• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

Member
180
613
109

Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

Update {{87}}​
Update {{88}}​
Update {{89}}​
Update {{90}}​
Update {{91}}​
Update {{92}}​
Update {{93}}​
Update {{94}}​
Update {{95}}​
Update {{96}}​
Update {{97}}​
Update {{98}}​
Update {{99}}​
Update {{100}}​




 
Last edited:

aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,198
158
Update-25

महात्मा- एक बात को समझने की कोशिश करो इस ब्रम्हांड में अगर कोई भी चीज़ है तो उसका अस्तित्व जरूर है, और सबकुछ ईश्वर ने ही बनाया है, इस संसार को चलाने के लिए सब चीज़ की जरूरत है

देखो जैसे अगर सफेद है तो काला भी है बिना काले के सफेद का अस्तित्व ही नही है

अगर पुण्य है तो पाप भी है और अगर पाप ही नही होगा तो पुण्य के अस्तित्व को पहचानेंगे कैसे? हमे कैसे पता चलेगा कि पुण्य इसको बोलते है, पुण्य का अस्तित्व पाप से है और पाप का पुण्य से

इसी तरह सिपाही का अस्तित्व चोर से है, चोर है तो सिपाही है, चोर नही तो सिपाही का क्या अस्तित्व

उदयराज महात्मा के चरणों में पड़ गया- हे महात्मा मुझे अब समझ आ रहा है कि हमारे पुर्वज ने क्या गलती की, हमने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है, हमे नियति से छेड़छाड़ नही करनी चाहिए थी।

महात्मा- पुत्र इसमें तुम्हारा कोई दोष नही, ये तुम्हारे द्वारा नही हुआ है, इसके लिए खुद को दोषी मत समझो, तुम्हारे पुर्वज ने अपने मंत्र की शक्ति से तुम्हारे कुल को बांध दिया है इसलिए तुम्हारा कोई दोष नही।

उदयराज- तो महात्मा जी इसका हल क्या है? कैसे हम इसको तोड़कर बाहर निकल सकते हैं। कैसे हम खुद को और बचे हुए लोगों को बचा सकते हैं।

महात्मा ने फिर अपनी आंखें बंद की ध्यान लगाया और आंखें खोली, उन्होंने उदयराज, रजनी और काकी को मुठ्ठी में लिए हुए चावल के दानों को हवन में विसर्जित करने के लिए बोला, सबने वैसा ही किया, महात्मा ने फिर एक मुट्ठी चावल लिया और आंखें बंद कर ध्यान लगाया, कुछ देर बाद आंखें खोल कर फिर से उदयराज, काकी और रजनी को चावल के दाने देकर मुट्ठी बंद करने को कहा, सबने वैसा ही किया और महात्मा ने आंखें बंद कर मंत्र पढ़ना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने आंखें खोली।

महात्मा- इसका हल है, इसके लिए तुम्हे उपाय और कर्म दोनों करने होंगे, उपाय तुम्हे तुम्हारे पुर्वज द्वारा लगाए गए मंत्र को काटने के लिए करना होगा और कर्म तुम्हे नियति के नियम को दुबारा स्थापित करने के लिए करना होगा जो खंडित हो चुका है इस वक्त। फिर सब धीरे-धीरे सही हो जाएगा।

उदयराज- कैसा उपाय और कैसा कर्म महात्मा जी?

महात्मा- उपाय ले लिए मैं तुम्हे मन्त्र से सुसज्जित करके चार कील दूंगा जिसको तुम्हे मेरे बताये गए जगह पर गाड़ना है?

उदयराज- बताइए महात्मा जी, जो जो आप कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं।

महात्मा- पहली कील तुम्हे यहां से जाते वक्त जंगल में एक पीला वृक्ष मिलेगा उसकी जड़ों में गाड़ देना है ध्यान रहे उस पेड़ को छूना मत किसी पत्थर से उस पेड़ को बिना छुए कील को ठोककर गाड़ देना और फिर उस पर एक काम और करना है जो मैं तुम्हे और सुलोचना को एकांत में बताऊंगा।


उदयराज, काकी और रजनी को अब वो पेड़ याद आ गया जो उन्होंने आते वक्त देखा था पीले रंग का

काकी- हाँ महात्मा जी, आते वक्त हमने एक पीला बड़ा सा वृक्ष देखा था, बहुत मायावी वृक्ष जान पड़ता था वो।

महात्मा- वो एक शैतान प्रेत है जो किसी श्राप से वृक्ष रूप में वहां सजा भुगत रहा है उसकी सजा पूर्ण होते ही वह पेड़ सूख जाएगा और उसको मुक्ति मिल जाएगी। वह बहुत पुराना वृक्ष है, डरो मत वह तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकता जब तक तुम सब लोगों ने सुलोचना द्वारा दी गयी ताबीज़ बांध रखी है बस उस पेड़ को छूना मत, कील गाड़ने के बाद उस पेड़ को तुम्हे कुछ अर्पित करना पड़ेगा जो मैं एकांत में उदयराज और सुलोचना को बताऊंगा, वह अर्पित करते ही वह शैतान खुश हो जाएगा और तुम्हारे पुर्वज द्वारा लगाए गए बंधन के मंत्र को काटने में मदद करेगा।

दूसरी कील तुम्हे अपने गांव की सरहद पर गाड़नी है जब यहां से जाते वक्त तुम अपने गांव के सरहद पर पहुँचो तो दूसरी कील सरहद पर गाड़कर गांव में दाखिल हो जाना, और यहां भी कील गाड़ने के बाद उस पर वही अर्पित करना होगा जो पेड़ पर किया था।

तीसरी कील घर की चौखट पर रात के ठीक बारह बजे गाड़नी है और यहां पर कुछ अर्पित नही करना है केवल कील ही गाड़नी है।

उदयराज- और महात्मा जी चौथी? (बड़ी उत्सुकता से)

महात्मा- चौथी कील तुम्हे अमावस्या की रात को ठीक 12 बजे अपने कुलवृक्ष के नीचे उसकी जड़ में गाड़ना है परंतु यहां पर फिर तुम्हे वही चीज़ अर्पित करना है जो तुमने जंगल के पेड़ और गांव के सरहद पर कील के ऊपर की थी, ध्यान रहे खाली घर की चौखट पर गड़ी कील पर कुछ अर्पित नही करना, खाली तीन जगह।

उदयराज- परंतु महात्मा जी हमारा जो कुलवृक्ष है उसकी जड़ के ऊपर तो एक बहुत बड़ा चबूतरा बना हुआ है, उसकी जड़ तो बहुत नीचे है।

महात्मा- तुम कुलवृक्ष के तने में थोड़ा छुपाकर गाड़ देना उससे भी काम हो जाएगा।

उदयराज- ठीक है महात्मा जी

महात्मा- अपने मुट्ठी में लिए हुए चावल के दानों को अब हवन कुंड में डाल दो।

सबने वैसा ही किया

महात्मा ने बगल में खड़े आदिवासी से कुछ कहा और वह एक पात्र में चार कीलें ले आया।
महात्मा ने उसे बगल में रखा।

उदयराज- महात्मा जी ये तो उपाय हो गया और इनके अलावा अपने जो कर्म बताया उनमे क्या करना होगा? वो कौन सा कर्म है? जिसको करके मैं नियति की खंडित हुई व्यवस्था को पुनः स्थापित कर सकता हूँ।

महात्मा- वो मैं तुम्हे एकांत में बताऊंगा, वो कुछ अलग है क्योंकि हर चीज़ की एक मर्यादा होती है और तरीका होता है।

महात्मा ने सबको अभी पुनः थोड़ा विश्राम करने के लिए कहा और सुलोचना सबको लेके बगल के कक्ष में गयी, वहां पर एक आदिवासी ने सबको एक पात्र में कंदमूल और फल तथा दिव्य रस खाने पीने के लिए दिए।

महात्मा ने वो कीलें तैयार करना शुरू कर दिया
:superb: :good: amazing update hai bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai
 
  • Like
Reactions: S_Kumar

aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,198
158
Update- 26

सबने फल खाये और आराम करने लगे, उदयराज को अब बहुत सुकून था वह सोच रहा था अब जाके कितने ही सदियों बाद उन्हें उनकी समस्या का हल मिला है। वह खुद को बहुत भाग्यशाली समझ रहा था।

इतने में सुलोचना उठ कर महात्मा जी के पास गई, महात्मा जी ने वो चार कीले तैयार कर पीपल के पत्तों में बांध कर रख दी थी।

महात्मा ने सुलोचना से कहा की केवल उदयराज को उनके दूसरे कक्ष में भेजो। उदयराज गया, उस कक्ष में केवल महात्मा और उदयराज ही थे।

उदयराज- जी महात्मा जी

महात्मा- आओ बैठो, मैंने कीलें तैयार कर दी हैं, इस पीपल के पत्ते में हैं, इसे संभाल कर रखो और कील गाड़ने ले बाद उस पर जो अर्पित करना है वो है बच्चे को स्तनपान करा रही किसी स्त्री का दूध, और इस वक्त तुम्हारे साथ केवल एक ही स्त्री ऐसी है जो बच्चे को स्तनपान कराती है, वो है तुम्हारी बेटी- रजनी।

उदयराज- हां महात्मा जी इस वक्त तो वही ऐसी स्त्री है जो स्तनपान करा रही है। परंतु इसको करेंगे कैसे, और ये तो आप सिर्फ गुप्त तरीके से मुझे बता रहे हैं मैं अपनी बेटी को ये कैसे बताऊंगा?

महात्मा- जो मैं तुम्हे बता रहा हूँ वही मैं सुलोचना को बता दूंगा वो तुम्हारी बेटी को समझा देगी, और इसको करना ऐसे है कि कील गाड़ने के बाद सीधे स्तन से उसको दबाकर एक धार उसपर गिरा देनी है

उदयराज- ठीक है, और महात्मा जी वो कर्म क्या है जो मुझे करना है।

महात्मा ने एक बड़ा सा कागज जिसमे कुछ लिखा था जो गोल गोल मोड़ कर एक सुनहरे धागे से बांधा हुआ था, उदयराज को दिया और बोला- वो कर्म इसमें लिखा हुआ है इसको घर पर जाकर ही एकांत में खोलना और पढ़ना, रास्ते में बिल्कुल नही, संभाल कर रख लेना, मैंने सोचा था कि वो कर्म मैं तुम्हे जुबानी बताऊंगा पर यह उचित नही इसलिये कागज में लिखकर दे रहा हूँ, इसको पढ़ना, जैसा इसमें लिखा है उसका पालन करना, इसके साथ ये एक दिव्य तेल है ये भी मैं तुम्हे दे रहा हूँ, इसका क्या प्रयोग है इस कागज़ में लिखा है

इस कर्म को तुम्हे करना ही होगा नही तो उपाय अधूरा रह जायेगा और विफल हो जाएगा, ये दोनों उपाय और कर्म एक दूसरे के पूरक हैं, एक को भी छोड़ा तो दूसरा विफल हो जाएगा और कर्म पूरा होने के ठीक दो महीने बाद इस कागज़ को मुझे पुनः वापिस करने आना होगा।

उदयराज ने वो कागज और दिव्य तेल की शीशी ले ली और बोला- महात्मा अपने कुल के जीवन की रक्षा से बढ़कर कुछ नही, आप जो कहेंगे जैसा कहेंगे, जो भी कर्म इसमें लिखा होगा मैं उसका पालन करूँगा। परंतु मेरी एक चिंता है।

महात्मा- क्या पुत्र?

उदयराज- अगर इस कागज़ को मेरे खोलने से पहले धोखे से यह किसी के हाथ लग गया और उसने खोल लिया तो क्या होगा?

महात्मा- यह जादुई पत्र केवल तुम्हारे नाम से ही बना है अगर यह किसी के हाँथ लग भी गया और वो उसको खोल भी लेगा तो उसे कुछ लिखा हुआ दिखाई नही देगा, ऐसा ही एक जादुई पत्र मैं तुम्हारी बेटी रजनी को भी दूंगा और यही सारी बात उसे भी कहूंगा, क्योंकि यह कर्म तुम दोनों के द्वारा ही हो सकता है और किसी के नही, इसका मुख्य कारण यह है कि तुम्हारे जिस पुर्वज ने ऐसा किया था वो उस वक्त गांव का मुखिया था और इस वक्त गांव के मुखिया तुम हो, तो ये कर्म तुम्हारे द्वारा ही सम्पन्न होना चाहिए।

उदयराज- जो आज्ञा महात्मा (परंतु उदयराज मन ही मन बेचैन था कि ऐसा क्या कर्म है जिसमे मेरी बेटी का भी सहयोग आवश्यक है बिना उसके ये हो नही सकता, अब खैर जो भी हो वो तो घर पहुँच कर इस दिव्य कागज को खोलकर ही पता चलेगा, और इसको वापिस करने भी आना है)

महात्मा ने फिर रजनी को बुलाया और यही सारी बातें कहते हुए एक और जादुई पत्र उसको दिया जो केवल उसके नाम था, रजनी ने उन्हें प्रणाम किया और वापिस कक्ष में आ गयी और उसने वो कागज संभाल कर रख लिया।

महात्मा ने फिर सुलोचना को बुलाया और उसको अर्पित करने वाली बात समझा कर बोला- ये बात उदयराज की बेटी को समझा दो और अभी रात के 2 बजे हैं आप लोग आराम कर लीजिए और फिर सुबह शीघ्र ही निकल जाइए।

सुलोचना ने ऐसा ही किया, सबने कुछ घंटे विश्राम किया फिर महात्मा जी को प्रणाम करके गुफा से निकल गए, सुबह के 4 बज गए थे, उदयराज ने अपनी बैलगाडी तैयार की और सब वापिस सुलोचना की कुटिया की तरफ रवाना हो गए, उदयराज बहुत खुश था पर असमंजस में भी था कि क्या कर्म है जो उसे करना होगा, यही हाल रजनी का भी था। वह तेजी से बैलगाडी चलाये जा रहा था, दोपहर हो गयी और दूसरा पहर शुरू हो गया, आखिरकार वह उस पीले पेड़ के पास पहुचे।

उदयराज ने बैलगाडी रोक दी और बोला- यही वो पेड़ है न

काकी और सुलोचना- हां यही है

वो पीला पेड़ बहुत बडा और अजीब था, रजनी को भी पता था कि मुझे अब यहां क्या करना है।

उदयराज ने रजनी को देखा तो वो मुस्कुरा पड़ी और मजाक में बोली- बाबू पहली कील यहीं ठोकनी है न

उदयराज- हां बेटी और चौथी घर पे (उदयराज ने भी मजाक में double meaning में बोला)

रजनी- चौथी नही तीसरी बाबू तीसरी, अभी से भूल गए (रजनी अपने बाबू का मतलब तो समझ गयी पर बात बदलते हुए बोली)

उदयराज- मुझे तो कील ठोकने से मतलब है चाहे तीसरी हो या चौथी।

और सब हंसने लगे

रजनी झेंप गयी

उदयराज- चलो अब मैं अपना काम करता हूँ और मेरी बिटिया रानी तुम अपना काम करो, पता है न क्या करना है।

रजनी- हां हां पता है मेरे बाबू जी, अम्मा ने सब बात दिया है। आप अपना काम तो करो पहले


उदयराज में एक कील निकाली और एक हाथ में पत्थर लिया, पेड़ की जड़ के पास गया और बिना उसको छुए कील जड़ में थोक दी, पेड़ की जड़ों के आस पास काफी झाड़ियां थी, कील ठुकते ही पेड़ की जड़ से एक पीला द्रव्य निकला और उसकी बड़ी बड़ी शाखायें काफी तेजी से हिली, हवाएं चलने लगी, ऐसा लगा पूरे जंगल में साएं सायं की आवाजें गूंज रही है अगर वो ताबीज़ न पहनी होती तो डर ही गए होते सब, उदयराज कील ठोकर वापिस आ गया

रजनी ने फिर मजे लिए- बाबू कील ठोक दी, बहुत दर्द हुआ होगा न उसको, तभी तो देखो कैसे शाखायें हिलने लगी, जैसे बेचारा फड़फड़ा रहा हो। अपने बाबू को देखते हुए बोली- बेदर्दी

उदयराज भी मजे के मूड में आ गया- असली कील ठुकती है तो ऐसे ही दर्द होता है

रजनी मतलब समझते ही मुस्कुरा दी और बैलगाडी से उतरी और बोली अब चलो मेरे साथ मुझे भी तो अपना काम करना है चलो दिखाओ कील कहाँ ठोकी है।

उदयराज ने double meaning में बोला- जहां ठोकी जाती है वहीं ठोकी है, अब क्या तुम्हारे बाबू को ये भी नही पता होगा कि कील कहाँ ठोकी जाती है।

रजनी मतलब समझते ही बुरी तरह शर्मा गयी और हंसते हुए बोली- बहुत बदमाश होते जा रहे हैं मेरे बाबू। कोई आस पास है इसका भी ख्याल नही।

और उदयराज रजनी को लेके पेड़ तक जाने लगा, सुलोचना और काकी बैलगाडी में ही बैठी देख रही थी।

उदयराज ने पेड़ के पास पहुँच के रजनी को वो कील दिखाई और बोला जो भी करना पेड़ को बिना छुए करना।

रजनी- ठीक है, पर मेरे बाबू पहले अपना मुँह उधर करो, पीछे घूमो, काकी और अम्मा इधर ही देख रही है, कहेंगी की कैसे बेशर्म पिता हैं, अपनी शादीशुदा बेटी की तरफ ऐसा करते हुए देख रहे हैं, चलो पीछे घूमो जल्दी।

उदयराज पीछे की तरफ घूम गया और धीरे से बोला- मन तो देखने का कर रहा है बहुत, कितने दिन हो गए देखे।

रजनी भी धीरे से बोली- मेरे बेसब्र बाबू, अभी दो दिन पहले ही देखा है, थोड़ा सब्र करो, सबकुछ जल्दी जल्दी करेंगे तो जल्दी घर पहुचेंगे, समझें बुध्धू।

उदयराज अपनी शादीशुदा बेटी की मंशा जानकर झूम उठा

रजनी ने पेड़ की जड़ के पास बैठकर अपने ब्लॉउज के नीचे के 3 बटन खोले और अपनी दाहिनी चूची को बाहर निकाल लिया, दूध से भरी हुई उसकी मोटी मदमस्त गोरी सी चूची उसके हांथों में नही समा रही थी, उसने निप्पल को निशाने पर लगा कर चूची को हल्के से दबाया और दूध की एक पतली धार गड़ी हुई कील पर गिरा दी, दूध लगते ही पेड़ शांत हो गया, सनसनाती हुई हवाएं चलना बंद हो गयी, ये सब देखकर सब चकित रह गए। रजनी ने चूची को अंदर कर ब्लॉउज के बटन लगा लिए और उदयराज के साथ बैलगाड़ी के पास आके अपनी जगह पर बैठ गयी

काकी- सदियों से चली आ रही समस्या के सुधार आ आग़ाज आज मेरी बेटी और मेरे उदय ने कर ही डाला।

सुलोचला- हाँ बहन बिल्कुल, हम सबका आशीर्वाद इन दोनों के साथ है।

काकी- बिना आपके आशीर्वाद के ये संभव नही था बहन, हम आपके बहुत आभारी है।

सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है, मेरे द्वार सदा आपके लिए खुले हैं, अब हमें शीघ्र ही चलना चाहिए ताकि शाम तक कुटिया पर पहुँच जाएं फिर एक रात मेरी कुटिया पर रुककर कल सुबह तड़के ही निकल जाना

काकी- जैसी आपकी आज्ञा

उदयराज ने बैलगाडी की डोर संभाल ली और तेजी से चलाने लगा।
Amazing update hai bhai
 
  • Like
Reactions: S_Kumar

aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,198
158
Update-27

उदयराज तेजी से बैलगाडी चलाये जा रहा था और सोचे जा रहा था कि जब वो गांव पहुँचेगा तो लोगों की भीड़ लग जायेगी, लोग पूछेंगे की क्या हुआ, क्या हल निकला, क्या उस दिव्य पुरुष से मिले या नही, सफर कैसा रहा? सफर आसान था या कठिन था, तो उनको मैं क्या बताऊंगा, बिरजू, परशुराम ये सब बड़ी उत्सुकता से इतंज़ार कर रहे होंगे। इसी तरह गांव की स्त्रियां रजनी और काकी से पूछेंगी, तो क्या हमें उन्हें सही सही बताना चाहिए, पूरे गांव में चर्चा करना ठीक नही होगा, चलो एक बार को उपाय तो मैं उनसे बता भी दूंगा पर कर्म का क्या करूँ, उसके बारे में तो मुझे अभी खुद भी नही पता। एक काम करता हूँ गांव वालों को खाली यही बोलूंगा की उपाय बताया है और एक हवन करने को बोला है कुल वृक्ष के नीचे बस, और काकी और रजनी को भी बस इतना ही बताने को बोल दूंगा।

उदयराज ऐसा सोचता हुआ बैलगाडी चलाये जा रहा था।

धीरे धीरे शाम हो गयी और वो सुलोचना की कुटिया पहुँच गए।

सबको बहुत भूख लगी थी क्योंकि रास्ते में वो रुके ही नही, जल्दी पहुचने के चक्कर में।

सब बैलगाडी से उतरे, उदयराज ने बैलगाडी पेड़ से बांध दी और बैलों को घास चरने के लिए लंबी रस्सी से बांध दिया।

पुर्वा सबको देखकर बहुत खुश हुई और सबके लिए तांबे के गिलास में पानी और गुड़ लेके आयी, सब खाट पर बैठ गए और सबने पानी पिया।

सुलोचना ने पुर्वा को जल्दी से खाना बनाने के लिए बोला तो रजनी भी जिद करके उसका हाँथ बटाने चली गयी

बाहर उदयराज, काकी और सुलोचना बैठे थे।

उदयराज- माता जी आपने इस मुश्किल काम में हमारा जो साथ दिया है, हमे जो रास्ता दिखाया और इतना ही नही सदैव हमारे साथ बनी रही उसका अहसान मैं कभी नही चुका पाऊंगा, आपकी वजह से आज हमारी और हमारे कुल की जान बची है, एक तरह से देखा जाए तो आप ही इसकी नींव हो, हम तो घर से बस चल दिये थे ये सोचकर कि आगे जो होगा जैसा होगा देखा जाएगा, आप न मिलती तो मेरा यह प्रण सफल नही होता, मैं अगर आपके किसी भी तरह काम आ पाऊंगा, किसी भी वक्त तो आप निसंकोच मुझसे कहियेगा, आपको मैंने माता माना है मुझसे जो भी बन पड़ेगा मैं आपकी सेवा में करूँगा।

सुलोचना- पुत्र जैसा कि मैंने पहले ही बताया पहली बात तो ये है कि ये तो मेरा फ़र्ज़ है, मैं अपने फ़र्ज़ से बंधी हुई हूँ दूसरा जब तुमने मुझे माँ माना है तो तुम मेरे पुत्र हुए और पुर्वा तुम्हारी बहन हो गयी, तो क्या मैं अपने पुत्र के लिए इतना नही कर सकती। केवल तुम ही मुझे पाकर नही बल्कि मैं और पुर्वा भी तुम सबको पाकर बहुत खुश है, हमने इससे पहले और भी बहुत लोगों की मदद की है पर न जाने क्यों तुम लोगों से एक अजीब सा लगाव हो गया है, पुर्वा को मैंने इतना खुश पहले कभी नही देखा, जितना वो तुम लोगों से मिलकर हुई है।

वो तो मुझसे कह भी रही थी कि अम्मा रजनी कितनी अच्छी लड़की है ऐसी लड़की मैंने आजतक नही देखी, मैं तो अब उसकी पक्की सहेली बन चुकी हूँ, तो मैंने कहा हाँ वो अब खाली तेरी पक्की सहेली नही अब तेरी भतीजी भी हो गयी है, तो वो चौंक कर बोली- क्या वो मेरी भतीजी और मैं उसकी बुआ।

मैं- हाँ, बिल्कुल

तो वो बोली- कैसे अम्मा

तो मैं बोली- उसके बाबू ने मुझे अपनी माँ माना है और मैंने उनको अपना पुत्र, तो हुई न तू रजनी की बुआ और उसके बाबू की बहन।

उसका चहरा मारे खुशी के खिल उठा जैसे उसकी एकांत जिंदगी में किसी ने एक जान फूंक दी हो वो चहकते हुए बोली- पर अम्मा मैं तो रजनी से उम्र में दो तीन साल छोटी हूँ, बुआ छोटी और भतीजी बड़ी, बड़ा मजा आएगा फिर तो और वो मेरी सहेली भी है।

सुलोचना- क्या है न पुत्र जब मैं यहां जंगल में आई तो वह काफी छोटी थी, इस घने भयानक जंगल में बस हम दो ही प्राणी है, मेरी तो उम्र कट गई लेकिन वो तो बच्ची है, कभी कभी बहुत अकेलापन महसूस करती है हालांकि मैं उसको तंत्र मंत्र की विद्या सिखा रही हूं तो वो उसमे व्यस्त रहती है परंतु फिर भी अकेलापन तो खलता ही है, हम माँ बेटी आपस में कितनी और कबतक बातें करेंगे, मैं महसूस करती हूं कि उसकी जिंदगी में बहुत अकेलापन और खालीपन है वो भी और बच्चों की तरह दोस्त बनाना चाहती है, लोगों के बीच में रहना चाहती है भरा पूरा परिवार चाहती है पर क्या करें नियति ने यही चाहा था शायद, मुझे अपनी चिंता नही बस उसकी चिंता होती है, मेरी वजह से उस बच्ची का जीवन नीरस होकर रह गया है, यही कारण है कि जब भी कोई फरियादी अपनी फरयाद लेके महात्मा जी के पास जाता है तो यहां रुकता है और हम उसकी मदद करते हैं उस वक्त मेरी बेटी पुर्वा बहुत प्रफ़ुल्लित रहती है पर फिर बाद में लोगों के चले जाने के बाद थोड़ा उदास हो जाती है। परंतु जब से तुम लोग आए हो वो तो बहुत ही खुश है खासकर रजनी से मिलकर और देख लेना तुम लोग जब जाने लगोगे तो रो देगी जरूर।

काकी की आंखें भर आयी ये सुनकर उसने सुलोचना को गले से लगा लिया और बोली- बहन तुमने तो अपने वचन के चलते इस फूल सी बच्ची को बचपन से जंगल की जिन्दगी दी है उसके साथ कितना अन्याय किया लेकिन तुम करती भी क्या? सबकुछ ईश्वर के हाँथ में है वो जो चाहते हैं वैसा ही होता है परंतु तुम्हारे मुँह से ये सब सुनकर अब पुर्वा बेटी की नीरस जिंदगी पर बहुत दुख हो रहा है।

सुलोचना ने आगे कहा- मुझे इससे ज्यादा चिंता इस बात की है कि मेरी काफी उम्र हो चली है मैं कब तक की मेहमान हूँ पता नही, तंत्र मंत्र के सहारे मैं जी रही हूं पर कब तक जिऊंगी, इस दुनियां में जो आया है उसको एक न एक दिन जाना ही है पर मेरे चले जाने के बाद इसका क्या होगा? कहाँ जाएगी? किसके पास रहेगी? कौन इसका होगा जो इसका ख्याल रखेगा? मैंने अपना वचन पालन करने के चक्कर में अनजाने में ही अपनी फूल सी बिटिया का जीवन बहुत कष्टमय कर दिया है, इस बात को सोच सोच कर मैं अपने को बहुत कोसती हूँ पर क्या करूँ, एक को पूरा करती तो दूसरा छूट जाता और ये बात मैंने आजतक किसी से कही भी नही है आज न जाने क्यों तुम लोगों से अपनापन जैसा प्यार मिला तो बोल रही हूं।

इतना कहकर सुलोचना के आंखों में आंसू आ गए लेकिन वो बहुत मजबूत नारी थी उसने तुरंत अपने को संभाल लिया।

उदयराज ने आगे बढ़कर सुलोचना को गले से लगा लिया और उसके आंसू पोछते हुआ बोला- माता ये आप कैसे सोच सकती हैं कि आप अकेली हैं या मेरी बहन पुर्वा अकेली है, उसका भी भरा पूरा परिवार है अब, जब आपने मुझे पुत्र माना है और मेरी इतनी मदद की है तो क्या मैं आपको और अपनी बहन को अकेला छोड़ दूंगा, नही ऐसा नही हो सकता, मेरी एक विनती है मैं आपको और अपनी बहन पुर्वा को अपने गांव विक्रमपुर लेकर जाना चाहता हूं, और आप मेरी बात टालेंगी नही, बोलिये माता, अब आप मेरे साथ ही चलिए।

सुलोचना- पुत्र मैं तुम्हारी इस इच्छा से बहुत कृतज्ञ हूँ पर मैं इस जंगल में रहकर जनमानस की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ नही तो मैं अपने पुत्र के साथ जरूर चलती, मेरी पति का संकल्प अधूरा रह जायेगा।

उदयराज- तो आप मेरी बहन पुर्वा को ही मेरे साथ भेजिए, वो वहां हमारे साथ रहेगी तो उसका जीवन बदल जायेगा, उसकी सारी जिम्मेदारी मेरी हुई अब।

काकी- हाँ बहन, उसे ही हमारे साथ भेज दो, रजनी और उसकी जोड़ी बहुत जमेगी, बुआ भतीजी की।

सुलोचना- पुत्र उसे भी मैं जरूर भेज देती पर अभी उसकी मंत्र विद्या अधूरी है, जो कि 2 महीने बाद पूरी हो जाएगी तो जब तुम महात्मा जी को वो कागज वापिस करने आओगे तो अपनी बहन को साथ लिवा जाना, क्योंकि मैंने प्रण किया था कि मैं अपनी पुत्री को तंत्र मंत्र सीखा कर निपुण बना दूंगी ताकि वह अपने जीवन में आने वाली परेशानियों को स्वयं हल कर सके, उसकी मंत्र विद्या पूरी होने वाली है बस दो अमावस्या उसको मंत्र और जगाना है और उसके लिए दो महीने लगेंगे।

सुलोचना ने आगे कहाँ- पुत्र तुमने तो मेरी सबसे गहरी चिंता को एक पल में दूर कर दिया और सुलोचना ने उदयराज को गले से लगा लिया।

उदयराज ने सुलोचना से कहा- माता जरा मेरी बहन को इस बात से अवगत तो करा दो।

सुलोचना जैसे ही पुर्वा को घर के अंदर से बुलाने को हुई काकी ने रोकते हुए कहा- रुको बहन मैं बुलाती हूं

काकी- रजनी ओ रजनी!

रजनी- हां काकी, आयी

और रजनी भागती हुई बाहर आई

रजनी- हाँ काकी क्या हुआ?

काकी- अरे अपनी बुआ को लेके नही आई।

रजनी- कौन बुआ?

काकी- अरे पुर्वा, वो तेरी बुआ बन गयी है, तुझे नही पता।

रजनी चौकते हुए- क्या! मुझे तो नही पता, कैसे, वो तो मेरी सहेली है पर वो मेरी बुआ भी है अरे वाह! ये हुई न बात। पर कैसे?

काकी- तेरे बाबू ने बहन को माँ माना है तो वो हुई न तेरी बुआ।

रजनी- अरे हां, सो तो है, बुआ ओ बुआ जरा बाहर आओ (रजनी ऐसे बोलते हुए कुटिया में चली गयी और कुछ देर बाद दोनों ही मस्ती करती हुई बाहर आई)

सुलोचना- देखो, दो तीन दिन में ही कितना प्यार है दोनों में। पुर्वा अब तू खुश है न अपनी भतीजी और भैया को पा के।

पुर्वा- हाँ अम्मा, बहुत खुश!

उदयराज ने पुर्वा को देखा और पूछा- खुश तो मैं भी हूँ तुम्हे पाकर मेरी बहन, क्या तुम मेरे साथ हमारे गांव चलना चाहोगी?

पुर्वा और रजनी आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगी

रजनी- बाबू क्या पुर्वा हमारे साथ चल रही है? (रजनी ने चौकते हुए कहा)

उदयराज- अब ये तो पूर्वा के ऊपर है, उसका क्या मन है

पूर्वा- मन तो मेरा भी है भैया पर मैं अम्मा को अकेला छोड़ कर नही जा सकती, और मेरी मंत्र विद्या भी अभी अधूरी है।

उदयराज- हां मेरी बहन हमारी बात हो गयी है, माता जी ने बोला है कि दो महीने बाद मैं तुम्हे लेने आऊंगा, तुम कुछ दिन वहां रहना फिर कुछ दिन यहां रहना, ऐसे करके जब जहां तुम्हारा दिल करे रहना।

पुर्वा सुनकर बहुत खुश हो गयी और सुलोचना के गले लग गयी सुलोचना ने हाथ बढ़ा कर रजनी को भी गले से लगा लिया

काकी और उदयराज भी काफी खुश थे, फिर हंसी खुसी रजनी और पुर्वा कुटिया में चले गए खाना बनाने।
:superb: :good: amazing update hai bhai,
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
 
454
440
63
Update-27

उदयराज तेजी से बैलगाडी चलाये जा रहा था और सोचे जा रहा था कि जब वो गांव पहुँचेगा तो लोगों की भीड़ लग जायेगी, लोग पूछेंगे की क्या हुआ, क्या हल निकला, क्या उस दिव्य पुरुष से मिले या नही, सफर कैसा रहा? सफर आसान था या कठिन था, तो उनको मैं क्या बताऊंगा, बिरजू, परशुराम ये सब बड़ी उत्सुकता से इतंज़ार कर रहे होंगे। इसी तरह गांव की स्त्रियां रजनी और काकी से पूछेंगी, तो क्या हमें उन्हें सही सही बताना चाहिए, पूरे गांव में चर्चा करना ठीक नही होगा, चलो एक बार को उपाय तो मैं उनसे बता भी दूंगा पर कर्म का क्या करूँ, उसके बारे में तो मुझे अभी खुद भी नही पता। एक काम करता हूँ गांव वालों को खाली यही बोलूंगा की उपाय बताया है और एक हवन करने को बोला है कुल वृक्ष के नीचे बस, और काकी और रजनी को भी बस इतना ही बताने को बोल दूंगा।

उदयराज ऐसा सोचता हुआ बैलगाडी चलाये जा रहा था।

धीरे धीरे शाम हो गयी और वो सुलोचना की कुटिया पहुँच गए।

सबको बहुत भूख लगी थी क्योंकि रास्ते में वो रुके ही नही, जल्दी पहुचने के चक्कर में।

सब बैलगाडी से उतरे, उदयराज ने बैलगाडी पेड़ से बांध दी और बैलों को घास चरने के लिए लंबी रस्सी से बांध दिया।

पुर्वा सबको देखकर बहुत खुश हुई और सबके लिए तांबे के गिलास में पानी और गुड़ लेके आयी, सब खाट पर बैठ गए और सबने पानी पिया।

सुलोचना ने पुर्वा को जल्दी से खाना बनाने के लिए बोला तो रजनी भी जिद करके उसका हाँथ बटाने चली गयी

बाहर उदयराज, काकी और सुलोचना बैठे थे।

उदयराज- माता जी आपने इस मुश्किल काम में हमारा जो साथ दिया है, हमे जो रास्ता दिखाया और इतना ही नही सदैव हमारे साथ बनी रही उसका अहसान मैं कभी नही चुका पाऊंगा, आपकी वजह से आज हमारी और हमारे कुल की जान बची है, एक तरह से देखा जाए तो आप ही इसकी नींव हो, हम तो घर से बस चल दिये थे ये सोचकर कि आगे जो होगा जैसा होगा देखा जाएगा, आप न मिलती तो मेरा यह प्रण सफल नही होता, मैं अगर आपके किसी भी तरह काम आ पाऊंगा, किसी भी वक्त तो आप निसंकोच मुझसे कहियेगा, आपको मैंने माता माना है मुझसे जो भी बन पड़ेगा मैं आपकी सेवा में करूँगा।

सुलोचना- पुत्र जैसा कि मैंने पहले ही बताया पहली बात तो ये है कि ये तो मेरा फ़र्ज़ है, मैं अपने फ़र्ज़ से बंधी हुई हूँ दूसरा जब तुमने मुझे माँ माना है तो तुम मेरे पुत्र हुए और पुर्वा तुम्हारी बहन हो गयी, तो क्या मैं अपने पुत्र के लिए इतना नही कर सकती। केवल तुम ही मुझे पाकर नही बल्कि मैं और पुर्वा भी तुम सबको पाकर बहुत खुश है, हमने इससे पहले और भी बहुत लोगों की मदद की है पर न जाने क्यों तुम लोगों से एक अजीब सा लगाव हो गया है, पुर्वा को मैंने इतना खुश पहले कभी नही देखा, जितना वो तुम लोगों से मिलकर हुई है।

वो तो मुझसे कह भी रही थी कि अम्मा रजनी कितनी अच्छी लड़की है ऐसी लड़की मैंने आजतक नही देखी, मैं तो अब उसकी पक्की सहेली बन चुकी हूँ, तो मैंने कहा हाँ वो अब खाली तेरी पक्की सहेली नही अब तेरी भतीजी भी हो गयी है, तो वो चौंक कर बोली- क्या वो मेरी भतीजी और मैं उसकी बुआ।

मैं- हाँ, बिल्कुल

तो वो बोली- कैसे अम्मा

तो मैं बोली- उसके बाबू ने मुझे अपनी माँ माना है और मैंने उनको अपना पुत्र, तो हुई न तू रजनी की बुआ और उसके बाबू की बहन।

उसका चहरा मारे खुशी के खिल उठा जैसे उसकी एकांत जिंदगी में किसी ने एक जान फूंक दी हो वो चहकते हुए बोली- पर अम्मा मैं तो रजनी से उम्र में दो तीन साल छोटी हूँ, बुआ छोटी और भतीजी बड़ी, बड़ा मजा आएगा फिर तो और वो मेरी सहेली भी है।

सुलोचना- क्या है न पुत्र जब मैं यहां जंगल में आई तो वह काफी छोटी थी, इस घने भयानक जंगल में बस हम दो ही प्राणी है, मेरी तो उम्र कट गई लेकिन वो तो बच्ची है, कभी कभी बहुत अकेलापन महसूस करती है हालांकि मैं उसको तंत्र मंत्र की विद्या सिखा रही हूं तो वो उसमे व्यस्त रहती है परंतु फिर भी अकेलापन तो खलता ही है, हम माँ बेटी आपस में कितनी और कबतक बातें करेंगे, मैं महसूस करती हूं कि उसकी जिंदगी में बहुत अकेलापन और खालीपन है वो भी और बच्चों की तरह दोस्त बनाना चाहती है, लोगों के बीच में रहना चाहती है भरा पूरा परिवार चाहती है पर क्या करें नियति ने यही चाहा था शायद, मुझे अपनी चिंता नही बस उसकी चिंता होती है, मेरी वजह से उस बच्ची का जीवन नीरस होकर रह गया है, यही कारण है कि जब भी कोई फरियादी अपनी फरयाद लेके महात्मा जी के पास जाता है तो यहां रुकता है और हम उसकी मदद करते हैं उस वक्त मेरी बेटी पुर्वा बहुत प्रफ़ुल्लित रहती है पर फिर बाद में लोगों के चले जाने के बाद थोड़ा उदास हो जाती है। परंतु जब से तुम लोग आए हो वो तो बहुत ही खुश है खासकर रजनी से मिलकर और देख लेना तुम लोग जब जाने लगोगे तो रो देगी जरूर।

काकी की आंखें भर आयी ये सुनकर उसने सुलोचना को गले से लगा लिया और बोली- बहन तुमने तो अपने वचन के चलते इस फूल सी बच्ची को बचपन से जंगल की जिन्दगी दी है उसके साथ कितना अन्याय किया लेकिन तुम करती भी क्या? सबकुछ ईश्वर के हाँथ में है वो जो चाहते हैं वैसा ही होता है परंतु तुम्हारे मुँह से ये सब सुनकर अब पुर्वा बेटी की नीरस जिंदगी पर बहुत दुख हो रहा है।

सुलोचना ने आगे कहा- मुझे इससे ज्यादा चिंता इस बात की है कि मेरी काफी उम्र हो चली है मैं कब तक की मेहमान हूँ पता नही, तंत्र मंत्र के सहारे मैं जी रही हूं पर कब तक जिऊंगी, इस दुनियां में जो आया है उसको एक न एक दिन जाना ही है पर मेरे चले जाने के बाद इसका क्या होगा? कहाँ जाएगी? किसके पास रहेगी? कौन इसका होगा जो इसका ख्याल रखेगा? मैंने अपना वचन पालन करने के चक्कर में अनजाने में ही अपनी फूल सी बिटिया का जीवन बहुत कष्टमय कर दिया है, इस बात को सोच सोच कर मैं अपने को बहुत कोसती हूँ पर क्या करूँ, एक को पूरा करती तो दूसरा छूट जाता और ये बात मैंने आजतक किसी से कही भी नही है आज न जाने क्यों तुम लोगों से अपनापन जैसा प्यार मिला तो बोल रही हूं।

इतना कहकर सुलोचना के आंखों में आंसू आ गए लेकिन वो बहुत मजबूत नारी थी उसने तुरंत अपने को संभाल लिया।

उदयराज ने आगे बढ़कर सुलोचना को गले से लगा लिया और उसके आंसू पोछते हुआ बोला- माता ये आप कैसे सोच सकती हैं कि आप अकेली हैं या मेरी बहन पुर्वा अकेली है, उसका भी भरा पूरा परिवार है अब, जब आपने मुझे पुत्र माना है और मेरी इतनी मदद की है तो क्या मैं आपको और अपनी बहन को अकेला छोड़ दूंगा, नही ऐसा नही हो सकता, मेरी एक विनती है मैं आपको और अपनी बहन पुर्वा को अपने गांव विक्रमपुर लेकर जाना चाहता हूं, और आप मेरी बात टालेंगी नही, बोलिये माता, अब आप मेरे साथ ही चलिए।

सुलोचना- पुत्र मैं तुम्हारी इस इच्छा से बहुत कृतज्ञ हूँ पर मैं इस जंगल में रहकर जनमानस की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ नही तो मैं अपने पुत्र के साथ जरूर चलती, मेरी पति का संकल्प अधूरा रह जायेगा।

उदयराज- तो आप मेरी बहन पुर्वा को ही मेरे साथ भेजिए, वो वहां हमारे साथ रहेगी तो उसका जीवन बदल जायेगा, उसकी सारी जिम्मेदारी मेरी हुई अब।

काकी- हाँ बहन, उसे ही हमारे साथ भेज दो, रजनी और उसकी जोड़ी बहुत जमेगी, बुआ भतीजी की।

सुलोचना- पुत्र उसे भी मैं जरूर भेज देती पर अभी उसकी मंत्र विद्या अधूरी है, जो कि 2 महीने बाद पूरी हो जाएगी तो जब तुम महात्मा जी को वो कागज वापिस करने आओगे तो अपनी बहन को साथ लिवा जाना, क्योंकि मैंने प्रण किया था कि मैं अपनी पुत्री को तंत्र मंत्र सीखा कर निपुण बना दूंगी ताकि वह अपने जीवन में आने वाली परेशानियों को स्वयं हल कर सके, उसकी मंत्र विद्या पूरी होने वाली है बस दो अमावस्या उसको मंत्र और जगाना है और उसके लिए दो महीने लगेंगे।

सुलोचना ने आगे कहाँ- पुत्र तुमने तो मेरी सबसे गहरी चिंता को एक पल में दूर कर दिया और सुलोचना ने उदयराज को गले से लगा लिया।

उदयराज ने सुलोचना से कहा- माता जरा मेरी बहन को इस बात से अवगत तो करा दो।

सुलोचना जैसे ही पुर्वा को घर के अंदर से बुलाने को हुई काकी ने रोकते हुए कहा- रुको बहन मैं बुलाती हूं

काकी- रजनी ओ रजनी!

रजनी- हां काकी, आयी

और रजनी भागती हुई बाहर आई

रजनी- हाँ काकी क्या हुआ?

काकी- अरे अपनी बुआ को लेके नही आई।

रजनी- कौन बुआ?

काकी- अरे पुर्वा, वो तेरी बुआ बन गयी है, तुझे नही पता।

रजनी चौकते हुए- क्या! मुझे तो नही पता, कैसे, वो तो मेरी सहेली है पर वो मेरी बुआ भी है अरे वाह! ये हुई न बात। पर कैसे?

काकी- तेरे बाबू ने बहन को माँ माना है तो वो हुई न तेरी बुआ।

रजनी- अरे हां, सो तो है, बुआ ओ बुआ जरा बाहर आओ (रजनी ऐसे बोलते हुए कुटिया में चली गयी और कुछ देर बाद दोनों ही मस्ती करती हुई बाहर आई)

सुलोचना- देखो, दो तीन दिन में ही कितना प्यार है दोनों में। पुर्वा अब तू खुश है न अपनी भतीजी और भैया को पा के।

पुर्वा- हाँ अम्मा, बहुत खुश!

उदयराज ने पुर्वा को देखा और पूछा- खुश तो मैं भी हूँ तुम्हे पाकर मेरी बहन, क्या तुम मेरे साथ हमारे गांव चलना चाहोगी?

पुर्वा और रजनी आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगी

रजनी- बाबू क्या पुर्वा हमारे साथ चल रही है? (रजनी ने चौकते हुए कहा)

उदयराज- अब ये तो पूर्वा के ऊपर है, उसका क्या मन है

पूर्वा- मन तो मेरा भी है भैया पर मैं अम्मा को अकेला छोड़ कर नही जा सकती, और मेरी मंत्र विद्या भी अभी अधूरी है।

उदयराज- हां मेरी बहन हमारी बात हो गयी है, माता जी ने बोला है कि दो महीने बाद मैं तुम्हे लेने आऊंगा, तुम कुछ दिन वहां रहना फिर कुछ दिन यहां रहना, ऐसे करके जब जहां तुम्हारा दिल करे रहना।

पुर्वा सुनकर बहुत खुश हो गयी और सुलोचना के गले लग गयी सुलोचना ने हाथ बढ़ा कर रजनी को भी गले से लगा लिया

काकी और उदयराज भी काफी खुश थे, फिर हंसी खुसी रजनी और पुर्वा कुटिया में चले गए खाना बनाने।
Badhiya update purwa to name se hi kafi hot or sexy lag rahi he bhari bharkam sarir ki malkin
 
  • Like
Reactions: nks2000 and S_Kumar
Top