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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Nasn

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King is King.....

Wonderful update.....
 
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md ata

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Are bhai aisa kyun bol rahe ho, aap logon se mai sorry bolta hun, aap logon ne to balki intzar hi kiya hai, sorry to mujhe bolna chahiye. Updates aayenge bhai, jarur aayenge.

Thanks for comments
Thanks Bhai jaldi kosis kro Bhai bahut intzar Kiya update ka
 
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FamilylovNPL

आमा चिकुवा म
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Update- 88

दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।

अब आगे---

अगली सुबह सुलोचना उठी तो पूर्वा बिस्तर पर नही थी, उसने दोनो का बिस्तर समेटा और बगल वाली कोठरी में रखकर जैसे ही रसोई की तरफ गयी तो देखा कि पूर्वा रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। पूर्वा अपनी अम्मा को देखकर मुस्कुरा दी और बोली- अम्मा उठ गई आप, देखो आज मैंने जल्दी ही रसोई का काम खत्म कर लिया है, आओ चलो नाश्ता तैयार है।

सुलोचना- अरे तूने मुझे उठाया क्यों नही, आज देख कितना काम है। अकेले अकेले ही कर रही है।

पूर्वा- अम्मा मैंने सोचा कि कल आप महात्मा जी के पास गई थी तो थक गई होंगी इसलिए नही उठाया जल्दी। अच्छा चलो जल्दी आप दातुन कर के आओ।


सुलोचना नित्यकर्म करके आयी और पूर्वा ने नाश्ता निकाला, दोनो नाश्ता करने लगी, पूर्वा ने कहा- अम्मा घी तो आधी मेटी ही रखा है और नारियल भी 40- 50 ही होंगे।

सुलोचना- कोई बात नही पुत्री, भस्मीकरण यज्ञ आज रात शुरू करते हैं, एक दो दिन में उदयराज के पास संदेश पहुँचाती हूँ मैं, बिना मेरे पुत्र और पुत्री की मदद के ये कार्य सम्पन्न नही हो पायेगा।

पूर्वा नाश्ता करते हुए अपनी माँ को देखकर मुस्कुराती जा रही थी।

नाश्ता करके दोनो माँ बेटी यज्ञ के लिए सूखी पीपल की लकड़ियां लेने और घने जंगल की तरफ निकल गए।

रास्ते में चलते चलते पूर्वा ने जिज्ञासा से दुबारा अपनी अम्मा से पूछा- अम्मा, क्या ऐसा वास्तव में इस दुनियां में घटित हो रहा है? हो तो रहा ही है...है न, तभी तो ये बुरी आत्मायें ऐसी स्त्री की खोज में हैं जो ऐसा सोचती है और कर चुकी हैं या कर रही हैं। क्या स्त्री ही सोचती है...पुरुष नही?

सुलोचना अचानक पूर्वा के इस तरह के सवाल पर पहले तो थोडा असहज हो गयी फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली- पाप और पुण्य दोनो का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि।

सब ईश्वर ने ही बनाया है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो ईश्वर की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जान मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, बस यही है इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियां भी कोई चीज़ है पुत्री वो भी ईश्वर के द्वारा ही बनाई हुई हैं, क्या वो इतनी कमजोर हैं कि हर इंसान उनको बड़ी आसानी से जीत लेगा...नही न...अगर ऐसा होता तो हर कोई हिमालय पर बस तपस्या कर रहा होता, ध्यान से सोचो तो सब ईश्वर की बनाई हुई माया है बस, रचा सब ईश्वर ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।

पर पुत्री मैं चाहती हूं कि इस भस्मीकरण यज्ञ को केवल मैं ही अंजाम दूंगी, तू इसे न कर, इसकी विधि सीधे प्रवाह में नही है।

पूर्वा- पर अम्मा अभी कल ही आप कह रही थी कि मेरे बिना यह कैसे संभव होगा? मैं यह जानती हूं और बखूबी समझती हूं कि आप ऐसा क्यों कह रही हो...पर अम्मा बुरी आत्माओं के बीच आपका अकेले रहना मुझे चिंता में डाल रहा है।

सुलोचना- नही पुत्री इसमे चिंता की कोई बात नही, और ऐसा नही है कि तू बिल्कुल ही मेरे साथ नही रहेगी, बस यज्ञ नही करेगी बाकी तो बाहर रहकर एक प्रहरी की भांति मेरी सुरक्षा तो करेगी ही, बस मैं यही चाहती हूं कि अभी शुरुवात के लिए तू मुख्य कार्य नही करेगी, यह मुझे ही करने दे।

पुर्वा- मेरा मन तो नही है अम्मा की मैं यज्ञ में आपको अकेले बैठने दूँ, पर आपकी इच्छा को मैं टाल नही सकती, मैं अच्छी तरह समझ रही हूं कि आपने मुझे क्यों रोका है पर फिर भी यज्ञ के दौरान कहीं भी आप अकेली महसूस करना तो मैं शामिल हो जाउंगी यह बात मैं आपसे पहले ही कह रही हूं।

सुलोचना ने पुर्वा की तरफ देखा तो पुर्वा ने अपने अम्मा का हाँथ अपने हांथों में लेकर हल्का सा दबाते हुए आस्वासन देने के साथ साथ आज्ञा भी मांगी।

सुलोचना- ठीक है पुत्री...अच्छा चल अब जल्दी जल्दी पीपल की लकड़ियां इकट्ठी कर लेते हैं।

दोनो ने ढेर सारी लकड़ियां इकट्ठी की, उसके दो बड़े बड़े बोझ बनाये और सर पर रखकर अपनी कुटिया की तरह आ गयी, दिन का दूसरा पहर भी ढलने को आ गया था।

सुलोचना- पुर्वा..

पुर्वा- हाँ अम्मा

सुलोचना- पर पुत्री बिना किसी संदेश के, बिना किसी खबर के यह कैसे संभव हो सकता है कि तेरे भैया और रजनी यहां एक दो दिन में आ ही जायेंगे, क्या पता उन्हें आने में वक्त लगे? और अगर हम यहां पर अपना यह भस्मीकरण यज्ञ शुरू करेंगे तो इसके समाप्ति के बाद ही वहां जाकर वहां का यज्ञ सम्पन्न करा पाएंगे। और यहां के यज्ञ की समाप्ति तभी हो पाएगी जब संसाधन और यज्ञ से संबंधित पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होगी, अभी तो हमारे पास पर्याप्त सामग्री है भी नही।

पुर्वा- हाँ अम्मा यह बात तो आप सही कह रही हो, हम केवल अनुमान के आधार पर इस यज्ञ को शुरू नही कर सकते पहले पर्याप्त लगने वाली सामग्री को एकत्र करना पड़ेगा, पर इसके लिए तो भैया का होना जरूरी है, और वो जल्द ही तभी आ पाएंगे जब उनतक संदेश पहुचेगा।

सुलोचना- सही कह रही हो बेटी, पर कैसे करें?

पुर्वा- अम्मा, मैं सिद्ध मंत्र के द्वारा ध्यान लगा कर देखती हूँ, क्या पता कुछ रास्ता दिखाई दे।

सुलोचना- ठीक है बेटी तू कोशिश कर..तब तक मैं, यज्ञ वाली कोठरी को यज्ञ के लिए तैयार करती हूं।

सांझ हो चली थी पुर्वा ने वहीं नीम के पेड़ के नीचे आसान लगाया और गंगाजल से आसान को स्वक्छ किया, पीपल का एक पत्ता लेकर उसपर कुछ हवन सामग्री रखकर उसे जला दिया फिर अपने सिद्ध किये हुए मंत्रो को पढ़ने लगी, कुछ वक्त मंत्र पढ़ने के बाद उसने ध्यान लगाया और उसे कुछ दिखाई दिया, उसने झट से आंखे खोली और सुलोचना को पुकारा।

पुर्वा- अम्मा

सुलोचना तुरंत कोठरी से बाहर आई- हाँ बेटी क्या हुआ, कुछ रास्ता समझ आया।

पुर्वा- अम्मा..एक तोता है जो इस घने जंगल से दो बार भैया के गांव की तरफ गया है, वो तोता शैतान की ओर से उड़कर उस गांव की तरफ दो बार गया है।

सुलोचना- शैतान की तरफ से।

पुर्वा- हाँ उसी तरफ से

सुलोचना- हो न हो ये कोई बुरी आत्मा ही होगी, जो रूप बदल सकती है, जो तोते का रूप धारण करके उस तरफ गयी हो।

पुर्वा- अम्मा..तो एक काम करते है न आज रात सबसे पहले इसे ही बांध देते हैं, मारने से पहले इसी से संदेश भेजवा देंगे, बांध के रखेंगे तो जाएगी कहाँ, संदेह कह के जैसे ही आएगी उसी समय भस्म कर देना।

सुलोचना मन में सोचने लगी- पर इसको बुलाने के लिए मुझे पहले अनैतिक संभोग के चिंतन में लीन होना होगा, अनैतिक संभोग के विषय में सोचती हुई स्त्री के मन की इच्छा ये आत्माएं जान लेती हैं तभी तो उस स्त्री के पास योनि का अर्क लेने आती हैं, और ये आत्मायें ये भी जान लेती है कि स्त्री किस पुरुष के विषय में सोचकर काम अग्नि में जल रही है, या कल्पनाओं में उसके साथ संभोगरत होकर आनंदित हो रही है, क्या पता ये वहां जाकर मेरे पुत्र के सामने ये बक दे कि मैं क्या सोच रही हूं, तो उदयराज मेरे बारे में क्या सोचेगा, इन आत्माओं का कोई भरोसा तो है नही...कैसे करूँ।

पुर्वा- क्या सोचने लगी अम्मा? क्या यह तरीका ठीक नही।

सुलोचना- नही पुत्री ठीक है...ऐसा ही करते हैं..मैं कोठरी को तैयार कर रही हूं, आज की रात यज्ञ शुरू करते हैं पहला वार उसी बुरी आत्मा को ढूंढकर करेंगे जो तोता बनकर वहां गयी थी, उसको बांधकर उससे ये काम करने के बाद उसको भस्म कर देंगे, जान छूट जाने की लालच में आकर वो वही करेगी जो हम चाहेंगे। तो बाहर की तैयारी कर मैं अंदर तैयार करती हूं।

(सुलोचना ने कह तो दिया कि तोते को दुबारा गुलाम बना कर संदेश पहुचने भेजेंगे पर वो मन ही मन बेचैन भी थी कि कहीं तोते ने उदयराज के सामने बक दिया कि मैं क्या सोच रही थी, क्या सोचकर मैंने उस बुरी आत्मा को अपनी ओर आकर्षित किया था तो उदयराज..मेरा पुत्र मेरे बारे में क्या सोचेगा...खैर जो भी हो देखा जाएगा)
Welcome Back SK Bhai
 

FamilylovNPL

आमा चिकुवा म
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Dear Readers,
Aaj ke liye abhi chhota sa update hai, 1 2 din ke gap par bade updates aayenge. Kahani band nahi hogi, kahani puri hogi.


Thanks all of you
S_Kumar
Thank You So much Brother
 
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Update- 88

दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।

अब आगे---

अगली सुबह सुलोचना उठी तो पूर्वा बिस्तर पर नही थी, उसने दोनो का बिस्तर समेटा और बगल वाली कोठरी में रखकर जैसे ही रसोई की तरफ गयी तो देखा कि पूर्वा रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। पूर्वा अपनी अम्मा को देखकर मुस्कुरा दी और बोली- अम्मा उठ गई आप, देखो आज मैंने जल्दी ही रसोई का काम खत्म कर लिया है, आओ चलो नाश्ता तैयार है।

सुलोचना- अरे तूने मुझे उठाया क्यों नही, आज देख कितना काम है। अकेले अकेले ही कर रही है।

पूर्वा- अम्मा मैंने सोचा कि कल आप महात्मा जी के पास गई थी तो थक गई होंगी इसलिए नही उठाया जल्दी। अच्छा चलो जल्दी आप दातुन कर के आओ।


सुलोचना नित्यकर्म करके आयी और पूर्वा ने नाश्ता निकाला, दोनो नाश्ता करने लगी, पूर्वा ने कहा- अम्मा घी तो आधी मेटी ही रखा है और नारियल भी 40- 50 ही होंगे।

सुलोचना- कोई बात नही पुत्री, भस्मीकरण यज्ञ आज रात शुरू करते हैं, एक दो दिन में उदयराज के पास संदेश पहुँचाती हूँ मैं, बिना मेरे पुत्र और पुत्री की मदद के ये कार्य सम्पन्न नही हो पायेगा।

पूर्वा नाश्ता करते हुए अपनी माँ को देखकर मुस्कुराती जा रही थी।

नाश्ता करके दोनो माँ बेटी यज्ञ के लिए सूखी पीपल की लकड़ियां लेने और घने जंगल की तरफ निकल गए।

रास्ते में चलते चलते पूर्वा ने जिज्ञासा से दुबारा अपनी अम्मा से पूछा- अम्मा, क्या ऐसा वास्तव में इस दुनियां में घटित हो रहा है? हो तो रहा ही है...है न, तभी तो ये बुरी आत्मायें ऐसी स्त्री की खोज में हैं जो ऐसा सोचती है और कर चुकी हैं या कर रही हैं। क्या स्त्री ही सोचती है...पुरुष नही?

सुलोचना अचानक पूर्वा के इस तरह के सवाल पर पहले तो थोडा असहज हो गयी फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली- पाप और पुण्य दोनो का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि।

सब ईश्वर ने ही बनाया है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो ईश्वर की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जान मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, बस यही है इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियां भी कोई चीज़ है पुत्री वो भी ईश्वर के द्वारा ही बनाई हुई हैं, क्या वो इतनी कमजोर हैं कि हर इंसान उनको बड़ी आसानी से जीत लेगा...नही न...अगर ऐसा होता तो हर कोई हिमालय पर बस तपस्या कर रहा होता, ध्यान से सोचो तो सब ईश्वर की बनाई हुई माया है बस, रचा सब ईश्वर ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।

पर पुत्री मैं चाहती हूं कि इस भस्मीकरण यज्ञ को केवल मैं ही अंजाम दूंगी, तू इसे न कर, इसकी विधि सीधे प्रवाह में नही है।

पूर्वा- पर अम्मा अभी कल ही आप कह रही थी कि मेरे बिना यह कैसे संभव होगा? मैं यह जानती हूं और बखूबी समझती हूं कि आप ऐसा क्यों कह रही हो...पर अम्मा बुरी आत्माओं के बीच आपका अकेले रहना मुझे चिंता में डाल रहा है।

सुलोचना- नही पुत्री इसमे चिंता की कोई बात नही, और ऐसा नही है कि तू बिल्कुल ही मेरे साथ नही रहेगी, बस यज्ञ नही करेगी बाकी तो बाहर रहकर एक प्रहरी की भांति मेरी सुरक्षा तो करेगी ही, बस मैं यही चाहती हूं कि अभी शुरुवात के लिए तू मुख्य कार्य नही करेगी, यह मुझे ही करने दे।

पुर्वा- मेरा मन तो नही है अम्मा की मैं यज्ञ में आपको अकेले बैठने दूँ, पर आपकी इच्छा को मैं टाल नही सकती, मैं अच्छी तरह समझ रही हूं कि आपने मुझे क्यों रोका है पर फिर भी यज्ञ के दौरान कहीं भी आप अकेली महसूस करना तो मैं शामिल हो जाउंगी यह बात मैं आपसे पहले ही कह रही हूं।

सुलोचना ने पुर्वा की तरफ देखा तो पुर्वा ने अपने अम्मा का हाँथ अपने हांथों में लेकर हल्का सा दबाते हुए आस्वासन देने के साथ साथ आज्ञा भी मांगी।

सुलोचना- ठीक है पुत्री...अच्छा चल अब जल्दी जल्दी पीपल की लकड़ियां इकट्ठी कर लेते हैं।

दोनो ने ढेर सारी लकड़ियां इकट्ठी की, उसके दो बड़े बड़े बोझ बनाये और सर पर रखकर अपनी कुटिया की तरह आ गयी, दिन का दूसरा पहर भी ढलने को आ गया था।

सुलोचना- पुर्वा..

पुर्वा- हाँ अम्मा

सुलोचना- पर पुत्री बिना किसी संदेश के, बिना किसी खबर के यह कैसे संभव हो सकता है कि तेरे भैया और रजनी यहां एक दो दिन में आ ही जायेंगे, क्या पता उन्हें आने में वक्त लगे? और अगर हम यहां पर अपना यह भस्मीकरण यज्ञ शुरू करेंगे तो इसके समाप्ति के बाद ही वहां जाकर वहां का यज्ञ सम्पन्न करा पाएंगे। और यहां के यज्ञ की समाप्ति तभी हो पाएगी जब संसाधन और यज्ञ से संबंधित पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होगी, अभी तो हमारे पास पर्याप्त सामग्री है भी नही।

पुर्वा- हाँ अम्मा यह बात तो आप सही कह रही हो, हम केवल अनुमान के आधार पर इस यज्ञ को शुरू नही कर सकते पहले पर्याप्त लगने वाली सामग्री को एकत्र करना पड़ेगा, पर इसके लिए तो भैया का होना जरूरी है, और वो जल्द ही तभी आ पाएंगे जब उनतक संदेश पहुचेगा।

सुलोचना- सही कह रही हो बेटी, पर कैसे करें?

पुर्वा- अम्मा, मैं सिद्ध मंत्र के द्वारा ध्यान लगा कर देखती हूँ, क्या पता कुछ रास्ता दिखाई दे।

सुलोचना- ठीक है बेटी तू कोशिश कर..तब तक मैं, यज्ञ वाली कोठरी को यज्ञ के लिए तैयार करती हूं।

सांझ हो चली थी पुर्वा ने वहीं नीम के पेड़ के नीचे आसान लगाया और गंगाजल से आसान को स्वक्छ किया, पीपल का एक पत्ता लेकर उसपर कुछ हवन सामग्री रखकर उसे जला दिया फिर अपने सिद्ध किये हुए मंत्रो को पढ़ने लगी, कुछ वक्त मंत्र पढ़ने के बाद उसने ध्यान लगाया और उसे कुछ दिखाई दिया, उसने झट से आंखे खोली और सुलोचना को पुकारा।

पुर्वा- अम्मा

सुलोचना तुरंत कोठरी से बाहर आई- हाँ बेटी क्या हुआ, कुछ रास्ता समझ आया।

पुर्वा- अम्मा..एक तोता है जो इस घने जंगल से दो बार भैया के गांव की तरफ गया है, वो तोता शैतान की ओर से उड़कर उस गांव की तरफ दो बार गया है।

सुलोचना- शैतान की तरफ से।

पुर्वा- हाँ उसी तरफ से

सुलोचना- हो न हो ये कोई बुरी आत्मा ही होगी, जो रूप बदल सकती है, जो तोते का रूप धारण करके उस तरफ गयी हो।

पुर्वा- अम्मा..तो एक काम करते है न आज रात सबसे पहले इसे ही बांध देते हैं, मारने से पहले इसी से संदेश भेजवा देंगे, बांध के रखेंगे तो जाएगी कहाँ, संदेह कह के जैसे ही आएगी उसी समय भस्म कर देना।

सुलोचना मन में सोचने लगी- पर इसको बुलाने के लिए मुझे पहले अनैतिक संभोग के चिंतन में लीन होना होगा, अनैतिक संभोग के विषय में सोचती हुई स्त्री के मन की इच्छा ये आत्माएं जान लेती हैं तभी तो उस स्त्री के पास योनि का अर्क लेने आती हैं, और ये आत्मायें ये भी जान लेती है कि स्त्री किस पुरुष के विषय में सोचकर काम अग्नि में जल रही है, या कल्पनाओं में उसके साथ संभोगरत होकर आनंदित हो रही है, क्या पता ये वहां जाकर मेरे पुत्र के सामने ये बक दे कि मैं क्या सोच रही हूं, तो उदयराज मेरे बारे में क्या सोचेगा, इन आत्माओं का कोई भरोसा तो है नही...कैसे करूँ।

पुर्वा- क्या सोचने लगी अम्मा? क्या यह तरीका ठीक नही।

सुलोचना- नही पुत्री ठीक है...ऐसा ही करते हैं..मैं कोठरी को तैयार कर रही हूं, आज की रात यज्ञ शुरू करते हैं पहला वार उसी बुरी आत्मा को ढूंढकर करेंगे जो तोता बनकर वहां गयी थी, उसको बांधकर उससे ये काम करने के बाद उसको भस्म कर देंगे, जान छूट जाने की लालच में आकर वो वही करेगी जो हम चाहेंगे। तो बाहर की तैयारी कर मैं अंदर तैयार करती हूं।

(सुलोचना ने कह तो दिया कि तोते को दुबारा गुलाम बना कर संदेश पहुचने भेजेंगे पर वो मन ही मन बेचैन भी थी कि कहीं तोते ने उदयराज के सामने बक दिया कि मैं क्या सोच रही थी, क्या सोचकर मैंने उस बुरी आत्मा को अपनी ओर आकर्षित किया था तो उदयराज..मेरा पुत्र मेरे बारे में क्या सोचेगा...खैर जो भी हो देखा जाएगा)
आपकी कहानी के फोरम पर आपका स्वागत है।
कहानी को दुबारा शुरुआत देने के लिए धन्यवाद।
जल्दी जल्दी अपडेट देते रहे, ताकि कहानी पुरानी गति पकड़ सके।
 
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Suryadeva

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Bhai bade update ka intejar he..
 

deeppreeti

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Update- 88

दोनों माँ बेटी चुपचाप काफी देर लेटे लेटे यही सब सोचती रहती हैं, दोनों को ही ये लगता है कि वो सो गई हैं, अपनी अपनी खाट पर दोनों ही लेटे लेटे सोचते हुए हल्की हल्की उत्तेजना में एक दूसरे का लिहाज करते हुए कसमसाती हैं काफी देर तक यही चलता रहता है फिर दोनों अपने पर काबू करते हुए ताकि योनि न रिसने लगे, सो जाती हैं।

अब आगे---

अगली सुबह सुलोचना उठी तो पूर्वा बिस्तर पर नही थी, उसने दोनो का बिस्तर समेटा और बगल वाली कोठरी में रखकर जैसे ही रसोई की तरफ गयी तो देखा कि पूर्वा रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। पूर्वा अपनी अम्मा को देखकर मुस्कुरा दी और बोली- अम्मा उठ गई आप, देखो आज मैंने जल्दी ही रसोई का काम खत्म कर लिया है, आओ चलो नाश्ता तैयार है।

सुलोचना- अरे तूने मुझे उठाया क्यों नही, आज देख कितना काम है। अकेले अकेले ही कर रही है।

पूर्वा- अम्मा मैंने सोचा कि कल आप महात्मा जी के पास गई थी तो थक गई होंगी इसलिए नही उठाया जल्दी। अच्छा चलो जल्दी आप दातुन कर के आओ।


सुलोचना नित्यकर्म करके आयी और पूर्वा ने नाश्ता निकाला, दोनो नाश्ता करने लगी, पूर्वा ने कहा- अम्मा घी तो आधी मेटी ही रखा है और नारियल भी 40- 50 ही होंगे।

सुलोचना- कोई बात नही पुत्री, भस्मीकरण यज्ञ आज रात शुरू करते हैं, एक दो दिन में उदयराज के पास संदेश पहुँचाती हूँ मैं, बिना मेरे पुत्र और पुत्री की मदद के ये कार्य सम्पन्न नही हो पायेगा।

पूर्वा नाश्ता करते हुए अपनी माँ को देखकर मुस्कुराती जा रही थी।

नाश्ता करके दोनो माँ बेटी यज्ञ के लिए सूखी पीपल की लकड़ियां लेने और घने जंगल की तरफ निकल गए।

रास्ते में चलते चलते पूर्वा ने जिज्ञासा से दुबारा अपनी अम्मा से पूछा- अम्मा, क्या ऐसा वास्तव में इस दुनियां में घटित हो रहा है? हो तो रहा ही है...है न, तभी तो ये बुरी आत्मायें ऐसी स्त्री की खोज में हैं जो ऐसा सोचती है और कर चुकी हैं या कर रही हैं। क्या स्त्री ही सोचती है...पुरुष नही?

सुलोचना अचानक पूर्वा के इस तरह के सवाल पर पहले तो थोडा असहज हो गयी फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली- पाप और पुण्य दोनो का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि।

सब ईश्वर ने ही बनाया है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो ईश्वर की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जान मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, बस यही है इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियां भी कोई चीज़ है पुत्री वो भी ईश्वर के द्वारा ही बनाई हुई हैं, क्या वो इतनी कमजोर हैं कि हर इंसान उनको बड़ी आसानी से जीत लेगा...नही न...अगर ऐसा होता तो हर कोई हिमालय पर बस तपस्या कर रहा होता, ध्यान से सोचो तो सब ईश्वर की बनाई हुई माया है बस, रचा सब ईश्वर ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।

पर पुत्री मैं चाहती हूं कि इस भस्मीकरण यज्ञ को केवल मैं ही अंजाम दूंगी, तू इसे न कर, इसकी विधि सीधे प्रवाह में नही है।

पूर्वा- पर अम्मा अभी कल ही आप कह रही थी कि मेरे बिना यह कैसे संभव होगा? मैं यह जानती हूं और बखूबी समझती हूं कि आप ऐसा क्यों कह रही हो...पर अम्मा बुरी आत्माओं के बीच आपका अकेले रहना मुझे चिंता में डाल रहा है।

सुलोचना- नही पुत्री इसमे चिंता की कोई बात नही, और ऐसा नही है कि तू बिल्कुल ही मेरे साथ नही रहेगी, बस यज्ञ नही करेगी बाकी तो बाहर रहकर एक प्रहरी की भांति मेरी सुरक्षा तो करेगी ही, बस मैं यही चाहती हूं कि अभी शुरुवात के लिए तू मुख्य कार्य नही करेगी, यह मुझे ही करने दे।

पुर्वा- मेरा मन तो नही है अम्मा की मैं यज्ञ में आपको अकेले बैठने दूँ, पर आपकी इच्छा को मैं टाल नही सकती, मैं अच्छी तरह समझ रही हूं कि आपने मुझे क्यों रोका है पर फिर भी यज्ञ के दौरान कहीं भी आप अकेली महसूस करना तो मैं शामिल हो जाउंगी यह बात मैं आपसे पहले ही कह रही हूं।

सुलोचना ने पुर्वा की तरफ देखा तो पुर्वा ने अपने अम्मा का हाँथ अपने हांथों में लेकर हल्का सा दबाते हुए आस्वासन देने के साथ साथ आज्ञा भी मांगी।

सुलोचना- ठीक है पुत्री...अच्छा चल अब जल्दी जल्दी पीपल की लकड़ियां इकट्ठी कर लेते हैं।

दोनो ने ढेर सारी लकड़ियां इकट्ठी की, उसके दो बड़े बड़े बोझ बनाये और सर पर रखकर अपनी कुटिया की तरह आ गयी, दिन का दूसरा पहर भी ढलने को आ गया था।

सुलोचना- पुर्वा..

पुर्वा- हाँ अम्मा

सुलोचना- पर पुत्री बिना किसी संदेश के, बिना किसी खबर के यह कैसे संभव हो सकता है कि तेरे भैया और रजनी यहां एक दो दिन में आ ही जायेंगे, क्या पता उन्हें आने में वक्त लगे? और अगर हम यहां पर अपना यह भस्मीकरण यज्ञ शुरू करेंगे तो इसके समाप्ति के बाद ही वहां जाकर वहां का यज्ञ सम्पन्न करा पाएंगे। और यहां के यज्ञ की समाप्ति तभी हो पाएगी जब संसाधन और यज्ञ से संबंधित पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होगी, अभी तो हमारे पास पर्याप्त सामग्री है भी नही।

पुर्वा- हाँ अम्मा यह बात तो आप सही कह रही हो, हम केवल अनुमान के आधार पर इस यज्ञ को शुरू नही कर सकते पहले पर्याप्त लगने वाली सामग्री को एकत्र करना पड़ेगा, पर इसके लिए तो भैया का होना जरूरी है, और वो जल्द ही तभी आ पाएंगे जब उनतक संदेश पहुचेगा।

सुलोचना- सही कह रही हो बेटी, पर कैसे करें?

पुर्वा- अम्मा, मैं सिद्ध मंत्र के द्वारा ध्यान लगा कर देखती हूँ, क्या पता कुछ रास्ता दिखाई दे।

सुलोचना- ठीक है बेटी तू कोशिश कर..तब तक मैं, यज्ञ वाली कोठरी को यज्ञ के लिए तैयार करती हूं।

सांझ हो चली थी पुर्वा ने वहीं नीम के पेड़ के नीचे आसान लगाया और गंगाजल से आसान को स्वक्छ किया, पीपल का एक पत्ता लेकर उसपर कुछ हवन सामग्री रखकर उसे जला दिया फिर अपने सिद्ध किये हुए मंत्रो को पढ़ने लगी, कुछ वक्त मंत्र पढ़ने के बाद उसने ध्यान लगाया और उसे कुछ दिखाई दिया, उसने झट से आंखे खोली और सुलोचना को पुकारा।

पुर्वा- अम्मा

सुलोचना तुरंत कोठरी से बाहर आई- हाँ बेटी क्या हुआ, कुछ रास्ता समझ आया।

पुर्वा- अम्मा..एक तोता है जो इस घने जंगल से दो बार भैया के गांव की तरफ गया है, वो तोता शैतान की ओर से उड़कर उस गांव की तरफ दो बार गया है।

सुलोचना- शैतान की तरफ से।

पुर्वा- हाँ उसी तरफ से

सुलोचना- हो न हो ये कोई बुरी आत्मा ही होगी, जो रूप बदल सकती है, जो तोते का रूप धारण करके उस तरफ गयी हो।

पुर्वा- अम्मा..तो एक काम करते है न आज रात सबसे पहले इसे ही बांध देते हैं, मारने से पहले इसी से संदेश भेजवा देंगे, बांध के रखेंगे तो जाएगी कहाँ, संदेह कह के जैसे ही आएगी उसी समय भस्म कर देना।

सुलोचना मन में सोचने लगी- पर इसको बुलाने के लिए मुझे पहले अनैतिक संभोग के चिंतन में लीन होना होगा, अनैतिक संभोग के विषय में सोचती हुई स्त्री के मन की इच्छा ये आत्माएं जान लेती हैं तभी तो उस स्त्री के पास योनि का अर्क लेने आती हैं, और ये आत्मायें ये भी जान लेती है कि स्त्री किस पुरुष के विषय में सोचकर काम अग्नि में जल रही है, या कल्पनाओं में उसके साथ संभोगरत होकर आनंदित हो रही है, क्या पता ये वहां जाकर मेरे पुत्र के सामने ये बक दे कि मैं क्या सोच रही हूं, तो उदयराज मेरे बारे में क्या सोचेगा, इन आत्माओं का कोई भरोसा तो है नही...कैसे करूँ।

पुर्वा- क्या सोचने लगी अम्मा? क्या यह तरीका ठीक नही।

सुलोचना- नही पुत्री ठीक है...ऐसा ही करते हैं..मैं कोठरी को तैयार कर रही हूं, आज की रात यज्ञ शुरू करते हैं पहला वार उसी बुरी आत्मा को ढूंढकर करेंगे जो तोता बनकर वहां गयी थी, उसको बांधकर उससे ये काम करने के बाद उसको भस्म कर देंगे, जान छूट जाने की लालच में आकर वो वही करेगी जो हम चाहेंगे। तो बाहर की तैयारी कर मैं अंदर तैयार करती हूं।

(सुलोचना ने कह तो दिया कि तोते को दुबारा गुलाम बना कर संदेश पहुचने भेजेंगे पर वो मन ही मन बेचैन भी थी कि कहीं तोते ने उदयराज के सामने बक दिया कि मैं क्या सोच रही थी, क्या सोचकर मैंने उस बुरी आत्मा को अपनी ओर आकर्षित किया था तो उदयराज..मेरा पुत्र मेरे बारे में क्या सोचेगा...खैर जो भी हो देखा जाएगा)
So glad that you are back....
 
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