Update- 70
नीलम और महेन्द्र लालटेन की रोशनी में कागज में लिखा बिरजू का जवाब पढ़ने लगे, कागज मे बिरजू ने लिखा था-
" बेटी हिम्मत तो नही हो रही ऐसा कदम उठाने की, ये एक बाप और बेटी दोनों के लिए ही बहुत शर्म की बात है क्योंकि ये पाप ही नही महापाप है समाज की नज़र में गलत है, समाज इसको स्वीकार नही करेगा। परंतु जब बेटी की इच्छा की पूर्ति के बारे में सोच रहा हूँ तो न जाने क्यों सबकुछ ताक पर रखकर इसको अंजाम देने से खुद को नही रोक पा रहा हूँ, दिल बार बार यही कह रहा है कि माना कि ये गलत है, महापाप है, पर बेटी की इच्छा भी तो कुछ मायने रखती है, एक पिता का फर्ज होता है कि वो अपने बच्चों की इच्छा की पूर्ति करे, कम से कम जो उसके सामर्थ्य में है वो तो करे ही, कभी कभी कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं जो हमे आनेवाली जिंदगी में लगने वाले लांछन से बचाती हैं, शुरू में भले ही वो गलत लगे पर उसके दूरगामी सकारात्मक लाभ होते हैं और फिर मन ये कहता है कि चोरी तो हर कोई करता है पर चोर वही होता है जो पकड़ा जाता है, इस दुनियां में जो आया है वो कहीं न कहीं कभी न कभी जाने अनजाने में छोटा या बड़ा पाप करता ही है, तो फिर अपनी ही बेटी की इच्छा पूर्ति के लिए अगर ये पाप का कदम उठाना पड़े तो मैं इससे पीछे कैसे हटूं, आखिर मेरी बेटी मुझे इतना चाहती है कि वो मेरी सीरत को एक नई जिंदगी में पिरोकर इस दुनियां में लाना चाहती है, उसे संजो कर रखना चाहती है तो ये मेरे लिए उसका अगाढ़ प्रेम दर्शाता है वरना आजकल बेटियां कहाँ ऐसा सोचती हैं, मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली, जो मेरी निशानी चाहती है, फिर सोचता हूँ कि ये पापकर्म अगर हमेशा गुप्त रहेगा तो पता ही किसको चलेगा और मेरी बेटी की इच्छा पूर्ति भी हो जाएगी, एक बार किसी अच्छे कर्म के लिए गुप्त रूप से किया गया पाप स्वीकार है मुझे, एक बार करने में कोई बुराई नही है इसलिए तुम सो जाना मैं रात को आऊंगा पलंग पर। पर ये ध्यान रखना की कभी तुम्हारी अम्मा को ये पता न लगे कि हमने एक रात मिलकर इस पाप को किया था, ये राज सिर्फ हमेशा हमारे ही बीच रहेगा, बस बेचैनी इस बात की हो रही है कि मुझे तुम्हे एक स्त्री के रूप में ग्रहण करने में अपार ग्लानि हो रही है, कैसे कर पाऊंगा मैं ये सब, जो मेरी बेटी है मेरी सगी बेटी उसके साथ वो सब जो एक पुरुष स्त्री के साथ करता है, पर मैं करूँगा, जैसे भी हो करूँगा, एक बार ही तो करना है, बेटी की खुशी के लिए करना पड़ेगा तो करूँगा और मुझे माफ कर देना दामाद जी, गुप्त रूप से तुम्हारी सहमति को मैं समझ रहा हूँ, तुम सच में घर गृहस्ती को समझने वाले इंसान हो, घरगृहस्थी को बांधकर कैसे चलाया जाता है अपनों की खुशियों के लिए उसमें कैसे कैसे समझौते करने पड़ते है ये तुम्हे अच्छे से आता है इस बात को मैं अब तुम्हारी इस मौन स्वीकृति को देखते हुए समझ गया हूँ, तुम वाकई में समझदार इंसान हो, वरना छोटी छोटी बातों को लेकर लोग बखेड़ा खड़ा कर देते है, अपनो की ही जिंदगी छीन लेते है सिर्फ छोटी छोटी बातों पर ही, उस हिसाब से तो ये बहुत बड़ा पाप है जिसको तुमने मौन स्वीकृति दी है, और मैं ये भी जनता हूँ कि तुम मेरा सामना नही कर पाओगे और न ही मैं इसलिए कमरे में अंधेरा ही रखना, मैं आऊंगा कुछ देर में। मुझे माफ़ कर देना।"
(बिरजू ने जानबूझ कर अंतिम लाइनों में अपने दामाद की बड़ाई कर दी थी ताकि उसे ये लगे कि वो एक महान इंसान है)
नीलम ने कागज को मोड़कर अपनी मुट्ठी में ले।लिया और मारे शर्म से अपना चेहरा अपने घुटनों में छुपाकर बैठ गयी, महेन्द्र ने उसे संभाला और बोला- मैं तो डर रहा था की बाबू जी कहीं गुस्से से लाल पीले होकर हमें ही न डांट लगा दें, पर सच में आज मैंने उन्हें अच्छे से जाना है कि वो कैसे इंसान हैं, सच में वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं, मैं तुम्हारी मन स्थिति समझ सकता हूँ नीलम पर अब आगे बढ़ो, चलो लालटेन बुझा दो सोते हैं।
नीलम कुछ नही बोली कागज को उसने तकिए के नीचे घुसा दिया और लालटेन बुझा कर आई पलंग पर लेट गयी, कमरे में गुप्प अंधेरा हो गया, पलंग काफी चौड़ी थी तीन लोग अगर फासला बनाकर सोएं तो बीच में एक एक हाँथ का फासला बनता था।
महेन्द्र बायीं तरफ लेटा था नीलम ज्यादा से ज्यादा महेन्द्र की तरफ लेटी थी, आधे से लगभग थोड़ा ज्यादा पलंग खाली थी, नीलम ने ऐसा जानबूझ के किया ताकि महेन्द्र को लगे कि ओ शर्म से गड़ी जा रही है, कैसे अपने बाबू की ओर लेटे?
महेन्द्र और नीलम बहुत देर चुप करके लेटे रहे महेंद्र ने नीलम को बाहों में भर लिया नीलम चुपचाप महेन्द्र की बाहों में आ गयी, दोनों पलंग पर ऐसे गुपचुप लेटे थे मानो डर के मारे पलंग में दुबके हों, किसी जंगल में सुनसान भूतिया हवेली के किसी कमरे में पलंग पर दुबके एक दूसरे को एक दूसरे का सहारा बनते हुए ढांढस बंधा रहे हो, और मिन्नतें कर रहे हों कि वो भूत इस कमरे में न आ जाये, हे ईश्वर हमे बचा लो, उनको देखकर तो ऐसा ही लग रहा था पर वास्तव में नीलम तड़प तड़प कर अपने बाबू का अंदर से इंतज़ार कर रही थी और महेन्द्र शर्म से गड़ा जा रहा था, नीलम तो बस दिखावा कर रही थी।
महेंद्र ने नीलम के गालों पर पप्पियाँ लेनी शुरू कर दी तो नीलम थोड़ा कसमसाई और बोली- अभी रुको न, जल्दी भी क्या है, बाबू को आ जाने दो, उनको सो जाने दो तब कर लेना जो करना हो।
महेन्द्र- बाबू यहां सोने के लिए थोड़ी आएंगे।
नीलम- वो तो मैं भी जानती हूं, इसलिए तो शर्म आ रही है।
महेन्द्र- आओ तुम्हारी शर्म दूर कर देता हूँ।
ऐसा कहकर महेंद्र ने नीलम को और कस के बाहों में भर लिया और उसके गालों और होंठों को चूमने लगा, महेन्द्र का लन्ड धीरे धीरे उठने लगा, पर न जाने क्यों नीलम को महेन्द्र के साथ वो मजा नही आ रहा था, उसे तो प्यास थी अपने बाबू की, ऊपरी मन से वो बस महेन्द्र को हल्का हल्का सहला रही थी, महेन्द्र नीलम पर अपना नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा था दरअसल जब वो नीलम को अपनी बहन सुनीता समझ कर चूमता तो उसे अत्यधिक उत्तेजना होती और जब वह बाबू के बारे में सोचता कि अभी वो कमरे में आएंगे तो थोड़ा ठंडा पड़ जाता पर उससे रहा नही गया तो उसने नीलम के कान में कहा- दीदी.....ओ मेरी दीदी
नीलम समझ गयी कि क्या चीज़ महेन्द्र को उत्तेजित कर रही है उसने भी धीरे से फुसफुसाकर कहा- भैया......मेरे भैया जी।
महेन्द्र- दीदी.......दोगी मुझे आज
नीलम- क्या भैया......
महेन्द्र ने झट से नीलम की दहकती बूर जो अपने बाबू का इंतज़ार कर रही थी उसपर हाँथ रखकर पूछ बैठा जिससे नीलम थोड़ा चिहुँक गयी- ये.......ये चाहिए मुझे दीदी
नीलम हल्का सा सिसक गयी और महेन्द्र को रिझाने के लिए बोली- बहन के साथ गलत काम करोगे, कोई भाई अपनी बहन की वो मांगता है भला, पाप है ये।
महेन्द्र- बहन हो तो क्या हुआ, मैं तुम्हे चाहता हूं, तुमसे प्यार करता हूँ, अब अपनी बहन से ही प्यार हो गया है तो क्या करूँ।
नीलम- अपनी ही सगी बहन से कोई भला वो वाला प्यार कर बैठता है, भाई बहन का प्यार तो पवित्र होता है।
महेन्द्र- मैं जानता हूँ दीदी पर बहन भी तो एक लड़की, एक स्त्री ही होती है न और भाई एक पुरुष तो अगर किसी की बहन का सम्मोहित सा करने वाला बदन उसके भाई का मन मोह ले और वो उसे उस रूप में चाहने लगे तो उसमे भाई का क्या दोष..... बोलो दीदी
नीलम ने बहन का रोल अदा करते हुए अपने पति महेन्द्र से बोला- बात तो भैया आप ठीक कह रहे हैं पर समाज इसको मानेगा नही न, समाज की नजर में ये अनैतिक कार्य है, ये पाप है, एक स्त्री और पुरुष में प्यार तब होता है जब उनका मन एक दूसरे के प्रति आसक्त हो जाता है और मन के साथ साथ जब तक तन न मिले तो प्यार पूर्ण नही होता और भाई और बहन समाज के सामने शादी तो कर नही सकते तो वो अपने प्यासे तन को मिलाएंगे कैसे? जैसे भाई अपनी बहन पर आसक्त हो सकता है वैसे बहन भी अपने भाई पर आसक्त हो सकती है पर वो दोनों समाज के डर से अपने तन बदन को नही मिला सकते, ये पाप है, मन तो चुपके चुपके मिला सकते है क्यूंकि किसी के मन में झांककर तो कोई नही देख रहा पर भाई बहन को आपस में अपना तन मिलाते हुए किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा भैया.....अनर्थ।
महेन्द्र ये सुनकर खुश हो गया और धीरे से बोला- दीदी एक बात पुछूं?
नीलम ने सुनीता बनकर बोला- हाँ मेरे भैया बोलो न।
महेन्द्र- तुम बस समाज के डर से इस पाप का आनंद लेने से अपने मन को दबा रही हो न, वैसे तो तुम मेरे साथ वो करना चाहती हो न, वो सुख लेना चाहती हो न?
नीलम ने महेन्द्र को खुश करने के लिए बड़े ही मादक अंदाज़ में उसको अपने ऊपर खींचते हुए बोला- हाँ मेरे भैया......मैं भी अपने सगे भैया के साथ वो करके उसका सुख लेना चाहती हूं, मेरा भी मन करता है कि मेरे भाई का वो कैसा होगा?, कितना बड़ा होगा?, दिखने में कैसा है?, वो पाप मैं भी करना चाहती हूं, पर समाज से डरती हूँ, कहीं पकड़े गए तो।
महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था अत्यधिक उत्तेजना के मारे महेन्द्र का लन्ड बुरी तरह खड़ा होकर नीलम की जाँघों में चुभने लगा, कुछ पल के लिए दोनों भूल गए कि अभी बिरजू आने वाला है।
महेन्द्र नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम मंद मंद हंसने लगी अपने गाल घुमा घुमा के महेन्द्र को चुम्मा देने लगी आखिर वो उसकी बहन का रोल जो प्ले कर रही थी, महेन्द्र ने फिर बोला- दीदी हम छुप छुप के मिलन कर लिया करेंगे न, जब किसी को पता ही नही चलेगा तो डर कैसा, माना की भाई और बहन शादी नही कर सकते पर एक दूसरे को छुप छुपकर भोग तो सकते हैं न, अगर बहन राजी है तो वो अपना रस भाई को छुप छुप कर पिला सकती है न, और सगे भाई के मर्दाना धक्कों का सुख अपनी गहराई में महसूस कर सकती है न.......बोलो न दीदी......हम छुप छुप के करेंगे.......बोलो दोगी न मुझे वो? मैं तुम्हे पूर्ण संतुष्टि दूंगा दीदी सच.....क्योंकि मैं तुम्हारा प्यासा हूँ, अपनी बहन का प्यासा।
महेन्द्र जोश में बहकर बोले जा रहा था, नीलम ने उसकी पीठ को सहलाया और बोली- धीरे से.....धीरे धीरे बोलो.......बाबू आते होंगे, हाँ मैं अपने भैया को अपनी वो दूंगी, चाखाउंगी तुम्हें, दिखाउंगी तुम्हें की वो कैसी होती है, देखने में वो कैसी लगती है, क्यों उसको देखने के लिए एक मर्द तड़पता है, कैसी बनावट होती है उसकी, उसका छेद कैसा होता है (ये लाइन बोलते वक्त नीलम भी सिरह गयी), और उसमे कैसे और कहां डालते हैं, सब दिखाउंगी अपने भैया को छुप छुपकर, मैं भी तड़पती हूँ भैया आपके लिए, ऐसा कहकर नीलम महेन्द्र का लन्ड पकड़ लेती है फिर बोलती है - आपके इसके लिए भैया आपकी बहन भी तड़पती है, बस कहती नही है लेकिन आज कहती हूँ, दूंगी मैं अपने भैया को, आखिर मेरा सगा भाई है वो जब उसकी बहन के पास भी है वो चीज़ तो उसका भाई आखिर उस चीज़ के लिए क्यों इतना तड़पे, मैं अपने भाई को अब नही तड़पने दूंगी, आखिर जब मैं उसको राखी बांधती हूँ तो वो मेरी रक्षा करने का वचन देता है और फिर मैं उसको मिठाई खिलाती हूँ मिठाई का मतलब मीठा ही हुआ न, तो हमारी वो चीज़ भी तो मीठी ही होती है न, क्यों न मैं अपने सगे प्यारे भाई को जो मेरी रक्षा का वचन देता है उसको अपनी असली मिठाई खिलाऊँ, क्यों मैं उसको अपनी असली मिठाई से दूर रखती हूं सिर्फ समाज के डर से, जब वो मेरा सगा भाई है और मेरी उस मिठाई के लिए तड़प रहा है तो क्या बदले में मैं कभी उसको अपनी छोटी सी ये चीज नही चखा सकती, क्या बिगड़ जाएगा इससे मेरा, छुप छुप कर तो सब किया जा ही सकता है, हम लड़कियां बेवजह डरती रहती है, अपने घर में ही अपने सगे भाई का प्यार उन्हें बहुत आसानी से मिल सकता है, इससे बहन और भाई का प्यार और मजबूत ही होगा कम नही होगा और इसीलिए अब मैं अपने भाई को तड़पता हुआ नही देख सकती।
महेन्द्र नीलम की ये बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लन्ड बहन की चाहत में फट ही जायेगा, वो कराहते हुए बोला- ओह दीदी मेरी प्यारी दीदी.....अब मैं रह नही सकता तुम्हारे बिना।
नीलम- थोड़ा आराम से जी मैं सच में सुनीता नही तुम्हारी पत्नी हूँ, और अब बस करो मजा दिया न इतनी देर, अब बस बाद में ऐसा खेल खेलेंगे, अब रुको।
महेन्द्र- अब रुका नही जाता, क्या सच में सुनीता ऐसा ही मेरे बारे में सोचती होगी जैसा तुमने अब तक बोला।
नीलम- नही भी सोचती होगी तो मैं सोचवा दूंगी, अब तुम उसकी फिक्र मत करो।
महेन्द्र खुश होते हुए नीलम को चूमने लगा फिर बोला- और बोलो न भैया, मैं तुम्हारे साथ सुनीता को सोचकर ही संभोग करूँगा।
नीलम- ठीक है जैसा तुम्हारा मन करे, पर ये मेरे बाबू जी के सामने कैसे करोगे और मैं तुम्हे भैया नही बोल पाऊंगी ये फिर किसी और दिन कर लेना।
महेन्द्र ने विनती करते हुए कहा- धीरे धीरे कान में भैया बोल देना न,अब आग लगा दी है तो सब्र नही होता।
नीलम- मैंने कहाँ आग लगाई तुमने ही शुरू किया था....मेरे कान में दीदी ओ दीदी बोलकर।
महेन्द्र को याद आया कि हां शुरू तो उसने ही किया था।
कमरे में गुप्प अंधेरा था, बिरजू के पास एक छोटी सी टॉर्च हुआ करती थी, जो कि एक छोटी sketch colour के पेंसिल जितनी ही थी, उसकी रोशनी ज्यादा नही बस दो फुट के दायरे तक ही होती थी, उसको जलाकर वो घर के अंदर दाखिल हुआ, उस कमरे तक गया जिसमें आज रात रस बरसने वाला था, टॉर्च बंद कर दी और हल्के से सटाये हुए दरवाजे को खोलकर अंदर दाखिल हो गया और सिटकनी लगा दी। बाहर का दरवाजा वो अंदर से पहले ही बंद कर आया था।