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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Lucky-the-racer

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Mast kahani hai
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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bahut badhiya ...............................

ab uday ko wahan jakar in asamay ki mauton ke bare me kya kuchh pata chal pata hai
aur idhar rajni aur uday ke milan ka paap...............kya ho payega............
kya yahi paap gaon ko bachayega

dekhte hain aage
 

Strange Love

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Mujhe lagta hai gao ki nadi ya talab jaha se log pani lete hai usmein Mercury/Lead poisoning ho gayi hai..
 

Naik

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Update-10

उदयराज रोज की तरह सुबह जल्दी उठा जाता है आज उसको अपना एक दूर वाला खेत जोतना था तो वो खेतों में जुताई के लिए अपने बैलों को तैयार करने लगता है।

रजनी और काकी भी जल्दी उठकर नाश्ता तैयार करती है।

इतने में उदयराज का दोस्त बिरजू उनके घर आता है, रजनी और काकी घर में होती है, उदयराज बाहर बैलों को तैयार कर रहा होता है, बिरजू को आते हुए देखता है।

बिरजू- "जय राम जी की उदय भैया" (बिरजू उदयराज का मित्र था वो उदयराज को भैया कहकर ही बोलता था, उदयराज का मुखियागीरी का ज्यादातर काम बिरजू ही देखता था)

उदयराज- "जय राम जी की बिरजू" अरे आओ बिरजू! बैठो, कहो कैसे आना हुआ इतने सवेरे सवेरे, सब ठीक तो है, 3 4 दिन से दिखे ही नही, कहाँ हो भई।

बिरजू- अरे भैया! आपको तो पता ही है गांव में कितना काम है, फुरसत ही नही मिलती। (कहते हुए खाट पे बैठ जाता है)

उदयराज- अरे तू नही होता...तो मैं तो पागल ही हो जाता, कितना काम संभालता है तू मेरा।

उदयराज काकी को जोर से आवाज लगता है- काकी, अरे बिरजू आया है, चाय-वाय बन गयी हो तो ले आओ जरा!

काकी की घर के अंदर से हल्की आवाज आती है - हाँ, ला रहे हैं, उनको बोलो की बैठें खाट पे।

बिरजू- अरे! ये तो मेरा फ़र्ज़ है भैया, आपके प्रति भी और गांव वालों के प्रति भी।, अरे आज सुबह सुबह बैलों को तैयार कर लिया, खेतो की जुताई करनी है क्या?

उदयराज- हां, वो नदी के पास वाला खेत है न, सोच रहा हूँ इस बार धान की फसल वहीं लगाऊंगा।

बिरजू- हां ठीक रहेगा, उधर नदी की वजह से पानी भी भरपूर रहेगा, जुताई तो मुझे भी अपने खेत की करनी थी, पर क्या करूँ, वक्त ही नही मिल पा रहा है।

उदयराज- अरे तो तू परेशान क्यों होता है, मैं कर दूंगा भई। बता देना जब करना हो।

बिरजू- ठीक है भैया, अच्छा देखो मैं बातों बातों में जिस काम के लिया आया था वो ही भूल गया कहना।


इतने में काकी दोनों के लिए चाय और पोहा लेके आती है और बिरजू को देखके बोलती है-अरे बिरजू कैसा है, आज इतनी सुबह सुबह?

बिरजू- नमस्ते काकी! अरे हां वो कुछ काम था उदय भैया से, तो सोचा सुबह ही मिल लूं फिर कहीं किसी काम से न निकल जाए कहीं, और आ के देख रहा हूँ तो बैल तैयार ही कर रहे थे।

काकी- अच्छा! ले चाय पी, और सब ठीक है न?

बिरजू- हाँ काकी सब ठीक है।


काकी चाय रखके अंदर घर में जाने लगती है ये बोलते हुए की तुम दोनों चाय पियो मैं जरा रजनी का हाँथ बंटा लूं काम में।

इतना सुनते ही बिरजू बोला

बिरजू- अरे रजनी बिटिया आयी हुई है क्या, कब आयी?

काकी- हाँ आयी है यही कोई 5 6 दिन हुए, अभी जरा व्यस्त है नही तो आती बाहर।

बिरजू- चलो कोई बात नही फिर कभी मिल लूंगा, ठीक तो है न वो।

काकी- हाँ ठीक है (इतना कहकर काकी घर में चली जाती है)

उदयराज और बिरजू चाय पीने लगते है और पोहा खाने लगते हैं

उदयराज- हां बोल तू क्या बोल रहा था, किस काम से आया था।

बिरजू- अरे हाँ! भैया मैं ये कहने आया था कि पश्चिम की तरफ जो नहर, नदी से निकलकर हमारे गांव की सरहद से होते हुए जा रही है, जिससे हमारे गांव के खेतों और बगल वाले गांव के खेतों की सिंचाई भी होती है उसको थोड़ा चौड़ा करने की सोच रहा था ताकि ज्यादा पानी आ सके, उसी का मुआयना करने के लिए जरा चलना पड़ेगा आपको। गांव वालों का भी यही कहना है कि एक बार मुखिया जी को दिखा कर उनकी सहमती लेनी होगी।

उदयराज- हम्म, ये तो अच्छी बात है, नहर चौडी हो जाएगी तो पानी भी ज्यादा आएगा और अतिरिक्त मिट्टी पड़ने से उसके दोनों किनारे के बांध और मजबूत हो जायेगें।

बिरजू- हां वही तो! पर एक बार आपको चलकर देखना होगा।

उदयराज- हाँ हाँ क्यों नही! अभी तो मैं खेत पर जा रहा हूँ, वहां से फुरसत होके मैं नहर के पास आ जाऊंगा दोपहर तक तुम वहीं मिलना।

बिरजू- ठीक है भैया, मैं और हरिया, परशुराम वगैरह वही मिलेंगे आपको।

उदयराज- ठीक है


उदयराज और बिरजू चाय पी चुके थे, इतना कहकर बिरजू चला गया, फिर उदयराज ने भी काकी को बुला कर सारी बात बताई और ये बोलकर की वो दोपहर को खाना खाने आएगा और फिर नहर के काम के सिलसिले में फिर जाएगा, रजनी को बोल देना की वो चिंता न करे और बैल लेके चला जाता है।

रजनी और काकी घर का सारा काम निपटा के अपना नाश्ता ले के बाहर द्वार में बैठी नीम के पेड़ के नीचे नाश्ता कर रही होती है, उस वक्त सुबह के 8 बज चुके थे सुबह के सूरज की रोशनी पेड़ों के पत्तों से छनकर हल्की हल्की आ रही थी, सुबह का बहुत ही मनमोहक वातावरण था, कि इतने में शेरु सामने कुएं की तरफ से आता हुआ दिखाई देता है।

रजनी- काकी देखो सामने! शेरु आ गया।

काकी- हां! लो आज आ ही गया, वो देख इधर ही आ रहा है। इत्तेफ़ाक़ देखो अभी कल ही इसकी चर्चा हो रही थी आज आ ही गया।

शेरु ने नजदीक आके जैसे ही रजनी को देखा तो कूं कूं कूं करके रजनी के पैर चाटने लगा, रजनी को गुदगुदी हुई तो वो हंसते हुए उसके सर को सहलाते हुए बोली- अरे मेरे शेरु! कैसा है तू? कमजोर तो हो गया है काकी पहले से।

काकी- हाँ कमजोर तो हो ही गया है, बिचारा

रजनी उसकी पीठ और सर सहलाते हुए बोली- तेरी बेटी बीना कहाँ रह गयी? हम्म

शेरु काफी कूं कूं करता हुआ रजनी के आगे पीछे गोल गोल घूमता फिर उसके पैर चाटने लगता, कभी हाँथ चाटता।

काकी- वो भी आती होगी पीछे पीछे

रजनी- अच्छा तू रुक, तू भूखा होगा न, तेरे लिए खाना लाती हूँ।

इतना कहकर रजनी घर में गयी और दूध और बिस्किट मिक्स करके ले आयी।

पर शेरु खा ही नही रहा था, बार बार खाने की तरफ ललचाई नज़रों से देखता फिर कूं कूं करके रजनी के पैरों में इधर उधर गोल गोल घूमता।

रजनी बोली- काकी देखो भूख इसको लगी है फिर भी खा नही रहा, खा न क्या हुआ?

काकी बोली- मैंने बताया नही था ये बिना अपनी बेटी के खाने को सूंघेगा तक नही।

रजनी- अरे हां काकी, सच में, देखो तो कैसे भूख से तड़प रहा है पर सूंघ तक नही रहा खाने को, अभी तक दूसरा कुत्ता होता तो साफ कर चुका होता, आखिर ये मेरा कुत्ता है, मुझे नाज़ है इसपे। कितना प्यार करता है अपनी बेटी से देखो।

और ऐसा कहते हुए बैठकर शेरु को अपनी गोद में लेकर उसकी पीठ सहलाने लगती है

काकी- अरे अभी उसको ज्यादा मत छू, न जाने कहाँ कहाँ किस किस के घर घूम फिर के आया है, किसी को भी प्यार करेगी तो ढंग से ही करने लगेगी।

रजनी- काकी कोई बात नही कितने बरसों बाद तो मिली हूँ अपने शेरु से, अभी मैं नहाने जाउंगी तो इसको भी पकड़कर नहला दूंगी, और फिर इसको कहीं जाने नही दूंगी।

काकी- हाँ अब देखना ये खुद ही कहीं जाएगा नही, तुझे देख लिया है न।

तभी रजनी को बीना का ध्यान आता है- काकी ये बीना कहाँ मर गयी, आप तो बोल रही थी कि अपने बाप के पीछे पीछे ही लगी रहती है अभी तक तो मुझे दिखी नही, कोई आशिक मिल गया क्या उसको रास्ते में जो अपने बाप को भूल गयी।

इतना कहकर रजनी जोर से हंस दी।

काकी- अरे आशिक तो उसका....खुद उसका बाप ही है, किसी और को तो वो घास भी न डाले। इसलिये ही तो उसे बड़े प्यार से सूंघने देती है

इस बात पर रजनी ने शर्माते और मुस्कुराते हुए काकी को देखा, और उसे कल रात की बात याद आ गयी।

रजनी बोली- हाँ तो क्यों न दे सूंघने आखिर उसका पिता उसका इतना ख्याल रखता है, इनाम तो देगी न उनको (रजनी ने शर्माते हुए कहा)

काकी ने तपाक से कहा- ख्याल तो उदयराज भी तेरा बहुत रखता है, हम्म्म्म

रजनी शर्म से जैसे जमीन में गड़ गयी, बोली- धत्त! काकी, बहुत बेशर्म हो तुम।

काकी (मंद मंद मुस्कुराते हुए)- आखिर इनाम तो मिलना ही चाहिए, न

रजनी तो शर्म से बिल्कुल लाल हो गयी, कुछ देर कुछ बोल न पाई।

फिर बोली- आप बहुत गंदी हो, (और मुस्कुराने लगी।)


इतने में ही बीना भी दिखाई दी आती हुई, वो भी आके काकी के आस पास घूमने लगी क्योंकि रजनी को वो पहचानती नही थी, फिर रजनी ने जब खाने की कटोरी आगे बढ़ाई तो दोनों बाप बेटी खाने लगे रजनी अंदर जा के रोटी भी ले आयी और दोनों को पेट भर खाना खिलाया।

फिर रजनी मन में ही मंद मंद मुस्कुराते हुए, काकी की बात सोचते हुए नहाने चली गयी, और शेरु और बीना को भी पकड़कर नहला दिया, दोनों साफ सुथरे हो गए।

दोपहर को उदयराज आया तो रजनी ने नहाकर आज जो पहना था उसे देखकर मन्त्रमुग्ध सा हो गया, रजनी ने नीले रंग की साड़ी और काले रंग का ब्लाउज पहन रखा था, उसका गोरा रंग अलग ही चमक रहा था, गोरे गोरे सुंदर चेहरे पर जो तेज था उसे देखकर ही आज उदयराज को नशा सा हो गया, बड़े बड़े उन्नत स्तन बड़ी मुश्किल से ही ब्लॉउज में समा रहे थे, अनायास ही उदयराज की नज़र बार बार अपनी ही सगी बेटी की चुचियों पर जा रही थी और वो बार बार अपने आप को गंदे ख्याल से बाहर निकलता।

उदयराज अंदर बरामदे में बैठा था काकी उस वक्त बाहर थी

रजनी पानी और गुड़ लेकर आई, तो उदयराज बोला- आज तो बहुत ही खूबसूरत लग रही है मेरी बिटिया।

रजनी मुस्कुरा दी और बोली- हाँ, आपकी बेटी हूँ न तो लगूंगी ही, पर आप मुझसे सुबह मिले नही न, चले गए ऐसे ही (रजनी ने शिकायत वाले लहजे से कहा)

उदयराज- अरे मेरी बिटिया रानी, मुझे लगा कि तुम काम में व्यस्त हो तो मैं काकी को बता कर चला गया, क्या मेरी बिटिया नाराज़ हो गयी क्या मुझसे?

रजनी- ऐसा कभी हो सकता है क्या, की मैं अपने बाबू जी से नाराज हो जाऊं, मैं चाहे कितनी भी व्यस्त रहूँ पर अपने बाबू जी के लिए हमेशा मेरे पास वक्त है।

उदयराज- इतना प्यार करती हो अपने पिता से।

रजनी- बहुत, आपके बिना मैं जी नही सकती बाबू।

उदयराज ने उठकर रजनी को बाहों में भर लिया, रजनी भी जल्दी से अपने बाबू की बाहों में समा गई।

एक बार फिर रजनी के गुदाज मदमस्त बदन ने उदयराज को मचलने पर मजबूर कर दिया, रजनी को बाहों में लेते वक्त तो उसकी मंशा भावनात्मक प्रेम की थी पर जैसे ही वो अपनी सगी बेटी के जवान, मदमस्त मांसल बदन से चिपका, वो अपने आप को संभाल न पाया और रजनी के कामुक बदन से मदहोश हो गया, एक बार फिर रजनी की उन्नत, कठोर चुचियाँ उदयराज के सीने से दब गई और मसल उठी।

कुछ देर रजनी उसको और वो रजनी को देखते रहे फिर उदयराज थोड़ा भारी आवाज से बोला- तो मैं कौन सा तेरे बिना अब रह सकता हूँ, तू तो जान है मेरी।

पर वो जल्द ही अपने आप को संभाल ले गया ये सोचकर कि कहीं रजनी कुछ और न समझ बैठे और अनर्थ हो जाये

परंतु उसे इतना तो अहसास हो रहा था कि रजनी भी उसकी बाहों में आने में जरा भी देर नही करती, वो भी कुछ अनजाना सा सुख उसकी बाहों में तलाशती है।

इतने में काकी के कदमों की आवाज सुनाई थी तो वो अलग हो गए।

रजनी ने उदयराज के लिए खाना परोसा और फिर उदयराज खाना खा के नहर के काम के सिलसिले में रजनी को बताकर चला गया ये बोलकर की वो शाम तक आएगा।

रजनी और काकी ने भी खाना खाया और रजनी ने फिर शेरु और बीना को भी खाना दिया।
Bahot shaandaar lajawab update dost
 

Naik

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Update-11

एक दो दिन ऐसे ही बीत गए

एक दिन रजनी कुएं के पास फूल तोड़ रही थी तो सामने से जाती हुई नीलम जो उसकी बचपन की सहेली थी उसने आश्चर्य से देखा तो बोली- अरे रजनी तू कब आयी?

रजनी- अरे नीलम तू कैसी है? मुझे तो आये कुछ दिन हो गए।

नीलम- बड़ा गदरा गयी है तू, जीजा जी खूब मेहनत कर रहे हैं क्या?

नीलम बहुत मजाकिया किस्म की थी, बेबाक कुछ भी बोल देती थी।

रजनी- उनके बस का है जो करेंगे? मुझसे मतलब होता तो लापता ही क्यों होते?

नीलम- क्या... लापता?

रजनी- हाँ, कुछ पता नही कहाँ गए, एक साल होने को आया, मुझे तो रहना भी नही अब उनके साथ, है न मेरे बाबू अब यहीं रहूंगी हमेशा।

नीलम- अब यहीं रहेगी, मायके में, हाँ ठीक है और क्या, जब उन्हें तेरी कोई कद्र नही तो तू क्यों फिक्र करेगी, तू भी अपनी मनपसंद जिंदगी जी, एक बात बोलूं।

रजनी- हाँ बोल

नीलम- जितना प्यार तुझे तेरे बाबू करते हैं, दुनिया में कोई नही करेगा। वही तेरा ख्याल रखेंगे, वही फिक्र करेंगे और कोई नही।

रजनी- (मन में गदगद होते हुए) मैं भी उनकी सदा सेवा करूँगी, हमेशा उनके पास ही रहूंगी।


इस तरह रजनी और नीलम कुछ देर बात करती रहीं फिर नीलम चली गयी।

रजनी घर में आई तो काकी से बोली- काकी वो जो घर के पीछे बरगद का पेड़ है न वहां क्यारी में सब्जियां लगाई हुई हैं।

काकी- हाँ लगाई तो हैं फिर

रजनी- उसकी निराई गुड़ाई करनी है तो मैं जाती हूँ कर दूंगी।

काकी- रुक मैं भी चलती हूँ, गुड़िया तो सो गई है, मैं भी चलती हूँ।

रजनी - ठीक है चलो।


दोनों घर के पीछे क्यारी में आ जाती है बरगद के पेड़ के नीचे, वहां काफी घनी छाया होती है।

रजनी और काकी दोनों को अभी काम शुरू किये कुछ ही देर हुआ था कि इतने में बीना वहां आ जाती है। कुछ ही देर में शेरु भी पीछे पीछे आ जाता है।

आज तो बहुत ही गर्मी पड़ रही है न काकी, लेकिन यहां बरगद के नीचे काफी राहत है- रजनी ने बोला

शेरु और बीना भी गर्मी से हांफ रहे थे बीना ने पैर से जमीन में थोड़ा गढ्ढा किया, और फिर उसमें बैठ गयी, जमीन में काफी नमी थी तो उसे ठंडक महसूस हो रही थी वहां।

शेरु बीना के आस पास घूम रहा था, बीना आज कुछ ज्यादा ही कूं कूं कर रही थी।

काकी बोली- रजनी देख ये दोनों भी यही आ गए, आज इनका मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा है, आज मुझे लग रहा है कि शेरु बीना की बूर सूंघेगा। मौसम आज गरम है लगता है कि बीना को गर्मी बर्दाश्त नही हो रही।

रजनी ने एकदम से काकी की तरफ देखा, उसने नही सोचा था को काकी बूर शब्द बोलेंगी, वो शर्मा गयी और मुस्कुरा दी।

तभी शेरु ने वो किया जिसका काकी को अनुमान था, शेरु पहले तो थोड़ी देर इधर उधर घूमता रहा फिर एकदम से बीना की बूर को सूंघने लगा, बीना खड़ी हो गयी, ताकि शेरु को आराम से अपनी बूर सुंघा सके।

रजनी को अपनी आंखों के सामने ये दृश्य देखकर विश्वास नही हुआ।

रजनी- काकी ये तो सच में अपनी ही बेटी की बूर सूंघ रहा है बेशर्म।

काकी- देख ले अब खुद ही, मैं न कहती थी।


इतने में ही शेरु जीभ निकाल के बीना की बूर को अब चाटने लगा, बीना की बूर से हल्का हल्का पेशाब निकल जाता, और वो थरथरा जाती, पर शेरु को पूरा सहयोग कर रही थी

रजनी को काटो तो खून नही, वो इस बात से चकित थी कि बीना पूरा सहयोग कर रही थी, उसे भी मजा आ रहा था। एक बाप अपनी बेटी की बूर कैसे चाट सकता है, पर अब ये उसके सामने हो रहा था तो उसे विश्वास करना ही था।

रजनी गरम होने लगती है, काकी का भी कुछ ऐसा ही हाल था पर ज्यादा नही।

इतने में नीलम वहां आ जाती है, नीलम का खेत रजनी के घर के पीछे ही था, वो खेत में कुछ घास लेने आयी थी, रजनी और काकी को देखती है तो उनके पास आ जाती है अभी तक नीलम की नजर शेरु पर नही पड़ी थी पर जैसे ही नज़र पड़ती है-

नीलम- हाय दैया! रजनी ये तेरा शेरु तो अपनी बेटी की ही बूर चाट रहा है, उफ्फ्फ!

रजनी की सांसे तो पहले ही तेज़ हो चुकी थी अब नीलम भी एक टक लगा के देखने लगी।

काकी क्यारी में गुड़ाई करती और कनखियों से देख लेती पर रजनी और नीलम एक टक लगा के देख रहे थे।

शेरु बीना के चारो तरफ घूमने लगा, बार बार घमता फिर पीछे आ के बूर को सूंघता फिर चाटने लगता, जैसे ही शेरु बीना की बूर को जीभ लगता रजनी को ऐसा लगता कि जैसे शेरु की जीभ उसकी खुद की बूर पर लग रही हो और वो बैठे बैठे ही अपनी जांघों से अपनी बूर को हल्का सा दबा लेती, और iiisssssshhhhhhh की आवाज उसके मुंह से निकल जाती, नीलम का भी यही हाल हो चला था, वो भी अब वहीं बैठ गयी।

आज विक्रमपुर में ये अनर्थ और महापाप हो रहा था भले ही जानवर के रूप में ही क्यों न हो।

काकी, रजनी और नीलम अब तीनो ये नज़ारा देखने लगी, काकी का तो कम, पर रजनी और नीलम का अब हाल बुरा होने वाला था, क्योंकि उन्होंने कभी कुत्ता कुतिया की चुदाई नही देखी थी

बीना चुपचाप खड़ी थी और शेरु चपड़ चपड़ उसकी बूर चाटे जा रहा था, बीना अब बिल्कुल गरम हो चुकी थी, बूर चाटते चाटते एकदम से ही शेरु का बड़ा सा लंड बाहर आ गया

रजनी की तो अब हालत खराब हो गयी अपने ही शेरु का लाल लाल लंड देखके,

रजनी (फुसफुसाते हुए)- काकी देखो तो इसका कैसा है, कितना लाल और बडा सा है, और हाय! अपनी ही सगी बेटी की बूर चाटने में इसको कितना मजा आ रहा है।

रजनी भी अब बेशर्मी से "बूर" शब्द बोल गयी।

काकी- अपनी बेटी का ख्याल रखता है तो उसकी ये इक्छा भी तो वही पूरी करेगा न, मुझे तो लग रहा है कि अब पक्का चोदेगा बीना को।


नीलम- हे भगवान कितना मजा आ रहा होगा इन दोनों को, रजनी तेरा कुत्ता तो बहुत भाग्यशाली है रे घर में ही मिल गयी इसको तो बूर वो भी अपनी ही बेटी की।


रजनी का शर्म और मजे से बुरा हाल था।

तभी शेरु का पूरा लंड बाहर आ गया, वो करीब 6 इंच तक लंबा और 2 इंच मोटा होगा, रजनी उसे उखड़ी उखड़ी सी देखती रही, उसकी खुद की दबी हुई चुदास को उसके खुद के ही कुत्ते की कामलीला ने जगा दिया था।

तभी शेरु एकदम से उछला और बिना के ऊपर चढ़ गया और अपना लंड बीना की फूली हुई बूर के मुहाने पर लगाने लगा पर असफल हो गया और नीचे खड़ा हो गया, फिर उसने दुबारा सुंघा, चाटा और फिर चढ़ गया, चढ़ते ही वो जोश के मारे तेज तेज धक्के मारने लगा, उसका लंड बार बार कभी बीना की बूर की दायीं फांक पर टकराता कभी बाई फांक पर टकराता, कभी कभी बीना भी थोड़ा हिल जाती, पर तभी एकदम से निशाना सही बैठा और शेरु का लंड बीना की बूर में जड़ तक समा गया।

रजनी और नीलम के मुंह से aaaaahhhhhhhh! uuuuuuuuuiiiiiiiiiimmmaaaaaaaaaannn निकल गया, जैसे शेरु का लंड उनकी ही बूर में घुस गया हो।

काकी- आखिर बीना ने अपने बाप को दे ही दिया इनाम, मैंने शेरु को, जबसे बीना की माँ मरी है आजतक किसी दूसरी कुतिया को चोदते नही देखा, और आज देखो अपनी ही बेटी को कैसे घच्छ घच्छ चोद रहा है। आखिर बेटी की बूर का मजा ही कुछ और है।

नीलम - hhhaaaaiiiiiiii काकी क्या क्या बोले जा रही हो, आपको कैसे पता कि बाप को बेटी की बूर चोदने में ज्यादा मजा आता है, आपने चुदवा रखा है क्या अपने बाबू से (नीलम से तपाक से मजे लेते हुए कहा, और रजनी खिलखिला के हंस पड़ी)

काकी- अरी कहाँ रे नीलम, मेरे बाबू अगर मेरा इतना ख्याल रखते होते न जितना तुम लोगों के और खासकर रजनी के बाबू रखते है तो मैं तो सच कह रही हूं उनको घर की चार दिवारी के भीतर छुप छुप के बूर का ऐसा मजा देती की उनका जीवन धन्य हो जाता। पर हाय री किस्मत। खैर अब तो वो हैं ही नही इस दुनियां में।


रजनी और नीलम ये सुनकर दंग रह जाती है, की काकी ने कैसे बड़े ही बेशर्म तरीके से अपने मन में छुपी हुई बात इतने बेबाक तरीके से कह दी।

रजनी को आज काकी के कामुक स्वभाव का आभास हुआ था, काकी की ऐसी बातें सुनकर उसके अंदर की चुदास पूरी तरह खुल गयी, अभी तक वो गंदी बात करने से या अपने अंदर की छुपी हुई कामाग्नि को जाहिर करने से झिझकती थी काकी के सामने, क्योंकि वो उसकी माँ समान थी, उसने उसे बचपन से पाला पोशा था, और रजनी सभ्य भी थी, पर आज खुद जब काकी ऐसी गंदी बात खुलकर उसके ही सामने बोल गयी, तो उसे ऐसा लगा कि उसे एक साथी मिल गया हो, जिससे वो खुलकर गंदी बात कर सकती है, उसने मन में सोचा कि वो काकी से बाद में घर में जाकर इस विषय पर बात करेगी।

नीलम सलवार के ऊपर से ही अपनी बूर को हल्का हल्का सहला रही थी।

रजनी उसे देखकर हंस पड़ी और बोली-, तेरे से बर्दाश्त नही हो रहा तो तू भी चुदवा ले मेरे शेरु से।

नीलम- hhhhhaaaaiiiii चुदवा लेती यार, पर उसे तो अपनी बेटी ही चोदनी है। बेटी चोदने का मजा अलग ही होगा न। और बीना को देखो कैसे मजे से अपने ही बाप के मोटे से लंड से चुद रही है, कैसे गचा-गच लन्ड बूर में जा रहा है, आखिर बाप से चुदने का मजा अलग ही होगा न।

रजनी को नीलम की ये बात अंदर तक झकझोर देती है कि- "बाप से चुदने का मजा ही अलग होगा न" तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता है।

रजनी कामुक अंदाज में- तो तू अपने बाबू जी को लाइन मार न क्या पता बात बन जाये (रजनी ने चुटकी लेते हुए कहा)

नीलम- dhatt पगली, बेशर्म, मैं तो ऐसे ही कह रही थी (हालांकि नीलम के बदन में ये सोचकर झुरझुरी सी दौड़ गयी)


शेरु ताबड़तोड़ बीना की बूर में धक्के लगाए जा रहा था, बीना की बूर अब पूरी खुल चुकी थी वो शांत खड़ी थी और अपने ही बाप को अपनी कमसिन बूर चखाने में भरपूर सहयोग कर रही थी
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Naik

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Update- 12

काफी देर बीना की बूर चोदने के बाद शेरु अपनी बेटी की बूर में थरथरा के झड़ने लगा, बीना का भी कुछ ऐसा ही हाल था, बाप बेटी का मिलन हो चुका था।

ये देखकर रजनी बेहाल सी हो गयी, नीलम के मुंह से aaaahhhhh निकल गया ये देखकर और वो बोली- hhhaaaiiii अब फंस जाएंगे ये दोनों एक दूसरे में, अटक जाएगा शेरु का बीना की बूर में, कितना मजा आ रहा होगा दोनों को uuuuffffff.

इतने में दूर से गांव की कोई औरत उस तरफ आती दिखाई दी तो नीलम ये बोलकर की काकी मैं चलती हूँ, आज तो मजा ही आ गया इनको देखकर, अब तो ये ऐसे ही कुछ देर अटके रहेंगे, कोई हमे देखेगा इनको देखते हुए तो क्या सोचेगा, मैं चलती हूँ

रजनी की सांसे धौकनी की तरफ ऊपर नीचे हो रही थी, वो उसे देखकर हंस पड़ी, इतने में नीलम उठी और अपने घर की तरफ भाग गई।

रजनी का भी अब काम में कहां मन लगता उसकी तो हालत खराब हो चली थी, वो बार बार कभी काम करने लगती तो कभी बीना की बूर में अटके हुए शेरु के लंड को देखती और सिरह जाती। फिर वो एकदम से उठी और बोली- काकी अब रहने दो चलो मुझसे नही होगा अब काम, बाद में कर लेंगे, फिर वो भी घर के पीछे वाली कोठरी में जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ खुलता था उसको खोलकर कोठरी में चली गयी और वहां पड़ी खाट पर औंधे मुंह पसर गयी, वो जैसे हांफ रही थी, सांसे काफी तेज चल रही थी उसकी, बार बार वो अंगडाई लेती आंखें बंद करती तो कभी शेरु और बीना की चुदाई उसके सामने आ जाती तो कभी उसके बाबू का गठीला मर्दाना जिस्म, अनायास ही उसके मुंह से निकल गया- aaaaahhhhhhh बाबू, पास होकर भी क्यों हो तुम मुझसे इतना दूर। ऐसे ही वो बुदबुदाते जा रही थी

तभी काकी घर में आती है तो देखती है कि रजनी कोठरी में खाट पे लेटी है।

रजनी उन्हें देखती है तो उठकर बैठ जाती है, काकी उसके पास बदल में खाट पे बैठ जाती है और उसको अपने सीने से लगते हुए बोलती है- मैं जानती हूं बिटिया तेरी हालत, आखिर मैं भी एक स्त्री हूँ, मैं भी इस अवस्था से गुजरी हूँ।

रजनी बेधड़क काकी के गले लग जाती है और बोलती है- काकी हम स्त्रियों को आखिर इतना तड़पना क्यों पड़ता है, हमारा क्या कसूर है, हम स्वच्छन्द क्यों नही, क्यों नही हम अपने मन की कर सकते? क्यों हम इतना मान मर्यादा में बंधे हैं?

रजनी ने एक ही साथ कई सवाल दाग दिए

काकी- मैं तेरी तड़प समझ सकती हूं बिटिया।
स्त्री के हिस्से में अक्सर आता ही यही है, पुरुष स्वच्छन्द हो सकता है पर स्त्री इतनी जल्दी नही हो पाती खासकर हमारे गांव और कुल में, यहां कोई गलत नही कर सकता, करना तो दूर कोई सोच भी नही सकता, खासकर पुरुष वर्ग, स्त्रियां तो बहक सकती हैं पर जहां तक मैं जानती हूं हमारे कुल के पुरुष तो जैसे ये सब जानते ही नही है, हमारे गांव और कुल में तो ऐसा है कि अगर किसी की स्त्री या मर्द मर जाये या उसको उसका हक न दे तो वो पूरी जिंदगी तड़प तड़प के बिता देगा या बिता देगी पर कोई ऐसा काम नही करेंगे जिससे हमारे गांव की सदियों से चली आ रही मान मर्यादा भंग हो, हमारे पूर्वजों के द्वारा संजोई गयी इज्जत, कमाया गया नाम (कि इस कुल में, इस गांव में कभी किसी भी तरह का कुछ गलत नही हो सकता) कोई मिट्टी में नही मिलाएगा, यही चीज़ हमे दुनियां से अलग करती है
इसलिये ही हम जैसे लोग जो विधवा है, या जिनके पति नही है, या ऐसे पुरुष जिनकी पत्नी नही हैं उनकी जिंदगी एक तरह से नरक के समान ही हो जाती है, किसी से कुछ कह नही सकते, बस तड़पते रहो।

काकी कहे जा रही थी और रजनी उनकी गोदी में लिपटे सुने जा रही थी।

रजनी- लेकिन काकी ये कहाँ तक सही है, क्या ये तर्क संगत है?

काकी कुछ देर चुप रहती है और रजनी आशाभरी नज़रों से उनकी आंखों में देखती है।

काकी- नही! बिल्कुल नही मेरी बेटी। ये गलत है, पर हम स्त्रियाँ कर भी क्या सकती हैं

रजनी- क्या हमारे कुल के पुरुष, हमारे गांव के मर्द इतने मर्यादित है, मेरे बाबू भी ( रजनी ने फुसफुसके कहा)

काकी- मैं पक्के तौर पर नही कह सकती बेटी, ये तो खुद औरत को मर्द का मन टटोल कर देखना पड़ता है कि उसके मन में क्या है?

रजनी- अच्छा काकी क्या सच में आप वो करती अपने बाबू के साथ (रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा)

काकी- क्या? (जानबूझकर बनते हुए)

रजनी- वही जो अपने बाहर कहा था

काकी उसकी आँखों में देखती हुए- क्या कहा था मैंने?

रजनी काकी का हाँथ हल्का सा दबाते हुए भारी आवाज में फुसफुसाते हुए बोली- यही की आप अपने बाबू को अपनी बूर का मजा उनको देती अगर वो मेरे बाबू जैसे होते।

काकी- hhhhaaaaiiiiii, हां क्यों नही, क्यों नही देती भला, आखिर ये उनका हक होता न, आखिर उन्होंने मुझे पाल पोष के बड़ा किया, मेरा इतना ख्याल रखा, और अगर मुझे ये पता लगता कि वो मुझसे वो वाला प्यार करते है जो एक औरत और मर्द करते है, या मुझे ये पता लगता कि वो मुझे दूसरी नज़र से देखते है तो मैं भला क्यूं पीछे रहती। भले ही वो मेरे पिता थे पर थे तो वो भी एक मर्द ही न। (काकी की भी आवाज भर्रा जाती है)

रजनी फिर से गरम होते हुए- पर काकी आपको ये कैसे पता लगता, आप ये अंतर कैसे कर पाती की वो आपको बेटी की नज़र से नही देख रहे बल्कि वासना की नजर से देख रहे हैं

काकी- ये तो बिटिया रानी औरत को खुद ही पता लगाना होता है कि उसके घर के मर्द उसे किस नज़र से देखते हैं। उनकी हरकतों से।

रजनी काफी देर सोचती है फिर

रजनी- तो काकी सच में आपने अपने बाबू को मजा दिया था।

काकी- नही री पगली, मेरी ऐसी किस्मत कहाँ, मेरे बाबू मुझे ज्यादा मानते नही थे, बचपन में ही उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और मैं यहां ससुराल चली आयी, उसके कुछ ही सालों बाद तेरे काका चल बसे और मैं विरह में कई वर्षों तक तड़पती रही, अब तो जैसे आदत पड़ गयी है, तेरे जैसी मेरी किस्मत कहाँ मेरी की मेरे ससुराल वाले बोलते की बेटी तू उम्र भर अपने पिता के पास रह सकती है।

रजनी को मन ही मन इस बात पे नाज़ हुआ।

काकी- तू मुझे गलत तो नही समझ रही न बेटी।

रजनी- ये क्या बोल रही हो काकी, आप तो मेरी माँ जैसी हो, और आज तो मैं और भी खुश हूं कि एक दोस्त की तरह आपने अपने मन की बात अपनी इस बिटिया को बताई, कोई बात नही छुपाई, मुझे तो आज आप पर नाज़ हो गया जो मुझे आप जैसी माँ मिली, जो मेरा दर्द समझ सकती है।

रजनी और काकी एक दूसरे को गले से लगा लेती हैं

काकी- ओह्ह! मेरी बेटी, बेटी मैं कोई ज्ञानी या सिद्ध प्राप्त स्त्री तो नही की भविष्य देख सकूँ पर इतना तो मेरा मन कहता है कि जो पीड़ा मैन झेली है वो तू नही झेलेगी, तेरे हिस्से में सुख है, समय अब बदलेगा, जरूर बदलेगा।

ऐसे कहते हुए वो रजनी के माथे को चूम लेती है और बोलती है कि तू जाके नहा ले गर्मी बहुत है थोड़ी राहत मिल जाएगी, शाम हो गयी है तेरे बाबू भी आते होंगे

रजनी- हाँ काकी


और रजनी नहाने चली जाती है, काकी कुछ देर बैठ के सोचती रहती है फिर अचानक ही गुड़िया उठ जाती है तो काकी उसको लेके बाग में घूमने चली जाती है रजनी के ये बोलकर की वो नहाने के बाद गुड़िया को दूध पिला देगी।

रजनी को नहाते नहाते काकी की बात याद आती है की औरत को खुद ही अपने घर के मर्द का मन टटोलना पड़ता है कि वो उसको किस नज़र से देखता है, और इस वक्त घर में एक ही मर्द था वो थे उसके पिता, यह बात सोचकर वो रोमांचित हो जाती है, और सोचती है कि वो अब ऐसा ही करेगी। वो उस दिन कुएं पर हुई बात सोचती है कि कैसे उस दिन बाबू ने मुझे बाहों में भरकर मेरी पीठ को सहला दिया था और मेरी सिसकी निकल गयी थी। हो न हो उसके मन में कुछ तो है।

ऐसा सोचते हुए वो जल्दी जल्दी नहा कर एक गुलाबी रंग की मैक्सी डाल लेती है। आज गर्मी बहुत थी और अभी खाना भी बनाना था, फिर वो गुड़िया को दूध पिलाती है और खाना बनाने के लिए चली जाती है।

आज काफी देर हो गयी पर उदयराज अभी तक आया नही था, अंधेरा हो गया था, रजनी खाना बनाते हुए बार बार बीच में उठकर बाहर आती और जब देखती की उसके बाबू अभी तक नही आये तो उदास होकर फिर जाके खाना बनाने लगती।

काकी इस वक्त गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हुई थी कि तभी उदयराज हल और बैल लेके आ जाता है, बैल बंधता है और पसीने ले लथपथ सीधा घर में रजनी, ओ रजनी बोलता हुआ जाता है।

रजनी उदयराज को देखके चहक उठती है वो उस वक्त आटा गूंथ रही होती है अपने बाबू के मजबूत और गठीले बदन पर जब उसकी नजर जाती है तो वो रोमांचित हो जाती है और उदयराज के जिस्म की पसीने की मर्दानी गंध उसको बहुत मनमोहक लगती है, वो उदयराज से बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलती है कि- क्या बाबू, कब से मैं राह देख रही हूं आज इतनी देर।

उदयराज अपनी बेटी को आज मैक्सी में देखकर बहुत खुश होता है और बोलता है- बेटी, मैं तो वक्त से ही घर आने के लिए निकला था कि रास्ते में कुछ लोग मिल गए तो उन्ही से बात करने लगा।

रजनी- अच्छा! लगता है आपको अपनी बेटी की याद नही आती (रजनी ने जानबूझकर ऐसे बोला)

उदयराज- याद नही आती तो भला घर क्यों आता मेरी बिटिया रानी। बस इतना है कि थोड़ी देर हो गयी, और अब मेरी बेटी अगर इस बात से मुझसे नाराज़ हो जाएगी तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा।

रजनी - आपकी बेटी आपसे नाराज़ नही हो सकती ये बात उसने आपसे पहले भी कही है न बाबू

रजनी आटा गूथ रही थी और उसका मादक बदन हिल रहा था, उदयराज सामने खड़ा खड़ा एक टक उसे ही देख रहा था, रजनी कभी शर्मा जाती, कभी मुस्कुरा देती, कभी खुद सर उठा के अपने बाबू की आंखों में देखने लगती।

फिर रजनी एकाएक बोली- ऐसे क्या देख रहे हो मेरे बाबू जी, अभी सुबह ही तो देखके गए थे, क्या मैं माँ जैसी दिख रही हूं क्या? और मुस्कुराके हंस दी।

उदयराज- अपनी बेटी को देख रहा हूँ, जो कि अपनी माँ से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है, और इस वक्त मुझे लगता है कि मुझसे नाराज है।

रजनी फिर हंसते हुए - अरे बाबू मैं आपसे गुस्सा नही हूँ मैं तो ऐसे ही बोल रही थी।

उदयराज- काकी कहाँ है?

रजनी- वो गुड़िया को लेके अपने घर की तरफ गयी हैं।

उदयराज- कितनी देर हो गयी?

रजनी- अभी अभी तो गयी हैं

अब उदयराज ने बड़ी ही चालाकी से ये बात घुमा के बोली- तो अगर एक बेटी अपने पिता से नाराज़ नही होती, और घर में उन दोनों के सिवा कोई न हो, तो भला वो अपने पिता से इतना दूर होती।

रजनी ने जब ये सुना और इस बात का अर्थ समझा की उसके बाबू क्या चाहते हैं तो उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ गए और वो मुस्कुराते और शर्माते हुए आटा गूँथना छोड़कर भागकर उदयराज के गले लग जाती है, उदयराज उसे और वो उदयराज को कस के बाहों में भर लेते हैं। एक बार फिर रजनी का गुदाज बदन उदयराज की गिरफ्त में था, इस बार वो रजनी की पीठ फिर सहला देता है और रजनी की aaahhhh निकल जाती है,
रजनी अपना हाँथ उदयराज की पीठ पर नही रख पाती क्योंकि उसके हाँथ में आटा लगा होता है, परंतु उदयराज उसे कस के अपने से इतना सटा लेता है कि उसका एक एक अंग उदयराज के अंग से भिच जाता है।
रजनी उदयराज की आंखों में मुस्कुराके देखने लगती है, और अपने पिता की मंशा पढ़ने लगती है, उदयराज भी रजनी की आंखों में देखने लगता है।

रजनी खिलखिलाकर हंसते हुए- अब आपको पता चला कि मैं आपसे नाराज़ नही हूँ।

उदयराज- हाँ, तुम मुझसे नाराज़ होगी न तो मैं तो जी ही नही पाऊंगा अब।

रजनी- अपनी बेटी से इतना प्यार करने लगे हो।

उदयराज- बहुत

रजनी- पहले तो ऐसा कभी नही किया

उदयराज- क्या नही किया।

रजनी- (लजाते हुए), यही की जब कोई न हो तब बेटी को बाहों में लेना।

उदयराज- मेरी बेटी है ही इतनी खूबसूरत, की क्या करूँ, उसकी खूबसूरती को बाहों में भरकर मेरी थकान मिट जाती है।

रजनी खिलखिलाकर हंस दी- अच्छा आपकी थकान बस इतने से ही मिट गई।

उदयराज- हाँ सच।

रजनी- तो मुझे रोज अकेले में बाहों में ले लिया करो, जब जी करे, और कहके हंसने लगी

उदयराज उसके लाली लगे हुए होंठो को देखने लगा, की तभी काकी की आहट सुनाई दी, रजनी ने जल्दी से उदयराज के कानों में फुसफुसाते हुए कहा- काकी आ रही है, अब बस करो, मेरे बाबू

उदयराज- मन नही भरा मेरा।

रजनी- थकान नही मिटी, अभी तक (हंसते हुए)

उदयराज- नही, बिल्कुल नही

रजनी ने आज पहली बार शर्माते हुए एक बात उदयराज के कान में बोली- आज जल्दी सो मत जाना रात को आऊंगी आपके पास, फिर थकान मिटा लेना।

उदयराज- जिसकी बेटी इतनी सुंदर हो उसको नींद कहाँ आने वाली।

रजनी- धत्त, बाबू.....गंदे...

और शर्माते हुए रसोई में भाग जाती है, इतने में काकी आ जाती है और उदयराज बाल्टी उठा के नहाने चला जाता है
Shaandaar lajawab mazedaar update dost
 

Naik

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Update- 13


जिंदगी में आज पहली बार उदयराज के मन में लड्डू फूटा था, उसके रूखे, नीरस, उत्साहहीन, सूखे जीवन में उसी की सगी बेटी ने एक कामुक और रसीला सा संभावित संकेत देके उसकी मन की गहराइयों में छिपे यौनतरंग के तारों को आज छेड़ दिया था जिससे ऐसा प्रतीत होता था कि अब वो बादलों में उड़ रहा है, आने वाली जिंदगी अब कितनी लज़्ज़त से भरी होगी और उसमें कितना मिठास होगा, बस यही बार बार सोच कर वो गुदगुदा जा रहा था

आज उदयराज ने नहाने में जरा भी वक्त नही लगाया, सोच कर ही शरीर में आज उसके इतनी गर्मी बढ़ गयी थी कि कुएं का ठंडा पानी भी आज उसको शांत नही कर पा रहा था।

परंतु फिर भी उसके मन की स्थिति असमंजस में थी, की क्या पता वैसा न हो जैसा वो सोच रहा है तो? क्या पता ये रजनी का केवल बेटी वाला प्रेम हो तो?

एक तरफ उसके संस्कार, उसकी मर्यादा, उसे बार बार अपने कुल की मर्यादा, बाप बेटी के पवित्र रिश्ते की दुहाई देती, उसके इतने नेक पुरुष होने पर सन्देह करती, उसे ये अहसास दिलाती की तू गांव का मुखिया है, जब तू ही ये अनर्थ करेगा तो गांव के लोगों में तेरी जो एक आदर्श छवि है उसका क्या होगा?

दूसरी तरफ नारी सुख की बरसों की दबी प्यास, नारी को भोगने पर मिलने वाले मजे की लज़्ज़त का अहसास कराती, वो कहती कि किसी को पता ही क्या चलेगा, और जब तेरी बेटी ही यह चाहती है तो पुरुष होने के नाते तेरा एक फ़र्ज़ ये भी है कि एक तड़पती, प्यासी नारी को तू संतुष्ट कर, चाहे वो तेरी बेटी ही क्यों न हो, सोच कितना मजा आएगा, और ये गलत तो तब होता जब तू जबरदस्ती कर रहा होता। सोच जरा पगले स्वर्ग की अप्सरा सी तेरी बेटी तेरे पौरुष द्वार पर आके यौनसुख की विनती कर रही है और तुझे लोक लाज की पड़ी है, क्या ये पुरुष का फर्ज नही की वो अपने घर की औरत को संतुष्ट करे, आखिर रजनी अपना पूरा जीवन तेरी सेवा करने तेरे पास चली आयी, तो क्या तेरा उसके प्रति कोई फ़र्ज़ नही।

फिर उसका दूसरा मन कहता तू इतना गिर गया है उदयराज, तू ये कैसे कह सकता है कि रजनी भी यही चाहती है? वो तेरी बेटी है वो भला ऐसा पाप करेगी।

फिर उसका पहला मन कहता है- अगर ऐसा न होता तो रजनी उसकी बाहों में भला क्यों आती, चलो माना कि वह बेटी के नजरिये से उसकी बाहों में आई, पर उसके मुंह से जो आह और सिसकी निकली वो क्या था, और अगर ऐसा न होता तो वो इतने मादक रूप में भला उसके कान में ऐसा क्यों बोलती।

उदयराज तू अपनी बेटी की मंशा को समझ, सबको ऐसा बेटी सुख नही मिलता, सोच तू कितना भाग्यशाली है, वो तुझे घर की चार दिवारी में चुपके चुपके यौनसुख देना चाहती है, इस मौके को मत खो, देख गलत तो तू फिर भी हो ही जायेगा, एक फ़र्ज़ की तरफ देखेगा तो दूसरा छूट जाएगा, और दूसरा फ़र्ज़ ये है कि एक पुरुष को एक प्यासी औरत को संतुष्ट करना ही चाहिए, और जब गलत होना ही है तो मजे ले के होने में क्या बुराई है

खैर उदयराज कोई सिद्ध और योगी पुरुष तो था नही जो अपने आपको इस ग्लानि, विषाक्त, घृणा, वासना, यौनसुख की लालसा के मिले जुले मन स्थिति से निकाल ले जाता, वो असहाय हो गया और सबकुछ नियति पे छोड़ दिया।

फटाफट नहा के आया वो और रजनी ने खाना लगा रखा था, रजनी को देखते ही उसे फिर खुमारी चढ़ने लगी, रजनी अपने बाबू की मन स्थिति को देखकर मंद मंद मुस्कुराये जा रही थी, वो छुप छुप के तिरछी नजर से अपने बाबू को देखकर कामुक मुस्कान देती और उदयराज का आदर्श, मानमर्यादा, कुल की लाज, सब एक ही पल में धराशाही हो जाता, वो वासना के दरिया में ख्याली गोते लगते हुए खाना खाए जा रहा था, कभी कभी जब एक टक लगा के रजनी को निहारता तो रजनी आंखों के इशारे से शिकायत करती की अभी ऐसे न देखो कहीं काकी न देख ले, (जैसे वो कोई प्रेमिका हो), उदयराज अपनी बेटी की इस अदा पर कायल हो जाता।

सबने खाना खाया और उदयराज आज अपनी खाट कुएं के और नजदीक ले गया, बिस्तर लगा के उसपर करवटें बदलने लगा।

रजनी ने बर्तन धोया, बिस्तर लगाया फिर काकी और रजनी अपने अपने बिस्तर पर रोज़ की तरह लेट गए, रजनी की बेटी उसी के पास थी, रजनी का बिस्तर रोज की तरह घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने नीम के पेड़ के नीचे था और उदयराज का बिस्तर 200 मीटर कुएं के पास था, रजनी आज अपने बाबू को छेड़ना चाहती थी, पहले तो वो काकी से इधर उधर की बातें करती रही, फिर बोली- काकी मैं बाबू के सर पर तेल मालिश करके आती हूँ आप सोइए।

काकी- हां जा न, ला गुड़िया को मेरी खाट पे लिटा दे, तू जा उदय के सर की तेल मालिश कर आ और हां बदन की भी मालिश कर देना, थक जाता है बेचारा

रजनी- हां काकी जरूर

रजनी इतना कहकर घर में जा के कटोरी में तेल और एक हाँथ में बैठने का स्टूल लेके अपने बाबू की खाट की तरफ जाने लगती है

अभी कृष्ण पक्ष की ही रातें चल रही थी, चाँद थोड़ी ही देर के लिए निकलता था वो भी रात के दूसरी पहर में, अंधेरी रात होने की वजह से गुप्प अंधेरा पसरा हुआ था, बहुत हल्का हल्का सा पास आने पर दिखता था

रजनी ने उदयराज की खाट के पास आके कहा- बाबू, ओ मेरे बाबू, सो गए क्या? मैं आ गयी।

उदयराज ने झट से सर उठा के अपनी बेटी की तरफ देखा तो उसकी बांछे खिल गयी, धीरे से बोला- नही बेटी, तेरे आदेश का पालन कर रहा हूँ।

रजनी (हंसते हुए)- वो मेरा आदेश नही आग्रह था बाबू, एक बेटी भला अपने बाबू को आदेश करेगी।

उदयराज- क्यों नही कर सकती, कर सकती है, मैं तो तेरा गुलाम हूँ।

रजनी- अच्छा जी

उदयराज- हम्म

रजनी- और क्या क्या हैं आप मेरे?

उदयराज- बाबू हूँ, गुलाम हूँ, और....और...बताऊंगा वक्त आने पर।

रजनी- हंस देती है, अरे वाह! मेरे बाबू मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे गुलाम बन गए, जबकि मैं तो खुद आपकी दासी हूँ।

उदयराज- तू मेरी दासी नही मेरी बेटी।

रजनी- फिर, फिर मैं क्या हूँ आपकी।, बेटी तो मैं हूँ ही, इसके अलावा और क्या हूँ।

उदयराज- तू मेरी रानी है। (ऐसा कहते हुए उदयराज की आवाज जोश में थोड़ी भारी हो जाती है)

रजनी- सच, और आप मेरे राजा....ऐसा कहते हुए रजनी अपने हांथ की उंगलियाँ अपने बाबू के हाँथ की उंगलियों में cross फंसा लेती है और उनके ऊपर झुकते हुए अपना चेहरा उनके कानों के पास लाकर धीरे से बोलती है- आपको थकान नही लगी, क्या अब?

उदयराज- वो तो मुझे बरसों से लगी है।

रजनी फिर अपने बाबू को छेड़ने की मंशा से - तो लाओ न बाबू आपके सिर पर तेल मालिश कर दूं, थकान उतर जाएगी। (और रजनी मन ही मन हंसने लगती है, अपने बाबू को तडपाने में उसको मजा आ रहा था)

उदयराज आश्चर्य में पड़ जाता है, की उसकी बेटी ने उसकी बाहों में आकर थकान मिटाने की बात बोली थी, ये तेल मालिश की बात बीच में कहां से आ गयी, परंतु वो तुरंत ही समझ जाता है की रजनी उसे तड़पा रही है, फिर वो भी चुप रहकर थोड़ा इंतज़ार करता है।

रजनी स्टूल लेके अपने बाबू के सिरहाने बैठ जाती है, और हाथ में तेल लेकर उनके सिर की हल्के हल्के मालिश करने लगती है, रजनी की नर्म नर्म उंगलियों की छुअन से उदयराज को अद्भुत सुख की अनुभूति होती है, दोनों चुप रहकर एक दूसरे को महसूस करते हैं कुछ पल, फिर रजनी एकाएक बोली- अब थकान मिटी बाबू।

उदयराज- मेरी थकान सिर्फ तुम्हारी उंगलियों से कहाँ मिटने वाली बेटी, मेरे पूरे बदन को तुम्हारा पूरा बदन चाहिए।

रजनी- ओह्ह! मेरे बाबू

ऐसा कहते हुए रजनी स्टूल से उठकर उदयराज की खाट पर उसके बगल में लेट जाती है, दोनों एक दूसरे को कस के बाहों में भर लेते हैं, रजनी के मुँह से oooohhhhhhh मेरे बाबू, और उदयराज के मुंह से oooohhhhhh मेरी बेटी, मेरी रानी, की धीमी धीमी कामुक आवाज, और सिसकियां आस पास के वातावरण में गूंज जाती हैं।

रजनी दायीं तरफ होती है और उदयराज बाई तरफ, दोनों का बदन एक दूसरे में मिश्री की तरह घुल रहा होता है, दोनों ही कुछ देर के लिए सुन्न से हो जाते है, विश्वास ही नही हो रहा था दोनों को, की आज वो हो गया, जो अभी तक सिर्फ ख्यालों में ही था, तभी उदयराज के हाँथ रजनी की पीठ को हौले हौले सहलाने लगते हैं तो रजनी अपनी जांघों को भीच के सिसक उठती है।

उदयराज अब अपना हाथ थोड़ा नीचे की ओर रजनी की गांड की तरफ जैसे ही सरकाता है रजनी ये महसूस करती है कि side side में लेटे होने की वजह से उसके बाबू उसकी गांड को अच्छे से नही सहला पाएंगे, तो इसकी सहूलियत के लिए वो धीरे धीरे aaaaahhhhh करती हुई उदयराज के ऊपर आ जाती है, और उदयराज को अपनी सगी बेटी की ये मौन स्वीकृति इतना जोश से भर देती है कि वो अपने दोनों हाथों से उसकी अत्यंत मांसल उभरी हुई गांड को भीच देता है, कभी वो मैक्सी के ऊपर से ही अपनी बेटी के मोटे चूतड़ की दोनों फांकों को अलग कर उसमें हाँथ फेरने लगता कभी अपने दोनों हथेलियों में मांसल गांड को भर भर के सहलाने लगता।

रजनी- aaaaaaaahhhhhh, ooooooohhhhhhh bbbbbbbaaaabbbbbuuuuu,, ssssshhh

एकाएक उदयराज ने रजनी को नीचे किया और उसके ऊपर चढ़ गया, रजनी की तो बस सिसकियां ही निकली जा रही थी, शर्म के मारे वो कुछ न बोली, बस oooohhh baabu

उदयराज ने एक जोरदार चुम्बन रजनी के गाल पे जड़ दिया, फिर रजनी ने जानबूझ के अपना दूसरा गाल आगे कर दिया उदयराज ने इस गाल पे भी एक दूसरा जोरदार चुम्बन किया और अब वो ताबड़तोड़ रजनी के गालों पे, कान के नीचे, गर्दन पे, माथे पे, आंखों पे चूमने लगा, इतना मजा तो उसको अपनी पत्नी के साथ भी नही आया था जितना बेटी के साथ आ रहा था, रजनी को तो मानो होश ही नही रहा अब, वो तो बस hhhaaaaai hhhhhhaaaai कर के सिसके जा रही थी।

जैसे ही उदयराज ने अपना सीधा हाँथ रजनी के बायीं चूची पे रखा, उसे गांव वालों की कुछ आवाज़ें उत्तर की तरफ से आती हुई सुनाई दी, जैसे गांव के कुछ लोग मुखिया के घर की तरफ ही आ रहे थे कुछ फरियाद लेके, रजनी ने भी जब ये आवाज सुनी जो उनके घर की तरफ आती हुआ महसूस हुई तो दोनों ही बड़े मायूस होके खाट से उठे और रजनी बोली- बाबू लगता है कुछ गांव के लोग इतनी रात को आपसे मिलने आ रहे हैं, अभी मुझे जाना होगा।

उदयराज मायूस होते हुए- हाँ बेटी, देखता हूँ क्या मामला है।

रजनी खुद उदास हो गयी थी, थोड़ी दूर जाके वो वापिस पलटी और फिर एक बार भाग के अपने उदास बाबू की बाहों में समा गई, उदयराज रजनी को एक बार फिर बड़ी शिद्दत से चूमने लगा, रजनी ने सिसकते हुए उसे रोका- बाबू वो लोग अब ज्यादा ही नजदीक आ गए हैं, थोड़ा सब्र करो अब, फिर आऊंगी कल।

इतना कहकर रजनी उखड़ती सांसों से अपने बिस्तर की तरफ भाग गई और उदयराज उसे देखता रहा।
Aag lag chuki k bas bujhne k deri dekhte kab tak
 

Naik

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Update- 14

उदयराज रजनी को जाते हुए देखता रहा, फिर आकर अपनी खाट पर बैठ गया, तभी गांव के कुछ लोग जिसमे परशुराम भी था, हाथ में लालटेन लिए कुएं के सामने वाले रास्ते से उदयराज की तरफ आ गए, उसमे से कुछ लोग रो भी रहे थे। उदयराज उन्हें देखकर खाट से उठकर उनके पास आया।

उदयराज- क्या हुआ परशुराम? इतनी रात को कैसे आना हुआ? क्या हुआ आखिर, सब ठीक तो है।

परशुराम- मुखिया जी हमे माफ करना जो इतनी रात को आपके पास आना पड़ा, बिरजू है नही वो किसी काम से 1 दिन के लिए बाहर गया है, हमे मजबूरन अब आपके पास आना पड़ा, क्योंकि अब आप ही सहारा हो, परशुराम हाथ जोड़े खड़ा था।

उदयराज- अरे! कोई बात नही, मेरे पास नही आओगे तो किसके पास जाओगे, ऐसा मत बोलो, आखिर बात क्या है ये बताओ।

तभी शम्भू और एक दो आदमी उदयराज के पैरों में गिर पड़े और रोने लगे, हमे बचाओ मुखिया जी, हमारी रक्षा करो, आखिर क्यों ऐसा हो रहा है हम लोगों के साथ, कहाँ जाएं हम कैसे बचें इस समस्या से।

उदयराज- उठो! उठो शम्भू रोओ मत, आखिर क्या बात है खुल के साफ साफ बताओ।

परशुराम- मुखिया जी आप तो जानते ही थे कि शम्भू के घर में उसके तीन बेटों में से दो की तबियत पिछले हफ्ते बिगड़ी थी और आज देखो अभी कुछ देर पहले उनकी मौत हो गयी, इसी तरह लखन के घर में भी दो मौत हुई है, और वो सब रोने लगते हैं।

उदयराज ये सुनकर सन्न रह जाता है, ये क्या हो रहा था उसके गांव में, लोग वैसे स्वस्थ दिखते थे, बस कुछ होता, बीमार पड़ते और कुछ हफ्तों में मर जाते।

शम्भू- मुखिया जी हम तो इलाज़, और झाड़ फूक करा करा के थक गए थे पर कुछ नही पता चला, कब तक हम अपनों को ऐसे खोते रहेंगे, कब तक?

उदयराज उन सबको सांत्वना देता है और तुरंत रजनी और काकी को सारी बात बता कर उन लोगों के घर जाने लगता है।

रजनी को भी सुनकर काफी चिंता हो जाती है, काकी भी हैरान हो जाती है ये सुनकर।

उदयराज उन लोगों के घर जाता है तो देखता है कि चार लोगों की लाशें एक जगह रखी हुई होती है, घर के लोग रो बिलख रहे थे, वो भी बेचैन हो जाता है और उसकी भी आंखें नम हो जाती है, ये समस्या उसके control में नही थी, वो भी बस अन्य लोगों की तरह सांत्वना दे सकता था, करे भी क्या? वो काफी सोच में डूब जाता है।

पूरे गांव में शोक की लहर फैल जाती है।

आखिर मरे हुए लोगों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है और अगले दिन गांव के कुल वृक्ष के नीचे एक बैठक रखने का फैसला होता है, गांव का कुल वृक्ष नदी के पास था वह एक पवित्र बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था उसके नीचे काफी बड़ी चौकी बनी हुई थी।

उदयराज रात भर वहीं रहता है उन लोगों के साथ, आखिर वो मुखिया था उसे अपना कर्तव्य भी निभाना था।

सुबह उदयराज अपने घर आया तो उसने काकी और रजनी को आज की होने वाली बैठक के बारे में जानकारी दी, काकी ने बोला की वो भी बैठक में शामिल होगी।

उदयराज ने देखा कि रजनी की आंखें लाल थी तो वो उससे पूछ बैठा- रजनी बिटिया, तुम्हारी आंखें लाल है, मेरी बिटिया की इतनी सुंदर आंखें लाल हों ये मुझे मंजूर नही, तुम रात भर सोई नही न, क्यों?

रजनी- जिस बेटी के बाबू रात भर अपना फर्ज निभाने के लिए जाग रहे हों वो इतनी खुदगर्ज़ तो नही है न बाबू की सो जाए, मैं आपकी बेटी हूँ, और अब मुझे आपके बिना नींद नही आएगी (ये अंतिम लाइन उसने धीमे से कहा)

उदयराज- मुझे अपनी बेटी पर नाज़ है, पर तुम अभी दिन में आराम कर लेना, मैं और काकी बैठक में जा रहे हैं कुछ देर में आएंगे।

रजनी और उदयराज कुछ देर तक एक दूसरे को तरसते हुए देखते रहे फिर अपने आपको जैसे तैसे संभाल लिया, क्योंकि अभी का वक्त गमहीन था

रजनी ने दोनों के लिए नाश्ता बनाया, उदयराज और काकी ने नाश्ता किया और चले गए।

बैठक में सभी बड़े बुजुर्ग शामिल हुए, बहुत ही गमहीन माहौल था, बिरजू भी आ चुका था, वो उदयराज के बगल में बैठा था।

कुछ देर तक सब चुप ही थे फिर लखन बोला- मुखिया जी इस समस्या का हल कुछ तो होगा, आखिर ऐसा क्या है हमारे गांव में, क्यों हम अपनों को खो रहे हैं धीरे धीरे? हमारी संख्या कितनी कम हो गयी है, अपनो को खोने का दुख तो आपने भी झेला है।

बिरजू- लखन तुम्हारा दर्द केवल तुम्हारा नही है, ये पूरे गांव, पूरे कुल का है, हम सभी ने अपनों को खोया है, और खो रहे हैं, जबकि हमारे गांव में हमारे कुल के लोगों में लेश मात्र भी न तो कोई गलत भावना है, न गलत नीयत है, न वो गलत करते हैं, इतने ईमानदार, सही, सच्चे, प्रकृति के अनुरूप चलने वाले लोग हैं हम, फिर भी न जाने नियति हमसे क्या चाहती है। लेकिन हम सब मिलकर इसका हल निकालेंगे, की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

उदयराज अभी चुप रहकर सुन ही रहा था वह मन ही मन बिरजू की इस बात से झेंप जाता है।

एक बुजुर्ग महिला बोली- लेकिन जिस का हल हमारे बड़े बुजुर्ग लोग, जो एक पीढ़ी इस दुनिया से चली गयी वो नही निकाल पाई तो हम कैसे निकालेंगे, और इसका हल होगा क्या?

अब उदयराज बोला- हां बात तो ये बिल्कुल सही है, की इसका हल हम जैसे आम इंसान के पास नही होगा, होगा तो किसी सिद्ध पुरुष, किसी महामुनि, या किसी दैवीय पुरुष के पास ही होगा।

इतने में थोड़ी दूर बैठी एक अत्यंत बूढ़ी स्त्री बोली- उदय बेटा, एक उम्मीद की किरण तो है।

उदयराज और बिरजू- हां अम्मा बोलो न, क्या उम्मीद की किरण है जो हमारी समस्या को हल कर सकती है।

बूढ़ी स्त्री- हमारे गांव से दक्षिण की तरफ करीब 300 किलोमीटर दूर एक जंगल है जहां एक सिद्ध पुरुष आदिवासियों के साथ रहते हैं करीब यही 8, 10 साल से, उसके बारे में ज्यादा तो नही पता पर इतना ही जानती हूं कि वो कोई विदेशी पुरुष थे जो हमारे देश में तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त करने आये थे, उन्होंने कई लोगों की बहुत सी समस्याओं का समाधान किया है, उन्होंने उस जंगल के आदिवासियों को बहुत बड़ी मुसीबत से निकाला था, इसलिए वो आदिवासी अब उन्हें ही अपना राजा मानते हैं और उस सिद्ध महात्मा पुरुष की पूजा करते है, वो महात्मा उन आदिवासियों की सेवा से इतने खुश हुए की वो अब उन्ही के साथ रहते हैं जंगल के बीचों बीच उस महात्मा का आश्रम है और आदिवासी जंगल के बाहर तक पहरा देते हैं, कोई आम इंसान इतनी आसानी से बिना आज्ञा के जंगल के भीतर भी नही जा सकता, मैं बस इतना ही जानती हूं, परंतु ये कहना चाहती हूं कि, और जानकारी पता करके हमे अपनी फरियाद लेके उनके पास जाना चाहिए क्या पता कोई रास्ता निकाल आये।

बिरजू- लेकिन अम्मा आपने तो अभी कहा कि आम आदमी इतनी आसानी से उनसे नही मिल सकते तो इतने सारे लोग एक साथ अगर जाएं तो नामुमकिन ही होगा मिलना।

बूढ़ी स्त्री- हां जाना तो एक दो लोगों को ही पड़ेगा, सबका मुमकिन नही।

बिरजू- हां तो मैं चला जाऊंगा।

उदयराज- (बिरजू के कंधे पर हाँथ रखते हुए) बिरजू मेरे भाई, मुखिया होने के कुछ काम मुझे भी कर लेने दे, मेरे सारे काम तू ही करेगा तो आने वाली पीढ़ी मुझे धिक्कारेगी, क्या मैं सिर्फ नाम का मुखिया हूँ, ये काम मैं ही करूँगा।

बिरजू- तो फिर मैं और आप चलते हैं।

उदयराज- नही बिरजू, तू यहीं रह गांव की देख रेख कर, वहां आने जाने में 2 3 दिन तो लगेंगे ही इस बीच गांव में कोई मुख्य जिम्मेदार इंसान तो होना चाहिए न। तू यहीं रह, मैं चला जाऊंगा।

गांव के और लोगों ने उदयराज के साथ जाने की जिद की परंतु उदयराज ने सबको रोक दिया, बैठक समाप्त हुई, यह निर्णय हुआ कि उदयराज उस दैवीय पुरुष से मिलने जाएगा।
Rajni ko ab aur intizar kerna padega apne bapu se milan k liye dekhte h kab tak
 
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