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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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प्रिय पाठकों

अगला अपडेट कल तक आएगा। थोड़ा आज व्यस्त हो गया था किसी काम में, कल दूंगा अपडेट। थोड़ा wait और कर लीजिए वैसे मैं माफी चाहुंगा की आप लोगों को कभी कभी थोड़ा ज्यादा wait करना पड़ जाता है। कल update देने की पूरी कोशिश करूंगा।


धन्यवाद आप सबका।
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Update- 41

बारिश अब तेज होने लगी, उदयराज अपनी सगी बेटी की बूर में अपना लंड डाले उसपर लेटा रहा, रजनी भी अपने बाबू को सहलाते चूमते उनके नीचे लेटी सिसकती रही, रजनी के चेहरे पर बारिश की तेज बूंदें पड़ने लगी, उदयराज ने आँखें खोली और अपने चेहरे से अपनी बेटी के चेहरे को ढकते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, दोनों बाप बेटी एक बार फिर तेज बारिश में भीगते, एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए एक दूसरे में खोने लगे, लंड फिर से बूर में सख्त होने लगा, उसे महसूस कर रजनी की बूर फिर से चुदाई के लिए संसनाने लगी।

तेज बारिश से खेत की मिट्टी गीली होने लगी, अंगौछा काफी भीग चुका था, होंठों को चूसते हुए सिसक कर रजनी धीरे धीरे पलटकर अपने बाबू के ऊपर चढ़ने लगी और उदयराज साइड में गीली मिट्टी में लेटने लगा, तभी तेज बिजली कड़की, रजनी अपने बाबू को देखते हुए उनके ऊपर पलटकर चढ़ती गई, और इस अदला बदली में लंड पक्क़ की आवाज करते हुए बूर से निकल गया, रजनी मचल उठी।

लंड उछलकर सीधा हो गया, वासना में फिर से झटके खाने लगा, सुपाड़ा उसका खुला ही हुआ था, अपनी बेटी के काम रस में वो पूरी तरह सना हुआ था, रजनी ने अपने बाबू के ऊपर बैठते हुए अपने एक हाँथ की उंगलियों से अपनी बूर को चीरते हुए दूसरे हाँथ से अपने बाबू का लंड पकड़कर अपनी बूर की छेद पर कराहते हुए लगाया और खुद ही गच्च से लंड पर बैठती चली गयी, रजनी सीत्कारते हुए
हहहहहाहाहाहाययययययय............मेरे सैयां.........मेरे बाबू.........आआआआआआआहहहहहहहहहह......
करने लगी

एक बार फिर से उदयराज का फ़ौलादी लंड अपनी बेटी की रसभरी मखमली बूर के छेद को चीरता हुआ अत्यंत गरम गरम गहराई में समा गया, रजनी और उदयराज की मस्ती में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह करते हुए आँहें निकल गयी। लंड को बूर में पूरा लेते हुए रजनी बड़ी मस्ती में अपने बाबू के ऊपर उनके मुँह में अपनी बड़ी बड़ी मदमस्त चूचीयाँ भरते हुए लेटती चली गयी, उदयराज ने मुँह खोलकर गप्प से एक चूची को मुँह में भर लिया और बड़ी तन्मयता से चूसने लगा, रजनी अपने गांड को हल्का हल्का ऊपर नीचे हिलाते हुए हाय हाय करके सिसियाने लगी, धीरे धीरे अपने भारी नितम्ब को खुद ही ऊपर नीचे करते हुए अपने बाबू के ऊपर बैठी अपनी बूर को उनके विशाल लंड पर उछलते हुए चोदे जा रही थी, उदयराज ने अपनी बेटी के भारी गुदाज चौड़े नितम्ब को हाँथ बढ़ा कर अपने दोनों हथेली में भर लिया और नीचे से हौले हौले अपनी बेटी को मिट्टी में लेटे लेटे चोदने लगा।

रजनी- आआआआआहहहहह.......मेरे पिता जी....…...मेरे बाबू......चोदो अपने लंड से अपनी बेटी की बूर..........ओओओओओहहह हहह..............ऊऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.........माँ............ कैसे आपका मोटा सा लंड मेरी बूर में जा रहा है.........कितना मजा है चुदाई करने में................मुझे उछाल उछाल के चोदो न पिता जी, मेरे बाबू.......पेलो अपनी सगी बेटी को.............ऊऊऊऊईईईईई........आआआ आआआआहहहहहहहह..............और गहराई तक डालो बाबू...........हाँ ऐसे ही.........ओओओओओहहहहह................कैसे गच्च गच्च की आवाज आ रही है चुदाई की..........हाय बाबू।

अंगौछा बगल में पड़ा भीग रहा था, रजनी और उदयराज अब मिट्टी में आ चुके थे, रजनी अपने बाबू के ऊपर उनका लंड अपनी बूर में जड़ तक घुसेड़े हुए आधी झुकी हुई अपनी चूची चुसवाती और गांड को हल्का उछाल उछाल कर अपने पिता से चुदती हुए बहुत ही मादक लग रही थी, उदयराज पागलों की तरह रजनी की दोनों चुचियों को भर भरकर चूसे और दबाए जा रहा था। बारिश अपने जोरों पर थी, बीच बीच में बिजली कड़क जाती थी, तेज बारिश बाप बेटी के पूरे बदन को भिगो रही थी।

एकाएक नशे में आंखें बंद किये रजनी को एक खेल सूझा उसने सिसकते हुए अपने बाबू से कहा- मेरे बाबू, मेरे सैयां

उदयराज ने सैयां शब्द सुनते ही कराह दिया और बोला- हां मेरी बिटिया, मेरी सजनी, मेरी रजनी।

रजनी- इस हसीन अंधेरी बरसात की रात में खेत की गीली मिट्टी में अपनी बेटी को लिटा लिटा कर प्यार करो न बाबू, ये मौका क्यों छोड़ते हो मेरे राजा।

उदयराज अपनी बेटी की मंशा समझते ही मुस्कुरा दिया और रजनी को मिट्टी में पलट दिया और उसके ऊपर चढ़ गया ऐसा करने से लंड फिर पक्क़ से बूर से निकल गया तो रजनी सिसकारी लेती हुई बोली डालो न, निकलना नही चाहिए मेरे सैयां का लंड उसकी बेटी की बूर से।

ये सुनते ही उदयराज बावला हो गया, उसने झट रजनी के दोनों पैर हवा में किया और रजनी ने फट से दोनों हाँथ से बूर की फाँकों को चीर दिया, उदयराज से अपना मूसल जैसा 9 इंच का दहाड़ता लन्ड बूर की छेद पर लगाया और एक ही बार में पोजीशन बनाते हुए अपनी बेटी की बूर में जड़ तक उतार दिया, रजनी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हह......बाबू कहकर कराह उठी, कुछ देर बूर में लन्ड पेले अपनी बेटी के ऊपर चढ़े रहने के बाद उदयराज ने रजनी को बड़ी सावधानी से अपने ऊपर लिटा लिया और नीचे से बूर में दो चार कस कस के गच्चे मारे, रजनी सिरह उठी, अब रजनी और उदयराज एक दूसरे से अमरबेल की तरह लिपटे खेत की अत्यंत गीली हो चुकी मिट्टी में इस तरह लोटने लगे कि बूर में से लंड न निकले, बारिश दनादन होती जा रही थी, कभी थोड़ा कम होने लगती फिर कभी तेज हो जाती, इस खेल के असीम आनंद में दोनों ही डूब चुके थे, रजनी का गदराया गोरा बदन खेत की गीली मिट्टी में जो अब कीचड़ का रूप ले चुकी थी सनने लगा, उदयराज का भी पीछे का सारा हिस्सा मिट्टी में सन चुका था, चुदाई का मजा तो मानो अब आसमान छू रहा था, दोनों ही जोर जोर से सिसकते कराहते एक दूसरे को बेताहाशा चूमते सहलाते बारिश में मिट्टी में सने हुए चोदे जा रहे थे, एक दूसरे को बाहों में भरे वो खेत में इधर उधर लोटने लगे, मानो बेड पर लेटकर लोट रहे हों।

जब रजनी अपने बाबू के ऊपर आती तो वो अपनी मदमस्त गांड उछाल उछाल के अपने बाबू को हाय हाय करते हुए चोदती और जब उदयराज ऊपर आता तो कुछ देर ठहरकर अपनी बेटी की दोनों जाँघों को अच्छे से फैलाकर जड़ तक लन्ड प्यासी बूर में पेल पेल के उसको हुमच हुमच के चोदता, रजनी हर बार कराह उठती, मिट्टी में बच्चों की तरह लोटने की वजह से उनका लगभग पूरा बदन पीछे की तरफ से सन गया था पर तेज बारिश की वजह से धुल भी जा रहा था, जब रजनी ऊपर आती तो उसकी मादक गदराई पीठ धुल जाती और जब उदयराज ऊपर आता तो उसकी पीठ धुल जाती, एक दूसरे से लिपटकर कीचड़ में लोटने की वजह से पलटते वक्त लन्ड कभी कभी बूर से बाहर आने लगता तो रजनी सिसकते हुए अपने बाबू की गांड पर हाथ लेजाकर दबा कर इशारा करती मानो जैसे उदयराज को पता ही न हो कि लन्ड बूर से निकलने वाला है, तो उदयराज अपनी बेटी की इस अदा पर कायल होकर जोरदार गच्च से धक्का मरता और लंड फिर से बूर में जड़ तक समा जाता, रजनी की जोर से असीम आनंद में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह निकल जाती।

उधर बारिश होने की वजह से काकी भी उठकर बच्ची को लेकर बरामदे में आ जाती है, बच्ची चुपचाप सो ही रही थी, काकी मन में सोचती है कि बारिश अचानक इतनी तेज होने लगी वो लोग कहीं बारिश में भीग न रहे हों, खैर कहीं रुक गए होंगे जरूर, लगता है अब सुबह तक ही आएंगे।

तेज बारिश से अब खेत में हल्का हल्का पानी भी इकठ्ठा होने लगा, मिट्टी का कीचड़ तो हो ही गया था, रजनी ने अचानक मिट्टी को मुठ्ठी में लिया और बड़ी शरारत से अपने बाबू के सीने पर रगड़ दिया और मिट्टी लिया और बाजुओं पर भी हंसते और सिसकते हुए लगा दिया, उदयराज को भी शरारत सूझी तो उसने भी मिट्टी को उठाकर रजनी के कमर , पेट, नाभि, कंधे, बाजुओं तथा मस्त मस्त फूली हुई चूचीयों पर मसलने लगा, रजनी मस्ती में हसने लगी, अपने पूरे बदन पर मिट्टी लगे अपने बाबू के हाथ पड़ने से रजनी मचलने लगी और अपनी गांड तेज तेज उछाल कर लंड को बूर में कस कस के लेने लगी, काफी देर तक यही खेल चलता रहा और अब खेत में काफी पानी भर गया था, उदयराज का अंगौछा, तेल की शीशी, दीया और डलिया अब पानी में तैरने लगे थे, उदयराज ने रजनी से कहा -बिटिया चल तुझे नदी में ले चलूं, एक बार नदी में करेंगें।

रजनी सिसकते हुए जानबूझ कर पूछती है- क्या? क्या करेंगे मेरे बाबू?

उदयराज रजनी के कान में- चुदाई, तुझे नदी में चोदुंगा।

रजनी- तुझे कौन बाबू? मैं क्या हूँ आपकी?

उदयराज- तू मेरी सगी बेटी है और क्या?

राजनी- तो सगी बेटी लगा के बोलो न, आधा अधूरा क्यों बोलते हो मेरे बाबू, दुबारा बोलो अच्छे से।

उदयराज- अपनी सगी बेटी को नदी में ले जाकर चोदने का मन कर रहा है, अपनी सगी बेटी को, अब ठीक मेरी बिटिया।

राजनी-ओओओओओहहहहह.......बाबू..........तो ले चलिए न अपनी सगी बेटी को, जैसे मर्जी वैसे चोदिये, खूब चोदिये, आपकी सगी बेटी आपसे खुद चुदना चाहती है, उसकी बूर सिर्फ आपके लिए है, चोदिये मेरे बाबू, ले चलिए मुझे.....मेरे राजा पर मेरी बूर खाली नही होनी चाहिए अब, जब तक मैं तीसरी बार तृप्ति न पा लूं, कुछ इस तरह ले चलो अपनी बेटी को नदी तक, समझ गए।

उदयराज बनते हुए- नही तो।

राजनी- अरे ओ मेरे बुद्धू सैयां, अपनी इस बेटी को नदी तक इस तरह ले चलो की आपका मूसल जूस लंड उसकी कमसिन सी बूर से न निकले।

उदयराज- ओह! मेरी जान, मेरी बच्ची, मेरी रानी बिटिया, जैसा तेरा हुक्म।

फिर उदयराज रजनी को गोद में लिए लिए उठ बैठा, बैठने से लंड बूर में और धंस गया, उसके बाद उदयराज रजनी को लिए लिए खड़ा हो गया, उदयराज काफ़ी बलशाली था रजनी उसकी इस ताकत पर और भी कायल हो गयी, उदयराज ने रजनी को उठाकर गोद में बैठा लिया और अपने दोनों हांथों से नितम्बों को थाम लिए, रजनी ने अपनी दोनों टांगें अपने बाबू के गोद में चढ़कर उनकी कमर पर कैंची की तरह लपेटते हुए, उनसे कस के लिपटते हुए, कराहते हुए, जोर से सिसकारते हुए, उनके कंधों पर मीठे दर्द की अनुभूति में काटते हुए उनके विशाल लन्ड पर अपनी रस टपकाती बूर रखकर बैठती चली गयी, लन्ड फिसलता हुआ बूर की गहराई के आखरी छोर पर जा टकराया, क्योंकि रजनी के मखमली बदन का पूरा भार अब केवल लंड पर था, इतनी गहराई तक लन्ड शायद ही अभी तक घुसा हो, दोनों ही बाप बेटी काफी देर तक उन अंदरूनी अनछुई जगहों को आज पहली बार छूकर परम आनंद में कहीं खो से गये।

उदयराज और रजनी झमाझम बारिश में एक दूसरे में समाए सिसकते कराहते भीग रहे थे, उदयराज खेत के बीचों बीच अपनी सगी बेटी को उसके नितम्बों से पकड़कर अपनी कमर तक उठाये उसकी रसभरी बूर में अपना लन्ड घुसेड़े, उसकी बूर की मखमली अंदरूनी नरम नरम अत्यंत गहराई का असीम सुख लेता हुआ खड़ा था पानी और मट्टी में उसके दोनों पैर डूबे हुए थे, इसी तरह रजनी अपने बाबू की कमर में अपने पैर लपेटे उनके लंड पर बैठी, उनसे कस के लिपटी हुई परम आनंद की अनुभूति प्राप्त कर कराहे जा रही थी।

कुछ देर ऐसे ही अपनी बेटी के यौन मिलन के आनंद में खोए रहने के बाद उदयराज खेत से बाहर निकलने लगा, चलने से लन्ड और इधर उधर हिल रहा था जिससे रजनी बार बार चिहुँक चिहुँक कर हाय हाय करने लग जा रही थी। नदी वहां से 40 मीटर की दूरी पर ही थी।

उदयराज अपनी सगी बेटी को अपनी गोद में बैठाये नदी की ओर चलने लगा, चलने से लंड बूर की गहराई में अच्छे से ठोकरें मारने लगा, रजनी सिस्कार सिस्कार के बदहवास सी हो गयी, उसे अपनी बूर की गहराई में गुदगुदी सी होने लगी, एक बार तो ऐसा लगा कि वह थरथरा कर झड़ जाएगी तो उसने अपने बाबू से कहा- ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू थोड़ा रूको।
उदयराज रुक गया

रजनी अपने बाबू को कस के पकड़कर सिसकते हुए अपनी जाँघे भीचते हुए अपने को झड़ने से रोकने लगी, उदयराज समझ गया कि उसकी बेटी झड़ते झड़ते रह गयी, उसने अपने आपको मेरे साथ झड़ने के लिए रोके रखा है, उदयराज फिर चलने लगा और नदी तक पहुँचा तो रात के अंधेरे और तेज बारिश में देखा कि पानी का बहाव ज्यादा था, नदी में ज्यादा अंदर जाना ठीक नही था, उदयराज रजनी को गोद में लिए लिए पानी में उतर गया, बारिश में इतनी दूर तक आते आते उनके शरीर की काफी मिट्टी धूल चुकी थी और नदी में तब तक अंदर गया जब तक पानी उनके कंधों तक नही आ गया।

उसने रजनी को धीरे से पानी में उतारा, पानी ठंडा था, दोनों एक दूसरे को बाहों में लिए बहुत नजदीक से एक दूसरे को देखने लगे और देखते देखते रजनी के होंठ अपने बाबू के होंठों से मिल गए, काफी देर एक दूसरे के होठों को चूमने चूसने के बाद, उदयराज ने अपनी बेटी से कहा- बेटी, मेरी जान, क्या तुम्हारी बूर एक पल के लिए भी खाली हुई?

रजनी शर्माते हुए- ना मेरे सैयां, मेरे राजा, अब चोदो मुझे इसी नदी में कस कस के बाबू, जल्दी चोदो अपनी बेटी को फिर से प्यास लगी है।

नीचे लंड बूर में घुसा ही हुआ था, नदी का पानी कलकल करके बह रहा था, बारिश भी तेजी से हो ही रही थी।

उदयराज ने रजनी को फिर से बाहों में उठाया और थोड़ा किनारे एक बड़े पत्थर पर आ गया वो पत्थर आधा नदी में डुबा था आधा बाहर था, उदयराज ने धीरे से अपनी बेटी को उसपर लिटाया, रजनी आराम से उसपर सेट होकर लेट गयी, रजनी के पैर आधा पानी के अंदर थे, उदयराज का लंड इस प्रक्रिया में रजनी की बूर में से आधा बाहर आ गया था कि तभी रजनी ने अपने हाथ अपने बाबू की गांड पर ले जाकर हल्का सा आगे दबाया तो उदयराज ने एक करारा धक्का मारकर लन्ड को गच्च से पूरा बूर में डाल दिया, रजनी की तेज से आह निकल गयी और ठीक उसी समय तेज बिजली कड़की और दोनों ने एक दूसरे को देखा तो मुस्कुरा पड़े, उदयराज ने अपनी बेटी के ऊपर झुककर उसको चोदना शुरू किया, लंबे लंबे तेज तेज धक्के रजनी को अपनी मखमली बूर में लगने से रजनी जोर जोर से सिसकने लगी, उदयराज ने अपनी बेटी के एक पैर को उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और दूसरा पैर फैला हुआ पानी के अंदर ही था, उदयराज पोजीशन बना कर अपनी बेटी को एक लय में तेज तेज धक्के लगाते हुए घचा घच्च चोदने लगा, पानी की बहती आवाज के साथ साथ उसकी भी जोरदार सिसकारियां गूंजने लगी, बारिश थोड़ी हल्की हुई पर बीच बीच में तेज बिजली चमक रही थी, तेज बिजली चमकने से दो सेकंड के लिए तेज उजाला हो जाता जिसमे उदयराज अपनी बेटी को चोदते हुए उसे सिसकते और कराहते हुए देखता और फिर और उत्तेजित हो जाता, तेज धक्कों से रजनी की चूचीयाँ लगातार ऊपर नीचे उछल उछल कर हिल रही थी।

उदयराज अब रजनी को तेज तेज गांड उछाल उछाल के उसकी बूर में दनादन घस्से मारने लगा, कभी गांड को गोल गोल घुमा कर लंड को बूर के अंदर गोल गोल घुमा घुमा कर धक्के मरता तो कभी तेज तेज हुमच हुमच कर चोदता।

अचानक रजनी को उसके बदन में एक सनसनाहट सी महसूस हुई, काफी देर बारिश में भीगते रहने के बाद उसे जोर से पेशाब लगने लगी उसने अपने बाबू की कमर को थामकर रोकते हुए कहा।

रजनी- बाबू, रुको न, सुनो न

उदयराज- बोल न मेरी बिटिया, क्या हुआ? झड़ने वाली है क्या मेरी बेटी?

रजनी शर्माते हुए- अरे अभी नही बाबू, मुझे पेशाब आ रहा है जोर से।

उदयराज खुश होते हुए- अरे तो तू मूत न मेरी रानी, मैं धीरे धीरे तुझे चोदता हूँ तू मूत, बहुत मजा आएगा चुदते हुए मूतने में।

राजनी शर्मा गयी फिर बोली- ठीक है बाबू, आप हौले हौले चोदिये मुझे मैं मूतती हूं।

फिर उदयराज बहुत धीरे धीरे अपना लन्ड बूर में अंदर बाहर करने लगा, अंधेरा होने की वजह से ज्यादा तो कुछ दिख नही रहा था, उदयराज नीचे झुककर देखने की कोशिश कर रहा था पर उसे अंधेरे में उसका मोटा सा लन्ड बूर में बड़े प्यार से आता जाता दिख रहा था, तभी रजनी ने पेशाब की तेज धार गनगनाते हुए छोड़ दी। सर्रर्रर्रर्रर से तेज पेशाब की धार निकली और उदयराज के लंड, जांघ को भिगोती चली गयी, तेजी से गर्म गर्म पेशाब बूर से निकलकर लंड से टकराता हुआ दोनों की जाँघों पर फैलने लगा और बहकर पत्थर पर फिर पानी में मिलने लगा। अपनी सगी बेटी के गर्म गर्म पेशाब के अहसास से उदयराज की आंखें नशे में बंद हो गयी, रजनी भी ओओओओओहहहहह बाबू करते हुए आंखें बंद कर मूतती रही।

उदयराज ने अपनी बेटी की बूर से लंड बाहर निकाला और अपने लन्ड को पेशाब की धार में भिगोने लगा फिर एकाएक उसने झुककर बूर को मुँह में भर लिया और अपनी बेटी का पेशाब मुँह में भरने लगा, बेटी के गरम गरम पेशाब की गंध ने उदयराज को मदहोश कर दिया।

जब मुँह भर गया तो उसने पिचकारी मारते हुए मुँह में भरा रजनी का पेशाब पानी में थूक दिया, बूर से पेशाब निकल ही रहा था कि उसने दुबारा बूर की फांकों को खोला और सरसराते हुए पूरा लन्ड अंदर पेल दिया। रजनी वासना में मचल उठी, उसका पेशाब अब बंद हो चुका था, उदयराज फिर से फच्च फच्च चोदने लगा, धक्के इतने तेज थे कि रजनी पूरा बदन हिल जा रहा था, बारिश होती रही, बिजली कड़कती रही और उदयराज हुमच हुमच के नदी के पानी में घुटनो तक खड़ा अपनी बेटी को लगातार 15 मिनट तक चोदता रहा, रजनी भी नीचे से अपने नितम्बों को उछाल उछाल कर अपने बाबू का चुदाई में साथ देती रही।

रजनी- आआआआआहहहहह.......मेरे राजा......चोदो ऐसे ही तेज तेज चोदो.........ओओओओओहहह हहह..............ऊऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.........माँ............ कस कस के पेलो लन्ड बाबू.........कितना मजा है चुदाई करने में................अब रुकना मत बाबू, पिता जी, मेरे बाबू.......पेलो अपनी सगी बेटी को.............ऊऊऊऊईईईईई........आआआ आआआआहहहहहहहह..............और गहराई तक घुसाओ बाबू...........हाँ ऐसे ही.........ओओओओओहहहहह..............हाय मेरी बूर.............हाय बाबू।

उदयराज- आआआआआहहहहह.........मेरी बेटी.............क्या बूर है तेरी..............हाय.............. कितना मजा है तेरी बूर में...........आआआआआहहहहह.............सच में अपनी सगी बेटी को चोदने में बहुत मजा है..........इतना मजा आजतक कभी नही आया.........आआआआआहहहहह।

अब रजनी और उदयराज के बदन में सनसनी होने लगी एकाएक दोनों बाप बेटी गनगना कर जोर जोर से हाँफते हुए एक दूसरे से कस के लिपटकर झड़ने लगे। रजनी की बूर से एक बार फिर ज्वालामुखी फूट पड़ा था, वो थरथरा कर अपने बाबू से लिपट कर झड़ रही थी, उसकी बूर पूरा अपने बाबू के लंड को लीले संकुचित हो होकर रस छोड़ रही थी, उदयराज भी आंखें बंद किये झटके खाता हुआ अपनी बेटी की बूर में झड़ रहा था, लंड और बूर की रगड़ से निकला चुदाई का रस जाँघों से होता हुआ नीचे पत्थर पर और फिर नीचे जाकर नदी के पानी में मिलने लगा।

असीम चरमसुख की अनुभूति का अहसास दोनों बाप बेटी को मंत्र मुग्द कर गया काफी देर तक उदयराज और रजनी उस पत्थर पर एक दूसरे से लिपटे लंड और बूर मिलाए हुए लेटे रहे, उदयराज और रजनी दोनों ही काफी थक चुके थे, अपने बाबू द्वारा लगातार तीन बार धुँवाधार चुदाई से मानो रजनी की जाँघे जवाब दे गई हों, वो बेसुध सी हो गयी थी, बारिश अब हल्की हो चुकी थी, उदयराज ने रजनी को गोद में उठाया और नदी से निकलकर कुल वृक्ष के चबूतरे तक आया, अभी लगभग 3:30 हुए होंगे, उदयराज का अंगौछा और बाकी समान तो खेत में ही तैर रहा था तो उसने अपनी धोती जो तने के पास होने की वजह से ज्यादा खास गीली नही हुई थी उसको बिछाया। रजनी उस पर बैठ गयी और लेट गयी, उदयराज ने अपनी बेटी की साड़ी उठायी और अपनी बेटी के बगल लेटते हुए उसको बाहों में लेकर दुलारते हुए साड़ी ओढ़ ली और रजनी के कानों में बोला- बेटी, मेरी रानी, मैं जानता हूँ तुम बहुत थक चुकी हो, सुबह होने में अभी 2 घंटे हैं, तब तक सो जाओ।

रजनी- हाँ मेरे बाबू, मेरे सैयां, आप भी सो जाइए।

उदयराज ने रजनी के सर के नीचे अपना हाथ तकिया बना कर रख लिया, और उसको बाहों में लेकर सोने लगा, कुछ ही देर में दोनों बहुत थके होने की वजह से नींद की आगोश में जाने लगे, साड़ी के अंदर दोनों निवस्त्र थे, रजनी अपने बाबू से बिल्कुल चिपकी हुई थी, उदयराज का सुस्त पड़ चुका लंड रजनी की बूर की फांकों के बीच अब भी सटा हुआ था, दोनों कुछ देर के लिए सो गए।
मान्यवर नीलम की भी सुध लो :budhabudhi::link::bday::love3::dj2::dj2::dj2::dj2::dj2::congrats::firing::firing::firing::firing::firing::esc::esc::esc::esc::esc::esc::esc::esc:
 
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बारिश अब तेज होने लगी, उदयराज अपनी सगी बेटी की बूर में अपना लंड डाले उसपर लेटा रहा, रजनी भी अपने बाबू को सहलाते चूमते उनके नीचे लेटी सिसकती रही, रजनी के चेहरे पर बारिश की तेज बूंदें पड़ने लगी, उदयराज ने आँखें खोली और अपने चेहरे से अपनी बेटी के चेहरे को ढकते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, दोनों बाप बेटी एक बार फिर तेज बारिश में भीगते, एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए एक दूसरे में खोने लगे, लंड फिर से बूर में सख्त होने लगा, उसे महसूस कर रजनी की बूर फिर से चुदाई के लिए संसनाने लगी।

तेज बारिश से खेत की मिट्टी गीली होने लगी, अंगौछा काफी भीग चुका था, होंठों को चूसते हुए सिसक कर रजनी धीरे धीरे पलटकर अपने बाबू के ऊपर चढ़ने लगी और उदयराज साइड में गीली मिट्टी में लेटने लगा, तभी तेज बिजली कड़की, रजनी अपने बाबू को देखते हुए उनके ऊपर पलटकर चढ़ती गई, और इस अदला बदली में लंड पक्क़ की आवाज करते हुए बूर से निकल गया, रजनी मचल उठी।

लंड उछलकर सीधा हो गया, वासना में फिर से झटके खाने लगा, सुपाड़ा उसका खुला ही हुआ था, अपनी बेटी के काम रस में वो पूरी तरह सना हुआ था, रजनी ने अपने बाबू के ऊपर बैठते हुए अपने एक हाँथ की उंगलियों से अपनी बूर को चीरते हुए दूसरे हाँथ से अपने बाबू का लंड पकड़कर अपनी बूर की छेद पर कराहते हुए लगाया और खुद ही गच्च से लंड पर बैठती चली गयी, रजनी सीत्कारते हुए
हहहहहाहाहाहाययययययय............मेरे सैयां.........मेरे बाबू.........आआआआआआआहहहहहहहहहह......
करने लगी

एक बार फिर से उदयराज का फ़ौलादी लंड अपनी बेटी की रसभरी मखमली बूर के छेद को चीरता हुआ अत्यंत गरम गरम गहराई में समा गया, रजनी और उदयराज की मस्ती में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह करते हुए आँहें निकल गयी। लंड को बूर में पूरा लेते हुए रजनी बड़ी मस्ती में अपने बाबू के ऊपर उनके मुँह में अपनी बड़ी बड़ी मदमस्त चूचीयाँ भरते हुए लेटती चली गयी, उदयराज ने मुँह खोलकर गप्प से एक चूची को मुँह में भर लिया और बड़ी तन्मयता से चूसने लगा, रजनी अपने गांड को हल्का हल्का ऊपर नीचे हिलाते हुए हाय हाय करके सिसियाने लगी, धीरे धीरे अपने भारी नितम्ब को खुद ही ऊपर नीचे करते हुए अपने बाबू के ऊपर बैठी अपनी बूर को उनके विशाल लंड पर उछलते हुए चोदे जा रही थी, उदयराज ने अपनी बेटी के भारी गुदाज चौड़े नितम्ब को हाँथ बढ़ा कर अपने दोनों हथेली में भर लिया और नीचे से हौले हौले अपनी बेटी को मिट्टी में लेटे लेटे चोदने लगा।

रजनी- आआआआआहहहहह.......मेरे पिता जी....…...मेरे बाबू......चोदो अपने लंड से अपनी बेटी की बूर..........ओओओओओहहह हहह..............ऊऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.........माँ............ कैसे आपका मोटा सा लंड मेरी बूर में जा रहा है.........कितना मजा है चुदाई करने में................मुझे उछाल उछाल के चोदो न पिता जी, मेरे बाबू.......पेलो अपनी सगी बेटी को.............ऊऊऊऊईईईईई........आआआ आआआआहहहहहहहह..............और गहराई तक डालो बाबू...........हाँ ऐसे ही.........ओओओओओहहहहह................कैसे गच्च गच्च की आवाज आ रही है चुदाई की..........हाय बाबू।

अंगौछा बगल में पड़ा भीग रहा था, रजनी और उदयराज अब मिट्टी में आ चुके थे, रजनी अपने बाबू के ऊपर उनका लंड अपनी बूर में जड़ तक घुसेड़े हुए आधी झुकी हुई अपनी चूची चुसवाती और गांड को हल्का उछाल उछाल कर अपने पिता से चुदती हुए बहुत ही मादक लग रही थी, उदयराज पागलों की तरह रजनी की दोनों चुचियों को भर भरकर चूसे और दबाए जा रहा था। बारिश अपने जोरों पर थी, बीच बीच में बिजली कड़क जाती थी, तेज बारिश बाप बेटी के पूरे बदन को भिगो रही थी।

एकाएक नशे में आंखें बंद किये रजनी को एक खेल सूझा उसने सिसकते हुए अपने बाबू से कहा- मेरे बाबू, मेरे सैयां

उदयराज ने सैयां शब्द सुनते ही कराह दिया और बोला- हां मेरी बिटिया, मेरी सजनी, मेरी रजनी।

रजनी- इस हसीन अंधेरी बरसात की रात में खेत की गीली मिट्टी में अपनी बेटी को लिटा लिटा कर प्यार करो न बाबू, ये मौका क्यों छोड़ते हो मेरे राजा।

उदयराज अपनी बेटी की मंशा समझते ही मुस्कुरा दिया और रजनी को मिट्टी में पलट दिया और उसके ऊपर चढ़ गया ऐसा करने से लंड फिर पक्क़ से बूर से निकल गया तो रजनी सिसकारी लेती हुई बोली डालो न, निकलना नही चाहिए मेरे सैयां का लंड उसकी बेटी की बूर से।

ये सुनते ही उदयराज बावला हो गया, उसने झट रजनी के दोनों पैर हवा में किया और रजनी ने फट से दोनों हाँथ से बूर की फाँकों को चीर दिया, उदयराज से अपना मूसल जैसा 9 इंच का दहाड़ता लन्ड बूर की छेद पर लगाया और एक ही बार में पोजीशन बनाते हुए अपनी बेटी की बूर में जड़ तक उतार दिया, रजनी अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हह......बाबू कहकर कराह उठी, कुछ देर बूर में लन्ड पेले अपनी बेटी के ऊपर चढ़े रहने के बाद उदयराज ने रजनी को बड़ी सावधानी से अपने ऊपर लिटा लिया और नीचे से बूर में दो चार कस कस के गच्चे मारे, रजनी सिरह उठी, अब रजनी और उदयराज एक दूसरे से अमरबेल की तरह लिपटे खेत की अत्यंत गीली हो चुकी मिट्टी में इस तरह लोटने लगे कि बूर में से लंड न निकले, बारिश दनादन होती जा रही थी, कभी थोड़ा कम होने लगती फिर कभी तेज हो जाती, इस खेल के असीम आनंद में दोनों ही डूब चुके थे, रजनी का गदराया गोरा बदन खेत की गीली मिट्टी में जो अब कीचड़ का रूप ले चुकी थी सनने लगा, उदयराज का भी पीछे का सारा हिस्सा मिट्टी में सन चुका था, चुदाई का मजा तो मानो अब आसमान छू रहा था, दोनों ही जोर जोर से सिसकते कराहते एक दूसरे को बेताहाशा चूमते सहलाते बारिश में मिट्टी में सने हुए चोदे जा रहे थे, एक दूसरे को बाहों में भरे वो खेत में इधर उधर लोटने लगे, मानो बेड पर लेटकर लोट रहे हों।

जब रजनी अपने बाबू के ऊपर आती तो वो अपनी मदमस्त गांड उछाल उछाल के अपने बाबू को हाय हाय करते हुए चोदती और जब उदयराज ऊपर आता तो कुछ देर ठहरकर अपनी बेटी की दोनों जाँघों को अच्छे से फैलाकर जड़ तक लन्ड प्यासी बूर में पेल पेल के उसको हुमच हुमच के चोदता, रजनी हर बार कराह उठती, मिट्टी में बच्चों की तरह लोटने की वजह से उनका लगभग पूरा बदन पीछे की तरफ से सन गया था पर तेज बारिश की वजह से धुल भी जा रहा था, जब रजनी ऊपर आती तो उसकी मादक गदराई पीठ धुल जाती और जब उदयराज ऊपर आता तो उसकी पीठ धुल जाती, एक दूसरे से लिपटकर कीचड़ में लोटने की वजह से पलटते वक्त लन्ड कभी कभी बूर से बाहर आने लगता तो रजनी सिसकते हुए अपने बाबू की गांड पर हाथ लेजाकर दबा कर इशारा करती मानो जैसे उदयराज को पता ही न हो कि लन्ड बूर से निकलने वाला है, तो उदयराज अपनी बेटी की इस अदा पर कायल होकर जोरदार गच्च से धक्का मरता और लंड फिर से बूर में जड़ तक समा जाता, रजनी की जोर से असीम आनंद में अअअअअआआआआआआआहहहहहहहह हहह निकल जाती।

उधर बारिश होने की वजह से काकी भी उठकर बच्ची को लेकर बरामदे में आ जाती है, बच्ची चुपचाप सो ही रही थी, काकी मन में सोचती है कि बारिश अचानक इतनी तेज होने लगी वो लोग कहीं बारिश में भीग न रहे हों, खैर कहीं रुक गए होंगे जरूर, लगता है अब सुबह तक ही आएंगे।

तेज बारिश से अब खेत में हल्का हल्का पानी भी इकठ्ठा होने लगा, मिट्टी का कीचड़ तो हो ही गया था, रजनी ने अचानक मिट्टी को मुठ्ठी में लिया और बड़ी शरारत से अपने बाबू के सीने पर रगड़ दिया और मिट्टी लिया और बाजुओं पर भी हंसते और सिसकते हुए लगा दिया, उदयराज को भी शरारत सूझी तो उसने भी मिट्टी को उठाकर रजनी के कमर , पेट, नाभि, कंधे, बाजुओं तथा मस्त मस्त फूली हुई चूचीयों पर मसलने लगा, रजनी मस्ती में हसने लगी, अपने पूरे बदन पर मिट्टी लगे अपने बाबू के हाथ पड़ने से रजनी मचलने लगी और अपनी गांड तेज तेज उछाल कर लंड को बूर में कस कस के लेने लगी, काफी देर तक यही खेल चलता रहा और अब खेत में काफी पानी भर गया था, उदयराज का अंगौछा, तेल की शीशी, दीया और डलिया अब पानी में तैरने लगे थे, उदयराज ने रजनी से कहा -बिटिया चल तुझे नदी में ले चलूं, एक बार नदी में करेंगें।

रजनी सिसकते हुए जानबूझ कर पूछती है- क्या? क्या करेंगे मेरे बाबू?

उदयराज रजनी के कान में- चुदाई, तुझे नदी में चोदुंगा।

रजनी- तुझे कौन बाबू? मैं क्या हूँ आपकी?

उदयराज- तू मेरी सगी बेटी है और क्या?

राजनी- तो सगी बेटी लगा के बोलो न, आधा अधूरा क्यों बोलते हो मेरे बाबू, दुबारा बोलो अच्छे से।

उदयराज- अपनी सगी बेटी को नदी में ले जाकर चोदने का मन कर रहा है, अपनी सगी बेटी को, अब ठीक मेरी बिटिया।

राजनी-ओओओओओहहहहह.......बाबू..........तो ले चलिए न अपनी सगी बेटी को, जैसे मर्जी वैसे चोदिये, खूब चोदिये, आपकी सगी बेटी आपसे खुद चुदना चाहती है, उसकी बूर सिर्फ आपके लिए है, चोदिये मेरे बाबू, ले चलिए मुझे.....मेरे राजा पर मेरी बूर खाली नही होनी चाहिए अब, जब तक मैं तीसरी बार तृप्ति न पा लूं, कुछ इस तरह ले चलो अपनी बेटी को नदी तक, समझ गए।

उदयराज बनते हुए- नही तो।

राजनी- अरे ओ मेरे बुद्धू सैयां, अपनी इस बेटी को नदी तक इस तरह ले चलो की आपका मूसल जूस लंड उसकी कमसिन सी बूर से न निकले।

उदयराज- ओह! मेरी जान, मेरी बच्ची, मेरी रानी बिटिया, जैसा तेरा हुक्म।

फिर उदयराज रजनी को गोद में लिए लिए उठ बैठा, बैठने से लंड बूर में और धंस गया, उसके बाद उदयराज रजनी को लिए लिए खड़ा हो गया, उदयराज काफ़ी बलशाली था रजनी उसकी इस ताकत पर और भी कायल हो गयी, उदयराज ने रजनी को उठाकर गोद में बैठा लिया और अपने दोनों हांथों से नितम्बों को थाम लिए, रजनी ने अपनी दोनों टांगें अपने बाबू के गोद में चढ़कर उनकी कमर पर कैंची की तरह लपेटते हुए, उनसे कस के लिपटते हुए, कराहते हुए, जोर से सिसकारते हुए, उनके कंधों पर मीठे दर्द की अनुभूति में काटते हुए उनके विशाल लन्ड पर अपनी रस टपकाती बूर रखकर बैठती चली गयी, लन्ड फिसलता हुआ बूर की गहराई के आखरी छोर पर जा टकराया, क्योंकि रजनी के मखमली बदन का पूरा भार अब केवल लंड पर था, इतनी गहराई तक लन्ड शायद ही अभी तक घुसा हो, दोनों ही बाप बेटी काफी देर तक उन अंदरूनी अनछुई जगहों को आज पहली बार छूकर परम आनंद में कहीं खो से गये।

उदयराज और रजनी झमाझम बारिश में एक दूसरे में समाए सिसकते कराहते भीग रहे थे, उदयराज खेत के बीचों बीच अपनी सगी बेटी को उसके नितम्बों से पकड़कर अपनी कमर तक उठाये उसकी रसभरी बूर में अपना लन्ड घुसेड़े, उसकी बूर की मखमली अंदरूनी नरम नरम अत्यंत गहराई का असीम सुख लेता हुआ खड़ा था पानी और मट्टी में उसके दोनों पैर डूबे हुए थे, इसी तरह रजनी अपने बाबू की कमर में अपने पैर लपेटे उनके लंड पर बैठी, उनसे कस के लिपटी हुई परम आनंद की अनुभूति प्राप्त कर कराहे जा रही थी।

कुछ देर ऐसे ही अपनी बेटी के यौन मिलन के आनंद में खोए रहने के बाद उदयराज खेत से बाहर निकलने लगा, चलने से लन्ड और इधर उधर हिल रहा था जिससे रजनी बार बार चिहुँक चिहुँक कर हाय हाय करने लग जा रही थी। नदी वहां से 40 मीटर की दूरी पर ही थी।

उदयराज अपनी सगी बेटी को अपनी गोद में बैठाये नदी की ओर चलने लगा, चलने से लंड बूर की गहराई में अच्छे से ठोकरें मारने लगा, रजनी सिस्कार सिस्कार के बदहवास सी हो गयी, उसे अपनी बूर की गहराई में गुदगुदी सी होने लगी, एक बार तो ऐसा लगा कि वह थरथरा कर झड़ जाएगी तो उसने अपने बाबू से कहा- ओओओओओओओओहहहहहहहहहहहहह.......... मेरे बाबू थोड़ा रूको।
उदयराज रुक गया

रजनी अपने बाबू को कस के पकड़कर सिसकते हुए अपनी जाँघे भीचते हुए अपने को झड़ने से रोकने लगी, उदयराज समझ गया कि उसकी बेटी झड़ते झड़ते रह गयी, उसने अपने आपको मेरे साथ झड़ने के लिए रोके रखा है, उदयराज फिर चलने लगा और नदी तक पहुँचा तो रात के अंधेरे और तेज बारिश में देखा कि पानी का बहाव ज्यादा था, नदी में ज्यादा अंदर जाना ठीक नही था, उदयराज रजनी को गोद में लिए लिए पानी में उतर गया, बारिश में इतनी दूर तक आते आते उनके शरीर की काफी मिट्टी धूल चुकी थी और नदी में तब तक अंदर गया जब तक पानी उनके कंधों तक नही आ गया।

उसने रजनी को धीरे से पानी में उतारा, पानी ठंडा था, दोनों एक दूसरे को बाहों में लिए बहुत नजदीक से एक दूसरे को देखने लगे और देखते देखते रजनी के होंठ अपने बाबू के होंठों से मिल गए, काफी देर एक दूसरे के होठों को चूमने चूसने के बाद, उदयराज ने अपनी बेटी से कहा- बेटी, मेरी जान, क्या तुम्हारी बूर एक पल के लिए भी खाली हुई?

रजनी शर्माते हुए- ना मेरे सैयां, मेरे राजा, अब चोदो मुझे इसी नदी में कस कस के बाबू, जल्दी चोदो अपनी बेटी को फिर से प्यास लगी है।

नीचे लंड बूर में घुसा ही हुआ था, नदी का पानी कलकल करके बह रहा था, बारिश भी तेजी से हो ही रही थी।

उदयराज ने रजनी को फिर से बाहों में उठाया और थोड़ा किनारे एक बड़े पत्थर पर आ गया वो पत्थर आधा नदी में डुबा था आधा बाहर था, उदयराज ने धीरे से अपनी बेटी को उसपर लिटाया, रजनी आराम से उसपर सेट होकर लेट गयी, रजनी के पैर आधा पानी के अंदर थे, उदयराज का लंड इस प्रक्रिया में रजनी की बूर में से आधा बाहर आ गया था कि तभी रजनी ने अपने हाथ अपने बाबू की गांड पर ले जाकर हल्का सा आगे दबाया तो उदयराज ने एक करारा धक्का मारकर लन्ड को गच्च से पूरा बूर में डाल दिया, रजनी की तेज से आह निकल गयी और ठीक उसी समय तेज बिजली कड़की और दोनों ने एक दूसरे को देखा तो मुस्कुरा पड़े, उदयराज ने अपनी बेटी के ऊपर झुककर उसको चोदना शुरू किया, लंबे लंबे तेज तेज धक्के रजनी को अपनी मखमली बूर में लगने से रजनी जोर जोर से सिसकने लगी, उदयराज ने अपनी बेटी के एक पैर को उठाया और अपने कंधों पर रख लिया और दूसरा पैर फैला हुआ पानी के अंदर ही था, उदयराज पोजीशन बना कर अपनी बेटी को एक लय में तेज तेज धक्के लगाते हुए घचा घच्च चोदने लगा, पानी की बहती आवाज के साथ साथ उसकी भी जोरदार सिसकारियां गूंजने लगी, बारिश थोड़ी हल्की हुई पर बीच बीच में तेज बिजली चमक रही थी, तेज बिजली चमकने से दो सेकंड के लिए तेज उजाला हो जाता जिसमे उदयराज अपनी बेटी को चोदते हुए उसे सिसकते और कराहते हुए देखता और फिर और उत्तेजित हो जाता, तेज धक्कों से रजनी की चूचीयाँ लगातार ऊपर नीचे उछल उछल कर हिल रही थी।

उदयराज अब रजनी को तेज तेज गांड उछाल उछाल के उसकी बूर में दनादन घस्से मारने लगा, कभी गांड को गोल गोल घुमा कर लंड को बूर के अंदर गोल गोल घुमा घुमा कर धक्के मरता तो कभी तेज तेज हुमच हुमच कर चोदता।

अचानक रजनी को उसके बदन में एक सनसनाहट सी महसूस हुई, काफी देर बारिश में भीगते रहने के बाद उसे जोर से पेशाब लगने लगी उसने अपने बाबू की कमर को थामकर रोकते हुए कहा।

रजनी- बाबू, रुको न, सुनो न

उदयराज- बोल न मेरी बिटिया, क्या हुआ? झड़ने वाली है क्या मेरी बेटी?

रजनी शर्माते हुए- अरे अभी नही बाबू, मुझे पेशाब आ रहा है जोर से।

उदयराज खुश होते हुए- अरे तो तू मूत न मेरी रानी, मैं धीरे धीरे तुझे चोदता हूँ तू मूत, बहुत मजा आएगा चुदते हुए मूतने में।

राजनी शर्मा गयी फिर बोली- ठीक है बाबू, आप हौले हौले चोदिये मुझे मैं मूतती हूं।

फिर उदयराज बहुत धीरे धीरे अपना लन्ड बूर में अंदर बाहर करने लगा, अंधेरा होने की वजह से ज्यादा तो कुछ दिख नही रहा था, उदयराज नीचे झुककर देखने की कोशिश कर रहा था पर उसे अंधेरे में उसका मोटा सा लन्ड बूर में बड़े प्यार से आता जाता दिख रहा था, तभी रजनी ने पेशाब की तेज धार गनगनाते हुए छोड़ दी। सर्रर्रर्रर्रर से तेज पेशाब की धार निकली और उदयराज के लंड, जांघ को भिगोती चली गयी, तेजी से गर्म गर्म पेशाब बूर से निकलकर लंड से टकराता हुआ दोनों की जाँघों पर फैलने लगा और बहकर पत्थर पर फिर पानी में मिलने लगा। अपनी सगी बेटी के गर्म गर्म पेशाब के अहसास से उदयराज की आंखें नशे में बंद हो गयी, रजनी भी ओओओओओहहहहह बाबू करते हुए आंखें बंद कर मूतती रही।

उदयराज ने अपनी बेटी की बूर से लंड बाहर निकाला और अपने लन्ड को पेशाब की धार में भिगोने लगा फिर एकाएक उसने झुककर बूर को मुँह में भर लिया और अपनी बेटी का पेशाब मुँह में भरने लगा, बेटी के गरम गरम पेशाब की गंध ने उदयराज को मदहोश कर दिया।

जब मुँह भर गया तो उसने पिचकारी मारते हुए मुँह में भरा रजनी का पेशाब पानी में थूक दिया, बूर से पेशाब निकल ही रहा था कि उसने दुबारा बूर की फांकों को खोला और सरसराते हुए पूरा लन्ड अंदर पेल दिया। रजनी वासना में मचल उठी, उसका पेशाब अब बंद हो चुका था, उदयराज फिर से फच्च फच्च चोदने लगा, धक्के इतने तेज थे कि रजनी पूरा बदन हिल जा रहा था, बारिश होती रही, बिजली कड़कती रही और उदयराज हुमच हुमच के नदी के पानी में घुटनो तक खड़ा अपनी बेटी को लगातार 15 मिनट तक चोदता रहा, रजनी भी नीचे से अपने नितम्बों को उछाल उछाल कर अपने बाबू का चुदाई में साथ देती रही।

रजनी- आआआआआहहहहह.......मेरे राजा......चोदो ऐसे ही तेज तेज चोदो.........ओओओओओहहह हहह..............ऊऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.........माँ............ कस कस के पेलो लन्ड बाबू.........कितना मजा है चुदाई करने में................अब रुकना मत बाबू, पिता जी, मेरे बाबू.......पेलो अपनी सगी बेटी को.............ऊऊऊऊईईईईई........आआआ आआआआहहहहहहहह..............और गहराई तक घुसाओ बाबू...........हाँ ऐसे ही.........ओओओओओहहहहह..............हाय मेरी बूर.............हाय बाबू।

उदयराज- आआआआआहहहहह.........मेरी बेटी.............क्या बूर है तेरी..............हाय.............. कितना मजा है तेरी बूर में...........आआआआआहहहहह.............सच में अपनी सगी बेटी को चोदने में बहुत मजा है..........इतना मजा आजतक कभी नही आया.........आआआआआहहहहह।

अब रजनी और उदयराज के बदन में सनसनी होने लगी एकाएक दोनों बाप बेटी गनगना कर जोर जोर से हाँफते हुए एक दूसरे से कस के लिपटकर झड़ने लगे। रजनी की बूर से एक बार फिर ज्वालामुखी फूट पड़ा था, वो थरथरा कर अपने बाबू से लिपट कर झड़ रही थी, उसकी बूर पूरा अपने बाबू के लंड को लीले संकुचित हो होकर रस छोड़ रही थी, उदयराज भी आंखें बंद किये झटके खाता हुआ अपनी बेटी की बूर में झड़ रहा था, लंड और बूर की रगड़ से निकला चुदाई का रस जाँघों से होता हुआ नीचे पत्थर पर और फिर नीचे जाकर नदी के पानी में मिलने लगा।

असीम चरमसुख की अनुभूति का अहसास दोनों बाप बेटी को मंत्र मुग्द कर गया काफी देर तक उदयराज और रजनी उस पत्थर पर एक दूसरे से लिपटे लंड और बूर मिलाए हुए लेटे रहे, उदयराज और रजनी दोनों ही काफी थक चुके थे, अपने बाबू द्वारा लगातार तीन बार धुँवाधार चुदाई से मानो रजनी की जाँघे जवाब दे गई हों, वो बेसुध सी हो गयी थी, बारिश अब हल्की हो चुकी थी, उदयराज ने रजनी को गोद में उठाया और नदी से निकलकर कुल वृक्ष के चबूतरे तक आया, अभी लगभग 3:30 हुए होंगे, उदयराज का अंगौछा और बाकी समान तो खेत में ही तैर रहा था तो उसने अपनी धोती जो तने के पास होने की वजह से ज्यादा खास गीली नही हुई थी उसको बिछाया। रजनी उस पर बैठ गयी और लेट गयी, उदयराज ने अपनी बेटी की साड़ी उठायी और अपनी बेटी के बगल लेटते हुए उसको बाहों में लेकर दुलारते हुए साड़ी ओढ़ ली और रजनी के कानों में बोला- बेटी, मेरी रानी, मैं जानता हूँ तुम बहुत थक चुकी हो, सुबह होने में अभी 2 घंटे हैं, तब तक सो जाओ।

रजनी- हाँ मेरे बाबू, मेरे सैयां, आप भी सो जाइए।

उदयराज ने रजनी के सर के नीचे अपना हाथ तकिया बना कर रख लिया, और उसको बाहों में लेकर सोने लगा, कुछ ही देर में दोनों बहुत थके होने की वजह से नींद की आगोश में जाने लगे, साड़ी के अंदर दोनों निवस्त्र थे, रजनी अपने बाबू से बिल्कुल चिपकी हुई थी, उदयराज का सुस्त पड़ चुका लंड रजनी की बूर की फांकों के बीच अब भी सटा हुआ था, दोनों कुछ देर के लिए सो गए।
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