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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Update- 91

कुछ बुरी आत्माओं के भस्म हो जाने पर जो आवाज जंगल में गूंजी, उसे जंगल के शैतान ने भी सुनी और दूसरी बुरी आत्माओं का ध्यान कुटिया की ओर आकर्षित हुआ जिसमे वह आत्मा भी थी जो तोता बनकर रजनी के पास गई थी, शैतान को महात्मा ने यह छूट दी थी कि वह रजनी और उदयराज की मुसीबतों से रक्षा करेगा इसके लिए वह रजनी के गांव तक विचरण कर सकता है, महात्मा ने अपनी शक्ति से उसके बंधन को थोड़ा खोल दिया था, पर जब वह खुद ही अपनी शीघ्र मुक्ति के लिए नारी जाति के लिए मुसीबत बनने जा रहा था तो महात्मा ने उसे पुनः एक ही स्थान पर बांध दिया।

शैतान को इतनी आसानी से भस्म नही किया जा सकता था और उसे भस्म करने की जरूरत भी नही थी क्योंकि वह तो स्वयं ही एक पेड़ से एक जगह बंधा हुआ था, सारी बड़ी मुसीबत ये बुरी आत्माएँ थी उनको भस्म करना बहुत जरूरी था क्योंकि यही उस शैतान को भड़का रही थी और हर जगह भ्रमण कर रही थी, इसलिए ही सुलोचना को यह कार्य महात्मा ने सौंपा था जिसे वह सुचारू रूप से कर रही थी।

कुछ और बुरी आत्मायें जब झोपड़ी की ओर आकर्षित होकर आने लगी तो पुर्वा ने अपनी मन्त्र शक्ति से उस आत्मा को देख लिया जो तोता बनकर रजनी के पास दो बार जा चुकी थी।

पुर्वा उठकर झोपड़ी की तरफ दौड़ी और दरवाजे पर आकर बोली- अम्मा, अब की बार और भी आत्मायें आ रही है उसमें वो आत्मा भी है जो तोता बनकर गयी थी, आप संभाल लोगी या मैं भी आऊं?

सुलोचना- सारी एक साथ भी आ जाएंगी तो भी कुछ नही बिगाड़ सकती पुत्री, तू चिंता मत कर जा आराम कर ले मैं करती हूं नाश सबका, आने दे।

पुर्वा- पर अम्मा उसको मत मारना जो तोता बनी थी, उसको कैद कर लेना, उसको भेजना है न भैया के गांव।

सुलोचना- ठीक है बेटी तू अपने स्थान पर जाकर बैठ, उसको पकड़कर भेजती हूँ मैं, यहां झोपड़ी में बहुत गर्मी हो गयी है अग्नि की वजह से, तू जा बाहर बैठ।

पुर्वा- ठीक है अम्मा।

जैसे पुर्वा अपने स्थान पर बैठी वो सारी आत्मायें हाहाकार करती हुई झोपड़ी के ऊपर मंडराने लगी, पुर्वा ने उन्हें देखा और मुस्कुराकर फिर से मंत्र पढ़ने लगी।

पुर्वा भले ही बाहर बैठी थी पर वो जो मंत्र पढ़ रही थी वो मन्त्र सुलोचना द्ववारा पढ़े जा रहे मंत्र में सहायक था, उस मन्त्र से सुलोचना के मंत्र को और अधिक बल मिल रहा था, पुर्वा अपने काम में लग गयी।

आत्माएँ झोपड़ी के ऊपर मंडरा रही थी उन्हें योनि का रस महक रहा था, जैसे ही वो बुरी आत्माएँ झोपडी में घुसी, द्वार पर लगा निम्बू एकदम लाल हो गया। तेज तेज डरावनी आवाज़ें निकालकर चिल्लाने लगी, मानो अभी उठा ले जाएंगी सुलोचना को, मानो वो कोई असहाय नारी हो, उन्हें पता ही नही था कि कहां फंस गई हैं वो, पर जैसे ही उन्होंने अंदर घुसते ही अग्नि कुंड को देखा, असमंजस में पड़ गयी और दिखावटी डरावना चेहरा बना बना कर सुलोचना को डराने की कोशिश करने लगी।

उसमे से भी कुछ एक अत्यंत ही दुष्ट आत्मा जैसे ही साड़ी के अंदर लपकी,योनि के ठीक सामने रखे नारियल में जा घुसी, उसके पीछे पीछे एक दम से सारी आत्मायें साड़ी के अंदर बड़े ही वेग से लपकी पर सुलोचना ने उस आत्मा को पकड़कर बगल में रखे छोटे से सुपारी में कैद कर दिया, बाकी सब को नारियल में जाने दिया, नारियल को काले धागे से बांधा और मंत्र पढ़कर महात्मा जी का नाम लेते हुए अग्नि कुंड में डाल दिया, एक बार फिर बहुत तेज चीखने की आवाज हुई और नारियल के अंदर फंसी सारी आत्माएँ जलकर भस्म हो गयी, यह सारा वाक्या वह आत्मा देख रही थी जो सुपारी में बांधी गयी थी, वह बुरी तरह डर गई, सुलोचना ने उस सुपारी को हथेली पर रखा तो वो चिल्ला चिल्ला कर बहुत डरावनी आवाज में बोलने लगी- मुझे जाने दे!....मुझे जाने दे...मुझे छोड़ दे....नही आउंगी मैं यहाँ... मुझे छोड़ दे।

सुलोचना- तुझे जाने देने के लिए थोड़ी पकड़ा मैंने, देख तेरा भी यही हाल होगा जो इन सबका हुआ। पहले बता तोता क्यों बनी थी और विक्रमपुर क्यों गयी थी? बता जल्दी?

(सुलोचना और पुर्वा को यह नही पता था कि वह बुरी आत्मा तोता बनकर विक्रमपुर करने क्या गयी थी)

बुरी आत्मा- ये मैं तुझे नही बता सकती, मैं वचन बद्ध हूँ।

सुलोचना- कैसा वचन? किसको वचन दिया है तूने की तू किसी को नही बता सकती?

बुरी आत्मा- मनुष्य जाति को मैं यह नही बता सकती और यह वचन शैतान को दिया है, मैं उसके प्रति वचन बद्ध हूँ। अगर मैं वचन तोड़ती हूँ तो बहुत सारी मानव स्त्री की मत्यु निश्चित है?

(दरअसल सुलोचना और पुर्वा को यह नही पता था कि वो आत्मा विक्रमपुर रजनी की बूर का रस लेने दो बार गयी थी जैसे कि वह आज रात यहां आयी है, वो दोनों बस यहां तक जान पाई थी की वो आत्मा विक्रमपुर गयी थी, वह आत्मा किसी मनुष्य को यह न बताने के लिए वचन बद्ध थी कि वह आखिर कर क्या रही हैं, और विक्रमपुर क्यों गयी थी, अगर वह यह बता देती की वह रजनी के पाप कर्म से निकली योनि का रस लेकर आ चुकी है तो सुलोचना यह जान जाती की रजनी अपने पिता के साथ पाप कर चुकी है और उन दोनों का राज पुर्वा और सुलोचना के सामने आ जाता, नियति ने यहां बहुत सोच समझ कर खेल खेला था।)

(आम स्त्री को यह पता ही नही चलता था जब वह पाप कर्म के बारे में सोचती थी या करती थी तो ये आत्मायें उनकी योनि से योनिरस ये लेती थी, क्योंकि आत्मा वायु रूप (सूक्ष्म रूप) में होती हैं तो आम स्त्री को इसकी भनक तक नही लगती। इस आत्मा ने रजनी को रिझाने के लिए एक सुंदर तोते का रूप लेकर खुद को सूक्ष्म रूप से भौतिक देह रूप में लाकर बहुत बड़ी गलती कर दी थी, इसी वजह से वो नज़रों में आ गयी, अगर इस आत्मा ने ऐसा न किया होता तो पुर्वा इसे इतनी जल्दी नही ढूंढ पाती।)

सुलोचना- अच्छा तो तू नही बताएगी की विक्रमपुर क्यों गयी थी?

बुरी आत्मा- मैं नही बता सकती, मैं वचन बद्ध हूँ।

सुलोचना- तो तू यहां क्या करने आई थी।

बुरी आत्मा- इतना तो मैं अब जान गई हूं कि तू जानती है कि मैं यहां क्या करने आई थी?

सुलोचना- क्यों कर रही हो तुम लोग ये सब?

बुरी आत्मा- यह मैं नही बता सकती।

सुलोचना- कहीं तू विक्रमपुर भी तो यही करने नही गयी थी....बता जल्दी?

बुरी आत्मा- नही

(बुरी आत्मा ने यहाँ झूठ बोला)

सुलोचना- देख डायन...तुम सबको तो मैं ऐसे ही भस्म कर दूंगी जैसे अभी तेरे सामने उन सबको किया, अपने मंसूबे में तुम लोग कभी सफल नही हो सकती, इसलिए देख बता कि आखिर तुम लोग क्या कर रहे हो?, क्यों कर रहे हो? और तू विक्रमपुर क्यों गयी थी?

बुरी आत्मा हाहाकार करते हुए- अगर मैं अपना वचन तोड़कर तुझे बता दूंगी तो वो सारी स्त्री तुरंत मारी जाएंगी, जिनका अर्क इकट्ठा हो चुका है।

सुलोचना- अच्छा तो ये बात है। तो मरने के लिए तैयार हो जा।

बुरी आत्मा के चेहरे पर डर साफ झलकने लगा- नही नही मुझे मत मारो...मुझे जाने दो...मुझे छोड़ दो।

सुलोचना- एक काम करना है तुझे मेरे लिए।

बुरी आत्मा- क्या काम।

सुलोचना- विक्रमपुर जा और वहां उदयराज के घर के ऊपर पुर्वा... सुलोचना....पुर्वा.... सुलोचना का नाम बोलकर आ, सिर्फ यही बोलना है अभी तुरंत जा और सुबह 4 बजे से पहले पहले वापिस आ।

बुरी आत्मा- फिर मुझे नही मरोगी?

सुलोचना- सही से काम करके आएगी तो कुछ दिन और पृथ्वी लोक पर रह लेगी....अब जल्दी जा।

सुलोचना ने एक मंत्र पढ़ा और उस आत्मा को विक्रमपुर के गांव की सीध तक बांध दिया ताकि वह इधर उधर न जा पाए, सुपारी में से आजाद कर छोड़ दिया, निम्बू अभी भी हल्का सा लाल था क्योंकि सभी कैद आत्माओं में से एक आत्मा अभी भस्मीकरण से बच गयी थी
वो आत्मा झट से झोपड़ी से निकल विक्रमपुर की ओर उड़ चली।

रात के 2 बज रहे थे जैसे वह आत्मा विक्रमपुर रजनी के गांव पहुंची उसने देखा कि काकी बाहर नीम के पेड़ के नीचे एक छोटी सी बच्ची को लेकर सो रही थी, वह नीम के पेड़ पर थोड़ा रुकी फिर घर की तरफ गयी, घनी अंधेरी रात में वह घर के आंगन की मुंडेर पर जा बैठी और जैसे ही उसने आंगन में देखा वह खुश हो गयी, आंगन के अंदर के दृश्य देखकर एक पल के लिए वह ये भूल गयी कि करने क्या आयी थी।
आआआआह बाप बेटी फिर से।

काश ऐसा वर्णन सगे भाई बहन या सगे मां बेटे का होता।
 

S_Kumar

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Update- 92

आँगन में एक तरफ जहां गुसलखाना था ठीक उसके सामने एक चौकी थी चौकी पर दो बाल्टी रखी थी जिसमे से एक पानी से पूरी भरी थी और दूसरी खाली थी, भरी बाल्टी में एक लोटा तैर रहा था, पास में ही कुछ बर्तन रखे थे, जिन्हें रजनी ने आज रात धोया नही था, ठीक उन बर्तनों के समीप दीवार के सहारे रजनी खड़ी थी उसके दूधिया बदन पर मात्र पेटीकॉट (साया) और ब्रा रह गयी थी, पैंटी उदय ने घुटनों तक खींच कर नीचे सरका रखी थी, रजनी दीवार का सहारा लेकर ऐसे खड़ी थी मानो दीवार हट जाए तो वो तुरंत गिर पड़ेगी, दोनो मोटी मोटी जांघे उसकी थोड़ी फैली हुई थी, और केले के तने के समान मोटी मोटी जांघों के बीच पावरोटी की तरह उत्तेजना में फूली हुई उसकी बूर महक रही थी।

अंधेरी रात थी और खिड़की पर एक छोटा सा दिया जल रहा था और ये दिया रजनी ने रात के 2 बजे जानबूझ कर जलाया था ताकि व्यभिचार में मगन दो बदन को आसानी से देखा जा सके।
मोटी मोटी दोनो चूचीयाँ उत्तेजना में ब्रा के अंदर और फूलकर किसी गोल गोल गुब्बारे का रूप ले चुकी थी। रजनी ने अपने बाएं हाँथ से आगे की तरफ से साये को कमर तक उठाकर मोड़कर पकड़ रखा था और दूसरे हाँथ से अपनी रसीली पावरोटी जैसी बूर की दोनो फांकों को हल्का सा खोलते हुए धीरे से बोली- "बाबू अब रगड़िये न अपने उससे यहां पर, पेशाब आने वाला है मुझे।"

उदयराज ने झट से अपनी धोती खोली और अपना विशाल फुंकारता हुआ काला लंड बाहर निकाला, उसे देखते ही रजनी ने एक पल के लिए अपनी बूर को छोड़कर अपने बाबू के दहकते लंड पर हाँथ फेरा और कराह उठी, उसकी चमड़ी को उसने सिसकते हुए खोला और फिर बंद किया, फिर खोला और फिर हल्का सा बन्द किया, लंड लोहे की तरह सख्त होकर ठुनकने लगा, उदय ने अपनी पूरी धोती खोल दी, और एक हाँथ से अपनी बिटिया की महकती फूली हुई बूर को हल्का हल्का सहलाने लगा, फिर हाँथ को नाक तक ले जाकर धीरे से सूँघा और अपनी सगी बेटी की बूर की मदहोश कर देने वाली गन्ध को सूंघकर उसकी आह निकल गयी, रजनी अपने बाबू को देखकर शर्मा गयी

रजनी- आआआआहहहहहह...बाबू रगड़िये न बूर के मुँह पर पेशाब आने वाला है मेरा...खेलिये न वही खेल...मैं मूतूँगी आप इसे रगड़िये बूर की दरार में।

(इतना कहकर रजनी ने सिसकते हुए अपने सगे बाबू के लंड की चमड़ी को पूरा नीचे की तरफ खींचते हुए सुपाड़ा खोल दिया, छोटे गेंद की भांति फुले हुए चिकने सुपाड़े पर वो बड़ी मादकता से अपना अंगूठा रगड़ने लगी और मारे उत्तेजना के उदय का लंड रह रहकर ठुनकने लगा)

उदयराज रजनी की फूली हुई गोरी गोरी बूर को सहलाये जा रहा था, एक बार उसने अच्छे से अपनी बिटिया की मस्त मोटी मोटी जांघों को सहलाया और फिर से बूर की फांकों को तर्जनी और मध्यमा उंगली से हल्का सा खोलकर जैसे ही हल्का सा अपनी गांड को आगे किया रजनी ने कराहते हुए अपने बाबू के लंड को पकड़कर उसका सुपाड़ा अपनी बूर की फांकों के बीच बैठा दिया, दोनो का बदन मस्ती में गनगना गया।

उदयराज- आआआहहह मेरी बिटिया...कितनी नरम है तेरी बूरररररर....आह....अब मूत... बहुत धीरे धीरे धार छोड़ना....हाय मेरी रानी...मेरी बेटी।

रजनी उत्तेजना में अपने बाबू से लिपट गयी, अपने बाबू के गालों को शर्माते हुए चूमने लगी, फिर धीरे से उसने पेशाब की थोड़ी सी धार छोड़ी और गरम गरम अपनी सगी बेटी के पेशाब की धार जब उदयराज को अपने चिकने सुपाड़े पर पड़ी तो दोनों ही सिसक पड़े, मस्ती की तरंगें पूरे बदन में सनसनी की तरह फैल गयी। थोड़ा सा मूतकर रजनी हल्का सा रुकी, रजनी का गरम गरम पेशाब दोनो बाप बेटी की जांघों से बहता हुआ नीचे आने लगा।

उदय- हाय मेरी रसीली बिटिया...और मूत न...मूत के भिगा दे अपने बाबू का लंड अपने मूत से।

रजनी शर्म से बेहाल भी होती जा रही थी और उत्तेजना में अपने गाल अपने बाबू के गाल से रगड़ भी जा रही थी, रह रहकर उत्तेजना में उसका बदन थरथरा जाता, दरअसल उदयराज का मूसल जैसा लंड उसकी बूर के भग्नासे से भिड़ा हुआ था, बूर की दोनो फांक अच्छे से फैली हुई थी और लंड का सुपाड़ा धीरे धीरे दोनो फांकों के बीच रगड़ रहा था जिससे रजनी मस्ती में थरथरा जा रही थी। अगर उदय हल्का सा और लंड को थोड़ा नीचे करके पेलता तो लन्ड एक ही बार में रजनी की बूर में घुसता हुआ बच्चेदानी से जा टकराता, पर खेल ये था कि उदय अपना मोटा सुपाड़ा अपनी बिटिया की बूर की फांकों में रगड़ेगा और रजनी धीरे धीरे मूतेगी। इसके लिए रजनी ने कुछ देर पहले डेढ़ लोटा पानी पिया था।

रजनी ने एक बार फिर धीरे धीरे पेशाब करना शुरू किया, पेशाब की गर्म गर्म धार फिर से बूर से निकलकर उदय के पूरे लंड को भिगोते हुए दोनों की जांघों से होकर नीचे को बहने लगी, दोनो फिर सिसकने लगे, उदय और रजनी दोनो ही हौले हौले अपनी अपनी गांड हिलाने लगे, उत्तेजना इतनी थी कि उत्तेजना में रजनी से ठीक से मूता भी नही जा रहा था जबकि उसको पेशाब तेजी से लगी थी पर उत्तेजना में मूत्र त्याग जल्दी से नही होता, और यही मजा था, रजनी ने अपने साये को छोड़ दिया और वह चौकी पर जा गिरा, वह बुरी तरह अपने बाबू के गले मे दोनो बाहें डालते हुए लिपट गयी। अब वह दीवार के सहारे कम और अपने बाबू पर पूरी तरह लदी हुई थी, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई चिकना खूंटा उसकी बूर को दो भाग में बांट देगा।

उदयराज मस्ती में अपनी बेटी की मांसल चौड़ी गांड को दोनो हथेलियों में भरकर मसलने लगा, रजनी और सिसकने लगी, कभी कभी वह अपनी हथेली से रजनी के गोरे गुदाज भारी भरकम नितम्ब के दोनों पाटों को अच्छे से और चौड़ा करके फाड़ता और बड़े प्यार से उसके गांड के गुलाबी चिकने छेद को अपनी उंगलियों से छेड़ता और सहलाता तो रजनी "आआआआ हहहहहहह....बाबू बस...धीरे से" कहकर उनके गालों को शर्माकर चूम लेती।

उदय- मूत न बिटिया रानी।

रजनी ने फिर तेजी से पेशाब की धार छोड़ी और दोनों हल्का हल्का एक दूसरे को चोदने लगे, पर रजनी उत्तेजना में सनसना गयी और उसका मूत फिर एक बार रुक गया।

उदय- मूत न बेटी....थोड़ी देर तक धार छोड़।

रजनी ने उत्तेजना को काबू करने की कोशिश की और पेशाब पर अपना ध्यान लगा कर मूतने लगी, उसने एक तेज धार छोड़ी और कुछ देर तक सससर्रर्रर्रर्रर्रर्ररररररर की आवाज करते हुए मूतने लगी, उदय ने उत्तेजना में रजनी के गर्दन और गालों, होंठों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, गर्म गर्म सगी बेटी का पेशाब काफी देर तक बूर की दोनो फांकों से निकलकर पिता के लंबे काले मोटे लंड को भिगाता हुआ दोनो की जांघों से होता हुआ चौकी पर गिरने लगा।

काफी देर तक मूतने के बाद रजनी और कस के अपने बाबू से शर्माते हुए लिपट गयी, उदय ने उसके चेहरे को सामने किया और उसके रसभरे होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगा।

उत्तेजना से लंड और बूर का बुरा हाल था, आँगन की मुंडेर पर बैठी बुरी आत्मा सगे बाप-बेटी के पाप और व्यभिचार को देखकर मगन हो गयी।

जब पेशाब की आखिरी बूंद तक रजनी की बूर से निकलकर उसके बाबू के लंड को भिगा दी तो उदय ने रजनी को अपनी दोनों बाहों में उठा लिया और रजनी एक मादक अंगड़ाई लेते हुए मचल उठी, उदय पूरा नग्न था उसका काला लंड स्वछंद रूप से इधर उधर लहरा रहा था बेसब्री से अपनी सगी बेटी की मखमली बूर में जाने के लिए व्याकुल हो रहा था।

रजनी को बाहों में लिए वह चौकी से चलकर आँगन के बीचों बीच रखी एक छोटी सी खटिया पर आया जिसपर एक चादर बिछी हुई थी, ठीक उसी के सामने खिड़की पर छोटा सा दिया जल रहा था।
 

S_Kumar

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jabardast update aakhir tota kar kya raha hai wo toh sirf rajni ke rajj leke aaya hai magar sulochana ko bola ki aur se bahut mahilaon ka ark uske paas hai toh kya woh bandhan se pahle kuch anusthan kar raha tha ya phir sulochana ko gumrah kar raha hai...
अर्क केवल तोता ही नही इकट्ठा कर रहा बल्कि बहुत सी बुरी आत्मायें मिलकर कर रही हैं, थैंक्स फ़ॉर कमैंट्स भाई
 
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