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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Nasn

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Update- 70

नीलम और महेन्द्र लालटेन की रोशनी में कागज में लिखा बिरजू का जवाब पढ़ने लगे, कागज मे बिरजू ने लिखा था-

" बेटी हिम्मत तो नही हो रही ऐसा कदम उठाने की, ये एक बाप और बेटी दोनों के लिए ही बहुत शर्म की बात है क्योंकि ये पाप ही नही महापाप है समाज की नज़र में गलत है, समाज इसको स्वीकार नही करेगा। परंतु जब बेटी की इच्छा की पूर्ति के बारे में सोच रहा हूँ तो न जाने क्यों सबकुछ ताक पर रखकर इसको अंजाम देने से खुद को नही रोक पा रहा हूँ, दिल बार बार यही कह रहा है कि माना कि ये गलत है, महापाप है, पर बेटी की इच्छा भी तो कुछ मायने रखती है, एक पिता का फर्ज होता है कि वो अपने बच्चों की इच्छा की पूर्ति करे, कम से कम जो उसके सामर्थ्य में है वो तो करे ही, कभी कभी कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं जो हमे आनेवाली जिंदगी में लगने वाले लांछन से बचाती हैं, शुरू में भले ही वो गलत लगे पर उसके दूरगामी सकारात्मक लाभ होते हैं और फिर मन ये कहता है कि चोरी तो हर कोई करता है पर चोर वही होता है जो पकड़ा जाता है, इस दुनियां में जो आया है वो कहीं न कहीं कभी न कभी जाने अनजाने में छोटा या बड़ा पाप करता ही है, तो फिर अपनी ही बेटी की इच्छा पूर्ति के लिए अगर ये पाप का कदम उठाना पड़े तो मैं इससे पीछे कैसे हटूं, आखिर मेरी बेटी मुझे इतना चाहती है कि वो मेरी सीरत को एक नई जिंदगी में पिरोकर इस दुनियां में लाना चाहती है, उसे संजो कर रखना चाहती है तो ये मेरे लिए उसका अगाढ़ प्रेम दर्शाता है वरना आजकल बेटियां कहाँ ऐसा सोचती हैं, मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली, जो मेरी निशानी चाहती है, फिर सोचता हूँ कि ये पापकर्म अगर हमेशा गुप्त रहेगा तो पता ही किसको चलेगा और मेरी बेटी की इच्छा पूर्ति भी हो जाएगी, एक बार किसी अच्छे कर्म के लिए गुप्त रूप से किया गया पाप स्वीकार है मुझे, एक बार करने में कोई बुराई नही है इसलिए तुम सो जाना मैं रात को आऊंगा पलंग पर। पर ये ध्यान रखना की कभी तुम्हारी अम्मा को ये पता न लगे कि हमने एक रात मिलकर इस पाप को किया था, ये राज सिर्फ हमेशा हमारे ही बीच रहेगा, बस बेचैनी इस बात की हो रही है कि मुझे तुम्हे एक स्त्री के रूप में ग्रहण करने में अपार ग्लानि हो रही है, कैसे कर पाऊंगा मैं ये सब, जो मेरी बेटी है मेरी सगी बेटी उसके साथ वो सब जो एक पुरुष स्त्री के साथ करता है, पर मैं करूँगा, जैसे भी हो करूँगा, एक बार ही तो करना है, बेटी की खुशी के लिए करना पड़ेगा तो करूँगा और मुझे माफ कर देना दामाद जी, गुप्त रूप से तुम्हारी सहमति को मैं समझ रहा हूँ, तुम सच में घर गृहस्ती को समझने वाले इंसान हो, घरगृहस्थी को बांधकर कैसे चलाया जाता है अपनों की खुशियों के लिए उसमें कैसे कैसे समझौते करने पड़ते है ये तुम्हे अच्छे से आता है इस बात को मैं अब तुम्हारी इस मौन स्वीकृति को देखते हुए समझ गया हूँ, तुम वाकई में समझदार इंसान हो, वरना छोटी छोटी बातों को लेकर लोग बखेड़ा खड़ा कर देते है, अपनो की ही जिंदगी छीन लेते है सिर्फ छोटी छोटी बातों पर ही, उस हिसाब से तो ये बहुत बड़ा पाप है जिसको तुमने मौन स्वीकृति दी है, और मैं ये भी जनता हूँ कि तुम मेरा सामना नही कर पाओगे और न ही मैं इसलिए कमरे में अंधेरा ही रखना, मैं आऊंगा कुछ देर में। मुझे माफ़ कर देना।"

(बिरजू ने जानबूझ कर अंतिम लाइनों में अपने दामाद की बड़ाई कर दी थी ताकि उसे ये लगे कि वो एक महान इंसान है)

नीलम ने कागज को मोड़कर अपनी मुट्ठी में ले।लिया और मारे शर्म से अपना चेहरा अपने घुटनों में छुपाकर बैठ गयी, महेन्द्र ने उसे संभाला और बोला- मैं तो डर रहा था की बाबू जी कहीं गुस्से से लाल पीले होकर हमें ही न डांट लगा दें, पर सच में आज मैंने उन्हें अच्छे से जाना है कि वो कैसे इंसान हैं, सच में वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं, मैं तुम्हारी मन स्थिति समझ सकता हूँ नीलम पर अब आगे बढ़ो, चलो लालटेन बुझा दो सोते हैं।

नीलम कुछ नही बोली कागज को उसने तकिए के नीचे घुसा दिया और लालटेन बुझा कर आई पलंग पर लेट गयी, कमरे में गुप्प अंधेरा हो गया, पलंग काफी चौड़ी थी तीन लोग अगर फासला बनाकर सोएं तो बीच में एक एक हाँथ का फासला बनता था।

महेन्द्र बायीं तरफ लेटा था नीलम ज्यादा से ज्यादा महेन्द्र की तरफ लेटी थी, आधे से लगभग थोड़ा ज्यादा पलंग खाली थी, नीलम ने ऐसा जानबूझ के किया ताकि महेन्द्र को लगे कि ओ शर्म से गड़ी जा रही है, कैसे अपने बाबू की ओर लेटे?

महेन्द्र और नीलम बहुत देर चुप करके लेटे रहे महेंद्र ने नीलम को बाहों में भर लिया नीलम चुपचाप महेन्द्र की बाहों में आ गयी, दोनों पलंग पर ऐसे गुपचुप लेटे थे मानो डर के मारे पलंग में दुबके हों, किसी जंगल में सुनसान भूतिया हवेली के किसी कमरे में पलंग पर दुबके एक दूसरे को एक दूसरे का सहारा बनते हुए ढांढस बंधा रहे हो, और मिन्नतें कर रहे हों कि वो भूत इस कमरे में न आ जाये, हे ईश्वर हमे बचा लो, उनको देखकर तो ऐसा ही लग रहा था पर वास्तव में नीलम तड़प तड़प कर अपने बाबू का अंदर से इंतज़ार कर रही थी और महेन्द्र शर्म से गड़ा जा रहा था, नीलम तो बस दिखावा कर रही थी।

महेंद्र ने नीलम के गालों पर पप्पियाँ लेनी शुरू कर दी तो नीलम थोड़ा कसमसाई और बोली- अभी रुको न, जल्दी भी क्या है, बाबू को आ जाने दो, उनको सो जाने दो तब कर लेना जो करना हो।

महेन्द्र- बाबू यहां सोने के लिए थोड़ी आएंगे।

नीलम- वो तो मैं भी जानती हूं, इसलिए तो शर्म आ रही है।

महेन्द्र- आओ तुम्हारी शर्म दूर कर देता हूँ।

ऐसा कहकर महेंद्र ने नीलम को और कस के बाहों में भर लिया और उसके गालों और होंठों को चूमने लगा, महेन्द्र का लन्ड धीरे धीरे उठने लगा, पर न जाने क्यों नीलम को महेन्द्र के साथ वो मजा नही आ रहा था, उसे तो प्यास थी अपने बाबू की, ऊपरी मन से वो बस महेन्द्र को हल्का हल्का सहला रही थी, महेन्द्र नीलम पर अपना नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा था दरअसल जब वो नीलम को अपनी बहन सुनीता समझ कर चूमता तो उसे अत्यधिक उत्तेजना होती और जब वह बाबू के बारे में सोचता कि अभी वो कमरे में आएंगे तो थोड़ा ठंडा पड़ जाता पर उससे रहा नही गया तो उसने नीलम के कान में कहा- दीदी.....ओ मेरी दीदी

नीलम समझ गयी कि क्या चीज़ महेन्द्र को उत्तेजित कर रही है उसने भी धीरे से फुसफुसाकर कहा- भैया......मेरे भैया जी।

महेन्द्र- दीदी.......दोगी मुझे आज

नीलम- क्या भैया......

महेन्द्र ने झट से नीलम की दहकती बूर जो अपने बाबू का इंतज़ार कर रही थी उसपर हाँथ रखकर पूछ बैठा जिससे नीलम थोड़ा चिहुँक गयी- ये.......ये चाहिए मुझे दीदी

नीलम हल्का सा सिसक गयी और महेन्द्र को रिझाने के लिए बोली- बहन के साथ गलत काम करोगे, कोई भाई अपनी बहन की वो मांगता है भला, पाप है ये।

महेन्द्र- बहन हो तो क्या हुआ, मैं तुम्हे चाहता हूं, तुमसे प्यार करता हूँ, अब अपनी बहन से ही प्यार हो गया है तो क्या करूँ।

नीलम- अपनी ही सगी बहन से कोई भला वो वाला प्यार कर बैठता है, भाई बहन का प्यार तो पवित्र होता है।

महेन्द्र- मैं जानता हूँ दीदी पर बहन भी तो एक लड़की, एक स्त्री ही होती है न और भाई एक पुरुष तो अगर किसी की बहन का सम्मोहित सा करने वाला बदन उसके भाई का मन मोह ले और वो उसे उस रूप में चाहने लगे तो उसमे भाई का क्या दोष..... बोलो दीदी

नीलम ने बहन का रोल अदा करते हुए अपने पति महेन्द्र से बोला- बात तो भैया आप ठीक कह रहे हैं पर समाज इसको मानेगा नही न, समाज की नजर में ये अनैतिक कार्य है, ये पाप है, एक स्त्री और पुरुष में प्यार तब होता है जब उनका मन एक दूसरे के प्रति आसक्त हो जाता है और मन के साथ साथ जब तक तन न मिले तो प्यार पूर्ण नही होता और भाई और बहन समाज के सामने शादी तो कर नही सकते तो वो अपने प्यासे तन को मिलाएंगे कैसे? जैसे भाई अपनी बहन पर आसक्त हो सकता है वैसे बहन भी अपने भाई पर आसक्त हो सकती है पर वो दोनों समाज के डर से अपने तन बदन को नही मिला सकते, ये पाप है, मन तो चुपके चुपके मिला सकते है क्यूंकि किसी के मन में झांककर तो कोई नही देख रहा पर भाई बहन को आपस में अपना तन मिलाते हुए किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा भैया.....अनर्थ।

महेन्द्र ये सुनकर खुश हो गया और धीरे से बोला- दीदी एक बात पुछूं?

नीलम ने सुनीता बनकर बोला- हाँ मेरे भैया बोलो न।

महेन्द्र- तुम बस समाज के डर से इस पाप का आनंद लेने से अपने मन को दबा रही हो न, वैसे तो तुम मेरे साथ वो करना चाहती हो न, वो सुख लेना चाहती हो न?

नीलम ने महेन्द्र को खुश करने के लिए बड़े ही मादक अंदाज़ में उसको अपने ऊपर खींचते हुए बोला- हाँ मेरे भैया......मैं भी अपने सगे भैया के साथ वो करके उसका सुख लेना चाहती हूं, मेरा भी मन करता है कि मेरे भाई का वो कैसा होगा?, कितना बड़ा होगा?, दिखने में कैसा है?, वो पाप मैं भी करना चाहती हूं, पर समाज से डरती हूँ, कहीं पकड़े गए तो।

महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था अत्यधिक उत्तेजना के मारे महेन्द्र का लन्ड बुरी तरह खड़ा होकर नीलम की जाँघों में चुभने लगा, कुछ पल के लिए दोनों भूल गए कि अभी बिरजू आने वाला है।

महेन्द्र नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम मंद मंद हंसने लगी अपने गाल घुमा घुमा के महेन्द्र को चुम्मा देने लगी आखिर वो उसकी बहन का रोल जो प्ले कर रही थी, महेन्द्र ने फिर बोला- दीदी हम छुप छुप के मिलन कर लिया करेंगे न, जब किसी को पता ही नही चलेगा तो डर कैसा, माना की भाई और बहन शादी नही कर सकते पर एक दूसरे को छुप छुपकर भोग तो सकते हैं न, अगर बहन राजी है तो वो अपना रस भाई को छुप छुप कर पिला सकती है न, और सगे भाई के मर्दाना धक्कों का सुख अपनी गहराई में महसूस कर सकती है न.......बोलो न दीदी......हम छुप छुप के करेंगे.......बोलो दोगी न मुझे वो? मैं तुम्हे पूर्ण संतुष्टि दूंगा दीदी सच.....क्योंकि मैं तुम्हारा प्यासा हूँ, अपनी बहन का प्यासा।

महेन्द्र जोश में बहकर बोले जा रहा था, नीलम ने उसकी पीठ को सहलाया और बोली- धीरे से.....धीरे धीरे बोलो.......बाबू आते होंगे, हाँ मैं अपने भैया को अपनी वो दूंगी, चाखाउंगी तुम्हें, दिखाउंगी तुम्हें की वो कैसी होती है, देखने में वो कैसी लगती है, क्यों उसको देखने के लिए एक मर्द तड़पता है, कैसी बनावट होती है उसकी, उसका छेद कैसा होता है (ये लाइन बोलते वक्त नीलम भी सिरह गयी), और उसमे कैसे और कहां डालते हैं, सब दिखाउंगी अपने भैया को छुप छुपकर, मैं भी तड़पती हूँ भैया आपके लिए, ऐसा कहकर नीलम महेन्द्र का लन्ड पकड़ लेती है फिर बोलती है - आपके इसके लिए भैया आपकी बहन भी तड़पती है, बस कहती नही है लेकिन आज कहती हूँ, दूंगी मैं अपने भैया को, आखिर मेरा सगा भाई है वो जब उसकी बहन के पास भी है वो चीज़ तो उसका भाई आखिर उस चीज़ के लिए क्यों इतना तड़पे, मैं अपने भाई को अब नही तड़पने दूंगी, आखिर जब मैं उसको राखी बांधती हूँ तो वो मेरी रक्षा करने का वचन देता है और फिर मैं उसको मिठाई खिलाती हूँ मिठाई का मतलब मीठा ही हुआ न, तो हमारी वो चीज़ भी तो मीठी ही होती है न, क्यों न मैं अपने सगे प्यारे भाई को जो मेरी रक्षा का वचन देता है उसको अपनी असली मिठाई खिलाऊँ, क्यों मैं उसको अपनी असली मिठाई से दूर रखती हूं सिर्फ समाज के डर से, जब वो मेरा सगा भाई है और मेरी उस मिठाई के लिए तड़प रहा है तो क्या बदले में मैं कभी उसको अपनी छोटी सी ये चीज नही चखा सकती, क्या बिगड़ जाएगा इससे मेरा, छुप छुप कर तो सब किया जा ही सकता है, हम लड़कियां बेवजह डरती रहती है, अपने घर में ही अपने सगे भाई का प्यार उन्हें बहुत आसानी से मिल सकता है, इससे बहन और भाई का प्यार और मजबूत ही होगा कम नही होगा और इसीलिए अब मैं अपने भाई को तड़पता हुआ नही देख सकती।

महेन्द्र नीलम की ये बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लन्ड बहन की चाहत में फट ही जायेगा, वो कराहते हुए बोला- ओह दीदी मेरी प्यारी दीदी.....अब मैं रह नही सकता तुम्हारे बिना।

नीलम- थोड़ा आराम से जी मैं सच में सुनीता नही तुम्हारी पत्नी हूँ, और अब बस करो मजा दिया न इतनी देर, अब बस बाद में ऐसा खेल खेलेंगे, अब रुको।

महेन्द्र- अब रुका नही जाता, क्या सच में सुनीता ऐसा ही मेरे बारे में सोचती होगी जैसा तुमने अब तक बोला।

नीलम- नही भी सोचती होगी तो मैं सोचवा दूंगी, अब तुम उसकी फिक्र मत करो।


महेन्द्र खुश होते हुए नीलम को चूमने लगा फिर बोला- और बोलो न भैया, मैं तुम्हारे साथ सुनीता को सोचकर ही संभोग करूँगा।

नीलम- ठीक है जैसा तुम्हारा मन करे, पर ये मेरे बाबू जी के सामने कैसे करोगे और मैं तुम्हे भैया नही बोल पाऊंगी ये फिर किसी और दिन कर लेना।

महेन्द्र ने विनती करते हुए कहा- धीरे धीरे कान में भैया बोल देना न,अब आग लगा दी है तो सब्र नही होता।

नीलम- मैंने कहाँ आग लगाई तुमने ही शुरू किया था....मेरे कान में दीदी ओ दीदी बोलकर।

महेन्द्र को याद आया कि हां शुरू तो उसने ही किया था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, बिरजू के पास एक छोटी सी टॉर्च हुआ करती थी, जो कि एक छोटी sketch colour के पेंसिल जितनी ही थी, उसकी रोशनी ज्यादा नही बस दो फुट के दायरे तक ही होती थी, उसको जलाकर वो घर के अंदर दाखिल हुआ, उस कमरे तक गया जिसमें आज रात रस बरसने वाला था, टॉर्च बंद कर दी और हल्के से सटाये हुए दरवाजे को खोलकर अंदर दाखिल हो गया और सिटकनी लगा दी। बाहर का दरवाजा वो अंदर से पहले ही बंद कर आया था।
बहुत ही लाजाबाब अपडेट था ।
 
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आखिर निलम ने महेंद्र को अपने बिछाये हुए जाल में फसा ही दिया बहोत खुब
अब आयेगा मजा बाबुजी निलम और महेंद्र के बिच चुदाई का
अप्रतिम लाजवाब अपडेट है भाई
जबरदस्त लिखाण :adore:
अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 
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Nasn

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बहुत ही नायाब तरीके से लगातार
आगे बढ़ते जा रहे हो।
S_ कुमार भाई....।
अब महेंद्र नीलम की बुर को
वीर्य से गीली करेगा फिर
बिरजू शादीशुदा बेटी नीलम की
गीली बुर में धक्का लगायेगा।

बेहतरीन अपडेट का इंतजार है।
 
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Update- 69

नीलम चुप बैठी रही महेंद्र ने फिर बोला- हमे दूसरे उपाय को ही अपनाना चाहिए।

नीलम- मुझसे ये नही होगा, वो पिता हैं मेरे अभी तक मैं उनकी छुअन को एक पिता के स्नेह के रूप में ही महसूस करती आई हूं, मेरा मन उन्हें एक आनंदित पुरुष के रूप में कैसे स्वीकार कर पायेगा और जब मन इसे स्वीकार नही कर रहा तो तन उन्हें कैसे सौंप पाऊंगी। एक सगे पिता और बेटी के बीच यौनानंद तो एक व्यभिचार है।

महेंद्र- तुम इसे एक फ़र्ज़ की तरह क्यों नही ले रही हो, मुझे पूरा विश्वास है कि बाबू जी इस बात को अवश्य समझेंगे और वो पहले तुम्हारा मन जीतेंगे और फिर बाद में इसे बस एक कर्तव्य की तरह निभायेंगे। तुम्हे तुम्हारी इच्छा की सौगंध है तुम्हे ये अचूक उपाय करना ही होगा, तभी मेरा भी वचन पूरा होगा।

नीलम- तुमने मुझे सौगंध क्यों दी?

(नीलम ने एक बनावटी बेबसी दिखाते हुए कहा)

महेन्द्र- क्योंकि तुम समझ नही रही की बस यही एक रास्ता है, बस अब मुझे कुछ नही सुनना, तुम भी अब कुछ नही सोचोगी, अब सोचना नही करना है। करने लगो तो सब होने लगता है, चलो अब इस प्यारे से चेहरे पर मुस्कुराहट लाओ, ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा हमेशा, ये वचन तो मैं दे ही चुका हूं। बस तुम अपना वचन निभाना मत भूलना।

नीलम ये सुनते ही मुस्कुरा दी, फिर महेन्द्र की आंखों में देखते हुए बोली- भैया....ओ मेरे भैया जी, लो मैं तुम्हे भैया बोल रही हूं नही भूलूंगी मैं भी अपना वचन।

महेन्द्र ये सुनते ही गनगना गया और मुस्कुराने लगा।

नीलम बोली- तुम बेफिक्र रहो तुम्हे तो मैं जन्नत की सैर कराऊँगी।

महेन्द्र- तो फिर तुम कागज पर सब कुछ लिख के रखो, शाम को बाबू की के आते ही उन्हें दे देना।

नीलम- क्यों तुम नही दोगे, मैं ही दूँ।

महेन्द्र- हाँ तुम ही किसी तरह उन्हें दे देना ये मैं नही कर पाऊंगा।

नीलम- चलो ठीक है ये भी मैं ही करूँगी।

तभी कुछ बच्चे बाहर आवाज लगाने लगते हैं- दीदी....ओ नीलम दीदी

नीलम महेन्द्र से हाँथ छुड़ा कर बाहर आई- हाँ..... कंचन, मंचन, राखी, सुलेखा क्या हुआ?

बच्चे- दीदी हम जामुन तोड़ लें!

नीलम मुस्कुराते हुए- हाँ जाओ तोड़ लो पर संभलकर तोड़ना, हल्ला मत करना ज्यादा।

बच्चे- ठीक है दीदी....नही करेंगे हल्ला......हमारी दीदी की जय हो......हमारी दीदी सबसे अच्छी........हमारी दीदी सबसे अच्छी (ऐसा नारा लगाते हुए काफी बच्चे जामुन के पेड़ के नीचे जाकर जामुन तोड़ने लगे)

नीलम मुस्कुरा उठी, महेन्द्र भी नीलम का जलवा देखकर हैरान था। महेन्द्र बाहर आकर लेट गया दोपहर के तीन बज चुके थे, क्योंकि अब बच्चे आ गए तो नीलम से इस वक्त कुछ मिलेगा इसकी उम्मीद अब उसे थी नही, नीलम भी घर में चली गयी।

उधर बिरजू शाम 4 बजे तक अपने मित्र के यहां पहुँचा तो देखा कि उसकी कुटिया में तो ताला लगा हुआ है उसने पड़ोस में पूछा तो पता लगा कि वो कुछ जड़ीबूटियों की खोज में हिमालय की यात्रा पर पिछले महीने ही चला गया है, न जाने अब कबतक आये, बिरजू को काफी निराशा हुई, उदास मन से वो घर की तरफ चल दिया, रास्ते में वो सोचे जा रहा था कि कितने उम्मीद से वो आया था सब पर पानी फिर गया, अब वो सब कैसे हो पायेगा, कैसे वो अपनी बेटी को नए रोमांच का मजा दे पाएगा, आखिर कैसे होगा वो सब जो नीलम चाहती है, उसे क्या पता था कि नीलम पहले ही सब चाल चलकर मामला सेट कर चुकी है, नीलम ने दूसरी तरफ ये सब करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि उसे लगा था कि अगर बाबू सफल नही हुए तो? इसलिए उसे अपनी तरफ से भी कुछ करके रख लेना चाहिये।

जैसे ही बिरजु शाम 6 बजे घर पहुंचा हल्का अंधेरा शुरू हो गया था, महेन्द्र खाट पर लेटा था, बच्चे जामुन तोड़कर जा चुके थे नीलम पशुओं को चारा डाल रही थी, अपने बाबू को दूर आता देखकर उसके चेहरे पर लालिमा छा गयी, महेन्द्र बिरजू को आता देख खाट से उठकर थोड़ा दूर हटकर अपने को छुपाता हुआ टहलने लगा, क्योंकि वो जनता था कि आज जो जो हुआ है उसकी वजह से उसके मन में बहुत बेचैनी थी और बिरजू के सामने अपने चेहरे के हावभाव वो सामान्य नही रख सकता था उसे संभलने के लिए कुछ वक्त चाहिए था।

बिरजू घर पर आ गया नीलम बिरजू के पास आई और बोली- बाबू आ गए आप, बैठो मैं पानी लाती हूँ।

बिरजू- हाँ बेटी ले आ, चल मैं घर में ही आ रहा हूँ।

नीलम ने बायीं तरफ मुड़कर देखा तो महेन्द्र टहलते टहलते पशुशाला की तरफ चला गया था, वो घर में चली गयी, बिरजू भी उसके पीछे पीछे घर में आ गया, नीलम ने देखा कि बिरजू कुछ उदास है।

नीलम- क्या हुआ बाबू? आप थोड़ा उदास हैं।

बिरजू- हाँ बेटी अब जिस काम के लिए जाओ वो न हो पाए तो मन उदास तो हो ही जाता है।

नीलम- ओहो....बस इत्ती सी बात के लिए मेरे बाबू उदास हो गए।

बिरजू- ये इत्ती सी बात नही है बेटी, बहुत बड़ी बात है, कैसे होगा वो सब जो तुम्हे सोचा था, मुझे तो लगा था कि मेरा वो मित्र कुछ जड़ीबूटियां देगा और वो दामाद जी को खिलाकर उनको सम्मोहित करके, उनके सामने प्यार कर सकेंगे, अब उनकी चेतन अवस्था में तो ये सम्भव हो नही पायेगा, और वो मित्र मिला नही, इसलिए मन उदास है।

नीलम- लेकिन मन उदास कीजिये मत बाबू, आखिर नीलम कोई चीज़ है कि नही।

बिरजू ने झट से नीलम को खींचकर बाहों में भर लिया और बोला- नीलम तो बहुत मीठी चीज़ है...बहुत मीठी और रसीली।

नीलम अपने मनपसंद पुरुष की बाहों में आकर सिरह उठी।

बिरजू ने ध्यान से अपनी बेटी को देखा, आंखें बंद करली नीलम ने, क्या सुंदरता थी नीलम की, एक पल ठहरकर बिरजू ने नीलम की सिंदूर भरी मांग को देखा, माथे पर दोनों तरफ झूलते बालों के लटों को देखा, फिर माथे पर लगी छोटी सी बिंदिया को निहारा, नही रहा गया तो एक गीला चुम्बन बेटी के माथे पर लिया, नीलम गदगद हो गयी, फिर बिरजू नीचे देखते हुए नीलम की आंखों पर पहुंचा शंखरूपी बड़ी बड़ी आंखें बंद थी, नीलम अपने बाबू की हरकत को अच्छे से महसूस कर रही थी तभी तो वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी, पलकें उसकी हल्का हल्का हिल जा रही थी, बिरजू ने दोनों बंद आँखों को प्यार से चूमा और बोला- आंखें खोल न मेरी प्यारी बेटी।

नीलम मस्ती में- ओफ्फो....फिर बेटी.....वो बोलो न जो सिखाया था आपको और जो मुझे गनगना देता है।

बिरजू- अच्छा बाबा.....मेरी रंडी

नीलम का चेहरा शर्म से भर गया वो मस्ती में बोली- ये हुई न मेरे दिल की बात....अब दुबारा बोलो...मैं आँखें बंद करती हूं।

नीलम ने आंखें बंद कर ली

बिरजू- आंखे खोल न.....मेरी रांड

नीलम ने प्यार से मुस्कुराते हुए आंखे खोल कर बिरजू को निहारने लगी और बिरजू से रहा है नही गया उसने नीलम की कमर में हाँथ डाल के अपने से कस के चिपकाते हुए उसके रसीले होंठों को अपने होंठों में लेकर काट खाने की हद तक चूसने लगा, सिसकते हुए नीलम भी अपने बाबू से चिपक गयी, अपने होंठ तो वो खुद भी अपने मनपसंद मर्द से कटवाना चाहती थी पर थोड़ा डर रही थी कि कहीं महेन्द्र टहलता टहलता घर में न आ जाये, पर वो नही आएंगे ये भी विश्वास था फिर भी वो बोली- बाबू बस करो नही तो यहीँ सब कुछ हो जाएगा, क्या पानी नही पियोगे, बस मुझे ही खाओगे आते ही, मुझे रात में खाना अभी सब्र करो।

बिरजू- रात में बेटी का रस कैसे पियूँगा, दामाद जी जो हैं घर में।

नीलम- उसका इंतज़ाम भी मैंने कर दिया हैं, अपनी बेटी को क्या कच्चा खिलाड़ी समझा है, सब व्यवस्थित कर दिया है मैंने।

बिरजू चौंक गया- व्यवस्थित .......क्या व्यवस्थित......कैसे?......क्या किया तुमने?

नीलम - अभी बैठो पानी पियो, मैं एक कागज में सब लिखकर आपको दूंगी, आपके तकिए के नीचे रख दूंगी, सब पढ़ लेना और दिखावे के लिए उसका जवाब भी दूसरे कागज पर लिखकर मुझे देना, वो कागज पढ़ोगे तो सब पता चल जाएगा, सारी खीर पका दी है मैंने बस सिर्फ खाना खाना रह गया है। दिखावे के लिए अभी आपको मुझे चूड़ी पहनानी होगी, वो तो पहना नही पाए शर्त हार गए, और इस चूड़ी के खेल में मैंने ऐसा जाल बुना की अपने रोमांच का खेल खेलने का अखाड़ा तैयार कर दिया, समझे मेरे बाबू, अभी आप बाहर बैठो मैं खाना बनाने के साथ साथ वो सब कुछ जो आज दिन में मैंने किया एक कागज पर लिखकर आप तक पहुंचा दूंगी, आप उसे पढ़कर उत्तर देना और प्रतिउत्तर का कागज अपने दामाद जी के हांथों मुझे दिलवाना, फिर हम चूड़ी का खेल खेलेंगे और फिर खाना खाकर हम आज की इस हसीन रात को मिलकर रसीला बनाएंगे।

बिरजू ने नीलम के दोनों गालों पर बड़े प्यार से कामुक अंदाज में चुम्मा लिया और बोला- तू मुझे कितना खुश रखती है, तुझे ये अंदाज़ा था कि अगर मैं असफल हुआ तो क्या होगा, इसलिए खीर बना ही डाली।

नीलम- अपने मनपसंद मर्द से रसीला सुख पाने के लिए औरत को चाल चलना पड़े तो वो पीछे नही हटती, समझे मेरे बाबू। चलो अब बाहर बैठो।

ऐसा कहते हुए नीलम ने एक जोर का रसीला चुम्मा बिरजू के होंठों पर लिया और बिरजू तरसता हुआ बाहर आ गया, महेन्द्र अभी भी चूतियाओं की तरह दूर दूर ही घूम रहा था।

बिरजू- दामाद जी आओ इधर बैठो....क्या हुआ, ऊबन हो रही है क्या?

महेंद्र झिझकते हुए पास आ गया और दूसरी खाट पर बैठ गया फिर बोला- अरे नही बाबू जी ऊबन कैसी, अपने घर में कैसी ऊबन, आप कहीं गए थे किसी काम से? क्या हुआ हो गया वो काम?

बिरजू- नही बेटा काम तो नही हुआ जिससे मिलना था वो मिला नही।

महेन्द्र और बिरजू ऐसे ही काफी देर बातें करते रहे महेन्द्र की झिझक कुछ कम हुई पर बार बार आज जो दिन में हुआ और अब आगे आज रात क्या होगा यही उसके दिमाग में आ जा रहा था, की अगर बाबू जी मान गए तो कैसे होगा वो खुद कैसे इसको ग्रहण करेगा और नही माने तो क्या होगा। खैर ये तो अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या कैसे होगा?

वक्त बीता नीलम ने खाना बनाते बनाते दिन भर का सारा वृतांत ज्यौं का त्यौं कागज पर उतार दिया और महेंद्र और बिरजू के सामने, उस कागज को एक चाय की प्लेट में चाय के साथ लेकर बाहर आई।

बिरजू- अरे बेटी चाय ले आयी, अच्छा ही किया मैं बोलने ही वाला था।

तभी पशुशाला में बंधी भैंस आवाज करने लगी।

बिरजू- भैंस चिल्ला रही है शायद प्यासी है ऐर्क बाल्टी पानी दिखा दे उसको बिटिया, तेरी अम्मा भी न जाने कब आएगी, वो रहती है तो ये सब चिंता हम बाप बेटी को नही करनी पड़ती।

नीलम ने हंसते हुए चाय की प्लेट जिसमे घर की बनी नमकीन और वो कागज रखा था नीचे टेबल पर रखा और वो कागज उठाकर महेंद्र को दिखाते हुए अपने बाबू को देते हुए बोली- बाबू ये लो।

बिरजू- इसमें क्या है बेटी।

नीलम- बाबू इसमें मेरी इच्छा कैद है।

महेन्द्र ने सर नीचे कर लिया।

बिरजू- कैसी इच्छा बेटी।

नीलम- है एक इच्छा बाबू, पढ़ लेना और अगर आप इससे विचलित हो जाये या सहमत न हो तो माफ कर देना अपनी इस अभागन बिटिया को और अगर आपको जरा भी लगे कि मेरी खुशी में आपकी खुशी है तो इसका जवाब किसी कागज पर लिखकर दे देना।

(नीलम ने जानबूझकर महेन्द्र के सामने ये सब कहा)

बिरजू ने दिखावे का असमंजस भरा हावभाव चेहरे पर लाते हुए कहा- तू निश्चिन्त रह बेटी, मेरी बेटी की खुशी में ही मेरी खुशी है।

नीलम- नही बाबू.....पहले आप इसको पढ़ लेना......बिना सोचे समझे इंसान को भावनाओं में बहकर हमेशा निर्णय नही लेना चाहिए, पहले आप पढ़ लेना तब ही अपना जवाब देना....चाय पीजिए और मैं जाती हूँ भैंस को पानी पिला के आती हूँ और हाँ एक बात तो कहना ही भूल गयी।

बिरजू- बोल

नीलम- आप मुझे हमेशा की तरह चूड़ियां पहनाइए इन्हें भी देखना है, विश्वास नही हो रहा है इनको की आप इतनी अच्छी चूड़ियां पहना देते हो मुझे, दिन में चूड़ी वाली आयी थी तो मैंने नई चूड़ियां ली अपने लिए, कुछ अम्मा के लिए और रजनी दीदी के लिए भी ली थी।

बिरजू हंसता हुआ- अच्छा तो तुमने दामाद जी को ये बता दिया, की चूड़ियां अक्सर मैं पहना देता हूँ तुम्हे।

नीलम- हाँ तो क्या हो गया इसमें कोई बुराई है क्या।

बिरजू- अरे नही बाबा बुराई किस बात की ये तो प्यार है बाप बेटी का, चलो ठीक है ले आओ चूड़ियां पहना देता हूँ।

महेन्द्र भी बिरजू और नीलम को देखकर मुस्कुराने लगा।

नीलम पहले तो गयी कुएं से एक बाल्टी पानी निकाल कर दोनों भैंसों को पिला आयी फिर घर में गयी, रसोई में जाकर चूल्हे पर रखी परवल की सब्ज़ी को चलाकर चूल्हे में लगी आग को मद्धिम करके आंगन में खाट पर रखी अपनी चूड़ियां लेकर बाहर आ गयी।

बिरजू ने नीलम का हाँथ अपने हांथों में लिया, मन ही मन नीलम सिरह रही थी, अपनी बेटी के नरम हांथों को छूकर सब्र तो बिरजू से भी नही हो रहा था पर महेन्द्र वहीं बैठा दोनों को देख रहा था और ये सब स्वीकार करते हुए हज़म करने की कोशिश में लगा था।

बिरजू ने एक एक करके बड़े प्यार से नीलम को देखते हुए दोनों हांथों में 23 चूड़ियां पहना दी फिर बोला- अरे ये तो 23 ही हैं 24 होनी चाहिए न, 12 एक हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।

नीलम- एक चूड़ी तो टूट गयी न, तो 23 ही बची।

बिरजू- फिर ये तो विषम है, सम होना चाहिए न।

नीलम ने कुछ चूड़ियां अतिरिक्त ले ली थी उनको देते हुए बोली- लो बाबू इसमें से एक पहना दो और बिरजू ने वो भी पहना कर दोनों हांथों में दोनों चूड़ियां पूरी कर दी।

नीलम ने महेन्द्र की तरफ देखते हुए बोला- देखा आपने कैसे पहनाई सारी चूड़ियां एक भी नही टूटी और तेल भी नही लगाया था हाँथ में।

महेन्द्र भी मान गया और बोला- वाकई बाबू ने कितनी सरलता से सारी चूड़ियां पहना दी, जबकि उनके हाँथ मेरे हाँथ से सख्त हैं।

नीलम, महेन्द्र और बिरजू सब हंस दिए, नीलम बोली- अच्छा चलो मैं खाना निकालती हूँ, आप लोग आओ घर में वहीं आंगन में खाना खाएंगे सब।

सबने खाना खाया, बिरजू और महेन्द्र दोबारा बाहर आ गए नीलम ने पीछे वाले कमरे में जहां से सिसकारियों की आवाज बाहर न जाये एक चौड़ी पलंग बिछा दी, जिसपर आज तीन लोग सोने वाले थे।

बिरजू बाहर आके बाहर बने एक दालान में गया जिसमें लालटेन जल रही थी, महेन्द्र बाहर ही लेटा रहा वो समझ गया कि बाबू दालान में वो कागज पढ़ने जा रहे हैं, वो दालान थोड़ी दूर पर ही था।

बिरजू ने वो कागज खोला और पढ़ने लगा, सबकुछ पढ़ने के बाद एक बार तो उसे विश्वास नही हुआ कि नीलम ने इतना कुछ कर डाला, पर उसकी सूझबूझ और रास्ता निकालने की कला पर खुश हो गया और गर्व महसूस करने लगा, उसे ये बात जानकर हैरानी हुई कि उसका दामाद अपनी सगी बहन को भोगना चाहता है पर उसने इसे सामान्य तौर पर लिया और कभी भी अपने चेहरे पर ऐसा कोई भी भाव न लाने का वचन खुद से ही लिया जिससे उसके दामाद को शर्मिंदगी न हो, सब पढ़ने के बाद वो पूरी कहानी समझ गया, नीलम ने उस कागज में यहां तक लिख दिया था कि मैं पीछे वाले कमरे में पलंग बिछाऊंगी और हम तीनो उसपर एक साथ सोएंगे, मैं और आपके दामाद जी पहले उस कमरे में चले जायेंगे और जब लालटेन बुझा देंगे तब आप आना।

बिरजू ने बगल में रखी किताबों के बीच में से एक पन्ना उठाया और उसमे अपना विचार अपना निर्णय लिख कर बाहर आ गया, उसने देखा महेन्द्र घर में जा चुका था, वह वहीं खाट पर बैठ गया, कुछ ही देर में नीलम बाहर आई और दरवाजे पर ही खड़ी होकर बिरजू को देखने लगी, बिरजू ने वो कागज नीलम को थमाया और धीरे से बोला- मैं कुछ देर बाद आता हूँ, नीलम मुस्कुराई और बोली- ज्यादा देर मत लगाना और अपने बाबू के हाँथ से वो कागज लेकर अंदर चली गयी, अंदर जाकर उसने महेन्द्र के सामने पलंग पर लेटकर वो कागज जल्दी से खोला और पढ़ने लगी।
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नीलम और महेन्द्र लालटेन की रोशनी में कागज में लिखा बिरजू का जवाब पढ़ने लगे, कागज मे बिरजू ने लिखा था-

" बेटी हिम्मत तो नही हो रही ऐसा कदम उठाने की, ये एक बाप और बेटी दोनों के लिए ही बहुत शर्म की बात है क्योंकि ये पाप ही नही महापाप है समाज की नज़र में गलत है, समाज इसको स्वीकार नही करेगा। परंतु जब बेटी की इच्छा की पूर्ति के बारे में सोच रहा हूँ तो न जाने क्यों सबकुछ ताक पर रखकर इसको अंजाम देने से खुद को नही रोक पा रहा हूँ, दिल बार बार यही कह रहा है कि माना कि ये गलत है, महापाप है, पर बेटी की इच्छा भी तो कुछ मायने रखती है, एक पिता का फर्ज होता है कि वो अपने बच्चों की इच्छा की पूर्ति करे, कम से कम जो उसके सामर्थ्य में है वो तो करे ही, कभी कभी कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं जो हमे आनेवाली जिंदगी में लगने वाले लांछन से बचाती हैं, शुरू में भले ही वो गलत लगे पर उसके दूरगामी सकारात्मक लाभ होते हैं और फिर मन ये कहता है कि चोरी तो हर कोई करता है पर चोर वही होता है जो पकड़ा जाता है, इस दुनियां में जो आया है वो कहीं न कहीं कभी न कभी जाने अनजाने में छोटा या बड़ा पाप करता ही है, तो फिर अपनी ही बेटी की इच्छा पूर्ति के लिए अगर ये पाप का कदम उठाना पड़े तो मैं इससे पीछे कैसे हटूं, आखिर मेरी बेटी मुझे इतना चाहती है कि वो मेरी सीरत को एक नई जिंदगी में पिरोकर इस दुनियां में लाना चाहती है, उसे संजो कर रखना चाहती है तो ये मेरे लिए उसका अगाढ़ प्रेम दर्शाता है वरना आजकल बेटियां कहाँ ऐसा सोचती हैं, मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली, जो मेरी निशानी चाहती है, फिर सोचता हूँ कि ये पापकर्म अगर हमेशा गुप्त रहेगा तो पता ही किसको चलेगा और मेरी बेटी की इच्छा पूर्ति भी हो जाएगी, एक बार किसी अच्छे कर्म के लिए गुप्त रूप से किया गया पाप स्वीकार है मुझे, एक बार करने में कोई बुराई नही है इसलिए तुम सो जाना मैं रात को आऊंगा पलंग पर। पर ये ध्यान रखना की कभी तुम्हारी अम्मा को ये पता न लगे कि हमने एक रात मिलकर इस पाप को किया था, ये राज सिर्फ हमेशा हमारे ही बीच रहेगा, बस बेचैनी इस बात की हो रही है कि मुझे तुम्हे एक स्त्री के रूप में ग्रहण करने में अपार ग्लानि हो रही है, कैसे कर पाऊंगा मैं ये सब, जो मेरी बेटी है मेरी सगी बेटी उसके साथ वो सब जो एक पुरुष स्त्री के साथ करता है, पर मैं करूँगा, जैसे भी हो करूँगा, एक बार ही तो करना है, बेटी की खुशी के लिए करना पड़ेगा तो करूँगा और मुझे माफ कर देना दामाद जी, गुप्त रूप से तुम्हारी सहमति को मैं समझ रहा हूँ, तुम सच में घर गृहस्ती को समझने वाले इंसान हो, घरगृहस्थी को बांधकर कैसे चलाया जाता है अपनों की खुशियों के लिए उसमें कैसे कैसे समझौते करने पड़ते है ये तुम्हे अच्छे से आता है इस बात को मैं अब तुम्हारी इस मौन स्वीकृति को देखते हुए समझ गया हूँ, तुम वाकई में समझदार इंसान हो, वरना छोटी छोटी बातों को लेकर लोग बखेड़ा खड़ा कर देते है, अपनो की ही जिंदगी छीन लेते है सिर्फ छोटी छोटी बातों पर ही, उस हिसाब से तो ये बहुत बड़ा पाप है जिसको तुमने मौन स्वीकृति दी है, और मैं ये भी जनता हूँ कि तुम मेरा सामना नही कर पाओगे और न ही मैं इसलिए कमरे में अंधेरा ही रखना, मैं आऊंगा कुछ देर में। मुझे माफ़ कर देना।"

(बिरजू ने जानबूझ कर अंतिम लाइनों में अपने दामाद की बड़ाई कर दी थी ताकि उसे ये लगे कि वो एक महान इंसान है)

नीलम ने कागज को मोड़कर अपनी मुट्ठी में ले।लिया और मारे शर्म से अपना चेहरा अपने घुटनों में छुपाकर बैठ गयी, महेन्द्र ने उसे संभाला और बोला- मैं तो डर रहा था की बाबू जी कहीं गुस्से से लाल पीले होकर हमें ही न डांट लगा दें, पर सच में आज मैंने उन्हें अच्छे से जाना है कि वो कैसे इंसान हैं, सच में वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं, मैं तुम्हारी मन स्थिति समझ सकता हूँ नीलम पर अब आगे बढ़ो, चलो लालटेन बुझा दो सोते हैं।

नीलम कुछ नही बोली कागज को उसने तकिए के नीचे घुसा दिया और लालटेन बुझा कर आई पलंग पर लेट गयी, कमरे में गुप्प अंधेरा हो गया, पलंग काफी चौड़ी थी तीन लोग अगर फासला बनाकर सोएं तो बीच में एक एक हाँथ का फासला बनता था।

महेन्द्र बायीं तरफ लेटा था नीलम ज्यादा से ज्यादा महेन्द्र की तरफ लेटी थी, आधे से लगभग थोड़ा ज्यादा पलंग खाली थी, नीलम ने ऐसा जानबूझ के किया ताकि महेन्द्र को लगे कि ओ शर्म से गड़ी जा रही है, कैसे अपने बाबू की ओर लेटे?

महेन्द्र और नीलम बहुत देर चुप करके लेटे रहे महेंद्र ने नीलम को बाहों में भर लिया नीलम चुपचाप महेन्द्र की बाहों में आ गयी, दोनों पलंग पर ऐसे गुपचुप लेटे थे मानो डर के मारे पलंग में दुबके हों, किसी जंगल में सुनसान भूतिया हवेली के किसी कमरे में पलंग पर दुबके एक दूसरे को एक दूसरे का सहारा बनते हुए ढांढस बंधा रहे हो, और मिन्नतें कर रहे हों कि वो भूत इस कमरे में न आ जाये, हे ईश्वर हमे बचा लो, उनको देखकर तो ऐसा ही लग रहा था पर वास्तव में नीलम तड़प तड़प कर अपने बाबू का अंदर से इंतज़ार कर रही थी और महेन्द्र शर्म से गड़ा जा रहा था, नीलम तो बस दिखावा कर रही थी।

महेंद्र ने नीलम के गालों पर पप्पियाँ लेनी शुरू कर दी तो नीलम थोड़ा कसमसाई और बोली- अभी रुको न, जल्दी भी क्या है, बाबू को आ जाने दो, उनको सो जाने दो तब कर लेना जो करना हो।

महेन्द्र- बाबू यहां सोने के लिए थोड़ी आएंगे।

नीलम- वो तो मैं भी जानती हूं, इसलिए तो शर्म आ रही है।

महेन्द्र- आओ तुम्हारी शर्म दूर कर देता हूँ।

ऐसा कहकर महेंद्र ने नीलम को और कस के बाहों में भर लिया और उसके गालों और होंठों को चूमने लगा, महेन्द्र का लन्ड धीरे धीरे उठने लगा, पर न जाने क्यों नीलम को महेन्द्र के साथ वो मजा नही आ रहा था, उसे तो प्यास थी अपने बाबू की, ऊपरी मन से वो बस महेन्द्र को हल्का हल्का सहला रही थी, महेन्द्र नीलम पर अपना नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा था दरअसल जब वो नीलम को अपनी बहन सुनीता समझ कर चूमता तो उसे अत्यधिक उत्तेजना होती और जब वह बाबू के बारे में सोचता कि अभी वो कमरे में आएंगे तो थोड़ा ठंडा पड़ जाता पर उससे रहा नही गया तो उसने नीलम के कान में कहा- दीदी.....ओ मेरी दीदी

नीलम समझ गयी कि क्या चीज़ महेन्द्र को उत्तेजित कर रही है उसने भी धीरे से फुसफुसाकर कहा- भैया......मेरे भैया जी।

महेन्द्र- दीदी.......दोगी मुझे आज

नीलम- क्या भैया......

महेन्द्र ने झट से नीलम की दहकती बूर जो अपने बाबू का इंतज़ार कर रही थी उसपर हाँथ रखकर पूछ बैठा जिससे नीलम थोड़ा चिहुँक गयी- ये.......ये चाहिए मुझे दीदी

नीलम हल्का सा सिसक गयी और महेन्द्र को रिझाने के लिए बोली- बहन के साथ गलत काम करोगे, कोई भाई अपनी बहन की वो मांगता है भला, पाप है ये।

महेन्द्र- बहन हो तो क्या हुआ, मैं तुम्हे चाहता हूं, तुमसे प्यार करता हूँ, अब अपनी बहन से ही प्यार हो गया है तो क्या करूँ।

नीलम- अपनी ही सगी बहन से कोई भला वो वाला प्यार कर बैठता है, भाई बहन का प्यार तो पवित्र होता है।

महेन्द्र- मैं जानता हूँ दीदी पर बहन भी तो एक लड़की, एक स्त्री ही होती है न और भाई एक पुरुष तो अगर किसी की बहन का सम्मोहित सा करने वाला बदन उसके भाई का मन मोह ले और वो उसे उस रूप में चाहने लगे तो उसमे भाई का क्या दोष..... बोलो दीदी

नीलम ने बहन का रोल अदा करते हुए अपने पति महेन्द्र से बोला- बात तो भैया आप ठीक कह रहे हैं पर समाज इसको मानेगा नही न, समाज की नजर में ये अनैतिक कार्य है, ये पाप है, एक स्त्री और पुरुष में प्यार तब होता है जब उनका मन एक दूसरे के प्रति आसक्त हो जाता है और मन के साथ साथ जब तक तन न मिले तो प्यार पूर्ण नही होता और भाई और बहन समाज के सामने शादी तो कर नही सकते तो वो अपने प्यासे तन को मिलाएंगे कैसे? जैसे भाई अपनी बहन पर आसक्त हो सकता है वैसे बहन भी अपने भाई पर आसक्त हो सकती है पर वो दोनों समाज के डर से अपने तन बदन को नही मिला सकते, ये पाप है, मन तो चुपके चुपके मिला सकते है क्यूंकि किसी के मन में झांककर तो कोई नही देख रहा पर भाई बहन को आपस में अपना तन मिलाते हुए किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा भैया.....अनर्थ।

महेन्द्र ये सुनकर खुश हो गया और धीरे से बोला- दीदी एक बात पुछूं?

नीलम ने सुनीता बनकर बोला- हाँ मेरे भैया बोलो न।

महेन्द्र- तुम बस समाज के डर से इस पाप का आनंद लेने से अपने मन को दबा रही हो न, वैसे तो तुम मेरे साथ वो करना चाहती हो न, वो सुख लेना चाहती हो न?

नीलम ने महेन्द्र को खुश करने के लिए बड़े ही मादक अंदाज़ में उसको अपने ऊपर खींचते हुए बोला- हाँ मेरे भैया......मैं भी अपने सगे भैया के साथ वो करके उसका सुख लेना चाहती हूं, मेरा भी मन करता है कि मेरे भाई का वो कैसा होगा?, कितना बड़ा होगा?, दिखने में कैसा है?, वो पाप मैं भी करना चाहती हूं, पर समाज से डरती हूँ, कहीं पकड़े गए तो।

महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था अत्यधिक उत्तेजना के मारे महेन्द्र का लन्ड बुरी तरह खड़ा होकर नीलम की जाँघों में चुभने लगा, कुछ पल के लिए दोनों भूल गए कि अभी बिरजू आने वाला है।

महेन्द्र नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम मंद मंद हंसने लगी अपने गाल घुमा घुमा के महेन्द्र को चुम्मा देने लगी आखिर वो उसकी बहन का रोल जो प्ले कर रही थी, महेन्द्र ने फिर बोला- दीदी हम छुप छुप के मिलन कर लिया करेंगे न, जब किसी को पता ही नही चलेगा तो डर कैसा, माना की भाई और बहन शादी नही कर सकते पर एक दूसरे को छुप छुपकर भोग तो सकते हैं न, अगर बहन राजी है तो वो अपना रस भाई को छुप छुप कर पिला सकती है न, और सगे भाई के मर्दाना धक्कों का सुख अपनी गहराई में महसूस कर सकती है न.......बोलो न दीदी......हम छुप छुप के करेंगे.......बोलो दोगी न मुझे वो? मैं तुम्हे पूर्ण संतुष्टि दूंगा दीदी सच.....क्योंकि मैं तुम्हारा प्यासा हूँ, अपनी बहन का प्यासा।

महेन्द्र जोश में बहकर बोले जा रहा था, नीलम ने उसकी पीठ को सहलाया और बोली- धीरे से.....धीरे धीरे बोलो.......बाबू आते होंगे, हाँ मैं अपने भैया को अपनी वो दूंगी, चाखाउंगी तुम्हें, दिखाउंगी तुम्हें की वो कैसी होती है, देखने में वो कैसी लगती है, क्यों उसको देखने के लिए एक मर्द तड़पता है, कैसी बनावट होती है उसकी, उसका छेद कैसा होता है (ये लाइन बोलते वक्त नीलम भी सिरह गयी), और उसमे कैसे और कहां डालते हैं, सब दिखाउंगी अपने भैया को छुप छुपकर, मैं भी तड़पती हूँ भैया आपके लिए, ऐसा कहकर नीलम महेन्द्र का लन्ड पकड़ लेती है फिर बोलती है - आपके इसके लिए भैया आपकी बहन भी तड़पती है, बस कहती नही है लेकिन आज कहती हूँ, दूंगी मैं अपने भैया को, आखिर मेरा सगा भाई है वो जब उसकी बहन के पास भी है वो चीज़ तो उसका भाई आखिर उस चीज़ के लिए क्यों इतना तड़पे, मैं अपने भाई को अब नही तड़पने दूंगी, आखिर जब मैं उसको राखी बांधती हूँ तो वो मेरी रक्षा करने का वचन देता है और फिर मैं उसको मिठाई खिलाती हूँ मिठाई का मतलब मीठा ही हुआ न, तो हमारी वो चीज़ भी तो मीठी ही होती है न, क्यों न मैं अपने सगे प्यारे भाई को जो मेरी रक्षा का वचन देता है उसको अपनी असली मिठाई खिलाऊँ, क्यों मैं उसको अपनी असली मिठाई से दूर रखती हूं सिर्फ समाज के डर से, जब वो मेरा सगा भाई है और मेरी उस मिठाई के लिए तड़प रहा है तो क्या बदले में मैं कभी उसको अपनी छोटी सी ये चीज नही चखा सकती, क्या बिगड़ जाएगा इससे मेरा, छुप छुप कर तो सब किया जा ही सकता है, हम लड़कियां बेवजह डरती रहती है, अपने घर में ही अपने सगे भाई का प्यार उन्हें बहुत आसानी से मिल सकता है, इससे बहन और भाई का प्यार और मजबूत ही होगा कम नही होगा और इसीलिए अब मैं अपने भाई को तड़पता हुआ नही देख सकती।

महेन्द्र नीलम की ये बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लन्ड बहन की चाहत में फट ही जायेगा, वो कराहते हुए बोला- ओह दीदी मेरी प्यारी दीदी.....अब मैं रह नही सकता तुम्हारे बिना।

नीलम- थोड़ा आराम से जी मैं सच में सुनीता नही तुम्हारी पत्नी हूँ, और अब बस करो मजा दिया न इतनी देर, अब बस बाद में ऐसा खेल खेलेंगे, अब रुको।

महेन्द्र- अब रुका नही जाता, क्या सच में सुनीता ऐसा ही मेरे बारे में सोचती होगी जैसा तुमने अब तक बोला।

नीलम- नही भी सोचती होगी तो मैं सोचवा दूंगी, अब तुम उसकी फिक्र मत करो।


महेन्द्र खुश होते हुए नीलम को चूमने लगा फिर बोला- और बोलो न भैया, मैं तुम्हारे साथ सुनीता को सोचकर ही संभोग करूँगा।

नीलम- ठीक है जैसा तुम्हारा मन करे, पर ये मेरे बाबू जी के सामने कैसे करोगे और मैं तुम्हे भैया नही बोल पाऊंगी ये फिर किसी और दिन कर लेना।

महेन्द्र ने विनती करते हुए कहा- धीरे धीरे कान में भैया बोल देना न,अब आग लगा दी है तो सब्र नही होता।

नीलम- मैंने कहाँ आग लगाई तुमने ही शुरू किया था....मेरे कान में दीदी ओ दीदी बोलकर।

महेन्द्र को याद आया कि हां शुरू तो उसने ही किया था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, बिरजू के पास एक छोटी सी टॉर्च हुआ करती थी, जो कि एक छोटी sketch colour के पेंसिल जितनी ही थी, उसकी रोशनी ज्यादा नही बस दो फुट के दायरे तक ही होती थी, उसको जलाकर वो घर के अंदर दाखिल हुआ, उस कमरे तक गया जिसमें आज रात रस बरसने वाला था, टॉर्च बंद कर दी और हल्के से सटाये हुए दरवाजे को खोलकर अंदर दाखिल हो गया और सिटकनी लगा दी। बाहर का दरवाजा वो अंदर से पहले ही बंद कर आया था।
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बिरजू जैसे ही दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ और पलटकर दरवाजे की सिटकनी लगाई महेन्द्र जो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ था धीरे से अंधेरे में नीचे उतरकर बायीं तरफ लेट गया, नीलम मंद मंद हंसने लगी। बिरजू अंदाजे से पलंग तक आया और धीरे से बिस्तर पर लेट गया पलंग पर लेटते ही हल्की चरमराहट की आवाज हुई, ये पलंग बिरजू की शादी की थी जो उसके ससुर ने दी थी उपहार में, काफी पुरानी हो गयी थी पर अब भी मजबूत थी, इसी कमरे में हमेशा रखी रहती थी, काफी लंबी चौड़ी और भारी होने की वजह से कोई इस पलंग को जल्दी अपनी जगह से इधर उधर नही करता था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, सब सोने की कोशिश करने लगे, नीलम बीच में थी महेंद्र बायीं तरफ और बिरजू नीलम से थोड़ा सा दूर दाईं तरफ, नींद किसको आ रही थी, बिरजू ने पैर के पास रखा हल्का चादर उठाया और सर से लेकर पैर तक ओढ़कर लेट गया, कमरे में गुप्प अंधेरा होने के बावजूद भी आंखें अभ्यस्त होने के बाद हल्का हल्का दिख ही रह था।

सब चुपचाप लेटे थे, नीलम का भी आखिरी वक्त पर वाकई में शर्म से बुरा हाल था माना कि सब उसी की इच्छा थी, सब उसने ही किया था पर अब आखिरी वक्त पर उसे भी लज़्ज़ा आ रही थी, महेन्द्र तो बकरी बनकर बायीं तरफ लेटा हुआ था हालांकि वो नीलम से लिपटा हुआ था पर अभी तक वो जितना भी उत्तेजित हुआ था सब मानो छूमंतर सा हो गया था, बिरजू तो दायीं तरफ थोड़ा दूर ही लेटा था। नीलम समझ गयी कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, नीलम ने अपना सीधा हाँथ अंधेरे में सरकाकर अपने बाबू की ओर बढ़ाया और उनकी धोती को पकड़कर हल्का सा खींचकर चुपचाप अपनी तड़प का इशारा किया, बिरजु ने अपनी बेटी के हाँथ को अंधेरे में अपने हाँथ में लिया और हल्का सा दबाकर थोड़ा सा सब्र रखने का इशारा किया। नीलम ने फिर हाँथ वापिस खींच लिया और महेन्द्र के कान में धीरे से बोला- भैया

ये सुनते ही महेन्द्र को अजीब सी सनसनाहट हुई, लन्ड में उसके हल्का सा कंपन हुआ, नीलम सीधी पीठ के बल लेटी थी और महेंद्र दायीं तरफ करवट लेकर नीलम के बायीं तरफ लेटा था, नीलम ने बहुत धीरे से महेन्द्र को भैया बोला था पर फिर भी बिरजू तक आवाज गयी, बिरजू जो अब सबकुछ जान चुका था उसको ज्यादा कुछ खास अचंभा नही हुआ, वो जनता था कि नीलम शरारती है कुछ न कुछ वो करेगी ही, सब कुछ बिरजू के सामने खुल ही गया था बस दिखावे की एक लज़्ज़ा की दीवार थी पर इस दीवार को तोड़कर निर्लज्ज कोई नही होना चाहता था क्योंकि असली मजा तो शर्म में ही है।

महेन्द्र ने भी धीरे से नीलम के कान में सकुचाते हुए बोला- दीदी......मेरी प्यारी बहना

इतना कहकर महेन्द्र नीलम को चूमने लगा, धीरे धीरे वो नीलम के ऊपर चढ़ने लगा नीलम भी बड़े आराम से शर्माते हुए महेन्द्र के नीचे आने लगी, शर्म झिझक और असीम वासना का मिला जुला अहसाह देखते ही बन रहा था, जीवन में आज पहली बार महेन्द्र अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ रहा था और बगल में उसका ससुर लेटा था जो कि जग रहा था, यही हाल नीलम का भी हो चला था किसी ने सच कहा है सोचने और वास्तविक रूप में करने में काफी फर्क होता है, कितना अजीब लग रहा था कि उसके बाबू की मौजूदगी में महेन्द्र उसके ऊपर चढ़ रहा था, और बहन भाई की कल्पना की उमंग ने अलग ही रोमांच बदन में भर दिया था, देखते ही देखते महेन्द्र का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया क्योंकि नीलम उसके कान में धीरे धीरे भैया.....मेरा भाई...बोले ही जा रही थी, वो संकोच की वजह से बहन कम ही बोल रहा था पर व्यभिचार के इस लज़्ज़त को महसूस कर अतिउत्तेजित होता जा रहा था, धीरे धीरे नीलम और महेन्द्र की झिझक कम होती गयी और वो दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे, महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था वो उसके बदन को बेतहाशा सहला रहा था, नीलम ने भी शर्माते शर्माते महेन्द्र को अपनी बाहों में भर ही लिया और प्रतिउत्तर में उसके होठों को चूसने लगी, एकाएक महेन्द्र का हाँथ नीलम की 34 साइज की सख्त हो चुकी चूची से जा टकराया तो उसने तुरंत ब्लॉउज में कैद नीलम की नरम मोटी चूची को जिसके निप्पल अब सख्त हो चुके थे अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम हल्का सा सिसक गयी, महेन्द्र दोनों हांथों से नीलम की दोनों चुचियों को दबाने लगा, नीलम घुटी घुटी आवाज में हल्का हल्का कसमसाने लगी, उत्तेजना बदन में हिलोरें मारने लगी, नीलम को उत्तेजना इस बात से ज्यादा हो रही थी कि बाबू उसके बगल में ही लेटे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं और ये अब कितना रोमांचक होने लगा है, कमरे में गुप्प अंधेरा था अगर उजाला होता तो शायद ये सम्भव न हो पाता, लज़्ज़ा की चादर ओढ़े अब धीरे धीरे काम वासना तन और मन पर कब्ज़ा करने लगी थी, नीलम अब खुलने लगी, महेंद्र लगातार उसकी नरम नरम गुदाज चूचीयों को दोनों हांथों से मसले जा रहा था, नीलम के खड़े हो चुके निप्पल को पकड़कर वो मसलने लगा, ऐसा करने से एक सनसनी नीलम के बदन में ऊपर से नीचे तक दौड़ गयी, कराह कर वो दबी आवाज में बोली- आआआआहहहह...भैय्या.....धीरे से

बूर नीलम की गरम तो पहले से ही थी पर अब मारे जोश के पिघलने सी लगी, नीलम का आधे से ज्यादा ध्यान अपने बाबू पर था, उसने अपनी मांसल जाँघों को फैलाकर पैर को उठाया और महेन्द्र की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया, नीलम का महेन्द्र को इस तरह स्वीकारना बहुत अच्छा लगा, महेन्द्र नीलम के चेहरे को बेताहाशा चूमते हुए गर्दन पर आ गया नीलम बड़े प्यार से अपना बदन महेन्द्र को सौंपे जा रही थी, महेन्द्र ने नीलम की गर्दन पर गीले गीले चुम्बन देना शुरू कर दिया तो मस्ती में नीलम ने भी अपनी आंखें बंद करते हुए सर को ऊपर की तरफ पीछे करते हुए अपनी गर्दन को उभारकर महेन्द्र को परोस दिया, दोनों लाख कोशिश कर रहे थे कि आवाज न हो पर फिर भी चूमने सिसकने की हल्की हल्की आवाज हो ही रही थी।

चूमते चूमते महेन्द्र नीचे आया और नीलम के ब्लॉउज का बटन खोलने लगा अब नीलम मारे उत्तेजना के सिसक उठी क्योंकि अब वो निवस्त्र होने वाली थी, बगल में उसके बाबू लेटे थे, दोनों दुग्धकलश अब उसके बेपर्दा होने वाले थे, नीलम ने खुद ही अपने दोनों हाँथ को उठाकर सर के ऊपर रख लिया जिससे ब्लाउज में कसी उसकी दोनों चूचीयाँ और ऊपर को उठ गई, महेंद्र ने पहले तो झुककर नीलम की काँख में मुँह लगाकर उसके पसीने को अच्छे से सुंघा फिर ब्लॉउज के ऊपर से ही काँख में लगे पसीने को चाटने लगा, थोड़ी गर्मी की वजह से, थोड़ा उमस की वजह से और ज्यादा वासना और उत्तेजना की वजह से तीनों पसीने से तर भी हो रहे थे, नीलम का पसीना अच्छे से चाटने के बाद महेन्द्र ने एक ही झटके में नीलम के ब्लॉउज के सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल पलट दिया और ब्रा में कैद नीलम की उत्तेजना से ऊपर नीचे होती हुई दोनों मोटी मोटी 34 साइज की चुचियों के बीच की घाटी में सिसकते हुए मुँह डालकर ताबड़तोड़ चूमते हुए धीरे से बोला- ओह बहना.....और एक हाँथ से दायीं चूची को हथेली में भरकर मीजने लगा, नीलम ने कराहते हुए हाथ बढ़ा कर थोड़ा दूर लेटे अपने बाबू का हाँथ पकड़ लिया और जोश में उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर दबाने लगी। इधर महेंद्र मानो नीलम की चूचीयों को अपनी बहन सुनीता की चूची समझते हुए उनपर टूट ही पड़ा जिससे नीलम थोड़ा जोर जोर सिसकने लगी और अपने दोनों पैर के अंगूठों को उत्तेजना में तेज तेज आपस में रगड़ने लगी।

बिरजू सर तक पूरा चादर ओढ़े अभी तक सन्न पड़ा हुआ उत्तेजना में लाल हो चुका था उसका 8 इंच का तगड़ा काला लन्ड फुंकार मारने लगा। वो बस नीलम के नरम नरम हांथों को मारे उत्तेजना के हौले हौले दबा रहा था लेकिन अपने बाबू की केवल इतनी सी छुवन नीलम को उत्तेजना से भर दे रही थी, अंधेरे में एक तरफ उसका पति उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूचीयाँ खोले मसल रहा था और दूसरी तरफ उसके बाबू सिर्फ उसके नरम हाथ को प्यार से सहलाकर काम चला रहे थे।

महेन्द्र ने हाथ पीछे ले जाकर नीलम की ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसकी ब्रा को निकालकर पलंग से नीचे ही गिरा दिया, नीलम ने हल्का सा उठकर खुद ही अपना ब्लॉउज भी अंधेरे में निकाल दिया अब वो सिर्फ साड़ी में रह गयी थी कमर से ऊपर का हिस्सा उसका पूरा निवस्त्र हो चुका था, झट से वो लेट गयी और इन सभी क्रिया में उसके माध्यम आकर के खरबूजे समान उन्नत दोनों चूचीयाँ इधर उधर स्वच्छंद हिलकर महेंद्र को पागल कर गयी, जैसे ही वो लेटी उसकी दोनों चूचीयाँ किसी विशाल गुब्बारे की तरह उसकी छाती पर इधर उधर हिलने लगे, महेंद्र से अब सब्र कहाँ होने वाला था झट से वो उन सपंज जैसी उछलती मचलती चूचीयों पर टूट पड़ा और बेसब्रों की तरह चूचीयों पर पहले तो जहां तहां चूमने लगा फिर एकाएक बारी बारी से दोनों निप्पल को पीने लगा, नीलम के निप्पल तो फूलकर किसी जामुन की तरह बड़े हो गए थे और वासना में कड़क होकर खड़े हो चुके थे, कुछ देर तक वो नीलम की चूचीयाँ पीता और मसलता दबाता रहा फिर नाभी को चूमने लगा नीलम मस्ती में एक हाँथ से उसका सर सहलाने लगी और दूसरा हाँथ जो उसके बाबू के हाँथ में था उससे वो अपने बाबू के हाँथ को सहला रही थी, अब उससे रहा नही जा रहा था वो अब बस खुद को दो मर्दों के बीच मस्ती में डूबी एक औरत समझ रही थी जिसको सिर्फ और सिर्फ अब लन्ड चाहिए था, एक के बाद एक लन्ड।

उसकी शर्म और झिझक अब काफी हद तक गायब हो चुकी थी, उसने जानबूझ कर धीरे से कई बार महेन्द्र को भैया बोला ताकि महेन्द्र ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी अपना काम करके हटे और फिर आज की रात असली पाप हो।

इधर बिरजू भी चादर में से अपना मुँह निकालकर नीलम को देखने लगा नीलम ने सर घुमाकर अपने बाबू को देखा तो वो उसकी तरफ ही देख रहे थे नीलम ने उनके हाँथ से अपना हाथ छुड़ाकर उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख दी और अंधेरे में बड़े प्यार से उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रगड़ने लगी मानो कह रही हो कि मुझे अपने बदन पर एक एक अंग पर इन होंठों से चुम्बन चाहिए।

इधर बिरजू ने चादर के अंदर ही दूसरे हाँथ से अपनी धोती खोल कर काला विशाल लन्ड बाहर ही निकाल लिया था।

महेन्द्र के सब्र का बांध अब टूट चुका था तो उसने नीलम की साड़ी को नीचे से ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया शर्म और झिझक तो अब भी उसके मन में थी पर वासना भी भरपूर थी, नीलम अब और भी मचल उठी क्योंकि अब उसकी जाँघों के बीच की जन्नत उजागर होने वाली थी, महेंद्र ने साड़ी को आखिर कुछ ही पलों में उठाकर कमर तक कर दिया और अपने हांथों से नीलम की दोनों मांसल जाँघों और उसमे कसी कच्छी को ऊपर से ही सहलाने लगा जैसे ही उसने नीलम की कच्छी के ऊपर से ही उसकी बूर पर हाँथ रखा तो वह वहां भरपूर गीलापन महसूस कर मदहोश हो गया और झुककर कच्छी के ऊपर से ही बूर के रस को चाटने लगा, अंधेरे में इस अचानक हमले से नीलम सिसकते हुए चिहुँक पड़ी और ओह मेरे भैया कहते हुए उसके सर को सहलाने लगी, कुछ देर महेन्द्र झुककर ऐसे ही नीलम की जाँघों और कच्छी के ऊपर से महकती रसीली बूर को चाटता रहा जब नीलम ने नही बर्दास्त हुआ तो उसने बिरजू के होंठों के अंदर अपनी एक उंगली घुसेड़ते हुए महेंद्र से धीरे से बोला- भैया खोलो न कच्छी अपनी बहना की कब तक हम ऐसे ही शर्माते रहेंगे अब बर्दास्त नही होता।

ये सुनते ही बिरजु धीरे से पलंग से उठा और जल्दी से अंधेरे में खुली धोती दुबारा लपेटी और जानबूझकर धीरे से कमरे से बाहर जाने लगा वो जनता था कि जबतक वो यहां रहेगा महेन्द्र खुलकर नीलम को नही चोद पायेगा, बस थोड़ी देर के लिए वो बाहर जाना चाहता था हालांकि नीलम पहले तो चुपचाप उनके हाँथ को पकड़कर रोकना चाही पर फिर वो भी समझ गयी और हाँथ छोड़ दिया, बिरजू धीरे से कमरे से बाहर निकल गया और बाहर आकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।

महेंद्र भी ये जान गया कि बाबू जी बाहर क्यों चले गए, आखिर उनके अंदर एक मर्यादा थी, महेंद्र तो मानो अब गरज उठा और नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम भी उसका साथ देने लगी धीरे से बोली- भैया कच्छी खोलो न।

महेन्द्र- कच्छी खोलूं दीदी, देख लूं आपकी वो

नीलम सिसकते हुए- हाँ मेरे भाई खोल के देख न जल्दी अपनी बहन की बूर

नीलम के मुँह से बूर शब्द सुनकर महेंद्र बौरा गया

महेन्द्र- पर दीदी मेरे पास रोशनी नही है कैसे देखुंगा।

नीलम- रुक मेरे भाई रुक बाबू की छोटी टॉर्च यहीं होगी

नीलम ने थोड़ा उठकर बिस्तर पे टटोला तो टोर्च हाँथ लग गयी उसने टॉर्च को जला कर अपनी जाँघों के बीच दिखाया और बोली- लो भैया अब उतारो मेरी कच्छी, और देखी मेरी बूर

महेंद्र छोटी टॉर्च की हल्की नीली रोशनी में नीलम की मोटी मोटी जांघे और उसमे कसी छोटी सी कच्छी और उसपर बूर की जगह पर गीलापन देखकर मदहोश हो गया उसने झट से नीलम की कच्छी को पकड़ा और जाँघों से नीचे तक खींच कर उतार दिया, हल्के काले काले बालों से भरी नीलम की रस बहाती वासना में फूलकर हुई पावरोटी की तरह महकती बूर को देखकर महेन्द्र मंत्रमुग्ध सा कुछ देर बूर की आभा को देखता ही रहा।

नीलम- भैया कैसी है बहन की बूर?

महेंद्र- मत पूछ मेरी बहन तेरी बूर तो जन्नत है।
बनावट इसकी कितनी प्यारी है......कितनी मादक है तेरी बूर....दीदी।

बस फिर सिसकते हुए महेंद्र बूर पर टूट पड़ा नीलम ने झट से कच्छी को पैरों से निकाल फेंका और दोनों पैर फैलाकर मखमली बूर महेन्द्र के आगे परोस दी महेन्द्र "ओह मेरी बहना क्या बूर है तेरी" कहता हुआ नीलम की बूर पर टूट पड़ा, नीलम भी एक मादक सिसकारी लेते हुए "आह मेरे भैया चाटो न फिर अपनी बहना की बूर, बहुत प्यासी है आपके लिए", महेन्द्र के बालों को अपनी बूर चटवाते हुए सहलाने लगी।
 
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बिरजू जैसे ही दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ और पलटकर दरवाजे की सिटकनी लगाई महेन्द्र जो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ था धीरे से अंधेरे में नीचे उतरकर बायीं तरफ लेट गया, नीलम मंद मंद हंसने लगी। बिरजू अंदाजे से पलंग तक आया और धीरे से बिस्तर पर लेट गया पलंग पर लेटते ही हल्की चरमराहट की आवाज हुई, ये पलंग बिरजू की शादी की थी जो उसके ससुर ने दी थी उपहार में, काफी पुरानी हो गयी थी पर अब भी मजबूत थी, इसी कमरे में हमेशा रखी रहती थी, काफी लंबी चौड़ी और भारी होने की वजह से कोई इस पलंग को जल्दी अपनी जगह से इधर उधर नही करता था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, सब सोने की कोशिश करने लगे, नीलम बीच में थी महेंद्र बायीं तरफ और बिरजू नीलम से थोड़ा सा दूर दाईं तरफ, नींद किसको आ रही थी, बिरजू ने पैर के पास रखा हल्का चादर उठाया और सर से लेकर पैर तक ओढ़कर लेट गया, कमरे में गुप्प अंधेरा होने के बावजूद भी आंखें अभ्यस्त होने के बाद हल्का हल्का दिख ही रह था।

सब चुपचाप लेटे थे, नीलम का भी आखिरी वक्त पर वाकई में शर्म से बुरा हाल था माना कि सब उसी की इच्छा थी, सब उसने ही किया था पर अब आखिरी वक्त पर उसे भी लज़्ज़ा आ रही थी, महेन्द्र तो बकरी बनकर बायीं तरफ लेटा हुआ था हालांकि वो नीलम से लिपटा हुआ था पर अभी तक वो जितना भी उत्तेजित हुआ था सब मानो छूमंतर सा हो गया था, बिरजू तो दायीं तरफ थोड़ा दूर ही लेटा था। नीलम समझ गयी कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, नीलम ने अपना सीधा हाँथ अंधेरे में सरकाकर अपने बाबू की ओर बढ़ाया और उनकी धोती को पकड़कर हल्का सा खींचकर चुपचाप अपनी तड़प का इशारा किया, बिरजु ने अपनी बेटी के हाँथ को अंधेरे में अपने हाँथ में लिया और हल्का सा दबाकर थोड़ा सा सब्र रखने का इशारा किया। नीलम ने फिर हाँथ वापिस खींच लिया और महेन्द्र के कान में धीरे से बोला- भैया

ये सुनते ही महेन्द्र को अजीब सी सनसनाहट हुई, लन्ड में उसके हल्का सा कंपन हुआ, नीलम सीधी पीठ के बल लेटी थी और महेंद्र दायीं तरफ करवट लेकर नीलम के बायीं तरफ लेटा था, नीलम ने बहुत धीरे से महेन्द्र को भैया बोला था पर फिर भी बिरजू तक आवाज गयी, बिरजू जो अब सबकुछ जान चुका था उसको ज्यादा कुछ खास अचंभा नही हुआ, वो जनता था कि नीलम शरारती है कुछ न कुछ वो करेगी ही, सब कुछ बिरजू के सामने खुल ही गया था बस दिखावे की एक लज़्ज़ा की दीवार थी पर इस दीवार को तोड़कर निर्लज्ज कोई नही होना चाहता था क्योंकि असली मजा तो शर्म में ही है।

महेन्द्र ने भी धीरे से नीलम के कान में सकुचाते हुए बोला- दीदी......मेरी प्यारी बहना

इतना कहकर महेन्द्र नीलम को चूमने लगा, धीरे धीरे वो नीलम के ऊपर चढ़ने लगा नीलम भी बड़े आराम से शर्माते हुए महेन्द्र के नीचे आने लगी, शर्म झिझक और असीम वासना का मिला जुला अहसाह देखते ही बन रहा था, जीवन में आज पहली बार महेन्द्र अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ रहा था और बगल में उसका ससुर लेटा था जो कि जग रहा था, यही हाल नीलम का भी हो चला था किसी ने सच कहा है सोचने और वास्तविक रूप में करने में काफी फर्क होता है, कितना अजीब लग रहा था कि उसके बाबू की मौजूदगी में महेन्द्र उसके ऊपर चढ़ रहा था, और बहन भाई की कल्पना की उमंग ने अलग ही रोमांच बदन में भर दिया था, देखते ही देखते महेन्द्र का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया क्योंकि नीलम उसके कान में धीरे धीरे भैया.....मेरा भाई...बोले ही जा रही थी, वो संकोच की वजह से बहन कम ही बोल रहा था पर व्यभिचार के इस लज़्ज़त को महसूस कर अतिउत्तेजित होता जा रहा था, धीरे धीरे नीलम और महेन्द्र की झिझक कम होती गयी और वो दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे, महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था वो उसके बदन को बेतहाशा सहला रहा था, नीलम ने भी शर्माते शर्माते महेन्द्र को अपनी बाहों में भर ही लिया और प्रतिउत्तर में उसके होठों को चूसने लगी, एकाएक महेन्द्र का हाँथ नीलम की 34 साइज की सख्त हो चुकी चूची से जा टकराया तो उसने तुरंत ब्लॉउज में कैद नीलम की नरम मोटी चूची को जिसके निप्पल अब सख्त हो चुके थे अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम हल्का सा सिसक गयी, महेन्द्र दोनों हांथों से नीलम की दोनों चुचियों को दबाने लगा, नीलम घुटी घुटी आवाज में हल्का हल्का कसमसाने लगी, उत्तेजना बदन में हिलोरें मारने लगी, नीलम को उत्तेजना इस बात से ज्यादा हो रही थी कि बाबू उसके बगल में ही लेटे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं और ये अब कितना रोमांचक होने लगा है, कमरे में गुप्प अंधेरा था अगर उजाला होता तो शायद ये सम्भव न हो पाता, लज़्ज़ा की चादर ओढ़े अब धीरे धीरे काम वासना तन और मन पर कब्ज़ा करने लगी थी, नीलम अब खुलने लगी, महेंद्र लगातार उसकी नरम नरम गुदाज चूचीयों को दोनों हांथों से मसले जा रहा था, नीलम के खड़े हो चुके निप्पल को पकड़कर वो मसलने लगा, ऐसा करने से एक सनसनी नीलम के बदन में ऊपर से नीचे तक दौड़ गयी, कराह कर वो दबी आवाज में बोली- आआआआहहहह...भैय्या.....धीरे से

बूर नीलम की गरम तो पहले से ही थी पर अब मेरे जोश के पिघलने सी लगी, नीलम का आधे से ज्यादा ध्यान अपने बाबू पर था, उसने अपनी मांसल जाँघों को फैलाकर पैर को उठाया और महेन्द्र की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया, नीलम का महेन्द्र को इस तरह स्वीकारना बहुत अच्छा लगा, महेन्द्र नीलम के चेहरे को बेताहाशा चूमते हुए गर्दन पर आ गया नीलम बड़े प्यार से अपना बदन महेन्द्र को सौंपे जा रही थी, महेन्द्र ने नीलम की गर्दन पर गीले गीले चुम्बन देना शुरू कर दिया तो मस्ती में नीलम ने भी अपनी आंखें बंद करते हुए सर को ऊपर की तरफ पीछे करते हुए अपनी गर्दन को उभारकर महेन्द्र को परोस दिया, दोनों लाख कोशिश कर रहे थे कि आवाज न हो पर फिर भी चूमने सिसकने की हल्की हल्की आवाज हो ही रही थी।

चूमते चूमते महेन्द्र नीचे आया और नीलम के ब्लॉउज का बटन खोलने लगा अब नीलम मारे उत्तेजना के सिसक उठी क्योंकि अब वो निवस्त्र होने वाली थी, बगल में उसके बाबू लेटे थे, दोनों दुग्धकलश अब उसके बेपर्दा होने वाले थे, नीलम ने खुद ही अपने दोनों हाँथ को उठाकर सर के ऊपर रख लिया जिससे ब्लाउज में कसी उसकी दोनों चूचीयाँ और ऊपर को उठ गई, महेंद्र ने पहले तो झुककर नीलम की काँख में मुँह लगाकर उसके पसीने को अच्छे से सुंघा फिर ब्लॉउज के ऊपर से ही काँख में लगे पसीने को चाटने लगा, थोड़ी गर्मी की वजह से, थोड़ा उमस की वजह से और ज्यादा वासना और उत्तेजना की वजह से तीनों पसीने से तर भी हो रहे थे, नीलम का पसीना अच्छे से चाटने के बाद महेन्द्र ने एक ही झटके में नीलम के ब्लॉउज के सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल पलट दिया और ब्रा में कैद नीलम की उत्तेजना से ऊपर नीचे होती हुई दोनों मोटी मोटी 34 साइज की चुचियों के बीच की घाटी में सिसकते हुए मुँह डालकर ताबड़तोड़ चूमते हुए धीरे से बोला- ओह बहना.....और एक हाँथ से दायीं चूची को हथेली में भरकर मीजने लगा, नीलम ने कराहते हुए हाथ बढ़ा कर थोड़ा दूर लेटे अपने बाबू का हाँथ पकड़ लिया और जोश में उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर दबाने लगी। इधर महेंद्र मानो नीलम की चूचीयों को अपनी बहन सुनीता की चूची समझते हुए उनपर टूट ही पड़ा जिससे नीलम थोड़ा जोर जोर सिसकने लगी और अपने दोनों पैर के अंगूठों को उत्तेजना में तेज तेज आपस में रगड़ने लगी।

बिरजू सर तक पूरा चादर ओढ़े अभी तक सन्न पड़ा हुआ उत्तेजना में लाल हो चुका था उसका 8 इंच का तगड़ा काला लन्ड फुंकार मारने लगा। वो बस नीलम के नरम नरम हांथों को मारे उत्तेजना के हौले हौले दबा रहा था लेकिन अपने बाबू की केवल इतनी सी छुवन नीलम को उत्तेजना से भर दे रही थी, अंधेरे में एक तरफ उसका पति उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूचीयाँ खोले मसल रहा था और दूसरी तरफ उसके बाबू सिर्फ उसके नरम हाथ को प्यार से सहलाकर काम चला रहे थे।

महेन्द्र ने हाथ पीछे ले जाकर नीलम की ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसकी ब्रा को निकालकर पलंग से नीचे ही गिरा दिया, नीलम ने हल्का सा उठकर खुद ही अपना ब्लॉउज भी अंधेरे में निकाल दिया अब वो सिर्फ साड़ी में रह गयी थी कमर से ऊपर का हिस्सा उसका पूरा निवस्त्र हो चुका था, झट से वो लेट गयी और इन सभी क्रिया में उसके माध्यम आकर के खरबूजे समान उन्नत दोनों चूचीयाँ इधर उधर स्वच्छंद हिलकर महेंद्र को पागल कर गयी, जैसे ही वो लेटी उसकी दोनों चूचीयाँ किसी विशाल गुब्बारे की तरह उसकी छाती पर इधर उधर हिलने लगे, महेंद्र से अब सब्र कहाँ होने वाला था झट से वो उन सपंज जैसी उछलती मचलती चूचीयों पर टूट पड़ा और बेसब्रों की तरह चूचीयों पर पहले तो जहां तहां चूमने लगा फिर एकाएक बारी बारी से दोनों निप्पल को पीने लगा, नीलम के निप्पल तो फूलकर किसी जामुन की तरह बड़े हो गए थे और वासना में कड़क होकर खड़े हो चुके थे, कुछ देर तक वो नीलम की चूचीयाँ पीता और मसलता दबाता रहा फिर नाभी को चूमने लगा नीलम मस्ती में एक हाँथ से उसका सर सहलाने लगी और दूसरा हाँथ जो उसके बाबू के हाँथ में था उससे वो अपने बाबू के हाँथ को सहला रही थी, अब उससे रहा नही जा रहा था वो अब बस खुद को दो मर्दों के बीच मस्ती में डूबी एक औरत समझ रही थी जिसको सिर्फ और सिर्फ अब लन्ड चाहिए था, एक के बाद एक लन्ड।

उसकी शर्म और झिझक अब काफी हद तक गायब हो चुकी थी, उसने जानबूझ कर धीरे से कई बार महेन्द्र को भैया बोला ताकि महेन्द्र ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी अपना काम करके हटे और फिर आज की रात असली पाप हो।

इधर बिरजू भी चादर में से अपना मुँह निकालकर नीलम को देखने लगा नीलम ने सर घुमाकर अपने बाबू को देखा तो वो उसकी तरफ ही देख रहे थे नीलम ने उनके हाँथ से अपना हाथ छुड़ाकर उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख दी और अंधेरे में बड़े प्यार से उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रगड़ने लगी मानो कह रही हो कि मुझे अपने बदन पर एक एक अंग पर इन होंठों से चुम्बन चाहिए।

इधर बिरजू ने चादर के अंदर ही दूसरे हाँथ से अपनी धोती खोल कर काला विशाल लन्ड बाहर ही निकाल लिया था।

महेन्द्र के सब्र का बांध अब टूट चुका था तो उसने नीलम की साड़ी को नीचे से ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया शर्म और झिझक तो अब भी उसके मन में थी पर वासना भी भरपूर थी, नीलम अब और भी मचल उठी क्योंकि अब उसकी जाँघों के बीच की जन्नत उजागर होने वाली थी, महेंद्र ने साड़ी को आखिर कुछ ही पलों में उठाकर कमर तक कर दिया और अपने हांथों से नीलम की दोनों मांसल जाँघों और उसमे कसी कच्छी को ऊपर से ही सहलाने लगा जैसे ही उसने नीलम की कच्छी के ऊपर से ही उसकी बूर पर हाँथ रखा तो वह वहां भरपूर गीलापन महसूस कर मदहोश हो गया और झुककर कच्छी के ऊपर से ही बूर के रस को चाटने लगा, अंधेरे में इस अचानक हमले से नीलम सिसकते हुए चिहुँक पड़ी और ओह मेरे भैया कहते हुए उसके सर को सहलाने लगी, कुछ देर महेन्द्र झुककर ऐसे ही नीलम की जाँघों और कच्छी के ऊपर से महकती रसीली बूर को चाटता रहा जब नीलम ने नही बर्दास्त हुआ तो उसने बिरजू के होंठों के अंदर अपनी एक उंगली घुसेड़ते हुए महेंद्र से धीरे से बोला- भैया खोलो न कच्छी अपनी बहना की कब तक हम ऐसे ही शर्माते रहेंगे अब बर्दास्त नही होता।

ये सुनते ही बिरजु धीरे से पलंग से उठा और जल्दी से अंधेरे में खुली धोती दुबारा लपेटी और जानबूझकर धीरे से कमरे से बाहर जाने लगा वो जनता था कि जबतक वो यहां रहेगा महेन्द्र खुलकर नीलम को नही चोद पायेगा, बस थोड़ी देर के लिए वो बाहर जाना चाहता था हालांकि नीलम पहले तो चुपचाप उनके हाँथ को पकड़कर रोकना चाही पर फिर वो भी समझ गयी और हाँथ छोड़ दिया, बिरजू धीरे से कमरे से बाहर निकल गया और बाहर आकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।

महेंद्र भी ये जान गया कि बाबू जी बाहर क्यों चले गए, आखिर उनके अंदर एक मर्यादा थी, महेंद्र तो मानो अब गरज उठा और नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम भी उसका साथ देने लगी धीरे से बोली- भैया कच्छी खोलो न।

महेन्द्र- कच्छी खोलूं दीदी, देख लूं आपकी वो

नीलम सिसकते हुए- हाँ मेरे भाई खोल के देख न जल्दी अपनी बहन की बूर

नीलम के मुँह से बूर शब्द सुनकर महेंद्र बौरा गया

महेन्द्र- पर दीदी मेरे पास रोशनी नही है कैसे देखुंगा।

नीलम- रुक मेरे भाई रुक बाबू की छोटी टॉर्च यहीं होगी

नीलम ने थोड़ा उठकर बिस्तर पे टटोला तो टोर्च हाँथ लग गयी उसने टॉर्च को जला कर अपनी जाँघों के बीच दिखाया और बोली- लो भैया अब उतारो मेरी कच्छी, और देखी मेरी बूर

महेंद्र छोटी टॉर्च की हल्की नीली रोशनी में नीलम की मोटी मोटी जांघे और उसमे कसी छोटी सी कच्छी और उसपर बूर की जगह पर गीलापन देखकर मदहोश हो गया उसने झट से नीलम की कच्छी को पकड़ा और जाँघों से नीचे तक खींच कर उतार दिया, हल्के काले काले बालों से भरी नीलम की रस बहाती वासना में फूलकर हुई पावरोटी की तरह महकती बूर को देखकर महेन्द्र मंत्रमुग्ध सा कुछ देर बूर की आभा को देखता ही रहा।

नीलम- भैया कैसी है बहन की बूर?

महेंद्र- मत पूछ मेरी बहन तेरी बूर तो जन्नत है।
बनावट इसकी कितनी प्यारी है......कितनी मादक है तेरी बूर....दीदी।

बस फिर सिसकते हुए महेंद्र बूर पर टूट पड़ा नीलम ने झट से कच्छी को पैरों से निकाल फेंका और दोनों पैर फैलाकर मखमली बूर महेन्द्र के आगे परोस दी महेन्द्र "ओह मेरी बहना क्या बूर है तेरी" कहता हुआ नीलम की बूर पर टूट पड़ा, नीलम भी एक मादक सिसकारी लेते हुए "आह मेरे भैया चाटो न फिर अपनी बहना की बूर, बहुत प्यासी है आपके लिए", महेन्द्र के बालों को अपनी बूर चटवाते हुए सहलाने लगी।


Hott 🤩
 
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