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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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Update- 44

नीलम ने पलटकर अपने बाबू को देखा और फिर अपनी माँ की तरफ देखा फिर बोली- बाबू ठीक से पकड़कर उठाओ न, दम लगा के ऐसे तो मैं चढ़ ही नही पाऊंगी, उस डाल तक उठा दो बस वो पकड़ में आ जाये फिर तो मैं चढ़ जाउंगी।

बिरजू ने भी एक बार पलटकर नीलम की माँ को देखा, वो अपने काम में मस्त थी, बिरजू ने नीलम को बोला थोड़ा इधर आ इस तरफ से चढ़, बिरजू और नीलम पेड़ के तने के दायीं ओर आ गए और पेड़ के मोटे तने के पीछे छुप से गये, वहां से नीलम की माँ दिख नही रही थी, पेड़ से ओट हो गया था।

नीलम ने फिर कोशिश की, बिरजू ने जैसे ही कमर को हाँथ लगाया नीलम ने अपने बाबू का हाँथ खुद ही पकड़कर अपने विशाल चूतड़ पर रख दिया और बोली- बाबू कमर पर नही यहां हाँथ लगा के उठाना, और अपने बाबू को देखकर हंस दी फिर बोली- अब तो अम्मा भी नही दिख रही यहां से, अब मुझे सहारा दो अच्छे से।

बिरजू भी हंस दिया और बोला- ठीक है चल, जल्दी कर।

नीलम ने एक पैर पेड़ के तने पर रखा और दोनों हांथों से तने को पकड़ा, बिरजू ने जैसे ही अपना एक हाँथ नीलम की कमर पर लगाया और दूसरा हाँथ उसकी चौड़ी मांसल गांड पर लगाया, नीलम और बिरजू दोनों एक साथ सिरह उठे, क्या मस्त गुदाज गांड थी नीलम की, बिरजू बावला सा हो गया, बिरजू के हाँथ की उंगलियाँ मानो नीलम की गुदाज फूली हुई गांड में धंस सी गयी।

नीलम- ऊऊऊऊईईईईईई.....बाबू.....हाँ ऐसे ही उठाओ, जोर लगाओ, पकड़े रहना, बस वो डाली पकड़ लूं मैं।

नीलम ने थोड़ा ऊपर चढ़कर अपने हाँथ से उस डाली को पकड़ने की कोशिश की, वो डाली उसकी पहुंच से सिर्फ एक फुट ऊपर थी।

बिरजू तो मस्त हो चुका था अपनी सगी बेटी के मांसल बदन को छूकर और उसकी मदमस्त चौड़ी गांड को दबोचकर।

बिरजू- हाँ चढ़ बेटी, मैंने पकड़ा है नीचे से, गिरेगी नही।

ऐसा कहते हुए बिरजू ने अपना दूसरा हाँथ भी कमर से हटा कर नीलम के दूसरे चूतड़ पर रख दिया और अब दोनों हांथों से उसके चूतड़ के दोनों उभार थाम लिए, अपनी बेटी के मादक गरम गुदाज गांड की लज़्ज़त और नरमी का अहसास मिलते ही बिरजू के लंड में हलचल होने लगी। उसने एक पल के लिए आंखें बंद कर ली। नीलम भी सिरहते और शर्माते हुए डाली को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

बिरजू का मन कर रहा था कि अपना हाँथ अपनी बेटी की गांड की महकती दरार पर रख दे पर संकोच उसे रोक ले रहा था, तभी नीलम बोली- बाबू और जोर लगाओ न, और उठाओ मुझे, इसलिए बोलती हूँ दूध पिया करो ताकत रहेगी, पीते तो हो नही, उठाओ और जोर से मुझे। (नीलम ने double meaning में कहा)

बिरजू अपनी बेटी की बात का अर्थ समझ गया और बोला- दूध है ही कहाँ जो पियूँ बेटी, तुझे तो पता है गाय बूढ़ी हो गयी है अब कहाँ दूध होता है उसको।

नीलम- अच्छा, बहाना मत करो, जिसको दूध पीने की इच्छा होती है न वो कैसे न कैसे करके घर में या बाहर से दूध की व्यवस्था कर ही लेता है, गाय बूढ़ी हो गयी तो क्या हुआ उसकी जवान बछिया तो है न। (नीलम ने double meaning में खुला निमंत्रण सा दिया अपने बाबू को और ये बोलकर वो खुद सिरह गयी, शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया, हालांकि उसका चेहरा ऊपर की तरफ था)

(नीलम के घर में सच में एक गाय थी जो बूढ़ी हो चुकी थी और इत्तेफ़ाक़ से उसकी एक जवान बछिया भी थी पर अभी उसकी मैचिंग किसी बैल से नही हुई थी तो उसको कोई बच्चा नही हुआ था और जब बच्चा ही नही हुआ था तो उसको दूध कैसे होता, इसी गाय और बछिया को लेकर नीलम और बिरजू डबल मीनिंग में कामुक बातें करने लगे)

बिरजू- पर बछिया को दूध आता ही कहाँ है बेटी, जब तक उसको बच्चा नही होगा वो दूध नही देगी और बाहर का दूध मैं पियूँगा नही।

नीलम- सच, आप बाहर का दूध नही पियोगे।

बिरजू- नही, बिल्कुल नही।

नीलम- तब तो फिर बछिया को जल्दी बच्चा देना होगा, पर वो बेचारी अकेली तो बच्चा कर नही सकती न, अब तो किसी बैल को बुलाना होगा न बाबू।

(और इतना कहती हुई नीलम खिलखिलाकर अपने बाबू को नीचे की तरफ देखती हुई हंस दी, बिरजू भी नीलम की गुदाज गांड को अपने दोनों हांथों से पकड़े पकड़े हंस दिया, दोनों के चहरे और कान वासना की गर्माहट से लाल हो चुके थे, दोनों ने एक बार फिर पेड़ की ओट से झांककर नीलम की माँ को देखा तो वो बस घास ही पीटने में लगी थी)

बिरजू- हाँ अगर दूध पीना है तो उसको बैल के पास तो ले जाना ही पड़ेगा।

नीलम- इस पर हम बाद में बात करेंगे, क्योंकि आपकी सेहत की बात है और मैं अपने बाबू की सेहत से समझौता नही कर सकती।

बिरजू- कब बात करेगी मेरी बेटी इस विषय में।

नीलम- जब अम्मा नही रहेंगी तब, रात को....ठीक, रुक क्यों गए ऊपर को ठेलों न मुझे बाबू, लटकी हुई हूँ बीच में मैं, उठाओ जोर से।

जैसे ही बिरजू ने तेज जोर लगाने के लिए दम लगाया, न जाने कहाँ से एक लाल ततैया आ के बिरजू के हाँथ पर बैठ गयी और बिरजू ने हाँथ तेज से झटका, ततैया तो फुर्र से उड़ गई पर ऊपर को चढ़ने की कोशिश कर रही नीलम का बैलेंस बिगड़ा और वो सीधे नीचे सरक कर अपने बाबू पर इस तरह गिरी की उसकी भारी गुदाज गांड बिरजू के चहरे पर बैठ गयी, बिरजू की नाक सीधे नीलम की मक्ख़न जैसी मुलायम गांड की दरार में जा घुसी।

नीलम- अरेरेरेरेरे.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईई.......... बाबू........अरे मैं गिरी.....पकड़ो मुझे........बाबू........आआआआआआआआह हहहहहहहहहहहह......बाबू आपको लगी तो नही।

लगने की बात तो दूर, बिरजू ने ये सोचा भी नही था कि अचानक ऐसा हो जाएगा आज जीवन में पहली बार ये क्या हो रहा था, पर जो हो रहा था उसमें वो खो गया, आखिर इस लज़्ज़त को भला वो कैसे जाने देता जिसके लिए वो मन ही मन तरसता था। ये समझ लो की नीलम अपने बाबू के चेहरे पर अपनी भारी गांड रखकर बैठ चुकी थी, अपनी ही जवान सगी शादीशुदा बेटी की इतनी गुदाज गांड की दरार में एक दिन अचानक उसका मुँह घुस जाएगा ये बिरजू ने कभी सोचा नही था और न ही नीलम ये सोचा था।

नीलम की रसभरी चौड़ी गांड की मदहोश कर देने वाली भीनी भीनी महक को बिरजू सूंघने लगा, उसने जानबूझ के अपनी नाक को और नीलम की गांड की दरार में घुसेड़ दिया और अच्छे से अपनी सगी शादीशुदा बेटी की गांड की महक को जी भरकर सूंघने लगा, नीलम धीरे से शर्माते हुए अपनी मोटी गांड और मांसल जांघे आपस में भींचते हुए चिहुँक उठी, एकाएक अपने बाबू की नाक और मुँह अपनी गांड की गहराई और बूर के पास महसूस करके नीलम चौंक सी गयी और चिहुँकते, शर्माते हुए
ऊऊऊऊईईईईईई.......माँ की कामुक आवाज निकलते हुए सिरह उठी और कुछ देर तो वो खुद ही मदहोशी में अपने बाबू के मुँह पर अपनी गांड और बूर रखे बैठी सिसकती रही उसे काफी गुदगुदी भी हो रही थी।

फिर वो समझ गयी कि उसके बाबू दीवाने हो चुके है और उसकी गांड और बूर के छेद को कपड़ों के ऊपर से ही सूंघने में लगे हुए हैं, बिरजू ने दोनों हाँथों से नीलम की कमर को पकड़ रखा था, नीलम के दोनों पैर पेड़ के तने पर ही थे और हांथों से नीलम ने तने को घेरा बना के कस कर पकड़ा हुआ था, नीलम अब शर्म से गड़ी जा रही थी, अपनी गांड की मखमली दरार में और बूर पर उसे अपने बाबू की नाक और दहकते होंठ महसूस हुए तो वो फिर से चिहुँक उठी और उसके मुँह से भी जोर से मादक सिकारियाँ निकल गयी, ये सब इतनी जल्दी हुआ कि न तो नीलम ही संभाल पाई और न ही बिरजू और जो होना था वो हो चुका था, अपनी सगी बेटी की गांड और बूर की खुशबू और उसका अच्छे से अहसास करके बिरजू बेकाबू सा होने लगा।

नीलम ने समय की नजाकत को समझते हुए, शर्माते हुए, अपने को बेकाबू होने से संभालते हुए अपनी अम्मा की तरफ एक नज़र घुमा के पेड़ की ओट से देखा और अपने चौड़े चूतड़ और बूर की खुशबू लेकर मदहोश हो चुके अपने बाबू से उखड़ती सांसों से बोला- बाबू.....अम्मा देख लेगी...बस करो न...बाद में कर लेना ऐसा.....बस करो न बाबू।

बिरजू ने जब ये सुना तो उसकी बांछे खिल गयी और फिर उसने नीलम के दोनों चूतड़ पर अपने हाँथ लगा के ऊपर को उठा दिया और तेज चल रही सांसों को संभालते हुए बोला- बाद में कब बेटी? मुझे तेरे बदन से आ रही ये मदहोश कर देने वाली खुशबू लेना है, कितनी अच्छी है ये, खुशबू लेने देगी मुझे?

नीलम- रात को जब अम्मा चली जायेगी, तब कर लेना जो भी करना हो (नीलम ने ये बात बहुत उत्तेजना से धीरे से बोली)

बिरजू- सच, करने दोगी।

नीलम- हाँ बाबू, बिल्कुल, क्यों नही, पर अभी अम्मा देख सकती है जब वो चली जायेगी तब।

ये कहकर नीलम शर्म से लाल भी होती चली गयी।

बिरजू की तो ये सुनकर मानो लॉटरी लग गयी थी, दिल में हज़ारों घंटियाँ एक साथ बजने लगी, अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी के यौवन का रसपान उसे अपने ही घर में चुपके चुपके करने को मिल जाएगा, इस बात को सोचकर ही वो फूला नही समाया और जोश में आकर उसने नीलम को कस के उसकी दोनों गांड पकड़के इतनी तेज उठाया की नीलम ऊऊऊऊईईईईईई करते हुए ऊपर को उचकी और उसने अब वो डाल पकड़ ली, और फिर पैर ऊपर रखते हुए दूसरे हाँथ से दूसरी डाल पकड़ते हुए जामुन के पेड़ पर चढ़ गई। बिरजू वासना भारी नजरों से अपनी सगी बेटी के मादक गदराए बदन को पेड़ पर चढ़ते हुए निहारता रहा।

नीलम पेड़ पर डाल पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगी, पैर फैला कर जब नीलम ने आगे बढ़ने और ऊपर चढ़ने के लिए एक डाल पर रखा तो नीचे खड़े बिरजू को अब जाकर फैले घाघरे के अंदर वो दिखा जिसको देखने के लिए उसकी आंखें तरस रही थी, घाघरे के अंदर नीलम को गोरी गोरी टांगें जाँघों तक दिख गयी, बिरजू अवाक सा रह गया, कितनी मांसल जाँघे थी नीलम की, लार ही टपक पड़ी उसकी अपनी ही बेटी की जाँघे देखकर, तभी नीलम ने अपना दूसरा पैर उठा कर दूसरी डाल पर रखा और एक मोटी डाल पर वहीं बैठ गयी, घाघरा नीचे लटका हुआ था, दोनों गोरे गोरे पैर और जाँघों का निचला हिस्सा देखकर बिरजू सनसना गया, एकटक लगाए वो अपनी बेटी के घाघरे में ही झांकने की कोशिश कर रहा था, नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखा तो उसने पाया कि उसके बाबू की प्यासी नज़रें कहाँ है, समझते उसे देर नही लगी और वो मुस्कुरा दी, उसने एक जामुन तोड़ा और खींच कर अपने बाबू के ऊपर फेंका, जामुन सीधा बिरजू के सर पर लगा और फूटकर फैल गया, बिरजू की तन्द्रा भंग हुई तो नीलम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली- बाबू खाट को खींचकर मेरी सीध में लाओ ताकि मैं जामुन तोड़कर उसपर फेंकती रहूँ।

बिरजू को होश आया तो वो झेंप सा गया फिर जल्दी से उसने खाट को खींचकर नीलम की सीध में नीचे किया, और ऊपर देखने लगा, नीलम की नजरें अपने बाबू से मिली तो दोनों मुस्कुरा दिए, नीलम अभी डाली पर घाघरे को समेटकर जानबूझ कर बैठी थी वो जानती थी खड़े होने पर बाबू को घाघरे के अंदर का नज़ारा अच्छे से दिख जाएगा पर वो अपने बाबू को कुछ देर तड़पाकर उनकी हालत देखना चाहती थी, बिरजू भी बार बार सर उठाये अपनी बेटी के घाघरे के अंदर झांकने की कोशिश करता और जो भी थोड़ा बहुत दिख रहा था उसे ही बड़ी वासना भरी नजरों से देखता।

नीलम ने बिरजू से इशारे से पूछा कि अम्मा क्या कर रही है क्योंकि ऊपर पत्तियों की आड़ से नीचे दूर साफ दिख नही रहा था, बिरजू ने एक नजर नीलम की माँ पर डाली तो देखा कि वो घास को बड़ी टोकरी में भरकर बगल में कुएं पर ही बने बड़े से हौदे में धोने के लिए डाल रही थी, उसने नीलम को ग्रीन सिग्नल का इशारा किया, नीलम और बिरजू दोनों मुस्कुराने लगे।

नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखते हुए एक हाँथ से डाल पकड़े, डाल पर बैठे बैठे ही आस पास लगे जामुनों के गुच्छों में से अच्छे पके पके जामुन तोड़कर नीचे खाट पर फेंकना तो दूर पहले तोड़कर खुद ही खाने लगी, ऊपर जामुनों की भरमार थी, पूरा पेड़ जामुन से लदा हुआ था, आस पास पके पके बड़े बड़े काले काले जामुनों को देखकर नीलम से रहा न गया और वो खिलखिलाकर हंसते हुए अपने बाबू को नीचे देख देखकर रिझाकर जामुन तोड़कर खाने लगी।

अब बिरजू ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए अपनी कमर पर दोनों हाँथ रखकर खड़ा हो गया और बोला- तू वहां जामुन तोड़ने गयी है कि खाने गयी है।

नीलम- अरे बाबू यहां पर आ के कितना अच्छा लग रहा है देखो न कितने बड़े बड़े मीठे मीठे काले काले जामुन है ऊपर, नीचे से तो ये दिखते ही नही है, अच्छा लो आप मुँह खोलो, आ करो आपके मुँह में मैं यहीं से फेंककर मरती हूँ जामुन, देखना सीधे मुँह में जायेगा।

बिरजू- तेरी मां ने देख लिया न तो हम दोनों का जामुन निकाल देगी (बिरजू ने बनावटी गुस्से से कहा, पर वो चाहता था कि उसकी बेटी अच्छे से अपने मन की कर ले)

नीलम- अरे बाबू आप अम्मा से कितना डरते हो, उनको मैं देख लुंगी आप मुँह खोलो, खोलो तो सही, एक बार बाबू......बस एक बार....खोलो न मुँह अपना...जोर से आ करो, खूब जोर से, यहीं से डालूंगी आपके मुँह में सीधा जामुन।

बिरजू को भी नीलम की शरारते बहुत भा रही थी, उसने बड़ा सा मुँह खोला, नीलम ने एक अच्छा सा जामुन तोड़कर तीन चार बार अच्छे से निशाना लगाया और खींचकर अपने बाबू के मुँह की तरफ फेंका, जामुन सीधा बिरजू के गाल पर जा के पट्ट से लगा, फुट गया, जामुन का जमुनी रस गाल पर फैल गया।

बिरजू- लो! यही निशाना है तेरा, बस अब रहने दे तू, खिला चुकी तू जामुन अपने बाबू को (बिरजू ने double meaning में कहा)

नीलम- जामुन तो मैं खिला के रहूँगी अपने बाबू को, देख लेना, बाबू एक बार और, एक बार और न बाबू, देखो एक दो बार तो इधर उधर हो ही जाता है, फिर आ करो न, करो न बाबू, इस बार ठीक से फेंकूँगी, देखो मैं कितनी ऊपर भी तो हूँ, पर इस बार पक्का सीधा मुँह में डालूंगी।

बिरजू अपनी बेटी की इस बचपने और जिद पर निहाल होता जा रहा था आज नीलम उसे जवानी और बचपन हर तरह का प्यार दे रही थी, उसने फिर से आ किया, बड़ा सा मुँह खोला।

नीलम ने अपने आस पास सर उठा के एक अच्छा सा बड़ा सा जामुन देखा और तोड़कर पांच छः बार निशाना लगाया फिर खींच कर अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार जामुन सीधा बिरजू के मुँह में गप्प से चला गया और बिरजू उस रसभरे मीठे जामुन को खाने लगा।

नीलम- देखा बाबू! है न मेरा निशाना अच्छा, खिलाया न आपको जामुन, मीठा है न बहुत, बोलो ना।

बिरजू- नही तो ज्यादा मीठा तो नही था, बाकी निशाना तो तेरा बहुत अच्छा है। (बिरजू ने जानबूझकर ये बोला कि जामुन मीठा नही है वो देखना चाहता था कि नीलम अब क्या करेगी, क्योंकि वो सबसे ज्यादा पका हुआ अच्छा जामुन था)

नीलम- क्या बाबू, कितना अच्छा मीठा जामुन खिलाया आपको मैंने और आप कह रहे हैं कि मीठा ही नही था, तो और कैसे मीठा होगा? (तभी नीलम को ये बात click कर गयी, वो समझ गयी उनके बाबू ने ऐसा क्यों बोला), अच्छा रुको अब मैं तुम्हे सच में बहुत मीठा जामुन खिलाती हूँ, एक बार फिर से मुँह खोलो।

बिरजू ने फिर मुँह खोला- नीलम में एक और बड़ा सा जामुन तोड़ा और अपने बाबू को दिखाते हुए उसे थोड़ा सा काटकर जूठा किया, ये देखते ही बिरजू की आंखें खुशी से चमक गयी, वो अपनी बेटी की समझ को समझ गया, नीलम ने जामुन जूठा करके निशाना लगा के सीधा अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार भी जामुन सीधा मुँह में गया और वाकई में इस बार के जामुन में बेटी के होंठों की मदहोश कर देने वाली खुशबू थी, बिरजू उसे आंखें बंद करके नशे में खाने लगा तो ऊपर से नीलम उन्हें देखकर हंस दी, नीलम और बिरजू दोनों के ही बदन में अजीब सी सुरसुरी दौड़ गयी। बिरजू ने वो जामुन खा लिया फिर आंखें खोलकर ऊपर देखा तो नीलम उसे ही बड़े प्यार से देख रही थी।

नीलम ने पूछा- ये वाला मीठा था?

बिरजू- बहुत, बहुत मीठा, तेरा प्यार जो था इसमें, ये दुनिया का सबसे मीठा जामुन था।

नीलम- मेरे छूने से इतना मीठा हो गया बाबू।

बिरजू- हाँ और क्या, तू है ही इतनी मीठी।

नीलम- मैं मीठी हूँ?

बिरजू- बहुत

नीलम- सिर्फ इतने से पता लग गया आपको?

बिरजू- थोड़ा थोड़ा तो पता लग ही गया, बाकी का..........

नीलम- बाकी का क्या?.....बाबू बोलो न रुक क्यों गए।

बिरजू- बोल दूँ।

नीलम धीरे से-हम्म्म्म

बिरजू- बाकी का तो तुझे पूरा चख के पता लगेगा, होंठों का तो पता लग गया बहुत मीठे होंगे।

नीलम- हाय दैय्या, धत्त बाबू, बेशर्म.... कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा, धीरे बोलो, अम्मा भी घर पर ही हैं (नीलम अपने बाबू के इस खुले बेबाक जवाब से बेताहाशा शर्मा गयी, बदन उसका गनगना गया, पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी, वासना की तरंगें उठने लगी, क्योंकि वो ऊपर पेड़ पर थी तो उसने झट से बात को बदला), अच्छा बाबू और खाओगे जामुन?

बिरजू- मन तो बहुत है मेरी बेटी पर अब अभी नही।

नीलम- तब कब?

बिरजू- वही, तेरी अम्मा के जाने के बाद।

नीलम मुस्कुरा दी- रात को खिलाऊंगी फिर।

बिरजू- हाँ बिल्कुल, और बचा के रख लेना जामुन सारा मत भेजना नाना के यहां।

नीलम- ठीक है बाबू।

नीलम और बिरजू दोनों एक दूसरे को कातिल मुस्कान से देखने लगे दोनों की आंखों में वासना भर चुकी थी।
कृप्या ध्यान दे
आगे के कृम मे आती वाशनातमक भाषा शैली का पृयोग होगा
अतः व्यक्ति विशेष आपने समीप पुराने वसतृ की व्यवस्था सुनीसचीत कर ले

at the end
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Jangali

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नीलम ने पलटकर अपने बाबू को देखा और फिर अपनी माँ की तरफ देखा फिर बोली- बाबू ठीक से पकड़कर उठाओ न, दम लगा के ऐसे तो मैं चढ़ ही नही पाऊंगी, उस डाल तक उठा दो बस वो पकड़ में आ जाये फिर तो मैं चढ़ जाउंगी।

बिरजू ने भी एक बार पलटकर नीलम की माँ को देखा, वो अपने काम में मस्त थी, बिरजू ने नीलम को बोला थोड़ा इधर आ इस तरफ से चढ़, बिरजू और नीलम पेड़ के तने के दायीं ओर आ गए और पेड़ के मोटे तने के पीछे छुप से गये, वहां से नीलम की माँ दिख नही रही थी, पेड़ से ओट हो गया था।

नीलम ने फिर कोशिश की, बिरजू ने जैसे ही कमर को हाँथ लगाया नीलम ने अपने बाबू का हाँथ खुद ही पकड़कर अपने विशाल चूतड़ पर रख दिया और बोली- बाबू कमर पर नही यहां हाँथ लगा के उठाना, और अपने बाबू को देखकर हंस दी फिर बोली- अब तो अम्मा भी नही दिख रही यहां से, अब मुझे सहारा दो अच्छे से।

बिरजू भी हंस दिया और बोला- ठीक है चल, जल्दी कर।

नीलम ने एक पैर पेड़ के तने पर रखा और दोनों हांथों से तने को पकड़ा, बिरजू ने जैसे ही अपना एक हाँथ नीलम की कमर पर लगाया और दूसरा हाँथ उसकी चौड़ी मांसल गांड पर लगाया, नीलम और बिरजू दोनों एक साथ सिरह उठे, क्या मस्त गुदाज गांड थी नीलम की, बिरजू बावला सा हो गया, बिरजू के हाँथ की उंगलियाँ मानो नीलम की गुदाज फूली हुई गांड में धंस सी गयी।

नीलम- ऊऊऊऊईईईईईई.....बाबू.....हाँ ऐसे ही उठाओ, जोर लगाओ, पकड़े रहना, बस वो डाली पकड़ लूं मैं।

नीलम ने थोड़ा ऊपर चढ़कर अपने हाँथ से उस डाली को पकड़ने की कोशिश की, वो डाली उसकी पहुंच से सिर्फ एक फुट ऊपर थी।

बिरजू तो मस्त हो चुका था अपनी सगी बेटी के मांसल बदन को छूकर और उसकी मदमस्त चौड़ी गांड को दबोचकर।

बिरजू- हाँ चढ़ बेटी, मैंने पकड़ा है नीचे से, गिरेगी नही।

ऐसा कहते हुए बिरजू ने अपना दूसरा हाँथ भी कमर से हटा कर नीलम के दूसरे चूतड़ पर रख दिया और अब दोनों हांथों से उसके चूतड़ के दोनों उभार थाम लिए, अपनी बेटी के मादक गरम गुदाज गांड की लज़्ज़त और नरमी का अहसास मिलते ही बिरजू के लंड में हलचल होने लगी। उसने एक पल के लिए आंखें बंद कर ली। नीलम भी सिरहते और शर्माते हुए डाली को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

बिरजू का मन कर रहा था कि अपना हाँथ अपनी बेटी की गांड की महकती दरार पर रख दे पर संकोच उसे रोक ले रहा था, तभी नीलम बोली- बाबू और जोर लगाओ न, और उठाओ मुझे, इसलिए बोलती हूँ दूध पिया करो ताकत रहेगी, पीते तो हो नही, उठाओ और जोर से मुझे। (नीलम ने double meaning में कहा)

बिरजू अपनी बेटी की बात का अर्थ समझ गया और बोला- दूध है ही कहाँ जो पियूँ बेटी, तुझे तो पता है गाय बूढ़ी हो गयी है अब कहाँ दूध होता है उसको।

नीलम- अच्छा, बहाना मत करो, जिसको दूध पीने की इच्छा होती है न वो कैसे न कैसे करके घर में या बाहर से दूध की व्यवस्था कर ही लेता है, गाय बूढ़ी हो गयी तो क्या हुआ उसकी जवान बछिया तो है न। (नीलम ने double meaning में खुला निमंत्रण सा दिया अपने बाबू को और ये बोलकर वो खुद सिरह गयी, शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया, हालांकि उसका चेहरा ऊपर की तरफ था)

(नीलम के घर में सच में एक गाय थी जो बूढ़ी हो चुकी थी और इत्तेफ़ाक़ से उसकी एक जवान बछिया भी थी पर अभी उसकी मैचिंग किसी बैल से नही हुई थी तो उसको कोई बच्चा नही हुआ था और जब बच्चा ही नही हुआ था तो उसको दूध कैसे होता, इसी गाय और बछिया को लेकर नीलम और बिरजू डबल मीनिंग में कामुक बातें करने लगे)

बिरजू- पर बछिया को दूध आता ही कहाँ है बेटी, जब तक उसको बच्चा नही होगा वो दूध नही देगी और बाहर का दूध मैं पियूँगा नही।

नीलम- सच, आप बाहर का दूध नही पियोगे।

बिरजू- नही, बिल्कुल नही।

नीलम- तब तो फिर बछिया को जल्दी बच्चा देना होगा, पर वो बेचारी अकेली तो बच्चा कर नही सकती न, अब तो किसी बैल को बुलाना होगा न बाबू।

(और इतना कहती हुई नीलम खिलखिलाकर अपने बाबू को नीचे की तरफ देखती हुई हंस दी, बिरजू भी नीलम की गुदाज गांड को अपने दोनों हांथों से पकड़े पकड़े हंस दिया, दोनों के चहरे और कान वासना की गर्माहट से लाल हो चुके थे, दोनों ने एक बार फिर पेड़ की ओट से झांककर नीलम की माँ को देखा तो वो बस घास ही पीटने में लगी थी)

बिरजू- हाँ अगर दूध पीना है तो उसको बैल के पास तो ले जाना ही पड़ेगा।

नीलम- इस पर हम बाद में बात करेंगे, क्योंकि आपकी सेहत की बात है और मैं अपने बाबू की सेहत से समझौता नही कर सकती।

बिरजू- कब बात करेगी मेरी बेटी इस विषय में।

नीलम- जब अम्मा नही रहेंगी तब, रात को....ठीक, रुक क्यों गए ऊपर को ठेलों न मुझे बाबू, लटकी हुई हूँ बीच में मैं, उठाओ जोर से।

जैसे ही बिरजू ने तेज जोर लगाने के लिए दम लगाया, न जाने कहाँ से एक लाल ततैया आ के बिरजू के हाँथ पर बैठ गयी और बिरजू ने हाँथ तेज से झटका, ततैया तो फुर्र से उड़ गई पर ऊपर को चढ़ने की कोशिश कर रही नीलम का बैलेंस बिगड़ा और वो सीधे नीचे सरक कर अपने बाबू पर इस तरह गिरी की उसकी भारी गुदाज गांड बिरजू के चहरे पर बैठ गयी, बिरजू की नाक सीधे नीलम की मक्ख़न जैसी मुलायम गांड की दरार में जा घुसी।

नीलम- अरेरेरेरेरे.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईई.......... बाबू........अरे मैं गिरी.....पकड़ो मुझे........बाबू........आआआआआआआआह हहहहहहहहहहहह......बाबू आपको लगी तो नही।

लगने की बात तो दूर, बिरजू ने ये सोचा भी नही था कि अचानक ऐसा हो जाएगा आज जीवन में पहली बार ये क्या हो रहा था, पर जो हो रहा था उसमें वो खो गया, आखिर इस लज़्ज़त को भला वो कैसे जाने देता जिसके लिए वो मन ही मन तरसता था। ये समझ लो की नीलम अपने बाबू के चेहरे पर अपनी भारी गांड रखकर बैठ चुकी थी, अपनी ही जवान सगी शादीशुदा बेटी की इतनी गुदाज गांड की दरार में एक दिन अचानक उसका मुँह घुस जाएगा ये बिरजू ने कभी सोचा नही था और न ही नीलम ये सोचा था।

नीलम की रसभरी चौड़ी गांड की मदहोश कर देने वाली भीनी भीनी महक को बिरजू सूंघने लगा, उसने जानबूझ के अपनी नाक को और नीलम की गांड की दरार में घुसेड़ दिया और अच्छे से अपनी सगी शादीशुदा बेटी की गांड की महक को जी भरकर सूंघने लगा, नीलम धीरे से शर्माते हुए अपनी मोटी गांड और मांसल जांघे आपस में भींचते हुए चिहुँक उठी, एकाएक अपने बाबू की नाक और मुँह अपनी गांड की गहराई और बूर के पास महसूस करके नीलम चौंक सी गयी और चिहुँकते, शर्माते हुए
ऊऊऊऊईईईईईई.......माँ की कामुक आवाज निकलते हुए सिरह उठी और कुछ देर तो वो खुद ही मदहोशी में अपने बाबू के मुँह पर अपनी गांड और बूर रखे बैठी सिसकती रही उसे काफी गुदगुदी भी हो रही थी।

फिर वो समझ गयी कि उसके बाबू दीवाने हो चुके है और उसकी गांड और बूर के छेद को कपड़ों के ऊपर से ही सूंघने में लगे हुए हैं, बिरजू ने दोनों हाँथों से नीलम की कमर को पकड़ रखा था, नीलम के दोनों पैर पेड़ के तने पर ही थे और हांथों से नीलम ने तने को घेरा बना के कस कर पकड़ा हुआ था, नीलम अब शर्म से गड़ी जा रही थी, अपनी गांड की मखमली दरार में और बूर पर उसे अपने बाबू की नाक और दहकते होंठ महसूस हुए तो वो फिर से चिहुँक उठी और उसके मुँह से भी जोर से मादक सिकारियाँ निकल गयी, ये सब इतनी जल्दी हुआ कि न तो नीलम ही संभाल पाई और न ही बिरजू और जो होना था वो हो चुका था, अपनी सगी बेटी की गांड और बूर की खुशबू और उसका अच्छे से अहसास करके बिरजू बेकाबू सा होने लगा।

नीलम ने समय की नजाकत को समझते हुए, शर्माते हुए, अपने को बेकाबू होने से संभालते हुए अपनी अम्मा की तरफ एक नज़र घुमा के पेड़ की ओट से देखा और अपने चौड़े चूतड़ और बूर की खुशबू लेकर मदहोश हो चुके अपने बाबू से उखड़ती सांसों से बोला- बाबू.....अम्मा देख लेगी...बस करो न...बाद में कर लेना ऐसा.....बस करो न बाबू।

बिरजू ने जब ये सुना तो उसकी बांछे खिल गयी और फिर उसने नीलम के दोनों चूतड़ पर अपने हाँथ लगा के ऊपर को उठा दिया और तेज चल रही सांसों को संभालते हुए बोला- बाद में कब बेटी? मुझे तेरे बदन से आ रही ये मदहोश कर देने वाली खुशबू लेना है, कितनी अच्छी है ये, खुशबू लेने देगी मुझे?

नीलम- रात को जब अम्मा चली जायेगी, तब कर लेना जो भी करना हो (नीलम ने ये बात बहुत उत्तेजना से धीरे से बोली)

बिरजू- सच, करने दोगी।

नीलम- हाँ बाबू, बिल्कुल, क्यों नही, पर अभी अम्मा देख सकती है जब वो चली जायेगी तब।

ये कहकर नीलम शर्म से लाल भी होती चली गयी।

बिरजू की तो ये सुनकर मानो लॉटरी लग गयी थी, दिल में हज़ारों घंटियाँ एक साथ बजने लगी, अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी के यौवन का रसपान उसे अपने ही घर में चुपके चुपके करने को मिल जाएगा, इस बात को सोचकर ही वो फूला नही समाया और जोश में आकर उसने नीलम को कस के उसकी दोनों गांड पकड़के इतनी तेज उठाया की नीलम ऊऊऊऊईईईईईई करते हुए ऊपर को उचकी और उसने अब वो डाल पकड़ ली, और फिर पैर ऊपर रखते हुए दूसरे हाँथ से दूसरी डाल पकड़ते हुए जामुन के पेड़ पर चढ़ गई। बिरजू वासना भारी नजरों से अपनी सगी बेटी के मादक गदराए बदन को पेड़ पर चढ़ते हुए निहारता रहा।

नीलम पेड़ पर डाल पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगी, पैर फैला कर जब नीलम ने आगे बढ़ने और ऊपर चढ़ने के लिए एक डाल पर रखा तो नीचे खड़े बिरजू को अब जाकर फैले घाघरे के अंदर वो दिखा जिसको देखने के लिए उसकी आंखें तरस रही थी, घाघरे के अंदर नीलम को गोरी गोरी टांगें जाँघों तक दिख गयी, बिरजू अवाक सा रह गया, कितनी मांसल जाँघे थी नीलम की, लार ही टपक पड़ी उसकी अपनी ही बेटी की जाँघे देखकर, तभी नीलम ने अपना दूसरा पैर उठा कर दूसरी डाल पर रखा और एक मोटी डाल पर वहीं बैठ गयी, घाघरा नीचे लटका हुआ था, दोनों गोरे गोरे पैर और जाँघों का निचला हिस्सा देखकर बिरजू सनसना गया, एकटक लगाए वो अपनी बेटी के घाघरे में ही झांकने की कोशिश कर रहा था, नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखा तो उसने पाया कि उसके बाबू की प्यासी नज़रें कहाँ है, समझते उसे देर नही लगी और वो मुस्कुरा दी, उसने एक जामुन तोड़ा और खींच कर अपने बाबू के ऊपर फेंका, जामुन सीधा बिरजू के सर पर लगा और फूटकर फैल गया, बिरजू की तन्द्रा भंग हुई तो नीलम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली- बाबू खाट को खींचकर मेरी सीध में लाओ ताकि मैं जामुन तोड़कर उसपर फेंकती रहूँ।

बिरजू को होश आया तो वो झेंप सा गया फिर जल्दी से उसने खाट को खींचकर नीलम की सीध में नीचे किया, और ऊपर देखने लगा, नीलम की नजरें अपने बाबू से मिली तो दोनों मुस्कुरा दिए, नीलम अभी डाली पर घाघरे को समेटकर जानबूझ कर बैठी थी वो जानती थी खड़े होने पर बाबू को घाघरे के अंदर का नज़ारा अच्छे से दिख जाएगा पर वो अपने बाबू को कुछ देर तड़पाकर उनकी हालत देखना चाहती थी, बिरजू भी बार बार सर उठाये अपनी बेटी के घाघरे के अंदर झांकने की कोशिश करता और जो भी थोड़ा बहुत दिख रहा था उसे ही बड़ी वासना भरी नजरों से देखता।

नीलम ने बिरजू से इशारे से पूछा कि अम्मा क्या कर रही है क्योंकि ऊपर पत्तियों की आड़ से नीचे दूर साफ दिख नही रहा था, बिरजू ने एक नजर नीलम की माँ पर डाली तो देखा कि वो घास को बड़ी टोकरी में भरकर बगल में कुएं पर ही बने बड़े से हौदे में धोने के लिए डाल रही थी, उसने नीलम को ग्रीन सिग्नल का इशारा किया, नीलम और बिरजू दोनों मुस्कुराने लगे।

नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखते हुए एक हाँथ से डाल पकड़े, डाल पर बैठे बैठे ही आस पास लगे जामुनों के गुच्छों में से अच्छे पके पके जामुन तोड़कर नीचे खाट पर फेंकना तो दूर पहले तोड़कर खुद ही खाने लगी, ऊपर जामुनों की भरमार थी, पूरा पेड़ जामुन से लदा हुआ था, आस पास पके पके बड़े बड़े काले काले जामुनों को देखकर नीलम से रहा न गया और वो खिलखिलाकर हंसते हुए अपने बाबू को नीचे देख देखकर रिझाकर जामुन तोड़कर खाने लगी।

अब बिरजू ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए अपनी कमर पर दोनों हाँथ रखकर खड़ा हो गया और बोला- तू वहां जामुन तोड़ने गयी है कि खाने गयी है।

नीलम- अरे बाबू यहां पर आ के कितना अच्छा लग रहा है देखो न कितने बड़े बड़े मीठे मीठे काले काले जामुन है ऊपर, नीचे से तो ये दिखते ही नही है, अच्छा लो आप मुँह खोलो, आ करो आपके मुँह में मैं यहीं से फेंककर मरती हूँ जामुन, देखना सीधे मुँह में जायेगा।

बिरजू- तेरी मां ने देख लिया न तो हम दोनों का जामुन निकाल देगी (बिरजू ने बनावटी गुस्से से कहा, पर वो चाहता था कि उसकी बेटी अच्छे से अपने मन की कर ले)

नीलम- अरे बाबू आप अम्मा से कितना डरते हो, उनको मैं देख लुंगी आप मुँह खोलो, खोलो तो सही, एक बार बाबू......बस एक बार....खोलो न मुँह अपना...जोर से आ करो, खूब जोर से, यहीं से डालूंगी आपके मुँह में सीधा जामुन।

बिरजू को भी नीलम की शरारते बहुत भा रही थी, उसने बड़ा सा मुँह खोला, नीलम ने एक अच्छा सा जामुन तोड़कर तीन चार बार अच्छे से निशाना लगाया और खींचकर अपने बाबू के मुँह की तरफ फेंका, जामुन सीधा बिरजू के गाल पर जा के पट्ट से लगा, फुट गया, जामुन का जमुनी रस गाल पर फैल गया।

बिरजू- लो! यही निशाना है तेरा, बस अब रहने दे तू, खिला चुकी तू जामुन अपने बाबू को (बिरजू ने double meaning में कहा)

नीलम- जामुन तो मैं खिला के रहूँगी अपने बाबू को, देख लेना, बाबू एक बार और, एक बार और न बाबू, देखो एक दो बार तो इधर उधर हो ही जाता है, फिर आ करो न, करो न बाबू, इस बार ठीक से फेंकूँगी, देखो मैं कितनी ऊपर भी तो हूँ, पर इस बार पक्का सीधा मुँह में डालूंगी।

बिरजू अपनी बेटी की इस बचपने और जिद पर निहाल होता जा रहा था आज नीलम उसे जवानी और बचपन हर तरह का प्यार दे रही थी, उसने फिर से आ किया, बड़ा सा मुँह खोला।

नीलम ने अपने आस पास सर उठा के एक अच्छा सा बड़ा सा जामुन देखा और तोड़कर पांच छः बार निशाना लगाया फिर खींच कर अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार जामुन सीधा बिरजू के मुँह में गप्प से चला गया और बिरजू उस रसभरे मीठे जामुन को खाने लगा।

नीलम- देखा बाबू! है न मेरा निशाना अच्छा, खिलाया न आपको जामुन, मीठा है न बहुत, बोलो ना।

बिरजू- नही तो ज्यादा मीठा तो नही था, बाकी निशाना तो तेरा बहुत अच्छा है। (बिरजू ने जानबूझकर ये बोला कि जामुन मीठा नही है वो देखना चाहता था कि नीलम अब क्या करेगी, क्योंकि वो सबसे ज्यादा पका हुआ अच्छा जामुन था)

नीलम- क्या बाबू, कितना अच्छा मीठा जामुन खिलाया आपको मैंने और आप कह रहे हैं कि मीठा ही नही था, तो और कैसे मीठा होगा? (तभी नीलम को ये बात click कर गयी, वो समझ गयी उनके बाबू ने ऐसा क्यों बोला), अच्छा रुको अब मैं तुम्हे सच में बहुत मीठा जामुन खिलाती हूँ, एक बार फिर से मुँह खोलो।

बिरजू ने फिर मुँह खोला- नीलम में एक और बड़ा सा जामुन तोड़ा और अपने बाबू को दिखाते हुए उसे थोड़ा सा काटकर जूठा किया, ये देखते ही बिरजू की आंखें खुशी से चमक गयी, वो अपनी बेटी की समझ को समझ गया, नीलम ने जामुन जूठा करके निशाना लगा के सीधा अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार भी जामुन सीधा मुँह में गया और वाकई में इस बार के जामुन में बेटी के होंठों की मदहोश कर देने वाली खुशबू थी, बिरजू उसे आंखें बंद करके नशे में खाने लगा तो ऊपर से नीलम उन्हें देखकर हंस दी, नीलम और बिरजू दोनों के ही बदन में अजीब सी सुरसुरी दौड़ गयी। बिरजू ने वो जामुन खा लिया फिर आंखें खोलकर ऊपर देखा तो नीलम उसे ही बड़े प्यार से देख रही थी।

नीलम ने पूछा- ये वाला मीठा था?

बिरजू- बहुत, बहुत मीठा, तेरा प्यार जो था इसमें, ये दुनिया का सबसे मीठा जामुन था।

नीलम- मेरे छूने से इतना मीठा हो गया बाबू।

बिरजू- हाँ और क्या, तू है ही इतनी मीठी।

नीलम- मैं मीठी हूँ?

बिरजू- बहुत

नीलम- सिर्फ इतने से पता लग गया आपको?

बिरजू- थोड़ा थोड़ा तो पता लग ही गया, बाकी का..........

नीलम- बाकी का क्या?.....बाबू बोलो न रुक क्यों गए।

बिरजू- बोल दूँ।

नीलम धीरे से-हम्म्म्म

बिरजू- बाकी का तो तुझे पूरा चख के पता लगेगा, होंठों का तो पता लग गया बहुत मीठे होंगे।

नीलम- हाय दैय्या, धत्त बाबू, बेशर्म.... कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा, धीरे बोलो, अम्मा भी घर पर ही हैं (नीलम अपने बाबू के इस खुले बेबाक जवाब से बेताहाशा शर्मा गयी, बदन उसका गनगना गया, पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी, वासना की तरंगें उठने लगी, क्योंकि वो ऊपर पेड़ पर थी तो उसने झट से बात को बदला), अच्छा बाबू और खाओगे जामुन?

बिरजू- मन तो बहुत है मेरी बेटी पर अब अभी नही।

नीलम- तब कब?

बिरजू- वही, तेरी अम्मा के जाने के बाद।

नीलम मुस्कुरा दी- रात को खिलाऊंगी फिर।

बिरजू- हाँ बिल्कुल, और बचा के रख लेना जामुन सारा मत भेजना नाना के यहां।

नीलम- ठीक है बाबू।

नीलम और बिरजू दोनों एक दूसरे को कातिल मुस्कान से देखने लगे दोनों की आंखों में वासना भर चुकी थी।
कृप्या ध्यान दे
आगे के कृम मे आती वाशनातमक भाषा शैली का पृयोग होगा
अतः व्यक्ति विशेष आपने समीप पुराने वसतृ की व्यवस्था सुनीसचीत कर ले

at the end
thank'S FOR UPDATE
 
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Neha tyagi

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हाय रजनी तो पूरे मजे लूट गई अपने सगे बाबू के, पेड़ के नीचे, खेत में, ठंडा मौसम, गर्म जिस्म, सच कहूं तो रजनी के नाम का एक तूफान मेरे अंदर भी था जो अब कहीं जाकर शांत हुआ
 
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हाय रजनी तो पूरे मजे लूट गई अपने सगे बाबू के, पेड़ के नीचे, खेत में, ठंडा मौसम, गर्म जिस्म, सच कहूं तो रजनी के नाम का एक तूफान मेरे अंदर भी था जो अब कहीं जाकर शांत हुआ
सच कहूँ तो भाभी मेरे भीतर भी आग और तुफान है, और उसकी चिंगारी और आंधी आप हैं।
 
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Update- 13


जिंदगी में आज पहली बार उदयराज के मन में लड्डू फूटा था, उसके रूखे, नीरस, उत्साहहीन, सूखे जीवन में उसी की सगी बेटी ने एक कामुक और रसीला सा संभावित संकेत देके उसकी मन की गहराइयों में छिपे यौनतरंग के तारों को आज छेड़ दिया था जिससे ऐसा प्रतीत होता था कि अब वो बादलों में उड़ रहा है, आने वाली जिंदगी अब कितनी लज़्ज़त से भरी होगी और उसमें कितना मिठास होगा, बस यही बार बार सोच कर वो गुदगुदा जा रहा था

आज उदयराज ने नहाने में जरा भी वक्त नही लगाया, सोच कर ही शरीर में आज उसके इतनी गर्मी बढ़ गयी थी कि कुएं का ठंडा पानी भी आज उसको शांत नही कर पा रहा था।

परंतु फिर भी उसके मन की स्थिति असमंजस में थी, की क्या पता वैसा न हो जैसा वो सोच रहा है तो? क्या पता ये रजनी का केवल बेटी वाला प्रेम हो तो?

एक तरफ उसके संस्कार, उसकी मर्यादा, उसे बार बार अपने कुल की मर्यादा, बाप बेटी के पवित्र रिश्ते की दुहाई देती, उसके इतने नेक पुरुष होने पर सन्देह करती, उसे ये अहसास दिलाती की तू गांव का मुखिया है, जब तू ही ये अनर्थ करेगा तो गांव के लोगों में तेरी जो एक आदर्श छवि है उसका क्या होगा?

दूसरी तरफ नारी सुख की बरसों की दबी प्यास, नारी को भोगने पर मिलने वाले मजे की लज़्ज़त का अहसास कराती, वो कहती कि किसी को पता ही क्या चलेगा, और जब तेरी बेटी ही यह चाहती है तो पुरुष होने के नाते तेरा एक फ़र्ज़ ये भी है कि एक तड़पती, प्यासी नारी को तू संतुष्ट कर, चाहे वो तेरी बेटी ही क्यों न हो, सोच कितना मजा आएगा, और ये गलत तो तब होता जब तू जबरदस्ती कर रहा होता। सोच जरा पगले स्वर्ग की अप्सरा सी तेरी बेटी तेरे पौरुष द्वार पर आके यौनसुख की विनती कर रही है और तुझे लोक लाज की पड़ी है, क्या ये पुरुष का फर्ज नही की वो अपने घर की औरत को संतुष्ट करे, आखिर रजनी अपना पूरा जीवन तेरी सेवा करने तेरे पास चली आयी, तो क्या तेरा उसके प्रति कोई फ़र्ज़ नही।

फिर उसका दूसरा मन कहता तू इतना गिर गया है उदयराज, तू ये कैसे कह सकता है कि रजनी भी यही चाहती है? वो तेरी बेटी है वो भला ऐसा पाप करेगी।

फिर उसका पहला मन कहता है- अगर ऐसा न होता तो रजनी उसकी बाहों में भला क्यों आती, चलो माना कि वह बेटी के नजरिये से उसकी बाहों में आई, पर उसके मुंह से जो आह और सिसकी निकली वो क्या था, और अगर ऐसा न होता तो वो इतने मादक रूप में भला उसके कान में ऐसा क्यों बोलती।

उदयराज तू अपनी बेटी की मंशा को समझ, सबको ऐसा बेटी सुख नही मिलता, सोच तू कितना भाग्यशाली है, वो तुझे घर की चार दिवारी में चुपके चुपके यौनसुख देना चाहती है, इस मौके को मत खो, देख गलत तो तू फिर भी हो ही जायेगा, एक फ़र्ज़ की तरफ देखेगा तो दूसरा छूट जाएगा, और दूसरा फ़र्ज़ ये है कि एक पुरुष को एक प्यासी औरत को संतुष्ट करना ही चाहिए, और जब गलत होना ही है तो मजे ले के होने में क्या बुराई है

खैर उदयराज कोई सिद्ध और योगी पुरुष तो था नही जो अपने आपको इस ग्लानि, विषाक्त, घृणा, वासना, यौनसुख की लालसा के मिले जुले मन स्थिति से निकाल ले जाता, वो असहाय हो गया और सबकुछ नियति पे छोड़ दिया।

फटाफट नहा के आया वो और रजनी ने खाना लगा रखा था, रजनी को देखते ही उसे फिर खुमारी चढ़ने लगी, रजनी अपने बाबू की मन स्थिति को देखकर मंद मंद मुस्कुराये जा रही थी, वो छुप छुप के तिरछी नजर से अपने बाबू को देखकर कामुक मुस्कान देती और उदयराज का आदर्श, मानमर्यादा, कुल की लाज, सब एक ही पल में धराशाही हो जाता, वो वासना के दरिया में ख्याली गोते लगते हुए खाना खाए जा रहा था, कभी कभी जब एक टक लगा के रजनी को निहारता तो रजनी आंखों के इशारे से शिकायत करती की अभी ऐसे न देखो कहीं काकी न देख ले, (जैसे वो कोई प्रेमिका हो), उदयराज अपनी बेटी की इस अदा पर कायल हो जाता।

सबने खाना खाया और उदयराज आज अपनी खाट कुएं के और नजदीक ले गया, बिस्तर लगा के उसपर करवटें बदलने लगा।

रजनी ने बर्तन धोया, बिस्तर लगाया फिर काकी और रजनी अपने अपने बिस्तर पर रोज़ की तरह लेट गए, रजनी की बेटी उसी के पास थी, रजनी का बिस्तर रोज की तरह घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने नीम के पेड़ के नीचे था और उदयराज का बिस्तर 200 मीटर कुएं के पास था, रजनी आज अपने बाबू को छेड़ना चाहती थी, पहले तो वो काकी से इधर उधर की बातें करती रही, फिर बोली- काकी मैं बाबू के सर पर तेल मालिश करके आती हूँ आप सोइए।

काकी- हां जा न, ला गुड़िया को मेरी खाट पे लिटा दे, तू जा उदय के सर की तेल मालिश कर आ और हां बदन की भी मालिश कर देना, थक जाता है बेचारा

रजनी- हां काकी जरूर

रजनी इतना कहकर घर में जा के कटोरी में तेल और एक हाँथ में बैठने का स्टूल लेके अपने बाबू की खाट की तरफ जाने लगती है

अभी कृष्ण पक्ष की ही रातें चल रही थी, चाँद थोड़ी ही देर के लिए निकलता था वो भी रात के दूसरी पहर में, अंधेरी रात होने की वजह से गुप्प अंधेरा पसरा हुआ था, बहुत हल्का हल्का सा पास आने पर दिखता था

रजनी ने उदयराज की खाट के पास आके कहा- बाबू, ओ मेरे बाबू, सो गए क्या? मैं आ गयी।

उदयराज ने झट से सर उठा के अपनी बेटी की तरफ देखा तो उसकी बांछे खिल गयी, धीरे से बोला- नही बेटी, तेरे आदेश का पालन कर रहा हूँ।

रजनी (हंसते हुए)- वो मेरा आदेश नही आग्रह था बाबू, एक बेटी भला अपने बाबू को आदेश करेगी।

उदयराज- क्यों नही कर सकती, कर सकती है, मैं तो तेरा गुलाम हूँ।

रजनी- अच्छा जी

उदयराज- हम्म

रजनी- और क्या क्या हैं आप मेरे?

उदयराज- बाबू हूँ, गुलाम हूँ, और....और...बताऊंगा वक्त आने पर।

रजनी- हंस देती है, अरे वाह! मेरे बाबू मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे गुलाम बन गए, जबकि मैं तो खुद आपकी दासी हूँ।

उदयराज- तू मेरी दासी नही मेरी बेटी।

रजनी- फिर, फिर मैं क्या हूँ आपकी।, बेटी तो मैं हूँ ही, इसके अलावा और क्या हूँ।

उदयराज- तू मेरी रानी है। (ऐसा कहते हुए उदयराज की आवाज जोश में थोड़ी भारी हो जाती है)

रजनी- सच, और आप मेरे राजा....ऐसा कहते हुए रजनी अपने हांथ की उंगलियाँ अपने बाबू के हाँथ की उंगलियों में cross फंसा लेती है और उनके ऊपर झुकते हुए अपना चेहरा उनके कानों के पास लाकर धीरे से बोलती है- आपको थकान नही लगी, क्या अब?

उदयराज- वो तो मुझे बरसों से लगी है।

रजनी फिर अपने बाबू को छेड़ने की मंशा से - तो लाओ न बाबू आपके सिर पर तेल मालिश कर दूं, थकान उतर जाएगी। (और रजनी मन ही मन हंसने लगती है, अपने बाबू को तडपाने में उसको मजा आ रहा था)

उदयराज आश्चर्य में पड़ जाता है, की उसकी बेटी ने उसकी बाहों में आकर थकान मिटाने की बात बोली थी, ये तेल मालिश की बात बीच में कहां से आ गयी, परंतु वो तुरंत ही समझ जाता है की रजनी उसे तड़पा रही है, फिर वो भी चुप रहकर थोड़ा इंतज़ार करता है।

रजनी स्टूल लेके अपने बाबू के सिरहाने बैठ जाती है, और हाथ में तेल लेकर उनके सिर की हल्के हल्के मालिश करने लगती है, रजनी की नर्म नर्म उंगलियों की छुअन से उदयराज को अद्भुत सुख की अनुभूति होती है, दोनों चुप रहकर एक दूसरे को महसूस करते हैं कुछ पल, फिर रजनी एकाएक बोली- अब थकान मिटी बाबू।

उदयराज- मेरी थकान सिर्फ तुम्हारी उंगलियों से कहाँ मिटने वाली बेटी, मेरे पूरे बदन को तुम्हारा पूरा बदन चाहिए।

रजनी- ओह्ह! मेरे बाबू

ऐसा कहते हुए रजनी स्टूल से उठकर उदयराज की खाट पर उसके बगल में लेट जाती है, दोनों एक दूसरे को कस के बाहों में भर लेते हैं, रजनी के मुँह से oooohhhhhhh मेरे बाबू, और उदयराज के मुंह से oooohhhhhh मेरी बेटी, मेरी रानी, की धीमी धीमी कामुक आवाज, और सिसकियां आस पास के वातावरण में गूंज जाती हैं।

रजनी दायीं तरफ होती है और उदयराज बाई तरफ, दोनों का बदन एक दूसरे में मिश्री की तरह घुल रहा होता है, दोनों ही कुछ देर के लिए सुन्न से हो जाते है, विश्वास ही नही हो रहा था दोनों को, की आज वो हो गया, जो अभी तक सिर्फ ख्यालों में ही था, तभी उदयराज के हाँथ रजनी की पीठ को हौले हौले सहलाने लगते हैं तो रजनी अपनी जांघों को भीच के सिसक उठती है।

उदयराज अब अपना हाथ थोड़ा नीचे की ओर रजनी की गांड की तरफ जैसे ही सरकाता है रजनी ये महसूस करती है कि side side में लेटे होने की वजह से उसके बाबू उसकी गांड को अच्छे से नही सहला पाएंगे, तो इसकी सहूलियत के लिए वो धीरे धीरे aaaaahhhhh करती हुई उदयराज के ऊपर आ जाती है, और उदयराज को अपनी सगी बेटी की ये मौन स्वीकृति इतना जोश से भर देती है कि वो अपने दोनों हाथों से उसकी अत्यंत मांसल उभरी हुई गांड को भीच देता है, कभी वो मैक्सी के ऊपर से ही अपनी बेटी के मोटे चूतड़ की दोनों फांकों को अलग कर उसमें हाँथ फेरने लगता कभी अपने दोनों हथेलियों में मांसल गांड को भर भर के सहलाने लगता।

रजनी- aaaaaaaahhhhhh, ooooooohhhhhhh bbbbbbbaaaabbbbbuuuuu,, ssssshhh

एकाएक उदयराज ने रजनी को नीचे किया और उसके ऊपर चढ़ गया, रजनी की तो बस सिसकियां ही निकली जा रही थी, शर्म के मारे वो कुछ न बोली, बस oooohhh baabu

उदयराज ने एक जोरदार चुम्बन रजनी के गाल पे जड़ दिया, फिर रजनी ने जानबूझ के अपना दूसरा गाल आगे कर दिया उदयराज ने इस गाल पे भी एक दूसरा जोरदार चुम्बन किया और अब वो ताबड़तोड़ रजनी के गालों पे, कान के नीचे, गर्दन पे, माथे पे, आंखों पे चूमने लगा, इतना मजा तो उसको अपनी पत्नी के साथ भी नही आया था जितना बेटी के साथ आ रहा था, रजनी को तो मानो होश ही नही रहा अब, वो तो बस hhhaaaaai hhhhhhaaaai कर के सिसके जा रही थी।

जैसे ही उदयराज ने अपना सीधा हाँथ रजनी के बायीं चूची पे रखा, उसे गांव वालों की कुछ आवाज़ें उत्तर की तरफ से आती हुई सुनाई दी, जैसे गांव के कुछ लोग मुखिया के घर की तरफ ही आ रहे थे कुछ फरियाद लेके, रजनी ने भी जब ये आवाज सुनी जो उनके घर की तरफ आती हुआ महसूस हुई तो दोनों ही बड़े मायूस होके खाट से उठे और रजनी बोली- बाबू लगता है कुछ गांव के लोग इतनी रात को आपसे मिलने आ रहे हैं, अभी मुझे जाना होगा।

उदयराज मायूस होते हुए- हाँ बेटी, देखता हूँ क्या मामला है।

रजनी खुद उदास हो गयी थी, थोड़ी दूर जाके वो वापिस पलटी और फिर एक बार भाग के अपने उदास बाबू की बाहों में समा गई, उदयराज रजनी को एक बार फिर बड़ी शिद्दत से चूमने लगा, रजनी ने सिसकते हुए उसे रोका- बाबू वो लोग अब ज्यादा ही नजदीक आ गए हैं, थोड़ा सब्र करो अब, फिर आऊंगी कल।

इतना कहकर रजनी उखड़ती सांसों से अपने बिस्तर की तरफ भाग गई और उदयराज उसे देखता रहा।

ये गांव वाले भी ना, थोड़ी देर बाद नहीं आ सकते थे क्या कमीने कहीं के, बेचारी रजनी मासूम
 
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