Update-19
सुलोचना- पुत्र जिस तरह तुम्हारा हरा भरा गांव विक्रमपुर है ठीक वैसे ही हमारा गांव था, हमारा भी एक घर था, हंसी खुशी जिंदगी बीत रही थी पर मेरे पति को साधना, मंत्र जागृत करना, झाड़ फूक में माहिर बनना, इन सबमें बहुत रुचि थी, और इसी की खोज में वो हमेशा लगे रहते थे, घर गृहस्थी चलाने पर, धन अर्जित करने पर उनका कोई ध्यान नही था, एक बार बड़ा तांत्रिक बनने के चक्कर में अज्ञानी, पाखंडी, झूठे गुरुओं के चक्कर में आकर वो घर छोड़ कर चले गए, और गलत साधना कर बैठे बुरी आत्माएं उनपर हावी हो गयी और वो पागल हो गए, जंगल में भटकते भटकते उनकी मौत हो गयी।
मैं अपने पति से बहुत प्यार करती थी इसलिए मैंने ये प्रण किया कि मैं उनके अधूरे सपने को पूरा करूँगी और स्वयं घर छोड़कर अपनी बेटी पूर्वा को लेकर एक सच्चे, दिव्य पुरुष की तलाश में निकल पड़ी, जो मुझे सही साधना की विधि बताकर उसमे सफल बनायें।
उदयराज- तो आपके पति का सपना क्या था?
सुलोचना- मेरे पति का सपना था कि वो एक सही सच्चे तांत्रिक बनकर जन मानस की सेवा करें।
उदयराज- ये तो बहुत नेक और अच्छा विचार था उनका।
सुलोचना- हाँ, पर शुरू में उन्होंने कभी किसी से इसका जिक्र नही किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि लोग उनपर हसेंगे, लोग ताने देंगे अगर वो सफल नही हुए तो, इसलिए उन्होंने सोचा था कि जब सफल हो जाऊंगा तब ही सबको बताऊंगा और गुपचुप तरीके से करने के लिए घर छोड़ दिया था पर गलत लोगों के हांथों में पड़कर वो गलत दिशा में चले गए और आज इस दुनिया में नही हैं।
उदयराज- तो आपको वो सच्चा सही गुरु कौन मिला जिसने आपको सही दिशा देकर आपके प्रण को सफल बनाया।
सुलोचना- वही, जिसके पास तुम जाना चाहते हो।
उदयराज- क्या?
सुलोचना- हां, तुमने सही सुना, तुम सही जगह जा रहे हो, तुम्हारी समस्या जो भी हो उसका समाधान वही कर सकते हैं, तुम्हारे मन में अगर अब भी कोई दुविधा है तो मैं कहती हूँ उसे निकाल दो। क्योंकि मैं भी उनकी शिष्य हूँ।
उदयराज आश्चर्य से देखता रह जाता है।
उदयराज- जब आप उनकी शिष्या है और आपको सिद्धि भी प्राप्त है तो मेरी समस्या तो आप भी हल कर सकती हैं
सुलोचना- नही पुत्र, मैंने केवल एक साधना की है, उनके पास सैकड़ों शक्तियां हैं, वो दिव्य हैं, वो गुरु है, मैं इतनी शक्तिशाली नही, मैं तो बस छोटी मोटी तांत्रिक ही हूँ।
उदयराज- लेकिन अभी तक तो आपने मेरी समस्या सुनी भी नही, न ही मैंने आपको बताई, तो आप ये कैसे कह सकती हैं की आप इसका हल नही बता सकती।
सुलोचला- मैं तुम्हे देखकर अपने मंत्रों की शक्ति से ये तो जान सकती हूं कि तुम्हारी समस्या कठिन है या सरल पर मैं उसका हल नही बता सकती, और तुम्हारी समस्या बहुत जटिल है (थोड़ा रुककर) और अगर सरल भी होती तो भी मैं उसका हल नही बताती।
उदयराज चकित होकर- भला क्यों?
सुलोचला- क्योंकि यह नियति तय करती है कि किस चीज़ का समाधान कहाँ होना है, किस्से होना है, कब होना है, इंसान के हाथ में कुछ भी नही।
उदयराज के मन में कई सवाल उठ रहे थे
उदयराज- तो जब आप यहां नई नई आयी तो आपके पास तो कोई ताबीज़ नही होगी फिर आप उन तक कैसे पहुँची।
सुलोचला- उस वक्त वो सिंघारो जंगल में इतनी अंदर तक नही बसे थे, वो यहीं रहते थे।
हालांकि उदयराज के मन में काफी सवाल थे पर इस वक्त अब और सवाल करना उसने उचित नही समझा। उसने सोचा कि वो बाद में पूछेगा।
सुलोचना ने उदयराज को आराम करने को बोलकर जंगल में कुछ विशेष जड़ी बूटियां लेने पूर्वा को ये बोलकर चली गयी कि जल्दी खाना बना ले।
अंदर रजनी और पूर्वा मिलजुलकर खाना बनाने लगी वो अब तक एक पक्की सहेली बन चुकी थी।
काकी गुड़िया को लेकर बाहर आ गयी और उदयराज से बातें करने लगी।
खाना बनने के बाद सबने खाना खाया, सुलोचना ने केवल शहद का सेवन किया और फिर कुटिया में हवन करने बैठ गयी।
कुटिया के बाहर दायीं तरह एक छोटी छप्पर की कुटिया और थी जिसमे सब लेटे थे।
सबसे कोने में उदयराज लेटा था, उससे पहले रजनी, उससे पहले काकी और सबसे बाहर की तरफ पूर्वा की लेटी थी।
उन चारों में केवल काकी ही ऐसी थी जो बिस्तर पे पड़ते ही सो गई, बाकी न तो पूर्वा सोई थी, न ही रजनी और न उदय।
पूर्वा इसलिए जग रही थी क्योंकि सुलोचना को बीच में किसी भी चीज़ की जरूरत पड़ सकती थी।
अचानक उदयराज को अपने सीधे पैर के तलवों पर रजनी के अंगूठे का स्पर्श महसूस हुआ, जो उदयराज के तलवों पर अंगूठे को धीरे धीरे बड़े ही हौले हौले रगड़ रही थी।
उदयराज अपनी बेटी के इस आमंत्रण और तरीके पर कायल हो गया उसने रजनी की तरफ मुह घुमाया तो वो उसी की तरफ करवट करके लेटी थी।
बाहर जलती हुई मशाल की अंदर आती हुई हल्की हल्की रोशनी में दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए, फिर काफी देर तक एक दूसरे की आंखों में देखते रहे।
रजनी अपने अंगूठे से अपने बाबू के पैर के तलवों में गुदगुदी सी करती रही फिर उसने एक बार पीछे पलट के देखा और चुपके से हल्का सा उदयराज के और नज़दीक आ गयी।
उसके पीछे उसकी बेटी सो रही थी फिर उसके बाद काकी और फिर पूर्वा लेटी थी।
रजनी और उदयराज कुछ बोल नही रहे थे क्योंकि वो जानते थे कि पूर्वा जग रही है हालांकि उसकी पीठ उन लोगों की तरफ थी इस बात का उन्हें सुकून था।
अपनी सगी बेटी की तरफ से आमंत्रण पाकर उदयराज फूला नही समाया, और अब वह अपने पैर का अंगूठा रजनी के तलवों पे रगड़ने लगा, कभी रजनी उसे छेड़ती तो कभी वो रजनी को।
एकाएक उदयराज ने अपने पैर के अंगूठे को रजनी के पैर पर धीरे धीरे थोड़ा ऊपर करना चालू किया, रजनी को जैसे जैसे उसके बाबू का अंगूठा ऊपर आता महसूस हुआ उसने अपनी सलवार को पकड़कर ऊपर सरकाया ताकि उसके बाबू उसकी नग्नता को महसूस कर सकें पर सलवार एक लिमिट तक ऊपर आ सकती थी अब उसकी मोहरी टाइट हो गयी पैर में, तो रजनी ने हल्का सा जीभ निकालकर ठेंगा दिखाते हुए उदयराज को चिढ़ाया।
उदयराज मुस्कुरा दिया और फिर उसने बायां हाँथ रजनी के घुटनो पर रखा और धीरे धीरे सहलाता हुआ ऊपर की तरफ बढ़ने लगा, रजनी सिरह उठी, रजनी और उदय एक दूसरे की तरफ मुँह करके लेटे थे। रजनी ज्यादा सिसक नही सकती थी, ज्यादा क्या इस वक्त तो वो बिल्कुल आवाज नही कर रही थी।
उदयराज अपना हाथ जांघों तक लाया फिर कमर पे लाया और जब कमर से ऊपर बढ़ने लगा तो रजनी ने उसका हाथ पकड़कर चुपचाप सूट के अंदर डाल कर चुचियों को कपड़े के अंदर से छूने का इशारा किया न कि बाहर से।
अपनी बेटी की इस पहल और बेसब्री पर उदयराज झूम उठा।
उदयराज ने अपना हाथ चूचीयों की तरफ बढ़ाया, लेटने से पहले रजनी चुपके से ब्रा निकाल चुकी थी, जैसे ही उदयराज की उंगलियां अपनी सगी बेटी की मदमस्त मोटी सॉफ्ट सपंज जैसी चुचियों से टकराई वो दूसरी दुनिया में खो सा गया, निवस्त्र चुचियों को छुए उसे बरसों बीत गए थे, इतनी मस्त चूचीयाँ तो उसकी पत्नी की भी नही थी जितनी बेटी की थी
इस बात ने उसे रोमांचित कर दिया कि आज उसकी सगी बेटी ब्रा खोलकर उससे अपनी नग्न चूची दबवाना चाहती है।
अपने हथेली में एक चूची को पूरा भरकर उसकी नग्नता को उदयराज ने अच्छे से महसूस किया फिर हल्के हल्के दबाने लगा, रजनी के सॉफ्ट निप्पल कड़क होकर खड़े हो गए, दूध की हल्की हल्की बुँदे उदयराज की हथेली को गीला करने लगी, उदयराज अपनी तर्जनी उंगली निप्पल के किनारे किनारे गोल गोल घूमने लगा जिससे रजनी की हल्की सी सिसकी निकल ही गयी उसने तुरंत पलट के पीछे देखा पर सब ठीक था, इतने में उदयराज ने दो उंगलियों से निप्पल को पकड़कर हल्का हल्का दबा दिया, वह चाहता तो मसलना था पर वह ये भी जनता था कि रजनी के मुह से आवाज निकल सकती है जो कि अभी ठीक नही।
हल्का हल्का निप्पल को दबाने से उसमे से थोड़ा और दूध निकलने लगा तो उदयराज ने अपनी उंगलियों में लगा के उसे चाट लिया, ये देखकर रजनी अपनी बाबू की आंखों में देखने लगी, फिर धीरे से फुसफुसाके पूछा- बाबू भूख लगी है?
उदयराज धीरे से- बहुत, बरसों से।
रजनी (नशीली आंखों से देखते हुए) - अभी तो खाना खाया था न
उदयराज- मुझे इसकी भूख है।
रजनी- किसकी बाबू
उदयराज- दूध पीने की
रजनी- किसका दूध पियोगे बाबू
उदयराज- अपनी बेटी का
रजनी- oooohhhhh मेरे बाबू, सिर्फ पियोगे?
उदयराज- पहले देखूंगा, फिर पियूँगा..... दिखाओगी?
रजनी- क्या?
उदयराज- यही
रजनी- यही क्या बाबू?
उदयराज रजनी की आंखों में देखते हुए- "चूची, तुम्हारी चूची देखने का दिल कर रहा है" (उदयराज की आवाज ये बोलते हुए वासना में भारी सी हो गयी)
रजनी- uuuuuuffffffff, किसकी चूची बाबू।
उदयराज- अपनी सुंदर सलोनी बिटिया की।
रजनी- dhaaatttt गन्दू गंदे बाबू। कोई अपनी सगी बेटी की चूची देखता है।
उदयराज- कोई देखे न देखे मैं तो देखूंगा। किसी की बेटी इतना प्यार करने वाली भी तो नही है न।
रजनी- सच
उदयराज- हां, क्या मुझे दिखाओगी नही?
रजनी मुस्कुराकर अपने बाबू की आंखों में वासनामय होकर देखने लगी फिर पलटकर उसने एक बार पीछे देखा तो पूर्वा अपनी जगह पर नही थी शायद वो उठकर अपनी माँ की मदद के लिए गयी थी और उन्हें पता नही चला, रजनी को मौका मिल गया।
रजनी ने तुरंत अपना सूट ऊपर कर दाहिनी चूची को बाहर निकाल दिया, मोटी सी चूची सपंज की तरह उछलकर बाहर आ गयी, अपनी ही सगी बेटी की इतनी मदमस्त उन्नत तनी हुई सख्त चूची उदयराज की आंखों के सामने नग्न हो गयी थी, हल्की रोशनी में वो गोरी गोरी चूची की पूर्ण आभा तो नही देख सकता था पर जितना भी दिख रहा था उतने ने ही उदयराज के लंड को लोहा बना दिया।
इतनी मोटी चूची देख वो कुछ पल देखता ही रहा, उसकी खुद की बेटी ही कितनी मदमस्त यौवन की मलिका है, रजनी कभी अपने बाबू के चेहरे को देखती कभी मुस्कुरा देती और कभी पलटकर पीछे देखती की कहीं पूर्वा न आ जाये।
उदयराज ने वासना में थोड़ी कंपन करती हथेली को चूची पर दुबारा रखा और दबा दिया
रजनी सिसक उठी।
उदयराज अब पागलों की तरह चूची दबाने लगा तो रजनी सिसकते हुए बोली- बाबू अभी पी लो इसको जल्दी से, ज्यादा वक्त नही है, आ जायेगी वो।
उदयराज ने फट से मोठे तने हुए गुलाबी निप्पल जिसमे से दूध रिस रहा था मुह में भर लिया।
रजनी की तो नशे में आंखें ही बंद हो गयी, अपने बाबू के होंठ अपने निप्पल पर महसूस करके रजनी के मुह से aaahhh निकल गयी, पर उसने जल्दी से अपने को संभाला, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उसके बाबू उसकी चूची पी रहे हैं, उदयराज बच्चे की तरह चूची भर भर के दूध पीने लगा, दूध की धार उसके बरसों से प्यासे गले को तर करती हुई पेट में जाने लगी। दूध के स्वाद में अलग ही लज़्ज़त और महक थी, जो उदय को दीवाना बना गयी।
अपनी सी सगी बेटी का दूध पीके वो जन्नत में था, लंड इतना सख्त हो गया था कि धोती फाड़ के अभी बाहर आ जायेगा। पर अभी उसने नीचे का हिस्सा दूर ही रखा था, शायद उसका अभी सही समय नही था या यूं समझ लीजिए लाज की एक डोर अभी भी जुड़ी हुई थी।
रजनी आंखें बंद किये बेसुध सी हो गयी थी, अपने बाबू को इस तरह अपनी चूची पीते हुए देख वो वासना से पगला सी गयी थी, उसकी चूची जितना हो सके उसके बाबू भर भर के पी रहे थे, इतना मजा उसे कभी अपने जीवन में नही आया, जितना आज उसे अपने बाबू के साथ आ रहा था, वासना और कामोन्माद में वो फिर अपने पैर अपने बाबू के पैरों से रगड़ने लगी और उससे रहा नही गया, खुद ही कस के अपने बाबू के बदन से लिपट गयी, उदयराज का सर किसी बच्चे की तरह रजनी की चुचियों के बीच था जिसमे से एक खुली थी एक सूट के अंदर थी।
उदयराज ने हथेली में चूची को भरा हुआ था और पिये जा रहा था उसका एक हाथ दूसरी चूची पर गया मानो वो कह रहा हो इसको भी खोलो।
रजनी ने बड़ी मुश्किल से पीछे मुड़कर देखा तो उसको पूर्वा के आने की आहट हुई, वो बोली- बाबू अब बस करो, बर्दाश्त नही होता, बाद में पी लेना, वो आ रही है।
उदयराज ने चूची पीना छोड़ अपनी बेटी की आंखों में देखा फिर एक बार चूची को देखा और फिर सूट को खुद ही नीचे सरका दिया इतने में पुर्वा आ गयी। दोनों कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे एक दूसरे की आंखों में देखते हुए मुस्कुरा दिए, रजनी ने पीछे मुड़कर देखा और फिर धीरे से सीधी होकर लेट गयी, साँसे उसकी अभी तक तेज चल रही थी, उदयराज थोड़ा पीछे होकर लेट गया।