आराम करने लगी।

नीलम की मामी- मेरे नंदोई और मेरी बिटिया नीलम कैसी है?

नगमा- सब ठीक है भौजी।

नीलम की मामी- नीलम को क्यों नही लायी, कम से कम उसे तो ले आती, कितना वक्त हो गया उसे देखे, जब भी आती हो अकेले ही आ जाती हो।

नगमा- अरे भौजी वो तो मायके ही कभी कभी आती है, कुछ दिन रहती है फिर चली जाती है अपनी ससुराल, लेकिन अब इस बार दुबारा आऊंगी तो उसको भी लिवा के आऊंगी, मैं इस बार आयी ही हूँ किसी खास काम से।

नीलम की मामी- कैसा काम, क्या हुआ?

नगमा ने फिर नीलम की मामी को सब कुछ बता दिया कि वो किस काम से आई है, नीलम की मामी ने कहा कि बिल्कुल ठीक है, ससुर जी उस बुढ़िया को जानते हैं वो तुम्हे लिवा कर वहां उसके पास चले जायेंगे, जाके पहले पता कर लेंगे फिर नीलम को लिवा आना दिखा देंगे, देखो क्या बताती है वो बुढ़िया।

नगमा- हाँ भौजी, अपना कर्म तो करना ही पड़ता है बाकी तो किस्मत है।

नीलम की मामी- चिंता मत कर ननद रानी सब ठीक हो जाएगा, हमारी नीलम की गोद भी सूनी नही रहेगी, तू चिंता बिल्कुल मत कर।

नगमा- भौजी लो ये जामुन खाओ नीलम ने खासकर अपने मामा मामी और नाना के लिए पेड़ से तोड़कर भेजा है, भैया लो आप भी खाओ मेरे ससुराल के जामुन।

नीलम के मामा वहीं बैठे थे वो भी नीलम की माँ नगमा से बातें कर रहे थे, सब जामुन खाने लगे।

नगमा- अरे इस जामुन को तोड़ने के चक्कर में पेड़ से भी गिरी है वो।

नीलम के मामा और मामी एक साथ- कौन?........नीलम

नगमा- हां वही.......तुम्हारी लाडली......नीलम, मानती तो है नही वो, जानती ही हो बचपन से जिद्दी है, सुने तब न किसी की.....बोल रही थी कि रहने दे लेकिन मानी नही, बोली कि मेरे मामा मामी और नाना के लिए जामुन जरूर लेके जाना।

नीलम के मामा- अरे उसे लगी तो नही कहीं, क्या जरूरत थी ये सब करने की, वो भी न पगली है बिल्कुल।

नीलम की मामी ने भी उसके मामा की बात में सहमति जताई।

नगमा- लगी नही बच गए, नीचे उसके बाबू खड़े थे उन्ही के ऊपर गिरी और वो दोनों बगल में पड़ी खाट पर गिरे....भगवान का शुक्र है बच गए, बस उसके बाबू के हाँथ में थोड़ी सी चोट आई थी पर अब वो भी ठीक हैं।

नीलम की मामी- बताओ नीलम को हमारी कितनी चाहत है, अपनी जान जोखिम में डालकर हम लोगों के लिए जामुन भेजे हैं मेरी लाडली ने। ऐसी बेटी सबको दे भगवान।

तभी नीलम के नाना खेत से आ जाते हैं, नीलम के नाना का नाम चंद्रभान सिंह था।

अपनी बेटी नगमा (नीलम की माँ) को देखते ही उनकी आंखें चमक गयी, मानो खुशियों का खजाना मिल गया हो।

चंद्रभान- अरे बिटिया कब आयी।

नगमा- अभी अभी आयी बाबू, आप तो अब घर पर आराम किया करो बाबू, अब खेती बाड़ी भैया संभालेंगे, काहे परेशान होते हो।

चंद्रभान- अरे बिटिया इनमे क्या परेशानी, खेती बाड़ी काम धाम करता रहूंगा तो शरीर में ताकत और हिम्मत रहेगी, घर बैठ के भी क्या करूँगा, इसलिए मन बहलाने के लिए खेत में चला जाता हूँ।

नगमा- वो तो ठीक है बाबू, पर फिर भी।

चंद्रभान- अरे बेटी ठीक है सब, तू बता तेरे ससुराल में सब ठीक है।

नगमा- हाँ बाबू, ठीक है सब, लो जामुन खाओ, तुम्हारी नातिन ने भेजे हैं तुम्हारे लिए।

चंद्रभान ने एक दो जामुन उठाते हए- अच्छा, जुग जुग जिये मेरी बिटिया, कितने बढ़िया बढ़िया जामुन भेजें हैं।

नगमा- हाँ बाबू, जो घर के आगे पेड़ है न उसी पेड़ के हैं ये जामुन, इस वक्त बहुत जामुन लगे हैं उसमें।

चन्द्रभान- बहुत मीठे और रसीले हैं, बिल्कुल मेरी बेटी की तरह।
(चन्द्रभान ने ये बात बिल्कुल धीरे से बोली)

नगमा ये सुनकर झेंप सी गयी और हल्का सा मुस्कुरा दी, तिरछी नज़रों से देखा कि कहीं नीलम के मामा मामी ने तो ये बात नही सुनी, पर वो लोग आपस में कुछ और बात करने लगे थे।

चन्द्रभान ने कुछ जामुन खाये फिर बोला- बेटी इसे अभी रख दे मेरे हिस्से का रात को देना खाना खाने के बाद खाऊंगा मैं।

नगमा- ठीक है बाबू अभी रख देती हूं आपके हिस्से का।

चन्द्रभान अपनी बेटी नगमा को और नीलम की माँ नगमा अपने पिता को चोरी चोरी एक दूसरे की आंखों में देखकर मुस्कुरा रहे थे, जैसे कि बेसब्री से किसी चीज़ का इंतज़ार हो।

चन्द्रभान अपनी बेटी नगमा को देखते हुए मुस्कुराकर उठकर कोई और काम करने चला गया, शाम हो ही चुकी थी, खाना बनाने की तैयारी करनी थी, नीलम की मामी ने बोला- दीदी (नीलम की मामी नीलम की माँ को कभी प्यार से ननद रानी तो कभी दीदी बोलती थी), तुम बैठो आराम करो मैं खाना बनाती हूँ।

नगमा- अरे मैं भी मदद करती हूं न तेरी, दोनों साथ में मिलकर बना लेते है, भैया थोड़ा कुएँ से पानी ला दीजिए, घर में बाल्टी खाली पड़ी है।

नीलम के मामा- हां दीदी मैं अभी ला देता हूँ।

नीलम के मामा कुएँ से पानी लेने बाहर चले गए, नीलम की माँ और उसकी मामी खाना बनाने लगी, कुछ ही देर में नीलम के मामा ने सारी बाल्टियां भर दी और वो भी किसी काम से बाहर चले गए।

नीलम की मामी- दीदी मुझे न जरा रात को कीर्तन में जाना है पड़ोस में, चाहो तो तुम भी चलो।

नगमा- अरे नही भौजी तू ही चली जा, रात को भैया और बाबू जी को खाना भी तो खिलाना है।

नीलम की मामी- हाँ ये भी ठीक कहा तुमने, तो तुम पिताजी और अपने भैया को खाना परोस देना मैं थोड़ा देर से ही आ पाऊंगी।

नगमा- कोई बात नही भौजी, खाना तो बना ही रहे हैं, खाना बना कर तुम चली जाना और मैं परोस दूंगी बाबू जी और भैया को, पर तुम खाना खा के जाना कीर्तन में।

नीलम की मामी- अरे नही दीदी, मैं आके खाऊँगी, तुम खा लेना और अपने भैया और पिताजी को खाना परोस देना, तुम्हारे भैया भी कहीं गए ही है लगता है देर से ही आएंगे।

नगमा- ठीक है भौजी मैं सम्भाल लुंगी तुम निश्चिन्त होकर जाओ।

फिर दोनों ने जल्दी जल्दी खाना बनाया।

नीलम की मामी- ननद रानी

नगमा- हां भौजी

नीलम की मामी- पिता जी के पैर में न..... सीधे अंगूठे के नाखून के पास परसों चलते हुए कहीं ठेस (ठोकर) लग गयी थी, तो उनको न सरसों का तेल उसमे लहसुन डाल के थोड़ा गरम करके लगा देना पैर में।

नगमा- कैसे......कैसे लग गयी बाबू को?

(नगमा की मानो जान ही निकल गयी हो सुनके)

नीलम की मामी- अरे वो कहीं से आ रहे होंगे तो कहीं रास्ते में लग गयी थी, पर अब ठीक हो गया है थोड़ा बहुत बाकी है, एक दो दिन और तेल ठीक से लगाएंगे तो ठीक हो जाएगा।

नगमा- बाबू गए कहाँ?

नीलम की मामी- जाएंगे कहाँ अब शाम को वहीं दालान में लेटे होंगे, अभी खाना खा के चले जायेंगे खेत में सोने, मचान पर

नगमा- खेत में सोने, मचान पर, आजकल खेत में सोते हैं क्या बाबू?

(यहां मैं आप लोगों को बता दूं कि मचान एक तरीके की खाट होती है जिसको चार बल्ली गाड़कर ऊंचाई पर बनाया जाता है, इसके ऊपर एक shed भी होता है घास फूस का, मचान को लोग अक्सर गांव में खेतों की रखवाली करने के लिए बनाते हैं, यह एक तरीके की झोपड़ी होती है जो कि जमीन से 8-10 फ़ीट ऊपर होती है।)

नीलम की मामी- हां.... मक्का बोया है न खेत में तो रखवाली करनी पड़ती है, रात को नीलगाय आती हैं अक्सर, और न भगाओ तो सारी फसल बर्बाद, इसीलिए वहीं खेत में एक मचान बना रखा है, रात को पिताजी खाना खाने के बाद वहीं चले जाते है और फिर सुबह ही आते हैं।

नगमा- भैया नही जाते?

नीलम की मामी- एक दो दिन शुरू में गए थे पर फिर पिताजी ने ही मना कर दिया, बोला तुम घर पे ही सोया करो, खेत में मैं चला जाऊंगा।

नीलम की मामी पड़ोस में कीर्तन में चली गईं।

नगमा को मौका मिला, उस वक्त घर में सिर्फ नगमा और उसके बाबू चन्द्रभान ही थे, नगमा ने झट से सरसों के तेल में लहसुन डालके गर्म किया और चिमटे से गर्म कटोरी को पकड़के एक प्लेट में रखा और लेकर पहुंच गई अपने बाबू चन्द्रभान के पास जो कि दालान में खाट पर लेटे आराम कर रहे थे।

नगमा- बाबू

चन्द्रभान की आंख खुली अपनी बिटिया की रसीली आवाज सुनकर- हाँ बेटी

झट से उठ बैठा खाट से चन्द्रभान

नगमा ने गर्म तेल की कटोरी बगल में रखी और झट से अपने बाबू की बाहों में समा गई, दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने लगे।

चन्द्रभान- कब से इंतज़ार कर रहा हूँ दालान में लेटकर कि तू अब आएगी.....अब आएगी.... पर इतनी देर लगा दी......ह्म्म्म...... एक तो वैसे ही तू इस बार मायके कितने दिनों बाद आई है, तेरे बिना मैं कैसे रहता हूँ ये मुझे ही पता है मेरी बेटी। तेरी गुझिया के बिना मैं
बेकाबू होने लगता हूँ ये बात तुझे पता है न, तेरी गुझिया मैं कब से खा रहा हूँ जब तेरा ब्याह भी नही हुआ था, पर मेरा आजतक मन नही भर इससे, देख ले ये चीज़ ही ऐसी है, बेटी की गुझिया और
इसलिए मैं वहाँ से उठकर दालान में आकर लेट गया कि तू जल्दी आएगी।

(चन्द्रभान अपनी बेटी नगमा की बूर को गुझिया बोलता था बड़े प्यार से, यहां गुझिया का मतलब बूर से है, नगमा अपने बाबू के मुँह जब भी ये शब्द सुनती थी शरमा कर मुस्कुरा देती थी)

चन्द्रभान नगमा को बेसब्री से चूमता हुआ एक ही बार में इतना कुछ कह गया।

नगमा- आआआआहहह.....बाबू, बर्दास्त तो मुझसे भी नही होता पर क्या करती दीदी थी साथ में न, तो उन्ही के साथ लगी थी अब वो पड़ोस में गई हैं कीर्तन में, तो मैं झट से मौका पाते ही आ गयी आपके पास। इस वक्त घर में मेरे और आपके सिवा कोई नही है, भैया भी कहीं गए हैं, आपके बिना तो मैं भी नही रह पाती बाबू इसलिए ही तो मायके आने का बहाना ढूंढती रहती हूं, अब आ गयी हूँ न आपको आपकी प्यारी से गुझिया खिलाने, जैसे जी में आये खा लीजिएगा। इस बार थोड़ा ज्यादा वक्त हो गया, जुदाई बर्दास्त नही हुई तो चली आयी एक बहाना लेकर।

नगमा और चन्द्रभान एक दूसरे से लिपटे चूम रहे थे एक दूसरे को, जो इन दोनों बाप बेटी के बीच था वो आज का नही था, वो था बरसों पुराना।
 
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उधर नीलम की माँ अपने मायके जामुन से भरा थैला लेकर पहुँच गयी थी, नीलम की माँ का नाम नगमा था, नीलम के नाना के यहां उसके नाना और मामा मामी ही रहते थे, नीलम के मामा उसके नाना के साथ खेती बाड़ी का काम संभालते थे, नीलम के नाना उम्रदराज तो हो गए थे पर अच्छे खान पान की वजह से शरीर ज्यादा ढला नही था, खेती बाड़ी का काम करने की वजह से सेहत अच्छी थी।

नगमा जब अपने मायके पहुँची तो शाम हो चुकी थी, नीलम की मामी ने उसका स्वागत किया, उसके मामा भी शाम तक घर आ चुके थे, बस उसके नाना अभी तक खेत से नही आये थे, नीलम की माँ नगमा ने पानी वानी पिया और आराम करने लगी।

नीलम की मामी- मेरे नंदोई और मेरी बिटिया नीलम कैसी है?

नगमा- सब ठीक है भौजी।

नीलम की मामी- नीलम को क्यों नही लायी, कम से कम उसे तो ले आती, कितना वक्त हो गया उसे देखे, जब भी आती हो अकेले ही आ जाती हो।

नगमा- अरे भौजी वो तो मायके ही कभी कभी आती है, कुछ दिन रहती है फिर चली जाती है अपनी ससुराल, लेकिन अब इस बार दुबारा आऊंगी तो उसको भी लिवा के आऊंगी, मैं इस बार आयी ही हूँ किसी खास काम से।

नीलम की मामी- कैसा काम, क्या हुआ?

नगमा ने फिर नीलम की मामी को सब कुछ बता दिया कि वो किस काम से आई है, नीलम की मामी ने कहा कि बिल्कुल ठीक है, ससुर जी उस बुढ़िया को जानते हैं वो तुम्हे लिवा कर वहां उसके पास चले जायेंगे, जाके पहले पता कर लेंगे फिर नीलम को लिवा आना दिखा देंगे, देखो क्या बताती है वो बुढ़िया।

नगमा- हाँ भौजी, अपना कर्म तो करना ही पड़ता है बाकी तो किस्मत है।

नीलम की मामी- चिंता मत कर ननद रानी सब ठीक हो जाएगा, हमारी नीलम की गोद भी सूनी नही रहेगी, तू चिंता बिल्कुल मत कर।

नगमा- भौजी लो ये जामुन खाओ नीलम ने खासकर अपने मामा मामी और नाना के लिए पेड़ से तोड़कर भेजा है, भैया लो आप भी खाओ मेरे ससुराल के जामुन।

नीलम के मामा वहीं बैठे थे वो भी नीलम की माँ नगमा से बातें कर रहे थे, सब जामुन खाने लगे।

नगमा- अरे इस जामुन को तोड़ने के चक्कर में पेड़ से भी गिरी है वो।

नीलम के मामा और मामी एक साथ- कौन?........नीलम

नगमा- हां वही.......तुम्हारी लाडली......नीलम, मानती तो है नही वो, जानती ही हो बचपन से जिद्दी है, सुने तब न किसी की.....बोल रही थी कि रहने दे लेकिन मानी नही, बोली कि मेरे मामा मामी और नाना के लिए जामुन जरूर लेके जाना।

नीलम के मामा- अरे उसे लगी तो नही कहीं, क्या जरूरत थी ये सब करने की, वो भी न पगली है बिल्कुल।

नीलम की मामी ने भी उसके मामा की बात में सहमति जताई।

नगमा- लगी नही बच गए, नीचे उसके बाबू खड़े थे उन्ही के ऊपर गिरी और वो दोनों बगल में पड़ी खाट पर गिरे....भगवान का शुक्र है बच गए, बस उसके बाबू के हाँथ में थोड़ी सी चोट आई थी पर अब वो भी ठीक हैं।

नीलम की मामी- बताओ नीलम को हमारी कितनी चाहत है, अपनी जान जोखिम में डालकर हम लोगों के लिए जामुन भेजे हैं मेरी लाडली ने। ऐसी बेटी सबको दे भगवान।

तभी नीलम के नाना खेत से आ जाते हैं, नीलम के नाना का नाम चंद्रभान सिंह था।

अपनी बेटी नगमा (नीलम की माँ) को देखते ही उनकी आंखें चमक गयी, मानो खुशियों का खजाना मिल गया हो।

चंद्रभान- अरे बिटिया कब आयी।

नगमा- अभी अभी आयी बाबू, आप तो अब घर पर आराम किया करो बाबू, अब खेती बाड़ी भैया संभालेंगे, काहे परेशान होते हो।

चंद्रभान- अरे बिटिया इनमे क्या परेशानी, खेती बाड़ी काम धाम करता रहूंगा तो शरीर में ताकत और हिम्मत रहेगी, घर बैठ के भी क्या करूँगा, इसलिए मन बहलाने के लिए खेत में चला जाता हूँ।

नगमा- वो तो ठीक है बाबू, पर फिर भी।

चंद्रभान- अरे बेटी ठीक है सब, तू बता तेरे ससुराल में सब ठीक है।

नगमा- हाँ बाबू, ठीक है सब, लो जामुन खाओ, तुम्हारी नातिन ने भेजे हैं तुम्हारे लिए।

चंद्रभान ने एक दो जामुन उठाते हए- अच्छा, जुग जुग जिये मेरी बिटिया, कितने बढ़िया बढ़िया जामुन भेजें हैं।

नगमा- हाँ बाबू, जो घर के आगे पेड़ है न उसी पेड़ के हैं ये जामुन, इस वक्त बहुत जामुन लगे हैं उसमें।

चन्द्रभान- बहुत मीठे और रसीले हैं, बिल्कुल मेरी बेटी की तरह।
(चन्द्रभान ने ये बात बिल्कुल धीरे से बोली)

नगमा ये सुनकर झेंप सी गयी और हल्का सा मुस्कुरा दी, तिरछी नज़रों से देखा कि कहीं नीलम के मामा मामी ने तो ये बात नही सुनी, पर वो लोग आपस में कुछ और बात करने लगे थे।

चन्द्रभान ने कुछ जामुन खाये फिर बोला- बेटी इसे अभी रख दे मेरे हिस्से का रात को देना खाना खाने के बाद खाऊंगा मैं।

नगमा- ठीक है बाबू अभी रख देती हूं आपके हिस्से का।

चन्द्रभान अपनी बेटी नगमा को और नीलम की माँ नगमा अपने पिता को चोरी चोरी एक दूसरे की आंखों में देखकर मुस्कुरा रहे थे, जैसे कि बेसब्री से किसी चीज़ का इंतज़ार हो।

चन्द्रभान अपनी बेटी नगमा को देखते हुए मुस्कुराकर उठकर कोई और काम करने चला गया, शाम हो ही चुकी थी, खाना बनाने की तैयारी करनी थी, नीलम की मामी ने बोला- दीदी (नीलम की मामी नीलम की माँ को कभी प्यार से ननद रानी तो कभी दीदी बोलती थी), तुम बैठो आराम करो मैं खाना बनाती हूँ।

नगमा- अरे मैं भी मदद करती हूं न तेरी, दोनों साथ में मिलकर बना लेते है, भैया थोड़ा कुएँ से पानी ला दीजिए, घर में बाल्टी खाली पड़ी है।

नीलम के मामा- हां दीदी मैं अभी ला देता हूँ।

नीलम के मामा कुएँ से पानी लेने बाहर चले गए, नीलम की माँ और उसकी मामी खाना बनाने लगी, कुछ ही देर में नीलम के मामा ने सारी बाल्टियां भर दी और वो भी किसी काम से बाहर चले गए।

नीलम की मामी- दीदी मुझे न जरा रात को कीर्तन में जाना है पड़ोस में, चाहो तो तुम भी चलो।

नगमा- अरे नही भौजी तू ही चली जा, रात को भैया और बाबू जी को खाना भी तो खिलाना है।

नीलम की मामी- हाँ ये भी ठीक कहा तुमने, तो तुम पिताजी और अपने भैया को खाना परोस देना मैं थोड़ा देर से ही आ पाऊंगी।

नगमा- कोई बात नही भौजी, खाना तो बना ही रहे हैं, खाना बना कर तुम चली जाना और मैं परोस दूंगी बाबू जी और भैया को, पर तुम खाना खा के जाना कीर्तन में।

नीलम की मामी- अरे नही दीदी, मैं आके खाऊँगी, तुम खा लेना और अपने भैया और पिताजी को खाना परोस देना, तुम्हारे भैया भी कहीं गए ही है लगता है देर से ही आएंगे।

नगमा- ठीक है भौजी मैं सम्भाल लुंगी तुम निश्चिन्त होकर जाओ।

फिर दोनों ने जल्दी जल्दी खाना बनाया।

नीलम की मामी- ननद रानी

नगमा- हां भौजी

नीलम की मामी- पिता जी के पैर में न..... सीधे अंगूठे के नाखून के पास परसों चलते हुए कहीं ठेस (ठोकर) लग गयी थी, तो उनको न सरसों का तेल उसमे लहसुन डाल के थोड़ा गरम करके लगा देना पैर में।

नगमा- कैसे......कैसे लग गयी बाबू को?

(नगमा की मानो जान ही निकल गयी हो सुनके)

नीलम की मामी- अरे वो कहीं से आ रहे होंगे तो कहीं रास्ते में लग गयी थी, पर अब ठीक हो गया है थोड़ा बहुत बाकी है, एक दो दिन और तेल ठीक से लगाएंगे तो ठीक हो जाएगा।

नगमा- बाबू गए कहाँ?

नीलम की मामी- जाएंगे कहाँ अब शाम को वहीं दालान में लेटे होंगे, अभी खाना खा के चले जायेंगे खेत में सोने, मचान पर

नगमा- खेत में सोने, मचान पर, आजकल खेत में सोते हैं क्या बाबू?

(यहां मैं आप लोगों को बता दूं कि मचान एक तरीके की खाट होती है जिसको चार बल्ली गाड़कर ऊंचाई पर बनाया जाता है, इसके ऊपर एक shed भी होता है घास फूस का, मचान को लोग अक्सर गांव में खेतों की रखवाली करने के लिए बनाते हैं, यह एक तरीके की झोपड़ी होती है जो कि जमीन से 8-10 फ़ीट ऊपर होती है।)

नीलम की मामी- हां.... मक्का बोया है न खेत में तो रखवाली करनी पड़ती है, रात को नीलगाय आती हैं अक्सर, और न भगाओ तो सारी फसल बर्बाद, इसीलिए वहीं खेत में एक मचान बना रखा है, रात को पिताजी खाना खाने के बाद वहीं चले जाते है और फिर सुबह ही आते हैं।

नगमा- भैया नही जाते?

नीलम की मामी- एक दो दिन शुरू में गए थे पर फिर पिताजी ने ही मना कर दिया, बोला तुम घर पे ही सोया करो, खेत में मैं चला जाऊंगा।

नीलम की मामी पड़ोस में कीर्तन में चली गईं।

नगमा को मौका मिला, उस वक्त घर में सिर्फ नगमा और उसके बाबू चन्द्रभान ही थे, नगमा ने झट से सरसों के तेल में लहसुन डालके गर्म किया और चिमटे से गर्म कटोरी को पकड़के एक प्लेट में रखा और लेकर पहुंच गई अपने बाबू चन्द्रभान के पास जो कि दालान में खाट पर लेटे आराम कर रहे थे।

नगमा- बाबू

चन्द्रभान की आंख खुली अपनी बिटिया की रसीली आवाज सुनकर- हाँ बेटी

झट से उठ बैठा खाट से चन्द्रभान

नगमा ने गर्म तेल की कटोरी बगल में रखी और झट से अपने बाबू की बाहों में समा गई, दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने लगे।

चन्द्रभान- कब से इंतज़ार कर रहा हूँ दालान में लेटकर कि तू अब आएगी.....अब आएगी.... पर इतनी देर लगा दी......ह्म्म्म...... एक तो वैसे ही तू इस बार मायके कितने दिनों बाद आई है, तेरे बिना मैं कैसे रहता हूँ ये मुझे ही पता है मेरी बेटी। तेरी गुझिया के बिना मैं
बेकाबू होने लगता हूँ ये बात तुझे पता है न, तेरी गुझिया मैं कब से खा रहा हूँ जब तेरा ब्याह भी नही हुआ था, पर मेरा आजतक मन नही भर इससे, देख ले ये चीज़ ही ऐसी है, बेटी की गुझिया और
इसलिए मैं वहाँ से उठकर दालान में आकर लेट गया कि तू जल्दी आएगी।

(चन्द्रभान अपनी बेटी नगमा की बूर को गुझिया बोलता था बड़े प्यार से, यहां गुझिया का मतलब बूर से है, नगमा अपने बाबू के मुँह जब भी ये शब्द सुनती थी शरमा कर मुस्कुरा देती थी)

चन्द्रभान नगमा को बेसब्री से चूमता हुआ एक ही बार में इतना कुछ कह गया।

नगमा- आआआआहहह.....बाबू, बर्दास्त तो मुझसे भी नही होता पर क्या करती दीदी थी साथ में न, तो उन्ही के साथ लगी थी अब वो पड़ोस में गई हैं कीर्तन में, तो मैं झट से मौका पाते ही आ गयी आपके पास। इस वक्त घर में मेरे और आपके सिवा कोई नही है, भैया भी कहीं गए हैं, आपके बिना तो मैं भी नही रह पाती बाबू इसलिए ही तो मायके आने का बहाना ढूंढती रहती हूं, अब आ गयी हूँ न आपको आपकी प्यारी से गुझिया खिलाने, जैसे जी में आये खा लीजिएगा। इस बार थोड़ा ज्यादा वक्त हो गया, जुदाई बर्दास्त नही हुई तो चली आयी एक बहाना लेकर।

नगमा और चन्द्रभान एक दूसरे से लिपटे चूम रहे थे एक दूसरे को, जो इन दोनों बाप बेटी के बीच था वो आज का नही था, वो था बरसों पुराना।
Wow.....mast update hai
 
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Another blockbuster release. It is too much hot and erotic. How can you write such kind of hot and lascivious story? Hats off dear.
 
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