Update- 73
बिरजू ने धीरे से नीलम के बगल में लेटते हुए अपना लंड उसकी रसीली जोश में उभरी और फूली हुई बूर में से निकाल लिया, जब लंड बाहर आने लगा तो बूर की अंदरूनी मखमली दीवारें जैसे उससे लिपट लिपट कर न जाने की विनती करने लगी और भरी हुई बूर के अंदर फिर से खालीपन होने लगा जिससे नीलम के मुंह से हल्का सा "अहह" की आवाज निकली, दोनों अगल बगल लेट गए, वीर्य की धार बूर से निकलकर जाँघों से होती हुई बिस्तर पर गिरने लगी, मानो लन्ड के निकल जाने से बूर आंसू बहाने लगी हो, बिरजू के काले लंड पर सफेद सफेद काम रस ऐसे लिपटा हुआ था मानो उसने मक्ख़न के डिब्बे में से अपना लंड निकाला हो, बिजली का कड़कना और तेज बारिश जारी था, जब जब रोशनी होती तब तब बिरजू और नीलम एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते, नीलम ने पलटकर महेन्द्र की तरफ देखा, वो चादर ओढ़े सन्न पड़ा हुआ था मानो सो गया हो, पर वो सोया नही था बल्कि अपनी पत्नी को उसी के सगे पिता के साथ अतिआनंदमय व्यभिचार का सुख लेते हुए बार बार उत्तेजित हो रहा था।
बिरजू ने नीलम को अपनी तरफ खींचकर अपने आगोश में ले लिया, उसका थोड़ा शांत हुआ लन्ड नीलम की जाँघों में इधर उधर टकराने लगा मानो किसी घोड़े को मैदान में खुला छोड़ दिया हो और वो इधर उधर दौड़ लगाकर अपनी खुशी जाहिर कर रहा हो। लन्ड जो कि वीर्य से सना हुआ था नीलम की जाँघों और बूर पर जहां तहां टकराकर वहां भी काम रस लगा दे रहा था, जिसको नीलम बखूबी महसूस कर रही थी, नीलम को अपने बाबू का मस्तमौला लंड अपनी जाँघों और बूर पर जहां तहां टकराता हुआ असीम सुख की अनुभूति करा रहा था।
नीलम अपने बाबू की तरफ और सरककर उनके आगोश में आ गयी और अपनी नाक को धीरे से अपने बाबू की नाक से रगड़ने लगी, फिर अपनी नाक को अपने बाबू की नाक के दाहिने तरफ ले गयी और नाक की छोटी सी बाली को उनकी नाक पर बड़ी अदा से रगड़ने लगी, बिरजू को अपनी बेटी की ये अदा इतनी अच्छी लगी कि उसने उसकी नाक की बाली को कई बार चूमा फिर उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर लगभग पीने सा लगा, नीलम ने मस्ती में आंखें बंद की और अपने बाबू के मचलते लंड को अपने नाजुक हांथों में ले लिया और उसपर लगे वीर्य को चादर से पोछने लगी फिर एक दो बार ऊपर से नीचे तक अच्छे से मुआयना किया, बिरजू ने चादर से पूरा का पूरा खुद को और नीलम को ढंक लिया फिर कान में धीरे से कहा-मुझे माफ़ कर देना बिटिया।
नीलम प्यार से अपने बाबू के लन्ड पर हाँथ फेरते हुए बोली- क्यों बाबू....आप ऐसा क्यों कह रहे हैं।
बिरजू ने नीलम के कान में फुसफुसा कर कहा- मैं तेरी कमसिन सी योनि को देखकर जंगली सांड बन गया था, पता नही क्यों उस वक्त क्या हुआ कि रहा ही नहीं गया, जी में आया कि इस प्यारी चूत को कस कस के चोद डालूं बस और वही मुझसे हो गया, आखिर अपनी ही सगी बेटी की कमसिन सी इस बूर पर इतना तेज तेज प्रहार नही करना चाहिए था मुझे, पर क्या करूँ योनि ऐसी है तेरी की उसे देखकर मैं पागल ही हो गया।
बिरजू ने ये बोलते हुए नीलम की गीली शांत पड़ी बूर को हथेली में भर लिया और उसकी गीली दरार में अपनी तर्जनी उंगली डुबोकर ऊपर से नीचे तक कुरेदने से लगा, नीलम अपने बाबू की जाँघों पर अपनी एक जांघ चढ़ा कर सिसकते हुए उनसे और कस के लिपट गयी कुछ देर अपने बाबू की उंगली को अपनी बूर पर इधर उधर रेंगते हुए महसूस कर उत्तेजित होती रही फिर बोली- बाबू....ये तो मेरा सौभाग्य है कि आप मेरी योनि देखकर बेसुध हो गए, एक पिता अपनी सगी शादीशुदा जवान बेटी की योनि उस वक्त देखकर बेकाबू तो हो ही जायेगा जब वो योनि खुद उसे आमंत्रित कर रही हो और बाबू बूर तो होती ही है कुचल कुचल कर चोदने के लिए.....आपका जंगलीपन तो मुझे बहुत अच्छा लगा, अगर ऐसा न होता तो मैं आपको रोक न देती, माना की थोड़ा दर्द हो रहा था पर अतुल्य सुख की अनुभूति भी हुई, जिसके लिए आज पूरे दिन मैं तरसी थी और दूसरी बात जब सांड को लाल कपड़ा दिखा के ललचाओगे तो वो जंगली तो बन ही जायेगा न, मैंने भी तो उंगलियों से चीरकर फाँकों के बीच लाल लाल दिखाया था न आपको, तो उसको देखकर पागल हो जाना तो लाज़मी है न और वो भी सगी बेटी की..योनि..का...छेद...। मुझे आपका जंगलीपन बहुत अच्छा लगा......बाबू.....बहुत अच्छा।
बिरजू- तेरी योनि ने सच में मुझे पागल कर दिया है मेरी बिटिया।
नीलम- मैं भी तो आपके विशाल लंड की दीवानी हो गयी हूँ। जब ये अंदर जाता है तो ऐसा लगता है कि मैं पूर्ण रूप से भर गई हूं, कहीं कोई कमी नही है।
ऐसा कहते हुए नीलम ने बिरजू के खड़े लन्ड को हथेली में भरकर हल्का सा मसल दिया, बिरजू ने कराहते हुए नीलम के गालों को चूम लिया।
बिरजू ने नीलम को अपने ऊपर चढ़ा लिया, चादर के अंदर ही नीलम धीरे से अपने बाबू के ऊपर लेट गयी, दोनों पूर्ण नग्न थे, नीलम का भरपूर भरा भरा मांसल बदन बिरजू के ऊपर आ गया, नीलम के बदन के एक एक कटिप्रदेश, उभार, उतार चढ़ाव, मादक गोलाईयों पर बिरजू के हाँथ रेंगने लगे, नीलम फिर से सिरहने लगी, बारिश होने की वजह से मौसम में थोड़ा ठंडक आ गयी थी, बाहर तेज हवाएं भी चल रही थी, कभी कभी खिड़की के पल्ले तेजी से खुलते और तेज आवाज के साथ फटाक से बंद हो जाते, लेकिन चादर के अंदर एक सगे बाप बेटी के पूर्ण नग्न बदन एक दूसरे से रगड़ रगड़ के अलग ही गर्मी पैदा कर रहे थे।
दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के बदन को पूर्णतया सहलाने, दबाने में मग्न हो चुके थे, सहलाते सहलाते जब दोनों के हाँथ नीचे जाते तो एक दूसरे के उत्तेजित हो चुके लंड और बूर से खेलने लगते, खेलते खेलते दोनों और उत्तेजित हो जाते और कस कस के एक दूसरे से लिपटते, नीलम अपने बाबू के ऊपर चढ़ी हुई थी, कभी वो नीचे आ जाती और बिरजू उसके ऊपर चढ़ जाता, उस ऊपर नीचे के खेल में जब जब बिरजू का तन्नाया लंड अपनी बेटी की दहकती बूर की फांकों के बीच टकराता तो नीलम अपने कूल्हे हल्का सा दबा कर लंड को बूर में लेने की कोशिश करती और उसके मुँह से जोर की सिसकी निकल जाती।
बिरजू इस खेल के दौरान चादर को संभाले रहा, जहां कहीं से भी चादर हल्का सा खुलता वो उसे दुबारा दोनों के नग्न बदन पर अच्छे से डाल देता, उसने नीलम को एक बार फिर अपने ऊपर चढ़ा लिया और उससे बोला- तुम्हे अलग सा रोमांच का अहसाह हुआ।
नीलम शर्माते हुए बिरजू के ऊपर पूरा अच्छे से लेट गयी और बोली- बहुत रोमांच हुआ बाबू.....बहुत अच्छा लगा, एक अद्भुत गुदगुदी का अहसाह हुआ....बहुत अजीब सा भी लग रहा है.....अब भी लग रहा है
ऐसा कहते हुए नीलम महेन्द्र की तरफ देखने लगी, फिर बिरजू की तरफ देख कर अंधेरे में मुस्कुरा दी, नीलम और बिरजू की सांसें आपस में हल्का हल्का फुसफुसाते वक्त टकरा रही थी और जब सांसों के टकराने पर उनका ध्यान जाता तो दोनों को बहुत उत्तेजना होती और दोनों के होंठ आपस में मिल जाते, काफी देर दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते रहते और फिर कामुक बातें करने लगते कामुक बातें करते करते जब फिर होंठ हल्का हल्का फुसफुसाते हुए आपस में टकराते तो फिर दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगते ऐसा काफी देर चलता रहा।
दोनों के हाँथ एक दूसरे के यौनांग से लगातार खेल ही रहे थे जिससे दोनों काफ़ी उत्तेजित हो गये, नीलम ने धीरे से अपने बाबू के लंड की चमड़ी को खींचकर पीछे किया और चिकने गीले हो चुके मोटे सुपाड़े पर नरम नरम उंगलियां चलाने लगी, जब जब अपना अंगूठा सुपाड़े के छेद पर रगड़ती बिरजू के नितंब झनझना जाते और उसके बदन में तेज सुरसुरी होती, नीलम बार बार लंड की चमड़ी को सुपाड़े पर चढ़ाती फिर उतारती, चमड़ी उतार कर सुपाड़े को काफी देर उंगली और अंगूठे से रगड़ती, उसके छेद से निकल रहे गीले हल्के वीर्य को तर्जनी उंगली में लेकर पूरे सुपाड़े पर चुपड़ती और कभी कभी उंगली को ऊपर ला के हल्का सा चाट लेती, फिर हाँथ नीचे ले जाती और लंड से खेलने लगी, नीलम की इन अदाओं से लंड ने दुबारा से अपना विकराल रूप धारण कर लिया, नीलम बार बार लंड का पूरा पूरा मुआयना कर रही थी, हाथ को और नीचे ले जाकर जांघ और लंड के बीच की दरार में उंगलियां फिराती फिर दोनों आंड को अच्छे से हथेली में भरकर सहलाती। बिरजू भी मस्ती में आंखें बंद किये हुए चादर के अंदर अपनी सगी बेटी के एक एक अंग से खेल रहा था। कभी 36 साइज के चौड़े नितंबों को दोनों हथेली में लेकर सहलाता, तो कभी दोनों जाँघों पर हाँथ फेरता फिर कमर को सहलाते हुए धीरे धीरे पूरी नंगी पीठ पर हाँथ फेरता, नीलम कभी कभी तेज सिसकते हुए बिरजू के कंधों पर दांत गड़ा देती तो कभी गर्दन और गाल के पास चूमने लगती।
नीलम बहुत देर से अपने पिता के लन्ड से खेल रही थी, लंड को सहलाते सहलाते उसने उसकी चमड़ी को पीछे खींचकर सुपाड़ा बाहर निकाल लिया और अपने हांथों से उसे सीधा करके अपनी रस बहाती बूर के तने हुए दाने से रगड़ने लगी, बिरजू ने उसके दोनों नितंबों को पकड़कर उसकी बूर को लन्ड पर और दबा दिया, नीलम चादर के अंदर जोर से सिसक उठी, थोड़ी देर लंड को बूर की रसीली दरार में रगड़ने के बाद नीलम बोली- बाबू
बिरजू- हाँ बिटिया.....बोल न
नीलम- मुझे जोर से पेशाब आ रहा है।
बिरजू- पेशाब आ रहा है।
नीलम- हम्म्म्म
बिरजू- तो चल मैं अपनी बिटिया रानी को पेशाब करा लाऊं जैसे बचपन में करा के लाता था जब तू छोटी थी।
नीलम शर्मा गयी - नही आप लेटो मैं करके आती हूँ।
बिरजू ने धीरे से कान में फुसफुसा के कहा- चल न मेरे साथ वहीं फिर बाहर बारिश में करेंगे खूब।
नीलम को अब बात समझ में आई- अच्छा बाबू चलो मुझे पेशाब करा के लाओ, अंधेरे में मुझे बिजली चमकने से डर लग रहा है।
(नीलम ने महेन्द्र को सुनाते हुए कहा, महेन्द्र चादर को अच्छे से ओढ़ते हुए करवट बदल कर मुँह दूसरी तरफ करके मुस्कुराता हुआ लेट गया, उसको बस अब एक ही चीज़ का इंतज़ार था और वो थी उसकी बहन सुनीता)
नीलम बिस्तर पर से उठी और एक चादर से अपने रसीले छलकते यौवन को ढक लिया बिरजू भी पलंग पर से उठा अंधेरे में एक चादर उसने भी लपेट ली और नीलम को झट से अपनी बाहों में उठा लिया, नीलम बड़ी मादकता से अपने बाबू की बलशाली बाहों में आ गयी और उनसे लिपट गयी, बिरजू ने एक हाँथ नीलम के नितंब पर रखा और दूसरा हाँथ पीठ पर और नीलम को आधा अपने कंधे पर उठा लिया, नीलम की गोल गोल मोटी चूचीयाँ बिरजू के कंधे पर दब गई।
बिरजू नीलम को लेकर अंधेरे में दरवाजे तक आया और दरवाजे की सिटकनी खोली, बाहर तेज बारिश हो रही थी, खपरैल से पानी लगातार चू रहा था मानो झरना गिर रहा हो, बिरजू नीलम को कंधे पर उठाए दीवार के किनारे किनारे गुसलखाने की तरफ जाने लगा जैसे ही वो दीवार पार करके दूसरे कमरे की दीवार के किनारे किनारे बारिश से बचता हुआ नीलम को कंधे पर उठाए जाने लगा तो नीलम बोली- बाबू रुको यही, गुसलखाने में न जाओ, बारिश तेज हो रही है भीग जाएंगे, यहीं कर लेती हूं दीवार के पास, आंगन में से पार करके जा नही सकते मूसलाधार बारिश हो रही है, यहां खपरैल का ओट है रुको यहीं।
बिरजू ने ठीक है कहते हुए नीलम को उतार दिया, दोनों के चादर पानी की तेज बौछार से हल्का हल्का भीग से ही गए थे, जिससे बिरजू को भी तेज पेशाब लगी तो वो नीलम से बोला- मुझे भी पेशाब करना है अपनी बेटी के साथ, मुझे भी लगी है।
नीलम जोर से हंसते हुए- तो करिए न बाबू किसने रोका है।
नीलम मूतने के लिए वहीं बैठ गयी अपने बाबू को देखते हुए देखकर शर्मा गयी, तेज बारिश के साथ साथ बिजली चमकने से दोनों एक दूसरे को साफ देख ले रहे थे, नीलम ने जानबूझ कर मूतने के लिए चादर को अच्छे से अपनी कमर तक उठाया ताकि बैठने से उसकी चौड़ी मादक गाँड़ उसके बाबू को साफ दिख सके, बिरजू आँखें फाड़े अपनी बेटी की मादक गाँड़ को घूरने लगा, नीलम ने जानबूझ कर दिखाते हुए बैठकर अपनी बूर से पेशाब की एक तेज धार छोड़ते हुए मूतने लगी, नीलम के पेशाब की तेज धार लगभग एक फुट की दूरी पर जाकर बारिश के पानी में मिलने लगी।
बिरजू से रहा नही गया तो उसने अपना पेशाब दबा कर मूतती हुई नीलम के पास बैठकर अपना सीधा हाँथ नीलम की बूर पर ले गया और उसके गालों को चूमते हुए पेशाब निकालती हुई उसकी फैली हुई बूर को छुआ, नीलम सिरह गयी, उसने अपने बाबू के होंठों पर अपने होंठ रख दिये, बिरजू अपनी बेटी के होंठ चूसते हुए उसकी बूर टटोलने लगा, गरम गरम पेशाब उसके हाँथ से होकर जाने लगा, नीलम मदहोश हो गयी, बिरजू ने पेशाब करती हुई बूर को जी भरके छुआ, खुद को भी पेशाब करना था ये तो वो भूल ही गया।
नीलम मस्ती में शर्माती जा रही थी और सिसकते हुए मूतती जा रही थी, वाकई में उसको काफी तेज पेशाब लगा था, करीब 30 सेकंड तक वो मूतती रही और बिरजू ने जी भरके उसकी पेशाब छोड़ती बूर को सहलाया अपना पूरा हाँथ उसने अपनी सगी शादीशुदा बेटी के गरम गरम पेशाब से भिगो लिया।
नीलम- बाबू आप भी पेशाब कर लीजिए न....भूल ही गए क्या इसको छू कर
(नीलम ने बैठे बैठे कहा)
बिरजू ने ये सुनकर खड़ा होकर अपने शरीर से चादर हटाया और उसको गले में गमछे की भांति बांध लिया उसका काला लन्ड हवा में झूलने लगा नीलम बैठे बैठे उस काले लन्ड को आँखें फाड़े देखने लगी।
बिरजू ने नीलम को दिखाते हुए लंड की चमड़ी को पीछे खींचा और जोर से खड़े होकर मूतने लगा, नीलम को ये देखकर जोश भी चढ़ता गया और हंसी भी छूट गयी, वो उठी और पीछे से जाकर अपने बाबू से लिपट गयी, मोटे काले नाग जैसे लन्ड को हाथों में भर लिया और पेशाब की धार छोड़ते मोटे सुपाड़े पर उंगलियां फिराकर अपनी उंगलियां अपने बाबू के पेशाब में भिगोने लगी, मस्ती में नीलम पीछे से अपने बाबू को लगातार चूमे जा रही थी, कुछ ही देर में बिरजू पेशाब कर चुका था।
बिरजू ने एकाएक नीलम को कमरे की दीवार से सटाया और उसके एक पैर को उठाकर अपनी कमर पे चढ़ा लिया जिससे उसकी जांघे और बूर की गीली फांके खुल गयी और हल्का सा नीचे को झुककर अपने मोटे लंड के सुपाड़े को अपनी बेटी की मखमली बूर से भिड़ा दिया। नीलम जोर से सिसकते हुए बिरजू के ऊपर झूल सी गयी, बिरजू कुछ देर तक लंड को बूर से रगड़ता रहा, नीलम बिरजू पर लदी होने की वजह से उसकी बूर ऊपर थी और बिरजू का लंड नीचे जिससे लंड लगभग बूर में घुसने को तैयार बैठा था।
नीलम ने सिसकते हुए कहा - अब डाल दो न बाबू, चोद दो मुझे रहा नही जा रहा अब।
बिरजू ने अपने लंड के दहकते सुपाड़े को ठीक से बूर के मुहाने पर लगाया और नीलम उसपर बैठती चली गयी, मोटा खूंटे जैसा लन्ड एक बार फिर बूर की मखमली गहराइयों को चीरता हुए अंदर तक उतर गया, नीलम हल्का सा कराह उठी, बिरजू ने नीलम को उसकी गाँड़ पर हाँथ रखके उठा रखा था और नीलम अपना एक पैर अपने बाबू की कमर पर लपेटे केवल एक पैर पर खड़ी थी। नीलम का आधे से ज्यादा बदन अपने बाबू के बदन पर टिका था, लन्ड जबरदस्त बूर में घुसा हुआ था।
बिरजू ने नीलम को अपना दूसरा पैर भी कमर से लपेटने को कहा तो नीलम ने वैसा ही किया उसने अपने दोनों पैर अपने बाबू की कमर पर लपेट दिए और पूरी तरह अपने बाबू पर चढ़ गई, बिरजू नीलम को गोदी में लिए लिए दीवार के सहारे टिक गया और नीलम की गाँड़ को पकड़कर हल्का सा ऊपर को उठाकर अपना काला लन्ड बूर में से थोड़ा सा निकाला और एकदम से दुबारा नीलम को लन्ड पर बैठा दिया, नीलम की बूर में लन्ड जड़ तक सरसरा कर समा गया, नीलम की कोमल नरम नरम बूर एक बार फिर रबड़ के छल्ले की तरह फैल गयी, नीलम की बारिश में जोर से चीख निकल गयी- आह..... बाबू....चोदिये अब......खड़े होने की वजह से ये बहुत अंदर तक चला गया है......मेरी बूर तो फट ही जाएगी अब........ऊई अम्मा........बस बाबू.......अब चोदिये न बूर को....
बिरजू खड़े खड़े अपनी बेटी की बूर चोदने लगा, नीलम अपने बाबू की गोदी में मस्त चुदाई करवाते हुए मचलने लगी, मस्ती में कराहते हुए वो अपने बाबू के गालों को, होंठों को चूसने काटने लगी।
बिरजु दनादन नीचे से अपनी बेटी को चोदे जा रहा था, चुदाई का नाश इतना चढ़ चुका था कि नीलम खुद भी अपने बाबू के लन्ड पर उछलने लगी।
बिरजू कभी नीलम की गाँड़ को एक हाँथ से थाम लेता और दूसरे हाँथ से उसकी पीठ को सहलाता और मोटी मोटी चूचीयों को दबाता तो कभी दोनों हाँथ से उसकी चौड़ी गाँड़ को भींच देता।
नीलम से रहा नही गया तो उसने कराहते हुए धीरे से बोला- बाबू नीचे लिटा कर अच्छे से चोद दीजिए मुझे, खड़े खड़े आप भी थक जाओगे।
बिरजू को ये बात ठीक लगी, उसने नीलम को चूमकर नीचे उतारा और वहीं थोड़ी सी जगह में
जल्दी से चादर जमीन पर बिछा दिया, नीलम झट से पीठ के बल उसपर लेट गयी और जल्दी से अपनी दोनों जाँघों को फैलाकर अपने हांथों से अपनी बूर की फांकों को चीरकर थोड़ा ऊपर उठाकर बूर को अपने बाबू को परोसते हुए बोली- आओ बाबू जल्दी......डालो इसमें
बिरजू झट से नीलम पर चढ़ गया और जल्दी से एक हाँथ से लन्ड को बूर के मुहाने पर सेट किया और एक तेज धक्का मारते हुए अपनी बेटी की बूर में समा गया, नीलम एक बार फिर तेजी से कराहते हुए अपने बाबू से लिपट गयी, दोनों सिसकते हुए एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमते हुए बारिश में दीवार के सहारे थोड़ा छिपकर चुदाई करने लगे।
नीलम ने फिर एक बार अपने पैर अच्छे से अपने बाबू की कमर में लपेट दिए और बिरजू ने नीलम को अच्छे से अपने नीचे दबोच कर उसकी 36 साइज की चौड़ी मांसल गाँड़ को अपने दोनों हांथों में थामकर जमकर बूर में अपना मोटा लन्ड पेलने लगा।
नीलम अब मस्ती में हाय हाय करने लगी, बाप बेटी की वासनामय चुदाई ने पूरा माहौल एक बार फिर गरम कर दिया था, धक्के इतने तेज हो गए थे कि बारिश की आवाज में भी चुदाई की फच्च फच्च आवाज अलग से सुनाई दे रही थी।
नीलम- आआआआआआहहहहहह.......बाबू जी......चोदो ऐसे ही हुमच हुमच के मेरी बूर को.........ऊई अम्मा......हाय....... क्या लन्ड है मेरे बाबू का........सगी बेटी को चोदने में मजा आ रहा है न बाबू.........कितना अच्छा लगता है जब अंदर ठोकर मारता है आपका मोटा लन्ड..........ऊई मां.......बाबू जरा धीरे से........गोल घुमा घुमा के डालो न बाबू लन्ड अपना...........हाँ ऐसे ही.......हाय.......
नीलम मदहोशी में ऐसे ही कामुक सिसकारियां लेते हुए नीचे से बराबर अपनी गाँड़ उछाल उछाल के अपने बाबू से चुदवा रही थी।
लगभग 15 मिनट की घनघोर चुदाई के बाद दोनों बाप बेटी एक साथ थरथरा कर झड़ने लगे, दोनों अमरबेल की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे को चूमने लगे, दोनों को ही ये होश नही था कि वो इस वक्त आंगन में अपने दूसरे कमरे की दीवार की आड़ में चादर बिछाए उसपर लेटकर चुदाई कर रहे हैं और बगल में ही घनघोर बारिश हो रही है, काफी देर तक दोनों झड़ते हुए अपनी उखड़ती सांसों को समेटते रहे, फिर नीलम ने अपनी आंखें खोलकर बिरजू को देखा बिरजू नीलम को ही देख रहा था, नीलम बिरजू को उसे ही देखता हुआ पाकर शर्मा गयी।
बिरजू- मजा आया मेरी बिटिया।
नीलम - फिर बिटिया
बिरजू- अरे अभी तो दामाद जी हैं न
नीलम- तो यहां कहाँ हैं वो, कोने में अकेले में तो बोल ही सकते हो।
बिरजू- अच्छा मेरी रांड......मजा आया।
नीलम- धत्त गंदे......हाँ मजा आया....बहुत मजा आया मेरे बाबू... .आपकी रांड आपका लन्ड पाकर तो मस्त हो जाती है.....कसम से।
फिर बाप बेटी एक दूसरे को चूमने लगे, कुछ देर बाद उठकर अंदर कमरे की तरफ चल दिये।