Update- 55
नगमा- अच्छा पैर दिखाओ, देखूं जरा चोट कहाँ लगी मेरे साजन को, मैं नही रहूँगी तो ऐसे ही बहक बहक के चलोगे न, चाहे चोट ही लग जाये, दिखाओ जरा
नगमा ने प्यार से थोड़ा शिकायत भरे लहजे में कहा।
चन्द्रभान- क्या करूँ मेरी बेटी जब तू ससुराल चली जाती है तो मुझे तेरी गुझिया की बहुत याद आती है और जब मीठी मीठी गुझिया खाने को नही मिलती तो मैं बावरा सा होने लगता हूँ। ऐसे ही तेरी याद में खोया एक दिन खेत से आ रहा था तो रास्ते में ठोकर लग गयी, ये देख....पर अब तो ठीक हो गया है।
नगमा- मैं इसलिए ही तो मायके आती हूँ, आपको अपनी गुझिया खिलाने, आपके बिना मैं भी कहाँ रह पाती हूँ मेरे साजन, अच्छा लाओ पैर इधर करो गर्म तेल लगा दूँ बिल्कुल ठीक हो जाएगा अब।
चन्द्रभान- सच मेरी बेटी अब तू अपने हाथ से इस चोट में तेल लगा देगी न तो ये बिल्कुल ठीक हो जाएगा।
नगमा ने गर्म गर्म तेल चन्द्रभान के अंगूठे पर लगाया और थोड़ा मालिश किया।
चंद्रभान खाट पर लेटने लगा नगमा खाट के पास खड़ी हो गयी और तेल की कटोरी को थोड़ा दूर रखा, चंद्रभान ने खाट पर लेटकर बाहें फैला दी और नगमा झट से अपने बाबू ले ऊपर चढ़ गई और उनकी बाहों में समा गई, और दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे।
नगमा- बाबू.....कहीं भैया आ न जाएँ। चलो पहले खाना खा लो फिर अपनी गुझिया खाना।
चंद्रभान ने नगमा के होंठों को चूमते हुए बोला- एक बार नाम तो बोल उसका।
नगमा- अब समझ जाइये न
चंद्रभान ने नगमा के गालों को हौले से चूमते हुए बोला- बोल भी दे न मेरी रानी बेटी, तेरे मुँह से सुनके बहुत जोश चढ़ता है, इस वक्त तो कोई नही है घर में, कौन सुनेगा?
नगमा कुछ देर चंद्रभान की आंखों में देखकर मुस्कुराती रही फिर धीरे से कान में बोली- बूबूबूबूबूबूरररररर.......आपकी बेटी की बूर......चलो खाना खा लो फिर उसके बाद अपनी बेटी की फूली फूली बूर खाना...........अब खुश
चंद्रभान- आह..... अब आया न मजा....खाना खिलाने से पहले नही खिलाओगी अपनी बूर, मेरा तो अभी ही मन कर रहा है।
नगमा- थोड़ा सब्र बाबू... ..अभी इस वक्त भैया कभी भी आ सकते हैं, खाना खा लो फिर उसके बाद, खाना खाने ले बाद मीठा खाने में और मजा आता है, आप तो अब खेत में सोते हो न बाबू मचान पर।
चंद्रभान- हाँ खेत में जाता हूँ सोने......इसलिए तो बोल रहा हूँ कि चखा दे इसे...... फिर तो मैं खेत में चला जाऊंगा...तो अपनी गुझिया कैसे खाऊंगा।
(चंद्रभान ने ये बात नगमा की बूर को साड़ी के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा, नगमा की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, साड़ी के ऊपर से चंद्रभान कुछ देर बूर को सहलाता रहा)
नगमा- बाबू आपको मैं आपकी गुझिया खेत में ही आकर रात को परोसुंगी, आप चिंता मत करो, रात को खेत में मचान पे लेटकर करने में बहुत मजा आएगा।
चंद्रभान ने मस्ती में कहा- क्या करने में मेरी बिटिया।
नगमा- वही
चंद्रभान- वही क्या मेरी बिटिया
नगमा ने धीरे से कहा- चोदा चोदी.... और क्या.....(नगमा फिर थोड़ा शरमा गयी)
चंद्रभान- लेकिन तू खेत में कैसे आएगी वो भी रात को।
नगमा- बाबू.....एक बेटी को जब उसके पिता के लन्ड की प्यास लगती है न तो वो कहीं भी चली आएगी, उसकी चिंता आप मत करो.....बस खेत में जाते वक्त जरा जोर से ये बोलकर जाना कि नगमा... ओ नगमा बेटी....मेरा बचा हुआ जामुन खेत में ही पहुँचा देना मैं वहीं खा लूंगा.....बस इतना कर देना।
(नगमा अपने मुँह से कई दिनों के बाद लन्ड शब्द बोलकर फिर से शरमा गयी और अपने बाबू के सीने सर छुपा लिया)
चंद्रभान- मतलब आज रात को खेत में बेटी की गुझिया खाने को मिलेगी।
नगमा- हां.....बाबू.......गरम गरम.....मीठी मीठी गुझिया......बेटी की
इतने में नीलम के मामा के आने की आहट हुई तो दोनों अलग हो गए और नगमा दालान से बाहर आ गयी अपने भैया को देखते ही बोली- भैया आ गए, चलो खाना खा लो, खाना तैयार है।
नीलम के मामा- दीदी तुम बाबू को खिला दो मैं तो आज मित्र के यहाँ किसी काम से गया था वही खा लिया खाना अब मुझे आ रही है नींद, खेत में भी आज बहुत काम था, थक गया हूँ काफी, तुम खा लो बाबू को खिला दो।
नगमा- अच्छा ठीक है फिर जाओ सो जाओ, भौजी तो कीर्तन में गयी है, थोड़ा देर से ही आएंगी।
नीलम के मामा- हाँ मुझे पता है, बताया था उसने मुझे, आएगी तो खा लेगी निकाल के खाना, तुम खा लो और बाबू जी को परोस दो खाना, तुम भी तो काफी थक गई होगी।
नगमा- ठीक है भैया जाओ सो जाओ मैं और बाबू खा लेंगे खाना
नीलम के मामा तो चले गए अपने कमरे में सोने।
नगमा- बाबू.....ओ बाबू चलो खाना खा लो अब, रात हो गयी काफी, देखो 9 बजने को हैं।
चंद्रभान- ठीक है बेटी तू खाना परोस मैं आता हूँ।
नगमा ने रसोई के बाहर दरी बिछा कर अपने बाबू का खाना परोस दिया। चंद्रभान आया और खाना खाने बैठ गया।
चंद्रभान- तेरा खाना कहाँ है।
नगमा- बाबू आप खा लीजिए मैं भौजी के साथ थोड़ा बाद में खाऊँगी।
चंद्रभान- अरे मेरे साथ खा न, बहू जब आएगी तो उसके साथ भी खा लेना।
चंद्रभान ने एक निवाला नगमा के मुँह में डाल दिया और दोनों एक ही थाली में खाना खाने लगे, नगमा भी अपने हांथों से प्यार से चंद्रभान को खाना खिलाने लगी, कुछ देर खाने के बाद नगमा बोली- अच्छा बाबू अब आप खाइए।
और वो उठने लगी तो चंद्रभान बोला- खाने में मेरी मनपसंद चीज़ इस बार नही मिली मुझे।
नगमा ने उंगली से इशारा करते हुए कहा- इस बड़ी कटोरी के नीचे वाली कटोरी में है बाबू आपकी मनपसंद चीज, पूरा खाना खाने के बाद उसका भोग करना और हंसते हुए रसोई में चली गयी और दाल चावल लाने, थोड़ा और दाल चावल लेके आयी और चंद्रभान की थाली में परोस दिया, चन्द्रभान ने जी भरके अपनी बेटी को निहारते हुए खाना खाया।
नगमा भी वहीं बैठे बैठे बड़े प्यार से अपने बाबू को निहारती रही, बीच बीच में चंद्रभान निवाला नगमा के मुँह में डालता तो वो आ करके मुँह खोलती और निवाला खाने लगती, दोनों हंस भी देते मस्ती करते हुए।
खाना खाने के बाद चंद्रभान ने नगमा को देखते हुए वो बड़ी कटोरी हटाई और उसके नीचे छोटी कटोरी उठा के सूँघा और बोला- वाह...... वही खुशबू...... मजा आ गया।
नगमा- मजा आ गया बाबू
चंद्रभान- बहुत, ये है असली चीज़
नगमा- मेरा पेशाब आपको इतना पसंद है
चंद्रभान- बहुत मेरी जान.....बहुत
नगमा- तो पी लो.....कम है तो और भर दूँ कटोरी में मूत के
नगमा वासना से भर गई
चंद्रभान- भरना है तो मेरा मुँह ही भर दे न मेरी रानी उसमे मूतकर.........खाने के बाद मुझे तेरे मूत की महक मिल जाय तो मानो जन्नत मिल गयी।
चंद्रभान ने कटोरी उठाकर नगमा को देखते हुए उसमे अपनी जीभ निकाल के डुबोई और जीभ से चाट चाट के अपनी बेटी का महकता पेशाब पीने लगा मानो कोई शेर मांस खाने के बाद नदी किनारे पानी पीने आया हो।
चन्द्रभान- वाह क्या स्वाद है मेरी बेटी की गुझिया के पानी का।
चन्द्रभान कुछ देर कटोरी में पेशाब को चाटता रहा फिर गट गट करके पी गया।
नगमा एक टक लगाए अपने बाप को देखती रही और मुस्कुरा दी, चंद्रभान की आंखों में वासना के डोरे साफ झलक रहे थे।
नगमा ने धीरे से कहा- हाय बाबू आपको याद है पहली बार जब आपने मेरी कच्ची बूर से पेशाब पिया था, मेरी बूर कितनी कच्ची थी उस वक्त।
(नगमा बूर शब्द बहुत धीरे से बोल रही थी कि कहीं उसके भैया न सुन ले, वैसे तो वो सो गया था पर फिर भी डर तो था ही)
चंद्रभान- तेरी कच्ची बूर का स्वाद मैं कभी नही भूल सकता बेटी, वो पेशाब जो मैंने पहली बार पिया था।
नगमा- उस वक्त मैं कितना रोई थी जब अपने पहली बार अपने मूसल से मुझे "चोदा" था, मैं रोये भी जा रही थी और चुदवा भी रही थी, सच बताऊं बाबू मैं रो भले रही थी पर बाद में मुझे बहुत मजा आने लगा था, तभी से तो मैं इसकी दीवानी हो गयी।
चंद्रभान- किसकी मेरी बिटिया..?
नगमा- अब आगे बताऊंगी खेत में.....की मैं किसकी दीवानी हूँ।
चंद्रभान- मूत पिलाएगी अपना न.....खेत में
नगमा- क्यों नही.....मेरे सजना.....मेरे बाबू जो जो पियेंगे वो वो पिलाऊंगी।
चंद्रभान- तो फिर अब मैं चलता हूँ खेत में......तू जल्दी आना।
नगमा- पर बाबू भौजी आ जाएगी तब ही आऊंगी..... पर आप एक बार बोल के जाइये...थोड़ा रुक जाइये....भौजी को आने दीजिए उनके सामने बोलके जाइये।
चंद्रभान- ठीक है मेरी जान जैसी तेरी मर्जी
चंद्रभान खाना खा के और अपनी बेटी का परोसा हुआ पेशाब पी के बाहर चला गया
थोड़ी देर में जैसे ही नीलम की मामी आयी चंद्रभान ने बाहर से आवाज लगाई।
चंद्रभान- नगमा बेटी
नगमा- हाँ बाबू
चंद्रभान- अरे तूने खाना तो खिला दिया पर जो तू जामुन लायी थी मेरे हिस्से का वो तो रह ही गया, मैंने बोला था मुझे खाना खाने के बाद देना, अब मैं जा रहा हूँ खेत में....एक काम करना वहीं पहुँचा देना।
नगमा ने भी दिखावे के लिए- हां बाबू आप चलिए मैं ले आऊंगी आपके हिस्से का जामुन खेत मे।