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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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aman rathore

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Update- 14

उदयराज रजनी को जाते हुए देखता रहा, फिर आकर अपनी खाट पर बैठ गया, तभी गांव के कुछ लोग जिसमे परशुराम भी था, हाथ में लालटेन लिए कुएं के सामने वाले रास्ते से उदयराज की तरफ आ गए, उसमे से कुछ लोग रो भी रहे थे। उदयराज उन्हें देखकर खाट से उठकर उनके पास आया।

उदयराज- क्या हुआ परशुराम? इतनी रात को कैसे आना हुआ? क्या हुआ आखिर, सब ठीक तो है।

परशुराम- मुखिया जी हमे माफ करना जो इतनी रात को आपके पास आना पड़ा, बिरजू है नही वो किसी काम से 1 दिन के लिए बाहर गया है, हमे मजबूरन अब आपके पास आना पड़ा, क्योंकि अब आप ही सहारा हो, परशुराम हाथ जोड़े खड़ा था।

उदयराज- अरे! कोई बात नही, मेरे पास नही आओगे तो किसके पास जाओगे, ऐसा मत बोलो, आखिर बात क्या है ये बताओ।

तभी शम्भू और एक दो आदमी उदयराज के पैरों में गिर पड़े और रोने लगे, हमे बचाओ मुखिया जी, हमारी रक्षा करो, आखिर क्यों ऐसा हो रहा है हम लोगों के साथ, कहाँ जाएं हम कैसे बचें इस समस्या से।

उदयराज- उठो! उठो शम्भू रोओ मत, आखिर क्या बात है खुल के साफ साफ बताओ।

परशुराम- मुखिया जी आप तो जानते ही थे कि शम्भू के घर में उसके तीन बेटों में से दो की तबियत पिछले हफ्ते बिगड़ी थी और आज देखो अभी कुछ देर पहले उनकी मौत हो गयी, इसी तरह लखन के घर में भी दो मौत हुई है, और वो सब रोने लगते हैं।

उदयराज ये सुनकर सन्न रह जाता है, ये क्या हो रहा था उसके गांव में, लोग वैसे स्वस्थ दिखते थे, बस कुछ होता, बीमार पड़ते और कुछ हफ्तों में मर जाते।

शम्भू- मुखिया जी हम तो इलाज़, और झाड़ फूक करा करा के थक गए थे पर कुछ नही पता चला, कब तक हम अपनों को ऐसे खोते रहेंगे, कब तक?

उदयराज उन सबको सांत्वना देता है और तुरंत रजनी और काकी को सारी बात बता कर उन लोगों के घर जाने लगता है।

रजनी को भी सुनकर काफी चिंता हो जाती है, काकी भी हैरान हो जाती है ये सुनकर।

उदयराज उन लोगों के घर जाता है तो देखता है कि चार लोगों की लाशें एक जगह रखी हुई होती है, घर के लोग रो बिलख रहे थे, वो भी बेचैन हो जाता है और उसकी भी आंखें नम हो जाती है, ये समस्या उसके control में नही थी, वो भी बस अन्य लोगों की तरह सांत्वना दे सकता था, करे भी क्या? वो काफी सोच में डूब जाता है।

पूरे गांव में शोक की लहर फैल जाती है।

आखिर मरे हुए लोगों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है और अगले दिन गांव के कुल वृक्ष के नीचे एक बैठक रखने का फैसला होता है, गांव का कुल वृक्ष नदी के पास था वह एक पवित्र बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था उसके नीचे काफी बड़ी चौकी बनी हुई थी।

उदयराज रात भर वहीं रहता है उन लोगों के साथ, आखिर वो मुखिया था उसे अपना कर्तव्य भी निभाना था।

सुबह उदयराज अपने घर आया तो उसने काकी और रजनी को आज की होने वाली बैठक के बारे में जानकारी दी, काकी ने बोला की वो भी बैठक में शामिल होगी।

उदयराज ने देखा कि रजनी की आंखें लाल थी तो वो उससे पूछ बैठा- रजनी बिटिया, तुम्हारी आंखें लाल है, मेरी बिटिया की इतनी सुंदर आंखें लाल हों ये मुझे मंजूर नही, तुम रात भर सोई नही न, क्यों?

रजनी- जिस बेटी के बाबू रात भर अपना फर्ज निभाने के लिए जाग रहे हों वो इतनी खुदगर्ज़ तो नही है न बाबू की सो जाए, मैं आपकी बेटी हूँ, और अब मुझे आपके बिना नींद नही आएगी (ये अंतिम लाइन उसने धीमे से कहा)

उदयराज- मुझे अपनी बेटी पर नाज़ है, पर तुम अभी दिन में आराम कर लेना, मैं और काकी बैठक में जा रहे हैं कुछ देर में आएंगे।

रजनी और उदयराज कुछ देर तक एक दूसरे को तरसते हुए देखते रहे फिर अपने आपको जैसे तैसे संभाल लिया, क्योंकि अभी का वक्त गमहीन था

रजनी ने दोनों के लिए नाश्ता बनाया, उदयराज और काकी ने नाश्ता किया और चले गए।

बैठक में सभी बड़े बुजुर्ग शामिल हुए, बहुत ही गमहीन माहौल था, बिरजू भी आ चुका था, वो उदयराज के बगल में बैठा था।

कुछ देर तक सब चुप ही थे फिर लखन बोला- मुखिया जी इस समस्या का हल कुछ तो होगा, आखिर ऐसा क्या है हमारे गांव में, क्यों हम अपनों को खो रहे हैं धीरे धीरे? हमारी संख्या कितनी कम हो गयी है, अपनो को खोने का दुख तो आपने भी झेला है।

बिरजू- लखन तुम्हारा दर्द केवल तुम्हारा नही है, ये पूरे गांव, पूरे कुल का है, हम सभी ने अपनों को खोया है, और खो रहे हैं, जबकि हमारे गांव में हमारे कुल के लोगों में लेश मात्र भी न तो कोई गलत भावना है, न गलत नीयत है, न वो गलत करते हैं, इतने ईमानदार, सही, सच्चे, प्रकृति के अनुरूप चलने वाले लोग हैं हम, फिर भी न जाने नियति हमसे क्या चाहती है। लेकिन हम सब मिलकर इसका हल निकालेंगे, की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

उदयराज अभी चुप रहकर सुन ही रहा था वह मन ही मन बिरजू की इस बात से झेंप जाता है।

एक बुजुर्ग महिला बोली- लेकिन जिस का हल हमारे बड़े बुजुर्ग लोग, जो एक पीढ़ी इस दुनिया से चली गयी वो नही निकाल पाई तो हम कैसे निकालेंगे, और इसका हल होगा क्या?

अब उदयराज बोला- हां बात तो ये बिल्कुल सही है, की इसका हल हम जैसे आम इंसान के पास नही होगा, होगा तो किसी सिद्ध पुरुष, किसी महामुनि, या किसी दैवीय पुरुष के पास ही होगा।

इतने में थोड़ी दूर बैठी एक अत्यंत बूढ़ी स्त्री बोली- उदय बेटा, एक उम्मीद की किरण तो है।

उदयराज और बिरजू- हां अम्मा बोलो न, क्या उम्मीद की किरण है जो हमारी समस्या को हल कर सकती है।

बूढ़ी स्त्री- हमारे गांव से दक्षिण की तरफ करीब 300 किलोमीटर दूर एक जंगल है जहां एक सिद्ध पुरुष आदिवासियों के साथ रहते हैं करीब यही 8, 10 साल से, उसके बारे में ज्यादा तो नही पता पर इतना ही जानती हूं कि वो कोई विदेशी पुरुष थे जो हमारे देश में तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त करने आये थे, उन्होंने कई लोगों की बहुत सी समस्याओं का समाधान किया है, उन्होंने उस जंगल के आदिवासियों को बहुत बड़ी मुसीबत से निकाला था, इसलिए वो आदिवासी अब उन्हें ही अपना राजा मानते हैं और उस सिद्ध महात्मा पुरुष की पूजा करते है, वो महात्मा उन आदिवासियों की सेवा से इतने खुश हुए की वो अब उन्ही के साथ रहते हैं जंगल के बीचों बीच उस महात्मा का आश्रम है और आदिवासी जंगल के बाहर तक पहरा देते हैं, कोई आम इंसान इतनी आसानी से बिना आज्ञा के जंगल के भीतर भी नही जा सकता, मैं बस इतना ही जानती हूं, परंतु ये कहना चाहती हूं कि, और जानकारी पता करके हमे अपनी फरियाद लेके उनके पास जाना चाहिए क्या पता कोई रास्ता निकाल आये।

बिरजू- लेकिन अम्मा आपने तो अभी कहा कि आम आदमी इतनी आसानी से उनसे नही मिल सकते तो इतने सारे लोग एक साथ अगर जाएं तो नामुमकिन ही होगा मिलना।

बूढ़ी स्त्री- हां जाना तो एक दो लोगों को ही पड़ेगा, सबका मुमकिन नही।

बिरजू- हां तो मैं चला जाऊंगा।

उदयराज- (बिरजू के कंधे पर हाँथ रखते हुए) बिरजू मेरे भाई, मुखिया होने के कुछ काम मुझे भी कर लेने दे, मेरे सारे काम तू ही करेगा तो आने वाली पीढ़ी मुझे धिक्कारेगी, क्या मैं सिर्फ नाम का मुखिया हूँ, ये काम मैं ही करूँगा।

बिरजू- तो फिर मैं और आप चलते हैं।

उदयराज- नही बिरजू, तू यहीं रह गांव की देख रेख कर, वहां आने जाने में 2 3 दिन तो लगेंगे ही इस बीच गांव में कोई मुख्य जिम्मेदार इंसान तो होना चाहिए न। तू यहीं रह, मैं चला जाऊंगा।

गांव के और लोगों ने उदयराज के साथ जाने की जिद की परंतु उदयराज ने सबको रोक दिया, बैठक समाप्त हुई, यह निर्णय हुआ कि उदयराज उस दैवीय पुरुष से मिलने जाएगा।
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Update- 15

बैठक समाप्त हुई, सब लोग अपने अपने घर आ गए, उदयराज और काकी भी घर आ गए, लगभग शाम हो गयी थी। रजनी अपने बाबू और काकी को देखके खुश हो गयी और पीने के लिए पानी लायी, उदयराज भी रजनी को देखकर एक पल के लिए सब भूल गया, वो उसे कुछ देर के लिए देखता रहा, रजनी अपने बाबू की आंखों में बेसब्री और इंतज़ार देखकर थोड़ा मुस्कुरा दी और इशारे से थोड़ा सब्र और धीरज रखने को बोली फिर उदयराज हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुआ और द्वार पर खाट पे बैठ गया।

रजनी- बाबू लो, पानी पियों, बताओ क्या हुआ बैठक में कोई हल निकला?

उदयराज और काकी ने पानी पीते हुए रजनी को सब बताया।

रजनी- अपने अकेले वहां जाने का निर्णय ले लिया और गांव वालों ने आपको आसानी से अकेले जाने के लिए सहमति जता दी।

उदयराज- अरे नही बेटी, ऐसा नही है, बिरजू तो सबसे पहले बोला कि मैं जाऊंगा, मैंने ही उसे मना किया फिर वहां बैठे हर लोग साथ जाने के लिए तैयार थे परंतु वहां बहुत सारे लोग जा नही सकते, इसलिए मुखिया होने के नाते मैं ही वहां जाऊंगा।

रजनी- अपने मना किया और गांव वाले आसानी से मान गए, कोई भी ऐसा नही निकला जो जिद पकड़ के बैठ जाता कि कुछ भी हो हम अपने मुखिया को अकेले नही जाने देंगे, माना कि आप मुखिया हो और ये आपका फ़र्ज़ है पर गांव वालों का भी तो फ़र्ज़ है कि वो अपने मुखिया को अकेले न छोड़ें। आखिर आप जा तो वहां हमारे कुल, हमारे गांव की समस्या के लिए ही रहे हो न बाबू।

उदयराज- नही बेटी गांव वालों पे संदेह न कर मेरी बिटिया, एक भी इंसान वहां मेरे साथ जाने के लिए पीछे नही हटा, मैंने ही रोका उन्हें।

रजनी- पर आपने ये कैसे सोच लिया कि आपकी अपनी ये बेटी आपको अकेला जाने देगी, मैं आपको वहां अकेला हरगिज नही जाने दूंगी, आपके सिवा कौन है मेरा, न जाने कैसा रास्ता होगा, कितना वक्त लगेगा, कभी उस तरफ कोई गया नही, कितना दुर्गम रास्ता होगा, न जाने वो लोग कैसे होंगे, जब आप खुद बता रहे हो कि वो महात्मा आदिवासियों के बीच रहता है तो ऐसे आदिवासियों के बीच मैं आपको हरगिज़ अकेले नही जाने दूंगी, न जाने रास्ते में कहां कहां रुकना पड़े, कब तक आप अकेले बैलगाड़ी चलाओगे, कहाँ ठहरोगे, क्या खाओगे, क्या पियोगे, किसी भी कीमत पर मैं आपको अकेला नही छोड़ सकती, इतना कहते हुए रजनी रुआँसी हो गयी।

उदयराज ने उठकर रजनी को काकी के ही सामने बाहों में भर लिया- ओह्ह मेरी बेटी, मैं अब क्या बोलूं, लेकिन एक छोटी बच्ची को लेके तेरा मेरे साथ जाना क्या ठीक होगा?

रजनी- कुछ भी हो, मैं उसे भी ले चलूंगी, पर मैं आपको अकेले नही जाने दूंगी।

काकी को भी रजनी की बात ठीक लगी, उदयराज का एक ऐसी जगह अकेले जाना ठीक नही था, और उदयराज ने ये फैसला किया था कि ये काम केवल मुखिया के हांथों ही होगा तो कम से कम मुखिया के घर वाले तो जा ही सकते है उसके साथ, किसी भी इंसान का बिल्कुल अकेले जाना ठीक नही, बात यह नही थी कि उन आदिवासियों से कोई डर था क्योंकि वो तो एक महात्मा के रक्षक थे वो भला किसी को नुकसान क्यों पहुचायेंगे बल्कि बात ये थी कि रास्ता लंबा है, अकेले बैलगाड़ी चलाते चलाते वो थक जाएगा तो एक प्यारी सी गोद चाहिए जिसपर सर रखके वो आराम कर ले, भूख लगेगी तो कोई प्यारे प्यारे हांथों से खाना खिला दे, धूप में चलते चलते थक जाए तो अपनी जुल्फों तले छाया दे दे, और ये सब काम कोई पुरुष नही बल्कि स्त्री ही कर सकती थी और रजनी से अच्छा तो कोई कर ही नही सकता था।

उदयराज भी रजनी का साथ छोड़ना नही चाहता था, वो चाहता था कि वो जहां भी रहे उसकी बेटी उसके साथ हो।

काकी- तो मैं यहां अकेले क्या करूँगी, मेरा भी तो फ़र्ज़ है कि मैं अपनी बेटी को अकेले न छोडूं, आखिर उसके साथ छोटी सी बच्ची है मैं रहूंगी तो उसको संभाले रहूँगी, कोई दिक्कत नही होगी, आखिर मुझे भी मेरा फ़र्ज़ पूरा करने दो, मुझे भी साथ ले चलो।

उदयराज- परंतु काकी, यहां घर का और जानवरों के ख्याल रखने के लिए कोई तो चाहिए।

काकी- उसके लिए मैं बिरजू और उसकी बेटी नीलम को बोल देती हूं, जानवरों का ध्यान रख लेंगे वो।

उदयराज - ठीक है फिर, मैं खुद बिरजू को बोल देता हूँ, पर एक बात मेरे मन में है कि मुझे अपने मित्र, रजनी के ससुर बलराज को भी ये घटना और हमारा ये निर्णय लेना सूचित करना चाहिए, आखिर वो मेरे मित्र हैं, उन्हें कुछ पता नही है अभी तक, बाद में पता चलेगा कि हमने इतना बड़ा निर्णय लिया है तो शायद उन्हें बुरा लगेगा, आखिर उन्होंने रजनी को मेरी सेवा के लिए उम्र भर यहां छोड़ दिया, उनका कितना बड़ा त्याग है, मुझे उन्हें बताना चाहिए।

रजनी- हां बाबू जरूर, ससुर जी को बता दीजिए, ये आपने सही कहा।

उदयराज ने तुरंत एक संदेशवाहक को भेज के बलराज को अपने घर आने के लिए आग्रह किया, बलराज ने संदेश वापिस भिजवाया की वो एक घंटे में उनके घर आ रहा है। इधर काकी बिरजू के घर जाके उसको और उसकी बेटी नीलम को जानवरों की देखभाल की जिम्मेदारी दे आयी, बिरजू तो काकी को देखके हाथ जोड़के खड़ा हो गया और बोला- काकी ये क्या बोल रही हो, आपको तो बोलने की भी जरूरत नही, आखिर उदय भैया हम सब लोगों के लिए ये कर रहे है, क्या हमारा इतना भी फ़र्ज़ नही, आप बेफिक्र रहिए।

नीलम को मन ही मन रजनी के इस निर्णय पर की वो अपने बाबू के साथ जरूर जाएगी, नाज़ होता है, वो सोचती है कि रजनी कितनी भाग्यशाली है जो हर वक्त अपने बाबू के साथ रहती है जैसे उनकी ही जीवनसंगिनी हो, ये सोचते हुए वो भी अपने बाबू बिरजू की तरफ देखने लगती है, और मुस्कुरा देती है। एक तो उस दिन शेरु और बीना की चुदाई देख जो खुमारी और नशा चढ़ा था वो उतरा नही था, ऊपर से रजनी का अपने बाबू के प्रति प्रेम नीलम पर भी असर कर रहा था वो भी अपने बाबू को न जाने क्यों बार बार देखती रहती थी छुप छुप कर। चुदाई की लालसा मन में बैठ गयी थी, उसका अब मायके में मन नही लग रहा था क्योंकि ससुराल में होती तो पति से चुदती पर यहां कौन उसे कस कस के चोदेगा? बूर ने उसकी बगावत कर रखी थी, बस वो उसे समझाए ही जा रही थी और अब उसका मन बदल रहा था, उसे अपने बाबू पर प्यार आ रहा था धीरे धीरे। रिझाना तो वो चाहती थी अपने बाबू को पर डरती बहुत थी, क्योंकि अभी ये सब एकतरफा ही था, बिरजू को इसकी आहट भी नही थी।

थोड़ी देर में उदयराज के घर से सामने कुएं के पास सड़क पर एक तांगा आके रुका, बलराज उसमे से उतरा, उदयराज ने देखते ही आगे बढ़के अपने समधी का स्वागत किया, रजनी घर में चली गयी जल्दी से और एक लाल रंग की साड़ी पहन कर घूंघट डाल कर दोनों के लिए पानी लेकर आई और अपने ससुर के पैर छुए,

बलराज- जुग जुग जियो बहू।

रजनी- पिताजी आप कैसे हैं।

बलराज- मैं ठीक हूँ बहू, तुम कैसी हो।

रजनी- मैं भी ठीक हूँ और आपकी पोती भी ठीक है, रजनी अपनी बेटी को ला के ससुर की गोद में दे देती है और वो उसे खिलाने लगता है। फिर रजनी को दे देता है। रजनी अंदर चली जाती है।

उदयराज और बलराज बातें करने लगते है उदयराज बलराज को सारी बातें बताता है, बलराज उसके निर्णय से बहुत खुश होता है कि आखिर वो उदयराज जैसे इंसान का मित्र और समधी है जिसे अपने गांव और कुल की जीवन रक्षा की इतनी चिंता है और उसे अपनी बहू पर भी नाज़ हुआ।

बलराज- तो कब निकलोगे वहां के लिए।

उदयराज- सोच रहा हूँ कल सुबह जल्दी ही निकल जाऊं।

बलराज- मैं भी चलना चाहता हूं तुम्हारे साथ मित्र।

उदयराज- नही मित्र, अभी तो मुझे ही जाने दो, आगे फिर कभी जरूरत पड़ी या दुबारा जाना हुआ तो बताऊंगा, वैसे भी वहां ज्यादा लोगों का जाना ठीक नही।

बलराज- ठीक है मित्र, जैसा तुम्हे ठीक लगे। तो फिर मुझे आज्ञा दो जाने की।

उदयराज- अरे! ऐसे कैसे, आज रात रुको कल सुबह जाना, कितने दिनों बाद तो आना हुआ है, ऐसे तुरंत नही जाने दे सकता मैं तुम्हे। रुको अभी सुबह चले जाना। लेटो आराम करो।

बलराज जाने की कोशिश करता है पर उदयराज उसे आज रात रुकने के लिए बोल देता है।

बलराज- ठीक है मित्र, फिर बिस्तर पर लेटकर दोनों बातें करने लगते है।

अंधेरा हो चुका था रजनी खाना बनाने लगती है, खाना बनने के बाद सबने खाना खाया फिर सब सो जाते हैं, सुबह उदयराज रजनी और काकी जल्दी उठकर सारी व्यवस्था करते है जाने की, रजनी नाश्ता तैयार करती है, काकी रास्ते के लिए कुछ राशन पानी रखने लगती है और उदयराज बैलगाड़ी तैयार करने लगता है, सारी व्यवस्था होने के बाद गांव वालों को सूचित किया जाता है कि वो अब निकल रहे हैं, नाश्ता करके बलराज भी अब घर जाने के लिए तैयार हो जाता है फिर गांव वाले इकठ्ठे हो जाते है सबलोग मिलकर उदयराज, रजनी और काकी को विदा करते है, बलराज भी अपने घर चला जाता है, उदयराज बैलगाड़ी चला रहा होता है और रजनी और काकी पीछे बैठे होते है, बैलगाड़ी के ऊपर छत भी होती है जिससे धूप न लगे, अभी तो खौर सूर्य भी नही निकला था जब वो लोग निकले।

सब गांव वाले चले जाते है परंतु नीलम और बिरजू वहीं खड़े जब तक बैलगाड़ी ओझल नही हो जाती देखते रहते हैं

नीलम- बाबू, रजनी कितनी खुशनसीब है न।

बिरजू- क्यों बिटिया, क्या हुआ?

नीलम- देखो न हर वक्त अपने बाबू का ख्याल रखती है।

बिरजू- हां ये तो है, पर खुशनसीब तो मेरी बिटिया भी है, क्या वो अपने बाबू का ख्याल नही रखती, बिल्कुल रखती है।

नीलम खुशी से झूम उठती है, और अपने बाबू के साथ घर की तरफ चलने लगती है।
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Update-16

नीलम और बिरजू अपने घर आ जाते हैं, उस वक्त सूर्य भी नही निकला था बिरजू एक बार फिर अपने बिस्तर पे लेट जाता है और उसकी आंख लग जाती है, नीलम घर में जाके कुछ काम करने लगती है और सोचती है कि आज उसको गेहूं धोना है, मां ने बोला था कल ही गेहूं धो देना घर में आटा खत्म हो गया है, गेहूं धो कर छत पे फैला देना धूप में सूखने के लिए।

उसकी माँ थोड़ी बूढ़ी हो गयी थी वो घर का ज्यादा काम नही कर पाती थी, सब जानते थे कि नीलम की माँ की उम्र उसके बाप बिरजू से ज्यादा थी, उनके बाप दादाओ ने उस वक्त आपसी प्यार और जानपहचान होने की वजह से उम्र का अंतर होने पर भी शादी कर दी थी, इसलिए बिरजू अभी काफी जवान हष्टपुष्ट था पर नीलम की माँ ढल गयी थी।

सर्य निकल गया, बिरजू उठा और फ्रेश होकर नीलम से बोला- नीलम बेटी, मैं जरा घास लेने जा रहा हूँ, आज थोड़ी ज्यादा घास लानी होगी, उदय भैया की भैसों के लिए भी लाना होगा, बैल तो वो ले गए हैं, यहां पे जो गाय और भैंस हैं उनके लिए चारा ले कर आता हूँ।

नीलम- हां बाबू ठीक है, पर एक काम करो न, अपने घर के पीछे जो बजरी बोई है न उसमे काफी घास हो गयी है, उसी खेत में से काट लो, दूर न जाओ बाबू, बहुत घास है उसमें।

बिरजू- ठीक है बेटी, जाता हूँ वहीं और घर के पीछे की तरफ खेत में चला जाता है।

नीलम के घर के बिल्कुल पीछे बांस (bambooo) लगाया हुआ था और उसके पीछे खेत था, बांस इतने बड़े और लंबे लंबे थे कि पूरे छत को cross करके ऊपर तक फैले हुए थे।

नीलम ने भी घर में आके गेहूं धोना स्टार्ट कर दिया, धो धो कर बाल्टी में रखकर ऊपर छत पर फैलाने के लिए ले जाने लगी, छत पे पहुंच कर उसने छत पे ही खाट बिछाई और उसपे चादर डाल दिया फिर गेहूं उस खाट पे पलट कर हाँथ से फैलने लगी कि तभी उसको अपने बाबू बिरजू नीचे थोड़ी दूर खेत में घास काटते दिखाई दिए, सूर्य की रोशनी उनपर पड़ रही थी, सांवला बदन चमक रहा था, नीलम गेहूं फैलाना रोक कर बांस की ओट से कुछ देर देखती रही, ऐसा लग रहा था कि वो अपने बाबू की दीवानी हो रही है, प्यार हो रहा है उसे अपने बाबू से ही,
घास काटते हुए बिरजू को जरा भी ये अहसास नही था कि उसी की जवान शादीशुदा बेटी उसे निहार रही है, उस पर आसक्त हो रही है, दिल दे बैठी है वो उसे, कुछ चाहती है वो उससे, किस्मत खुलने वाली है उसकी। बड़े ही लालसा भारी और उम्मीद भारी नजरों से नीलम छुप छुप कर अपने बाबू को ताड़ रही थी, कभी शर्मा कर गेहूं फैलाने लगती कभी रुक कर फिर देखने लगती।

मन में सोच रही थी कि काश उसके बाबू उसकी मंशा जान लेते, कितना मजा आया होगा बीना को उस वक्त जब वो अपने पिता से चुदवा रही थी, क्यों है इतना नशा इस रिश्ते में? और छुप छुप के घर में ही हो तो कितना मजा आ जाये, पर न जाने मेरे बाबू कब ध्यान देंगे की उनकी बेटी अब उनसे क्या चाहती है, मुझे तो अपने ही बाबू से प्यार होता जा रहा है, क्या सोचेगी दुनिया अगर किसी को पता चल गया तो, खैर सोचे जो सोचे मुझे किसी की परवाह नही, भाड़ में जाये मान मर्यादा, बस मेरे बाबू मेरे हो जाएं, ससुराल भी न जाऊं मैं तो फिर, बहाने कर कर के यहीं रहूँगी।
कितना मन कर रहा है मेरा मिलन करने का, कैसे मैं रिझाऊं बाबू को, कैसे बताऊं उन्हें, किससे अपनी मन की व्यथा कहूँ, रजनी भी नही है जाने कब आएगी, लेकिन मैं रजनी से कहूंगी जरूर की वो कोई रास्ता या तरीका बताये, मैं जानती हूं वो इसे गलत नही कहेगी, वो मेरी बचपन की सहेली है, मेरी मन की व्यथा को समझेगी, क्योंकि उस दिन वो भी बीना और शेरु की चुदाई मजे से देख रही थी। अगर वो बाप बेटी के इस मिलन को गलत मानती तो उस दिन बीना और शेरु को चुदाई शुरू करने से पहले ही पत्थर मारकर भगा देती, या खुद उठकर भाग जाती, पर वो देखती रही, इसका मतलब वो इसे गलत नही मानती, हाय! रजनी जल्दी आ जा मेरी सहेली, अब तुझसे कुछ बात करना है मुझे। (मन में ही ये सब सोचे जा रही थी और कभी कभी मुस्कुरा उठती)

न जाने ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे बाबू मेरे मन में उस रूप में बसते जा रहे है, पहले मैं उनको बस पिता की नजर से ही देखती थी पर अब मैं उनमे एक मर्दाना पुरुष ढूंढ रही हूं, ये सब उस दिन बीना और शेरु की चुदाई देखकर ही हुआ है, उन दोनों ने मेरा नजरिया बदल दिया है। काश मेरे बाबू मेरी प्यास बुझा देते। काश! कितना मजा आ जाता, हाय!... काश!

यही सब सोचते हुए वो गेहूं फैलाये जा रही थी, फिर वो नीचे गयी और गेहूं की दूसरी बाल्टी ले आयी, उसने दूसरी खाट डाली और उस पर एक और चादर डाला और गेहूं की बाल्टी खाट पे अभी पलटी ही थी कि उसने अपने बाबू की तरफ देखा।

बिरजू घास काटना छोड़ कर बांस की तरफ आ रहा था, नीलम को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बाबू बांस की तरफ क्या करने आ रहे हैं वो थोड़ा साइड में छिप सी गयी, बांस की ओट थी जिससे बिरजू उसे नही देख सकता था, वहां से बिरजू नीलम को साफ दिखाई दे रहा था, पर बिरजू को नीलम नही दिख सकती थी क्योंकि वो ऊपर छत पर बांस की ओट में थी।

एकाएक बिरजू ने दोनों साइड नजर घुमाई और पीछे देखा की कहीं कोई देख तो नही रहा, पर उसकी नज़र ऊपर नही गयी, फिर एकदम से बैठकर अपनी धोती साइड कर, मोटा, काला और लंबा लंड जो सुस्त अवस्था में भी लगभग 7 इंच लंबा था, बाहर निकाल लिया, नीलम अवाक सी रह गयी अपने ही बाबू का काला विशाल लंड देखकर, नीलम की तो सांसे ही हलक में अटक सी गयी, शर्म से वो लाल हो गयी, हाय दैय्या! बोलकर उसने एक बार इधर उधर देखा कि कहीं कोई मुझे ये देखते हुए न देख ले, फिर उसने छत पे बनी सीढ़ियों की तरफ देखा कि कहीं कोई ऊपर तो नही आ रहा, फिर पीछे होकर बांस की ओट से अपने बाबू का मदहोश कर देने वाला लंड देखने लगी।

बिरजू ने लंड की आगे की चमड़ी को आधा पीछे किया जिससे लंड का आधा सुपाड़ा बाहर दिखने लगा जो कि किसी मध्यम आकार की गुलाबी गेंद जितना बड़ा था।

नीलम मंत्रमुग्ध और बदहवास सी हो गयी, उसकी सांसे उखड़ चुकी थी, वो एक टक बिरजू के लंड को निहार रही थी।

तभी बिरजू ने पेशाब की धार छोड़ दी, और लंड की आगे की चमड़ी को मूतते हुए पूरा पीछे खींच दिया, पूरा का पूरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया, इतना मोटा और बड़ा सुपाड़ा देख नीलम पागल सी हो गयी। धूप में चमकते काले मोटे लंड का हल्का गुलाबी सुपाड़ा गज़ब ही ढा रहा था, छत पर से कुछ दूरी होने पर भी नीलम लंड के आगे का छेद साफ देख पा रही थी और उसमें से निकलती पेशाब की धार ने उसे मदहोश कर दिया, कुछ ही पल में वो पसीने पसीने हो गयी।

बिरजू की इस तरह लंड की चमड़ी पीछे खींचकर पेशाब करने की आदत थी, पर उसकी इस आदत ने आज नीलम को मदहोश कर दिया था। एक तो वो वैसे ही चुदासी थी ऊपर से नियति ने उसे वही लंड दिखा भी दिया जिसके बारे में वो मन में अक्सर सोचती थी कि कैसा होगा, आज नियति ने साक्षात् दिखा ही दिया था कि जैसे कह रही हो ले देख ले अपने बाबू का लंड, यही तुझे अब चोदेगा, यही प्यास बुझायेगा, यही तेरी गहराई में उतरेगा।
पर कब? इसने तो अब प्यास और बढ़ा दी थी, बूर पनिया गयी नीलम की, किसी भी तरह से उसके पति का लन्ड उसके बाबू के लन्ड के आगे टिक नही सकता था।

अपने बाबू का लंड देखकर ही नीलम मचल उठी, मानो वह उसे अपनी बूर की गहराइयों में अंदर तक घुसता हुआ महसूस कर रही हो और शर्म से एक पल के लिए वहीं बैठ गयी, थोड़ी सांसे थमी तो उठी तब तक बिरजू मूत चुका था उसने अपने लंड को हल्का सा दो चार बार हिलाया ताकि पेशाब की बची बूंदें गिर जाएं और मदहोश कर देने वाले लंड को धोती के अंदर कैद कर वापिस घास काटने चला गया।

उसे जरा भी आभास नही हुआ कि उसकी सगी बेटी ने उसका लंड देख लिया है।

नीलम कुछ देर वहीं फिर से बैठ गयी, अपनी सांसों को काबू करती रही, बार बार बाबू का लन्ड नज़रों में आ जाता, कि वो कैसा था कितना बड़ा और मोटा था और उसका खुला हुआ आगे का हिस्सा hhhhhaaaaaiiiiiii.

सोचने लगी कि अब कुछ भी हो वो अपने बाबू को पा के रहेगी, वो ये जानती ही थी कि उसकी माँ अब बूढ़ी हो चली हैं तो बाबू तो प्यासे ही होंगे, और वो तो लंड देखके ही समझ गयी थी कि प्यासा तो है उनका लंड। पानी छोड़ छोड़ के उसकी पूरी पैंटी गीली हो गयी थी पर करे क्या? कैसे भी करके अपने मन को धीरज दिया, समझाया, फिर सोचने लगी आखिर हम बेटियां अपने बाबू को सुख क्यों नही दे सकती, बचपन से लेकर जवानी तक वो पुरुष, पिता के रूप में उसे पलता है, पोषता है, उसकी हर तरह से रक्षा करता है, और जब कभी वो पुरुष यौनसुख के लिए तरसने लगे तो क्या बेटी का फर्ज नही की वो अपनी अनमोल चीज़ (बूर) अपने उस पुरुष को परोस दे जिसने हमेशा उसकी रक्षा की हो, क्या उस चीज़ पर उसका कोई हक नही? क्यों करे वो लोक लाज की फिक्र, आखिर वो उन्ही के अंग से बनी है और वही अंग अगर उसमें मिल गया तो क्या गलत हो जाएगा और अगर हो भी जाएगा तो होता रहे।

यही सब सोच ही रही थी कि उसकी माँ की आवाज उसके कानों में पड़ी जो उसे बुला रही थी, उसने बाल्टी उठायी और सीधा नीचे भाग गई।
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Update-17

बैलगाड़ी सुबह की सुहानी हवा को चीरती हुई अपने लक्ष्य को आगे बढ़ती जा रही थी, उदयराज बैलगाड़ी हांक रहा था, रजनी और काकी पीछे बैठी बातें करती हुई जा रही थी।
कहीं कहीं रास्ते में आते जाते लोग दिख जा रहे थे। गांव से वो अब काफी दूर आ चुके थे, गांव की सरहद काफी पीछे छूट चुकी थी, सुबह की हल्की सुहानी धूप अब थोड़ी गर्म होने लगी थी, लगभग 100 किलोमीटर चलने के बाद अब हल्का हल्का जंगल शुरू हो रहा था, पेड़ों की घनी छाया से सफर काफी सुहाना हो गया था, काकी कुछ देर रजनी से बात करने के बाद रात में जागे होने की वजह से ऊँघने लगी तो रजनी ने उन्हें वही लेटने को बोल दिया, और वो वहीं लेट कर सोने लगी।

बैलगाड़ी के ऊपर गोल छत बनाई हुई थी, दोनों तरफ पर्दे थे, काकी ने बच्ची को अपने पास लिटाया और सो गई, उदयराज हसीन वादियों को निहारता हुआ बैलगाड़ी हाँके जा रहा था, मन ही मन वो अपने इस निर्णय पर खुश भी था कि उसकी बेटी उसके साथ है पर इन हसीन वादियों का मजा वो अपनी बेटी के साथ लेना चाहता था, यही हाल रजनी का था।

उदयराज ने पीछे देखा तो पाया कि रजनी उसे बैलगाड़ी हांकते हुए देख रही थी, नजरें मिली तो दोनों मुस्कुरा पड़े।

तभी रजनी को कुछ सूझा

रजनी- बाबू, लाओ मैं बैलगाड़ी चलाती हूँ, कब से चला रहे हो थक गए होगे।

उदयराज- (आश्चर्य से) बैलगाड़ी चलाएगी मेरी बिटिया?

रजनी- हां क्यों नही।

उदयराज- पर तुमने कभी चलाई नही है न।

रजनी- तो सिखा दो न अपनी बेटी को।

उदयराज - तो आओ न मेरे आगे बैठो। काकी सो गई क्या?

रजनी- हां वो तो सो रही है, और गुड़िया भी उन्ही के पास है।

उदयराज जहाँ बैठा था वहीं पर थोड़ा पीछे खिसक कर अपने आगे थोड़ी जगह बनाता है और दोनों पैर फैला लेता है रजनी एक बार पीछे की तरफ काकी को देखती है और जाके उदयराज की गोदी में अपनी मदमस्त चौड़ी मखमली गुदाज गांड रखकर बैठ जाती है, बैलगाड़ी जंगल में प्रवेश कर चुकी थी, जंगल की घनी छाया अब धूप को खत्म कर चुकी थी।

उदयराज ने अपनी दोनों बाहें रजनी की दोनों बाहों के नीचे से निकालते हुए डोरी और छड़ी को पकड़ लिया और अपना चेहरा रजनी के गर्दन की दायीं तरह और कान के पास रखकर उसके बदन से आती मदमस्त खुश्बू को एक गहरी सांस लेते हुए सूंघा, अपने बाबू की गर्म सांसे अपनी गर्दन और कान के आस पास महसूस कर रजनी गनगना गयी और उसकी आंखें मस्ती में बंद हो गयी और सिसकते हुए फुसफुसाकर बोली- कोई देख लेगा बाबू?

उदयराज (धीरे से)- यहां अब जंगल में कौन देखेगा?

रजनी ने बनावटी अंदाज में कहा- काकी उठ गई तो?

उदयराज- वो तो सो रही है न।

रजनी- हां, पर उठ गई तो? (रजनी ने फिर सिसकते हुए कहा)

उदयराज अब गर्दन के दूसरी तरफ अपनी बेटी के कान के आस पास उसके बदन से भीनी भीनी आती खुसबू को सूंघने लगा, कभी कभी वो अपने गीले होंठों को गर्दन पे रगड़ने लगता, फिर सूंघता, फिर होंठ रगड़ता, रजनी तो इतने से ही बेहाल हुए जा रही थी, कभी धीरे से सिसकती तो कभी aaahhhhhh की आवाज थोड़ा तेज उसके मुह से निकल जाती।

उदयराज- अब तुम जोर से aaaahhhh करोगी तो काकी तो उठ ही जाएंगी न।

रजनी ने अपने मदमस्त आंखें खोल अपने बाबू की आंखों में देखते हुए धीरे से बोला- क्या करूँ बाबू, इसपर मेरा कोई बस नही, इतना प्यार करोगे अपनी बेटी को तो aaaahhhh तो निकल ही जाएगी न।

रजनी- अच्छा! रुको जरा बाबू!

रजनी ने इतना कहते हुए बैलगाड़ी के ऊपर बने हुए गोल छपरी के मुहाने को ढकने के लिए बनाए गए पर्दे को, जो कि मोड़कर ऊपर किया हुआ था उसको नीचे पटलकर ढंक दिया।

अपनी बेटी की इस अदा और तरीके पर खुश होके उदयराज ने एक चुम्बन उसके गाल पे जड़ दिया, रजनी के मुँह से सिसकी निकल गयी वो धीरे से बोली- सिखाओ न बाबू बैलगाड़ी चलाना।

उदयराज ने रजनी को एक हाँथ से डोरी पकड़ने को बोला और दूसरे हाँथ से छड़ी।

उदयराज- अपने बैल तो सीधे साधे हैं बस ये डोरी सीधे पकड़े रहो ये अपने आप चलते रहेंगे और जब दाएं या बाएं मुड़ना हो तो उसी हिसाब से डोरी को खींचो, बस यही है।

रजनी- अच्छा! इतना आसान है, (और रजनी दोनों बैल की डोरी पकड़कर छड़ी हाँथ में लेकर चलाने लगती है।)

उदयराज- हां मेरी बिटिया रानी, इतना ही आसान है, ये कठिन तब होता है जब बैल सीधे साधे न हों (ऐसा कहते हुए अब उदयराज अपनी बाहों को रजनी के कमर पर लपेटते हुए रजनी को कस के पीछे से बाहों में भर लेता है जिससे रजनी उदयराज से बिल्कुल चिपक जाती है)

उदयराज धीरे धीरे रजनी के पेट और उसके आस पास सहलाने लगता है।

रजनी एक बार फिर बैलगाड़ी चलाते हुए अपनी बाबू की आंखों में देखकर मुस्कुराते हुए सिसक गयी।

जंगल में अब वो काफी अंदर आ गए थे और छाया काफी गहरी हो चली थी, अभी तक तो उदयराज को रास्ता पता था इसके आगे का रास्ता उसे बताये अनुसार तय करना था, जंगल में कहीं कहीं और रास्ते भी मिलते जिससे भटकने का डर था पर उदयराज बताये अनुसार सूझबूझ से जा रहा था, उसने सोचा कि आगे चलकर जंगल में अगर कोई दिखेगा तो एक बार रास्ते के बारे में पूछताछ करके पक्का कर लेगा। उसने सोचा था कि आधा रास्ता तय करने के बाद कहीं रुकेंगे आराम करने के लिए।

उदयराज ने रजनी के पेट, कमर को दोनों हांथों से सहलाते हुए अपने हाँथ अब धीरे धीरे ऊपर चूची की तरफ बढ़ने लगा, रजनी को इसका अहसास हो गया, वो अपने बाबू की अगली मंशा को जान गयी।

एकाएक उदयराज ने अपनी दोनों हथेली अपनी बेटी रजनी के भारी उन्नत मखमली उरोजों पर रख दिये और एक प्रगाढ़ चुम्बन उसके बाएं गाल पर लेते हुए साथ ही दोनों चुचियों को पूरा पूरा हथेली में भरते हुए मसल दिया।

रजनी- uuuuiiiiiiimaaaaaaa, iiiiiiissssshhhhh bbbaaaaabbbbuuu,
धीरे धीरे, काकी देख लेंगी तो (रजनी ने बनावटी अंदाज़ में बोला)

उदयराज जोश में आकर कई ताबड़तोड़ चुम्बन रजनी के दोनों गालों पर जड़ने लगा, और धीरे धीरे मोटी मोटी चुचियों को सहलाने और दबाने लगा, चुचियों को कभी वो हथेली में लेकर थोड़ा रुककर उन्हें बहुत हौले हौले सहलाता जैसे उन्हें नाप रहा हो, तो कभी तेज तेज मसलता, कभी दोनों हांथों की तर्जनी उंगली और अंगूठे से दोनों मोटे मोटे तने हुए निप्पल को मसलता, हल्का दबाता, कभी कपड़े के ऊपर से ही निप्पल के अग्र भाग पर तर्जनी उंगली से गोल गोल घुमाता।

रजनी का तो बुरा हाल हो गया, बैलगाडी चलाना तो अब उसके बस का रहा नही, आंखें बंद हो जा रही थी उसकी नशे में, चूचीयाँ दबाए जाने से उसमे से दूध रिसने लगा था और नीचे दोनों जांघों के बीच मक्खन जैसी बूर भी रिसने लगी। कहीं बैलगाड़ी दूसरे रास्ते पर न चली जाए इस डर से रजनी कभी कभी मजबूरी में आंख खोल कर देख लेती पर अपने बाबू की हरकतें फिर उसे आपार यौन सुख सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर देती।

उदयराज को तो जैसे होश ही नही था, वो तो बैल सीधे साधे थे वरना बैलगाड़ी रास्ते से उतर जाती जरूर।

इतने में रजनी की बेटी उठ जाती है, भूख लगी थी उसको, उसकी आवाज से काकी भी उठ जाती है।

रजनी फट से उठकर अपने को संभालते हुए पीछे आ जाती है और उदयराज एक हाँथ से धोती में बन रहे अपने तंबू को adjust करता है और दूसरे हाँथ से डोरी पकड़कर बैल हांकने लगता है।
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Update-18

रजनी बैलगाड़ी में बनी छपरी मे आ गयी और काकी के गोदी से बेटी को लिया और दूध पिलाने के लिए सूट ऊपर करके जैसे ही बायीं चूची को एकाएक बाहर निकाला, काकी निप्पल से रिसते हुए दूध को देखकर मुस्कुरा दी, हल्के से दबाव से ही एक दो बूँदें अब भी निकल जा रही थी, जैसे किसी ने जमे हुए दही को मथ दिया हो और वह रिस रिस कर बह रहा हो।

रजनी भी मुस्कुरा दी

काकी- अपने बाबू के पास बैठी थी क्या?

रजनी- हां काकी, बैलगाड़ी चलाना सीख रही थी।

काकी- सीख लिया।

रजनी- हां, बहुत आसान है।

काकी- सिर्फ बैलगाड़ी ही चलाई (काकी में छेड़ते हुए कहा)

रजनी- हां....तो और क्या करूँगी। काकी आप भी न।

काकी हंसते हुए - कुछ देखा न मैंने इसलिए।

रजनी- क्या?

काकी- तेरे निप्पल रस बरसा रहे थे।

रजनी- धत्त काकी आप भी न, क्या क्या सोचती और बोलती हो, अब गुड़िया नही पी पाएगी सारा दूध तो रिसेगा ही न।

काकी- जरूरी थोड़ी है कि केवल गुड़िया ही दूध की भूखी है क्या पता कोई और भी हो? (काकी ने चुटकी लेते हुए कहा)

रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया, शर्म की तरंगें चेहरे पर दौड़ गयी।

रजनी- अब बस भी करो काकी, वो बाबू है मेरे, आपको तो हर वक्त मस्ती सूझती रहती है इस उम्र में भी, बड़ी बदमाश को आप।

काकी हंसने लगी फिर बोली- अरे बाबा मैं तो मजाक कर रही थी। अच्छा ये बता चलते चलते काफी देर हो गयी है न, हमे कहीं रुकना चाहिए अब, जंगल के अंदर वक्त का पता नही चल रहा है लेकिन मेरे ख्याल से 1 या 2 बज गए होंगे, बैल भी बिचारे चलते चलते थक गए होंगे उनको भी आराम चाहिए होगा।

रजनी- हां काकी मुझे तो भूख भी लग आयी।

काकी- वो तो मुझे भी लगी है, रुक मैं उदयराज से पूछती हूँ, बोलती हूँ उसको कहीं रुकने को।
उदय! ओ उदय! अरे कहीं रुकना नही है क्या तुझे, बस चलते ही जा रहा है, थोड़ा बैलों को भी आराम दे, तू भी आराम कर।

उदयराज- हां काकी रुकता हूँ, थोड़ा सही जगह देख रहा हूँ, लगभग आधे रास्ते तो पहुचने वाले हैं शायद, रुकता हूँ।

रजनी- हां बाबू रुको न अब कहीं।

उदयराज- हां बिटिया जरूर।

उदयराज बैलगाड़ी चलाये जा रहा था लगभग 2 किलोमीटर आगे जाने के बाद उन्हें एक झोपड़ी दिखी, उस झोपड़ी के आगे और घना जंगल दिख रहा था, उदयराज को थोड़ी उम्मीद जगी की हो न हो इसमें कोई तो होगा, इतने घने जंगल में अगर यहां झोपड़ी है तो कोई तो रहता होगा।

उदयराज ने वहां पँहुच कर बैलगाडी रोकी, काकी और रजनी भी झोपड़ी देख थोड़ी खुश हुई पर बैलगाडी से अभी नही उतरी। उदयराज थोड़ा आगे बढ़ा तो वहां उसे एक बुढ़िया दिखी जो लकड़ियां इकट्ठी कर रही थी, उनकी उम्र काफी थी।

उदयराज को देखते ही वो लकड़ियां छोड़ छड़ी लेकर उठते हुए बोली- कौन? इस घने जंगल में बैलगाड़ी से कौन आया है? कौन हो तुम?

उदयराज- माता जी प्रणाम, मैं विक्रमपुर गांव का मुखिया उदयराज हूँ।

बूढ़ी औरत- प्रणाम पुत्र, यहां जंगल में कैसे? अकेले आये हो?

उदयराज- माता जी मैं अकेला नही हूँ मेरे साथ मेरा छोटा सा परिवार भी है, मैं अपने गांव की एक समस्या के हल की खोज में किसी के द्वारा बताए गए मार्ग पर हूँ, चलते चलते थक कर जब मैंने कहीं रुकने का मन बनाया तभी आपकी कुटिया मुझे नज़र आई और मैं यहां चला आया।

बुढ़िया- अच्छा किया जो यहां चले आये, आओ पहले बैठो पानी पियो, और कौन है तुम्हारे साथ?

उदयराज- मेरी बेटी, और काकी है।

बूढ़ी औरत- मेरा नाम सुलोचना है और मैं यहां अपनी बेटी पूर्वा के साथ रहती हूं।

उदयराज थोड़ा हैरत से- आप इस जंगल में अपनी बेटी के साथ अकेले कैसे रह लेती हो?, और यहां रहने की जरूरत क्यों पड़ी?, क्या आप यहीं की हो या कहीं से आकर बसी हो? उदयराज ने एक साथ कई सवाल कर दिए।

सुलोचना- पुत्र पहले बैठो पानी पियो फिर सब बताऊंगी, पूर्वा! ओ पूर्वा, बेटी सुन, देख कोई आया है बैलगाड़ी से।

पूर्वा- हां अम्मा, आयी

घर के अंदर से पूर्वा आयी और सुलोचना ने उसे बैलगाड़ी के अंदर बैठी रजनी और काकी को बुला कर लाने के लिए कहा।

पूर्वा ने उदयराज को देखते ही प्रणाम किया

उदयराज- प्रणाम बेटी

पूर्वा गयी और उसने रजनी और काकी को प्रणाम किया और ले आयी।

रजनी, काकी और उदयराज को मन ही मन बड़ी राहत मिली कि चलो ऐसे नेक लोग मिले और ऐसी जगह मिली इस जंगल में जहां थोड़ा रुककर विश्राम कर सकते हैं

काकी और रजनी ने सुलोचना को प्रणाम किया।

सुलोचना- ये आपकी बेटी है।

उदयराज- हां, माता जी, इसका नाम रजनी है।

सुलोचना- परम सूंदरी है तुम्हारी कन्या।

रजनी शर्मा गयी

उदयराज- और ये मेरी काकी, इन्होंने ही रजनी को पाला पोशा है।

सुलोचना- अच्छा!.....पूर्वा सबको अंदर ले जाओ और विश्राम कराओ।

पूर्वा- जी अम्मा, (और वो काकी और रजनी को कुटिया में ले गयी)

सुलोचना- पुत्र तुम आओ यहां बैठो, पानी पियो।

उदयराज ने हाँथ मुह धोया पानी पिया। फिर उसने बैलगाड़ी से बैलों को खोल कर बड़ी रस्सी से पेड़ से ऐसी जगह बांध दिया जहां काफी घास थी बैल भूखे थे, घास चरने लगे।

उदयराज आकर सुलोचना के पास बैठ गया।

सुलोचना- पुत्र इतना तो मेरा अनुमान है कि तुम उस महात्मा पुरुष के पास जा रहे हो जो घने जंगल में आदिवासियों के साथ रहते हैं।

उदयराज- हां माता जी अपने ठीक समझा, पर आप हमें आगे का रास्ता अच्छे से समझा दे तो बहुत महेरबानी होगी।

सुलोचना- हां हां, क्यों नही पुत्र, ये तो हमारा कर्तव्य है। देखो इस जगह जहां ये कुटिया है यहां से सिंघारो जंगल की सीमा शुरू होती है जो कि बहुत विशाल है।

उदयराज- सिंघारो जंगल नाम है इसका।

सुलोचना- हां, ये जंगल काफी बड़ा है, कई जंगली जानवर भी हैं इसमें, जो कि कभी कभी बाहर तक भी आ जाते हैं, आम इंसान के लिए इसके अंदर जाना मुश्किल भरा हो सकता है, क्योंकि जितना डर जंगली जानवरों का नही है उससे ज्यादा डर बुरी आत्माओं का रहता है जो इंसान को डरा और भटका देती हैं

उदयराज- तो फिर माता जी, कैसे होगा, हमारे साथ तो एक छोटी सी गुड़िया भी है, हमने तो सोचा था कि सरल रास्ता होगा, जाना है और मिलकर आ जाना है, पर ये तो रास्ता ही बहुत कठिन है, कैसे होगा? मेरी बेटी रजनी सही कहती थी कि न जाने कैसा रास्ता हो? उसकी बात सच निकली।

सुलोचना- तू घबरा मत पुत्र, हर समस्या का हल होता है, जरा सोच इस समस्या के हल के लिए ही तो नियति ने तुम्हे मुझसे मिलाया।

उदयराज- क्या मतलब? मैं समझा नही।

सुलोचना- इस खतरनाक सिंघारो जंगल में कोई भी आम आदमी बिना किसी तंत्र मंत्र के सहारे नही जा सकता, इसके लिए उसको तंत्र मंत्र से सिद्ध की हुई ताबीज़ को अपने साथ रखना होगा ताकि रास्ते में कोई परेशानी न हो।

उदयराज- पर अब ये ताबीज कहाँ मिलेगी।

सुलोचना- वो तुम्हे मैं तंत्र मंत्र द्वारा सिद्ध करके दूंगी पुत्र, लेकिन इसके लिए मुझे एक रात का समय चाहिए होगा, अगर तुम मेरी बात मानो तो अब धीरे धीरे शाम होने को आई है, अभी लगभग आधा रास्ता तुम पार कर चुके हो आधा बाकी है, तुम यहीं रात भर रुको, खाना पीना खाकर विश्राम करो, कल सुबह तक मैं तुम सबके लिए ताबीज़ तैयार कर दूंगी और हो सके तो मैं तुम लोगों के साथ उन महात्मा के आश्रम तक भी चलूंगी अगर तुम चाहोगे तो।

क्योंकि मुझे वहां जाने में कम समय लगता है, मुझे वहां जाने के छोटे रास्ते पता है और मैं नही चाहती कि तुम लोग अकेले इधर उधर भटकते हुए जाओ, मैं रहूँगी तो समय की बचत हो जाएगी।

उदयराज उनके सामने हाथ जोड़ कर बोलता है- न जाने मैंने पिछले जन्म में क्या पुण्य किये होंगे जो आप मुझे माँ के रूप में इस कठिन यात्रा में न केवल मेरा मार्ग दर्शन करने के लिए मिल गयी बल्कि स्वयं मेरे साथ चल रही है।

सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है पुत्र, एक दुखी इंसान ही दूसरे दुखी इंसान की पीड़ा को समझ कर उसकी मदद कर सकता है और कोई नही, तुम्हारे मुख से माँ सुनकर मुझे मेरे पुत्र की याद आ गयी।

उदयराज- मैं भी तुम्हारा पुत्र ही हूँ माँ, ईश्वर ने शायद आज इस जंगल में तुम्हे मेरी माँ बनाकर ही मिलाया है, भला मुझे किसी बात का क्यों ऐतराज होगा, आप मेरी मदद ही तो कर रही हैं, मैं चाहूंगा कि आप भी मेरे साथ चलें, और मैं रात भर रुकने के लिए तैयार हूं।

सुलोचना- हां ठीक है पुत्र, अब तुम विश्राम करो और जब रात में सब लोग खाना पीना खा लेंगे तब मैं हवन करके मंत्र जगाऊंगी और ताबीज़ तैयार कर दूंगी, उसके लिए मुझे जंगल से कुछ दैवीय जड़ी बूटियां इकट्ठी करनी पड़ेगी।

उदयराज- तो क्या आप रात्रि का भोजन नही करेंगी।

सुलोचना- नही पुत्र, अब ताबीज़ तैयार होने के पश्चात ही मैं भोजन करूँगी। यही नियम है।

उदयराज- आप हमारे लिए कितना कष्ट झेल रही है इस उम्र में माता।

सुलोचना- अब तुमने मुझे माँ कहा है तो माँ का फर्ज है ये, इसमें कष्ट कैसा, और ये तो मेरी आदत है।

उदयराज- अच्छा आप ये तंत्र मंत्र कैसे जानती हैं, आपको देख के लगता भी है जैसे कि आप कोई सिद्धि प्राप्त स्त्री हैं। आपने अपने बारे में कुछ बताया नही।
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