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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Mink

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Badhiya update aur lagta hai iss tote ka din bhar gaya hai magar Sulochana ko bhi apne putra ko bulane ka koi dusra tarika nahi mil raha hai....aage kya hoga yeah dekhna majedaar hoga...
 
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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Eagerly awaiting for next update bro
 
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S_Kumar

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Update- 89

सुलोचना ने भस्मीकरण यज्ञ के लिए कोठरी तैयार कर दी और पुर्वा ने यज्ञ की सारी सामग्री लाकर यज्ञ कुंड के पास रख दिया, रात्रि की बेला गहराती जा रही थी।

सुलोचना ने पुर्वा से कहा- पुत्री अब तू अपने लिए रात का भोजन तैयार कर ले, मैं तो महात्मा द्वारा दिया गया अमृत पेय का सेवन आज का यज्ञ समाप्त करने के बाद ग्रहण करूँगी, पर तू अपने लिए भोजन तैयार करके भोजन कर ले, और भोजन करने के बाद तू कोठरी के बाहर आराम करना, मैं यज्ञ करूँगी।

पुर्वा- ठीक है अम्मा।

पुर्वा अपने लिये भोजन तैयार करने लगी, कुछ ही देर में भोजन तैयार होने के बाद पुर्वा ने भोजन किया और बाहर अपनी खटिया बिछा कर बैठ गयी, रात काफी गहरी होती जा रही थी, जंगल मे छोटे-छोटे कीड़ों के बोलने की आवाज, पत्तों के आपस में रगड़ने से सरसराहट की आवाज रात के सन्नाटे को चीरते हुए आ रही थी, कभी कभी ऐसा लगता कि दूर किसी के चिल्लाने की आवाज आ रही है, कभी ऐसा लगता मानो दूर कहीं बहुत से लोग लड़ाई कर रहे हैं और उनके झगड़ने की आवाज हल्की हल्की सुनाई दे रही है, पर पुर्वा और सुलोचना के लिए ये सब आम बात थी फिर भी आज कुछ ज्यादा ही प्रतिकूल रात थी, ऐसा लग रहा था कि जो सुलोचना आज रात शुरू करने जा रही है वो किसी को अच्छा नही लग रहा था।

पुर्वा ने अपनी खाट पर बैठे बैठे सर घुमा घुमा कर बड़े गौर से चारों तरह देखा, ठंडी हवा से पेड़ों की पत्तियां लगातार हिल रही थी, ऊपर आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे, पुर्वा मुस्कुरा दी और बिस्तर पर लेट गयी, इतनी अंधेरी घने जंगलों की रात, जहां आम इंसान के रोंगट खड़े हो जाएं वहीं बिस्तर पर लेटते हुए पुर्वा बोली- "कितनी हसीन रात है आज की"

तब तक सुलोचना नहा कर आ गयी, उसने काले रंग की साड़ी और काले रंग का ब्लॉउज पहन रखा था, पुर्वा अपनी माँ को ही देखती रह गयी, जब पुर्वा को बड़े गौर से अपनी ओर देखते हुए सुलोचना ने देखा तो बोली- ऐसे क्या देख रही है पुर्वा, अपनी अम्मा को नही देखा क्या कभी...आज पहली बार देख रही है?

पुर्वा- इतनी सुंदरता आपके अंदर छिपी हुई है आज पहली बार देख रही हूं अम्मा, देखो न अंधेरी रात है, खिड़की पर दिया हल्का हल्का जल रहा है, और फिर भी आप पर नज़र ठहर गयी, आप ऐसे ही हरदम रहा करो न अम्मा।

सुलोचना- अच्छा जी...बस कर अब तारीफ मेरी, बूढ़ी हो चली हूँ मैं अब, अब वो दिन गए बेटी की मैं हरदम सज धज के रहूं, अच्छा!... रात्रि का भोजन कर लिया न तूने?

पुर्वा- किसने कहाँ बूढ़ी हो गयी हो अम्मा, बूढ़ी हो आपके दुश्मन....बूढ़ी हों वो बुरी आत्मायें, मेरी अम्मा तो हरदम जवान है। दिन तो आते जाते रहते हैं आप ऐसे ही रहा करो।

सुलोचना- अरे मैं पूछ रही हूं कि भोजन कर लिया तूने?

पुर्वा- पहले आप बोलो की ऐसे ही रहा करोगी न?

सुलोचना- अच्छा ठीक है...जैसा तू कहेगी वैसे ही रहा करूँगी....रात्रि का भोजन कर लिया न तूने?

पुर्वा- हाँ अम्मा कर लिया।

सुलोचना - तो चल ठीक है तू यहीं बाहर बिस्तर पर लेट और मैं यज्ञ शुरू करती हूं।

पुर्वा- मैं लेटूंगी नही अम्मा, मैं भी आसान लगा के बैठूंगी।

सलोचना- ठीक है तू बाहर ही बैठ, मैं अंदर जा रही हूं अब शुरू करने।

सुलोचना आज वास्तव में बहुत खूबसूरत लग रही थी, जब से उसके पति से उसका साथ छूटा और एक नीरस जिंदगी को जीने के लिए वह विवस हुई, लोककल्याण को ही अपना कर्तव्य मानकर पुर्वा के साथ अपना जीवन यापन करते-करते वह सजना संवरना मानो भूल ही गयी थी, आज यज्ञ में बुरी आत्माओं को बुलाने के लिए वह फिर से सजी धजी थी, बहुत अरसे के बाद उसने काली साड़ी पहनी, शृंगार किया, बालों में फूलों का गजरा लगाया।

काले रंग की साड़ी में उसका गोरा गोरा बदन कहर ढा रहा था, एक एक अंग का कसाव, कटाव मन में हलचल पैदा कर रहा था,बड़ी बड़ी गुदाज चूचीयाँ ध्यान खींच रही थी, पहले वो अपने अंगों को ज्यादा से ज्यादा ढककर रखती थी पर आज न जाने क्यों मानो सब अंगों को अपनी मादकता दिखाने के लिए आजाद सा कर दिया हो, बुरी आत्माओं को बुलाने के लिए, अनैतिक संभोग के विषय में सोचने के लिए उसने वेषभूसा सहित सब इस कार्य के प्रतिकूल कर लिया था।

रात्रि के 10 बज चुके थे, पुर्वा बाहर आसान लगा कर मंत्र जाप करने लगी। सुलोचना ने भी कोठरी में अपना आसान लगाने से पहले अपनी साड़ी को ऊपर उठा कर अंदर पहनी हुई काली रंग की छोटी सी कच्छी को जिसने उसके अनमोल खजानों को कस कर चारों तरफ से घेर कर एक आवरण बनाया हुआ था उसको अपने पुत्र के बारे में सोचती हुई निकालने लगी, उसके हृदय की गति एकदम से बढ़ गयी, एक पल के लिए उसने महसूस किया कि एक बेटा अगर अपनी ही सगी माँ की चड्डी को इस तरह निकलेगा तो वो अनुभूति कैसी होगी? ये सोचते ही उसकी हृदय की गति तेज हो गयी और उसने कच्छी को धीरे से घुटनों तक सरकाकर एक बार सीधे पैर को उठाकर फिर दूसरे पैर को उठाकर बड़े ही कामुक तरीके से बाहर पुर्वा की ओर देखते हुए निकाल दी।

कच्छी निकाल कर उसने आसान के नीचे दबा दिया और गंगाजल छिड़क कर यज्ञ कुंड, आसान और आस-पास की जगह को पवित्र करते हुए यज्ञ का आगाज किया, वह आसान पर जैसे ही आलथी-पालथी मार कर बैठी, उसकी मखमली बूर की दोनों फांकें बहुत ही हल्के "पुच्च" की आवाज के साथ बैठने की वजह से थोड़ा सा खुल गयी, गीला-पन आने की वजह से हल्की "पुच्च" की आवाज जब आयी तब सुलोचना को अहसास हुआ कि उसकी चूत हल्का सा पनिया गयी थी, उसने साड़ी में हाँथ डालकर अपनी मध्यमा उंगली से चूत की मोटी-मोटी फांकों को छुआ और बाहर आये हल्के से काम रस को उंगली से उठाकर जब सूँघा तो एक मदहोश करने वाली मूत्र की गंध लिए काम रस की महक ने उसे बेचैन कर दिया, वह सोचने लगी कि माँ-बेटा के बीच अभी थोड़ा सा ही अनैतिक सोचने पर जब इतना आनंद है और ये निगोड़ी रस बहाने लगी, तो जो सगे माँ बेटे इस अनैतिक संभोग को कर चुके होंगे और कर रहे होंगे उन्हें कितना आनंद आता होगा? एकदम ही यह सारी चीज़ें सुलोचना के मन पर हावी होने लगी तो उसने इसे झटक कर खुद को संभाला और कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।

यज्ञ कुंड में पीपल की लकड़ियां लगाई, यज्ञ सामग्री डालकर उसमे घी डाला और मंत्र पढ़ते हुए महात्मा जी नाम लेकर अग्नि प्रज्वलित कर दी, यज्ञ कुंड में अग्नि जलने लगी, काफी देर तक पहले सुलोचना अपने सिद्ध किये हुए मंत्रों का आवाहन करती रही, नारियल उसकी बगल में टोकरी में रखे थे, उसने एक नारियल उठाया और उसे साड़ी के अंदर ले जाकर अपनी बूर के थोड़ा आगे रख लिया, और एक बार फिर महात्मा जी का नाम लेकर कुछ मंत्र पढ़े फिर वह सोचने लगी-

"मुझे संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ बेबस हूँ, अब मुझे कोई पुरुष साथी कहाँ मिलेगा, कितना आनंद आता अगर कोई पुरुष मुझे रात को चोरी चोरी छुप छुप कर चो......द......आह!, पुरुष का लिंग....उसको छूने का....पकड़ने का....सहलाने का मन करता है.....उसकी महक.....कितने बरस बीत गए लिंग को देखे....कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था...(ऐसे सोचते ही सुलोचना की बूर में संकुचन हुआ और उसने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली)

लिंग की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक होता है, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह मे लेकर चूसने में कितना आनंद है, पूरे लिंग को धीरे धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना जैसे कोई माँ अपने बेटे को युद्ध में जाने से पहले तैयार करती है...कितना आनंदमय होता है लिंग को प्यार करना।

काश कोई लिंग मेरे जीवन में पुनः आ जाता, काश कोई मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करता, काश मेरी योनि को कोई छूता...सहलाता....चूमता...क्यों मेरा जीवन इतना नीरस हो गया है? मेरा क्या दोष है?....क्यों मैं स्वयं को इस सुख से वंचित किये हुए हूँ, कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नही होता....तो क्या...तो क्या...वह पुरुष जो मेरे सबसे नजदीक है....वह मेरा हो सकता है....मेरे सबसे नजदीक कौन है?....मेरा पुत्र....मेरा पुत्र ही तो मेरे सबसे नजदीक है, एक माँ के लिए उसके जिगर का टुकड़ा उसका बेटा ही होता है, वही उसके सबसे नजदीक होता है, अगर माँ कुछ चाहती है तो क्या उसका बेटा उसे देगा? क्या बेटा भी चाहेगा? क्या वह उसकी वेदना को समझेगा? क्या मेरा उदय....उफ्फ्फ....कैसा होगा मेरे उदय का.....लिं......ग...ग..ग.गगगग....ओह!

(सुलोचना न चाहते हुए भी आज पाप सोचने के लिए विवश थी, आज जीवन में वो पहली बार व्यभिचार के सागर में चिंतन रूपी नाव पर सवार होकर उतरने जा रही थी, उसका बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और सुलोचना अपने अंदर जो अग्नि सुलगा रही थी वो न जाने अब कैसे थमेगी ये नियति के ऊपर ही था, वह पसीने पसीने हो गयी, बार बार आंख बंद करके वो अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे उसका बदन सनसना जाता, बेचैन होकर वो कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो उसने चुपके से बाहर देखते हुए अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, जांघों को रह रह कर सिकोड़ लेती, कभी लजा जाती, शर्माकर आँख बंद कर लेती, रह रह कर चुदाई की कल्पना से मन सिरह उठता, आखिर चुदाई का सुख लिए बरसों बीत चुके थे, सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)

आखिर खुलकर रिसने ही लगी उसकी निगोड़ी बूररर

एक बार धीरे से उसके मुंह से निकला... "उदय....मेरे पुत्र.....

कैसा महसूस होगा जब उदय मेरा बेटा मुझे छुएगा, मेरी प्रतिकिया क्या होगी?

आंख बंद करती तो कल्पना में मानो उदयराज उसे पीछे से बाहों में भरकर मेरी "माँ" बोलते हुए गालों को चूम रहा होता (सुलोचना सिरह जाती, आंख खोल कर इधर उधर देखती, उत्तेजना में गला सूख गया था...पर न जाने क्यों अच्छा भी लग रहा था, हल्का सा मुस्कुरा भी देती...फिर आंख बंद करती)

छोटे छोटे कल्पना में उत्तेजक दृश्य उसकी आँखों में ऐसे आ जाते जैसे वह घटित ही हो रहे हैं

मुँह से उसके सिसकारी निकल गयी, बस इस कल्पना मात्र से की, रात के घनघोर अंधेरे में बाहर नीम के पेड़ के नीचे खटिया पर वो धीरे-धीरे लेटती गयी, जैसे जैसे वो लेटती गयी उदयराज प्यार से उसे चूमते हुए उसपर चढ़ता गया, "आह माँ और हाय मेरा बेटा" की सिसकी के साथ दोनो लिपट गए और उदय का कठोर लंड सुलोचना की चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। एक बेटे का लन्ड माँ की प्यासी गीली चूत में डूब गया। एक माँ की प्यासी चूत उसी के बेटे के लन्ड से भर गई।

सुलोचना पसीने पसीने हो गयी, कुछ पल के लिए उसने खुद को संभाला, बूर अब चिपचिपी हो गयी, भारी मन से उसने दुबारा मन्त्र पढ़ना शुरू किया।
 

S_Kumar

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आपकी कहानी के फोरम पर आपका स्वागत है।
कहानी को दुबारा शुरुआत देने के लिए धन्यवाद।
जल्दी जल्दी अपडेट देते रहे, ताकि कहानी पुरानी गति पकड़ सके।
जरूर! बस बने रहिये कहानी के साथ, कमेंट करते रहिए, धन्यवाद रानी जी
 
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जरूर! बस बने रहिये कहानी के साथ, कमेंट करते रहिए, धन्यवाद रानी जी
आपके लौटने की कितनी प्रतीक्षा की है, यह तो आपको मेरे द्वारा किये गए स्वागत कमेन्ट से पता लग ही गया होगा।
प्रतीक्षा की है तो सभी पाठक-पाठिकाये कहानी के साथ बने रहेंगे। कमेन्ट की आप चिंता ना करे। वो आपको ढेरों मिलते रहेंगे।
आप सिर्फ कहानी की गति (जल्दी जल्दी अपडेट) और कहानी के कंटेन्ट की गहराई पर ध्यान दे। आपकी लेखनी कमाल है। इसके मुरीद है हम।
तभी तो इतनी प्रतीक्षा की और आपके लौटने का इंतजार किया। एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद।
 

Mink

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Jabardast update bhai aur ab tota ko pakad ne ke liye Sulochana jo chara dal rahi hai kahin woh bhi apne bete ke pyar mein pagal na ban jaaye....bahut hi khubsurat chitran hai bhai....
 
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Update- 89

सुलोचना ने भस्मीकरण यज्ञ के लिए कोठरी तैयार कर दी और पुर्वा ने यज्ञ की सारी सामग्री लाकर यज्ञ कुंड के पास रख दिया, रात्रि की बेला गहराती जा रही थी।

सुलोचना ने पुर्वा से कहा- पुत्री अब तू अपने लिए रात का भोजन तैयार कर ले, मैं तो महात्मा द्वारा दिया गया अमृत पेय का सेवन आज का यज्ञ समाप्त करने के बाद ग्रहण करूँगी, पर तू अपने लिए भोजन तैयार करके भोजन कर ले, और भोजन करने के बाद तू कोठरी के बाहर आराम करना, मैं यज्ञ करूँगी।

पुर्वा- ठीक है अम्मा।

पुर्वा अपने लिये भोजन तैयार करने लगी, कुछ ही देर में भोजन तैयार होने के बाद पुर्वा ने भोजन किया और बाहर अपनी खटिया बिछा कर बैठ गयी, रात काफी गहरी होती जा रही थी, जंगल मे छोटे-छोटे कीड़ों के बोलने की आवाज, पत्तों के आपस में रगड़ने से सरसराहट की आवाज रात के सन्नाटे को चीरते हुए आ रही थी, कभी कभी ऐसा लगता कि दूर किसी के चिल्लाने की आवाज आ रही है, कभी ऐसा लगता मानो दूर कहीं बहुत से लोग लड़ाई कर रहे हैं और उनके झगड़ने की आवाज हल्की हल्की सुनाई दे रही है, पर पुर्वा और सुलोचना के लिए ये सब आम बात थी फिर भी आज कुछ ज्यादा ही प्रतिकूल रात थी, ऐसा लग रहा था कि जो सुलोचना आज रात शुरू करने जा रही है वो किसी को अच्छा नही लग रहा था।

पुर्वा ने अपनी खाट पर बैठे बैठे सर घुमा घुमा कर बड़े गौर से चारों तरह देखा, ठंडी हवा से पेड़ों की पत्तियां लगातार हिल रही थी, ऊपर आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे, पुर्वा मुस्कुरा दी और बिस्तर पर लेट गयी, इतनी अंधेरी घने जंगलों की रात, जहां आम इंसान के रोंगट खड़े हो जाएं वहीं बिस्तर पर लेटते हुए पुर्वा बोली- "कितनी हसीन रात है आज की"

तब तक सुलोचना नहा कर आ गयी, उसने काले रंग की साड़ी और काले रंग का ब्लॉउज पहन रखा था, पुर्वा अपनी माँ को ही देखती रह गयी, जब पुर्वा को बड़े गौर से अपनी ओर देखते हुए सुलोचना ने देखा तो बोली- ऐसे क्या देख रही है पुर्वा, अपनी अम्मा को नही देखा क्या कभी...आज पहली बार देख रही है?

पुर्वा- इतनी सुंदरता आपके अंदर छिपी हुई है आज पहली बार देख रही हूं अम्मा, देखो न अंधेरी रात है, खिड़की पर दिया हल्का हल्का जल रहा है, और फिर भी आप पर नज़र ठहर गयी, आप ऐसे ही हरदम रहा करो न अम्मा।

सुलोचना- अच्छा जी...बस कर अब तारीफ मेरी, बूढ़ी हो चली हूँ मैं अब, अब वो दिन गए बेटी की मैं हरदम सज धज के रहूं, अच्छा!... रात्रि का भोजन कर लिया न तूने?

पुर्वा- किसने कहाँ बूढ़ी हो गयी हो अम्मा, बूढ़ी हो आपके दुश्मन....बूढ़ी हों वो बुरी आत्मायें, मेरी अम्मा तो हरदम जवान है। दिन तो आते जाते रहते हैं आप ऐसे ही रहा करो।

सुलोचना- अरे मैं पूछ रही हूं कि भोजन कर लिया तूने?

पुर्वा- पहले आप बोलो की ऐसे ही रहा करोगी न?

सुलोचना- अच्छा ठीक है...जैसा तू कहेगी वैसे ही रहा करूँगी....रात्रि का भोजन कर लिया न तूने?

पुर्वा- हाँ अम्मा कर लिया।

सुलोचना - तो चल ठीक है तू यहीं बाहर बिस्तर पर लेट और मैं यज्ञ शुरू करती हूं।

पुर्वा- मैं लेटूंगी नही अम्मा, मैं भी आसान लगा के बैठूंगी।

सलोचना- ठीक है तू बाहर ही बैठ, मैं अंदर जा रही हूं अब शुरू करने।

सुलोचना आज वास्तव में बहुत खूबसूरत लग रही थी, जब से उसके पति से उसका साथ छूटा और एक नीरस जिंदगी को जीने के लिए वह विवस हुई, लोककल्याण को ही अपना कर्तव्य मानकर पुर्वा के साथ अपना जीवन यापन करते-करते वह सजना संवरना मानो भूल ही गयी थी, आज यज्ञ में बुरी आत्माओं को बुलाने के लिए वह फिर से सजी धजी थी, बहुत अरसे के बाद उसने काली साड़ी पहनी, शृंगार किया, बालों में फूलों का गजरा लगाया।

काले रंग की साड़ी में उसका गोरा गोरा बदन कहर ढा रहा था, एक एक अंग का कसाव, कटाव मन में हलचल पैदा कर रहा था,बड़ी बड़ी गुदाज चूचीयाँ ध्यान खींच रही थी, पहले वो अपने अंगों को ज्यादा से ज्यादा ढककर रखती थी पर आज न जाने क्यों मानो सब अंगों को अपनी मादकता दिखाने के लिए आजाद सा कर दिया हो, बुरी आत्माओं को बुलाने के लिए, अनैतिक संभोग के विषय में सोचने के लिए उसने वेषभूसा सहित सब इस कार्य के प्रतिकूल कर लिया था।

रात्रि के 10 बज चुके थे, पुर्वा बाहर आसान लगा कर मंत्र जाप करने लगी। सुलोचना ने भी कोठरी में अपना आसान लगाने से पहले अपनी साड़ी को ऊपर उठा कर अंदर पहनी हुई काली रंग की छोटी सी कच्छी को जिसने उसके अनमोल खजानों को कस कर चारों तरफ से घेर कर एक आवरण बनाया हुआ था उसको अपने पुत्र के बारे में सोचती हुई निकालने लगी, उसके हृदय की गति एकदम से बढ़ गयी, एक पल के लिए उसने महसूस किया कि एक बेटा अगर अपनी ही सगी माँ की चड्डी को इस तरह निकलेगा तो वो अनुभूति कैसी होगी? ये सोचते ही उसकी हृदय की गति तेज हो गयी और उसने कच्छी को धीरे से घुटनों तक सरकाकर एक बार सीधे पैर को उठाकर फिर दूसरे पैर को उठाकर बड़े ही कामुक तरीके से बाहर पुर्वा की ओर देखते हुए निकाल दी।

कच्छी निकाल कर उसने आसान के नीचे दबा दिया और गंगाजल छिड़क कर यज्ञ कुंड, आसान और आस-पास की जगह को पवित्र करते हुए यज्ञ का आगाज किया, वह आसान पर जैसे ही आलथी-पालथी मार कर बैठी, उसकी मखमली बूर की दोनों फांकें बहुत ही हल्के "पुच्च" की आवाज के साथ बैठने की वजह से थोड़ा सा खुल गयी, गीला-पन आने की वजह से हल्की "पुच्च" की आवाज जब आयी तब सुलोचना को अहसास हुआ कि उसकी चूत हल्का सा पनिया गयी थी, उसने साड़ी में हाँथ डालकर अपनी मध्यमा उंगली से चूत की मोटी-मोटी फांकों को छुआ और बाहर आये हल्के से काम रस को उंगली से उठाकर जब सूँघा तो एक मदहोश करने वाली मूत्र की गंध लिए काम रस की महक ने उसे बेचैन कर दिया, वह सोचने लगी कि माँ-बेटा के बीच अभी थोड़ा सा ही अनैतिक सोचने पर जब इतना आनंद है और ये निगोड़ी रस बहाने लगी, तो जो सगे माँ बेटे इस अनैतिक संभोग को कर चुके होंगे और कर रहे होंगे उन्हें कितना आनंद आता होगा? एकदम ही यह सारी चीज़ें सुलोचना के मन पर हावी होने लगी तो उसने इसे झटक कर खुद को संभाला और कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।

यज्ञ कुंड में पीपल की लकड़ियां लगाई, यज्ञ सामग्री डालकर उसमे घी डाला और मंत्र पढ़ते हुए महात्मा जी नाम लेकर अग्नि प्रज्वलित कर दी, यज्ञ कुंड में अग्नि जलने लगी, काफी देर तक पहले सुलोचना अपने सिद्ध किये हुए मंत्रों का आवाहन करती रही, नारियल उसकी बगल में टोकरी में रखे थे, उसने एक नारियल उठाया और उसे साड़ी के अंदर ले जाकर अपनी बूर के थोड़ा आगे रख लिया, और एक बार फिर महात्मा जी का नाम लेकर कुछ मंत्र पढ़े फिर वह सोचने लगी-

"मुझे संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ बेबस हूँ, अब मुझे कोई पुरुष साथी कहाँ मिलेगा, कितना आनंद आता अगर कोई पुरुष मुझे रात को चोरी चोरी छुप छुप कर चो......द......आह!, पुरुष का लिंग....उसको छूने का....पकड़ने का....सहलाने का मन करता है.....उसकी महक.....कितने बरस बीत गए लिंग को देखे....कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था...(ऐसे सोचते ही सुलोचना की बूर में संकुचन हुआ और उसने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली)

लिंग की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक होता है, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह मे लेकर चूसने में कितना आनंद है, पूरे लिंग को धीरे धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना जैसे कोई माँ अपने बेटे को युद्ध में जाने से पहले तैयार करती है...कितना आनंदमय होता है लिंग को प्यार करना।

काश कोई लिंग मेरे जीवन में पुनः आ जाता, काश कोई मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करता, काश मेरी योनि को कोई छूता...सहलाता....चूमता...क्यों मेरा जीवन इतना नीरस हो गया है? मेरा क्या दोष है?....क्यों मैं स्वयं को इस सुख से वंचित किये हुए हूँ, कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नही होता....तो क्या...तो क्या...वह पुरुष जो मेरे सबसे नजदीक है....वह मेरा हो सकता है....मेरे सबसे नजदीक कौन है?....मेरा पुत्र....मेरा पुत्र ही तो मेरे सबसे नजदीक है, एक माँ के लिए उसके जिगर का टुकड़ा उसका बेटा ही होता है, वही उसके सबसे नजदीक होता है, अगर माँ कुछ चाहती है तो क्या उसका बेटा उसे देगा? क्या बेटा भी चाहेगा? क्या वह उसकी वेदना को समझेगा? क्या मेरा उदय....उफ्फ्फ....कैसा होगा मेरे उदय का.....लिं......ग...ग..ग.गगगग....ओह!

(सुलोचना न चाहते हुए भी आज पाप सोचने के लिए विवश थी, आज जीवन में वो पहली बार व्यभिचार के सागर में चिंतन रूपी नाव पर सवार होकर उतरने जा रही थी, उसका बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और सुलोचना अपने अंदर जो अग्नि सुलगा रही थी वो न जाने अब कैसे थमेगी ये नियति के ऊपर ही था, वह पसीने पसीने हो गयी, बार बार आंख बंद करके वो अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे उसका बदन सनसना जाता, बेचैन होकर वो कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो उसने चुपके से बाहर देखते हुए अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, जांघों को रह रह कर सिकोड़ लेती, कभी लजा जाती, शर्माकर आँख बंद कर लेती, रह रह कर चुदाई की कल्पना से मन सिरह उठता, आखिर चुदाई का सुख लिए बरसों बीत चुके थे, सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)

आखिर खुलकर रिसने ही लगी उसकी निगोड़ी बूररर

एक बार धीरे से उसके मुंह से निकला... "उदय....मेरे पुत्र.....

कैसा महसूस होगा जब उदय मेरा बेटा मुझे छुएगा, मेरी प्रतिकिया क्या होगी?

आंख बंद करती तो कल्पना में मानो उदयराज उसे पीछे से बाहों में भरकर मेरी "माँ" बोलते हुए गालों को चूम रहा होता (सुलोचना सिरह जाती, आंख खोल कर इधर उधर देखती, उत्तेजना में गला सूख गया था...पर न जाने क्यों अच्छा भी लग रहा था, हल्का सा मुस्कुरा भी देती...फिर आंख बंद करती)

छोटे छोटे कल्पना में उत्तेजक दृश्य उसकी आँखों में ऐसे आ जाते जैसे वह घटित ही हो रहे हैं

मुँह से उसके सिसकारी निकल गयी, बस इस कल्पना मात्र से की, रात के घनघोर अंधेरे में बाहर नीम के पेड़ के नीचे खटिया पर वो धीरे-धीरे लेटती गयी, जैसे जैसे वो लेटती गयी उदयराज प्यार से उसे चूमते हुए उसपर चढ़ता गया, "आह माँ और हाय मेरा बेटा" की सिसकी के साथ दोनो लिपट गए और उदय का कठोर लंड सुलोचना की चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। एक बेटे का लन्ड माँ की प्यासी गीली चूत में डूब गया। एक माँ की प्यासी चूत उसी के बेटे के लन्ड से भर गई।

सुलोचना पसीने पसीने हो गयी, कुछ पल के लिए उसने खुद को संभाला, बूर अब चिपचिपी हो गयी, भारी मन से उसने दुबारा मन्त्र पढ़ना शुरू किया।
Aaaah Maa🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
 
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Suryadeva

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भाई आपकी लिखावट में तो जादू है।
 
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