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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Nasn

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Update-7

उदयराज बैलों को चारा डाल कर आया और आते ही काकी से पूछा- रजनी कहाँ गयी?

काकी- वो रात का खाना बनाने अंदर रसोई में गयी है।


(उदयराज भी सुखिया को काकी ही बुलाता था)

उदयराज- काकी आज गर्मी कितनी है न देखो मैं कितना पसीना-पसीना हो गया, बैलों को चारा डालते-डालते, ये नया बैल जो पिछले महीने खरीदा है न, इसके बड़े नखरे हैं सूखा भूसा तो खाता ही नही है बिल्कुल, जब तक उसमे हरी घास काटकर न मिलाओ, दूसरा वाला पुराना बैल बहुत सीधा है जो दे दो खा लेता है।
इसी नए के चक्कर में रोज घास को मशीन में डालकर काटना पड़ता है और इतना काम बढ़ जाता है। सोच रहा हूँ कुएं पे जा के नहा लूँ।


ऐसा कहते हुए उसने अपनी बनियान निकल दी और खाट पर बैठ गया, काकी जो पंखा बच्ची को कर रही थी वो अब उदयराज को करने लगी स्नेहपूर्वक, और उसके इस उम्र में भी गठीले शरीर को देखते हुए बोली- हां तो जा के नहा ले न कुएँ के ठंडे ठंडे पानी से राहत मिल जाएगी, रस्सी कुएँ पर ही है बाल्टी लेता जा घर के अंदर से, साबुन भी ले लेना कुएं पर होगा नही, रजनी ने दोपहर को हटा दिया था वहां से।

उदयराज खाट से उठा और अंगौछा कन्धे पे रख के घर के अंदर जाने लगा।

(उदयराज के घर का मुख्य दरवाज़ा पुर्व की तरफ था, घर पक्का बना हुआ था, घर में एक आंगन और चारों तरफ चार कमरे थे उन चार कमरों के पीछे एक छोटी सी कोठरी भी थी उस कोठरी के ऊपर घर के पीछे लगे बरगद के पेड़ की ठंडी छाया आती थी जिससे वो कोठरी गर्मियों के मौसम में दिन में भी ठंढी रहती थी, पहले जो औरतें घर में रहा करती थी वो अक्सर कोठरी में ही खाट बिछा के वही लेटती थी। अब तो खैर घर में रजनी और काकी ही थे। घर के मुख्य दरवाजे और आंगन के बीच एक बरामदा था, उन चार कमरों में जो दक्षिण की तरफ कमरा था वो रसोई थी। उसके ठीक सामने जो कमरा था उसके बगल में बाथरूम था और बाथरूम के सामने एक चौकी थी जिसपर पानी से भरी बाल्टियां या खाली बाल्टियां भी रखी रहती थी।

घर के आगे बड़ा सा द्वार था, द्वार पर कई तरह के पेड़ थे जैसे नीम, महुआ, अमरूद, सफेदा, आम, गूलर।

घर के ठीक सामने करीब 100 मीटर दूर कूआं था जो सफेद रंग से पुता हुआ चारों तरफ से क्यारियों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर लगता था, उन क्यारियों में अनार के पेड़ लगे हुए थे जिनपर फूल आ गए थे इसके अलावा वहां कई प्रकार की सब्जियां और फूल भी लगाए हुए थे जो कुएं के आने वाले पानी से हमेशा हरे भरे रहते थे, कुएं से आगे गांव का आम रास्ता था जिसपर इक्के दुक्के लोग आते जाते रहते थे और जब उन्हें उदयराज इधर उधर दिख जाता था तो वो "जय राम जी की मुखिया" कहना नही भूलते थे।

घर के उत्तर की तरफ पशुओं का दालान था और उसके विपरीत दिशा में आम का बाग था)

उदयराज ऊपर से निवस्त्र था बस धोती पहन रखी थी, घर में जाते हुए जब वो बरामदा पार करके आंगन तक पहुंचा तो सामने का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया।

सामने रजनी पीढ़े पर बैठ के सिलबट्टे पर दाल पीस रही थी, पीसने की वजह से वो काफी झुकी हुई थी जिससे उसकी बड़ी बड़ी गुदाज चुचियाँ साफ दिख रही थी, चुचियों के बीच की घाटी इतनी मादक थी कि कुछ सेकेंड के लिए उदयराज देखता रह गया, दाल पीसने की वजह से वो बार बार आगे पीछे हो रही थी जिससे मोटी मोटी चूचियाँ चोली में हिल रही थी मानो अभी उछल कर बाहर आ जाएंगी। रजनी ने गर्मी की वजह से चुन्नी बगल में रख दी थी।

उदयराज यह देखकर थोड़ा झेंप गया पर एक ही पल में उसके अंदर तक रोमांच दौड़ गया, उसे अपने मन में अपनी ही सगी बेटी की सुडौल चुचियाँ देखते हुए ग्लानि हुई और वह बनावटी खांसी करता हुआ आंगन में आ गया।

उसे देखकर रजनी भी अपनी अवस्था देखकर थोड़ा झिझक गयी और चुन्नी उठाकर चुचियों को ढकते हुए अपने बाबू के बलिष्ट ऊपरी नंगे बदन को देखकर थोड़ी शरमा सी गयी, जब से रजनी मायके आयी थी आज पहली बार उसने अपने बाबू को इस तरह नंगा देखा था, इससे पहले उसने अपने बाबू को इस तरह निवस्त्र कई साल पहले देखा था पर इस समय वो पहले से ज्यादा मजबूत और बलिष्ट दिख रहे थे। अक्सर वो बनियान ही पहने रहते थे पर आज एकदम से हल्के बालों से भरी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाओं को देखकर वो भी अंदर तक न जाने क्यों सिरह सी गयी।

फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- क्या हुआ बाबू, कुछ चाहिए क्या?

उदयराज- हां बेटी, वो बाल्टी लेने आया था, काफी गर्मी है न तो मन किया कि कुएं पर जा के नहा लूं।

रजनी- हाँ बाबू क्यों नही, साबुन भी लेते जाना, वहीं रखा है, और तौलिया मैं पहुँचा दूंगी आप जा के नहा लो।

उदयराज- ठीक है मेरी रानी बिटिया।


इतना कहकर वो बाल्टी उठाकर जाने लगा फिर न जाने क्यों वो रुका और पलटकर देखा तो रजनी उसे ही देख रही थी, नजरें मिलते ही रजनी मुस्कुरा दी और वो भी मुस्कुराते हुए बाहर कुएं पे चला गया।
बहुत ही ज़बरदस्त अपडेट था.....
बाप बेटी की लव स्टोरी .....
धीरे धीरे आगे बढ़ रही है....…
 

Arun Rajput

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very nice update
 

Cooldude1986

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badhiya update sir jee... kahani aache ja rahe hai... agle update ke intzaar me
 

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Update-3

रजनी के ससुराल वाले इतने नेक और भले इंसान थे कि जब उसके भाई की मौत हुई तो उन्होंने रजनी को अपने मायके में ही रहने को बोल दिया था ताकि रजनी के पिता को कोई दिक्कत या परेशानी न हो, उनको एक सहारे की जरूरत थी, और बाप को एक बेटी से अच्छा सहारा कौन दे सकता है, आप लोग तो जानते ही हैं कि बेटियां बाप की लाडली होती है। बेटियां बाप से ज्यादा गहराई से जुड़ी होती है अक्सर बेटे के मुकाबले।

बेटे अमन की मौत के बाद उदयराज बहुत अकेला हो गया था, उनको एक सहारे की जरूरत थी इसलिए रजनी के ससुराल वालों ने रजनी को इतनी छूट तक दे दी कि वो चाहे तो उम्र भर अपने मायके में रहकर अपने पिता की देखभाल करे।

रजनी के ससुराल में भी कम ही लोग थे, उसके सास-ससुर, (रजनी के ससुर का नाम बलराज था), देवर देवरानी और उनका एक बेटा (जो बड़ी ही मुश्किल से कई मन्नतों के बाद पैदा हुआ था)।

जब रजनी के भाई की मृत्यु हुई और उसके मायके में ससुराल में हर जगह गमहीन माहौल था, और उसके पिता उस वक्त बिल्कुल अकेले रह गए थे तो एक दिन उसके ससुर ने घर के आंगन में शाम को जब सब लोग बैठे थे, रजनी को बुलाकर ये बात कह दी-

बलराज- बहू, बड़ी बहू जरा इधर आना बेटी, तुमसे कुछ बात कहनी है।

(कुछ देर इंतजार करने के बाद भी जब बहू नही आई तो उन्होंने बगल में बैठी अपनी पत्नी से कहा)

बलराज- लगता है बहू ने सुना नही, जरा तुम जाकर आवाज लगा देना, किसी काम में व्यस्त है क्या शायद?

बलराज की पत्नी- हां लगता तो है, घर के पीछे की तरफ जानवरों को चारा तो नही डाल रही, रुको मैं बुला कर लाती हूं।


फिर रजनी की सासु उसे बुला कर लायी और बलराज ने सभी के सामने उससे ये कहा कि बेटी देखो तुम्हारे पिता मेरे समधी होने के साथ साथ एक परम मित्र भी हैं, तो मेरा ये फर्ज बनता है कि मुसीबत की घड़ी में मैं उनके काम आऊं,अब जब तुम्हारा भाई भी इस दुनियां में नही है तो वो बहुत अकेले पड़ गए हैं, उन्हें एक सहारे की बहुत जरूरत है, ये तो तुम जानती ही हो।
उन्होंने आगे कहा- देखो बेटी कोई भी पिता या माँ कभी भी अपनी बेटी के ससुराल में रहकर जीवन नही बिताना चाहेगा और न ही बिताता है वार्ना मैं उनको यहीं बुला लेता।


(रजनी सिर नीचे करके चुपचाप सुन रही थी, बगल में उसके देवर देवरानी भी बैठे थे, बस उसका पति ही वहां नही था, वो कहाँ था अभी थोड़ी देर में बताऊंगा)

बलराज आगे बोला- तो मेरी प्रिय बड़ी बहू मैने और तुम्हारी सास ने यहां तक कि तुम्हारे देवर देवरानी ने भी यही सोचा है कि अगर तुम चाहो तो उम्र भर अपने मायके में रहकर अपने पिता की सेवा कर सकती हो और उनका ख्याल रख सकती हो, क्योंकि हम लोग उनका दर्द बहुत अच्छे से महसूस कर रहे है और तुम भी कर ही रही होगी, आखिर बेटी हो तुम उनकी।

यह तुम्हारी इच्छा पर निर्भर करता है तुम यहाँ रहना चाहो तो यहां रहो और अपने पिता जी के पास रहना चाहो तो वहां रह सकती हो उम्र भर। लेकिन ऐसा अपने मन में कभी गलती से भी मत सोचना की यहां की धन दौलत, जमीन जायदाद तुम्हे नही मिलेगा, जो हिस्सा तुम्हारा है वो तुम्हारा ही है तुम चाहे यहां रहो या न रहो, क्योंकि गलत तो कभी इस गांव में सदियों से नही हुआ और आगे भी नही होगा शायद, बेटी शायद शब्द मैंने इश्लिये लगाया क्योंकि भविष्य का किसी को नही पता, पर तुम्हारे साथ कभी गलत नही होगा जब तक मैं जिंदा हूं।

अब तुम्हारे पति को ही देख लो हमे क्या पता था कि ये नालायक निकलेगा, जिसको अपने परिवार की कोई फिक्र नही, अपनी पत्नी की कोई फिक्र नही, वो कहाँ है, कब आएगा, सही सलामत है भी या नही कुछ नही पता, उसकी नालायकी और बेफिक्री के कारण ही मैंने जमीन जायदाद का जो तुम्हारे हिस्से का है वो पहले ही तुम्हारे नाम कर दिया है, मुझे उस पर विश्वास नही, उसको मैं अपना बेटा नही मानता, जब उसने मेरी फूल जैसी बहू को, हम सबको इतना दुख दिया है, तो मैं भी उसे अब अपना बेटा नही मानता। तुम खुद ही देखो पिछले 8 9 महीने से बिना किसी को कुछ बताये कहाँ चला गया पता नही, कुछ सूत्रों से सुनने में मिला कि शहर भाग गया है।




(इतना सुनते ही रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे, वो घूंघट किये हुए थी, वो अपने आपको संभाल न सकी और जब ये सुना कि उसका पति शहर भाग गया तो आंसू बह निकले, हालांकि वो बहुत हंसमुख स्वभाव की थी, धैर्यवान थी पर ऐसी खबर सुनके इंसान रो ही पड़ेगा न)

उसकी सास ने उठकर उसे गले से लगा लिया और बोली- न बेटी न, रोना नही मेरी बेटी, और उसके सिर को सहला सहला कर चुप कराने लगी

बलराज- बेटी तू फिक्र मत कर उसको उसके किये की सजा तो ईश्वर देगा ही, ये मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा, तू चिंता मत कर, बस इस वक्त जो पहाड़ हम सबके सिर पे टूटा है उससे संभालना है। यह मेरा घर है और इस घर में जब तक मैं जिंदा हूँ मेरी ही चलेगी, बेटी तू पूरी तरह आजाद है अपनी मनमर्जी की जिंदगी जीने के लिए, तेरे ऊपर कोई बंधन नही है तू चाहे जहां रह सब तेरा ही है।

मैं अपने मित्र उदयराज से बात कर लेता हूँ कि तू अब उसके साथ ही मायके में रहेगी, उनकी सेवा करेगी, देखभाल करेगी, नही मानेंगे तो मैं मना लूंगा सब समझा के, क्योंकि यहां तो तेरी सास है, देवरानी है देवर है, उनके पास कौन है कोई नही, तुझे उनके पास होना चाहिए। मैं बात करता हूँ उनसे पर तु कुछ बोल तो सही बस रोये जा रही है, अपनी मन की बात तो बता बेटी।

इतना सुनते ही रजनी रोते हुए अपने ससुर के पैरों में पड़ गयी और बोली- मैं धन्य हूं जो आप जैसे पिता समान ससुर मुझे मिले, जिन्होंने मुझे इतनी छूट दे दी कि मैं उम्र भर भी अपने मायके में अपने बाबू जी के साथ रहूं तो भी उन्हें कोई परेशानी नही, मैं धन्य हूँ पिताजी।

रजनी ने आगे बोला- कौन बेटी नही चाहेगी की वो अपने बाबूजी के साथ रहे बस मुझे यही चिंता होती थी कि आप लोगों की सेवा का फल मुझे नही मिल पायेगा।

बलराज- नही बेटी ऐसा नही है इतने दिन तूने हमारी सेवा तो कर ली न अब वहां उनको तेरी जरूरत है, हम धन्य है तेरी सेवा से, और तेरी जैसी बहू किसी को सौभाग्य से ही मिलती है, बस ये मेरा बेटा ही नालायक निकला।


(इतने में रजनी की देवरानी बोली)

रजनी की देवरानी- दीदी आप फिक्र मत कीजिये हम सब है यहाँ, संभाल लेंगे, कोई परेशानी नही होगी, आप वहां देखिए और संभालिये।

बलराज- ठीक है बेटी मैं कल ही उदयराज से बात कर लेता हूँ


(और फिर रजनी की सास उसकी देवरानी भावुक होकर एक दूसरे से लिपटकर रोने लगी, और काफी देर बाद जाकर एक दूसरे को सांत्वना देकर चुप हुई, रजनी के ससुर और देवर भी भावुक होकर वहां से उठकर बाहर चले गए)

(अगले दिन बलराज ने उदयराज से अपने मन की बात कही, काफी न नुकुर के बाद उसने उदयराज को मना लिया और रजनी उसके अगले ही दिन अपनी बेटी के लेकर अपने मायके अपने बाबूजी के पास आ गयी उनके साथ रहने, उनकी सेवा करने)

(रजनी ने इस वक्त अपने पति के बारे में क्या सोचा, की वह उनके बगैर कैसे रहेगी और वो आ गया तो क्या होगा, रजनी ने अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में अपने पिता के साथ रहने का निर्णय लेने में देरी क्यों नही की, और रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में अगले अपडेट में)
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Update-5

(रजनी घर के अंदर से एक लोटा पानी साथ में गुड़ लेकर बाहर आई)

रजनी- लो बाबू जी पानी।

(उदयराज खाट पर लेटा हुआ था और अंगौछा मुँह पर डाल लिया था)

उदयराज - (खाट से उठते हुए) हाँ बिटिया ला, अरे गुड़ क्यों ले आयी, ऐसे ही पानी दे देती।

रजनी- ऐसे भला क्यों दे देती पानी अपने बाबू को, खाली पानी नही देते पीने को।


(रजनी खाट पर अपने बाबू जी के बगल में बैठते हुए बोली, उसने आज लाल रंग का लहँगा चोली पहना हुआ था, जिसमे वो बहुत खुबसूरत लग रही थी)

उदयराज- ये गुड़ कुछ नया सा लग रहा है, इतना मीठा गुड़ मैंने आजतक नही खाया।

रजनी- बाबू जी ये आपकी बिटिया के हाँथ का गुड़ है जो उसने अपनी ससुराल में बनाया था, और आते वक्त अपने बाबू जी के लिए ले आयी हूं, ये एक नई किस्म के गन्ने से बना गुड़ है। जिसको मैंने बनाया है, ताकि आपके जीवन में मिठास भर सकूँ (रजनी ने बड़े ही चहकते हुए मुस्कुराकर कहा)

उदयराज- बेटी मेरे जीवन की मिठास तो तू है, तेरे आने से तो वैसे ही अब मेरे जीवन में बाहार आ गयी है। मैं बहुत अकेला हो गया था पर अब तेरा साथ पा कर मैं बहुत खुश हूं, और यह गुड़ तो वाकई में तेरा मेरे प्रति प्रेम की मिठास का अहसास करा रहा है।

रजनी- बाबू अब मैं आ गयी हूं न तो अब आप अकेले बिल्कुल नही है, और मैं अब आपके जीवन में ख़ुशियों के रंग भर दूंगी। ऐसा कहते हुए रजनी अपने बाबू जी के गले से लग गयी।

उदयराज- ओह्ह! मेरी बेटी, मेरी लाडली।


(ऐसा कहते हुए उदयराज ने भी रजनी को निष्छल भाव से कस के अपनी बाहों में भर लिया)

(परंतु रजनी की जब मोटी मोटी चूचियाँ उदयराज के सीने से टकराई और दब गई तो उदयराज थोड़ा झिझका, परंतु रजनी अपने बाबू से लिपटी रही, उसके मादक, गदराए बदन ने उदयराज को थोड़ा विचलित सा तो कर दिया पर तुरंत ही उसने मन में आये इस गंदे भाव को झिड़क दिया)

उदयराज ने जब महसूस किया कि रजनी हल्का हल्का सुबुकने सी लगी है तो उसने उसको अपने से थोड़ा अलग करते हुए उसके सुंदर और गोरे गोर चहरे को अपने हांथों में लेकर बोला-

उदयराज- अरे तू रो रही है, क्यों भला, अब मेरे पास आ गयी है फिर भी रो रही है, अभी तो बोल रही थी कि मेरी जिंदगी खुशियों से भर देगी मेरी बिटिया, क्या ऐसे रो रो के भरेगी क्या? ह्म्म्म

रजनी- बाबू ये तो खुशी के आंसू है, सच तो ये है कि मैं आपके बिना नही रह सकती अब, मैं आपको बचपन से ही बोलती आ रही थी न कि मुझे शादी नही करनी, मुझे तो बस आपके साथ रहना है, और आज ईश्वर ने मेरी सुन ली, इसलिए ये आंसू निकल आये।

उदयराज- बेटी मैं भी तेरे साथ ही रहना चाहता था, कौन पिता भला अपनी बेटी के साथ नही रहना चाहेगा पर इस दुनियां के, समाज के नियम कानून तो नही बदल सकते न, मेरा बस चलता तो मैं तेरे जीवन में किसी तरह का कोई दुख आने ही न देता।

रजनी- मैं जानती हूं बाबू, आप मुझे कितना स्नेह करते हैं। पर अब हम कभी दूर नही रहेंगे चाहे जो भी हो।

उदयराज- हां बिल्कुल मेरी बेटी।


(दोनों घर के सामने द्वार पर खुले आसमान के नीचे एक दूसरे को बाहों में लिए खाट पे बैठे थे।
गांव का कोई भी दूसरा इंसान कभी भी इस तरह अपनी जवान गदराई सगी बेटी को बाहों में नही लेता था पर उदयराज और रजनी की बचपन की ये आदत गयी नही थी। जो जवानी में भी बरकार थी। हालांकि कभी भी उनके मन में कभी कोई पाप नही था। ये बस बाप बेटी का एक निश्छल प्रेम था)

तभी सुखिया काकी सामने से आती हुई बोली-

अरे आज बहुत प्यार आ रहा है अपने बाबू पर hmmm

रजनी कुछ झेंपती हुई उदयराज से झट से अलग हो गयी और बगल में बैठते हुए बोली- क्यों न आये काकी कितने दिनों बाद अपने बाबू जी के पास आई हूं।

काकी- अरे बाबा तो करले प्यार पगली मैंने कब मना किया, तुझे तो पता ही है मेरी मजाक करने की आदत है, मैं तो ये कहने आयी थी कि तेरी गुड़िया जो अंदर कमरे में सो रही है वो अब उठ गई है जा के उसको दूध पिला दे, जैसे तुझे अपने बाबू की जरूरत है वैसे ही उसे तेरी।


इतना कहकर काकी हंसने लगी और रजनी भागी भागी घर में गयी और अपने 2 साल की बेटी जो रो रही थी उसको दूध पिलाते हुए बाहर आने लगी।

उदयराज थोड़ी देर काकी से इस बार अगली फसल कब तक बोई जाए इस पर बातचीत करने लगा फिर उठकर उसने जो बोझ फेंका था उसको उठाकर एक साइड में दालान में रखा और बैलों को चारा डालने चला गया।
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Update-6

रजनी अपनी बेटी को दूध पिलाती हुई बाहर आ गई और खाट पर बैठ गयी। काकी वहीं नीचे खाट पर बगल में पटरे पर बैठी थी।

रजनी बोली- काकी आज क्या बनाऊं खाने में शाम के 6 तो बज गए उसकी भी तैयारी करनी है न।

काकी- अरे बेटी कुछ भी बना ले जो तेरा मन कहे।


रजनी की बायीं चूची में दूध खत्म हो गया तो उसने अपनी बेटी को दायीं चूची का दूध पिलाने के लिए बड़ी लापरवाही से दूसरी तरह गुमाया और जिस चूची का दूध खत्म हो गया था उसको चोली के अंदर कर लिया फिर दायीं चूची को काकी के सामने ही बड़ी लापरवाही से चोली को ऊपर सरका के बाहर निकाला, चूची बड़ी और कसी होने की वजह से उछलकर बाहर उजागर हो गयी, उसकी चूची काफी बड़ी, मोटी और गोरी गोरी थी, इतनी गोरी चूची पर बड़ा सा गुलाबी निप्पल किसी को भी पागल कर देता, निप्पल बहुत मनमोहक था अलग ही कहर ढा रहा था, चूची उसकी इतनी सख्त और बड़ी थी कि वो रजनी के एक हाँथ में नही समा रही थी। दूध उतरने की वजह से उन दिनों रजनी की चूचियाँ काफी बड़ी, सख्त और गदराई सी हो गयी थी जो उसके सीने को अलग ही उभार देती थी।

रजनी ने हथेली में अपनी चूची लेकर आगे वाली तर्जनी और मध्यमा उंगली को गुलाबी- गुलाबी निप्पल के दोनों तरफ रखा और निप्पल को बेटी के मुंह में डाल दिया, उंगली से निप्पल के आस पास पकड़ने और दबाव बनने पर निप्पल से एक-दो बूंद दूध की टपक गयी।

यह सब काम वह बिना काकी की तरफ देखे कर रही थी, उसे आभास भी नही था कि काकी उसको देख रही है। वैसे भी वहां कोई पुरुष तो था नही, तो वो बेधकड होके ये कर रही थी।

एकाएक उसने काकी की तरफ देखा जो उसे ही देख रही थी।

रजनी- क्या हुआ काकी (और मुस्कुरा दी)

काकी भी मुस्कुराते हुए- कुछ नही अपनी बेटी का मनमोहक यौवन देखकर अपने दिन याद आ गए, बहुत खूबसूरत और मादक हैं ये।

रजनी- धत्त....काकी आप भी न । (रजनी थोड़ी झेंप गयी)

काकी- सच में तेरी चूची बहुत खूबसूरत है।

(काकी के मुँह से "चूची" शब्द सुनकर रजनी गनगना सी गयी)

रजनी- काकी...अब बस भी करो। अपनी ही बेटी को छेडोगी अब आप। वो तो यहां पर बस मैं और आप ही थे तो मैं थोड़ा बेपरवाह सी हो गयी।

काकी- अरे तो क्या हुआ, तेरी काकी हूं मैं, तेरी माँ समान। पर सुन मेरी बेटी कभी भी खुले में या खुले आसमान के नीचे बच्चे को दूध पिलाना हो तो हमेशा चूची को ढककर ही पिलाया कर, चूची को कभी भी बच्चे को दूध पिलाते वक्त ऐसे उजागर नही करते।

(बार बार काकी के मुंह से "चूची" शब्द सुनकर उसे सिरहन सी हुई)

रजनी- पर क्यों काकी।

काकी- क्यूंकि इससे दूध में नज़र लग सकती है और बच्चे की तबियत पर असर पड़ सकता है।

रजनी- हां काकी ये बात तो आपने बिल्कुल सही कही, अब मैं आगे से ख्याल रखूंगी।


और फिर काकी उठकर अंदर से रजनी की चुनरी ले आयी जो रजनी अपनी बेटी को अंदर से लाते वक्त वहीं भूल आयी थी, और उसे रजनी ने अपने ऊपर डालकर ढक लिया।

काकी- पर बिटिया जो भी हो दामाद जी को तो जन्नत का मजा मिलता होगा (काकी ने फिर छेड़ते हुए बोला)

रजनी- मजा तो तब मिलेगा न जब उन्हें इसकी कद्र होती। आपको तो मैंने सबकुछ बता ही रखा है। (ये कहते हुए वो थोड़ा उदास हो गयी) अब मुझे उनसे कोई मतलब नही है। जब उन्हें नही तो मुझे भी नही उनकी परवाह।

काकी- ओह्ह मेरी बेटी मुझे माफ़ कर देना, मुझे ध्यान ही नही रहा, उस नासमझ की बुद्धि में न जाने क्या घुस गया है जो इतनी सुंदर, मदमस्त पत्नी की कोई परवाह नही। तूने सही किया बेटी। परंतु तू दुखी मत हो बेटी समय हमेशा एक जैसा नही रहता।

हम स्त्रियों की किस्मत में तड़पना ही लिखा है। अब मुझे ही देख तेरे काका के जाने के बाद मैंने कैसे अपनी जिंदगी काटी है मुझे ही पता है।

रजनी- हां काकी वो तो मैं जानती ही हूँ। पर अब हम साथ मिलकर रहेंगे। इसलिए ही तो मैं यहां आ गयी हूँ। अच्छा काकी मैंने जो पूछा वो तो तुमने बताया नही।


(रजनी ने बात पलटते हुए कहा, दरअसल वो काकी से अभी इस टॉपिक पर बात करने से शरमा रही थी क्योंकि वो जानती थी कि काकी मजाकिया स्वभाव की है और धीरे धीरे वो गंदी बातें छेड़ देंगी, तो वो भी उसमें रम जाएगी फिर खाना बनाने में देरी होगी, हालांकि उसे भी ये सब बहुत पसंद था पर अभी वो थोड़ा झिझक रही थी)

काकी- क्या पूछा तूने मैं तो भूल ही गयी।

रजनी- अरे बड़ी भुलक्कड़ हो गयी है मेरी काकी भी (रजनी ने दूध पी चुकी बेटी को खाट पे लिटाते हुए कहा), मैन पूछा था न कि खाने में क्या बनाऊं?

काकी- अच्छा हां, तो तू बना ले न जो तुझे पसंद हो।

रजनी- जब से आई हूं 3 4 दिन से मैं अपनी पसंद का ही बना रही हूँ।

काकी- अच्छा तो एक काम कर आज अपने बाबू जी के पसंद का कुछ बना और उन्हें बताना नही, खुश हो जाएंगे।

रजनी- हां काकी ये सही है, उनको दाल पकवान पसंद है बहुत तो मैं वही बनाती हूँ।


इतना कहकर रजनी काकी को खाट पर लेटी बेटी को पंखा करने को बोलकर रसोई में रात का खाना बनाने चली जाती है। काकी बोलती है कि मैं भी आती हूं मदद करने तो वो उनको मना कर देती है और फिर काकी बच्ची को पंखा करने लगती है।
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उदयराज बैलों को चारा डाल कर आया और आते ही काकी से पूछा- रजनी कहाँ गयी?

काकी- वो रात का खाना बनाने अंदर रसोई में गयी है।


(उदयराज भी सुखिया को काकी ही बुलाता था)

उदयराज- काकी आज गर्मी कितनी है न देखो मैं कितना पसीना-पसीना हो गया, बैलों को चारा डालते-डालते, ये नया बैल जो पिछले महीने खरीदा है न, इसके बड़े नखरे हैं सूखा भूसा तो खाता ही नही है बिल्कुल, जब तक उसमे हरी घास काटकर न मिलाओ, दूसरा वाला पुराना बैल बहुत सीधा है जो दे दो खा लेता है।
इसी नए के चक्कर में रोज घास को मशीन में डालकर काटना पड़ता है और इतना काम बढ़ जाता है। सोच रहा हूँ कुएं पे जा के नहा लूँ।


ऐसा कहते हुए उसने अपनी बनियान निकल दी और खाट पर बैठ गया, काकी जो पंखा बच्ची को कर रही थी वो अब उदयराज को करने लगी स्नेहपूर्वक, और उसके इस उम्र में भी गठीले शरीर को देखते हुए बोली- हां तो जा के नहा ले न कुएँ के ठंडे ठंडे पानी से राहत मिल जाएगी, रस्सी कुएँ पर ही है बाल्टी लेता जा घर के अंदर से, साबुन भी ले लेना कुएं पर होगा नही, रजनी ने दोपहर को हटा दिया था वहां से।

उदयराज खाट से उठा और अंगौछा कन्धे पे रख के घर के अंदर जाने लगा।

(उदयराज के घर का मुख्य दरवाज़ा पुर्व की तरफ था, घर पक्का बना हुआ था, घर में एक आंगन और चारों तरफ चार कमरे थे उन चार कमरों के पीछे एक छोटी सी कोठरी भी थी उस कोठरी के ऊपर घर के पीछे लगे बरगद के पेड़ की ठंडी छाया आती थी जिससे वो कोठरी गर्मियों के मौसम में दिन में भी ठंढी रहती थी, पहले जो औरतें घर में रहा करती थी वो अक्सर कोठरी में ही खाट बिछा के वही लेटती थी। अब तो खैर घर में रजनी और काकी ही थे। घर के मुख्य दरवाजे और आंगन के बीच एक बरामदा था, उन चार कमरों में जो दक्षिण की तरफ कमरा था वो रसोई थी। उसके ठीक सामने जो कमरा था उसके बगल में बाथरूम था और बाथरूम के सामने एक चौकी थी जिसपर पानी से भरी बाल्टियां या खाली बाल्टियां भी रखी रहती थी।

घर के आगे बड़ा सा द्वार था, द्वार पर कई तरह के पेड़ थे जैसे नीम, महुआ, अमरूद, सफेदा, आम, गूलर।

घर के ठीक सामने करीब 100 मीटर दूर कूआं था जो सफेद रंग से पुता हुआ चारों तरफ से क्यारियों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर लगता था, उन क्यारियों में अनार के पेड़ लगे हुए थे जिनपर फूल आ गए थे इसके अलावा वहां कई प्रकार की सब्जियां और फूल भी लगाए हुए थे जो कुएं के आने वाले पानी से हमेशा हरे भरे रहते थे, कुएं से आगे गांव का आम रास्ता था जिसपर इक्के दुक्के लोग आते जाते रहते थे और जब उन्हें उदयराज इधर उधर दिख जाता था तो वो "जय राम जी की मुखिया" कहना नही भूलते थे।

घर के उत्तर की तरफ पशुओं का दालान था और उसके विपरीत दिशा में आम का बाग था)

उदयराज ऊपर से निवस्त्र था बस धोती पहन रखी थी, घर में जाते हुए जब वो बरामदा पार करके आंगन तक पहुंचा तो सामने का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया।

सामने रजनी पीढ़े पर बैठ के सिलबट्टे पर दाल पीस रही थी, पीसने की वजह से वो काफी झुकी हुई थी जिससे उसकी बड़ी बड़ी गुदाज चुचियाँ साफ दिख रही थी, चुचियों के बीच की घाटी इतनी मादक थी कि कुछ सेकेंड के लिए उदयराज देखता रह गया, दाल पीसने की वजह से वो बार बार आगे पीछे हो रही थी जिससे मोटी मोटी चूचियाँ चोली में हिल रही थी मानो अभी उछल कर बाहर आ जाएंगी। रजनी ने गर्मी की वजह से चुन्नी बगल में रख दी थी।

उदयराज यह देखकर थोड़ा झेंप गया पर एक ही पल में उसके अंदर तक रोमांच दौड़ गया, उसे अपने मन में अपनी ही सगी बेटी की सुडौल चुचियाँ देखते हुए ग्लानि हुई और वह बनावटी खांसी करता हुआ आंगन में आ गया।

उसे देखकर रजनी भी अपनी अवस्था देखकर थोड़ा झिझक गयी और चुन्नी उठाकर चुचियों को ढकते हुए अपने बाबू के बलिष्ट ऊपरी नंगे बदन को देखकर थोड़ी शरमा सी गयी, जब से रजनी मायके आयी थी आज पहली बार उसने अपने बाबू को इस तरह नंगा देखा था, इससे पहले उसने अपने बाबू को इस तरह निवस्त्र कई साल पहले देखा था पर इस समय वो पहले से ज्यादा मजबूत और बलिष्ट दिख रहे थे। अक्सर वो बनियान ही पहने रहते थे पर आज एकदम से हल्के बालों से भरी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाओं को देखकर वो भी अंदर तक न जाने क्यों सिरह सी गयी।

फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- क्या हुआ बाबू, कुछ चाहिए क्या?

उदयराज- हां बेटी, वो बाल्टी लेने आया था, काफी गर्मी है न तो मन किया कि कुएं पर जा के नहा लूं।

रजनी- हाँ बाबू क्यों नही, साबुन भी लेते जाना, वहीं रखा है, और तौलिया मैं पहुँचा दूंगी आप जा के नहा लो।

उदयराज- ठीक है मेरी रानी बिटिया।


इतना कहकर वो बाल्टी उठाकर जाने लगा फिर न जाने क्यों वो रुका और पलटकर देखा तो रजनी उसे ही देख रही थी, नजरें मिलते ही रजनी मुस्कुरा दी और वो भी मुस्कुराते हुए बाहर कुएं पे चला गया।
Nice update brother......?
keep writing....
keep posting......

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u.sir.name

Hate girls, except the one reading this.
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Jabardast story brother....aur apki lekhan shaili ati utamm hai khaskar apka hindi mein likhna...har chiz ko bda satikta se likhte ho....har chiz ka varnan pure sandharb mein karte ho aise hi likhte raho aur Humara manoranjan karte raho.....
 
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