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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Rinkp219

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Lajawab dost.....iss kahani main to humme udayraj ki beti ka sasur ka bhi intezar hai
 

Obaid Khan

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Ye Kya Sawal hua, filhaal Waqt Ki Dhaar likh raha hun
Are Bhai gussa kyu ho rhe ho mughe nhi pata tha na mere pass eke khaani Ka plot hai socha aap likhoge isliye pucha
 
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Update-8

रजनी ने जल्दी जल्दी दाल पीसी और आगे का काम करने लगी कुछ देर बीत गए एकदम उसे याद आया कि अरे तौलिया तो देना भूल ही गयी, याद आते ही वो तुरंत बारामदे में भागती हुई गयी और खूंटी में टंगी तौली उठाकर घर से बाहर आ गयी।

बाहर आ कर उसने देखा कि काकी तो खाट के पास है ही नही, उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो देखा कि काकी बच्ची को लेकर बगल वाले आम के बाग में टहल रही थी।

वो तौली लेकर तेज कदमों से कुएं की तरफ बढ़ने लगी, शाम का वक्त था 7:30 हुए होंगे थोड़ा अंधेरा छाने लगा था, जैसे ही वो कुएँ के पास पहुंची सामने का नज़ारा देख ठिठक सी गयी और अपने दोनों हाँथ कमर पर रखकर थोड़ा बनावटी गुस्से से अपने मन में ही बोली- ये लो, अभी तक बाबू जी मेरे न जाने क्या सोचते बैठे हैं, अभी तक तो इनको गर्मी लग रही थी, अब न जाने कौन सी दुनिया में खोए हैं

दरअसल उदयराज कुएं से पानी निकालकर लोटा भरकर बगल में रखकर कुछ सोचने लगा और उस सोच में ही डूब गया था, उसका मुंह सड़क की तरफ था और रजनी उसके पीछे थी अभी वो कुएं की सीढ़ियां चढ़ी नही थी।

रजनी को एकदम शरारत सूझी, वो दबे पांव सीढियां चढ़कर चुपके से अपने बाबू के बिल्कुल पीछे आ गयी और बगल में रखा पानी से भरा लोटा उठा कर अपने बाबू के सर के ऊपर करीब 1 फ़ीट तक ले गयी और सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्ररर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर बोलते हुए पानी की धार छोड़ दी और उसकी हंसी छूट गयी, लगी खिलखिला के हंसने।

उदयराज चौंक गया हड़बड़ाहट में उठा तो उसका सर लोटे से लगा, लोटा रजनी के हाँथ से छूट कर कुएं के फर्श पर गिरा और टन्न... टन्न..... टन्न....की आवाज करता हुआ नीचे क्यारियों में चला गया।

रजनी को मानो खुशियों का खजाना मिल गया हो, वो खिलखिलाकर हंसती हुई क्यारियों में उतर गई और लोटा उठा कर लायी जो मिट्टी से सन गया था और उसे धोते हुए बोली- ऐसे नहाओगे आप, बाबू जी मेरे, मै तो भागी भागी आयी तौली लेके, सोचा कि बाबू जी नहा लिए होंगे कहीं देरी न हो जाये और आके देख रही हूं तो जनाब न जाने किस सोच में डूबे हैं, किस सोच में डूबे थे मेरे बाबू?

इतने प्यार और मनोहर तरीके से पूछते हुए रजनी फिर हंसने लगी

उदयराज सम्मोहित सा उसकी अदाओं को देखते हुए खुद भी हंस दिया और बोला- बेटी तूने तो मुझे डरा ही दिया था, अरे वो मैं खेती बाड़ी के बारे में सोचने लगा था तो सोचता ही राह गया।

रजनी- सच, खेती बाड़ी के बारे में ही सोच रहे थे न, कहीं मेरी माँ की याद तो नही सता रही थी मेरे बाबू को।

उदयराज- अब तू आ गयी है तो भला क्यों सताएगी उनकी याद। (उदयराज ये बात तपाक से बोल गया पर बाद में पछता भी रहा था कि मैं ये क्या बोल गया)

रजनी- हां बिल्कुल मैं हूँ न आपका ख्याल रखने के लिए, चलो अब जल्दी से नहा लो।

उदयराज- बेटी एक बात के लिए मुझे माफ़ कर देना।

रजनी- (उदयराज के करीब आते हुए) अरे बाबू आप ऐसे क्यों बोल रहे है, ऐसा क्या किया अपने जो आप ऐसा बोल रहे हैं।

उदयराज- वो अभी 4 बजे के आस पास जब तू मेरे लिए पानी लेकर आई थी पीने के लिए तो खाट पर मैंने तुझे बाहों में ले लिया था, मुझे ऐसा नही करना चाहिए था कोई देखा लेता तो क्या सोचता, और काकी ने तो देख ही लिया था, आखिर जो भी हो रिश्ते की एक मर्यादा होती है, हर चीज़ की एक उम्र, सही तरीका और कायदा होता है, दरअसल बेटी मैं अकेलेपन की वजह से अपनो के लिए तरस गया था इसलिय.......

रजनी ने आगे बढ़कर अपने बाबू के होंठो पर उंगली रखते हुए बोला- अब बस करो, और ये क्या बोले जा रहे हो आप, आपकी बेटी हूँ मैं कोई परायी नही, क्या जब मैं छोटी थी तब आप मुझे गोद में नही लेते थे, तो अगर आज मैं बड़ी हो गयी तो क्या आप मुझे अपने उस प्यार से वंचित कर देंगे, सिर्फ इसलिये की आज मैं बड़ी हो गयी हूँ, और अगर मुझे खुद आपकी गोदी में सुकून मिलता हो तो फिर क्या कहेंगे आप? मैं आपकी बेटी हूँ, आपके सिवा कौन है मेरा, आपके बिना नही रह सकती मैं इसलिए उम्र भर आपकी सेवा के लिए आपके पास आ गयी हूँ, अगर आप भी मुझे गोद में लेकर बाहों में भरकर प्यार और दुलार नही करेंगे तो मुझे मेरी माँ की कमी कौन पूरा करेगा (इतना कहते हुए रजनी की आंखें नम हो गयी) और वो आगे बोली- बाप बेटी का प्रेम तो हमेशा निष्छल रहता है इसमें ये कहाँ से आ गया बाबू की कोई क्या सोचेगा, जो कोई जो सोचेगा सोचने दो, कोई भी चीज़ गलत तब होती है जब जबरदस्ती हो, जब मुझे आपकी बाहों में सुख मिलता है तो आप मुझे इससे वंचित न करो।

उदयराज को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसकी मन की ग्लानि भी छूमंतर हो गयी उसने अपनी बेटी को अपनी बाहों में भर लिया, अंधेरा थोड़ा बढ़ गया था अब, रजनी अपने बाबू की बाहों में समा गई और अपनी बाहें उनकी नंगी पीठ पर लपेट दी और लपेटते ही न जाने क्यों उसकी हल्की सी सिसकी निकल गयी, ये उदयराज ने बखूबी महसूस किया फिर उदयराज उसके आंसुओं को पोछता हुआ बोला- तूने मेरी मन की उलझन दूर कर दी बेटी, मैं तुझे कभी अपने से दूर नही जाने दूंगा क्योंकि मैं भी तेरे बिना नही रह सकता, मैं भी क्या क्या सोचने लगता हूँ।

रजनी बोली- हाँ वही तो कह रही हूं सोचते बहुत हो आप, अब चलो नहा लो जल्दी।


इतना कहते ही वो फिर कुछ ध्यान आते ही चौंकी और बोली- हे भगवान मेरी कड़ाही, वो तो चूल्हे पर लाल हो गयी होगी। फिर वो अपने को उदयराज की बाहों से छुड़ा कर इतना कहते हुए भागी, उदयराज नहाते हुए अपनी बेटी को देखने लगा, भागते वक्त उसके चौड़े नितम्ब अनायास ही ध्यान खींच रहे थे, वह एक टक लगा के जब तक वो घर में चली नही गयी उसके भरपूर गुदाज बदन को देखता रहा, जाने क्यों नज़रें हटा नही पाया और इस बार उसे न जाने क्यों ग्लानि भी नही हुई। एक अजीब सी तरंग उसके बदन में दौड़ गयी, ये सब क्या था वो समझ नही पा रहा था।

नहा कर वो घर में आया और कपड़े पहने फिर मंदिर में दिया जलाने गया तो देखा की दिया पहले से ही जल रहा था, समझ गया कि रजनी ने ही जलाया होगा, मन खुश हो गया उसका ये सोचकर कि मेरे घर की लक्ष्मी आ गयी है अब, भले ही बेटी के रूप क्यों न हो, और पूजा करके बाहर आ गया, बाहर पड़ी खाट पर लेट गया, मस्त हवा चलने लगी और उसकी आंख लग गयी

तब तक काकी बाग़ से वापिस आ गयी और बच्ची को पालने में लिटा दिया और घर में गयी ये देखने की खाना बना या नही।
वातावरण बिल्कुल वासना मय बना दिया।
 
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