Update- 90
मंत्र पढ़ते हुए अभी कुछ ही वक्त हुए थे, बाहर तेज हवाओं का रुख बार बार बदल जा रहा था, कुछ ही देर में झोपड़ी के ऊपर जहां सुलोचना यज्ञ कर रही थी कुछ बुरी आत्मायें मंडराने लगी, सुलोचना को उनके आगमन का आभास हो गया, पुर्वा ने भी एक नजर उन्हें देखा फिर जाप करने लगी, इन आत्माओं में वो आत्मा नही थी जो तोता बनकर विक्रमपुर गयी थी।
जैसे ही आत्मायें झोपड़ी में घुसी, दरवाजे पर लटका नींबू एकदम लाल हो गया, उन बुरी आत्माओं को पहले तो जरा भी आभास नहीं था कि वो कहाँ फंस गई अब वो वापिस नही जा सकती, मन्त्र सिद्ध किया हुआ नींबू उन्हें अंदर तो आने दे सकता था पर बिना सुलोचना की आज्ञा के अब वो बाहर नही जा सकती थी, वो झोपड़ी में यज्ञ कुंड को देखकर घबरा गई, तेज तेज चिल्लाती और, तरह तरह के डरावने चेहरे बनाती हुई सुलोचना और यज्ञ कुंड के चारों ओर घूमने लगी, सुलोचना को डराने की कोशिश करने लगी, सुलोचना की बूर की महकती खुशबू उन्हें आकर्षित कर रही थी।
एक तरफ यज्ञ कुंड में जल रही अग्नि और सुलोचना के मुख से निकल रहे मंत्र, दूसरी तरफ पाप की खुशबू उन्हें भ्रमित कर रही थी, वह बुरी आत्मायें जो बूर का अर्क लेने आयी थी यह सोचकर भ्रमित हो गयी कि एक तरफ मंत्र और अग्नि और दूसरी तरफ उसी स्त्री में पाप रस की खुशबू, योगिनी के अंदर भोगिनी, यह कैसे संभव है? वह भ्रमित थी कि कहीं और तो नही आ गयी पर सुलोचना की बूर की खुशबू उन्हें अपनी तरफ खींच रही थी, बिना बूर का रस लिए वो जाना नही चाहती थी, पर उन्हें ये नही पता था कि वापस तो अब वो जा ही नही सकती।
वह डरी हुई थी पर बनावटी निडरता दिखाते हुए जोर जोर से चीख चीख कर यज्ञ कुंड और सुलोचना के चारों तरफ चक्कर लगाने लगी। इतने भयानक चेहरे बनाती की आम इंसान देख ले तो वैसे ही मर जाये, कभी वो झोपड़ी की छप्पर से जा चिपकती तो कभी हाहाकार करती हुई सुलोचना के ठीक सामने आकर चीखने लगती और तरह तरह की डरावनी आकृतियां बनाती, खुद डरी हुई होने के बावजूद वो सुलोचना को डराने का भरकस प्रयास कर रही थी।
सुलोचना ने धीरे से आंख खोला और बगल में रखी सुपारी को मंत्र पढ़ते हुए अग्नि में डाल दिया, थोड़ा घी और डाला, फिर उसने आंख बंद की, अग्नि और भड़क उठी।
झोपडी में घी और हवन सामग्री की महक चारों तरफ फैली हुई थी, खिड़कियों और छप्पर के छोटे छोटे छेदों से हवन का धुआँ निकलकर बाहर के वातावरण में फैलने लगा।
सुलोचना ने मुस्कुराते हुए आँखे बंद की और एक बार फिर वासना के समंदर में उतरने लगी, कल्पना की दुनियां में उनसे देखा कि वह बाहर खटिया पर लेटी है, अंधेरी काली रात है, कुटिया के अंदर दिया जल रहा है जिसकी हल्की हल्की रोशनी बाहर आ रही है, खटिया पर लेटे लेटे वह झोपड़ी के दरवाजे की तरफ देखते हुए अंगड़ाई लेती है, तभी उदयराज झोपड़ी से निकलकर बाहर आता है बदन पर सिर्फ एक सफेद धोती पहने वह सुलोचना के पास आता है, उसके चेहरे पर झुककर उसको बड़े ध्यान से देखता है, वो भी उदयराज को बड़े ध्यान से देखती है, दोनो एक दूसरे के चेहरे को बड़े गौर से देखते है, फिर आंखों में देखने लगते हैं, कुछ देर एक दूसरे की आँखों में देखने के बाद उदयराज धीरे से कहता है- माँ
सुलोचना- मेरा बेटा
उदय जैसे ही सुलोचना के प्यासे होंठों को चूमने के लिए उसपर थोड़ा झुकता है, सुलोचना शर्म से अपना चेहरा दोनो हांथों से ढक लेती है।
उदय सुलोचना के कान के पास होंठ ले जाकर धीरे से कहता है- माँ... अपने रसीले होंठ चूमने दे न।
सुलोचना सिसक उठती है, फिर धीरे से बोलती है- क्या? रसीले होंठ, माँ के होंठ तुझे रसीले लगते हैं....धत्त
उदय- छूने दे न माँ... चूम लेने दे न...बहुत नशीले हैं ये होंठ।
सुलोचना- नशीले होंठ.....गन्दे....नही....बिल्कुल नही...
उदय- माँ... ओ मेरी प्यारी माँ.... कर लेने दे न मुझे तेरे साथ अपने मन की...छू लेने दे न इन होंठों को....तुझे भी मजा आएगा।
सुलोचना ने अपने चेहरे को ढके हुए मुस्कुराकर करवट बदल ली - नही मेरे बेटे....पाप है ये....महापाप...अपने ही बेटे के साथ...कैसे?
उदय ने सुलोचना को प्यार से फिर अपनी तरफ पलटा और चेहरे से हाँथ हटाता हुआ उसके गालों को चूम लिया और बोला- ऐसे (फिर दूसरा चुम्बन कान के बगल गर्दन पर लिया और सुलोचना सिसक पड़ी)
उदय- मजा आया न माँ
सुलोचना - गंदे....अपनी माँ के साथ गन्दा काम करेगा।
(और फिर से अपने चेहरे को ढकते हुए करवट लेकर लेट गयी)
उदय ने ब्लॉउज में से दिख रही सुलोचना की नग्न गोरी गोरी पीठ को कई जगह चूम लिया, सुलोचना का बदन थरथराया गया, हल्की हल्की सिसकी उसके मुँह से निकल गयी।
उदय- एक बेटा गन्दा काम तो अपनी माँ के साथ ही कर सकता है न माँ
सुलोचना मुस्कुरा दी, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया, उदय ने उसे फिर अपनी तरफ पलटा और धीरे से बोला- बोल न माँ... मुझे तेरे साथ गन्दा काम करने देगी?
सुलोचना फिर सिसक गयी, उदय ने फिर गालों को चूम लिया, दोनो एक दूसरे की आंखों में देखने लगे।
उदय- बोल न माँ... मेरी प्यारी माँ
सुलोचना धीरे से- किसी को पता चल गया तो? यह महापाप करते हुए?
उदय- कैसे पता चलेगा माँ... न तुम बताओगी? न मैं।
उदय ने फिर सुलोचना के गालों को चूम लिया और वो फिर से हल्की से सिसकी।
उदय- माँ
सुलोचना- हूँ
उदय- तेरी योनि देखने का मन करता है?
सुलोचना- धत्त...गंदे...बदमाश
सुलोचना फिर से शर्म से बेहाल हो जाती है।
उदय- सच माँ... बहुत मन करता है तेरी प्यारी सी बूर देखने का, यह सच है कि बेटा अपनी माँ की बूर को देखना चाहता है, उसके मन मे ये इच्छा होती है कि उसकी माँ की बूर कैसी होगी?...दोनों फांकें कैसी होंगी?...फांकों के बीच की दरार कितनी लंबी और रसीली होगी?..... उसकी महक कैसी होगी?....माँ की बूर की गंध कैसी होगी?....भगनासा कैसा होगा?...बूर छोटी सी होगी या बड़ी सी, जब वो नंगी होकर दोनो पैर सीधे करके उसके सामने लेटेगी तो उसकी बूर कैसी दिखती होगी, एक बेटा अपनी माँ की बूर को देखना चाहता है चूमना चाहता है...मुझे दिखाओगी न अपनी बूर...माँ?
सुलोचना उदयराज से बुरी तरह लिपट जाती है, कुछ नही बोलती, शर्म से वह लाल हो चुकी थी, बूर शब्द उदय के मुंह से सुनते ही वह बेसुध हो जाती है, योनि, बूर, फांकें, ये सब शब्द सुने बरसों बीत गए थे,उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी, मोटी मोटी चूचीयाँ उदय के सीने से दब गई थी।
उदय फिर धीरे से सुलोचना के कान में - माँ... मुझे अपनी बूर पेलने दोगी...चोदने दोगी मुझे, बहुत मन करता है बूर छूने का?
सुलोचना बदहवास ही उदय से लिपट जाती है काफी देर तक उससे लिपटी रहती है फिर सिसकते हुए धीरे से बोलती है- हाँ... हाँ....मेरे बेटे.....करने दूंगी।
और ख्यालों में इतना सोचते ही सुलोचना की आंखें खुल जाती है, उसके बदन में बहुत उत्तेजना हो रही थी, बूर उसकी बहुत पनिया गयी, उससे अब बर्दाश्त नही हो पाया और वह आंखें खोल कल्पना की दुनियाँ से बाहर आ गयी
देखा तो सारी आत्माएं चारों तरफ चीखते चिल्लाते हुए उसके चारों ओर घूम रही थी, उसमे से एक एकदम उसके सामने आके चिल्लाते हुए बोली- मजा आया...कितना आनंद है न पाप में?
और जैसे ही सुलोचना की योनि की तरफ लपकी योनि के ठीक सामने रखे नारियल में जा घुसी, वो नारियल भी सिद्ध मंत्र से तैयार किया हुआ था जैसे ही वह आत्मा उसमे घुसी उसके पीछे सारी आत्माएं एक एक करके बूर का अर्क छूने के लिए बड़ी तेजी से आगे बढ़ी और सब की सब नारियल में जा फंसी, बहुत तेज चीखने की आवाज हुई, सुलोचना ने वो नारियल साड़ी के अंदर से निकाला और बगल में रखे काले धागे से उसे बांधते हुए, मंत्र पढ़ा और महात्मा जी का नाम लेकर यज्ञ कुंड की धधकती अग्नि में डाल दिया, बुरी आत्माओं के भस्म होने के दौरान मानो चीखने की आवाज पूरे जंगल में गूंज गयी हो, अब तक आयी हुई सारी आत्मओं का एक ही नारियल में भस्मीकरण हो गया, अपनी उत्तेजना को सुलोचना ने काबू किया, दरवाजे पर लटका नीबू जो पूरा लाल हो गया था एक बार फिर अपने वास्तविक रंग में आ गया।