Update- 26
सबने फल खाये और आराम करने लगे, उदयराज को अब बहुत सुकून था वह सोच रहा था अब जाके कितने ही सदियों बाद उन्हें उनकी समस्या का हल मिला है। वह खुद को बहुत भाग्यशाली समझ रहा था।
इतने में सुलोचना उठ कर महात्मा जी के पास गई, महात्मा जी ने वो चार कीले तैयार कर पीपल के पत्तों में बांध कर रख दी थी।
महात्मा ने सुलोचना से कहा की केवल उदयराज को उनके दूसरे कक्ष में भेजो। उदयराज गया, उस कक्ष में केवल महात्मा और उदयराज ही थे।
उदयराज- जी महात्मा जी
महात्मा- आओ बैठो, मैंने कीलें तैयार कर दी हैं, इस पीपल के पत्ते में हैं, इसे संभाल कर रखो और कील गाड़ने ले बाद उस पर जो अर्पित करना है वो है बच्चे को स्तनपान करा रही किसी स्त्री का दूध, और इस वक्त तुम्हारे साथ केवल एक ही स्त्री ऐसी है जो बच्चे को स्तनपान कराती है, वो है तुम्हारी बेटी- रजनी।
उदयराज- हां महात्मा जी इस वक्त तो वही ऐसी स्त्री है जो स्तनपान करा रही है। परंतु इसको करेंगे कैसे, और ये तो आप सिर्फ गुप्त तरीके से मुझे बता रहे हैं मैं अपनी बेटी को ये कैसे बताऊंगा?
महात्मा- जो मैं तुम्हे बता रहा हूँ वही मैं सुलोचना को बता दूंगा वो तुम्हारी बेटी को समझा देगी, और इसको करना ऐसे है कि कील गाड़ने के बाद सीधे स्तन से उसको दबाकर एक धार उसपर गिरा देनी है
उदयराज- ठीक है, और महात्मा जी वो कर्म क्या है जो मुझे करना है।
महात्मा ने एक बड़ा सा कागज जिसमे कुछ लिखा था जो गोल गोल मोड़ कर एक सुनहरे धागे से बांधा हुआ था, उदयराज को दिया और बोला- वो कर्म इसमें लिखा हुआ है इसको घर पर जाकर ही एकांत में खोलना और पढ़ना, रास्ते में बिल्कुल नही, संभाल कर रख लेना, मैंने सोचा था कि वो कर्म मैं तुम्हे जुबानी बताऊंगा पर यह उचित नही इसलिये कागज में लिखकर दे रहा हूँ, इसको पढ़ना, जैसा इसमें लिखा है उसका पालन करना, इसके साथ ये एक दिव्य तेल है ये भी मैं तुम्हे दे रहा हूँ, इसका क्या प्रयोग है इस कागज़ में लिखा है
इस कर्म को तुम्हे करना ही होगा नही तो उपाय अधूरा रह जायेगा और विफल हो जाएगा, ये दोनों उपाय और कर्म एक दूसरे के पूरक हैं, एक को भी छोड़ा तो दूसरा विफल हो जाएगा और कर्म पूरा होने के ठीक दो महीने बाद इस कागज़ को मुझे पुनः वापिस करने आना होगा।
उदयराज ने वो कागज और दिव्य तेल की शीशी ले ली और बोला- महात्मा अपने कुल के जीवन की रक्षा से बढ़कर कुछ नही, आप जो कहेंगे जैसा कहेंगे, जो भी कर्म इसमें लिखा होगा मैं उसका पालन करूँगा। परंतु मेरी एक चिंता है।
महात्मा- क्या पुत्र?
उदयराज- अगर इस कागज़ को मेरे खोलने से पहले धोखे से यह किसी के हाथ लग गया और उसने खोल लिया तो क्या होगा?
महात्मा- यह जादुई पत्र केवल तुम्हारे नाम से ही बना है अगर यह किसी के हाँथ लग भी गया और वो उसको खोल भी लेगा तो उसे कुछ लिखा हुआ दिखाई नही देगा, ऐसा ही एक जादुई पत्र मैं तुम्हारी बेटी रजनी को भी दूंगा और यही सारी बात उसे भी कहूंगा, क्योंकि यह कर्म तुम दोनों के द्वारा ही हो सकता है और किसी के नही, इसका मुख्य कारण यह है कि तुम्हारे जिस पुर्वज ने ऐसा किया था वो उस वक्त गांव का मुखिया था और इस वक्त गांव के मुखिया तुम हो, तो ये कर्म तुम्हारे द्वारा ही सम्पन्न होना चाहिए।
उदयराज- जो आज्ञा महात्मा (परंतु उदयराज मन ही मन बेचैन था कि ऐसा क्या कर्म है जिसमे मेरी बेटी का भी सहयोग आवश्यक है बिना उसके ये हो नही सकता, अब खैर जो भी हो वो तो घर पहुँच कर इस दिव्य कागज को खोलकर ही पता चलेगा, और इसको वापिस करने भी आना है)
महात्मा ने फिर रजनी को बुलाया और यही सारी बातें कहते हुए एक और जादुई पत्र उसको दिया जो केवल उसके नाम था, रजनी ने उन्हें प्रणाम किया और वापिस कक्ष में आ गयी और उसने वो कागज संभाल कर रख लिया।
महात्मा ने फिर सुलोचना को बुलाया और उसको अर्पित करने वाली बात समझा कर बोला- ये बात उदयराज की बेटी को समझा दो और अभी रात के 2 बजे हैं आप लोग आराम कर लीजिए और फिर सुबह शीघ्र ही निकल जाइए।
सुलोचना ने ऐसा ही किया, सबने कुछ घंटे विश्राम किया फिर महात्मा जी को प्रणाम करके गुफा से निकल गए, सुबह के 4 बज गए थे, उदयराज ने अपनी बैलगाडी तैयार की और सब वापिस सुलोचना की कुटिया की तरफ रवाना हो गए, उदयराज बहुत खुश था पर असमंजस में भी था कि क्या कर्म है जो उसे करना होगा, यही हाल रजनी का भी था। वह तेजी से बैलगाडी चलाये जा रहा था, दोपहर हो गयी और दूसरा पहर शुरू हो गया, आखिरकार वह उस पीले पेड़ के पास पहुचे।
उदयराज ने बैलगाडी रोक दी और बोला- यही वो पेड़ है न
काकी और सुलोचना- हां यही है
वो पीला पेड़ बहुत बडा और अजीब था, रजनी को भी पता था कि मुझे अब यहां क्या करना है।
उदयराज ने रजनी को देखा तो वो मुस्कुरा पड़ी और मजाक में बोली- बाबू पहली कील यहीं ठोकनी है न
उदयराज- हां बेटी और चौथी घर पे (उदयराज ने भी मजाक में double meaning में बोला)
रजनी- चौथी नही तीसरी बाबू तीसरी, अभी से भूल गए (रजनी अपने बाबू का मतलब तो समझ गयी पर बात बदलते हुए बोली)
उदयराज- मुझे तो कील ठोकने से मतलब है चाहे तीसरी हो या चौथी।
और सब हंसने लगे
रजनी झेंप गयी
उदयराज- चलो अब मैं अपना काम करता हूँ और मेरी बिटिया रानी तुम अपना काम करो, पता है न क्या करना है।
रजनी- हां हां पता है मेरे बाबू जी, अम्मा ने सब बात दिया है। आप अपना काम तो करो पहले
उदयराज में एक कील निकाली और एक हाथ में पत्थर लिया, पेड़ की जड़ के पास गया और बिना उसको छुए कील जड़ में थोक दी, पेड़ की जड़ों के आस पास काफी झाड़ियां थी, कील ठुकते ही पेड़ की जड़ से एक पीला द्रव्य निकला और उसकी बड़ी बड़ी शाखायें काफी तेजी से हिली, हवाएं चलने लगी, ऐसा लगा पूरे जंगल में साएं सायं की आवाजें गूंज रही है अगर वो ताबीज़ न पहनी होती तो डर ही गए होते सब, उदयराज कील ठोकर वापिस आ गया
रजनी ने फिर मजे लिए- बाबू कील ठोक दी, बहुत दर्द हुआ होगा न उसको, तभी तो देखो कैसे शाखायें हिलने लगी, जैसे बेचारा फड़फड़ा रहा हो। अपने बाबू को देखते हुए बोली- बेदर्दी
उदयराज भी मजे के मूड में आ गया- असली कील ठुकती है तो ऐसे ही दर्द होता है
रजनी मतलब समझते ही मुस्कुरा दी और बैलगाडी से उतरी और बोली अब चलो मेरे साथ मुझे भी तो अपना काम करना है चलो दिखाओ कील कहाँ ठोकी है।
उदयराज ने double meaning में बोला- जहां ठोकी जाती है वहीं ठोकी है, अब क्या तुम्हारे बाबू को ये भी नही पता होगा कि कील कहाँ ठोकी जाती है।
रजनी मतलब समझते ही बुरी तरह शर्मा गयी और हंसते हुए बोली- बहुत बदमाश होते जा रहे हैं मेरे बाबू। कोई आस पास है इसका भी ख्याल नही।
और उदयराज रजनी को लेके पेड़ तक जाने लगा, सुलोचना और काकी बैलगाडी में ही बैठी देख रही थी।
उदयराज ने पेड़ के पास पहुँच के रजनी को वो कील दिखाई और बोला जो भी करना पेड़ को बिना छुए करना।
रजनी- ठीक है, पर मेरे बाबू पहले अपना मुँह उधर करो, पीछे घूमो, काकी और अम्मा इधर ही देख रही है, कहेंगी की कैसे बेशर्म पिता हैं, अपनी शादीशुदा बेटी की तरफ ऐसा करते हुए देख रहे हैं, चलो पीछे घूमो जल्दी।
उदयराज पीछे की तरफ घूम गया और धीरे से बोला- मन तो देखने का कर रहा है बहुत, कितने दिन हो गए देखे।
रजनी भी धीरे से बोली- मेरे बेसब्र बाबू, अभी दो दिन पहले ही देखा है, थोड़ा सब्र करो, सबकुछ जल्दी जल्दी करेंगे तो जल्दी घर पहुचेंगे, समझें बुध्धू।
उदयराज अपनी शादीशुदा बेटी की मंशा जानकर झूम उठा
रजनी ने पेड़ की जड़ के पास बैठकर अपने ब्लॉउज के नीचे के 3 बटन खोले और अपनी दाहिनी चूची को बाहर निकाल लिया, दूध से भरी हुई उसकी मोटी मदमस्त गोरी सी चूची उसके हांथों में नही समा रही थी, उसने निप्पल को निशाने पर लगा कर चूची को हल्के से दबाया और दूध की एक पतली धार गड़ी हुई कील पर गिरा दी, दूध लगते ही पेड़ शांत हो गया, सनसनाती हुई हवाएं चलना बंद हो गयी, ये सब देखकर सब चकित रह गए। रजनी ने चूची को अंदर कर ब्लॉउज के बटन लगा लिए और उदयराज के साथ बैलगाड़ी के पास आके अपनी जगह पर बैठ गयी
काकी- सदियों से चली आ रही समस्या के सुधार आ आग़ाज आज मेरी बेटी और मेरे उदय ने कर ही डाला।
सुलोचला- हाँ बहन बिल्कुल, हम सबका आशीर्वाद इन दोनों के साथ है।
काकी- बिना आपके आशीर्वाद के ये संभव नही था बहन, हम आपके बहुत आभारी है।
सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है, मेरे द्वार सदा आपके लिए खुले हैं, अब हमें शीघ्र ही चलना चाहिए ताकि शाम तक कुटिया पर पहुँच जाएं फिर एक रात मेरी कुटिया पर रुककर कल सुबह तड़के ही निकल जाना
काकी- जैसी आपकी आज्ञा
उदयराज ने बैलगाडी की डोर संभाल ली और तेजी से चलाने लगा।