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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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Update- 45


नीलम जमुन के पेड़ की डाल पर बैठी आस पास लगे मोटे मोटे पके हुए काले काले जामुनों को गुच्छों सहित तोड़कर नीचे खाट पर फेंकने लगी, बिरजू नीचे खड़ा अपनी बेटी को मंत्रमुग्ध सा देखता रहा, जब खाट पर काफी जामुन हो गए तो बिरजू ने उन्हें एक बाल्टी में पलट लिया, फिर ऊपर देखने लगा, नीलम जिस डाल पर बैठी थी वहां आस पास और थोड़ा दूर दूर उसने हाँथ बढ़ा कर सारे अच्छे अच्छे पके हुए जामुन तोड़ लिए। नीलम अपने बाबू को देखते हुए उस डाल से उठी और दूसरी डाल पर चली गयी, बिरजू नीचे से नीलम को निहार रहा था।


नीलम इस वक्त जहां पर थी वहां दो मोटी मोटी डाल थी, नीलम को यही तो चाहिए था, जामुन तो वो अच्छे खासे तोड़ चुकी थी अब उसे बिरजू को कुछ अच्छे से दिखाना था उसने अपना एक पैर अच्छे से खोलकर फैलाकर दूसरी डाल पर रख दिया, घाघरा पूरा फैल गया, नीलम के ठीक नीचे बिरजू खाट के पास खड़ा किसी चकोर की तरफ एक टक लगाए अपनी बिटिया को निहार रहा था, जैसे ही नीलम ने अपने पैर ऊपर डाली पर रखकर फैलाये घाघरे के अंदर नीलम की वो गोरी गोरी टांगें, मादक मोटी मोटी जाँघे और उसमे फंसी काली पैंटी साफ दिख गयी, उसके विशाल गुदाज दोनों नितम्ब कैसे पतली सी पैंटी में कसे हुए थे और उफ़्फ़फ़फ़ वो दोनों जाँघों के बीच वो मोटा सा फूला हुआ हिस्सा जो चीख चीख के कह रहा था कि हां यहीं है वो महकती हुई मखमली सी जवान प्यासी बूर, इसलिए दोनों जाँघों के बीच पैंटी यहां उभरी हुई है, उस जगह पर पैंटी इतनी पतली थी कि बस उसने किसी तरह केवल मखमली बूर को ही ढका हुआ था, ऐसा लग रहा था कि वो काली पैंटी नीलम की मदमस्त जवानी को, उसके गुदाज, मांसल जाँघों को, मस्त चौड़े नितम्ब को संभाल पाने में असमर्थ है।


बिरजू अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की मदमस्त जवानी को देखकर वासना से लाल होता चला गया उसका लंड धोती में हिचकोले खाने लगा उसने जैसे तैसे नज़रें बचा कर उसे ठीक किया, एक टक वो पैंटी के अंदर अपनी सगी बेटी की बूर और मोटी मोटी जाँघे, मदमस्त गोरी टांगें घूरे जा रहा था, कई बार उसने अपने सूख गए होंठो पर जीभ फेरा और अपनी बेटी की नग्नता के दर्शन करते हुए अपनी सांसों को काबू करने की कोशिश करने लगा। नीलम अपने बाबू की मनोदशा देख देखकर जामुन तोड़ तोड़कर नीचे फेंकते हुए चुपके से मंद मंद मुस्कुराते जा रही थी।


नीलम ने एक बार फिर काफी जामुन तोड़ तोड़ कर खाट पर इकठ्ठे कर दिए, बिरजू ने उसे भी बाल्टी में पलट दिया, नीलम ने अब अपने बाबू को तरसाने के लिए अपने दोनों पैर एक ही डाल पर रख लिए, बिरजू मन मकोस कर रह गया, अपने बाबू की हालत देख नीलम हंस पड़ी और बोली- क्या देख रहे थे बाबू?


बिरजू- यही की तू जामुन कैसे तोड़ रही है?


नीलम- पक्का यही देख रहे थे।


बिरजू- हाँ


नीलम ने बड़ी अदा से कहा- सच्ची बोलोगे तो दुबारा.........


बिरजू ने बड़ी वासना से नीलम को देखा फिर बोला- सच, दुबारा


नीलम- ह्म्म्म, बिल्कुल, सच बोलने का इनाम मिलेगा न।


बिरजू- अच्छा! और क्या क्या मिलेगा?


नीलम- क्या क्या चाहिए मेरे बाबू को?


बिरजू- मुझे..... मुझे तो पूरी की पूरी नीलम ही चाहिए।


नीलम जोर हंसते हुए शर्मा गयी और बोली- धत्त, पगलू, बेटी हूँ न मैं आपकी, वो भी सगी, अपनी ही सगी बेटी चाहिए मेरे बाबू को, कोई जान जाएगा तो क्या सोचेगा, बदमाश? (नीलम ने बड़ी अदा से धीरे से कहा)


बिरजू- कोई जानेगा कैसे? तुम बताओगी क्या किसी को?


नीलम- मैं, मैं तो कभी नही बताऊंगी, किसी को भी नही, मैं भला क्यों बताऊंगी?


बिरजू- फ़िर, और मैं तो बताने से रहा, तो कोई जानेगा कैसे?


नीलम- फिर भी कभी किसी ने देख लिया तो?


बिरजू- चुपके चुपके, छुप छुप कर...समझी। तो फिर कोई कैसे देखेगा?


नीलम शर्म से लाल हो गयी फिर बोली- लेकिन सच सच बताओगे तब, की आप क्या देख रहे थे?


बिरजू- अच्छे से तो रात को बताऊंगा अभी तो बस यही कहूंगा कि जो मेरी बेटी मुझे दिखा रही थी वही देख रहा था।


नीलम ये सुनकर शर्मा गयी और अपने बाबू की आंखों में देखने लगी फिर उसने अपना एक पैर खोलकर दूसरी डाली पर रख दिया और दिखावे के लिए जामुन तोड़ने लगी, घाघरा एक बार फिर फैल गया और बिरजू ने दोनों आंखें फाड़े घाघरे के अंदर अपनी सगी बेटी की नग्नता के अच्छे से दर्शन किये, क्या बदन था नीलम का, हाय वो कसी हुई पैंटी, वो मोटी मोटी जाँघे, पैंटी के अंदर कसमसाती बूर.....ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़


बिरजू तो हिल गया, नीलम भी शर्म से लाल होती रही, अपनी नग्नता अपने ही सगे बाबू को दिखाने में उसे अजीब सी गुदगुदी और शर्म के साथ साथ वासना की तरंगें पूरे बदन में उठती हुई महसूस हो रही थी, ये सोचकर वो गनगना जा रही थी कि कैसे उसके बाबू उसके घाघरे के अंदर एक टक लगाए उसकी टांगों, जाँघों, नितम्बों और पैंटी को देख रहे थे, कितनी शर्म भी आ रही थी उसको, काफी देर वो इसी तरह अपने बाबू को अपने हुस्न का खजाना दिखाती रही फिर उसने धीरे से बोला- अब बस करो बाबू, अब बाद में, अभी के लिए बस, ज्यादा नही, कोई देख लेगा बाबू।


नीलम ने अपने दोनों पैर एक डाल पर रखे और जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई पूरी डाल कड़कड़ा कर टूटी, नीलम लगभग 14-15 फुट ऊपर से नीचे गिरी। नीलम के मुँह से एक पल के लिए डर के मारे चीख निकल गयी, नीलम की तेज चीख और डाल टूटने की कड़कड़ाहट सुनकर नीलम की माँ ने भी कुएँ से पलट के देखा, और चिल्लाते हुए पेड़ की तरफ भागी।


बिरजू ने लपकक्कर अपनी बेटी नीलम को जल्दी से अपनी बलशाली भुजाओं में थाम लिया और भाग्यवश बगल में ही मजबूत खाट होने की वजह से दोनों उस खाट पर धड़ाम से गिरे, और खाट की एक पाटी मजबूत होने पर भी कड़ाक से टूट गयी, करीब 14-15 फुट ऊपर से नीलम गिरी और बिरजू उसे थामते हुए लेकर खाट पर गिरा तो पाटी तो टूटनी ही थी, नीलम का मदमस्त गदराया बदन अपने बाबू की मजबूत बाहों में झूल गया, बिरजू नीलम को लेके अपने दाएं हाँथ के बल खाट पे गिरा और सारा भार उसके हाँथ पर आ गया जिससे उसके हाँथ में गुम चोट लगी, ईश्वर की कृपा थी कि बस यही एक चोट बिरजू को लगी थी, नीलम बिल्कुल सुरक्षित बच गयी थी, अपने बाबू से वह बुरी तरह लिपटी उनके ऊपर पड़ी थी, उसका गदराया बदन, मोटी मोटी चूचीयाँ बिरजू के सीने पर दब गई, बिरजू को चोट के दर्द और अपनी बेटी के गदराए बदन का मीठा मीठा मिला जुला अहसाह हो रहा था। डाल पूरी तरह टूटी नही थी बस आधी टूटकर झूल गयी थी अगर डाल पूरी टूटकर अलग हो गयी होती तो वो भी साथ में गिरती और फिर डाल से भी काफी चोट लग सकती थी, पर ये ईश्वर की दूसरी गनीमत थी।


जामुन की डाल भले ही देखने में मोटी हो पर वो ज्यादा मजबूत नही होती ये बात नीलम जानती तो थी पर उस वक्त अपने बाबू के साथ वो वासना में डूबी हुई थी उसे ये बिल्कुल ध्यान ही नही आया कि डाल टूट सकती है और वही हुआ, जमीन पर काफी जामुन झटका लगने से टूटकर गिर गए थे, बगल में दो बाल्टी भरकर जामुन पहले ही रखे हुए थे जो नीलम ने तोड़े थे।


नीलम की माँ कुएँ पर से ही देखकर चिल्लाई- हाय मेरी बच्ची....नीलम, अरे नीलम के बाबू बचाओ उसे, पकड़ो उसे, गयी मेरी बच्ची आज, हे भगवान, टूट गयी न डाल
इसीलिए मैं बोलती हूँ कि पेड़ पर मत चढ़, गांव के बच्चों को भी डांटती रहती हूं, मैंने बोला था कि जामुन नही चाहिए रहने दे, पर ये जिद्दी माने तब न, और ये भी इसी के साथ दीवाने हुए रहते हैं, जो कहेगी बस कर देना है, सोचना समझना नही है, अरे तुम्ही चढ़ जाते पेड़ पे, उसको चढ़ाने की क्या जरूरत थी, बताओ भगवान का लाख लाख शुक्र है कि बच गयी मेरी बच्ची, आज हाथ पैर टूट ही जाते उसके, जामुन तो लग्गी से भी तोड़ी जा सकती थी पेड़ पे चढ़ने की क्या जरूरत थी, ये लड़की सच में किसी दिन हाथ पैर तुड़वायेगी अपना।


अपनी माँ को बड़बड़ाते हुए अपनी तरफ आते देखकर नीलम हड़बड़ा के अपने बाबू को देखते हुए धीरे से उनके ऊपर से उठी और बोली- मेरे बाबू आपको लगी तो नही, आज आप न होते तो मुझे कौन बचाता?, आप तो ठीक तो हो न मेरे बाबू?


बिरजू- हाँ मेरी बेटी मैं बिल्कुल ठीक हूँ, हम बच गए, बस थोड़ा सा इस सीधे हाँथ में गुम चोट आ गयी है, बाकी तो सब ठीक है (बिरजू ने हल्का सा दर्द की वजह से कराहते हुए कहा)


नीलम की आंखों से आँसू बह निकले और वो लिपटकर उनके हाँथ को देखने लगी- कहाँ बाबू कहाँ लगी मेरे बाबू को दिखाओ जरा, हे भगवान ये तो सूज गया है यहां पर हाँथ, सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं ऐसा करती न होता।


बिरजू- नही मेरी बेटी कुछ नही हुआ मुझे, तू भी न, और तू रोने क्यों लगी हे भगवान, ये तो बस इस खाट की पाटी की वजह से दबाव पड़ गया उसकी वजह से गुम चोट लगी है बस, तू तो रोने भी लगी इतनी जल्दी, बस कर मेरी बिटिया रानी।


बिरजू ने नीलम के आँसू पोछे और गले से लगा लिया।


नीलम- आपके होते हुए मुझे कुछ हो सकता है बाबू, आज मैं ये जान गई कि आप ही मेरे रक्षक हो, आप उठो चलो बरामदे में।


तभी नीलम की मां आ गयी और नीलम को बाहों में भर लिया- मेरी बच्ची तुझे कहीं लगी तो नही, तुझे कितनी बार मना किया है न कि पेड़ पर मत चढ़ मत चढ़, पर तु माने तब न, तुझे कुछ हो जाता तो ससुराल वालों को क्या जवाब देती मैं, कितने ऊपर से गिरी है तू, लाख लाख शुक्र है ईश्वर का की बच गयी मेरी बच्ची आज, अब मत चढ़ना कभी पेड़ पर।


नीलम- अम्मा मुझे तो बाबू ने बचा लिया, मुझे चोट नही लगी पर बाबू को हाँथ में गुम चोट लग गयी है, आज वो न होते तो मुझे बहुत चोट लगती, मेरे बाबू ने मुझे बचाया है।


नीलम की माँ- कहाँ लगी तुम्हे दिखाओ, हे भगवान देखो कितनी सूजन हो गयी है, चलो बरामदे में लेटो मैं धतूरे के पत्ते में हल्दी गरम करके बांध देती हूं शाम तक सूजन उत्तर जाएगी, आज सुबह सुबह यही सब होना था।


बिरजू- अरे नीलम की माँ तू ज्यादा परेशान मत हो ये सब तो होता ही रहता है जिंदगी में, ज्यादा नही लगी है बस यहीं बाजू में लगी है थोड़ी सी, वो तो खाट थी तो बच गए वरना ज्यादा लग जाती।


नीलम और उसकी माँ बिरजू को सहारा देकर बरामदे में लाये और बिस्तर पर लिटाया, नीलम दौड़ कर गयी धतूरे के पत्ते तोड़कर लायी और माँ को दिया उसकी माँ रसोई में हल्दी, लहसन, फिटकरी मिलाकर सरसों के तेल में पकाकर पेस्ट बनाने ले लिए चली गयी।


नीलम अपने बाबू की आंखों में बड़े प्यार से एकटक देखने लगी और बोली- सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं जिद करती और न ये सब होता, देखो चोट लग गयी न आपको, मुझे तो बचा लिया अपने पर मेरी वजह से आपको चोट लगी न बाबू।


बिरजू ने नीलम के चहरे को हाँथों में थाम लिया और बोला- तू अपने को क्यों कोस रही है पगली, कभी कभी कुछ दर्द भरी घटना अगर अच्छे के लिए हो तो वो घटना अच्छी ही मानी जाती है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर जाऊंगा ये छोटा सी चोट क्या चीज़ है,आज तूने मुझे इतना प्यार दिया और इतना आनंद दिया, उसका भी तो अपना अलग ही मजा था, तू ये सब न करती तो भला तू मुझे आज मिलती कैसे, तुझे पता है आज तू मुझे मिल गयी है, तुझे आज पाया है मैंने, अपनी बेटी को आज पाया है मैंने, आज मैं कितना खुश हूं तुझे नही पता, और इसके बदले में ये छोटा सा दर्द तो बहुत कम है मेरी बेटी, बहुत कम, तू अपने को मत कोस ये होना था और अच्छे के लिए होना था।


नीलम इतना सुनते ही भावुक होकर अपने बाबू के गले लग गयी और बोली- ओह बाबू आज अपने मेरा दिल जीत लिया, सच पूछो तो दीवानी तो मैं आपकी बहुत पहले से थी पर आज मैं पूरी तरह आपकी हो गयी सिर्फ आपकी, आज मैं भी इतनी खुश हूं कि मैं बयान नही कर सकती।


ऐसा कहकर नीलम और बिरजू एक दूसरे की आंखों में देखने लगे, दोनों की आंखों में प्यार और प्यास दोनों साफ नज़र आ रहा था अपनी बेटी के तरसते होंठों को वो लगतार देखे जा रहा था, कभी पूरे चेहरे को निहारता, कभी लाली लगे हुए होंठो को देखता, कभी आंख और नाक तथा नाक की प्यारी सी लौंग को देखता, बिरजू को हाथ में दर्द भी हो रहा था। इतने में वो बोला- अब आज तो तेरी अम्मा जाने से रही नाना के घर, तो हम गाय और बछिया के बारे में बात कैसे करेंगे और तुम मुझे जामुन कैसे खिलाओगी?


नीलम मुस्कुराते हुए- आप अपनी बेटी को कम समझते हैं क्या बाबू, देखते जाइये मैं कैसे अम्मा को नाना के यहां भेजती हूँ और हाँ अगर आज नही मानी तो कल तो पक्का भेजूंगी, अपने बाबू को जामुन तो खिलाकर रहूँगी वो भी बहुत मीठा वाला।


बिरजू- हाय! सच


नीलम- हाँ सच, देखते जाइये।


बिरजू- ये तो मुझे पता है कि मेरी बेटी बहुत तेज है।


नीलम- आपकी बेटी हूँ, तेज तो होऊंगी ही न।


इतने में नीलम की माँ धतूरे के पत्ते में पकाया हुआ गरम हल्दी का पेस्ट लेकर आती हुई जान पड़ी तो दोनों बाप बेटी अलग हो गए, नीलम की माँ ने वो पेस्ट बिरजू के चोट पर लगा कर पत्ते से बांध दिया और ऊपर से पट्टी बांध दी और बोली- अब ऐसे ही लेटे रहो, आज कहीं जाना नही, ये घरेलू दवाई शाम तक सारा दर्द खींच लेगी और सूजन भी कम हो जाएगी, शाम को एक बार और बांध दूंगी, आराम करो अब।


नीलम की माँ ने पेड़ के नीचे रखी जामुन से भरी दोनों बाल्टी उठाकर घर में रख दी और बिखरे हुए जामुन भी बटोर लिए, टूटी खाट उठा कर बगल में रख दी, डाल पेड़ पर लटकी झूल ही रही थी उसे देख बिरजू नीलम की माँ से बोला- देखना किसी गाँव के बच्चे को पेड़ के नीचे मत खेलने देना ये डाल कभी भी टूटकर गिर सकती है, मुझे थोड़ा आराम हो जाये तो मैं इसे खींचकर गिराता हूँ।


नीलम की माँ- अरे अभी तुम आराम करो, करना बाद में जो भी करना हो, जरा सा चैन नही है, चोट लगने पर भी।


नीलम अपने बाबू को देख कर मुस्कुराने लगी बिरजू भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।



(ये वही 6ठा दिन था जब उदयराज ने शाम को खेत से आते वक्त नीलम को रोड के पास धतूरे के पत्ते तोड़ते हुए देखा था और पूछा था कि क्या हो गया, फिर नीलम ने उसे जब बताया कि बाबू को चोट लग गयी है तब वो उसी वक्त बिरजू को देखने गया था और उसे फिर थोड़ा देर भी हो गयी थी, इसी के बाद था 7वां दिन अमावस्या की रात)
कुछ बोलने को बचा ही नहीं
 
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Jangali

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नीलम जमुन के पेड़ की डाल पर बैठी आस पास लगे मोटे मोटे पके हुए काले काले जामुनों को गुच्छों सहित तोड़कर नीचे खाट पर फेंकने लगी, बिरजू नीचे खड़ा अपनी बेटी को मंत्रमुग्ध सा देखता रहा, जब खाट पर काफी जामुन हो गए तो बिरजू ने उन्हें एक बाल्टी में पलट लिया, फिर ऊपर देखने लगा, नीलम जिस डाल पर बैठी थी वहां आस पास और थोड़ा दूर दूर उसने हाँथ बढ़ा कर सारे अच्छे अच्छे पके हुए जामुन तोड़ लिए। नीलम अपने बाबू को देखते हुए उस डाल से उठी और दूसरी डाल पर चली गयी, बिरजू नीचे से नीलम को निहार रहा था।


नीलम इस वक्त जहां पर थी वहां दो मोटी मोटी डाल थी, नीलम को यही तो चाहिए था, जामुन तो वो अच्छे खासे तोड़ चुकी थी अब उसे बिरजू को कुछ अच्छे से दिखाना था उसने अपना एक पैर अच्छे से खोलकर फैलाकर दूसरी डाल पर रख दिया, घाघरा पूरा फैल गया, नीलम के ठीक नीचे बिरजू खाट के पास खड़ा किसी चकोर की तरफ एक टक लगाए अपनी बिटिया को निहार रहा था, जैसे ही नीलम ने अपने पैर ऊपर डाली पर रखकर फैलाये घाघरे के अंदर नीलम की वो गोरी गोरी टांगें, मादक मोटी मोटी जाँघे और उसमे फंसी काली पैंटी साफ दिख गयी, उसके विशाल गुदाज दोनों नितम्ब कैसे पतली सी पैंटी में कसे हुए थे और उफ़्फ़फ़फ़ वो दोनों जाँघों के बीच वो मोटा सा फूला हुआ हिस्सा जो चीख चीख के कह रहा था कि हां यहीं है वो महकती हुई मखमली सी जवान प्यासी बूर, इसलिए दोनों जाँघों के बीच पैंटी यहां उभरी हुई है, उस जगह पर पैंटी इतनी पतली थी कि बस उसने किसी तरह केवल मखमली बूर को ही ढका हुआ था, ऐसा लग रहा था कि वो काली पैंटी नीलम की मदमस्त जवानी को, उसके गुदाज, मांसल जाँघों को, मस्त चौड़े नितम्ब को संभाल पाने में असमर्थ है।


बिरजू अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की मदमस्त जवानी को देखकर वासना से लाल होता चला गया उसका लंड धोती में हिचकोले खाने लगा उसने जैसे तैसे नज़रें बचा कर उसे ठीक किया, एक टक वो पैंटी के अंदर अपनी सगी बेटी की बूर और मोटी मोटी जाँघे, मदमस्त गोरी टांगें घूरे जा रहा था, कई बार उसने अपने सूख गए होंठो पर जीभ फेरा और अपनी बेटी की नग्नता के दर्शन करते हुए अपनी सांसों को काबू करने की कोशिश करने लगा। नीलम अपने बाबू की मनोदशा देख देखकर जामुन तोड़ तोड़कर नीचे फेंकते हुए चुपके से मंद मंद मुस्कुराते जा रही थी।


नीलम ने एक बार फिर काफी जामुन तोड़ तोड़ कर खाट पर इकठ्ठे कर दिए, बिरजू ने उसे भी बाल्टी में पलट दिया, नीलम ने अब अपने बाबू को तरसाने के लिए अपने दोनों पैर एक ही डाल पर रख लिए, बिरजू मन मकोस कर रह गया, अपने बाबू की हालत देख नीलम हंस पड़ी और बोली- क्या देख रहे थे बाबू?


बिरजू- यही की तू जामुन कैसे तोड़ रही है?


नीलम- पक्का यही देख रहे थे।


बिरजू- हाँ


नीलम ने बड़ी अदा से कहा- सच्ची बोलोगे तो दुबारा.........


बिरजू ने बड़ी वासना से नीलम को देखा फिर बोला- सच, दुबारा


नीलम- ह्म्म्म, बिल्कुल, सच बोलने का इनाम मिलेगा न।


बिरजू- अच्छा! और क्या क्या मिलेगा?


नीलम- क्या क्या चाहिए मेरे बाबू को?


बिरजू- मुझे..... मुझे तो पूरी की पूरी नीलम ही चाहिए।


नीलम जोर हंसते हुए शर्मा गयी और बोली- धत्त, पगलू, बेटी हूँ न मैं आपकी, वो भी सगी, अपनी ही सगी बेटी चाहिए मेरे बाबू को, कोई जान जाएगा तो क्या सोचेगा, बदमाश? (नीलम ने बड़ी अदा से धीरे से कहा)


बिरजू- कोई जानेगा कैसे? तुम बताओगी क्या किसी को?


नीलम- मैं, मैं तो कभी नही बताऊंगी, किसी को भी नही, मैं भला क्यों बताऊंगी?


बिरजू- फ़िर, और मैं तो बताने से रहा, तो कोई जानेगा कैसे?


नीलम- फिर भी कभी किसी ने देख लिया तो?


बिरजू- चुपके चुपके, छुप छुप कर...समझी। तो फिर कोई कैसे देखेगा?


नीलम शर्म से लाल हो गयी फिर बोली- लेकिन सच सच बताओगे तब, की आप क्या देख रहे थे?


बिरजू- अच्छे से तो रात को बताऊंगा अभी तो बस यही कहूंगा कि जो मेरी बेटी मुझे दिखा रही थी वही देख रहा था।


नीलम ये सुनकर शर्मा गयी और अपने बाबू की आंखों में देखने लगी फिर उसने अपना एक पैर खोलकर दूसरी डाली पर रख दिया और दिखावे के लिए जामुन तोड़ने लगी, घाघरा एक बार फिर फैल गया और बिरजू ने दोनों आंखें फाड़े घाघरे के अंदर अपनी सगी बेटी की नग्नता के अच्छे से दर्शन किये, क्या बदन था नीलम का, हाय वो कसी हुई पैंटी, वो मोटी मोटी जाँघे, पैंटी के अंदर कसमसाती बूर.....ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़


बिरजू तो हिल गया, नीलम भी शर्म से लाल होती रही, अपनी नग्नता अपने ही सगे बाबू को दिखाने में उसे अजीब सी गुदगुदी और शर्म के साथ साथ वासना की तरंगें पूरे बदन में उठती हुई महसूस हो रही थी, ये सोचकर वो गनगना जा रही थी कि कैसे उसके बाबू उसके घाघरे के अंदर एक टक लगाए उसकी टांगों, जाँघों, नितम्बों और पैंटी को देख रहे थे, कितनी शर्म भी आ रही थी उसको, काफी देर वो इसी तरह अपने बाबू को अपने हुस्न का खजाना दिखाती रही फिर उसने धीरे से बोला- अब बस करो बाबू, अब बाद में, अभी के लिए बस, ज्यादा नही, कोई देख लेगा बाबू।


नीलम ने अपने दोनों पैर एक डाल पर रखे और जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई पूरी डाल कड़कड़ा कर टूटी, नीलम लगभग 14-15 फुट ऊपर से नीचे गिरी। नीलम के मुँह से एक पल के लिए डर के मारे चीख निकल गयी, नीलम की तेज चीख और डाल टूटने की कड़कड़ाहट सुनकर नीलम की माँ ने भी कुएँ से पलट के देखा, और चिल्लाते हुए पेड़ की तरफ भागी।


बिरजू ने लपकक्कर अपनी बेटी नीलम को जल्दी से अपनी बलशाली भुजाओं में थाम लिया और भाग्यवश बगल में ही मजबूत खाट होने की वजह से दोनों उस खाट पर धड़ाम से गिरे, और खाट की एक पाटी मजबूत होने पर भी कड़ाक से टूट गयी, करीब 14-15 फुट ऊपर से नीलम गिरी और बिरजू उसे थामते हुए लेकर खाट पर गिरा तो पाटी तो टूटनी ही थी, नीलम का मदमस्त गदराया बदन अपने बाबू की मजबूत बाहों में झूल गया, बिरजू नीलम को लेके अपने दाएं हाँथ के बल खाट पे गिरा और सारा भार उसके हाँथ पर आ गया जिससे उसके हाँथ में गुम चोट लगी, ईश्वर की कृपा थी कि बस यही एक चोट बिरजू को लगी थी, नीलम बिल्कुल सुरक्षित बच गयी थी, अपने बाबू से वह बुरी तरह लिपटी उनके ऊपर पड़ी थी, उसका गदराया बदन, मोटी मोटी चूचीयाँ बिरजू के सीने पर दब गई, बिरजू को चोट के दर्द और अपनी बेटी के गदराए बदन का मीठा मीठा मिला जुला अहसाह हो रहा था। डाल पूरी तरह टूटी नही थी बस आधी टूटकर झूल गयी थी अगर डाल पूरी टूटकर अलग हो गयी होती तो वो भी साथ में गिरती और फिर डाल से भी काफी चोट लग सकती थी, पर ये ईश्वर की दूसरी गनीमत थी।


जामुन की डाल भले ही देखने में मोटी हो पर वो ज्यादा मजबूत नही होती ये बात नीलम जानती तो थी पर उस वक्त अपने बाबू के साथ वो वासना में डूबी हुई थी उसे ये बिल्कुल ध्यान ही नही आया कि डाल टूट सकती है और वही हुआ, जमीन पर काफी जामुन झटका लगने से टूटकर गिर गए थे, बगल में दो बाल्टी भरकर जामुन पहले ही रखे हुए थे जो नीलम ने तोड़े थे।


नीलम की माँ कुएँ पर से ही देखकर चिल्लाई- हाय मेरी बच्ची....नीलम, अरे नीलम के बाबू बचाओ उसे, पकड़ो उसे, गयी मेरी बच्ची आज, हे भगवान, टूट गयी न डाल
इसीलिए मैं बोलती हूँ कि पेड़ पर मत चढ़, गांव के बच्चों को भी डांटती रहती हूं, मैंने बोला था कि जामुन नही चाहिए रहने दे, पर ये जिद्दी माने तब न, और ये भी इसी के साथ दीवाने हुए रहते हैं, जो कहेगी बस कर देना है, सोचना समझना नही है, अरे तुम्ही चढ़ जाते पेड़ पे, उसको चढ़ाने की क्या जरूरत थी, बताओ भगवान का लाख लाख शुक्र है कि बच गयी मेरी बच्ची, आज हाथ पैर टूट ही जाते उसके, जामुन तो लग्गी से भी तोड़ी जा सकती थी पेड़ पे चढ़ने की क्या जरूरत थी, ये लड़की सच में किसी दिन हाथ पैर तुड़वायेगी अपना।


अपनी माँ को बड़बड़ाते हुए अपनी तरफ आते देखकर नीलम हड़बड़ा के अपने बाबू को देखते हुए धीरे से उनके ऊपर से उठी और बोली- मेरे बाबू आपको लगी तो नही, आज आप न होते तो मुझे कौन बचाता?, आप तो ठीक तो हो न मेरे बाबू?


बिरजू- हाँ मेरी बेटी मैं बिल्कुल ठीक हूँ, हम बच गए, बस थोड़ा सा इस सीधे हाँथ में गुम चोट आ गयी है, बाकी तो सब ठीक है (बिरजू ने हल्का सा दर्द की वजह से कराहते हुए कहा)


नीलम की आंखों से आँसू बह निकले और वो लिपटकर उनके हाँथ को देखने लगी- कहाँ बाबू कहाँ लगी मेरे बाबू को दिखाओ जरा, हे भगवान ये तो सूज गया है यहां पर हाँथ, सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं ऐसा करती न होता।


बिरजू- नही मेरी बेटी कुछ नही हुआ मुझे, तू भी न, और तू रोने क्यों लगी हे भगवान, ये तो बस इस खाट की पाटी की वजह से दबाव पड़ गया उसकी वजह से गुम चोट लगी है बस, तू तो रोने भी लगी इतनी जल्दी, बस कर मेरी बिटिया रानी।


बिरजू ने नीलम के आँसू पोछे और गले से लगा लिया।


नीलम- आपके होते हुए मुझे कुछ हो सकता है बाबू, आज मैं ये जान गई कि आप ही मेरे रक्षक हो, आप उठो चलो बरामदे में।


तभी नीलम की मां आ गयी और नीलम को बाहों में भर लिया- मेरी बच्ची तुझे कहीं लगी तो नही, तुझे कितनी बार मना किया है न कि पेड़ पर मत चढ़ मत चढ़, पर तु माने तब न, तुझे कुछ हो जाता तो ससुराल वालों को क्या जवाब देती मैं, कितने ऊपर से गिरी है तू, लाख लाख शुक्र है ईश्वर का की बच गयी मेरी बच्ची आज, अब मत चढ़ना कभी पेड़ पर।


नीलम- अम्मा मुझे तो बाबू ने बचा लिया, मुझे चोट नही लगी पर बाबू को हाँथ में गुम चोट लग गयी है, आज वो न होते तो मुझे बहुत चोट लगती, मेरे बाबू ने मुझे बचाया है।


नीलम की माँ- कहाँ लगी तुम्हे दिखाओ, हे भगवान देखो कितनी सूजन हो गयी है, चलो बरामदे में लेटो मैं धतूरे के पत्ते में हल्दी गरम करके बांध देती हूं शाम तक सूजन उत्तर जाएगी, आज सुबह सुबह यही सब होना था।


बिरजू- अरे नीलम की माँ तू ज्यादा परेशान मत हो ये सब तो होता ही रहता है जिंदगी में, ज्यादा नही लगी है बस यहीं बाजू में लगी है थोड़ी सी, वो तो खाट थी तो बच गए वरना ज्यादा लग जाती।


नीलम और उसकी माँ बिरजू को सहारा देकर बरामदे में लाये और बिस्तर पर लिटाया, नीलम दौड़ कर गयी धतूरे के पत्ते तोड़कर लायी और माँ को दिया उसकी माँ रसोई में हल्दी, लहसन, फिटकरी मिलाकर सरसों के तेल में पकाकर पेस्ट बनाने ले लिए चली गयी।


नीलम अपने बाबू की आंखों में बड़े प्यार से एकटक देखने लगी और बोली- सब मेरी वजह से हुआ न बाबू, न मैं जिद करती और न ये सब होता, देखो चोट लग गयी न आपको, मुझे तो बचा लिया अपने पर मेरी वजह से आपको चोट लगी न बाबू।


बिरजू ने नीलम के चहरे को हाँथों में थाम लिया और बोला- तू अपने को क्यों कोस रही है पगली, कभी कभी कुछ दर्द भरी घटना अगर अच्छे के लिए हो तो वो घटना अच्छी ही मानी जाती है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर जाऊंगा ये छोटा सी चोट क्या चीज़ है,आज तूने मुझे इतना प्यार दिया और इतना आनंद दिया, उसका भी तो अपना अलग ही मजा था, तू ये सब न करती तो भला तू मुझे आज मिलती कैसे, तुझे पता है आज तू मुझे मिल गयी है, तुझे आज पाया है मैंने, अपनी बेटी को आज पाया है मैंने, आज मैं कितना खुश हूं तुझे नही पता, और इसके बदले में ये छोटा सा दर्द तो बहुत कम है मेरी बेटी, बहुत कम, तू अपने को मत कोस ये होना था और अच्छे के लिए होना था।


नीलम इतना सुनते ही भावुक होकर अपने बाबू के गले लग गयी और बोली- ओह बाबू आज अपने मेरा दिल जीत लिया, सच पूछो तो दीवानी तो मैं आपकी बहुत पहले से थी पर आज मैं पूरी तरह आपकी हो गयी सिर्फ आपकी, आज मैं भी इतनी खुश हूं कि मैं बयान नही कर सकती।


ऐसा कहकर नीलम और बिरजू एक दूसरे की आंखों में देखने लगे, दोनों की आंखों में प्यार और प्यास दोनों साफ नज़र आ रहा था अपनी बेटी के तरसते होंठों को वो लगतार देखे जा रहा था, कभी पूरे चेहरे को निहारता, कभी लाली लगे हुए होंठो को देखता, कभी आंख और नाक तथा नाक की प्यारी सी लौंग को देखता, बिरजू को हाथ में दर्द भी हो रहा था। इतने में वो बोला- अब आज तो तेरी अम्मा जाने से रही नाना के घर, तो हम गाय और बछिया के बारे में बात कैसे करेंगे और तुम मुझे जामुन कैसे खिलाओगी?


नीलम मुस्कुराते हुए- आप अपनी बेटी को कम समझते हैं क्या बाबू, देखते जाइये मैं कैसे अम्मा को नाना के यहां भेजती हूँ और हाँ अगर आज नही मानी तो कल तो पक्का भेजूंगी, अपने बाबू को जामुन तो खिलाकर रहूँगी वो भी बहुत मीठा वाला।


बिरजू- हाय! सच


नीलम- हाँ सच, देखते जाइये।


बिरजू- ये तो मुझे पता है कि मेरी बेटी बहुत तेज है।


नीलम- आपकी बेटी हूँ, तेज तो होऊंगी ही न।


इतने में नीलम की माँ धतूरे के पत्ते में पकाया हुआ गरम हल्दी का पेस्ट लेकर आती हुई जान पड़ी तो दोनों बाप बेटी अलग हो गए, नीलम की माँ ने वो पेस्ट बिरजू के चोट पर लगा कर पत्ते से बांध दिया और ऊपर से पट्टी बांध दी और बोली- अब ऐसे ही लेटे रहो, आज कहीं जाना नही, ये घरेलू दवाई शाम तक सारा दर्द खींच लेगी और सूजन भी कम हो जाएगी, शाम को एक बार और बांध दूंगी, आराम करो अब।


नीलम की माँ ने पेड़ के नीचे रखी जामुन से भरी दोनों बाल्टी उठाकर घर में रख दी और बिखरे हुए जामुन भी बटोर लिए, टूटी खाट उठा कर बगल में रख दी, डाल पेड़ पर लटकी झूल ही रही थी उसे देख बिरजू नीलम की माँ से बोला- देखना किसी गाँव के बच्चे को पेड़ के नीचे मत खेलने देना ये डाल कभी भी टूटकर गिर सकती है, मुझे थोड़ा आराम हो जाये तो मैं इसे खींचकर गिराता हूँ।


नीलम की माँ- अरे अभी तुम आराम करो, करना बाद में जो भी करना हो, जरा सा चैन नही है, चोट लगने पर भी।


नीलम अपने बाबू को देख कर मुस्कुराने लगी बिरजू भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।



(ये वही 6ठा दिन था जब उदयराज ने शाम को खेत से आते वक्त नीलम को रोड के पास धतूरे के पत्ते तोड़ते हुए देखा था और पूछा था कि क्या हो गया, फिर नीलम ने उसे जब बताया कि बाबू को चोट लग गयी है तब वो उसी वक्त बिरजू को देखने गया था और उसे फिर थोड़ा देर भी हो गयी थी, इसी के बाद था 7वां दिन अमावस्या की रात)
कुछ बोलने को बचा ही नहीं
 
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superb mind-blowing update hai bhaii
 
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बहुत ही लाजवाब अपडेट है
बिरजू और नीलम का मिलन जल्दी करवा दो भाई
जबरदस्त तरीकेसे
बहुत जल्दी मिलन करवा के क्या करना यार, थोड़ा कहानी का मजा लिया करो भाई, कहानी जब बनी है तो मिलन तो होगा ही, इसलिए ही मैं लगभग रोज़ update देता हूँ, ताकि मेरे readers को मजा मिलता रहे, थोड़ा कहानी को buildup होने दिया करो भाई, मिलन तो होगा ही

Thank You bhai
 
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हमने हजारों पारिवारिक व्याभिचार पर लिखी हुई कहानियो को पढ़ा है..... बहुत कम कहानियां होती है जो हमें लम्बे समय तक याद रहती है..... कुमार भाई , आप की ये कहानी भी वैसी ही है..... बहुत बहुत लम्बे समय तक याद रहने वाली ।
खास तौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित बाप बेटी के व्याभिचार की इस कहानी में आप ने अपने जादूई शब्दों का जो जाल बुना है.... वो अद्वितीय है ।
ऐसे ही अपने शानदार लेखनी से पाठकों का प्यार पाते रहिए ।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया, कोशिश करूंगा कि लेखनी को और बेहतर करूँ, अभी तो सीख रहा हूँ भाई।
 

S_Kumar

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लेकिन भाई आप उदयराज और उसकी बेटी को नेपथ्य मे मत ढकेलिए, सुबह ही चुकी है
आप बिरजू और नीलम की इस कहानी को समझे नही, ये कहानी flashback की है, रजनी और उदयराज जब सोने लगे तो मैंने सोचा कि इस बीच बिरजू और नीलम की कहानी को आगे बढाऊँ, ये घटना उस वक्त की है जब रजनी और उदयराज का 6ठा 7वां दिन चल रहा था, तब ये घटना यहां नीलम और बिरजू की घट रही थी, ये सब बीते वक्त की बात है।
 

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Update- 46

दोपहर को नीलम ने अपनी माँ से कहा- अम्मा शाम को कितने बजे निकलोगी नाना के घर जाने के लिए।

नीलम की माँ- अब आज कहाँ जाउंगी बेटी, तेरे बाबू को चोट जो लगी है, अब उन्हें आराम हो जाये तो मेरे मन को तसल्ली होगी तभी जाउंगी, आज तो मुश्किल है कल ही जाउंगी।

नीलम- अरे अम्मा फिर वो जामुन तो कल तक खराब हो जाएंगे न, इतनी मेहनत से तोड़ा है मैंने और बाबू ने।

मां- हाँ वो तो देखा है मैंने कितनी मेहनत से तोड़ा है तूने, हाँथ पैर तुड़वा के बैठ गयी, बोल रही थी की रहने दे जामुन मत तोड़ फिर भी, अब तो कल ही जाउंगी, जामुन को गीले सूत की बोरी में लपेट के रख दे, कल सुबह ही निकल जाउंगी, तब तक खराब नही होगा।

नीलम- अम्मा तू गुस्सा क्यों होती है, ठीक है तेरा मन कल है तो कल ही जाना, पर गुस्सा मत हो, हो गया जो होना था मैंने कोई जानबूझ के थोड़ी न किया, मुझे क्या पता था।

ये सुनकर नीलम की माँ का छोटा सा गुस्सा शांत हो गया- अरे नही मेरी बिटिया गुस्सा नही हो रही, पर चिंता तो होती है न, मैं चली गयी और पीठ पीछे कुछ दिक्कत हो तो मेरा मन भी तो नही लगेगा न वहां, इसलिए बोल रही थी कि तेरे बाबू को कल तक काफी आराम हो जाएगा तो कल चली जाउंगी सुबह।

नीलम ने भी ज्यादा जोर नही दिया, एक रात की ही तो बात थी, कर लेगी कैसे भी बर्दाश्त, काट लेगी एक रात करवट बदल बदल कर, जब इतनी रातें काटी हैं तो एक रात और सही, ज्यादा जोर देती तो उसकी माँ को भी शक होता, इसलिए उसने ज्यादा कुछ बोल नही।

दिन भर बिरजू खाट पर लेटा रहा, नीलम की माँ और नीलम घर का और बाहर का सारा काम करती रही, बिरजू लेटे लेटे उन्हें देखता रहा, नीलम काम से फुरसत निकाल कर अपने दीवाने बाबू के पास कभी कभी बीच बीच में आकर बैठ जाती और दोनों एक दूसरे को नीलम की माँ से नजर बचा कर निहारते, एक टक लगा कर एक दूसरे को देखते। नीलम अपनी माँ की नज़र बचा कर अपने बाबू की खाट पर बिल्कुल सटकर बैठ जाती, बिरजू उसके हाँथ को अपने हाँथ में ले लेता और नरम मुलायम उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर धीरे धीरे उसकी आँखों में देखता हुआ सहलाता, नीलम शर्मा जाती और मदहोशी में अपने बाबू के बदन की छुअन को महसूस कर आंखें बंद कर लेती।

ऐसे ही एक बार नीलम कोई काम करके दुबारा आयी और खाट पर बिरजू के बगल में झट से बैठ गयी, बिरजू ने हल्का सा सरककर उसको बैठने की जगह दी, बिरजू ने नीलम के हाँथ को अपने हाँथ में लिया और प्यार से सहलाने लगा और बोला- तेरी अम्मा कहाँ है?

नीलम- पीछे खेत में गयी है अम्मा, कुछ देर में आएंगी (नीलम ने ये बात जोर देकर कही), बाबू आपका दर्द कैसा है धीरे धीरे आराम हो रहा है न (नीलम बिरजू की आँखों में देखते हुए बोली)

बिरजू- अब मेरी प्यारी बिटिया मुझे बार बार आ के प्यार देगी और छुएगी तो धीरे धीरे तो आराम होगा ही।

नीलम- मेरा बस चलता तो आपका सारा दर्द एक चुटकी में गायब कर देती।

बिरजू- वो कैसे?

नीलम ने अपना चेहरा बिरजू पर झुकाया और धीरे से बोली- आपको पूरी तरह अच्छे से छूकर।

बिरजू- हाय, तो रोका किसने है मेरी बिटिया, मेरी जान।

नीलम- अभी तो फिलहाल अम्मा ने रोक रखा है (नीलम का अर्थ ये था कि अभी अम्मा घर पे हैं)

बिरजू- लेकिन वो तो पीछे खेत में गयी है न, तो फिर।

नीलम- कभी भी आ सकती है बाबू (फिर नीलम ने बहुत धीरे से बोला)- बेटी को बहुत तसल्ली से धीरे धीरे प्यार करना चाहिए, समझें बुध्धू राम, जल्दबाज़ी में नही। किसी चीज़ को जल्दबाज़ी में खाओगे तो पूरा मजा कैसे मिलेगा, बोलो, सही कहा न (और वो कहकर खिलखिला कर हंस दी)

बिरजू- ठीक है मैं अपनी बेटी की चिज्जी को धीरे धीरे ही खाऊंगा और बिरजू ने नीलम का हाँथ दबा दिया तो वो सिसक उठी फिर बोली- बेटी की चिज्जी?

बिरजू- हाँ, मेरी प्यारी बेटी की प्यारी सी चिज्जी।

नीलम का चेहरा शर्म से लाल हो गया यहां तक कि उसके कान भी लाल हो गए जोश में, शर्मा कर उसने अपना चेहरा हाँथ से छुपा लिया और मंद मंद मुस्कुराने लगी,बिरजू उसे शर्माते हुए देखता रहा, हालांकि नीलम रजनी के मुकाबले काफी बिंदास थी पर फिर भी अपने सगे बाबू के मुँह से ये सुनके न जाने क्यों उसे बहुत शर्म आयी और वो वासना से भर गई, बदन उसका सनसना गया, कुछ देर हाथों में चेहरा छुपाये बैठी रही फिर एकएक एक उंगली को हल्का सा साइड करके झरोखा बना के अपने बाबू को देखा तो वो मुस्कुराते हुए उसे ही देख रहे थे, फिर उसने हंसते हुए दुबारा अपने चेहरे को हांथों से छुपा लिया और एकाएक जब बिरजू ने नीलम के चेहरे से हाँथ हटाया तो वो झट अपने बाबू के ऊपर लेटकर गले से लग गयी और कान में बोली- धत्त!......पर ये चिज्जी है क्या बाबू? आपकी प्यारी सी बेटी की प्यारी सी कौन सी चिज्जी, और ये है कहाँ? (नीलम ने जानबूझकर सिसकते हुए पूछा)

बिरजू तो पहले नीलम के बाहों में आने से ही उसके गुदाज मखमली बदन से मदहोश हो गया फिर कुछ देर बाद बोला- नाभि के रास्ते नीचे की तरफ चलते जाओ कुछ दूर जाने पर एक घना जंगल आएगा, जैसे ही उस जंगल को पार करोगे चिज्जी वहीं मिलेगी, बहुत प्यारी सी होती है वो, मीठी मीठी, देखने में ही मदहोशी सी आ जाती है और खाने लगो तो जैसे जन्नत में पहुँच गए हों, मक्ख़न जैसी होती है बिल्कुल, नरम नरम।

नीलम की सांसें धौकनी की तरह चलने लगी ये सुनकर फिर भी वो उखड़ती सांसों से बोली- उसको खाते कैसे हैं बाबू? बताओ न?

बिरजू भी बदहवास सा हो गया ऐसी बातें करके फिर बोला- उसको पहले तो मुँह में भरकर खाते हैं फिर बड़े से मूसल से खाते हैं, उस मूसल को उसमे डाल के उसको अच्छे से खाते हैं।

नीलम- उसमे डालते हैं वो मूसल बाबू?

बिरजू- हाँ मेरी बेटी, मेरी रानी। पूरा अच्छे से अंदर तक डालकर उस चिज्जी को खाते हैं।

नीलम ने उखड़ती हुई भारी सी आवाज में कहा- कौन सा मूसल बाबू?, कैसा मूसल?

बिरजू जैसे ही नीलम का हाँथ पकड़कर अपने धोती में खड़े दहकते लंड की तरफ ले जाने लगा तो नीलम समझ गयी और सनसना कर चौकते हुए हाँथ वापिस खींच लिया और एक मुक्का अपने बाबू के सीने पर हल्का सा मारा और बोली- ईईईईईईईईशशशशशशशशश......धत्त....बाबू.....कोई देख लेगा.....अभी नही और हंसते हुए उनके सीने में मुँह छुपाकर लेट गयी।

बिरजू- तुमने ही तो पूछा था की मूसल क्या होता है, तो मैं तो बस वही दिखा रहा था।

नीलम- बहुत गन्दू होते जा रहे हो आप, जल्दी जल्दी, संभालो खुद को। बेटी की चिज्जी को चुपके चुपके खाते हैं, कोई देख लेगा तो?

नीलम शर्माते हुए अपने बाबू से लिपटी रही।
दोनों की सांसें बहुत तेज चलने लगी, बिरजू ने अपने खड़े लंड को ठीक किया।

फिर कुछ देर बाद नीलम उठकर बैठ गयी और अपने बाल ठीक करते हुए अपने बाबू की आंखों में देखते हुए बोली-बाबू अम्मा तो कल सुबह ही जाएगी नाना के यहां आज तो नही जाएंगी।

बिरजू- लो तुम तो बोल रही थी कि मैं कैसे भी करके आज ही भेजके रहूँगी, मेरी बिटिया रानी।

नीलम- मैंने बहुत कोशिश की पर वो नही मानी फिर मुझे लगा कि उन्हें शक होगा, इसलिए मैंने ज्यादा जोर नही दिया।

बिरजू- कोई बात नही बेटी, एक रात और सही, पर जामुन तो कल तक खराब हो जाएंगे तो तुम खिलाओगी कैसे?

नीलम मुस्कुराते हुए- अभी तक आप ये समझ रहे हैं कि जो बाल्टी में भरकर रखा है वो आपका जामुन है। (नीलम ने बड़े अचरज से पूछा)

बिरजू- हाँ, वही तो है जामुन न।

नीलम अपने बाबू के और नज़दीक आयी और फुसफुसाके बोली- अरे मेरे बुध्धू बाबू, आपका जामुन तो ये है, उससे भी बहुत मीठा।

और ऐसा कहते हुए नीलम ने बहुत शर्माते हुए आज पहली बार अपने बाबू बिरजू की बाएं हाँथ की तर्जनी उंगली को पकड़ा और धीरे से अपनी चोली में कसी हुई बड़ी ही उन्नत दायीं चूची के निप्पल पर रख दिया, दोनों को एकाएक मानो करंट सा लगा, बिरजू ने ऐसा सोचा भी नही था कि उसकी सगी शादीशुदा बेटी एकाएक ऐसा कर देगी और न ही नीलम ने सोचा था, ये तो बस न जाने कैसे वासना में होता चला गया, बिरजू बदहवास सा नीलम को अपनी दोनों उंगली से उसके निप्पल को पकड़े देखता रह गया और नीलम भी अपने बाबू का हाँथ पकड़े कुछ देर उन्हें देखती रही फिर बिरजू ने जोश में आकर नीलम के निप्पल को उंगलियों से मसल दिया तो वो तेज से चिहुँक कर सिसक पड़ी फिर अचानक पीछे मुड़कर देखी की कहीं अम्मा न आ जाएं।

बिरजू कुछ देर अपनी बेटी के मोटे जामुन जैसे बड़े बड़े निप्पल चोली के ऊपर से ही बावला सा होकर धीरे धीरे दबाता मसलता रहा। नीलम सिसकते हुए बोली- बाबू बस, जामुन फूट जाएंगे.....अभी बस करो....आआआ आआआआआआआहहहहहहह.......अम्मा आ जायेगी रुको न..........अम्मा को जाने दो फिर सब कर लेना अपनी सगी बेटी के साथ जो जी में आये...............मैं तो आपकी ही हूँ न.....रुको न बाबू बस करो।

वाकई में नीलम के निप्पल किसी जामुन जैसे ही बड़े बड़े थे और इस वक्त वासना में फूलकर सख्त हो चुके थे उनका आकार भी बड़ा हो गया था, बिरजू अपनी सगी बेटी के मोटे मोटे निप्पल को आज छूकर होशो हवास खो बैठा, जब निप्पल इतने बड़े बड़े हैं तो चूची कितनी मस्त होगी, जब वो उसे खोलकर देखेगा, तो कैसा लगेगा, कैसी होगी चूची मेरी सगी बेटी की और निप्पल कैसे रंग का होगा, काला या गुलाबी.....हाय, खोलकर दोनों चूची जब वो लेटेगी मेरे सामने तो उसके सीने पर गोल गोल उठी हुई विशाल चूचीयाँ देखकर कैसा लगेगा मुझे, कहीं मैं पागल न हो जाऊं, यही सब सोचते हुए बिरजू का लंड धोती में फिर टनटना गया और जैसे ही नीलम की चौड़ी गांड पर चुभा, नीलम भी लंड की छुवन से बौरा सी गयी पर उसने अपने आपको काबू करने की कोशिश की, कहीं अम्मा न आ जाये। बिरजू ने एकाएक अपनी सगी बेटी की बड़ी सी मादक फूली हुई चूची को अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम थोड़ा जोर से सीत्कार उठी, बिरजू हल्का हल्का मस्ती में आंखें बंद किये अपनी ही सगी बेटी की मखमली चूची दबाने लगा, नीलम शर्माते हुए सिसकने लगी, दोनों ही इस वक्त आगे नही बढ़ना चाहते थे पर न जाने क्यों खुद पर काबू ही नही हो रहा था जैसे तैसे नीलम ने अपने बाबू को रोका और समझाया, बिरजू ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका और संभलते हुए बोला- कल साड़ी पहनोगी?

नीलम- हाँ मेरे बाबू जरूर, आप बोलो और मैं न पहनूँ ऐसा हो नही सकता, किस रंग की पहनूँ बोलो?

बिरजू- लाल रंग की।

नीलम मुस्कुराते हुए- लाल जोड़े में महसूस करना है अपनी बेटी को?

बिरजू- हाँ, एक दुल्हन की तरह।

दोनों एक दूसरे को बड़े प्यार से देखने लगे।

फिर नीलम बोली- और वो किस रंग की।

बिरजू जानबूझकर अनजान बनते हुए- वो क्या?

नीलम ने धीरे से कान में झुककर कहा- वही आखिरी वस्त्र...........कच्छी..….वो किस रंग की पहनूँ बाबू (नीलम ये बोलकर गनगना गयी)

बिरजू सिरह गया- काले रंग की, चिज्जी को काले कपड़े में छुपाकर रखना।

नीलम शर्माते हुए मुस्कुरा दी और फिर से एक मुक्का हल्के से अपने बाबू के सीने पर दे मारा- बदमाश! काले कपड़े में चिज्जी चाहिए, पगलू को, ठीक है बाबू आपकी ख्वाहिश आपकी ये बिटिया जरूर पूरा करेगी, अब मुझे छोड़ो अम्मा आती होंगी, बहुत देर हो गयी है।

तभी सच में नीलम की माँ चारा लेके आ गयी, दोनों झट से अलग हो गए।

शाम को नीलम ने जल्दी ही खाना बना लिया था, बिरजू को एक बार फिर पट्टी बदल दी गयी अब तक उसे काफी आराम हो चुका था दर्द तो बिल्कुल गायब हो चुका था बस थोड़ी सूजन थी, नीलम की माँ बोली- कल तक ये हाँथ ठीक हो जाएगा।

नीलम बरामदे में सोती थी, बिरजू और नीलम की अम्मा बाहर द्वार पर अगल बगल खाट बिछा कर सोते थे।

खाना खाने के बाद नीलम की माँ और बिरजू अपनी अपनी खाट पर अगल बगल लेटे थे, नीलम बरामदे में अपनी खाट पर लेटी तड़प रही थी, बर्दाश्त तो बिरजू से भी नही हो रहा था, तभी नीलम को एक तरकीब सूझी, लालटेन हल्की रोशनी देते हुए जल रही थी, नीलम ने देखा कि अम्मा और बाबू की खाट अगल बगल है और बीच में जगह है अगर मैं दोनों खाट के बीच जाकर पटरा लेकर बैठ जाऊं तो बाबू मुझे छू सकते हैं, नीलम का इतना मन कर रहा था कि उससे अब बर्दाश्त नही हो रहा था।
नीलम ने अपनी खाट से उठकर तेल की शीशी ली और एक हाथ में पीढ़ा लिया और अपनी अम्मा के पास पहुँच गयी, दोनों खाट के बीच आ के खड़ी हो गयी, आते हुए लालटेन को थोड़ा और मद्धिम कर आई थी।

नीलम ने एक नजर अपने बाबू पर डाली तो वो बड़ी बेचैनी से उसे ही देख रहे थे, नीलम को बिल्कुल खाट के पास बैठता देख बिरजू का मन मयूर झूम उठा, वो समझ गया कि उसकी बेटी उसे छुप छुप कर मजे देने आयी है, उसकी बेटी अब उसकी हो चुकी है पूरी तरह और वो भी तड़प रही है मस्ती करने के लिए, बिरजू उसे देखकर मुस्कुरा उठा, नीलम ने इशारे से थोड़ा रुकने के लिए बोला फिर दोनों खाट के बीच अपने बाबू की तरफ पीठ करके और अपनी अम्मा की तरफ मुँह करके नीचे जमीन पर पटरा रखकर बैठ गयी और अपनी अम्मा से बोली- अम्मा ला तेरे सर पे तेल रख दूँ, आज तूने बहुत काम किया है दिन भर, बाबू के हिस्से का भी काम किया है न तूने, काफी थक गई होगी, ला तेल से मालिश कर दूं, कल तो चली ही जाएगी तू नाना के घर।

नीलम की माँ- हाँ मैं तो कल बनवास जा रही हूं न 14 बरस के लिए आऊँगी थोड़ी लौट के, परसों ही आ जाउंगी मैं, रुकूँगी थोड़ी वहां, और मैं थकी वकी नही हूँ, चल सो जा जाके तू भी, नींद आ रही है मुझे अब।

नीलम- अरे अम्मा गुस्सा क्यों होती है, ठीक है तू परसों ही चली आना, मत रुकना वहां पर तेल तो मालिश करवा लें सर पे, तू सोती रह मैं कर देती हूं मालिश, ला अपना सर इधर रख।

नीलम की माँ- अरे बेटी मैं गुस्सा नही हूँ, तेरे से भला गुस्सा क्यों होऊंगी, वो तो मुझे नींद लग गयी है न इसलिए बोल रही हूं, तू भी खामख्वाह परेशान हो रही है, जा सो जा जाके, तू भी तो मेरे साथ साथ दिन भर लगी थी, जा सो जा रहने दे।

नीलम- लो माँ की सेवा करने में क्या परेशानी, तू भी तो मेरे लिए ही कल इतनी दूर अकेले नाना के घर जाएगी न।

अचानक ही नीलम के मुँह से ये निकल गया, तो वो झट से चुप हो गयी, नीलम की माँ ने दबी आवाज में फुसफुसाके बोला- धीरे बोल पगली तेरे बाबू एकदम पास में ही तो हैं, सुन लेंगे तो फिर पूछने लगेंगे की क्या बात है, अभी कल ही पूछ रहे थे तो मैंने उन्हें नही बताया बात टाल दी, और तू है कि कुछ भी झट से बोल पड़ती है।

नीलम- अरे अम्मा मेरे मुँह से एकदम से निकल गया, तू भी तो नही मान रही है न मेरी बात, कब से बोल रही हूं इधर सर कर, पर माने तब न।

नीलम की माँ- अच्छा बाबा ले, तू मानेगी थोड़ी, जिद्दी तो बचपन से है तू। (इतना कहते हुए नीलम की माँ ने अपना सर घुमाकर किनारे कर लिया)

नीलम- हाँ तो, जब तू जानती है फिर भी बहस करती है मुझसे (इतना कहकर नीलम धीरे से हंस पड़ी)

बिरजू चुपचाप आंखें मूंदे ऐसे लेटा था जैसे पानी में मगरमच्छ चुपचाप पड़ा पड़ा सही वक्त आने के इंतजार करता है।

नीलम की माँ- हाँ दादी अम्मा तेरे से अब बहस भी नही कर सकती मैं, पहले लालटेन तो बुझा दे।

नीलम- हाँ अम्मा, ये तो मैं भूल ही गयी।

और नीलम ने जाकर लालटेन बुझा दी, फिर आकर बैठ गयी, ये तो अब और ही नीलम और बिरजू के मन का ही हो गया था, अब काफी अंधेरा हो गया, बिरजू ने आंखें खोल ली और नीलम की मदमस्त पीठ देखने लगा, नीलम की पीठ बस एक फुट दूर थी। नीलम ने एक बार अपने बाबू को पलटकर देखा और अंधेरे में दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए।

नीलम- अम्मा बाबू तो सो गए हैं, उन्होंने सुना नही होगा।

नीलम की माँ- चल अच्छा है नही सुना होगा तो, और तू अब बोल मत नींद आ रही है मुझे सोने दे, जल्दी से मालिश करके जा सो जा तू भी।

नीलम- ठीक है तू सो जा अम्मा, मैं मालिश करती हूं देख तुझे और भी अच्छी नींद आएगी।
 

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