Update- 37
रजनी बदहवास सी कोठरी से निकलकर अपनी पायल से छम्म छम्म की आवाज करती हुई बरामदे को अंधेरे में पार कर घर के दरवाजे तक आयी और धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर आ गयी, दरवाजे को धीरे से सटाया, संभोग की तीव्र इच्छा से बदन में उठ रही गर्मी से निकलते पसीने पर जब बाहर की ठंडी ठंडी पुरवैया हवा रात के गुप्प अंधेरे में पड़ी, तो बदन में एक ठंडी लहर दौड़ गयी, बदहवास सी वो आके अपनी खाट पे पेट के बल तकिए में मुँह गड़ाए हांफती हुई लेट गयी, पेट के बल लेटी अपनी तेज तेज चलती साँसों को वो काफी देर तक संभालती रही।
अपने बाबू के लंड का वो आगे का मोटा सा खुला और फूला हुआ चिकना चिकना सुपाड़ा मानो अब भी उसकी बूर की नरम नरम फांकों के बीच रगड़ रहा हो, संभोग की तीव्र इच्छा की उठती तरंगों से बेबस होकर वो बार बार अपनी जाँघों को भींचकर अपनी बूर को दबा दे रही थी, पर बूर भला अब मानने को कहां तैयार थी एक बार दहाड़ते लंड को छू जो लिया था उसने, पेट के बल लेटे लेटे ही रजनी ने अपना सीधा हाँथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी दहकती बूर पर रखा और उसको अपनी हथेली में भरकर मानो समझाती मनाती रही।
पेट के बल लेटने से गहरे गोल गले के ब्लॉउज में से उसकी पीठ का काफी हिस्सा खुला हुआ था जिसपर पुरवईया की ठंडी ठंडी हवा लग रही थी मानो हवा भी दौड़ती हुई आकर उसकी मादक पीठ और जिस्म को बार बार चूम रही हो। तेज हवा बहने से ऊपर नीम के पेड़ की डालियां हिल रही थी, उसकी हल्की नरम नरम पत्तियां हवा से हिलकर आपस में टकराकर सर्रर्रर सार्रर्रर की आवाज पैदा कर रही थी और कभी कभी पकी हुई नीम की छोटी छोटी कुछ निम्बोली टूटकर रजनी की नंगी खुली हुई पीठ पर गिरती तो राजनी का कामाग्नि में जलता बदन और दहक उठता।
कुछ देर पेट के बल लेटने के बाद वो पलटकर पीठ के बल लेट गयी और जैसे ही उसने अपना चेहरा ऊपर किया नीम की एक छोटी पकी हुई निम्बोली उसके रसीले नशीले निचले होंठ पर आकर गिरी और वो मंद मंद मुस्कुरा दी, मानो ऐसा लगा कि कमाग्नि में सुलगते हुए उसके बदन से निकलने वाली मादक महक हवा के साथ बहकर धीरे धीरे प्रकृति के कण कण में घुल गयी हो और प्रकृति भी मदहोश होकर उसके अंग अंग को किसी न किसी बहाने से चूम रही हो।
तभी न जाने कैसे उसकी बेटी उठ गई, काकी उसे थपथपाने लगी परंतु रजनी ने उसे उठाकर गोदी में ले लिया, काकी फिर आस्वस्त होकर सो गई, रजनी अपनी बेटी को दूध पिलाते हुए खाट पे लेट गयी और अपना आँचल बेटी के सर पर डाल दिया, फिर धीरे धीरे वो भी नींद की आगोश में जाती गयी।
उधर कोठरी में अपनी बेटी के जाने के बाद उदयराज काफी देर तक यूँ ही अपने खड़े दहकते, झटके मारते हुए लंड पर धोती रखे लेटा रहा, सांसें उसकी भी तेज चलते हुए धीरे धीरे काबू में आ रही थीं। वो मन में अपनी बेटी के बारे में सोचने लगा कि रजनी ने आज अपने आप जो किया वो कितना उत्तेजित कर देने वाला है, इसका मतलब वो बहुत तड़प रही है।
उदयराज ने मन में एक कसम ली-
"कसम है मुझे मर्दानगी की कि अपनी बेटी को मैंने परम चरमसुख नही दिया तो मेरा नाम भी उदयराज नही।"
इतना सोचते हुए वो सोने की कोशिश करने लगा एकाएक उसे लगा कि उसके लंड का सुपाड़ा उसकी बेटी की मखमली बूर की फाँकों में टच हो रहा है एकदम से उसकी आंखें खुल गयी और उसने अपने हाथ से लंड को मसल दिया और फिर सोने की कोशिश ये सोचकर करने लगा कि कल अमावस्या की रात है, नियम कानून अब खत्म हो जाएंगे, कल मेरी बेटी दिन में अपने दिल का हाल और आगे क्या होगा इस सब को एक कागज पर लिखकर घर में कहीं छुपकर रखेगी मुझे वो ढूंढकर पढ़ना है और फिर उसी अनुसार काम करना है, देखता हूँ मेरी बेटी क्या चाहती है?
तभी उसके मन के कोने से एक आवाज आती है कि उदयराज पहले तू वो कागज तो ढूंढ के दिखाना, न जाने कहाँ छुपकर रखेगी रजनी, कल तो सारा घर छान मारना पड़ेगा मुझे और फिर वो मुस्कुराते हुए सोने की फिर कोशिश करने लगा फिर धीरे धीरे उसको नींद आ ही गयी।
सुबह रजनी की नींद सबसे पहले खुली, वो मादक सी अंगडाई लेती हुई उठी और उठते ही सबसे पहले अपने बाबू का चेहरा उसकी आँखों में घूम गया और फिर कल रात क्या क्या हुआ ये सोचते ही पूरे बदन में ख़ुशी की तरंगें बहने लगी, और आज...आज थी अमावस्या की रात वाला 7वां दिन। मंद मंद मुस्कुराते हुए रजनी खाट से उठकर खड़ी हुई और सीधे घर में गयी, बरामदे में रखे कागज कलम को उठाया और चुपचाप कुछ देर तक कुछ लिखती रही फिर उस कागज को गोल गोल किया और दरवाजे की कुंडी में अंदर से फंसा कर बाहर निकल गयी।
जब बाहर आई तो काकी उठ चुकी थी, रजनी की बेटी अभी सो ही रही थी। रजनी ने काकी को बोला कि जब बाबू घर से बाहर आएं तो वो उसे इशारा करके बता देंगी।
उदयराज सोकर उठा और जल्दी जल्दी अपनी धोती बांधी हल्का हल्का उजाला होना शुरू हो गया था, उदयराज ने कोठरी से बाहर आकर बरामदे की तरफ कदम बढ़ाया, अभी बरामदे में अंधेरा था, जैसे ही उसने दरवाजे की कुंडी में हाथ लगाया, रजनी का लिखा हुआ कागज उसके हाथ में आ गया, वो समझ गया कि रजनी ने ही यहां ये लगाया होगा, उसने वो कागज धोती में खोसा और दरवाजा खोलकर पहले एक बनावटी खांसी खाँसा, ताकि अगर र
रजनी कहीं बाहर सामने हो तो समझ जाएं और हुआ भी ऐसे ही, रजनी अपने बाबू की आवाज सुनते ही दालान के बगल में अमरूद के पेड़ के नीचे चली गयी और उदयराज सामने कुएं पर चला गया, कुएं से पानी निकाला और मुँह धोने लगा।
रजनी फट से आई और घर में चली गयी। काकी बड़ा सा झाड़ू लेकर द्वार बहारने लगी, क्योंकि रात में काफी हवा चलने से द्वार पर नीम की काफी पत्तियां और पकी हुई निम्बोली फैली हुई थी, द्वार बहार कर काकी ने जानवरों को चार डालना शुरू कर दिया।
रजनी घर के अंदर नाश्ता तैयार करने लगी।
उदयराज ने मुँह धोकर नीम की दातुन तोड़ी और दातून करके मुँह धोकर तरोताजा हो गया। फिर उसने एकाएक धोती में खोसा हुआ कागज निकाला और कुएं पर बैठकर सड़क की ओर मुँह करके पढ़ने लगा-
"मेरे बाबू मेरे शुग्गु मुग्गु, मेरे राजा, कल मैं बहुत बेसब्र हो गयी थी और मुझसे रहा नही गया, मुझे यह लिखते हुए बहुत शर्म भी आ रही है, आज 7वां दिन है और अमावस्या की रात है, सुर्यास्त के बाद हमारे सारे बंधन खत्म हो जाएंगे, मैं दिन में अपने मन की बात और आगे का कर्म जो मेरी मर्जी पर निहित है कागज पर लिखकर घर में कहीं छुपा कर काकी के साथ नीलम के घर चली जाउंगी, मैं नियम के अनुसार आपको जरा भी अंदाजा नही दे सकती कि मैं वो कहाँ छुपाउंगी, आपको ही वो अपनी मेहनत और बुद्धि से उसे ढूंढना है, मेरे बाबू ये क्रिया एक तरीके से हमारे आने वाले सुखमय जीवन की चाबी है अगर आप इसे सूर्यास्त से पहले पहले ढूंढ लेते हो तभी ये ताला खुलेगा।
एक पल को मैं डर भी रही हूं कि कहीं आपको मेरा छुपाया हुआ कागज नही मिला तो......मैं जीवन भर आपका प्यार पाने के लिए तड़पना नही चाहती, एक बेटी अपने पिता के प्यार के लिए तरसना नही चाहती, यह एक कठिन परीक्षा है आपकी और मेरी भी, इसमें असफल मत होना मेरे बाबू, नही तो आपकी बेटी आपके लिए तरस कर रह जायेगी और आप भी उसके लिए तड़पकर रह जाओगे, ये नियति ने कैसा खेल खेला है सबकुछ देकर भी बीच में एक ऐसी गहरी खाई रखी है जिसको कैसे भी करके पार करना ही है। मैंने पहले इसके विषय में ज्यादा गौर नही किया था पर अब समझ आ रहा है कि ये कितनी कठिन स्थिति और कितना कठिन मोड़ है, सबकुछ इसी मोड़ पर निर्भर है, मान लो वो कागज आपको सूर्यास्त से पहले नही मिल पाया तो सारी मेहनत, सारी उम्मीद, सारी खुशी यहीं पर रुक जाएगी, नियम के अनुसार हम आगे ही नही बढ़ पाएंगे। कैसे अपने कुल के लोगों की जान बचाएंगे और कैसे सबका भविष्य सुरक्षित करेंगे।
महात्मा जी ने भी कैसा रहस्मयी कर्म बताया है?
नीलम के घर मैं दोपहर 12:30 तक जाउंगी और सूर्यास्त से पहले 6:30 तक आ जाउंगी और आकर मैं सीधे घर में उस जगह जाउंगी जहां मैंने कागज छुपाया होगा और जब मुझे वो कागज वहां नही मिलेगा तो मैं समझ जाउंगी की आप और मैं जीत चुके हैं आगे बढ़ने के लिए।
मेरे बाबू मुझे पूरा भरोसा है कि आप अपनी बेटी को जीतकर पा लेंगे, आपकी बेटी सिर्फ आपकी है, सिर्फ आपकी।
उदयराज ने वो कागज मुस्कुराते हुए दुबारा अपनी धोती में खोंस लिया। उदयराज ने मन में सोचा- मेरी बेटी तू उस कागज को जहन्नुम में भी छुपा देगी तो भी मैं ढूंढ निकालूंगा, मेरी तो तू है ही, तुझे मुझसे अब कोई दूर नही कर सकता, तेरे यौवन के महासागर में तो मुझे गोता हर हाल में लगाना है, हर हाल में।
पर वो मन में सोचने लगा कि कैसी विडंबना है अपने ही हाथ से उसे वो काम करना पड़ रहा है जिससे वो डर भी रही है, पर तू डर मत मेरी बेटी, डर मत। घर में ही तो छुपायेगी, पूरा घर छान मारूंगा।
उदयराज कुएं से उतरकर द्वार पर आके सामने खाट पर बैठ गया, काकी ने उसको नाश्ता ला के दिया उसने नाश्ता किया और आज ये सोचकर बैल लेके खेतों में चला गया कि दोपहर 12 बजे तक आ जायेगा।
खेत में जाते वक्त वो बिरजू से एक बार मिलकर गया।
रजनी ने घर का सारा काम किया और शेरु और बीना को भी उसने खाना दिया, तभी उसने ध्यान से देखा तो पाया कि बीना गर्भवती है और वो किससे गर्भवती हुई थी ये सोचकर तो उसकी बूर में फिर से चीटियाँ सी रेंगने लगी उसने जोर से काकी को आवाज लगाई- काकी ओ काकी, इधर तो आओ।
काकी- हाँ राजनी बेटी क्या हुआ?
रजनी- देखो जरा बीना गर्भवती है न?
काकी- हाँ है तो। आखिर हो ही गयी गर्भवती और हो भी क्यों न प्यार जो मिला है इतना उसको अपने बाबू का (काकी ने चुटकी लेते हुए कहा)
रजनी और काकी ने एक दूसरे को मुस्कुरा के देखा और रजनी शर्मा गयी।
रजनी ने मन में सोचा आखिर शेरु ने अपनी सगी बेटी बीना को चोद चोद के गर्भवती कर ही दिया और वो इस बात से सिरह गयी कि कैसे एक सगे बाप ने अपनी ही सगी बेटी को चोद चोद के गर्भवती किया।
शेरु और बीना ने खाना खाया फिर इधर उधर चले गये।
तब तक दिन के 11:30 हो चुके थे रजनी ने अब बरामदे में रखे कागज कलम को उठाया और एक बार को आंखें बंद की फिर मुस्कुराते हुए आंखें खोली और थोड़ा सा कागज का टुकड़ा फाड़ा फिर उसमें कुछ लिखा और उसको घर में ही कहीं अपने दिल पर पत्थर रखकर (बहुत भारी मन से) छिपा दिया।
12 बजे तक उदयराज आया, रजनी रसोई में थी, काकी ने उदयराज को खाना परोसा और फिर उदयराज ने मुस्कुराते हुए खाना खाया फिर बाहर चला गया, रजनी और काकी ने भी खाना खाया।
कुछ देर बाद काकी ने बाहर आकर उदयराज को बोला कि अब वो और रजनी नीलम के घर जा रहे हैं और फिर 12:30 तक दोपहर में काकी और रजनी उदयराज की नज़र बचा के नीलम के घर चले गए।