Update-21
उदयराज और रजनी सो गए कुछ देर बाद पुर्वा भी सो गई, सुबह हुई, पुर्वा और रजनी एक साथ जगे, रजनी ने काकी को जगाया और तीनों ने सुबह की नित्य क्रिया करके नहा धो लिया, पुर्वा और काकी नाश्ता बनाने लगी, आज रजनी ने नीली रंग की साड़ी काले ब्लॉउज के साथ पहनी थी जिसमे वो गज़ब ढा रही थी, उसका गोरा बदन दमक रहा था, ब्लॉउज में भारी भारी चूचीयाँ बाहर आ जाने को कसमसा रही थी, नितंबों ने अलग ही हाहाकार मचाया हुआ था। ऐसा लग रहा था स्वर्ग से उतरकर कोई अप्सरा जंगल में आ गयी हो।
रजनी कुटिया में उदयराज को जगाने के लिए गयी।
रजनी- बाबू उठो, (कहते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और फिर अपने बाबू के गाल पर झुककर एक भीगा सा चुम्बन जड़ दिया)
तपाक से उदयराज की आंखें खुल गयी, अपनी शादीशुदा बेटी का ये रूप देखकर और इस तरह चुम्बन देकर उठाना उसे इतना मधुर लगा कि वो उसे देखता रह गया, कामुक भीगे हुए रसीले होठों के गीले गीले चुम्बन का अपने गालों पर अहसास उदयराज को मदमस्त कर गया
नीली साड़ी में अपनी ही शादीशुदा बेटी को देखकर उसका मन मचल उठा, तभी उसकी नज़र रजनी के ब्लॉउज पर गयी, पल्लू सीने से गिर चुका था, गोरी गोरी चूचीयों के बीच बनी गहरी घाटी में जैसे वो थोड़ी देर के लिए डूब गया, रजनी समझ गयी कि उसके बाबू कहाँ खोए हैं। उसने अपने बाबू की ठोढ़ी को तर्जनी उंगली से उठाते हुए कहा- उठो न बाबू, रात में देखके जी नही भरा।
उदयराज- गज़ब की बिटिया पाई है मैंने, इससे भला अब मेरा जी भरेगा, आज तूने मेरा दिन बना दिया।
रजनी- अच्छा जी! मैंने भी तो दुनियां का सबसे अच्छा पिता पाया है, चलो अब उठो न बाबू कोई आ जायेगा।
उदयराज- ऐसे नही उठूंगा
रजनी- फिर कैसे उठोगे, उठो न
उदयराज- नही, पहले जरा सा दिखा दे न, चखने का मन कर रहा है
रजनी- क्या?
उदयराज ने अपनी हथेली रजनी के बायीं मोटी चूची पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया।
रजनी हल्का सा - uuuiiiimmmaaa
रजनी- अभी रात को तो सब किया था मेरे बाबू, जी नही भरा (सिसकते हुए)
उदयराज- क्या कोई रात को खाना खा ले तो सुबह नाश्ता नही करता क्या? सुबह तो फिर उसे भूख लगेगी न,
रजनी- बदमाश! ये दिन है बाबू रात की बात अलग थी, यहां सब हैं कभी भी कोई आ सकता है।
उदयराज- बस जल्दी से, एक बार बस, बहुत देखने का मन कर रहा है, फिर उठ जाऊंगा पक्का।
रजनी- बदमाश बाबू! अच्छा लो देख लो जल्दी से
रजनी मुस्कुराते हुए पीछे पलट के देखती है, भाग्यवश उस वक्त कोई इधर नही आ रहा था।फिर उसने अपने ब्लॉउज के नीचे के दो बटन खोले और ब्रा और ब्लॉउज को ऊपर खींचकर एकदम से दोनों ही बड़ी बडी चूचीयों को एक साथ अपने बाबू के सामने उजागर कर दिया, दोनों बड़ी बड़ी चूचीयाँ उछलकर उदयराज की आंखों के सामने आ गयी, आज उदयराज दोनों चुचियों को एकसाथ देखकर वासना से सराबोर हो गया, लंड उसका धोती में खड़ा हो गया, इतनी गोरी गोरी चूची उसकी खुद की शादीशुदा बेटी की ही होगी उसने कभी सोचा नही था और उसपर ये मोठे मोठे गुलाबी रसीले निप्पल, अभी रात में ही उदयराज ने एक चूची को खोला था पर अंधेरा होने की वजह से अच्छे से देख नही पाया था पर इस वक्त सुबह की रोशनी में दोनों ही चूचीयाँ उसके सामने नग्न थी। उदयराज उन्हें निहारने लगा, रजनी शर्मा गयी
उदयराज ने दोनों हाँथ बढ़ा के दोनों चूची को हथेली में भर लिया और एक बार कस के दबा कर निप्पल को मसल दिया रजनी की aaahhhhhhh निकल गयी मचलते हुए वो बोली- बाबू बस करो कोई आ जायेगा
उदयराज- अच्छा मेरी बेटी एक बार पिला दे दोनों
रजनी ने ब्लॉउज को और ऊपर चढ़ा कर छोड़ दिया और अपने दोनों हाँथ उदयराज के दोनों कंधों के ऊपर रखकर उसके ऊपर झुक गयी और अपनी बायीं चूची का निप्पल मुँह में डालते हुए बोली- लो जल्दी पी लो
उदयराज ने लपककर जितना हो सके चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा रजनी की जोश में आंखें बंद हो गयी, पीते वक्त उदयराज बीच बीच में हल्का काट लेता और जब उसकी जीभ निप्पल से टकराती तो रजनी दबी आवाज में सिसक उठती iiiiiiiiiissssssshhhhhh. aaaaaaaahhhhhhhhhh, रजनी वासना से भर उठी वह डर भी रही थी कि कहीं कोई आ न जाये।
तभी रजनी बोली- बाबू अब बस करो जल्दी से दूसरी पियो देखो कोई आ जायेगा और उसने बायीं चूची उदयराज के मुंह से निकाल कर दायीं चूची उसके मुँह के सामने कर दी निप्पल मुँह से निकलने पर दूध की एक दो बूंदे उदयराज की मूंछों के आसपास गिर गयी जो कि देखने मे बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उदयराज ने जीभ निकाल कर रजनी को दिखाते हुए उसे चाट लिया और रजनी हंस पड़ी
और फिर रजनी ने अपनी दायीं चूची के निप्पल को अपने बाबू के होंठों से छुआया उदयराज ने अपनी जीभ निकल के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा तो रजनी वासनामय होते हुए बोली- बाबू चुसो न जल्दी, जरूर कोई आ जायेगा, खेल बाद में करना इसके साथ बदमाश।
उदयराज लप्प से चूची मुँह में भरकर पीने लगा, उसके तो दिन ही बदल गए थे इतनी मदमस्त चूचीयाँ पीने को मिलेंगी वो भी अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की उसने सोचा नही था। आज तो वो झूम उठा था, रजनी की आंखें मस्ती में बंद थी, एक बार फिर उसने मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा अभी तक भी रास्ता साफ था रजनी एकाएक बोली- बाबू थोड़ा रुको
उदयराज रुक गया, रजनी ने चूची पकड़कर उसके मुह से बाहर निकाली और बोली- मुँह खोलो, आ करो
उदयराज ने बच्चे की तरह आ कर लिया, रजनी ने एकाएक अपनी चूची को जोर से दबाकर दूध की धार उदयराज के मुंह में डाल दी, चिर्रर्रर्रर की आवाज के साथ दूध की धार से उदयराज का मुँह कुछ ही पल में आधा भर गया, रजनी ने हस्ते हुए बोला मेरे बाबू जी अभी इतना पी लो बाकी का बाद में दूंगी तो खाली कर लेना, इतना कहकर रजनी अपनी चुचियों को ढकते हुए उठ खड़ी हुई, उदयराज उसे देखते हुए गट गट करके दूध पी गया और जैसे ही रजनी मुस्कुराते हुए जाने को पलटी उसने रजनी का नरम मुलायम हाँथ पकड़ लिया।
रजनी- अब क्या बाबू, जाने दो न, जरूर कोई आ ही जायेगा।
उदयराज- फिर कब दोगी।
रजनी- जब मौका मिलेगा, सब्र करो सब दूंगी अपने बाबू को
उदयराज- सब दोगी
रजनी- हां...दूंगी
उदयराज- सब.....वो भी (उदयराज का मतलब बूर से था)
रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और धीरे से बोली- dhaaaatttt बाबू, कोई अपनी शादीशुदा सगी बेटी की "वो" मांगता है। मेरे बेशर्म बाबू।
उदयराज- किसी का तो पता नही पर मुझे तो चाहिए वो, जरूर चाहिए, दोगी न
उदयराज ने हाँथ छोड़ दिया और रजनी मुस्कुराके जाने लगी फिर दरवाजे तक जाके रुकी, पलट के देखा और बोली- हां वो भी दूंगी, खूब दूंगी, जी भरके दूंगी, पर घर पहुँच के, थोड़ा सब्र बाबू, अब उस पर आपका ही हक़ है वो हमेशा से ही आपकी थी और हमेशा रहेगी और मुस्कुराते हुए भाग गई, उदयराज ने अपने लंड को धोती के ऊपर से ही मसल दिया और किसी तरह adjust करके उठा और बाहर आ गया।
काकी और पुर्वा नाश्ता बना चुकी थी, पुर्वा ने रजनी को देखते हो बोला- अरे बहन तुम्हारे बाबू जी उठ गए।
रजनी (अपने को संभालते हुए)- हां उठ गए नहा कर आ रहे हैं।
पुर्वा- ठीक है मैं नाश्ता लगती हूँ
रजनी- नही बहन तुम रहने दो मैं लगा देती हूं तुम अपनी माता जी के पास जाओ शायद वो बुला रही थी तुम्हे।
रजनी और काकी नाश्ता लगाने लगती हैं
सुलोचना ने रात भर मंत्र जागृत करके सात ताबीज़ तैयार कर दिए थे जिसको पीपल के पत्ते से लपेटा हुआ था और उसको काले कपड़े में बांधकर एक डोरी से जोड़ना था ताकि हाँथ पर बांधा जा सके, पुर्वा ने उसे तुरंत तैयार कर दिया, सुलोचना भी फिर नहा कर तैयार हो गयी, सबने नाश्ता किया।
सुलोचना- मैंने ताबीज़ तैयार कर दी है, पुर्वा को छोड़कर सबलोग इसको अपने हाँथ पर बांध लो, छोटी बच्ची और बैलों को भी बांध देना पुत्र।
उदयराज- हां माता जी
और उदयराज सबको वो ताबीज़ बांध देता है जाके बैलों के गले में भी बांध आता है।
सुलोचना- मेरे ख्याल से हमे सुबह जल्दी ही निकल जाना चाहिए, ताकि शाम तक वहां पहुंच जाएं, पुर्वा यही रहेगी
काकी- बहन अगर हम शाम तक वहां पहुचेंगे तो हम वापिस तो कल ही आ पाएंगे तो ऐसे में क्या पुर्वा रात भर इस जंगल में अकेली रहेगी, आखिर वो भी एक लड़की है, बच्ची ही है, मेरे ख्याल से हमे उसे अकेला नही छोड़ना चाहिए। आप हम लोगों की इतनी चिंता कर रही है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी आपलोगों का ख्याल रखें।
उदयराज- हां बिल्कुल
सुलोचला- तुम्हारी चिंता जायज है बहन, पर तुम इसकी चिंता मत करो, हमारी आदत है और वैसे भी उसके पास मन्त्रो की शक्ति है उसे कुछ नही होगा, हम कल दोपहर तक आ जाएंगे।
पूर्वा- हां अम्मा आप मेरी फिक्र मत करो मैं कई बार अकेले रह चुकी हूं।
काकी- ठीक है
फिर सभी लोग तैयार हो जाते है उदयराज अपने बैल तैयार करता है सबलोग बैलगाड़ी में बैठ जाते हैं और उदयराज बैलगाड़ी चलाने लगता है।
उदयराज का मन अब बिल्कुल नही लग रहा था उसका लंड बार बार रजनी को देखके खड़ा हो जा रहा था, रजनी भी उसे देख देख के मुस्कुरा रही थी, रजनी का आमंत्रण उसका यौवन उदयराज पर इतना हावी होता जा रहा यह कि एक पल को वो ये भी भूल गया कि आखिर वो किस काम के लिए निकला है, यही हाल रजनी का भी हो रहा था। उनके जीवन में रसभरी बाहर आ चुकी थी, उदयराज ने कभी सोचा भी नही था कि उसे अपनी ही शादीशुदा बेटी से यौनसुख मिलेगा। वो बैलगाड़ी चलता हुआ यही सब सोचे जा रहा था कि तभी उसकी तन्द्रा भंग होती है जब बैलगाड़ी सिंघारो जंगल में प्रवेश कर जाती है, वाकई में ये जंगल मायावी सा था, काफी गहरी घनी छाया थी, बहुत बड़े बड़े वृक्ष थे।