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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Nasn

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Update-21

उदयराज और रजनी सो गए कुछ देर बाद पुर्वा भी सो गई, सुबह हुई, पुर्वा और रजनी एक साथ जगे, रजनी ने काकी को जगाया और तीनों ने सुबह की नित्य क्रिया करके नहा धो लिया, पुर्वा और काकी नाश्ता बनाने लगी, आज रजनी ने नीली रंग की साड़ी काले ब्लॉउज के साथ पहनी थी जिसमे वो गज़ब ढा रही थी, उसका गोरा बदन दमक रहा था, ब्लॉउज में भारी भारी चूचीयाँ बाहर आ जाने को कसमसा रही थी, नितंबों ने अलग ही हाहाकार मचाया हुआ था। ऐसा लग रहा था स्वर्ग से उतरकर कोई अप्सरा जंगल में आ गयी हो।

रजनी कुटिया में उदयराज को जगाने के लिए गयी।

रजनी- बाबू उठो, (कहते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और फिर अपने बाबू के गाल पर झुककर एक भीगा सा चुम्बन जड़ दिया)

तपाक से उदयराज की आंखें खुल गयी, अपनी शादीशुदा बेटी का ये रूप देखकर और इस तरह चुम्बन देकर उठाना उसे इतना मधुर लगा कि वो उसे देखता रह गया, कामुक भीगे हुए रसीले होठों के गीले गीले चुम्बन का अपने गालों पर अहसास उदयराज को मदमस्त कर गया

नीली साड़ी में अपनी ही शादीशुदा बेटी को देखकर उसका मन मचल उठा, तभी उसकी नज़र रजनी के ब्लॉउज पर गयी, पल्लू सीने से गिर चुका था, गोरी गोरी चूचीयों के बीच बनी गहरी घाटी में जैसे वो थोड़ी देर के लिए डूब गया, रजनी समझ गयी कि उसके बाबू कहाँ खोए हैं। उसने अपने बाबू की ठोढ़ी को तर्जनी उंगली से उठाते हुए कहा- उठो न बाबू, रात में देखके जी नही भरा।

उदयराज- गज़ब की बिटिया पाई है मैंने, इससे भला अब मेरा जी भरेगा, आज तूने मेरा दिन बना दिया।

रजनी- अच्छा जी! मैंने भी तो दुनियां का सबसे अच्छा पिता पाया है, चलो अब उठो न बाबू कोई आ जायेगा।

उदयराज- ऐसे नही उठूंगा

रजनी- फिर कैसे उठोगे, उठो न

उदयराज- नही, पहले जरा सा दिखा दे न, चखने का मन कर रहा है

रजनी- क्या?

उदयराज ने अपनी हथेली रजनी के बायीं मोटी चूची पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया।

रजनी हल्का सा - uuuiiiimmmaaa

रजनी- अभी रात को तो सब किया था मेरे बाबू, जी नही भरा (सिसकते हुए)

उदयराज- क्या कोई रात को खाना खा ले तो सुबह नाश्ता नही करता क्या? सुबह तो फिर उसे भूख लगेगी न,

रजनी- बदमाश! ये दिन है बाबू रात की बात अलग थी, यहां सब हैं कभी भी कोई आ सकता है।

उदयराज- बस जल्दी से, एक बार बस, बहुत देखने का मन कर रहा है, फिर उठ जाऊंगा पक्का।

रजनी- बदमाश बाबू! अच्छा लो देख लो जल्दी से

रजनी मुस्कुराते हुए पीछे पलट के देखती है, भाग्यवश उस वक्त कोई इधर नही आ रहा था।फिर उसने अपने ब्लॉउज के नीचे के दो बटन खोले और ब्रा और ब्लॉउज को ऊपर खींचकर एकदम से दोनों ही बड़ी बडी चूचीयों को एक साथ अपने बाबू के सामने उजागर कर दिया, दोनों बड़ी बड़ी चूचीयाँ उछलकर उदयराज की आंखों के सामने आ गयी, आज उदयराज दोनों चुचियों को एकसाथ देखकर वासना से सराबोर हो गया, लंड उसका धोती में खड़ा हो गया, इतनी गोरी गोरी चूची उसकी खुद की शादीशुदा बेटी की ही होगी उसने कभी सोचा नही था और उसपर ये मोठे मोठे गुलाबी रसीले निप्पल, अभी रात में ही उदयराज ने एक चूची को खोला था पर अंधेरा होने की वजह से अच्छे से देख नही पाया था पर इस वक्त सुबह की रोशनी में दोनों ही चूचीयाँ उसके सामने नग्न थी। उदयराज उन्हें निहारने लगा, रजनी शर्मा गयी

उदयराज ने दोनों हाँथ बढ़ा के दोनों चूची को हथेली में भर लिया और एक बार कस के दबा कर निप्पल को मसल दिया रजनी की aaahhhhhhh निकल गयी मचलते हुए वो बोली- बाबू बस करो कोई आ जायेगा

उदयराज- अच्छा मेरी बेटी एक बार पिला दे दोनों

रजनी ने ब्लॉउज को और ऊपर चढ़ा कर छोड़ दिया और अपने दोनों हाँथ उदयराज के दोनों कंधों के ऊपर रखकर उसके ऊपर झुक गयी और अपनी बायीं चूची का निप्पल मुँह में डालते हुए बोली- लो जल्दी पी लो

उदयराज ने लपककर जितना हो सके चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा रजनी की जोश में आंखें बंद हो गयी, पीते वक्त उदयराज बीच बीच में हल्का काट लेता और जब उसकी जीभ निप्पल से टकराती तो रजनी दबी आवाज में सिसक उठती iiiiiiiiiissssssshhhhhh. aaaaaaaahhhhhhhhhh, रजनी वासना से भर उठी वह डर भी रही थी कि कहीं कोई आ न जाये।
तभी रजनी बोली- बाबू अब बस करो जल्दी से दूसरी पियो देखो कोई आ जायेगा और उसने बायीं चूची उदयराज के मुंह से निकाल कर दायीं चूची उसके मुँह के सामने कर दी निप्पल मुँह से निकलने पर दूध की एक दो बूंदे उदयराज की मूंछों के आसपास गिर गयी जो कि देखने मे बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उदयराज ने जीभ निकाल कर रजनी को दिखाते हुए उसे चाट लिया और रजनी हंस पड़ी
और फिर रजनी ने अपनी दायीं चूची के निप्पल को अपने बाबू के होंठों से छुआया उदयराज ने अपनी जीभ निकल के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा तो रजनी वासनामय होते हुए बोली- बाबू चुसो न जल्दी, जरूर कोई आ जायेगा, खेल बाद में करना इसके साथ बदमाश।

उदयराज लप्प से चूची मुँह में भरकर पीने लगा, उसके तो दिन ही बदल गए थे इतनी मदमस्त चूचीयाँ पीने को मिलेंगी वो भी अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की उसने सोचा नही था। आज तो वो झूम उठा था, रजनी की आंखें मस्ती में बंद थी, एक बार फिर उसने मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा अभी तक भी रास्ता साफ था रजनी एकाएक बोली- बाबू थोड़ा रुको

उदयराज रुक गया, रजनी ने चूची पकड़कर उसके मुह से बाहर निकाली और बोली- मुँह खोलो, आ करो

उदयराज ने बच्चे की तरह आ कर लिया, रजनी ने एकाएक अपनी चूची को जोर से दबाकर दूध की धार उदयराज के मुंह में डाल दी, चिर्रर्रर्रर की आवाज के साथ दूध की धार से उदयराज का मुँह कुछ ही पल में आधा भर गया, रजनी ने हस्ते हुए बोला मेरे बाबू जी अभी इतना पी लो बाकी का बाद में दूंगी तो खाली कर लेना, इतना कहकर रजनी अपनी चुचियों को ढकते हुए उठ खड़ी हुई, उदयराज उसे देखते हुए गट गट करके दूध पी गया और जैसे ही रजनी मुस्कुराते हुए जाने को पलटी उसने रजनी का नरम मुलायम हाँथ पकड़ लिया।

रजनी- अब क्या बाबू, जाने दो न, जरूर कोई आ ही जायेगा।

उदयराज- फिर कब दोगी।

रजनी- जब मौका मिलेगा, सब्र करो सब दूंगी अपने बाबू को

उदयराज- सब दोगी

रजनी- हां...दूंगी

उदयराज- सब.....वो भी (उदयराज का मतलब बूर से था)

रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और धीरे से बोली- dhaaaatttt बाबू, कोई अपनी शादीशुदा सगी बेटी की "वो" मांगता है। मेरे बेशर्म बाबू।

उदयराज- किसी का तो पता नही पर मुझे तो चाहिए वो, जरूर चाहिए, दोगी न

उदयराज ने हाँथ छोड़ दिया और रजनी मुस्कुराके जाने लगी फिर दरवाजे तक जाके रुकी, पलट के देखा और बोली- हां वो भी दूंगी, खूब दूंगी, जी भरके दूंगी, पर घर पहुँच के, थोड़ा सब्र बाबू, अब उस पर आपका ही हक़ है वो हमेशा से ही आपकी थी और हमेशा रहेगी और मुस्कुराते हुए भाग गई, उदयराज ने अपने लंड को धोती के ऊपर से ही मसल दिया और किसी तरह adjust करके उठा और बाहर आ गया।

काकी और पुर्वा नाश्ता बना चुकी थी, पुर्वा ने रजनी को देखते हो बोला- अरे बहन तुम्हारे बाबू जी उठ गए।

रजनी (अपने को संभालते हुए)- हां उठ गए नहा कर आ रहे हैं।

पुर्वा- ठीक है मैं नाश्ता लगती हूँ

रजनी- नही बहन तुम रहने दो मैं लगा देती हूं तुम अपनी माता जी के पास जाओ शायद वो बुला रही थी तुम्हे।

रजनी और काकी नाश्ता लगाने लगती हैं

सुलोचना ने रात भर मंत्र जागृत करके सात ताबीज़ तैयार कर दिए थे जिसको पीपल के पत्ते से लपेटा हुआ था और उसको काले कपड़े में बांधकर एक डोरी से जोड़ना था ताकि हाँथ पर बांधा जा सके, पुर्वा ने उसे तुरंत तैयार कर दिया, सुलोचना भी फिर नहा कर तैयार हो गयी, सबने नाश्ता किया।

सुलोचना- मैंने ताबीज़ तैयार कर दी है, पुर्वा को छोड़कर सबलोग इसको अपने हाँथ पर बांध लो, छोटी बच्ची और बैलों को भी बांध देना पुत्र।

उदयराज- हां माता जी

और उदयराज सबको वो ताबीज़ बांध देता है जाके बैलों के गले में भी बांध आता है।

सुलोचना- मेरे ख्याल से हमे सुबह जल्दी ही निकल जाना चाहिए, ताकि शाम तक वहां पहुंच जाएं, पुर्वा यही रहेगी

काकी- बहन अगर हम शाम तक वहां पहुचेंगे तो हम वापिस तो कल ही आ पाएंगे तो ऐसे में क्या पुर्वा रात भर इस जंगल में अकेली रहेगी, आखिर वो भी एक लड़की है, बच्ची ही है, मेरे ख्याल से हमे उसे अकेला नही छोड़ना चाहिए। आप हम लोगों की इतनी चिंता कर रही है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी आपलोगों का ख्याल रखें।

उदयराज- हां बिल्कुल

सुलोचला- तुम्हारी चिंता जायज है बहन, पर तुम इसकी चिंता मत करो, हमारी आदत है और वैसे भी उसके पास मन्त्रो की शक्ति है उसे कुछ नही होगा, हम कल दोपहर तक आ जाएंगे।

पूर्वा- हां अम्मा आप मेरी फिक्र मत करो मैं कई बार अकेले रह चुकी हूं।

काकी- ठीक है

फिर सभी लोग तैयार हो जाते है उदयराज अपने बैल तैयार करता है सबलोग बैलगाड़ी में बैठ जाते हैं और उदयराज बैलगाड़ी चलाने लगता है।

उदयराज का मन अब बिल्कुल नही लग रहा था उसका लंड बार बार रजनी को देखके खड़ा हो जा रहा था, रजनी भी उसे देख देख के मुस्कुरा रही थी, रजनी का आमंत्रण उसका यौवन उदयराज पर इतना हावी होता जा रहा यह कि एक पल को वो ये भी भूल गया कि आखिर वो किस काम के लिए निकला है, यही हाल रजनी का भी हो रहा था। उनके जीवन में रसभरी बाहर आ चुकी थी, उदयराज ने कभी सोचा भी नही था कि उसे अपनी ही शादीशुदा बेटी से यौनसुख मिलेगा। वो बैलगाड़ी चलता हुआ यही सब सोचे जा रहा था कि तभी उसकी तन्द्रा भंग होती है जब बैलगाड़ी सिंघारो जंगल में प्रवेश कर जाती है, वाकई में ये जंगल मायावी सा था, काफी गहरी घनी छाया थी, बहुत बड़े बड़े वृक्ष थे।
एक एक शब्द बहुत ही खूबसूरती से पिरोया गया है

बहुत ही ज़बरदस्त अपडेट......
 
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Update-21

उदयराज और रजनी सो गए कुछ देर बाद पुर्वा भी सो गई, सुबह हुई, पुर्वा और रजनी एक साथ जगे, रजनी ने काकी को जगाया और तीनों ने सुबह की नित्य क्रिया करके नहा धो लिया, पुर्वा और काकी नाश्ता बनाने लगी, आज रजनी ने नीली रंग की साड़ी काले ब्लॉउज के साथ पहनी थी जिसमे वो गज़ब ढा रही थी, उसका गोरा बदन दमक रहा था, ब्लॉउज में भारी भारी चूचीयाँ बाहर आ जाने को कसमसा रही थी, नितंबों ने अलग ही हाहाकार मचाया हुआ था। ऐसा लग रहा था स्वर्ग से उतरकर कोई अप्सरा जंगल में आ गयी हो।

रजनी कुटिया में उदयराज को जगाने के लिए गयी।

रजनी- बाबू उठो, (कहते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और फिर अपने बाबू के गाल पर झुककर एक भीगा सा चुम्बन जड़ दिया)

तपाक से उदयराज की आंखें खुल गयी, अपनी शादीशुदा बेटी का ये रूप देखकर और इस तरह चुम्बन देकर उठाना उसे इतना मधुर लगा कि वो उसे देखता रह गया, कामुक भीगे हुए रसीले होठों के गीले गीले चुम्बन का अपने गालों पर अहसास उदयराज को मदमस्त कर गया

नीली साड़ी में अपनी ही शादीशुदा बेटी को देखकर उसका मन मचल उठा, तभी उसकी नज़र रजनी के ब्लॉउज पर गयी, पल्लू सीने से गिर चुका था, गोरी गोरी चूचीयों के बीच बनी गहरी घाटी में जैसे वो थोड़ी देर के लिए डूब गया, रजनी समझ गयी कि उसके बाबू कहाँ खोए हैं। उसने अपने बाबू की ठोढ़ी को तर्जनी उंगली से उठाते हुए कहा- उठो न बाबू, रात में देखके जी नही भरा।

उदयराज- गज़ब की बिटिया पाई है मैंने, इससे भला अब मेरा जी भरेगा, आज तूने मेरा दिन बना दिया।

रजनी- अच्छा जी! मैंने भी तो दुनियां का सबसे अच्छा पिता पाया है, चलो अब उठो न बाबू कोई आ जायेगा।

उदयराज- ऐसे नही उठूंगा

रजनी- फिर कैसे उठोगे, उठो न

उदयराज- नही, पहले जरा सा दिखा दे न, चखने का मन कर रहा है

रजनी- क्या?

उदयराज ने अपनी हथेली रजनी के बायीं मोटी चूची पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया।

रजनी हल्का सा - uuuiiiimmmaaa

रजनी- अभी रात को तो सब किया था मेरे बाबू, जी नही भरा (सिसकते हुए)

उदयराज- क्या कोई रात को खाना खा ले तो सुबह नाश्ता नही करता क्या? सुबह तो फिर उसे भूख लगेगी न,

रजनी- बदमाश! ये दिन है बाबू रात की बात अलग थी, यहां सब हैं कभी भी कोई आ सकता है।

उदयराज- बस जल्दी से, एक बार बस, बहुत देखने का मन कर रहा है, फिर उठ जाऊंगा पक्का।

रजनी- बदमाश बाबू! अच्छा लो देख लो जल्दी से

रजनी मुस्कुराते हुए पीछे पलट के देखती है, भाग्यवश उस वक्त कोई इधर नही आ रहा था।फिर उसने अपने ब्लॉउज के नीचे के दो बटन खोले और ब्रा और ब्लॉउज को ऊपर खींचकर एकदम से दोनों ही बड़ी बडी चूचीयों को एक साथ अपने बाबू के सामने उजागर कर दिया, दोनों बड़ी बड़ी चूचीयाँ उछलकर उदयराज की आंखों के सामने आ गयी, आज उदयराज दोनों चुचियों को एकसाथ देखकर वासना से सराबोर हो गया, लंड उसका धोती में खड़ा हो गया, इतनी गोरी गोरी चूची उसकी खुद की शादीशुदा बेटी की ही होगी उसने कभी सोचा नही था और उसपर ये मोठे मोठे गुलाबी रसीले निप्पल, अभी रात में ही उदयराज ने एक चूची को खोला था पर अंधेरा होने की वजह से अच्छे से देख नही पाया था पर इस वक्त सुबह की रोशनी में दोनों ही चूचीयाँ उसके सामने नग्न थी। उदयराज उन्हें निहारने लगा, रजनी शर्मा गयी

उदयराज ने दोनों हाँथ बढ़ा के दोनों चूची को हथेली में भर लिया और एक बार कस के दबा कर निप्पल को मसल दिया रजनी की aaahhhhhhh निकल गयी मचलते हुए वो बोली- बाबू बस करो कोई आ जायेगा

उदयराज- अच्छा मेरी बेटी एक बार पिला दे दोनों

रजनी ने ब्लॉउज को और ऊपर चढ़ा कर छोड़ दिया और अपने दोनों हाँथ उदयराज के दोनों कंधों के ऊपर रखकर उसके ऊपर झुक गयी और अपनी बायीं चूची का निप्पल मुँह में डालते हुए बोली- लो जल्दी पी लो

उदयराज ने लपककर जितना हो सके चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा रजनी की जोश में आंखें बंद हो गयी, पीते वक्त उदयराज बीच बीच में हल्का काट लेता और जब उसकी जीभ निप्पल से टकराती तो रजनी दबी आवाज में सिसक उठती iiiiiiiiiissssssshhhhhh. aaaaaaaahhhhhhhhhh, रजनी वासना से भर उठी वह डर भी रही थी कि कहीं कोई आ न जाये।
तभी रजनी बोली- बाबू अब बस करो जल्दी से दूसरी पियो देखो कोई आ जायेगा और उसने बायीं चूची उदयराज के मुंह से निकाल कर दायीं चूची उसके मुँह के सामने कर दी निप्पल मुँह से निकलने पर दूध की एक दो बूंदे उदयराज की मूंछों के आसपास गिर गयी जो कि देखने मे बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उदयराज ने जीभ निकाल कर रजनी को दिखाते हुए उसे चाट लिया और रजनी हंस पड़ी
और फिर रजनी ने अपनी दायीं चूची के निप्पल को अपने बाबू के होंठों से छुआया उदयराज ने अपनी जीभ निकल के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा तो रजनी वासनामय होते हुए बोली- बाबू चुसो न जल्दी, जरूर कोई आ जायेगा, खेल बाद में करना इसके साथ बदमाश।

उदयराज लप्प से चूची मुँह में भरकर पीने लगा, उसके तो दिन ही बदल गए थे इतनी मदमस्त चूचीयाँ पीने को मिलेंगी वो भी अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की उसने सोचा नही था। आज तो वो झूम उठा था, रजनी की आंखें मस्ती में बंद थी, एक बार फिर उसने मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा अभी तक भी रास्ता साफ था रजनी एकाएक बोली- बाबू थोड़ा रुको

उदयराज रुक गया, रजनी ने चूची पकड़कर उसके मुह से बाहर निकाली और बोली- मुँह खोलो, आ करो

उदयराज ने बच्चे की तरह आ कर लिया, रजनी ने एकाएक अपनी चूची को जोर से दबाकर दूध की धार उदयराज के मुंह में डाल दी, चिर्रर्रर्रर की आवाज के साथ दूध की धार से उदयराज का मुँह कुछ ही पल में आधा भर गया, रजनी ने हस्ते हुए बोला मेरे बाबू जी अभी इतना पी लो बाकी का बाद में दूंगी तो खाली कर लेना, इतना कहकर रजनी अपनी चुचियों को ढकते हुए उठ खड़ी हुई, उदयराज उसे देखते हुए गट गट करके दूध पी गया और जैसे ही रजनी मुस्कुराते हुए जाने को पलटी उसने रजनी का नरम मुलायम हाँथ पकड़ लिया।

रजनी- अब क्या बाबू, जाने दो न, जरूर कोई आ ही जायेगा।

उदयराज- फिर कब दोगी।

रजनी- जब मौका मिलेगा, सब्र करो सब दूंगी अपने बाबू को

उदयराज- सब दोगी

रजनी- हां...दूंगी

उदयराज- सब.....वो भी (उदयराज का मतलब बूर से था)

रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और धीरे से बोली- dhaaaatttt बाबू, कोई अपनी शादीशुदा सगी बेटी की "वो" मांगता है। मेरे बेशर्म बाबू।

उदयराज- किसी का तो पता नही पर मुझे तो चाहिए वो, जरूर चाहिए, दोगी न

उदयराज ने हाँथ छोड़ दिया और रजनी मुस्कुराके जाने लगी फिर दरवाजे तक जाके रुकी, पलट के देखा और बोली- हां वो भी दूंगी, खूब दूंगी, जी भरके दूंगी, पर घर पहुँच के, थोड़ा सब्र बाबू, अब उस पर आपका ही हक़ है वो हमेशा से ही आपकी थी और हमेशा रहेगी और मुस्कुराते हुए भाग गई, उदयराज ने अपने लंड को धोती के ऊपर से ही मसल दिया और किसी तरह adjust करके उठा और बाहर आ गया।

काकी और पुर्वा नाश्ता बना चुकी थी, पुर्वा ने रजनी को देखते हो बोला- अरे बहन तुम्हारे बाबू जी उठ गए।

रजनी (अपने को संभालते हुए)- हां उठ गए नहा कर आ रहे हैं।

पुर्वा- ठीक है मैं नाश्ता लगती हूँ

रजनी- नही बहन तुम रहने दो मैं लगा देती हूं तुम अपनी माता जी के पास जाओ शायद वो बुला रही थी तुम्हे।

रजनी और काकी नाश्ता लगाने लगती हैं

सुलोचना ने रात भर मंत्र जागृत करके सात ताबीज़ तैयार कर दिए थे जिसको पीपल के पत्ते से लपेटा हुआ था और उसको काले कपड़े में बांधकर एक डोरी से जोड़ना था ताकि हाँथ पर बांधा जा सके, पुर्वा ने उसे तुरंत तैयार कर दिया, सुलोचना भी फिर नहा कर तैयार हो गयी, सबने नाश्ता किया।

सुलोचना- मैंने ताबीज़ तैयार कर दी है, पुर्वा को छोड़कर सबलोग इसको अपने हाँथ पर बांध लो, छोटी बच्ची और बैलों को भी बांध देना पुत्र।

उदयराज- हां माता जी

और उदयराज सबको वो ताबीज़ बांध देता है जाके बैलों के गले में भी बांध आता है।

सुलोचना- मेरे ख्याल से हमे सुबह जल्दी ही निकल जाना चाहिए, ताकि शाम तक वहां पहुंच जाएं, पुर्वा यही रहेगी

काकी- बहन अगर हम शाम तक वहां पहुचेंगे तो हम वापिस तो कल ही आ पाएंगे तो ऐसे में क्या पुर्वा रात भर इस जंगल में अकेली रहेगी, आखिर वो भी एक लड़की है, बच्ची ही है, मेरे ख्याल से हमे उसे अकेला नही छोड़ना चाहिए। आप हम लोगों की इतनी चिंता कर रही है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी आपलोगों का ख्याल रखें।

उदयराज- हां बिल्कुल

सुलोचला- तुम्हारी चिंता जायज है बहन, पर तुम इसकी चिंता मत करो, हमारी आदत है और वैसे भी उसके पास मन्त्रो की शक्ति है उसे कुछ नही होगा, हम कल दोपहर तक आ जाएंगे।

पूर्वा- हां अम्मा आप मेरी फिक्र मत करो मैं कई बार अकेले रह चुकी हूं।

काकी- ठीक है

फिर सभी लोग तैयार हो जाते है उदयराज अपने बैल तैयार करता है सबलोग बैलगाड़ी में बैठ जाते हैं और उदयराज बैलगाड़ी चलाने लगता है।

उदयराज का मन अब बिल्कुल नही लग रहा था उसका लंड बार बार रजनी को देखके खड़ा हो जा रहा था, रजनी भी उसे देख देख के मुस्कुरा रही थी, रजनी का आमंत्रण उसका यौवन उदयराज पर इतना हावी होता जा रहा यह कि एक पल को वो ये भी भूल गया कि आखिर वो किस काम के लिए निकला है, यही हाल रजनी का भी हो रहा था। उनके जीवन में रसभरी बाहर आ चुकी थी, उदयराज ने कभी सोचा भी नही था कि उसे अपनी ही शादीशुदा बेटी से यौनसुख मिलेगा। वो बैलगाड़ी चलता हुआ यही सब सोचे जा रहा था कि तभी उसकी तन्द्रा भंग होती है जब बैलगाड़ी सिंघारो जंगल में प्रवेश कर जाती है, वाकई में ये जंगल मायावी सा था, काफी गहरी घनी छाया थी, बहुत बड़े बड़े वृक्ष थे।
Mast kar dene wala update tha bhai rajni ke dudu he la jawab
 

Strange Love

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Jabardast update yaar....neelam aur Birju ki kahani bhi jabardast lag rahi hai...saath hi me koi naye character introduce karo jo ki maa beta sex relation wale ho ya bhai behan wale ho..to aur maza aa jaye..
 

Jangali

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Update-20

पुर्वा आकर अपनी जगह पर लेट गयी।

पुर्वा- रजनी बहन! सो गई क्या?

रजनी- नही पुर्वा बहन, नींद कहाँ आ रही है।

पुर्वा- परेशान मत हो बहन, सब ठीक हो जाएगा, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, सो जाओ।

रजनी- हां बहन सो तो है।

पुर्वा- आपके बाबू सो गए।

रजनी- हां वो तो कबके सो गए।

पुर्वा- तो तुम भी सो जाओ।

रजनी- हूं, ठीक है, और तुम जगती रहोगी क्या?

पुर्वा- नही, कुछ देर में सो जाउंगी।

फिर रजनी और उदयराज सो जाते हैं।

कहते है कि किसी भी चीज़ को अगर दिल से चाहो और उसके लिए सच्ची तड़प हो तो नियति या कायनात उसे तुमसे मिलाती जरूर है, या यूं कहें कि उसे तुमसे मिलाने के लिए परिस्तिथियाँ तैयार करने लगती हैं, यही हुआ आज नीलम के साथ।

आज सुबह उसने जो देखा उससे वो बहुत बेचैन हो गयी, गेहूं फैला कर वो किसी तरह नीचे आयी, तो उसकी माँ ने उसे खाना बनाने का लिए बोल दिया। बिरजू घास लेके आया और उसने घास अपने जानवरों को दी और उदयराज के घर जाके उनके जानवरों को भी दिया, नीलम अभी घर में खाना ही बना रही थी और बिरजू नहाने चला गया, खाना बनने के बाद नीलम ने उनको खाना परोसा, हमेशा वो चुन्नी डाले रहती थी पर आज उसने जानबूझ के नही डाली। बिरजू को देखते ही नीलम की आंखों के सामने वो दृश्य घूम गया, कितना बड़ा और मोटा लंड है मेरे बाबू का, शर्म की लालिमा चहरे पे आ गयी और वो थाली रखने नीचे झुकी, मदमस्त मोटी चुचियाँ का भार नीचे की ओर हुआ जैसे वो मानो सूट से निकलकर बाहर ही आ जाएंगी।

नीलम- बाबू हरी मिर्च भी लाऊं, प्याज़ के साथ।

बिरजू ने जैसे ही सर उठाया सीधी नज़र गोरी गोरी भरपूर फूली हुई चूचीयों पर चली गई, नीलम मुस्कुरा दी, ये देखकर की बिरजू की नज़र कहाँ है।

बिरजू झेंप गया और सकपका के बोला- नही बेटी, प्याज़ ही बहुत है, मिर्च रहने दे।

नीलम मुस्कुराते हुए चली आयी, बिरजू खाना खाने लगा, मन में उसने सोचा कि नीलम को क्या हुआ आज मैंने इस तरह उसे कभी नही देखा, भूलकर भी वो मेरे सामने ऐसे कभी नही आई, खैर भूल गयी होगी चुन्नी लेना, लेकिन भूलेगी क्यों, पहले तो कभी नही भूली, एक बार और बुला कर देखता हूँ अगर भूल गयी होगी तो इस बार चुन्नी डालकर आएगी

बिरजू- नीलम, नीलम बेटी

नीलम- हां बाबू

बिरजू- सिरका है

नीलम रसोई में से- हां बाबू है, लायी

इस बार फिर नीलम ने चुन्नी नही डाली और कटोरी में सिरका डालकर थाली के पास रख दिया और जब बिरजू की ओर देखा तो वो उसकी हिलती चूचीयाँ देख रहा था, जैसे ही बिरजू की नजरें मिली नीलम मुस्कुरा दी, बिरजू भी हल्का सा मुस्कुरा कर झेप सा गया।

बिरजू थाली में देखने लगा, नीलम पलट कर जाने लगी, पता नही क्यों बिरजू ने दुबारा नीलम को देखने के लिए नज़रें उठायी और आज वो पहली बार अपनी सगी बेटी को जाते वक्त पीछे से निहार रहा था कि तभी नीलम पलटी और अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही देख रहा था, इस बार वो नीलम को देखता रहा, नीलम भी रसोई के दरवाजे पर रुककर कुछ देर देखती रही फिर हंस दी और बिरजू भी मुस्कुरा दिया, नीलम की नज़रों में आमंत्रण था ये तो बिरजू को समझ आ चुका था अब।
तभी नीलम बोली- बाबू कुछ चाहिए हो तो बता देना।
(न जाने इस बात में भी बिरजू को आमंत्रण सा लगा)
बिरजू - हां बेटी, जरूर, और खाना खाने लगा।

नीलम मुस्कुराई और मटकती हुए रसोई में चली गयी।

बिरजू ने खाना खाया और काम से बाहर चला गया।

नीलम मन ही मन बहुत खुश थी कि शायद तीर निशाने पर लगा है, नही तो उसके बाबू उसको डांटते, कुछ तो है बाबू के मन में भी।

नीलम ने घर का काम किया, अपनी माँ को भी
खाना खिलाया और खुद भी खाया, फिर उसकी माँ सोने चली गयी दोपहर में और वो भी सो गई।

शाम को नीलाम सो के उठी तो देखा उसकी माँ सुबुक सुबुक के रो रही थी

नीलम- अम्मा क्या हुआ, रो क्यों रही हो। क्या हुआ बताओ न। क्या कोई बुरा सपना देखा क्या?

माँ- हां

नीलम- क्या सपना देखा? ऐसा क्या देखा, क्या कोई डरावना सपना देखा क्या? भूत प्रेत का।

माँ- नही रे! मैं डरती हूँ क्या भूत से।

नीलम- अरे तो फिर ऐसा क्या देखा जो रोने लगी।

माँ- कुछ नही

नीलम- अम्मा बता न, कुछ बता नही रही और रोये जा रही है। बता न

माँ- बोला न कुछ नही, तू क्या करेगी सुनके।

नीलम- अम्मा तू रो रही है, मुझे दुख हो रहा है, नही बताएगी न, इसका मतलब मैं तेरी बेटी नही न

माँ- ये क्या बोल रही है

नीलम- तो बता फिर, बता तुझे मेरी कसम है।

माँ- तू कसम क्यों दे रही है। (रोते हुए)

नीलम- नही बताएगी तो दूंगी न कसम।

माँ- बहुत गंदा सपना था

नीलम- गंदा, कैसा गंदा?, क्या गंदा?

थोड़ी देर सोचने के बाद

माँ- मुझसे नही बोला जाएगा।

नीलम- अरे माँ, बता न, तेरी बेटी ही तो हूँ, अब कसम दे दी फिर भी नही बताओगी, कसम की भी लाज नही न। ठीक है

एकाएक नीलम की माँ बोल पड़ी

माँ- सपने में तेरे बाबू चाट चाट के तेरा पेशाब पी रहे थे वो भी सीधा बू.......

सुनते ही नीलम आश्चर्य से उसे देखने लगी

नीलम- क्या? छि छि, हे भगवान, इतना गंदा सपना, और क्या बोली अम्मा तू वो भी सीधा किससे? कहाँ से?

माँ- कहाँ से क्या, जहां से पिशाब निकलता है उसी से, सीधा बू........बूर से, हे भगवान मैं मर क्यों नही गयी ये सब देखते ही, क्या होने वाला है, तेरे बाबू बहुत बीमार थे सपने में, उनकी आंखें तक नही खुल रही थी, आंगन में यहीं लेटे थे खाट पे, दिन का समय था, तू आयी, सिर्फ साया ब्लॉउज पहना था तूने।

नीलम- फिर, फिर... अम्मा (उत्सुकता से)

माँ- फिर क्या, तू खाट के बगल में खड़ी हो गयी, और बोली बाबू, बाबू उठो न, वो नही उठ रहे थे, फिर एकाएक तूने अपना सीधा पैर उठाकर उनके दाहिने कंधे के ऊपर खाट के सिरहाने पर रखा और अपनी बूर खोलते हुए उनके मुँह पर हल्का हल्का मूतने लगी, पेशाब मुँह पर पड़ते ही तेरे बाबू की आंखें खुल गई और बूर देखकर जैसे उनके मुँह में पानी आ गया फिर पेशाब पीते हुए उन्होंने लपककर बूर को मुँह में भर लिया और चाटने लगे, बूर से निकल रही पेशाब की धार से उनका पूरा चेहरा भीग गया, तेरी और उनकी आँखों में वासना थी फिर न जाने कहाँ से एक आवाज गूंजी जैसे आकाशवाणी हुई हो कि पी ले बिरजू, पी ले यही तुझे जीवनदान देगी। एक झटके से मेरी आँख खुल गयी और मैं रोने लगी, न जाने क्या होने वाला है, इतना गंदा सपना मैंने आज तक नही देखा, क्या अनर्थ होने वाला है। बताओ एक बेटी अपने बाप को....हे ईश्वर!

ये सुनकर नीलम का तन बदन एकदम रोमांचित हो गया, शर्म से चेहरा एकदम लाल हो गया, पर फिर भी अपने को संभालते हुए बोली- इतना गंदा सपना आपको कैसे आया अम्मा, महापाप है ये तो, मुझे तो सोचकर भी शर्म आ रही है, कैसे..छि, क्या अर्थ है इस सपने का, और बीमार क्यों पड़े अम्मा, आपको पता है न बीमार पड़ने का मतलब क्या है इस गांव में, इस कुल में।

माँ- वही तो चिंता अब मुझे खाये जा रही है बेटी, तूने उनके साथ जो किया और उन्होंने तेरे साथ जो किया, पाप पुण्य तो बाद कि बात है, वो बीमार ही क्यों पड़े, क्यों ईश्वर ने उन्हें बीमार किया।

नीलम- अम्मा छोड़ो न, ये बस एक सपना था, गंदा सपना।

माँ- नही बेटी, मेरा दिल नही मानता, सपने का कुछ अर्थ जरूर होता है, आजतक तो कभी मुझे ऐसा सपना नही आया पर अब ही क्यों? कुछ तो गड़बड़ है मेरी बिटिया, तेरे बाबू को कुछ हो गया तो?

नीलम- क्या बोले जा रही है अम्मा तू (और नीलम ने अपनी माँ को गले से लगा लिया) मत बोल ऐसा, ऐसा कुछ नही होगा।

माँ- क्यों वो कोई लोहे के बने है? अरे वो भी तो मेरी तेरी तरह इंसान ही है न।

नीलम- हां तो, ऐसे तो मैं और तू भी इंसान है, हम भी बीमार पड़ सकते है।

माँ- हां पड़ सकते हैं, पर सपने में तो वही बीमार थे न, क्या पता इस सपने का अर्थ ये तो नही की आने वाले वक्त में वो बीमार पड़ जाए, अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या करूँगी मैं, कहाँ जाउंगी मैं, मैं तो ऐसे ही मर जाउंगी।

सपने से उसकी माँ काफी डर गई थी।

नीलम- क्यों ऐसा बोल रही है अम्मा तू, क्यों ऐसा सोच रही है, ये सिर्फ सपना है अम्मा, ईश्वर अगर मुसीबत देता है तो कहीं न कहीं उसका हल भी होता है

नीलम की यह हल वाली बात पर उसकी माँ के दिमाग में एक बात ठनकी

माँ- अरे हां देखो इस बात पे तो मेरा ध्यान ही नही गया।

नीलम- किस बात पे अम्मा?

माँ- देख ईश्वर की माया, अगर उन्होंने तेरे बाबू को बीमार किया तो ठीक होने का हल भी बताया, वो आकाशवाणी क्या कह रही थी, यही न कि "यही तुझे जीवनदान देगी।"

इतना कहते हुए नीलम की माँ ने नीलम का चेहरा अपने हांथों में ले लिया और जैसे भीख मांग रही हो, बोली- हे बिटिया, मुझे तो लगता है तू ही उनकी जीवनदायिनी है, चाहे पाप हो चाहे पुण्य हो, तू मुझे वचन दे कि जीवन में अगर उन्हें ऐसा कुछ हुआ, तो तू लोक लाज छोड़कर, पाप पुण्य को न देखते हुए, वही करेगी जो मैंने सपने में देखा, देख बेटी ना मत कहना, एक पत्नी अपने पति के लिए तेरे से भीख मांग रही है, अपनी ही बेटी से उसके पिता की जीवन की भीख मांग रही है, जीवन से बड़ा कुछ नही, आखिर तेरे बाबू को कुछ हो गया तो तू भी बिना बाप की हो ही जाएगी न और मैं तो विधवा हो ही जाएंगी, हमारे कुल हमारे गांव में न जाने कौन सी समस्या है जिसके चलते न जाने कितने लोग चले गए, पर देख तेरे बाबू कितने भाग्यशाली है कि ईश्वर ने सपने के द्वारा इसका हल बताया।

नीलम की मां पागलों की तरह बोले जा रही थी और नीलम अवाक सी सुने जा रही थी।

माँ- बेटी, अब तेरे बाबू की जीवनरेखा तेरे हाथ में है, तू मुझे वचन दे बेटी, की ऐसा करके उनकी रक्षा करेगी, वचन दे बेटी।

नीलम को तो मानो मुँह मांगी मुराद मिल गयी थी, बस वो सिर्फ दिखावा कर रही थी

नीलम- माँ ये तू क्या कह रही है, पहली बात तो यह सिर्फ एक सपना है, और क्या मैं चाहूंगी कि मेरे बाबू को कुछ हो, कभी नही, मैं अपनी जान भी दे दूंगी पर अपने बाबू को आंच नही आने दूंगी, ये तन बदन क्या चीज़ है अम्मा, तू चिंता मत कर मैं वचन देती हूं, मैं वही करूँगी जो तू कहेगी, वही करूँगी जो तूने देखा है सपने में, पर अम्मा बाबू मानेंगे क्या?, वो तो खुद ही मर जायेंगे पर ऐसा महापाप कभी सपने में भी नही करेंगे।

माँ- वो तू मुझपे छोड़ देना बेटी, मैं उन्हें मना लूंगी, देख बेटी तेरी माँ हूँ आज तुझे खुलकर बोलती हूँ ये जो मर्द होता है न, ये बूर का भूखा होता है, खुली बूर इसके सामने हो तो वो कुछ नही देखता, न बेटी, न माँ, न बहन, और यही हाल स्त्री का भी होता है, ये कुदरत का बनाया खेल है, लन्ड और बूर का कोई रिश्ता नहीं होता बिटिया, ये बस बने हैं तो एक दूजे के लिए, मैं उन्हें समझा दूंगी, अगर कभी ऐसा होता है तो। बस तू मेरे सुहाग की रक्षा करना।

नीलम- माँ मैंने आपको वचन दिया न, जो आप कहोगी वो मैं करूँगी, अब आप रोओ मत, और चिंता छोड़ दो।

नीलम के मन में खुशियों की बहार आ गयी, जैसे एकदम से काले काले बादल छा गए हो और रिमझिम बरसात शुरू हो गयी हो, आज नियति पर वो इतना खुश थी कि क्या बताये, अभी सुबह ही वो सोच रही थी कि रजनी आ जायेगी तो वह उसको अपने मन की व्यथा बताएगी उससे रास्ता पूछेगी, डर था उसे की छुप छुप के ये सब कैसे हो पायेगा, उसके बाबू उसके मन को पढ़ पाएंगे भी या नही, पर नियति ने देखो कैसे एक पल में सारा रास्ता बना दिया, दूसरे की तो बात ही छोड़ो खुद उसकी सगी माँ इस व्यभिचार में उसके लिए रास्ता बनाएगी, माँ का संरक्षण मिल गया था अब तो, और जब माँ का ही संरक्षण मिल जाये, उसकी ही रजामंदी मिल जाये तो तब डर कैसा, रास्ता तो उसकी माँ खुद बनाएगी उसके लिए, एक बार को बाबू पीछे भी हटे तो माँ खुद उन्हें मेरा यौन रस चखने के लिए मनाएगी, पर ऐसा है नही आज बाबू को देखा था मैंने कैसे मेरी चूची को घूर रहे थे। वक्त ने अचानक ऐसी पलटी मारी की सारा खेल आसान हो गया।

लेकिन नीलम ये समझ गयी कि मां ये सब उस सपने की वजह से कह रही है, अगर बाबू बीमार पड़े तो मुझे ऐसा करना होगा, लेकिन अगर मान लो वो बीमार नही पड़े तो?

इसके लिए मुझे माँ से बातों बातों में बाबू के रूखे यौनजीवन की चर्चा करनी होगी, उनकी तड़प की चर्चा करनी होगी, जीवन में उन्हें जो यौनसुख नही मिल रहा उसपर बात करनी होगी, मुझे लग रहा है कि अम्मा मेरा यौनमिलन बाबू से जरूर करवा देंगी, बाबू को तो मैं अपने बलबूते पर भी तैयार कर लुंगी रिझा रिझा के, पर अगर इस काम को अम्मा करे, ये सब उनकी सहमति से हो तो मजा और भी दोगुना हो जाएगा।
Bahut hi jabardast update hi bhai
 

Naik

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Update-20

पुर्वा आकर अपनी जगह पर लेट गयी।

पुर्वा- रजनी बहन! सो गई क्या?

रजनी- नही पुर्वा बहन, नींद कहाँ आ रही है।

पुर्वा- परेशान मत हो बहन, सब ठीक हो जाएगा, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, सो जाओ।

रजनी- हां बहन सो तो है।

पुर्वा- आपके बाबू सो गए।

रजनी- हां वो तो कबके सो गए।

पुर्वा- तो तुम भी सो जाओ।

रजनी- हूं, ठीक है, और तुम जगती रहोगी क्या?

पुर्वा- नही, कुछ देर में सो जाउंगी।

फिर रजनी और उदयराज सो जाते हैं।

कहते है कि किसी भी चीज़ को अगर दिल से चाहो और उसके लिए सच्ची तड़प हो तो नियति या कायनात उसे तुमसे मिलाती जरूर है, या यूं कहें कि उसे तुमसे मिलाने के लिए परिस्तिथियाँ तैयार करने लगती हैं, यही हुआ आज नीलम के साथ।

आज सुबह उसने जो देखा उससे वो बहुत बेचैन हो गयी, गेहूं फैला कर वो किसी तरह नीचे आयी, तो उसकी माँ ने उसे खाना बनाने का लिए बोल दिया। बिरजू घास लेके आया और उसने घास अपने जानवरों को दी और उदयराज के घर जाके उनके जानवरों को भी दिया, नीलम अभी घर में खाना ही बना रही थी और बिरजू नहाने चला गया, खाना बनने के बाद नीलम ने उनको खाना परोसा, हमेशा वो चुन्नी डाले रहती थी पर आज उसने जानबूझ के नही डाली। बिरजू को देखते ही नीलम की आंखों के सामने वो दृश्य घूम गया, कितना बड़ा और मोटा लंड है मेरे बाबू का, शर्म की लालिमा चहरे पे आ गयी और वो थाली रखने नीचे झुकी, मदमस्त मोटी चुचियाँ का भार नीचे की ओर हुआ जैसे वो मानो सूट से निकलकर बाहर ही आ जाएंगी।

नीलम- बाबू हरी मिर्च भी लाऊं, प्याज़ के साथ।

बिरजू ने जैसे ही सर उठाया सीधी नज़र गोरी गोरी भरपूर फूली हुई चूचीयों पर चली गई, नीलम मुस्कुरा दी, ये देखकर की बिरजू की नज़र कहाँ है।

बिरजू झेंप गया और सकपका के बोला- नही बेटी, प्याज़ ही बहुत है, मिर्च रहने दे।

नीलम मुस्कुराते हुए चली आयी, बिरजू खाना खाने लगा, मन में उसने सोचा कि नीलम को क्या हुआ आज मैंने इस तरह उसे कभी नही देखा, भूलकर भी वो मेरे सामने ऐसे कभी नही आई, खैर भूल गयी होगी चुन्नी लेना, लेकिन भूलेगी क्यों, पहले तो कभी नही भूली, एक बार और बुला कर देखता हूँ अगर भूल गयी होगी तो इस बार चुन्नी डालकर आएगी

बिरजू- नीलम, नीलम बेटी

नीलम- हां बाबू

बिरजू- सिरका है

नीलम रसोई में से- हां बाबू है, लायी

इस बार फिर नीलम ने चुन्नी नही डाली और कटोरी में सिरका डालकर थाली के पास रख दिया और जब बिरजू की ओर देखा तो वो उसकी हिलती चूचीयाँ देख रहा था, जैसे ही बिरजू की नजरें मिली नीलम मुस्कुरा दी, बिरजू भी हल्का सा मुस्कुरा कर झेप सा गया।

बिरजू थाली में देखने लगा, नीलम पलट कर जाने लगी, पता नही क्यों बिरजू ने दुबारा नीलम को देखने के लिए नज़रें उठायी और आज वो पहली बार अपनी सगी बेटी को जाते वक्त पीछे से निहार रहा था कि तभी नीलम पलटी और अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही देख रहा था, इस बार वो नीलम को देखता रहा, नीलम भी रसोई के दरवाजे पर रुककर कुछ देर देखती रही फिर हंस दी और बिरजू भी मुस्कुरा दिया, नीलम की नज़रों में आमंत्रण था ये तो बिरजू को समझ आ चुका था अब।
तभी नीलम बोली- बाबू कुछ चाहिए हो तो बता देना।
(न जाने इस बात में भी बिरजू को आमंत्रण सा लगा)
बिरजू - हां बेटी, जरूर, और खाना खाने लगा।

नीलम मुस्कुराई और मटकती हुए रसोई में चली गयी।

बिरजू ने खाना खाया और काम से बाहर चला गया।

नीलम मन ही मन बहुत खुश थी कि शायद तीर निशाने पर लगा है, नही तो उसके बाबू उसको डांटते, कुछ तो है बाबू के मन में भी।

नीलम ने घर का काम किया, अपनी माँ को भी
खाना खिलाया और खुद भी खाया, फिर उसकी माँ सोने चली गयी दोपहर में और वो भी सो गई।

शाम को नीलाम सो के उठी तो देखा उसकी माँ सुबुक सुबुक के रो रही थी

नीलम- अम्मा क्या हुआ, रो क्यों रही हो। क्या हुआ बताओ न। क्या कोई बुरा सपना देखा क्या?

माँ- हां

नीलम- क्या सपना देखा? ऐसा क्या देखा, क्या कोई डरावना सपना देखा क्या? भूत प्रेत का।

माँ- नही रे! मैं डरती हूँ क्या भूत से।

नीलम- अरे तो फिर ऐसा क्या देखा जो रोने लगी।

माँ- कुछ नही

नीलम- अम्मा बता न, कुछ बता नही रही और रोये जा रही है। बता न

माँ- बोला न कुछ नही, तू क्या करेगी सुनके।

नीलम- अम्मा तू रो रही है, मुझे दुख हो रहा है, नही बताएगी न, इसका मतलब मैं तेरी बेटी नही न

माँ- ये क्या बोल रही है

नीलम- तो बता फिर, बता तुझे मेरी कसम है।

माँ- तू कसम क्यों दे रही है। (रोते हुए)

नीलम- नही बताएगी तो दूंगी न कसम।

माँ- बहुत गंदा सपना था

नीलम- गंदा, कैसा गंदा?, क्या गंदा?

थोड़ी देर सोचने के बाद

माँ- मुझसे नही बोला जाएगा।

नीलम- अरे माँ, बता न, तेरी बेटी ही तो हूँ, अब कसम दे दी फिर भी नही बताओगी, कसम की भी लाज नही न। ठीक है

एकाएक नीलम की माँ बोल पड़ी

माँ- सपने में तेरे बाबू चाट चाट के तेरा पेशाब पी रहे थे वो भी सीधा बू.......

सुनते ही नीलम आश्चर्य से उसे देखने लगी

नीलम- क्या? छि छि, हे भगवान, इतना गंदा सपना, और क्या बोली अम्मा तू वो भी सीधा किससे? कहाँ से?

माँ- कहाँ से क्या, जहां से पिशाब निकलता है उसी से, सीधा बू........बूर से, हे भगवान मैं मर क्यों नही गयी ये सब देखते ही, क्या होने वाला है, तेरे बाबू बहुत बीमार थे सपने में, उनकी आंखें तक नही खुल रही थी, आंगन में यहीं लेटे थे खाट पे, दिन का समय था, तू आयी, सिर्फ साया ब्लॉउज पहना था तूने।

नीलम- फिर, फिर... अम्मा (उत्सुकता से)

माँ- फिर क्या, तू खाट के बगल में खड़ी हो गयी, और बोली बाबू, बाबू उठो न, वो नही उठ रहे थे, फिर एकाएक तूने अपना सीधा पैर उठाकर उनके दाहिने कंधे के ऊपर खाट के सिरहाने पर रखा और अपनी बूर खोलते हुए उनके मुँह पर हल्का हल्का मूतने लगी, पेशाब मुँह पर पड़ते ही तेरे बाबू की आंखें खुल गई और बूर देखकर जैसे उनके मुँह में पानी आ गया फिर पेशाब पीते हुए उन्होंने लपककर बूर को मुँह में भर लिया और चाटने लगे, बूर से निकल रही पेशाब की धार से उनका पूरा चेहरा भीग गया, तेरी और उनकी आँखों में वासना थी फिर न जाने कहाँ से एक आवाज गूंजी जैसे आकाशवाणी हुई हो कि पी ले बिरजू, पी ले यही तुझे जीवनदान देगी। एक झटके से मेरी आँख खुल गयी और मैं रोने लगी, न जाने क्या होने वाला है, इतना गंदा सपना मैंने आज तक नही देखा, क्या अनर्थ होने वाला है। बताओ एक बेटी अपने बाप को....हे ईश्वर!

ये सुनकर नीलम का तन बदन एकदम रोमांचित हो गया, शर्म से चेहरा एकदम लाल हो गया, पर फिर भी अपने को संभालते हुए बोली- इतना गंदा सपना आपको कैसे आया अम्मा, महापाप है ये तो, मुझे तो सोचकर भी शर्म आ रही है, कैसे..छि, क्या अर्थ है इस सपने का, और बीमार क्यों पड़े अम्मा, आपको पता है न बीमार पड़ने का मतलब क्या है इस गांव में, इस कुल में।

माँ- वही तो चिंता अब मुझे खाये जा रही है बेटी, तूने उनके साथ जो किया और उन्होंने तेरे साथ जो किया, पाप पुण्य तो बाद कि बात है, वो बीमार ही क्यों पड़े, क्यों ईश्वर ने उन्हें बीमार किया।

नीलम- अम्मा छोड़ो न, ये बस एक सपना था, गंदा सपना।

माँ- नही बेटी, मेरा दिल नही मानता, सपने का कुछ अर्थ जरूर होता है, आजतक तो कभी मुझे ऐसा सपना नही आया पर अब ही क्यों? कुछ तो गड़बड़ है मेरी बिटिया, तेरे बाबू को कुछ हो गया तो?

नीलम- क्या बोले जा रही है अम्मा तू (और नीलम ने अपनी माँ को गले से लगा लिया) मत बोल ऐसा, ऐसा कुछ नही होगा।

माँ- क्यों वो कोई लोहे के बने है? अरे वो भी तो मेरी तेरी तरह इंसान ही है न।

नीलम- हां तो, ऐसे तो मैं और तू भी इंसान है, हम भी बीमार पड़ सकते है।

माँ- हां पड़ सकते हैं, पर सपने में तो वही बीमार थे न, क्या पता इस सपने का अर्थ ये तो नही की आने वाले वक्त में वो बीमार पड़ जाए, अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या करूँगी मैं, कहाँ जाउंगी मैं, मैं तो ऐसे ही मर जाउंगी।

सपने से उसकी माँ काफी डर गई थी।

नीलम- क्यों ऐसा बोल रही है अम्मा तू, क्यों ऐसा सोच रही है, ये सिर्फ सपना है अम्मा, ईश्वर अगर मुसीबत देता है तो कहीं न कहीं उसका हल भी होता है

नीलम की यह हल वाली बात पर उसकी माँ के दिमाग में एक बात ठनकी

माँ- अरे हां देखो इस बात पे तो मेरा ध्यान ही नही गया।

नीलम- किस बात पे अम्मा?

माँ- देख ईश्वर की माया, अगर उन्होंने तेरे बाबू को बीमार किया तो ठीक होने का हल भी बताया, वो आकाशवाणी क्या कह रही थी, यही न कि "यही तुझे जीवनदान देगी।"

इतना कहते हुए नीलम की माँ ने नीलम का चेहरा अपने हांथों में ले लिया और जैसे भीख मांग रही हो, बोली- हे बिटिया, मुझे तो लगता है तू ही उनकी जीवनदायिनी है, चाहे पाप हो चाहे पुण्य हो, तू मुझे वचन दे कि जीवन में अगर उन्हें ऐसा कुछ हुआ, तो तू लोक लाज छोड़कर, पाप पुण्य को न देखते हुए, वही करेगी जो मैंने सपने में देखा, देख बेटी ना मत कहना, एक पत्नी अपने पति के लिए तेरे से भीख मांग रही है, अपनी ही बेटी से उसके पिता की जीवन की भीख मांग रही है, जीवन से बड़ा कुछ नही, आखिर तेरे बाबू को कुछ हो गया तो तू भी बिना बाप की हो ही जाएगी न और मैं तो विधवा हो ही जाएंगी, हमारे कुल हमारे गांव में न जाने कौन सी समस्या है जिसके चलते न जाने कितने लोग चले गए, पर देख तेरे बाबू कितने भाग्यशाली है कि ईश्वर ने सपने के द्वारा इसका हल बताया।

नीलम की मां पागलों की तरह बोले जा रही थी और नीलम अवाक सी सुने जा रही थी।

माँ- बेटी, अब तेरे बाबू की जीवनरेखा तेरे हाथ में है, तू मुझे वचन दे बेटी, की ऐसा करके उनकी रक्षा करेगी, वचन दे बेटी।

नीलम को तो मानो मुँह मांगी मुराद मिल गयी थी, बस वो सिर्फ दिखावा कर रही थी

नीलम- माँ ये तू क्या कह रही है, पहली बात तो यह सिर्फ एक सपना है, और क्या मैं चाहूंगी कि मेरे बाबू को कुछ हो, कभी नही, मैं अपनी जान भी दे दूंगी पर अपने बाबू को आंच नही आने दूंगी, ये तन बदन क्या चीज़ है अम्मा, तू चिंता मत कर मैं वचन देती हूं, मैं वही करूँगी जो तू कहेगी, वही करूँगी जो तूने देखा है सपने में, पर अम्मा बाबू मानेंगे क्या?, वो तो खुद ही मर जायेंगे पर ऐसा महापाप कभी सपने में भी नही करेंगे।

माँ- वो तू मुझपे छोड़ देना बेटी, मैं उन्हें मना लूंगी, देख बेटी तेरी माँ हूँ आज तुझे खुलकर बोलती हूँ ये जो मर्द होता है न, ये बूर का भूखा होता है, खुली बूर इसके सामने हो तो वो कुछ नही देखता, न बेटी, न माँ, न बहन, और यही हाल स्त्री का भी होता है, ये कुदरत का बनाया खेल है, लन्ड और बूर का कोई रिश्ता नहीं होता बिटिया, ये बस बने हैं तो एक दूजे के लिए, मैं उन्हें समझा दूंगी, अगर कभी ऐसा होता है तो। बस तू मेरे सुहाग की रक्षा करना।

नीलम- माँ मैंने आपको वचन दिया न, जो आप कहोगी वो मैं करूँगी, अब आप रोओ मत, और चिंता छोड़ दो।

नीलम के मन में खुशियों की बहार आ गयी, जैसे एकदम से काले काले बादल छा गए हो और रिमझिम बरसात शुरू हो गयी हो, आज नियति पर वो इतना खुश थी कि क्या बताये, अभी सुबह ही वो सोच रही थी कि रजनी आ जायेगी तो वह उसको अपने मन की व्यथा बताएगी उससे रास्ता पूछेगी, डर था उसे की छुप छुप के ये सब कैसे हो पायेगा, उसके बाबू उसके मन को पढ़ पाएंगे भी या नही, पर नियति ने देखो कैसे एक पल में सारा रास्ता बना दिया, दूसरे की तो बात ही छोड़ो खुद उसकी सगी माँ इस व्यभिचार में उसके लिए रास्ता बनाएगी, माँ का संरक्षण मिल गया था अब तो, और जब माँ का ही संरक्षण मिल जाये, उसकी ही रजामंदी मिल जाये तो तब डर कैसा, रास्ता तो उसकी माँ खुद बनाएगी उसके लिए, एक बार को बाबू पीछे भी हटे तो माँ खुद उन्हें मेरा यौन रस चखने के लिए मनाएगी, पर ऐसा है नही आज बाबू को देखा था मैंने कैसे मेरी चूची को घूर रहे थे। वक्त ने अचानक ऐसी पलटी मारी की सारा खेल आसान हो गया।

लेकिन नीलम ये समझ गयी कि मां ये सब उस सपने की वजह से कह रही है, अगर बाबू बीमार पड़े तो मुझे ऐसा करना होगा, लेकिन अगर मान लो वो बीमार नही पड़े तो?

इसके लिए मुझे माँ से बातों बातों में बाबू के रूखे यौनजीवन की चर्चा करनी होगी, उनकी तड़प की चर्चा करनी होगी, जीवन में उन्हें जो यौनसुख नही मिल रहा उसपर बात करनी होगी, मुझे लग रहा है कि अम्मा मेरा यौनमिलन बाबू से जरूर करवा देंगी, बाबू को तो मैं अपने बलबूते पर भी तैयार कर लुंगी रिझा रिझा के, पर अगर इस काम को अम्मा करे, ये सब उनकी सहमति से हो तो मजा और भी दोगुना हो जाएगा।
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 

Naik

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Update-21

उदयराज और रजनी सो गए कुछ देर बाद पुर्वा भी सो गई, सुबह हुई, पुर्वा और रजनी एक साथ जगे, रजनी ने काकी को जगाया और तीनों ने सुबह की नित्य क्रिया करके नहा धो लिया, पुर्वा और काकी नाश्ता बनाने लगी, आज रजनी ने नीली रंग की साड़ी काले ब्लॉउज के साथ पहनी थी जिसमे वो गज़ब ढा रही थी, उसका गोरा बदन दमक रहा था, ब्लॉउज में भारी भारी चूचीयाँ बाहर आ जाने को कसमसा रही थी, नितंबों ने अलग ही हाहाकार मचाया हुआ था। ऐसा लग रहा था स्वर्ग से उतरकर कोई अप्सरा जंगल में आ गयी हो।

रजनी कुटिया में उदयराज को जगाने के लिए गयी।

रजनी- बाबू उठो, (कहते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और फिर अपने बाबू के गाल पर झुककर एक भीगा सा चुम्बन जड़ दिया)

तपाक से उदयराज की आंखें खुल गयी, अपनी शादीशुदा बेटी का ये रूप देखकर और इस तरह चुम्बन देकर उठाना उसे इतना मधुर लगा कि वो उसे देखता रह गया, कामुक भीगे हुए रसीले होठों के गीले गीले चुम्बन का अपने गालों पर अहसास उदयराज को मदमस्त कर गया

नीली साड़ी में अपनी ही शादीशुदा बेटी को देखकर उसका मन मचल उठा, तभी उसकी नज़र रजनी के ब्लॉउज पर गयी, पल्लू सीने से गिर चुका था, गोरी गोरी चूचीयों के बीच बनी गहरी घाटी में जैसे वो थोड़ी देर के लिए डूब गया, रजनी समझ गयी कि उसके बाबू कहाँ खोए हैं। उसने अपने बाबू की ठोढ़ी को तर्जनी उंगली से उठाते हुए कहा- उठो न बाबू, रात में देखके जी नही भरा।

उदयराज- गज़ब की बिटिया पाई है मैंने, इससे भला अब मेरा जी भरेगा, आज तूने मेरा दिन बना दिया।

रजनी- अच्छा जी! मैंने भी तो दुनियां का सबसे अच्छा पिता पाया है, चलो अब उठो न बाबू कोई आ जायेगा।

उदयराज- ऐसे नही उठूंगा

रजनी- फिर कैसे उठोगे, उठो न

उदयराज- नही, पहले जरा सा दिखा दे न, चखने का मन कर रहा है

रजनी- क्या?

उदयराज ने अपनी हथेली रजनी के बायीं मोटी चूची पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया।

रजनी हल्का सा - uuuiiiimmmaaa

रजनी- अभी रात को तो सब किया था मेरे बाबू, जी नही भरा (सिसकते हुए)

उदयराज- क्या कोई रात को खाना खा ले तो सुबह नाश्ता नही करता क्या? सुबह तो फिर उसे भूख लगेगी न,

रजनी- बदमाश! ये दिन है बाबू रात की बात अलग थी, यहां सब हैं कभी भी कोई आ सकता है।

उदयराज- बस जल्दी से, एक बार बस, बहुत देखने का मन कर रहा है, फिर उठ जाऊंगा पक्का।

रजनी- बदमाश बाबू! अच्छा लो देख लो जल्दी से

रजनी मुस्कुराते हुए पीछे पलट के देखती है, भाग्यवश उस वक्त कोई इधर नही आ रहा था।फिर उसने अपने ब्लॉउज के नीचे के दो बटन खोले और ब्रा और ब्लॉउज को ऊपर खींचकर एकदम से दोनों ही बड़ी बडी चूचीयों को एक साथ अपने बाबू के सामने उजागर कर दिया, दोनों बड़ी बड़ी चूचीयाँ उछलकर उदयराज की आंखों के सामने आ गयी, आज उदयराज दोनों चुचियों को एकसाथ देखकर वासना से सराबोर हो गया, लंड उसका धोती में खड़ा हो गया, इतनी गोरी गोरी चूची उसकी खुद की शादीशुदा बेटी की ही होगी उसने कभी सोचा नही था और उसपर ये मोठे मोठे गुलाबी रसीले निप्पल, अभी रात में ही उदयराज ने एक चूची को खोला था पर अंधेरा होने की वजह से अच्छे से देख नही पाया था पर इस वक्त सुबह की रोशनी में दोनों ही चूचीयाँ उसके सामने नग्न थी। उदयराज उन्हें निहारने लगा, रजनी शर्मा गयी

उदयराज ने दोनों हाँथ बढ़ा के दोनों चूची को हथेली में भर लिया और एक बार कस के दबा कर निप्पल को मसल दिया रजनी की aaahhhhhhh निकल गयी मचलते हुए वो बोली- बाबू बस करो कोई आ जायेगा

उदयराज- अच्छा मेरी बेटी एक बार पिला दे दोनों

रजनी ने ब्लॉउज को और ऊपर चढ़ा कर छोड़ दिया और अपने दोनों हाँथ उदयराज के दोनों कंधों के ऊपर रखकर उसके ऊपर झुक गयी और अपनी बायीं चूची का निप्पल मुँह में डालते हुए बोली- लो जल्दी पी लो

उदयराज ने लपककर जितना हो सके चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा रजनी की जोश में आंखें बंद हो गयी, पीते वक्त उदयराज बीच बीच में हल्का काट लेता और जब उसकी जीभ निप्पल से टकराती तो रजनी दबी आवाज में सिसक उठती iiiiiiiiiissssssshhhhhh. aaaaaaaahhhhhhhhhh, रजनी वासना से भर उठी वह डर भी रही थी कि कहीं कोई आ न जाये।
तभी रजनी बोली- बाबू अब बस करो जल्दी से दूसरी पियो देखो कोई आ जायेगा और उसने बायीं चूची उदयराज के मुंह से निकाल कर दायीं चूची उसके मुँह के सामने कर दी निप्पल मुँह से निकलने पर दूध की एक दो बूंदे उदयराज की मूंछों के आसपास गिर गयी जो कि देखने मे बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उदयराज ने जीभ निकाल कर रजनी को दिखाते हुए उसे चाट लिया और रजनी हंस पड़ी
और फिर रजनी ने अपनी दायीं चूची के निप्पल को अपने बाबू के होंठों से छुआया उदयराज ने अपनी जीभ निकल के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा तो रजनी वासनामय होते हुए बोली- बाबू चुसो न जल्दी, जरूर कोई आ जायेगा, खेल बाद में करना इसके साथ बदमाश।

उदयराज लप्प से चूची मुँह में भरकर पीने लगा, उसके तो दिन ही बदल गए थे इतनी मदमस्त चूचीयाँ पीने को मिलेंगी वो भी अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की उसने सोचा नही था। आज तो वो झूम उठा था, रजनी की आंखें मस्ती में बंद थी, एक बार फिर उसने मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा अभी तक भी रास्ता साफ था रजनी एकाएक बोली- बाबू थोड़ा रुको

उदयराज रुक गया, रजनी ने चूची पकड़कर उसके मुह से बाहर निकाली और बोली- मुँह खोलो, आ करो

उदयराज ने बच्चे की तरह आ कर लिया, रजनी ने एकाएक अपनी चूची को जोर से दबाकर दूध की धार उदयराज के मुंह में डाल दी, चिर्रर्रर्रर की आवाज के साथ दूध की धार से उदयराज का मुँह कुछ ही पल में आधा भर गया, रजनी ने हस्ते हुए बोला मेरे बाबू जी अभी इतना पी लो बाकी का बाद में दूंगी तो खाली कर लेना, इतना कहकर रजनी अपनी चुचियों को ढकते हुए उठ खड़ी हुई, उदयराज उसे देखते हुए गट गट करके दूध पी गया और जैसे ही रजनी मुस्कुराते हुए जाने को पलटी उसने रजनी का नरम मुलायम हाँथ पकड़ लिया।

रजनी- अब क्या बाबू, जाने दो न, जरूर कोई आ ही जायेगा।

उदयराज- फिर कब दोगी।

रजनी- जब मौका मिलेगा, सब्र करो सब दूंगी अपने बाबू को

उदयराज- सब दोगी

रजनी- हां...दूंगी

उदयराज- सब.....वो भी (उदयराज का मतलब बूर से था)

रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और धीरे से बोली- dhaaaatttt बाबू, कोई अपनी शादीशुदा सगी बेटी की "वो" मांगता है। मेरे बेशर्म बाबू।

उदयराज- किसी का तो पता नही पर मुझे तो चाहिए वो, जरूर चाहिए, दोगी न

उदयराज ने हाँथ छोड़ दिया और रजनी मुस्कुराके जाने लगी फिर दरवाजे तक जाके रुकी, पलट के देखा और बोली- हां वो भी दूंगी, खूब दूंगी, जी भरके दूंगी, पर घर पहुँच के, थोड़ा सब्र बाबू, अब उस पर आपका ही हक़ है वो हमेशा से ही आपकी थी और हमेशा रहेगी और मुस्कुराते हुए भाग गई, उदयराज ने अपने लंड को धोती के ऊपर से ही मसल दिया और किसी तरह adjust करके उठा और बाहर आ गया।

काकी और पुर्वा नाश्ता बना चुकी थी, पुर्वा ने रजनी को देखते हो बोला- अरे बहन तुम्हारे बाबू जी उठ गए।

रजनी (अपने को संभालते हुए)- हां उठ गए नहा कर आ रहे हैं।

पुर्वा- ठीक है मैं नाश्ता लगती हूँ

रजनी- नही बहन तुम रहने दो मैं लगा देती हूं तुम अपनी माता जी के पास जाओ शायद वो बुला रही थी तुम्हे।

रजनी और काकी नाश्ता लगाने लगती हैं

सुलोचना ने रात भर मंत्र जागृत करके सात ताबीज़ तैयार कर दिए थे जिसको पीपल के पत्ते से लपेटा हुआ था और उसको काले कपड़े में बांधकर एक डोरी से जोड़ना था ताकि हाँथ पर बांधा जा सके, पुर्वा ने उसे तुरंत तैयार कर दिया, सुलोचना भी फिर नहा कर तैयार हो गयी, सबने नाश्ता किया।

सुलोचना- मैंने ताबीज़ तैयार कर दी है, पुर्वा को छोड़कर सबलोग इसको अपने हाँथ पर बांध लो, छोटी बच्ची और बैलों को भी बांध देना पुत्र।

उदयराज- हां माता जी

और उदयराज सबको वो ताबीज़ बांध देता है जाके बैलों के गले में भी बांध आता है।

सुलोचना- मेरे ख्याल से हमे सुबह जल्दी ही निकल जाना चाहिए, ताकि शाम तक वहां पहुंच जाएं, पुर्वा यही रहेगी

काकी- बहन अगर हम शाम तक वहां पहुचेंगे तो हम वापिस तो कल ही आ पाएंगे तो ऐसे में क्या पुर्वा रात भर इस जंगल में अकेली रहेगी, आखिर वो भी एक लड़की है, बच्ची ही है, मेरे ख्याल से हमे उसे अकेला नही छोड़ना चाहिए। आप हम लोगों की इतनी चिंता कर रही है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी आपलोगों का ख्याल रखें।

उदयराज- हां बिल्कुल

सुलोचला- तुम्हारी चिंता जायज है बहन, पर तुम इसकी चिंता मत करो, हमारी आदत है और वैसे भी उसके पास मन्त्रो की शक्ति है उसे कुछ नही होगा, हम कल दोपहर तक आ जाएंगे।

पूर्वा- हां अम्मा आप मेरी फिक्र मत करो मैं कई बार अकेले रह चुकी हूं।

काकी- ठीक है

फिर सभी लोग तैयार हो जाते है उदयराज अपने बैल तैयार करता है सबलोग बैलगाड़ी में बैठ जाते हैं और उदयराज बैलगाड़ी चलाने लगता है।

उदयराज का मन अब बिल्कुल नही लग रहा था उसका लंड बार बार रजनी को देखके खड़ा हो जा रहा था, रजनी भी उसे देख देख के मुस्कुरा रही थी, रजनी का आमंत्रण उसका यौवन उदयराज पर इतना हावी होता जा रहा यह कि एक पल को वो ये भी भूल गया कि आखिर वो किस काम के लिए निकला है, यही हाल रजनी का भी हो रहा था। उनके जीवन में रसभरी बाहर आ चुकी थी, उदयराज ने कभी सोचा भी नही था कि उसे अपनी ही शादीशुदा बेटी से यौनसुख मिलेगा। वो बैलगाड़ी चलता हुआ यही सब सोचे जा रहा था कि तभी उसकी तन्द्रा भंग होती है जब बैलगाड़ी सिंघारो जंगल में प्रवेश कर जाती है, वाकई में ये जंगल मायावी सा था, काफी गहरी घनी छाया थी, बहुत बड़े बड़े वृक्ष थे।
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