Update- 14
उदयराज रजनी को जाते हुए देखता रहा, फिर आकर अपनी खाट पर बैठ गया, तभी गांव के कुछ लोग जिसमे परशुराम भी था, हाथ में लालटेन लिए कुएं के सामने वाले रास्ते से उदयराज की तरफ आ गए, उसमे से कुछ लोग रो भी रहे थे। उदयराज उन्हें देखकर खाट से उठकर उनके पास आया।
उदयराज- क्या हुआ परशुराम? इतनी रात को कैसे आना हुआ? क्या हुआ आखिर, सब ठीक तो है।
परशुराम- मुखिया जी हमे माफ करना जो इतनी रात को आपके पास आना पड़ा, बिरजू है नही वो किसी काम से 1 दिन के लिए बाहर गया है, हमे मजबूरन अब आपके पास आना पड़ा, क्योंकि अब आप ही सहारा हो, परशुराम हाथ जोड़े खड़ा था।
उदयराज- अरे! कोई बात नही, मेरे पास नही आओगे तो किसके पास जाओगे, ऐसा मत बोलो, आखिर बात क्या है ये बताओ।
तभी शम्भू और एक दो आदमी उदयराज के पैरों में गिर पड़े और रोने लगे, हमे बचाओ मुखिया जी, हमारी रक्षा करो, आखिर क्यों ऐसा हो रहा है हम लोगों के साथ, कहाँ जाएं हम कैसे बचें इस समस्या से।
उदयराज- उठो! उठो शम्भू रोओ मत, आखिर क्या बात है खुल के साफ साफ बताओ।
परशुराम- मुखिया जी आप तो जानते ही थे कि शम्भू के घर में उसके तीन बेटों में से दो की तबियत पिछले हफ्ते बिगड़ी थी और आज देखो अभी कुछ देर पहले उनकी मौत हो गयी, इसी तरह लखन के घर में भी दो मौत हुई है, और वो सब रोने लगते हैं।
उदयराज ये सुनकर सन्न रह जाता है, ये क्या हो रहा था उसके गांव में, लोग वैसे स्वस्थ दिखते थे, बस कुछ होता, बीमार पड़ते और कुछ हफ्तों में मर जाते।
शम्भू- मुखिया जी हम तो इलाज़, और झाड़ फूक करा करा के थक गए थे पर कुछ नही पता चला, कब तक हम अपनों को ऐसे खोते रहेंगे, कब तक?
उदयराज उन सबको सांत्वना देता है और तुरंत रजनी और काकी को सारी बात बता कर उन लोगों के घर जाने लगता है।
रजनी को भी सुनकर काफी चिंता हो जाती है, काकी भी हैरान हो जाती है ये सुनकर।
उदयराज उन लोगों के घर जाता है तो देखता है कि चार लोगों की लाशें एक जगह रखी हुई होती है, घर के लोग रो बिलख रहे थे, वो भी बेचैन हो जाता है और उसकी भी आंखें नम हो जाती है, ये समस्या उसके control में नही थी, वो भी बस अन्य लोगों की तरह सांत्वना दे सकता था, करे भी क्या? वो काफी सोच में डूब जाता है।
पूरे गांव में शोक की लहर फैल जाती है।
आखिर मरे हुए लोगों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है और अगले दिन गांव के कुल वृक्ष के नीचे एक बैठक रखने का फैसला होता है, गांव का कुल वृक्ष नदी के पास था वह एक पवित्र बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था उसके नीचे काफी बड़ी चौकी बनी हुई थी।
उदयराज रात भर वहीं रहता है उन लोगों के साथ, आखिर वो मुखिया था उसे अपना कर्तव्य भी निभाना था।
सुबह उदयराज अपने घर आया तो उसने काकी और रजनी को आज की होने वाली बैठक के बारे में जानकारी दी, काकी ने बोला की वो भी बैठक में शामिल होगी।
उदयराज ने देखा कि रजनी की आंखें लाल थी तो वो उससे पूछ बैठा- रजनी बिटिया, तुम्हारी आंखें लाल है, मेरी बिटिया की इतनी सुंदर आंखें लाल हों ये मुझे मंजूर नही, तुम रात भर सोई नही न, क्यों?
रजनी- जिस बेटी के बाबू रात भर अपना फर्ज निभाने के लिए जाग रहे हों वो इतनी खुदगर्ज़ तो नही है न बाबू की सो जाए, मैं आपकी बेटी हूँ, और अब मुझे आपके बिना नींद नही आएगी (ये अंतिम लाइन उसने धीमे से कहा)
उदयराज- मुझे अपनी बेटी पर नाज़ है, पर तुम अभी दिन में आराम कर लेना, मैं और काकी बैठक में जा रहे हैं कुछ देर में आएंगे।
रजनी और उदयराज कुछ देर तक एक दूसरे को तरसते हुए देखते रहे फिर अपने आपको जैसे तैसे संभाल लिया, क्योंकि अभी का वक्त गमहीन था
रजनी ने दोनों के लिए नाश्ता बनाया, उदयराज और काकी ने नाश्ता किया और चले गए।
बैठक में सभी बड़े बुजुर्ग शामिल हुए, बहुत ही गमहीन माहौल था, बिरजू भी आ चुका था, वो उदयराज के बगल में बैठा था।
कुछ देर तक सब चुप ही थे फिर लखन बोला- मुखिया जी इस समस्या का हल कुछ तो होगा, आखिर ऐसा क्या है हमारे गांव में, क्यों हम अपनों को खो रहे हैं धीरे धीरे? हमारी संख्या कितनी कम हो गयी है, अपनो को खोने का दुख तो आपने भी झेला है।
बिरजू- लखन तुम्हारा दर्द केवल तुम्हारा नही है, ये पूरे गांव, पूरे कुल का है, हम सभी ने अपनों को खोया है, और खो रहे हैं, जबकि हमारे गांव में हमारे कुल के लोगों में लेश मात्र भी न तो कोई गलत भावना है, न गलत नीयत है, न वो गलत करते हैं, इतने ईमानदार, सही, सच्चे, प्रकृति के अनुरूप चलने वाले लोग हैं हम, फिर भी न जाने नियति हमसे क्या चाहती है। लेकिन हम सब मिलकर इसका हल निकालेंगे, की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
उदयराज अभी चुप रहकर सुन ही रहा था वह मन ही मन बिरजू की इस बात से झेंप जाता है।
एक बुजुर्ग महिला बोली- लेकिन जिस का हल हमारे बड़े बुजुर्ग लोग, जो एक पीढ़ी इस दुनिया से चली गयी वो नही निकाल पाई तो हम कैसे निकालेंगे, और इसका हल होगा क्या?
अब उदयराज बोला- हां बात तो ये बिल्कुल सही है, की इसका हल हम जैसे आम इंसान के पास नही होगा, होगा तो किसी सिद्ध पुरुष, किसी महामुनि, या किसी दैवीय पुरुष के पास ही होगा।
इतने में थोड़ी दूर बैठी एक अत्यंत बूढ़ी स्त्री बोली- उदय बेटा, एक उम्मीद की किरण तो है।
उदयराज और बिरजू- हां अम्मा बोलो न, क्या उम्मीद की किरण है जो हमारी समस्या को हल कर सकती है।
बूढ़ी स्त्री- हमारे गांव से दक्षिण की तरफ करीब 300 किलोमीटर दूर एक जंगल है जहां एक सिद्ध पुरुष आदिवासियों के साथ रहते हैं करीब यही 8, 10 साल से, उसके बारे में ज्यादा तो नही पता पर इतना ही जानती हूं कि वो कोई विदेशी पुरुष थे जो हमारे देश में तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त करने आये थे, उन्होंने कई लोगों की बहुत सी समस्याओं का समाधान किया है, उन्होंने उस जंगल के आदिवासियों को बहुत बड़ी मुसीबत से निकाला था, इसलिए वो आदिवासी अब उन्हें ही अपना राजा मानते हैं और उस सिद्ध महात्मा पुरुष की पूजा करते है, वो महात्मा उन आदिवासियों की सेवा से इतने खुश हुए की वो अब उन्ही के साथ रहते हैं जंगल के बीचों बीच उस महात्मा का आश्रम है और आदिवासी जंगल के बाहर तक पहरा देते हैं, कोई आम इंसान इतनी आसानी से बिना आज्ञा के जंगल के भीतर भी नही जा सकता, मैं बस इतना ही जानती हूं, परंतु ये कहना चाहती हूं कि, और जानकारी पता करके हमे अपनी फरियाद लेके उनके पास जाना चाहिए क्या पता कोई रास्ता निकाल आये।
बिरजू- लेकिन अम्मा आपने तो अभी कहा कि आम आदमी इतनी आसानी से उनसे नही मिल सकते तो इतने सारे लोग एक साथ अगर जाएं तो नामुमकिन ही होगा मिलना।
बूढ़ी स्त्री- हां जाना तो एक दो लोगों को ही पड़ेगा, सबका मुमकिन नही।
बिरजू- हां तो मैं चला जाऊंगा।
उदयराज- (बिरजू के कंधे पर हाँथ रखते हुए) बिरजू मेरे भाई, मुखिया होने के कुछ काम मुझे भी कर लेने दे, मेरे सारे काम तू ही करेगा तो आने वाली पीढ़ी मुझे धिक्कारेगी, क्या मैं सिर्फ नाम का मुखिया हूँ, ये काम मैं ही करूँगा।
बिरजू- तो फिर मैं और आप चलते हैं।
उदयराज- नही बिरजू, तू यहीं रह गांव की देख रेख कर, वहां आने जाने में 2 3 दिन तो लगेंगे ही इस बीच गांव में कोई मुख्य जिम्मेदार इंसान तो होना चाहिए न। तू यहीं रह, मैं चला जाऊंगा।
गांव के और लोगों ने उदयराज के साथ जाने की जिद की परंतु उदयराज ने सबको रोक दिया, बैठक समाप्त हुई, यह निर्णय हुआ कि उदयराज उस दैवीय पुरुष से मिलने जाएगा।