Update- 56
चंद्रभान यह कहकर की मैं खेत में सोने जा रहा हूँ चला गया।
नगमा- भौजी चल अब खाना खा ले।
नीलम की मामी- हां दीदी चलो, सबने खा लिया खाना?
नगमा- हाँ, बाबू जी और भैया ने तो खा लिया।
दोनों ननद भौजाई ने खाना खाया।
नीलम की मामी- दीदी अभी तो आप पिताजी के पास जाओगी न, खेत में।
नगमा- हाँ भौजी, उन्होंने बोला है न कि खेत में ही पहुँचा देना मेरे हिस्से का जामुन, पहुँचा देती हूं, नही तो कल तक तो खराब हो जाएंगे, बाबू खेत में ही खा लेंगे।
नीलम की मामी- हाँ भौजी जरूर.....मैं भी चलूं क्या, अकेली कैसे जाओगी रात को खेत में।
नगमा- अरे नही भाभी मैं चली जाउंगी, ये तो मेरा मायका है यहां कैसा डर, तुम भैया का ख्याल रखो यहां।
इतना कहकर नगमा मुस्कुरा दी तो नीलम की मामी भी मुस्कुरा दी और बोली- वो तो मैं रोज ही रात को ख्याल रखती हूं तुम्हारे भैया का।
नीलम की मामी- दीदी अगर देर हो जाये तो वहीं सो जाना रात को, अकेले वापिस आना ठीक नही होगा।
नगमा- वहीं......वहां कहाँ सोऊंगी मैं भौजी?
नीलम की मामी- अरे पिताजी के पास मचान पर, और कहां, उनके बगल में सो जाना।
नगमा ऊपरी दिखावा करते हए- क्या भौजी तू भी न, पिता हैं वो, उनके पास सोऊंगी, वो भी इस उम्र में तुम भी क्या-क्या सुझाव देती हो भौजी, बड़ी शर्म आएगी मुझे...........अब कोई छोटी बच्ची थोड़ी न हूँ।
नीलम की मामी- अरे इसमें क्या शर्म, पिता ही तो हैं वो.............बगल में सोने में क्या हर्ज है?......बड़ी हो गयी हो तो क्या हुआ, हो तो बेटी ही...........आखिर इतनी रात को वापिस आना ठीक नही.........थोड़ा दूर भी तो है खेत, क्या अपने ऊपर भरोसा नही दीदी आपको (नीलम की मामी ने ये बात मुस्कुराते हुए कहा)
नगमा- कैसा भरोसा भौजी?
नीलम की मामी- यही की मन कहीं बहक गया रात को..…...तो हो जाएगा सब कुछ.......पिता जी के साथ ही......ह्म्म्म
नगमा- धत्त भौजी.......बेशर्म हो तुम बिल्कुल.......क्या बोलती हो तुम भी.......पिता हैं वो मेरे...........कितना गलत है ये...........बोलने से पहले सोच तो लो भौजी. ......लगता है तुम सोई हो अपने पिता के साथ एक ही खाट पे।
नीलम की मामी- हाँ दीदी सोई तो हूँ एक बार, मैं अपने मायके में।
नगमा- क्या सच?
नीलम की मामी- हाँ
नगमा- कब......कैसे.......आजतक कभी बताया नही तुमने?
नीलम की मामी- ऐसी बाते कोई बताई जाती हैं वो तो आज बात चली तो बता रही हूं।
नगमा- अच्छा!.. बताओ तो सही जरा मैं भी सुनू, मेरी भौजी ने क्या क्या किया है।
नीलम की मामी- तू किसी को बताएगी तो नही न।
नगमा- भौजी तुझे मेरे ऊपर विश्वास नही, तुम मेरी भौजी होने के साथ साथ एक अच्छी सहेली भी हो, मैं वचन देती हूं कभी किसी को नही बताऊंगी, और मैं भला बताऊंगी ही क्यों, क्या मैं अपनी भौजी का जो मुझे इतना सम्मान इतनी इज्जत देती हो उनको बदनाम करूँगी, कभी नही।
नीलम की मामी- ओह दीदी, अपने तो मेरा मन हल्का कर दिया।
नगमा- तो चल अब बता क्या क्या हुआ था? कैसे हुआ था? कब हुआ था?
नीलम की मामी- अरे अभी छः महीने पहले की ही बात है, जब मैं मायके नही गयी थी मेरी चाची के यहां ग्रह प्रवेश का कार्यक्रम था।
नगमा बड़े ध्यान से सुनते हुए- हम्म
नीलम की मामी- तभी की ही बात है, घर में काफी महमान आये हुए थे जगह की कमी थी, काफी देर रात तक घर का काम करती रही मैं, सब को खाना पीना खिलाकर, बर्तन वगैरह धोते धोते 11 बज गए रात के, ज्यादातर लोग सो ही गए थे, जब काम से फुरसत मिली तो खाना पीना खाकर सोने की जगह ढूंढने लगी, घर मे तो सारी महिलाएं कब्जा करके लेटी थी, बाहर सारे मर्द बिस्तर लगाए लेटे थे, अब बची मैं कहाँ जाऊं, कहाँ सोऊं, सोचा अम्मा के पास जाकर लेट जाती हूँ, उसके पास जाके देखा तो बगल में मेरी मामी लेटी थी, फिर मैं बरामदे में आ गयी, वहां कोने में एक खाट पे मेरे बाबू लेटे थे, उनकी खाट बिल्कुल एकांत में थी, वो जग रहे थे, उन्होंने मुझे इधर उधर बार बार आते जाते देखा तो उन्होंने मुझे अपने पास बुलाकर अपनी खाट पर सो जाने के लिए बोल दिया, मैं भी काफी थकी हुई थी, सोचा कि पिताजी के पास ही लेट जाती हूं, आखिर पिता ही तो है, इतनी रात को अब कौन यहां कोने में देखेगा, सुबह जल्दी उठकर चली जाउंगी, मुझे बहुत शर्म भी आ रही थी और अजीब भी लग रहा था, पहले तो नींद सता रही थी पर अब बाबू के पास लेटने की सोचकर एक अजीब से रोमांच और असमंजस में नींद ही उड़ गई मेरी, पर क्या करती बगल में लेट गयी, बाबू दूसरी तरफ मुँह करके लेट गए मैं दूसरी तरफ करवट लेकर लेटी थी।
काफी देर तक लेटी रही पर नींद ही नही आ रही थी, इतना तो मुझे पता था कि बाबू को भी नींद नही आ रही थी, मुझे न जाने क्यों बहुत अजीब सा लग रहा था, मैं कभी इस करवट लेटती तो कभी उस करवट, पर बाबू एक ही करवट, मेरी तरफ पीठ करके लेटे थे, काफी देर के बाद मुझे नींद आयी......आखिर सो गई मैं यूँ ही लेटे लेटे........पर रात को करीब 2 बजे के आस पास जब अचानक मेरी नींद खुली तो मैंने अपने आपको अपने बाबू के आगोश में पाया, उन्होंने मुझे नींद में बाहों में भर लिया था, मेरा जवान गदराया बदन नींद में न जाने कब उनकी बाहों में चला गया मुझे पता ही नही चला दीदी.........उनकी एक टाँग मेरी दोनों जाँघों के बीच में थी...खुद मैंने भी अपनी एक टांग उठा कर उनके जांघ पर रख रखी थी, दोनों पति पत्नी की तरह सो रहे थे.......मैंने खुद भी अपने बाबू को अपनी बाहों में भरा हुआ था..........मेरे दोनों दुद्धू (चूचीयाँ) बाबू के सीने से दबे हुए थे........इतना तो मुझे पता था कि बाबू ने ये जानबूझ कर नही किया था, ये बस हो गया था, पर मेरे होश उड़ गए, बाबू के मर्दाने पसीने की गंध मुझे मदहोश करने लगी दीदी........बहुत शर्म आयी मुझे..........मेरा मन शर्म के साथ साथ एक अजीब से रोमांच से भर गया.......तभी बाबू की भी आंख खुल गयी और उन्होंने हड़बड़ा कर मुझे छोड़ दिया, मैं झट से खाट पर उठ के बैठी गयी, अंधेरे में मेरी तेज चलती सांसों को बाबू अच्छे से महसूस कर रहे थे।
(नगमा बड़े गौर से अपनी भौजी की बातें सुन रही थी, अपनी भौजी के जीवन की ये घटना सुनकर उसकी बूर उत्तेजना में हल्की हल्की रिसने लगी)
नीलम की मामी ने आगे कहा- मैं लोक लाज की वजह से खाट से उठ गई बाबू मुझे देखने लगे, मैं उठकर जाने लगी तो बाबू ने मेरा हाँथ पकड़ लिया, मैन हाँथ को हल्का सा जोर लगा कर छुड़ाया और जाने लगी घर में, बाबू ने मुझसे कहा- तू उठ क्यों गयी।
मैं- बाबू अब मैं बड़ी हो गयी हूँ, ऐसे कैसे सो सकती हूं आपके पास, अनजाने में मैं कैसे आपसे लिपट....गयी........
बाबू- सो क्यों नही सकती, लिपट गयी तो क्या हो गया......... क्या तू मेरी बेटी नही
मैं- बेटी तो हूँ पर बहुत अजीब लग रहा है, पहले की बात अलग थी, कोई देख लेगा तो बाबू।
बाबू- कोई नही देखेगा, सब तो सो रहे हैं, तुझे अच्छा नही लगा मेरे से लिपट कर सोना।
मैं इस बात पर कुछ देर चुप हो गयी फिर बोली- मैं जा रही हूं घर में ही कहीं सो जाउंगी....बाबू।
बाबू ने दुबारा पूछा- क्या तुझे अच्छा नही लगा मेरी बाहों में मेरी बिटिया?, देख बेटी ये सब बस अनजाने में हो गया, हम दोनों ही नींद में थे, मैंने जानबूझ कर नही किया, पर एक बात बोलूं, तू मेरी बाहों में थी तो बहुत अच्छा लग रहा था, क्या तुझे नही अच्छा लगा?
मैं फिर चुप रही
बाबू- देख बेटी तुझे जाना है तो जा, पर तुझे जरा भी अच्छा लगा हो...........तो मैं तेरा इंतजार पूरी रात करूँगा।
ये सुनकर मेरी सांसें तेज चलने लगी
मैं- बाबू आपके मन में क्या है?
बाबू- मुझे नही पता बेटी........पर तू मुझे अच्छी लगती है बहुत........पर जो भी है मैं बस यही जनता हूँ कि तेरे साथ लिपटकर सोने में न जाने क्यों बहुत अच्छा लगा। अगर तुझे बिल्कुल अच्छा नही लगा तो तू जा सकती है पर......
मैं धीरे से उठकर बेमन से जाने लगी घर में, बाबू मुझे शायद मिन्नत भरी नजरों से देख रहे थे की मैं रुक जाऊं, क्योंकि अंधेरे में साफ दिख नही रहा था, मैं धीरे धीरे चलकर घर के दरवाजे तक आयी, दरवाजे की चौखट लांघ कर अंदर भी आ गयी....पर ज जाने क्यों मैं वहीं रुक गयी, मेरी साँसे तेज चल रही थी, बदन रोमांच से भरता जा रहा था, अच्छे बुरे के बीच मन और दिमाग में लड़ाई चल रही थी, बाबू के बदन की छुवन का मजा, उनके मर्दाने पसीने की गंध मुझे उनकी ओर खींच रही थी और मान मर्यादा लोक लाज मेरे कदम वापिस मुड़ने से रोक रहे थे.......अचानक न जाने मुझे क्या हुआ मैंने धीरे से दरवाजे से झांक कर अंधेरे में बाबू को देखने की कोशिश की।
बाबू शायद निराश होकर दूसरी तरफ करवट लेकर लेट चुके थे, न जाने मुझे क्या हुआ मैंने अपने कदम बाबू की तरफ बढ़ा दिए, मन जीत चुका था, क्योंकि ये बात सच थी कि मजा तो उनकी बाहों में मुझे भी आया था।
मैं धीरे धीरे चलकर उनकी खाट तक पहुँची और खाट पर बैठ गयी, बाबू झट से पलटे और मुझे देखने लगे, मैं भी एक टक अंधेरे में उनकी आंखों में देख रही थी, उनको मानो विश्वास नही हुआ कि मैं आ गयी हूँ, अब कोई असमंजस था ही नही, ये सच था कि मुझे भी मजा आया था उनकी बाहों में सोकर ,तभी तो मैं पलटकर आयी थी फिर से उनकी बाहों में सोने अपनी मर्जी से।
बाबू मुझे और मैं बाबू को कुछ देर अंधेरे में ही देखते रहे और फिर बाबू ने मुझे अपनी बाहों में भरकर अपने ऊपर खींच लिया मैं भी उनकी बाहों में सिसकते हुए समा गई......आज पहली बार मैं बाबू के सामने सिसकी थी और इस सिसकी का साफ मतलब ये था कि मैं राजी थी वो सुख पाने के लिए जो एक औरत को मर्द से ही मिलता है, बाबू की खुशी का ठिकाना नही था, मैं मुस्कुरा भी रही थी और सिसक भी रही थी, हम दोनों ही एक दूसरे की बाहों में समाए पूरी खाट पर लोट पोट रहे थे, कभी मैं बाबू के ऊपर आ जाती तो कभी बाबू मेरे ऊपर, मैंने धीरे से बाबू के कान में कहा- बाबू बस सिर्फ बाहों में लेकर सोना मुझे।
मैंने ये बात जानबूझकर बाबू के कान में इसलिए बोली क्योंकि मैं बाबू के मोटे से हथियार को अपनी जाँघों के बीच महसूस कर रही थी, हालांकि मैं खुद बेकाबू हो गयी थी, पर फ़िर भी मैंने ऊपरी मन से कहा।
(नीलम की मामी ने नगमा के सामने लंड शब्द का इस्तेमाल न करके हथियार शब्द का प्रयोग किया क्योंकि उनके बीच अभी भी एक मर्यादा और झिझक थी, नगमा बड़े गौर से अपनी भौजी की बात सुनकर उत्तेजित होती जा रही थी, नीलम की मामी की भी साँसे तेज हो रही थी, दोनों की बूर हल्की हल्की रिसकर महकने लगी)
बाबू- सिर्फ बाहों में लेकर सोऊ तुझे
मैं- हाँ बाबू
बाबू- इतना जुल्म न कर मेरी बेटी मुझपर।
मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए- जुल्म कैसा बाबू
बाबू- आजतक तूने मुझे कुछ भी मीठा खाने को दिया है तो ये तो नही बोला कि बाबू बस इसे देखना, खाना मत, खाने की चीज़ तो खाई ही जाएगी न, इतनी सुंदर औरत मेरी बाहों में हो और मैं बस उसको लेकर सोऊं, ऐसा जुल्म।
मैं बाबू के मुँह से ये सुनकर बहुत शर्मा गयी और धीरे से हंस दी फिर बोली- अच्छा जो करना है कर लीजिए, पर धीरे धीरे कीजिये कोई सुन न ले, घर में बहुत महमान हैं, बहुत धीरे धीरे कर लीजिए बाबू, बस ये ख्याल रखना कभी किसी को पता न चले, नही तो मैं जीते जी मर जाउंगी बाबू और आपके दामाद मुझे जिंदा गाड़ देंगे, चुपके चुपके ही करना, तुम्हारी बेटी की इज्जत अब सिर्फ तुम्हारे हाँथ में है।
नगमा सन्न रह गयी ये सुनकर, वो अवाक सी अपनी भौजी को देखती रह गयी, नीलम की मामी कुछ देर चुप रही, वो बहुत शर्मा रही थी अपना राज बताते हुए, पर नगमा ने उसका हाथ थाम लिया और बोला भौजी मैं जीवन में कभी किसी को नही बताऊंगी, आगे बता न फिर क्या हुआ।
नीलम की मामी- सच दीदी आप कभी अपने भैया को नही बताओगी न, आप पर विश्वास करके मैं आपको अपना राज बता रही हूं।
नगमा ने आगे बढ़कर अपनी भौजी को अपनी बाहों में भर लिया दोनों कस के लिपट गयी, नगमा बोली- भौजी मुझे गंगा मैया की सौगंध, मैं कभी किसी को नही बताऊंगी, मैं भला अपनी भौजी का राज क्यों किसी को बताऊंगी, तू तो मुझे जान से ज्यादा प्यारी है।
दोनों की आंखें नम हो गयी।
नगमा ने फिर कहा- आगे बता न भौजी फिर क्या हुआ था और जरा खुल के बता शर्मा क्यों रही है। फिर क्या किया तेरे बाबू में तेरे साथ।
नीलम की मामी ने कुछ देर नगमा की आंखों में देखा फिर बोली- फिर उस रात मेरे बाबू ने रात भर तीन बार अपने मोटे.....
नगमा- अपने मोटे क्या?.......बोल न
नीलम की मामी- बाबू ने अपने मोटे लंड से मुझे उस रात तीन बार हुमच हुमच के खूब चोदा।
नगमा- हाय दैय्या, आह.......तीन बार.....एक ही रात में..
नीलम की मामी- हाँ दीदी तीन बार.......मेरा भी बहुत मन कर रहा था चुदने का और ऊपर से रिश्ता ऐसा....बाप बेटी का.....वो भी सगे, जोश कम ही नही हो रहा था, लगातार बाबू मुझे तीन बार चोदे, मैं भी बदहवास ही पसीने से लथपथ अपने पैर फैलाये उनसे चुदवाती रही, मेरी वो जितना उस रात पनियायी थी शायद ही कभी उतना गीली हुई हो, न जाने क्यों उनकी चुदाई से मन ही नही भर रहा था, बाबू और मैं एक बार झड़ते कुछ देर वो मुझे और मैं उनको चूमने लगते फिर वो अपना मोटा सा हथियार मेरी उसमे पुरा अंदर तक पेल देते और फिर मेरे दोनों पैरों को फैलाकर अपने हांथों से मेरे विशाल गांड को उठाकर पूरा पूरा अपना हथियार मेरी उसमे डालते हुए मुझे चोदने लगते, मैं भी वासना में बदहवास होकर दुबारा सिसकते हुए नीचे से अपनी विशाल गांड उछाल उछाल कर उनका साथ देकर चुदने लगती। बाबू और मैंने बहुत सावधानी से उस रात जन्नत का सुख लिया।
नगमा- एक बात पूछूं भौजी
नीलम की मामी- ह्म्म्म
नगमा- मजा आया था तुम्हे अपने सगे बाबू के साथ।
इस बात पर नीलम की मामी नगमा से लिपट गयी और धीरे से कान में बोली- बहुत दीदी....बहुत मैं बता नही सकती,न जाने क्यों उनके साथ बहुत मजा आया था मुझे....बहुत।
नगमा- उसके बाद फिर कितनी बार हुआ ये सब।
नीलम की मामी- फिर कहाँ दीदी उसी रात हुआ था बस, अगले दिन नसीब नही हुआ, और उसके अगले दिन मैं यहां वापिस आ गयी, बाबू बहुत तड़पते होंगे मेरे लिए।
नगमा- हाय, और मेरी भौजी नही तड़प रही।
नीलम की मामी चुप रही
नगमा ने उसका चेहरा उठा के बोला- बोल न...नही तड़प रही क्या मेरी भौजी?
नीलम की मामी- तड़प रही हूं दीदी, बहुत तड़प रही हूं मैं भी।
नगमा- सगे पिता से मिलन के लिए.....ह्म्म्म
नीलम की मामी शर्मा गयी
नगमा ने नीलम की मामी को गले से लगा लिया और उसकी पीठ सहलाने लगी, फिर बोली- एक बात बोलूं भौजी
नीलम की मामी- हाँ दीदी बोल न
नगमा- तू मायके हो आ न एक दो दिन के लिए, मैं तब तक यहां हूँ संभाल लूँगी।
नीलम की मामी नगमा को अवाक सी देखने लगी, उसे विश्वास नही हुआ कि नगमा उसका इतना साथ देगी, उसकी आंख से आंसू छलक पड़े, नगमा ने अपनी भौजी के आँसूं को पोछते हुए बड़े प्यार से कहा- मैंने कहा था न कि मैं तेरी पक्की सहेली हूँ, मैं अपनी भौजी की प्यास और उनका दर्द समझ सकती हूं, तू हो आ मायके भौजी, मैं बाबू से बात कर लुंगी, कल ही चली जाना, एक दो दिन रहना फिर आ जाना, मैं यहां संभाल लूँगी।
नीलम की मामी एक टक नगमा को निहारती रही, मानो सौ सौ बार उसका धन्यवाद कर रही हो।
नगमा ने उसके गाल को थपथपाया और बोली- कहाँ खो गयी भौजी, बता न विस्तार से की उस रात क्या क्या कैसे कैसे हुआ था?
नीलम की मामी- तुम जैसा इंसान मुझे जीवन में कभी नही मिलेगा दीदी, मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो मुझे तुम जैसी ननद मिली, जो मुझे इतना समझ सकती है और मेरा इतना साथ देगी।
नगमा- मैं तेरा हमेशा साथ दूंगी भौजी....हमेशा।
नीलम की मामी- कभी जीवन में मेरे से कुछ बन पड़े तो मैं भी पीछे नही हटूंगी दीदी, आपका हमेशा साथ दूंगी....हमेशा।
नीलम की मामी ने आगे कहा- दीदी मैं अपने बाबू के साथ मेरे पहले मिलन को विस्तार से कल बताऊंगी, क्योंकि आज बहुत देर हो रही है और आपको जामुन लेकर खेत में भी जाना है।
नगमा- लेकिन कल तो तू मायके चली जायेगी तब फिर.....और भौजी उसको मिलन के अलावा एक चीज़ और बोलते हैं वो बोल न
नीलम की मामी- क्या?
नगमा ने आगे बढ़कर कान में कहा- चुदाई भौजी......चुदाई
नीलम की मामी ने प्यार से एक मुक्का नगमा की पीठ पर मारा और बोली- धत्त
नगमा- धत्त क्या, चुदाई की है तो चुदाई ही बोल न, शर्म कैसी, वो भी मेरे से।
नीलम को मामी- अच्छा ठीक है, अब यही बोलूंगी........चुदाई
नगमा- ह्म्म्म ये हुई न बात
नीलम की मामी- दीदी मैं मायके जाउंगी भी तो शाम तक जाउंगी, अब दीदी आप जाओ जामुन लेकर खेत में अपने बाबू के पास और वहीं सो जाना आराम से, और अगर कुछ हो तो हो जाने देना, इस जामुन के साथ साथ अपना जामुन भी खिला देना उनको (नीलम की मामी ये कहकर मुस्कुरा दी)
(नीलम की मामी को जरा भी ये अहसास नही था कि जो चीज़ अपने बाबू के साथ करके वो शर्मा रही है नगमा तो वो सब बरसों से करती चली आ रही है)
नगमा- धत्त, पगली........कुछ भी बोलती है.........अच्छा चल मैं जाती हूँ।
नीलम की मामी ने अंदर से एक बड़ी कटोरी में जामुन और एक लोटा पानी लाकर दिया और नगमा रात के अंधेरे में निकल पड़ी खेत में जाने के लिए। नीलम की मामी चली गयी घर में ये सोचते हुए की अब आ गयी बाहर उसकी जिन्दगी में।