Update- 45
नीलम जमुन के पेड़ की डाल पर बैठी आस पास लगे मोटे मोटे पके हुए काले काले जामुनों को गुच्छों सहित तोड़कर नीचे खाट पर फेंकने लगी, बिरजू नीचे खड़ा अपनी बेटी को मंत्रमुग्ध सा देखता रहा, जब खाट पर काफी जामुन हो गए तो बिरजू ने उन्हें एक बाल्टी में पलट लिया, फिर ऊपर देखने लगा, नीलम जिस डाल पर बैठी थी वहां आस पास और थोड़ा दूर दूर उसने हाँथ बढ़ा कर सारे अच्छे अच्छे पके हुए जामुन तोड़ लिए। नीलम अपने बाबू को देखते हुए उस डाल से उठी और दूसरी डाल पर चली गयी, बिरजू नीचे से नीलम को निहार रहा था।
नीलम इस वक्त जहां पर थी वहां दो मोटी मोटी डाल थी, नीलम को यही तो चाहिए था, जामुन तो वो अच्छे खासे तोड़ चुकी थी अब उसे बिरजू को कुछ अच्छे से दिखाना था उसने अपना एक पैर अच्छे से खोलकर फैलाकर दूसरी डाल पर रख दिया, घाघरा पूरा फैल गया, नीलम के ठीक नीचे बिरजू खाट के पास खड़ा किसी चकोर की तरफ एक टक लगाए अपनी बिटिया को निहार रहा था, जैसे ही नीलम ने अपने पैर ऊपर डाली पर रखकर फैलाये घाघरे के अंदर नीलम की वो गोरी गोरी टांगें, मादक मोटी मोटी जाँघे और उसमे फंसी काली पैंटी साफ दिख गयी, उसके विशाल गुदाज दोनों नितम्ब कैसे पतली सी पैंटी में कसे हुए थे और उफ़्फ़फ़फ़ वो दोनों जाँघों के बीच वो मोटा सा फूला हुआ हिस्सा जो चीख चीख के कह रहा था कि हां यहीं है वो महकती हुई मखमली सी जवान प्यासी बूर, इसलिए दोनों जाँघों के बीच पैंटी यहां उभरी हुई है, उस जगह पर पैंटी इतनी पतली थी कि बस उसने किसी तरह केवल मखमली बूर को ही ढका हुआ था, ऐसा लग रहा था कि वो काली पैंटी नीलम की मदमस्त जवानी को, उसके गुदाज, मांसल जाँघों को, मस्त चौड़े नितम्ब को संभाल पाने में असमर्थ है।
बिरजू अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की मदमस्त जवानी को देखकर वासना से लाल होता चला गया उसका लंड धोती में हिचकोले खाने लगा उसने जैसे तैसे नज़रें बचा कर उसे ठीक किया, एक टक वो पैंटी के अंदर अपनी सगी बेटी की बूर और मोटी मोटी जाँघे, मदमस्त गोरी टांगें घूरे जा रहा था, कई बार उसने अपने सूख गए होंठो पर जीभ फेरा और अपनी बेटी की नग्नता के दर्शन करते हुए अपनी सांसों को काबू करने की कोशिश करने लगा। नीलम अपने बाबू की मनोदशा देख देखकर जामुन तोड़ तोड़कर नीचे फेंकते हुए चुपके से मंद मंद मुस्कुराते जा रही थी।
नीलम ने एक बार फिर काफी जामुन तोड़ तोड़ कर खाट पर इकठ्ठे कर दिए, बिरजू ने उसे भी बाल्टी में पलट दिया, नीलम ने अब अपने बाबू को तरसाने के लिए अपने दोनों पैर एक ही डाल पर रख लिए, बिरजू मन मकोस कर रह गया, अपने बाबू की हालत देख नीलम हंस पड़ी और बोली- क्या देख रहे थे बाबू?
बिरजू- यही की तू जामुन कैसे तोड़ रही है?
नीलम- पक्का यही देख रहे थे।
बिरजू- हाँ
नीलम ने बड़ी अदा से कहा- सच्ची बोलोगे तो दुबारा.........
बिरजू ने बड़ी वासना से नीलम को देखा फिर बोला- सच, दुबारा
नीलम- ह्म्म्म, बिल्कुल, सच बोलने का इनाम मिलेगा न।
बिरजू- अच्छा! और क्या क्या मिलेगा?
नीलम- क्या क्या चाहिए मेरे बाबू को?
बिरजू- मुझे..... मुझे तो पूरी की पूरी नीलम ही चाहिए।
नीलम जोर हंसते हुए शर्मा गयी और बोली- धत्त, पगलू, बेटी हूँ न मैं आपकी, वो भी सगी, अपनी ही सगी बेटी चाहिए मेरे बाबू को, कोई जान जाएगा तो क्या सोचेगा, बदमाश? (नीलम ने बड़ी अदा से धीरे से कहा)
बिरजू- कोई जानेगा कैसे? तुम बताओगी क्या किसी को?
नीलम- मैं, मैं तो कभी नही बताऊंगी, किसी को भी नही, मैं भला क्यों बताऊंगी?
बिरजू- फ़िर, और मैं तो बताने से रहा, तो कोई जानेगा कैसे?
नीलम- फिर भी कभी किसी ने देख लिया तो?
बिरजू- चुपके चुपके, छुप छुप कर...समझी। तो फिर कोई कैसे देखेगा?
नीलम शर्म से लाल हो गयी फिर बोली- लेकिन सच सच बताओगे तब, की आप क्या देख रहे थे?
बिरजू- अच्छे से तो रात को बताऊंगा अभी तो बस यही कहूंगा कि जो मेरी बेटी मुझे दिखा रही थी वही देख रहा था।
नीलम ये सुनकर शर्मा गयी और अपने बाबू की आंखों में देखने लगी फिर उसने अपना एक पैर खोलकर दूसरी डाली पर रख दिया और दिखावे के लिए जामुन तोड़ने लगी, घाघरा एक बार फिर फैल गया और बिरजू ने दोनों आंखें फाड़े घाघरे के अंदर अपनी सगी बेटी की नग्नता के अच्छे से दर्शन किये, क्या बदन था नीलम का, हाय वो कसी हुई पैंटी, वो मोटी मोटी जाँघे, पैंटी के अंदर कसमसाती बूर.....ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़
बिरजू तो हिल गया, नीलम भी शर्म से लाल होती रही, अपनी नग्नता अपने ही सगे बाबू को दिखाने में उसे अजीब सी गुदगुदी और शर्म के साथ साथ वासना की तरंगें पूरे बदन में उठती हुई महसूस हो रही थी, ये सोचकर वो गनगना जा रही थी कि कैसे उसके बाबू उसके घाघरे के अंदर एक टक लगाए उसकी टांगों, जाँघों, नितम्बों और पैंटी को देख रहे थे, कितनी शर्म भी आ रही थी उसको, काफी देर वो इसी तरह अपने बाबू को अपने हुस्न का खजाना दिखाती रही फिर उसने धीरे से बोला- अब बस करो बाबू, अब बाद में, अभी के लिए बस, ज्यादा नही, कोई देख लेगा बाबू।
नीलम ने अपने दोनों पैर एक डाल पर रखे और जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई पूरी डाल कड़कड़ा कर टूटी, नीलम लगभग 14-15 फुट ऊपर से नीचे गिरी। नीलम के मुँह से एक पल के लिए डर के मारे चीख निकल गयी, नीलम की तेज चीख और डाल टूटने की कड़कड़ाहट सुनकर नीलम की माँ ने भी कुएँ से पलट के देखा, और चिल्लाते हुए पेड़ की तरफ भागी।
बिरजू ने लपकक्कर अपनी बेटी नीलम को जल्दी से अपनी बलशाली भुजाओं में थाम लिया और भाग्यवश बगल में ही मजबूत खाट होने की वजह से दोनों उस खाट पर धड़ाम से गिरे, और खाट की एक पाटी मजबूत होने पर भी कड़ाक से टूट गयी, करीब 14-15 फुट ऊपर से नीलम गिरी और बिरजू उसे थामते हुए लेकर खाट पर गिरा तो पाटी तो टूटनी ही थी, नीलम का मदमस्त गदराया बदन अपने बाबू की मजबूत बाहों में झूल गया, बिरजू नीलम को लेके अपने दाएं हाँथ के बल खाट पे गिरा और सारा भार उसके हाँथ पर आ गया जिससे उसके हाँथ में गुम चोट लगी, ईश्वर की कृपा थी कि बस यही एक चोट बिरजू को लगी थी, नीलम बिल्कुल सुरक्षित बच गयी थी, अपने बाबू से वह बुरी तरह लिपटी उनके ऊपर पड़ी थी, उसका गदराया बदन, मोटी मोटी चूचीयाँ बिरजू के सीने पर दब गई, बिरजू को चोट के दर्द और अपनी बेटी के गदराए बदन का मीठा मीठा मिला जुला अहसाह हो रहा था। डाल पूरी तरह टूटी नही थी बस आधी टूटकर झूल गयी थी अगर डाल पूरी टूटकर अलग हो गयी होती तो वो भी साथ में गिरती और फिर डाल से भी काफी चोट लग सकती थी, पर ये ईश्वर की दूसरी गनीमत थी।
जामुन की डाल भले ही देखने में मोटी हो पर वो ज्यादा मजबूत नही होती ये बात नीलम जानती तो थी पर उस वक्त अपने बाबू के साथ वो वासना में डूबी हुई थी उसे ये बिल्कुल ध्यान ही नही आया कि डाल टूट सकती है और वही हुआ, जमीन पर काफी जामुन झटका लगने से टूटकर गिर गए थे, बगल में दो बाल्टी भरकर जामुन पहले ही रखे हुए थे जो नीलम ने तोड़े थे।
नीलम की माँ कुएँ पर से ही देखकर चिल्लाई- हाय मेरी बच्ची....नीलम, अरे नीलम के बाबू बचाओ उसे, पकड़ो उसे, गयी मेरी बच्ची आज, हे भगवान, टूट गयी न डाल
इसीलिए मैं बोलती हूँ कि पेड़ पर मत चढ़, गांव के बच्चों को भी डांटती रहती हूं, मैंने बोला था कि जामुन नही चाहिए रहने दे, पर ये जिद्दी माने तब न, और ये भी इसी के साथ दीवाने हुए रहते हैं, जो कहेगी बस कर देना है, सोचना समझना नही है, अरे तुम्ही चढ़ जाते पेड़ पे, उसको चढ़ाने की क्या जरूरत थी, बताओ भगवान का लाख लाख शुक्र है कि बच गयी मेरी बच्ची, आज हाथ पैर टूट ही जाते उसके, जामुन तो लग्गी से भी तोड़ी जा सकती थी पेड़ पे चढ़ने की क्या जरूरत थी, ये लड़की सच में किसी दिन हाथ पैर तुड़वायेगी अपना।
अपनी माँ को बड़बड़ाते हुए अपनी तरफ आते देखकर नीलम हड़बड़ा के अपने बाबू को देखते हुए धीरे से उनके ऊपर से उठी और बोली- मेरे बाबू आपको लगी तो नही, आज आप न होते तो मुझे कौन बचाता?, आप तो ठीक तो हो न मेरे बाबू?
बिरजू- हाँ मेरी बेटी मैं बिल्कुल ठीक हूँ, हम बच गए, बस थोड़ा सा इस सीधे हाँथ में गुम चोट आ गयी है, बाकी तो सब ठीक है (बिरजू ने हल्का सा दर्द की वजह से कराहते हुए कहा)
नीलम की आंखों से आँसू बह निकले और वो लिपटकर उनके हाँथ को देखने लगी- कहाँ बाबू कहाँ लगी मेरे बाबू को दिखाओ जरा, हे भगवान ये तो सूज गया है यहां पर हाँथ, सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं ऐसा करती न होता।
बिरजू- नही मेरी बेटी कुछ नही हुआ मुझे, तू भी न, और तू रोने क्यों लगी हे भगवान, ये तो बस इस खाट की पाटी की वजह से दबाव पड़ गया उसकी वजह से गुम चोट लगी है बस, तू तो रोने भी लगी इतनी जल्दी, बस कर मेरी बिटिया रानी।
बिरजू ने नीलम के आँसू पोछे और गले से लगा लिया।
नीलम- आपके होते हुए मुझे कुछ हो सकता है बाबू, आज मैं ये जान गई कि आप ही मेरे रक्षक हो, आप उठो चलो बरामदे में।
तभी नीलम की मां आ गयी और नीलम को बाहों में भर लिया- मेरी बच्ची तुझे कहीं लगी तो नही, तुझे कितनी बार मना किया है न कि पेड़ पर मत चढ़ मत चढ़, पर तु माने तब न, तुझे कुछ हो जाता तो ससुराल वालों को क्या जवाब देती मैं, कितने ऊपर से गिरी है तू, लाख लाख शुक्र है ईश्वर का की बच गयी मेरी बच्ची आज, अब मत चढ़ना कभी पेड़ पर।
नीलम- अम्मा मुझे तो बाबू ने बचा लिया, मुझे चोट नही लगी पर बाबू को हाँथ में गुम चोट लग गयी है, आज वो न होते तो मुझे बहुत चोट लगती, मेरे बाबू ने मुझे बचाया है।
नीलम की माँ- कहाँ लगी तुम्हे दिखाओ, हे भगवान देखो कितनी सूजन हो गयी है, चलो बरामदे में लेटो मैं धतूरे के पत्ते में हल्दी गरम करके बांध देती हूं शाम तक सूजन उत्तर जाएगी, आज सुबह सुबह यही सब होना था।
बिरजू- अरे नीलम की माँ तू ज्यादा परेशान मत हो ये सब तो होता ही रहता है जिंदगी में, ज्यादा नही लगी है बस यहीं बाजू में लगी है थोड़ी सी, वो तो खाट थी तो बच गए वरना ज्यादा लग जाती।
नीलम और उसकी माँ बिरजू को सहारा देकर बरामदे में लाये और बिस्तर पर लिटाया, नीलम दौड़ कर गयी धतूरे के पत्ते तोड़कर लायी और माँ को दिया उसकी माँ रसोई में हल्दी, लहसन, फिटकरी मिलाकर सरसों के तेल में पकाकर पेस्ट बनाने ले लिए चली गयी।
नीलम अपने बाबू की आंखों में बड़े प्यार से एकटक देखने लगी और बोली- सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं जिद करती और न ये सब होता, देखो चोट लग गयी न आपको, मुझे तो बचा लिया अपने पर मेरी वजह से आपको चोट लगी न बाबू।
बिरजू ने नीलम के चहरे को हाँथों में थाम लिया और बोला- तू अपने को क्यों कोस रही है पगली, कभी कभी कुछ दर्द भरी घटना अगर अच्छे के लिए हो तो वो घटना अच्छी ही मानी जाती है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर जाऊंगा ये छोटा सी चोट क्या चीज़ है,आज तूने मुझे इतना प्यार दिया और इतना आनंद दिया, उसका भी तो अपना अलग ही मजा था, तू ये सब न करती तो भला तू मुझे आज मिलती कैसे, तुझे पता है आज तू मुझे मिल गयी है, तुझे आज पाया है मैंने, अपनी बेटी को आज पाया है मैंने, आज मैं कितना खुश हूं तुझे नही पता, और इसके बदले में ये छोटा सा दर्द तो बहुत कम है मेरी बेटी, बहुत कम, तू अपने को मत कोस ये होना था और अच्छे के लिए होना था।
नीलम इतना सुनते ही भावुक होकर अपने बाबू के गले लग गयी और बोली- ओह बाबू आज अपने मेरा दिल जीत लिया, सच पूछो तो दीवानी तो मैं आपकी बहुत पहले से थी पर आज मैं पूरी तरह आपकी हो गयी सिर्फ आपकी, आज मैं भी इतनी खुश हूं कि मैं बयान नही कर सकती।
ऐसा कहकर नीलम और बिरजू एक दूसरे की आंखों में देखने लगे, दोनों की आंखों में प्यार और प्यास दोनों साफ नज़र आ रहा था अपनी बेटी के तरसते होंठों को वो लगतार देखे जा रहा था, कभी पूरे चेहरे को निहारता, कभी लाली लगे हुए होंठो को देखता, कभी आंख और नाक तथा नाक की प्यारी सी लौंग को देखता, बिरजू को हाथ में दर्द भी हो रहा था। इतने में वो बोला- अब आज तो तेरी अम्मा जाने से रही नाना के घर, तो हम गाय और बछिया के बारे में बात कैसे करेंगे और तुम मुझे जामुन कैसे खिलाओगी?
नीलम मुस्कुराते हुए- आप अपनी बेटी को कम समझते हैं क्या बाबू, देखते जाइये मैं कैसे अम्मा को नाना के यहां भेजती हूँ और हाँ अगर आज नही मानी तो कल तो पक्का भेजूंगी, अपने बाबू को जामुन तो खिलाकर रहूँगी वो भी बहुत मीठा वाला।
बिरजू- हाय! सच
नीलम- हाँ सच, देखते जाइये।
बिरजू- ये तो मुझे पता है कि मेरी बेटी बहुत तेज है।
नीलम- आपकी बेटी हूँ, तेज तो होऊंगी ही न।
इतने में नीलम की माँ धतूरे के पत्ते में पकाया हुआ गरम हल्दी का पेस्ट लेकर आती हुई जान पड़ी तो दोनों बाप बेटी अलग हो गए, नीलम की माँ ने वो पेस्ट बिरजू के चोट पर लगा कर पत्ते से बांध दिया और ऊपर से पट्टी बांध दी और बोली- अब ऐसे ही लेटे रहो, आज कहीं जाना नही, ये घरेलू दवाई शाम तक सारा दर्द खींच लेगी और सूजन भी कम हो जाएगी, शाम को एक बार और बांध दूंगी, आराम करो अब।
नीलम की माँ ने पेड़ के नीचे रखी जामुन से भरी दोनों बाल्टी उठाकर घर में रख दी और बिखरे हुए जामुन भी बटोर लिए, टूटी खाट उठा कर बगल में रख दी, डाल पेड़ पर लटकी झूल ही रही थी उसे देख बिरजू नीलम की माँ से बोला- देखना किसी गाँव के बच्चे को पेड़ के नीचे मत खेलने देना ये डाल कभी भी टूटकर गिर सकती है, मुझे थोड़ा आराम हो जाये तो मैं इसे खींचकर गिराता हूँ।
नीलम की माँ- अरे अभी तुम आराम करो, करना बाद में जो भी करना हो, जरा सा चैन नही है, चोट लगने पर भी।
नीलम अपने बाबू को देख कर मुस्कुराने लगी बिरजू भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।
(ये वही 6ठा दिन था जब उदयराज ने शाम को खेत से आते वक्त नीलम को रोड के पास धतूरे के पत्ते तोड़ते हुए देखा था और पूछा था कि क्या हो गया, फिर नीलम ने उसे जब बताया कि बाबू को चोट लग गयी है तब वो उसी वक्त बिरजू को देखने गया था और उसे फिर थोड़ा देर भी हो गयी थी, इसी के बाद था 7वां दिन अमावस्या की रात)