Update-16
नीलम और बिरजू अपने घर आ जाते हैं, उस वक्त सूर्य भी नही निकला था बिरजू एक बार फिर अपने बिस्तर पे लेट जाता है और उसकी आंख लग जाती है, नीलम घर में जाके कुछ काम करने लगती है और सोचती है कि आज उसको गेहूं धोना है, मां ने बोला था कल ही गेहूं धो देना घर में आटा खत्म हो गया है, गेहूं धो कर छत पे फैला देना धूप में सूखने के लिए।
उसकी माँ थोड़ी बूढ़ी हो गयी थी वो घर का ज्यादा काम नही कर पाती थी, सब जानते थे कि नीलम की माँ की उम्र उसके बाप बिरजू से ज्यादा थी, उनके बाप दादाओ ने उस वक्त आपसी प्यार और जानपहचान होने की वजह से उम्र का अंतर होने पर भी शादी कर दी थी, इसलिए बिरजू अभी काफी जवान हष्टपुष्ट था पर नीलम की माँ ढल गयी थी।
सर्य निकल गया, बिरजू उठा और फ्रेश होकर नीलम से बोला- नीलम बेटी, मैं जरा घास लेने जा रहा हूँ, आज थोड़ी ज्यादा घास लानी होगी, उदय भैया की भैसों के लिए भी लाना होगा, बैल तो वो ले गए हैं, यहां पे जो गाय और भैंस हैं उनके लिए चारा ले कर आता हूँ।
नीलम- हां बाबू ठीक है, पर एक काम करो न, अपने घर के पीछे जो बजरी बोई है न उसमे काफी घास हो गयी है, उसी खेत में से काट लो, दूर न जाओ बाबू, बहुत घास है उसमें।
बिरजू- ठीक है बेटी, जाता हूँ वहीं और घर के पीछे की तरफ खेत में चला जाता है।
नीलम के घर के बिल्कुल पीछे बांस (bambooo) लगाया हुआ था और उसके पीछे खेत था, बांस इतने बड़े और लंबे लंबे थे कि पूरे छत को cross करके ऊपर तक फैले हुए थे।
नीलम ने भी घर में आके गेहूं धोना स्टार्ट कर दिया, धो धो कर बाल्टी में रखकर ऊपर छत पर फैलाने के लिए ले जाने लगी, छत पे पहुंच कर उसने छत पे ही खाट बिछाई और उसपे चादर डाल दिया फिर गेहूं उस खाट पे पलट कर हाँथ से फैलने लगी कि तभी उसको अपने बाबू बिरजू नीचे थोड़ी दूर खेत में घास काटते दिखाई दिए, सूर्य की रोशनी उनपर पड़ रही थी, सांवला बदन चमक रहा था, नीलम गेहूं फैलाना रोक कर बांस की ओट से कुछ देर देखती रही, ऐसा लग रहा था कि वो अपने बाबू की दीवानी हो रही है, प्यार हो रहा है उसे अपने बाबू से ही,
घास काटते हुए बिरजू को जरा भी ये अहसास नही था कि उसी की जवान शादीशुदा बेटी उसे निहार रही है, उस पर आसक्त हो रही है, दिल दे बैठी है वो उसे, कुछ चाहती है वो उससे, किस्मत खुलने वाली है उसकी। बड़े ही लालसा भारी और उम्मीद भारी नजरों से नीलम छुप छुप कर अपने बाबू को ताड़ रही थी, कभी शर्मा कर गेहूं फैलाने लगती कभी रुक कर फिर देखने लगती।
मन में सोच रही थी कि काश उसके बाबू उसकी मंशा जान लेते, कितना मजा आया होगा बीना को उस वक्त जब वो अपने पिता से चुदवा रही थी, क्यों है इतना नशा इस रिश्ते में? और छुप छुप के घर में ही हो तो कितना मजा आ जाये, पर न जाने मेरे बाबू कब ध्यान देंगे की उनकी बेटी अब उनसे क्या चाहती है, मुझे तो अपने ही बाबू से प्यार होता जा रहा है, क्या सोचेगी दुनिया अगर किसी को पता चल गया तो, खैर सोचे जो सोचे मुझे किसी की परवाह नही, भाड़ में जाये मान मर्यादा, बस मेरे बाबू मेरे हो जाएं, ससुराल भी न जाऊं मैं तो फिर, बहाने कर कर के यहीं रहूँगी।
कितना मन कर रहा है मेरा मिलन करने का, कैसे मैं रिझाऊं बाबू को, कैसे बताऊं उन्हें, किससे अपनी मन की व्यथा कहूँ, रजनी भी नही है जाने कब आएगी, लेकिन मैं रजनी से कहूंगी जरूर की वो कोई रास्ता या तरीका बताये, मैं जानती हूं वो इसे गलत नही कहेगी, वो मेरी बचपन की सहेली है, मेरी मन की व्यथा को समझेगी, क्योंकि उस दिन वो भी बीना और शेरु की चुदाई मजे से देख रही थी। अगर वो बाप बेटी के इस मिलन को गलत मानती तो उस दिन बीना और शेरु को चुदाई शुरू करने से पहले ही पत्थर मारकर भगा देती, या खुद उठकर भाग जाती, पर वो देखती रही, इसका मतलब वो इसे गलत नही मानती, हाय! रजनी जल्दी आ जा मेरी सहेली, अब तुझसे कुछ बात करना है मुझे। (मन में ही ये सब सोचे जा रही थी और कभी कभी मुस्कुरा उठती)
न जाने ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे बाबू मेरे मन में उस रूप में बसते जा रहे है, पहले मैं उनको बस पिता की नजर से ही देखती थी पर अब मैं उनमे एक मर्दाना पुरुष ढूंढ रही हूं, ये सब उस दिन बीना और शेरु की चुदाई देखकर ही हुआ है, उन दोनों ने मेरा नजरिया बदल दिया है। काश मेरे बाबू मेरी प्यास बुझा देते। काश! कितना मजा आ जाता, हाय!... काश!
यही सब सोचते हुए वो गेहूं फैलाये जा रही थी, फिर वो नीचे गयी और गेहूं की दूसरी बाल्टी ले आयी, उसने दूसरी खाट डाली और उस पर एक और चादर डाला और गेहूं की बाल्टी खाट पे अभी पलटी ही थी कि उसने अपने बाबू की तरफ देखा।
बिरजू घास काटना छोड़ कर बांस की तरफ आ रहा था, नीलम को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बाबू बांस की तरफ क्या करने आ रहे हैं वो थोड़ा साइड में छिप सी गयी, बांस की ओट थी जिससे बिरजू उसे नही देख सकता था, वहां से बिरजू नीलम को साफ दिखाई दे रहा था, पर बिरजू को नीलम नही दिख सकती थी क्योंकि वो ऊपर छत पर बांस की ओट में थी।
एकाएक बिरजू ने दोनों साइड नजर घुमाई और पीछे देखा की कहीं कोई देख तो नही रहा, पर उसकी नज़र ऊपर नही गयी, फिर एकदम से बैठकर अपनी धोती साइड कर, मोटा, काला और लंबा लंड जो सुस्त अवस्था में भी लगभग 7 इंच लंबा था, बाहर निकाल लिया, नीलम अवाक सी रह गयी अपने ही बाबू का काला विशाल लंड देखकर, नीलम की तो सांसे ही हलक में अटक सी गयी, शर्म से वो लाल हो गयी, हाय दैय्या! बोलकर उसने एक बार इधर उधर देखा कि कहीं कोई मुझे ये देखते हुए न देख ले, फिर उसने छत पे बनी सीढ़ियों की तरफ देखा कि कहीं कोई ऊपर तो नही आ रहा, फिर पीछे होकर बांस की ओट से अपने बाबू का मदहोश कर देने वाला लंड देखने लगी।
बिरजू ने लंड की आगे की चमड़ी को आधा पीछे किया जिससे लंड का आधा सुपाड़ा बाहर दिखने लगा जो कि किसी मध्यम आकार की गुलाबी गेंद जितना बड़ा था।
नीलम मंत्रमुग्ध और बदहवास सी हो गयी, उसकी सांसे उखड़ चुकी थी, वो एक टक बिरजू के लंड को निहार रही थी।
तभी बिरजू ने पेशाब की धार छोड़ दी, और लंड की आगे की चमड़ी को मूतते हुए पूरा पीछे खींच दिया, पूरा का पूरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया, इतना मोटा और बड़ा सुपाड़ा देख नीलम पागल सी हो गयी। धूप में चमकते काले मोटे लंड का हल्का गुलाबी सुपाड़ा गज़ब ही ढा रहा था, छत पर से कुछ दूरी होने पर भी नीलम लंड के आगे का छेद साफ देख पा रही थी और उसमें से निकलती पेशाब की धार ने उसे मदहोश कर दिया, कुछ ही पल में वो पसीने पसीने हो गयी।
बिरजू की इस तरह लंड की चमड़ी पीछे खींचकर पेशाब करने की आदत थी, पर उसकी इस आदत ने आज नीलम को मदहोश कर दिया था। एक तो वो वैसे ही चुदासी थी ऊपर से नियति ने उसे वही लंड दिखा भी दिया जिसके बारे में वो मन में अक्सर सोचती थी कि कैसा होगा, आज नियति ने साक्षात् दिखा ही दिया था कि जैसे कह रही हो ले देख ले अपने बाबू का लंड, यही तुझे अब चोदेगा, यही प्यास बुझायेगा, यही तेरी गहराई में उतरेगा।
पर कब? इसने तो अब प्यास और बढ़ा दी थी, बूर पनिया गयी नीलम की, किसी भी तरह से उसके पति का लन्ड उसके बाबू के लन्ड के आगे टिक नही सकता था।
अपने बाबू का लंड देखकर ही नीलम मचल उठी, मानो वह उसे अपनी बूर की गहराइयों में अंदर तक घुसता हुआ महसूस कर रही हो और शर्म से एक पल के लिए वहीं बैठ गयी, थोड़ी सांसे थमी तो उठी तब तक बिरजू मूत चुका था उसने अपने लंड को हल्का सा दो चार बार हिलाया ताकि पेशाब की बची बूंदें गिर जाएं और मदहोश कर देने वाले लंड को धोती के अंदर कैद कर वापिस घास काटने चला गया।
उसे जरा भी आभास नही हुआ कि उसकी सगी बेटी ने उसका लंड देख लिया है।
नीलम कुछ देर वहीं फिर से बैठ गयी, अपनी सांसों को काबू करती रही, बार बार बाबू का लन्ड नज़रों में आ जाता, कि वो कैसा था कितना बड़ा और मोटा था और उसका खुला हुआ आगे का हिस्सा hhhhhaaaaaiiiiiii.
सोचने लगी कि अब कुछ भी हो वो अपने बाबू को पा के रहेगी, वो ये जानती ही थी कि उसकी माँ अब बूढ़ी हो चली हैं तो बाबू तो प्यासे ही होंगे, और वो तो लंड देखके ही समझ गयी थी कि प्यासा तो है उनका लंड। पानी छोड़ छोड़ के उसकी पूरी पैंटी गीली हो गयी थी पर करे क्या? कैसे भी करके अपने मन को धीरज दिया, समझाया, फिर सोचने लगी आखिर हम बेटियां अपने बाबू को सुख क्यों नही दे सकती, बचपन से लेकर जवानी तक वो पुरुष, पिता के रूप में उसे पलता है, पोषता है, उसकी हर तरह से रक्षा करता है, और जब कभी वो पुरुष यौनसुख के लिए तरसने लगे तो क्या बेटी का फर्ज नही की वो अपनी अनमोल चीज़ (बूर) अपने उस पुरुष को परोस दे जिसने हमेशा उसकी रक्षा की हो, क्या उस चीज़ पर उसका कोई हक नही? क्यों करे वो लोक लाज की फिक्र, आखिर वो उन्ही के अंग से बनी है और वही अंग अगर उसमें मिल गया तो क्या गलत हो जाएगा और अगर हो भी जाएगा तो होता रहे।
यही सब सोच ही रही थी कि उसकी माँ की आवाज उसके कानों में पड़ी जो उसे बुला रही थी, उसने बाल्टी उठायी और सीधा नीचे भाग गई।