Update- 71
बिरजू जैसे ही दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ और पलटकर दरवाजे की सिटकनी लगाई महेन्द्र जो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ था धीरे से अंधेरे में नीचे उतरकर बायीं तरफ लेट गया, नीलम मंद मंद हंसने लगी। बिरजू अंदाजे से पलंग तक आया और धीरे से बिस्तर पर लेट गया पलंग पर लेटते ही हल्की चरमराहट की आवाज हुई, ये पलंग बिरजू की शादी की थी जो उसके ससुर ने दी थी उपहार में, काफी पुरानी हो गयी थी पर अब भी मजबूत थी, इसी कमरे में हमेशा रखी रहती थी, काफी लंबी चौड़ी और भारी होने की वजह से कोई इस पलंग को जल्दी अपनी जगह से इधर उधर नही करता था।
कमरे में गुप्प अंधेरा था, सब सोने की कोशिश करने लगे, नीलम बीच में थी महेंद्र बायीं तरफ और बिरजू नीलम से थोड़ा सा दूर दाईं तरफ, नींद किसको आ रही थी, बिरजू ने पैर के पास रखा हल्का चादर उठाया और सर से लेकर पैर तक ओढ़कर लेट गया, कमरे में गुप्प अंधेरा होने के बावजूद भी आंखें अभ्यस्त होने के बाद हल्का हल्का दिख ही रह था।
सब चुपचाप लेटे थे, नीलम का भी आखिरी वक्त पर वाकई में शर्म से बुरा हाल था माना कि सब उसी की इच्छा थी, सब उसने ही किया था पर अब आखिरी वक्त पर उसे भी लज़्ज़ा आ रही थी, महेन्द्र तो बकरी बनकर बायीं तरफ लेटा हुआ था हालांकि वो नीलम से लिपटा हुआ था पर अभी तक वो जितना भी उत्तेजित हुआ था सब मानो छूमंतर सा हो गया था, बिरजू तो दायीं तरफ थोड़ा दूर ही लेटा था। नीलम समझ गयी कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, नीलम ने अपना सीधा हाँथ अंधेरे में सरकाकर अपने बाबू की ओर बढ़ाया और उनकी धोती को पकड़कर हल्का सा खींचकर चुपचाप अपनी तड़प का इशारा किया, बिरजु ने अपनी बेटी के हाँथ को अंधेरे में अपने हाँथ में लिया और हल्का सा दबाकर थोड़ा सा सब्र रखने का इशारा किया। नीलम ने फिर हाँथ वापिस खींच लिया और महेन्द्र के कान में धीरे से बोला- भैया
ये सुनते ही महेन्द्र को अजीब सी सनसनाहट हुई, लन्ड में उसके हल्का सा कंपन हुआ, नीलम सीधी पीठ के बल लेटी थी और महेंद्र दायीं तरफ करवट लेकर नीलम के बायीं तरफ लेटा था, नीलम ने बहुत धीरे से महेन्द्र को भैया बोला था पर फिर भी बिरजू तक आवाज गयी, बिरजू जो अब सबकुछ जान चुका था उसको ज्यादा कुछ खास अचंभा नही हुआ, वो जनता था कि नीलम शरारती है कुछ न कुछ वो करेगी ही, सब कुछ बिरजू के सामने खुल ही गया था बस दिखावे की एक लज़्ज़ा की दीवार थी पर इस दीवार को तोड़कर निर्लज्ज कोई नही होना चाहता था क्योंकि असली मजा तो शर्म में ही है।
महेन्द्र ने भी धीरे से नीलम के कान में सकुचाते हुए बोला- दीदी......मेरी प्यारी बहना
इतना कहकर महेन्द्र नीलम को चूमने लगा, धीरे धीरे वो नीलम के ऊपर चढ़ने लगा नीलम भी बड़े आराम से शर्माते हुए महेन्द्र के नीचे आने लगी, शर्म झिझक और असीम वासना का मिला जुला अहसाह देखते ही बन रहा था, जीवन में आज पहली बार महेन्द्र अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ रहा था और बगल में उसका ससुर लेटा था जो कि जग रहा था, यही हाल नीलम का भी हो चला था किसी ने सच कहा है सोचने और वास्तविक रूप में करने में काफी फर्क होता है, कितना अजीब लग रहा था कि उसके बाबू की मौजूदगी में महेन्द्र उसके ऊपर चढ़ रहा था, और बहन भाई की कल्पना की उमंग ने अलग ही रोमांच बदन में भर दिया था, देखते ही देखते महेन्द्र का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया क्योंकि नीलम उसके कान में धीरे धीरे भैया.....मेरा भाई...बोले ही जा रही थी, वो संकोच की वजह से बहन कम ही बोल रहा था पर व्यभिचार के इस लज़्ज़त को महसूस कर अतिउत्तेजित होता जा रहा था, धीरे धीरे नीलम और महेन्द्र की झिझक कम होती गयी और वो दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे, महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था वो उसके बदन को बेतहाशा सहला रहा था, नीलम ने भी शर्माते शर्माते महेन्द्र को अपनी बाहों में भर ही लिया और प्रतिउत्तर में उसके होठों को चूसने लगी, एकाएक महेन्द्र का हाँथ नीलम की 34 साइज की सख्त हो चुकी चूची से जा टकराया तो उसने तुरंत ब्लॉउज में कैद नीलम की नरम मोटी चूची को जिसके निप्पल अब सख्त हो चुके थे अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम हल्का सा सिसक गयी, महेन्द्र दोनों हांथों से नीलम की दोनों चुचियों को दबाने लगा, नीलम घुटी घुटी आवाज में हल्का हल्का कसमसाने लगी, उत्तेजना बदन में हिलोरें मारने लगी, नीलम को उत्तेजना इस बात से ज्यादा हो रही थी कि बाबू उसके बगल में ही लेटे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं और ये अब कितना रोमांचक होने लगा है, कमरे में गुप्प अंधेरा था अगर उजाला होता तो शायद ये सम्भव न हो पाता, लज़्ज़ा की चादर ओढ़े अब धीरे धीरे काम वासना तन और मन पर कब्ज़ा करने लगी थी, नीलम अब खुलने लगी, महेंद्र लगातार उसकी नरम नरम गुदाज चूचीयों को दोनों हांथों से मसले जा रहा था, नीलम के खड़े हो चुके निप्पल को पकड़कर वो मसलने लगा, ऐसा करने से एक सनसनी नीलम के बदन में ऊपर से नीचे तक दौड़ गयी, कराह कर वो दबी आवाज में बोली- आआआआहहहह...भैय्या.....धीरे से
बूर नीलम की गरम तो पहले से ही थी पर अब मारे जोश के पिघलने सी लगी, नीलम का आधे से ज्यादा ध्यान अपने बाबू पर था, उसने अपनी मांसल जाँघों को फैलाकर पैर को उठाया और महेन्द्र की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया, नीलम का महेन्द्र को इस तरह स्वीकारना बहुत अच्छा लगा, महेन्द्र नीलम के चेहरे को बेताहाशा चूमते हुए गर्दन पर आ गया नीलम बड़े प्यार से अपना बदन महेन्द्र को सौंपे जा रही थी, महेन्द्र ने नीलम की गर्दन पर गीले गीले चुम्बन देना शुरू कर दिया तो मस्ती में नीलम ने भी अपनी आंखें बंद करते हुए सर को ऊपर की तरफ पीछे करते हुए अपनी गर्दन को उभारकर महेन्द्र को परोस दिया, दोनों लाख कोशिश कर रहे थे कि आवाज न हो पर फिर भी चूमने सिसकने की हल्की हल्की आवाज हो ही रही थी।
चूमते चूमते महेन्द्र नीचे आया और नीलम के ब्लॉउज का बटन खोलने लगा अब नीलम मारे उत्तेजना के सिसक उठी क्योंकि अब वो निवस्त्र होने वाली थी, बगल में उसके बाबू लेटे थे, दोनों दुग्धकलश अब उसके बेपर्दा होने वाले थे, नीलम ने खुद ही अपने दोनों हाँथ को उठाकर सर के ऊपर रख लिया जिससे ब्लाउज में कसी उसकी दोनों चूचीयाँ और ऊपर को उठ गई, महेंद्र ने पहले तो झुककर नीलम की काँख में मुँह लगाकर उसके पसीने को अच्छे से सुंघा फिर ब्लॉउज के ऊपर से ही काँख में लगे पसीने को चाटने लगा, थोड़ी गर्मी की वजह से, थोड़ा उमस की वजह से और ज्यादा वासना और उत्तेजना की वजह से तीनों पसीने से तर भी हो रहे थे, नीलम का पसीना अच्छे से चाटने के बाद महेन्द्र ने एक ही झटके में नीलम के ब्लॉउज के सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल पलट दिया और ब्रा में कैद नीलम की उत्तेजना से ऊपर नीचे होती हुई दोनों मोटी मोटी 34 साइज की चुचियों के बीच की घाटी में सिसकते हुए मुँह डालकर ताबड़तोड़ चूमते हुए धीरे से बोला- ओह बहना.....और एक हाँथ से दायीं चूची को हथेली में भरकर मीजने लगा, नीलम ने कराहते हुए हाथ बढ़ा कर थोड़ा दूर लेटे अपने बाबू का हाँथ पकड़ लिया और जोश में उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर दबाने लगी। इधर महेंद्र मानो नीलम की चूचीयों को अपनी बहन सुनीता की चूची समझते हुए उनपर टूट ही पड़ा जिससे नीलम थोड़ा जोर जोर सिसकने लगी और अपने दोनों पैर के अंगूठों को उत्तेजना में तेज तेज आपस में रगड़ने लगी।
बिरजू सर तक पूरा चादर ओढ़े अभी तक सन्न पड़ा हुआ उत्तेजना में लाल हो चुका था उसका 8 इंच का तगड़ा काला लन्ड फुंकार मारने लगा। वो बस नीलम के नरम नरम हांथों को मारे उत्तेजना के हौले हौले दबा रहा था लेकिन अपने बाबू की केवल इतनी सी छुवन नीलम को उत्तेजना से भर दे रही थी, अंधेरे में एक तरफ उसका पति उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूचीयाँ खोले मसल रहा था और दूसरी तरफ उसके बाबू सिर्फ उसके नरम हाथ को प्यार से सहलाकर काम चला रहे थे।
महेन्द्र ने हाथ पीछे ले जाकर नीलम की ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसकी ब्रा को निकालकर पलंग से नीचे ही गिरा दिया, नीलम ने हल्का सा उठकर खुद ही अपना ब्लॉउज भी अंधेरे में निकाल दिया अब वो सिर्फ साड़ी में रह गयी थी कमर से ऊपर का हिस्सा उसका पूरा निवस्त्र हो चुका था, झट से वो लेट गयी और इन सभी क्रिया में उसके माध्यम आकर के खरबूजे समान उन्नत दोनों चूचीयाँ इधर उधर स्वच्छंद हिलकर महेंद्र को पागल कर गयी, जैसे ही वो लेटी उसकी दोनों चूचीयाँ किसी विशाल गुब्बारे की तरह उसकी छाती पर इधर उधर हिलने लगे, महेंद्र से अब सब्र कहाँ होने वाला था झट से वो उन सपंज जैसी उछलती मचलती चूचीयों पर टूट पड़ा और बेसब्रों की तरह चूचीयों पर पहले तो जहां तहां चूमने लगा फिर एकाएक बारी बारी से दोनों निप्पल को पीने लगा, नीलम के निप्पल तो फूलकर किसी जामुन की तरह बड़े हो गए थे और वासना में कड़क होकर खड़े हो चुके थे, कुछ देर तक वो नीलम की चूचीयाँ पीता और मसलता दबाता रहा फिर नाभी को चूमने लगा नीलम मस्ती में एक हाँथ से उसका सर सहलाने लगी और दूसरा हाँथ जो उसके बाबू के हाँथ में था उससे वो अपने बाबू के हाँथ को सहला रही थी, अब उससे रहा नही जा रहा था वो अब बस खुद को दो मर्दों के बीच मस्ती में डूबी एक औरत समझ रही थी जिसको सिर्फ और सिर्फ अब लन्ड चाहिए था, एक के बाद एक लन्ड।
उसकी शर्म और झिझक अब काफी हद तक गायब हो चुकी थी, उसने जानबूझ कर धीरे से कई बार महेन्द्र को भैया बोला ताकि महेन्द्र ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी अपना काम करके हटे और फिर आज की रात असली पाप हो।
इधर बिरजू भी चादर में से अपना मुँह निकालकर नीलम को देखने लगा नीलम ने सर घुमाकर अपने बाबू को देखा तो वो उसकी तरफ ही देख रहे थे नीलम ने उनके हाँथ से अपना हाथ छुड़ाकर उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख दी और अंधेरे में बड़े प्यार से उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रगड़ने लगी मानो कह रही हो कि मुझे अपने बदन पर एक एक अंग पर इन होंठों से चुम्बन चाहिए।
इधर बिरजू ने चादर के अंदर ही दूसरे हाँथ से अपनी धोती खोल कर काला विशाल लन्ड बाहर ही निकाल लिया था।
महेन्द्र के सब्र का बांध अब टूट चुका था तो उसने नीलम की साड़ी को नीचे से ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया शर्म और झिझक तो अब भी उसके मन में थी पर वासना भी भरपूर थी, नीलम अब और भी मचल उठी क्योंकि अब उसकी जाँघों के बीच की जन्नत उजागर होने वाली थी, महेंद्र ने साड़ी को आखिर कुछ ही पलों में उठाकर कमर तक कर दिया और अपने हांथों से नीलम की दोनों मांसल जाँघों और उसमे कसी कच्छी को ऊपर से ही सहलाने लगा जैसे ही उसने नीलम की कच्छी के ऊपर से ही उसकी बूर पर हाँथ रखा तो वह वहां भरपूर गीलापन महसूस कर मदहोश हो गया और झुककर कच्छी के ऊपर से ही बूर के रस को चाटने लगा, अंधेरे में इस अचानक हमले से नीलम सिसकते हुए चिहुँक पड़ी और ओह मेरे भैया कहते हुए उसके सर को सहलाने लगी, कुछ देर महेन्द्र झुककर ऐसे ही नीलम की जाँघों और कच्छी के ऊपर से महकती रसीली बूर को चाटता रहा जब नीलम ने नही बर्दास्त हुआ तो उसने बिरजू के होंठों के अंदर अपनी एक उंगली घुसेड़ते हुए महेंद्र से धीरे से बोला- भैया खोलो न कच्छी अपनी बहना की कब तक हम ऐसे ही शर्माते रहेंगे अब बर्दास्त नही होता।
ये सुनते ही बिरजु धीरे से पलंग से उठा और जल्दी से अंधेरे में खुली धोती दुबारा लपेटी और जानबूझकर धीरे से कमरे से बाहर जाने लगा वो जनता था कि जबतक वो यहां रहेगा महेन्द्र खुलकर नीलम को नही चोद पायेगा, बस थोड़ी देर के लिए वो बाहर जाना चाहता था हालांकि नीलम पहले तो चुपचाप उनके हाँथ को पकड़कर रोकना चाही पर फिर वो भी समझ गयी और हाँथ छोड़ दिया, बिरजू धीरे से कमरे से बाहर निकल गया और बाहर आकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।
महेंद्र भी ये जान गया कि बाबू जी बाहर क्यों चले गए, आखिर उनके अंदर एक मर्यादा थी, महेंद्र तो मानो अब गरज उठा और नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम भी उसका साथ देने लगी धीरे से बोली- भैया कच्छी खोलो न।
महेन्द्र- कच्छी खोलूं दीदी, देख लूं आपकी वो
नीलम सिसकते हुए- हाँ मेरे भाई खोल के देख न जल्दी अपनी बहन की बूर
नीलम के मुँह से बूर शब्द सुनकर महेंद्र बौरा गया
महेन्द्र- पर दीदी मेरे पास रोशनी नही है कैसे देखुंगा।
नीलम- रुक मेरे भाई रुक बाबू की छोटी टॉर्च यहीं होगी
नीलम ने थोड़ा उठकर बिस्तर पे टटोला तो टोर्च हाँथ लग गयी उसने टॉर्च को जला कर अपनी जाँघों के बीच दिखाया और बोली- लो भैया अब उतारो मेरी कच्छी, और देखी मेरी बूर
महेंद्र छोटी टॉर्च की हल्की नीली रोशनी में नीलम की मोटी मोटी जांघे और उसमे कसी छोटी सी कच्छी और उसपर बूर की जगह पर गीलापन देखकर मदहोश हो गया उसने झट से नीलम की कच्छी को पकड़ा और जाँघों से नीचे तक खींच कर उतार दिया, हल्के काले काले बालों से भरी नीलम की रस बहाती वासना में फूलकर हुई पावरोटी की तरह महकती बूर को देखकर महेन्द्र मंत्रमुग्ध सा कुछ देर बूर की आभा को देखता ही रहा।
नीलम- भैया कैसी है बहन की बूर?
महेंद्र- मत पूछ मेरी बहन तेरी बूर तो जन्नत है।
बनावट इसकी कितनी प्यारी है......कितनी मादक है तेरी बूर....दीदी।
बस फिर सिसकते हुए महेंद्र बूर पर टूट पड़ा नीलम ने झट से कच्छी को पैरों से निकाल फेंका और दोनों पैर फैलाकर मखमली बूर महेन्द्र के आगे परोस दी महेन्द्र "ओह मेरी बहना क्या बूर है तेरी" कहता हुआ नीलम की बूर पर टूट पड़ा, नीलम भी एक मादक सिसकारी लेते हुए "आह मेरे भैया चाटो न फिर अपनी बहना की बूर, बहुत प्यासी है आपके लिए", महेन्द्र के बालों को अपनी बूर चटवाते हुए सहलाने लगी।