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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Update- 64

नीलम भागते हुए रजनी के घर की तरफ गयी, दोपहर के 1 बज रहे थे। रास्ते में ही उसे काकी मिल गयी

काकी- अरे अरे....नीलम, कहाँ उड़ी जा रही है पतंग जैसे? रुक जरा, सांस तो ले ले।

नीलम- अरे काकी सांस गयी भाड़ में, रजनी कहाँ है?

काकी- क्या हुआ, कुछ बताएगी भी। वो तो अभी सो रही है?

नीलम- सो रही है.....इस वक्त.....क्यों? ये भी कोई सोने का वक्त है।

काकी- हाँ वो रात भर सो नही पाई न, बच्ची उसकी काफी परेशान कर रही थी रात में, इसलिए अभी दोपहर में सो गई।

(काकी ने जानबूझ कर नीलम को नही बताया कि रात भर रजनी और उदयराज बाहर थे, दरअसल अच्छे से तो काकी को भी नही पता था कि किस वजह से रजनी और उदयराज रात भर बाहर थे और उन्होंने वहां किया क्या, पर काकी को शक तो था, लेकिन काकी रजनी के पक्ष में ही थी)

नीलम- बच्ची ठीक है न उसकी, क्या हुआ उसे?

काकी- हाँ वैसे तो ठीक है पर सर्दी जुकाम होने की वजह से रात भर न तो वो खुद सोई और न ही रजनी को सोने दी, मैं कोशिश करती उसको लेने की तो मेरे पास भी नही आ रही थी, इसी वजह से रात में ठीक से सो नही पाई दोनों माँ बेटी और अब सो रही हैं। पर तू बता आखिर क्या हुआ ऐसे भागती हुई आ रही है।

नीलम- अरे काकी कुछ नही बस वो चूड़ीवाली आयी थी न तो रजनी ने मुझसे बोला था कि जब कभी आएगी तो मुझे भी बताना, तो मैंने उसको अपने द्वार पे ही रुकवा रखा है, मैंने सोचा की रजनी को भी बुला लाती हूँ वो भी अपनी मनपसंद की चूड़ियां ले लेगी, खैर कोई बात नही अब वो सो रही है तो मैं उसको जगाऊंगी नही, मैं खुद ही उसके लिए खरीद लेती हूं चूड़ियां, मुझे पता है उसे कैसी पसंद आयेगी चूड़ियां।

काकी- हां ठीक है बेटी, तू ही खरीद ले अपनी भी और उसकी भी, दोनों की पसंद एक जैसी ही तो है, अभी उसको जगाना ठीक नही।

नीलम- ठीक है काकी मैं फिर जाती हूँ, जब वो उठेगी तो उसको बता देना की मैं आयी थी....ठीक है

काकी- हाँ मेरी प्यारी बिटिया बता दूंगी, और हो सके तो मैं और वो आएंगी शाम को घर पे तेरे।

नीलम- ठीक है काकी

(और इतना कहकर नीलम वापिस आ गयी)

नीलम ने फिर चूड़ीवाली से अपनी और रजनी के पसंद की चूड़ियां खरीदी और महेन्द्र ने पैसे दिए, चूड़ीवाली चली गयी, आवाज लगाती हुई वो रजनी के घर की तरफ से भी गुजरी पर काकी ने रजनी को जगाया ही नही।

नीलम ने चूड़ियां ली और महेंद्र से बोली- लो ये पहनाओ मुझे।

महेन्द्र- मेरे से टूट जाएगी तुम खुद पहन लो ।

नीलम- टूट कैसे जाएंगी आराम से पहनाओ.....पहनाओ न

महेन्द्र- ये हरी चूड़ियां तुमने अपने लिए ली हैं और ये नीली चूड़ियां अपनी सखी के लिए।

नीलम- हाँ मेरी सखी को नीली चूड़ियां पसंद हैं।

महेन्द्र- कौन सी सखी, कभी देखा नही मैंने।

नीलम- अरे यहीं थोड़ी दूर पर घर है उसका....रजनी नाम है मेरी सखी का।

महेन्द्र- रजनी

नीलम- हम्म.....रजनी.....क्यों कोई दिक्कत है नाम में

महेन्द्र- अरे दिक्कत नही, नाम तो बहुत प्यारा है...रजनी

नीलम- अच्छा जी और मेरा नाम प्यारा नही है।

महेन्द्र- तुम्हारा नाम तो क्या तुम खुद सबसे प्यारी हो।

नीलम- ह्म्म्म रहने दो....मस्का मत लगाओ.....पता है मुझे सब, किस लिए मस्का लगाया जा रहा है।

महेन्द्र- जब पता है तो दे दो न

नीलम- क्या दे दूं

महेन्द्र- वही जिसके लिए मैं यहां आया हूँ।

नीलम- अच्छा जी, मतलब मेरे लिए नही आये हो खाली उसके लिए आये हो।

महेन्द्र- अरे मेरा मतलब दोनों के लिए मेरी जान...दोनों के लिए।

नीलम- एक चूड़ियां तो तुमसे पहनाई नही जा रही, पहनाओगे तभी मिलेगी, पहले पहनाओ और देखना टूटनी नही चाहिए एक भी, एक भी टूटी तो वही रुक जाना, फिर देखना मैं अपने बाबू को बोलूंगी और देखना वो कैसे पहनाते हैं मजाल है कि एक भी चूड़ी टूट जाये।

(नीलम ने महेन्द्र के सामने जानबूझ के शर्त रखी, उसे पता था कि महेन्द्र पहना नही पायेगा चूड़ियां)

(महेंद्र के पुरुषार्थ पर बात आके टिक गई तो वो भी मर्दानगी दिखाते हुए चूड़ियां पहनाने लगा)

महेन्द्र- अच्छा बाबू तुम्हे चूड़ियां पहनाते हैं....कब से

नीलम- बचपन से ही.....और बहुत अच्छा पहना देते हैं....पता है ये सब कब से शुरू हुआ

महेन्द्र- कब से चल रहा है ये सब

नीलम- क्या मतलब तुम्हारा...कब से चल रहा है।

महेन्द्र- अरे मेरा मतलब की वो कब से तुम्हे चूड़ियां पहनाते आ रहे हैं.....तुम तो भड़क जाती हो यार बहुत जल्दी।

नीलम- अब तुम बात ही ऐसी बोलोगे तो भड़कूँगी नही, बाबू हैं वो मेरे।

महेन्द्र- हाँ तो मैंने कब कहा की सैयां हैं तुम्हारे।

नीलम- बार बार बोलोगे तो सैयां मैं उन्ही को बना लुंगी फिर हाँथ मलते रह जाना।

महेन्द्र- अच्छा तुम बनाओगी और वो बन जाएंगे।

नीलम- कोशिश करने लगूंगी उनको रिझाने की, आखिर कब तक रुकेंगे, आखिर वो एक पुरुष और मैं एक स्त्री हूँ।

(इतना कहकर नीलम मुस्कुराने लगी, महेन्द्र समझ गया कि नीलम खाली उसे छेड़ रही है)

महेन्द्र- अच्छा बाबा माफ कर दो और बताओ कि कब से वो तुम्हे चूड़ियां पहनाते आ रहे हैं।

नीलम- हम्म ये हुई न बात, अब ऐसा वैसा कुछ मत बोलना, वो मुझे बचपन से ही चूड़ी पहनाते आ रहे हैं, एक बार मेरे जिद करने पर अम्मा ने चूड़ी तो खरीद दी पर पहना नही रही थी उसको कोई और काम करना था, काफी व्यस्त थी, बोली कि शाम तक रुक मैं खेत से वापिस आऊंगी तो पहना दूंगी, पर मेरा मन मान नही रहा था, अम्मा के जाने के बाद मैं लगी खुद ही पहनने, आधी से ज्यादा चूड़ी तोड़ डाली, कुछ ही कलाई में रह गयी, लगी रोने की अब अम्मा आएगी और लगेगी मेरी पिटाई, पर इतने में बाबू कहीं बाहर से आये तो मुझे रोता देख और हांथों में कुछ चूड़ियां और नीचे गिरी टूटी हुई चूड़ियां देख सारा माजरा समझ गए, मेरे पास आये और बोले- बस इतनी सी बात के लिए मेरी प्यारी सी बिटिया रो रही है। मैं उस वक्त छोटी थी, आंखों में आंसू भरे बाबू की तरफ देखने लगी, बाबू ने मेरे आंसू पोछे और प्यार से मेरे गालों को चूमकर मुझे गोदी में उठा कर बाजार ले गए और दुबारा वैसी ही चूड़ियां खरीद कर ले आये और फिर......

महेन्द्र- फिर क्या?

नीलम- फिर क्या...सारी चूड़ियां पहनाई मुझे उन्होंने....बड़े प्यार से....पता है एक भी नही टूटी एक भी......इसे कहते है एक पिता का प्यार बेटी के लिए, तभी तो मैं अपने बाबू को अपनी जान से ज्यादा चाहती हूं।

महेन्द्र- अच्छा जी, ऐसे कैसे पहना लेते हैं कि एक भी चूड़ी नही टूटती, तेल लगा के पहनाते हैं क्या?

(महेन्द्र ने double meaning में चुटकी ली, और हंसने लगा, नीलम को फिर लगी गुस्सा, दिखावे के गुस्सा)

नीलम- फिर तुम बहुत बोल रहे हो.....एक भी चूड़ी अभी तक तुमसे पहनाई नही गयी....बस 5 मिनिट से मेरा हाँथ ही पकड़ के तोड़ मरोड़ रहे हो इधर उधर, अगर चूड़ी नही पहना पाए न तो मिलेगी भी नही रात को देख लेना और अगर चूड़ी टूटी तो वहीं रुक जाना फिर। बड़े आये तेल लगा के पहनाते होंगे चूड़ी बोलने वाले, अगर मैं तेल भी लगा दूँ न हाँथ में तो भी तुम नही पहना पाओगे, लगा लो शर्त।

महेन्द्र- चलो ठीक है, लगाओ तेल हाँथ में, न पहनाया तो मेरा नाम भी नही, लगाता हूं मैं शर्त।

(महेंद्र जोश जोश में बोल गया)

नीलम- वो तो ठीक है, पर शर्त हार गए तो।

महेन्द्र- पहली बात तो मैं हारूँगा नही।

नीलम- इतना भरोसा।

महेन्द्र- और क्या?

नीलम- देखते हैं, और हार गए तो।

महेन्द्र- तो जो तुम बोलोगी वही करूँगा। जो तुम चाहोगी वो होगा।

नीलम- सोच लो

महेन्द्र- सोच लिया

नीलम- ठीक है

महेन्द्र ने जो इस वक्त एक चूड़ी लेकर नीलम के नरम नरम हांथों में चढ़ाने की कोशिश कर रहा था उसको छोड़ दिया।

नीलम- अभी तक ये एक भी नही पहना पाए हो, अब जा रही हूं मैं तेल लेकर आने, तुम यहीं बैठो।

महेन्द्र- पर शर्त क्या है, ये तो बता दो।

नीलम मुस्कुराने लगी फिर बोली- शर्त

महेन्द्र- हाँ और क्या, पता तो हो शर्त क्या है?

नीलम- शर्त तो यही है न कि अगर तुम हार गए तो जो मैं चाहूंगी वही होगा, जो कहूंगी वैसा ही तुम करोगे, अभी तो तुमने खुद ही बोला और इतनी जल्दी भूल गए।

महेन्द्र- हाँ ठीक है, और जीत गया तो।

नीलम- अगर तुम जीते तो जो तुम चाहोगे वो मैं करूँगी।

(नीलम को पता था कि महेन्द्र हरगिज नही जीत सकता)

महेन्द्र ये सुनकर खिल उठता है।

नीलम- सोच लो एक बार फिर अभी वक्त है।

महेन्द्र- सोच लिया...मैं भी मर्द का बच्चा हूँ, पीछे नही हट सकता अब।

नीलम- ठीक है।

नीलम घर में गयी और कटोरे में सरसों का तेल लेकर आ गयी।
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Yamraaj

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Update- 66

नीलम के मुँह से बहुत ही बेबाक तरीके से निकली ऐसी बात सुनकर महेन्द्र सन्न रह गया, उसकी स्थिति सांप छछून्दर जैसी हो चली थी, नीलम ने उसे ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया था कि न तो उससे निगला जा रहा था न उगला।

वो ये जान गया था कि अगर उसने नीलम की शर्त नही मानी और अपना वचन पूरा नही किया तो नीलम यहीं मायके में रहेगी, क्योंकि वो जानता था कि नीलम जिद्दी है, और तो और नीलम कभी उसको यौनसुख भी नही देगी।

दूसरी तरफ वो नीलम की इस बात से भी हैरान था कि नीलम को ये बात लंबे समय से पता है कि उसने छुपकर अपनी सगी बहन की चौड़ी मदमस्त गाँड़ कई बार देख रखी है और शादी से पहले से ही उसके मन में अपनी बहन की बूर देखने की इच्छा है और देखना ही क्या सच तो ये था कि वो चोदना चाहता है अपनी बहन को, ये बात नीलम को पता होने के बाद भी नीलम ने कभी उससे ये सब पूछा नही और न ही कभी किसी तरह का झगड़ा इस बात को लेकर किया कि वो अपनी ही सगी बहन को लेकर ऐसी व्यभिचारिक भावनायें रखता है और आज खुद उसकी पत्नी नीलम उसे उसकी बहन चखाने का वचन दे रही है, अगर वो नीलम की बात नही मानता है तो नीलम तो उससे नाराज़ हो ही जाएगी ऊपर से बहन की बूर का मिलने वाला मजा जिसके सपने वो कब से देखता आ रहा है वो भी हाँथ से चला जायेगा और ये कितना सुरक्षित भी होगा की उसकी पत्नी को पता होने के बाबजूद भी वो अपनी सगी बहन के हुस्न में गोते लगाएगा।

एक बार तो उसने खुद को ठगा सा महसूस किया, उसे एक पल के लिए लगा कि नीलम उसकी पत्नी कितनी चालबाज़ है, ऐसा रूप उसने नीलम का कभी देखा नही था, परंतु सच ये था कि नीलम ऐसी नही थी।

नीलम महेन्द्र की मनोदशा को तुरंत भांप गयी और उसकी आँखों में देखते हुए बोली- क्या सोच रहे हो? मुझे पता है तुम मुझे गलत समझ रहे होगे, तुम्हे लग रहा होगा कि मैं कितनी शातिर और चालबाज़ हूँ, जो मैंने शर्त और वचन तुम्हारे सामने रख दिये।

महेन्द्र- नही नही मैं ऐसा कुछ भी नही सोच रहा, और मुझे पता है तुम ऐसी नही हो।

नीलम- एक बात बोलूं, मैं थोड़ी चंचल और नटखट भले ही हूँ पर दिल की साफ हूँ, मैं चालबाज़ नही हूँ और न ही कभी तुम्हारा दिल दुखाउंगी, मैं जानती हूं कि इस वक्त तुम्हारी स्थिति बहुत असमंजस भरी है। पर जरा ये तो सोचो कि किसी औरत को अगर ये पता चले कि उसका पति अपनी ही सगी बहन को भोगना चाहता है तो क्या वो बर्दाश्त करेगी, पर जब मैंने पहली बार ये बात जानी तो मुझे बस तुम्हारी खुशी का ही ख्याल था, इसलिए मेरे मन में गुस्सा नही आया मैंने इसे सहजता से लिया जानते हो क्यों?

महेन्द्र एक टक लगाए नीलम को बाहों में भरे उसकी आँखों में देखते हुए बोला- क्यों

नीलम- क्योंकि संभोग की भूख ठीक वैसे ही होती है जैसे पेट की भूख, मान लो तुम अपनी थाली में खाना खा रहे हो और बगल वाली थाली में कुछ ऐसा रखा है जो तुम्हे खाने का मन किया तो तुम उसे उठाओगे न

महेन्द्र- हाँ बिल्कुल

नीलम- तो क्या मैं तुम्हे रोकूंगी, अगर मैं वहीं बगल में बैठी हूँ तो?

महेन्द्र- नही बिल्कुल नही

नीलम- पर क्यों?

महेन्द्र ये सुनकर चुप हो गया, नीलम ने एक चपत उसके सर पे लगाया और बोला- अरे बुद्धू क्यों कि मैं तुमसे प्यार करती हूं, और प्यार करने का सबसे सही अर्थ ही यही होता है कि जिससे तुम प्यार करते हो वो भले ही तुम्हे कुछ दे या न दे पर उसे देने में तुम्हारी तरफ से कोई भी कसर न रहे, देने का अर्थ उसकी इच्छा पूरी करने से है, प्यार का अर्थ देना होता है लेना नही। तभी मुझे तुम्हारी वो इच्छा जानकर गुस्सा नही आया और मैंने मन ही मन सोच लिया था कि वक्त आने पर मैं ये बात सामने लाऊंगी और तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगी, अब सोचो मैंने तो कब से ही बिना किसी शर्त के तुम्हारी इच्छा पूरी करने की ठान ली थी।

महेन्द्र- तुम इतनी समझदार होगी ये मैंने कभी सोचा नही था, सही में मैं कितना खुशकिस्मत हूँ जो मुझे इतना समझने वाली पत्नी मिली, आज से जो तुम बोलोगी मैं वही करूँगा, गुलाम हो गया मैं तुम्हारा।

नीलम- वो तो तुम हो ही, बच के कहाँ जाओगे।

नीलम ने आंख नाचते हुए कहा, महेन्द्र धीरे धीरे नीलम की पीठ को सहलाते हुए बोला- अच्छा तुमने बोला कि प्यार का सही अर्थ देना होता है लेना नही तो तुम भी तो मुझसे इसके बदले में कुछ न कुछ लोगी ही.....बोलो

नीलम- अरे वो तो मैं शर्त जीती हूँ न....तो अपनी शर्त का जीता हुआ इनाम नही लूं......और ये तो मेरी अच्छाई हुई पर तुम्हारी अच्छाई फिर क्या होगी......बोलो

(नीलम ने बड़ी शातिराना अंदाज़ से महेन्द्र को फिर दबा दिया)

महेन्द्र- हम्म ये तो है, मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है तुम्हारी इच्छा पूरी करने का।

नीलम- पहले मेरी इच्छा तो जान लो

महेन्द्र- हाँ बोलो, अब बोलो मेरे मन की सारी दुविधा दूर हो गयी, वचन देता हूँ मैं तुम्हे की ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच रहेगा और मैं तुम्हरी शर्त पूरी करूँगा।

नीलम ने धीरे से कान में कह दिया- मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हे तुम्हारी सगी बहन सुनीता की लज़्ज़त भरी बूर का मजा दिलवाऊंगी।

नीलम ने ये कहकर महेन्द्र की आंखों में देखा और चिढ़ाते हुए बोली- देखो कैसे आंखों में कितनी चमक आ गयी......गंदे.....बहन के साथ करोगे.....ह्म्म्म.......बहुत पसंद करते हो न सुनीता को।

महेन्द्र अब थोड़ा खुल गया था, उसने जान लिया था कि राज तो अब खुल ही गया है और नीलम खुद ही उसका रास्ता बना देगी तो दिक्कत क्या है पर फिर भी शर्म तो आ ही रही थी आखिर भाई बहन का रिश्ता पवित्र जो होता है।

महेन्द्र- हाँ करता तो हूँ, क्या करूँ मन नही मानता।

नीलम ने जानबूझ के महेन्द्र को और बेकाबू करने के लिए धीरे से उनके कान में कामुक अंदाज़ में सिसकते हुए बोला- भैया

महेंद्र नीलम को देखता रह गया उसे अजीब सी गुदगुदी हुई, अपनी पत्नी के मुँह से उसके लिए भैया शब्द सुनकर बदन में उसके मदमस्त झनझनाहट हुई।

महेंद्र- ये क्या बोल रही हो, पति को भैया बोलोगी, भैया हूँ मैं तुम्हारा?

नीलम- अरे मेरे पति जी थोड़ी देर सुनीता को महसूस कर लो, मान लो कि मैं तुम्हारी सगी बहन हूँ, मैं भी तो देखूं मेरे पति को कितना जोश चढ़ता है अपनी बहन को सोचकर।

नीलम ने इतना कहकर एक बार फिर महेन्द्र के कान में धीरे से कहा- भैया.....मेरे भैया.......मेरे महेन्द्र भैया......आआआआआहहहहहह......और महेन्द्र के गर्दन को चूम लिया।

महेन्द्र ने कस के नीलम को अपने से चिपका लिया और उसके कान में बोला- दीदी......मेरी बहना.........ओओओओहहहहह......उउउउफ़फ़फ़फ़

नीलम अब जोर से सिसक उठी।

महेन्द्र ने पीछे से हाँथ ले जाकर नीलम की नीली साड़ी को उठाना शुरू कर दिया तो नीलम बोली- गाँड़ छुओगे भैया मेरी

महेन्द्र- हाँ दीदी बहुत मन कर रहा है, छूने दोगी?

नीलम- भैया का तो हक़ होता ही है बहना पर, छू लो न भैया, मैं भी......

नीलम के इस तरीके से महेन्द्र के बदन में तेज सनसनी होने लगी, चेहरा लाल हो गया उसका जोश के मारे, जोश नीलम को भी बहुत चढ़ गया था, महेंद्र बोला- मैं भी.... क्या बहना?

नीलम- भैया मैं भी तरस गयी हूँ आपके लिए।

दरअसल नीलम महेंद्र को खोलना चाहती थी। महेंद्र के लिए ये दोहरा मजा था, उसने कभी सोचा भी नही था कि उसकी पत्नी ही उसे बहन का मजा देगी।
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Update- 67

महेन्द्र ने हाँथ पीछे ले जाकर नीलम की साड़ी को ऊपर उठाया और अपने दोनों हांथों को नीलम के घुटने के पीछे वाले हिस्से पर से धीरे धीरे सहलाते हुए ऊपर को आने लगा तो नीलम ने मस्ती में आंखें बंद कर ली फिर एकदम से महेंद्र के हांथों को संबोधित करते हुए बोली- ये दोनों मित्र ऊपर की तरफ कहाँ जा रहे है, सैर करने?

महेंद्र- नही, ये दोनों मित्र तो मलाई खाने के लिए निकले हैं।

नीलम- मलाई....कहाँ है मलाई?, कहाँ मिलेगी इनको मलाई?

महेन्द्र- मलाई तो दो पहाड़ों के उस पार घाटी के रास्ते से जाने पर एक जगह हैं वहां मिलेगी।उस जगह पर बहुत ही कोमल और मुलायम दो परत हैं जो आपस में एक दूसरे से लिपटी रहती हैं, उन्ही परत को रगड़ने पर वो मलाई निकलती है, बस आज ये दोनों मित्र वही मलाई लेने जा रहे हैं।

ऐसा कहकर महेंद्र ने अपने दोनों हाँथ नीलम की 36 साइज की चौड़ी सपंज जैसी गाँड़ पर पहुँचा दिए और सहलाते हुए बोला- देखो चढ़ गए न ये दोनों मित्र पहाड़ पर।

नीलम की आंखें तो मस्ती में बंद ही थी, महेंद्र के हाँथ को अपनी गाँड़ पर बहुत अच्छे से वो महसूस कर रही थी, कुछ देर महेंद्र ने नीलम की गाँड़ का अच्छे से मुआयना किया, फिर अपने हाँथ को नीलम की गाँड़ की गहरी दरार के अंदर डालते हुए महकती बूर की ओर ले जाते हुए बोला- अब देखो ये दोनों मित्र कैसे मलाई खाने के लिए उस जगह की तरफ जा रहे हैं।

नीलम- आआआआहहहह.......देखना घाटी में ही एक सुरंग भी मिलेगी रास्ते में, उसमे मत अटक जाना।

महेन्द्र ने झट से नीलम की गाँड़ के छेद को प्यार से दोनों हाँथ की उंगलियों के हल्का सा सहलाते हुए बोला- ये वाली सुरंग

नीलम- हाय......आआआआहहहह......हां यही वाली।

महेन्द्र- न.....हरगिज़ नही.....आज ये दोनों मलाई की तलाश में निकले हैं तो सीधा वहीं जायेगे।

और महेन्द्र का हाँथ धीरे धीरे बूर की तरफ बढ़ने लगा। नीलम की बूर मादक बातों से और महेंद्र की बहन सुनीता की कल्पना करके काफी पनिया गयी थी, जोश के मारे थरथरा तो खुद महेन्द्र भी रहा था।

नीलम- बहन की मलाई खाओगे।

महेंद्र- ह्म्म्म।

इतना कहकर महेंद्र ने जैसे ही अपना हाँथ नीलम की दहकती बूर पर रखा नीलम ने सिसकते हुए आगे की तरफ से साड़ी के ऊपर से ही महेंद्र का हाँथ पकड़ लिया, महेंद्र ने नीलम की आंखों में देखा और बोला- मलाई तो चाटने दो न मेरी जान, बहुत मन कर रहा है।

नीलम- ये मलाई तो शर्त मनाने पर मिलेगी।

महेंद्र- तो शर्त तुम बता कहाँ रही हो, बताओ शर्त मैंने कब मना किया कि नही मानूंगा, पर जब ये दोनों मित्र मलाई की दुकान तक पहुंच ही गए हैं तो पहरेदारों ने क्यों पकड़ लिया इनको...हम्म्म्म

नीलम- चलो ठीक है एक बार मलाई खा लो, पहरेदार छोड़ देते हैं तुम्हारे इन मित्रों को, पर एक बार मलाई खाने के बाद शर्त सुनना ठीक.....तभी और मलाई मिलेगी।

महेन्द्र- जो हुकुम मेरे आका

नीलम ने अपना हाँथ हटा लिया और अपना बायां पैर उठा कर बगल में रखी सरसों की खली की बोरी के ऊपर रख दिया जिससे उसकी मोटी मोटी सुडौल जांघें खुलने से बूर की मखमली फांके हल्का सा फैल गयी, बूर काफी पनियायी होने की वजह से महेन्द्र की उंगलियों में नीलम की बूर का प्यारा महकता रस लग चुका था, महेन्द्र ने अपना हाँथ खींचा और उस रस को पहले आंखे बंद करके हल्का सा सूँघा फिर जीभ निकाल के प्यार से चाटने लगा तो नीलम बोली- गंदे.....पहले तो कभी ऐसे मलाई नही खाई आज कैसे? बहन को याद करके, है न.....इतना तरसते हो तुम सुनीता की मलाई के लिए, हाय सगी बहन की चाहत।

महेन्द्र- हाँ तरसता तो हूँ.....पर यही सोचता था कि सगी बहन की कभी मिल नही सकती संभव ही नही........रिश्ता ही ऐसा है तो कैसे मिलेगी........पर तुमने तो सब संभव कर दिया........मैं जीवन भर तुम्हारा गुलाम मेरी जान।

नीलम- तुम भी मेरी कुछ चीज़ संभव करो, मेरी शर्त मानकर।

महेन्द्र- तो बताओ मेरे आका क्या शर्त है तुम्हारी।

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Yamraaj

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Update- 68

नीलम ने शर्त कही- मैं शर्त जीतने की वजह से आपसे ये मांगती हूँ कि जब भी मेरी कोख भरे तो होने वाले बच्चे की सीरत मेरे बाबू जैसी हो, मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा, मेरा पुत्र बिल्कुल मेरे बाबू की सीरत का हो, सूरत भले ही उनसे न मिले पर सीरत उन्ही की हो।

महेन्द्र- क्या?...क्या बोल रही हो तुम।

महेन्द्र को एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नही हुआ।

नीलम- हाँ, बोलो करोगे मेरी शर्त पूरी।

महेन्द्र- पर ये कैसी शर्त है जो है ही असम्भव।

नीलम- असंभव तो कुछ भी नही दुनियां में।

महेंद्र- पर तुम कह क्या रही हो, कहने से पहले सोच तो लो, तुम्हारी शर्त के अनुसार बच्चे की सीरत तुम्हारे बाबू जैसी हो, और वो भी मैं ये इच्छा कैसे पूरी कर सकता हूँ, पहली बात तो बच्चा हो ही नही रहा और मान लो हो भी तो उसकी सीरत बाबू जैसी मतलब उसका स्वभाव, बोलचाल का तरीका, उसकी सोच सब बाबू जैसी, और वो भी मैं तुम्हे दूंगा....पर कैसे....ये तो है ही असंभव।

नीलम- तुम्हारे लिए तो असंभव तुम्हारी बहन सुनीता भी थी, पर हो गया न संभव।

महेन्द्र का मुँह बंद, पर कुछ सोच कर बोला- हाँ वो बात ठीक है पर ये तो बिल्कुल हो नही सकता, मेरे और तुम्हारे सम्भोग से बाबू के जैसी सीरत वाला बच्चा कैसे हो जाएगा, और पहली बात तो मेरे और तुम्हारे प्रयास करने से तो बच्चा हो ही नही रहा, कितने सालों से तो इंतज़ार कर रहे हैं न।

नीलम- झूठ न बोलो, इंतज़ार तुम नही केवल मैं कर रही हूं, तुम्हे वाकई में इस बात की चिंता होती तो तुम अपना इलाज...... खैर इस बात को अब नही बोलूंगी वचन जो दे चुकी हूं, मैं बस इतना चाहती हूं कि भविष्य में कभी भी मेरी कोख से जो मेरा बच्चा हो उसमे मेरे बाबू की सीरत हो।

महेन्द्र- लेकिन ऐसा क्यों....क्या मैं जान सकता हूँ।

नीलम- क्योंकि मैं बाबू से बेहद प्यार करती हूं.......अब गलत मत समझना......मैं सिर्फ पिता पुत्री के प्यार की बात कर रही हूं......एक बेटी अपने पति से पहले अपने पिता की होती है, उसको इस दुनियां में वही लाता है, पलता है पोषता है, सारी दुनियां से उनकी रक्षा करता है फिर उसे ब्याह के अपने घर से बिदा कर देता है, क्या एक बेटी का मन नही हो सकता कि वो अपने प्यारे पिता की एक निशानी पुत्र के रूप में अपनी कोख से पैदा कर सके। मैं बस अपने बाबू के जैसा पुत्र चाहती हूं बस इतना कहना है मुझे, अपनी जीती हुई शर्त में मुझे यही चाहिए, और रही बात संभव असंभव की तो संभव सब कुछ है।

महेन्द्र- हे भगवान, मैंने कब मना किया कि कोई बेटी ये कल्पना नही कर सकती कि उसके बच्चे की सीरत उसके पिता जैसी हो , पर सोच के देखो ये होगा कैसे? ये तो ईश्वर के हाथ में है इसमें पति पत्नी क्या कर सकते हैं, कुछ असंभव चीजों को तुम संभव करने पर तुली हो।

नीलम- संभव है

महेन्द्र- संभव है.... (चौंकते हुए)

नीलम- हां, संभव तो सबकुछ है।

महेन्द्र- कैसे........अगर सभव है तो बताओ मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने को तैयार हूं।

नीलम- करोगे क्यों नही, वचन दिया है तुमने, करना तो पड़ेगा ही, जब मैं अपना वचन पूरा करूँगी तो तुम्हे भी अपना दिया वचन पूरा करना पड़ेगा।

महेन्द्र- हाँ बताओ किस तरह संभव है ये, की हम दोनों के संभोग से बाबू जी के सीरत वाला बच्चा पैदा होगा।

(नीलम ने मन में सोचा कि अगर केवल हम दोनों के संभोग से बच्चा पैदा होना होता तो अबतक हो नही जाता, ये भी न...समझ नही पाते बिल्कुल, पर नीलम ने ये बात कही नही)

नीलम- होगा....बाबू जी के सीरत वाला बच्चा जरूर होगा।

महेन्द्र- कैसे?

नीलम- इसके दो तरीके हैं।

महेन्द्र- दो तरीके।

नीलम- हाँ दो तरीके

महेन्द्र- मुझे तो ये होना ही असंभव लग रहा है और तुम्हारे पास दो तरीके भी है.....वाह

नीलम- स्त्री हूँ न...इसलिए.... जहां पुरुष की सीमा खत्म हो जाती है कभी कभी स्त्री उसके आगे से भी रास्ता निकाल लेती है....समझे जी

(नीलम ने थोड़ा गर्व से कहा)

महेन्द्र- किसी का तो पता नही पर तुम जरूर निकाल लोगी, इतना तो यकीन हो गया है अब मुझे।

नीलम मुस्कुराने लगी फिर बोली- मैंने सुना है कि पति के द्वारा संभोग में चरम पर पहुँच कर स्त्री जब स्लखित (झड़कर) होकर अपनी आंखें असीम सुख में बंद कर लेती है और कुछ पल के बाद जब वो आंखें खोलती है तो उसकी नज़रों के सामने जो पुरुष या स्त्री पड़ता है उसके गर्भ में होने वाले बच्चे की सीरत उसी की होती है, अब ज्यादातर तो उस वक्त उसका पति ही वहां होता है पर अगर उसकी जगह जो भी हो, स्त्री की नज़र खुलते ही उस पर पड़े तो ऐसा होता है, मैंने ऐसा सुना है।

महेन्द्र- क्या कह रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है?

नीलम- होता है ऐसा, मेरी नानी के यहां एक बूढ़ी तपस्वी स्त्री है उसी ने ये बात बताई थी, पर उसने ये भी कहा था कि ये पहला तरीका है जो कि पूरी तरह कारगर हो भी सकता है और नही भी, इसमें गुंजाइश कम है।

महेन्द्र- पहली बात तो यही संभव नही की उस वक्त पति पत्नी के अलावा वहां कोई हो, ये सब काम तो एकांत में अपने कमरे में किया जाता है तो कोई और होगा ही कैसे?

नीलम- कोई कमरे में होता नही है, ये बात मुझे भी पता है, पति पत्नी अकेले में ही संभोग करते है नुमाइश करके नही, ये बात मुझे भी पता है, पर इस उपाय के लिए, उस इच्छा को परिपूर्ण करने के लिए हम अपने उस प्यारे व्यक्ति को अपने कमरे में सुला तो सकते हैं।

(महेन्द्र फिर से ये सुनकर चौंक गया)

महेन्द्र- क्या बोल रही हो तुम, मतलब बाबू जी मैं और तुम एक ही कमरे में, और मैं और तुम उनके सामने संभोग, ये हो भी पायेगा या बस जो मुँह में आया बोले जा रही हो, पहली बात तो अभी सबेरे तुमने ही बोला की तुम अंदर कमरे में सोती हो, बाबू जी बाहर सोते हैं और मैं भी बाबू जी के साथ बाहर सोऊंगा, और अब इतना सब कुछ, और दूसरी बात बाबू जी के बारे में भी सोचा है, वो सुनेंगे तो क्या सोचेंगे, और वो ऐसा करेंगे भी ये तुमने सोच भी कैसे लिया, की जैसा जैसा तुम सोचे और कहे जा रही हो वो वैसा वैसा करेंगे, उनकी अपनी भी तो कोई इज़्ज़त और मान मर्यादा है, कोई पिता अपनी पुत्री और दामाद के कमरे में सोएगा और उनको संभोग करते हुए देखेगा....हे भगवान तुम भी न। सनक गयी हो तुम पक्का।

नीलम- बस हो गया तुम्हारा अब मैं बोलूं। बैठो यहां नीचे पहले।

दोनों नीचे बैठ गए

महेंद्र- बोलो अब

नीलम- मैंने ऐसा कब कहा कि बाबू मान ही जायेंगे, पर जब हम ये बात उनके सामने रखेंगे तो वो कुछ तो सोचेंगे, वो बड़े हैं हमसे ज्यादा समझदार हैं, कुछ तो निर्णय लेंगे।

महेन्द्र- और उनसे ये बात कहेगा कौन.....मैं......न बाबा न......ये तो मुझसे नही होगा।

नीलम- तुमसे होगा क्या? वैसे तुमने वचन दिया है, सोच लो करना तो पड़ेगा ही, अब स्त्री होकर मैं तो उनसे बोलूंगी नही और एक बेटी तो कदापि अपने पिता को ऐसी बात नही बोलेगी।

महेन्द्र- तो क्या दामाद बोलेगा? की ससुर जी आओ हमारे साथ लेटो और हमे वो सब करते हुए देखो।

नीलम हंसने लगी फिर बोली- मैंने कब कहा कि हम उन्हें दिखा कर करेंगे, वो सो जाएंगे तब।

महेन्द्र- अच्छा.....और वो जग गए तब?

नीलम- यही तो संभाल के करना है, और मैं चाहूं तो बोलना तो तुम्हे पड़ सकता है पर मैं तुम्हे मजबूर नही करूँगी मेरे पास इसका भी रास्ता है।

महेन्द्र- कितने रास्ते हैं यार तुम्हारे पास, इतने रास्ते तो पूरे मिला कर हमारे गांव भर में नही है जितना तुम्हारे पास है, मेरा तो सर घूम गया है।

नीलम जोर से हंस पड़ी फिर बोली- भैया ओ भैया.....सुनीता को याद करो घुमा हुआ सर सही जगह पर आ जायेगा।

महेन्द्र- यार देखो मजाक की बात नही है, अब जो संभव नही है वो मेरे समझ में तो आ नही रहा, आखिर बाबू जी कैसे राजी होंगे, ये कितने शर्म की बात है।

नीलम- माना कि शर्म की बात है पर उपाय तो करना ही पड़ेगा, देखो बाबू जी राजी होंगे एक बेटी की इच्छापूर्ति के मोह से, कोई भी पिता अपनी बेटी की मनोकामना पूर्ण करने की पूरी कोशिश करता है बशर्ते उसमे बदनामी न हो, सब कुछ छुपाकर हो जाये तो, और मेरा दिल कहता है कि बाबू जी जरूर इस बात को समझेंगे।

महेन्द्र- और इस बात को उनसे कहेगा कौन।

नीलम- उसका रास्ता ये है कि मैं सारी बात एक कागज पर लिखकर तुम्हे दे दूंगी तुम अपने हाँथ से बाबू जी को दे देना।

महेन्द्र- मैं

नीलम- हाँ भई तुम...... और कौन? तुम अपने हाँथ से दोगे तो बाबू जी को ये पता चल जाएगा कि तुम राजी हो.......समझे बुद्धू

महेन्द्र- क्या दिमाग लगाती हो तुम...सच में। पर न जाने क्यों मुझे बहुत अटपटा सा लग रहा है। कैसे होगा ये सब?

नीलम ने धीरे से कहा- क्यों तुम्हारा खड़ा नही हो पायेगा क्या उनकी मौजूदगी में।

महेंद्र- ऐसी कोई बात नही है, अब अगर ऐसी बात है तो देख लेना मैं क्या हाल करूँगा तुम्हारा....पानी पिला दूंगा पानी।

(नीलम ने जानबूझ कर ये बात बोली ताकि महेन्द्र थोड़ा ताव में आ जाये)

महेन्द्र- पर एक बात बताओ अगर बाबू जी ने उल्टा हम दोनों को ही डांट लगाई तो, आखिर ये कितना गलत है।

नीलम- ऐसा हो नही सकता मेरा दिल कहता है, मैं अपने बाबू को बहुत अच्छे से जानती हूं, वो मेरे लिए जान भी दे देंगे पर मेरा दिल नही तोड़ेंगे और रही बात सही गलत की तो बहन के ख्वाब देखना भी तो गलत है....क्यों...बोलो?

महेन्द्र अब चुप हो गया फिर थोड़ी देर बाद बोला- अच्छा एक बात बताओ अभी तो तुमने बोला यह एक पहला तरीका है और ये पूरी तरह कारगर होगा भी या नही इसपर भी संदेह है तो दूसरा ऐसा कौन सा तरीका है जो अचूक है।

नीलम महेन्द्र को गंभीरता से देखने लगी फिर बोली- वो अचूक तो है पर वो गलत है, वो रास्ता गलत है, वैसा मैं नही कर पाऊंगी।

(नीलम ने जानबूझ कर बेमन से दूसरे रास्ते को गलत ठहराया क्योंकि वो महेन्द्र के सामने अपनी छवि को बिगड़ने नही देना चाहती थी)

महेन्द्र- है क्या वो रास्ता....बताओ तो सही...

नीलम कुछ देर चुप रही महेंद्र उसका मुँह ताकता रहा

नीलम ने एक लंबी सांस ली फिर बोली- जब कोई स्त्री अपने पति द्वारा संभोग क्रिया में चरम पर पहुंचने ही वाली हो तभी उसकी......

(नीलम बोलते बोलते चुप हो गयी)

महेन्द्र- उसकी क्या?

नीलम- तभी उसकी योनि में उस पुरुष का लिंग दाखिल हो जाये जिसकी छवि का बच्चा वह अपने गर्भ में चाहती है और फिर वो स्त्री उस नए लिंग को स्वीकारते हुए अपने दोनों हांथों से
उस पुरुष के नितंब को योनि की तरफ दबाकर उसके लिंग को स्वयं अपनी योनि में स्वागत कराते हुए उस पुरुष के अंडकोषों को प्यार से सहलाकर यह इशारा करे की उसका लिंग उसके पति के लिंग से ज्यादा आनंददायक है, यहां पर एक बात ध्यान देने की होती है कि स्त्री को अपने पति के लिंग की तुलना में उस पुरुष के लिंग में ज्यादा आनंद आना चाहिए, उसे दूसरा लिंग ज्यादा अच्छा लगना चाहिए, क्योंकि तभी उसके दिमाग में से उसके पति की छवि हटकर उस नए पुरुष की छवि बनेगी और वही बच्चे में जाएगी, इसलिए ही स्त्री की योनि में उसके मनचाहे पुरुष का लिंग दाखिल होने के बाद वो उस पुरुष के नितंब को अपनी योनि की ओर दबाकर और उसके अंडकोषों को सहलाकर ये इशारा करती है कि उसका लिंग उसके पति की तुलना में अत्यधिक आनंददायक और लज़्ज़त भरा है और फिर उसकी लज़्ज़त को महसूस करके उसे चोदने का इशारा करती है और फिर अच्छे से नए लिंग से चुदने के बाद असीम आनंद लेते हुए स्लखित होती है।

पर इसके लिए उसके पति का पहले स्लखित होना जरूरी है, स्लखित होने के बाद भी पति थोड़ी देर तक लिंग योनि में रगड़ता रहे और जैसे ही स्त्री स्लखित होने के करीब हो उसका पति लिंग बाहर निकाल ले और उसका मनचाहा पुरुष जिसकी छवि वो अपने पुत्र में चाहती है वो अपना दहकता लिंग उसकी योनि में जड़ तक डाल दे, इससे उस स्त्री के तन और मन दोनों पर नए लिंग की खुमारी चढ़ जाएगी और वो उस नए लिंग को महसूस करते हुए अपने जेहन में बसा लेगी, फिर उसके बाद वो नया लिंग योनि को चोदकर उसे तृप्त करेगा फिर उसके अंदर अपना वीर्य छोड़ देगा, इसे वीर्य पर वीर्य की क्रिया भी बोलते है, मतलब उस स्त्री के पति के वीर्य के ऊपर नए लिंग का वीर्य पड़ना, यही अचूक उपाय है।

इतना कहकर नीलम ने शर्म के मारे दोनों हांथों से अपना मुँह छुपा लिया, शर्म से उसका चेहरा सच में लाल हो गया था, इतना ही नही महेंद्र के कान भी लाल हो गए ये सुनकर।

काफी देर तक सन्नाटा रहा कमरे में फिर महेंद्र बोला- ये सब तुम्हे अम्मा ने बताया है।

नीलम- नही जी, एक दिन अम्मा किसी पड़ोसन से धीरे धीरे ये सब बता रही थी कि उनके मायके में एक बूढ़ी तपस्वी स्त्री है वही ये सब उपाय जानती है, मेरी अम्मा उस पड़ोसन को बता रही थी तो मैंने चुपके से सुना था, परंतु यह उपाय अचूक असर करता है ये साबित हो भी चुका है।

महेन्द्र- क्या मतलब कैसे? कैसे ये पता तुम्हे की ये साबित हो चुका है।

नीलम- अरे उस पड़ोसन से अपने मायके में किसी को बताया होगा फिर उसने आजमाया और वैसा ही हुआ, एक दिन वो मिठाई लेकर आई थी मुँह मीठा कराने अम्मा का, मैं समझ गयी थी कि बात वही है।

महेन्द्र- तो इसका मतलब तो यही हुआ कि अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए ऐसा उपाय न अपनाकर ऐसा उपाय ही अपनाया जाय जो अचूक हो, और तुम बाबू जी के साथ.....

नीलम- छि: छि: ये कैसी बातें कर रहे हो तुम, मैं ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती, वो पिता हैं मेरे, और मैं उनकी बेटी, पहले उपाय तक तो ठीक था, उसमे तो खाली मुझे उनका चेहरा देखना था बस, सुबह आंख खुलने के बाद मैं सबसे पहले उन्ही को देख लेती बस, पर ये दूसरा उपाय, ये महापाप तो मैं कभी नही करूँगी, तुमने ये सोचा भी कैसे?

महेन्द्र - क्योंकि पहला उपाय तो कारगर है ही नही उसका कोई भरोसा है ही नही सफल हो या न हो, इसलिए सोचा, और मैंने अब तुम्हे ये वचन दे दिया है कि तुम्हारी शर्त के हिसाब से जो भी तुम्हारी इच्छा होगी उसको मैं पूरा करूँगा ही, और तुम्हारी इच्छा है कि तुम्हे बाबू जी की सीरत वाला बच्चा चाहिए, और अगर मैं अपना वचन पूरा नही करता हूँ तो पहली बात तो तुम हमेशा हमेशा के लिए अपने मायके में रहोगी और दूसरी बात तुम भी अपना दिया हुआ वचन पूरा नही करोगी, तो ये सब तो एक जंजीर की तरह, एक कड़ी की तरह बंध गया है, मैं तो अब खुद ही इस चक्रव्यूह में उलझ गया हूँ, बोलो क्या करूँ मैं....इसलिए मैंने ये बोला। या तो तुम अपनी ये इच्छा छोड़ दो।

नीलम जानबूझकर थोड़ा सुबकते हुए- मैं अपनी ये इच्छा नही छोड़ सकती। पर मैं ये पाप भी नही कर सकती। ये महापाप है, एक बेटी अपने ही पिता के सामने निवस्त्र..... सोचकर ही मैं शर्म से गड़ी जा रही हूं।

महेन्द्र- अच्छा एक बात बताओ...... क्या बाबू जी ये सब कर पाएंगे?.....करेंगे, क्या वो मान जाएंगे?

नीलम जानबूझकर काफी गंभीर बनते हुए- दुनियां के और पिताओं का तो मुझे पता नही पर मैं अपने पिता को तो अच्छे से जानती हूं, वो मुझसे बेहद प्यार करते है, वो मेरी इच्छा पूर्ति के लिए इस काम को दिल से तो नही पर फ़र्ज़ के तौर पर अंजाम जरूर देंगे, उनके लिए मैं और मेरी इच्छा सर्वोपरि हैं। पर मैं ये महापाप नही कर सकती। कभी नही।

(इतना कहकर नीलम फिर सुबकने लगी, महेंद्र नीलम को गले से लगाकर चुप कराने लगा)

महेन्द्र- और तुम अपनी इच्छा का जिसको तुमने कई सालों से मन में पाल रखा है उसका गला घोंट सकती हो, और दूसरी बात फिर मेरा वचन भी टूट जाएगा और फिर वचन के मुताबिक तुम यही मायके में रहोगी, उम्र भर....ये भी तो सोचो।


नीलम काफी देर तक चुप रही।

महेन्द्र- तुम्हे ये करना ही होगा, क्योंकि कई वचन एक दूसरे की कड़ी बन चुके हैं एक भी टूटा तो बहुत कुछ बदल जायेगा।

नीलम- चुप रहो अब.....कितना गलत है ये.....माना की मैंने उपाय बताया पर मैं अनर्थ नही कर पाऊंगी, ये पाप ही नही महापाप है।

महेन्द्र- कभी कभी हमे कुछ अच्छे के लिए और कुछ पाने के लिए मन मजबूत करके वो काम भी करने पड़ जाते हैं जिनको करने का हमारा बिल्कुल मन नही होता, और ये तो तुम्हे करना ही पड़ेगा और मुझे तुम्हारी इच्छा की पूर्ति वचन के मुताबिक पूरी करनी ही पड़ेगी। ये कहाँ ला के खड़ा कर दिया तुमने बातों बातों में मुझे।

नीलम- मैंने कुछ नही किया, शायद ये नियति यही चाहती है, तभी ये सब होता चला गया।

महेन्द्र- खैर जो भी है अब वचन तो पूरा करना ही है मुझे, पर मेरे पास एक सुझाव है।

नीलम ने बड़ी मुश्किल से नज़रें उठा कर महेन्द्र को देखा- क्या.....क्या सुझाव

महेन्द्र- तुम कमर से ऊपर अपने चेहरे और मुँह को अच्छे से ढक लेना, जब तुम ये कह ही रही हो कि पिताजी अगर ये स्वीकार करेंगे भी तो केवल फ़र्ज़ के तौर पर तो ये पाप तो नही होगा, क्योंकि पाप तो तब होगा न जब मन में जेहन में वासना का संचार हो, जब पिताजी तुम्हे उस नज़र से देखेंगे ही नही और तुम्हारे मन में भी ऐसा कुछ नही होगा तो ये पाप तो नही हुआ...मेरे ख्याल से।

(नीलम ये समझ गयी कि महेन्द्र को अब कोई दिक्कत नही है, और महेंद्र ये बोलते हुए शायद यह भूल गया था कि दूसरे उपाय में स्त्री दूसरे पुरुष की छुवन की लज़्ज़त को महसूस कर अपने जेहन में उतारेगी तभी वह उपाय सफल होगा और बिना वासना जागे ये हो ही नही सकता था, बिना वासना के जागे सफल संभोग हो ही नही सकता, उस अंग को देखकर वासना न जागे ये हो ही नही सकता)
Achha chutiya bana rahi hai....
 
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Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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नीलम चुप बैठी रही महेंद्र ने फिर बोला- हमे दूसरे उपाय को ही अपनाना चाहिए।

नीलम- मुझसे ये नही होगा, वो पिता हैं मेरे अभी तक मैं उनकी छुअन को एक पिता के स्नेह के रूप में ही महसूस करती आई हूं, मेरा मन उन्हें एक आनंदित पुरुष के रूप में कैसे स्वीकार कर पायेगा और जब मन इसे स्वीकार नही कर रहा तो तन उन्हें कैसे सौंप पाऊंगी। एक सगे पिता और बेटी के बीच यौनानंद तो एक व्यभिचार है।

महेंद्र- तुम इसे एक फ़र्ज़ की तरह क्यों नही ले रही हो, मुझे पूरा विश्वास है कि बाबू जी इस बात को अवश्य समझेंगे और वो पहले तुम्हारा मन जीतेंगे और फिर बाद में इसे बस एक कर्तव्य की तरह निभायेंगे। तुम्हे तुम्हारी इच्छा की सौगंध है तुम्हे ये अचूक उपाय करना ही होगा, तभी मेरा भी वचन पूरा होगा।

नीलम- तुमने मुझे सौगंध क्यों दी?

(नीलम ने एक बनावटी बेबसी दिखाते हुए कहा)

महेन्द्र- क्योंकि तुम समझ नही रही की बस यही एक रास्ता है, बस अब मुझे कुछ नही सुनना, तुम भी अब कुछ नही सोचोगी, अब सोचना नही करना है। करने लगो तो सब होने लगता है, चलो अब इस प्यारे से चेहरे पर मुस्कुराहट लाओ, ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा हमेशा, ये वचन तो मैं दे ही चुका हूं। बस तुम अपना वचन निभाना मत भूलना।

नीलम ये सुनते ही मुस्कुरा दी, फिर महेन्द्र की आंखों में देखते हुए बोली- भैया....ओ मेरे भैया जी, लो मैं तुम्हे भैया बोल रही हूं नही भूलूंगी मैं भी अपना वचन।

महेन्द्र ये सुनते ही गनगना गया और मुस्कुराने लगा।

नीलम बोली- तुम बेफिक्र रहो तुम्हे तो मैं जन्नत की सैर कराऊँगी।

महेन्द्र- तो फिर तुम कागज पर सब कुछ लिख के रखो, शाम को बाबू की के आते ही उन्हें दे देना।

नीलम- क्यों तुम नही दोगे, मैं ही दूँ।

महेन्द्र- हाँ तुम ही किसी तरह उन्हें दे देना ये मैं नही कर पाऊंगा।

नीलम- चलो ठीक है ये भी मैं ही करूँगी।

तभी कुछ बच्चे बाहर आवाज लगाने लगते हैं- दीदी....ओ नीलम दीदी

नीलम महेन्द्र से हाँथ छुड़ा कर बाहर आई- हाँ..... कंचन, मंचन, राखी, सुलेखा क्या हुआ?

बच्चे- दीदी हम जामुन तोड़ लें!

नीलम मुस्कुराते हुए- हाँ जाओ तोड़ लो पर संभलकर तोड़ना, हल्ला मत करना ज्यादा।

बच्चे- ठीक है दीदी....नही करेंगे हल्ला......हमारी दीदी की जय हो......हमारी दीदी सबसे अच्छी........हमारी दीदी सबसे अच्छी (ऐसा नारा लगाते हुए काफी बच्चे जामुन के पेड़ के नीचे जाकर जामुन तोड़ने लगे)

नीलम मुस्कुरा उठी, महेन्द्र भी नीलम का जलवा देखकर हैरान था। महेन्द्र बाहर आकर लेट गया दोपहर के तीन बज चुके थे, क्योंकि अब बच्चे आ गए तो नीलम से इस वक्त कुछ मिलेगा इसकी उम्मीद अब उसे थी नही, नीलम भी घर में चली गयी।

उधर बिरजू शाम 4 बजे तक अपने मित्र के यहां पहुँचा तो देखा कि उसकी कुटिया में तो ताला लगा हुआ है उसने पड़ोस में पूछा तो पता लगा कि वो कुछ जड़ीबूटियों की खोज में हिमालय की यात्रा पर पिछले महीने ही चला गया है, न जाने अब कबतक आये, बिरजू को काफी निराशा हुई, उदास मन से वो घर की तरफ चल दिया, रास्ते में वो सोचे जा रहा था कि कितने उम्मीद से वो आया था सब पर पानी फिर गया, अब वो सब कैसे हो पायेगा, कैसे वो अपनी बेटी को नए रोमांच का मजा दे पाएगा, आखिर कैसे होगा वो सब जो नीलम चाहती है, उसे क्या पता था कि नीलम पहले ही सब चाल चलकर मामला सेट कर चुकी है, नीलम ने दूसरी तरफ ये सब करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि उसे लगा था कि अगर बाबू सफल नही हुए तो? इसलिए उसे अपनी तरफ से भी कुछ करके रख लेना चाहिये।

जैसे ही बिरजु शाम 6 बजे घर पहुंचा हल्का अंधेरा शुरू हो गया था, महेन्द्र खाट पर लेटा था, बच्चे जामुन तोड़कर जा चुके थे नीलम पशुओं को चारा डाल रही थी, अपने बाबू को दूर आता देखकर उसके चेहरे पर लालिमा छा गयी, महेन्द्र बिरजू को आता देख खाट से उठकर थोड़ा दूर हटकर अपने को छुपाता हुआ टहलने लगा, क्योंकि वो जनता था कि आज जो जो हुआ है उसकी वजह से उसके मन में बहुत बेचैनी थी और बिरजू के सामने अपने चेहरे के हावभाव वो सामान्य नही रख सकता था उसे संभलने के लिए कुछ वक्त चाहिए था।

बिरजू घर पर आ गया नीलम बिरजू के पास आई और बोली- बाबू आ गए आप, बैठो मैं पानी लाती हूँ।

बिरजू- हाँ बेटी ले आ, चल मैं घर में ही आ रहा हूँ।

नीलम ने बायीं तरफ मुड़कर देखा तो महेन्द्र टहलते टहलते पशुशाला की तरफ चला गया था, वो घर में चली गयी, बिरजू भी उसके पीछे पीछे घर में आ गया, नीलम ने देखा कि बिरजू कुछ उदास है।

नीलम- क्या हुआ बाबू? आप थोड़ा उदास हैं।

बिरजू- हाँ बेटी अब जिस काम के लिए जाओ वो न हो पाए तो मन उदास तो हो ही जाता है।

नीलम- ओहो....बस इत्ती सी बात के लिए मेरे बाबू उदास हो गए।

बिरजू- ये इत्ती सी बात नही है बेटी, बहुत बड़ी बात है, कैसे होगा वो सब जो तुम्हे सोचा था, मुझे तो लगा था कि मेरा वो मित्र कुछ जड़ीबूटियां देगा और वो दामाद जी को खिलाकर उनको सम्मोहित करके, उनके सामने प्यार कर सकेंगे, अब उनकी चेतन अवस्था में तो ये सम्भव हो नही पायेगा, और वो मित्र मिला नही, इसलिए मन उदास है।

नीलम- लेकिन मन उदास कीजिये मत बाबू, आखिर नीलम कोई चीज़ है कि नही।

बिरजू ने झट से नीलम को खींचकर बाहों में भर लिया और बोला- नीलम तो बहुत मीठी चीज़ है...बहुत मीठी और रसीली।

नीलम अपने मनपसंद पुरुष की बाहों में आकर सिरह उठी।

बिरजू ने ध्यान से अपनी बेटी को देखा, आंखें बंद करली नीलम ने, क्या सुंदरता थी नीलम की, एक पल ठहरकर बिरजू ने नीलम की सिंदूर भरी मांग को देखा, माथे पर दोनों तरफ झूलते बालों के लटों को देखा, फिर माथे पर लगी छोटी सी बिंदिया को निहारा, नही रहा गया तो एक गीला चुम्बन बेटी के माथे पर लिया, नीलम गदगद हो गयी, फिर बिरजू नीचे देखते हुए नीलम की आंखों पर पहुंचा शंखरूपी बड़ी बड़ी आंखें बंद थी, नीलम अपने बाबू की हरकत को अच्छे से महसूस कर रही थी तभी तो वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी, पलकें उसकी हल्का हल्का हिल जा रही थी, बिरजू ने दोनों बंद आँखों को प्यार से चूमा और बोला- आंखें खोल न मेरी प्यारी बेटी।

नीलम मस्ती में- ओफ्फो....फिर बेटी.....वो बोलो न जो सिखाया था आपको और जो मुझे गनगना देता है।

बिरजू- अच्छा बाबा.....मेरी रंडी

नीलम का चेहरा शर्म से भर गया वो मस्ती में बोली- ये हुई न मेरे दिल की बात....अब दुबारा बोलो...मैं आँखें बंद करती हूं।

नीलम ने आंखें बंद कर ली

बिरजू- आंखे खोल न.....मेरी रांड

नीलम ने प्यार से मुस्कुराते हुए आंखे खोल कर बिरजू को निहारने लगी और बिरजू से रहा है नही गया उसने नीलम की कमर में हाँथ डाल के अपने से कस के चिपकाते हुए उसके रसीले होंठों को अपने होंठों में लेकर काट खाने की हद तक चूसने लगा, सिसकते हुए नीलम भी अपने बाबू से चिपक गयी, अपने होंठ तो वो खुद भी अपने मनपसंद मर्द से कटवाना चाहती थी पर थोड़ा डर रही थी कि कहीं महेन्द्र टहलता टहलता घर में न आ जाये, पर वो नही आएंगे ये भी विश्वास था फिर भी वो बोली- बाबू बस करो नही तो यहीँ सब कुछ हो जाएगा, क्या पानी नही पियोगे, बस मुझे ही खाओगे आते ही, मुझे रात में खाना अभी सब्र करो।

बिरजू- रात में बेटी का रस कैसे पियूँगा, दामाद जी जो हैं घर में।

नीलम- उसका इंतज़ाम भी मैंने कर दिया हैं, अपनी बेटी को क्या कच्चा खिलाड़ी समझा है, सब व्यवस्थित कर दिया है मैंने।

बिरजू चौंक गया- व्यवस्थित .......क्या व्यवस्थित......कैसे?......क्या किया तुमने?

नीलम - अभी बैठो पानी पियो, मैं एक कागज में सब लिखकर आपको दूंगी, आपके तकिए के नीचे रख दूंगी, सब पढ़ लेना और दिखावे के लिए उसका जवाब भी दूसरे कागज पर लिखकर मुझे देना, वो कागज पढ़ोगे तो सब पता चल जाएगा, सारी खीर पका दी है मैंने बस सिर्फ खाना खाना रह गया है। दिखावे के लिए अभी आपको मुझे चूड़ी पहनानी होगी, वो तो पहना नही पाए शर्त हार गए, और इस चूड़ी के खेल में मैंने ऐसा जाल बुना की अपने रोमांच का खेल खेलने का अखाड़ा तैयार कर दिया, समझे मेरे बाबू, अभी आप बाहर बैठो मैं खाना बनाने के साथ साथ वो सब कुछ जो आज दिन में मैंने किया एक कागज पर लिखकर आप तक पहुंचा दूंगी, आप उसे पढ़कर उत्तर देना और प्रतिउत्तर का कागज अपने दामाद जी के हांथों मुझे दिलवाना, फिर हम चूड़ी का खेल खेलेंगे और फिर खाना खाकर हम आज की इस हसीन रात को मिलकर रसीला बनाएंगे।

बिरजू ने नीलम के दोनों गालों पर बड़े प्यार से कामुक अंदाज में चुम्मा लिया और बोला- तू मुझे कितना खुश रखती है, तुझे ये अंदाज़ा था कि अगर मैं असफल हुआ तो क्या होगा, इसलिए खीर बना ही डाली।

नीलम- अपने मनपसंद मर्द से रसीला सुख पाने के लिए औरत को चाल चलना पड़े तो वो पीछे नही हटती, समझे मेरे बाबू। चलो अब बाहर बैठो।

ऐसा कहते हुए नीलम ने एक जोर का रसीला चुम्मा बिरजू के होंठों पर लिया और बिरजू तरसता हुआ बाहर आ गया, महेन्द्र अभी भी चूतियाओं की तरह दूर दूर ही घूम रहा था।

बिरजू- दामाद जी आओ इधर बैठो....क्या हुआ, ऊबन हो रही है क्या?

महेंद्र झिझकते हुए पास आ गया और दूसरी खाट पर बैठ गया फिर बोला- अरे नही बाबू जी ऊबन कैसी, अपने घर में कैसी ऊबन, आप कहीं गए थे किसी काम से? क्या हुआ हो गया वो काम?

बिरजू- नही बेटा काम तो नही हुआ जिससे मिलना था वो मिला नही।

महेन्द्र और बिरजू ऐसे ही काफी देर बातें करते रहे महेन्द्र की झिझक कुछ कम हुई पर बार बार आज जो दिन में हुआ और अब आगे आज रात क्या होगा यही उसके दिमाग में आ जा रहा था, की अगर बाबू जी मान गए तो कैसे होगा वो खुद कैसे इसको ग्रहण करेगा और नही माने तो क्या होगा। खैर ये तो अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या कैसे होगा?

वक्त बीता नीलम ने खाना बनाते बनाते दिन भर का सारा वृतांत ज्यौं का त्यौं कागज पर उतार दिया और महेंद्र और बिरजू के सामने, उस कागज को एक चाय की प्लेट में चाय के साथ लेकर बाहर आई।

बिरजू- अरे बेटी चाय ले आयी, अच्छा ही किया मैं बोलने ही वाला था।

तभी पशुशाला में बंधी भैंस आवाज करने लगी।

बिरजू- भैंस चिल्ला रही है शायद प्यासी है ऐर्क बाल्टी पानी दिखा दे उसको बिटिया, तेरी अम्मा भी न जाने कब आएगी, वो रहती है तो ये सब चिंता हम बाप बेटी को नही करनी पड़ती।

नीलम ने हंसते हुए चाय की प्लेट जिसमे घर की बनी नमकीन और वो कागज रखा था नीचे टेबल पर रखा और वो कागज उठाकर महेंद्र को दिखाते हुए अपने बाबू को देते हुए बोली- बाबू ये लो।

बिरजू- इसमें क्या है बेटी।

नीलम- बाबू इसमें मेरी इच्छा कैद है।

महेन्द्र ने सर नीचे कर लिया।

बिरजू- कैसी इच्छा बेटी।

नीलम- है एक इच्छा बाबू, पढ़ लेना और अगर आप इससे विचलित हो जाये या सहमत न हो तो माफ कर देना अपनी इस अभागन बिटिया को और अगर आपको जरा भी लगे कि मेरी खुशी में आपकी खुशी है तो इसका जवाब किसी कागज पर लिखकर दे देना।

(नीलम ने जानबूझकर महेन्द्र के सामने ये सब कहा)

बिरजू ने दिखावे का असमंजस भरा हावभाव चेहरे पर लाते हुए कहा- तू निश्चिन्त रह बेटी, मेरी बेटी की खुशी में ही मेरी खुशी है।

नीलम- नही बाबू.....पहले आप इसको पढ़ लेना......बिना सोचे समझे इंसान को भावनाओं में बहकर हमेशा निर्णय नही लेना चाहिए, पहले आप पढ़ लेना तब ही अपना जवाब देना....चाय पीजिए और मैं जाती हूँ भैंस को पानी पिला के आती हूँ और हाँ एक बात तो कहना ही भूल गयी।

बिरजू- बोल

नीलम- आप मुझे हमेशा की तरह चूड़ियां पहनाइए इन्हें भी देखना है, विश्वास नही हो रहा है इनको की आप इतनी अच्छी चूड़ियां पहना देते हो मुझे, दिन में चूड़ी वाली आयी थी तो मैंने नई चूड़ियां ली अपने लिए, कुछ अम्मा के लिए और रजनी दीदी के लिए भी ली थी।

बिरजू हंसता हुआ- अच्छा तो तुमने दामाद जी को ये बता दिया, की चूड़ियां अक्सर मैं पहना देता हूँ तुम्हे।

नीलम- हाँ तो क्या हो गया इसमें कोई बुराई है क्या।

बिरजू- अरे नही बाबा बुराई किस बात की ये तो प्यार है बाप बेटी का, चलो ठीक है ले आओ चूड़ियां पहना देता हूँ।

महेन्द्र भी बिरजू और नीलम को देखकर मुस्कुराने लगा।

नीलम पहले तो गयी कुएं से एक बाल्टी पानी निकाल कर दोनों भैंसों को पिला आयी फिर घर में गयी, रसोई में जाकर चूल्हे पर रखी परवल की सब्ज़ी को चलाकर चूल्हे में लगी आग को मद्धिम करके आंगन में खाट पर रखी अपनी चूड़ियां लेकर बाहर आ गयी।

बिरजू ने नीलम का हाँथ अपने हांथों में लिया, मन ही मन नीलम सिरह रही थी, अपनी बेटी के नरम हांथों को छूकर सब्र तो बिरजू से भी नही हो रहा था पर महेन्द्र वहीं बैठा दोनों को देख रहा था और ये सब स्वीकार करते हुए हज़म करने की कोशिश में लगा था।

बिरजू ने एक एक करके बड़े प्यार से नीलम को देखते हुए दोनों हांथों में 23 चूड़ियां पहना दी फिर बोला- अरे ये तो 23 ही हैं 24 होनी चाहिए न, 12 एक हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।

नीलम- एक चूड़ी तो टूट गयी न, तो 23 ही बची।

बिरजू- फिर ये तो विषम है, सम होना चाहिए न।

नीलम ने कुछ चूड़ियां अतिरिक्त ले ली थी उनको देते हुए बोली- लो बाबू इसमें से एक पहना दो और बिरजू ने वो भी पहना कर दोनों हांथों में दोनों चूड़ियां पूरी कर दी।

नीलम ने महेन्द्र की तरफ देखते हुए बोला- देखा आपने कैसे पहनाई सारी चूड़ियां एक भी नही टूटी और तेल भी नही लगाया था हाँथ में।

महेन्द्र भी मान गया और बोला- वाकई बाबू ने कितनी सरलता से सारी चूड़ियां पहना दी, जबकि उनके हाँथ मेरे हाँथ से सख्त हैं।

नीलम, महेन्द्र और बिरजू सब हंस दिए, नीलम बोली- अच्छा चलो मैं खाना निकालती हूँ, आप लोग आओ घर में वहीं आंगन में खाना खाएंगे सब।

सबने खाना खाया, बिरजू और महेन्द्र दोबारा बाहर आ गए नीलम ने पीछे वाले कमरे में जहां से सिसकारियों की आवाज बाहर न जाये एक चौड़ी पलंग बिछा दी, जिसपर आज तीन लोग सोने वाले थे।

बिरजू बाहर आके बाहर बने एक दालान में गया जिसमें लालटेन जल रही थी, महेन्द्र बाहर ही लेटा रहा वो समझ गया कि बाबू दालान में वो कागज पढ़ने जा रहे हैं, वो दालान थोड़ी दूर पर ही था।

बिरजू ने वो कागज खोला और पढ़ने लगा, सबकुछ पढ़ने के बाद एक बार तो उसे विश्वास नही हुआ कि नीलम ने इतना कुछ कर डाला, पर उसकी सूझबूझ और रास्ता निकालने की कला पर खुश हो गया और गर्व महसूस करने लगा, उसे ये बात जानकर हैरानी हुई कि उसका दामाद अपनी सगी बहन को भोगना चाहता है पर उसने इसे सामान्य तौर पर लिया और कभी भी अपने चेहरे पर ऐसा कोई भी भाव न लाने का वचन खुद से ही लिया जिससे उसके दामाद को शर्मिंदगी न हो, सब पढ़ने के बाद वो पूरी कहानी समझ गया, नीलम ने उस कागज में यहां तक लिख दिया था कि मैं पीछे वाले कमरे में पलंग बिछाऊंगी और हम तीनो उसपर एक साथ सोएंगे, मैं और आपके दामाद जी पहले उस कमरे में चले जायेंगे और जब लालटेन बुझा देंगे तब आप आना।

बिरजू ने बगल में रखी किताबों के बीच में से एक पन्ना उठाया और उसमे अपना विचार अपना निर्णय लिख कर बाहर आ गया, उसने देखा महेन्द्र घर में जा चुका था, वह वहीं खाट पर बैठ गया, कुछ ही देर में नीलम बाहर आई और दरवाजे पर ही खड़ी होकर बिरजू को देखने लगी, बिरजू ने वो कागज नीलम को थमाया और धीरे से बोला- मैं कुछ देर बाद आता हूँ, नीलम मुस्कुराई और बोली- ज्यादा देर मत लगाना और अपने बाबू के हाँथ से वो कागज लेकर अंदर चली गयी, अंदर जाकर उसने महेन्द्र के सामने पलंग पर लेटकर वो कागज जल्दी से खोला और पढ़ने लगी।
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Update- 71

बिरजू जैसे ही दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ और पलटकर दरवाजे की सिटकनी लगाई महेन्द्र जो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ था धीरे से अंधेरे में नीचे उतरकर बायीं तरफ लेट गया, नीलम मंद मंद हंसने लगी। बिरजू अंदाजे से पलंग तक आया और धीरे से बिस्तर पर लेट गया पलंग पर लेटते ही हल्की चरमराहट की आवाज हुई, ये पलंग बिरजू की शादी की थी जो उसके ससुर ने दी थी उपहार में, काफी पुरानी हो गयी थी पर अब भी मजबूत थी, इसी कमरे में हमेशा रखी रहती थी, काफी लंबी चौड़ी और भारी होने की वजह से कोई इस पलंग को जल्दी अपनी जगह से इधर उधर नही करता था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, सब सोने की कोशिश करने लगे, नीलम बीच में थी महेंद्र बायीं तरफ और बिरजू नीलम से थोड़ा सा दूर दाईं तरफ, नींद किसको आ रही थी, बिरजू ने पैर के पास रखा हल्का चादर उठाया और सर से लेकर पैर तक ओढ़कर लेट गया, कमरे में गुप्प अंधेरा होने के बावजूद भी आंखें अभ्यस्त होने के बाद हल्का हल्का दिख ही रह था।

सब चुपचाप लेटे थे, नीलम का भी आखिरी वक्त पर वाकई में शर्म से बुरा हाल था माना कि सब उसी की इच्छा थी, सब उसने ही किया था पर अब आखिरी वक्त पर उसे भी लज़्ज़ा आ रही थी, महेन्द्र तो बकरी बनकर बायीं तरफ लेटा हुआ था हालांकि वो नीलम से लिपटा हुआ था पर अभी तक वो जितना भी उत्तेजित हुआ था सब मानो छूमंतर सा हो गया था, बिरजू तो दायीं तरफ थोड़ा दूर ही लेटा था। नीलम समझ गयी कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, नीलम ने अपना सीधा हाँथ अंधेरे में सरकाकर अपने बाबू की ओर बढ़ाया और उनकी धोती को पकड़कर हल्का सा खींचकर चुपचाप अपनी तड़प का इशारा किया, बिरजु ने अपनी बेटी के हाँथ को अंधेरे में अपने हाँथ में लिया और हल्का सा दबाकर थोड़ा सा सब्र रखने का इशारा किया। नीलम ने फिर हाँथ वापिस खींच लिया और महेन्द्र के कान में धीरे से बोला- भैया

ये सुनते ही महेन्द्र को अजीब सी सनसनाहट हुई, लन्ड में उसके हल्का सा कंपन हुआ, नीलम सीधी पीठ के बल लेटी थी और महेंद्र दायीं तरफ करवट लेकर नीलम के बायीं तरफ लेटा था, नीलम ने बहुत धीरे से महेन्द्र को भैया बोला था पर फिर भी बिरजू तक आवाज गयी, बिरजू जो अब सबकुछ जान चुका था उसको ज्यादा कुछ खास अचंभा नही हुआ, वो जनता था कि नीलम शरारती है कुछ न कुछ वो करेगी ही, सब कुछ बिरजू के सामने खुल ही गया था बस दिखावे की एक लज़्ज़ा की दीवार थी पर इस दीवार को तोड़कर निर्लज्ज कोई नही होना चाहता था क्योंकि असली मजा तो शर्म में ही है।

महेन्द्र ने भी धीरे से नीलम के कान में सकुचाते हुए बोला- दीदी......मेरी प्यारी बहना

इतना कहकर महेन्द्र नीलम को चूमने लगा, धीरे धीरे वो नीलम के ऊपर चढ़ने लगा नीलम भी बड़े आराम से शर्माते हुए महेन्द्र के नीचे आने लगी, शर्म झिझक और असीम वासना का मिला जुला अहसाह देखते ही बन रहा था, जीवन में आज पहली बार महेन्द्र अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ रहा था और बगल में उसका ससुर लेटा था जो कि जग रहा था, यही हाल नीलम का भी हो चला था किसी ने सच कहा है सोचने और वास्तविक रूप में करने में काफी फर्क होता है, कितना अजीब लग रहा था कि उसके बाबू की मौजूदगी में महेन्द्र उसके ऊपर चढ़ रहा था, और बहन भाई की कल्पना की उमंग ने अलग ही रोमांच बदन में भर दिया था, देखते ही देखते महेन्द्र का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया क्योंकि नीलम उसके कान में धीरे धीरे भैया.....मेरा भाई...बोले ही जा रही थी, वो संकोच की वजह से बहन कम ही बोल रहा था पर व्यभिचार के इस लज़्ज़त को महसूस कर अतिउत्तेजित होता जा रहा था, धीरे धीरे नीलम और महेन्द्र की झिझक कम होती गयी और वो दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे, महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था वो उसके बदन को बेतहाशा सहला रहा था, नीलम ने भी शर्माते शर्माते महेन्द्र को अपनी बाहों में भर ही लिया और प्रतिउत्तर में उसके होठों को चूसने लगी, एकाएक महेन्द्र का हाँथ नीलम की 34 साइज की सख्त हो चुकी चूची से जा टकराया तो उसने तुरंत ब्लॉउज में कैद नीलम की नरम मोटी चूची को जिसके निप्पल अब सख्त हो चुके थे अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम हल्का सा सिसक गयी, महेन्द्र दोनों हांथों से नीलम की दोनों चुचियों को दबाने लगा, नीलम घुटी घुटी आवाज में हल्का हल्का कसमसाने लगी, उत्तेजना बदन में हिलोरें मारने लगी, नीलम को उत्तेजना इस बात से ज्यादा हो रही थी कि बाबू उसके बगल में ही लेटे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं और ये अब कितना रोमांचक होने लगा है, कमरे में गुप्प अंधेरा था अगर उजाला होता तो शायद ये सम्भव न हो पाता, लज़्ज़ा की चादर ओढ़े अब धीरे धीरे काम वासना तन और मन पर कब्ज़ा करने लगी थी, नीलम अब खुलने लगी, महेंद्र लगातार उसकी नरम नरम गुदाज चूचीयों को दोनों हांथों से मसले जा रहा था, नीलम के खड़े हो चुके निप्पल को पकड़कर वो मसलने लगा, ऐसा करने से एक सनसनी नीलम के बदन में ऊपर से नीचे तक दौड़ गयी, कराह कर वो दबी आवाज में बोली- आआआआहहहह...भैय्या.....धीरे से

बूर नीलम की गरम तो पहले से ही थी पर अब मारे जोश के पिघलने सी लगी, नीलम का आधे से ज्यादा ध्यान अपने बाबू पर था, उसने अपनी मांसल जाँघों को फैलाकर पैर को उठाया और महेन्द्र की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया, नीलम का महेन्द्र को इस तरह स्वीकारना बहुत अच्छा लगा, महेन्द्र नीलम के चेहरे को बेताहाशा चूमते हुए गर्दन पर आ गया नीलम बड़े प्यार से अपना बदन महेन्द्र को सौंपे जा रही थी, महेन्द्र ने नीलम की गर्दन पर गीले गीले चुम्बन देना शुरू कर दिया तो मस्ती में नीलम ने भी अपनी आंखें बंद करते हुए सर को ऊपर की तरफ पीछे करते हुए अपनी गर्दन को उभारकर महेन्द्र को परोस दिया, दोनों लाख कोशिश कर रहे थे कि आवाज न हो पर फिर भी चूमने सिसकने की हल्की हल्की आवाज हो ही रही थी।

चूमते चूमते महेन्द्र नीचे आया और नीलम के ब्लॉउज का बटन खोलने लगा अब नीलम मारे उत्तेजना के सिसक उठी क्योंकि अब वो निवस्त्र होने वाली थी, बगल में उसके बाबू लेटे थे, दोनों दुग्धकलश अब उसके बेपर्दा होने वाले थे, नीलम ने खुद ही अपने दोनों हाँथ को उठाकर सर के ऊपर रख लिया जिससे ब्लाउज में कसी उसकी दोनों चूचीयाँ और ऊपर को उठ गई, महेंद्र ने पहले तो झुककर नीलम की काँख में मुँह लगाकर उसके पसीने को अच्छे से सुंघा फिर ब्लॉउज के ऊपर से ही काँख में लगे पसीने को चाटने लगा, थोड़ी गर्मी की वजह से, थोड़ा उमस की वजह से और ज्यादा वासना और उत्तेजना की वजह से तीनों पसीने से तर भी हो रहे थे, नीलम का पसीना अच्छे से चाटने के बाद महेन्द्र ने एक ही झटके में नीलम के ब्लॉउज के सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल पलट दिया और ब्रा में कैद नीलम की उत्तेजना से ऊपर नीचे होती हुई दोनों मोटी मोटी 34 साइज की चुचियों के बीच की घाटी में सिसकते हुए मुँह डालकर ताबड़तोड़ चूमते हुए धीरे से बोला- ओह बहना.....और एक हाँथ से दायीं चूची को हथेली में भरकर मीजने लगा, नीलम ने कराहते हुए हाथ बढ़ा कर थोड़ा दूर लेटे अपने बाबू का हाँथ पकड़ लिया और जोश में उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर दबाने लगी। इधर महेंद्र मानो नीलम की चूचीयों को अपनी बहन सुनीता की चूची समझते हुए उनपर टूट ही पड़ा जिससे नीलम थोड़ा जोर जोर सिसकने लगी और अपने दोनों पैर के अंगूठों को उत्तेजना में तेज तेज आपस में रगड़ने लगी।

बिरजू सर तक पूरा चादर ओढ़े अभी तक सन्न पड़ा हुआ उत्तेजना में लाल हो चुका था उसका 8 इंच का तगड़ा काला लन्ड फुंकार मारने लगा। वो बस नीलम के नरम नरम हांथों को मारे उत्तेजना के हौले हौले दबा रहा था लेकिन अपने बाबू की केवल इतनी सी छुवन नीलम को उत्तेजना से भर दे रही थी, अंधेरे में एक तरफ उसका पति उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूचीयाँ खोले मसल रहा था और दूसरी तरफ उसके बाबू सिर्फ उसके नरम हाथ को प्यार से सहलाकर काम चला रहे थे।

महेन्द्र ने हाथ पीछे ले जाकर नीलम की ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसकी ब्रा को निकालकर पलंग से नीचे ही गिरा दिया, नीलम ने हल्का सा उठकर खुद ही अपना ब्लॉउज भी अंधेरे में निकाल दिया अब वो सिर्फ साड़ी में रह गयी थी कमर से ऊपर का हिस्सा उसका पूरा निवस्त्र हो चुका था, झट से वो लेट गयी और इन सभी क्रिया में उसके माध्यम आकर के खरबूजे समान उन्नत दोनों चूचीयाँ इधर उधर स्वच्छंद हिलकर महेंद्र को पागल कर गयी, जैसे ही वो लेटी उसकी दोनों चूचीयाँ किसी विशाल गुब्बारे की तरह उसकी छाती पर इधर उधर हिलने लगे, महेंद्र से अब सब्र कहाँ होने वाला था झट से वो उन सपंज जैसी उछलती मचलती चूचीयों पर टूट पड़ा और बेसब्रों की तरह चूचीयों पर पहले तो जहां तहां चूमने लगा फिर एकाएक बारी बारी से दोनों निप्पल को पीने लगा, नीलम के निप्पल तो फूलकर किसी जामुन की तरह बड़े हो गए थे और वासना में कड़क होकर खड़े हो चुके थे, कुछ देर तक वो नीलम की चूचीयाँ पीता और मसलता दबाता रहा फिर नाभी को चूमने लगा नीलम मस्ती में एक हाँथ से उसका सर सहलाने लगी और दूसरा हाँथ जो उसके बाबू के हाँथ में था उससे वो अपने बाबू के हाँथ को सहला रही थी, अब उससे रहा नही जा रहा था वो अब बस खुद को दो मर्दों के बीच मस्ती में डूबी एक औरत समझ रही थी जिसको सिर्फ और सिर्फ अब लन्ड चाहिए था, एक के बाद एक लन्ड।

उसकी शर्म और झिझक अब काफी हद तक गायब हो चुकी थी, उसने जानबूझ कर धीरे से कई बार महेन्द्र को भैया बोला ताकि महेन्द्र ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी अपना काम करके हटे और फिर आज की रात असली पाप हो।

इधर बिरजू भी चादर में से अपना मुँह निकालकर नीलम को देखने लगा नीलम ने सर घुमाकर अपने बाबू को देखा तो वो उसकी तरफ ही देख रहे थे नीलम ने उनके हाँथ से अपना हाथ छुड़ाकर उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख दी और अंधेरे में बड़े प्यार से उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रगड़ने लगी मानो कह रही हो कि मुझे अपने बदन पर एक एक अंग पर इन होंठों से चुम्बन चाहिए।

इधर बिरजू ने चादर के अंदर ही दूसरे हाँथ से अपनी धोती खोल कर काला विशाल लन्ड बाहर ही निकाल लिया था।

महेन्द्र के सब्र का बांध अब टूट चुका था तो उसने नीलम की साड़ी को नीचे से ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया शर्म और झिझक तो अब भी उसके मन में थी पर वासना भी भरपूर थी, नीलम अब और भी मचल उठी क्योंकि अब उसकी जाँघों के बीच की जन्नत उजागर होने वाली थी, महेंद्र ने साड़ी को आखिर कुछ ही पलों में उठाकर कमर तक कर दिया और अपने हांथों से नीलम की दोनों मांसल जाँघों और उसमे कसी कच्छी को ऊपर से ही सहलाने लगा जैसे ही उसने नीलम की कच्छी के ऊपर से ही उसकी बूर पर हाँथ रखा तो वह वहां भरपूर गीलापन महसूस कर मदहोश हो गया और झुककर कच्छी के ऊपर से ही बूर के रस को चाटने लगा, अंधेरे में इस अचानक हमले से नीलम सिसकते हुए चिहुँक पड़ी और ओह मेरे भैया कहते हुए उसके सर को सहलाने लगी, कुछ देर महेन्द्र झुककर ऐसे ही नीलम की जाँघों और कच्छी के ऊपर से महकती रसीली बूर को चाटता रहा जब नीलम ने नही बर्दास्त हुआ तो उसने बिरजू के होंठों के अंदर अपनी एक उंगली घुसेड़ते हुए महेंद्र से धीरे से बोला- भैया खोलो न कच्छी अपनी बहना की कब तक हम ऐसे ही शर्माते रहेंगे अब बर्दास्त नही होता।

ये सुनते ही बिरजु धीरे से पलंग से उठा और जल्दी से अंधेरे में खुली धोती दुबारा लपेटी और जानबूझकर धीरे से कमरे से बाहर जाने लगा वो जनता था कि जबतक वो यहां रहेगा महेन्द्र खुलकर नीलम को नही चोद पायेगा, बस थोड़ी देर के लिए वो बाहर जाना चाहता था हालांकि नीलम पहले तो चुपचाप उनके हाँथ को पकड़कर रोकना चाही पर फिर वो भी समझ गयी और हाँथ छोड़ दिया, बिरजू धीरे से कमरे से बाहर निकल गया और बाहर आकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।

महेंद्र भी ये जान गया कि बाबू जी बाहर क्यों चले गए, आखिर उनके अंदर एक मर्यादा थी, महेंद्र तो मानो अब गरज उठा और नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम भी उसका साथ देने लगी धीरे से बोली- भैया कच्छी खोलो न।

महेन्द्र- कच्छी खोलूं दीदी, देख लूं आपकी वो

नीलम सिसकते हुए- हाँ मेरे भाई खोल के देख न जल्दी अपनी बहन की बूर

नीलम के मुँह से बूर शब्द सुनकर महेंद्र बौरा गया

महेन्द्र- पर दीदी मेरे पास रोशनी नही है कैसे देखुंगा।

नीलम- रुक मेरे भाई रुक बाबू की छोटी टॉर्च यहीं होगी

नीलम ने थोड़ा उठकर बिस्तर पे टटोला तो टोर्च हाँथ लग गयी उसने टॉर्च को जला कर अपनी जाँघों के बीच दिखाया और बोली- लो भैया अब उतारो मेरी कच्छी, और देखी मेरी बूर

महेंद्र छोटी टॉर्च की हल्की नीली रोशनी में नीलम की मोटी मोटी जांघे और उसमे कसी छोटी सी कच्छी और उसपर बूर की जगह पर गीलापन देखकर मदहोश हो गया उसने झट से नीलम की कच्छी को पकड़ा और जाँघों से नीचे तक खींच कर उतार दिया, हल्के काले काले बालों से भरी नीलम की रस बहाती वासना में फूलकर हुई पावरोटी की तरह महकती बूर को देखकर महेन्द्र मंत्रमुग्ध सा कुछ देर बूर की आभा को देखता ही रहा।

नीलम- भैया कैसी है बहन की बूर?

महेंद्र- मत पूछ मेरी बहन तेरी बूर तो जन्नत है।
बनावट इसकी कितनी प्यारी है......कितनी मादक है तेरी बूर....दीदी।

बस फिर सिसकते हुए महेंद्र बूर पर टूट पड़ा नीलम ने झट से कच्छी को पैरों से निकाल फेंका और दोनों पैर फैलाकर मखमली बूर महेन्द्र के आगे परोस दी महेन्द्र "ओह मेरी बहना क्या बूर है तेरी" कहता हुआ नीलम की बूर पर टूट पड़ा, नीलम भी एक मादक सिसकारी लेते हुए "आह मेरे भैया चाटो न फिर अपनी बहना की बूर, बहुत प्यासी है आपके लिए", महेन्द्र के बालों को अपनी बूर चटवाते हुए सहलाने लगी।
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Update- 72

महेन्द्र बड़ी सी जीभ निकाले नीलम की वासना में फूली हुई पनियायी बूर को नीचे से लेकर ऊपर तक चाटने लगा, महेन्द्र की जीभ की रगड़ अपनी बूर की दोनों फाँकों के बीच, फांकों पर, बूर के तने हुए दाने पर पाकर नीलम के विशाल 36 साइज के नितंब बरबस ही सनसनाहट में थिरक जा रहे थे, पहले तो उसने अपने दोनों पैर महेन्द्र की पीठ पर रखे हुए थे पर बूर चटाई का और सुख लेने के लिए नीलम ने दोनों पैरों को और चौड़ा करके हवा में फैला दिए और इतना ही नही फिर नीलम ने जानबूझ कर महेन्द्र को और जोश चढ़ाने के लिए अपने सीधे हाँथ की उंगली से अपनी बूर की दोनों फाँकों को चीरकर उसका प्यारा सा गुलाबी छेद दिखाते हुए बड़े ही विनती के भाव में बोली- भैया जल्दी जल्दी चाटो अपनी दीदी की बुरिया को............कहीं अम्मा न आ जाये.............जल्दी जल्दी सब कुछ करो न......... बहुत मजा आ रहा है.......कभी कभी तो मौका मिलता है.......…..बहुत मजा आता है भाई के साथ गंदा काम करने में........ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.......अम्मा।

महेन्द्र ने अपनी जीभ नुकीली बना के नीलम की बूर के गुलाबी छेद पर भिड़ा दी थी इसलिए नीलम सिसकारी लेते हुए चिहुँक गयी।

नीलम के मुँह से ये बोल सुनकर महेन्द्र से रहा नही गया वो और तेज तेज बूर का चप्पा चप्पा चाटने लगा, नीलम जोश और बदन में उठ रही तेज सनसनी के मारे अपने ही दोनों हांथों से अपनी गुब्बारे जैसी फूली हुई दोनों चूचीयों को मसलने लगी, दोनों तने हुए निप्पल को खुद ही मीजने लगी, चुदास इतना सर चढ़ जाएगी ये उसने भी कभी सोच नही था।

काफी देर बूर का चप्पा चप्पा चाटने से बूर एकदम गीली हो गयी, नीलम की बूर महेन्द्र के थूक से लबालब सन गयी थी, बूर पर हल्के हल्के काले काले बाल थूक से सराबोर हो चुके थे, बूर पूरी फूलकर किसी पावरोटी की तरह उभर आई थी और दोनों फांकों के बीच तना हुआ दाना जोश के मारे लाल हो गया था, सच पूछो तो बूर अब लन्ड मांग रही थी, नीलम तड़पते हुए छोटी टॉर्च को बुझाकर अपने दोनों हांथों से सर हो अगल बगल तड़पकर पटकते हुए अपनी चूचीयों को खुद ही मसले दबाए जा रही थी, कभी वो जोश के मारे सर को अगल बगल हिलाती तो कभी अपनी चूची और कमर से ऊपर के हिस्से को किसी धनुष की तरह ऊपर को मोड़कर तान देती जिससे उसकी चूचीयाँ किसी दो पहाड़ की तरह और ऊपर को उठ जाती।

नीलम के बदन में वासना की तरंगे, चुदाई की खुमारी अब उफान पर आ चुकी थी, किसी सागर की बेकाबू लहरों की तरह उसका बदन मचल रहा था और सच में एक गदराए यौवन की स्त्री के बदन में वासना जब खुलकर हिलोरे मारने लगती है और वो लोक लाज छोड़कर तड़पने मचलने लगती है तो एक अनुभवी पुरुष ही उसे अच्छे से काबू कर सकता है, आज महेन्द्र की बूर चटाई नीलम के मन भा गयी थी न जाने क्यों आज महेन्द्र से बूर चटवाने में नीलम को मजा आया था शायद इसकी वजह उसके बाबू की मौजूदगी थी, ये सोचकर उसे अति आनंद और रोमांच हो रहा था कि कैसे वो अपने बाबू की जानकारी में अपने पति से बूर चटवा रही है, हो न हो बाहर से जरूर उसके बाबू उसे देख रहे होंगे और ये सच भी था बाहर बिरजू खिड़की के पास खड़ा अपनी बेटी की मादक सिसकियां सुनकर अति उत्तेजित हो ही रहा था।

नीलम से जब नही रहा गया तो उसने महेन्द्र के चेहरे को पकड़ा और उसका मुँह बूर से छुड़ाया और कंधों से पकड़कर ऊपर चढ़ने का इशारा किया महेन्द्र झट से नीलम के ऊपर चढ़ गया नीलम ने अपने पैर महेन्द्र की कमर पर दुबारा कैंची की तरह लपेट दिए, महेन्द्र का लोहे की तरह तन्नाया लंड नीलम की बूर पर, उसकी फाँकों पर, फांकों के बीच में जहां तहां ठोकरें मारने लगा, और एकाएक बूर के गरम गरम रसीले छेद पर सेट हो गया तो नीलम जोर से सिसक उठी- ओओओहहहह........भैयायायाया........चोद दो न जल्दी.........डालो न अपना लंड अपनी दीदी की बुरिया में.....कहीं अम्मा न आ जाये......आज पहली बार अपनी बहन को चोदने जा रहे हो.......आह कैसा लग रहा है भाई के ही साथ चुदाई करने में, जिसको मैं राखी बांधती हूँ आज उसी से चुदवा रही हूं.........आह भैया...…..करो न.......डालो अब बर्दाश्त नही होता।

(नीलम जानबूझ कर महेन्द्र से ऐसी कामुक बातें कर रही थी)

आखिर महेन्द्र भी कब तक चुप रहता वासना उसके सर चढ़कर गरजने लगी, इतना जोश उसे कभी नही चढ़ा था, उसने नीलम को कस के अपनी बाहों में जकड़ लिया और गालों होंठों पर ताबड़तोड़ चूमते और लंड को बूर की फांकों पर ऊपर ऊपर रगड़ते हुए नीलम से बोला- दीदी आज कितना अच्छा लग रहा है तुझे पा के, मैंने कभी सपने में भी नही सोचा था कि मुझे अपनी ही सगी बहन की मखमली बूर मिलेगी चोदने को।

(महेन्द्र लगतार अपना लंड नीलम की बूर की फांकों के बीच रगड़ रहा था)

नीलम- हां भैया मैं भी तेरा लंड पाकर निहाल हो गयी, अब चोद न जल्दी, कोई आ जायेगा नही तो घर में, बड़ी मुश्किल से मौका मिला है तू देर क्यों कर रहा है।

ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपने नितंब को ऊपर की ओर उठाने लगी।

महेन्द्र से भी अब नही रहा गया और उसने जोर का एक धक्का नीलम की तरसती बूर में मारा तो महेन्द्र का लंड सरसराता हुआ गच्च से बूर की गहराई में उतर गया। बूर अंदर से किसी तेज भट्टी की तरह सुलग रही थी, उसकी तेज गर्माहट अपने लन्ड की चमड़ी पर महसूस कर महेन्द्र मदहोश हो गया, दोनों के मुँह से ही एक जोर की मादक सिसकारी निकली, नीलम ने महेन्द्र को कस के अपने से लिपटा लिया और महेन्द्र ने अपने दोनों हांथों से नीलम के भारी नितंब थामकर अपना लन्ड एक बार तेजी से बाहर निकाल कर दुबारा गच्च से बूर में पेल दिया तो नीलम लंड के लज़्ज़त भरे मार से सिसकते हुए कराह उठी।

दोनों अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपट गए, कुछ देर दोनों आंखें बंद किये एक दूसरे के बदन की लज़्ज़त और लंड-बूर के मिलन के असीम आनंद को अच्छे से महसूस करते रहे, कोई कुछ बोल नही रहा था बस आंखें बंद किये एक दूसरे को महसूस कर रहे थे, बीच बीच में महेन्द्र अपना लंड बूर में से बाहर खींचकर दुबारा किसी पिस्टन की तरह बूर की गहराई तक पेलता तो नीलम लन्ड की लज़्ज़त भरी मार को गहराई में महसूस कर चिहुकते हुए महेन्द्र की पीठ पर नाखून से चिकोट लेती, महेन्द्र नीलम के गालों को चूमने लगा और धीरे से बोला- दीदी

नीलम- हम्म

महेन्द्र- रोशनी करो न थोड़ा अपने चेहरे पर।

नीलम- क्यों भैया

महेन्द्र- आज बरसों तड़पने के बाद अपनी बहन की बूर मिली है मैं देखना चाहता हूं कि मेरी दीदी के चेहरे का क्या हाव भाव है, तुम्हे अच्छा लग रहा है कि नही।

नीलम- धत्त....गंदे भैया.....एक तो बहन की बूर में अपना खूंटे जैसा लन्ड घुसाए हुए हो ऊपर से उसका चेहरा भी देखना है, मुझे लाज आती है।

(नीलम ने जानबूझ कर नाटक किया)

महेन्द्र- जलाओ न बत्ती दीदी, देखूं तो सही तुम्हारे चेहरे की लज़्ज़ा

नीलम ने बगल में पड़ी टॉर्च उठा के महेन्द्र को दी और बोली- लो खुद ही जला के देख लो बहन की लाज.....गंदे

महेन्द्र ने टॉर्च को जलाकर नीलम के चहरे पर किया तो नीलम शर्मा गयी, टॉर्च की रोशनी ज्यादा तो थी नही, सिर्फ चेहरे और उनके आस पास तक ही थी।

महेन्द्र ने नीलम को शर्माते हुए देखा तो और भी जोश से भर गया, नीलम ने एक बार महेन्द्र की आंखों में देखा फिर शर्मा कर मुस्कुराते हुए चेहरा बायीं तरफ घुमा लिया और बोली- धत्त बेशर्म भैया, एक तो अपनी सगी बहन को चोरी चोरी चोदते हो ऊपर से उसकी लज़्ज़ा भी देखते हो.....हम्म....गंदे।

महेन्द्र- हाय मेरी बहना, कितनी खूबसूरत है तू

नीलम- सच

महेन्द्र- बिल्कुल सच मेरी बहना, मेरी सुनीता, मेरी जान

नीलम- आह मेरे भैया

(दरअसल महेन्द्र ने एक गच्चा बूर में तेज़ी से मार दिया था तो नीलम चिहुँक पड़ी)

नीलम ने टॉर्च बंद कर दी और धीरे से बोली- अब चोदो न अपनी बहन को

(दरअसल नीलम देर नही करना चाहती थी, उसे तो इंतज़ार था अपने बाबू का, अपने मन पसंद पुरूष का, महेन्द्र के साथ ये सब खेल तो वो बस इसलिए खेल रही थी की वो जल्दी निपट जाए)

हालांकि वासना और चुदास कि तड़प में तर बतर तो वो भी हो चुकी थी पर वो झड़ना अपने बाबू के अत्यधिक मजबूत लंड की रगड़ से चाहती थी न कि महेंद्र के, और उपाय के नियम भी यही थे।

नीलम ने टार्च बंद कर दी तो महेन्द्र अब नीलम की गीली बूर में धीरे धीरे धक्के मारने लगा, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगी, दोनों पैर उसने महेन्द्र की कमर पर लपेट रखे थे और उसकी पीठ और कमर को बड़े दुलार के साथ लगातार सहला रही थी, महेन्द्र ने धक्के मारते वक्त महसूस किया कि वो अपने सामर्थ्य से तो अपना समूचा लंड नीलम की बूर की गहराई में पेल रहा है पर फिर भी वो उसकी बूर की गहराई के आखिरी छोर को छू नही पा रहा है, मानो उसका लंड नीलम की बूर की गहराई के हिसाब से छोटा पड़ रहा हो, हालांकि मजा तो उसे भरपूर आ रहा था, पर वो धक्के मारते हुए अपने दोनों पैरों को पलंग की पाटी से टेक लगाकर तेज तेज धक्के लगाते हुए नीलम की बूर की अत्यंत गहराई तक लंड पहुचाने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर वो उस गहराई को छू नही पा रहा था और इस बात को नीलम पहले ही अच्छे से महसूस कर चुकी थी, वो भी कई बार नीचे से अपने मादक विशाल नितंब उठाकर महेन्द्र के लन्ड के टोपे को बूर की गहराई के आखिरी छोर तक टच कराने की कोशिश करती पर लन्ड वहां तक नही पहुंच पा रहा था, जिससे नीलम को कुछ कमी महसूस हो रही थी, वो मजा उसे नही मिल पा रहा था हालांकि महेन्द्र को पूरा मजा मिल रहा था और वो अब ताबड़तोड़ धक्के पे धक्के मारे बूर चोद रहा था, नीलम भी दिखावे की सिसकारी लेते हुए महेन्द्र को सहलाती और चूमती जा रही थी पर कहीं न कहीं कुछ खालीपन था।

जबकि पहले ऐसा नही था पहले महेन्द्र का लंड जब नीलम की बूर में घुसता था तो नीलम और महेन्द्र दोनों को यही लगता था कि बूर बस इतनी ही गहरी है, महेन्द्र का पूरा लंड बूर में समा जाता था तो महेन्द्र को लगता था कि बूर की गहराई तक वो पहुँच गया है पर असल में नीलम की बूर की गहराई की और परतों को खोलकर उसे और गहरा बनाया था उसके सगे पिता के विकराल लंड ने, नीलम को भी पहले क्या पता था कि उसकी बूर और गहरी है, जब पहली बार महेन्द्र का लंड सुहागरात में नीलम की बूर में गया था तो उसे भी यही लगा था कि लंड इतना ही बड़ा होता है और गहराई इतनी ही होती है बूर की, पर कल की रात जब पहली बार उसके बाबू का लंड उसकी कमसिन बूर में उतरा तब उसे समझ में आया कि लंड क्या होता है, उसे वो पल याद है जब कल उसके बाबू का लन्ड उसकी बूर की अनंत गहराई की अनछुई मांसपेशियों को चीरता हुआ उस जगह पर जा पहुँचा था जो बरसों से वीरान पड़ी थी जिसका आभास स्वयं नीलम को भी नही था, कैसे उसके बाबू के विशाल लन्ड ने वहां पँहुच कर उस जगह के चप्पे चप्पे को बड़े प्यार और दुलार से चूमा था, कैसे वहां अपना परचम लहराया था, तभी तो उसके बदन में एक अत्यंत खूबसूरत झनझनाहट हुई थी, जैसे बरसों की प्यास बुझी हो और वो उसी सुख को पाकर अपने बाबू के लन्ड की कायल हो गयी थी, दरअसल बूर को भी वही लंड भाता है जो उसकी अनछुई गहराई तक पहुँचकर वहां कलश में रखे मटके को फोड़कर उसका रस पी सके और वहां के चप्पे चप्पे को चूमकर एक झनझनाहट बूर में पैदा कर दे, और इस दौरान जब महेन्द्र भी नीलम को हुमच हुमच कर चोद रहा था तो नीलम उसी सनसनाहट और सुख को पाने का भरकस प्रयास अपनी गाँड़ को उछाल उछालकर कर रही थी पर वो झनझनाहट वाला मजा उसे महेन्द्र के लन्ड से मिल नही पा रहा था।

दूसरा फर्क ये था कि उसके बाबू का काला लंड जब फुंकार मारकर खड़ा होता है तो उसपर काफी सारी नसें उभर आती है, और जब वो लंड बूर में अंदर बाहर होता है तो वो नसें बूर की दीवारों से एक दरदरा सा घर्षण पैदा करके असीम सुख देती हैं, साथ ही साथ लंड के इर्द गिर्द काले काले बाल, जब लंड बूर में जड़ तक घुसता है तो वो काले काले बाल बूर की फांकों और बूर के तने हुए दाने से बार बार टकराकर बदन में बिजली जैसा कंपन पैदा करते है जिससे नीलम को अपार सुख मिलता है, और इस वक्त उसे वो सुख महेन्द्र के लंड से न मिलने पर वो उस लन्ड को मिस कर रही थी।

चोदते चोदते महेन्द्र रुक गया। नीलम ने सवालिया निगाहों से अंधेरे में उसे देखा।


नीलम- क्या हुआ भैया......चोदो न रुक क्यों गए, बहन की बूर में मजा नही है क्या?


महेन्द्र- दीदी.....तेरी बूर में मजा तो इतना है कि जी करता है उम्र भर इसे चोदता रहूं।


नीलम- फिर......फिर क्या हुआ मेरे राजा भैया....चोदो न अपनी बहना को......कितना मजा आ रहा था।


महेन्द्र- मुझे बस एक बात पूछनी है दीदी।


नीलम- तो पूछ न.....चोदता भी रह और पूछता भी रह।


महेन्द्र फिर हल्का हल्का बूर चोदने लगा और बोला- दीदी


नीलम- ह्म्म्म........ .........आह.... हाँ ऐसे ही चोद


महेन्द्र- जीजा तुम्हे नही चोदते न


नीलम- एक बात बताऊं मेरे भैया


महेन्द्र- हाँ मेरी प्यारी दिदिया।


नीलम- अगर वो मुझे चोदते होते न, फिर भी मैं तुझसे छुप छुप के चुदवाती, तुझे तेरे हक़ का देती, नही तो भगवान भी मुझे माफ़ नही करेगा।


महेन्द्र- कैसा हक़ दीदी? क्या से सच है....की फिर भी तुम मुझसे चुदवाती।


नीलम- हां मेरे भैया सच........आह....ऐसे ही गप्प गप्प लंड डाल मेरी बूर में.....आह भाई.... मजा आ रहा है बहुत।


महेन्द्र- पर क्यों दीदी?


नीलम सिसकते हुए- क्योंकि तू मेरा भाई है......मैं तुझे राखी बांधती हूँ न, और तू मेरी रक्षा का वचन देता है।


महेन्द्र- हाँ देता तो हूँ वचन।


नीलम- तो जरा सोच मेरे प्यारे भैया........जब एक पुरुष 18 19 साल बाद किसी स्त्री के जीवन मे आकर उससे शादी करता है..........और शादी के फेरों के दौरान वो उस स्त्री की रक्षा का वचन देता है फिर उस पुरुष को उस स्त्री की बूर सुहागरात में मिलती है चखने को.......... और दूसरी तरफ वो भाई जो बचपन से उसकी रक्षा का वचन देता आ रहा है बदले में उसको कुछ नही?.........उसको भी तो बहना की बूर चखने को मिलनी चाहिए न............बहन की शादी से पहले न सही पर शादी होने के बाद कभी न कभी चुपके से तो उसे उसके हक़ का मिलना चाहिए न.......... आखिर वो भी तो उसकी रक्षा का वचन बचपन से देता चला आ रहा है और रक्षा कर भी रहा है, तो ये नाइंसाफी एक भाई के साथ क्यों भला?......इसलिए मेरे भैया मेरी बूर पर तेरा पूरा हक है.......कोई बहन अपने भैया को अपनी बूर चखाये या न चखाये मैं तो जरूर चाखाउंगी अपने प्यारे भैया को.........आखिर एक दिन मर ही जाना है ये मिट्टी का तन मिट्टी में मिल ही जाना है.............और जवानी भी तो हमेशा नही रहेगी.......तो क्यों तड़पे मेरा भाई बूर के लिए ...क्या उसकी बहन के पास नही है बूर........अगर भाई नही चाह रहा होता तो बात अलग थी......जब भाई प्यासा है.......तो क्यों न बहन अपनी बूर चखाये अपने सगे भाई को.....औऱ चुपके से उसकी प्यास बुझा दे.....जो जीवन भर उसकी रक्षा का वचन देता है.........आखिर एक भाई बचपन से बहन की रक्षा का वचन निभाता है.....एक रस भरी मिठाई की रक्षा बचपन से जवानी तक जब तक बहन की शादी नही हो जाती करता है.......और शादी होने के बाद बहन उस मिठाई को किसी ऐसे पुरुष को खिला देती है जो इतने सालों बाद उसकी जिंदगी में आया है..............इतना भी नही सोचती की इस मिठाई पर थोड़ा हक़ तो उस भाई का भी है जिसने बचपन से इसकी रक्षा की है..........उस नए पुरुष को वो मिठाई दे देती है चाहे वो उसकी इज्जत करे या न करे, पर उसे नही देती जिसने उस मिठाई पर कभी एक मक्खी तक नही बैठने दी........ सिर्फ समाज के डर से, पर ये एक भाई के साथ नाइंसाफी है, और केवल शादी तक ही नही भाई तो बहन की रक्षा शादी के बाद भी मरते दम तक करता है, पर बहन शादी होने के बाद भी भाई को उसके हक़ की मिठाई नही खिलाती, कम से कम शादी के बाद चुपके से कभी न कभी अपनी बूर का स्वाद एक बहन अपने सगे भाई को चखा ही सकती है, क्या भाई बहन को कम संतुष्टी देगा.......कदापि नही........ इसलिए मेरे भाई चोद लो अपनी बहन को जी भरके........तेरे लंड की प्यासी है तेरी बहना की बूर, और इसलिए अगर तेरे जीजा मुझे चोदते होते तो भी मैं तुझे अपनी बूर चखाती।


नीलम ने सिसकते और कराहते हुए लंबा चौड़ा एक मादक भाषण दे डाला, महेन्द्र नीलम की लॉजिक भरी बातें सुनकर दंग रह गया, ऐसे ही बेबाक जवाब होते थे नीलम के, महेन्द्र को ये सब सुनके इतनी मस्ती चढ़ी की उसने कस के नीलम को दबोचा और "ओह मेरी दीदी......हाय मेरी प्यारी दीदी........तू मुझे इतना प्यार करती है......की अपनी मिठाई मुझे परोस दी........सच में तेरी बूर के आगे सारी मिठाई फीकी है........मैं मर जाऊंगा तेरे बिना.........तेरी बूर के बिना मैं नही रह पाऊंगा.......आह क्या बूर है तेरी मेरी बहन" कहते हुए दनादन नीलम की बूर में गच्च गच्च लंड पेल पेल कर नीलम को चोदने लगा।


नीलम की चाल को महेन्द्र फिर नही समझ पाया, नीलम मंद मंद मुस्कुराती रही और हल्का हल्का कभी कभी लंड के आड़े तिरछे धक्के बूर की दीवारों पर लगने से आह....ऊई अम्मा करते हुए सिसकती रही, पर वो एक कमी उसे बहुत खल रही थी।


इतनी मादक बातें सुनकर और नीलम की लज़्ज़त भरी बूर में काफी देर से लंड पेलते रहने की वजह से अब महेन्द्र का टिक पाना मुश्किल था, उधर बिरजू भी कमरे से आ रही मादक सिसकियों को सुनकर बेचैन होता जा रहा था, कभी वो इधर उधर घूमने लगता तो कभी खिड़की के पास खड़ा हो जाता, उमस और गर्मी हो ही रही थी, तभी आंगन में खड़े होने की वजह से बिरजू के ऊपर बारिश की हल्की हल्की दो चार बूंदे गिरी, बिरजू ने सर उठा के ऊपर देखा तो काले काले बादल छा चुके थे, बारिश होने वाली थी अब तेज।


बिरजू ने अब अंदर जाना उचित समझा, जैसे ही उसने घर के अंदर प्रवेश करने के लिए दरवाजा खोला हल्की चर्रर्रर्रर की आवाज हुई और तभी जोर से बादल गरजे और बिजली चमकी, बिलजी इतनी तेज चमकी की एक पल के लिए पूरा आंगन जगमगा गया और कमरे में भी भरपूर रोशनी हुई, जिससे नीलम और बिरजू की नजरें मिल गयी, नीलम मारे लज़्ज़ा के गनगना गयी की कैसे एक पिता ने अपनी
सगी बेटी को चुदवाते हुए देख लिया, और वो किस तरह लेटकर महेन्द्र से चुदवा रही है।


महेन्द्र ने भी पलटकर बिरजू की ओर देखा, बिरजू ऊपर से बिल्कुल नंगा था, नीचे उसने धोती पहन रखी थी, जिसमे उसका काला जंगली सा लंड कब से फुंकार मार रहा था, एक पल के लिए तेज रोशनी होने से बिरजू ने महेंद्र को नीलम के ऊपर चढ़कर उसको हचक हचक के चोदते हुए देख लिया, नीलम और महेन्द्र मदरजात नंगे थे, नीलम ने झट से एक बड़ा चादर उठा कर महेंद्र और अपने ऊपर डालकर ढक लिया, और मारे उत्तेजना के तेज तेज अपने बाबू के सामने सिसकने लगी, महेन्द्र से भी अब रुका नही जा रहा था वो नीलम को बहुत तेज तेज चोदने लगा, बिरजू की मौजूदगी का अहसाह कर अब नीलम के बदन में अजीब सी झुरझुरी होने लगी, एक अलग ही रोमांच का अहसाह उसे होने लगा, जिससे वो हल्का हल्का झड़ने के करीब जाने लगी थी कि तभी महेंद्र हुंकार मारते हुए नीलम की बूर में आखिरी धक्का लगाकर गनगना के झड़ने लगा, धक्का उसने इतना तेज मारा था कि पलंग हल्का सा चरमरा गई थी पर लंड उसका फिर भी बूर की उस गहराई को नही छू पाया था जहां तक जाने की आशा नीलम कर रही थी। पूरे कमरे में न चाहते हुए भी तेज तेज कामुक सीत्कार गूंज उठी।


एक बड़ी चादर के अंदर महेन्द्र और नीलम एक दूसरे से गुथे पड़े थे, पूरा बदन दोनों का ढका हुआ था बस पैर और मुँह बाहर थे, महेन्द्र के लंड से वीर्य की एक मोटी धार झटके ले लेकर कई बार निकली और नीलम की प्यासी बूर को भरने लगी, महेन्द्र जोर जोर से हाँफता हुआ, नीलम के ऊपर ढेर हो गया, नीलम ने उसे किसी बच्चे की तरह दुलारते हुए अपने आगोश में भर लिया और हौले हौले उसकी पीठ सहलाने लगी, अपने अंदर का सारा लावा नीलम की प्यासी बूर में उड़ेलने के बाद महेन्द्र धीरे धीरे शांत हुआ।


अब नीलम और महेन्द्र दोनों को ये तो पता था कि बाबू कमरे में मौजूद हैं, और बिरजू को भी पता था कि महेन्द्र उसकी बेटी की बूर में झड़ चुका है।


उपाय के नियम के अनुसार कुछ देर शांत पड़े रहने के बाद अब महेन्द्र धीरे धीरे अपना हल्का सा मुरझाया लंड नीलम की बूर में पेलने लगा, नीलम को अब और मस्ती चढ़ने लगी और वो जानबूझ कर सिसकने लगी, महेन्द्र लगातार लंड बूर में पेलने लगा, बूर एकदम गीली थी, महेन्द्र के वीर्य से लबालब भरी हुई थी।


इधर बिरजू अपनी धोती खोलकर पलंग पर रख देता है और पूरा नंगा हो जाता है वो पलंग पर चढ़कर बिल्कुल महेन्द्र के पीछे आ जाता है, नीलम और महेन्द्र का बदन तो चादर में ढका हुआ था, नीलम ने अपने दोनों पैर फैलाकर अब हवा में उठा लिए थे, पलंग पर बिरजू के चढ़ने से पलंग एक बार फिर चरमरा गई और नीलम और महेन्द्र को बिरजू के एकदम करीब आने से एक तेज सनसनाहट का अहसाह हुआ, बिरजू नीलम के दोनों पैरों के बीच महेन्द्र के पीछे पूरा नंगा अपना दैत्याकार काला लन्ड हाँथ में लिए बैठा था, वो सब कुछ बिल्कुल उपाय के अनुसार करना चाहता था कहीं कोई चीज़ छूट न जाये, नीलम और महेन्द्र भी बिल्कुल वैसा ही कर रहे थे पर शर्म और लज़्ज़ा से उनका बुरा हाल था। महेन्द्र लगातार अपना लंड नीलम की बूर में अंदर बाहर कर रहा था उसकी गाँड़ ऊपर नीचे हिलती हुई गुप्प अंधेरे में भी दिख रही थी, बूर वीर्य से लबालब भरी होने की वजह से कमरे में फच्च फच्च की लगातार गूंज रही थी।


अब महेन्द्र का लन्ड भी अपने ससुर को बिल्कुल ठीक अपने पीछे मौजूद होने से एक अजीब रोमांच में सख्त होने लगा की तभी नीलम को अपनी बूर की गहराई में झनझनाहट महसूस हुई उसे लगा कि अब वो झड़ जाएगी तभी उसने जोर से कहा- अब बस....अब रुक जाओ।


(ये इशारा था महेन्द्र को, की वो अब उपाय के अनुसार हट जाय, महेंद्र और बिरजू दोनों समझ गए कि नीलम झड़ने की राह पर आ चुकी है)


महेन्द्र ने पक्क़ से वीर्य से सना हुआ खड़ा लंड नीलम की वीर्य से भरी लबालब बूर में से निकाला और चादर के अंदर से निकलकर बगल में पड़ा एक दूसरा चादर ओढ़ते हुए नीलम के बायीं ओर पलंग पर लेटकर अपने खड़े लंड पर लगे वीर्य को चादर में ही पोछने लगा।


इधर नीलम ने झट से अपने दोनों पैर फिर से फैला लिए हालांकि उसने अपने बदन को पूरा चादर से ढका हुआ था, बिरजू पोजीशन बनाकर हाहाकारी मूसल जैसा काला लंड खोले उसकी दोनों टांगों के बीच बैठ गया और धीरे से बोला- मेरी बेटी.....मेरी बच्ची


नीलम शर्म से कुछ नही बोली और तेज तेज सांसें लेने लगी।


बिरजू ने अंधेरे में फिर बोला- नीलम.....मेरी बच्ची


नीलम बहुत धीरे से- हाँ बाबू


बिरजू- आखिर वो पाप करने का वक्त आ ही गया न, मुझे माफ़ कर देना बेटी।


नीलम- ऐसे न बोलो बाबू......बहुत शर्म आ रही है मुझे।


बिरजू- नीलम मेरी बच्ची......तू मेरी प्यारी बच्ची होने के साथ साथ एक यौवन से भरपूर स्त्री भी है और मैं सगा पिता होने के साथ साथ एक पुरुष भी हूँ, वैसे तो एक पुरुष जब एक यौवना स्त्री को देखता है या उसके बारे में सोचता है तभी उसके मन मे संभोग की इच्छा जागृत हो जाती है पर यहां मेरे और तेरे बीच सगे पिता पुत्री का जो रिश्ता है वो मुझे उत्तेजना के उस चरम पर नही जाने दे रहा जिससे एक सफल यौन संबंध स्थापित हो पाए और हम एक सफल संभोग करते हुए चरम सुख की प्राप्ति करें। ये पवित्र रिश्ता बीच में आड़े आ रहा है मेरी बच्ची। एक पिता का अपनी बेटी के साथ यौन संबंध बनाना महापाप है शायद यह सोच मुझे उत्तेजित होने से रोक रही है, और जब तक एक पुरुष अच्छे से उत्तेजित न हो वो सफल यौन संबंध कैसे बना पायेगा और सफल सभोग कैसे कर पायेगा, तू इस सोच के खंडित कर दे मेरी बच्ची।


नीलम बहुत लजाते हुए- मेरे बाबू.....एक बेटी होने के नाते मुझे बहुत लज़्ज़ा आ रही है पर मैं नही चाहती कि मेरे बाबू अपने दिए वचन को पूरा न कर पाएं और मेरी इच्छा अधूरी रह जाये, और उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचे, इसलिए आप ही मुझे बताइए कि आप पूर्ण रूप से कैसे उत्तेजित होंगे और में आपके आदर्श सोच को कैसे खंडित करूँ।


बिरजू कुछ देर चुप रहा फिर बोला- जब तक मैं तेरी महकती हुई जवान योनि नही देख लेता मुझे चरम उत्तेजना नही आएगी बेटी, एक आमंत्रित करती हुई योनि देखने के बाद ही एक पुरुष के अंदर मान मर्यादा की दीवार टूटती है मेरी बच्ची और वो रिश्ते नाते तक भूल जाता है, इतना तो तू समझ ही सकती है और जबतक ये पवित्र रिश्ते की दीवार नही गिरेगी हम उस कार्य को अंजाम नही दे सकते।


नीलम- बाबू......


बिरजू- हां मेरी बच्ची......मुझे अपना यौवन दिखाना होगा तुझे.......अपनी महकती हुई योनि दिखानी होगी आज अपने बाबू को।


नीलम सच में शर्मा गयी, क्योंकि महेंद्र भी एकदम बगल में चादर ओढ़े लेटा सब सुन रहा था उसका लंड भी लोहे की तरह दुबारा सख्त हो चुका था अपने ससुर की बातें सुनकर।


नीलम कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे से शर्माते हुए बोली- बाबू जी तो फिर अपनी आंखें बंद कीजिए पहले......मैं धीरे से दिखती हूँ आपको अपनी योनि, आपकी अपनी ही सगी बेटी की योनि और आप भी उधर मुँह कर लीजिए (नीलम ने महेन्द्र को कहा तो महेन्द्र ने करवट बदलकर मुँह चादर में ढककर पलटकर लेट गया)


बिरजू ने अंधेरे में आंखे बंद की नीलम ने चादर को ऊपर कमर तक खींचकर अपनी मांसल जांघे बड़ी ही मादक अदा से खोल दी जिससे उसकी कमसिन रसीली बूर की फांके फैल गयी और बूर उभरकर बाहर की तरफ आ गयी, नीलम ने फिर शर्माते हुए टॉर्च उठायी और उसको अंधेरे में एकदम अपनी बूर के ऊपर लाकर जला दी।


बिरजू आँखे फाड़े अपनी सगी शादीशुदा बेटी की दामाद के वीर्य से भरी गीली बूर को देखकर मानो पागल ही हो गया, और बोला- आह मेरी बच्ची क्या योनि है तेरी, बहुत नरम और रसीली है ये तो और तेरी जांघे कितनी मोटी मोटी हैं मेरी बच्ची मेरी बेटी?


नीलम शर्म के मारे पानी पानी हो गयी


क्या बूर थी नीलम की, कितनी गीली हो रखी थी, दोनों फांके, फांकों के बीच मे तना हुआ भगनासा जो कि फूलकर लगभग अलग ही चमक रहा था, गीले गीले फांक फैलने से उनके बीच वीर्य के दो तीन तार बन गए थे, काले काले बालों से घिरी लगभग एक बित्ता लंबी बूर, जांघे फैलने से लगभग दोनों फांक खुल गए थे और अंदर का गुलाबी छेद जिसमे से महेन्द्र का वीर्य अब भी बहकर बाहर आ रहा था बरबस ही जल्द से जल्द लंड डालने के लिए ललचा रहा था। नीलम ने चुपके से अपना बायां हाँथ नीचे लेजाकर अपनी दो उंगलियों से बूर की फाँकों को अच्छे से चीरकर उसका गुलाबी गुलाबी रसीला छेद अपने बाबू को दिखाकर उनको और ललचाया और फिर अपने बूर के दाने को रगड़कर उनको जल्दी से जल्दी अपनी सगी शादीशुदा बेटी की बूर में अपना लंड डालने की विनती सी की और जमकर चोदने का इशारा किया।


बिरजू सच में आज नीलम की बूर देखकर वासना में दहाड़ उठा, अभी कल ही सारी रात इसी बूर को चोदा था पर न जाने क्यों आज अलग ही नशा चढ़ गया उसका लन्ड अपने पूरे ताव में आ गया, नीलम से झट से टॉर्च बंद की और बगल में रख दी वो समझ गयी कि अब उसके बाबू उसे रौंद डालेंगे उसने जिस तरीके से अपने बाबू को ललचाया था वो सच में आग लगा देने वाला था, बिरजू ने गरजते हुए जल्दी से अपने दहाड़ते लंड के मोटे सुपाड़े पर से चमड़ी खींचकर पीछे की और सीधे हाँथ से लंड को थामकर अपनी बेटी के मखमली गुदाज बदन पर चढ़ गया, नीलम ने भी झट से अंधेरे में अपने दोनों पैर फैलाकर अपने मनपसंद पुरुष की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया और खुद ही अपनी विशाल गुदाज गाँड़ उठा कर अपने सपनो का पसंदीदा लौड़ा अपनी बूर की असीम गहराई में उतरवाने के लिए लपकने लगी, बिरजू ने जल्दी से उसपर झुकते हुए एक हाँथ को नीचे लेजाकर उसकी बूर की दोनों फांकों को चीरा और दूसरे हाँथ से 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा काले नाग जैसे लंड का फूला हुआ छोटी सी गेंद जैसा सुपाड़ा उसकी बूर की कमसिन से गुलाबी छेद पर रखा, गरम गरम सुपाड़े की छुवन अपने बूर की छेद पर महसूस कर नीलम हल्का सा सिसक गई, महेन्द्र ने भी इस सिसकन को भांप लिया कि लंड का सुपाड़ा बूर की छेद पर रखा जा चुका है, बिरजू ने वासना में चिंघाड़ते हुए "ओह मेरी बेटी मुझे माफ़ कर देना" अपना समूचा लंड एक ही बार में गनगना के बूर की अनंत गहराईयों में उतार दिया। नीलम इतनी जोर से सीत्कारी की उसकी आवाज आंगन तक गयी,
नीलम- "आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहहहहहहहहहहहह.........बबबबबबाबाबाबाबाबूबूबू बूबूबूबूबूबूबूबूबूबूबू............... मेरीबूबूबूबूबूबूररररररर..........मर गयी दैय्या............हाय.......अम्मा............


धक्का इतना तेज था कि नीलम की दोनों जांघे अच्छे से फैल गयी थी और उसका बदन लगभग एक फुट ऊपर को सरक गया दोनों चूचीयाँ बुरी तरह हिल गईं, दोनों पैर हवा में ऊपर को उठ गए, दर्द से उसका मुँह खुल गया और वो बुरी तरह तड़प उठी, एक ही बार में उसके बाबू का काला लंड बूर की गहराई को चीरता हुआ उस जगह पर जा पहुंचा जिसके लिए नीलम कब से तरस रही थी, तेज तेज सिसकारियां लेते हुए उसकी साँसे फूलने लगी, पर न जाने क्यों उसे बहुत अच्छा लगा।


महेन्द्र भी समझ गया कि उसकी पत्नी की बूर में उसके ही सगे पिता का लंड समा चुका है, एक पिता का मूसल जैसा लन्ड अपनी ही शादीशुदा बेटी की कमसिन बूर में जड़ तक घुस चुका है, एक पिता और बेटी के बीच एक दर्दभरा रसीला यौनसंबंध कायम हो चुका है, उसका लंड जोश के मारे चिंघाड़ने लगा कि कैसे उसकी पत्नी उसी के बगल में लेटकर, उसकी मौजुदगी में ही अपने सगे पिता से चुद रही है और वो भी अपनी मर्ज़ी से........ये बात वाकई में उत्तेजना से लंड की नसें तक को फाड़ देने वाली थी, ये बात सच है कि लंड और बूर का कोई रिश्ता नही होता, महेन्द्र ने अंधेरे में धीरे से चादर में से मुँह निकाल कर दोनों बाप बेटी को देखने की कोशिश की तो देखकर उसका मुँह खुला का खुला रह गया।


महेन्द्र ने चुपके से देखा कि कैसे उसके ससुर ने अपनी बेटी को दबोच रखा है जैसे कोई शेर किसी कमसिन हिरन के बच्चे को दबोच के रखता है, दरअसल बिरजू पूरी तरह नीलम के ऊपर चढ़ गया था और उसका लन्ड जड़ तक नीलम की बूर में समाया हुआ था, नीलम तड़पती मचलती हुई बिरजू के नीचे सिसकते हुए पड़ी थी, थोड़ी देर चुप शांत पड़े रहने के बाद महेन्द्र ने जो देखा वो देखकर वो सन्न रह गया, नीलम ने अंधेरे में हल्का सा सिसकते हुए अपने दोनों हाँथ अपने बाबू की पीठ पर ले गयी और धीरे धीरे प्यार से सहलाने लगी, फिर उसने प्यार से अपने बाबू के बालों को सहलाया और धीरे धीरे दोनों हाँथ कमर से नीचे गाँड़ पर ले गयी और अपने बाबू की गाँड़ को अपनी बूर की तरफ बड़े प्यार से कई बार दबाया और दबाकर ये इशारा किया कि उसे उनका लन्ड अत्यधिक पसंद आया, इसका मतलब ये था कि बाबू आपका लंड मेरे पति के लंड से कहीं ज्यादा आनंददायक और रसीला है और मुझे यह भा गया, इतना ही नही नीलम ने अपने बदन को और मोड़कर अपने हाँथ को और नीचे लेजाकर सिसकते हुए अपने बाबू के दोनों बड़े बड़े लटकते हुए आंड मस्ती में भरकर हल्का हल्का कराहते हुए सहलाने लगी, ये एक स्त्री का अपना मनपसंद पुरुष प्राप्त करने के बाद अपनी खुशी जाहिर करने का तरीका था कि उस पुरुष का साथ उसका लंड उसे स्वीकार है, वो उससे चुदना चाहती है।

महेन्द्र ये देखकर एक अजीब सी गुदगुदी अपने अंदर महसूस करने लगा और चादर के अंदर ही अपना लंड हल्का हल्का हिलाने लगा, न जाने कौन सा आनंद उसे अपनी ही पत्नी को अपने पिता से चुदवाते हुए देखकर मिल रहा था।

महेन्द्र ने फिर देखा कि कैसे बिरजू ने नीलम के इस तरह उसे कबूल करने पर, उसके लंड की लज़्ज़त को स्वीकार करने पर, अपना आधा लंड बूर में से निकाल कर फिर दुबारा गच्च से बूर में घुसेड़ दिया तो इस बार नीलम के मुँह से न चाहते हुए भी निकल ही गया- ओह बाबू.....आपका लंड.....जरा धीरे घुसाइये।

आखिर नीलम भी कब तक चुप रहती वासना की आग में वो भी कब से जल रही थी

बिरजू ये सुनकर नीलम को बेताहाशा चूमने लगा और नीलम जोर जोर कराहने सिसकने लगी, नीलम भी अपने बाबू के सर को पकड़कर दनादन जहां तहां चूमने लगी, काफी देर तक दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, नीलम से रहा नही गया तो उसने कह ही दिया- बाबू आप बहुत अच्छे हो।

बिरजू- आह मेरी बच्ची तू भी बहुत रसीली है......बहुत रसीली, ऐसा सुख मुझे आजतक नही मिला।

बिरजू का समूचा लन्ड महेन्द्र के वीर्य से सन चुका था।

नीलम ने धीरे से सराहा- बाबू

बिरजू- हाँ मेरी बच्ची

नीलम- अपना वो बहुत मोटा और लंबा है

(नीलम ने ये जानबूझकर महेन्द्र को सुनाने के लिए कहा)

बिरजू- वो क्या मेरी बेटी?

नीलम ने कराहते हुए कहा- आप समझ जाइये न बाबू?

बिरजू- मुझे नही समझ आ रहा तू बता न मेरी बच्ची।

नीलम ने कुछ नही बोला तो बिरजू ने दुबारा पूछा- बोल न नीलम....मेरी प्यारी बच्ची......बाबू का क्या अच्छा है।

नीलम - वो

बिरजू ने लन्ड से एक गच्चा बूर में मारा तो नीलम फिर कराह उठी और बिरजू बोला- बोल न बेटी.......तेरे मुँह से सुनकर ही शुरू करूँगा।

नीलम ने फिर शर्माते हुए बोला- आपका लंड

बिरजू- हाय मेरी बच्ची.......सच

नीलम- हाँ बाबू......बहुत रसीला है.......उसका आगे का भाग....उसका मुँह कितना चिकना है और बड़ा है इस वक्त मेरी बूर में कितने अंदर तक घुसा हुआ है।

बिरजू- तेरी वो भी तो कितनी रसीली और नरम नरम है।

नीलम - वो क्या बाबू?

बिरजू- वही जहां से मेरा नाती पैदा होगा?

नीलम- कहाँ से पैदा होगा बाबू.....बोलो न

बिरजू- मेरी बच्ची की बूर से, मेरी बेटी की चूत से।

नीलम ये सुनकर मस्ती में मचल गयी और बिरजु को "ओह मेरे बाबू" अपने मेरी इच्छा पूरी कर दी, करो न बाबू अब

महेन्द्र ने देखा कि कैसे उसके ससुर ने अपनी बेटी की चूचीयों पर से चादर हटा के उसको निवस्त्र कर दिया और नीलम ने रात के अंधेरे में उनका पूरा साथ दिया, महेन्द्र की आंखों के सामने अंधेरे में भी नीलम की दोनों विशाल चुचियाँ जोश के मारे तनी हुई थी अंधेरे में उनकी तनी हुई आकृति देखकर, उनका फूला हुआ आकार देखकर महेन्द्र का लंड मारे जोश के तन्नाया हुआ था, दोनों निप्पल कितने कड़क हो चुके थे ये साफ दिख रहा था, और अब कितनी बेशर्मी से नीलम खुद अपनी दायीं चूची को पकड़कर कराहते हुए अपने सगे बाबू के मुँह में चूसने के लिए दे रही थी।

बिरजू पागलों की तरह अपनी सगी बिटिया की मदमस्त फूली फूली गुदाज चूचीयों को मुँह में भर भर के बारी बारी पीने लगा और नीलम जोर जोर से मचलते हुए उन्हें बड़े प्यार से उनका सर सहलाते हुए अपनी चूचीयों पर दबाने लगी, नीलम खुलकर अब सिसकने लगी थी, तेज तेज अपने बाबू के सर को और पीठ को सहलाते हुए उन्हें बारी बारी से अपनी चूचीयाँ परोस परोस के निप्पल पिलाने लगी, महेंद्र ने चुपके से साफ देखा कि कैसे नीलम ने रुककर अपनी एक चूची अपने हांथों में ली और कितने प्यार से अपनी बाबू के मुँह में डाल दी।

इतना जोश महेन्द्र को अपने जीवन में कभी नही चढ़ा था, एक सगे बाप बेटी का मिलन वो अपनी आंखों से देख रहा था और न जाने क्यों उसे ये रोमांचित कर रहा था।

बिरजु नीलम की चूचीयों को खूब जोर जोर से कराहते हुए दोनों हांथों से दबाने मसलने लगा और दोनों पलंग पर एक दूसरे को बाहों में लिए पलटने लगे, नीलम से अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो गया तो उसने आखिर बिरजू से धीरे से कहा- बाबू

बिरजू- हाँ मेरी बच्ची

नीलम- पेलिये न अब......अब चोद दीजिए मुझे.......अपनी बच्ची को

बिरजू ये सुनकर फिर वासना से और भर गया और उसने बगल में रखा तकिया उठाया और उसको नीलम की गाँड़ के नीचे लगाने लगा नीलम ने अच्छे से गाँड़ उठा कर पूरा सहयोग किया।

नीलम की गाँड़ ऊपर उठने से बूर और ऊपर उठकर ऊपर को उभर गयी फिर बिरजू ने कस के एक तेज धक्का मारा तो नीलम दर्द से सिरहते हुए बोली- बस बाबू.....बहुत अंदर तक जा चुका है......अब चोदिये मुझे.....बर्दाश्त नही हो रहा है मुझे.....मर जाउंगी मैं........मेरी प्यास बुझा दीजिए........तृप्त कर दीजिए अपनी बच्ची को अपने लन्ड से।

नीलम का इतना कहना था कि बिरजु ने अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर नीलम की चौड़ी गाँड़ के दोनों मांसल पाटों को थाम कर हल्का सा और उठा लिया जिससे नीलम का बदन अब किसी धनुष की तरह मुड़ गया था, पर उसे मजा बहुत आ रहा था, तेज दर्द में भी असीम सुख की अनुभूति उसे हो रही थी।

बिरजू ने नीलम के होंठों को चूमते हुए धीरे धीरे बूर में धक्का मारना शुरू किया, नीलम ने भी अपने बाबू के होंठ चूसते हुए कस के उन्हें बाहों में भरकर अपने पैरों को अच्छे से उनकी कमर से लपेट दिए।

अभी धीरे धीरे ही बूर में धक्के लग रहे थे कि इतने से ही नीलम को असीम आनंद आने लगा और वो सातवें आसमान में उड़ने लगी, उसे अपनी बूर में अपने ही सगे पिता के लन्ड का आवागमन इतना प्यारा लग रहा था कि वो सबकुछ भूलकर लन्ड में ही खो गयी, लन्ड के ऊपर फूली हुई मोटी मोटी नसें कैसे बूर की अंदरूनी मांसपेशियों से रगड़ खा रही थी, कैसे उसके बाबू के लन्ड का मोटा सा सुपाड़ा बार बार बूर की गहराई में अंदर तक बच्चेदानी पर ठोकर मारकर उसे गनगना दे रहा था, कैसे उसके बाबू चोदते वक्त बीच बीच में अपनी गाँड़ को गोल गोल घुमा घुमा कर लन्ड को आड़ा तिरछा बूर में कहीं भी पेल दे रहे थे जिससे नीलम जोर से सिसक जा रही थी।

बिरजू अब थोड़ा तेज तेज धक्के मारने लगा, नीलम का समूचा बदन तेज धक्कों से हिल जा रहा था, नीलम की आंखें असीम आनंद में बंद थी और वो परमसुख की अनुभूति और रसीले धक्कों की कायल होकर " आह.... बाबू....ऊई मां.....उफ़्फ़फ़फ़.....आह.....ऐसे ही बाबू........तेज तेज बाबू........पूरा पूरा डालो न........हाँ ऐसे ही........अपने दोनों हांथों को मेरी पीठ के नीचे ले जाकर कस के आगोश में लो न बाबू मुझे.........हाँ ऐसे ही.......गोल गोल घुमा के गच्च से पेलो न बूर में.. ....हाँ बिल्कुल ऐसे ही..........आआआआहहहह.......और पेलो बाबू....ऐसे ही........मारो मेरी चूत बाबू.......अपनी बच्ची की चूत मारो......आखिर चूत तो मारने के लिए ही होती है........तेज तेज करो.........कितना अंदर तक जा रहा है अब आपका लंड........... मेरी बच्चेदानी को हर बार चूम कर आ रहा है मेरे सपनों का लन्ड.........चोदो बाबू मुझे......ऐसे ही.......हां..... ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई......... मां....... कितना तेज धक्का मारा इस बार.......थोड़ा धीरे बाबू........हाय मेरे बाबू।


अत्यधिक जोश में नीलम ऐसे ही बोले जा रही थी, अब वो बिल्कुल खुल चुकी थी उसे अब ये भी होश नही था कि बगल में महेंद्र लेटा हुआ चादर के अंदर से सब देख रहा है, और खुद महेन्द्र नीलम को अपने पिता से चुदवाते हुए देखकर अपना लन्ड हिलाकर एक बार और झड़ चुका था।

बिरजू बीच बीच में रुककर अच्छे से अपनी गाँड़ को गोल गोल घुमाकर अपने मोटे लन्ड को बूर में गोल गोल बूर के किनारों पर रगड़ने की कोशिश करता था जो नीलम को बहुत पसंद था वो अपने बाबू के इसी हरकत की कायल थी, जब भी बिरजू ऐसा करता नीलम जोर जोर से अपनी गाँड़ नीचे से उछाल उछाल के अपने बाबू की ताल में ताल मिलाती और रसभरी चुदाई का भरपूर मजा लेती।

बिरजू का लन्ड इतना जबरदस्त नीलम की बूर को चीरकर उसमे घुसा हुआ था कि नीलम की बूर किसी रबड़ के छल्ले की तरह लन्ड के चारों ओर फैलकर चिपकी हुई थी।

बिरजू के धक्के अब बहुत तेज हो चले थे पूरी पलंग हल्का हल्का चरमरा रही थी, जहां पहले शर्म और लज़्ज़ा कि वजह से बड़ी मुश्किल से सिसकियां निकल रही थी वहीं अब पूरा कमरा तेज तेज चुदाई के आनंद भरे सीत्कार से गूंज उठा था, चुदाई की फच्च फच्च की आवाज वासना को और बढ़ा दे रही थी, तेज तेज धक्कों से दोनों बाप बेटी की अंदरूनी जाँघों की टकराने की थप्प थप्प की आवाज अलग ही आनंद दे रही थी।

इतनी तेज तेज वहशीपन से भी बूर को चोदा जाता है ये नीलम आज महसूस कर रही थी और इस वहशी और जंगलीपन चुदाई का तो अनोखा ही मजा था, और बगल में लेटा कोई देख रहा है ये रोमांच अलग ही सुरसुरी बदन में पैदा कर रहा है।

बिरजू अब पागलों की तरह बहुत तेज तेज हुमच हुमच कर अपनी कमसिन सी बेटी की बूर में अपना वहशी लन्ड पेलने लगा और नीलम को इससे अथाह आनंद आने लगा, नीलम जोर जोर से कराहते और हाय हाय करते हुए नीचे से अपनी गाँड़ तेज तेज उछालने लगी, दोनों बाप बेटी अब मदरजात नंगे पलंग पर एक दूसरे में समाए हुए थे, चादर अस्त व्यस्त होकर बदन से हट चुका था, बाहर घनघोर बारिश होने लगी थी, काफी देर तक बिरजू दनादन अपनी बेटी की चूत मारता रहा, तभी तेज बिजली कड़की और एक बार फिर पूरे कमरे में रोशनी फैल गयी, एकाएक नीलम और बिरजू ने एक दूसरे को देखा और दोनों वासना में मुस्कुरा उठे नीलम ने मारे शर्म के अपना चेहरा अपने बाबू के सीने में छुपा लिया, तभी न जाने क्यों बिजली कई बार चमकी, कभी धीरे कभी तेज, कभी बहुत तेज, इस दौरान नीलम और बिरजू ने एक दूसरे को आपस मे चुदाई करते हुए अच्छे से देखा और नीलम बार बार शर्मा गयी, बिरजू कस कस के अपनी शादीशुदा बेटी की चूत मारते हुए उसके होंठों को अपने मुंह में भरकर पीने लगा, नीलम के बदन में एक सनसनाहट सी होने लगी, उसकी रसीली बूर की गहराई में तरंगे उठने लगी, किसी का होश नहीं रहा उसे अब, नीचे से खुद भी गाँड़ उछाल उछाल के अपने पिता से अपनी चूत मरवा रही थी, तभी बिरजू ने अपनी जीभ नीलम के मुँह में डाली और जैसे ही तेज तेज धक्के चूत में मारते हुए अपनी जीभ नीलम के मुंह में घुमाने लगा नीलम जोर से कराहती हुई गनगना के अपनी गाँड़ को ऊपर उठाते हुए अपनी बूर में अपने बाबू का लंड पूरा लीलते हुए झड़ने लगी, उसकी बूर से रस की धार किसी बांध की तरह टूटकर बहने लगी, उसकी बूर अंदर से लेकर बाहर तक संकुचित होकर काम रस छोड़ने लगी, उसकी बूर की एक एक नरम नरम मांसपेशियां मस्ती में सराबोर होकर मानो अपने बाबू के लन्ड से लिपटकर उसका धन्यवाद करने लगीं, गनगना कर वो बहुत देर तक अपने बाबू से लिपटकर हांफती रही, काफी देर तक उसकी बूर झड़ती रही, इतना सुख सच में आज पहली बार उसे मिला था। बिरजू का लन्ड अभी भी नीलम की चूत में डूबा हुआ था, वो नीलम को अपने आगोश में लिए बस प्यार से चूमे सहलाये जा रहा था, बिजली अब भी हल्का हल्का कड़क रही थी, बारिश हो रही थी, अब बिरजू से भी बर्दाश्त नही हो रहा था उसके लन्ड की नसें भी मानो जोश के मारे फटी जा रही थी।

थोड़ी ही देर के बाद जब नीलम की उखड़ती साँसे कुछ कम हुई बिरजू ने अपने लंड को अपनी बेटी की चूत से बाहर खींचा और गच्च से दुबारा रसीली चूत में डाल दिया नीलम फिर से गनगना गयी लेकिन अब बिरजू कहाँ रुकने वाला था अपनी बेटी को उसने फिर अपने आगोश में अच्छे से दबोचा और जमकर उसकी चूत मारने लगा नीलम बेसुध सी हल्का हल्का सिसकते हुए अपनी कमसिन सी चूत फिर से अपने बाबू से मरवाने लगी, तेज तेज धक्के मारते हुए अभी दो तीन ही मिनिट हुए होंगे कि बिरजू भी अपनी बेटी की नरम चूत की लज़्ज़त के आगे हार गया और तेज तेज कराहते हुए झड़ने लगा "ओह मेरी बच्ची कितनी मुलायम और नरम चूत है तेरी......आआआआआहहहहह.......इतना मजा आएगा अपनी बेटी को चोदकर........उसकी चूत मारकर......ये कभी सपने में भी नही सोचा था.......आह मेरी बच्ची......चूत इतनी भी नरम और लज़्ज़त भरी होती है आज तेरी चूत मारकर आभास हुआ मेरी बच्ची.......आह

नीलम ने बिरजू को चूमते हुए अपनी बाहों में भर लिया और बिरजू मोटी मोटी वीर्य की गरम गरम धार नीलम की चूत में उड़ेलते हुए उसपर जोर जोर से हांफते हुए लेट गया, नीलम की बूर अपने बाबू के गरम गरम गाढ़े वीर्य से भर गई, नीलम अपने बाबू का गाढ़ा गर्म वीर्य अपनी बूर की गहराई में गिरता महसूस कर गुदगुदा सी गयी, दोनों बाप बेटी अपनी उखड़ी सांसों को काबू करते हुए एक दूसरे को बेताहाशा चूमने लगे, बाहर तेज बारिश लगातार हो रही थी, कभी तेज बिजली चमकती तो दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते, बिरजू ने बड़े प्यार से नीलम के चेहरे को अपने हांथों में लिया और होंठों को चूमते हुए बोला- मेरी बच्ची.......आज कितना अनमोल सुख दिया तुमने अपने पिता को।

नीलम ने भी प्यार से अपने बाबू के होंठों को चूमा और बोली- मेरे प्यारे बाबू.....अपने भी तो अपनी बच्ची को तृप्त कर दिया अपने मोटे लन्ड से।

महेन्द्र चादर में मुंह ढके दोनों को देखता रहा।
Nice update bro....
Maza aa gaya padhke...
Kya lajwab update tha...
 
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Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Waiting for next update bro....
 
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Lucky-the-racer

Well-Known Member
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Update- 72

महेन्द्र बड़ी सी जीभ निकाले नीलम की वासना में फूली हुई पनियायी बूर को नीचे से लेकर ऊपर तक चाटने लगा, महेन्द्र की जीभ की रगड़ अपनी बूर की दोनों फाँकों के बीच, फांकों पर, बूर के तने हुए दाने पर पाकर नीलम के विशाल 36 साइज के नितंब बरबस ही सनसनाहट में थिरक जा रहे थे, पहले तो उसने अपने दोनों पैर महेन्द्र की पीठ पर रखे हुए थे पर बूर चटाई का और सुख लेने के लिए नीलम ने दोनों पैरों को और चौड़ा करके हवा में फैला दिए और इतना ही नही फिर नीलम ने जानबूझ कर महेन्द्र को और जोश चढ़ाने के लिए अपने सीधे हाँथ की उंगली से अपनी बूर की दोनों फाँकों को चीरकर उसका प्यारा सा गुलाबी छेद दिखाते हुए बड़े ही विनती के भाव में बोली- भैया जल्दी जल्दी चाटो अपनी दीदी की बुरिया को............कहीं अम्मा न आ जाये.............जल्दी जल्दी सब कुछ करो न......... बहुत मजा आ रहा है.......कभी कभी तो मौका मिलता है.......…..बहुत मजा आता है भाई के साथ गंदा काम करने में........ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.......अम्मा।

महेन्द्र ने अपनी जीभ नुकीली बना के नीलम की बूर के गुलाबी छेद पर भिड़ा दी थी इसलिए नीलम सिसकारी लेते हुए चिहुँक गयी।

नीलम के मुँह से ये बोल सुनकर महेन्द्र से रहा नही गया वो और तेज तेज बूर का चप्पा चप्पा चाटने लगा, नीलम जोश और बदन में उठ रही तेज सनसनी के मारे अपने ही दोनों हांथों से अपनी गुब्बारे जैसी फूली हुई दोनों चूचीयों को मसलने लगी, दोनों तने हुए निप्पल को खुद ही मीजने लगी, चुदास इतना सर चढ़ जाएगी ये उसने भी कभी सोच नही था।

काफी देर बूर का चप्पा चप्पा चाटने से बूर एकदम गीली हो गयी, नीलम की बूर महेन्द्र के थूक से लबालब सन गयी थी, बूर पर हल्के हल्के काले काले बाल थूक से सराबोर हो चुके थे, बूर पूरी फूलकर किसी पावरोटी की तरह उभर आई थी और दोनों फांकों के बीच तना हुआ दाना जोश के मारे लाल हो गया था, सच पूछो तो बूर अब लन्ड मांग रही थी, नीलम तड़पते हुए छोटी टॉर्च को बुझाकर अपने दोनों हांथों से सर हो अगल बगल तड़पकर पटकते हुए अपनी चूचीयों को खुद ही मसले दबाए जा रही थी, कभी वो जोश के मारे सर को अगल बगल हिलाती तो कभी अपनी चूची और कमर से ऊपर के हिस्से को किसी धनुष की तरह ऊपर को मोड़कर तान देती जिससे उसकी चूचीयाँ किसी दो पहाड़ की तरह और ऊपर को उठ जाती।

नीलम के बदन में वासना की तरंगे, चुदाई की खुमारी अब उफान पर आ चुकी थी, किसी सागर की बेकाबू लहरों की तरह उसका बदन मचल रहा था और सच में एक गदराए यौवन की स्त्री के बदन में वासना जब खुलकर हिलोरे मारने लगती है और वो लोक लाज छोड़कर तड़पने मचलने लगती है तो एक अनुभवी पुरुष ही उसे अच्छे से काबू कर सकता है, आज महेन्द्र की बूर चटाई नीलम के मन भा गयी थी न जाने क्यों आज महेन्द्र से बूर चटवाने में नीलम को मजा आया था शायद इसकी वजह उसके बाबू की मौजूदगी थी, ये सोचकर उसे अति आनंद और रोमांच हो रहा था कि कैसे वो अपने बाबू की जानकारी में अपने पति से बूर चटवा रही है, हो न हो बाहर से जरूर उसके बाबू उसे देख रहे होंगे और ये सच भी था बाहर बिरजू खिड़की के पास खड़ा अपनी बेटी की मादक सिसकियां सुनकर अति उत्तेजित हो ही रहा था।

नीलम से जब नही रहा गया तो उसने महेन्द्र के चेहरे को पकड़ा और उसका मुँह बूर से छुड़ाया और कंधों से पकड़कर ऊपर चढ़ने का इशारा किया महेन्द्र झट से नीलम के ऊपर चढ़ गया नीलम ने अपने पैर महेन्द्र की कमर पर दुबारा कैंची की तरह लपेट दिए, महेन्द्र का लोहे की तरह तन्नाया लंड नीलम की बूर पर, उसकी फाँकों पर, फांकों के बीच में जहां तहां ठोकरें मारने लगा, और एकाएक बूर के गरम गरम रसीले छेद पर सेट हो गया तो नीलम जोर से सिसक उठी- ओओओहहहह........भैयायायाया........चोद दो न जल्दी.........डालो न अपना लंड अपनी दीदी की बुरिया में.....कहीं अम्मा न आ जाये......आज पहली बार अपनी बहन को चोदने जा रहे हो.......आह कैसा लग रहा है भाई के ही साथ चुदाई करने में, जिसको मैं राखी बांधती हूँ आज उसी से चुदवा रही हूं.........आह भैया...…..करो न.......डालो अब बर्दाश्त नही होता।

(नीलम जानबूझ कर महेन्द्र से ऐसी कामुक बातें कर रही थी)

आखिर महेन्द्र भी कब तक चुप रहता वासना उसके सर चढ़कर गरजने लगी, इतना जोश उसे कभी नही चढ़ा था, उसने नीलम को कस के अपनी बाहों में जकड़ लिया और गालों होंठों पर ताबड़तोड़ चूमते और लंड को बूर की फांकों पर ऊपर ऊपर रगड़ते हुए नीलम से बोला- दीदी आज कितना अच्छा लग रहा है तुझे पा के, मैंने कभी सपने में भी नही सोचा था कि मुझे अपनी ही सगी बहन की मखमली बूर मिलेगी चोदने को।

(महेन्द्र लगतार अपना लंड नीलम की बूर की फांकों के बीच रगड़ रहा था)

नीलम- हां भैया मैं भी तेरा लंड पाकर निहाल हो गयी, अब चोद न जल्दी, कोई आ जायेगा नही तो घर में, बड़ी मुश्किल से मौका मिला है तू देर क्यों कर रहा है।

ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपने नितंब को ऊपर की ओर उठाने लगी।

महेन्द्र से भी अब नही रहा गया और उसने जोर का एक धक्का नीलम की तरसती बूर में मारा तो महेन्द्र का लंड सरसराता हुआ गच्च से बूर की गहराई में उतर गया। बूर अंदर से किसी तेज भट्टी की तरह सुलग रही थी, उसकी तेज गर्माहट अपने लन्ड की चमड़ी पर महसूस कर महेन्द्र मदहोश हो गया, दोनों के मुँह से ही एक जोर की मादक सिसकारी निकली, नीलम ने महेन्द्र को कस के अपने से लिपटा लिया और महेन्द्र ने अपने दोनों हांथों से नीलम के भारी नितंब थामकर अपना लन्ड एक बार तेजी से बाहर निकाल कर दुबारा गच्च से बूर में पेल दिया तो नीलम लंड के लज़्ज़त भरे मार से सिसकते हुए कराह उठी।

दोनों अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपट गए, कुछ देर दोनों आंखें बंद किये एक दूसरे के बदन की लज़्ज़त और लंड-बूर के मिलन के असीम आनंद को अच्छे से महसूस करते रहे, कोई कुछ बोल नही रहा था बस आंखें बंद किये एक दूसरे को महसूस कर रहे थे, बीच बीच में महेन्द्र अपना लंड बूर में से बाहर खींचकर दुबारा किसी पिस्टन की तरह बूर की गहराई तक पेलता तो नीलम लन्ड की लज़्ज़त भरी मार को गहराई में महसूस कर चिहुकते हुए महेन्द्र की पीठ पर नाखून से चिकोट लेती, महेन्द्र नीलम के गालों को चूमने लगा और धीरे से बोला- दीदी

नीलम- हम्म

महेन्द्र- रोशनी करो न थोड़ा अपने चेहरे पर।

नीलम- क्यों भैया

महेन्द्र- आज बरसों तड़पने के बाद अपनी बहन की बूर मिली है मैं देखना चाहता हूं कि मेरी दीदी के चेहरे का क्या हाव भाव है, तुम्हे अच्छा लग रहा है कि नही।

नीलम- धत्त....गंदे भैया.....एक तो बहन की बूर में अपना खूंटे जैसा लन्ड घुसाए हुए हो ऊपर से उसका चेहरा भी देखना है, मुझे लाज आती है।

(नीलम ने जानबूझ कर नाटक किया)

महेन्द्र- जलाओ न बत्ती दीदी, देखूं तो सही तुम्हारे चेहरे की लज़्ज़ा

नीलम ने बगल में पड़ी टॉर्च उठा के महेन्द्र को दी और बोली- लो खुद ही जला के देख लो बहन की लाज.....गंदे

महेन्द्र ने टॉर्च को जलाकर नीलम के चहरे पर किया तो नीलम शर्मा गयी, टॉर्च की रोशनी ज्यादा तो थी नही, सिर्फ चेहरे और उनके आस पास तक ही थी।

महेन्द्र ने नीलम को शर्माते हुए देखा तो और भी जोश से भर गया, नीलम ने एक बार महेन्द्र की आंखों में देखा फिर शर्मा कर मुस्कुराते हुए चेहरा बायीं तरफ घुमा लिया और बोली- धत्त बेशर्म भैया, एक तो अपनी सगी बहन को चोरी चोरी चोदते हो ऊपर से उसकी लज़्ज़ा भी देखते हो.....हम्म....गंदे।

महेन्द्र- हाय मेरी बहना, कितनी खूबसूरत है तू

नीलम- सच

महेन्द्र- बिल्कुल सच मेरी बहना, मेरी सुनीता, मेरी जान

नीलम- आह मेरे भैया

(दरअसल महेन्द्र ने एक गच्चा बूर में तेज़ी से मार दिया था तो नीलम चिहुँक पड़ी)

नीलम ने टॉर्च बंद कर दी और धीरे से बोली- अब चोदो न अपनी बहन को

(दरअसल नीलम देर नही करना चाहती थी, उसे तो इंतज़ार था अपने बाबू का, अपने मन पसंद पुरूष का, महेन्द्र के साथ ये सब खेल तो वो बस इसलिए खेल रही थी की वो जल्दी निपट जाए)

हालांकि वासना और चुदास कि तड़प में तर बतर तो वो भी हो चुकी थी पर वो झड़ना अपने बाबू के अत्यधिक मजबूत लंड की रगड़ से चाहती थी न कि महेंद्र के, और उपाय के नियम भी यही थे।

नीलम ने टार्च बंद कर दी तो महेन्द्र अब नीलम की गीली बूर में धीरे धीरे धक्के मारने लगा, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगी, दोनों पैर उसने महेन्द्र की कमर पर लपेट रखे थे और उसकी पीठ और कमर को बड़े दुलार के साथ लगातार सहला रही थी, महेन्द्र ने धक्के मारते वक्त महसूस किया कि वो अपने सामर्थ्य से तो अपना समूचा लंड नीलम की बूर की गहराई में पेल रहा है पर फिर भी वो उसकी बूर की गहराई के आखिरी छोर को छू नही पा रहा है, मानो उसका लंड नीलम की बूर की गहराई के हिसाब से छोटा पड़ रहा हो, हालांकि मजा तो उसे भरपूर आ रहा था, पर वो धक्के मारते हुए अपने दोनों पैरों को पलंग की पाटी से टेक लगाकर तेज तेज धक्के लगाते हुए नीलम की बूर की अत्यंत गहराई तक लंड पहुचाने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर वो उस गहराई को छू नही पा रहा था और इस बात को नीलम पहले ही अच्छे से महसूस कर चुकी थी, वो भी कई बार नीचे से अपने मादक विशाल नितंब उठाकर महेन्द्र के लन्ड के टोपे को बूर की गहराई के आखिरी छोर तक टच कराने की कोशिश करती पर लन्ड वहां तक नही पहुंच पा रहा था, जिससे नीलम को कुछ कमी महसूस हो रही थी, वो मजा उसे नही मिल पा रहा था हालांकि महेन्द्र को पूरा मजा मिल रहा था और वो अब ताबड़तोड़ धक्के पे धक्के मारे बूर चोद रहा था, नीलम भी दिखावे की सिसकारी लेते हुए महेन्द्र को सहलाती और चूमती जा रही थी पर कहीं न कहीं कुछ खालीपन था।

जबकि पहले ऐसा नही था पहले महेन्द्र का लंड जब नीलम की बूर में घुसता था तो नीलम और महेन्द्र दोनों को यही लगता था कि बूर बस इतनी ही गहरी है, महेन्द्र का पूरा लंड बूर में समा जाता था तो महेन्द्र को लगता था कि बूर की गहराई तक वो पहुँच गया है पर असल में नीलम की बूर की गहराई की और परतों को खोलकर उसे और गहरा बनाया था उसके सगे पिता के विकराल लंड ने, नीलम को भी पहले क्या पता था कि उसकी बूर और गहरी है, जब पहली बार महेन्द्र का लंड सुहागरात में नीलम की बूर में गया था तो उसे भी यही लगा था कि लंड इतना ही बड़ा होता है और गहराई इतनी ही होती है बूर की, पर कल की रात जब पहली बार उसके बाबू का लंड उसकी कमसिन बूर में उतरा तब उसे समझ में आया कि लंड क्या होता है, उसे वो पल याद है जब कल उसके बाबू का लन्ड उसकी बूर की अनंत गहराई की अनछुई मांसपेशियों को चीरता हुआ उस जगह पर जा पहुँचा था जो बरसों से वीरान पड़ी थी जिसका आभास स्वयं नीलम को भी नही था, कैसे उसके बाबू के विशाल लन्ड ने वहां पँहुच कर उस जगह के चप्पे चप्पे को बड़े प्यार और दुलार से चूमा था, कैसे वहां अपना परचम लहराया था, तभी तो उसके बदन में एक अत्यंत खूबसूरत झनझनाहट हुई थी, जैसे बरसों की प्यास बुझी हो और वो उसी सुख को पाकर अपने बाबू के लन्ड की कायल हो गयी थी, दरअसल बूर को भी वही लंड भाता है जो उसकी अनछुई गहराई तक पहुँचकर वहां कलश में रखे मटके को फोड़कर उसका रस पी सके और वहां के चप्पे चप्पे को चूमकर एक झनझनाहट बूर में पैदा कर दे, और इस दौरान जब महेन्द्र भी नीलम को हुमच हुमच कर चोद रहा था तो नीलम उसी सनसनाहट और सुख को पाने का भरकस प्रयास अपनी गाँड़ को उछाल उछालकर कर रही थी पर वो झनझनाहट वाला मजा उसे महेन्द्र के लन्ड से मिल नही पा रहा था।

दूसरा फर्क ये था कि उसके बाबू का काला लंड जब फुंकार मारकर खड़ा होता है तो उसपर काफी सारी नसें उभर आती है, और जब वो लंड बूर में अंदर बाहर होता है तो वो नसें बूर की दीवारों से एक दरदरा सा घर्षण पैदा करके असीम सुख देती हैं, साथ ही साथ लंड के इर्द गिर्द काले काले बाल, जब लंड बूर में जड़ तक घुसता है तो वो काले काले बाल बूर की फांकों और बूर के तने हुए दाने से बार बार टकराकर बदन में बिजली जैसा कंपन पैदा करते है जिससे नीलम को अपार सुख मिलता है, और इस वक्त उसे वो सुख महेन्द्र के लंड से न मिलने पर वो उस लन्ड को मिस कर रही थी।

चोदते चोदते महेन्द्र रुक गया। नीलम ने सवालिया निगाहों से अंधेरे में उसे देखा।


नीलम- क्या हुआ भैया......चोदो न रुक क्यों गए, बहन की बूर में मजा नही है क्या?


महेन्द्र- दीदी.....तेरी बूर में मजा तो इतना है कि जी करता है उम्र भर इसे चोदता रहूं।


नीलम- फिर......फिर क्या हुआ मेरे राजा भैया....चोदो न अपनी बहना को......कितना मजा आ रहा था।


महेन्द्र- मुझे बस एक बात पूछनी है दीदी।


नीलम- तो पूछ न.....चोदता भी रह और पूछता भी रह।


महेन्द्र फिर हल्का हल्का बूर चोदने लगा और बोला- दीदी


नीलम- ह्म्म्म........ .........आह.... हाँ ऐसे ही चोद


महेन्द्र- जीजा तुम्हे नही चोदते न


नीलम- एक बात बताऊं मेरे भैया


महेन्द्र- हाँ मेरी प्यारी दिदिया।


नीलम- अगर वो मुझे चोदते होते न, फिर भी मैं तुझसे छुप छुप के चुदवाती, तुझे तेरे हक़ का देती, नही तो भगवान भी मुझे माफ़ नही करेगा।


महेन्द्र- कैसा हक़ दीदी? क्या से सच है....की फिर भी तुम मुझसे चुदवाती।


नीलम- हां मेरे भैया सच........आह....ऐसे ही गप्प गप्प लंड डाल मेरी बूर में.....आह भाई.... मजा आ रहा है बहुत।


महेन्द्र- पर क्यों दीदी?


नीलम सिसकते हुए- क्योंकि तू मेरा भाई है......मैं तुझे राखी बांधती हूँ न, और तू मेरी रक्षा का वचन देता है।


महेन्द्र- हाँ देता तो हूँ वचन।


नीलम- तो जरा सोच मेरे प्यारे भैया........जब एक पुरुष 18 19 साल बाद किसी स्त्री के जीवन मे आकर उससे शादी करता है..........और शादी के फेरों के दौरान वो उस स्त्री की रक्षा का वचन देता है फिर उस पुरुष को उस स्त्री की बूर सुहागरात में मिलती है चखने को.......... और दूसरी तरफ वो भाई जो बचपन से उसकी रक्षा का वचन देता आ रहा है बदले में उसको कुछ नही?.........उसको भी तो बहना की बूर चखने को मिलनी चाहिए न............बहन की शादी से पहले न सही पर शादी होने के बाद कभी न कभी चुपके से तो उसे उसके हक़ का मिलना चाहिए न.......... आखिर वो भी तो उसकी रक्षा का वचन बचपन से देता चला आ रहा है और रक्षा कर भी रहा है, तो ये नाइंसाफी एक भाई के साथ क्यों भला?......इसलिए मेरे भैया मेरी बूर पर तेरा पूरा हक है.......कोई बहन अपने भैया को अपनी बूर चखाये या न चखाये मैं तो जरूर चाखाउंगी अपने प्यारे भैया को.........आखिर एक दिन मर ही जाना है ये मिट्टी का तन मिट्टी में मिल ही जाना है.............और जवानी भी तो हमेशा नही रहेगी.......तो क्यों तड़पे मेरा भाई बूर के लिए ...क्या उसकी बहन के पास नही है बूर........अगर भाई नही चाह रहा होता तो बात अलग थी......जब भाई प्यासा है.......तो क्यों न बहन अपनी बूर चखाये अपने सगे भाई को.....औऱ चुपके से उसकी प्यास बुझा दे.....जो जीवन भर उसकी रक्षा का वचन देता है.........आखिर एक भाई बचपन से बहन की रक्षा का वचन निभाता है.....एक रस भरी मिठाई की रक्षा बचपन से जवानी तक जब तक बहन की शादी नही हो जाती करता है.......और शादी होने के बाद बहन उस मिठाई को किसी ऐसे पुरुष को खिला देती है जो इतने सालों बाद उसकी जिंदगी में आया है..............इतना भी नही सोचती की इस मिठाई पर थोड़ा हक़ तो उस भाई का भी है जिसने बचपन से इसकी रक्षा की है..........उस नए पुरुष को वो मिठाई दे देती है चाहे वो उसकी इज्जत करे या न करे, पर उसे नही देती जिसने उस मिठाई पर कभी एक मक्खी तक नही बैठने दी........ सिर्फ समाज के डर से, पर ये एक भाई के साथ नाइंसाफी है, और केवल शादी तक ही नही भाई तो बहन की रक्षा शादी के बाद भी मरते दम तक करता है, पर बहन शादी होने के बाद भी भाई को उसके हक़ की मिठाई नही खिलाती, कम से कम शादी के बाद चुपके से कभी न कभी अपनी बूर का स्वाद एक बहन अपने सगे भाई को चखा ही सकती है, क्या भाई बहन को कम संतुष्टी देगा.......कदापि नही........ इसलिए मेरे भाई चोद लो अपनी बहन को जी भरके........तेरे लंड की प्यासी है तेरी बहना की बूर, और इसलिए अगर तेरे जीजा मुझे चोदते होते तो भी मैं तुझे अपनी बूर चखाती।


नीलम ने सिसकते और कराहते हुए लंबा चौड़ा एक मादक भाषण दे डाला, महेन्द्र नीलम की लॉजिक भरी बातें सुनकर दंग रह गया, ऐसे ही बेबाक जवाब होते थे नीलम के, महेन्द्र को ये सब सुनके इतनी मस्ती चढ़ी की उसने कस के नीलम को दबोचा और "ओह मेरी दीदी......हाय मेरी प्यारी दीदी........तू मुझे इतना प्यार करती है......की अपनी मिठाई मुझे परोस दी........सच में तेरी बूर के आगे सारी मिठाई फीकी है........मैं मर जाऊंगा तेरे बिना.........तेरी बूर के बिना मैं नही रह पाऊंगा.......आह क्या बूर है तेरी मेरी बहन" कहते हुए दनादन नीलम की बूर में गच्च गच्च लंड पेल पेल कर नीलम को चोदने लगा।


नीलम की चाल को महेन्द्र फिर नही समझ पाया, नीलम मंद मंद मुस्कुराती रही और हल्का हल्का कभी कभी लंड के आड़े तिरछे धक्के बूर की दीवारों पर लगने से आह....ऊई अम्मा करते हुए सिसकती रही, पर वो एक कमी उसे बहुत खल रही थी।


इतनी मादक बातें सुनकर और नीलम की लज़्ज़त भरी बूर में काफी देर से लंड पेलते रहने की वजह से अब महेन्द्र का टिक पाना मुश्किल था, उधर बिरजू भी कमरे से आ रही मादक सिसकियों को सुनकर बेचैन होता जा रहा था, कभी वो इधर उधर घूमने लगता तो कभी खिड़की के पास खड़ा हो जाता, उमस और गर्मी हो ही रही थी, तभी आंगन में खड़े होने की वजह से बिरजू के ऊपर बारिश की हल्की हल्की दो चार बूंदे गिरी, बिरजू ने सर उठा के ऊपर देखा तो काले काले बादल छा चुके थे, बारिश होने वाली थी अब तेज।


बिरजू ने अब अंदर जाना उचित समझा, जैसे ही उसने घर के अंदर प्रवेश करने के लिए दरवाजा खोला हल्की चर्रर्रर्रर की आवाज हुई और तभी जोर से बादल गरजे और बिजली चमकी, बिलजी इतनी तेज चमकी की एक पल के लिए पूरा आंगन जगमगा गया और कमरे में भी भरपूर रोशनी हुई, जिससे नीलम और बिरजू की नजरें मिल गयी, नीलम मारे लज़्ज़ा के गनगना गयी की कैसे एक पिता ने अपनी
सगी बेटी को चुदवाते हुए देख लिया, और वो किस तरह लेटकर महेन्द्र से चुदवा रही है।


महेन्द्र ने भी पलटकर बिरजू की ओर देखा, बिरजू ऊपर से बिल्कुल नंगा था, नीचे उसने धोती पहन रखी थी, जिसमे उसका काला जंगली सा लंड कब से फुंकार मार रहा था, एक पल के लिए तेज रोशनी होने से बिरजू ने महेंद्र को नीलम के ऊपर चढ़कर उसको हचक हचक के चोदते हुए देख लिया, नीलम और महेन्द्र मदरजात नंगे थे, नीलम ने झट से एक बड़ा चादर उठा कर महेंद्र और अपने ऊपर डालकर ढक लिया, और मारे उत्तेजना के तेज तेज अपने बाबू के सामने सिसकने लगी, महेन्द्र से भी अब रुका नही जा रहा था वो नीलम को बहुत तेज तेज चोदने लगा, बिरजू की मौजूदगी का अहसाह कर अब नीलम के बदन में अजीब सी झुरझुरी होने लगी, एक अलग ही रोमांच का अहसाह उसे होने लगा, जिससे वो हल्का हल्का झड़ने के करीब जाने लगी थी कि तभी महेंद्र हुंकार मारते हुए नीलम की बूर में आखिरी धक्का लगाकर गनगना के झड़ने लगा, धक्का उसने इतना तेज मारा था कि पलंग हल्का सा चरमरा गई थी पर लंड उसका फिर भी बूर की उस गहराई को नही छू पाया था जहां तक जाने की आशा नीलम कर रही थी। पूरे कमरे में न चाहते हुए भी तेज तेज कामुक सीत्कार गूंज उठी।


एक बड़ी चादर के अंदर महेन्द्र और नीलम एक दूसरे से गुथे पड़े थे, पूरा बदन दोनों का ढका हुआ था बस पैर और मुँह बाहर थे, महेन्द्र के लंड से वीर्य की एक मोटी धार झटके ले लेकर कई बार निकली और नीलम की प्यासी बूर को भरने लगी, महेन्द्र जोर जोर से हाँफता हुआ, नीलम के ऊपर ढेर हो गया, नीलम ने उसे किसी बच्चे की तरह दुलारते हुए अपने आगोश में भर लिया और हौले हौले उसकी पीठ सहलाने लगी, अपने अंदर का सारा लावा नीलम की प्यासी बूर में उड़ेलने के बाद महेन्द्र धीरे धीरे शांत हुआ।


अब नीलम और महेन्द्र दोनों को ये तो पता था कि बाबू कमरे में मौजूद हैं, और बिरजू को भी पता था कि महेन्द्र उसकी बेटी की बूर में झड़ चुका है।


उपाय के नियम के अनुसार कुछ देर शांत पड़े रहने के बाद अब महेन्द्र धीरे धीरे अपना हल्का सा मुरझाया लंड नीलम की बूर में पेलने लगा, नीलम को अब और मस्ती चढ़ने लगी और वो जानबूझ कर सिसकने लगी, महेन्द्र लगातार लंड बूर में पेलने लगा, बूर एकदम गीली थी, महेन्द्र के वीर्य से लबालब भरी हुई थी।


इधर बिरजू अपनी धोती खोलकर पलंग पर रख देता है और पूरा नंगा हो जाता है वो पलंग पर चढ़कर बिल्कुल महेन्द्र के पीछे आ जाता है, नीलम और महेन्द्र का बदन तो चादर में ढका हुआ था, नीलम ने अपने दोनों पैर फैलाकर अब हवा में उठा लिए थे, पलंग पर बिरजू के चढ़ने से पलंग एक बार फिर चरमरा गई और नीलम और महेन्द्र को बिरजू के एकदम करीब आने से एक तेज सनसनाहट का अहसाह हुआ, बिरजू नीलम के दोनों पैरों के बीच महेन्द्र के पीछे पूरा नंगा अपना दैत्याकार काला लन्ड हाँथ में लिए बैठा था, वो सब कुछ बिल्कुल उपाय के अनुसार करना चाहता था कहीं कोई चीज़ छूट न जाये, नीलम और महेन्द्र भी बिल्कुल वैसा ही कर रहे थे पर शर्म और लज़्ज़ा से उनका बुरा हाल था। महेन्द्र लगातार अपना लंड नीलम की बूर में अंदर बाहर कर रहा था उसकी गाँड़ ऊपर नीचे हिलती हुई गुप्प अंधेरे में भी दिख रही थी, बूर वीर्य से लबालब भरी होने की वजह से कमरे में फच्च फच्च की लगातार गूंज रही थी।


अब महेन्द्र का लन्ड भी अपने ससुर को बिल्कुल ठीक अपने पीछे मौजूद होने से एक अजीब रोमांच में सख्त होने लगा की तभी नीलम को अपनी बूर की गहराई में झनझनाहट महसूस हुई उसे लगा कि अब वो झड़ जाएगी तभी उसने जोर से कहा- अब बस....अब रुक जाओ।


(ये इशारा था महेन्द्र को, की वो अब उपाय के अनुसार हट जाय, महेंद्र और बिरजू दोनों समझ गए कि नीलम झड़ने की राह पर आ चुकी है)


महेन्द्र ने पक्क़ से वीर्य से सना हुआ खड़ा लंड नीलम की वीर्य से भरी लबालब बूर में से निकाला और चादर के अंदर से निकलकर बगल में पड़ा एक दूसरा चादर ओढ़ते हुए नीलम के बायीं ओर पलंग पर लेटकर अपने खड़े लंड पर लगे वीर्य को चादर में ही पोछने लगा।


इधर नीलम ने झट से अपने दोनों पैर फिर से फैला लिए हालांकि उसने अपने बदन को पूरा चादर से ढका हुआ था, बिरजू पोजीशन बनाकर हाहाकारी मूसल जैसा काला लंड खोले उसकी दोनों टांगों के बीच बैठ गया और धीरे से बोला- मेरी बेटी.....मेरी बच्ची


नीलम शर्म से कुछ नही बोली और तेज तेज सांसें लेने लगी।


बिरजू ने अंधेरे में फिर बोला- नीलम.....मेरी बच्ची


नीलम बहुत धीरे से- हाँ बाबू


बिरजू- आखिर वो पाप करने का वक्त आ ही गया न, मुझे माफ़ कर देना बेटी।


नीलम- ऐसे न बोलो बाबू......बहुत शर्म आ रही है मुझे।


बिरजू- नीलम मेरी बच्ची......तू मेरी प्यारी बच्ची होने के साथ साथ एक यौवन से भरपूर स्त्री भी है और मैं सगा पिता होने के साथ साथ एक पुरुष भी हूँ, वैसे तो एक पुरुष जब एक यौवना स्त्री को देखता है या उसके बारे में सोचता है तभी उसके मन मे संभोग की इच्छा जागृत हो जाती है पर यहां मेरे और तेरे बीच सगे पिता पुत्री का जो रिश्ता है वो मुझे उत्तेजना के उस चरम पर नही जाने दे रहा जिससे एक सफल यौन संबंध स्थापित हो पाए और हम एक सफल संभोग करते हुए चरम सुख की प्राप्ति करें। ये पवित्र रिश्ता बीच में आड़े आ रहा है मेरी बच्ची। एक पिता का अपनी बेटी के साथ यौन संबंध बनाना महापाप है शायद यह सोच मुझे उत्तेजित होने से रोक रही है, और जब तक एक पुरुष अच्छे से उत्तेजित न हो वो सफल यौन संबंध कैसे बना पायेगा और सफल सभोग कैसे कर पायेगा, तू इस सोच के खंडित कर दे मेरी बच्ची।


नीलम बहुत लजाते हुए- मेरे बाबू.....एक बेटी होने के नाते मुझे बहुत लज़्ज़ा आ रही है पर मैं नही चाहती कि मेरे बाबू अपने दिए वचन को पूरा न कर पाएं और मेरी इच्छा अधूरी रह जाये, और उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचे, इसलिए आप ही मुझे बताइए कि आप पूर्ण रूप से कैसे उत्तेजित होंगे और में आपके आदर्श सोच को कैसे खंडित करूँ।


बिरजू कुछ देर चुप रहा फिर बोला- जब तक मैं तेरी महकती हुई जवान योनि नही देख लेता मुझे चरम उत्तेजना नही आएगी बेटी, एक आमंत्रित करती हुई योनि देखने के बाद ही एक पुरुष के अंदर मान मर्यादा की दीवार टूटती है मेरी बच्ची और वो रिश्ते नाते तक भूल जाता है, इतना तो तू समझ ही सकती है और जबतक ये पवित्र रिश्ते की दीवार नही गिरेगी हम उस कार्य को अंजाम नही दे सकते।


नीलम- बाबू......


बिरजू- हां मेरी बच्ची......मुझे अपना यौवन दिखाना होगा तुझे.......अपनी महकती हुई योनि दिखानी होगी आज अपने बाबू को।


नीलम सच में शर्मा गयी, क्योंकि महेंद्र भी एकदम बगल में चादर ओढ़े लेटा सब सुन रहा था उसका लंड भी लोहे की तरह दुबारा सख्त हो चुका था अपने ससुर की बातें सुनकर।


नीलम कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे से शर्माते हुए बोली- बाबू जी तो फिर अपनी आंखें बंद कीजिए पहले......मैं धीरे से दिखती हूँ आपको अपनी योनि, आपकी अपनी ही सगी बेटी की योनि और आप भी उधर मुँह कर लीजिए (नीलम ने महेन्द्र को कहा तो महेन्द्र ने करवट बदलकर मुँह चादर में ढककर पलटकर लेट गया)


बिरजू ने अंधेरे में आंखे बंद की नीलम ने चादर को ऊपर कमर तक खींचकर अपनी मांसल जांघे बड़ी ही मादक अदा से खोल दी जिससे उसकी कमसिन रसीली बूर की फांके फैल गयी और बूर उभरकर बाहर की तरफ आ गयी, नीलम ने फिर शर्माते हुए टॉर्च उठायी और उसको अंधेरे में एकदम अपनी बूर के ऊपर लाकर जला दी।


बिरजू आँखे फाड़े अपनी सगी शादीशुदा बेटी की दामाद के वीर्य से भरी गीली बूर को देखकर मानो पागल ही हो गया, और बोला- आह मेरी बच्ची क्या योनि है तेरी, बहुत नरम और रसीली है ये तो और तेरी जांघे कितनी मोटी मोटी हैं मेरी बच्ची मेरी बेटी?


नीलम शर्म के मारे पानी पानी हो गयी


क्या बूर थी नीलम की, कितनी गीली हो रखी थी, दोनों फांके, फांकों के बीच मे तना हुआ भगनासा जो कि फूलकर लगभग अलग ही चमक रहा था, गीले गीले फांक फैलने से उनके बीच वीर्य के दो तीन तार बन गए थे, काले काले बालों से घिरी लगभग एक बित्ता लंबी बूर, जांघे फैलने से लगभग दोनों फांक खुल गए थे और अंदर का गुलाबी छेद जिसमे से महेन्द्र का वीर्य अब भी बहकर बाहर आ रहा था बरबस ही जल्द से जल्द लंड डालने के लिए ललचा रहा था। नीलम ने चुपके से अपना बायां हाँथ नीचे लेजाकर अपनी दो उंगलियों से बूर की फाँकों को अच्छे से चीरकर उसका गुलाबी गुलाबी रसीला छेद अपने बाबू को दिखाकर उनको और ललचाया और फिर अपने बूर के दाने को रगड़कर उनको जल्दी से जल्दी अपनी सगी शादीशुदा बेटी की बूर में अपना लंड डालने की विनती सी की और जमकर चोदने का इशारा किया।


बिरजू सच में आज नीलम की बूर देखकर वासना में दहाड़ उठा, अभी कल ही सारी रात इसी बूर को चोदा था पर न जाने क्यों आज अलग ही नशा चढ़ गया उसका लन्ड अपने पूरे ताव में आ गया, नीलम से झट से टॉर्च बंद की और बगल में रख दी वो समझ गयी कि अब उसके बाबू उसे रौंद डालेंगे उसने जिस तरीके से अपने बाबू को ललचाया था वो सच में आग लगा देने वाला था, बिरजू ने गरजते हुए जल्दी से अपने दहाड़ते लंड के मोटे सुपाड़े पर से चमड़ी खींचकर पीछे की और सीधे हाँथ से लंड को थामकर अपनी बेटी के मखमली गुदाज बदन पर चढ़ गया, नीलम ने भी झट से अंधेरे में अपने दोनों पैर फैलाकर अपने मनपसंद पुरुष की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया और खुद ही अपनी विशाल गुदाज गाँड़ उठा कर अपने सपनो का पसंदीदा लौड़ा अपनी बूर की असीम गहराई में उतरवाने के लिए लपकने लगी, बिरजू ने जल्दी से उसपर झुकते हुए एक हाँथ को नीचे लेजाकर उसकी बूर की दोनों फांकों को चीरा और दूसरे हाँथ से 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा काले नाग जैसे लंड का फूला हुआ छोटी सी गेंद जैसा सुपाड़ा उसकी बूर की कमसिन से गुलाबी छेद पर रखा, गरम गरम सुपाड़े की छुवन अपने बूर की छेद पर महसूस कर नीलम हल्का सा सिसक गई, महेन्द्र ने भी इस सिसकन को भांप लिया कि लंड का सुपाड़ा बूर की छेद पर रखा जा चुका है, बिरजू ने वासना में चिंघाड़ते हुए "ओह मेरी बेटी मुझे माफ़ कर देना" अपना समूचा लंड एक ही बार में गनगना के बूर की अनंत गहराईयों में उतार दिया। नीलम इतनी जोर से सीत्कारी की उसकी आवाज आंगन तक गयी,
नीलम- "आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहहहहहहहहहहहह.........बबबबबबाबाबाबाबाबूबूबू बूबूबूबूबूबूबूबूबूबूबू............... मेरीबूबूबूबूबूबूररररररर..........मर गयी दैय्या............हाय.......अम्मा............


धक्का इतना तेज था कि नीलम की दोनों जांघे अच्छे से फैल गयी थी और उसका बदन लगभग एक फुट ऊपर को सरक गया दोनों चूचीयाँ बुरी तरह हिल गईं, दोनों पैर हवा में ऊपर को उठ गए, दर्द से उसका मुँह खुल गया और वो बुरी तरह तड़प उठी, एक ही बार में उसके बाबू का काला लंड बूर की गहराई को चीरता हुआ उस जगह पर जा पहुंचा जिसके लिए नीलम कब से तरस रही थी, तेज तेज सिसकारियां लेते हुए उसकी साँसे फूलने लगी, पर न जाने क्यों उसे बहुत अच्छा लगा।


महेन्द्र भी समझ गया कि उसकी पत्नी की बूर में उसके ही सगे पिता का लंड समा चुका है, एक पिता का मूसल जैसा लन्ड अपनी ही शादीशुदा बेटी की कमसिन बूर में जड़ तक घुस चुका है, एक पिता और बेटी के बीच एक दर्दभरा रसीला यौनसंबंध कायम हो चुका है, उसका लंड जोश के मारे चिंघाड़ने लगा कि कैसे उसकी पत्नी उसी के बगल में लेटकर, उसकी मौजुदगी में ही अपने सगे पिता से चुद रही है और वो भी अपनी मर्ज़ी से........ये बात वाकई में उत्तेजना से लंड की नसें तक को फाड़ देने वाली थी, ये बात सच है कि लंड और बूर का कोई रिश्ता नही होता, महेन्द्र ने अंधेरे में धीरे से चादर में से मुँह निकाल कर दोनों बाप बेटी को देखने की कोशिश की तो देखकर उसका मुँह खुला का खुला रह गया।


महेन्द्र ने चुपके से देखा कि कैसे उसके ससुर ने अपनी बेटी को दबोच रखा है जैसे कोई शेर किसी कमसिन हिरन के बच्चे को दबोच के रखता है, दरअसल बिरजू पूरी तरह नीलम के ऊपर चढ़ गया था और उसका लन्ड जड़ तक नीलम की बूर में समाया हुआ था, नीलम तड़पती मचलती हुई बिरजू के नीचे सिसकते हुए पड़ी थी, थोड़ी देर चुप शांत पड़े रहने के बाद महेन्द्र ने जो देखा वो देखकर वो सन्न रह गया, नीलम ने अंधेरे में हल्का सा सिसकते हुए अपने दोनों हाँथ अपने बाबू की पीठ पर ले गयी और धीरे धीरे प्यार से सहलाने लगी, फिर उसने प्यार से अपने बाबू के बालों को सहलाया और धीरे धीरे दोनों हाँथ कमर से नीचे गाँड़ पर ले गयी और अपने बाबू की गाँड़ को अपनी बूर की तरफ बड़े प्यार से कई बार दबाया और दबाकर ये इशारा किया कि उसे उनका लन्ड अत्यधिक पसंद आया, इसका मतलब ये था कि बाबू आपका लंड मेरे पति के लंड से कहीं ज्यादा आनंददायक और रसीला है और मुझे यह भा गया, इतना ही नही नीलम ने अपने बदन को और मोड़कर अपने हाँथ को और नीचे लेजाकर सिसकते हुए अपने बाबू के दोनों बड़े बड़े लटकते हुए आंड मस्ती में भरकर हल्का हल्का कराहते हुए सहलाने लगी, ये एक स्त्री का अपना मनपसंद पुरुष प्राप्त करने के बाद अपनी खुशी जाहिर करने का तरीका था कि उस पुरुष का साथ उसका लंड उसे स्वीकार है, वो उससे चुदना चाहती है।

महेन्द्र ये देखकर एक अजीब सी गुदगुदी अपने अंदर महसूस करने लगा और चादर के अंदर ही अपना लंड हल्का हल्का हिलाने लगा, न जाने कौन सा आनंद उसे अपनी ही पत्नी को अपने पिता से चुदवाते हुए देखकर मिल रहा था।

महेन्द्र ने फिर देखा कि कैसे बिरजू ने नीलम के इस तरह उसे कबूल करने पर, उसके लंड की लज़्ज़त को स्वीकार करने पर, अपना आधा लंड बूर में से निकाल कर फिर दुबारा गच्च से बूर में घुसेड़ दिया तो इस बार नीलम के मुँह से न चाहते हुए भी निकल ही गया- ओह बाबू.....आपका लंड.....जरा धीरे घुसाइये।

आखिर नीलम भी कब तक चुप रहती वासना की आग में वो भी कब से जल रही थी

बिरजू ये सुनकर नीलम को बेताहाशा चूमने लगा और नीलम जोर जोर कराहने सिसकने लगी, नीलम भी अपने बाबू के सर को पकड़कर दनादन जहां तहां चूमने लगी, काफी देर तक दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, नीलम से रहा नही गया तो उसने कह ही दिया- बाबू आप बहुत अच्छे हो।

बिरजू- आह मेरी बच्ची तू भी बहुत रसीली है......बहुत रसीली, ऐसा सुख मुझे आजतक नही मिला।

बिरजू का समूचा लन्ड महेन्द्र के वीर्य से सन चुका था।

नीलम ने धीरे से सराहा- बाबू

बिरजू- हाँ मेरी बच्ची

नीलम- अपना वो बहुत मोटा और लंबा है

(नीलम ने ये जानबूझकर महेन्द्र को सुनाने के लिए कहा)

बिरजू- वो क्या मेरी बेटी?

नीलम ने कराहते हुए कहा- आप समझ जाइये न बाबू?

बिरजू- मुझे नही समझ आ रहा तू बता न मेरी बच्ची।

नीलम ने कुछ नही बोला तो बिरजू ने दुबारा पूछा- बोल न नीलम....मेरी प्यारी बच्ची......बाबू का क्या अच्छा है।

नीलम - वो

बिरजू ने लन्ड से एक गच्चा बूर में मारा तो नीलम फिर कराह उठी और बिरजू बोला- बोल न बेटी.......तेरे मुँह से सुनकर ही शुरू करूँगा।

नीलम ने फिर शर्माते हुए बोला- आपका लंड

बिरजू- हाय मेरी बच्ची.......सच

नीलम- हाँ बाबू......बहुत रसीला है.......उसका आगे का भाग....उसका मुँह कितना चिकना है और बड़ा है इस वक्त मेरी बूर में कितने अंदर तक घुसा हुआ है।

बिरजू- तेरी वो भी तो कितनी रसीली और नरम नरम है।

नीलम - वो क्या बाबू?

बिरजू- वही जहां से मेरा नाती पैदा होगा?

नीलम- कहाँ से पैदा होगा बाबू.....बोलो न

बिरजू- मेरी बच्ची की बूर से, मेरी बेटी की चूत से।

नीलम ये सुनकर मस्ती में मचल गयी और बिरजु को "ओह मेरे बाबू" अपने मेरी इच्छा पूरी कर दी, करो न बाबू अब

महेन्द्र ने देखा कि कैसे उसके ससुर ने अपनी बेटी की चूचीयों पर से चादर हटा के उसको निवस्त्र कर दिया और नीलम ने रात के अंधेरे में उनका पूरा साथ दिया, महेन्द्र की आंखों के सामने अंधेरे में भी नीलम की दोनों विशाल चुचियाँ जोश के मारे तनी हुई थी अंधेरे में उनकी तनी हुई आकृति देखकर, उनका फूला हुआ आकार देखकर महेन्द्र का लंड मारे जोश के तन्नाया हुआ था, दोनों निप्पल कितने कड़क हो चुके थे ये साफ दिख रहा था, और अब कितनी बेशर्मी से नीलम खुद अपनी दायीं चूची को पकड़कर कराहते हुए अपने सगे बाबू के मुँह में चूसने के लिए दे रही थी।

बिरजू पागलों की तरह अपनी सगी बिटिया की मदमस्त फूली फूली गुदाज चूचीयों को मुँह में भर भर के बारी बारी पीने लगा और नीलम जोर जोर से मचलते हुए उन्हें बड़े प्यार से उनका सर सहलाते हुए अपनी चूचीयों पर दबाने लगी, नीलम खुलकर अब सिसकने लगी थी, तेज तेज अपने बाबू के सर को और पीठ को सहलाते हुए उन्हें बारी बारी से अपनी चूचीयाँ परोस परोस के निप्पल पिलाने लगी, महेंद्र ने चुपके से साफ देखा कि कैसे नीलम ने रुककर अपनी एक चूची अपने हांथों में ली और कितने प्यार से अपनी बाबू के मुँह में डाल दी।

इतना जोश महेन्द्र को अपने जीवन में कभी नही चढ़ा था, एक सगे बाप बेटी का मिलन वो अपनी आंखों से देख रहा था और न जाने क्यों उसे ये रोमांचित कर रहा था।

बिरजु नीलम की चूचीयों को खूब जोर जोर से कराहते हुए दोनों हांथों से दबाने मसलने लगा और दोनों पलंग पर एक दूसरे को बाहों में लिए पलटने लगे, नीलम से अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो गया तो उसने आखिर बिरजू से धीरे से कहा- बाबू

बिरजू- हाँ मेरी बच्ची

नीलम- पेलिये न अब......अब चोद दीजिए मुझे.......अपनी बच्ची को

बिरजू ये सुनकर फिर वासना से और भर गया और उसने बगल में रखा तकिया उठाया और उसको नीलम की गाँड़ के नीचे लगाने लगा नीलम ने अच्छे से गाँड़ उठा कर पूरा सहयोग किया।

नीलम की गाँड़ ऊपर उठने से बूर और ऊपर उठकर ऊपर को उभर गयी फिर बिरजू ने कस के एक तेज धक्का मारा तो नीलम दर्द से सिरहते हुए बोली- बस बाबू.....बहुत अंदर तक जा चुका है......अब चोदिये मुझे.....बर्दाश्त नही हो रहा है मुझे.....मर जाउंगी मैं........मेरी प्यास बुझा दीजिए........तृप्त कर दीजिए अपनी बच्ची को अपने लन्ड से।

नीलम का इतना कहना था कि बिरजु ने अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर नीलम की चौड़ी गाँड़ के दोनों मांसल पाटों को थाम कर हल्का सा और उठा लिया जिससे नीलम का बदन अब किसी धनुष की तरह मुड़ गया था, पर उसे मजा बहुत आ रहा था, तेज दर्द में भी असीम सुख की अनुभूति उसे हो रही थी।

बिरजू ने नीलम के होंठों को चूमते हुए धीरे धीरे बूर में धक्का मारना शुरू किया, नीलम ने भी अपने बाबू के होंठ चूसते हुए कस के उन्हें बाहों में भरकर अपने पैरों को अच्छे से उनकी कमर से लपेट दिए।

अभी धीरे धीरे ही बूर में धक्के लग रहे थे कि इतने से ही नीलम को असीम आनंद आने लगा और वो सातवें आसमान में उड़ने लगी, उसे अपनी बूर में अपने ही सगे पिता के लन्ड का आवागमन इतना प्यारा लग रहा था कि वो सबकुछ भूलकर लन्ड में ही खो गयी, लन्ड के ऊपर फूली हुई मोटी मोटी नसें कैसे बूर की अंदरूनी मांसपेशियों से रगड़ खा रही थी, कैसे उसके बाबू के लन्ड का मोटा सा सुपाड़ा बार बार बूर की गहराई में अंदर तक बच्चेदानी पर ठोकर मारकर उसे गनगना दे रहा था, कैसे उसके बाबू चोदते वक्त बीच बीच में अपनी गाँड़ को गोल गोल घुमा घुमा कर लन्ड को आड़ा तिरछा बूर में कहीं भी पेल दे रहे थे जिससे नीलम जोर से सिसक जा रही थी।

बिरजू अब थोड़ा तेज तेज धक्के मारने लगा, नीलम का समूचा बदन तेज धक्कों से हिल जा रहा था, नीलम की आंखें असीम आनंद में बंद थी और वो परमसुख की अनुभूति और रसीले धक्कों की कायल होकर " आह.... बाबू....ऊई मां.....उफ़्फ़फ़फ़.....आह.....ऐसे ही बाबू........तेज तेज बाबू........पूरा पूरा डालो न........हाँ ऐसे ही........अपने दोनों हांथों को मेरी पीठ के नीचे ले जाकर कस के आगोश में लो न बाबू मुझे.........हाँ ऐसे ही.......गोल गोल घुमा के गच्च से पेलो न बूर में.. ....हाँ बिल्कुल ऐसे ही..........आआआआहहहह.......और पेलो बाबू....ऐसे ही........मारो मेरी चूत बाबू.......अपनी बच्ची की चूत मारो......आखिर चूत तो मारने के लिए ही होती है........तेज तेज करो.........कितना अंदर तक जा रहा है अब आपका लंड........... मेरी बच्चेदानी को हर बार चूम कर आ रहा है मेरे सपनों का लन्ड.........चोदो बाबू मुझे......ऐसे ही.......हां..... ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई......... मां....... कितना तेज धक्का मारा इस बार.......थोड़ा धीरे बाबू........हाय मेरे बाबू।


अत्यधिक जोश में नीलम ऐसे ही बोले जा रही थी, अब वो बिल्कुल खुल चुकी थी उसे अब ये भी होश नही था कि बगल में महेंद्र लेटा हुआ चादर के अंदर से सब देख रहा है, और खुद महेन्द्र नीलम को अपने पिता से चुदवाते हुए देखकर अपना लन्ड हिलाकर एक बार और झड़ चुका था।

बिरजू बीच बीच में रुककर अच्छे से अपनी गाँड़ को गोल गोल घुमाकर अपने मोटे लन्ड को बूर में गोल गोल बूर के किनारों पर रगड़ने की कोशिश करता था जो नीलम को बहुत पसंद था वो अपने बाबू के इसी हरकत की कायल थी, जब भी बिरजू ऐसा करता नीलम जोर जोर से अपनी गाँड़ नीचे से उछाल उछाल के अपने बाबू की ताल में ताल मिलाती और रसभरी चुदाई का भरपूर मजा लेती।

बिरजू का लन्ड इतना जबरदस्त नीलम की बूर को चीरकर उसमे घुसा हुआ था कि नीलम की बूर किसी रबड़ के छल्ले की तरह लन्ड के चारों ओर फैलकर चिपकी हुई थी।

बिरजू के धक्के अब बहुत तेज हो चले थे पूरी पलंग हल्का हल्का चरमरा रही थी, जहां पहले शर्म और लज़्ज़ा कि वजह से बड़ी मुश्किल से सिसकियां निकल रही थी वहीं अब पूरा कमरा तेज तेज चुदाई के आनंद भरे सीत्कार से गूंज उठा था, चुदाई की फच्च फच्च की आवाज वासना को और बढ़ा दे रही थी, तेज तेज धक्कों से दोनों बाप बेटी की अंदरूनी जाँघों की टकराने की थप्प थप्प की आवाज अलग ही आनंद दे रही थी।

इतनी तेज तेज वहशीपन से भी बूर को चोदा जाता है ये नीलम आज महसूस कर रही थी और इस वहशी और जंगलीपन चुदाई का तो अनोखा ही मजा था, और बगल में लेटा कोई देख रहा है ये रोमांच अलग ही सुरसुरी बदन में पैदा कर रहा है।

बिरजू अब पागलों की तरह बहुत तेज तेज हुमच हुमच कर अपनी कमसिन सी बेटी की बूर में अपना वहशी लन्ड पेलने लगा और नीलम को इससे अथाह आनंद आने लगा, नीलम जोर जोर से कराहते और हाय हाय करते हुए नीचे से अपनी गाँड़ तेज तेज उछालने लगी, दोनों बाप बेटी अब मदरजात नंगे पलंग पर एक दूसरे में समाए हुए थे, चादर अस्त व्यस्त होकर बदन से हट चुका था, बाहर घनघोर बारिश होने लगी थी, काफी देर तक बिरजू दनादन अपनी बेटी की चूत मारता रहा, तभी तेज बिजली कड़की और एक बार फिर पूरे कमरे में रोशनी फैल गयी, एकाएक नीलम और बिरजू ने एक दूसरे को देखा और दोनों वासना में मुस्कुरा उठे नीलम ने मारे शर्म के अपना चेहरा अपने बाबू के सीने में छुपा लिया, तभी न जाने क्यों बिजली कई बार चमकी, कभी धीरे कभी तेज, कभी बहुत तेज, इस दौरान नीलम और बिरजू ने एक दूसरे को आपस मे चुदाई करते हुए अच्छे से देखा और नीलम बार बार शर्मा गयी, बिरजू कस कस के अपनी शादीशुदा बेटी की चूत मारते हुए उसके होंठों को अपने मुंह में भरकर पीने लगा, नीलम के बदन में एक सनसनाहट सी होने लगी, उसकी रसीली बूर की गहराई में तरंगे उठने लगी, किसी का होश नहीं रहा उसे अब, नीचे से खुद भी गाँड़ उछाल उछाल के अपने पिता से अपनी चूत मरवा रही थी, तभी बिरजू ने अपनी जीभ नीलम के मुँह में डाली और जैसे ही तेज तेज धक्के चूत में मारते हुए अपनी जीभ नीलम के मुंह में घुमाने लगा नीलम जोर से कराहती हुई गनगना के अपनी गाँड़ को ऊपर उठाते हुए अपनी बूर में अपने बाबू का लंड पूरा लीलते हुए झड़ने लगी, उसकी बूर से रस की धार किसी बांध की तरह टूटकर बहने लगी, उसकी बूर अंदर से लेकर बाहर तक संकुचित होकर काम रस छोड़ने लगी, उसकी बूर की एक एक नरम नरम मांसपेशियां मस्ती में सराबोर होकर मानो अपने बाबू के लन्ड से लिपटकर उसका धन्यवाद करने लगीं, गनगना कर वो बहुत देर तक अपने बाबू से लिपटकर हांफती रही, काफी देर तक उसकी बूर झड़ती रही, इतना सुख सच में आज पहली बार उसे मिला था। बिरजू का लन्ड अभी भी नीलम की चूत में डूबा हुआ था, वो नीलम को अपने आगोश में लिए बस प्यार से चूमे सहलाये जा रहा था, बिजली अब भी हल्का हल्का कड़क रही थी, बारिश हो रही थी, अब बिरजू से भी बर्दाश्त नही हो रहा था उसके लन्ड की नसें भी मानो जोश के मारे फटी जा रही थी।

थोड़ी ही देर के बाद जब नीलम की उखड़ती साँसे कुछ कम हुई बिरजू ने अपने लंड को अपनी बेटी की चूत से बाहर खींचा और गच्च से दुबारा रसीली चूत में डाल दिया नीलम फिर से गनगना गयी लेकिन अब बिरजू कहाँ रुकने वाला था अपनी बेटी को उसने फिर अपने आगोश में अच्छे से दबोचा और जमकर उसकी चूत मारने लगा नीलम बेसुध सी हल्का हल्का सिसकते हुए अपनी कमसिन सी चूत फिर से अपने बाबू से मरवाने लगी, तेज तेज धक्के मारते हुए अभी दो तीन ही मिनिट हुए होंगे कि बिरजू भी अपनी बेटी की नरम चूत की लज़्ज़त के आगे हार गया और तेज तेज कराहते हुए झड़ने लगा "ओह मेरी बच्ची कितनी मुलायम और नरम चूत है तेरी......आआआआआहहहहह.......इतना मजा आएगा अपनी बेटी को चोदकर........उसकी चूत मारकर......ये कभी सपने में भी नही सोचा था.......आह मेरी बच्ची......चूत इतनी भी नरम और लज़्ज़त भरी होती है आज तेरी चूत मारकर आभास हुआ मेरी बच्ची.......आह

नीलम ने बिरजू को चूमते हुए अपनी बाहों में भर लिया और बिरजू मोटी मोटी वीर्य की गरम गरम धार नीलम की चूत में उड़ेलते हुए उसपर जोर जोर से हांफते हुए लेट गया, नीलम की बूर अपने बाबू के गरम गरम गाढ़े वीर्य से भर गई, नीलम अपने बाबू का गाढ़ा गर्म वीर्य अपनी बूर की गहराई में गिरता महसूस कर गुदगुदा सी गयी, दोनों बाप बेटी अपनी उखड़ी सांसों को काबू करते हुए एक दूसरे को बेताहाशा चूमने लगे, बाहर तेज बारिश लगातार हो रही थी, कभी तेज बिजली चमकती तो दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते, बिरजू ने बड़े प्यार से नीलम के चेहरे को अपने हांथों में लिया और होंठों को चूमते हुए बोला- मेरी बच्ची.......आज कितना अनमोल सुख दिया तुमने अपने पिता को।

नीलम ने भी प्यार से अपने बाबू के होंठों को चूमा और बोली- मेरे प्यारे बाबू.....अपने भी तो अपनी बच्ची को तृप्त कर दिया अपने मोटे लन्ड से।

महेन्द्र चादर में मुंह ढके दोनों को देखता रहा।
Awesome update
 
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