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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Mahi Maurya

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बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब।
जितनी भी तारीफ की जाए आपकी उतनी काम है।

क्या गजब का लिखते हैं आप।
कहानी पढ़कर तो मन करता है कि आप लिखते जाए लिखते जाए लिखते जाए।
मैं पढ़ती जाऊँ पढ़ती जाऊँ पढ़ती जाऊँ।

बहुत ही जबरदस्त कहानी है आपकी।

लिखते रहिए।
 
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pprsprs0

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बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब।
जितनी भी तारीफ की जाए आपकी उतनी काम है।

क्या गजब का लिखते हैं आप।
कहानी पढ़कर तो मन करता है कि आप लिखते जाए लिखते जाए लिखते जाए।
मैं पढ़ती जाऊँ पढ़ती जाऊँ पद्धति जाऊँ।

बहुत ही जबरदस्त कहानी है आपकी।

लिखते रहिए।
Mahi ji kripa DM mei aayie
 

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बहुत ही गरमागरम और कामुक अपडेट है मजा आ गया धमाकेदार :adore:
अब असली चुदाई का खेल शुरु होने वाला है
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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Naik

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Update- 39

बाग को पार करते ही खेत शुरू हो गए, खेतों के बीच मिट्टी की कच्ची सड़क पर रजनी आगे आगे चल रही थी, सड़क के किनारे दोनों तरफ काफी दूर दूर तक खेत ही खेत थे, कईं खेत खाली थे तो कइयों में फसल खड़ी थी, नज़र उठा कर दूर तक देखने पर गांव के कुछ एकाद घर ऐसे थे जिनमें लालटेन जल रही थी जिनकी रोशनी एक छोटे से तारे की तरह नज़र आती थी, क्योंकि अपने गांव का रास्ता उदयराज और रजनी को बखूबी पता था इसलिए वो अंधेरे में भी बेधड़क चले जा रहे थे, अंधेरा तो था पर पास की चीज़ें हल्की हल्की दिखती थी, ठंडी हवा सर्रर्रर सर्रर्रर चल रही थी जिससे खेतों में खड़ी फसल भी लहलहा रही थी।

उदयराज तेज कदमों से चलकर रजनी के नज़दीक आया और बोला- बेटी ये लाठी पकड़।

रजनी- क्या हुआ बाबू? सूसू लगी है क्या? (रजनी इतना कहते ही मजे लेते हुए खिलखिलाकर हंस दी और लाठी पकड़ ली)

उदयराज ने झट राजनी को अपनी दोनों मजबूत बाहों में उठाते हुए बोला- सूसू लगेगी भी तो अब अकेला थोड़ी न करूँगा।

अचानक बाहों में उठा लेने से रजनी चिहुँक गयी फिर जल्दी से अपनी बाहें अपने बाबू के गले में डालकर फंसा लिया, लाठी और डलिया उदयराज की पीठ की तरफ आ गए क्योंकि वो दोनों रजनी के हांथों में थे। उदयराज ने अपनी जवान सगी बेटी के गदराए बदन को अपनी मजबूत बाहों में थामा हुआ था।

रजनी- अच्छा, तो सूसू किसके साथ करोगे?

उदयराज - अपनी प्यारी बेटी के साथ?

राजनी- iiiiiiiiisssssshhhhhhhhhh, सूसू भी मेरे साथ।

उदयराज- हां बिल्कुल, और वो भी उसको देखते हुए। करोगी मेरे साथ सूसू?

राजनी- सोच के बताऊंगी (रजनी ने जानबूझ कर अपने बाबू को तडपाने के लिए कहा)

उदयराज- सोचकर?, सूसू के वक्त इतना सोचा नही जाता, जब तक सोचोगी तब तक तो सूसू निकल जायेगा।

रजनी (जोर से हंसते हुए)- तो क्या अभी लगी है मेरे बाबू को जोर से।

उदयराज- नही नही, मैं तो ऐसे ही बोल रहा था, और मान लो लगी ही होती तो?

रजनी- तो कर लेती साथ में, पर मान लो मुझे ही नही लगी होती तो।

उदयराज- तो तुम वैसे ही खोलकर सामने बैठ जाना, मैं उसको देखते हुए कर लिया करूँगा।

रजनी ने धीरे से कान में कहा- किसको?

उदयराज ने रजनी को बाहों में उठाये उठाये चलते चलते धीरे से कान में कहा- अपनी सगी बेटी की बूर को।

रजनी dhattttttt, बदमाश! बोलते हुए अपने बाबू से लिपट गयी।

उदयराज ने फिर रजनी के कान में धीरे से कहा- मुझे थोड़ा सा चखना है और निकलते हुए देखना है।

राजनी- क्या? क्या चखना है बाबू और क्या निकलते हुए देखना है?(राजनी ने बहुत धीरे से कान में कहा)

उदयराज ने बहुत मादक अंदाज़ में कहा- अपनी बेटी का गरम गरम चूत और मूत दोनों।

रजनी ने लाठी और डलिया को बाएं हाँथ में पकड़ा और दाएं हाँथ से पीठ में चिकोटी काटते हुए बोली- बदमाश! गंदे बाबू!

उदयराज ने अब रजनी को घुमा के कंधे पर उठा लिया तो राजनी बोली- बाबू अब मुझे उतार दो न, आप थक जाओगे।

रजनी की मोटी मोटी चूचीयाँ उदयराज के कंधों पर दब गई। अपनी बेटी के गदराए बदन को अपनी बाहों में उठाये और दबोचे उदयराज मदहोशी में चले जा रहा था।

उदयराज- नही, अपनी रानी बेटी को मैं अपनी बाहों में उठाकर सेज तक ऐसे ही ले जाऊंगा।

रजनी- सेज, कौन सा सेज?

उदयराज- कुलवृक्ष का चबूतरा, वहीं तो सेज है आज हमारी आज रात।

रजनी ये समझते ही फूली नही समाई पर फिर बोली- नही बाबू, आप थक जाएंगे, मैं नही चाहती कि मेरे बाबू पहले ही कुछ थक जाएं।

अब उदयराज अपनी बेटी का अर्थ समझ गया और मुस्कुरा दिया फिर बोला - क्यों तेरे बाबू इतने कमजोर हैं क्या की अपनी बेटी को सेज तक न ले जा सकें।

रजनी- ना बाबा ना, मैन ऐसा कब कहा, मेरे बाबू जैसा तो कोई नही, पर मैं उनकी तनिक भी ताकत कहीं और नही बांटना चाहती। समझें अब मेरे बाबू।

उदयराज- ह्म्म्म तो बात ये है, लो मैं तुम्हे फिर उतार देता हूँ।

और उदयराज ने रजनी को उतार दिया।

ऐसे ही वासनात्मक बातें करते करते उदयराज और रजनी आखिर कुल वृक्ष तक पहुँच ही गए। उनको अंधेरे में वहां पहुँचते पहुँचते लगभग 40 मिनट लग गए। कुल वृक्ष के आस पास कईं और पेड़ भी थे और खेत भी थे, पास ही नदी थी, काफी सन्नाटा था, हर जगह अंधेरा पसरा हुआ था, हल्की हवा चल रही थी, थोड़ा जंगल जैसा ही था वहां, रात में कई तरह के कीड़ों के बोलने की आवाज़ें आ रही थी, रजनी ने लाठी और डलिया चबूतरे पर रखा, उदयराज ने झट पीछे आकर अपनी बेटी को बाहों में भर लिया, रजनी की aaaaaaahhhhhhhh निकल गयी। उदयराज ने गालों को चूम लिया और रजनी ने चेहरा उठा कर चुम्बन दिया। उदयराज ने फिर रजनी को छोड़ा क्योंकि समय हो चुका था कील गाड़ने का। रजनी ने कुल वृक्ष के तने की ओट में मिट्टी का दिया सरसों का तेल डालकर जला दिया, कुल वृक्ष के चबूतरे भर में थोड़ी रोशनी हो गयी। उदयराज पास से ढूंढकर एक पत्थर लाया और कील निकाली।

उदयराज और रजनी चबूतरे से उतरकर पत्थर ढूंढने लगे, उदयराज को एक मोटा पत्थर मिल गया, फिर उसने कील को पत्थर से कुल वृक्ष के तने में ठोक दिया, रजनी ये सब देखती रही, उदयराज ने पत्थर फेंक दिया, अब रजनी की बारी थी जैसे ही रजनी आगे बढ़कर चबूतरे पर चढ़ने को हुई, उदयराज ने उसे बाहों में उठा लिया, रजनी अपने बाबू के गले में बाहें डाले झूल गयी, उदयराज उसे लेकर चबूतरे पर चढ़ गया और कील के पास उसको अपनी गोदी में लेकर बैठ गया, दिये कि हल्की रोशनी में सब दिख रहा था, रजनी अपने बाबू की गोदी में बैठी मदहोश हो गयी, रजनी के गुदाज नितम्ब अपनी जाँघों और गोदी में महसूस कर उदयराज का लंड हलचल करने लगा, रजनी को अपने बाबू का लंड फूलकर अपनी गांड में चुभता महसूस हुआ और वो बेचैन हो उठी-

आआआआआआहहहहहहह.......बाबूबूबूबू

उदयराज ने पीछे से अपनी बेटी के गर्दन पर चूमते हुए उसके ब्लॉउज के बटन खोलने शुरू किए, रजनी ने अपनी दोनों बाहें पीछे ले जाकर अपने बाबू के गर्दन में जोर से सिसकते हुए लपेट दी।

उदयराज पहले तो ब्लाउज के बटन खोलने लगा फिर अचानक रुककर दोनों हांथों से ब्लॉउज के ऊपर से ही अपनी बेटी की मोटी मोटी चूचीयों को अपने हथेली में भर भरके बेसब्रों की तरह दबाने और मसलने लगा, उदयराज- aaaaaahhhhhhhhh mmmmeeerrriiiii bbbeeettttiii

रजनी - aaaaaahhhhhhhhhh hhhhhaaaaiiii....bbbbbaaaaabbbuuuuu, uuuuuiiiiiiiiiii....mmmmmmaaaaaaaaaaaa......ddddhhhhhiiiiiirrrreeeee.......sssseeee.......bbbaaaabbbbbbuuuuu

उदयराज पूरी तरह खुलकर रजनी की दोनों मदमस्त चूची को मसलने लगा और अंगूठे और तर्जनी उंगली से फूलकर सख्त हो चुके निप्पल को भी मसलने लगा।

रजनी हाय हाय करते हुए मचल उठी।

रजनी ने सिसकते हुए कहा- बाबू वक्त निकल जायेगा पहले कील पर दूध डाल दो।

उदयराज ने मदहोशी की हालत में ब्लॉउज के बटन खोल डाले, राजनी ने झट पूरा ब्लॉउज खोलकर चबूतरे पर बगल में रख दिया, दिए कि रोशनी में अपनी सगी बेटी का ऊपरी हिस्सा केवल ब्रा में देखकर उदयराज पागल सा हो गया, एक पल के लिए बालों को हटा कर उसने अपनी बेटी की नंगी पीठ देखी, गोरे गोरे कंधों पर ललचाई नज़र डाली, गोरी मदमस्त बाहों को कुछ देर घूरा और फिर पीठ पर चुम्बनों की बरसात कर दी, रजनी सिसक उठी-

ओओओओओओहहहहहहह.......हाय.....दैया........बाबू......ईईईईईशशशशशश........... ऊऊऊऊऊईईईईईई......माँ

उदयराज ने फिर ब्रा के ऊपर से ही दोनों चूचीयों को पकड़कर हौले हौले दबाया फिर गर्दन और गालों को चूमने लगा। रजनी फिर से सिसकी लेती हुई अपने बाबू से सट गयी, उदयराज ने रजनी की ब्रा का हुक खोलने की कोशिश की पर उससे जल्दी खुला नही तो रजनी ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया, ब्रा ढीला होकर उदयराज के हांथों में आ गया, उदयराज ने ब्रा को एक साइड में ब्लॉउज के साथ रख दिया और अब रजनी ऊपर से बिल्कुल निवस्त्र हो गयी, रजनी की नंगी पीठ अपने बाबू के सीने से सट गयी, अपनी सगी बेटी की जवान गोरी पीठ अपने सीने से सटते ही उदयराज ने मस्ती में आंखें बंद करते हुए अपने दोनों हाथों से रजनी की नंगी गोरी गोरी नरम स्पॉन्ज जैसी फूली फूली चूचीयों को अपने हाथों में भर लिया, निप्पल से दूध की बूंदें टपकने लगी और वो कमाग्नि में कड़क हो चुके थे, रजनी के मुँह से लगातार सिसकियां निकले जा रही थी, उदयराज ने रजनी के नंगे कंधे पर अपने ठोड़ी को रखकर ऊपर से रजनी की विशाल चूचीयों को मसलते हुए देखा। रजनी की बूर रिसने लगी।

उदयराज ने अपनी बेटी के दोनों निप्पल को ठीक कील की सीध में किया और चूचीयों को दबा कर दोनों निप्पल से एक साथ दूध की पतली धार ससर्रर्रर से निकालते हुए कील पर गिरा दी, राजनी की aaaaahhhhhhhhhh निकल गयी, उदयराज अब अपनी बेटी की चूचीयों को जोर जोर से दबाने लगा, रजनी अपने बाबू के हाथ की ताकत अपनी चूचीयों पर अच्छे से महसूस कर हाय हाय करने लगी-

ओओओओहहहहहह ... ..बाबू...हाँ.... ऐसे ही दबाओ.......आआआआहहहह....और मीजो चूची को.......उउउउईईईईईई।

चूचीयों से निकलते दूध ने उदयराज के हाथों को भिगो दिया और दूध पूरी चूचीयों पर भी अच्छे से लग गया था, उदयराज तो मदहोश ही हो गया।

रजनी ने उदयराज से धीरे से वासना भरी आवाज में कहा- बाबू, दुद्धू पी लो न।

उदयराज अपनी बेटी के वसनात्मय आग्रह को सुनकर उसको ताबड़तोड़ चूमने लगा कि तभी रजनी ने सिसकते हुए अपने बाबू को रोका और गोदी से उठ खड़ी हुई, एक मादक अंगडाई लेकर उसने अपने बालों को पीछे की ओर झटका, उदयराज एक टक लगाए अपनी सगी बेटी के अर्धनिवस्त्र बदन को दिए कि हल्की रोशनी में देखता रह गया और उफ्फ रजनी की ये अदा, बालों को पीछे झटकने से कैसे रजनी की दोनों विशाल भारी चूचीयाँ जोर से हिली थी, कितनी गोरी गोरी मोटी मोटी चूचीयाँ थी रजनी की, उसपर वो तने हुए दोनों गुलाबी निप्पल और निप्पल के किनारे किनारे करीब एक इंच तक फैला गुलाबी घेरा (areola), उदयराज एक टक लगाए अपनी बेटी के इस रूप को निहारता रहा, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उसकी रजनी बेटी अंदर से इतनी सुंदर है, उसका यौवन इतना मदहोश कर देने वाला है की मुर्दे में भी जान डाल दे, और वो कितना भाग्यशाली है कि आज उसको उसकी सगी बेटी अपना पूर्ण यौवन का रसपान करा देगी, उसका लंड तो चिंघाड़ते हुए धोती में खड़ा हो चुका था रजनी भी एक टक लगाए मुस्कुराते हुए अपने बाबू के गठीले बदन और धोती में खड़े लंड को निहारने लगी।

तभी रजनी ने बड़ी ही कातिल मुस्कान के साथ अपने दोनों हाथ को झूठे ही पीछे ले जाकर अपने बालों को मानो बंधने लगी ताकि वह अपने बाबू को कमर से ऊपर का पूरा निवस्त्र हिस्सा और कांख के हल्के बाल दिखा सके और हुआ भी वही ये सब देखकर उदयराज हाय हाय कर उठा, रजनी की गोरी गोरी कमर, नाभि, उसके ऊपर उन्नत खड़ी सख्त दोनों चूचीयाँ, गुलाबी निप्पल और उनसे रिसता हल्का हल्का दूध, उसकी नंगी बाहें और बाहों की गहराई में वो हल्के हल्के बालों वाली कांख, उदयराज से नही रहा गया और उसने झट अपनी बाहें फैला कर अपनी बेटी को उसकी गोदी में बैठकर उसमे समा जाने के लिए बुलाया, रजनी झट से तड़पती हुई, बालों को छोड़कर अपनी साड़ी को बटोरकर जाँघों से भी ऊपर उठाते हुए अपने बाबू को अपनी मोटी मोटी गोरी गोरी मांसल जांघे व काली पैंटी दिखाते हुए, अपने बाबू की गोद में इस तरह आकर बैठी की उसकी दहकती मचलती रिसती बूर उदयराज के मूसल जैसे धोती के अंदर खड़े लंड पर सेट हो गयी, रजनी और उदयराज की जोर से आआआआआआआहहहहहहह निकल गयी। रजनी ने अपने दोनों पैर अपने बाबू के कमर के पीछे क्रोस मोड़ लिए और अपनी जाँघों से उदयराज की कमर को कस लिया।

जैसे ही रजनी ने पैंटी में छिपी अपनी रिसती बूर को धोती में खड़े अपने बाबू के लंड पर रखा दोनों बाप बेटी जोर से कराह उठे और एक दूसरे को कस के बाहों में भींच लिया, उदयराज अपना कुर्ता पहले ही निकाल चुका था, ऊपरी हिस्सा उसका भी निवस्त्र था, उसके मांसल पीठ और कमर पर उसकी बेटी के हाँथ रेंगने लगे, रजनी अपने बाबू की पीठ कमर और गर्दन जोर जोर से सहलाने लगी, उदयराज भी अपनी बेटी को गोदी में बैठाए कस कस के सहलाने और भीचने लगा, दोनों की आंखें मस्ती में बंद हो गयी थी, दोनों ही जोर जोर से कराह और सिसक रहे थे, आस पास कुछ दूर तक उनकी सिसकियां गूंज रही थी। उदयराज के लंड और रजनी की बूर के बीच सर्फ धोती और पैंटी की दीवार थी, रजनी खुद ही अपने बाबू की गोदी में बैठी अपनी पनियाती बूर को उनके लंबे मोटे लंड पर अपनी भारी गांड बहुत धीरे धीरे आगे पीछे करके रगड़ रही थी और वासना की चढ़ती खुमारी में सिसके जा रही थी।
कितना कामुक दृश्य था एक सगे बाप बेटी सुनसान जगह पर अमावस्या की अंधेरी रात में एक बड़े कुल वृक्ष के नीचे चबूतरे पर अर्धनिवस्त्र होकर एक दूसरे की गोदी में समाए बेताहाशा एक दूसरे को वासना से सराबोर होकर सिसकते हुए चूम और सहला रहे थे।

रजनी की नंगी चूचीयाँ उदयराज के सीने से दबी हुई थी और उदयराज के सीने पर निप्पल से दूध हल्का रिस रिस कर लग रहा था, एकाएक उदयराज ने रजनी की बायीं चूची को मुँह मे भर लिया और पागलों को तरह चूसने लगा।

राजनी uuuuuuuuiiiiiiiiiiiii aaaammmmmmmaaaaaa, hhhhaaaaaaaiiiiii bbbbaaaaaabbbuuu, meeerrreeee raaajjjjjaaaa कहते हुए कराहने लगी।

उदयराज मुँह भर भर के अपनी बेटी की मखमली गुदाज खरबूजे के समान गोल गोल चूची को पिये जा रहा था, दूसरे हाँथ से वो दूसरी चूची को भी मसलने लगा, कभी जीभ को निप्पल पे घुमाता, कभी बच्चे की तरह चूसने लगता, फिर कभी निप्पल के किनारे किनारे जीभ घूमता, कभी जीभ को निप्पल के किनारे किनारे घुमाते हुए गोले को बड़ा करता जाता और जब जीभ एक बड़ा गोल बना कर चूची पर घूमने लगती तो गप्प से पूरी चूची को मुँह में भरकर चूसने लगता, ऐसे ही वो कुछ देर अपनी सगी बेटी की चूचीयों से खेलता रहा।

राजनी- aaaahhhhhhhhhhhh........ mmmmeeerrrreeeeee bbbbbaaaaabbbuuuuu..... पियो अपनी बेटी की चूची ऐसे ही.............मैं बहुत तरस गयी थी आपको पिलाने को............. aaaaaaaahhhhhhhhh dddddaaaaaiiiiiiiiyyyyyaaaaaa............... सारा दूध पी लो मेरे बाबू।

उदयराज अपनी बेटी के मुँह से आज ये बात सुनकर और जोश में आ गया और चूची बदलकर पीने लगा, काफी मात्रा में दूध भर भर के रजनी की चूची से निकलकर उदयराज के मुँह में जाने लगा, दूध की कुछ मात्रा उदयराज के होंठों के किनारों से निकलकर रजनी की जाँघों पर भी गिर जा रही थी, वासना ने दोनों बाप बेटी को अपने आगोश में ले लिया था, चूची में दूध की इतनी मात्रा उतर आई कि उसकी नसें हल्की हल्की दिखने लगी, उदयराज ने करीब 30 मिनिट रजनी को अपनी गोदी में बैठाए मदहोशी में उसकी मदमस्त चूचीयों को बदल बदलकर पीता और मसलता रहा, रजनी अब इतनी मदहोश हो चुकी थी कि वह खुद ही अपनी चूची को अपने हाथों में लेकर एक एक करके अपने बाबू के मुंह में भरने लगी और धीरे धीरे गांड उछाल उछाल के अपनी महकती फूली हुई बूर को अपने बाबू के फौलाद हो चुके लंड पर रगड़ती रही।

उदयराज ने एक हाथ रजनी की गांड के नीचे लेजाकर अपनी बेटी की गांड को पकड़ा और उछालकर उसे अपनी गोद में और ऊपर चढ़ाते हुए अपने दहाड़ते लंड से उसकी कमसिन बूर पर एक जोरदार घस्सा मारा, रजनी की बूर पर लगे मोटे लंड के करारे झटके से रजनी जोर से aaaaaaaahhhhhhhhhhhh bbbbbaaaaabbbbuuuuu.... करते हुए चिहुँक गयी।

काफी देर तक अपनी बेटी की चूचीयों को पीने और मसल मसल कर लाल कर देने के बाद उदयराज उसे बेताहाशा चूमने लगा, रजनी भी अपने बाबू को तड़पते हुए चूमने लगी, दोनों एक दूसरे को कंधे, गर्दन, गाल और माथे पर जोश में कांपते हुए चूमने लगे, एकाएक उदयराज ने रजनी के चेहरे को अपने हांथों में लिया और उसकी वासनामय आंखों में देखने लगा, रजनी भी बड़े प्यार से, मदहोशी से अपने बाबू को देखने लगी फिर एकएक उदयराज ने अपने होंठ अपनी सगी बेटी के होंठों पर रख दिये, रजनी की सिसकते हुए आंखें बंद हो गयी एक हाथ से उदयराज उसकी सख्त चूची को फिर से सहलाने लगा और अपने होंठों में अपनी बेटी का निचला नरम होंठ लेकर चूसने लगा, कभी नीचे के होंठ चूसता तो कभी ऊपर के होंठ चूसता, रजनी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी वो भी अपने बाबू के होंठों को चूसने में डूबी हुई थी, दोनों एक दूसरे के होंठों को भर भर के खा जाने वाली स्थिति में चूसने लगे, कभी कभी उदयराज हल्का काट भी लेता तो रजनी सिसक पड़ती और बोलती- ओह्ह बाबू धीरे से।

और कभी रजनी भी जोश में आ के काट लेती तो उदयराज सिसक उठता

तभी रजनी ने अपना हाथ अपने बाबू के दहकते लंड पर रख दिया और उसे ऊपर से नीचे तक सिसकते हुए सहलाने लगी पर सिसकी उसकी दब जा रही थी क्योंकि उदयराज लगातार होंठों को चूसे जा रहा था।

काफी देर अपनी बेटी के होंठों को चूसने के बाद रजनी ने स्वयं ही अपनी जीभ अपने बाबू के मुंह में डाल दी और उदयराज के पूरे मुँह में घुमाने लगी, उदयराज अपनी बेटी की गरम गरम और नरम नरम जीभ अपने मुँह की गहराई में अंदर तक घूमते हुए महसूस कर निहाल हो गया और उसे जी भरके चूसने लगा काफी देर चूसने के बाद फिर उदयराज ने अपनी जीभ अपनी बेटी के मुँह में अंदर तक घुसेड़ दी और उसके मुँह का चप्पा चप्पा मानो अपनी जीभ से छूकर चूम लिया। रजनी के बदन में वासना की तरंगें चरम पर पहुँच गयी और उसकी बूर भट्टी की तरह दहकने लगी, एक तो काफी देर से बूर लंड पर रगड़ खा रही थी। रजनी से रहा नही गया तो उसने अपने बाबू को लेटकर प्यार करने का हल्का सा इशारा किया। उदयराज ने पास में रखा अंगौछा रजनी को गोदी में लिए लिए कुल वृक्ष के तने के नज़दीक चबूतरे पर एक हाँथ से बिछाया और अपनी बेटी को गोद में लिए लिए उसपर पीठ के बल लिटाते हुए खुद उसपर चढ़ता चला गया।

रजनी ooooooohhhhhhhhhh....mmmmmmeeeeeerrrrrreeeee......bbbbbaaaaaabbbbbbuuuuuu कहते हुए नीचे लेटती चली गयी

उदयराज अपनी सगी बेटी पर चढ चुका था दोनों एक दूसरे को बाहों में भरकर आंखों में देखते हुए मुस्कुराते रहे फिर मस्ती में आंखें बंद कर ली, उदयराज अपनी बेटी के ऊपर पूरा पूरा अच्छे से चढ़ गया, उदयराज ने अपने कुर्ते को मोड़ा और रजनी के सर के नीचे रख दिया, रजनी का हर अंग उसके बाबू के अंग से सटा हुआ था, रजनी की चूचीयाँ उदयराज के सीने से दबी हुई थी, नाभि के ऊपर नाभि थी, बूर के ऊपर लंड कपड़े के ऊपर से ही मानो बूर में धंसा जा रहा था, घुटनों पर घुटने थे और पैर के पंजों को उदयराज के पैर के पंजे छेड़ रहे थे, रजनी पूरी तरह चित लेती अपने बाबू के नीचे थी उसके दोनों हाँथ चबूतरे पर फैले हुए थे उसकी उंगलियों में उदयराज की उंगलियां फंसी हुई थी। कितना नरम स्पॉन्ज की तरह मखमली बदन था रजनी का, कितना गुदाज।

रजनी ने एकाएक जलते दिये को बुझा दिया और अब पूरी तरह अंधेरा छा गया, रजनी अपने और अपने बाबू के तन के मिलन को एक बार रात के अंधेरे में प्रकृति के बीच चुपचाप महसूस करना चाहती थी, उदयराज को भी ये बहुत पसंद आया। अब गुप्प अंधेरा था, हल्की हल्की हवा चल रही थी, पास ही नदी के पानी की बहने की आवाज आ रही थी।

उदयराज ने अपने दोनों हाँथ रजनी की पीठ के नीचे ले जाते हुए उसको कस के बाहों में भर लिया और रजनी ने भी अपने पैर उदयराज की कमर पर क्रॉस बांधते हुए अपनी बाहें उनकी पीठ पर लपेटते हुए उदयराज को बाहों में कस लिया, उदयराज का मुँह रजनी की गर्दन पर कान के पास था, उदयराज ने गर्दन पर चूमते और चाटते हुए कपड़े के ऊपर से ही अपने लंड से अपनी बेटी की अत्यंत प्यासी बूर पर तीन चार कस कस के धक्के मारे, रजनी मुस्कुराते हुए चिहुँक उठी और जोर से सिसकी- आआआआआआआआहहहहहहहह............हहहहहहहाहाहाहाहाहायययययययय..........बाबू
उसका पूरा शरीर धक्कों से हिल जा रहा था, रात के गुप्प अंधेरे में उदयराज अपनी बेटी को उसकी दायीं गर्दन की तरफ, कान पर, कान के नीचे कई गीले चुम्बन करता हुआ, गर्दन पर चूमते हुए बायीं तरफ जाने लगा और फिर बाएं कान की झुमकी, कान पर, कान के नीचे, कई चुम्बन लिए, रजनी मदहोश होकर अपने बाबू के गीले गीले होंठ की छुअन जोर जोर से सिसकते हुए अपने गर्दन के चारों ओर और कान के आस पास महसूस करती रही, जब जब उदयराज अपनी बेटी के कान को और उसके आस पास चूमता और जीभ से चाटता, जीभ रगड़ता तब तब रजनी का पूरा पूरा बदन थरथरा जाता, कभी कभी बीच बीच में उदयराज सूखे धक्के भी मारता तो रजनी हर धक्के पर aaaaahhhhh......aaaaahhhhhhhh करने लगती। रजनी का बदन गरम हो चुका था।

उदयराज रजनी को उसके गाल, नाक, होंठ और लगभग पूरे चेहरे पर ताबड़तोड़ चूमने लगा, रजनी वासना में बेचैन होकर बेताहाशा अपने बाबू को सहलाने लगी, एकाएक रजनी ने सिसकते हुए अपने बाबू के कान में कहा- बाबू, औरत के लिए तरस गए थे न आप।

उदयराज- हाँ मेरी बेटी।

रजनी प्यार से दुलारते हुए अपने बाबू के बालों को सहलाने लगी, फिर उदयराज बोला- तू भी तो एक मर्द के लिए तरसती थी न।

रजनी- मैं बस आपके लिए, अपने बाबू के लिए तरसती थी, एक मजबूत मर्द के लिए और वो सिर्फ मेरे बाबू हैं मेरे बाबू।

उदयराज ने ये सुनकर तीन चार धक्के ऊपर से ही बूर पर मारे और रजनी चिहुँकते हुए हल्का सा हंस दी, उसका बदन पूरा हिल गया।

रजनी ने फिर रात के गुप्प अंधेरे में धीरे से अपने बाबू के कान में बोला- लंड, मोटा सा, लंबा सा लंड।

दरअसल अब वासना इस कदर रजनी पर हावी हो चुकी थी कि उसका गंदी गंदी बातें करने का मन कर रहा था। वो कहते हैं न कि स्त्री की लज़्ज़ा एक सीमा तक होती है उसके बाद वो खुद ही खुलने लगती है। रजनी का अब वही हाल हो चुका था।

उदयराज ये सुनकर पहले तो कुछ देर सोचता रहा की आखिर रजनी ने उसके कान में बड़ी मादकता से ये क्या बोल दिया। तभी रजनी ने दुबारा बोला- आप नही बोलोगे बाबू?

उदयराज- क्या?

राजनी- वही जो मेरे पास है, जिसके लिए आप तरस रहे हो कबसे।

उदयराज समझ गया कि रजनी क्या चाहती है और वो अपने होंठ राजनी के कान पे रखकर बोला- bbbooooooooorrrrrrrrrrrr

रजनी बिल्कुल अपने कान पर अपने बाबू के मुंह से ये सुनकर गनगना गयी और जोर से सिसक उठी कुछ देर बाद फिर बोली- किसकी बूर बाबू?

उदयराज- मेरी अपनी बेटी की bbbbbbooooooorrrrrrrr

राजनी फिर जोर से aaaahhhhhhh करते हुए- सगी बेटी की

उदयराज- हां मेरी सगी बेटी की बूबूबूबूररररर

राजनी धीरे से- चाहिए

उदयराज- हाँ

राजनी- किसलिए?

उदयराज- घच्च घच्च चोदने के लिए, अपना लंड उसमे डालकर अच्छे से चोदने के लिए। अपने लंड की प्यास बुझाने के लिए।

राजनी जोर से सिसकते हुए- अपनी बेटी को चोदोगे, सगी बेटी को, अपनी ही सगी बेटी को।

उदयराज- हाँ, अपनी प्यारी सी सगी बेटी की बूर को लंड से रगड़ रगड़ कर खूब चोदने का मन कर रहा है।

रजनी धीरे से सिसकते हुए- सगी बेटी की बूर चोदने में बहुत मजा आता है न बाबू।

उदयराज- हां मेरी बेटी, सबसे ज्यादा।

रजनी- पत्नी से भी ज्यादा।

उदयराज- हां, पत्नी से भी बहुत ज्यादा।

राजनी aaaaahhhhhhh bbbbbaaaabbbbuuuu - तो चोदो न मेरी बूर को बाबू, अपनी सगी बेटी की बूर को खूब कस कस के चोद दो, बहुत प्यासी है ये, अब रहा नही जाता बाबू, ओह्ह मेरे बाबू, अब अपनी इस बेटी को चोद दो न।

उदयराज ने रजनी की पीठ से अपने दोनों हाथ निकाल कर उसके नितंबों को हथेली में थाम लिया और भारी गुदाज नितम्ब को रगड़ रगड़ कर सहलाने लगा और बोला- हाँ मेरी बेटी मुझसे भी अब नही जा रहा पर पहले मुझे अपनी दहकती बूर का पानी पिला दे।

रजनी समझ गयी कि उसके बाबू मूत पीने की बात कर रहे हैं तो वो ये सोचकर ही सिरह गयी।

उदयराज उठ बैठा और बगल में पड़े दिए को जला दिया और उसमे थोड़ा सा सरसों का तेल और डाल दिया, रजनी का दूधिया बदन एक बार फिर चमक उठा और वो उदयराज को और उदयराज उसको देखते रह गए अभी कुछ देर पहले अंधेरे में जो गंदी बात की थी रजनी ने, अपने बाबू से नज़रें मिलते ही राजनी लजा गयी और उदयराज ने उसके दोनों चूचीयों को हाथों में दबोचते हुए अपनी ओर खींच लिया और रजनी अपने बाबू से लिपट गयी।

कुछ देर दोनों ऐसे ही एक दूसरे को महसूस करते रहे फिर उदयराज मोड़े हुए कुर्ते पर सर रखके लेट गया, रजनी बड़ी ही मादकता से, धीरे से दोनों पैर अपने बाबू के दोनों कंधों के बगल रखते हुए, और अपनी साड़ी को दोनों हांथों से ऊपर उठाते हुए अपनी जाँघों को अच्छे से खोलकर अपने बाबू को अपनी पैंटी दिखाते हुए उनके सीने पर हल्के से बैठ गयी, उदयराज एक टक हल्के दिए कि रोशनी में अपनी बेटी की केले के तने के समान मोटी चिकनी गोरी गोरी दोनों जाँघों और बीच में कसी पैंटी में छुपी उभरी हुई गीली गीली महकती बूर को देखता रह गया, रजनी ने दिया उठाकर और पास रख लिया। काफी देर तक रजनी अपने बाबू को अपनी पैंटी में छिपी बूर और मांसल जाँघों को दिखाती रही फिर एकाएक खड़े होकर साड़ी के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी को निकाल कर बगल में रख दिया और धीरे से पैर फैलाते हुए साड़ी को ऊपर उठाते हुए अपने बाबू के सीने पर बड़ी मादकता से सिसकते हुए बूर खोले बैठती चली गयी, उदयराज का सर कुल वृक्ष के बिल्कुल तने के पास था और दिया बिल्कुल बगल में था, रजनी अपने बाबू को बड़ी मादकता से देख रही थी और उदयराज रजनी की रिसती बूर को घूर घूर के देख रहा था, फिर रजनी ने अपनी बूर को देखा और अपनी फैली हुई बूर को देखकर खुद ही सिसक उठी। बैठने की वजह से बूर फैल गयी थी, बूर की फांकों के बीच भगनासा साफ चमकने लगा जो कि खिलकर बाहर आ चुका था।

उदयराज अपनी बेटी की नंगी बूर और जाँघों को देखकर बेहाल हो गया, मोटे मोटे रसीले लंबे फांकों और काले काले हल्के बालों के बीच लाल लाल छेद वाली मखमली दहकती बूर, रस टपका रही थी, रजनी ने सिसकते हुए धीरे से आगे बढ़कर अपनी धधकती बूर को अपने बाबू के होंठों पर रख दिया और बड़ी जोर से aaaaaaahhhhhhhhhhh mmeeeerrrreeee bbbaaabbbbuuuu कहकर कराह उठी।

उदयराज ने लप्प से अपनी बेटी की लगभग पूरी बूर को अपने मुंह में भर कर बड़ी कस के चूस लिया, राजनी एकदम से चिहुँक उठी, उसके नितम्ब थरथरा कर हिल गए, पूरा बदन सनसना गया, आंखें नशे में बंद हो गयी, उदयराज पूरी जीभ निकाल निकाल के लप्प लप्प अपनी बेटी की फैली हुई बूर को चाटने लगा, पूरी जीभ को नीचे से ऊपर तक पागलों की तरह बूर पर फिरा फिरा के चाटने लगा, बूर रस और मूत्र की गंध उदयराज के नथुनों से होकर पूरे शरीर के अंदर फैलने लगी, राजनी uuuuuuiiiiiiimmmmmaaaaa.....oooooooooooohhhhhhhh.........iiiiiiiiiiiiiiiissssssssshhhhhhhhhh..........hhhhhhaaaaaaiiiiiiiiiii.....bbbbbaaaaabbbbuuuuuuuuu, aaaiiiseeeee. hhhhhhiiiiiiii...cchhhaaaaatttttooooo,,,,uuuuufffffff....aaaammmmmaaaaaaaaaaa कह कह कर सिसियाने लगी और अपनी दो उंगलियों से अपनी बूर की फांकों को अच्छे से फैला दिए जिससे रजनी की बूर का छोटा सा छेद साफ दिखने लगा, उदयराज अपनी बेटी का वो गुलाबी छोटा सा दहकता छेद देखकर बेकाबू सा हो गया और अपनी जीभ गोल गोल नुकीली बना कर उसमे रख दिया, रजनी जोर से सीत्कारती हुई aaaaaahhhhhhhhhh....hhhhhhhhhhaaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiii.......aaaaammmmmaaaaaaaa कहती हुई अपनी चूतड़ आगे पीछे दाएं बाएं गोल गोल घुमा कर जीभ पर रगड़ने लगी, रजनी ने छः सात धक्के अपनी भारी गांड को हिला हिला कर अपने बाबू की जीभ पर मारे और एकदम से दिया नीचे रखकर अपने बाबू के मुँह पर बैठ गयी, उसने अपने बाबू का सर बहुत प्यार से पकड़कर अपनी फूली हुई कसमसाती बूर पर दबा दिया, उदयराज की जीभ रजनी की बूर के छोटे से छेद में कुछ हद तक घुस गई थी, अंदर से बूर बिल्कुल भट्टी बनी हुई थी, रजनी कुछ देर तक अपनी बूर को हाय हाय करते हुए अपने बाबू की जीभ से अपनी गांड उछाल उछाल के चोदती रही और फिर एकाएक उसने ooooohhhhhhhh bbbaaaabbbbuuuu कहते हुए अपनी दो उंगलियों से बूर की फाँकों को अच्छे से चीरते हुए पेशाब की धार हल्के से छोड़ी और दूसरे हाँथ से फिर दिया उठाकर रोशनी को बढ़ाया, उदयराज ने लप्प से मुँह खोला और राजनी अपने बाबू के मुँह में मूतने लगी, काले काले बालों वाली दहकती बूर की फांकों के बीच से चिरर्रर्रर्रर्रर की आवाज के साथ गरम गरम रजनी का मूत उदयराज के मुँह में जाने लगा, मूतते मूतते वो बीच बीच में अपनी बूर को उदयराज के होंठों से रगड़ दे रही थी जिससे पेशाब उदयराज के गालों और गले पर भी गिर जा रहा था, उदयराज का मुँह रजनी के गर्म पेशाब से भर गया, और वो उसे मदहोश होकर पीने लगा, रजनी ये देखकर पगला सी गयी और लगातार कुछ देर तक अपनी प्यासी बूर अपने बाबू के मुँह पर रगड़ती रगड़ती मूतती रही, उदयराज आंखें बंद किये मदमस्त होकर बूर से निकलता मूत पीता रहा फिर रजनी के बूर से मूत आना रुक गया और उदयराज सारा मूत पी गया उसके बाद उसने अपनी बेटी की बूर पर लगे पेशाब को जीभ से चाट चाट के साफ कर दिया, रजनी मदहोशी में आंखें बंद किये अपनी बूर अपने बाबू से काफी देर चटवाती रही फिर आंखें खोलकर वासना भारी नजरों से अपने बाबू को देखा और मुस्कुरा पड़ी, उदयराज भी मुस्कुरा दिया।

रजनी ने झुककर कान में कहा- बाबू और पीना है।

उदयराज- हाँ, पिला दो न।

रजनी- पर अब तो खत्म, जब फिर आएगा तब

उदयराज- ठीक है मेरी रानी बेटी।

राजनी- पर आपने तो बोला था कि पियूँगा नही, फिर भी पी गए।

उदयराज- मुझे होश ही नही था, क्या चीज़ है मेरी बेटी।

राजनी- गन्दू, पर अब नही पीना, ठीक।

उदयराज - जो आज्ञा मेरी रानी।

रजनी फिर मुस्कुराई और अपने बाबू के पेशाब से सने होंठों को चूम लिया।

उदयराज अब रजनी को पलटकर उसपर चढ़ गया और उसकी साड़ी को खोलकर निकाल दिया, साड़ी को बगल में रखते हुए वो रजनी के सम्पूर्ण बदन को निहारने लगा, रजनी अब मदरजात नंगी हो गयी थी, उसके तन पर अब एक भी वस्त्र नही था, उदयराज उठ खड़ा हुआ और एक झटके में अपनी धोती खोल डाली, फनफनाता हुआ मूसल जैसा दहाड़ता लंड उछलकर रजनी की आंखों के सामने आ गया,
काले काले झांटों के बीच 9 इंच लंबा और करीब 4 इंच मोटा दहाड़ता लंड देखकर रजनी की आंखें चमक गई, दिए कि हल्की रोशनी में भी लंड की उभरी हुई नसें लन्ड की विकरालता को और बढ़ा रही थी, रजनी उसे देखते ही उठ बैठी और अपने बाबू की बालो भारी जाँघे लंड को देख देख कर चूमने और सहलाने लगी, जाँघों पर इधर उधर चूमते हुए वो विकराल लन्ड के करीब पहुँची और बड़े बड़े आंड को मुँह में भर लिया और लोलोपोप की तरह मदहोश होकर चूसने और चाटने लगी, अंडकोषों पर हल्के हल्के बाल थे जिसकी वजह से रजनी और कामातुर हो रही थी, काफी देर तक आंड को चूसने, सहलाने मसलने के बाद उसने लंड पर हाँथ फेरा और पूरे लंड को सहलाते हुए मुठिया दिया।

रजनी ने अपने बाबू के लंड को सहलाते हुए अपने मुँह के सामने सीधा किया और अपने होंठों को गोल करके लंड के सुपाड़े के ऊपर रखकर अपने होंठों से ही लंड की चमड़ी को नीचे सरकाते हुए सुपाड़ा खोलकर मुँह में भर लिया और लबालब चूसने लगी, उदयराज अपनी बेटी के नरम होंठ आने लंड पर पड़ते ही जोर से कराह उठा और सिसकने लगा-

आआआआआआहहहहह..... .मेरी बेटी ऐसे ही.......ऐसे ही चूस........ओओओहहहह.......कितना अच्छा लग रहा है...... .... तेरे नरम नरम होंठ मेरे लंड पर........आआआहहह......चूस मेरी रजनी.... मेरी बेटी......मेरी बच्ची.........चाट चाट के इसकी बरसों की प्यास बुझा दे...........आ आ आह ह ........हाहाहाहाहायययय......तेरी अम्मा ने तो कभी इसको ठीक से चूस ही नही..........तू कितना अच्छा चूस रही है मेरी बेटी...........चाट अपने बाबू का लंड ऐसे ही........ ..बुझा दे मेरी प्यास मेरी बच्ची.......मेरी बिटिया.. ..... आआआहहहहह......हाहाहाहाहायययय.....और मुंह में भर भर के चूस मेरी रानी...चूस.....मेरे लंड की खुशबू अच्छी लगी न......ऐसे ही चूस.....आआआहहहहह।

अपने बाबू के लन्ड की भीनी भीनी महक रजनी की अंतरात्मा तक समाती चली गयी, काम रस की खुशबू और पेशाब की महक रजनी को इतनी भा रही थी कि वो वासना से अब जल उठी और कस कस के अपने बाबू का ज्यादा से ज्यादा लंड अपने मुँह में भर भरकर चूसने चाटने लगी, उदयराज मस्ती में आंखें मूंदे अपनी बेटी का सर पकड़कर अपने लंड पर दबाता रहा और ज्यादा से ज्यादा उसके मुंह में डालता रहा इतनी कोशिश करने के बाद भी रजनी अपने बाबू का आधे से थोड़ा ज्यादा ही लंड अपने मुँह में ले पाई थी। लंड चूसने की चप्प चप्प आवाज सिसकियों के साथ वातावरण में गूंजने लगी, रजनी ने काफी देर मुँह में भर भर के अपने बाबू का दहकता लंड चूसा और फिर पक्क़ से लंड को बाहर निकाला, अपनी जीभ निकालकर लंड के मूत्र छेद पर बड़ी मादकता से रगड़ने लगी फिर जीभ से लन्ड को ऊपर से नीचे तक icecream की तरह चाटने लगी, अपनी बेटी के नरम नरम मुँह में अपना लंड भरकर और जीभ से लन्ड चटवाकर उदयराज त्राहि त्राहि कर उठा।

रजनी भी सिसकते हुए -
आआआआहहहह मेरे बाबू........डालो अपना लंड मेरे मुंह मे.....आज आपकी सारी प्यास बुझा दूंगी....... आपको तड़पता हुआ नही देख सकती आपकी ये बेटी.......आआआआआआहहहह...............हहहहाहाहाहाहाययययय........क्या लंड है आपका.......कितना लंबा और मोटा है मेरे बाबू..........अपने सुपाड़े को मेरे होंठों पर रगड़ो बाबू............अपने लंड से मेरे मुँह को चोदो.......चोदो बाबू

उदयराज अपनी बेटी के आग्रह पर अपना लंड उसके मुँह में जितना भी आ सकता था डालकर अंदर बाहर करके मुँह को हल्का हल्का चोदने लगा, रजनी के सर और बालों को पकड़कर वह सहलाने लगा, रजनी भी आंखें बंद किये पूरा पूरा मुँह खोलकर गपा गप्प लंड मुँह में लेने लगी, मस्ती में उदयराज की आंखें बंद हो गयी, उदयराज के विकराल लंड का खुला हुआ सुपाड़ा रजनी के मुँह में हर जगह ऊपर नीचे अगल बगल टकराने लगा और रजनी मदहोश होती चली जा रही थी, उसने अपने बाबू का 4 इंच मोटा लंड आधे से ज्यादा ही मुँह में भर लिया था उसका मुँह पूरा खुला हुआ था, उदयराज हौले हौले मुँह में लंड लगभग गले तक हाय हाय करता हुआ पेले जा रहा था, लंड की नसें फूलकर और भी उभर गयीं और रजनी को अपने होंठों पर साफ महसूस होने लगी, उसका पूरा लंड अपनी बेटी के थूक से दिए कि हल्की रोशनी में चमक रहा था, उसने अपने लंड को पकड़कर फिर पक्क़ से मुँह से बाहर निकल और रजनी के गालों, माथे और ठोढ़ी तथा होंठों पर खूब रगड़ा, रजनी सिसकते हुए आंखें बंद किये अपने बाबू के गरम थूक से सने लंड को अपने चेहरे के हर हिस्से पर महसूस करती रही और जब लंड होंठो पर आता तो जीभ निकाल के उसे चाट लेती।

एकाएक उदयराज से अब बर्दाशत नही हुआ उसने दिया उठाकर चबूतरे के किनारे रखा और वासना में मदहोश रजनी को चबूतरे के एकदम किनारे अंगौछा बिछा के पैरों को नीचे लटका के लिटाया, रजनी अपने बाबू का इरादा समझ गयी, चबूतरे की ऊंचाई ठीक कमर तक ही थी, उदयराज अब कूदकर चबूतरे से नीचे उतरा और अपनी मदहोश बेटी के पैरों को खोलकर मोटी मोटी जाँघों के बीच आ गया, रजनी ने खुद ही अपने बाबू की इच्छा के अनुसार खुद को सही कर लिया, दिया पास में ही जल रहा था।

उदयराज ने अपनी बेटी की जाँघों को खोलकर उसकी बूर को अच्छे से देखा, दिया ऊपर जांघ की बगल में था इसलिए बूर पर थोड़ा अंधेरा था तो रजनी ने दिया उठा कर बूर के नजदीक कर दिया ताकि उसके बाबू अपनी सगी बेटी की बूर को अच्छे दे देख सकें, उदयराज ने अपनी बेटी के पूरे नग्न बदन को अच्छे से निहारा और फिर जाँघों को फाड़कर प्यासी बूर को मुँह में भरकर चाटने लगा।
रजनी हाहाहाहाहाहाययययययय..........बाबू................ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़..................... ..............आआआआआआहहहहहहहहहह
करने लगी,
रजनी ने दिया बगल में रखकर सिसियाते हुए अपने बाबू के सर को अपनी बूर पर दबाने लगी, रजनी के दोनों पैर हवा में दोनों तरफ फैले हुए थे, उदयराज बड़ी सी जीभ निकाले अपनी बेटी की महकती रस छोड़ती बूर को, उसकी फाँकों को, भग्नासे को लबालब चाटने लगा, रजनी अपने बाबू के बालों को सहलाते हुए हाय हाय करने लगी, उदयराज अपने दोनों हांथों से कभी रजनी की चुचियों और निप्पल को मसलता तो कभी भारी चूतड़ को हथेली में उठाकर थोड़ा और ऊपर कर देता। वो अपनी पूरी जीभ को गांड के छेद पर ले जाता और फिर बूर की फैली हुई दरार में अपनी जीभ को नीचे से ऊपर तक सरसराता हुआ लाता और ऊपर आ के भग्नासे को चूस लेता, राजनी का पूरा बदन वासना में अब कांप रहा था, एकाएक ईश्वर ने उसे इतना सुख दे दिया था कि वो बर्दाश्त नही कर पा रही थी, उससे रहा नही गया तो उसने अपने बाबू के चेहरे को थाम कर ऊपर की ओर खींच लिया और बहुत वासनात्मक आवाज में धीरे से बोली- बाबू अब मुझे चोदिये, बर्दाश्त नही होता अब, चोदिये अपनी रजनी बेटी को, अपनी सगी बेटी को, आपके सगी बेटी वर्षों से आपके लंड की प्यासी है।

रजनी के अपने बाबू को अपने ऊपर खींचने से उदयराज का लंड रजनी की बूर और जाँघों पर टकराने लगा तो रजनी और मचल उठी, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों का एक जोरदार चुम्बन लिया और अपने विकराल हो चुके लंड को पकड़कर पहले तो रजनी की जाँघों और गांड के निचले हिस्से पर और फिर बूर की फाँकों पर बहुत अच्छे से रगड़ा, इतना मोटा लंड अपनी अंदरूनी और बाहरी जाँघों, गांड की दरार और बूर की फांकों पर लोटता हुआ सा महसूस करके रजनी और भी ज्यादा गनगना गयी और सिसकते हुए बूर में लंड मांगने लगी।

उदयराज ने रजनी की बायीं टांग को उठाकर अपने कंधे पर रखा और दायीं टांग को फैलाकर अपने कमर से लपेट दिया और खुद अपना सीधा पैर उठाकर चबूतरे पर रख लिया और रजनी के ऊपर थोड़ा झुकते हुए एक हाँथ से अपने विशाल दहकते लंड को पकड़ा, उसका सुपाड़ा खोलकर चमड़ी को पीछे किया और धीरे से अपनी सगी बेटी की खुली हुई बूर की फांक में चिकने फूले हुए सुपाड़े को लगाया, दहकता हुआ लंड जब दहकती हुई बूर से छुआ तो रजनी की जोरों से aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh
निकल गयी।
उदयराज ने कुछ देर अपने लंड के सुपाड़े को अपनी बेटी की बूर की रिसती फांकों में ऊपर नीचे दाएं बाएं रगड़ता और हल्का हल्का डुबोता रहा, फिर एकाएक उसने लंड के सुपाड़े को अपनी बेटी के दहकते लाल लाल छोटे से छेद पर लगाया, रजनी की बूर का छेद पैरों को काफी फैलाने के बाद भी करीब एक इंच तक ही खुल पाया था, और लन्ड का सुपाड़ा लगभग फूलकर पूरा 3.5 या 4 इंच का हो गया था, इस बात से साफ दिखता था कि एक बच्ची को जन्म देने के बाद भी रजनी बिल्कुल कुँवारी जैसी ही थी, कई वर्षों से उसकी बूर में लन्ड गया ही नही था जिससे उसका छेद और भी संकरी हो गया था, बूर के छोटे से छेद से काम रस लगातार रिस रहा था। लन्ड के दहकते सुपाड़े को अपनी बूर के छेद पर महसूस कर रजनी असीम आनंद में खो गयी।

फिर एकाएक आंखें खोलकर अपने बाबू से उखड़ती आवाज में बोली- बाबू जरा रुको।

उदयराज- क्या हुआ मेरी बेटी?

रजनी- मुझे इसका खाना परोसने दो, आप जब रसोई में आते हो तो मैं आपको खाना परोसती हूँ न?

उदयराज अपनी बेटी को देखता हुआ- हां, बिल्कुल, मेरी प्यारी बिटिया।

रजनी ने बड़ी वासना भरी आवाज में कहा- तो ये आपका प्यारा सा लंड अपना खाना खुद लेके क्यों खायेगा ? पहले मैं परोस दूंगी तब खायेगा।

उदयराज अपनी बेटी की इस अदा को देखता रह गया और अपने लंड को थोड़ा पीछे किया, रजनी ने चूड़ियां खनकाते हुए अपने हाथों को आगे बढ़ाया और अपने दोनों हांथों की उंगलियों से अपनी दहकती बूर की फांकों को अच्छे से चीरकर बूर के लाल लाल छेद को अपने बाबू के सामने परोस दिया और बोली- लो अब खाओ अपनी बेटी की बूर को अपने लंड से बाबू।

उदयराज ने अपनी बेटी की इस अदा से कायल होके दहाड़ते हुए अपने फ़ौलादी लंड के सुपाड़े को बूर के छोटे से छेद से भिड़ा दिया और फिर राजनी ने वहां से आनंद में आंखें बंद करते हुए और कराहते हुए अपने हाथ हटा लिए, बूर की दोनों फांकें grip की तरह लंड के चारों ओर लिपट गयी और उदयराज और रजनी दोनों के ही मुँह से जोर से aaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh की सिसकारी निकल गयी।

उदयराज ने बूर पर लन्ड से हल्का सा दबाव बढ़ाया तो रजनी के माथे पर शिकन आ गयी उसे दर्द होना शुरू हुआ, उदयराज ने हल्का सा दबाव और बढ़ाया तो रजनी का सारा आनंद दर्द में बदलने लगा और उसने इशारे से ना में सर को हिलाते हुए अपने बाबू की कमर को वहीं पर थाम लिया, उदयराज मुस्कुराया, वो जानता था कि ऐसा होगा, जानती तो रजनी भी थी, पर क्या करे बिना चुदाई के रह भी नही सकती थी, उदयराज ने लंड को थोड़ा पीछे किया और लन्ड के सुपाड़े को बूर की फांकों की दरार में ऊपर नीचे रगड़ने लगा साथ ही साथ वो बीच बीच में भग्नासे को भी अच्छे से रगड़ने लगा, रजनी को अब फिर असीम आनंद की अनुभूति होने लगी, उदयराज ने झुककर रजनी की चुचियों को पीना और निप्पल को छेड़ना शुरू कर दिया साथ ही साथ अपने लंड को रिसती बूर की फांकों में ऊपर नीचे रगड़ता जा रहा था।

रजनी अब aaaaahhhhhhh, aaaaahhhhhhhhhh..................aaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhh करती हुई वासना के महासागर में फिर गोते लगाने लगी, उदयराज ने रजनी का सीधा हाँथ पकड़ा और नीचे लेकर अपने आंड उसकी हथेली में दे दिए, रजनी के हाँथ में आंड आते ही वो आंखें बंद किये सिसकते हुए उन्हें सहलाने लगी, उदयराज ने अपने लंड को बूर की दरार में ऊपर नीचे रगड़ते हुए एक बार फिर बूर की छेद पर लगा दिया और अपनी बेटी की जाँघों को और कस के फैलाया, बूर थोड़ी और खुल गयी, रजनी से रहा नही गया उसने असीम आनंद में आंखें बंद किये अपने हाँथों को चूड़ियां खनकाते हुए अपनी बूर के पास लायी और दोनों हांथों की उंगलियों से बूर की फांकों को दुबारा अच्छे से चीर दिया और पकड़े रही, उसके बाबू का विकराल लंड छेद पर भिड़ा हुआ था।

बूर से लिसलिसा काम रस रिस रहा था जिसने छेद को बहुत चिकना बना दिया था, लंड का फूल हुआ सुपाड़ा उस लिसलिसे रस में भीगकर और भी चिकना हो गया था, उदयराज ने अब हौले हौले बहुत छोटे छोटे धक्के बूर की छेद पर लगाना शुरू किया, रजनी अब बिल्कुल adjust हो गयी थी, वो मस्ती में अपनी आंखें बंद किये अपने हाथों से अपनी बूर की फांकों को फैलाये अपने बाबू के मोटे लंड के छोटे छोटे धक्कों का आनंद ले रही थी कि

तभी

एकाएक उदयराज ने अपनी टांगों को ठीक से सेट करके एक दमदार जोर का धक्का बूर में मारा और मोटा सा दहकता चिंघाड़ता विकराल लंड कमसिन सी प्यारी सी दहकती बूर के संकरी लाल लाल नरम नरम छेद को फाड़ता हुआ लगभग एक चौथाई बूर में घुस गया।

रजनी एकाएक दर्द से सीत्कार उठी, उसके मुँह से uuuuuuuuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii. aaaaaaaaammmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaa...........hhhhhhhhhhhhaaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii.......dddddddddddaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiyyyyyyyyyyaaaaaaaaaaa.......kitna mota hai aapka. mere bbbbbbbbaaaaaaaaaaaaabbbbbbbbuuuuuuuuu

इतनी जोर से निकला कि मानो सृष्टि के रग रग में, प्रकृति के कण कण में उसकी सीत्कार गूंज उठी हो, राजनी ने झट से बूर से हाथ हटाकर अपने बाबू के कमर को रोककर थाम लिया मानो वो डर रही हो कि कहीं वो लगातार दूसरा धक्का न मार दें।

सुनसान अंधेरी रात में बहुत दूर तक रजनी की आवाज गूंजी थी पर उदयराज ने उसके मुँह को अपनी हथेली से नही ढका, क्योंकि वो जानता था कि उसकी बेटी कितना भी जोर जोर से सीत्कारेगी उसकी आवाज गांव वालों तक तो हरगिज़ नही पहुँचेगी।

रजनी हाय हाय करते हुए अपनी जांघे फैलाये अपनी धधकती बूर में लगभग एक चौथाई अपने बाबू का लंड लिए हुए छटपटा रही थी, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी बूर को अच्छे से चीरकर किसी ने उसमे गरम गरम लोहे का मोटा खूँटा ठोंक दिया हो, इतनी पीड़ा होगी उसे इसका अंदाजा नही था जबकि काम रस छोड़ छोड़ के बूर उसकी काफी चिकनी हो गयी थी, लंड इतना भयंकर भी हो सकता है आज जाके उसको पता चला, लंड का मोटा सुपाड़ा और कुछ भाग पूरा बूर में घुस चुका था, बूर का प्यार सा छेद एकदम किसी रबड़ के छल्ले की तरह फैलकर लंड के चारों तरफ कस चुका था।

उदयराज ने अपने दोनों हांथों से रजनी की जाँघों के ऊपरी और निचले हिस्से को तथा हाँथ नीचे लेजाकर उठी हुई पूरी भारी उन्नत मांसल गांड को अच्छे से बहुत प्यार से काफी देर तक सहलाया फिर अपनी बेटी के ऊपर झुककर उनके गालों, कान के नीचे और कान पर, गर्दन पर काफी देर चूमता रहा, काफी देर गर्दन पर अपनी जीभ फिराता रहा, चूमता रहा फिर उसने होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमना और पीना शुरू कर दिया, रजनी को इससे बहुत राहत मिलती गयी, उसकी जोर जोर से निकलती चीख और दर्द भरी सीत्कार धीरे धीरे वसनात्मय सिसकियों और कराह में बदलने लगी फिर उसकी आंखें धीरे धीरे असीम आनंद के नशे में बंद होने लगी।

बूर उसकी अब धीरे धीरे लंड के आकार के हिसाब से खुलने लगी और थोड़ा adjust हुई, काम रस बराबर रिस ही रहा था जिसे चिकनाई बरकरार थी, उदयराज ने उतना ही लंड बूर में घुसेड़े हुए लंड को धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू किया पहले तो रजनी दुबारा दर्द से थरथरा गयी पर कुछ ही पल बाद उसको लंड की हल्की हल्की रगड़ से सुख की अनुभूति होने लगी और वो भी अपने नितम्ब को हल्का हल्का ऊपर को उचकाने लगी, उदयराज अब समझ गया कि यहां तक मामला अब सेट हो चुका है उसने अब ज्यादा देर नही की और लंड से बूर को धीरे धीरे चोदते हुए दो जोरदार धक्के लगातार और मार दिए। इस बार उदयराज का विकराल लंड एकदम से बूर की कई वर्षों से सूनी पड़ी अंदर की मखमली दीवारों को फाड़ता हुआ सीधा बच्चेदानी तक पहुँच गया, रजनी का दर्द के मारे पूरा गदराया बदन ही ऐंठ गया, आंखों से उसके आंसू बह निकले, uuuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiii aaaaaaaaaaaaammmmmmmmmmmmmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaa.....mmmmmmaaaarrrrr......ggggaaayyyyiiiiii......mmmmeeeeerrrrreeee...bbbbbaaaaabbbbuuuuuu,,,,,,kitna lamba aur mota hai aapkaaaaa....land.......hhhhaaaaiiiiiii...aaammmmmmmaaaaaaa

बोलते हुए वो पहले तो कुछ देर दर्द से सीत्कारती रही फिर एकाएक उसने अपने बाबू के कमर को थाम लिया। उदयराज रजनी के ऊपर अब पूरी तरह झुक चुका था, लंड बूर में एक तिहाई तक घुस चुका था, बूर चिरचिराकर फट चुकी थी, मोटा सा धधकता फूला हुआ सुपाड़ा रजनी को अपनी बूर की गहराई में आखिरी छोर तक ठोकर मारता हुआ महसूस होने लगा, उसकी कमसिन सी प्यारी सी मखमली फांकों वाली महकती हुई बूर अपने बाबू का लगभग एक तिहाई फ़ौलादी लंड लील चुकी थी, पर दर्द से रजनी का बुरा हाल था, आज पहली बार उसकी बूर फटी थी वो भी उसके सगे पिता के लंड से, उदयराज रजनी के ऊपर पूरी तरह चढ़ चुका था उसका एक पैर अब भी नीचे और दूसरा चबूतरे पर था, रजनी का एक पैर उदयराज के कंधों पर तथा दूसरा उसकी कमर पे कसा हुआ था, उदयराज को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसने अपना लंड किसी गरम मक्ख़न के डिब्बे में पूरा डुबो दिया हो, इतनी नरम बूर थी रजनी की, उसने रजनी के आंसू बड़े प्यार से पोछे और उसको दुबारा सहलाना, चूमना दुलारना चालू कर दिया, काफी देर तक वो रजनी के बदन के एक एक अंग को सहलाता, चूमता और दुलारता रहा, वो उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बड़े प्यार से काफी देर चूमता रहा, होंठों को चूसता रहा, बड़ी बड़ी मादक मदमस्त चुचियों को काफी देर तक पीता रहा, निप्पल से खेलता रहा, गांड को सहलाता रहा, कभी नाभि को सहलाता तो रजनी हल्का सा चिहुँक भी जाती, अब रजनी का भयंकर दर्द धीरे धीरे कम होने लगा, उसे सुकून मिलने लगा, दुबारा से दर्द अब आनंद में बदलने लगा।

रजनी के मुँह से अब दुबारा हल्की हल्की सिसकारियां निकलने लगी,
आआआआहहहह...बाबू....हाहाहाहाहायययय...मेरी बूर....कितना लंबा है आपका लंड.... बाबू.....कितना मोटा है आपका लंड... ...हाहाहाहाययययययय ....मेरी बूर...फाड़ डाली इसने........कितने अंदर तक घुसा हुआ है.......ओओओओहहहहह...... अम्मा...... हाहाहाहाययययययय.... बाबू.....ईईईईईईईईईशशशशश..................आआआआआआहहहहहहहह

उदयराज और रजनी ने एक दूसरे को बाहों में कस के भर लिया और एक दूसरे की आंखों में बड़े प्यार से देखने लगे फिर मुस्कुरा दिए, रजनी शर्मा गयी और रजनी अपने बाबू के बालों को सहलाने लगी उसका दर्द अब काफी हद तक खत्म हो चुका था, रजनी की बूर का नन्हा सा छेद अब तीन गुना ज्यादा फटकर फैल चुका था और किसी रबड़ के छल्ले की तरह लंड के किनारे किनारे बिल्कुल कसा हुआ था, रजनी ने धीरे से अपने बाबू के कान में कांपते हुए कहा- बाबू आपने तो आज मुझे पूर्ण औरत बना दिया, कितना लंबा और मोटा लंड है आपका, पता है बूर में कितनी अंदर तक घुसा हुआ है। मेरी तो बूर ही फाड़ के रख दी आपने, अपनी सगी बेटी की बूर में कोई इतना मोटा और लम्बा लंड ऐसे पेलता है, हम्म, बोलो, पगलू

उदयराज- मेरी प्यारी बेटी अगर ऐसे नही करता तो ये अंदर कैसे जाता और फिर बिना अंदर डाले मैं तुमको चोद चोद कर तुम्हारी और अपनी बरसों की प्यास कैसे बुझाऊंगा, मेरी बेटी केवल मेरा लंड ही मोटा और लम्बा नही है, तुम्हारी प्यारी सी बूर भी तो कितनी गहरी है।

रजनी शर्मा गयी और अपने बाबू की पीठ कर चिकोटी काटते हुए बोली- आखिर आपकी बेटी की बूर है, अपने बाबू का लंड अच्छे से नही खाएगी तो किसका खाएगी, जितना मर्ज़ी अच्छे से अंदर डालो बाबू अपनी बेटी की बूर में अपना समूचा मोटा लंड।

उदयराज- तुम्हे पता है अभी भी पूरा लंड तुम्हारी बूर में पूरा नही घुसा है अभी थोड़ा बाकी है।

इतना सुनते ही रजनी चौक गयी- क्या?

उदयराज- हम्म, खुद ही देख लो छूकर

रजनी ने तुरंत अपना सीधा हाँथ बूर पर ले जाकर लंड को छुआ तो वाकई में एक चौथाई लंड अभी भी बाहर था और बाकी का लंड बूर में समाया हुआ था, लंड और बूर बुरी तरह धधक रहे थे। रजनी ने वहां से हाँथ हटा कर अपने बाबू के कान में सिसकते हुए कहा- बाबू मुझे पूरा लंड चाहिए चाहे जो भी हो, डालो न पूरा, कब डालोगे, मुझे पूरी तरह एक होना है आपसे।

उदयराज- सच

रजनी- हां बाबू

उदयराज ने पोजीशन संभाला और अपनी बेटी की आंखों में देखते हुए एक बहुत ही जोरदार करारा धक्का मारा, बूर चिरचिरा के और फटी और पूरा का पूरा लंड रजनी की बूर में जड़ तक समा गया, बूर की गहराई में लंड बच्चेदानी
तक तो पहले ही पहुँच चुका था अबकी बार वो सबकुछ ठेलता हुआ दो इंच और अंदर तक समा गया। उदयराज के लंड और रजनी की बूर के ऊपर के काले काले बाल आपस में मिलकर एक हो गए।

रजनी जोर से कराह उठी और अपने बाबू से कस के लिपट गयी, उदयराज के कंधों और पीठ को रजनी ने इस कदर भींचा की उसके नाखून उदयराज की पीठ पर हल्का हल्का चुभ गए, पर फर भी रजनी को इस बार थोड़ा कम ही दर्द हुआ क्योंकि बूर अंदर से भी थोड़ा खुल चुकी थी।

अब उदयराज का 9 इंच लंबा और लगभग 4 इंच मोटा लंड उसकी सगी बेटी की दहकती बूर में जड़ तक समाया हुआ था, बूर की अंदर की मखमली दीवारें लंड से ऐसे चिपकी हुई थी मानो उसे चूम चूम के उसका स्वागत कर रही हों, उदयराज रजनी को फिर से ताबड़तोड़ चूमने लगा और रजनी फिर से सिसकने लगी, उसके हाँथ अपने बाबू की पीठ पर लगातार चलने लगे और अब उसने अपने पैर अपने बाबू के कमर में कैंची की तरह लपेट दिए जिससे रजनी की बूर खुलकर और ऊपर उठ गई, लंड और अच्छे से बूर में समा गया, काफी देर तक यूँ ही सगे बाप बेटी एक दूसरे में समाए एक दूसरे को सिसकते हुए चूमते सहलाते रहे, उदयराज ने तो चुम्बनों की झड़ी लगा दी थी, रजनी तो अपने बाबू के ताबड़तोड़ चुम्बनों से ही गनगना गयी थी। उदयराज का एक पैर जमीन पर और दूसरा चबूतरे पर था। एकाएक रजनी ने अपने बाबू की कमर को सहलाते हुए अपने हांथों को उनके दोनों चूतड़ों पर ले गयी और चूतड़ों को दोनों हांथों से हल्का सा आगे दबा कर अपने बाबू को अब बूर चोदने का इशारा किया।

उदयराज ने काफी देर से बूर में चुपचाप पड़े लंड को हल्का सा ऊपर खींचा और फिर जड़ तक गच्च से अंदर डाल दिया, रजनी सिसिया उठी uuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiiiiiii. bbbbbbaaaaaaaaabbbbbbuuuuuuuu. mmmmaaaaarrrrrrrr. gggaaaayyyyiiiiiii

उदयराज फिर धीरे धीरे ऐसा ही करते हुए अपनी बेटी की बूर को हल्का हल्का चोदने लगा, शुरू शुरू में रजनी को एक बार फिर से हल्का सा दर्द जरूर हुआ था पर वो दर्द मीठा मीठा था और अब जो दर्द हो भी रहा था उसमें हल्की सी मिठास थी। धीरे धीरे उदयराज ने अपनी बेटी की बूर में घुसे अपने लंड की रफ्तार को थोड़ा बढ़ाया और अब वो रजनी के लबों को चूमते हुए लगभग अपने आधे लंड को बूर से बाहर निकालने लगा और बार बार अच्छे से गच्च से जड़ तक घुसेड़ने लगा, धीरे धीरे रजनी जन्नत में जाने लगी उसकी आंखें अपने पिता की चुदाई के सुख से बंद हो चुकी थी, उदयराज अब अपनी सगी बेटी की बूर में अपना आधा लंड निकाल निकाल कर बार बार जड़ तक घुसेड़ने लगा, रजनी oooooooohhhhhhhhh. bbbbbaaaabbuuuuuuu. ccchhhooodddooo. mmmuuuujjhhheeeeeee........aaaaiiissseeeee.....hhhiiiiiiiii.......hhhhhaaaaayyyyyyy.....ddddaaaiiiiiiyyyyyaaaa.......kkkkiiiitttnnnnaaa...accchhhcchhhaaa....laaaagggg....rrraaahhhaaaaa..hhhhaaaaiiiii babu
कहते हुए मचलने लगी, उदयराज चुदाई के साथ साथ अपनी बेटी की चुचियों का भी जमकर मर्दन करता जा रहा था और झुक झुक कर होंठों को भी चूस ले रहा था।

जब उदयराज अपने दहाड़ते लंड को रजनी की बूर में घच्च से घुसेड़ता तो उसके दोनों आंड उछलकर रजनी को अपनी गांड पर टकराते तो रजनी और नशे में डूब जाती, करीब 20 मिनट तक ऐसे ही अपनी बेटी की बूर चोदने के बाद उदयराज ने अब और अपनी स्पीड बढ़ा दी और अब खुद उसकी आंखें नशे में बंद होने लगी, जितना उसने कभी सोचा था उससे कई गुना ज्यादा अपनी ही सगी बेटी की मक्ख़न जैसी बूर को चोदने में मजा आ रहा था, अपनी सगी बेटी को चोदने में सच में कितना मजा आता है ये उदयराज को आज बखूबी महसूस हो रहा था, रजनी भी धीरे धीरे अपनी गांड ऊपर को उछाल उछाल कर अपने बाबू के ताल से ताल मिलाते हुए सोचने लगी कि सच में सगे पिता से चुदवाने में कितना असीम आनंद है, जब पिता का लंड अपनी ही सगी बेटी की बूर में जाता है तो कितना अच्छा लगता है, पिता के साथ चुदाई का जो मजा है वो किसी के साथ नही, हर बेटी को अपना खजाना कभी न कभी चुपके से अपने पिता के लिए खोलना चाहिए, कोई भी पिता कभी भी अपने कदम खुद तो आगे बढ़ाएंगे नही, तो बेटी को ही उनकी प्यास को समझ कर, उनके अनकहे दर्द को समझ कर चुपके चुपके उन्हे योनि का सुख देना चाहिए, अपनी बेटी को तो वो पाल पोसकर, जिंदगी का हर सुख देकर, बचपन से लेकर जवानी तक जबतक उसकी शादी नही हो जाती उसकी सारी जरूरतों को पूरा करते हुए एक दिन शादी करके उसे बिदा कर देता है, ये सब समाज के नियम निभाते निभाते वो उम्रदराज होने लगता है और उसकी पत्नी भी तब तक बूढ़ी सी ही हो चुकी होती है, तब ऐसे में जब उसे ठीक से योनि सुख नही मिलता तो उसका जीवन नीरस होने लगता है, समाज के डर से वो किसी से कुछ कह नही सकता, बस घुट घुट के जीता है तब ऐसे में बेटी को अपने पिता को जवान बूर का सुख देना चाहिए, ये भी तो एक तरह की सेवा ही है, इस छोटी से सेवा से पिता जीवन फिर से रंगीन हो जाएगा और वो कहीं इधर उधर बहकेगा भी नही, और पिता के साथ तो चुपके चुपके यौनसुख लेने में मजा ही मजा है, कितना असीम आनंद है इस मिलन में।

यही सब सोचते हुए रजनी अपनी गांड हल्का हल्का ऊपर को उछाल उछाल कर अपने बाबू से चुदवाने लगी।

उदयराज ने अब अपने धक्कों की रफ्तार और तेज कर दी उसने अपने हांथों से रजनी के भारी मांसल नितम्ब को थाम लिया और लगभग आधे से ज्यादा लंड बूर से निकाल निकाल कर गच्च गच्च अपनी बेटी की बूर में पेलने लगा, रजनी का अब पूरा शरीर धक्कों से हिल जा रहा था, बूर बिल्कुल खुलती जा रही थी पर छेद का कसाव बरकरार था बस बूर का छेद फैल जरूर गया था पर कसाव इतना था कि उदयराज को अपना पूरा लंड बाहर खिंचने में काफी कसाव महसूस हो रहा था और इस बात से वो और उत्तेजित होता जा रहा था, वो जानता था कि एक तरह से वो कुँवारी बूर ही चोद रहा है और कुँवारी बूर इतनी जल्दी ढीली नही होती, रजनी aaaaaahhhhhhh, uuuuiiiiii aaammmmaa, oooohhhhhhhh iiiisssssssss बाबू ऐसे ही चोदो कहते हुए गांड उछाल उछाल के अपने बाबू का चुदाई में साथ दिए जा रही थी।


एकाएक उदयराज ने जोर से कराहते हुए अपना पूरा पूरा लंड बूर से निकालकर अपनी बेटी की बूर में जड़ तक पुरा पूरा पेलना शुरू कर दिया, रजनी बड़ी तेज से सिसकने लगी ओओओओओओहहहहहहह..........बाबू.........आआआआहहहहहहह..........हाय दैय्या.......मेरी बूर.....फाड़ो.....बाबू......ऐसे ही......चोदो.......हाहाहाहाहाहायययययययय.......कितना.....मजा.....आ रहा है........कितना मजा है चुदाई में।


रजनी ने बड़ी मुश्किल से अपनी मदहोश आंखें खोलकर जलते दिए को अब बुझा ही दिया, क्योंकि दिए कि रोशनी थोड़ी आंख में लग रही थी और अब वो प्रकृति के बीच खुलकर अंधेरी गुप्प रात में अपने सगे पिता के साथ मिलकर इस महापाप का मजा गांड उछाल उछाल कर लेना चाहती थी।
दिया बुझते ही उदयराज और जोश में आ गया और वो अच्छे से पोजीशन संभालकर अपनी गांड को दनादन उछालते हुए अपनी पूरी ताकत से अपनी बेटी की बूर में अपना पूरा पूरा लंड डालकर उसको चोदने लगा, रजनी अपने बाबू का लंड एक बार पूरा पूरा बाहर जाते हुए महसूस करती फिर सट्ट से जड़ तक लंड को बूर में समाते हुए महसूस करती, लगातार अपने बाबू के हाहाकारी लंड का पूरा दहकती बूर में आवागमन रजनी को गनगना दे रहा था, जब जब बूर की गहराई के आखिरी छोर पर उसके बाबू का लंड टकराता, रजनी आनंद में सीत्कार उठती, दर्द न जाने कहाँ छू मंतर हो चुका था अब तो बस चारों तरफ कामसुख ही कामसुख फैल चुका था राजनी लगातार आनंद में सिस्कारे जा रही थी-


ऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.....माँ........... ओओओओओफ़फ़फ़फ़फ़फ़फ़फ़.......बाबू......कस कस के ऐसे ही चोदो मुझे...........बहुत प्यासी हूँ.............. आपके लंड के लिए मेरी बूर तड़प रही थी...................................आआआआआ हहहहहहहहह.............बाबू.........मेरे राजा..


उदयराज अब काफी तेज तेज लंबे लंबे धक्के मारकर अपनी बेटी की बूर चोदने लगा, जब लन्ड सट्ट से अंदर जाता तो उदयराज के झांट के बाल फैली हुई बूर की फाँकों के बीच उभरे हुए भग्नासे से टकराते तो रजनी का शरीर बार बार उत्तेजना में और भी थरथरा जाता, अत्यंत उत्तेजना में बूर का भगनासा फूलकर खिल गया था और बिल्कुल बाहर आ चुका था, रजनी जोर जोर से सिसकारने लगी और गुप्प अंधेरे में उदयराज अपनी बेटी की बूर पूरी ताकत से घचाघच चोदने लगा, लंड और बूर काम रस से इतने सराबोर हो चुके थे कि चुदाई की फच्च फच्च, घच्च घच्च की मीठी आवाज और रजनी
का पूरा बदन हिलने से चूड़ियों की खन खन आवाज आस पास के वातावरण में गूंजने लगी, उदयराज कभी कभी सीधा सीधा लन्ड अपनी बेटी की बूर में पेलता तो कभी हल्का टेढ़ा करके side की मखमली दीवारों से सुपाड़े को रगड़ता हुआ गहराई में जड़ तज उतार देता, कभी कभी जोर जोर चोदते हुए अपनी गांड को गोल गोल घुमा के लंड को अपनी बेटी की बूर में डालकर गोलगोल घुमाता, रजनी इससे मचल मचल के कराह उठती और खुद भी अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू से चुदवाती, रजनी बराबर अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू की चुदाई की ताल से ताल मिला रही थी।


उदयराज चोदते चोदते बूर के मखमली अहसास से नशे में चूर होता जा रहा था उसके और रजनी के मुँह से बराबर सिसकियां निकल रही थी, उदयराज एकाएक और तेज तेज अपनी बेटी की बूर में लंड पेलने लगा, ताबड़तोड़ धक्कों से राजनी मानो खुले आसमान में उड़ने लगी, उसका बदन बीच बीच में थरथरा जा रहा था, एकाएक धुँवाधार चोदते हुए उदयराज ने रजनी के कान के नीचे गर्दन पर जीभ फिराना चालू कर दिया, रजनी के बदन में मानों सारी नसें झनझना गयी, वासना की तरंगें पूरे बदन में लगातार दौड़ रही थी, उदयराज घचाघच रजनी की बूर बहुत तेज तेज चोदे जा रहा था, आस पास के वातावरण में बाप बेटी की चुदाई की सिसकियां, चूडियों की खन खन और सीत्कार तथा लंड और बूर के मिलन की फच्च फच्च, घच्च घच्च की आवाज लगातार गूंजे जा रही थी, उदयराज की जाँघे धक्के मारते हुए रजनी के चूतड़ से टकराने से थप्प थप्प की आवाज भी गूंज रही थी। उदयराज ने अपने दोनों हांथों से रजनी के दोनों भारी नितम्ब थाम लिया और हल्का सा ऊपर को उठा लिया अब उसने अपनी बेटी की ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी, रजनी का पूरा बदन उसके बाबू के जोरदार धक्कों से आगे पीछे हिल रहा था, उसकी दोनों विशाल उन्नत फूली हुई शख्त चूचीयाँ तेज धक्कों की ताल से ताल मिला कर हिल रही थी, रजनी बदहवास सी जोर जोर सिसकारते हुए वासना से तरबतर होकर नशे में - हाय बाबू....ओह मेरे राजा....चोदो ऐसे ही........आआह....मेरी बूर.....ओओह...मेरे सैयां...मेरे साजन.......मेरे बलमा........मेरे बाबू.....फाड़ो मेरी बूर......अपनी... बेटी की बूर को और तेज तेज चोदो बाबू.....आआआहहहहह............क्या लंड है आपका.......कितना मोटा है........कितना मजा आ रहा है........चोद डालो आज......... .फाड़ डालो बूर को.......अपनी सगी बेटी की बूर को.......आआआआहहहहहहहह........... हाहाहाहाहाययययययय।


उदयराज अपनी बेटी के मुँह से पहली बार ऐसी कामुक सीत्कार सुन रहा था और सुनकर पूरी तरह मस्ती में भरता जा रहा था, अपने धक्कों की रफ्तार उसने इतनी बढ़ा दी थी कि अब जोर जोर से चुदाई की फचा फच्च, फच्च फच्च, घच्च घच्च आवाज आने लगी, रजनी की बूर रस छोड़ छोड़ के इतनी चिकनी हो गयी थी कि 9 इंच लंबा मोटा लंड तेजी से पूरा का पूरा अंदर बाहर हो रहा था, अपनी बेटी की बूर के काम रस में सना हुआ उदयराज का लंड चमक रहा था, रजनी की बूर का रिसता रस पी पी के लंड की नसें बहुत उभर चुकी थी और जब सट्ट से लंड बूर में जाता और बूर के अंदर दी दीवार लंड पर उभरी हुई नसों से सरसरा कर रगड़ खाती तो रजनी के मुँह से बड़ी तेज सिसकारी निकल जाती।


दिया बुझ जाने की वजह से अँधेरा था और दोनों सगे बाप बेटी अंधेरे में एक दूसरे को बाहों में जकड़े हुमच हुमच कर जोरदार ताबड़तोड़ धक्के लगाते हुए, सिसकारते हुए वासना में लीन एक दूसरे को चोद रहे थे। उदयराज भी बदहवासी में अपनी बेटी को चोदते हुए उसके कान में बस बोले जा रहा था-


ओओओहहहह....मेरी बेटी.....तुझे चोदने में कितना मजा आ रहा है.........कितनी मक्ख़न जैसी बूर है तेरी..........कितनी....नरम है बूर तेरी.....आआआआआआहहहहहहहहह...........................ओओओओओओओओहहहह हहहहहहह..........और कितनी गहरी है...बूर......तेरी......हहहहहहहाहाहाहाहायययययययययय......मेरी सजनी......मेरी...जान......मेरी....रानी........आआआआहहहह........मेरी बच्ची.....मेरी बेटी.....कैसे गच्च गच्च मेरा लंड तेरी बूर में जा रहा है.........हहहहहाहाहाहायययययय।


करीब 30 35 मिनट तक उदयराज रजनी की बूर को ताबड़तोड़ इसी लय के साथ जोर जोर धक्के मारकर चोदता रहा, लंड और बूर की लगातार रगड़ से तो मानो चिंगारियां निकल रही थी, दोनों इतने गरम हो चुके थे कि इसकी कोई सीमा नही थी, उदयराज और रजनी मदरजात नग्न थे, ठंडी हवा भी चल रही थी फिर भी पसीने पसीने होने लगे, एकाएक रजनी के पूरे बदन में चींटियां सी रेंगने लगी और मानो वो चींटियां धीरे धीरे चलती हुई बूर की तरफ जाने लगी, पूरी देह में सनसनाहट होने लगी, चुदाई के आनंद की मस्त तरंगे पूरे बदन में लगातार दौड़ रही थी, लंड गचा गच्च बूर में पूरा पूरा अंदर बाहर हो रहा था, उदयराज ने बरसों से बूर नही चोदी थी और आज उसे बूर मिली भी तो अपनी ही सगी बेटी की, तो वो कहाँ रुकने वाला था, लंबे लंबे धक्के वो पूर्ण रूप से खुल चुकी अपनी बेटी की बूर में जड़ तक लंड पेल पेल कर मारे जा रहा था, बीच में कभी कभी रुकता और अपने पैरों से जमीन में टेक लगाकर पूरी ताकत से लंड को बूर में जड़ तक घुसेड़ कर कुछ देर रुका रहता फिर अपनी गांड को गोल गोल घुमा कर बूर के हर कोने में लंड के सुपाड़े से ठोकर मारता, इसपर रजनी बदहवास ही आंखें बंद कर जोर जोर से सीत्कार करती हुई अपने पूरे बदन को ऊपर की तरफ धनुष की तरह मोड़ देती और हाय हाय करते हुए अपने बाबू की पीठ को इतनी कस के दबोचती की अपने नाखून अपने बाबू की पीठ में गड़ा देती, वो धुवांधार चुदाई से इतनी पागल हो गयी थी कि उसने कामांध होकर अपने बाबू के कंधे, कान, गाल, गर्दन और होंठों को कस कस के चूमना और दांतों से काटना शुरू कर दिया, उदयराज जोर से सिसक उठता था पर और उत्तेजित होकर और जोर जोर से रजनी की गांड को हाथों में उठा उठा के गच्च गच्च बूर चोदने लगता,
रजनी खुद अपने होंठों को भी अपने दांतों से चबा ले रही थी, लगातार ताबड़तोड़ चुदाई से रजनी की बूर में अत्यंत गर्मी होने लगी, बूर में उसकी चींटियां सी रेंगने लगी, बूर की अंदर की दीवारें लगातार लंड के रगड़ से तृप्त हो रही थी और उनके अंदर झनझनाहट होने लगी, उदयराज को अपनी बेटी को चोदते हुए लगभग 40 मिनट हो गए थे, लंड और बूर की घनघोर चुदाई और रगड़ से निकल रहा कामरस रिस रिस कर चबूतरे पर गिरने लगा।
अब उदयराज के बदन में भी मुलायम मुलायम बूर की रगड़ के अहसास से असीम आनंद की तरंगें उठने लगी, शरीर उदयराज का भी अब चुदाई के असीम सुख से झनझनाने लगा, एकाएक रजनी ने तेज तेज कराहते हुए अपने हाथ बढ़ाकर अपने बाबू की उछलती हुई गांड को थाम लिया और अपने हांथों से गांड को और दबाने लगी।


कि तभी


रजनी की बूर में तेज सनसनाहट हुई और वो एकदम से जोर से चीखते हुए अपने बाबू से प्रगाढ़ आलिंगन करके लिपट गयी, अपने बाबू के बदन से कस के लिपटे हुए, उनके गालों को
चीखकर काटते हुए अपनी गांड को जोर से ऊपर की ओर उछालकर लंड को कस कर बूर में भरते और चीखते हुए चरम सुख प्राप्त कर झड़ने लगी,


आआआआआआआआआहहहहहहहहहहहह..........बाबू.......मैं.......गयी..........हहहह हहहाहाहाहाययययययययययय अम्मा.......ओह...... दैय्या.........मैं.......झड़ी....... बाबू चोदो मुझे और कस कस के चोदो...............फाड़ो अपनी बेटी की बूर..................मैं......झड़...... रही......हूँ..................... हाय......... मेरी......बूर,,,,,,,ओओओओओफ़फ़फ़फ़फ़......बाबू.................हाय आपका लंड।


उसकी वर्षों की प्यासी बूर से मानो आज पहली बार गरम गरम लावा फूटकर झटके के साथ बह बह कर निकलने लगा, उसकी बूर बहुत तेजी से अपने बाबू का लंड लीले सिकुड़ने और फैलने लगी, उदयराज अपने मूसल जैसा लंड अपनी बेटी की बूर में ताबड़तोड़ पेलता रहा और अपनी बेटी को कस कस के गालों, गर्दन, होंठों और कान के पास चूमता रहा, चूचीयों को हल्का हल्का मर्दन करता रहा, अपनी रजनी को बड़े प्यार से दुलारता रहा, उसको देखता रहा, रजनी अपनी आंखें बंद किये थरथरा कर झड़ रही थी, झटके ले लेकर उसकी बूर सिकुड़ और फैल रही थी, जो कि उदयराज को साफ महसूस हो रहा था, चरम सुख का अहसास आज रजनी को जीवन में पहली बार अपने ही सगे पिता के दमदार लंड की रगड़ रगड़ कर चुदाई से मिला था। वो हांफते हुए थरथरा थरथरा कर अपनी बूर को लंड पर पटक पटक कर झटके खाते हुए झड़ रही थी, सांसे उसकी धौकनी की तरह चल रही थी, काफी देर तक झड़ने के बाद अपना सारा गरम गरम रस बूर से निकालने के बाद उसकी बूर अब धीरे धीरे शांत होना शुरू हुई, रजनी की दहकती बूर से निकला गरम गरम रस उदयराज के दोनों आंड, जो कि राजनी की बूर में मानो घुसने को तैयार थे, से बहकर लगने लगा और उदयराज की जाँघे, झांट, और आंड तथा आस पास का हिस्सा रजनी की बूर से निकले गरम गरम रस से भीग गया। रजनी की आंखें असीम चरमसुख प्राप्त कर मस्ती में बंद हो चुकी थी, उदयराज थोड़ी देर के लिए रुका, रजनी उससे अमरबेल की तरह लिपटी उसके पीठ को सहलाते हुए आंखें बंद किये हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी, लंड का आवा गमन बहुत हल्के हल्के बूर में हो रहा था, रजनी ने कुछ पल बाद अपनी आंखें खोली और अपने बाबू से और कस के लिपटते हुए उन्हें चूमने लगी मानो अपने बाबू को दुलारकर इनाम दे रही हो और इनाम दे भी क्यों न, चुदाई में ऐसा चरम सुख उसे आजतक नही मिला था, पूर्ण तृप्त हो चुकी थी वो, आज उसके बाबू ने उसे अच्छे से रगड़ रगड़ कर चोदकर औरत बना दिया था, एक कमसिन कली से वो आज औरत बनी थी, यही इनाम वो अपने बाबू को चूम चूमकर देने लगी कि तभी उदयराज ने फिर से अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी, रजनी कुछ देर में फिर सिसकने लगी, उदयराज फिर से एक बार दहाड़ते हुए कस कस के अपनी बेटी की बूर में गचा गच्च जोरदार धक्के लगाने लगा, रजनी के एक बार झड़ जाने की वजह से बूर बिल्कुल चिकनी हो चुकी थी।

उदयराज का लंड रजनी की बूर के रस से बिल्कुल सराबोर हो गया था और अत्यंत तेज धक्कों से बहुत तेज तेज बूर चोदने की फच्च फच्च आवाज वातावरण में गूंजने लगी, रजनी को दुबारा खुमारी चढ़ने लगी, वो एक बार फिर से अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू को चूमते हुए साथ देने लगी, लंड बूर में सटासट फच्च फच्च की तेज आवाज के साथ अंदर बाहर हो रहा था।

करीब 40 45 जोरदार धक्कों के बाद उदयराज से अब रहा नही गया और उसने भी चिंघाड़ते हुए अपनी बेटी की बूर में एक अत्यंत जोरदार धक्का मारा, रजनी का पूरा बदन हिल गया और उसके मुँह से बड़ी तेज आआआआआआआहहहहहहहहहहह की आवाज निकली
और उदयराज थरथराकर अपनी बेटी की बूर में दहाड़ते हुए झड़ने लगा

आआआआआआआहहहहहहहहहहह...........बेटी..........मैं झड़ रहा हूँ...............हाय तेरी मुलायम मुलायम बूर...........मेरी बच्ची.........मेरी बेटी.........मेरी बिटिया.........मेरी रानी..............आआआआआआआहहहहहहहहहहह.............हहहाहाहाहाययययययययययय............कितना मजा है तेरी बूर में...........मेरी रजनी................हहहाहाहाहाययययययययययय...........आआआआआआआहहहहहहहहहहह...........अब तू मेरी है सिर्फ मेरी.............तेरी बूर के बिना अब नही रह सकता..............आआआआआआआहहहहहहहहहहह

बरसों से उसके अण्डकोषों में जमा गाढ़ा गरम गरम वीर्य दनदना कर पिचकारी की धार छोड़ते हुए रजनी की बूर की गहराई में झटके खा खा कर गिरने लगा और अपने बाबू के लंड से पिचकारी की तरह निकली वीर्य की गरम गरम धार को अपने बच्चेदानी के मुँह पर तेज तेज पड़ते ही रजनी भी दुबारा गनगना के हाय हाय करके झड़ने लगी, उसके बूर से भी रस की पिचकारी छूट पड़ी,लंड जड़ तक बूर में समाया हुआ था, रजनी की बूर कस कस के सिकुड़ और फैल रही थी, स्पंदन कर रही थी, रजनी बेताहाशा अपने बाबू को चूमते हुए उनसे लिपटकर झड़ रही थी। रजनी जोर से मादक सिसकारी लेते हुए आआआआआआआहहहहहहहहहहह.......बाबू..........कितना मजा आ रहा है...........मैं तो दुबारा झड़ गयी आपके लंड से...........आआआआआआआहहहहहहहहहहह............अपने बाबू के लंड का गरम गरम वीर्य अपनी बूर की गहराई में पाकर मैं तो गनगना कर दुबारा झड़ गयी बाबू....................हाय आपका लंड..............आआआआआआआहहहहहहहहहहह

उदयराज का बदन गनगना गया, विकराल 9 इंच लंबा लंड पूरा बूर में धसा हुआ झटके खा खा के मोटी वीर्य की गरम गरम धार रजनी की बूर में छोड़ रहा था, रजनी की बूर अपने बाबू के गर्म वीर्य से लबालब भर गई और वीर्य बाहर निकलकर रजनी की बूर के नीचे से बहता हुआ गांड की दरार में जाता हुआ रजनी को बखूबी महसूस होता गया, वीर्य इतना गाढ़ा और गर्म था कि रजनी गनगना गयी, उस वीर्य में रजनी की बूर का रस भी मिला हुआ था, बूर रस और वीर्य की मिश्रित एक धार रजनी की गांड से बहकर नीचे चबूतरे पर आ गयी और बहकर नीचे जमीन तक गयी। काफी देर तक उदयराज आंखें बंद किये हाँफता हुआ अपना लंड बेटी की बूर में जड़ तक घुसेड़े झटके ले लेकर झाड़ता रहा और फिर हाँफते हुए अपनी बेटी पर ढेर हो गया, रजनी ने मदहोशी में अपने बाबू को बाहों में कस लिया और बेताहाशा चूमने लगी, बालों को सहलाने लगी, दुलारने लगी, लंड अब थोड़ा शिथिल पड़ गया पर अब भी बूर में लगभग आधा समाया हुआ था, उदयराज ने अपना एक पैर जो चबूतरे पर था अब नीचे कर लिया था, रजनी ने अपने दोनों पैर अपने बाबू की कमर में क्रोस किये हुए थे, उदयराज अब रजनी के बदन पर पूरा चढ़ते हुए चबूतरे पर चढ़ गया, रजनी ने अपने पैर कमर से उतार लिए और चबूतरे पर फैला दिए, रजनी ने अपने बाबू को बाहों में कस लिया और अपने ऊपर पूरी तरह चढ़ा लिया, अपने बाबू की पीठ, कमर और सर के बालों को वो उनके गाल चूमती हुई बड़े प्यार से दुलार दुलार कर सहलाने लगी। लंड बूर में पड़ा पड़ा आराम करने लगा और बूर उसको धीरे धीरे संकुचित होकर चूम चूम के शाबाशी देती रही।

रजनी की बूर भी काफी देर तक संकुचित होने के बाद हल्की हल्की शांत होने लगी, दोनों बाप बेटी एक जोरदार चुदाई का आनंद लेकर चरम सुख की प्राप्ति के आनंद को आंखें बंद किये एक दूसरे की बाहों में पड़े महसूस करने लगे






(चुदाई अभी ख़त्म नही हुई, बाकी का अगले अपडेट में)
Bahot shaandaar mazedaar lajawab Garma garam update bhai
 
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Naik

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Update- 40

दोनों बाप बेटी कुछ देर तक अपनी उखड़ती सांसों को काबू करते हुए, एक दूसरे के तन को एक बार अच्छे से भोगकर उससे प्राप्त हुई असीम सुख की गहराई में एक दूसरे को बाहों में भरे आंखें बंद किये लेटे रहे, दोनों ही पूर्ण नग्न कुल वृक्ष के चबूतरे पर पड़े हुए थे।

रात के करीब 1:30 हो चुके थे, चारो तरफ गुप्प अंधेरा था, रात में कई तरह के कीड़ों की बोलने की आवाज अब आ रही थी क्योंकि अभी चुदाई की सिसकियां बंद थी, थोड़ी दूर नदी में बह रहे पानी की कलकल आवाज सुनाई दे रही थी।

उदयराज का लंड रजनी की बूर में बूर रस और वीर्य से सना अब भी घुसा हुआ था, उदयराज ने आंखें खोली और अंधेरे में अपनी रजनी बेटी के कान में फुसफुसाके बोला- मजा आया मेरी जान, मेरी बेटी।

अपने बाबू के मुँह से अपने लिए जान शब्द सुनकर रजनी हल्के से सिसकी और धीरे से कान में बोली- बहुत मेरी जान, मेरे बाबू।

उदयराज भी अपनी बेटी के मुँह से जान शब्द सुनकर गुदगुदा सा गया और उसका बूर के अंदर पड़ा थोड़ा सुस्त लंड फिर फूलने लगा।

रजनी को अपने बाबू का फूलता और बड़ा होता लंड अपनी बूर में अच्छे से महसूस हो रहा था।

उदयराज ने रजनी के कान में कहा- मेरी बेटी, मेरी जान, तेरी बूर बहुत मखमली है, ऐसा लग रहा है कि मेरा लन्ड गरम मक्ख़न के डिब्बे में डूबा हुआ है।

रजनी सिसकते हुए- हाय बाबू, ये मेरी मक्ख़न जैसी बूर अब सिर्फ आपकी है, जितना जी भरके खाना है खाइए और आपका लंड, इससे तो मैं तृप्त हो गयी, कितना मोटा और लम्बा है ये।

ऐसा कहते हुए रजनी ने अपनी गांड हल्का सा उछाल के लंड को बूर के अंदर और भर लिया, लंड अब धीरे धीरे फूलता ही जा रहा था, और बूर में फूलता और बड़ा होता लंड रजनी को फिर रोमांचित कर वासना को जगा रहा था।

उदयराज ने धीरे से लंड से बूर में एक गच्चा मारते हुए कान में फिर बोला- मेरी बेटी की बूर की प्यास बुझी?

रजनी शर्मा गई पर चुप रही

उदयराज ने फिर मादक अंदाज में एक और हल्का गच्चा मारते हुए पूछा।

रजनी बहुत धीरे से कामुक आवाज में- नही....... नही मेरे बाबू। इतनी जल्दी कैसे बुझेगी?

ये सुनते ही उदयराज वासना से भर गया और बोला- और चाहिए?

रजनी- हूँ

उदयराज- क्या और चाहिए?

रजनी अपने बाबू के कान में- आपका लंड, मेरे बाबू का लंड।

उदयराज ने जैसे ही एक दो धक्के हल्के हल्के लगाये रजनी ने बड़े प्यार से उनकी कमर पर हाथ रखकर रोका और बोली- बाबू...अब यहाँ नही।

उदयराज- यहां नही तो फिर कहाँ मेरी रानी बेटी।

रजनी- अपने खेत में खुले आसमान के नीचे।

उदयराज ने ये सुनते ही रजनी के गालों और होंठों पर कई चुम्बन लिए और बोला- अपने खेत की मिट्टी में लेटकर असली कील थोकूँ।

रजनी सिसकते हुए- हां बाबू, अपनी बेटी को वही ले चलकर प्यार करो।

ये सारी बातें बाप बेटी अंधेरे में ही कर रहे थे, उदयराज फिर मुस्कुराते हुए अपनी बेटी के ऊपर से उठा, फूली हुई महकती चिकनाहट से भरी बूर में लंड एक बार फिर से जड़ तक समा चुका था, उदयराज ने लंड को बूर से बाहर खींचा लंड पक्क़ की आवाज करते हुए बूर से बाहर आ गया पर जोश में झटके मारे जा रहा था, जैसे ही लन्ड कसी हुई बूर से बाहर निकला, रजनी की आआआआआहहहहहह की हल्की सी आवाज निकल गयी।

उदयराज चबूतरे से नीचे उतरा, उसका सुपाड़ा खुला लंड इधर उधर हिल रहा था, लंड अपना विकराल रूप धारण कर चुका था, जैसे ही उदयराज ने अपने खेत की मिट्टी में खुले आसमान के नीचे अपनी सगी बेटी की चुदाई के बारे में सोचा उसका लंड फ़नफना गया, रजनी भी उठ बैठी, उसकी बूर भी अब दुबारा रिसने लगी, उसकी भारी चूचीयों में दुबारा मस्ती भरने लगी, उदयराज ने अपनी बेटी को अपनी बाहों में उठाया तो रजनी ने अपने बाबू के कान में धीरे से कहा- बाबू रुको! दिया और तेल भी ले लूं।

और रजनी ने दिया, तेल और माचिस डलिये में रखा और हांथों में ले लिया, उदयराज ने अपना अंगौछा कंधे पर रखा, कपड़े उन्होंने वहीं चबूतरे पर बिल्कुल कोने में समेटकर छोड़ दिये, कुल वृक्ष बहुत घना था, रजनी की साड़ी, साया, ब्रा और ब्लॉउज तथा उदयराज का कुर्ता और धोती वहीं रखी थी।

उदयराज ने अपनी बेटी को बाहों में भरकर उठा लिया, रजनी के मादक गदराए बदन को उदयराज बाहों में उठाये अंधेरे में ही चल दिया अपने खेत की तरह जो कि कुल वृक्ष से करीब 100 मीटर दूर था, उदयराज के खेत के चारो तरफ दूसरे के खेत थे, खेत के तीन तरफ दूसरे खेतों में ,बाजरा और मक्के की फसल लगाई गई थी जो कि बड़ी होकर काफी ऊपर तक हो गयी थी, नदी वाले हिस्से की तरफ खुला था, उदयराज का खेत खाली था अभी कुछ दिन पहले ही उसने उसे जोतकर छोड़ दिया था, जोतने से मिट्टी काफी नरम हो गयी थी।

रजनी को बाहों में उठाये मस्ती में उसके गालों और होंठों को चूमता हुआ वो अपने खेत की तरफ चल दिया, उदयराज के प्रगाढ चुम्बन से रजनी बार बार सिरह जा रही थी और मादक सिसकियां ले रही थी, दोनों पूर्ण नग्न थे, उदयराज के चलने की वजह से उसका खुला तना हुआ लंड इधर उधर हिल रहा था और रजनी की चूचीयाँ भी वासना में सख्त होकर तन गयी थी और इधर उधर हिलकर उदयराज को अत्यधिक उत्तेजित कर रही थी, चलते चलते उदयराज ने अपनी बेटी की एक चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा, एक पल के लिए वो रास्ते में खड़े होकर अपनी बेटी को बाहों में उठाये उसकी चूची पीने लगा।

रजनी सिसकते हुए थोड़ा हंस पड़ी और बोली- बाबू अंधेरे में गिर जाओगे, थोड़ा सब्र करो मेरे बाबू आआआआआहहहह.....जी...भरकर पी लेना खेत में पहुँचकर।

और ऐसा कहते हुए उसने खुद भी अपना एक हाँथ नीचे ले जाकर अपने बाबू का खडा 9 इंच फ़ौलादी लंड पकड़ लिया और थोड़ी देर सहलाया, लंड फुंकारने लगा।

उदयराज फिर चलने लगा और कुछ ही देर में अपने खेत में पहुँच गया, जुते हुए खेत की हल्की नमी वाली भुरभुरी ठंडी मिट्ठी में जब उदयराज ने रजनी को बाहों में लिए हुए अपने नंगे पांव रखे तो बड़ी ठंडक महसूस हुई, क्योंकि रात के वक्त मिट्टी ठंडी हो गयी थी, उदयराज खेत के बिल्कुल बीचों बीच आ गया, रजनी को चूमते हुए उसने उतारा, रजनी ने डलिया खेत में रख दिया, उतरते ही एक अंगडाई ली और हाँथ पीछे करके अपने बालों को हल्का सा समेटा। अंधेरे में भी वह अपने बाबू के नग्न शरीर और हल्के दिख रहे खड़े लंड को देखकर मचल उठी, रजनी ने एक नजर ऊपर आसमान में डाली तो देखा तारे टिमटिमा रहे थे मानो सब तारे आज इकट्ठा हुए हों बाप बेटी की रसभरी चुदाई देखने के लिए और बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो शुरू होने का, रजनी उन्हें देखकर मुस्कुरा पड़ी।

उदयराज ने अपना अंगौछा खेत के बीचों बीच उभरी हुई मिट्टी को पैरों से थोड़ा समतल करके उसपर बिछाया, खेत में चारो तरफ सन्नाटा था, बगल के खेतों में खड़ी फसल लहलहा रही थी, तीन तरफ से खेत फसलों से ढका था।

उदयराज अंगौछा बिछाकर बगल में खड़ी अपनी बेटी की तरफ पलटा और दोनों ने एक दूसरे को सिसकते हुए अंधेरे में बाहों में भर लिया, उदयराज का लंड रजनी की महकती बूर और जाँघों के आस पास टकराने लगा जिसको महसूस कर राजनी की सांसे तेज होने लगी।

दोनों एक दूसरे को बाहों में भरकर झूम उठे, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों पर सिसकते हुए होंठ रख दिये रजनी की आंखें नशे में बंद होने लगी, उदयराज के हाँथ रजनी के पूरे गुदाज बदन पर रेंग रहे थे, होंठों को चूसते हुए वो हांथों से बालों को सहलाता हुआ हाँथ नीचे ले जाने लगा, पीठ को सहलाया फिर कमर पर हाँथ डाला तो रजनी सिसक पड़ी, काफी देर कमर को सहलाने के बाद रजनी के निचले होंठों को चूसते हुए उसकी गुदाज मोटी मोटी
जाँघों को आगे और पीछे पीछे की तरफ से सहलाता रहा, कितनी चिकनी जाँघे थी उसकी बेटी की, जाँघों को आगे की तरफ से सहलाते समय वह अपना हाँथ अपनी बेटी की फूली हुई बूर पर ले गया फिर बूर को हथेली में भरकर दबा दिया, रजनी उउउउउउउउउउईईईईईईई.......मां कहकर मचल उठी।

उदयराज ने बूर की दरार में अपनी बीच की उंगली डालकर कुछ देर ऊपर नीचे रगड़ा, रजनी हाय हाय करने लगी।

रजनी की बूर काफी रिस रही थी, रजनी की बूर का चिकना लिसलिसा काम रस उदयराज की उंगली में लग गया तो उसने उंगली को मुँह में भरकर चटकारे ले लेकर चाट लिया।

रजनी सिसकती रही अपने बाबू के हाथों को अपने बदन पर महसूस करके, फिर उदयराज गुदाज मोटी मोटी गांड को हथेली में भरकर कस कस के मीजने लगा, अपनी बेटी की चौड़ी मस्त गुदाज गांड के दोनों उभार को उदयराज अपने सख्त हांथों में भर भरकर दबाने और सहलाने लगा, सहलाते सहलाते वो बीच बीच में गांड की फांकों को अलग करके दरार में पूरा हाँथ फेरने लगता और गांड के छेद को उंगली से सहलाता तो रजनी मादकता से सिसकते हुए चिहुँक उठती और अपने नाखून कस के अपने बाबू की पीठ में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह.......बाबू कहते हुए गड़ा देती।

उदयराज ने रजनी के मुँह में अपनी जीभ डाल के घुमाने लगा और अपने हांथों से उसकी गांड के छेद को सहलाते हुए अपनी उंगलियां थोड़ा आगे धधकती बूर पर ले गया, बूर पर हाँथ पड़ते ही रजनी ने जोर से कराहते हुए अपनी गांड को उचका के टांगों को और चौड़ा कर लिया ताकि उसके बाबू उसकी प्यासी बूर को पीछे से अच्छे से छू और सहला पाएं, उदयराज रजनी के मुँह में अपनी जीभ डालकर उसकी जीभ से खेलते हुए पीछे से हाँथ लेजाकर उसकी बूर की फाँकों को सहलाने लगा, अत्यंत नशे में रजनी की आंखें बंद हो गई, निप्पल उसके शख्त होकर उदयराज के सीने में चुभने लगे। धीरे धीरे सिसकारियां गूंजने लगी, काफी देर उदयराज ऐसे ही रजनी की बूर को छेड़ता रहा, बूर अब पूरी पनिया गयी। इधर आगे की तरफ से उदयराज का खड़ा लंड बूर की दरार में रगड़ खा रहा था, कभी बूर की फांकों से टकराता, कभी भग्नासे से टकराता कभी दोनों जाँघों पर छू जाता, अपने बाबू के दहकते लंड को महसूस कर रजनी की वासना का पारा आसमान छूने लगा वो हाय हाय करके अपने बाबू से बार बार जोर जोर से लिपटने लगी उन्हें सहलाने लगी, खड़े खड़े वासना से तरबतर होकर उसके पैर काँपने लगे तो उसने बड़े प्यार से अपने बाबू के कान में कहा- बाबू, सुनो, सुनो न

उदयराज- हाँ मेरी बिटिया।

रजनी ने बड़ी ही वासना भरे अंदाज में धीरे से कहा- लेटकर अपनी सगी बेटी की बूर का मजा लो न, बाबू।

ये सुनकर उदयराज कराह उठा और उसने रजनी को उठाकर अंगौछे पर चित लिटा दिया
अंगौछा ज्यादा चौड़ा नही था रजनी का पूरा पूरा बदन उसपर आने के बाद दोनों तरफ से दो दो बित्ता बाहर निकला हुआ था बस, और नीचे अंगौछा रजनी के घुटनो तक ही था, पैर उसके खेत की मिट्टी में थे। रजनी ने उठकर जल्दी से दिया जला दिया और उसपर डलिया उल्टा करके थोड़ा ओट कर दिया ताकि दीया हवा से बुझे नही, अब दिए कि बहुत हल्की रोशनी से काफी कुछ दिखने लगा, उदयराज और रजनी की आंखे मिली तो वो मुस्कुरा उठे और उनके होंठ आपस में मिल गए, काफी देर एक दूसरे को चूमने के बाद रजनी ने झट से तड़पते हुए अपने दोनों पैर को अच्छे से चौड़ा कर जाँघों को खोलते हुए अपने दोनों हांथों से अपनी बूर की फाँकों को चीरा और अपने बूर के मखमली रिसते छेद को अपने बाबू के सामने कराहते हुए परोस दिया।

अपनी बेटी के इस अंदाज से उदयराज बावला हो गया और दीये की हल्की रोशनी में एक बार फिर अपनी सगी बेटी का नंगा जिस्म, उसकी खुली फैली हुई नंगी मोटी मोटी गोरी जाँघे, पैर, नाभि, कमर और ऊपर को तनी हुई दोनों मोटी मोटी चूचीयाँ, उसपर वो सख्त खड़े दोनों निप्पल और खुली चीरी हुई महकती रिसती बूर और बूर का वो महकता लाल लाल छेद देखकर उदयराज मदहोश हो गया और अपनी बेटी की बूर पर टूट पड़ा। मखमली महकती रिसती बूर पर अपने बाबू का मुँह लगते ही रजनी बहुत जोर से सिसकी ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू......हाहाहाहाहाहायययय.........मेरी बूर........चाटो इसको अपनी जीभ से.............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह................खा जाओ अपनी बेटी की बूर को आज बाबू...........मेरे राजा.............मेरे सैयां............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...

अपनी बेटी की इस कदर कामुक सिसकियां सुनकर उदयराज भूखे भेड़िये की तरह उसकी बूर अपनी जीभ से लपा लप्प चाटने लगा, रजनी जोर जोर से कराहते हुए हवा में अपने पैर फैलाये अपने हाथों से अपनी बाबू का सर अपनी बूर पर रह रहकर दबा रही थी। दीये की लौ ओट में टिमटिमा कर जल रही थी फिर धीरे धीरे पूरे वातावरण में रजनी की जोर जोर सिसकारियां गूंजने लगी।

रजनी- अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...दैय्या................ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू......हाहाहाहाहाहायययय.........चाटो ऐसे ही बाबू............बहुत मजा आ रहा है मेरे राजा.........कब से प्यासी हूँ मैं..............अपनी बेटी की प्यास बुझाओ मेरे बाबू...................चूसो मेरी बूर............फैला फैला के चूसो.....अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह........जीभ डालके चोदो न बाबू...........थोड़ी देर जीभ बूर में डाल के जीभ से अपनी बेटी को चोद दो न मेरे राजा........ अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह।

उदयराज ने ये सुनते ही अपनी जीभ को गोल नुकीला किया और अपनी बेटी के मक्ख़न जैसे नरम बूर के छेद में डालने लगा, नुकीली जीभ बूर के छेद पर छूते ही रजनी गनगना गई और जैसे ही उदयराज ने जीभ को बूर में डालकर थोड़ा थोड़ा चोदना शुरू किया रजनी अपनी चूतड़ उछाल उछाल के हाय हाय करती हुई जीभ से चुदने लगी, उदयराज रजनी की बूर को जीभ से दनादन चोदे जा रहा था, बूर से लिसलिसा रस लगतार बह रहा था जो कि उदयराज के मुँह में भी चला जा रहा था, उदयराज जीभ से बूर को चोदता तो कभी कभी नुकीली बनाई हुई जीभ को बूर की दरार में सरसरा के रगड़ता, कभी भग्नासे को होंठों से पकड़कर रगड़ते हुए चूस लेता, रजनी तो जैसे फिर से जन्नत में पहुंच गई थी, अपने बाबू की मर्दाना थोड़ी सख्त जीभ के लगातार घर्षण से रजनी की बूर का कोना कोना चुदाई के आग में धधकने लगा।

उदयराज से भी अब रहा नही जा रहा था उसने झट बूर को चाटना छोड़ अपनी बेटी के पैरों को घुटनों से मोड़कर ऊपर छाती तक किया जिससे रजनी की गांड ऊपर को उठ गई और मदहोश कर देने वाली हल्के बालों से भरी गोरी गोरी मक्ख़न जैसी बूर उभरकर ऊपर को आ गयी, रजनी ने अपने दोनों हांथों की उंगलियों से अपनी फूली हुई बूर की फांकों को अच्छे से फाड़कर अपनी बूर अपने बाबू को सिसकारी लेते हुए परोसी।

उदयराज ने कराहते हुए अपने मूसल जैसे लंड को अपने सीधे हाथ में लिया और उसकी चमड़ी पीछे कर मोटे फूले हुए सुपाड़े को खोला फिर फैली हुई अपनी बेटी की बूर की दरार में पांच छः बार थपथपाया, रजनी सीत्कार उठी, फिर उदयराज ने अपने लंड को रजनी की बूर पर काफ़ी देर इधर उधर, ऊपर नीचे, दाएं बाएं रगड़ा, रजनी की बूर अब बिल्कुल पनिया चुकी थी, रजनी से रहा नही गया तो उसने उदयराज से भारी आवाज में कहा- बाबू डालो न अपना लंड मेरी बुर में।

उदयराज ने ये सुनते ही बिना देर किए तड़पते हुए अपना दैत्याकार 9 इंच लंबा लंड अपनी बेटी की बूर को सीध में ला के एक ही बार में जड़ तक बूर की गहराई के आखिरी छोर तक उतार दिया।

रजनी की बड़ी ही तेज से एक दर्दनाक सिसकी निकल गयी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...............अम्माअअअआआआ
उसका बदन दर्द से तड़पकर ऐंठ गया, सांसे उसकी कुछ पल के लिए मानो रुक सी गयी, कराहते हुए आंखें बंद हो गयी, बदन ऐंठकर ऊपर को उठ गया, हांथों से उसने अपने बाबू के कंधों को थाम लिया, पैरों को जल्दी से मोड़कर अपने बाबू की कमर में बांध लिया, इतना मोटा लम्बा लन्ड एक बार फिर उसकी दहकती बूर में बहुत अंदर तक समा चुका था, पर इस बार हो रहे दर्द में कुछ हद तक मीठापन था रजनी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह...........बाबू.............ओओओओओओहहहह हहहहहह...... बाबू करते हुए सिसके जा रही थी। उदयराज ने झुककर उसको चूमा और उसकी तनी हुई चूचीयों को मसल मसल के दबाने लगा, मुँह में भरके पीने लगा, रजनी जोर जोर से कराहती रही सिसकती रही, इस बार उसे पहले की भांति भयंकर दर्द नही हुआ बल्कि दर्द के साथ साथ लज़्ज़त का भी अहसास हुआ था, उदयराज बूर में अपना पूरा लंड ठूसे अपनी बेटी के ऊपर लेटे लेटे उसे चूमे और सहलाये जा रहा था
तभी उसने रजनी से कराहते हुए पूछा- बेटी

रजनी वासना में सिसकते हुए- हाँ बाबू

उदयराज- मज़ा आया

रजनी- हाय बाबू, बहुत....अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.....

रजनी की बात सुनकर उदयराज ने तड़पते हुए अपना पूरा समूचा लंड बूर से खींचकर बाहर निकाल लिया और रजनी को एक बार फिर position बनाने के लिए कहा।

रजनी अपने बाबू का इशारा समझ गयी उसने अपनी जाँघों को अच्छे से फैलाकर अपनी प्यासी बूर को अपने हांथों से फैलाकर बूर को आगे परोस दिया, उदयराज ने अपने लंड का सुपाड़ा अपनी बेटी की बूर पर रखा और हल्का सा झुककर दहाड़ते हुए एक करारा झटका मारा, लंड एक बार फिर सरसराता हुआ बूर की गहराई में समूचा समा गया, रजनी को एक बार फिर तेज से अत्यंत मीठा मीठा दर्द हुआ और वो तड़पते हुए अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.......मेरे राजा बोलते हुए मचल उठी। उदयराज ने इसी तरह पांच छः बार अपना समूचा लंड निकाल के पोजीशन ली और रजनी ने अपनी बूर फैलाकर अपने बाबू को परोसी और हर बार उदयराज ने गच्च से बड़ी बेरहमी से पूरा पूरा लंड अपनी बेटी की बूर में उतारा, रजनी हर बार मीठे दर्द से तड़प कर कराह जाती, उसको ये मीठा दर्द बहुत भा रहा था, आखिर पांच छः बार ऐसे ही करने के बाद उदयराज ने अपने बेटी के भारी चूतड़ों को अपने हांथों में थामकर, थोड़ा ऊपर को उठाकर पूरा लंड पेल पेल के गचा गच्च अपनी बेटी की बूर चोदना शुरू कर दिया, रजनी भी मस्ती में अपनी गांड उछाल उछाल कर अपनी बूर में अपने बाबू के मोटे कड़क दहकते लंड की रगड़ का मजा कराहते हुए लेने लगी, हर तेज धक्के के साथ तड़प तड़प कर रजनी अपने बाबू ले लिपटकर उन्हें कस कस के सहलाने लगी, उनकी पीठ, कमर, गांड, सर तथा कंधों पर हाँथ फेरने लगी, उदयराज गचा गच्च अपनी बेटी की बूर में तड़प तड़प के धक्के लगाए जा रहा था, इस बार उसने जरा भी रहम रजनी पर नही दिखाया और किसी भूखे भेड़िया की तरह अपनी बेटी की बूर में लगातार लंबे लंबे धक्के मारकर बूर चोद रहा था।

रजनी को भी अब रहम की जरूरत नही थी उसको भी ये वहसीपन बहुत अच्छा लग रहा था, उदयराज तेज तेज बूर में धक्के लगाता, तो कभी रुककर गांड को गोल गोल घुमाकर लंड को बूर के अंदर बूर के चप्पे चप्पे से रगड़ता जिससे राजनी हाय हाय करती हुई गनगना जाती और खुद भी अपनी गांड उठा उठा के नचा नचा के अपने बाबू का लंड अपनी बूर में अच्छे से खाती।

उदयराज ने एकाएक रुककर अपनी रजनी से सिसकते हुए कान में कहा- बेटी

रजनी- हाँ मेरे सैयां, मेरे बलमा।

उदयराज- अपने बाबू से चुदवाने में कैसा लग रहा है?

रजनी ये सुनकर शर्मा गयी और उसकी बूर हल्का सा संकुचित हुई, रजनी कुछ देर चुप रही फिर धीरे से सिसकते हुए बोली- बहुत अच्छा मेरे बाबू, बहुत मजा आ रहा है, ऐसा मजा मुझे जिंदगी में कभी नही आया....अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.........ऊऊऊईईईईईईई......माँ

उदयराज अपनी बेटी के मुँह से ये सुनकर झूम उठा और बहुत तेज तेज धक्के बूर में मारने लगा अचानक तेज हवा चलने लगी और डलिया पलटकर गिर गयी और हवा से दिया बुझ गया फिर एक बार गुप्प अंधेरा हो गया।

अंधेरा होते ही दोनों बाप बेटी तेजी से सिसकते हुए आपस में एक दूसरे से और लिपट गए और उदयराज ने ताबड़तोड़ धक्के मारने शुरू कर दिए, रजनी तेज तेज सिसियाने लगी, कराहने लगी, मचलने लगी गांड उछाल उछाल के धक्कों का साथ देती हुई खुद भी अपनी बूर लंड पर पटकने लगी, लंड बूर के रस से इतना सन गया था कि सटा सट्ट बूर में अंदर बाहर हो रहा था, बूर का भगनासा फूलकर बार बार लंड से रगड़ खा रहा था और जब जब ऐसा होता रजनी सिसकते हुए गनगना जाती, रजनी कभी अत्यंत गनगना कर अपने होंठों को दांतों से काटती कभी तड़प कर अपना सर दाएं बाएं हिलाती और कभी मस्ती में मचलते हुए अपने पूरे बदन को ऊपर को ऐंठ कर धनुष की तरह मोड़ लेती, उदयराज ताबड़तोड़ धक्के मारते हुए उसे चूमे जा रहा था।

तभी आसमान में हल्के हल्के बादलों की गर्जना हुई और कुछ ही देर में हल्की हल्की बूँदें पड़ने लगी, अभी तक तो तारे टिमटिमा रहे थे पर अचानक ही बादल छा गए थे, रजनी और उदयराज घनघोर चुदाई के आंनद में इतने खोए हुए थे कि ऊपर आसमान और आस पास के वातावरण का उन्हें होश ही नही था, जब बादल गरजे तो रजनी का ध्यान आसमान पर गया तारे गायब हो चुके थे ऊपर काला काला घनघोर अंधेरा छाया हुआ था, रजनी ये देखकर वासना में और मुस्कुरा उठी, उदयराज घचा घच्च अपनी बेटी को चोदे जा रहा था, तभी एकएक हल्की हल्की दो चार बूंदे गिरनी शुरू हुई, तेज हवाएं चल रही थी, उदयराज की पीठ और उछलती गांड पर और रजनी के चेहरे पर हल्की बारिश की दो चार बूंदे गिरने लगी मानो आज प्रकति उनका जल अभिषेक करने आ गयी हो, रजनी की खुशी और वासना का कोई ठिकाना नही रहा, उसने कराहते हुए वासना से वसीभूत होकर अपनी आंखें बंद कर अपनी गांड को और तेज तेज उछालते हुए अपने बाबू के धक्कों से ताल से ताल मिलाकर चुदवाने लगी। बारिश की बूंदें अभी बिल्कुल हल्की हल्की पड़ रही थी, एकाएक रजनी को अपने सम्पूर्ण बदन में झुरझुरी महसूस हुई और वो गनगना कर चीखते हुए अपने बाबू से लिपटकर झड़ने लगी, उदयराज ताबड़तोड़ धक्के मारता रहा, रजनी थरथराते हुए झड़ने लगी

अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह.........मेरे सैयां........मेरे बाबू.....मैं गयी मेरे राजा.............हाय मेरी बूर...........कैसे झड़ रही है बाबू आपका लंड पाकर...................अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह..........................कितना मजा आ रहा है.........................कितना आनंद है इस चुदाई मे........................... ओओओओओहहहहहह............अम्मा............ हाय.................अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह......................और चोदो बाबू. ............ अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह................ऐसे ही चोदते रहो मुझे............अपनी बेटी को................अपनी सगी बेटी को........... ...........ओओओओओओहहहह हहहहह............और गच्च गच्च पेलो मेरी बूर................उई माँ...............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह।

रजनी का बदन ढीला पड़ गया बूर से उसकी रस की धारा बह निकली, उसकी बूर झटके खाते हुए संकुचित होकर काम रस की धार बहाने लगी, रजनी आंखें बंद कर असीम आनंद की अनुभूति करते हुए मानो हवा में उड़ने लगी, अपने ही खेत वह मदरजात नंगी लेटी अपने सगे बाबू की कमरतोड़ चुदाई से आनंदित होकर खुले आसमान के नीचे हल्की हल्की बारिश की बूंदों के साथ थरथरा कर झड़ रही थी आज की रात इससे सुखद और क्या हो सकता था रात के करीब 2:20 हो चुके थे।

उदयराज भी काफी देर से ताबड़तोड़ धक्के अपनी बेटी की बूर में लगाये जा रहा था, खेत में चुदाई की फच्च फच्च आवाज काफी तेज़ी से गूंज रही थी, रजनी के झड़ने से बूर उसकी बहुत फिसलन भरी हो गयी थी और उदयराज का लंड बेटी की बूर का रस पी पी के और भी हाहाकारी हो चुका था, बूर में अब वो गपा गप अंदर बाहर हो रहा था, उदयराज के दोनों आंड धक्कों के साथ सटा सट्ट रजनी की गांड पर उछल उछल कर लग रहे थे जो रजनी को और आनंदित कर रहे थे।

एकाएक उदयराज भी तेज धक्के लगाते हुए बड़ी तेजी से कराहते हुए अपनी बेटी की बूर में झड़ने लगा,

ओओओओओओओहहहहहहह...........मेरी प्यारी बेटी...............मैं भी झड़ रहा हूँ............हाय तेरी मखमली बूर.........मेरी रानी...............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह..............कितनी नरम है ये.............हाय.........ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़.........अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह............कितनी गहरी है तेरी बूर.................ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़..........मेरी बेटी.............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह............सगी बेटी को चोदने में कितना मजा है.............अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह।

उदयराज हाँफते हुए झड़े जा रहा था
अपने बाबू के लंड से निकली तेज गरम वीर्य की गाढ़ी धार अपनी बूर की गहराई में बच्चेदानी पर गिरते ही रजनी गनगना कर सिरहते हुए अपने बाबू से कसकर लिपट गयी, बारिश अब और तेज हो चुकी थी, उदयराज की पीठ बारिश की लगातार तेज बूँदें पड़ने से काफी भीग गयी थी, रजनी लगातार अपने बाबू को जोर जोर से सिसकते और कराहते हुए सहलाये दुलारे जा रही थी, उदयराज गरजते हुए झटके मार मार के अपनी बेटी की मस्त मखमली बूर में झड़ रहा था, उसका लंड रजनी की बूर में जड़ तक समाया हुआ बड़ी तेज तेज झटके ले लेकर झड़ रहा था।

रजनी ने बड़े प्यार और दुलार के साथ सिसकते हुए अपना हाँथ थोड़ा आगे बढ़ा कर अपने बाबू के गांड पर ले गयी और गांड को बूर पर हल्का हल्का दबाने लगी फिर हाँथ को थोड़ा और नीचे ले जाकर अपने बाबू के दोनों आंड को बड़े प्यार से सहलाने लगी साथ ही साथ वो बड़े प्यार से अपने बाबू को उनके गाल पर सिसकते हुए चूमने लगी।

बारिश तेज होने लगी, तेज तेज बारिश की मोटी मोटी बूँदें अब दोनों के पूर्ण नंगे बदन को भिगोने लगी, बारिश की तेज मोटी मोटी बूँदें उदयराज की पीठ, गांड, सर, पैर और रजनी के चेहरे पर पड़ने लगी, रजनी अब मस्ती में खिलखिलाकर हसने लगी, बारिश की तेज ठंडी बूंदें उसके माथे, आंख, नाक, गाल, होंठों पर जब पड़ती तो रजनी मस्ती में मचल उठती, बारिश तेज तेज होने लगी थी और उम्मीद थी कि और भी तेज होगी पर फिर भी उदयराज और रजनी उसी तरह चुदाई के सुख से मिले असीम आनंद में डूबे, बारिश की ठंडी ठंडी बूदों से भीगते हुए एक दूसरे से अमरबेल की तरह लिपटे, सिसकते हुए लेटे रहे।
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 
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Naik

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बारिश अब तेज होने लगी, उदयराज अपनी सगी बेटी की बूर में अपना लंड डाले उसपर लेटा रहा, रजनी भी अपने बाबू को सहलाते चूमते उनके नीचे लेटी सिसकती रही, रजनी के चेहरे पर बारिश की तेज बूंदें पड़ने लगी, उदयराज ने आँखें खोली और अपने चेहरे से अपनी बेटी के चेहरे को ढकते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, दोनों बाप बेटी एक बार फिर तेज बारिश में भीगते, एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए एक दूसरे में खोने लगे, लंड फिर से बूर में सख्त होने लगा, उसे महसूस कर रजनी की बूर फिर से चुदाई के लिए संसनाने लगी।

तेज बारिश से खेत की मिट्टी गीली होने लगी, अंगौछा काफी भीग चुका था, होंठों को चूसते हुए सिसक कर रजनी धीरे धीरे पलटकर अपने बाबू के ऊपर चढ़ने लगी और उदयराज साइड में गीली मिट्टी में लेटने लगा, तभी तेज बिजली कड़की, रजनी अपने बाबू को देखते हुए उनके ऊपर पलटकर चढ़ती गई, और इस अदला बदली में लंड पक्क़ की आवाज करते हुए बूर से निकल गया, रजनी मचल उठी।

लंड उछलकर सीधा हो गया, वासना में फिर से झटके खाने लगा, सुपाड़ा उसका खुला ही हुआ था, अपनी बेटी के काम रस में वो पूरी तरह सना हुआ था, रजनी ने अपने बाबू के ऊपर बैठते हुए अपने एक हाँथ की उंगलियों से अपनी बूर को चीरते हुए दूसरे हाँथ से अपने बाबू का लंड पकड़कर अपनी बूर की छेद पर कराहते हुए लगाया और खुद ही गच्च से लंड पर बैठती चली गयी, रजनी सीत्कारते हुए
हहहहहाहाहाहाययययययय............मेरे सैयां.........मेरे बाबू.........आआआआआआआहहहहहहहहहह......
करने लगी

एक बार फिर से उदयराज का फ़ौलादी लंड अपनी बेटी की रसभरी मखमली बूर के छेद को चीरता हुआ अत्यंत गरम गरम गहराई में समा गया, रजनी और उदयराज की मस्ती में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह करते हुए आँहें निकल गयी। लंड को बूर में पूरा लेते हुए रजनी बड़ी मस्ती में अपने बाबू के ऊपर उनके मुँह में अपनी बड़ी बड़ी मदमस्त चूचीयाँ भरते हुए लेटती चली गयी, उदयराज ने मुँह खोलकर गप्प से एक चूची को मुँह में भर लिया और बड़ी तन्मयता से चूसने लगा, रजनी अपने गांड को हल्का हल्का ऊपर नीचे हिलाते हुए हाय हाय करके सिसियाने लगी, धीरे धीरे अपने भारी नितम्ब को खुद ही ऊपर नीचे करते हुए अपने बाबू के ऊपर बैठी अपनी बूर को उनके विशाल लंड पर उछलते हुए चोदे जा रही थी, उदयराज ने अपनी बेटी के भारी गुदाज चौड़े नितम्ब को हाँथ बढ़ा कर अपने दोनों हथेली में भर लिया और नीचे से हौले हौले अपनी बेटी को मिट्टी में लेटे लेटे चोदने लगा।

रजनी- आआआआआहहहहह.......मेरे पिता जी....…...मेरे बाबू......चोदो अपने लंड से अपनी बेटी की बूर..........ओओओओओहहह हहह..............ऊऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.........माँ............ कैसे आपका मोटा सा लंड मेरी बूर में जा रहा है.........कितना मजा है चुदाई करने में................मुझे उछाल उछाल के चोदो न पिता जी, मेरे बाबू.......पेलो अपनी सगी बेटी को.............ऊऊऊऊईईईईई........आआआ आआआआहहहहहहहह..............और गहराई तक डालो बाबू...........हाँ ऐसे ही.........ओओओओओहहहहह................कैसे गच्च गच्च की आवाज आ रही है चुदाई की..........हाय बाबू।

अंगौछा बगल में पड़ा भीग रहा था, रजनी और उदयराज अब मिट्टी में आ चुके थे, रजनी अपने बाबू के ऊपर उनका लंड अपनी बूर में जड़ तक घुसेड़े हुए आधी झुकी हुई अपनी चूची चुसवाती और गांड को हल्का उछाल उछाल कर अपने पिता से चुदती हुए बहुत ही मादक लग रही थी, उदयराज पागलों की तरह रजनी की दोनों चुचियों को भर भरकर चूसे और दबाए जा रहा था। बारिश अपने जोरों पर थी, बीच बीच में बिजली कड़क जाती थी, तेज बारिश बाप बेटी के पूरे बदन को भिगो रही थी।

एकाएक नशे में आंखें बंद किये रजनी को एक खेल सूझा उसने सिसकते हुए अपने बाबू से कहा- मेरे बाबू, मेरे सैयां

उदयराज ने सैयां शब्द सुनते ही कराह दिया और बोला- हां मेरी बिटिया, मेरी सजनी, मेरी रजनी।

रजनी- इस हसीन अंधेरी बरसात की रात में खेत की गीली मिट्टी में अपनी बेटी को लिटा लिटा कर प्यार करो न बाबू, ये मौका क्यों छोड़ते हो मेरे राजा।

उदयराज अपनी बेटी की मंशा समझते ही मुस्कुरा दिया और रजनी को मिट्टी में पलट दिया और उसके ऊपर चढ़ गया ऐसा करने से लंड फिर पक्क़ से बूर से निकल गया तो रजनी सिसकारी लेती हुई बोली डालो न, निकलना नही चाहिए मेरे सैयां का लंड उसकी बेटी की बूर से।

ये सुनते ही उदयराज बावला हो गया, उसने झट रजनी के दोनों पैर हवा में किया और रजनी ने फट से दोनों हाँथ से बूर की फाँकों को चीर दिया, उदयराज से अपना मूसल जैसा 9 इंच का दहाड़ता लन्ड बूर की छेद पर लगाया और एक ही बार में पोजीशन बनाते हुए अपनी बेटी की बूर में जड़ तक उतार दिया, रजनी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हह......बाबू कहकर कराह उठी, कुछ देर बूर में लन्ड पेले अपनी बेटी के ऊपर चढ़े रहने के बाद उदयराज ने रजनी को बड़ी सावधानी से अपने ऊपर लिटा लिया और नीचे से बूर में दो चार कस कस के गच्चे मारे, रजनी सिरह उठी, अब रजनी और उदयराज एक दूसरे से अमरबेल की तरह लिपटे खेत की अत्यंत गीली हो चुकी मिट्टी में इस तरह लोटने लगे कि बूर में से लंड न निकले, बारिश दनादन होती जा रही थी, कभी थोड़ा कम होने लगती फिर कभी तेज हो जाती, इस खेल के असीम आनंद में दोनों ही डूब चुके थे, रजनी का गदराया गोरा बदन खेत की गीली मिट्टी में जो अब कीचड़ का रूप ले चुकी थी सनने लगा, उदयराज का भी पीछे का सारा हिस्सा मिट्टी में सन चुका था, चुदाई का मजा तो मानो अब आसमान छू रहा था, दोनों ही जोर जोर से सिसकते कराहते एक दूसरे को बेताहाशा चूमते सहलाते बारिश में मिट्टी में सने हुए चोदे जा रहे थे, एक दूसरे को बाहों में भरे वो खेत में इधर उधर लोटने लगे, मानो बेड पर लेटकर लोट रहे हों।

जब रजनी अपने बाबू के ऊपर आती तो वो अपनी मदमस्त गांड उछाल उछाल के अपने बाबू को हाय हाय करते हुए चोदती और जब उदयराज ऊपर आता तो कुछ देर ठहरकर अपनी बेटी की दोनों जाँघों को अच्छे से फैलाकर जड़ तक लन्ड प्यासी बूर में पेल पेल के उसको हुमच हुमच के चोदता, रजनी हर बार कराह उठती, मिट्टी में बच्चों की तरह लोटने की वजह से उनका लगभग पूरा बदन पीछे की तरफ से सन गया था पर तेज बारिश की वजह से धुल भी जा रहा था, जब रजनी ऊपर आती तो उसकी मादक गदराई पीठ धुल जाती और जब उदयराज ऊपर आता तो उसकी पीठ धुल जाती, एक दूसरे से लिपटकर कीचड़ में लोटने की वजह से पलटते वक्त लन्ड कभी कभी बूर से बाहर आने लगता तो रजनी सिसकते हुए अपने बाबू की गांड पर हाथ लेजाकर दबा कर इशारा करती मानो जैसे उदयराज को पता ही न हो कि लन्ड बूर से निकलने वाला है, तो उदयराज अपनी बेटी की इस अदा पर कायल होकर जोरदार गच्च से धक्का मरता और लंड फिर से बूर में जड़ तक समा जाता, रजनी की जोर से असीम आनंद में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह निकल जाती।

उधर बारिश होने की वजह से काकी भी उठकर बच्ची को लेकर बरामदे में आ जाती है, बच्ची चुपचाप सो ही रही थी, काकी मन में सोचती है कि बारिश अचानक इतनी तेज होने लगी वो लोग कहीं बारिश में भीग न रहे हों, खैर कहीं रुक गए होंगे जरूर, लगता है अब सुबह तक ही आएंगे।

तेज बारिश से अब खेत में हल्का हल्का पानी भी इकठ्ठा होने लगा, मिट्टी का कीचड़ तो हो ही गया था, रजनी ने अचानक मिट्टी को मुठ्ठी में लिया और बड़ी शरारत से अपने बाबू के सीने पर रगड़ दिया और मिट्टी लिया और बाजुओं पर भी हंसते और सिसकते हुए लगा दिया, उदयराज को भी शरारत सूझी तो उसने भी मिट्टी को उठाकर रजनी के कमर , पेट, नाभि, कंधे, बाजुओं तथा मस्त मस्त फूली हुई चूचीयों पर मसलने लगा, रजनी मस्ती में हसने लगी, अपने पूरे बदन पर मिट्टी लगे अपने बाबू के हाथ पड़ने से रजनी मचलने लगी और अपनी गांड तेज तेज उछाल कर लंड को बूर में कस कस के लेने लगी, काफी देर तक यही खेल चलता रहा और अब खेत में काफी पानी भर गया था, उदयराज का अंगौछा, तेल की शीशी, दीया और डलिया अब पानी में तैरने लगे थे, उदयराज ने रजनी से कहा -बिटिया चल तुझे नदी में ले चलूं, एक बार नदी में करेंगें।

रजनी सिसकते हुए जानबूझ कर पूछती है- क्या? क्या करेंगे मेरे बाबू?

उदयराज रजनी के कान में- चुदाई, तुझे नदी में चोदुंगा।

रजनी- तुझे कौन बाबू? मैं क्या हूँ आपकी?

उदयराज- तू मेरी सगी बेटी है और क्या?

राजनी- तो सगी बेटी लगा के बोलो न, आधा अधूरा क्यों बोलते हो मेरे बाबू, दुबारा बोलो अच्छे से।

उदयराज- अपनी सगी बेटी को नदी में ले जाकर चोदने का मन कर रहा है, अपनी सगी बेटी को, अब ठीक मेरी बिटिया।

राजनी-ओओओओओहहहहह.......बाबू..........तो ले चलिए न अपनी सगी बेटी को, जैसे मर्जी वैसे चोदिये, खूब चोदिये, आपकी सगी बेटी आपसे खुद चुदना चाहती है, उसकी बूर सिर्फ आपके लिए है, चोदिये मेरे बाबू, ले चलिए मुझे.....मेरे राजा पर मेरी बूर खाली नही होनी चाहिए अब, जब तक मैं तीसरी बार तृप्ति न पा लूं, कुछ इस तरह ले चलो अपनी बेटी को नदी तक, समझ गए।

उदयराज बनते हुए- नही तो।

राजनी- अरे ओ मेरे बुद्धू सैयां, अपनी इस बेटी को नदी तक इस तरह ले चलो की आपका मूसल जूस लंड उसकी कमसिन सी बूर से न निकले।

उदयराज- ओह! मेरी जान, मेरी बच्ची, मेरी रानी बिटिया, जैसा तेरा हुक्म।

फिर उदयराज रजनी को गोद में लिए लिए उठ बैठा, बैठने से लंड बूर में और धंस गया, उसके बाद उदयराज रजनी को लिए लिए खड़ा हो गया, उदयराज काफ़ी बलशाली था रजनी उसकी इस ताकत पर और भी कायल हो गयी, उदयराज ने रजनी को उठाकर गोद में बैठा लिया और अपने दोनों हांथों से नितम्बों को थाम लिए, रजनी ने अपनी दोनों टांगें अपने बाबू के गोद में चढ़कर उनकी कमर पर कैंची की तरह लपेटते हुए, उनसे कस के लिपटते हुए, कराहते हुए, जोर से सिसकारते हुए, उनके कंधों पर मीठे दर्द की अनुभूति में काटते हुए उनके विशाल लन्ड पर अपनी रस टपकाती बूर रखकर बैठती चली गयी, लन्ड फिसलता हुआ बूर की गहराई के आखरी छोर पर जा टकराया, क्योंकि रजनी के मखमली बदन का पूरा भार अब केवल लंड पर था, इतनी गहराई तक लन्ड शायद ही अभी तक घुसा हो, दोनों ही बाप बेटी काफी देर तक उन अंदरूनी अनछुई जगहों को आज पहली बार छूकर परम आनंद में कहीं खो से गये।

उदयराज और रजनी झमाझम बारिश में एक दूसरे में समाए सिसकते कराहते भीग रहे थे, उदयराज खेत के बीचों बीच अपनी सगी बेटी को उसके नितम्बों से पकड़कर अपनी कमर तक उठाये उसकी रसभरी बूर में अपना लन्ड घुसेड़े, उसकी बूर की मखमली अंदरूनी नरम नरम अत्यंत गहराई का असीम सुख लेता हुआ खड़ा था पानी और मट्टी में उसके दोनों पैर डूबे हुए थे, इसी तरह रजनी अपने बाबू की कमर में अपने पैर लपेटे उनके लंड पर बैठी, उनसे कस के लिपटी हुई परम आनंद की अनुभूति प्राप्त कर कराहे जा रही थी।

कुछ देर ऐसे ही अपनी बेटी के यौन मिलन के आनंद में खोए रहने के बाद उदयराज खेत से बाहर निकलने लगा, चलने से लन्ड और इधर उधर हिल रहा था जिससे रजनी बार बार चिहुँक चिहुँक कर हाय हाय करने लग जा रही थी। नदी वहां से 40 मीटर की दूरी पर ही थी।

उदयराज अपनी सगी बेटी को अपनी गोद में बैठाये नदी की ओर चलने लगा, चलने से लंड बूर की गहराई में अच्छे से ठोकरें मारने लगा, रजनी सिस्कार सिस्कार के बदहवास सी हो गयी, उसे अपनी बूर की गहराई में गुदगुदी सी होने लगी, एक बार तो ऐसा लगा कि वह थरथरा कर झड़ जाएगी तो उसने अपने बाबू से कहा- ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू थोड़ा रूको।
उदयराज रुक गया

रजनी अपने बाबू को कस के पकड़कर सिसकते हुए अपनी जाँघे भीचते हुए अपने को झड़ने से रोकने लगी, उदयराज समझ गया कि उसकी बेटी झड़ते झड़ते रह गयी, उसने अपने आपको मेरे साथ झड़ने के लिए रोके रखा है, उदयराज फिर चलने लगा और नदी तक पहुँचा तो रात के अंधेरे और तेज बारिश में देखा कि पानी का बहाव ज्यादा था, नदी में ज्यादा अंदर जाना ठीक नही था, उदयराज रजनी को गोद में लिए लिए पानी में उतर गया, बारिश में इतनी दूर तक आते आते उनके शरीर की काफी मिट्टी धूल चुकी थी और नदी में तब तक अंदर गया जब तक पानी उनके कंधों तक नही आ गया।

उसने रजनी को धीरे से पानी में उतारा, पानी ठंडा था, दोनों एक दूसरे को बाहों में लिए बहुत नजदीक से एक दूसरे को देखने लगे और देखते देखते रजनी के होंठ अपने बाबू के होंठों से मिल गए, काफी देर एक दूसरे के होठों को चूमने चूसने के बाद, उदयराज ने अपनी बेटी से कहा- बेटी, मेरी जान, क्या तुम्हारी बूर एक पल के लिए भी खाली हुई?

रजनी शर्माते हुए- ना मेरे सैयां, मेरे राजा, अब चोदो मुझे इसी नदी में कस कस के बाबू, जल्दी चोदो अपनी बेटी को फिर से प्यास लगी है।

नीचे लंड बूर में घुसा ही हुआ था, नदी का पानी कलकल करके बह रहा था, बारिश भी तेजी से हो ही रही थी।

उदयराज ने रजनी को फिर से बाहों में उठाया और थोड़ा किनारे एक बड़े पत्थर पर आ गया वो पत्थर आधा नदी में डुबा था आधा बाहर था, उदयराज ने धीरे से अपनी बेटी को उसपर लिटाया, रजनी आराम से उसपर सेट होकर लेट गयी, रजनी के पैर आधा पानी के अंदर थे, उदयराज का लंड इस प्रक्रिया में रजनी की बूर में से आधा बाहर आ गया था कि तभी रजनी ने अपने हाथ अपने बाबू की गांड पर ले जाकर हल्का सा आगे दबाया तो उदयराज ने एक करारा धक्का मारकर लन्ड को गच्च से पूरा बूर में डाल दिया, रजनी की तेज से आह निकल गयी और ठीक उसी समय तेज बिजली कड़की और दोनों ने एक दूसरे को देखा तो मुस्कुरा पड़े, उदयराज ने अपनी बेटी के ऊपर झुककर उसको चोदना शुरू किया, लंबे लंबे तेज तेज धक्के रजनी को अपनी मखमली बूर में लगने से रजनी जोर जोर से सिसकने लगी, उदयराज ने अपनी बेटी के एक पैर को उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और दूसरा पैर फैला हुआ पानी के अंदर ही था, उदयराज पोजीशन बना कर अपनी बेटी को एक लय में तेज तेज धक्के लगाते हुए घचा घच्च चोदने लगा, पानी की बहती आवाज के साथ साथ उसकी भी जोरदार सिसकारियां गूंजने लगी, बारिश थोड़ी हल्की हुई पर बीच बीच में तेज बिजली चमक रही थी, तेज बिजली चमकने से दो सेकंड के लिए तेज उजाला हो जाता जिसमे उदयराज अपनी बेटी को चोदते हुए उसे सिसकते और कराहते हुए देखता और फिर और उत्तेजित हो जाता, तेज धक्कों से रजनी की चूचीयाँ लगातार ऊपर नीचे उछल उछल कर हिल रही थी।

उदयराज अब रजनी को तेज तेज गांड उछाल उछाल के उसकी बूर में दनादन घस्से मारने लगा, कभी गांड को गोल गोल घुमा कर लंड को बूर के अंदर गोल गोल घुमा घुमा कर धक्के मरता तो कभी तेज तेज हुमच हुमच कर चोदता।

अचानक रजनी को उसके बदन में एक सनसनाहट सी महसूस हुई, काफी देर बारिश में भीगते रहने के बाद उसे जोर से पेशाब लगने लगी उसने अपने बाबू की कमर को थामकर रोकते हुए कहा।

रजनी- बाबू, रुको न, सुनो न

उदयराज- बोल न मेरी बिटिया, क्या हुआ? झड़ने वाली है क्या मेरी बेटी?

रजनी शर्माते हुए- अरे अभी नही बाबू, मुझे पेशाब आ रहा है जोर से।

उदयराज खुश होते हुए- अरे तो तू मूत न मेरी रानी, मैं धीरे धीरे तुझे चोदता हूँ तू मूत, बहुत मजा आएगा चुदते हुए मूतने में।

राजनी शर्मा गयी फिर बोली- ठीक है बाबू, आप हौले हौले चोदिये मुझे मैं मूतती हूं।

फिर उदयराज बहुत धीरे धीरे अपना लन्ड बूर में अंदर बाहर करने लगा, अंधेरा होने की वजह से ज्यादा तो कुछ दिख नही रहा था, उदयराज नीचे झुककर देखने की कोशिश कर रहा था पर उसे अंधेरे में उसका मोटा सा लन्ड बूर में बड़े प्यार से आता जाता दिख रहा था, तभी रजनी ने पेशाब की तेज धार गनगनाते हुए छोड़ दी। सर्रर्रर्रर्रर से तेज पेशाब की धार निकली और उदयराज के लंड, जांघ को भिगोती चली गयी, तेजी से गर्म गर्म पेशाब बूर से निकलकर लंड से टकराता हुआ दोनों की जाँघों पर फैलने लगा और बहकर पत्थर पर फिर पानी में मिलने लगा। अपनी सगी बेटी के गर्म गर्म पेशाब के अहसास से उदयराज की आंखें नशे में बंद हो गयी, रजनी भी ओओओओओहहहहह बाबू करते हुए आंखें बंद कर मूतती रही।

उदयराज ने अपनी बेटी की बूर से लंड बाहर निकाला और अपने लन्ड को पेशाब की धार में भिगोने लगा फिर एकाएक उसने झुककर बूर को मुँह में भर लिया और अपनी बेटी का पेशाब मुँह में भरने लगा, बेटी के गरम गरम पेशाब की गंध ने उदयराज को मदहोश कर दिया।

जब मुँह भर गया तो उसने पिचकारी मारते हुए मुँह में भरा रजनी का पेशाब पानी में थूक दिया, बूर से पेशाब निकल ही रहा था कि उसने दुबारा बूर की फांकों को खोला और सरसराते हुए पूरा लन्ड अंदर पेल दिया। रजनी वासना में मचल उठी, उसका पेशाब अब बंद हो चुका था, उदयराज फिर से फच्च फच्च चोदने लगा, धक्के इतने तेज थे कि रजनी पूरा बदन हिल जा रहा था, बारिश होती रही, बिजली कड़कती रही और उदयराज हुमच हुमच के नदी के पानी में घुटनो तक खड़ा अपनी बेटी को लगातार 15 मिनट तक चोदता रहा, रजनी भी नीचे से अपने नितम्बों को उछाल उछाल कर अपने बाबू का चुदाई में साथ देती रही।

रजनी- आआआआआहहहहह.......मेरे राजा......चोदो ऐसे ही तेज तेज चोदो.........ओओओओओहहह हहह..............ऊऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.........माँ............ कस कस के पेलो लन्ड बाबू.........कितना मजा है चुदाई करने में................अब रुकना मत बाबू, पिता जी, मेरे बाबू.......पेलो अपनी सगी बेटी को.............ऊऊऊऊईईईईई........आआआ आआआआहहहहहहहह..............और गहराई तक घुसाओ बाबू...........हाँ ऐसे ही.........ओओओओओहहहहह..............हाय मेरी बूर.............हाय बाबू।

उदयराज- आआआआआहहहहह.........मेरी बेटी.............क्या बूर है तेरी..............हाय.............. कितना मजा है तेरी बूर में...........आआआआआहहहहह.............सच में अपनी सगी बेटी को चोदने में बहुत मजा है..........इतना मजा आजतक कभी नही आया.........आआआआआहहहहह।

अब रजनी और उदयराज के बदन में सनसनी होने लगी एकाएक दोनों बाप बेटी गनगना कर जोर जोर से हाँफते हुए एक दूसरे से कस के लिपटकर झड़ने लगे। रजनी की बूर से एक बार फिर ज्वालामुखी फूट पड़ा था, वो थरथरा कर अपने बाबू से लिपट कर झड़ रही थी, उसकी बूर पूरा अपने बाबू के लंड को लीले संकुचित हो होकर रस छोड़ रही थी, उदयराज भी आंखें बंद किये झटके खाता हुआ अपनी बेटी की बूर में झड़ रहा था, लंड और बूर की रगड़ से निकला चुदाई का रस जाँघों से होता हुआ नीचे पत्थर पर और फिर नीचे जाकर नदी के पानी में मिलने लगा।

असीम चरमसुख की अनुभूति का अहसास दोनों बाप बेटी को मंत्र मुग्द कर गया काफी देर तक उदयराज और रजनी उस पत्थर पर एक दूसरे से लिपटे लंड और बूर मिलाए हुए लेटे रहे, उदयराज और रजनी दोनों ही काफी थक चुके थे, अपने बाबू द्वारा लगातार तीन बार धुँवाधार चुदाई से मानो रजनी की जाँघे जवाब दे गई हों, वो बेसुध सी हो गयी थी, बारिश अब हल्की हो चुकी थी, उदयराज ने रजनी को गोद में उठाया और नदी से निकलकर कुल वृक्ष के चबूतरे तक आया, अभी लगभग 3:30 हुए होंगे, उदयराज का अंगौछा और बाकी समान तो खेत में ही तैर रहा था तो उसने अपनी धोती जो तने के पास होने की वजह से ज्यादा खास गीली नही हुई थी उसको बिछाया। रजनी उस पर बैठ गयी और लेट गयी, उदयराज ने अपनी बेटी की साड़ी उठायी और अपनी बेटी के बगल लेटते हुए उसको बाहों में लेकर दुलारते हुए साड़ी ओढ़ ली और रजनी के कानों में बोला- बेटी, मेरी रानी, मैं जानता हूँ तुम बहुत थक चुकी हो, सुबह होने में अभी 2 घंटे हैं, तब तक सो जाओ।

रजनी- हाँ मेरे बाबू, मेरे सैयां, आप भी सो जाइए।

उदयराज ने रजनी के सर के नीचे अपना हाथ तकिया बना कर रख लिया, और उसको बाहों में लेकर सोने लगा, कुछ ही देर में दोनों बहुत थके होने की वजह से नींद की आगोश में जाने लगे, साड़ी के अंदर दोनों निवस्त्र थे, रजनी अपने बाबू से बिल्कुल चिपकी हुई थी, उदयराज का सुस्त पड़ चुका लंड रजनी की बूर की फांकों के बीच अब भी सटा हुआ था, दोनों कुछ देर के लिए सो गए।
कामुकता से भरपूर बहुत शानदार मजेदार अपडेट भाई
 
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Naik

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इत्तेफ़ाक़ देखो उजाला होने के ठीक आधे घंटे पहले बिजली कड़की और रजनी की आंख खुल गयी, नियति आज बहुत प्रसन्न थी मानो उसी ने बिजली कड़काकर उन्हें जगाने की कोशिश की हो, बारिश थम तो गयी थी पर ऐसा लग रहा था कि महापाप का शुभ आरंभ होने की खुशी में आज मेघा पूरे दिन ही बरसेंगे। बरसों से चली आ रही जकड़न आज टूट चुकी थी, जंजीर आज टूट चुकी थी, एक नया सवेरा हो चुका था।

रजनी ने आंखें खोली तो उसकी आंखें कच्ची नींद में उठ जाने की वजह से काफी लाल थी, उसने आंखें मली और एक नज़र अपने बाबू पर डाला और बीती रात को क्या क्या हुआ ये सोचते हुए मुस्कुरा दी, उसने अपना चेहरा आगे कर अपने बाबू को धीरे से चूम लिया और धीरे से बोली- उठो बाबू सवेरा होने वाला है, उठो मेरे सैयां, इससे पहले की इधर कोई आ जाये चलो घर चलें।

रजनी के मीठे चुम्बन और नशीली आवाज से उदयराज की भी आंखें खुली तो उसने अपनी बेटी को बड़े प्यार से देखा जो उनकी आंखों में ही देखने की कोशिश कर रही थी क्योंकि अंधेरा अब भी था तो ज्यादा कुछ दिख नही रहा था, उदयराज ने रजनी को अपने ऊपर लेकर बाहों में भरकर चूम लिया, रजनी सिरह उठी और अपने बाबू की बाहों में समा गई, दोनों पूर्ण निवस्त्र थे, बस ऊपर से रजनी की साड़ी ओढ़ रखी थी वो भी इधर उधर से खुल ही गयी थी सोते वक्त।

रजनी- बाबू, अब उठो नही तो देर हो जाएगी, कोई भी इस तरफ आ सकता है।

उदयराज- हाँ, बेटी, चलो

रजनी उठी और एक अंगडाई ली, उदयराज ने लेटे लेटे अपनी बेटी को पहले तो अंगडाई लेते हुए देखता रहा फिर उठकर उसकी पीठ पर दो चार चुम्बन अंकित कर दिए, रजनी फिर सिसक गयी पर उदयराज आगे नही बढ़ा, अगर बढ़ता तो देर हो जाती, वो और रजनी जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े अंधेरे में पहने, हल्के बादल गरज रहे थे, बारिश फिर होने वाली थी।

रजनी- बाबू आपका अंगौछा, खेत में ही रह गया न, और डलिया और तेल भी।

उदयराज- हां, बेटी तू यहीं बैठ मैं लेकर आता हूँ।

उदयराज जल्दी से गया और खेत के पानी में तैर रहा अपना अंगौछा, डलिया और तेल की शीशी उठा लाया।

अब हल्का हल्का रोशनी होनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि बादल छाए होने की वजह से सूरज की रोशनी खुलकर नही आई थी पर अंधकार मिटना शुरू हो चुका था।

उदयराज और रजनी ने एक दूसरे को देखा तो रजनी शर्मा गयी और उदयराज ने अपनी बेटी की इस अदा पर उसको अपनी बाहों में भर लिया।

उदयराज- थक गई न

रजनी ने शर्मा कर हाँ में सर हिलाया फिर पूछा- आप नही थके क्या बाबू?

उदयराज- रात भर मक्ख़न खाया है, मक्ख़न खाने से तो और ताकत आती है तो थकूंगा कैसे? हम्म

रजनी ने शर्माते हुए एक हल्का मुक्का अपने बाबू की पीठ पर मारा- बदमाश! बाबू, बहुत बदमाश बाबू हो आप, मेरा तो सारा मक्ख़न खा गए आप एक ही रात में (रजनी ने शरारत से कहा)

उदयराज- अभी सारा कहाँ खाया मेरी बेटी, अभी तो बस आगे की रसोई में रखा मक्ख़न खाया है। पीछे वाली रसोई को तो अभी ठीक से देखा भी नही। (ऐसा कहते हुए उदयराज ने रजनी के भारी नितम्ब साड़ी के ऊपर से दबा दिए)

रजनी अपने बाबू की बात का अर्थ समझते ही फिर शर्मा गयी, एक मुक्का और पीठ पर मारा- गन्दू, गन्दू बाबू, बदमाश! अच्छे बच्चे सिर्फ आगे की रसोई में घुस के खाना खाते है।

उदयराज- वो तो मैं खा चुका हूं न मेरी रानी बेटी, अभी तो आगे की रसोई में खाना खत्म।

रजनी- हां तो और बन रहा है न मेरे बाबू, जैसे ही पक जाएगा मैं अपने बाबू को खुद ही खिलाऊंगी। मेरे बाबू पीछे की रसोई न खाली देखने में बड़ी है, कुछ नही है उसमे और उसका तो दरवाजा भी बहुत छोटा है बाबू, कैसे जाओगे आप अंदर? (रजनी ने अपने बाबू को चिढ़ाते हुए कहा)

उदयराज- दरवाजा तो आगे वाली रसोई का भी छोटा ही था न मेरी रानी, कैसे मैंने तुम्हारी मदद से तीन बार अंदर जा के खूब मक्ख़न खाया, वैसे ही तुम अगर पीछे वाली रसोई का ताला तोड़ने में मदद करो तो हम दोनों मिलकर उसमे रखे असीम आनंद को लूटेंगे, और रही बात दरवाजे की तो उसकी फिक्र तुम न करो मेरी बिटिया रानी, क्या मुझे मेरी अपनी पीछे वाली रसोई में जाने का हक़ नही? (उदयराज ने ये बात रजनी के नितम्ब को सहलाते हुए कहा)


रजनी शर्माते हुए- ऐसे क्यों बोल रहे हैं मेरे बाबू, मेरा तो तन मन सबकुछ आपका है, मैं तो बस मजाक कर रही थी, मैं तो अपने बाबू को हर चीज़ का सुख दूंगी, जो उनको चाहिए।

उदयराज ने रजनी को और भी कस के गले लगा लिया- ओह मेरी बेटी, मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली, जो मुझे इतना प्यार करती है।

रजनी- भाग्यशाली तो मैं भी हूँ बाबू, जो मुझे ऐसे बाबू मिले जिन्होंने मुझे इतना प्यार दिया कि मेरा तन और मन दोनों तृप्त हो गए।

उदयराज- आगे वाली रसोई में खाना दुबारा कब तक तैयार हो जाएगा? (उदयराज ने रजनी से वसनात्मय होते हुए कहा)

रजनी शर्माते हुए- हाहाहाहायययय .....बाबू! जल्द ही हो जाएगा बाबू, जैसे ही होगा मैं आपको इशारा कर दूंगी, तब तक आप पीछे वाली रसोई का ताला तोड़कर उसमे घुसकर असीम आनंद ले लेना।

उदयराज- सच्ची

रजनी- मुच्ची, मेरे बाबू सच्ची मुच्ची। पर पीछे वाली रसोई में डाका दिन में डालोगे तो और भी मजा आएगा, वो कहावत है न "दिन दहाड़े डाका डालना" (रजनी ने अपने मन की बात कही)

उदयराज- दिन में, मतलब मैं समझा नही।

रजनी- अरे मेरे बुद्धू सजना, मेरे बाबू, अपनी बेटी की पीछे वाली रसोई में डाका डालना है तो दिन में डालना, क्योंकि रात को तो आगे वाली रसोई में खाना खाया था न।

उदयराज- हाँ तो ठीक है, जैसी मेरी बेटी की इच्छा, पर कहाँ किस जगह, किस कमरे में, क्योंकि दिन में तो काकी भी रहेंगी न।

रजनी तपाक से- बाहर पेड़ के नीचे

उदयराज सन्न होते हुए- बाहर।

रजनी- हाँ मेरे बाबू बाहर।

उदयराज एक पल के लिए रजनी के साहस को देखता रह गया कि रजनी क्या बोल रही है, उसके अंदर ये कैसा रोमांच आ गया है वो किस तरह का रोमांच लेना चाहती है, मन में तो उसके भी गुदगुदी सी हुई कि दिन में ही, किसी ने देख लिया तो, फिर उसने सोचा कि छोरी छिपे कितना रोमांच आएगा जरूर इसी रोमांच को महसूस करने के लिए रजनी ये चाह रही है।

उदयराज- बाहर कहा, जब तुम इतना कह रही हो तो कोई जगह भी सोची होगी तुमने जरूर, मेरी जान।

रजनी- हाँ सोची है न मेरे राजा जी, दालान के बग़ल में जो अमरूद का पेड़ है उसके नीचे खाट बिछा के, वही पीछे वाली रसोई का खाना परोसुंगी अपने बाबू को।

उदयराज- और काकी आ गयी तो, या किसी ने देख लिया तो, अनर्थ हो जाएगा

रजनी- अब ये तो हमारी काबिलियत पर है बाबू की हम सबकी नजर बचा कर कैसे रोमांच का रसपान करें, और मुझे नही लगता कि मेरे बाबू इस बात से डरते होंगे।

उदयराज- वो तो अब वक्त ही बताएगा, चल अब (ऐसा कहते हुए उदयराज ने अपनी बेटी को बाहों में उठा लिया)

राजनी- ऊई मां, बाबू आप भी तो थक गए हो न, रहने दो मैं चल लूँगी धीरे धीरे।

उदयराज- अपनी रानी बेटी को अब मैं पैदल नही चलने दूंगा, जो मुझे मक्ख़न खिलाये उसको मैं भला पैदल चलने दूंगा।

रजनी खिलखिला कर हंस दी- अच्छा तो इतनी मेहनत मक्ख़न के लिए हो रही है।

उदयराज- हाँ और क्या, सेवा करेंगे तभी तो मेवा मिलेगा खाने को।

रजनी- बेटी का मेवा, सगी बेटी का

उदयराज- हां सगी बेटी का

रजनी फिर खिलखिलाकर हंस दी- बदमाश! बाबू, कोई सुन लेगा।

उदयराज- अभी तो हल्का हल्का अंधेरा है, अभी इस तरफ कोई नही आएगा, तब तक हम पहुँच जाएंगे, देखो बादल भी फिर से कितने छा गए हैं, लगता है आज बारिश ही होगी पूरे दिन।

उदयराज अपनी बेटी को बाहों में लिये कंधों पे उठाये अंधेरे में चल दिया अपने घर की ओर।

उदयराज और रजनी ऐसे ही बातें करते हुए घर के पास बाग तक पहुँच गए तो उदयराज ने रजनी को उतार दिया और रजनी अपने भारी नितम्ब को मटकाते हुए आगे आगे चलने लगी, अब उजाला हो चुका था।

रजनी और उदयराज के घर पहुचते ही काकी ने उन्हें देखा तो मुस्कुरा पड़ी और बोली- अरे मेरे बच्चों भीगे तो नही, सारी रात बारिश हुई आज तो और देखो अब भी बदल छाए है लगता है दिन भर बरसेंगे।

रजनी- हाँ काकी, बारिश की वजह से कुछ देर वहीं रुकना पड़ा, फिर आंख लग गयी और वहीं सो गए, गुड़िया रोई तो नही रात में।

काकी- नही, लेकिन अब उसको भूख लगी है जोर से, ले दूध पिला दे, तब तक मैं तुम दोनों के लिए नाश्ता बनाती हूँ।

रजनी- काकी रुको जरा मेरे कपड़े गीले हैं, मैं जरा बदल लूं।

काकी- हाँ जरूर, उदयराज तू भी कपड़े बदल ले

उदयराज और रजनी ने अपने कपड़े बदले, काकी रसोई में चली गयी नाश्ता बनाने, रजनी ने अपने बाबू को मुस्कुराकर दिखाते हुए अपना ब्लॉउज खोल के दायीं चूची निकाली और बच्ची के मुँह में डाल दी, उदयराज कुछ देर अपनी बेटी की मोटी सी गोल चूची देखता रहा फिर उसने इशारे से उसको ढक लेने के लिए कहा क्योंकि बच्ची दूध पी रही थी,रजनी ने आँचल से स्तन को ढक लिया।

उदयराज उठा और घर का काम करने लगा, जानवरों को चारा दिया और फिर जाकर नहाया, रजनी भी नहा धोकर फ्रेश हो गयी और सबने मिलकर नाश्ता किया।

काकी- मुझे मालूम है की रात भर तुम लोग बारिश की वजह से जागे हो तो जाकर आराम कर लो।

रजनी- जी काकी, लेकिन खाना आप मत बनाना मैं दिन में बनाउंगी, आप परेशान मत होना।

काकी- ठीक है बेटी तू पहले सो ले जा के ठीक से।

रजनी घर में सोने चली गयी, उदयराज भी बरामदे में लेटकर सो गया, काकी बच्ची को खिलाने लगी, बादल एक बार फिर बरसने लगे। काकी मन ही मन मुस्कुरा रही थी।
बहुत ही शानदार मजेदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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