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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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S_Kumar

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वाह
 
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S_Kumar

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वेलकम बैक कुमार भाई ! फिर से आपने जलवा बिखरना शूरू कर दिया।
आप की दूसरी स्टोरी पर भी रीडर्स की निगाहें टिकी हुई है। उसे भी लिखना स्टार्ट कर दीजिए।
इसके बाद ही भाई। शुक्रिया, ज्यादा वक्त नही मिल पाने की वजह से दोनों पर फोकस करना कठिन है।
 
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कुछ बुरी आत्माओं के भस्म हो जाने पर जो आवाज जंगल में गूंजी, उसे जंगल के शैतान ने भी सुनी और दूसरी बुरी आत्माओं का ध्यान कुटिया की ओर आकर्षित हुआ जिसमे वह आत्मा भी थी जो तोता बनकर रजनी के पास गई थी, शैतान को महात्मा ने यह छूट दी थी कि वह रजनी और उदयराज की मुसीबतों से रक्षा करेगा इसके लिए वह रजनी के गांव तक विचरण कर सकता है, महात्मा ने अपनी शक्ति से उसके बंधन को थोड़ा खोल दिया था, पर जब वह खुद ही अपनी शीघ्र मुक्ति के लिए नारी जाति के लिए मुसीबत बनने जा रहा था तो महात्मा ने उसे पुनः एक ही स्थान पर बांध दिया।

शैतान को इतनी आसानी से भस्म नही किया जा सकता था और उसे भस्म करने की जरूरत भी नही थी क्योंकि वह तो स्वयं ही एक पेड़ से एक जगह बंधा हुआ था, सारी बड़ी मुसीबत ये बुरी आत्माएँ थी उनको भस्म करना बहुत जरूरी था क्योंकि यही उस शैतान को भड़का रही थी और हर जगह भ्रमण कर रही थी, इसलिए ही सुलोचना को यह कार्य महात्मा ने सौंपा था जिसे वह सुचारू रूप से कर रही थी।

कुछ और बुरी आत्मायें जब झोपड़ी की ओर आकर्षित होकर आने लगी तो पुर्वा ने अपनी मन्त्र शक्ति से उस आत्मा को देख लिया जो तोता बनकर रजनी के पास दो बार जा चुकी थी।

पुर्वा उठकर झोपड़ी की तरफ दौड़ी और दरवाजे पर आकर बोली- अम्मा, अब की बार और भी आत्मायें आ रही है उसमें वो आत्मा भी है जो तोता बनकर गयी थी, आप संभाल लोगी या मैं भी आऊं?

सुलोचना- सारी एक साथ भी आ जाएंगी तो भी कुछ नही बिगाड़ सकती पुत्री, तू चिंता मत कर जा आराम कर ले मैं करती हूं नाश सबका, आने दे।

पुर्वा- पर अम्मा उसको मत मारना जो तोता बनी थी, उसको कैद कर लेना, उसको भेजना है न भैया के गांव।

सुलोचना- ठीक है बेटी तू अपने स्थान पर जाकर बैठ, उसको पकड़कर भेजती हूँ मैं, यहां झोपड़ी में बहुत गर्मी हो गयी है अग्नि की वजह से, तू जा बाहर बैठ।

पुर्वा- ठीक है अम्मा।

जैसे पुर्वा अपने स्थान पर बैठी वो सारी आत्मायें हाहाकार करती हुई झोपड़ी के ऊपर मंडराने लगी, पुर्वा ने उन्हें देखा और मुस्कुराकर फिर से मंत्र पढ़ने लगी।

पुर्वा भले ही बाहर बैठी थी पर वो जो मंत्र पढ़ रही थी वो मन्त्र सुलोचना द्ववारा पढ़े जा रहे मंत्र में सहायक था, उस मन्त्र से सुलोचना के मंत्र को और अधिक बल मिल रहा था, पुर्वा अपने काम में लग गयी।

आत्माएँ झोपड़ी के ऊपर मंडरा रही थी उन्हें योनि का रस महक रहा था, जैसे ही वो बुरी आत्माएँ झोपडी में घुसी, द्वार पर लगा निम्बू एकदम लाल हो गया। तेज तेज डरावनी आवाज़ें निकालकर चिल्लाने लगी, मानो अभी उठा ले जाएंगी सुलोचना को, मानो वो कोई असहाय नारी हो, उन्हें पता ही नही था कि कहां फंस गई हैं वो, पर जैसे ही उन्होंने अंदर घुसते ही अग्नि कुंड को देखा, असमंजस में पड़ गयी और दिखावटी डरावना चेहरा बना बना कर सुलोचना को डराने की कोशिश करने लगी।

उसमे से भी कुछ एक अत्यंत ही दुष्ट आत्मा जैसे ही साड़ी के अंदर लपकी,योनि के ठीक सामने रखे नारियल में जा घुसी, उसके पीछे पीछे एक दम से सारी आत्मायें साड़ी के अंदर बड़े ही वेग से लपकी पर सुलोचना ने उस आत्मा को पकड़कर बगल में रखे छोटे से सुपारी में कैद कर दिया, बाकी सब को नारियल में जाने दिया, नारियल को काले धागे से बांधा और मंत्र पढ़कर महात्मा जी का नाम लेते हुए अग्नि कुंड में डाल दिया, एक बार फिर बहुत तेज चीखने की आवाज हुई और नारियल के अंदर फंसी सारी आत्माएँ जलकर भस्म हो गयी, यह सारा वाक्या वह आत्मा देख रही थी जो सुपारी में बांधी गयी थी, वह बुरी तरह डर गई, सुलोचना ने उस सुपारी को हथेली पर रखा तो वो चिल्ला चिल्ला कर बहुत डरावनी आवाज में बोलने लगी- मुझे जाने दे!....मुझे जाने दे...मुझे छोड़ दे....नही आउंगी मैं यहाँ... मुझे छोड़ दे।

सुलोचना- तुझे जाने देने के लिए थोड़ी पकड़ा मैंने, देख तेरा भी यही हाल होगा जो इन सबका हुआ। पहले बता तोता क्यों बनी थी और विक्रमपुर क्यों गयी थी? बता जल्दी?

(सुलोचना और पुर्वा को यह नही पता था कि वह बुरी आत्मा तोता बनकर विक्रमपुर करने क्या गयी थी)

बुरी आत्मा- ये मैं तुझे नही बता सकती, मैं वचन बद्ध हूँ।

सुलोचना- कैसा वचन? किसको वचन दिया है तूने की तू किसी को नही बता सकती?

बुरी आत्मा- मनुष्य जाति को मैं यह नही बता सकती और यह वचन शैतान को दिया है, मैं उसके प्रति वचन बद्ध हूँ। अगर मैं वचन तोड़ती हूँ तो बहुत सारी मानव स्त्री की मत्यु निश्चित है?

(दरअसल सुलोचना और पुर्वा को यह नही पता था कि वो आत्मा विक्रमपुर रजनी की बूर का रस लेने दो बार गयी थी जैसे कि वह आज रात यहां आयी है, वो दोनों बस यहां तक जान पाई थी की वो आत्मा विक्रमपुर गयी थी, वह आत्मा किसी मनुष्य को यह न बताने के लिए वचन बद्ध थी कि वह आखिर कर क्या रही हैं, और विक्रमपुर क्यों गयी थी, अगर वह यह बता देती की वह रजनी के पाप कर्म से निकली योनि का रस लेकर आ चुकी है तो सुलोचना यह जान जाती की रजनी अपने पिता के साथ पाप कर चुकी है और उन दोनों का राज पुर्वा और सुलोचना के सामने आ जाता, नियति ने यहां बहुत सोच समझ कर खेल खेला था।)

(आम स्त्री को यह पता ही नही चलता था जब वह पाप कर्म के बारे में सोचती थी या करती थी तो ये आत्मायें उनकी योनि से योनिरस ये लेती थी, क्योंकि आत्मा वायु रूप (सूक्ष्म रूप) में होती हैं तो आम स्त्री को इसकी भनक तक नही लगती। इस आत्मा ने रजनी को रिझाने के लिए एक सुंदर तोते का रूप लेकर खुद को सूक्ष्म रूप से भौतिक देह रूप में लाकर बहुत बड़ी गलती कर दी थी, इसी वजह से वो नज़रों में आ गयी, अगर इस आत्मा ने ऐसा न किया होता तो पुर्वा इसे इतनी जल्दी नही ढूंढ पाती।)

सुलोचना- अच्छा तो तू नही बताएगी की विक्रमपुर क्यों गयी थी?

बुरी आत्मा- मैं नही बता सकती, मैं वचन बद्ध हूँ।

सुलोचना- तो तू यहां क्या करने आई थी।

बुरी आत्मा- इतना तो मैं अब जान गई हूं कि तू जानती है कि मैं यहां क्या करने आई थी?

सुलोचना- क्यों कर रही हो तुम लोग ये सब?

बुरी आत्मा- यह मैं नही बता सकती।

सुलोचना- कहीं तू विक्रमपुर भी तो यही करने नही गयी थी....बता जल्दी?

बुरी आत्मा- नही

(बुरी आत्मा ने यहाँ झूठ बोला)

सुलोचना- देख डायन...तुम सबको तो मैं ऐसे ही भस्म कर दूंगी जैसे अभी तेरे सामने उन सबको किया, अपने मंसूबे में तुम लोग कभी सफल नही हो सकती, इसलिए देख बता कि आखिर तुम लोग क्या कर रहे हो?, क्यों कर रहे हो? और तू विक्रमपुर क्यों गयी थी?

बुरी आत्मा हाहाकार करते हुए- अगर मैं अपना वचन तोड़कर तुझे बता दूंगी तो वो सारी स्त्री तुरंत मारी जाएंगी, जिनका अर्क इकट्ठा हो चुका है।

सुलोचना- अच्छा तो ये बात है। तो मरने के लिए तैयार हो जा।

बुरी आत्मा के चेहरे पर डर साफ झलकने लगा- नही नही मुझे मत मारो...मुझे जाने दो...मुझे छोड़ दो।

सुलोचना- एक काम करना है तुझे मेरे लिए।

बुरी आत्मा- क्या काम।

सुलोचना- विक्रमपुर जा और वहां उदयराज के घर के ऊपर पुर्वा... सुलोचना....पुर्वा.... सुलोचना का नाम बोलकर आ, सिर्फ यही बोलना है अभी तुरंत जा और सुबह 4 बजे से पहले पहले वापिस आ।

बुरी आत्मा- फिर मुझे नही मरोगी?

सुलोचना- सही से काम करके आएगी तो कुछ दिन और पृथ्वी लोक पर रह लेगी....अब जल्दी जा।

सुलोचना ने एक मंत्र पढ़ा और उस आत्मा को विक्रमपुर के गांव की सीध तक बांध दिया ताकि वह इधर उधर न जा पाए, सुपारी में से आजाद कर छोड़ दिया, निम्बू अभी भी हल्का सा लाल था क्योंकि सभी कैद आत्माओं में से एक आत्मा अभी भस्मीकरण से बच गयी थी
वो आत्मा झट से झोपड़ी से निकल विक्रमपुर की ओर उड़ चली।

रात के 2 बज रहे थे जैसे वह आत्मा विक्रमपुर रजनी के गांव पहुंची उसने देखा कि काकी बाहर नीम के पेड़ के नीचे एक छोटी सी बच्ची को लेकर सो रही थी, वह नीम के पेड़ पर थोड़ा रुकी फिर घर की तरफ गयी, घनी अंधेरी रात में वह घर के आंगन की मुंडेर पर जा बैठी और जैसे ही उसने आंगन में देखा वह खुश हो गयी, आंगन के अंदर के दृश्य देखकर एक पल के लिए वह ये भूल गयी कि करने क्या आयी थी।
कहीं उदयराज और रजनी कुछ करते तो नहीं पकड़े गए ?
 

Mink

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jabardast update aakhir tota kar kya raha hai wo toh sirf rajni ke rajj leke aaya hai magar sulochana ko bola ki aur se bahut mahilaon ka ark uske paas hai toh kya woh bandhan se pahle kuch anusthan kar raha tha ya phir sulochana ko gumrah kar raha hai...
 
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Navel Queen

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यह बहुत ही सुंदर और लाजवाब कहानी है। बेहतरीन लेखन! बिल्कुल दिमाग उड़ाने वाला अपडेट।
 
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