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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Incestlala

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रजनी उस तोते को सर घुमा के काफी देर तक दूर जाता हुआ देखती रही, तो उदयराज ने चुपके से नीचे झुककर धीरे से अपनी जीभ निकाली और रजनी की गीली बूर की फांकों के बीच चाट लिया।

रजनी गुदगुदा कर चिहुँक गयी और झट से अपने बाबू को अपना सर उठा के देखा, जो कि उसकी जाँघों में घुसे हुए थे।

उदयराज- अब जाने भी दो उस बेचारे तोते को क्या नज़रों से ही घर तक छोड़के आओगी उसको।

रजनी- बस चलता तो जाने ही न देती.....बहुत प्यारा था वो........बूर चूम के कैसे झट से उड़ गया...... छुटंकी बदमाश।

ऐसा कहते हुए तोते के दुबारा गिराए हुए अमरूद के टुकड़ों को रजनी ने उठा के खा लिया।

उदयराज- देख लेना फिर आएगा जरूर वो, तुम्हारी बूर में एक बार छोटी सी डुबकी मार के गया है, अबकी आएगा तो पूरा नहायेगा.....इस कामुक रसीले कुंड में.....अच्छे से।

उदयराज ने रजनी को छेड़ा

रजनी- हे भगवान....धत्त....आप भी न बाबू कुछ भी बोल रहे हो.....अब नही आएगा वो।

उदयराज- देख लेना आएगा जरूर.....बूर का चस्का ही अलग होता है और वो तो चख के भी गया है अब......बाकी तीन तो केवल देख के निकल लिए।

रजनी- हाँ...बाबू देखो कितना ढीठ था न, आपसे भी नही डरा.....पहले तो कितनी देर टुकुर टुकुर निहारता रहा फिर......आके सीधे जांघ पर बैठ गया.....और चोंच कहाँ मारी सीधे।

उदयराज- कहाँ.....मारी?

(उदयराज ने जानबूझ के पूछा)

रजनी- यहां......ये इसपे....मैं तो चिहुँक पड़ी तुरंत।

(रजनी ने भी जानबूझकर अपनी दोनों फांके खोली और तने हुए भग्नासे पर उंगली रखते हुए दिखा के बोली)

उदयराज- उसे लगा होगा कि ये छोटा सा अमरूद का टुकड़ा है

रजनी जोर से हंस पड़ी।

रजनी- हे भगवान.....अमरूद का टुकड़ा.....ये अमरूद का टुकड़ा है।

उदयराज- हां और क्या....प्यारा सा अमरूद का टुकड़ा।

रजनी- तो खा लो फिर अमरूद के टुकड़े को.......लो खा लो आप भी।

(ऐसा कहते हुए रजनी ने थोड़ा शर्माते हुए दिन की रोशनी में अपने दोनों हांथों से अपनी रसीली बूर की फांकों को खोलकर अपने तने हुए कड़क भग्नासे को अपने बाबू के आगे परोस दिया)

उदयराज अपनी सगी बेटी की खुली हुई बूर और रजनी के परोसने के तरीके को देखकर वो बूर पर टूट पड़ा, नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे, दोनों फांकों और भग्नासे को जीभ से चाट चाट के तर कर दिया, रजनी कभी आंखे बंद कर सिसकती कभी आंखे खोल के सर इधर उधर घुमा के देखती की कहीं कोई देख न ले, अपने दोनों हांथों से अपने बाबू के सर को अपनी बूर पर सिसकते हुए दबाती तो कभी जोश के मारे खुद भी अपने नितंब ऊपर नीचे हिला कर बूर को अच्छे से अपने बाबू के जीभ पर रगड़ती। बूर चाटते चाटते उदयराज ने अपनी एक उंगली धीरे से बूर के प्यारे से गुलाबी छेद में डाल दिया, रजनी "आआआआआहहहहहह.....बाबू......बस भी करो......कितना अंदर डालोगे..........उंगली नही मोटा सा अपना लंड डालिये न उसमे............ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई..... अम्मा........बस........धीरे धीरे रगड़ो........आआआआआआहहहहहहहह, उंगली भी कम नही है आपकी"

उदयराज- क्या करूँ तेरी बूर है ही कयामत, देख के ही गुलाबी गुलाबी नशा छाने लगता है।

रजनी- बेटी की बूर है न इसलिए.......एक बार डाल दो न बाबू अपना मोटा लंड।

उदयराज- अपनी बिटिया की गरम रसीली बूर में डालने के लिए तो मैं भी तड़प रहा हूँ अपना लंड पर आज के दिन तो मुझे न्यौता (invitation) पिछली रसोई से पहले ही आ रखा है न, अगर ये अगली रसोई में घुस गया तो पिछली रसोई नाराज़ हो जाएगी न...हम्म

रजनी- मेरे शोना बाबू दोनों रसोई मेरी ही है न, मैं पिछली रसोई को समझा दूंगी, आप बस एक बार इसको अगली रसोई में आने दीजिए........डालिये न.....क्यों तड़पाते हैं....... अच्छा एक बार अच्छे से बूर में अंदर तक बोर के निकाल लीजिए, फिर पिछली रसोई में चले जाना।

उदयराज- हाय मेरी बेटी.....तेरे इस मनुहार पर तो अब मैं खुद को तेरी बूर में लंड बोरने से नही रुक सकता।

रजनी- हां तो डालो न बाबू अंदर तक जल्दी से।

उदयराज ने अपने मोटे 9 इंच लंबे और 3 इंच काले लंड को थामा और पोजीशन लेकर अपनी बेटी पर चढ़ गया, रजनी भी साइड से अपना एक हाँथ अपनी दहकती बूर पर ले गयी और बूर की गीली गीली फांकों को चीर कर अपने सगे पिता को बूर परोस दी, उदय के लंड का सुपाड़ा जैसे ही दहकती बूर के गीले गुलाबी छेद से टकराया, रजनी की आंखें मस्ती में बंद हो गयी "आआआआहहहह बाबू......कितना चिकना है आपके लंड का आगे वाला.......उफ़्फ़फ़फ़......... ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई....अम्मा..... धीरे धीरे बाबू......पहले बूर पर थोड़ा रगडिये.........रगडिये न.........हाँ ऐसे ही.........आआआआहहहह...…..मजा आ गया........थोड़ा भग्नासे पर अपना मोटा चिकना वाला और रगड़ो..........रगड़ दो न मेरे प्यारे बाबू..............हाय बाबू...........कितना अच्छा लगता है......जब दोनों टकराते हैं......…भगनासा और लंड....... उफ़्फ़फ़फ़........भगवान ने भी क्या बनाया है लंड और बूर.......हाय

(उदयराज ने अपने मोटे लंड का दबाव बूर पर बढ़ाया और लंड धीरे धीरे बूर में जाने लगा, जैसे जैसे लंड अंदर जा रहा था रसभरी बूर इलास्टिक की तरह फैलकर लंड को लील रही थी)

अपनी सगी बेटी की बूर में लंड घुसाते हुए उदयराज ने बेटी को देखा तो उसका चेहरा उत्तेजना में गुलाबी हो चुका था, आँखे आनंद में बंद थी, होंठों से हल्की हल्की सिसकी निकल रही थी, उदयराज ने झट से सिसकते होंठों को अपने होंठों में भर लिया और धीरे धीरे लंड घुसाते हुए जब बूर की आधी गहराई लंड नाप चुका था तो एक करारा झटका उदयराज ने बूर में मारा और लंबा सा 9 इंच का लंड सीधे बच्चेदानी से जा टकराया, रजनी जोर से सीत्कारी पर उसके होंठ उदयराज के होंठों में कैद होने की वजह से आवाज अंदर ही दबकर रह गयी, रजनी ने दर्द सहते हुए प्यार से एक दो मुक्के अपने बाबू की पीठ पर मारे "कितनी जोर से डाल देते हो एक ही बार में न"

उदयराज- तुम्ही ने तो बोला था मेरी रानी बिटिया की एक बार बोर के निकाल लो

रजनी सिसकते हुए- हाँ तो इतनी जोर से बोरोगे बूर में, आपकी सगी बेटी हूँ न

उदयराज- सगी बेटी के साथ ही तो पागल कर देने वाला नशा चढ़ता है, रिश्ता ही ऐसा है क्या करूँ।

रजनी ने फिर एक मुक्का अपने बाबू की पीठ पर मारा- धत्त....बदमाश

उदयराज अपनी बेटी की बूर में लंड डाले कुछ देर लेटा रहा और दोनों एक दूसरे को चूमते सहलाते रहे, फिर तभी उदयराज ने रजनी के चौड़े नितंब को हथेली में भर लिया और उसके कान में उसकी गाँड़ को सहलाते हुए बोला- पिछली वाली रसोई कितनी मादक है।

रजनी सिसकते हुए- अच्छा जी, आपको पसंद है बाबू

उदयराज- बहुत.....बहुत मेरी जान बहुत, पर देखो ये नाराज़ होती जा रही है

उदयराज ने अपनी एक उंगली से रजनी के गाँड़ के छेद को सहलाते हुए बोला।

रजनी- नाराज़ हो रही है बाबू?....सच में

उदयराज- हां...बिल्कुल

रजनी- तो उसे नाराज़ मत होने दीजिए, उसे भी प्यार कर लीजिए।

उदयराज- दिखाओ न फिर अपनी पिछली रसोई अच्छे से।

रजनी- अब इतना करीब आके भी उसे पिछली रसोई ही बोलोगे बाबू

उदयराज ने मुस्कुरा के रजनी को देखा फिर बोला- अच्छा मेरी प्यारी बेटी अपनी गाँड़ दिखा न मुझे, देखूं तो जरा दिन की रोशनी में गोरी गोरी कैसी दिखती है तेरी मादक गाँड़।

रजनी ने मस्ती में सिसकते हुए बोला- तो निकालो अपना लंड मेरी बूर में से, पर बूर का मन नही है लंड वापिस देने का।

उदयराज ने मुस्कुरा कर नीचे देखा और अपना लंड रजनी की बूर में से धीरे से बाहर निकाला और बूर के छेद को देखा तो वो लंड खाने के लिए मानो फड़क रही थी, उदयराज ने दुबारा अपने लंड का सुपाड़ा बूर की छेद पर लगाया और धीरे से बोला- बस जल्द ही आ जाऊंगा मेरी जान थोड़ा सा सब्र कर ले।

रजनी ने धीरे से अपनी बूर को थपथपाया और बोली- चलो मान गयी ये, पर जल्दी आना, ज्यादा देर इंतजार नही करेगी ये।

उदयराज- नही मेरी जान बिल्कुल नही

उदयराज ने एक बार फिर झुककर बूर को चूम।लिया।

उदयराज ने रजनी को देखा तो वो मुस्कुरा दी और फिर साड़ी को पैरों तक ढक लिया और पेट के बल लेट गयी, फिर दुबारा अपने बाबू को देखती हुई बड़े प्यार से अपनी साड़ी उठाने लगी, कुछ ही देर में रजनी ने अपनी मोटी चौड़ी गाँड़ अपने बाबू के सामने उजागर कर दी।

उदयराज अपनी सगी शादीशुदा बेटी की विशाल 36 साइज की मोटी दूध जैसी गोरी गोरी चौड़ी गाँड़ दिन के उजाले में देखकर बेसुध सा हो गया, रजनी साड़ी कमर तक उठाये अपनी गाँड़ खोले अपने बाबू को देखकर मुस्कुरा रही थी, उदयराज रजनी की चिकनी मस्त चौड़ी गाँड़ को कुछ देर ललचाई नज़रों से देखता रहा तभी रजनी ने अपनी साड़ी को कमर पर बटोर कर अपने हाथों से अपनी गाँड़ के दोनों मस्त रसीले चौड़े पाटों को चीर कर प्यार सा छोटा सा छेद अपने बाबू को दिखा कर और लुभाया, उदयराज ने "ओह मेरी बेटी, क्या छेद है तेरी गाँड़ का" बोलते हुए झुककर उस कामुक छेद को चूम लिया और फिर लगातार कई बार चूमा, मस्ती में रजनी की आंखे बंद हो गयी "ओह बाबू, आपके होंठों की छुवन वहां पर कितना गुदगुदा रही है"

उदयराज - कहाँ पर मेरी बिटिया

रजनी नशे में- गाँड़ के छेद पर....मेरे बाबू

उदयराज- अपना थूक लगाओ न इस छेद पर....और मजा आएगा

रजनी ने नशीली आंखों से अपने बाबू को देखा फिर मुस्कुरा कर अपने एक हाँथ में ढेर सारा थूक लिया और धीरे से ले जाकर अपनी गाँड़ की छेद पर चुपड़ दिया, और फिर दोनों हांथों से अपनी गोरी गाँड़ को अच्छे से फाड़ कर छेद को एक नशीले अंदाज़ में अपने बाबू को दिखाया, गोरी गोरी गाँड़ का प्यारा सा छेद सफेद सफेद रजनी के थूक से सन गया, थूक इतना ज्यादा था कि बहकर नीचे मखमली बूर तक जाने लगा तो उदयरज ने झट से उस थूक को चाट लिया, थूक चाटते वक्त उदयराज की मर्दाना जीभ रजनी की दहकती बूर से जा टकराई तो रजनी मस्ती में हल्का सा सिसक उठी, अपने सगे बाबू की जीभ अपनी बूर और गाँड़ के छेद पर महसूस कर उसका बदन बार बार गनगना जा रहा था।

उदयराज मस्ती में आंखे बंद कर अपनी बेटी की गाँड़ को चाटने लगा, दोनों हाथों से रजनी ने गाँड़ को अच्छे से फैला रखा था और उदयराज रजनी के गाँड़ के छेद को जीभ से लप्प लप्प चाटे जा रहा था, वो कभी जीभ को चौड़ा कर पूरी गाँड़ को चाटता, तो कभी जीभ को नुकीला कर गाँड़ के छेद में डालता, कभी जीभ को गाँड़ के छेद पर गोल गोल घुमाता जिससे रजनी और भी गुदगुदाहट में गनगना जाती "ओह बाबू जल्दी जल्दी करो कोई देख न ले........आह कितनी गुदगुदाहट हो रही में मेरे साजन.....मेरे बाबू......चाटो ऐसे ही अपनी बिटिया की गाँड़, आह कितना मजा आ रहा है...... चाटो ऐसे ही.......आआआआआआहहहहह

उदयराज- "ओह मेरी बेटी......क्या मस्त गाँड़ है तेरी..... कितनी मादक हो गयी है मेरी बिटिया.....कितनी चौड़ी है तेरी गाँड़......हाय..... कितनी गोरी है।

रजनी- "आपने मुझे प्यार कर कर के मादक औरत बना दिया है बाबू........आपको पाकर ही मुझे असल में औरत होने का अहसास हुआ.....मेरे बाबू आपने मुझे असली मर्द का सुख दिया है...…..हाय..... आप ही मेरे असल मर्द हो......ऐसे ही प्यार करो बाबू मुझे.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई अम्मा ऐसे ही चाटो....... बाबू..... ऐसे ही चाटो

रजनी के कस के गाँड़ को फाड़े रहने की वजह से गाँड़ का छेद हल्का खुल गया था जिसमे उदयराज ने जीभ डाल के घुमाना शुरू कर दिया तो मारे उत्तेजना और गुदगुदी के रजनी मचल उठी, और अपने दोनों हांथों से गाँड़ को छोड़कर अपने बाबू का सर हल्का हल्का सहलाने लगी, गाँड़ को छोड़ देने से गाँड़ के दोनों पाट उदयराज के गालों से टकरा गए और उदयराज का लगभग आधा चेहरा रजनी की गाँड़ में डूब गया। उदयराज अब और मस्ती में भर गया वो अपनी बेटी की कमर और पूरी गाँड़ को सहलाते हुए बहुत ही तन्मयता से गुलाबी छेद को चाटने लगा।

रजनी- बाबू थूक लगा के डालिये न ......अब लंड

उदयराज अपनी दुलारी बिटिया को अब और तड़पाना नही चाहता था, झट से उठ बैठा। रजनी के कान के पास जाकर बोला- अपने मर्द को तैयार तो कर दो मेरी रानी, तभी तो अंदर जाएगा।

रजनी समझ गयी उसने झट से अपना हाँथ अपने बाबू के होंठों के पास किया और बोली- तो लाओ अपना थूक

उदयराज ने रजनी के हांथों पर अपना थूक दिया, रजनी ने अपने बाबू को नशीली आंखों से देखते हुए उनमे अपना थूक मिलाया और पलटकर लंड को देखती हुई दोनों के थूक को अच्छे से पूरे 9 इंच के लंड पर मल दिया, दोपहर की तेज धूप में थूक लगा लंड चमकने लगा।

उदयराज ने धीरे से रजनी के कान में कहा- बेटी तुम कुतिया की तरह बनोगी, डालने में आसानी होगी और तुम्हे दर्द भी कम होगा।

रजनी ने सिसकते हुए कहा- मैं तो हूँ ही आपकी कुतिया बाबू, जैसा कहोगे वैसा बन जाउंगी आपके लिए, मुझे बस आपका लंड चाहिए।

फिर रजनी जल्दी से अपने घुटनों के बल झुक गयी और अपनी चौड़ी गाँड़ को थोड़ा और ऊपर को करके अपने सर को तकिए पर रख लिया और बड़े ही मिन्नत से बोली- डालिये न बाबू अब अपना लंड।

उदयराज ने अपनी बेटी रजनी की गुदाज चौड़ी गाँड़ को पकड़कर अच्छे से खोला और अपने लंड के थूक लगे मोटे सुपाड़े को अपनी बेटी के गाँड़ के छेद पर रखा, रजनी लंड के थूक लगे मोटे सुपाड़े की गीली छुवन को अपनी गाँड़ के छेद पर महसूस कर सिरह उठी। गाँड़ के छेद के मुकाबले लंड का सुपाड़ा चार गुना बड़ा था, ये देखकर उदयराज और नशीला हो गया, मन मे सोचने लगा सगी बेटी की गाँड़ मारने में तो मजा आ जायेगा, कितना छोटा छेद है और गाँड़ कितनी चौड़ी और नशीली।

तभी रजनी बेसब्र होती हुई बोली- बाबू मारो न गाँड़ मेरी......उसे खाली दरवाजे पर खड़ा कर रखा है....अंदर भेजो न जल्दी......मैं इंतज़ार कर रही हूं कब से।

ऐसा कहते हुए रजनी नशीली आंखों से अपने बाबू को देखकर मुस्कुराने लगी।

उदयराज ने रजनी को देखते हुए हवा में एक चुम्मा दिया, रजनी ने भी वैसा ही किया कि तभी उदयराज ने रजनी की गाँड़ को थामा और अपने लंड का दबाव बढ़ाने लगा।

रजनी को दर्द का अहसाह हुआ, उदयराज ने हल्का सा और ताकत लगाया और लंड का मोटा सुपाड़ा गाँड़ की छेद को छल्ले की तरह फैलाता हुआ अंदर दाखिल हो गया, अंदर बहुत नरम नरम था।

रजनी- आआआआआआहहहहहहहह....बबबबबाबाबाबाबाबाबूबूबूबूबूबू.......कितना मोटा है आपका......दर्द हो रहा है...... थोड़ा रुको......ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई..... अम्मा.......बाबू रुको यहीं पर जरा.......

रजनी मारे दर्द के चीख पड़ी

उदयराज ने झट से आगे बढ़कर रजनी के होंठों को चूमना चाहा तो आगे बढ़ने के चक्कर मे लंड का दबाव और गाँड़ के छेद पर पड़ा और लंड थोड़ा औऱ गाँड़ में घुस गया

रजनी- आआआआआआहहहहहहहह.....हाय दैय्या.....बाबू.....सुनो न थोड़ा रुको....मुझे संभलने दो....कितना दर्द हो रहा है.....

उदयराज ने धीरे से रजनी के होंठों को चूमा और पीठ को सहलाया, गाँड़ को सहलाया और बोला- बेटी....मेरी बिटिया....थोड़ा धीरे कोई सुन लेगा.....थोड़ा सब्र कर मेरी रानी अभी मजा आएगा, सारा दर्द छूमंतर हो जाएगा।

रजनी- हां बाबू....काश ऐसा हो....अभी तो दर्द हो रहा है मुझे.....बिल्कुल फैल गयी है मेरी गाँड़....कितना मोटा है आपका....दर्द से जलन भी हो रही है......आप थोड़ा और थूक लगाइए न

उदयराज ने तुरंत रजनी के होंठों के पास हाँथ किया तो रजनी ने फिर से ढेर सारा थूक हाँथ पर दिया, उदयराज ने उसमे अपना थूक मिलाया और गाँड़ के छेद पर गिराया, रजनी को अब कुछ ज्यादा गीलापन महसूस हुआ, कुछ देर वैसे ही उदयराज रजनी पर झुका रहा उसे हौले हौले चूमता रहा, "मेरी बेटी....मेरी रानी....मेरी शोना" कहकर दुलारता रहा और हाँथ नीचे ले जाकर मोटी मोटी लटकी हुई चूचीयों को धीरे धीरे सहलाने, आगे से तो ब्लॉउज खुला ही हुआ था और ब्रा ऊपर तक चढ़ी हुई थी, पीछे से उदयराज ने ब्लॉउज को ऊपर कर पीठ को भी नंगी कर दिया और रजनी की चिकनी पीठ पर जहां तहां चूमने लगा, रजनी मचलने लगी, उदयराज पीठ और कमर पर गीले गीले चुम्बन करने लगा, रजनी को थोड़ी राहत मिली तो उसने बोला- बाबू अब डालिये और।

उदयराज- दर्द कम हुआ

रजनी- हाँ थोड़ा कम हुआ....पर आप डाल दीजिए....मैं बर्दाश्त कर लुंगी....डालिये आप

उदयराज ने एक बार फिर पोजीशन ली और बाकी बचा हुआ लंड धीरे से गाँड़ की छेद में दबाया, काफी गीला होने की वजह से लंड सरसरा कर अंदर जाने लगा, रजनी को फिर दर्द होने लगा पर वो धीरे धीरे कराहते हुए झेलने लगी, जब एक चौथाई लंड बच गया तो उदयराज ने झुककर रजनी की गाँड़ को बड़े प्यार से चूमा और एक करार धक्का मारकर बाकी बचा लंड जड़ तक गाँड़ की गहराई में उतार दिया।

रजनी- ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई मां......हाय.....बाबू......मेरी गाँड़......बहुत दर्द हो रहा है बाबू......रुक जाओ अब........आह..... ओह..... अम्मा......कितना अंदर तक गया है आपका........मेरी गाँड़....

रजनी अपने जीवन में आज पहली बार गाँड़ मरवा रही थी और पहली बार ही गाँड़ में 9 इंच लंबा लंड गया था, लंड इतना गहराई तक उतरेगा उसे ये अंदाजा नही था, दर्द इतना ज्यादा था कि वो हल्का सा भी अपनी गाँड़ को हिलाती तो दर्द से कराह जाती।

कुछ देर और दोनों बाप बेटी ऐसे ही पड़े रहे, उदयराज रजनी की चूचीयाँ दबाता सहलाता रहा, उसे चूमता रहा, पुचकारता रहा, वो रजनी की आगे की इच्छा का इंतज़ार करता रहा, वो बार बार उठ उठ के अपने लंड को देखता की कैसे उसका लंड अपनी ही सगी बेटी की गाँड़ में पूरा जड़ तक घुसा हुआ है, उदयराज के लंड की जड़ पर उगे काले काले बाल रजनी की गोरी गोरी गाँड़ के छेद को छू रहे थे जिससे रजनी को थोड़ी गुदगुदी भी हो रही थी।

थोड़ी देर बाद रजनी को राहत मिली तो उसने एक हाथ पीछे ले जाकर अपने बाबू की गाँड़ को पकड़ा और अपनी गाँड़ की ओर दबा कर गाँड़ मारने का इशारा किया।

उदयराज ने धीरे से रजनी के कान में पूछा- दर्द कुछ कम हुआ मेरी रानी का।

रजनी- करो न बाबू....मारो मेरी गाँड़....होने दो दर्द.....दर्द में मजा भी तो है......मारो अब मेरी गाँड़

उदयराज ने ये सुनते ही पूरा का पूरा लंड मुहाने तक बाहर खींचा और दुबारा एक ही बार में फिर से मोटी रसीली गाँड़ में पेल दिया, रजनी फिर कसमसाई पर अब उदयराज रुका नही वो रजनी की गाँड़ थामे घपाघप उसकी गाँड़ मारने लगा, रजनी दोनों हांथों से तकिए को दबोचकर कराहने लगी, उदयराज बार बार पूरा पूरा लंड मुहाने तक बाहर निकालता और जड़ तक रसीली मुलायम गाँड़ में उतार देता, उदयराज आज पहली बार अपनी सगी बेटी की गाँड़ मार रहा था इतना ज्यादा मजा आएगा इसका अंदाज़ा उसे नही था, रजनी की गाँड़ बहुत नरम और मुलायम थी और दूध जैसी गोरी थी, गोरी गोरी गाँड़ के गुलाबी गुलाबी छोटे से छेद में काला काला मूसल जैसा लंड देखने में गजब ढा रहा था, उदयराज बार बार अपनी बेटी की गाँड़ मारते हुए अपने लंड को अंदर बाहर जाते हुए देख देख कर और उत्तेजित होता जा रहा था।

उदयराज ने अपनी पत्नी की भी कई बार गाँड़ मारी थी पर अपनी सगी बेटी के साथ इतना मजा आएगा उसे इसका अंदाजा नही था, उसने ये बात रजनी को कह भी दी।

उदयराज- बिटिया रानी

रजनी कराहते हुए- हां मेरे सैयां.....मेरे बाबू

उदयराज- एक बात बोलूं

रजनी- बोलो न बाबू

उदयराज- गाँड़ मारने में इतना मजा तो मुझे तेरी अम्मा के साथ भी नही आया था जितना तेरे साथ आ रहा है, बहुत मादक है तेरी गाँड़ मेरी बेटी.....बहुत नरम

रजनी कराहते हुए शर्मा गयी फिर बोली- माँ और बेटी में फर्क तो होगा न बाबू....आपकी बिटिया हूँ मै....मजा तो आएगा ही.....और आपका लंड क्या कम है.…..कितनी भाग्यशाली हूँ मै जो मुझे ऐसे प्यार करने वाले बाबू मिले....और मुझे मर्द का प्यार भी देते है...... मैं तो आपकी हूँ बाबू सिर्फ आपकी

उदयराज को ये सुनकर और नशा होने लगा और वो कस कस के और भी तेज तेज धक्के गाँड़ में मारने लगा, रजनी को भी अब मजा आने लगा, लंड ने अच्छे से गाँड़ में जगह बना ली थी, अपनी बेटी की गाँड़ को अच्छे से थामकर अब उदयराज जमकर ताबड़तोड़ रजनी की गाँड़ मारने लगा, रजनी भी मचलते हुए अपनी गाँड़ को पीछे की ओर ताल से ताल मिला कर गाँड़ मरवाने लगी, उदयराज बीच बीच में रजनी की चूचीयों को हांथों में भर भरकर मसलते जा रहा था, पीठ और कमर को चूमते जा रहा था जिससे रजनी को और मजा आने लगा, लगभग पंद्रह मिनट लगातार अपनी सगी बेटी की गाँड़ मारने के बाद उदयराज ने कस के रजनी की गाँड़ को थाम के एक करारा धक्का मारा और जोर जोर से सिसकते हुए रजनी की गाँड़ में झड़ने लगा, जोश इतना चढ़ा की उदयराज ने रजनी के गर्दन के बायीं तरफ जोर से काट भी लिया, रजनी दर्द से थोड़ा कराह उठी पर उसे बहुत अच्छा लगा वो थरथरा कर खाट पे लेट गयी और उदयराज झड़ते हुए उस पर ढेर हो गया, वो तेज तेज हांफ रहा था, दोनों की आंखे बंद हो गयी, काफी देर तक उदयराज रजनी की मुलायम गाँड़ में जड़ तक लंड पेले झड़ता रहा, अपने सगे बाबू का गर्म गर्म लावा रजनी अपनी गाँड़ की गहराई में गिरता हुआ साफ महसूस कर रही थी, मस्ती में वो मुस्कुराने लगी और उदयराज उसके गालों को चूमने लगा।
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महेन्द्र बड़ी सी जीभ निकाले नीलम की वासना में फूली हुई पनियायी बूर को नीचे से लेकर ऊपर तक चाटने लगा, महेन्द्र की जीभ की रगड़ अपनी बूर की दोनों फाँकों के बीच, फांकों पर, बूर के तने हुए दाने पर पाकर नीलम के विशाल 36 साइज के नितंब बरबस ही सनसनाहट में थिरक जा रहे थे, पहले तो उसने अपने दोनों पैर महेन्द्र की पीठ पर रखे हुए थे पर बूर चटाई का और सुख लेने के लिए नीलम ने दोनों पैरों को और चौड़ा करके हवा में फैला दिए और इतना ही नही फिर नीलम ने जानबूझ कर महेन्द्र को और जोश चढ़ाने के लिए अपने सीधे हाँथ की उंगली से अपनी बूर की दोनों फाँकों को चीरकर उसका प्यारा सा गुलाबी छेद दिखाते हुए बड़े ही विनती के भाव में बोली- भैया जल्दी जल्दी चाटो अपनी दीदी की बुरिया को............कहीं अम्मा न आ जाये.............जल्दी जल्दी सब कुछ करो न......... बहुत मजा आ रहा है.......कभी कभी तो मौका मिलता है.......…..बहुत मजा आता है भाई के साथ गंदा काम करने में........ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.......अम्मा।

महेन्द्र ने अपनी जीभ नुकीली बना के नीलम की बूर के गुलाबी छेद पर भिड़ा दी थी इसलिए नीलम सिसकारी लेते हुए चिहुँक गयी।

नीलम के मुँह से ये बोल सुनकर महेन्द्र से रहा नही गया वो और तेज तेज बूर का चप्पा चप्पा चाटने लगा, नीलम जोश और बदन में उठ रही तेज सनसनी के मारे अपने ही दोनों हांथों से अपनी गुब्बारे जैसी फूली हुई दोनों चूचीयों को मसलने लगी, दोनों तने हुए निप्पल को खुद ही मीजने लगी, चुदास इतना सर चढ़ जाएगी ये उसने भी कभी सोच नही था।

काफी देर बूर का चप्पा चप्पा चाटने से बूर एकदम गीली हो गयी, नीलम की बूर महेन्द्र के थूक से लबालब सन गयी थी, बूर पर हल्के हल्के काले काले बाल थूक से सराबोर हो चुके थे, बूर पूरी फूलकर किसी पावरोटी की तरह उभर आई थी और दोनों फांकों के बीच तना हुआ दाना जोश के मारे लाल हो गया था, सच पूछो तो बूर अब लन्ड मांग रही थी, नीलम तड़पते हुए छोटी टॉर्च को बुझाकर अपने दोनों हांथों से सर हो अगल बगल तड़पकर पटकते हुए अपनी चूचीयों को खुद ही मसले दबाए जा रही थी, कभी वो जोश के मारे सर को अगल बगल हिलाती तो कभी अपनी चूची और कमर से ऊपर के हिस्से को किसी धनुष की तरह ऊपर को मोड़कर तान देती जिससे उसकी चूचीयाँ किसी दो पहाड़ की तरह और ऊपर को उठ जाती।

नीलम के बदन में वासना की तरंगे, चुदाई की खुमारी अब उफान पर आ चुकी थी, किसी सागर की बेकाबू लहरों की तरह उसका बदन मचल रहा था और सच में एक गदराए यौवन की स्त्री के बदन में वासना जब खुलकर हिलोरे मारने लगती है और वो लोक लाज छोड़कर तड़पने मचलने लगती है तो एक अनुभवी पुरुष ही उसे अच्छे से काबू कर सकता है, आज महेन्द्र की बूर चटाई नीलम के मन भा गयी थी न जाने क्यों आज महेन्द्र से बूर चटवाने में नीलम को मजा आया था शायद इसकी वजह उसके बाबू की मौजूदगी थी, ये सोचकर उसे अति आनंद और रोमांच हो रहा था कि कैसे वो अपने बाबू की जानकारी में अपने पति से बूर चटवा रही है, हो न हो बाहर से जरूर उसके बाबू उसे देख रहे होंगे और ये सच भी था बाहर बिरजू खिड़की के पास खड़ा अपनी बेटी की मादक सिसकियां सुनकर अति उत्तेजित हो ही रहा था।

नीलम से जब नही रहा गया तो उसने महेन्द्र के चेहरे को पकड़ा और उसका मुँह बूर से छुड़ाया और कंधों से पकड़कर ऊपर चढ़ने का इशारा किया महेन्द्र झट से नीलम के ऊपर चढ़ गया नीलम ने अपने पैर महेन्द्र की कमर पर दुबारा कैंची की तरह लपेट दिए, महेन्द्र का लोहे की तरह तन्नाया लंड नीलम की बूर पर, उसकी फाँकों पर, फांकों के बीच में जहां तहां ठोकरें मारने लगा, और एकाएक बूर के गरम गरम रसीले छेद पर सेट हो गया तो नीलम जोर से सिसक उठी- ओओओहहहह........भैयायायाया........चोद दो न जल्दी.........डालो न अपना लंड अपनी दीदी की बुरिया में.....कहीं अम्मा न आ जाये......आज पहली बार अपनी बहन को चोदने जा रहे हो.......आह कैसा लग रहा है भाई के ही साथ चुदाई करने में, जिसको मैं राखी बांधती हूँ आज उसी से चुदवा रही हूं.........आह भैया...…..करो न.......डालो अब बर्दाश्त नही होता।

(नीलम जानबूझ कर महेन्द्र से ऐसी कामुक बातें कर रही थी)

आखिर महेन्द्र भी कब तक चुप रहता वासना उसके सर चढ़कर गरजने लगी, इतना जोश उसे कभी नही चढ़ा था, उसने नीलम को कस के अपनी बाहों में जकड़ लिया और गालों होंठों पर ताबड़तोड़ चूमते और लंड को बूर की फांकों पर ऊपर ऊपर रगड़ते हुए नीलम से बोला- दीदी आज कितना अच्छा लग रहा है तुझे पा के, मैंने कभी सपने में भी नही सोचा था कि मुझे अपनी ही सगी बहन की मखमली बूर मिलेगी चोदने को।

(महेन्द्र लगतार अपना लंड नीलम की बूर की फांकों के बीच रगड़ रहा था)

नीलम- हां भैया मैं भी तेरा लंड पाकर निहाल हो गयी, अब चोद न जल्दी, कोई आ जायेगा नही तो घर में, बड़ी मुश्किल से मौका मिला है तू देर क्यों कर रहा है।

ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपने नितंब को ऊपर की ओर उठाने लगी।

महेन्द्र से भी अब नही रहा गया और उसने जोर का एक धक्का नीलम की तरसती बूर में मारा तो महेन्द्र का लंड सरसराता हुआ गच्च से बूर की गहराई में उतर गया। बूर अंदर से किसी तेज भट्टी की तरह सुलग रही थी, उसकी तेज गर्माहट अपने लन्ड की चमड़ी पर महसूस कर महेन्द्र मदहोश हो गया, दोनों के मुँह से ही एक जोर की मादक सिसकारी निकली, नीलम ने महेन्द्र को कस के अपने से लिपटा लिया और महेन्द्र ने अपने दोनों हांथों से नीलम के भारी नितंब थामकर अपना लन्ड एक बार तेजी से बाहर निकाल कर दुबारा गच्च से बूर में पेल दिया तो नीलम लंड के लज़्ज़त भरे मार से सिसकते हुए कराह उठी।

दोनों अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपट गए, कुछ देर दोनों आंखें बंद किये एक दूसरे के बदन की लज़्ज़त और लंड-बूर के मिलन के असीम आनंद को अच्छे से महसूस करते रहे, कोई कुछ बोल नही रहा था बस आंखें बंद किये एक दूसरे को महसूस कर रहे थे, बीच बीच में महेन्द्र अपना लंड बूर में से बाहर खींचकर दुबारा किसी पिस्टन की तरह बूर की गहराई तक पेलता तो नीलम लन्ड की लज़्ज़त भरी मार को गहराई में महसूस कर चिहुकते हुए महेन्द्र की पीठ पर नाखून से चिकोट लेती, महेन्द्र नीलम के गालों को चूमने लगा और धीरे से बोला- दीदी

नीलम- हम्म

महेन्द्र- रोशनी करो न थोड़ा अपने चेहरे पर।

नीलम- क्यों भैया

महेन्द्र- आज बरसों तड़पने के बाद अपनी बहन की बूर मिली है मैं देखना चाहता हूं कि मेरी दीदी के चेहरे का क्या हाव भाव है, तुम्हे अच्छा लग रहा है कि नही।

नीलम- धत्त....गंदे भैया.....एक तो बहन की बूर में अपना खूंटे जैसा लन्ड घुसाए हुए हो ऊपर से उसका चेहरा भी देखना है, मुझे लाज आती है।

(नीलम ने जानबूझ कर नाटक किया)

महेन्द्र- जलाओ न बत्ती दीदी, देखूं तो सही तुम्हारे चेहरे की लज़्ज़ा

नीलम ने बगल में पड़ी टॉर्च उठा के महेन्द्र को दी और बोली- लो खुद ही जला के देख लो बहन की लाज.....गंदे

महेन्द्र ने टॉर्च को जलाकर नीलम के चहरे पर किया तो नीलम शर्मा गयी, टॉर्च की रोशनी ज्यादा तो थी नही, सिर्फ चेहरे और उनके आस पास तक ही थी।

महेन्द्र ने नीलम को शर्माते हुए देखा तो और भी जोश से भर गया, नीलम ने एक बार महेन्द्र की आंखों में देखा फिर शर्मा कर मुस्कुराते हुए चेहरा बायीं तरफ घुमा लिया और बोली- धत्त बेशर्म भैया, एक तो अपनी सगी बहन को चोरी चोरी चोदते हो ऊपर से उसकी लज़्ज़ा भी देखते हो.....हम्म....गंदे।

महेन्द्र- हाय मेरी बहना, कितनी खूबसूरत है तू

नीलम- सच

महेन्द्र- बिल्कुल सच मेरी बहना, मेरी सुनीता, मेरी जान

नीलम- आह मेरे भैया

(दरअसल महेन्द्र ने एक गच्चा बूर में तेज़ी से मार दिया था तो नीलम चिहुँक पड़ी)

नीलम ने टॉर्च बंद कर दी और धीरे से बोली- अब चोदो न अपनी बहन को

(दरअसल नीलम देर नही करना चाहती थी, उसे तो इंतज़ार था अपने बाबू का, अपने मन पसंद पुरूष का, महेन्द्र के साथ ये सब खेल तो वो बस इसलिए खेल रही थी की वो जल्दी निपट जाए)

हालांकि वासना और चुदास कि तड़प में तर बतर तो वो भी हो चुकी थी पर वो झड़ना अपने बाबू के अत्यधिक मजबूत लंड की रगड़ से चाहती थी न कि महेंद्र के, और उपाय के नियम भी यही थे।

नीलम ने टार्च बंद कर दी तो महेन्द्र अब नीलम की गीली बूर में धीरे धीरे धक्के मारने लगा, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगी, दोनों पैर उसने महेन्द्र की कमर पर लपेट रखे थे और उसकी पीठ और कमर को बड़े दुलार के साथ लगातार सहला रही थी, महेन्द्र ने धक्के मारते वक्त महसूस किया कि वो अपने सामर्थ्य से तो अपना समूचा लंड नीलम की बूर की गहराई में पेल रहा है पर फिर भी वो उसकी बूर की गहराई के आखिरी छोर को छू नही पा रहा है, मानो उसका लंड नीलम की बूर की गहराई के हिसाब से छोटा पड़ रहा हो, हालांकि मजा तो उसे भरपूर आ रहा था, पर वो धक्के मारते हुए अपने दोनों पैरों को पलंग की पाटी से टेक लगाकर तेज तेज धक्के लगाते हुए नीलम की बूर की अत्यंत गहराई तक लंड पहुचाने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर वो उस गहराई को छू नही पा रहा था और इस बात को नीलम पहले ही अच्छे से महसूस कर चुकी थी, वो भी कई बार नीचे से अपने मादक विशाल नितंब उठाकर महेन्द्र के लन्ड के टोपे को बूर की गहराई के आखिरी छोर तक टच कराने की कोशिश करती पर लन्ड वहां तक नही पहुंच पा रहा था, जिससे नीलम को कुछ कमी महसूस हो रही थी, वो मजा उसे नही मिल पा रहा था हालांकि महेन्द्र को पूरा मजा मिल रहा था और वो अब ताबड़तोड़ धक्के पे धक्के मारे बूर चोद रहा था, नीलम भी दिखावे की सिसकारी लेते हुए महेन्द्र को सहलाती और चूमती जा रही थी पर कहीं न कहीं कुछ खालीपन था।

जबकि पहले ऐसा नही था पहले महेन्द्र का लंड जब नीलम की बूर में घुसता था तो नीलम और महेन्द्र दोनों को यही लगता था कि बूर बस इतनी ही गहरी है, महेन्द्र का पूरा लंड बूर में समा जाता था तो महेन्द्र को लगता था कि बूर की गहराई तक वो पहुँच गया है पर असल में नीलम की बूर की गहराई की और परतों को खोलकर उसे और गहरा बनाया था उसके सगे पिता के विकराल लंड ने, नीलम को भी पहले क्या पता था कि उसकी बूर और गहरी है, जब पहली बार महेन्द्र का लंड सुहागरात में नीलम की बूर में गया था तो उसे भी यही लगा था कि लंड इतना ही बड़ा होता है और गहराई इतनी ही होती है बूर की, पर कल की रात जब पहली बार उसके बाबू का लंड उसकी कमसिन बूर में उतरा तब उसे समझ में आया कि लंड क्या होता है, उसे वो पल याद है जब कल उसके बाबू का लन्ड उसकी बूर की अनंत गहराई की अनछुई मांसपेशियों को चीरता हुआ उस जगह पर जा पहुँचा था जो बरसों से वीरान पड़ी थी जिसका आभास स्वयं नीलम को भी नही था, कैसे उसके बाबू के विशाल लन्ड ने वहां पँहुच कर उस जगह के चप्पे चप्पे को बड़े प्यार और दुलार से चूमा था, कैसे वहां अपना परचम लहराया था, तभी तो उसके बदन में एक अत्यंत खूबसूरत झनझनाहट हुई थी, जैसे बरसों की प्यास बुझी हो और वो उसी सुख को पाकर अपने बाबू के लन्ड की कायल हो गयी थी, दरअसल बूर को भी वही लंड भाता है जो उसकी अनछुई गहराई तक पहुँचकर वहां कलश में रखे मटके को फोड़कर उसका रस पी सके और वहां के चप्पे चप्पे को चूमकर एक झनझनाहट बूर में पैदा कर दे, और इस दौरान जब महेन्द्र भी नीलम को हुमच हुमच कर चोद रहा था तो नीलम उसी सनसनाहट और सुख को पाने का भरकस प्रयास अपनी गाँड़ को उछाल उछालकर कर रही थी पर वो झनझनाहट वाला मजा उसे महेन्द्र के लन्ड से मिल नही पा रहा था।

दूसरा फर्क ये था कि उसके बाबू का काला लंड जब फुंकार मारकर खड़ा होता है तो उसपर काफी सारी नसें उभर आती है, और जब वो लंड बूर में अंदर बाहर होता है तो वो नसें बूर की दीवारों से एक दरदरा सा घर्षण पैदा करके असीम सुख देती हैं, साथ ही साथ लंड के इर्द गिर्द काले काले बाल, जब लंड बूर में जड़ तक घुसता है तो वो काले काले बाल बूर की फांकों और बूर के तने हुए दाने से बार बार टकराकर बदन में बिजली जैसा कंपन पैदा करते है जिससे नीलम को अपार सुख मिलता है, और इस वक्त उसे वो सुख महेन्द्र के लंड से न मिलने पर वो उस लन्ड को मिस कर रही थी।

चोदते चोदते महेन्द्र रुक गया। नीलम ने सवालिया निगाहों से अंधेरे में उसे देखा।


नीलम- क्या हुआ भैया......चोदो न रुक क्यों गए, बहन की बूर में मजा नही है क्या?


महेन्द्र- दीदी.....तेरी बूर में मजा तो इतना है कि जी करता है उम्र भर इसे चोदता रहूं।


नीलम- फिर......फिर क्या हुआ मेरे राजा भैया....चोदो न अपनी बहना को......कितना मजा आ रहा था।


महेन्द्र- मुझे बस एक बात पूछनी है दीदी।


नीलम- तो पूछ न.....चोदता भी रह और पूछता भी रह।


महेन्द्र फिर हल्का हल्का बूर चोदने लगा और बोला- दीदी


नीलम- ह्म्म्म........ .........आह.... हाँ ऐसे ही चोद


महेन्द्र- जीजा तुम्हे नही चोदते न


नीलम- एक बात बताऊं मेरे भैया


महेन्द्र- हाँ मेरी प्यारी दिदिया।


नीलम- अगर वो मुझे चोदते होते न, फिर भी मैं तुझसे छुप छुप के चुदवाती, तुझे तेरे हक़ का देती, नही तो भगवान भी मुझे माफ़ नही करेगा।


महेन्द्र- कैसा हक़ दीदी? क्या से सच है....की फिर भी तुम मुझसे चुदवाती।


नीलम- हां मेरे भैया सच........आह....ऐसे ही गप्प गप्प लंड डाल मेरी बूर में.....आह भाई.... मजा आ रहा है बहुत।


महेन्द्र- पर क्यों दीदी?


नीलम सिसकते हुए- क्योंकि तू मेरा भाई है......मैं तुझे राखी बांधती हूँ न, और तू मेरी रक्षा का वचन देता है।


महेन्द्र- हाँ देता तो हूँ वचन।


नीलम- तो जरा सोच मेरे प्यारे भैया........जब एक पुरुष 18 19 साल बाद किसी स्त्री के जीवन मे आकर उससे शादी करता है..........और शादी के फेरों के दौरान वो उस स्त्री की रक्षा का वचन देता है फिर उस पुरुष को उस स्त्री की बूर सुहागरात में मिलती है चखने को.......... और दूसरी तरफ वो भाई जो बचपन से उसकी रक्षा का वचन देता आ रहा है बदले में उसको कुछ नही?.........उसको भी तो बहना की बूर चखने को मिलनी चाहिए न............बहन की शादी से पहले न सही पर शादी होने के बाद कभी न कभी चुपके से तो उसे उसके हक़ का मिलना चाहिए न.......... आखिर वो भी तो उसकी रक्षा का वचन बचपन से देता चला आ रहा है और रक्षा कर भी रहा है, तो ये नाइंसाफी एक भाई के साथ क्यों भला?......इसलिए मेरे भैया मेरी बूर पर तेरा पूरा हक है.......कोई बहन अपने भैया को अपनी बूर चखाये या न चखाये मैं तो जरूर चाखाउंगी अपने प्यारे भैया को.........आखिर एक दिन मर ही जाना है ये मिट्टी का तन मिट्टी में मिल ही जाना है.............और जवानी भी तो हमेशा नही रहेगी.......तो क्यों तड़पे मेरा भाई बूर के लिए ...क्या उसकी बहन के पास नही है बूर........अगर भाई नही चाह रहा होता तो बात अलग थी......जब भाई प्यासा है.......तो क्यों न बहन अपनी बूर चखाये अपने सगे भाई को.....औऱ चुपके से उसकी प्यास बुझा दे.....जो जीवन भर उसकी रक्षा का वचन देता है.........आखिर एक भाई बचपन से बहन की रक्षा का वचन निभाता है.....एक रस भरी मिठाई की रक्षा बचपन से जवानी तक जब तक बहन की शादी नही हो जाती करता है.......और शादी होने के बाद बहन उस मिठाई को किसी ऐसे पुरुष को खिला देती है जो इतने सालों बाद उसकी जिंदगी में आया है..............इतना भी नही सोचती की इस मिठाई पर थोड़ा हक़ तो उस भाई का भी है जिसने बचपन से इसकी रक्षा की है..........उस नए पुरुष को वो मिठाई दे देती है चाहे वो उसकी इज्जत करे या न करे, पर उसे नही देती जिसने उस मिठाई पर कभी एक मक्खी तक नही बैठने दी........ सिर्फ समाज के डर से, पर ये एक भाई के साथ नाइंसाफी है, और केवल शादी तक ही नही भाई तो बहन की रक्षा शादी के बाद भी मरते दम तक करता है, पर बहन शादी होने के बाद भी भाई को उसके हक़ की मिठाई नही खिलाती, कम से कम शादी के बाद चुपके से कभी न कभी अपनी बूर का स्वाद एक बहन अपने सगे भाई को चखा ही सकती है, क्या भाई बहन को कम संतुष्टी देगा.......कदापि नही........ इसलिए मेरे भाई चोद लो अपनी बहन को जी भरके........तेरे लंड की प्यासी है तेरी बहना की बूर, और इसलिए अगर तेरे जीजा मुझे चोदते होते तो भी मैं तुझे अपनी बूर चखाती।


नीलम ने सिसकते और कराहते हुए लंबा चौड़ा एक मादक भाषण दे डाला, महेन्द्र नीलम की लॉजिक भरी बातें सुनकर दंग रह गया, ऐसे ही बेबाक जवाब होते थे नीलम के, महेन्द्र को ये सब सुनके इतनी मस्ती चढ़ी की उसने कस के नीलम को दबोचा और "ओह मेरी दीदी......हाय मेरी प्यारी दीदी........तू मुझे इतना प्यार करती है......की अपनी मिठाई मुझे परोस दी........सच में तेरी बूर के आगे सारी मिठाई फीकी है........मैं मर जाऊंगा तेरे बिना.........तेरी बूर के बिना मैं नही रह पाऊंगा.......आह क्या बूर है तेरी मेरी बहन" कहते हुए दनादन नीलम की बूर में गच्च गच्च लंड पेल पेल कर नीलम को चोदने लगा।


नीलम की चाल को महेन्द्र फिर नही समझ पाया, नीलम मंद मंद मुस्कुराती रही और हल्का हल्का कभी कभी लंड के आड़े तिरछे धक्के बूर की दीवारों पर लगने से आह....ऊई अम्मा करते हुए सिसकती रही, पर वो एक कमी उसे बहुत खल रही थी।


इतनी मादक बातें सुनकर और नीलम की लज़्ज़त भरी बूर में काफी देर से लंड पेलते रहने की वजह से अब महेन्द्र का टिक पाना मुश्किल था, उधर बिरजू भी कमरे से आ रही मादक सिसकियों को सुनकर बेचैन होता जा रहा था, कभी वो इधर उधर घूमने लगता तो कभी खिड़की के पास खड़ा हो जाता, उमस और गर्मी हो ही रही थी, तभी आंगन में खड़े होने की वजह से बिरजू के ऊपर बारिश की हल्की हल्की दो चार बूंदे गिरी, बिरजू ने सर उठा के ऊपर देखा तो काले काले बादल छा चुके थे, बारिश होने वाली थी अब तेज।


बिरजू ने अब अंदर जाना उचित समझा, जैसे ही उसने घर के अंदर प्रवेश करने के लिए दरवाजा खोला हल्की चर्रर्रर्रर की आवाज हुई और तभी जोर से बादल गरजे और बिजली चमकी, बिलजी इतनी तेज चमकी की एक पल के लिए पूरा आंगन जगमगा गया और कमरे में भी भरपूर रोशनी हुई, जिससे नीलम और बिरजू की नजरें मिल गयी, नीलम मारे लज़्ज़ा के गनगना गयी की कैसे एक पिता ने अपनी
सगी बेटी को चुदवाते हुए देख लिया, और वो किस तरह लेटकर महेन्द्र से चुदवा रही है।


महेन्द्र ने भी पलटकर बिरजू की ओर देखा, बिरजू ऊपर से बिल्कुल नंगा था, नीचे उसने धोती पहन रखी थी, जिसमे उसका काला जंगली सा लंड कब से फुंकार मार रहा था, एक पल के लिए तेज रोशनी होने से बिरजू ने महेंद्र को नीलम के ऊपर चढ़कर उसको हचक हचक के चोदते हुए देख लिया, नीलम और महेन्द्र मदरजात नंगे थे, नीलम ने झट से एक बड़ा चादर उठा कर महेंद्र और अपने ऊपर डालकर ढक लिया, और मारे उत्तेजना के तेज तेज अपने बाबू के सामने सिसकने लगी, महेन्द्र से भी अब रुका नही जा रहा था वो नीलम को बहुत तेज तेज चोदने लगा, बिरजू की मौजूदगी का अहसाह कर अब नीलम के बदन में अजीब सी झुरझुरी होने लगी, एक अलग ही रोमांच का अहसाह उसे होने लगा, जिससे वो हल्का हल्का झड़ने के करीब जाने लगी थी कि तभी महेंद्र हुंकार मारते हुए नीलम की बूर में आखिरी धक्का लगाकर गनगना के झड़ने लगा, धक्का उसने इतना तेज मारा था कि पलंग हल्का सा चरमरा गई थी पर लंड उसका फिर भी बूर की उस गहराई को नही छू पाया था जहां तक जाने की आशा नीलम कर रही थी। पूरे कमरे में न चाहते हुए भी तेज तेज कामुक सीत्कार गूंज उठी।


एक बड़ी चादर के अंदर महेन्द्र और नीलम एक दूसरे से गुथे पड़े थे, पूरा बदन दोनों का ढका हुआ था बस पैर और मुँह बाहर थे, महेन्द्र के लंड से वीर्य की एक मोटी धार झटके ले लेकर कई बार निकली और नीलम की प्यासी बूर को भरने लगी, महेन्द्र जोर जोर से हाँफता हुआ, नीलम के ऊपर ढेर हो गया, नीलम ने उसे किसी बच्चे की तरह दुलारते हुए अपने आगोश में भर लिया और हौले हौले उसकी पीठ सहलाने लगी, अपने अंदर का सारा लावा नीलम की प्यासी बूर में उड़ेलने के बाद महेन्द्र धीरे धीरे शांत हुआ।


अब नीलम और महेन्द्र दोनों को ये तो पता था कि बाबू कमरे में मौजूद हैं, और बिरजू को भी पता था कि महेन्द्र उसकी बेटी की बूर में झड़ चुका है।


उपाय के नियम के अनुसार कुछ देर शांत पड़े रहने के बाद अब महेन्द्र धीरे धीरे अपना हल्का सा मुरझाया लंड नीलम की बूर में पेलने लगा, नीलम को अब और मस्ती चढ़ने लगी और वो जानबूझ कर सिसकने लगी, महेन्द्र लगातार लंड बूर में पेलने लगा, बूर एकदम गीली थी, महेन्द्र के वीर्य से लबालब भरी हुई थी।


इधर बिरजू अपनी धोती खोलकर पलंग पर रख देता है और पूरा नंगा हो जाता है वो पलंग पर चढ़कर बिल्कुल महेन्द्र के पीछे आ जाता है, नीलम और महेन्द्र का बदन तो चादर में ढका हुआ था, नीलम ने अपने दोनों पैर फैलाकर अब हवा में उठा लिए थे, पलंग पर बिरजू के चढ़ने से पलंग एक बार फिर चरमरा गई और नीलम और महेन्द्र को बिरजू के एकदम करीब आने से एक तेज सनसनाहट का अहसाह हुआ, बिरजू नीलम के दोनों पैरों के बीच महेन्द्र के पीछे पूरा नंगा अपना दैत्याकार काला लन्ड हाँथ में लिए बैठा था, वो सब कुछ बिल्कुल उपाय के अनुसार करना चाहता था कहीं कोई चीज़ छूट न जाये, नीलम और महेन्द्र भी बिल्कुल वैसा ही कर रहे थे पर शर्म और लज़्ज़ा से उनका बुरा हाल था। महेन्द्र लगातार अपना लंड नीलम की बूर में अंदर बाहर कर रहा था उसकी गाँड़ ऊपर नीचे हिलती हुई गुप्प अंधेरे में भी दिख रही थी, बूर वीर्य से लबालब भरी होने की वजह से कमरे में फच्च फच्च की लगातार गूंज रही थी।


अब महेन्द्र का लन्ड भी अपने ससुर को बिल्कुल ठीक अपने पीछे मौजूद होने से एक अजीब रोमांच में सख्त होने लगा की तभी नीलम को अपनी बूर की गहराई में झनझनाहट महसूस हुई उसे लगा कि अब वो झड़ जाएगी तभी उसने जोर से कहा- अब बस....अब रुक जाओ।


(ये इशारा था महेन्द्र को, की वो अब उपाय के अनुसार हट जाय, महेंद्र और बिरजू दोनों समझ गए कि नीलम झड़ने की राह पर आ चुकी है)


महेन्द्र ने पक्क़ से वीर्य से सना हुआ खड़ा लंड नीलम की वीर्य से भरी लबालब बूर में से निकाला और चादर के अंदर से निकलकर बगल में पड़ा एक दूसरा चादर ओढ़ते हुए नीलम के बायीं ओर पलंग पर लेटकर अपने खड़े लंड पर लगे वीर्य को चादर में ही पोछने लगा।


इधर नीलम ने झट से अपने दोनों पैर फिर से फैला लिए हालांकि उसने अपने बदन को पूरा चादर से ढका हुआ था, बिरजू पोजीशन बनाकर हाहाकारी मूसल जैसा काला लंड खोले उसकी दोनों टांगों के बीच बैठ गया और धीरे से बोला- मेरी बेटी.....मेरी बच्ची


नीलम शर्म से कुछ नही बोली और तेज तेज सांसें लेने लगी।


बिरजू ने अंधेरे में फिर बोला- नीलम.....मेरी बच्ची


नीलम बहुत धीरे से- हाँ बाबू


बिरजू- आखिर वो पाप करने का वक्त आ ही गया न, मुझे माफ़ कर देना बेटी।


नीलम- ऐसे न बोलो बाबू......बहुत शर्म आ रही है मुझे।


बिरजू- नीलम मेरी बच्ची......तू मेरी प्यारी बच्ची होने के साथ साथ एक यौवन से भरपूर स्त्री भी है और मैं सगा पिता होने के साथ साथ एक पुरुष भी हूँ, वैसे तो एक पुरुष जब एक यौवना स्त्री को देखता है या उसके बारे में सोचता है तभी उसके मन मे संभोग की इच्छा जागृत हो जाती है पर यहां मेरे और तेरे बीच सगे पिता पुत्री का जो रिश्ता है वो मुझे उत्तेजना के उस चरम पर नही जाने दे रहा जिससे एक सफल यौन संबंध स्थापित हो पाए और हम एक सफल संभोग करते हुए चरम सुख की प्राप्ति करें। ये पवित्र रिश्ता बीच में आड़े आ रहा है मेरी बच्ची। एक पिता का अपनी बेटी के साथ यौन संबंध बनाना महापाप है शायद यह सोच मुझे उत्तेजित होने से रोक रही है, और जब तक एक पुरुष अच्छे से उत्तेजित न हो वो सफल यौन संबंध कैसे बना पायेगा और सफल सभोग कैसे कर पायेगा, तू इस सोच के खंडित कर दे मेरी बच्ची।


नीलम बहुत लजाते हुए- मेरे बाबू.....एक बेटी होने के नाते मुझे बहुत लज़्ज़ा आ रही है पर मैं नही चाहती कि मेरे बाबू अपने दिए वचन को पूरा न कर पाएं और मेरी इच्छा अधूरी रह जाये, और उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचे, इसलिए आप ही मुझे बताइए कि आप पूर्ण रूप से कैसे उत्तेजित होंगे और में आपके आदर्श सोच को कैसे खंडित करूँ।


बिरजू कुछ देर चुप रहा फिर बोला- जब तक मैं तेरी महकती हुई जवान योनि नही देख लेता मुझे चरम उत्तेजना नही आएगी बेटी, एक आमंत्रित करती हुई योनि देखने के बाद ही एक पुरुष के अंदर मान मर्यादा की दीवार टूटती है मेरी बच्ची और वो रिश्ते नाते तक भूल जाता है, इतना तो तू समझ ही सकती है और जबतक ये पवित्र रिश्ते की दीवार नही गिरेगी हम उस कार्य को अंजाम नही दे सकते।


नीलम- बाबू......


बिरजू- हां मेरी बच्ची......मुझे अपना यौवन दिखाना होगा तुझे.......अपनी महकती हुई योनि दिखानी होगी आज अपने बाबू को।


नीलम सच में शर्मा गयी, क्योंकि महेंद्र भी एकदम बगल में चादर ओढ़े लेटा सब सुन रहा था उसका लंड भी लोहे की तरह दुबारा सख्त हो चुका था अपने ससुर की बातें सुनकर।


नीलम कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे से शर्माते हुए बोली- बाबू जी तो फिर अपनी आंखें बंद कीजिए पहले......मैं धीरे से दिखती हूँ आपको अपनी योनि, आपकी अपनी ही सगी बेटी की योनि और आप भी उधर मुँह कर लीजिए (नीलम ने महेन्द्र को कहा तो महेन्द्र ने करवट बदलकर मुँह चादर में ढककर पलटकर लेट गया)


बिरजू ने अंधेरे में आंखे बंद की नीलम ने चादर को ऊपर कमर तक खींचकर अपनी मांसल जांघे बड़ी ही मादक अदा से खोल दी जिससे उसकी कमसिन रसीली बूर की फांके फैल गयी और बूर उभरकर बाहर की तरफ आ गयी, नीलम ने फिर शर्माते हुए टॉर्च उठायी और उसको अंधेरे में एकदम अपनी बूर के ऊपर लाकर जला दी।


बिरजू आँखे फाड़े अपनी सगी शादीशुदा बेटी की दामाद के वीर्य से भरी गीली बूर को देखकर मानो पागल ही हो गया, और बोला- आह मेरी बच्ची क्या योनि है तेरी, बहुत नरम और रसीली है ये तो और तेरी जांघे कितनी मोटी मोटी हैं मेरी बच्ची मेरी बेटी?


नीलम शर्म के मारे पानी पानी हो गयी


क्या बूर थी नीलम की, कितनी गीली हो रखी थी, दोनों फांके, फांकों के बीच मे तना हुआ भगनासा जो कि फूलकर लगभग अलग ही चमक रहा था, गीले गीले फांक फैलने से उनके बीच वीर्य के दो तीन तार बन गए थे, काले काले बालों से घिरी लगभग एक बित्ता लंबी बूर, जांघे फैलने से लगभग दोनों फांक खुल गए थे और अंदर का गुलाबी छेद जिसमे से महेन्द्र का वीर्य अब भी बहकर बाहर आ रहा था बरबस ही जल्द से जल्द लंड डालने के लिए ललचा रहा था। नीलम ने चुपके से अपना बायां हाँथ नीचे लेजाकर अपनी दो उंगलियों से बूर की फाँकों को अच्छे से चीरकर उसका गुलाबी गुलाबी रसीला छेद अपने बाबू को दिखाकर उनको और ललचाया और फिर अपने बूर के दाने को रगड़कर उनको जल्दी से जल्दी अपनी सगी शादीशुदा बेटी की बूर में अपना लंड डालने की विनती सी की और जमकर चोदने का इशारा किया।


बिरजू सच में आज नीलम की बूर देखकर वासना में दहाड़ उठा, अभी कल ही सारी रात इसी बूर को चोदा था पर न जाने क्यों आज अलग ही नशा चढ़ गया उसका लन्ड अपने पूरे ताव में आ गया, नीलम से झट से टॉर्च बंद की और बगल में रख दी वो समझ गयी कि अब उसके बाबू उसे रौंद डालेंगे उसने जिस तरीके से अपने बाबू को ललचाया था वो सच में आग लगा देने वाला था, बिरजू ने गरजते हुए जल्दी से अपने दहाड़ते लंड के मोटे सुपाड़े पर से चमड़ी खींचकर पीछे की और सीधे हाँथ से लंड को थामकर अपनी बेटी के मखमली गुदाज बदन पर चढ़ गया, नीलम ने भी झट से अंधेरे में अपने दोनों पैर फैलाकर अपने मनपसंद पुरुष की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया और खुद ही अपनी विशाल गुदाज गाँड़ उठा कर अपने सपनो का पसंदीदा लौड़ा अपनी बूर की असीम गहराई में उतरवाने के लिए लपकने लगी, बिरजू ने जल्दी से उसपर झुकते हुए एक हाँथ को नीचे लेजाकर उसकी बूर की दोनों फांकों को चीरा और दूसरे हाँथ से 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा काले नाग जैसे लंड का फूला हुआ छोटी सी गेंद जैसा सुपाड़ा उसकी बूर की कमसिन से गुलाबी छेद पर रखा, गरम गरम सुपाड़े की छुवन अपने बूर की छेद पर महसूस कर नीलम हल्का सा सिसक गई, महेन्द्र ने भी इस सिसकन को भांप लिया कि लंड का सुपाड़ा बूर की छेद पर रखा जा चुका है, बिरजू ने वासना में चिंघाड़ते हुए "ओह मेरी बेटी मुझे माफ़ कर देना" अपना समूचा लंड एक ही बार में गनगना के बूर की अनंत गहराईयों में उतार दिया। नीलम इतनी जोर से सीत्कारी की उसकी आवाज आंगन तक गयी,
नीलम- "आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहहहहहहहहहहहह.........बबबबबबाबाबाबाबाबूबूबू बूबूबूबूबूबूबूबूबूबूबू............... मेरीबूबूबूबूबूबूररररररर..........मर गयी दैय्या............हाय.......अम्मा............


धक्का इतना तेज था कि नीलम की दोनों जांघे अच्छे से फैल गयी थी और उसका बदन लगभग एक फुट ऊपर को सरक गया दोनों चूचीयाँ बुरी तरह हिल गईं, दोनों पैर हवा में ऊपर को उठ गए, दर्द से उसका मुँह खुल गया और वो बुरी तरह तड़प उठी, एक ही बार में उसके बाबू का काला लंड बूर की गहराई को चीरता हुआ उस जगह पर जा पहुंचा जिसके लिए नीलम कब से तरस रही थी, तेज तेज सिसकारियां लेते हुए उसकी साँसे फूलने लगी, पर न जाने क्यों उसे बहुत अच्छा लगा।


महेन्द्र भी समझ गया कि उसकी पत्नी की बूर में उसके ही सगे पिता का लंड समा चुका है, एक पिता का मूसल जैसा लन्ड अपनी ही शादीशुदा बेटी की कमसिन बूर में जड़ तक घुस चुका है, एक पिता और बेटी के बीच एक दर्दभरा रसीला यौनसंबंध कायम हो चुका है, उसका लंड जोश के मारे चिंघाड़ने लगा कि कैसे उसकी पत्नी उसी के बगल में लेटकर, उसकी मौजुदगी में ही अपने सगे पिता से चुद रही है और वो भी अपनी मर्ज़ी से........ये बात वाकई में उत्तेजना से लंड की नसें तक को फाड़ देने वाली थी, ये बात सच है कि लंड और बूर का कोई रिश्ता नही होता, महेन्द्र ने अंधेरे में धीरे से चादर में से मुँह निकाल कर दोनों बाप बेटी को देखने की कोशिश की तो देखकर उसका मुँह खुला का खुला रह गया।


महेन्द्र ने चुपके से देखा कि कैसे उसके ससुर ने अपनी बेटी को दबोच रखा है जैसे कोई शेर किसी कमसिन हिरन के बच्चे को दबोच के रखता है, दरअसल बिरजू पूरी तरह नीलम के ऊपर चढ़ गया था और उसका लन्ड जड़ तक नीलम की बूर में समाया हुआ था, नीलम तड़पती मचलती हुई बिरजू के नीचे सिसकते हुए पड़ी थी, थोड़ी देर चुप शांत पड़े रहने के बाद महेन्द्र ने जो देखा वो देखकर वो सन्न रह गया, नीलम ने अंधेरे में हल्का सा सिसकते हुए अपने दोनों हाँथ अपने बाबू की पीठ पर ले गयी और धीरे धीरे प्यार से सहलाने लगी, फिर उसने प्यार से अपने बाबू के बालों को सहलाया और धीरे धीरे दोनों हाँथ कमर से नीचे गाँड़ पर ले गयी और अपने बाबू की गाँड़ को अपनी बूर की तरफ बड़े प्यार से कई बार दबाया और दबाकर ये इशारा किया कि उसे उनका लन्ड अत्यधिक पसंद आया, इसका मतलब ये था कि बाबू आपका लंड मेरे पति के लंड से कहीं ज्यादा आनंददायक और रसीला है और मुझे यह भा गया, इतना ही नही नीलम ने अपने बदन को और मोड़कर अपने हाँथ को और नीचे लेजाकर सिसकते हुए अपने बाबू के दोनों बड़े बड़े लटकते हुए आंड मस्ती में भरकर हल्का हल्का कराहते हुए सहलाने लगी, ये एक स्त्री का अपना मनपसंद पुरुष प्राप्त करने के बाद अपनी खुशी जाहिर करने का तरीका था कि उस पुरुष का साथ उसका लंड उसे स्वीकार है, वो उससे चुदना चाहती है।

महेन्द्र ये देखकर एक अजीब सी गुदगुदी अपने अंदर महसूस करने लगा और चादर के अंदर ही अपना लंड हल्का हल्का हिलाने लगा, न जाने कौन सा आनंद उसे अपनी ही पत्नी को अपने पिता से चुदवाते हुए देखकर मिल रहा था।

महेन्द्र ने फिर देखा कि कैसे बिरजू ने नीलम के इस तरह उसे कबूल करने पर, उसके लंड की लज़्ज़त को स्वीकार करने पर, अपना आधा लंड बूर में से निकाल कर फिर दुबारा गच्च से बूर में घुसेड़ दिया तो इस बार नीलम के मुँह से न चाहते हुए भी निकल ही गया- ओह बाबू.....आपका लंड.....जरा धीरे घुसाइये।

आखिर नीलम भी कब तक चुप रहती वासना की आग में वो भी कब से जल रही थी

बिरजू ये सुनकर नीलम को बेताहाशा चूमने लगा और नीलम जोर जोर कराहने सिसकने लगी, नीलम भी अपने बाबू के सर को पकड़कर दनादन जहां तहां चूमने लगी, काफी देर तक दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, नीलम से रहा नही गया तो उसने कह ही दिया- बाबू आप बहुत अच्छे हो।

बिरजू- आह मेरी बच्ची तू भी बहुत रसीली है......बहुत रसीली, ऐसा सुख मुझे आजतक नही मिला।

बिरजू का समूचा लन्ड महेन्द्र के वीर्य से सन चुका था।

नीलम ने धीरे से सराहा- बाबू

बिरजू- हाँ मेरी बच्ची

नीलम- अपना वो बहुत मोटा और लंबा है

(नीलम ने ये जानबूझकर महेन्द्र को सुनाने के लिए कहा)

बिरजू- वो क्या मेरी बेटी?

नीलम ने कराहते हुए कहा- आप समझ जाइये न बाबू?

बिरजू- मुझे नही समझ आ रहा तू बता न मेरी बच्ची।

नीलम ने कुछ नही बोला तो बिरजू ने दुबारा पूछा- बोल न नीलम....मेरी प्यारी बच्ची......बाबू का क्या अच्छा है।

नीलम - वो

बिरजू ने लन्ड से एक गच्चा बूर में मारा तो नीलम फिर कराह उठी और बिरजू बोला- बोल न बेटी.......तेरे मुँह से सुनकर ही शुरू करूँगा।

नीलम ने फिर शर्माते हुए बोला- आपका लंड

बिरजू- हाय मेरी बच्ची.......सच

नीलम- हाँ बाबू......बहुत रसीला है.......उसका आगे का भाग....उसका मुँह कितना चिकना है और बड़ा है इस वक्त मेरी बूर में कितने अंदर तक घुसा हुआ है।

बिरजू- तेरी वो भी तो कितनी रसीली और नरम नरम है।

नीलम - वो क्या बाबू?

बिरजू- वही जहां से मेरा नाती पैदा होगा?

नीलम- कहाँ से पैदा होगा बाबू.....बोलो न

बिरजू- मेरी बच्ची की बूर से, मेरी बेटी की चूत से।

नीलम ये सुनकर मस्ती में मचल गयी और बिरजु को "ओह मेरे बाबू" अपने मेरी इच्छा पूरी कर दी, करो न बाबू अब

महेन्द्र ने देखा कि कैसे उसके ससुर ने अपनी बेटी की चूचीयों पर से चादर हटा के उसको निवस्त्र कर दिया और नीलम ने रात के अंधेरे में उनका पूरा साथ दिया, महेन्द्र की आंखों के सामने अंधेरे में भी नीलम की दोनों विशाल चुचियाँ जोश के मारे तनी हुई थी अंधेरे में उनकी तनी हुई आकृति देखकर, उनका फूला हुआ आकार देखकर महेन्द्र का लंड मारे जोश के तन्नाया हुआ था, दोनों निप्पल कितने कड़क हो चुके थे ये साफ दिख रहा था, और अब कितनी बेशर्मी से नीलम खुद अपनी दायीं चूची को पकड़कर कराहते हुए अपने सगे बाबू के मुँह में चूसने के लिए दे रही थी।

बिरजू पागलों की तरह अपनी सगी बिटिया की मदमस्त फूली फूली गुदाज चूचीयों को मुँह में भर भर के बारी बारी पीने लगा और नीलम जोर जोर से मचलते हुए उन्हें बड़े प्यार से उनका सर सहलाते हुए अपनी चूचीयों पर दबाने लगी, नीलम खुलकर अब सिसकने लगी थी, तेज तेज अपने बाबू के सर को और पीठ को सहलाते हुए उन्हें बारी बारी से अपनी चूचीयाँ परोस परोस के निप्पल पिलाने लगी, महेंद्र ने चुपके से साफ देखा कि कैसे नीलम ने रुककर अपनी एक चूची अपने हांथों में ली और कितने प्यार से अपनी बाबू के मुँह में डाल दी।

इतना जोश महेन्द्र को अपने जीवन में कभी नही चढ़ा था, एक सगे बाप बेटी का मिलन वो अपनी आंखों से देख रहा था और न जाने क्यों उसे ये रोमांचित कर रहा था।

बिरजु नीलम की चूचीयों को खूब जोर जोर से कराहते हुए दोनों हांथों से दबाने मसलने लगा और दोनों पलंग पर एक दूसरे को बाहों में लिए पलटने लगे, नीलम से अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो गया तो उसने आखिर बिरजू से धीरे से कहा- बाबू

बिरजू- हाँ मेरी बच्ची

नीलम- पेलिये न अब......अब चोद दीजिए मुझे.......अपनी बच्ची को

बिरजू ये सुनकर फिर वासना से और भर गया और उसने बगल में रखा तकिया उठाया और उसको नीलम की गाँड़ के नीचे लगाने लगा नीलम ने अच्छे से गाँड़ उठा कर पूरा सहयोग किया।

नीलम की गाँड़ ऊपर उठने से बूर और ऊपर उठकर ऊपर को उभर गयी फिर बिरजू ने कस के एक तेज धक्का मारा तो नीलम दर्द से सिरहते हुए बोली- बस बाबू.....बहुत अंदर तक जा चुका है......अब चोदिये मुझे.....बर्दाश्त नही हो रहा है मुझे.....मर जाउंगी मैं........मेरी प्यास बुझा दीजिए........तृप्त कर दीजिए अपनी बच्ची को अपने लन्ड से।

नीलम का इतना कहना था कि बिरजु ने अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर नीलम की चौड़ी गाँड़ के दोनों मांसल पाटों को थाम कर हल्का सा और उठा लिया जिससे नीलम का बदन अब किसी धनुष की तरह मुड़ गया था, पर उसे मजा बहुत आ रहा था, तेज दर्द में भी असीम सुख की अनुभूति उसे हो रही थी।

बिरजू ने नीलम के होंठों को चूमते हुए धीरे धीरे बूर में धक्का मारना शुरू किया, नीलम ने भी अपने बाबू के होंठ चूसते हुए कस के उन्हें बाहों में भरकर अपने पैरों को अच्छे से उनकी कमर से लपेट दिए।

अभी धीरे धीरे ही बूर में धक्के लग रहे थे कि इतने से ही नीलम को असीम आनंद आने लगा और वो सातवें आसमान में उड़ने लगी, उसे अपनी बूर में अपने ही सगे पिता के लन्ड का आवागमन इतना प्यारा लग रहा था कि वो सबकुछ भूलकर लन्ड में ही खो गयी, लन्ड के ऊपर फूली हुई मोटी मोटी नसें कैसे बूर की अंदरूनी मांसपेशियों से रगड़ खा रही थी, कैसे उसके बाबू के लन्ड का मोटा सा सुपाड़ा बार बार बूर की गहराई में अंदर तक बच्चेदानी पर ठोकर मारकर उसे गनगना दे रहा था, कैसे उसके बाबू चोदते वक्त बीच बीच में अपनी गाँड़ को गोल गोल घुमा घुमा कर लन्ड को आड़ा तिरछा बूर में कहीं भी पेल दे रहे थे जिससे नीलम जोर से सिसक जा रही थी।

बिरजू अब थोड़ा तेज तेज धक्के मारने लगा, नीलम का समूचा बदन तेज धक्कों से हिल जा रहा था, नीलम की आंखें असीम आनंद में बंद थी और वो परमसुख की अनुभूति और रसीले धक्कों की कायल होकर " आह.... बाबू....ऊई मां.....उफ़्फ़फ़फ़.....आह.....ऐसे ही बाबू........तेज तेज बाबू........पूरा पूरा डालो न........हाँ ऐसे ही........अपने दोनों हांथों को मेरी पीठ के नीचे ले जाकर कस के आगोश में लो न बाबू मुझे.........हाँ ऐसे ही.......गोल गोल घुमा के गच्च से पेलो न बूर में.. ....हाँ बिल्कुल ऐसे ही..........आआआआहहहह.......और पेलो बाबू....ऐसे ही........मारो मेरी चूत बाबू.......अपनी बच्ची की चूत मारो......आखिर चूत तो मारने के लिए ही होती है........तेज तेज करो.........कितना अंदर तक जा रहा है अब आपका लंड........... मेरी बच्चेदानी को हर बार चूम कर आ रहा है मेरे सपनों का लन्ड.........चोदो बाबू मुझे......ऐसे ही.......हां..... ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई......... मां....... कितना तेज धक्का मारा इस बार.......थोड़ा धीरे बाबू........हाय मेरे बाबू।


अत्यधिक जोश में नीलम ऐसे ही बोले जा रही थी, अब वो बिल्कुल खुल चुकी थी उसे अब ये भी होश नही था कि बगल में महेंद्र लेटा हुआ चादर के अंदर से सब देख रहा है, और खुद महेन्द्र नीलम को अपने पिता से चुदवाते हुए देखकर अपना लन्ड हिलाकर एक बार और झड़ चुका था।

बिरजू बीच बीच में रुककर अच्छे से अपनी गाँड़ को गोल गोल घुमाकर अपने मोटे लन्ड को बूर में गोल गोल बूर के किनारों पर रगड़ने की कोशिश करता था जो नीलम को बहुत पसंद था वो अपने बाबू के इसी हरकत की कायल थी, जब भी बिरजू ऐसा करता नीलम जोर जोर से अपनी गाँड़ नीचे से उछाल उछाल के अपने बाबू की ताल में ताल मिलाती और रसभरी चुदाई का भरपूर मजा लेती।

बिरजू का लन्ड इतना जबरदस्त नीलम की बूर को चीरकर उसमे घुसा हुआ था कि नीलम की बूर किसी रबड़ के छल्ले की तरह लन्ड के चारों ओर फैलकर चिपकी हुई थी।

बिरजू के धक्के अब बहुत तेज हो चले थे पूरी पलंग हल्का हल्का चरमरा रही थी, जहां पहले शर्म और लज़्ज़ा कि वजह से बड़ी मुश्किल से सिसकियां निकल रही थी वहीं अब पूरा कमरा तेज तेज चुदाई के आनंद भरे सीत्कार से गूंज उठा था, चुदाई की फच्च फच्च की आवाज वासना को और बढ़ा दे रही थी, तेज तेज धक्कों से दोनों बाप बेटी की अंदरूनी जाँघों की टकराने की थप्प थप्प की आवाज अलग ही आनंद दे रही थी।

इतनी तेज तेज वहशीपन से भी बूर को चोदा जाता है ये नीलम आज महसूस कर रही थी और इस वहशी और जंगलीपन चुदाई का तो अनोखा ही मजा था, और बगल में लेटा कोई देख रहा है ये रोमांच अलग ही सुरसुरी बदन में पैदा कर रहा है।

बिरजू अब पागलों की तरह बहुत तेज तेज हुमच हुमच कर अपनी कमसिन सी बेटी की बूर में अपना वहशी लन्ड पेलने लगा और नीलम को इससे अथाह आनंद आने लगा, नीलम जोर जोर से कराहते और हाय हाय करते हुए नीचे से अपनी गाँड़ तेज तेज उछालने लगी, दोनों बाप बेटी अब मदरजात नंगे पलंग पर एक दूसरे में समाए हुए थे, चादर अस्त व्यस्त होकर बदन से हट चुका था, बाहर घनघोर बारिश होने लगी थी, काफी देर तक बिरजू दनादन अपनी बेटी की चूत मारता रहा, तभी तेज बिजली कड़की और एक बार फिर पूरे कमरे में रोशनी फैल गयी, एकाएक नीलम और बिरजू ने एक दूसरे को देखा और दोनों वासना में मुस्कुरा उठे नीलम ने मारे शर्म के अपना चेहरा अपने बाबू के सीने में छुपा लिया, तभी न जाने क्यों बिजली कई बार चमकी, कभी धीरे कभी तेज, कभी बहुत तेज, इस दौरान नीलम और बिरजू ने एक दूसरे को आपस मे चुदाई करते हुए अच्छे से देखा और नीलम बार बार शर्मा गयी, बिरजू कस कस के अपनी शादीशुदा बेटी की चूत मारते हुए उसके होंठों को अपने मुंह में भरकर पीने लगा, नीलम के बदन में एक सनसनाहट सी होने लगी, उसकी रसीली बूर की गहराई में तरंगे उठने लगी, किसी का होश नहीं रहा उसे अब, नीचे से खुद भी गाँड़ उछाल उछाल के अपने पिता से अपनी चूत मरवा रही थी, तभी बिरजू ने अपनी जीभ नीलम के मुँह में डाली और जैसे ही तेज तेज धक्के चूत में मारते हुए अपनी जीभ नीलम के मुंह में घुमाने लगा नीलम जोर से कराहती हुई गनगना के अपनी गाँड़ को ऊपर उठाते हुए अपनी बूर में अपने बाबू का लंड पूरा लीलते हुए झड़ने लगी, उसकी बूर से रस की धार किसी बांध की तरह टूटकर बहने लगी, उसकी बूर अंदर से लेकर बाहर तक संकुचित होकर काम रस छोड़ने लगी, उसकी बूर की एक एक नरम नरम मांसपेशियां मस्ती में सराबोर होकर मानो अपने बाबू के लन्ड से लिपटकर उसका धन्यवाद करने लगीं, गनगना कर वो बहुत देर तक अपने बाबू से लिपटकर हांफती रही, काफी देर तक उसकी बूर झड़ती रही, इतना सुख सच में आज पहली बार उसे मिला था। बिरजू का लन्ड अभी भी नीलम की चूत में डूबा हुआ था, वो नीलम को अपने आगोश में लिए बस प्यार से चूमे सहलाये जा रहा था, बिजली अब भी हल्का हल्का कड़क रही थी, बारिश हो रही थी, अब बिरजू से भी बर्दाश्त नही हो रहा था उसके लन्ड की नसें भी मानो जोश के मारे फटी जा रही थी।

थोड़ी ही देर के बाद जब नीलम की उखड़ती साँसे कुछ कम हुई बिरजू ने अपने लंड को अपनी बेटी की चूत से बाहर खींचा और गच्च से दुबारा रसीली चूत में डाल दिया नीलम फिर से गनगना गयी लेकिन अब बिरजू कहाँ रुकने वाला था अपनी बेटी को उसने फिर अपने आगोश में अच्छे से दबोचा और जमकर उसकी चूत मारने लगा नीलम बेसुध सी हल्का हल्का सिसकते हुए अपनी कमसिन सी चूत फिर से अपने बाबू से मरवाने लगी, तेज तेज धक्के मारते हुए अभी दो तीन ही मिनिट हुए होंगे कि बिरजू भी अपनी बेटी की नरम चूत की लज़्ज़त के आगे हार गया और तेज तेज कराहते हुए झड़ने लगा "ओह मेरी बच्ची कितनी मुलायम और नरम चूत है तेरी......आआआआआहहहहह.......इतना मजा आएगा अपनी बेटी को चोदकर........उसकी चूत मारकर......ये कभी सपने में भी नही सोचा था.......आह मेरी बच्ची......चूत इतनी भी नरम और लज़्ज़त भरी होती है आज तेरी चूत मारकर आभास हुआ मेरी बच्ची.......आह

नीलम ने बिरजू को चूमते हुए अपनी बाहों में भर लिया और बिरजू मोटी मोटी वीर्य की गरम गरम धार नीलम की चूत में उड़ेलते हुए उसपर जोर जोर से हांफते हुए लेट गया, नीलम की बूर अपने बाबू के गरम गरम गाढ़े वीर्य से भर गई, नीलम अपने बाबू का गाढ़ा गर्म वीर्य अपनी बूर की गहराई में गिरता महसूस कर गुदगुदा सी गयी, दोनों बाप बेटी अपनी उखड़ी सांसों को काबू करते हुए एक दूसरे को बेताहाशा चूमने लगे, बाहर तेज बारिश लगातार हो रही थी, कभी तेज बिजली चमकती तो दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते, बिरजू ने बड़े प्यार से नीलम के चेहरे को अपने हांथों में लिया और होंठों को चूमते हुए बोला- मेरी बच्ची.......आज कितना अनमोल सुख दिया तुमने अपने पिता को।

नीलम ने भी प्यार से अपने बाबू के होंठों को चूमा और बोली- मेरे प्यारे बाबू.....अपने भी तो अपनी बच्ची को तृप्त कर दिया अपने मोटे लन्ड से।

महेन्द्र चादर में मुंह ढके दोनों को देखता रहा।
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