Update-20
पुर्वा आकर अपनी जगह पर लेट गयी।
पुर्वा- रजनी बहन! सो गई क्या?
रजनी- नही पुर्वा बहन, नींद कहाँ आ रही है।
पुर्वा- परेशान मत हो बहन, सब ठीक हो जाएगा, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, सो जाओ।
रजनी- हां बहन सो तो है।
पुर्वा- आपके बाबू सो गए।
रजनी- हां वो तो कबके सो गए।
पुर्वा- तो तुम भी सो जाओ।
रजनी- हूं, ठीक है, और तुम जगती रहोगी क्या?
पुर्वा- नही, कुछ देर में सो जाउंगी।
फिर रजनी और उदयराज सो जाते हैं।
कहते है कि किसी भी चीज़ को अगर दिल से चाहो और उसके लिए सच्ची तड़प हो तो नियति या कायनात उसे तुमसे मिलाती जरूर है, या यूं कहें कि उसे तुमसे मिलाने के लिए परिस्तिथियाँ तैयार करने लगती हैं, यही हुआ आज नीलम के साथ।
आज सुबह उसने जो देखा उससे वो बहुत बेचैन हो गयी, गेहूं फैला कर वो किसी तरह नीचे आयी, तो उसकी माँ ने उसे खाना बनाने का लिए बोल दिया। बिरजू घास लेके आया और उसने घास अपने जानवरों को दी और उदयराज के घर जाके उनके जानवरों को भी दिया, नीलम अभी घर में खाना ही बना रही थी और बिरजू नहाने चला गया, खाना बनने के बाद नीलम ने उनको खाना परोसा, हमेशा वो चुन्नी डाले रहती थी पर आज उसने जानबूझ के नही डाली। बिरजू को देखते ही नीलम की आंखों के सामने वो दृश्य घूम गया, कितना बड़ा और मोटा लंड है मेरे बाबू का, शर्म की लालिमा चहरे पे आ गयी और वो थाली रखने नीचे झुकी, मदमस्त मोटी चुचियाँ का भार नीचे की ओर हुआ जैसे वो मानो सूट से निकलकर बाहर ही आ जाएंगी।
नीलम- बाबू हरी मिर्च भी लाऊं, प्याज़ के साथ।
बिरजू ने जैसे ही सर उठाया सीधी नज़र गोरी गोरी भरपूर फूली हुई चूचीयों पर चली गई, नीलम मुस्कुरा दी, ये देखकर की बिरजू की नज़र कहाँ है।
बिरजू झेंप गया और सकपका के बोला- नही बेटी, प्याज़ ही बहुत है, मिर्च रहने दे।
नीलम मुस्कुराते हुए चली आयी, बिरजू खाना खाने लगा, मन में उसने सोचा कि नीलम को क्या हुआ आज मैंने इस तरह उसे कभी नही देखा, भूलकर भी वो मेरे सामने ऐसे कभी नही आई, खैर भूल गयी होगी चुन्नी लेना, लेकिन भूलेगी क्यों, पहले तो कभी नही भूली, एक बार और बुला कर देखता हूँ अगर भूल गयी होगी तो इस बार चुन्नी डालकर आएगी
बिरजू- नीलम, नीलम बेटी
नीलम- हां बाबू
बिरजू- सिरका है
नीलम रसोई में से- हां बाबू है, लायी
इस बार फिर नीलम ने चुन्नी नही डाली और कटोरी में सिरका डालकर थाली के पास रख दिया और जब बिरजू की ओर देखा तो वो उसकी हिलती चूचीयाँ देख रहा था, जैसे ही बिरजू की नजरें मिली नीलम मुस्कुरा दी, बिरजू भी हल्का सा मुस्कुरा कर झेप सा गया।
बिरजू थाली में देखने लगा, नीलम पलट कर जाने लगी, पता नही क्यों बिरजू ने दुबारा नीलम को देखने के लिए नज़रें उठायी और आज वो पहली बार अपनी सगी बेटी को जाते वक्त पीछे से निहार रहा था कि तभी नीलम पलटी और अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही देख रहा था, इस बार वो नीलम को देखता रहा, नीलम भी रसोई के दरवाजे पर रुककर कुछ देर देखती रही फिर हंस दी और बिरजू भी मुस्कुरा दिया, नीलम की नज़रों में आमंत्रण था ये तो बिरजू को समझ आ चुका था अब।
तभी नीलम बोली- बाबू कुछ चाहिए हो तो बता देना।
(न जाने इस बात में भी बिरजू को आमंत्रण सा लगा)
बिरजू - हां बेटी, जरूर, और खाना खाने लगा।
नीलम मुस्कुराई और मटकती हुए रसोई में चली गयी।
बिरजू ने खाना खाया और काम से बाहर चला गया।
नीलम मन ही मन बहुत खुश थी कि शायद तीर निशाने पर लगा है, नही तो उसके बाबू उसको डांटते, कुछ तो है बाबू के मन में भी।
नीलम ने घर का काम किया, अपनी माँ को भी
खाना खिलाया और खुद भी खाया, फिर उसकी माँ सोने चली गयी दोपहर में और वो भी सो गई।
शाम को नीलाम सो के उठी तो देखा उसकी माँ सुबुक सुबुक के रो रही थी
नीलम- अम्मा क्या हुआ, रो क्यों रही हो। क्या हुआ बताओ न। क्या कोई बुरा सपना देखा क्या?
माँ- हां
नीलम- क्या सपना देखा? ऐसा क्या देखा, क्या कोई डरावना सपना देखा क्या? भूत प्रेत का।
माँ- नही रे! मैं डरती हूँ क्या भूत से।
नीलम- अरे तो फिर ऐसा क्या देखा जो रोने लगी।
माँ- कुछ नही
नीलम- अम्मा बता न, कुछ बता नही रही और रोये जा रही है। बता न
माँ- बोला न कुछ नही, तू क्या करेगी सुनके।
नीलम- अम्मा तू रो रही है, मुझे दुख हो रहा है, नही बताएगी न, इसका मतलब मैं तेरी बेटी नही न
माँ- ये क्या बोल रही है
नीलम- तो बता फिर, बता तुझे मेरी कसम है।
माँ- तू कसम क्यों दे रही है। (रोते हुए)
नीलम- नही बताएगी तो दूंगी न कसम।
माँ- बहुत गंदा सपना था
नीलम- गंदा, कैसा गंदा?, क्या गंदा?
थोड़ी देर सोचने के बाद
माँ- मुझसे नही बोला जाएगा।
नीलम- अरे माँ, बता न, तेरी बेटी ही तो हूँ, अब कसम दे दी फिर भी नही बताओगी, कसम की भी लाज नही न। ठीक है
एकाएक नीलम की माँ बोल पड़ी
माँ- सपने में तेरे बाबू चाट चाट के तेरा पेशाब पी रहे थे वो भी सीधा बू.......
सुनते ही नीलम आश्चर्य से उसे देखने लगी
नीलम- क्या? छि छि, हे भगवान, इतना गंदा सपना, और क्या बोली अम्मा तू वो भी सीधा किससे? कहाँ से?
माँ- कहाँ से क्या, जहां से पिशाब निकलता है उसी से, सीधा बू........बूर से, हे भगवान मैं मर क्यों नही गयी ये सब देखते ही, क्या होने वाला है, तेरे बाबू बहुत बीमार थे सपने में, उनकी आंखें तक नही खुल रही थी, आंगन में यहीं लेटे थे खाट पे, दिन का समय था, तू आयी, सिर्फ साया ब्लॉउज पहना था तूने।
नीलम- फिर, फिर... अम्मा (उत्सुकता से)
माँ- फिर क्या, तू खाट के बगल में खड़ी हो गयी, और बोली बाबू, बाबू उठो न, वो नही उठ रहे थे, फिर एकाएक तूने अपना सीधा पैर उठाकर उनके दाहिने कंधे के ऊपर खाट के सिरहाने पर रखा और अपनी बूर खोलते हुए उनके मुँह पर हल्का हल्का मूतने लगी, पेशाब मुँह पर पड़ते ही तेरे बाबू की आंखें खुल गई और बूर देखकर जैसे उनके मुँह में पानी आ गया फिर पेशाब पीते हुए उन्होंने लपककर बूर को मुँह में भर लिया और चाटने लगे, बूर से निकल रही पेशाब की धार से उनका पूरा चेहरा भीग गया, तेरी और उनकी आँखों में वासना थी फिर न जाने कहाँ से एक आवाज गूंजी जैसे आकाशवाणी हुई हो कि पी ले बिरजू, पी ले यही तुझे जीवनदान देगी। एक झटके से मेरी आँख खुल गयी और मैं रोने लगी, न जाने क्या होने वाला है, इतना गंदा सपना मैंने आज तक नही देखा, क्या अनर्थ होने वाला है। बताओ एक बेटी अपने बाप को....हे ईश्वर!
ये सुनकर नीलम का तन बदन एकदम रोमांचित हो गया, शर्म से चेहरा एकदम लाल हो गया, पर फिर भी अपने को संभालते हुए बोली- इतना गंदा सपना आपको कैसे आया अम्मा, महापाप है ये तो, मुझे तो सोचकर भी शर्म आ रही है, कैसे..छि, क्या अर्थ है इस सपने का, और बीमार क्यों पड़े अम्मा, आपको पता है न बीमार पड़ने का मतलब क्या है इस गांव में, इस कुल में।
माँ- वही तो चिंता अब मुझे खाये जा रही है बेटी, तूने उनके साथ जो किया और उन्होंने तेरे साथ जो किया, पाप पुण्य तो बाद कि बात है, वो बीमार ही क्यों पड़े, क्यों ईश्वर ने उन्हें बीमार किया।
नीलम- अम्मा छोड़ो न, ये बस एक सपना था, गंदा सपना।
माँ- नही बेटी, मेरा दिल नही मानता, सपने का कुछ अर्थ जरूर होता है, आजतक तो कभी मुझे ऐसा सपना नही आया पर अब ही क्यों? कुछ तो गड़बड़ है मेरी बिटिया, तेरे बाबू को कुछ हो गया तो?
नीलम- क्या बोले जा रही है अम्मा तू (और नीलम ने अपनी माँ को गले से लगा लिया) मत बोल ऐसा, ऐसा कुछ नही होगा।
माँ- क्यों वो कोई लोहे के बने है? अरे वो भी तो मेरी तेरी तरह इंसान ही है न।
नीलम- हां तो, ऐसे तो मैं और तू भी इंसान है, हम भी बीमार पड़ सकते है।
माँ- हां पड़ सकते हैं, पर सपने में तो वही बीमार थे न, क्या पता इस सपने का अर्थ ये तो नही की आने वाले वक्त में वो बीमार पड़ जाए, अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या करूँगी मैं, कहाँ जाउंगी मैं, मैं तो ऐसे ही मर जाउंगी।
सपने से उसकी माँ काफी डर गई थी।
नीलम- क्यों ऐसा बोल रही है अम्मा तू, क्यों ऐसा सोच रही है, ये सिर्फ सपना है अम्मा, ईश्वर अगर मुसीबत देता है तो कहीं न कहीं उसका हल भी होता है
नीलम की यह हल वाली बात पर उसकी माँ के दिमाग में एक बात ठनकी
माँ- अरे हां देखो इस बात पे तो मेरा ध्यान ही नही गया।
नीलम- किस बात पे अम्मा?
माँ- देख ईश्वर की माया, अगर उन्होंने तेरे बाबू को बीमार किया तो ठीक होने का हल भी बताया, वो आकाशवाणी क्या कह रही थी, यही न कि "यही तुझे जीवनदान देगी।"
इतना कहते हुए नीलम की माँ ने नीलम का चेहरा अपने हांथों में ले लिया और जैसे भीख मांग रही हो, बोली- हे बिटिया, मुझे तो लगता है तू ही उनकी जीवनदायिनी है, चाहे पाप हो चाहे पुण्य हो, तू मुझे वचन दे कि जीवन में अगर उन्हें ऐसा कुछ हुआ, तो तू लोक लाज छोड़कर, पाप पुण्य को न देखते हुए, वही करेगी जो मैंने सपने में देखा, देख बेटी ना मत कहना, एक पत्नी अपने पति के लिए तेरे से भीख मांग रही है, अपनी ही बेटी से उसके पिता की जीवन की भीख मांग रही है, जीवन से बड़ा कुछ नही, आखिर तेरे बाबू को कुछ हो गया तो तू भी बिना बाप की हो ही जाएगी न और मैं तो विधवा हो ही जाएंगी, हमारे कुल हमारे गांव में न जाने कौन सी समस्या है जिसके चलते न जाने कितने लोग चले गए, पर देख तेरे बाबू कितने भाग्यशाली है कि ईश्वर ने सपने के द्वारा इसका हल बताया।
नीलम की मां पागलों की तरह बोले जा रही थी और नीलम अवाक सी सुने जा रही थी।
माँ- बेटी, अब तेरे बाबू की जीवनरेखा तेरे हाथ में है, तू मुझे वचन दे बेटी, की ऐसा करके उनकी रक्षा करेगी, वचन दे बेटी।
नीलम को तो मानो मुँह मांगी मुराद मिल गयी थी, बस वो सिर्फ दिखावा कर रही थी
नीलम- माँ ये तू क्या कह रही है, पहली बात तो यह सिर्फ एक सपना है, और क्या मैं चाहूंगी कि मेरे बाबू को कुछ हो, कभी नही, मैं अपनी जान भी दे दूंगी पर अपने बाबू को आंच नही आने दूंगी, ये तन बदन क्या चीज़ है अम्मा, तू चिंता मत कर मैं वचन देती हूं, मैं वही करूँगी जो तू कहेगी, वही करूँगी जो तूने देखा है सपने में, पर अम्मा बाबू मानेंगे क्या?, वो तो खुद ही मर जायेंगे पर ऐसा महापाप कभी सपने में भी नही करेंगे।
माँ- वो तू मुझपे छोड़ देना बेटी, मैं उन्हें मना लूंगी, देख बेटी तेरी माँ हूँ आज तुझे खुलकर बोलती हूँ ये जो मर्द होता है न, ये बूर का भूखा होता है, खुली बूर इसके सामने हो तो वो कुछ नही देखता, न बेटी, न माँ, न बहन, और यही हाल स्त्री का भी होता है, ये कुदरत का बनाया खेल है, लन्ड और बूर का कोई रिश्ता नहीं होता बिटिया, ये बस बने हैं तो एक दूजे के लिए, मैं उन्हें समझा दूंगी, अगर कभी ऐसा होता है तो। बस तू मेरे सुहाग की रक्षा करना।
नीलम- माँ मैंने आपको वचन दिया न, जो आप कहोगी वो मैं करूँगी, अब आप रोओ मत, और चिंता छोड़ दो।
नीलम के मन में खुशियों की बहार आ गयी, जैसे एकदम से काले काले बादल छा गए हो और रिमझिम बरसात शुरू हो गयी हो, आज नियति पर वो इतना खुश थी कि क्या बताये, अभी सुबह ही वो सोच रही थी कि रजनी आ जायेगी तो वह उसको अपने मन की व्यथा बताएगी उससे रास्ता पूछेगी, डर था उसे की छुप छुप के ये सब कैसे हो पायेगा, उसके बाबू उसके मन को पढ़ पाएंगे भी या नही, पर नियति ने देखो कैसे एक पल में सारा रास्ता बना दिया, दूसरे की तो बात ही छोड़ो खुद उसकी सगी माँ इस व्यभिचार में उसके लिए रास्ता बनाएगी, माँ का संरक्षण मिल गया था अब तो, और जब माँ का ही संरक्षण मिल जाये, उसकी ही रजामंदी मिल जाये तो तब डर कैसा, रास्ता तो उसकी माँ खुद बनाएगी उसके लिए, एक बार को बाबू पीछे भी हटे तो माँ खुद उन्हें मेरा यौन रस चखने के लिए मनाएगी, पर ऐसा है नही आज बाबू को देखा था मैंने कैसे मेरी चूची को घूर रहे थे। वक्त ने अचानक ऐसी पलटी मारी की सारा खेल आसान हो गया।
लेकिन नीलम ये समझ गयी कि मां ये सब उस सपने की वजह से कह रही है, अगर बाबू बीमार पड़े तो मुझे ऐसा करना होगा, लेकिन अगर मान लो वो बीमार नही पड़े तो?
इसके लिए मुझे माँ से बातों बातों में बाबू के रूखे यौनजीवन की चर्चा करनी होगी, उनकी तड़प की चर्चा करनी होगी, जीवन में उन्हें जो यौनसुख नही मिल रहा उसपर बात करनी होगी, मुझे लग रहा है कि अम्मा मेरा यौनमिलन बाबू से जरूर करवा देंगी, बाबू को तो मैं अपने बलबूते पर भी तैयार कर लुंगी रिझा रिझा के, पर अगर इस काम को अम्मा करे, ये सब उनकी सहमति से हो तो मजा और भी दोगुना हो जाएगा।