Update- 15
बैठक समाप्त हुई, सब लोग अपने अपने घर आ गए, उदयराज और काकी भी घर आ गए, लगभग शाम हो गयी थी। रजनी अपने बाबू और काकी को देखके खुश हो गयी और पीने के लिए पानी लायी, उदयराज भी रजनी को देखकर एक पल के लिए सब भूल गया, वो उसे कुछ देर के लिए देखता रहा, रजनी अपने बाबू की आंखों में बेसब्री और इंतज़ार देखकर थोड़ा मुस्कुरा दी और इशारे से थोड़ा सब्र और धीरज रखने को बोली फिर उदयराज हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुआ और द्वार पर खाट पे बैठ गया।
रजनी- बाबू लो, पानी पियों, बताओ क्या हुआ बैठक में कोई हल निकला?
उदयराज और काकी ने पानी पीते हुए रजनी को सब बताया।
रजनी- अपने अकेले वहां जाने का निर्णय ले लिया और गांव वालों ने आपको आसानी से अकेले जाने के लिए सहमति जता दी।
उदयराज- अरे नही बेटी, ऐसा नही है, बिरजू तो सबसे पहले बोला कि मैं जाऊंगा, मैंने ही उसे मना किया फिर वहां बैठे हर लोग साथ जाने के लिए तैयार थे परंतु वहां बहुत सारे लोग जा नही सकते, इसलिए मुखिया होने के नाते मैं ही वहां जाऊंगा।
रजनी- अपने मना किया और गांव वाले आसानी से मान गए, कोई भी ऐसा नही निकला जो जिद पकड़ के बैठ जाता कि कुछ भी हो हम अपने मुखिया को अकेले नही जाने देंगे, माना कि आप मुखिया हो और ये आपका फ़र्ज़ है पर गांव वालों का भी तो फ़र्ज़ है कि वो अपने मुखिया को अकेले न छोड़ें। आखिर आप जा तो वहां हमारे कुल, हमारे गांव की समस्या के लिए ही रहे हो न बाबू।
उदयराज- नही बेटी गांव वालों पे संदेह न कर मेरी बिटिया, एक भी इंसान वहां मेरे साथ जाने के लिए पीछे नही हटा, मैंने ही रोका उन्हें।
रजनी- पर आपने ये कैसे सोच लिया कि आपकी अपनी ये बेटी आपको अकेला जाने देगी, मैं आपको वहां अकेला हरगिज नही जाने दूंगी, आपके सिवा कौन है मेरा, न जाने कैसा रास्ता होगा, कितना वक्त लगेगा, कभी उस तरफ कोई गया नही, कितना दुर्गम रास्ता होगा, न जाने वो लोग कैसे होंगे, जब आप खुद बता रहे हो कि वो महात्मा आदिवासियों के बीच रहता है तो ऐसे आदिवासियों के बीच मैं आपको हरगिज़ अकेले नही जाने दूंगी, न जाने रास्ते में कहां कहां रुकना पड़े, कब तक आप अकेले बैलगाड़ी चलाओगे, कहाँ ठहरोगे, क्या खाओगे, क्या पियोगे, किसी भी कीमत पर मैं आपको अकेला नही छोड़ सकती, इतना कहते हुए रजनी रुआँसी हो गयी।
उदयराज ने उठकर रजनी को काकी के ही सामने बाहों में भर लिया- ओह्ह मेरी बेटी, मैं अब क्या बोलूं, लेकिन एक छोटी बच्ची को लेके तेरा मेरे साथ जाना क्या ठीक होगा?
रजनी- कुछ भी हो, मैं उसे भी ले चलूंगी, पर मैं आपको अकेले नही जाने दूंगी।
काकी को भी रजनी की बात ठीक लगी, उदयराज का एक ऐसी जगह अकेले जाना ठीक नही था, और उदयराज ने ये फैसला किया था कि ये काम केवल मुखिया के हांथों ही होगा तो कम से कम मुखिया के घर वाले तो जा ही सकते है उसके साथ, किसी भी इंसान का बिल्कुल अकेले जाना ठीक नही, बात यह नही थी कि उन आदिवासियों से कोई डर था क्योंकि वो तो एक महात्मा के रक्षक थे वो भला किसी को नुकसान क्यों पहुचायेंगे बल्कि बात ये थी कि रास्ता लंबा है, अकेले बैलगाड़ी चलाते चलाते वो थक जाएगा तो एक प्यारी सी गोद चाहिए जिसपर सर रखके वो आराम कर ले, भूख लगेगी तो कोई प्यारे प्यारे हांथों से खाना खिला दे, धूप में चलते चलते थक जाए तो अपनी जुल्फों तले छाया दे दे, और ये सब काम कोई पुरुष नही बल्कि स्त्री ही कर सकती थी और रजनी से अच्छा तो कोई कर ही नही सकता था।
उदयराज भी रजनी का साथ छोड़ना नही चाहता था, वो चाहता था कि वो जहां भी रहे उसकी बेटी उसके साथ हो।
काकी- तो मैं यहां अकेले क्या करूँगी, मेरा भी तो फ़र्ज़ है कि मैं अपनी बेटी को अकेले न छोडूं, आखिर उसके साथ छोटी सी बच्ची है मैं रहूंगी तो उसको संभाले रहूँगी, कोई दिक्कत नही होगी, आखिर मुझे भी मेरा फ़र्ज़ पूरा करने दो, मुझे भी साथ ले चलो।
उदयराज- परंतु काकी, यहां घर का और जानवरों के ख्याल रखने के लिए कोई तो चाहिए।
काकी- उसके लिए मैं बिरजू और उसकी बेटी नीलम को बोल देती हूं, जानवरों का ध्यान रख लेंगे वो।
उदयराज - ठीक है फिर, मैं खुद बिरजू को बोल देता हूँ, पर एक बात मेरे मन में है कि मुझे अपने मित्र, रजनी के ससुर बलराज को भी ये घटना और हमारा ये निर्णय लेना सूचित करना चाहिए, आखिर वो मेरे मित्र हैं, उन्हें कुछ पता नही है अभी तक, बाद में पता चलेगा कि हमने इतना बड़ा निर्णय लिया है तो शायद उन्हें बुरा लगेगा, आखिर उन्होंने रजनी को मेरी सेवा के लिए उम्र भर यहां छोड़ दिया, उनका कितना बड़ा त्याग है, मुझे उन्हें बताना चाहिए।
रजनी- हां बाबू जरूर, ससुर जी को बता दीजिए, ये आपने सही कहा।
उदयराज ने तुरंत एक संदेशवाहक को भेज के बलराज को अपने घर आने के लिए आग्रह किया, बलराज ने संदेश वापिस भिजवाया की वो एक घंटे में उनके घर आ रहा है। इधर काकी बिरजू के घर जाके उसको और उसकी बेटी नीलम को जानवरों की देखभाल की जिम्मेदारी दे आयी, बिरजू तो काकी को देखके हाथ जोड़के खड़ा हो गया और बोला- काकी ये क्या बोल रही हो, आपको तो बोलने की भी जरूरत नही, आखिर उदय भैया हम सब लोगों के लिए ये कर रहे है, क्या हमारा इतना भी फ़र्ज़ नही, आप बेफिक्र रहिए।
नीलम को मन ही मन रजनी के इस निर्णय पर की वो अपने बाबू के साथ जरूर जाएगी, नाज़ होता है, वो सोचती है कि रजनी कितनी भाग्यशाली है जो हर वक्त अपने बाबू के साथ रहती है जैसे उनकी ही जीवनसंगिनी हो, ये सोचते हुए वो भी अपने बाबू बिरजू की तरफ देखने लगती है, और मुस्कुरा देती है। एक तो उस दिन शेरु और बीना की चुदाई देख जो खुमारी और नशा चढ़ा था वो उतरा नही था, ऊपर से रजनी का अपने बाबू के प्रति प्रेम नीलम पर भी असर कर रहा था वो भी अपने बाबू को न जाने क्यों बार बार देखती रहती थी छुप छुप कर। चुदाई की लालसा मन में बैठ गयी थी, उसका अब मायके में मन नही लग रहा था क्योंकि ससुराल में होती तो पति से चुदती पर यहां कौन उसे कस कस के चोदेगा? बूर ने उसकी बगावत कर रखी थी, बस वो उसे समझाए ही जा रही थी और अब उसका मन बदल रहा था, उसे अपने बाबू पर प्यार आ रहा था धीरे धीरे। रिझाना तो वो चाहती थी अपने बाबू को पर डरती बहुत थी, क्योंकि अभी ये सब एकतरफा ही था, बिरजू को इसकी आहट भी नही थी।
थोड़ी देर में उदयराज के घर से सामने कुएं के पास सड़क पर एक तांगा आके रुका, बलराज उसमे से उतरा, उदयराज ने देखते ही आगे बढ़के अपने समधी का स्वागत किया, रजनी घर में चली गयी जल्दी से और एक लाल रंग की साड़ी पहन कर घूंघट डाल कर दोनों के लिए पानी लेकर आई और अपने ससुर के पैर छुए,
बलराज- जुग जुग जियो बहू।
रजनी- पिताजी आप कैसे हैं।
बलराज- मैं ठीक हूँ बहू, तुम कैसी हो।
रजनी- मैं भी ठीक हूँ और आपकी पोती भी ठीक है, रजनी अपनी बेटी को ला के ससुर की गोद में दे देती है और वो उसे खिलाने लगता है। फिर रजनी को दे देता है। रजनी अंदर चली जाती है।
उदयराज और बलराज बातें करने लगते है उदयराज बलराज को सारी बातें बताता है, बलराज उसके निर्णय से बहुत खुश होता है कि आखिर वो उदयराज जैसे इंसान का मित्र और समधी है जिसे अपने गांव और कुल की जीवन रक्षा की इतनी चिंता है और उसे अपनी बहू पर भी नाज़ हुआ।
बलराज- तो कब निकलोगे वहां के लिए।
उदयराज- सोच रहा हूँ कल सुबह जल्दी ही निकल जाऊं।
बलराज- मैं भी चलना चाहता हूं तुम्हारे साथ मित्र।
उदयराज- नही मित्र, अभी तो मुझे ही जाने दो, आगे फिर कभी जरूरत पड़ी या दुबारा जाना हुआ तो बताऊंगा, वैसे भी वहां ज्यादा लोगों का जाना ठीक नही।
बलराज- ठीक है मित्र, जैसा तुम्हे ठीक लगे। तो फिर मुझे आज्ञा दो जाने की।
उदयराज- अरे! ऐसे कैसे, आज रात रुको कल सुबह जाना, कितने दिनों बाद तो आना हुआ है, ऐसे तुरंत नही जाने दे सकता मैं तुम्हे। रुको अभी सुबह चले जाना। लेटो आराम करो।
बलराज जाने की कोशिश करता है पर उदयराज उसे आज रात रुकने के लिए बोल देता है।
बलराज- ठीक है मित्र, फिर बिस्तर पर लेटकर दोनों बातें करने लगते है।
अंधेरा हो चुका था रजनी खाना बनाने लगती है, खाना बनने के बाद सबने खाना खाया फिर सब सो जाते हैं, सुबह उदयराज रजनी और काकी जल्दी उठकर सारी व्यवस्था करते है जाने की, रजनी नाश्ता तैयार करती है, काकी रास्ते के लिए कुछ राशन पानी रखने लगती है और उदयराज बैलगाड़ी तैयार करने लगता है, सारी व्यवस्था होने के बाद गांव वालों को सूचित किया जाता है कि वो अब निकल रहे हैं, नाश्ता करके बलराज भी अब घर जाने के लिए तैयार हो जाता है फिर गांव वाले इकठ्ठे हो जाते है सबलोग मिलकर उदयराज, रजनी और काकी को विदा करते है, बलराज भी अपने घर चला जाता है, उदयराज बैलगाड़ी चला रहा होता है और रजनी और काकी पीछे बैठे होते है, बैलगाड़ी के ऊपर छत भी होती है जिससे धूप न लगे, अभी तो खौर सूर्य भी नही निकला था जब वो लोग निकले।
सब गांव वाले चले जाते है परंतु नीलम और बिरजू वहीं खड़े जब तक बैलगाड़ी ओझल नही हो जाती देखते रहते हैं
नीलम- बाबू, रजनी कितनी खुशनसीब है न।
बिरजू- क्यों बिटिया, क्या हुआ?
नीलम- देखो न हर वक्त अपने बाबू का ख्याल रखती है।
बिरजू- हां ये तो है, पर खुशनसीब तो मेरी बिटिया भी है, क्या वो अपने बाबू का ख्याल नही रखती, बिल्कुल रखती है।
नीलम खुशी से झूम उठती है, और अपने बाबू के साथ घर की तरफ चलने लगती है।