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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Update- 39

बाग को पार करते ही खेत शुरू हो गए, खेतों के बीच मिट्टी की कच्ची सड़क पर रजनी आगे आगे चल रही थी, सड़क के किनारे दोनों तरफ काफी दूर दूर तक खेत ही खेत थे, कईं खेत खाली थे तो कइयों में फसल खड़ी थी, नज़र उठा कर दूर तक देखने पर गांव के कुछ एकाद घर ऐसे थे जिनमें लालटेन जल रही थी जिनकी रोशनी एक छोटे से तारे की तरह नज़र आती थी, क्योंकि अपने गांव का रास्ता उदयराज और रजनी को बखूबी पता था इसलिए वो अंधेरे में भी बेधड़क चले जा रहे थे, अंधेरा तो था पर पास की चीज़ें हल्की हल्की दिखती थी, ठंडी हवा सर्रर्रर सर्रर्रर चल रही थी जिससे खेतों में खड़ी फसल भी लहलहा रही थी।

उदयराज तेज कदमों से चलकर रजनी के नज़दीक आया और बोला- बेटी ये लाठी पकड़।

रजनी- क्या हुआ बाबू? सूसू लगी है क्या? (रजनी इतना कहते ही मजे लेते हुए खिलखिलाकर हंस दी और लाठी पकड़ ली)

उदयराज ने झट राजनी को अपनी दोनों मजबूत बाहों में उठाते हुए बोला- सूसू लगेगी भी तो अब अकेला थोड़ी न करूँगा।

अचानक बाहों में उठा लेने से रजनी चिहुँक गयी फिर जल्दी से अपनी बाहें अपने बाबू के गले में डालकर फंसा लिया, लाठी और डलिया उदयराज की पीठ की तरफ आ गए क्योंकि वो दोनों रजनी के हांथों में थे। उदयराज ने अपनी जवान सगी बेटी के गदराए बदन को अपनी मजबूत बाहों में थामा हुआ था।

रजनी- अच्छा, तो सूसू किसके साथ करोगे?

उदयराज - अपनी प्यारी बेटी के साथ?

राजनी- iiiiiiiiisssssshhhhhhhhhh, सूसू भी मेरे साथ।

उदयराज- हां बिल्कुल, और वो भी उसको देखते हुए। करोगी मेरे साथ सूसू?

राजनी- सोच के बताऊंगी (रजनी ने जानबूझ कर अपने बाबू को तडपाने के लिए कहा)

उदयराज- सोचकर?, सूसू के वक्त इतना सोचा नही जाता, जब तक सोचोगी तब तक तो सूसू निकल जायेगा।

रजनी (जोर से हंसते हुए)- तो क्या अभी लगी है मेरे बाबू को जोर से।

उदयराज- नही नही, मैं तो ऐसे ही बोल रहा था, और मान लो लगी ही होती तो?

रजनी- तो कर लेती साथ में, पर मान लो मुझे ही नही लगी होती तो।

उदयराज- तो तुम वैसे ही खोलकर सामने बैठ जाना, मैं उसको देखते हुए कर लिया करूँगा।

रजनी ने धीरे से कान में कहा- किसको?

उदयराज ने रजनी को बाहों में उठाये उठाये चलते चलते धीरे से कान में कहा- अपनी सगी बेटी की बूर को।

रजनी dhattttttt, बदमाश! बोलते हुए अपने बाबू से लिपट गयी।

उदयराज ने फिर रजनी के कान में धीरे से कहा- मुझे थोड़ा सा चखना है और निकलते हुए देखना है।

राजनी- क्या? क्या चखना है बाबू और क्या निकलते हुए देखना है?(राजनी ने बहुत धीरे से कान में कहा)

उदयराज ने बहुत मादक अंदाज़ में कहा- अपनी बेटी का गरम गरम चूत और मूत दोनों।

रजनी ने लाठी और डलिया को बाएं हाँथ में पकड़ा और दाएं हाँथ से पीठ में चिकोटी काटते हुए बोली- बदमाश! गंदे बाबू!

उदयराज ने अब रजनी को घुमा के कंधे पर उठा लिया तो राजनी बोली- बाबू अब मुझे उतार दो न, आप थक जाओगे।

रजनी की मोटी मोटी चूचीयाँ उदयराज के कंधों पर दब गई। अपनी बेटी के गदराए बदन को अपनी बाहों में उठाये और दबोचे उदयराज मदहोशी में चले जा रहा था।

उदयराज- नही, अपनी रानी बेटी को मैं अपनी बाहों में उठाकर सेज तक ऐसे ही ले जाऊंगा।

रजनी- सेज, कौन सा सेज?

उदयराज- कुलवृक्ष का चबूतरा, वहीं तो सेज है आज हमारी आज रात।

रजनी ये समझते ही फूली नही समाई पर फिर बोली- नही बाबू, आप थक जाएंगे, मैं नही चाहती कि मेरे बाबू पहले ही कुछ थक जाएं।

अब उदयराज अपनी बेटी का अर्थ समझ गया और मुस्कुरा दिया फिर बोला - क्यों तेरे बाबू इतने कमजोर हैं क्या की अपनी बेटी को सेज तक न ले जा सकें।

रजनी- ना बाबा ना, मैन ऐसा कब कहा, मेरे बाबू जैसा तो कोई नही, पर मैं उनकी तनिक भी ताकत कहीं और नही बांटना चाहती। समझें अब मेरे बाबू।

उदयराज- ह्म्म्म तो बात ये है, लो मैं तुम्हे फिर उतार देता हूँ।

और उदयराज ने रजनी को उतार दिया।

ऐसे ही वासनात्मक बातें करते करते उदयराज और रजनी आखिर कुल वृक्ष तक पहुँच ही गए। उनको अंधेरे में वहां पहुँचते पहुँचते लगभग 40 मिनट लग गए। कुल वृक्ष के आस पास कईं और पेड़ भी थे और खेत भी थे, पास ही नदी थी, काफी सन्नाटा था, हर जगह अंधेरा पसरा हुआ था, हल्की हवा चल रही थी, थोड़ा जंगल जैसा ही था वहां, रात में कई तरह के कीड़ों के बोलने की आवाज़ें आ रही थी, रजनी ने लाठी और डलिया चबूतरे पर रखा, उदयराज ने झट पीछे आकर अपनी बेटी को बाहों में भर लिया, रजनी की aaaaaaahhhhhhhh निकल गयी। उदयराज ने गालों को चूम लिया और रजनी ने चेहरा उठा कर चुम्बन दिया। उदयराज ने फिर रजनी को छोड़ा क्योंकि समय हो चुका था कील गाड़ने का। रजनी ने कुल वृक्ष के तने की ओट में मिट्टी का दिया सरसों का तेल डालकर जला दिया, कुल वृक्ष के चबूतरे भर में थोड़ी रोशनी हो गयी। उदयराज पास से ढूंढकर एक पत्थर लाया और कील निकाली।

उदयराज और रजनी चबूतरे से उतरकर पत्थर ढूंढने लगे, उदयराज को एक मोटा पत्थर मिल गया, फिर उसने कील को पत्थर से कुल वृक्ष के तने में ठोक दिया, रजनी ये सब देखती रही, उदयराज ने पत्थर फेंक दिया, अब रजनी की बारी थी जैसे ही रजनी आगे बढ़कर चबूतरे पर चढ़ने को हुई, उदयराज ने उसे बाहों में उठा लिया, रजनी अपने बाबू के गले में बाहें डाले झूल गयी, उदयराज उसे लेकर चबूतरे पर चढ़ गया और कील के पास उसको अपनी गोदी में लेकर बैठ गया, दिये कि हल्की रोशनी में सब दिख रहा था, रजनी अपने बाबू की गोदी में बैठी मदहोश हो गयी, रजनी के गुदाज नितम्ब अपनी जाँघों और गोदी में महसूस कर उदयराज का लंड हलचल करने लगा, रजनी को अपने बाबू का लंड फूलकर अपनी गांड में चुभता महसूस हुआ और वो बेचैन हो उठी-

आआआआआआहहहहहहह.......बाबूबूबूबू

उदयराज ने पीछे से अपनी बेटी के गर्दन पर चूमते हुए उसके ब्लॉउज के बटन खोलने शुरू किए, रजनी ने अपनी दोनों बाहें पीछे ले जाकर अपने बाबू के गर्दन में जोर से सिसकते हुए लपेट दी।

उदयराज पहले तो ब्लाउज के बटन खोलने लगा फिर अचानक रुककर दोनों हांथों से ब्लॉउज के ऊपर से ही अपनी बेटी की मोटी मोटी चूचीयों को अपने हथेली में भर भरके बेसब्रों की तरह दबाने और मसलने लगा, उदयराज- aaaaaahhhhhhhhh mmmmeeerrriiiii bbbeeettttiii

रजनी - aaaaaahhhhhhhhhh hhhhhaaaaiiii....bbbbbaaaaabbbuuuuu, uuuuuiiiiiiiiiii....mmmmmmaaaaaaaaaaaa......ddddhhhhhiiiiiirrrreeeee.......sssseeee.......bbbaaaabbbbbbuuuuu

उदयराज पूरी तरह खुलकर रजनी की दोनों मदमस्त चूची को मसलने लगा और अंगूठे और तर्जनी उंगली से फूलकर सख्त हो चुके निप्पल को भी मसलने लगा।

रजनी हाय हाय करते हुए मचल उठी।

रजनी ने सिसकते हुए कहा- बाबू वक्त निकल जायेगा पहले कील पर दूध डाल दो।

उदयराज ने मदहोशी की हालत में ब्लॉउज के बटन खोल डाले, राजनी ने झट पूरा ब्लॉउज खोलकर चबूतरे पर बगल में रख दिया, दिए कि रोशनी में अपनी सगी बेटी का ऊपरी हिस्सा केवल ब्रा में देखकर उदयराज पागल सा हो गया, एक पल के लिए बालों को हटा कर उसने अपनी बेटी की नंगी पीठ देखी, गोरे गोरे कंधों पर ललचाई नज़र डाली, गोरी मदमस्त बाहों को कुछ देर घूरा और फिर पीठ पर चुम्बनों की बरसात कर दी, रजनी सिसक उठी-

ओओओओओओहहहहहहह.......हाय.....दैया........बाबू......ईईईईईशशशशशश........... ऊऊऊऊऊईईईईईई......माँ

उदयराज ने फिर ब्रा के ऊपर से ही दोनों चूचीयों को पकड़कर हौले हौले दबाया फिर गर्दन और गालों को चूमने लगा। रजनी फिर से सिसकी लेती हुई अपने बाबू से सट गयी, उदयराज ने रजनी की ब्रा का हुक खोलने की कोशिश की पर उससे जल्दी खुला नही तो रजनी ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया, ब्रा ढीला होकर उदयराज के हांथों में आ गया, उदयराज ने ब्रा को एक साइड में ब्लॉउज के साथ रख दिया और अब रजनी ऊपर से बिल्कुल निवस्त्र हो गयी, रजनी की नंगी पीठ अपने बाबू के सीने से सट गयी, अपनी सगी बेटी की जवान गोरी पीठ अपने सीने से सटते ही उदयराज ने मस्ती में आंखें बंद करते हुए अपने दोनों हाथों से रजनी की नंगी गोरी गोरी नरम स्पॉन्ज जैसी फूली फूली चूचीयों को अपने हाथों में भर लिया, निप्पल से दूध की बूंदें टपकने लगी और वो कमाग्नि में कड़क हो चुके थे, रजनी के मुँह से लगातार सिसकियां निकले जा रही थी, उदयराज ने रजनी के नंगे कंधे पर अपने ठोड़ी को रखकर ऊपर से रजनी की विशाल चूचीयों को मसलते हुए देखा। रजनी की बूर रिसने लगी।

उदयराज ने अपनी बेटी के दोनों निप्पल को ठीक कील की सीध में किया और चूचीयों को दबा कर दोनों निप्पल से एक साथ दूध की पतली धार ससर्रर्रर से निकालते हुए कील पर गिरा दी, राजनी की aaaaahhhhhhhhhh निकल गयी, उदयराज अब अपनी बेटी की चूचीयों को जोर जोर से दबाने लगा, रजनी अपने बाबू के हाथ की ताकत अपनी चूचीयों पर अच्छे से महसूस कर हाय हाय करने लगी-

ओओओओहहहहहह ... ..बाबू...हाँ.... ऐसे ही दबाओ.......आआआआहहहह....और मीजो चूची को.......उउउउईईईईईई।

चूचीयों से निकलते दूध ने उदयराज के हाथों को भिगो दिया और दूध पूरी चूचीयों पर भी अच्छे से लग गया था, उदयराज तो मदहोश ही हो गया।

रजनी ने उदयराज से धीरे से वासना भरी आवाज में कहा- बाबू, दुद्धू पी लो न।

उदयराज अपनी बेटी के वसनात्मय आग्रह को सुनकर उसको ताबड़तोड़ चूमने लगा कि तभी रजनी ने सिसकते हुए अपने बाबू को रोका और गोदी से उठ खड़ी हुई, एक मादक अंगडाई लेकर उसने अपने बालों को पीछे की ओर झटका, उदयराज एक टक लगाए अपनी सगी बेटी के अर्धनिवस्त्र बदन को दिए कि हल्की रोशनी में देखता रह गया और उफ्फ रजनी की ये अदा, बालों को पीछे झटकने से कैसे रजनी की दोनों विशाल भारी चूचीयाँ जोर से हिली थी, कितनी गोरी गोरी मोटी मोटी चूचीयाँ थी रजनी की, उसपर वो तने हुए दोनों गुलाबी निप्पल और निप्पल के किनारे किनारे करीब एक इंच तक फैला गुलाबी घेरा (areola), उदयराज एक टक लगाए अपनी बेटी के इस रूप को निहारता रहा, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उसकी रजनी बेटी अंदर से इतनी सुंदर है, उसका यौवन इतना मदहोश कर देने वाला है की मुर्दे में भी जान डाल दे, और वो कितना भाग्यशाली है कि आज उसको उसकी सगी बेटी अपना पूर्ण यौवन का रसपान करा देगी, उसका लंड तो चिंघाड़ते हुए धोती में खड़ा हो चुका था रजनी भी एक टक लगाए मुस्कुराते हुए अपने बाबू के गठीले बदन और धोती में खड़े लंड को निहारने लगी।

तभी रजनी ने बड़ी ही कातिल मुस्कान के साथ अपने दोनों हाथ को झूठे ही पीछे ले जाकर अपने बालों को मानो बंधने लगी ताकि वह अपने बाबू को कमर से ऊपर का पूरा निवस्त्र हिस्सा और कांख के हल्के बाल दिखा सके और हुआ भी वही ये सब देखकर उदयराज हाय हाय कर उठा, रजनी की गोरी गोरी कमर, नाभि, उसके ऊपर उन्नत खड़ी सख्त दोनों चूचीयाँ, गुलाबी निप्पल और उनसे रिसता हल्का हल्का दूध, उसकी नंगी बाहें और बाहों की गहराई में वो हल्के हल्के बालों वाली कांख, उदयराज से नही रहा गया और उसने झट अपनी बाहें फैला कर अपनी बेटी को उसकी गोदी में बैठकर उसमे समा जाने के लिए बुलाया, रजनी झट से तड़पती हुई, बालों को छोड़कर अपनी साड़ी को बटोरकर जाँघों से भी ऊपर उठाते हुए अपने बाबू को अपनी मोटी मोटी गोरी गोरी मांसल जांघे व काली पैंटी दिखाते हुए, अपने बाबू की गोद में इस तरह आकर बैठी की उसकी दहकती मचलती रिसती बूर उदयराज के मूसल जैसे धोती के अंदर खड़े लंड पर सेट हो गयी, रजनी और उदयराज की जोर से आआआआआआआहहहहहहह निकल गयी। रजनी ने अपने दोनों पैर अपने बाबू के कमर के पीछे क्रोस मोड़ लिए और अपनी जाँघों से उदयराज की कमर को कस लिया।

जैसे ही रजनी ने पैंटी में छिपी अपनी रिसती बूर को धोती में खड़े अपने बाबू के लंड पर रखा दोनों बाप बेटी जोर से कराह उठे और एक दूसरे को कस के बाहों में भींच लिया, उदयराज अपना कुर्ता पहले ही निकाल चुका था, ऊपरी हिस्सा उसका भी निवस्त्र था, उसके मांसल पीठ और कमर पर उसकी बेटी के हाँथ रेंगने लगे, रजनी अपने बाबू की पीठ कमर और गर्दन जोर जोर से सहलाने लगी, उदयराज भी अपनी बेटी को गोदी में बैठाए कस कस के सहलाने और भीचने लगा, दोनों की आंखें मस्ती में बंद हो गयी थी, दोनों ही जोर जोर से कराह और सिसक रहे थे, आस पास कुछ दूर तक उनकी सिसकियां गूंज रही थी। उदयराज के लंड और रजनी की बूर के बीच सर्फ धोती और पैंटी की दीवार थी, रजनी खुद ही अपने बाबू की गोदी में बैठी अपनी पनियाती बूर को उनके लंबे मोटे लंड पर अपनी भारी गांड बहुत धीरे धीरे आगे पीछे करके रगड़ रही थी और वासना की चढ़ती खुमारी में सिसके जा रही थी।
कितना कामुक दृश्य था एक सगे बाप बेटी सुनसान जगह पर अमावस्या की अंधेरी रात में एक बड़े कुल वृक्ष के नीचे चबूतरे पर अर्धनिवस्त्र होकर एक दूसरे की गोदी में समाए बेताहाशा एक दूसरे को वासना से सराबोर होकर सिसकते हुए चूम और सहला रहे थे।

रजनी की नंगी चूचीयाँ उदयराज के सीने से दबी हुई थी और उदयराज के सीने पर निप्पल से दूध हल्का रिस रिस कर लग रहा था, एकाएक उदयराज ने रजनी की बायीं चूची को मुँह मे भर लिया और पागलों को तरह चूसने लगा।

राजनी uuuuuuuuiiiiiiiiiiiii aaaammmmmmmaaaaaa, hhhhaaaaaaaiiiiii bbbbaaaaaabbbuuu, meeerrreeee raaajjjjjaaaa कहते हुए कराहने लगी।

उदयराज मुँह भर भर के अपनी बेटी की मखमली गुदाज खरबूजे के समान गोल गोल चूची को पिये जा रहा था, दूसरे हाँथ से वो दूसरी चूची को भी मसलने लगा, कभी जीभ को निप्पल पे घुमाता, कभी बच्चे की तरह चूसने लगता, फिर कभी निप्पल के किनारे किनारे जीभ घूमता, कभी जीभ को निप्पल के किनारे किनारे घुमाते हुए गोले को बड़ा करता जाता और जब जीभ एक बड़ा गोल बना कर चूची पर घूमने लगती तो गप्प से पूरी चूची को मुँह में भरकर चूसने लगता, ऐसे ही वो कुछ देर अपनी सगी बेटी की चूचीयों से खेलता रहा।

राजनी- aaaahhhhhhhhhhhh........ mmmmeeerrrreeeeee bbbbbaaaaabbbuuuuu..... पियो अपनी बेटी की चूची ऐसे ही.............मैं बहुत तरस गयी थी आपको पिलाने को............. aaaaaaaahhhhhhhhh dddddaaaaaiiiiiiiiyyyyyaaaaaa............... सारा दूध पी लो मेरे बाबू।

उदयराज अपनी बेटी के मुँह से आज ये बात सुनकर और जोश में आ गया और चूची बदलकर पीने लगा, काफी मात्रा में दूध भर भर के रजनी की चूची से निकलकर उदयराज के मुँह में जाने लगा, दूध की कुछ मात्रा उदयराज के होंठों के किनारों से निकलकर रजनी की जाँघों पर भी गिर जा रही थी, वासना ने दोनों बाप बेटी को अपने आगोश में ले लिया था, चूची में दूध की इतनी मात्रा उतर आई कि उसकी नसें हल्की हल्की दिखने लगी, उदयराज ने करीब 30 मिनिट रजनी को अपनी गोदी में बैठाए मदहोशी में उसकी मदमस्त चूचीयों को बदल बदलकर पीता और मसलता रहा, रजनी अब इतनी मदहोश हो चुकी थी कि वह खुद ही अपनी चूची को अपने हाथों में लेकर एक एक करके अपने बाबू के मुंह में भरने लगी और धीरे धीरे गांड उछाल उछाल के अपनी महकती फूली हुई बूर को अपने बाबू के फौलाद हो चुके लंड पर रगड़ती रही।

उदयराज ने एक हाथ रजनी की गांड के नीचे लेजाकर अपनी बेटी की गांड को पकड़ा और उछालकर उसे अपनी गोद में और ऊपर चढ़ाते हुए अपने दहाड़ते लंड से उसकी कमसिन बूर पर एक जोरदार घस्सा मारा, रजनी की बूर पर लगे मोटे लंड के करारे झटके से रजनी जोर से aaaaaaaahhhhhhhhhhhh bbbbbaaaaabbbbuuuuu.... करते हुए चिहुँक गयी।

काफी देर तक अपनी बेटी की चूचीयों को पीने और मसल मसल कर लाल कर देने के बाद उदयराज उसे बेताहाशा चूमने लगा, रजनी भी अपने बाबू को तड़पते हुए चूमने लगी, दोनों एक दूसरे को कंधे, गर्दन, गाल और माथे पर जोश में कांपते हुए चूमने लगे, एकाएक उदयराज ने रजनी के चेहरे को अपने हांथों में लिया और उसकी वासनामय आंखों में देखने लगा, रजनी भी बड़े प्यार से, मदहोशी से अपने बाबू को देखने लगी फिर एकएक उदयराज ने अपने होंठ अपनी सगी बेटी के होंठों पर रख दिये, रजनी की सिसकते हुए आंखें बंद हो गयी एक हाथ से उदयराज उसकी सख्त चूची को फिर से सहलाने लगा और अपने होंठों में अपनी बेटी का निचला नरम होंठ लेकर चूसने लगा, कभी नीचे के होंठ चूसता तो कभी ऊपर के होंठ चूसता, रजनी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी वो भी अपने बाबू के होंठों को चूसने में डूबी हुई थी, दोनों एक दूसरे के होंठों को भर भर के खा जाने वाली स्थिति में चूसने लगे, कभी कभी उदयराज हल्का काट भी लेता तो रजनी सिसक पड़ती और बोलती- ओह्ह बाबू धीरे से।

और कभी रजनी भी जोश में आ के काट लेती तो उदयराज सिसक उठता

तभी रजनी ने अपना हाथ अपने बाबू के दहकते लंड पर रख दिया और उसे ऊपर से नीचे तक सिसकते हुए सहलाने लगी पर सिसकी उसकी दब जा रही थी क्योंकि उदयराज लगातार होंठों को चूसे जा रहा था।

काफी देर अपनी बेटी के होंठों को चूसने के बाद रजनी ने स्वयं ही अपनी जीभ अपने बाबू के मुंह में डाल दी और उदयराज के पूरे मुँह में घुमाने लगी, उदयराज अपनी बेटी की गरम गरम और नरम नरम जीभ अपने मुँह की गहराई में अंदर तक घूमते हुए महसूस कर निहाल हो गया और उसे जी भरके चूसने लगा काफी देर चूसने के बाद फिर उदयराज ने अपनी जीभ अपनी बेटी के मुँह में अंदर तक घुसेड़ दी और उसके मुँह का चप्पा चप्पा मानो अपनी जीभ से छूकर चूम लिया। रजनी के बदन में वासना की तरंगें चरम पर पहुँच गयी और उसकी बूर भट्टी की तरह दहकने लगी, एक तो काफी देर से बूर लंड पर रगड़ खा रही थी। रजनी से रहा नही गया तो उसने अपने बाबू को लेटकर प्यार करने का हल्का सा इशारा किया। उदयराज ने पास में रखा अंगौछा रजनी को गोदी में लिए लिए कुल वृक्ष के तने के नज़दीक चबूतरे पर एक हाँथ से बिछाया और अपनी बेटी को गोद में लिए लिए उसपर पीठ के बल लिटाते हुए खुद उसपर चढ़ता चला गया।

रजनी ooooooohhhhhhhhhh....mmmmmmeeeeeerrrrrreeeee......bbbbbaaaaaabbbbbbuuuuuu कहते हुए नीचे लेटती चली गयी

उदयराज अपनी सगी बेटी पर चढ चुका था दोनों एक दूसरे को बाहों में भरकर आंखों में देखते हुए मुस्कुराते रहे फिर मस्ती में आंखें बंद कर ली, उदयराज अपनी बेटी के ऊपर पूरा पूरा अच्छे से चढ़ गया, उदयराज ने अपने कुर्ते को मोड़ा और रजनी के सर के नीचे रख दिया, रजनी का हर अंग उसके बाबू के अंग से सटा हुआ था, रजनी की चूचीयाँ उदयराज के सीने से दबी हुई थी, नाभि के ऊपर नाभि थी, बूर के ऊपर लंड कपड़े के ऊपर से ही मानो बूर में धंसा जा रहा था, घुटनों पर घुटने थे और पैर के पंजों को उदयराज के पैर के पंजे छेड़ रहे थे, रजनी पूरी तरह चित लेती अपने बाबू के नीचे थी उसके दोनों हाँथ चबूतरे पर फैले हुए थे उसकी उंगलियों में उदयराज की उंगलियां फंसी हुई थी। कितना नरम स्पॉन्ज की तरह मखमली बदन था रजनी का, कितना गुदाज।

रजनी ने एकाएक जलते दिये को बुझा दिया और अब पूरी तरह अंधेरा छा गया, रजनी अपने और अपने बाबू के तन के मिलन को एक बार रात के अंधेरे में प्रकृति के बीच चुपचाप महसूस करना चाहती थी, उदयराज को भी ये बहुत पसंद आया। अब गुप्प अंधेरा था, हल्की हल्की हवा चल रही थी, पास ही नदी के पानी की बहने की आवाज आ रही थी।

उदयराज ने अपने दोनों हाँथ रजनी की पीठ के नीचे ले जाते हुए उसको कस के बाहों में भर लिया और रजनी ने भी अपने पैर उदयराज की कमर पर क्रॉस बांधते हुए अपनी बाहें उनकी पीठ पर लपेटते हुए उदयराज को बाहों में कस लिया, उदयराज का मुँह रजनी की गर्दन पर कान के पास था, उदयराज ने गर्दन पर चूमते और चाटते हुए कपड़े के ऊपर से ही अपने लंड से अपनी बेटी की अत्यंत प्यासी बूर पर तीन चार कस कस के धक्के मारे, रजनी मुस्कुराते हुए चिहुँक उठी और जोर से सिसकी- आआआआआआआआहहहहहहहह............हहहहहहहाहाहाहाहाहायययययययय..........बाबू
उसका पूरा शरीर धक्कों से हिल जा रहा था, रात के गुप्प अंधेरे में उदयराज अपनी बेटी को उसकी दायीं गर्दन की तरफ, कान पर, कान के नीचे कई गीले चुम्बन करता हुआ, गर्दन पर चूमते हुए बायीं तरफ जाने लगा और फिर बाएं कान की झुमकी, कान पर, कान के नीचे, कई चुम्बन लिए, रजनी मदहोश होकर अपने बाबू के गीले गीले होंठ की छुअन जोर जोर से सिसकते हुए अपने गर्दन के चारों ओर और कान के आस पास महसूस करती रही, जब जब उदयराज अपनी बेटी के कान को और उसके आस पास चूमता और जीभ से चाटता, जीभ रगड़ता तब तब रजनी का पूरा पूरा बदन थरथरा जाता, कभी कभी बीच बीच में उदयराज सूखे धक्के भी मारता तो रजनी हर धक्के पर aaaaahhhhh......aaaaahhhhhhhh करने लगती। रजनी का बदन गरम हो चुका था।

उदयराज रजनी को उसके गाल, नाक, होंठ और लगभग पूरे चेहरे पर ताबड़तोड़ चूमने लगा, रजनी वासना में बेचैन होकर बेताहाशा अपने बाबू को सहलाने लगी, एकाएक रजनी ने सिसकते हुए अपने बाबू के कान में कहा- बाबू, औरत के लिए तरस गए थे न आप।

उदयराज- हाँ मेरी बेटी।

रजनी प्यार से दुलारते हुए अपने बाबू के बालों को सहलाने लगी, फिर उदयराज बोला- तू भी तो एक मर्द के लिए तरसती थी न।

रजनी- मैं बस आपके लिए, अपने बाबू के लिए तरसती थी, एक मजबूत मर्द के लिए और वो सिर्फ मेरे बाबू हैं मेरे बाबू।

उदयराज ने ये सुनकर तीन चार धक्के ऊपर से ही बूर पर मारे और रजनी चिहुँकते हुए हल्का सा हंस दी, उसका बदन पूरा हिल गया।

रजनी ने फिर रात के गुप्प अंधेरे में धीरे से अपने बाबू के कान में बोला- लंड, मोटा सा, लंबा सा लंड।

दरअसल अब वासना इस कदर रजनी पर हावी हो चुकी थी कि उसका गंदी गंदी बातें करने का मन कर रहा था। वो कहते हैं न कि स्त्री की लज़्ज़ा एक सीमा तक होती है उसके बाद वो खुद ही खुलने लगती है। रजनी का अब वही हाल हो चुका था।

उदयराज ये सुनकर पहले तो कुछ देर सोचता रहा की आखिर रजनी ने उसके कान में बड़ी मादकता से ये क्या बोल दिया। तभी रजनी ने दुबारा बोला- आप नही बोलोगे बाबू?

उदयराज- क्या?

राजनी- वही जो मेरे पास है, जिसके लिए आप तरस रहे हो कबसे।

उदयराज समझ गया कि रजनी क्या चाहती है और वो अपने होंठ राजनी के कान पे रखकर बोला- bbbooooooooorrrrrrrrrrrr

रजनी बिल्कुल अपने कान पर अपने बाबू के मुंह से ये सुनकर गनगना गयी और जोर से सिसक उठी कुछ देर बाद फिर बोली- किसकी बूर बाबू?

उदयराज- मेरी अपनी बेटी की bbbbbbooooooorrrrrrrr

राजनी फिर जोर से aaaahhhhhhh करते हुए- सगी बेटी की

उदयराज- हां मेरी सगी बेटी की बूबूबूबूररररर

राजनी धीरे से- चाहिए

उदयराज- हाँ

राजनी- किसलिए?

उदयराज- घच्च घच्च चोदने के लिए, अपना लंड उसमे डालकर अच्छे से चोदने के लिए। अपने लंड की प्यास बुझाने के लिए।

राजनी जोर से सिसकते हुए- अपनी बेटी को चोदोगे, सगी बेटी को, अपनी ही सगी बेटी को।

उदयराज- हाँ, अपनी प्यारी सी सगी बेटी की बूर को लंड से रगड़ रगड़ कर खूब चोदने का मन कर रहा है।

रजनी धीरे से सिसकते हुए- सगी बेटी की बूर चोदने में बहुत मजा आता है न बाबू।

उदयराज- हां मेरी बेटी, सबसे ज्यादा।

रजनी- पत्नी से भी ज्यादा।

उदयराज- हां, पत्नी से भी बहुत ज्यादा।

राजनी aaaaahhhhhhh bbbbbaaaabbbbuuuu - तो चोदो न मेरी बूर को बाबू, अपनी सगी बेटी की बूर को खूब कस कस के चोद दो, बहुत प्यासी है ये, अब रहा नही जाता बाबू, ओह्ह मेरे बाबू, अब अपनी इस बेटी को चोद दो न।

उदयराज ने रजनी की पीठ से अपने दोनों हाथ निकाल कर उसके नितंबों को हथेली में थाम लिया और भारी गुदाज नितम्ब को रगड़ रगड़ कर सहलाने लगा और बोला- हाँ मेरी बेटी मुझसे भी अब नही जा रहा पर पहले मुझे अपनी दहकती बूर का पानी पिला दे।

रजनी समझ गयी कि उसके बाबू मूत पीने की बात कर रहे हैं तो वो ये सोचकर ही सिरह गयी।

उदयराज उठ बैठा और बगल में पड़े दिए को जला दिया और उसमे थोड़ा सा सरसों का तेल और डाल दिया, रजनी का दूधिया बदन एक बार फिर चमक उठा और वो उदयराज को और उदयराज उसको देखते रह गए अभी कुछ देर पहले अंधेरे में जो गंदी बात की थी रजनी ने, अपने बाबू से नज़रें मिलते ही राजनी लजा गयी और उदयराज ने उसके दोनों चूचीयों को हाथों में दबोचते हुए अपनी ओर खींच लिया और रजनी अपने बाबू से लिपट गयी।

कुछ देर दोनों ऐसे ही एक दूसरे को महसूस करते रहे फिर उदयराज मोड़े हुए कुर्ते पर सर रखके लेट गया, रजनी बड़ी ही मादकता से, धीरे से दोनों पैर अपने बाबू के दोनों कंधों के बगल रखते हुए, और अपनी साड़ी को दोनों हांथों से ऊपर उठाते हुए अपनी जाँघों को अच्छे से खोलकर अपने बाबू को अपनी पैंटी दिखाते हुए उनके सीने पर हल्के से बैठ गयी, उदयराज एक टक हल्के दिए कि रोशनी में अपनी बेटी की केले के तने के समान मोटी चिकनी गोरी गोरी दोनों जाँघों और बीच में कसी पैंटी में छुपी उभरी हुई गीली गीली महकती बूर को देखता रह गया, रजनी ने दिया उठाकर और पास रख लिया। काफी देर तक रजनी अपने बाबू को अपनी पैंटी में छिपी बूर और मांसल जाँघों को दिखाती रही फिर एकाएक खड़े होकर साड़ी के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी को निकाल कर बगल में रख दिया और धीरे से पैर फैलाते हुए साड़ी को ऊपर उठाते हुए अपने बाबू के सीने पर बड़ी मादकता से सिसकते हुए बूर खोले बैठती चली गयी, उदयराज का सर कुल वृक्ष के बिल्कुल तने के पास था और दिया बिल्कुल बगल में था, रजनी अपने बाबू को बड़ी मादकता से देख रही थी और उदयराज रजनी की रिसती बूर को घूर घूर के देख रहा था, फिर रजनी ने अपनी बूर को देखा और अपनी फैली हुई बूर को देखकर खुद ही सिसक उठी। बैठने की वजह से बूर फैल गयी थी, बूर की फांकों के बीच भगनासा साफ चमकने लगा जो कि खिलकर बाहर आ चुका था।

उदयराज अपनी बेटी की नंगी बूर और जाँघों को देखकर बेहाल हो गया, मोटे मोटे रसीले लंबे फांकों और काले काले हल्के बालों के बीच लाल लाल छेद वाली मखमली दहकती बूर, रस टपका रही थी, रजनी ने सिसकते हुए धीरे से आगे बढ़कर अपनी धधकती बूर को अपने बाबू के होंठों पर रख दिया और बड़ी जोर से aaaaaaahhhhhhhhhhh mmeeeerrrreeee bbbaaabbbbuuuu कहकर कराह उठी।

उदयराज ने लप्प से अपनी बेटी की लगभग पूरी बूर को अपने मुंह में भर कर बड़ी कस के चूस लिया, राजनी एकदम से चिहुँक उठी, उसके नितम्ब थरथरा कर हिल गए, पूरा बदन सनसना गया, आंखें नशे में बंद हो गयी, उदयराज पूरी जीभ निकाल निकाल के लप्प लप्प अपनी बेटी की फैली हुई बूर को चाटने लगा, पूरी जीभ को नीचे से ऊपर तक पागलों की तरह बूर पर फिरा फिरा के चाटने लगा, बूर रस और मूत्र की गंध उदयराज के नथुनों से होकर पूरे शरीर के अंदर फैलने लगी, राजनी uuuuuuiiiiiiimmmmmaaaaa.....oooooooooooohhhhhhhh.........iiiiiiiiiiiiiiiissssssssshhhhhhhhhh..........hhhhhhaaaaaaiiiiiiiiiii.....bbbbbaaaaabbbbuuuuuuuuu, aaaiiiseeeee. hhhhhhiiiiiiii...cchhhaaaaatttttooooo,,,,uuuuufffffff....aaaammmmmaaaaaaaaaaa कह कह कर सिसियाने लगी और अपनी दो उंगलियों से अपनी बूर की फांकों को अच्छे से फैला दिए जिससे रजनी की बूर का छोटा सा छेद साफ दिखने लगा, उदयराज अपनी बेटी का वो गुलाबी छोटा सा दहकता छेद देखकर बेकाबू सा हो गया और अपनी जीभ गोल गोल नुकीली बना कर उसमे रख दिया, रजनी जोर से सीत्कारती हुई aaaaaahhhhhhhhhh....hhhhhhhhhhaaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiii.......aaaaammmmmaaaaaaaa कहती हुई अपनी चूतड़ आगे पीछे दाएं बाएं गोल गोल घुमा कर जीभ पर रगड़ने लगी, रजनी ने छः सात धक्के अपनी भारी गांड को हिला हिला कर अपने बाबू की जीभ पर मारे और एकदम से दिया नीचे रखकर अपने बाबू के मुँह पर बैठ गयी, उसने अपने बाबू का सर बहुत प्यार से पकड़कर अपनी फूली हुई कसमसाती बूर पर दबा दिया, उदयराज की जीभ रजनी की बूर के छोटे से छेद में कुछ हद तक घुस गई थी, अंदर से बूर बिल्कुल भट्टी बनी हुई थी, रजनी कुछ देर तक अपनी बूर को हाय हाय करते हुए अपने बाबू की जीभ से अपनी गांड उछाल उछाल के चोदती रही और फिर एकाएक उसने ooooohhhhhhhh bbbaaaabbbbuuuu कहते हुए अपनी दो उंगलियों से बूर की फाँकों को अच्छे से चीरते हुए पेशाब की धार हल्के से छोड़ी और दूसरे हाँथ से फिर दिया उठाकर रोशनी को बढ़ाया, उदयराज ने लप्प से मुँह खोला और राजनी अपने बाबू के मुँह में मूतने लगी, काले काले बालों वाली दहकती बूर की फांकों के बीच से चिरर्रर्रर्रर्रर की आवाज के साथ गरम गरम रजनी का मूत उदयराज के मुँह में जाने लगा, मूतते मूतते वो बीच बीच में अपनी बूर को उदयराज के होंठों से रगड़ दे रही थी जिससे पेशाब उदयराज के गालों और गले पर भी गिर जा रहा था, उदयराज का मुँह रजनी के गर्म पेशाब से भर गया, और वो उसे मदहोश होकर पीने लगा, रजनी ये देखकर पगला सी गयी और लगातार कुछ देर तक अपनी प्यासी बूर अपने बाबू के मुँह पर रगड़ती रगड़ती मूतती रही, उदयराज आंखें बंद किये मदमस्त होकर बूर से निकलता मूत पीता रहा फिर रजनी के बूर से मूत आना रुक गया और उदयराज सारा मूत पी गया उसके बाद उसने अपनी बेटी की बूर पर लगे पेशाब को जीभ से चाट चाट के साफ कर दिया, रजनी मदहोशी में आंखें बंद किये अपनी बूर अपने बाबू से काफी देर चटवाती रही फिर आंखें खोलकर वासना भारी नजरों से अपने बाबू को देखा और मुस्कुरा पड़ी, उदयराज भी मुस्कुरा दिया।

रजनी ने झुककर कान में कहा- बाबू और पीना है।

उदयराज- हाँ, पिला दो न।

रजनी- पर अब तो खत्म, जब फिर आएगा तब

उदयराज- ठीक है मेरी रानी बेटी।

राजनी- पर आपने तो बोला था कि पियूँगा नही, फिर भी पी गए।

उदयराज- मुझे होश ही नही था, क्या चीज़ है मेरी बेटी।

राजनी- गन्दू, पर अब नही पीना, ठीक।

उदयराज - जो आज्ञा मेरी रानी।

रजनी फिर मुस्कुराई और अपने बाबू के पेशाब से सने होंठों को चूम लिया।

उदयराज अब रजनी को पलटकर उसपर चढ़ गया और उसकी साड़ी को खोलकर निकाल दिया, साड़ी को बगल में रखते हुए वो रजनी के सम्पूर्ण बदन को निहारने लगा, रजनी अब मदरजात नंगी हो गयी थी, उसके तन पर अब एक भी वस्त्र नही था, उदयराज उठ खड़ा हुआ और एक झटके में अपनी धोती खोल डाली, फनफनाता हुआ मूसल जैसा दहाड़ता लंड उछलकर रजनी की आंखों के सामने आ गया,
काले काले झांटों के बीच 9 इंच लंबा और करीब 4 इंच मोटा दहाड़ता लंड देखकर रजनी की आंखें चमक गई, दिए कि हल्की रोशनी में भी लंड की उभरी हुई नसें लन्ड की विकरालता को और बढ़ा रही थी, रजनी उसे देखते ही उठ बैठी और अपने बाबू की बालो भारी जाँघे लंड को देख देख कर चूमने और सहलाने लगी, जाँघों पर इधर उधर चूमते हुए वो विकराल लन्ड के करीब पहुँची और बड़े बड़े आंड को मुँह में भर लिया और लोलोपोप की तरह मदहोश होकर चूसने और चाटने लगी, अंडकोषों पर हल्के हल्के बाल थे जिसकी वजह से रजनी और कामातुर हो रही थी, काफी देर तक आंड को चूसने, सहलाने मसलने के बाद उसने लंड पर हाँथ फेरा और पूरे लंड को सहलाते हुए मुठिया दिया।

रजनी ने अपने बाबू के लंड को सहलाते हुए अपने मुँह के सामने सीधा किया और अपने होंठों को गोल करके लंड के सुपाड़े के ऊपर रखकर अपने होंठों से ही लंड की चमड़ी को नीचे सरकाते हुए सुपाड़ा खोलकर मुँह में भर लिया और लबालब चूसने लगी, उदयराज अपनी बेटी के नरम होंठ आने लंड पर पड़ते ही जोर से कराह उठा और सिसकने लगा-

आआआआआआहहहहह..... .मेरी बेटी ऐसे ही.......ऐसे ही चूस........ओओओहहहह.......कितना अच्छा लग रहा है...... .... तेरे नरम नरम होंठ मेरे लंड पर........आआआहहह......चूस मेरी रजनी.... मेरी बेटी......मेरी बच्ची.........चाट चाट के इसकी बरसों की प्यास बुझा दे...........आ आ आह ह ........हाहाहाहाहायययय......तेरी अम्मा ने तो कभी इसको ठीक से चूस ही नही..........तू कितना अच्छा चूस रही है मेरी बेटी...........चाट अपने बाबू का लंड ऐसे ही........ ..बुझा दे मेरी प्यास मेरी बच्ची.......मेरी बिटिया.. ..... आआआहहहहह......हाहाहाहाहायययय.....और मुंह में भर भर के चूस मेरी रानी...चूस.....मेरे लंड की खुशबू अच्छी लगी न......ऐसे ही चूस.....आआआहहहहह।

अपने बाबू के लन्ड की भीनी भीनी महक रजनी की अंतरात्मा तक समाती चली गयी, काम रस की खुशबू और पेशाब की महक रजनी को इतनी भा रही थी कि वो वासना से अब जल उठी और कस कस के अपने बाबू का ज्यादा से ज्यादा लंड अपने मुँह में भर भरकर चूसने चाटने लगी, उदयराज मस्ती में आंखें मूंदे अपनी बेटी का सर पकड़कर अपने लंड पर दबाता रहा और ज्यादा से ज्यादा उसके मुंह में डालता रहा इतनी कोशिश करने के बाद भी रजनी अपने बाबू का आधे से थोड़ा ज्यादा ही लंड अपने मुँह में ले पाई थी। लंड चूसने की चप्प चप्प आवाज सिसकियों के साथ वातावरण में गूंजने लगी, रजनी ने काफी देर मुँह में भर भर के अपने बाबू का दहकता लंड चूसा और फिर पक्क़ से लंड को बाहर निकाला, अपनी जीभ निकालकर लंड के मूत्र छेद पर बड़ी मादकता से रगड़ने लगी फिर जीभ से लन्ड को ऊपर से नीचे तक icecream की तरह चाटने लगी, अपनी बेटी के नरम नरम मुँह में अपना लंड भरकर और जीभ से लन्ड चटवाकर उदयराज त्राहि त्राहि कर उठा।

रजनी भी सिसकते हुए -
आआआआहहहह मेरे बाबू........डालो अपना लंड मेरे मुंह मे.....आज आपकी सारी प्यास बुझा दूंगी....... आपको तड़पता हुआ नही देख सकती आपकी ये बेटी.......आआआआआआहहहह...............हहहहाहाहाहाहाययययय........क्या लंड है आपका.......कितना लंबा और मोटा है मेरे बाबू..........अपने सुपाड़े को मेरे होंठों पर रगड़ो बाबू............अपने लंड से मेरे मुँह को चोदो.......चोदो बाबू

उदयराज अपनी बेटी के आग्रह पर अपना लंड उसके मुँह में जितना भी आ सकता था डालकर अंदर बाहर करके मुँह को हल्का हल्का चोदने लगा, रजनी के सर और बालों को पकड़कर वह सहलाने लगा, रजनी भी आंखें बंद किये पूरा पूरा मुँह खोलकर गपा गप्प लंड मुँह में लेने लगी, मस्ती में उदयराज की आंखें बंद हो गयी, उदयराज के विकराल लंड का खुला हुआ सुपाड़ा रजनी के मुँह में हर जगह ऊपर नीचे अगल बगल टकराने लगा और रजनी मदहोश होती चली जा रही थी, उसने अपने बाबू का 4 इंच मोटा लंड आधे से ज्यादा ही मुँह में भर लिया था उसका मुँह पूरा खुला हुआ था, उदयराज हौले हौले मुँह में लंड लगभग गले तक हाय हाय करता हुआ पेले जा रहा था, लंड की नसें फूलकर और भी उभर गयीं और रजनी को अपने होंठों पर साफ महसूस होने लगी, उसका पूरा लंड अपनी बेटी के थूक से दिए कि हल्की रोशनी में चमक रहा था, उसने अपने लंड को पकड़कर फिर पक्क़ से मुँह से बाहर निकल और रजनी के गालों, माथे और ठोढ़ी तथा होंठों पर खूब रगड़ा, रजनी सिसकते हुए आंखें बंद किये अपने बाबू के गरम थूक से सने लंड को अपने चेहरे के हर हिस्से पर महसूस करती रही और जब लंड होंठो पर आता तो जीभ निकाल के उसे चाट लेती।

एकाएक उदयराज से अब बर्दाशत नही हुआ उसने दिया उठाकर चबूतरे के किनारे रखा और वासना में मदहोश रजनी को चबूतरे के एकदम किनारे अंगौछा बिछा के पैरों को नीचे लटका के लिटाया, रजनी अपने बाबू का इरादा समझ गयी, चबूतरे की ऊंचाई ठीक कमर तक ही थी, उदयराज अब कूदकर चबूतरे से नीचे उतरा और अपनी मदहोश बेटी के पैरों को खोलकर मोटी मोटी जाँघों के बीच आ गया, रजनी ने खुद ही अपने बाबू की इच्छा के अनुसार खुद को सही कर लिया, दिया पास में ही जल रहा था।

उदयराज ने अपनी बेटी की जाँघों को खोलकर उसकी बूर को अच्छे से देखा, दिया ऊपर जांघ की बगल में था इसलिए बूर पर थोड़ा अंधेरा था तो रजनी ने दिया उठा कर बूर के नजदीक कर दिया ताकि उसके बाबू अपनी सगी बेटी की बूर को अच्छे दे देख सकें, उदयराज ने अपनी बेटी के पूरे नग्न बदन को अच्छे से निहारा और फिर जाँघों को फाड़कर प्यासी बूर को मुँह में भरकर चाटने लगा।
रजनी हाहाहाहाहाहाययययययय..........बाबू................ऊऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़फ़फ़..................... ..............आआआआआआहहहहहहहहहह
करने लगी,
रजनी ने दिया बगल में रखकर सिसियाते हुए अपने बाबू के सर को अपनी बूर पर दबाने लगी, रजनी के दोनों पैर हवा में दोनों तरफ फैले हुए थे, उदयराज बड़ी सी जीभ निकाले अपनी बेटी की महकती रस छोड़ती बूर को, उसकी फाँकों को, भग्नासे को लबालब चाटने लगा, रजनी अपने बाबू के बालों को सहलाते हुए हाय हाय करने लगी, उदयराज अपने दोनों हांथों से कभी रजनी की चुचियों और निप्पल को मसलता तो कभी भारी चूतड़ को हथेली में उठाकर थोड़ा और ऊपर कर देता। वो अपनी पूरी जीभ को गांड के छेद पर ले जाता और फिर बूर की फैली हुई दरार में अपनी जीभ को नीचे से ऊपर तक सरसराता हुआ लाता और ऊपर आ के भग्नासे को चूस लेता, राजनी का पूरा बदन वासना में अब कांप रहा था, एकाएक ईश्वर ने उसे इतना सुख दे दिया था कि वो बर्दाश्त नही कर पा रही थी, उससे रहा नही गया तो उसने अपने बाबू के चेहरे को थाम कर ऊपर की ओर खींच लिया और बहुत वासनात्मक आवाज में धीरे से बोली- बाबू अब मुझे चोदिये, बर्दाश्त नही होता अब, चोदिये अपनी रजनी बेटी को, अपनी सगी बेटी को, आपके सगी बेटी वर्षों से आपके लंड की प्यासी है।

रजनी के अपने बाबू को अपने ऊपर खींचने से उदयराज का लंड रजनी की बूर और जाँघों पर टकराने लगा तो रजनी और मचल उठी, उदयराज ने अपनी बेटी के होंठों का एक जोरदार चुम्बन लिया और अपने विकराल हो चुके लंड को पकड़कर पहले तो रजनी की जाँघों और गांड के निचले हिस्से पर और फिर बूर की फाँकों पर बहुत अच्छे से रगड़ा, इतना मोटा लंड अपनी अंदरूनी और बाहरी जाँघों, गांड की दरार और बूर की फांकों पर लोटता हुआ सा महसूस करके रजनी और भी ज्यादा गनगना गयी और सिसकते हुए बूर में लंड मांगने लगी।

उदयराज ने रजनी की बायीं टांग को उठाकर अपने कंधे पर रखा और दायीं टांग को फैलाकर अपने कमर से लपेट दिया और खुद अपना सीधा पैर उठाकर चबूतरे पर रख लिया और रजनी के ऊपर थोड़ा झुकते हुए एक हाँथ से अपने विशाल दहकते लंड को पकड़ा, उसका सुपाड़ा खोलकर चमड़ी को पीछे किया और धीरे से अपनी सगी बेटी की खुली हुई बूर की फांक में चिकने फूले हुए सुपाड़े को लगाया, दहकता हुआ लंड जब दहकती हुई बूर से छुआ तो रजनी की जोरों से aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh
निकल गयी।
उदयराज ने कुछ देर अपने लंड के सुपाड़े को अपनी बेटी की बूर की रिसती फांकों में ऊपर नीचे दाएं बाएं रगड़ता और हल्का हल्का डुबोता रहा, फिर एकाएक उसने लंड के सुपाड़े को अपनी बेटी के दहकते लाल लाल छोटे से छेद पर लगाया, रजनी की बूर का छेद पैरों को काफी फैलाने के बाद भी करीब एक इंच तक ही खुल पाया था, और लन्ड का सुपाड़ा लगभग फूलकर पूरा 3.5 या 4 इंच का हो गया था, इस बात से साफ दिखता था कि एक बच्ची को जन्म देने के बाद भी रजनी बिल्कुल कुँवारी जैसी ही थी, कई वर्षों से उसकी बूर में लन्ड गया ही नही था जिससे उसका छेद और भी संकरी हो गया था, बूर के छोटे से छेद से काम रस लगातार रिस रहा था। लन्ड के दहकते सुपाड़े को अपनी बूर के छेद पर महसूस कर रजनी असीम आनंद में खो गयी।

फिर एकाएक आंखें खोलकर अपने बाबू से उखड़ती आवाज में बोली- बाबू जरा रुको।

उदयराज- क्या हुआ मेरी बेटी?

रजनी- मुझे इसका खाना परोसने दो, आप जब रसोई में आते हो तो मैं आपको खाना परोसती हूँ न?

उदयराज अपनी बेटी को देखता हुआ- हां, बिल्कुल, मेरी प्यारी बिटिया।

रजनी ने बड़ी वासना भरी आवाज में कहा- तो ये आपका प्यारा सा लंड अपना खाना खुद लेके क्यों खायेगा ? पहले मैं परोस दूंगी तब खायेगा।

उदयराज अपनी बेटी की इस अदा को देखता रह गया और अपने लंड को थोड़ा पीछे किया, रजनी ने चूड़ियां खनकाते हुए अपने हाथों को आगे बढ़ाया और अपने दोनों हांथों की उंगलियों से अपनी दहकती बूर की फांकों को अच्छे से चीरकर बूर के लाल लाल छेद को अपने बाबू के सामने परोस दिया और बोली- लो अब खाओ अपनी बेटी की बूर को अपने लंड से बाबू।

उदयराज ने अपनी बेटी की इस अदा से कायल होके दहाड़ते हुए अपने फ़ौलादी लंड के सुपाड़े को बूर के छोटे से छेद से भिड़ा दिया और फिर राजनी ने वहां से आनंद में आंखें बंद करते हुए और कराहते हुए अपने हाथ हटा लिए, बूर की दोनों फांकें grip की तरह लंड के चारों ओर लिपट गयी और उदयराज और रजनी दोनों के ही मुँह से जोर से aaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh की सिसकारी निकल गयी।

उदयराज ने बूर पर लन्ड से हल्का सा दबाव बढ़ाया तो रजनी के माथे पर शिकन आ गयी उसे दर्द होना शुरू हुआ, उदयराज ने हल्का सा दबाव और बढ़ाया तो रजनी का सारा आनंद दर्द में बदलने लगा और उसने इशारे से ना में सर को हिलाते हुए अपने बाबू की कमर को वहीं पर थाम लिया, उदयराज मुस्कुराया, वो जानता था कि ऐसा होगा, जानती तो रजनी भी थी, पर क्या करे बिना चुदाई के रह भी नही सकती थी, उदयराज ने लंड को थोड़ा पीछे किया और लन्ड के सुपाड़े को बूर की फांकों की दरार में ऊपर नीचे रगड़ने लगा साथ ही साथ वो बीच बीच में भग्नासे को भी अच्छे से रगड़ने लगा, रजनी को अब फिर असीम आनंद की अनुभूति होने लगी, उदयराज ने झुककर रजनी की चुचियों को पीना और निप्पल को छेड़ना शुरू कर दिया साथ ही साथ अपने लंड को रिसती बूर की फांकों में ऊपर नीचे रगड़ता जा रहा था।

रजनी अब aaaaahhhhhhh, aaaaahhhhhhhhhh..................aaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhh करती हुई वासना के महासागर में फिर गोते लगाने लगी, उदयराज ने रजनी का सीधा हाँथ पकड़ा और नीचे लेकर अपने आंड उसकी हथेली में दे दिए, रजनी के हाँथ में आंड आते ही वो आंखें बंद किये सिसकते हुए उन्हें सहलाने लगी, उदयराज ने अपने लंड को बूर की दरार में ऊपर नीचे रगड़ते हुए एक बार फिर बूर की छेद पर लगा दिया और अपनी बेटी की जाँघों को और कस के फैलाया, बूर थोड़ी और खुल गयी, रजनी से रहा नही गया उसने असीम आनंद में आंखें बंद किये अपने हाँथों को चूड़ियां खनकाते हुए अपनी बूर के पास लायी और दोनों हांथों की उंगलियों से बूर की फांकों को दुबारा अच्छे से चीर दिया और पकड़े रही, उसके बाबू का विकराल लंड छेद पर भिड़ा हुआ था।

बूर से लिसलिसा काम रस रिस रहा था जिसने छेद को बहुत चिकना बना दिया था, लंड का फूल हुआ सुपाड़ा उस लिसलिसे रस में भीगकर और भी चिकना हो गया था, उदयराज ने अब हौले हौले बहुत छोटे छोटे धक्के बूर की छेद पर लगाना शुरू किया, रजनी अब बिल्कुल adjust हो गयी थी, वो मस्ती में अपनी आंखें बंद किये अपने हाथों से अपनी बूर की फांकों को फैलाये अपने बाबू के मोटे लंड के छोटे छोटे धक्कों का आनंद ले रही थी कि

तभी

एकाएक उदयराज ने अपनी टांगों को ठीक से सेट करके एक दमदार जोर का धक्का बूर में मारा और मोटा सा दहकता चिंघाड़ता विकराल लंड कमसिन सी प्यारी सी दहकती बूर के संकरी लाल लाल नरम नरम छेद को फाड़ता हुआ लगभग एक चौथाई बूर में घुस गया।

रजनी एकाएक दर्द से सीत्कार उठी, उसके मुँह से uuuuuuuuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii. aaaaaaaaammmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaa...........hhhhhhhhhhhhaaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii.......dddddddddddaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiyyyyyyyyyyaaaaaaaaaaa.......kitna mota hai aapka. mere bbbbbbbbaaaaaaaaaaaaabbbbbbbbuuuuuuuuu

इतनी जोर से निकला कि मानो सृष्टि के रग रग में, प्रकृति के कण कण में उसकी सीत्कार गूंज उठी हो, राजनी ने झट से बूर से हाथ हटाकर अपने बाबू के कमर को रोककर थाम लिया मानो वो डर रही हो कि कहीं वो लगातार दूसरा धक्का न मार दें।

सुनसान अंधेरी रात में बहुत दूर तक रजनी की आवाज गूंजी थी पर उदयराज ने उसके मुँह को अपनी हथेली से नही ढका, क्योंकि वो जानता था कि उसकी बेटी कितना भी जोर जोर से सीत्कारेगी उसकी आवाज गांव वालों तक तो हरगिज़ नही पहुँचेगी।

रजनी हाय हाय करते हुए अपनी जांघे फैलाये अपनी धधकती बूर में लगभग एक चौथाई अपने बाबू का लंड लिए हुए छटपटा रही थी, उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी बूर को अच्छे से चीरकर किसी ने उसमे गरम गरम लोहे का मोटा खूँटा ठोंक दिया हो, इतनी पीड़ा होगी उसे इसका अंदाजा नही था जबकि काम रस छोड़ छोड़ के बूर उसकी काफी चिकनी हो गयी थी, लंड इतना भयंकर भी हो सकता है आज जाके उसको पता चला, लंड का मोटा सुपाड़ा और कुछ भाग पूरा बूर में घुस चुका था, बूर का प्यार सा छेद एकदम किसी रबड़ के छल्ले की तरह फैलकर लंड के चारों तरफ कस चुका था।

उदयराज ने अपने दोनों हांथों से रजनी की जाँघों के ऊपरी और निचले हिस्से को तथा हाँथ नीचे लेजाकर उठी हुई पूरी भारी उन्नत मांसल गांड को अच्छे से बहुत प्यार से काफी देर तक सहलाया फिर अपनी बेटी के ऊपर झुककर उनके गालों, कान के नीचे और कान पर, गर्दन पर काफी देर चूमता रहा, काफी देर गर्दन पर अपनी जीभ फिराता रहा, चूमता रहा फिर उसने होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमना और पीना शुरू कर दिया, रजनी को इससे बहुत राहत मिलती गयी, उसकी जोर जोर से निकलती चीख और दर्द भरी सीत्कार धीरे धीरे वसनात्मय सिसकियों और कराह में बदलने लगी फिर उसकी आंखें धीरे धीरे असीम आनंद के नशे में बंद होने लगी।

बूर उसकी अब धीरे धीरे लंड के आकार के हिसाब से खुलने लगी और थोड़ा adjust हुई, काम रस बराबर रिस ही रहा था जिसे चिकनाई बरकरार थी, उदयराज ने उतना ही लंड बूर में घुसेड़े हुए लंड को धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू किया पहले तो रजनी दुबारा दर्द से थरथरा गयी पर कुछ ही पल बाद उसको लंड की हल्की हल्की रगड़ से सुख की अनुभूति होने लगी और वो भी अपने नितम्ब को हल्का हल्का ऊपर को उचकाने लगी, उदयराज अब समझ गया कि यहां तक मामला अब सेट हो चुका है उसने अब ज्यादा देर नही की और लंड से बूर को धीरे धीरे चोदते हुए दो जोरदार धक्के लगातार और मार दिए। इस बार उदयराज का विकराल लंड एकदम से बूर की कई वर्षों से सूनी पड़ी अंदर की मखमली दीवारों को फाड़ता हुआ सीधा बच्चेदानी तक पहुँच गया, रजनी का दर्द के मारे पूरा गदराया बदन ही ऐंठ गया, आंखों से उसके आंसू बह निकले, uuuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiii aaaaaaaaaaaaammmmmmmmmmmmmmmmmaaaaaaaaaaaaaaaa.....mmmmmmaaaarrrrr......ggggaaayyyyiiiiii......mmmmeeeeerrrrreeee...bbbbbaaaaabbbbuuuuuu,,,,,,kitna lamba aur mota hai aapkaaaaa....land.......hhhhaaaaiiiiiii...aaammmmmmmaaaaaaa

बोलते हुए वो पहले तो कुछ देर दर्द से सीत्कारती रही फिर एकाएक उसने अपने बाबू के कमर को थाम लिया। उदयराज रजनी के ऊपर अब पूरी तरह झुक चुका था, लंड बूर में एक तिहाई तक घुस चुका था, बूर चिरचिराकर फट चुकी थी, मोटा सा धधकता फूला हुआ सुपाड़ा रजनी को अपनी बूर की गहराई में आखिरी छोर तक ठोकर मारता हुआ महसूस होने लगा, उसकी कमसिन सी प्यारी सी मखमली फांकों वाली महकती हुई बूर अपने बाबू का लगभग एक तिहाई फ़ौलादी लंड लील चुकी थी, पर दर्द से रजनी का बुरा हाल था, आज पहली बार उसकी बूर फटी थी वो भी उसके सगे पिता के लंड से, उदयराज रजनी के ऊपर पूरी तरह चढ़ चुका था उसका एक पैर अब भी नीचे और दूसरा चबूतरे पर था, रजनी का एक पैर उदयराज के कंधों पर तथा दूसरा उसकी कमर पे कसा हुआ था, उदयराज को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसने अपना लंड किसी गरम मक्ख़न के डिब्बे में पूरा डुबो दिया हो, इतनी नरम बूर थी रजनी की, उसने रजनी के आंसू बड़े प्यार से पोछे और उसको दुबारा सहलाना, चूमना दुलारना चालू कर दिया, काफी देर तक वो रजनी के बदन के एक एक अंग को सहलाता, चूमता और दुलारता रहा, वो उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बड़े प्यार से काफी देर चूमता रहा, होंठों को चूसता रहा, बड़ी बड़ी मादक मदमस्त चुचियों को काफी देर तक पीता रहा, निप्पल से खेलता रहा, गांड को सहलाता रहा, कभी नाभि को सहलाता तो रजनी हल्का सा चिहुँक भी जाती, अब रजनी का भयंकर दर्द धीरे धीरे कम होने लगा, उसे सुकून मिलने लगा, दुबारा से दर्द अब आनंद में बदलने लगा।

रजनी के मुँह से अब दुबारा हल्की हल्की सिसकारियां निकलने लगी,
आआआआहहहह...बाबू....हाहाहाहाहायययय...मेरी बूर....कितना लंबा है आपका लंड.... बाबू.....कितना मोटा है आपका लंड... ...हाहाहाहाययययययय ....मेरी बूर...फाड़ डाली इसने........कितने अंदर तक घुसा हुआ है.......ओओओओहहहहह...... अम्मा...... हाहाहाहाययययययय.... बाबू.....ईईईईईईईईईशशशशश..................आआआआआआहहहहहहहह

उदयराज और रजनी ने एक दूसरे को बाहों में कस के भर लिया और एक दूसरे की आंखों में बड़े प्यार से देखने लगे फिर मुस्कुरा दिए, रजनी शर्मा गयी और रजनी अपने बाबू के बालों को सहलाने लगी उसका दर्द अब काफी हद तक खत्म हो चुका था, रजनी की बूर का नन्हा सा छेद अब तीन गुना ज्यादा फटकर फैल चुका था और किसी रबड़ के छल्ले की तरह लंड के किनारे किनारे बिल्कुल कसा हुआ था, रजनी ने धीरे से अपने बाबू के कान में कांपते हुए कहा- बाबू आपने तो आज मुझे पूर्ण औरत बना दिया, कितना लंबा और मोटा लंड है आपका, पता है बूर में कितनी अंदर तक घुसा हुआ है। मेरी तो बूर ही फाड़ के रख दी आपने, अपनी सगी बेटी की बूर में कोई इतना मोटा और लम्बा लंड ऐसे पेलता है, हम्म, बोलो, पगलू

उदयराज- मेरी प्यारी बेटी अगर ऐसे नही करता तो ये अंदर कैसे जाता और फिर बिना अंदर डाले मैं तुमको चोद चोद कर तुम्हारी और अपनी बरसों की प्यास कैसे बुझाऊंगा, मेरी बेटी केवल मेरा लंड ही मोटा और लम्बा नही है, तुम्हारी प्यारी सी बूर भी तो कितनी गहरी है।

रजनी शर्मा गयी और अपने बाबू की पीठ कर चिकोटी काटते हुए बोली- आखिर आपकी बेटी की बूर है, अपने बाबू का लंड अच्छे से नही खाएगी तो किसका खाएगी, जितना मर्ज़ी अच्छे से अंदर डालो बाबू अपनी बेटी की बूर में अपना समूचा मोटा लंड।

उदयराज- तुम्हे पता है अभी भी पूरा लंड तुम्हारी बूर में पूरा नही घुसा है अभी थोड़ा बाकी है।

इतना सुनते ही रजनी चौक गयी- क्या?

उदयराज- हम्म, खुद ही देख लो छूकर

रजनी ने तुरंत अपना सीधा हाँथ बूर पर ले जाकर लंड को छुआ तो वाकई में एक चौथाई लंड अभी भी बाहर था और बाकी का लंड बूर में समाया हुआ था, लंड और बूर बुरी तरह धधक रहे थे। रजनी ने वहां से हाँथ हटा कर अपने बाबू के कान में सिसकते हुए कहा- बाबू मुझे पूरा लंड चाहिए चाहे जो भी हो, डालो न पूरा, कब डालोगे, मुझे पूरी तरह एक होना है आपसे।

उदयराज- सच

रजनी- हां बाबू

उदयराज ने पोजीशन संभाला और अपनी बेटी की आंखों में देखते हुए एक बहुत ही जोरदार करारा धक्का मारा, बूर चिरचिरा के और फटी और पूरा का पूरा लंड रजनी की बूर में जड़ तक समा गया, बूर की गहराई में लंड बच्चेदानी
तक तो पहले ही पहुँच चुका था अबकी बार वो सबकुछ ठेलता हुआ दो इंच और अंदर तक समा गया। उदयराज के लंड और रजनी की बूर के ऊपर के काले काले बाल आपस में मिलकर एक हो गए।

रजनी जोर से कराह उठी और अपने बाबू से कस के लिपट गयी, उदयराज के कंधों और पीठ को रजनी ने इस कदर भींचा की उसके नाखून उदयराज की पीठ पर हल्का हल्का चुभ गए, पर फर भी रजनी को इस बार थोड़ा कम ही दर्द हुआ क्योंकि बूर अंदर से भी थोड़ा खुल चुकी थी।

अब उदयराज का 9 इंच लंबा और लगभग 4 इंच मोटा लंड उसकी सगी बेटी की दहकती बूर में जड़ तक समाया हुआ था, बूर की अंदर की मखमली दीवारें लंड से ऐसे चिपकी हुई थी मानो उसे चूम चूम के उसका स्वागत कर रही हों, उदयराज रजनी को फिर से ताबड़तोड़ चूमने लगा और रजनी फिर से सिसकने लगी, उसके हाँथ अपने बाबू की पीठ पर लगातार चलने लगे और अब उसने अपने पैर अपने बाबू के कमर में कैंची की तरह लपेट दिए जिससे रजनी की बूर खुलकर और ऊपर उठ गई, लंड और अच्छे से बूर में समा गया, काफी देर तक यूँ ही सगे बाप बेटी एक दूसरे में समाए एक दूसरे को सिसकते हुए चूमते सहलाते रहे, उदयराज ने तो चुम्बनों की झड़ी लगा दी थी, रजनी तो अपने बाबू के ताबड़तोड़ चुम्बनों से ही गनगना गयी थी। उदयराज का एक पैर जमीन पर और दूसरा चबूतरे पर था। एकाएक रजनी ने अपने बाबू की कमर को सहलाते हुए अपने हांथों को उनके दोनों चूतड़ों पर ले गयी और चूतड़ों को दोनों हांथों से हल्का सा आगे दबा कर अपने बाबू को अब बूर चोदने का इशारा किया।

उदयराज ने काफी देर से बूर में चुपचाप पड़े लंड को हल्का सा ऊपर खींचा और फिर जड़ तक गच्च से अंदर डाल दिया, रजनी सिसिया उठी uuuuuuuuuiiiiiiiiiiiiiiiiiii. bbbbbbaaaaaaaaabbbbbbuuuuuuuu. mmmmaaaaarrrrrrrr. gggaaaayyyyiiiiiii

उदयराज फिर धीरे धीरे ऐसा ही करते हुए अपनी बेटी की बूर को हल्का हल्का चोदने लगा, शुरू शुरू में रजनी को एक बार फिर से हल्का सा दर्द जरूर हुआ था पर वो दर्द मीठा मीठा था और अब जो दर्द हो भी रहा था उसमें हल्की सी मिठास थी। धीरे धीरे उदयराज ने अपनी बेटी की बूर में घुसे अपने लंड की रफ्तार को थोड़ा बढ़ाया और अब वो रजनी के लबों को चूमते हुए लगभग अपने आधे लंड को बूर से बाहर निकालने लगा और बार बार अच्छे से गच्च से जड़ तक घुसेड़ने लगा, धीरे धीरे रजनी जन्नत में जाने लगी उसकी आंखें अपने पिता की चुदाई के सुख से बंद हो चुकी थी, उदयराज अब अपनी सगी बेटी की बूर में अपना आधा लंड निकाल निकाल कर बार बार जड़ तक घुसेड़ने लगा, रजनी oooooooohhhhhhhhh. bbbbbaaaabbuuuuuuu. ccchhhooodddooo. mmmuuuujjhhheeeeeee........aaaaiiissseeeee.....hhhiiiiiiiii.......hhhhhaaaaayyyyyyy.....ddddaaaiiiiiiyyyyyaaaa.......kkkkiiiitttnnnnaaa...accchhhcchhhaaa....laaaagggg....rrraaahhhaaaaa..hhhhaaaaiiiii babu
कहते हुए मचलने लगी, उदयराज चुदाई के साथ साथ अपनी बेटी की चुचियों का भी जमकर मर्दन करता जा रहा था और झुक झुक कर होंठों को भी चूस ले रहा था।

जब उदयराज अपने दहाड़ते लंड को रजनी की बूर में घच्च से घुसेड़ता तो उसके दोनों आंड उछलकर रजनी को अपनी गांड पर टकराते तो रजनी और नशे में डूब जाती, करीब 20 मिनट तक ऐसे ही अपनी बेटी की बूर चोदने के बाद उदयराज ने अब और अपनी स्पीड बढ़ा दी और अब खुद उसकी आंखें नशे में बंद होने लगी, जितना उसने कभी सोचा था उससे कई गुना ज्यादा अपनी ही सगी बेटी की मक्ख़न जैसी बूर को चोदने में मजा आ रहा था, अपनी सगी बेटी को चोदने में सच में कितना मजा आता है ये उदयराज को आज बखूबी महसूस हो रहा था, रजनी भी धीरे धीरे अपनी गांड ऊपर को उछाल उछाल कर अपने बाबू के ताल से ताल मिलाते हुए सोचने लगी कि सच में सगे पिता से चुदवाने में कितना असीम आनंद है, जब पिता का लंड अपनी ही सगी बेटी की बूर में जाता है तो कितना अच्छा लगता है, पिता के साथ चुदाई का जो मजा है वो किसी के साथ नही, हर बेटी को अपना खजाना कभी न कभी चुपके से अपने पिता के लिए खोलना चाहिए, कोई भी पिता कभी भी अपने कदम खुद तो आगे बढ़ाएंगे नही, तो बेटी को ही उनकी प्यास को समझ कर, उनके अनकहे दर्द को समझ कर चुपके चुपके उन्हे योनि का सुख देना चाहिए, अपनी बेटी को तो वो पाल पोसकर, जिंदगी का हर सुख देकर, बचपन से लेकर जवानी तक जबतक उसकी शादी नही हो जाती उसकी सारी जरूरतों को पूरा करते हुए एक दिन शादी करके उसे बिदा कर देता है, ये सब समाज के नियम निभाते निभाते वो उम्रदराज होने लगता है और उसकी पत्नी भी तब तक बूढ़ी सी ही हो चुकी होती है, तब ऐसे में जब उसे ठीक से योनि सुख नही मिलता तो उसका जीवन नीरस होने लगता है, समाज के डर से वो किसी से कुछ कह नही सकता, बस घुट घुट के जीता है तब ऐसे में बेटी को अपने पिता को जवान बूर का सुख देना चाहिए, ये भी तो एक तरह की सेवा ही है, इस छोटी से सेवा से पिता जीवन फिर से रंगीन हो जाएगा और वो कहीं इधर उधर बहकेगा भी नही, और पिता के साथ तो चुपके चुपके यौनसुख लेने में मजा ही मजा है, कितना असीम आनंद है इस मिलन में।

यही सब सोचते हुए रजनी अपनी गांड हल्का हल्का ऊपर को उछाल उछाल कर अपने बाबू से चुदवाने लगी।

उदयराज ने अब अपने धक्कों की रफ्तार और तेज कर दी उसने अपने हांथों से रजनी के भारी मांसल नितम्ब को थाम लिया और लगभग आधे से ज्यादा लंड बूर से निकाल निकाल कर गच्च गच्च अपनी बेटी की बूर में पेलने लगा, रजनी का अब पूरा शरीर धक्कों से हिल जा रहा था, बूर बिल्कुल खुलती जा रही थी पर छेद का कसाव बरकरार था बस बूर का छेद फैल जरूर गया था पर कसाव इतना था कि उदयराज को अपना पूरा लंड बाहर खिंचने में काफी कसाव महसूस हो रहा था और इस बात से वो और उत्तेजित होता जा रहा था, वो जानता था कि एक तरह से वो कुँवारी बूर ही चोद रहा है और कुँवारी बूर इतनी जल्दी ढीली नही होती, रजनी aaaaaahhhhhhh, uuuuiiiiii aaammmmaa, oooohhhhhhhh iiiisssssssss बाबू ऐसे ही चोदो कहते हुए गांड उछाल उछाल के अपने बाबू का चुदाई में साथ दिए जा रही थी।


एकाएक उदयराज ने जोर से कराहते हुए अपना पूरा पूरा लंड बूर से निकालकर अपनी बेटी की बूर में जड़ तक पुरा पूरा पेलना शुरू कर दिया, रजनी बड़ी तेज से सिसकने लगी ओओओओओओहहहहहहह..........बाबू.........आआआआहहहहहहह..........हाय दैय्या.......मेरी बूर.....फाड़ो.....बाबू......ऐसे ही......चोदो.......हाहाहाहाहाहायययययययय.......कितना.....मजा.....आ रहा है........कितना मजा है चुदाई में।


रजनी ने बड़ी मुश्किल से अपनी मदहोश आंखें खोलकर जलते दिए को अब बुझा ही दिया, क्योंकि दिए कि रोशनी थोड़ी आंख में लग रही थी और अब वो प्रकृति के बीच खुलकर अंधेरी गुप्प रात में अपने सगे पिता के साथ मिलकर इस महापाप का मजा गांड उछाल उछाल कर लेना चाहती थी।
दिया बुझते ही उदयराज और जोश में आ गया और वो अच्छे से पोजीशन संभालकर अपनी गांड को दनादन उछालते हुए अपनी पूरी ताकत से अपनी बेटी की बूर में अपना पूरा पूरा लंड डालकर उसको चोदने लगा, रजनी अपने बाबू का लंड एक बार पूरा पूरा बाहर जाते हुए महसूस करती फिर सट्ट से जड़ तक लंड को बूर में समाते हुए महसूस करती, लगातार अपने बाबू के हाहाकारी लंड का पूरा दहकती बूर में आवागमन रजनी को गनगना दे रहा था, जब जब बूर की गहराई के आखिरी छोर पर उसके बाबू का लंड टकराता, रजनी आनंद में सीत्कार उठती, दर्द न जाने कहाँ छू मंतर हो चुका था अब तो बस चारों तरफ कामसुख ही कामसुख फैल चुका था राजनी लगातार आनंद में सिस्कारे जा रही थी-


ऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईई.....माँ........... ओओओओओफ़फ़फ़फ़फ़फ़फ़फ़.......बाबू......कस कस के ऐसे ही चोदो मुझे...........बहुत प्यासी हूँ.............. आपके लंड के लिए मेरी बूर तड़प रही थी...................................आआआआआ हहहहहहहहह.............बाबू.........मेरे राजा..


उदयराज अब काफी तेज तेज लंबे लंबे धक्के मारकर अपनी बेटी की बूर चोदने लगा, जब लन्ड सट्ट से अंदर जाता तो उदयराज के झांट के बाल फैली हुई बूर की फाँकों के बीच उभरे हुए भग्नासे से टकराते तो रजनी का शरीर बार बार उत्तेजना में और भी थरथरा जाता, अत्यंत उत्तेजना में बूर का भगनासा फूलकर खिल गया था और बिल्कुल बाहर आ चुका था, रजनी जोर जोर से सिसकारने लगी और गुप्प अंधेरे में उदयराज अपनी बेटी की बूर पूरी ताकत से घचाघच चोदने लगा, लंड और बूर काम रस से इतने सराबोर हो चुके थे कि चुदाई की फच्च फच्च, घच्च घच्च की मीठी आवाज और रजनी
का पूरा बदन हिलने से चूड़ियों की खन खन आवाज आस पास के वातावरण में गूंजने लगी, उदयराज कभी कभी सीधा सीधा लन्ड अपनी बेटी की बूर में पेलता तो कभी हल्का टेढ़ा करके side की मखमली दीवारों से सुपाड़े को रगड़ता हुआ गहराई में जड़ तज उतार देता, कभी कभी जोर जोर चोदते हुए अपनी गांड को गोल गोल घुमा के लंड को अपनी बेटी की बूर में डालकर गोलगोल घुमाता, रजनी इससे मचल मचल के कराह उठती और खुद भी अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू से चुदवाती, रजनी बराबर अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू की चुदाई की ताल से ताल मिला रही थी।


उदयराज चोदते चोदते बूर के मखमली अहसास से नशे में चूर होता जा रहा था उसके और रजनी के मुँह से बराबर सिसकियां निकल रही थी, उदयराज एकाएक और तेज तेज अपनी बेटी की बूर में लंड पेलने लगा, ताबड़तोड़ धक्कों से राजनी मानो खुले आसमान में उड़ने लगी, उसका बदन बीच बीच में थरथरा जा रहा था, एकाएक धुँवाधार चोदते हुए उदयराज ने रजनी के कान के नीचे गर्दन पर जीभ फिराना चालू कर दिया, रजनी के बदन में मानों सारी नसें झनझना गयी, वासना की तरंगें पूरे बदन में लगातार दौड़ रही थी, उदयराज घचाघच रजनी की बूर बहुत तेज तेज चोदे जा रहा था, आस पास के वातावरण में बाप बेटी की चुदाई की सिसकियां, चूडियों की खन खन और सीत्कार तथा लंड और बूर के मिलन की फच्च फच्च, घच्च घच्च की आवाज लगातार गूंजे जा रही थी, उदयराज की जाँघे धक्के मारते हुए रजनी के चूतड़ से टकराने से थप्प थप्प की आवाज भी गूंज रही थी। उदयराज ने अपने दोनों हांथों से रजनी के दोनों भारी नितम्ब थाम लिया और हल्का सा ऊपर को उठा लिया अब उसने अपनी बेटी की ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी, रजनी का पूरा बदन उसके बाबू के जोरदार धक्कों से आगे पीछे हिल रहा था, उसकी दोनों विशाल उन्नत फूली हुई शख्त चूचीयाँ तेज धक्कों की ताल से ताल मिला कर हिल रही थी, रजनी बदहवास सी जोर जोर सिसकारते हुए वासना से तरबतर होकर नशे में - हाय बाबू....ओह मेरे राजा....चोदो ऐसे ही........आआह....मेरी बूर.....ओओह...मेरे सैयां...मेरे साजन.......मेरे बलमा........मेरे बाबू.....फाड़ो मेरी बूर......अपनी... बेटी की बूर को और तेज तेज चोदो बाबू.....आआआहहहहह............क्या लंड है आपका.......कितना मोटा है........कितना मजा आ रहा है........चोद डालो आज......... .फाड़ डालो बूर को.......अपनी सगी बेटी की बूर को.......आआआआहहहहहहहह........... हाहाहाहाहाययययययय।


उदयराज अपनी बेटी के मुँह से पहली बार ऐसी कामुक सीत्कार सुन रहा था और सुनकर पूरी तरह मस्ती में भरता जा रहा था, अपने धक्कों की रफ्तार उसने इतनी बढ़ा दी थी कि अब जोर जोर से चुदाई की फचा फच्च, फच्च फच्च, घच्च घच्च आवाज आने लगी, रजनी की बूर रस छोड़ छोड़ के इतनी चिकनी हो गयी थी कि 9 इंच लंबा मोटा लंड तेजी से पूरा का पूरा अंदर बाहर हो रहा था, अपनी बेटी की बूर के काम रस में सना हुआ उदयराज का लंड चमक रहा था, रजनी की बूर का रिसता रस पी पी के लंड की नसें बहुत उभर चुकी थी और जब सट्ट से लंड बूर में जाता और बूर के अंदर दी दीवार लंड पर उभरी हुई नसों से सरसरा कर रगड़ खाती तो रजनी के मुँह से बड़ी तेज सिसकारी निकल जाती।


दिया बुझ जाने की वजह से अँधेरा था और दोनों सगे बाप बेटी अंधेरे में एक दूसरे को बाहों में जकड़े हुमच हुमच कर जोरदार ताबड़तोड़ धक्के लगाते हुए, सिसकारते हुए वासना में लीन एक दूसरे को चोद रहे थे। उदयराज भी बदहवासी में अपनी बेटी को चोदते हुए उसके कान में बस बोले जा रहा था-


ओओओहहहह....मेरी बेटी.....तुझे चोदने में कितना मजा आ रहा है.........कितनी मक्ख़न जैसी बूर है तेरी..........कितनी....नरम है बूर तेरी.....आआआआआआहहहहहहहहह...........................ओओओओओओओओहहहह हहहहहहह..........और कितनी गहरी है...बूर......तेरी......हहहहहहहाहाहाहाहायययययययययय......मेरी सजनी......मेरी...जान......मेरी....रानी........आआआआहहहह........मेरी बच्ची.....मेरी बेटी.....कैसे गच्च गच्च मेरा लंड तेरी बूर में जा रहा है.........हहहहहाहाहाहायययययय।


करीब 30 35 मिनट तक उदयराज रजनी की बूर को ताबड़तोड़ इसी लय के साथ जोर जोर धक्के मारकर चोदता रहा, लंड और बूर की लगातार रगड़ से तो मानो चिंगारियां निकल रही थी, दोनों इतने गरम हो चुके थे कि इसकी कोई सीमा नही थी, उदयराज और रजनी मदरजात नग्न थे, ठंडी हवा भी चल रही थी फिर भी पसीने पसीने होने लगे, एकाएक रजनी के पूरे बदन में चींटियां सी रेंगने लगी और मानो वो चींटियां धीरे धीरे चलती हुई बूर की तरफ जाने लगी, पूरी देह में सनसनाहट होने लगी, चुदाई के आनंद की मस्त तरंगे पूरे बदन में लगातार दौड़ रही थी, लंड गचा गच्च बूर में पूरा पूरा अंदर बाहर हो रहा था, उदयराज ने बरसों से बूर नही चोदी थी और आज उसे बूर मिली भी तो अपनी ही सगी बेटी की, तो वो कहाँ रुकने वाला था, लंबे लंबे धक्के वो पूर्ण रूप से खुल चुकी अपनी बेटी की बूर में जड़ तक लंड पेल पेल कर मारे जा रहा था, बीच में कभी कभी रुकता और अपने पैरों से जमीन में टेक लगाकर पूरी ताकत से लंड को बूर में जड़ तक घुसेड़ कर कुछ देर रुका रहता फिर अपनी गांड को गोल गोल घुमा कर बूर के हर कोने में लंड के सुपाड़े से ठोकर मारता, इसपर रजनी बदहवास ही आंखें बंद कर जोर जोर से सीत्कार करती हुई अपने पूरे बदन को ऊपर की तरफ धनुष की तरह मोड़ देती और हाय हाय करते हुए अपने बाबू की पीठ को इतनी कस के दबोचती की अपने नाखून अपने बाबू की पीठ में गड़ा देती, वो धुवांधार चुदाई से इतनी पागल हो गयी थी कि उसने कामांध होकर अपने बाबू के कंधे, कान, गाल, गर्दन और होंठों को कस कस के चूमना और दांतों से काटना शुरू कर दिया, उदयराज जोर से सिसक उठता था पर और उत्तेजित होकर और जोर जोर से रजनी की गांड को हाथों में उठा उठा के गच्च गच्च बूर चोदने लगता,
रजनी खुद अपने होंठों को भी अपने दांतों से चबा ले रही थी, लगातार ताबड़तोड़ चुदाई से रजनी की बूर में अत्यंत गर्मी होने लगी, बूर में उसकी चींटियां सी रेंगने लगी, बूर की अंदर की दीवारें लगातार लंड के रगड़ से तृप्त हो रही थी और उनके अंदर झनझनाहट होने लगी, उदयराज को अपनी बेटी को चोदते हुए लगभग 40 मिनट हो गए थे, लंड और बूर की घनघोर चुदाई और रगड़ से निकल रहा कामरस रिस रिस कर चबूतरे पर गिरने लगा।
अब उदयराज के बदन में भी मुलायम मुलायम बूर की रगड़ के अहसास से असीम आनंद की तरंगें उठने लगी, शरीर उदयराज का भी अब चुदाई के असीम सुख से झनझनाने लगा, एकाएक रजनी ने तेज तेज कराहते हुए अपने हाथ बढ़ाकर अपने बाबू की उछलती हुई गांड को थाम लिया और अपने हांथों से गांड को और दबाने लगी।


कि तभी


रजनी की बूर में तेज सनसनाहट हुई और वो एकदम से जोर से चीखते हुए अपने बाबू से प्रगाढ़ आलिंगन करके लिपट गयी, अपने बाबू के बदन से कस के लिपटे हुए, उनके गालों को
चीखकर काटते हुए अपनी गांड को जोर से ऊपर की ओर उछालकर लंड को कस कर बूर में भरते और चीखते हुए चरम सुख प्राप्त कर झड़ने लगी,


आआआआआआआआआहहहहहहहहहहहह..........बाबू.......मैं.......गयी..........हहहह हहहाहाहाहाययययययययययय अम्मा.......ओह...... दैय्या.........मैं.......झड़ी....... बाबू चोदो मुझे और कस कस के चोदो...............फाड़ो अपनी बेटी की बूर..................मैं......झड़...... रही......हूँ..................... हाय......... मेरी......बूर,,,,,,,ओओओओओफ़फ़फ़फ़फ़......बाबू.................हाय आपका लंड।


उसकी वर्षों की प्यासी बूर से मानो आज पहली बार गरम गरम लावा फूटकर झटके के साथ बह बह कर निकलने लगा, उसकी बूर बहुत तेजी से अपने बाबू का लंड लीले सिकुड़ने और फैलने लगी, उदयराज अपने मूसल जैसा लंड अपनी बेटी की बूर में ताबड़तोड़ पेलता रहा और अपनी बेटी को कस कस के गालों, गर्दन, होंठों और कान के पास चूमता रहा, चूचीयों को हल्का हल्का मर्दन करता रहा, अपनी रजनी को बड़े प्यार से दुलारता रहा, उसको देखता रहा, रजनी अपनी आंखें बंद किये थरथरा कर झड़ रही थी, झटके ले लेकर उसकी बूर सिकुड़ और फैल रही थी, जो कि उदयराज को साफ महसूस हो रहा था, चरम सुख का अहसास आज रजनी को जीवन में पहली बार अपने ही सगे पिता के दमदार लंड की रगड़ रगड़ कर चुदाई से मिला था। वो हांफते हुए थरथरा थरथरा कर अपनी बूर को लंड पर पटक पटक कर झटके खाते हुए झड़ रही थी, सांसे उसकी धौकनी की तरह चल रही थी, काफी देर तक झड़ने के बाद अपना सारा गरम गरम रस बूर से निकालने के बाद उसकी बूर अब धीरे धीरे शांत होना शुरू हुई, रजनी की दहकती बूर से निकला गरम गरम रस उदयराज के दोनों आंड, जो कि राजनी की बूर में मानो घुसने को तैयार थे, से बहकर लगने लगा और उदयराज की जाँघे, झांट, और आंड तथा आस पास का हिस्सा रजनी की बूर से निकले गरम गरम रस से भीग गया। रजनी की आंखें असीम चरमसुख प्राप्त कर मस्ती में बंद हो चुकी थी, उदयराज थोड़ी देर के लिए रुका, रजनी उससे अमरबेल की तरह लिपटी उसके पीठ को सहलाते हुए आंखें बंद किये हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी, लंड का आवा गमन बहुत हल्के हल्के बूर में हो रहा था, रजनी ने कुछ पल बाद अपनी आंखें खोली और अपने बाबू से और कस के लिपटते हुए उन्हें चूमने लगी मानो अपने बाबू को दुलारकर इनाम दे रही हो और इनाम दे भी क्यों न, चुदाई में ऐसा चरम सुख उसे आजतक नही मिला था, पूर्ण तृप्त हो चुकी थी वो, आज उसके बाबू ने उसे अच्छे से रगड़ रगड़ कर चोदकर औरत बना दिया था, एक कमसिन कली से वो आज औरत बनी थी, यही इनाम वो अपने बाबू को चूम चूमकर देने लगी कि तभी उदयराज ने फिर से अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी, रजनी कुछ देर में फिर सिसकने लगी, उदयराज फिर से एक बार दहाड़ते हुए कस कस के अपनी बेटी की बूर में गचा गच्च जोरदार धक्के लगाने लगा, रजनी के एक बार झड़ जाने की वजह से बूर बिल्कुल चिकनी हो चुकी थी।

उदयराज का लंड रजनी की बूर के रस से बिल्कुल सराबोर हो गया था और अत्यंत तेज धक्कों से बहुत तेज तेज बूर चोदने की फच्च फच्च आवाज वातावरण में गूंजने लगी, रजनी को दुबारा खुमारी चढ़ने लगी, वो एक बार फिर से अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू को चूमते हुए साथ देने लगी, लंड बूर में सटासट फच्च फच्च की तेज आवाज के साथ अंदर बाहर हो रहा था।

करीब 40 45 जोरदार धक्कों के बाद उदयराज से अब रहा नही गया और उसने भी चिंघाड़ते हुए अपनी बेटी की बूर में एक अत्यंत जोरदार धक्का मारा, रजनी का पूरा बदन हिल गया और उसके मुँह से बड़ी तेज आआआआआआआहहहहहहहहहहह की आवाज निकली
और उदयराज थरथराकर अपनी बेटी की बूर में दहाड़ते हुए झड़ने लगा

आआआआआआआहहहहहहहहहहह...........बेटी..........मैं झड़ रहा हूँ...............हाय तेरी मुलायम मुलायम बूर...........मेरी बच्ची.........मेरी बेटी.........मेरी बिटिया.........मेरी रानी..............आआआआआआआहहहहहहहहहहह.............हहहाहाहाहाययययययययययय............कितना मजा है तेरी बूर में...........मेरी रजनी................हहहाहाहाहाययययययययययय...........आआआआआआआहहहहहहहहहहह...........अब तू मेरी है सिर्फ मेरी.............तेरी बूर के बिना अब नही रह सकता..............आआआआआआआहहहहहहहहहहह

बरसों से उसके अण्डकोषों में जमा गाढ़ा गरम गरम वीर्य दनदना कर पिचकारी की धार छोड़ते हुए रजनी की बूर की गहराई में झटके खा खा कर गिरने लगा और अपने बाबू के लंड से पिचकारी की तरह निकली वीर्य की गरम गरम धार को अपने बच्चेदानी के मुँह पर तेज तेज पड़ते ही रजनी भी दुबारा गनगना के हाय हाय करके झड़ने लगी, उसके बूर से भी रस की पिचकारी छूट पड़ी,लंड जड़ तक बूर में समाया हुआ था, रजनी की बूर कस कस के सिकुड़ और फैल रही थी, स्पंदन कर रही थी, रजनी बेताहाशा अपने बाबू को चूमते हुए उनसे लिपटकर झड़ रही थी। रजनी जोर से मादक सिसकारी लेते हुए आआआआआआआहहहहहहहहहहह.......बाबू..........कितना मजा आ रहा है...........मैं तो दुबारा झड़ गयी आपके लंड से...........आआआआआआआहहहहहहहहहहह............अपने बाबू के लंड का गरम गरम वीर्य अपनी बूर की गहराई में पाकर मैं तो गनगना कर दुबारा झड़ गयी बाबू....................हाय आपका लंड..............आआआआआआआहहहहहहहहहहह

उदयराज का बदन गनगना गया, विकराल 9 इंच लंबा लंड पूरा बूर में धसा हुआ झटके खा खा के मोटी वीर्य की गरम गरम धार रजनी की बूर में छोड़ रहा था, रजनी की बूर अपने बाबू के गर्म वीर्य से लबालब भर गई और वीर्य बाहर निकलकर रजनी की बूर के नीचे से बहता हुआ गांड की दरार में जाता हुआ रजनी को बखूबी महसूस होता गया, वीर्य इतना गाढ़ा और गर्म था कि रजनी गनगना गयी, उस वीर्य में रजनी की बूर का रस भी मिला हुआ था, बूर रस और वीर्य की मिश्रित एक धार रजनी की गांड से बहकर नीचे चबूतरे पर आ गयी और बहकर नीचे जमीन तक गयी। काफी देर तक उदयराज आंखें बंद किये हाँफता हुआ अपना लंड बेटी की बूर में जड़ तक घुसेड़े झटके ले लेकर झाड़ता रहा और फिर हाँफते हुए अपनी बेटी पर ढेर हो गया, रजनी ने मदहोशी में अपने बाबू को बाहों में कस लिया और बेताहाशा चूमने लगी, बालों को सहलाने लगी, दुलारने लगी, लंड अब थोड़ा शिथिल पड़ गया पर अब भी बूर में लगभग आधा समाया हुआ था, उदयराज ने अपना एक पैर जो चबूतरे पर था अब नीचे कर लिया था, रजनी ने अपने दोनों पैर अपने बाबू की कमर में क्रोस किये हुए थे, उदयराज अब रजनी के बदन पर पूरा चढ़ते हुए चबूतरे पर चढ़ गया, रजनी ने अपने पैर कमर से उतार लिए और चबूतरे पर फैला दिए, रजनी ने अपने बाबू को बाहों में कस लिया और अपने ऊपर पूरी तरह चढ़ा लिया, अपने बाबू की पीठ, कमर और सर के बालों को वो उनके गाल चूमती हुई बड़े प्यार से दुलार दुलार कर सहलाने लगी। लंड बूर में पड़ा पड़ा आराम करने लगा और बूर उसको धीरे धीरे संकुचित होकर चूम चूम के शाबाशी देती रही।

रजनी की बूर भी काफी देर तक संकुचित होने के बाद हल्की हल्की शांत होने लगी, दोनों बाप बेटी एक जोरदार चुदाई का आनंद लेकर चरम सुख की प्राप्ति के आनंद को आंखें बंद किये एक दूसरे की बाहों में पड़े महसूस करने लगे






(चुदाई अभी ख़त्म नही हुई, बाकी का अगले अपडेट में)
Zabardast update
 

Vicky2009

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Update- 31

उदयराज ने अपने किये जाने वाले कर्म को जानने के लिए दिए गए कागज को पढ़ने के लिए खोला, सफेद कागज पर सुनहरे रंग से लिखे अक्षर प्रकट हो गए, उदयराज यह चमत्कार देखकर ही दंग रह गया और पढ़ने से पहले एक बार वो कागज उसने माथे चढ़ा लिया, फिर उसने पढ़ना शुरू किया, उसमे लिखा था-

"उदयराज तुम्हारे पुर्वज द्वारा नियति के नियमों में छेड़छाड़ करने से कुपित नियति द्वारा किये गए अव्यवस्थित संतुलन को दुबारा संतुलित कर सही रास्ते पर लाने के लिये तुम्हे जो कर्म करना होगा वो है "महापाप कर्म"


व्यभिचार के रास्ते पर चलकर तुम्हे एक महापाप करना होगा, और ऐसा कर तुम्हे अपने कुल में पापकर्म को स्थान देकर उसकी स्थापना करनी होगी, इस कर्म की शुरुवात तुमसे होगी जो आनेवाले भविष्य में तुम्हारे कुल के लिए जीवनदायी होगी, तुम्हे यह महापाप अपना कर्म समझकर आनंद लेते हुए करना है।

इसके लिए तुम्हे आने वाली अमावस्या की रात से ठीक सात दिन पहले, अपने घर की किसी ऐसी स्त्री जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता हो और जो बच्चे को स्तनपान कराती हो, मेरे द्वारा दिये गए दिव्य तेल से बिना उसका चेहरा देखे और बिना उसका कोई और अंग छुए सिर्फ उसकी योनि (बूर) को रात के 12 बजे छूना है, हाथ में तेल लगा कर उसकी योनि (बूर) का मर्दन 10 मिनट तक करना है और उससे निकलने वाले रस को उंगली से निकलकर पहले स्वयं चाटकर ग्रहण करना है फिर उसे चटाना है, रस को पांच बार चाटना और चटाना है, ध्यान रहे इस दौरान उसके शरीर के किसी भी और अंग पर तुम्हारी नज़र नही पड़नी चाहिए। वह स्त्री उस रात ठीक 12 बजे घर के किसी एकांत कमरे में तुम्हारा इंतज़ार करेगी, उसका शरीर पूर्ण रूप से चादर से ढका होगा, कमरे में कपूर की खुश्बू फैली होगी और कमरे के दरवाजे पर एक हल्की रोशनी का दिया जलता होगा।

ऐसा तुम्हे तीन रात करना है, फिर चौथी रात तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को खोलकर देखना और सूंघना है तथा कमर से नीचे की नग्नता के दर्शन करना है, फिर पांचवी रात पुनः तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को देखना, सूंघना और चुम्बन करना है और निकलने वाले रस को मुँह लगा के उसका रसपान करना है। ध्यान रहे इस दौरान भूल कर भी उसका चेहरा नही देखना और न ही शरीर का कोई और अंग छूना और देखना है, इतना ही नही इन सात दिनों के अंदर दिन में भी तुम्हे उस स्त्री के सामने नही पड़ना है, सिर्फ रात को ये कर्म करना है।

अगली छठी रात अब तुम्हे उसी कमरे में अपना पूरा शरीर चादर से ढककर लेटना है वह स्त्री तुम्हे कमर से नीचे निवस्त्र कर तुम्हारे लिंग का दर्शन करेगी, उसे छुएगी, सूंघेगी, उसका मर्दन करेगी और उसका चुम्बन लेगी, बाकी सब वैसे ही होगा, कमरे में कपूर की महक होगी और दरवाजे पर एक छोटा सा दिया जलता रहेगा।

छठी रात के बाद सातवें दिन, सुर्यास्त के बाद तुम उस स्त्री को देख सकते हो।
दिन में वह स्त्री घर में किसी जगह, कागज पर अपने मन की इच्छा लिखकर, छुपाकर रखेगी तुम्हे वह ढूंढकर पढ़ना है और उस कागज में लिखे अनुसार उस स्त्री की मन की इच्छा की पूर्ति अमावस्या की रात को करना होगा। ठीक उसी रात को तुम्हे कुलवृक्ष की जड़ में चौथी कील भी ठोकनी होगी और स्त्री से दूध भी अर्पित कराना होगा।

वह स्त्री कोई और नही तुम्हारी पुत्री ही होगी, क्योंकि वही एक स्त्री तुम्हारे परिवार में बची है जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता है इसलिए यही सब कर्म विधि मैंने तुम्हारी पुत्री के कागज पर भी लिखा है, जिस दिन से ये कर्म शुरू होगा ठीक उसी दिन से तुम्हे न अपनी पुत्री को देखना है न उसके सामने पड़ना है।


मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, सदा खुश रहो।"

कर्म पत्र पढ़कर तो उदयराज को ऐसा लग जैसे पृथ्वी और आकाश एक साथ विपरीत दिशा में घूम रहे हैं उसने एक बार नही दो तीन बार अच्छे से पूरा-पूरा कर्म को पढ़ा। विश्वास नही हुआ उसे की नियति ये चाहती है जो उसके मन में थोड़ा थोड़ा पहले से ही है, उसका तो मन मयूर ही झूम उठा। तभी वह भागकर रजनी वाले कमरे में गया तो देखा रजनी भी बेसुध सी खड़ी यही सोच रही थी, उसे भी विश्वास नही हो रहा था, दोनों की नजरें मिली तो उदयराज मुस्कुराया और रजनी ने शर्मा के सर नीचे कर लिया।

उदयराज ने रजनी के चेहरे को ठोड़ी पर हाथ लगा के उठाया तो उसकी आंखें बंद थी, उसने धीरे से बोला- आज अमावस्या की रात से ठीक पहले का आठवाँ दिन है, कल सातवां दिन होगा, कल सुबह से मै तुम्हें नही देखूंगा, न तुम्हारे सामने पडूंगा।

रजनी की आंख बंद थी वो सुन रही थी उसके होंठ कंपन से थरथरा जा रहे थे।

उदयराज- मुझे तो लगा था कि आज रात मुझे मेरी अनमोल चीज़ मिल जाएगी पर नियति ने उसे 7 दिन पीछे धकेल दिया है, पर कोई बात नही मैं बर्दाश्त कर लूंगा।

रजनी ने धीरे से आंखें खोल के उदयराज की आंखों में देखा और बोली- बाबू, कल रात से रोज 5 रात तक मैं घर के पीछे वाली कोठरी में आपका रात के 12 बजे इंतज़ार करूँगी, और छठी रात आप मेरा इंतज़ार करना, इस दिनों हम एक दूसरे को न देखेंगे, न एक दूसरे के सामने पड़ेंगे, जैसा कि उसमे लिखा है। फिर सातवें दिन, मैं एक पर्ची में अपने मन की इच्छा उसमे लिख के घर में कहीं छुपा दूंगी आपको वो ढूंढकर उस पर्ची में लिखे अनुसार आगे का कर्म करना है और उस दिन सूर्यास्त के बाद हम एक दूसरे को देख सकेंगे, वह अमावस्या की रात होगी, उसी रात कुलवृक्ष में कील भी गाड़नी है, अब आपके और मेरे सब्र का इम्तहान है बाबू, हमे इसे बखूबी निभाना है।

उदयराज ने रजनी के चहरे को अपने हाथों में लेकर बोला- हाँ मेरी बच्ची, मेरी बेटी, बस आज की रात ही हम एक दूसरे को देख सकते हैं फिर तो 6 दिन बाद ही देख पाएंगे, और उदयराज गौर से रजनी को देखने लगा, उसके चेहरे को निहारने लगा, रजनी भी एक टक अपने बाबू को निहारने लगी फिर एकएक शर्माकर उनसे लिपट गयी, उदयराज ने उसे बाहों में कस लिया।

उदयराज- बेटी लेकिन हमारे बीच कोई तो ऐसा होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर सब संभालता रहे, मान लो मैं दिनभर बाहर रहूंगा और तुम घर में, परन्तु कभी कोई काम ही पड़ गया या तुम्हे मुझे खाना ही परोसना हो, या रात को बच्ची को ही संभालने वाला कोई तो होना चाहिए, ताकि हमे कर्म करने में कोई अड़चन आ आये।

रजनी- बाबू आप उसकी चिंता छोड़िए, वो मैं काकी को समझा दूंगी अपने तरीके से, उनको कुछ बताऊंगी नही पर फिर भी समझा दूंगी, वो सब संभाल लेंगी।

उदयराज- मेरी बेटी कितनी समझदार है, और कहते हुए वो उसके गालों को चूमने लगा।

रजनी ने आंखें बंद कर ली और अपने बाबू से लिपट गयी।

तभी नीलम की अम्मा आवाज लगाती हुई उनके घर की तरफ आ रही थी, ये सुनते ही उदयराज और रजनी झट से अलग हो गए और रजनी ने वो कागज छुपा दिया, भागकर बाहर आई- हाँ अम्मा क्या हुआ? बच्ची रो रही है क्या?

नीलम की अम्मा- हाँ बिटिया ये रो रही है, ले इसको दूध पिला दे और सब लोग चलो अब, खाना भी बन गया है, सब लोग खाना खा लो, काकी भी वहीं बैठी हैं, बस सब तुम लोगों का ही इतंज़ार कर रहे हैं।


रजनी- हाँ अम्मा चलती हूँ।

उदयराज ने भी अपना कागज छुपा के रख दिया और फिर रजनी और उदयराज दोनों लोग नीलम की अम्मा के साथ उसके घर आ गए।

आज पूरा गांव दिए कि रोशनी से जगमगा रहा था, बिरजू के घर सबने एक साथ खाना खाया, काफी बातें और हंसी मजाक भी हुआ फिर रजनी, काकी और उदयराज उन लोगों का धन्यवाद करके अपने घर आ गए।

उदयराज ने पहले की तरह अपनी खाट कुएं के पास लगाई और सोने के लिए लेट गया।

रजनी और काकी ने भी पहले की तरह अपनी खाट नीम के पेड़ के नीचे लगाई और लेटकर बातें करने लगी।

रजनी ने काकी को अपनी तरह से समझा दिया, उसने असल बात नही बताई, बस अपनी तरह से समझा दिया।

काकी ने भी उसको निश्चिन्त होकर कर्म करने के लिए बोला, काकी को भी लगा कि कोई ऐसा कर्म है जो गुप्त रूप से करना है।

फिर काकी सो गई पर रजनी की आंखों में नींद नही थी, वो बेचैन थी, वही हाल उदयराज का भी था वो भी अपनी खाट पर करवटें बदल रहा था। काफी देर सोचते सोचते फिर न जाने कब दोनों की आंख लग गयी।
Slow but nice pitch of story
 

Vicky2009

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Update- 36

उदयराज तकिए को नाक से लगाये सूंघता हुआ घर से बाहर निकला और धीरे से जाकर कुएं के पास अपनी खाट पर औंधे मुंह लेट गया काफी देर तक वो अपनी बेटी की बूर का काम रस लगा तकिया सूंघता रहा, जब जब आंख बंद करता ऐसा लगता रजनी की बूर ठीक उसके मुंह के सामने है उन नरम नरम लज़्ज़त भारी फांकों की छुअन, हल्के हल्के बूर के बाल और लिसलिसे काम रस की महक उसके मन मस्तिष्क पर चढ़ गई थी, काफी देर तक तो वो पागलों की तरह तकिए को ही दुलारता रहा फिर उससे रहा नही गया और वह खाट पर पेट के बल लेट गया, उसने लेटे लेटे रात के अंधेरे में अपना फौलाद हो चुका 9 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड धोती में से निकालकर, बेटी की बूर का काम रस लगा तकिया ठीक लंड के नीचे रखा और काफी देर तक हौले हौले धक्का मारते मारते ये सोचते हुए की उसका फ़ौलादी लंड अपनी बेटी की मक्ख़न जैसी बूर में डूबा हुआ है सो गया।

इधर रजनी भी बदहवास सी अपनी उखड़ती सांसों को संभालती लेटी रही, काफी देर तक उसकी बूर हल्का हल्का संकुचित होती रही और हल्का कामरस रिस रिसकर उसकी जाँघों में गिरता रहा, उसे ऐसा लग रहा था कि उसके बाबू की मर्दाना जीभ अब भी उसकी बूर को नीचे से ऊपर लपलपा के चाट रही है, किस तरह उसके बाबू उसकी बूर चाट रहे थे, haaaaiiiiiii अब तो अपनी बेटी की बूर का एक एक कोना उन्होंने अच्छे से देख लिया, छू लिया और चूम लिया है, फिर सिसकते हुए, मंद मंद मुस्कुराते हुए वो भी धीरे धीरे सो गई।

सुबह करीब 4:30 तक रजनी एक मादक अंगडाई लेकर उठी तो देखा कि कमर से नीचे से तो वो निवस्त्र है केवल चादर ही उसके तन पर पड़ा था, रोज की तरह उसने जल्दी से अपनी साड़ी बांधी और रात की बात याद आते ही बूर में उसके फिर से हलचल सी होने लगी, अपने को बड़ी मुश्किल से संभालते हुए उसकी नज़र कागज कलम पर पड़ी।

उसने देखा कि कल रात बाबू ने उसके लिए कुछ लिखकर छोड़ा नही, और आज 6ठे दिन का ध्यान आते ही रजनी का मन अंगडाई लेकर झूम उठा, क्योंकि आज होना था उल्टा, इस ख्याल से ही रजनी का बदन सुबह सुबह भोर में ही गनगना गया, आज उसे वो देखने, छूने, सहलाने और चूमने को मिलेगा जिसकी कल्पना मात्र से ही वो सिरह जाती थी, सोचते ही शर्म के मारे उसका चेहरा लाल हो गया, आखिर एक बेटी अपने ही सगे पिता के उस अंग को कैसे खोलेगी, कैसे देखेगी, कैसे छुएगी और फिर कैसे चूमे......। कितनी शर्म आएगी, आखिर वो उसी से पैदा हुई है, देखने में कैसा होगा वो, न जाने कितना लंबा और मोटा होगा वो।

ये सोचते ही बदन उसका पुनः गनगना गया, निप्पल सख्त होने लगे, अभी तक जो हुआ उसे ही बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था और आज जो होगा......uuuuufffff, कहीं वो अपना नियंत्रण न खो बैठे, पर अभी पूरा दिन बाकी था।

रजनी ने कुछ सोचकर कागज कलम उठाया और शर्माते हुए कुछ लिखने लगी, तब तक 5 बज चुके थे उसने चुपके से बाहर जा के वो कागज काकी को दिया, काकी उसको देखकर मुस्कुराने लगी तो वो भी शर्मा गयी और आज के कर्म के बारे में समझाते हुए बोली- काकी आज रात मैं बाहर सोऊंगी और बाबू अंदर। काकी मंद मंद मुस्कुराती रही फिर रजनी का हाथ अपने हाथों में लेकर बोली- मेरा आशीर्वाद तुम दोनों के साथ है, महात्मा द्वारा बताया गया कर्म पूर्ण रूप से फलित हो, मुझे ये तो नही पता कि कर्म में क्या लिखा था पर जो भी हो उसमे तू मेरी तरफ से निश्चिन्त रहना मेरी बच्ची, हर वक्त मैं तुम दोनों के साथ हूँ, रजनी गदगद होकर काकी से लिपट गई, काकी कुछ देर रजनी के सर को सहलाती रही फिर बाहर आ गयी।

बाहर हल्का अंधेरा था, अपनी बेटी को लेकर राजनी घर में आ गयी, उसके बाबू जहां लेटे थे उस तरफ उसने देखा भी नही।

काकी जब वो कागज उदयराज के पास खाट पे रखने आयी तो देखा उदयराज पेट के बल सो रहा था और तकिया उदयराज के सर के पास न होकर जांघ के नीचे दबा हुआ है, काकी ने सोचा पहले तो कभी उदयराज को ऐसे सोते हुए देखा नही, कुछ तो हलचल है इन बाप बेटी की जिंदगी में पर जो भी होगा अच्छा ही होगा, ये सोचकर उसने वो कागज वहीं सिरहाने की तरफ बिस्तर के नीचे डाल दिया और दबे पांव आ गयी।

उदयराज कुछ देर बाद जब अंगडाई लेता हुआ उठा तो उसने देखा कि धोती उसकी अस्त व्यस्त है और तकिया जाँघों के पास है फिर रात का ध्यान आते ही हल्की सी वासना की खुमारी उसके बदन में दौड़ गयी और आज तो छठा दिन था, काफी देर खाट पे ही बैठे बैठे वो मुस्कुराते हुए सोचता रहा कि उसका किसी और चीज़ में मन नही लग रहा, अब हर वक्त अपनी सगी बेटी रजनी का ही ख्याल रहता है मन मस्तिष्क में, सोकर उठते ही और फिर रात को जब तक सो न जाओ हर वक्त उसका मुस्कुराना, हंसना, उसके होंठ, होठों की लाली, उसका गदराया यौवन, उसकी मांसल जाँघे, उसके उन्नत स्तन और हाय उसकी मक्ख़न जैसी कमसिन बूर। मेरी जिंदगी को उसने रंगों से भर दिया है, कितना मजा है अपनी ही सगी बेटी के साथ छुप छुप कर उसका साथ पाते हुए, उसकी मर्जी से किये गए इस पाप के आनद में। मुस्कुराते हुए वो आज की आने वाली रात को याद करते हुए उठा और अपनी धोती पहले सही की फिर बिस्तर समेटने लगा जैसे ही उसने बिस्तर उठाया उसके नीचे कागज पड़ा था, कागज उठा के उसने धोती में खोंस लिया और काकी की तरफ देखा, काकी उस वक्त बैलों और गायों को चारा डाल रही थी, बिस्तर समेटकर वो नित्यकर्म से फारिग हुआ, तब तक 7 बज चुके थे।

उदयराज ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और बैल व हल लेकर खेतों की तरफ निकल गया आज उसे कुल वृक्ष के पास वाले खेत की जुताई करनी थी वह खेत कुल वृक्ष से करीब 100 मीटर की दूरी पे था, खेत में पहुचते ही उसने हल को बैलों के बीच सेट किया और उनको वहीं छोड़कर खेत की मेड़ पर बैठ गया, धोती में खोसा हुआ कागज जल्दी से निकाला उसमे लिखा था-

"मेरी प्रिय बाबू, मेरे शुग्गु मुग्गु, मेरे राजा, आज मैं बाहर सोऊंगी और आप अंदर, मैं रात का खाना बनाकर और जब सब लोग खा लेंगे तो कुछ देर के लिए दालान की तरफ टहलने चली जाउंगी और आप फिर घर में चले जाना और मेरा इंतज़ार करना। बस आज की रात और सब्र करना है हमे।"

उदयराज के मन में मानो हज़ारों शहनाइयाँ एक साथ बजने लगी, खुशी खुशी वो उठा और खेत जोतने लगा, फिर शाम को घर वापिस लौटा रास्ते में जब वो नीलम के घर के पास से गुजर रहा था तो उसने नीलम को उसके घर के आगे कच्ची सड़क के पास लगे धतूरे के पौधों से उसकी पत्तियां तोड़ते देखा।

उदयराज- अरे नीलम बिटिया क्या हुआ?, धतूरे के पत्ते का क्या काम आ गया, सब ठीक तो है।

नीलम- बड़े बाबू नमस्ते (नीलम ने पलटकर उदयराज को देखा तो नमस्ते किया)

उदयराज- नमस्ते मेरी बिटिया, क्या हुआ?

नीलम- अरे बाबू, मेरी ही गलती की वजह से मेरे बाबू को हाथ में थोड़ा गुम चोट लग गयी है। वो तो नीचे खाट थी नही तो काफी चोट लग सकती थी।

उदयराज- कैसे?

नीलम- अरे वो द्वार पर जो जामुन का पेड़ है न उसमे बहुत मीठे मीठे जामुन लगे हैं, उसदिन अपने भी तो देखा था।

उदयराज- हाँ हाँ, फिर

नीलम- आज सुबह मेरा मन था जामुन खाने का तो मैंने बाबू को सुबह बोला, नही तो वह फिर कहीं चले जाते काम से, पहले तो बाबू ने बोला कि ठीक है मैं तोड़ देता हूँ पर फिर मैं ही जिद करके पेड़ पर चढ़ गई और बाबू नीचे खाट डालकर उसके पास खड़े थे मैं जामुन तोड़ तोड़ के नीचे खाट पे फेंक रही थी कि अचानक मेरा पैर फिसला और मैं सीधा बाबू के ऊपर गिरी, वो तो खाट थी तो हम दोनों ही खाट पर गिर पड़े नही तो काफी चोट लग जाती, और तो और डाल भी टूट गयी पर गनीमत थी कि डाल हमारे ऊपर नही गिरी आधी टूटकर लटक गई, तो अम्मा ने बोला कि जा हल्दी और फिटकरी गरम करके धतूरे का पत्ता ऊपर से लगा के हाथ में बांध दे, दो तीन बार दिन में बदल बदल के बांध सही हो जाएगा, तो दिन में सुबह एक बार बांधी थी और फिर अभी बांधने जा रही हूं।

उदयराज- लो इतना कुछ हो गया और हमे पता भी नही, चल जरा देखूं कैसा है बिरजू।

फिर उदयराज नीलम के साथ उसके घर गया बिरजू को देखने, तो उसको शाम तक काफी आराम था, सीधे वाले हाँथ में पूरे हाँथ में सूजन थी, पर अब थोड़ा कम हो गयी थी, फिर उदयराज कुछ देर वहां रुका और हाल चाल पूछकर घर आ गया।

(नीलम और बिरजू की ये कहानी और विस्तार से अगले कुछ आने वाले updates में दूंगा, अभी चलते हैं आगे की ओर)

उदयराज बिरजू को देखने चला गया था इस वजह से घर शाम 7 बजे तक पहुचा तो काकी को बताने लगा।

काकी भी चकित रह गयी और बोली- इतना बड़ा हादसा होते होते बच गया और हमे कुछ पता भी नही चला, इस जामुन के चक्कर में किसी दिन अपना और दुसरों का भी हाथ पैर तुड़वा बैठेगी ये लड़की, बताओ शादीशुदा जवान लड़की का भारी भरकम शरीर इतने ऊपर से गिरेगा तो चोट तो लगेगी न, वो तो गनीमत है कि खाट थी, जामुन की डाल वैसे ही नाजुक होती है, चढ़ना ही नही चाहिए था, खैर काल जाउंगी दिन में रजनी को लिवा के देखने।

उदयराज- हां जरूर चली जाना। वैसे अब काफी आराम है।

काकी- चल अब तू नहा ले थोड़ी गर्मी भी है आज, रजनी खाना बना रही है, बैलों को मैं चारा डाल देती हूं।

उदयराज नहाने चला गया फिर आ के काकी के ही पास आकर खाट पर लेट गया, दालान के पास लालटेन हल्की रोशनी फैला रहा था, आज अमावस्या से एक दिन पहले की रात थी।

सब कुछ प्लान के मुताबिक ही हुआ, पहले तो काकी ने उदयराज को बाहर खाना ला के दिया उसने खाना खाया, फिर काकी और रजनी ने घर में खाना खाया, खाना पीना होने के बाद काकी के इशारे से कहने पर उदयराज कुएं की तरफ चला गया और रजनी घर से बाहर आकर दालान की तरफ चली गयी, फिर उदयराज घर में चला गया और रजनी काकी के पास आकर बाहर खाट पर लेट गयी।

रजनी आज पूरे 5 दिन बाद बाहर लेट रही थी, ठंडी ठंडी हवा उसके गदराए बदन से टकराकर अंदर तक झुरझुरी पैदा कर रही थी, बेटी उसकी सो चुकी थी, पर उसकी आँखों में नींद का नामो निशान नही था। काकी ने उसको नीलम और बिरजू की बात बताई तो वो भी चकित रह गयी और उसने भी काकी के साथ कल दिन में उसके घर चलने को कहा। रजनी ने काकी के पास अपनी बेटी को पहले ही उठाकर लिटा दिया और काकी ने उसके ऊपर अपना आँचल डाल दिया, धीरे धीरे 11 बज गए, जैसे जैसे वक्त नजदीक आता जा रहा था रजनी की सांसें बढ़ती जा रही थी साथ ही साथ उसे अपनी बूर में चीटियाँ सी रेंगती महसूस हो रही थी, मदहोश होकर वो कभी पेट के बल तो कभी पीठ के बल खाट पर लेटती रही, धीरे धीरे काकी बात करते करते नींद के आगोश में चली गईं।

वक्त आ गया था अब घर में अपने बाबू के पास जाने का, रजनी खाट से उठी और दालान के पास जाके जल रहे लालटेन को बुझा दिया और आके एक बार काकी और अपनी बेटी को देखा फिर बेचैनी से घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी, दरवाजे पर हल्का सा हाथ रखते ही वो हल्का सा आवाज करते हुवे खुल गया, उदयरक चटाई पर लेटा था अपनी बेटी के घर में दाखिल होने की आवाज सुनकर उसने चादर ओढ़ लिया, कोठरी रोज की तरह सजाई हुई थी
पर आज गुलाब और सफेद चमेली के फूलों से सजी कोठरी अलग ही मदहोशी का माहौल बना रही थी और ऊपर से उदयराज ने आके जब कपूर जलाया था तो कोठरी अत्यंत महक उठी थी।

रजनी बरामदे से गुप्प अंधेरे में होती हुई आंगन तक धीरे धीरे चलते हुए अपनी पायल खनकाते हुए पहुँची, कोठरी के आगे रखा दिया हल्की रोशनी चारों तरफ फैला रहा था, पायल की छन्न छन्न करती हुई रजनी कोठरी के दरवाजे तक पहुँची तो अंदर देखा कि उसके बाबू चादर ताने चटाई पर लेटे हुए हैं। बगल में रोज की तरह एक दिया और रखा है।

रजनी की सांसें थोड़ी तेज हो चली थी, उदयराज ने जब देखा कि उसकी बेटी उसके पास आ चुकी है तो उसने अपना ध्यान जान बूझ कर थोड़ा इधर उधर लगाया ताकि उसका लन्ड पहले ही हाहाकार न करने लगे, पर होनी को कौन टाल सकता है लाख कोशिश के बाद भी उसके लन्ड में थोड़ी हलचल तो होने ही लगी थी।

रजनी धीरे से आके अपने बाबू के बगल में दायीं ओर कमर के पास बैठ गयी, अभी केवल बाहर का दिया जल रहा था तो कोठरी में रोशनी काफी हल्की थी।

थोड़ी देर तक वो अपने बाबू के बलिष्ट शरीर को चादर के ऊपर से निहारती रही फिर एकाएक उसने अपना हाथ उठा कर अपने बाबू की जांघ पर रखना चाहा पर झट से पीछे हटा लिया और बाबू के मुंह की तरफ देखने लगी, उदयराज ने चादर पूरा सर से पांव तक तान के ओढ़ रखा था और अंदर धोती में उसका बलशाली लन्ड हिचकोले ले रहा था।

रजनी ने इस बार अपना हाँथ चादर के अंदर डाला और सीधे पैर के ऊपर घुटनों से नीचे जहां पर धोती खत्म हो रही थी वहां रखा।

अपनी सगी बेटी का हाथ और उसकी नरम नरम उंगलियां अपने सीधे पैर पर पड़ते ही उदयराज का लन्ड लाख रोकने के बाद भी फ़नफना ही गया, बेटी की छुअन से उदयराज का रोवाँ रोवाँ खड़ा हो गया।

लंड इतना शख्त हो गया कि चादर तना हुआ होने के बाद भी उसके ऊपर से दिखने लगा, रजनी की जब नजर उसपर पड़ी तो वो तो शर्म से लाल हो गयी।

अभी तक इतना कुछ हो चुका था फिर भी कभी रजनी ने चुपके से भी अपने बाबू के लंड की तरफ नही देखा था, एक आदर्श और शालीन नारी का परिचय अभी तक रजनी सभ्यता से देती चली आयी थी, बाप बेटी में भले ही रिश्ते की मर्यादा की लाज रखते हुए धीरे धीरे ही सब आगे बढ़ रहा था पर रजनी ने कभी उस लाज को तोड़कर एकदम से अपने कदम आगे नही बढ़ाये थे, चाहे इसे एक बेटी का अपने पिता के प्रति लज़्ज़ा कहो या आदर्श जो भी था पर था तो जरूर।

पर आज पहली बार अपने बाबू का लंड चादर के ऊपर से ही देखकर, ये देखकर की लन्ड इतना बड़ा है कि चादर तना हुआ होने के बाद भी लंड ने चादर को और ऊपर तंबू की तरह तान दिया है, वासना से भर गई, उसने धीरे धीरे अपना हाथ ऊपर को सरकाया उदयराज के पैर के बाल उसके हाथ में लगने से उसकी बूर झनझना गयी।

उदयराज आंखें बंद किये अपनी बेटी के ऊपर को सरकते नरम नरम हाथ को महसूस कर उत्तेजित होता जा रहा था।

रजनी के एकाएक अपना हाथ धोती में डाल दिया और ऊपर को सरकाते हुए जाँघों तक ले आयी, रजनी की हालत बुरी हो चली थी उसे बहुत शर्म आ रही थी पर मन भी आगे बढ़ने के लिए बहुत बेचैन था।

फिर रजनी ने अपना हाथ जाँघों पर रखा और वहां अपना हाथ फेरने लगी, जाँघों के जोड़ से लेकर घुटने तक वह अपना हाथ धीरे धीरे फेरने लगी, अपने सगी बेटी का मुलायम नरम हाथ अपनी जाँघों पर रेंगते हुए महसूस कर उदयराज का लंड और भी टनटना गया। धोती बंधी हुई होने की वजह से रजनी को अपना हाथ जाँघों तक पहुचाने में थोड़ी सी दिक्कत हो रही थी, कोठरी में तेज सांसे और हल्की हल्की हांथों की चूड़ियों की खनखनाहट गूंज रही थी।

रजनी ने जाँघों को सहलाते हुए अपनी उंगलियां अपने बाबू के मोटे मोठे बालों से भरे अंडकोषों पर रख दी, तो पहले तो वो खुद ही चिहुँक सी गयी, इतने बड़े आंड भी हो सकते हैं उसने सोचा नही था और उनपर वो काले काले बाल, उनकी छुवन, दो माध्यम आकार के अमरूद जैसे बड़े बड़े आंड को अपने हाथ में लेते ही रजनी शर्म और अति उत्तेजना से पानी पानी होती चली गयी, उदयराज के मुँह से भी काफी तेज aaaaaaahhhhhhhhhhh की आवाज निकल गयी जिसने रजनी के रोये रोये को खड़ा कर दिया।

उसका बदन गनगना गया, कैसे वो आज अपने सगे पिता के आंड को छू रही थी, अपने आप में ही वो वासना से रोमांचित हो उठी।

फिर एकाएक वो अपनी सांसे थामे कर्म के नियम का पालन करते हुए अपने हाथ से दोनों आंड को हौले हौले सहलाने लगी, उदयराज ने अपनी दोनों जाँघे खोल दी और अपनी ही सगी बेटी के हाथ को अपने आंड पर पाकर उसका लंड तेजी से स्पंदन करने लगा। (स्पंदन एक छोटा छोटा झटका होता है)

रजनी अपने बाबू के दूसरी जांघ पर भी हाथ फेरने और सहलाने लगी, अब उसकी लज़्ज़ा धीरे धीरे थोड़ी कम हुई और उत्तेजना और वासना उसपर हावी होती गयी। कभी वो आंड को सहलाती तो कभी दोनों जांघ को, पर लंड को उनसे अभी भी नही छुआ था परंतु हाथ इधर उधर करते हुए हाथ की कलाई और चूड़ियों से मोटा शख्त लन्ड टकरा ही जा रहा था। चूड़ियों की खनखनाहट बराबर कोठरी में गूंज रही थी।

अचानक रजनी ने अपना हाथ लंड की जड़ पर रखकर उसको मुठ्ठी में भर ही लिया, घने बालों से भरा हुआ था उसके बाबू का फ़ौलादी लंड। रजनी की जोरदार सिसकी निकल गयी, oooooooohhhhhhh bbbbbbaaabbbuuu बोलते हुए उसकी सांसे उखड़ने लगी।

अपनी ही सगी बेटी द्वारा लंड को मुठ्ठी में पकड़ते ही उदयराज कराह उठा और उसके लंड ने तो मानों जोरदार अंगडाई लेते हुए बगावत कर दी हो, रजनी की बूर अब रिसने लगी, सांसे धौकनी की तरह चलने लगी, रजनी ने कुछ पल लंड को मुठ्ठी में पकड़े रहा फिर एकाएक अपनी उंगलियां अपने बाबू के लंड के ऊपर घने बालों में चलाने लगी,उसको सहलाने लगी (जैसे उसकी नाक की लौंग उसमे गिरखर खो गयी हो और वो उसको ढूंढ रही हो), फिर एकाएक दुबारा से उसने मोटे लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपना हाथ ऊपर तक लाके लंड की पूरी लंबाई और चौड़ाई का जायजा सा लिया, अपने ही सगे बाबू के लगभग 9 इंच लंबे और 4 इंच मोटे लंड, जिसपर चारों ओर कईं नसें उभरी हुई थी, को अपने हांथों में लेकर रजनी बदहवास हो गयी, बूर में उसकी अनगिनत चीटियाँ रेंगने लगी, एक पल को उसे वो लंड उसकी बूर की अनंत गहराई में उतरता हुआ महसूस हुआ तो वो थरथरा गयी, और झट से हाथ बाहर खींच लिया, थूक का एक बड़ा घूंट उसके गले से उतर गया, आंखें बंद कर कुछ पल अपनी सांसों को समेटती रही, अपनी जाँघों को उसने एक दो बार भींचकर अपनी बूर को दबाया।

फिर रजनी ने अपने बाबू के तने हुए चादर को पैर की तरफ से हटाया और कमर तक पलट दिया, धोती में तंबू बना हुआ था, उसे देखकर वह वासना में मुस्कुरा उठी वो, फिर उसने अपने नरम हांथों से अपने बाबू की धोती के छोर को जो कमर के पीछे घुमाकर धोती में ही खोसी हुई थी, कमर के नीचे हाथ डालकर खींचकर खोला उदयराज के कमर उठा कर उसकी मदद की, रजनी ने उखड़ती सांसों के साथ धोती की छोर पकड़कर लपेटी हुई धोती को खोलकर ढीला किया और फिर कमर से पकड़कर नीचे सरकाने लगी। रजनी अब बगल से उठकर उदयराज की दोनों टांगों के बीच आ गयी।

धोती ढीली होने के बाद बड़े आराम से नीचे सरकने लगी, अपने कोमल हांथों से अपने बाबू की कमर के पास दोनों ओर धोती पकड़कर रजनी ने धोती को नीचे जाँघों तक सरका दिया, उदयराज का लंबा मोटा शख्त लंड एक बार को धोती में खड़ा होने की वजह से फंसा फिर तुरंत उछलकर सामने आ गया।

दिये कि हल्की रोशनी में अपने सगे पिता का काले काले बालों वाला हल्का काला सा लगभग 9 इंच लंबा और 4 इंच मोटा लंड, जिसपर कईं नसें अति उत्तेजना की वजह से उभर आई थी, देखकर रजनी की सांसें हलक में अटक गई, लंड इतना भी बड़ा और मोटा हो सकता है उसने सोचा नही था, उसने तो आजतक बस अपने पति का करीब 6 इंच लंबा लंड ही देखा था वो भी बहुत कम, उसके सगे पिता इतने बड़े लंड के मालिक हैं ये देखकर वो वासना से सराबोर होकर गनगना उठी, रोम रोम उसका संभोग के लिए तड़प उठा, बूर से उसकी काम रस की धारा बह निकली।

उदयराज वासना में आंखें बंद किये लेटा रहा, काफी देर तक रजनी अपने बाबू का विशाल लंड उस पर उगे बाल, नीचे दो बड़े बड़े आंड और जाँघे निहारती रही, किस तरह लंड रह रह कर फुदक रहा था, छोटे छोटे झटके ले रहा था मानो वो अपनी ही सगी बेटी की बूर मांग रहा हो, कितना लंबा था उसके बाबू का लंड और उसकी मोटाई तो देखो, अम्मा कैसे झेलती होंगी बाबू को और मैं कैसे.....और ऊपर का मुँह तो देखो लंड का कितना बड़ा और गोल सा है, बूर की गहराई में जाकर जब ये ठोकर मरेगा तो कितना मजा आएगा, पर इतना मोटा मेरी बूर में जायेगा कैसे? पर जैसे भी जाएगा मेरी आत्मा तृप्त कर देगा और ये सोचते हुए रजनी की आंखों में वासना के डोरे तैरने लगे।

लंड को देखकर रजनी की लज़्ज़ा काफी हद तक कम हुई और वासना उसकी आँखों में नजर आने लगी, उसके धोती को खींचकर पूरा पैर से बाहर निकाल दिया, उदयराज अब कमर से नीचे मदरजात नंगा हो गया।

रजनी ने बगल में रखा दिया जैसे ही जलाया, उसकी रोशनी में अपने बाबू का चमकता लंड देखकर और मचल उठी, हल्का काला, लंबा और मोटा लंड लोहे की रॉड की तरह सीधा खड़ा था, टांगें उदयराज ने दूर दूर फैला ली थी।

रजनी ने अपने बालों में लगी क्लिप को खोलकर अपने बालों को बंधन से आजाद कर लिया और आंख बंद कर सर को दाएं बाएं हिलाकर अपने दोनों हांथों से बालों की लटों को खोलते हुए बालों को हवा में लहराया, हाथ ऊपर करने से रजनी के ब्लॉउज में कसी कसी भारी चूचीयाँ उभरकर ऊपर को उठ गई।
फिर एक मादक मुस्कान बिखेरते हुए आंखें फाड़े अपने सगे बाबू के खड़े लन्ड को किसी जन्मों जन्मों से प्यासी नारी की भांति घूरने लगी, अपने मुलायम हांथों से उसने लंड को पकड़ लिया और हौले हौले पूरे लंड पर सिसकते हुए हल्के हाँथ फेरने और सहलाने लगी, उदयराज की अब मस्ती में आहें निकलने लगी वो aaaahhhhhhhhhhh mmmmeeerrriiii bbbbbeeettttiiii, aaaaaahhhhhhh mmmmmeeerrrriiiiiI rrraaaannniiiii bbbbbiiiitttttiiiyyyyyyaaaaaa, aaaiiiiisseeeee hhhhhiiiiiiiii, aaaaaaahhhhhhhhh

रजनी अपने बाबू की आहें और सिसकारी सुनकर और उत्तेजित होती चली गयी और खुद भी सिसकते और आहें भरती जा रही थी, कभी वो दोनों आंड सहलाती, कभी दोनों जाँघों पर हाथ फेरती, कभी पेट को सहला देती फिर अपने नरम नरम हाथों से लंड को पकड़कर पुरा नीचे से ऊपर तक सहलाती। रजनी लंड को सहला तो रही थी पर उसने लंड की चमड़ी को पीछे नही होने दिया था, वो इतने हल्के हांथों से सहला रही थी कि लंड के सुपाडे को उसने अभी तक खुलने नही दिया था, पर अपने बाबू का मोटा सुपाड़ा देखकर वो मदहोश हो गयी थी, हल्के हांथों की रगड़ से लंड की चमड़ी बिल्कुल हल्का सा नीचे हो गयी थी और थोड़ा सा लंड का सुपाड़ा दिख रहा था, लंड के मूत्र का छेद देखकर रजनी की बूर की गहराई में कई तार बज उठे।

पूरी कोठरी में उसके बाबू के लंड से आती मूत्र की हल्की गंध फैल गयी जो कि रजनी की चुदास को बढ़ा रही थी।

तभी रजनी से रहा नही गया और उसने अपनी नाक अपने बाबू के लंड के सुपाडे पर लगाई और उसे सूंघने लगी, अपने बाबू के विशाल लंड की पेशाब और काम रस की तेज गंध उसे अपने रोम रोम में समाती हुई महसूस हुई, अपनी बेटी की सांसों की गर्मी अपने लंड के सुपाड़े पर महसूस कर उदयराज हिल गया, वासना में वो जल रहा था।

रजनी काफी देर सुपाड़े को सूंघती रही फिर पूरे लंड और दोनों आंड को सूँघा और घने घने बालों में भी अपनी नाक फिराई। अपनी सगी बेटी की गर्म उत्तेजित साँसों को अपने लंड, आंड और बालों पर महसूस कर उदयराज पगला गया।

फिर एकाएक रजनी ने वो किया जो उदयराज ने सोचा भी नही था, रजनी ने अपने दोनों हाथ अपने बाबू की कमर के अगल बगल रखे और लंड पर झुक गयी, बाल उसके खुले थे तो उसके बाबू का कमर वाला हिस्सा ज्यादातर रजनी के बालों से ढक गया। उसकी दोनों जाँघों पर रजनी के घने बाल थे झुकने की वजह से रजनी की चूचीयाँ ब्लॉउज से मानो कूदकर बाहर ही आ जाने को हो रही थीं।

रजनी अपने बाबू के विशाल खड़े लंड के ऊपर एक वासनात्मक मुस्कान लेकर झुकी और अपने होंठों को गोल बनाया मानो वह शीटी बजा रही हो, फिर अपने बाबू के सुपाडे पर, जो ऊपर से बिल्कुल थोड़ा सा खुला था बस खाली मूत्र छेद दिख रहा था और उस पर भी काम रस लगा हुआ था, अपने होंठ रखे और धीरे धीरे अपना मुँह खोलती और साथ ही साथ सुपाडे कि चमड़ी को नीचे सरकाती चली गयी, बरसों से सुपाडे की चमड़ी जो खुली नही थी चिरचिराकर खुलती और नीचे सरकती चली गयी, रजनी ने अपना पूरा मुँह गोल गोल फाड़े अपने बाबू का सुपाड़ा अपने मुँह में भर लिया।

उदयराज aaaaaaaahhhhhhhhhhhhh, hhhhhhhhhaaaaaaiiiiiiiiiii,,,bbbbbbbeeeetttttttiiiiii करके सीत्कार उठा उसकी
तो सांसे ही थम सी गयी और आंखें अत्यंत नशे में बंद हो गयी, उसकी बेटी इतनी माहिर निकलेगी उसने सोचा नही था, ऐसा मजा उसे आजतक आया ही नही, हालांकि उसकी पत्नी भी लंड कभी कभी थोड़ा चूस लेती थी पर ये अदा, ufffffff उदयराज तो अपनी बेटी का कायल ही हो गया। रजनी ने तीन चार बार ऐसा ही किया और हर बार उदयराज का पूरा बदन हिल जा रहा था, पूरी कोठरी में आह और सिकारियाँ गूंज रही थी।

अपने बाबू का पूरा लंड तो रजनी अपने मुँह में अभी नही ले सकी पर फिर भी बहुत ही कामुक अदा से और सिसकते हुए वो मोठे फूले हुए सुपाड़े को जी भरके चाटने लगी और आधे से ज्यादा लंड अपने मुँह में धीरे धीरे भरकर चूसने लगी।

उदयराज हाय हाय करने लगा, रजनी का झटके से पूरा लंड मुँह में भरना फिर अपने होंठों को सुपाडे तक ले जाना, फिर सुपाडे को मुँह में लेकर लोलोपोप की तरह चूसना उदयराज को सातवें आसमान में ले गया, उदयराज ने जैसा सोचा था, उससे कहीं ज्यादा मजा आया था उसको, रजनी ने जैसे ही सुपाडे को मुँह में भरकर पूरे सुपाड़े पर गोल गोल जीभ घुमाई उदयराज को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे ऊपर आसमान में ले जाकर छोड़ दिया हो और वो बड़ी तेजी से धरती की तरफ गिर रहा हो।
रजनी ने फिर अपनी जीभ गोल नुकीली बनाई और अपने बाबू के लंड के छेद पर जहां से बार बार चाट लेने के बाद भी काम रस की बूंदें निकलकर बाहर आ जा रही थी, फिराने लगी और हल्का हल्का अपनी जीभ लंड के मूत्र छेद में घुसेड़ने सी लगी, जीभ की नोक से वो काम रस की बूंदों को चाट ले रही थी और ऐसा करते हुए खुद भी hhhhhhhhhhhaaaaaaaiiiiiiiiiiiiii,,,,,,,,,bbbbaaaabbbbuuuuuuuu,,,,ooooooohhhhhhhhh...... bbbbbbbbaaaaabbbbbuuuuu धीरे धीरे कहते हुए सिसके जा रही थी।

दोनों सगे बाप बेटी महापाप के असीम आनंद में डूबे हुए थे।

रजनी ने फिर कई बार अपने बाबू के सुपाड़े की चमड़ी को पहले अपने हांथों से ऊपर चढ़ा कर सुपाड़े को ढका और फिर अपने होंठो को गोल गोल बना कर सुपाड़े पर रखकर अपने लाली लगे रसीले होंठों से खींचकर पूरा नीचे तक बड़े ही मादक ढंग से सिसकते हुए खींचा।

हर बार उदयराज की जोरदार आँहें निकल गयी। उदयराज का पूरा लंड, आंड, जाँघे और चटाई भी रजनी के कामुक थूक से सन गए थे, दिए कि तेज रोशनी में थूक से सना काला मोटा लंड मानो अंगडाई लेकर और भी चमक उठा। उदयराज का लंड अपनी सगी बेटी की करीब 10 मिनट की चुसाई से इतना शख्त हो गया था की मानो अभी उसकी नसें फट जाएंगी, मानो गरज गरज कर वो बूर मांग रहा हो, वो भी अपनी सगी बेटी की बूर।

रजनी भी मदहोशी में बदहवास हो गयी थी, हाय हाय करे वो भी लंड चूमे और चूसे जा रही थी पर काफी देर दोनों हांथों के बल झुके झुके उनके हांथों में भी दर्द होने लगा था। फिर एकाएक उसने मुँह से अपने बाबू का लंड निकाला और लंड के मुँह से निकलते ही "पक्क़" की आवाज पूरी कोठरी में गूंज गयी, उदयराज के मुँह से जोर की सिसकी निकल गयी।

रजनी उठ बैठी, आंखें उसकी मादकता और वासना से बंद थी, थूक में सना दहाड़ता हुआ लंड दीये की रोशनी में हल्के झटके खाते हुए हिल रहा था, रजनी ने अपने बाबू के विशाल लंड और लटकते आंड को वासना भरी और ललचाई नज़रों से देखते हुए अपने बाल समेटे और क्लिप लगाकर बांध दिए।

समय भी हो चुका था, कर्म के नियम का पालन भी करना था, उसका मन बिल्कुल भी नही था जाने का, बूर ने तो उसकी लंड देखकर बगावत कर दी थी, बिल्कुल जिद पर अड़ गयी थी बच्चों की तरह कि बस लंड चाहिए तो चाहिए, बहुत हो गया, वो उसे लाख समझाती रही कि मेरी प्यारी सी बच्ची मान जा, बस एक रात और एक दिन की बात है, पर वो नही मानी, बहुत दिन से वो मान रही थी रजनी की बात पर आज मानने को तैयार नही थी, थोड़ा तो उसे चाहिए था, जरूर चाहिए था, जैसे कोई रेगिस्तान का प्यासा बस दो बूंद पानी की मांगता है बस वैसे ही रजनी की बूर अब लंड मांग रही थी।

फिर रजनी को एक बात सूझी की नियम के अनुसार नीचे का हिस्सा तो अब छू सकते हैं, समझ आते ही राजनी के मुख पर एक मादक मुस्कान फैल गयी। उसने बड़ी अदा से अपनी बूर को एक हल्का सा चांटा लगाया।

कुछ देर सोचने के बाद रजनी से झट से बगल में जलता हुआ दिया बुझा दिया और कोठरी में अंधेरा हो गया, उदयराज ने सोचा कि उसकी बेटी अब जाएगी, उसका भी मन थोड़ा उदास हो गया पर तभी चूड़ियों की खनखनाहट हुई।

रजनी ने अपने बाबू के ऊपर झुककर अपना बायां हाथ उनके कमर के बगल में थोड़ी दूर पर रखा और कमर तक आधा अपने बाबू के ऊपर झुक गयी, उदयराज असमंजस में सोचता रहा को मेरी बिटिया क्या कर रही है? रजनी ने कमर से ऊपर का शरीर का भार अपने दाएं हाथ पर टेक लिया और बाएं हाथ से अपनी साड़ी ऊपर करने लगी, अपनी साड़ी को उसने कमर तक खींचकर ऊपर चढ़ाया, आज उसने काले रंग की पैंटी पहनी थी, साड़ी कमर तक उठने से भारी भारी गुदाज नितम्ब बाहर जलते दिए की रोशनी में उजागर हो गए, काली रंग की पैंटी में गोर गोर कसे हुए मांसल नितम्ब किसी को भी उन्हें हथेली में भरकर मसलने के लिए उकसा देते।

फिर रजनी ने बैलेंस संभालते हुए जल्दी से अपने दाएं हाथ से अपनी पैंटी को भी सरका के जाँघों तक कर दिया, उसकी भारी भरकम गुदाज गोरी गांड उछलकर बाहर आ गई, उदयराज चादर के अंदर बहुत असमंजस में था कि उसकी बेटी क्या कर रही है? पर उसे थोड़ा तो अंदाजा हो गया कि रजनी उसके ऊपर झुकी हुई है।

पैंटी खुलने से राजनी की तड़पती बूर से गरम गरम काम रस की कई बूँदें उदयराज की जाँघों पर जब गिरी तब उदयराज को आभास हुआ कि उसकी बेटी ने अपनी बूर खोली है, इसका अहसास होते ही उदयराज का लंड और हाहाकार मचाने लगा। तभी राजनी ने वो किया जिसके बारे में उदयराज ने उस वक्त सोचा भी नही था।

राजनी ने धीरे से दाएं हाथ से अपने बाबू के फ़ौलादी लंड के सुपाड़े को उसकी चमड़ी नीचे करके खोला और खड़े लंड को नीचे की तरफ टेढ़ा करके तेजी से aaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhh......bbbbbbbbaaaaaaaabbbbbuuuuuu की मादक आवाज निकालते और सिसकते हुए
अपनी प्यारी सी मक्ख़न जैसी काम रस से सनी हुई बूर की फांकों के बीच लगा दिया, बूर की फांकों को वो चीर नही पाई क्योंकि उसने दूसरे हाथ से बैलेंस बनाया हुआ था।

जैसे ही उदयराज के लंड का सुपाड़ा रस टपकाता हुआ अपनी सगी बेटी की बूर की मक्ख़न जैसी फूली हुई भीगी भीगी फाँकों से टकराया, उदयराज, अत्यंत नरम नरम और गरम गरम फांकों की कोमलता के अहसास से झनझना गया, उसके मुँह से aaaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhh,,,........mmmmmmeeeeeeerrrrrrriiiiiiiiii.....bbbbbbbbeeeeettttttiiiiiiiiiiii........tttttteeeerrrrrriiiiiiii.....bbbbbooooooooooorrrrrrrrrrr
सिसकते हुए बहुत तेज़ी से निकला।

उदयराज ने अपना हाथ राजनी की भारी गांड पर रखकर उसको मसलना और नीचे को दबाना चाहा पर मुठ्ठी भींचकर त्राहि त्राहि कर उठा, क्या करता नियम से जो बंधा था।

रजनी की आंखें असीम आनंद में बंद हो चुकी थी, आज जीवन में पहली बार उसके सगे पिता का मोटा लंड अपनी सगी शादीशुदा बेटी की धधकती बूर से छू चुका था।

अपने बाबू के लंड को उसने अभी भी अपने हाथ से पकड़ रखा था, उदयराज के लंड का सुपाड़ा काफी मोटा था राजनी की प्यारी सी कमसिन सी बूर वासना में फूलकर काफी रस छोड़ रही थी, राजनी ने लंड को हाथ से पकड़े पकड़े अपनी बूर की फांकों में आगे पीछे दाएं बाएं घुमा घुमा कर रगड़ा और खुद ही हाय हाय करने लगी और फिर एकाएक उसने अपना दूसरा हाथ भी लंड को छोड़कर अपने बाबू ले कमर के बगल में रख लिया और पूरा बैलेंस बनाते हुए अपनी गांड को हल्का सा नीचे की ओर दबाया, लंड फांकों में और धंस गया, राजनी ने अपनी गांड को कस कस के आगे पीछे दाएं बाएं कई बार हिलाया।

लंड का सुपाड़ा बूर की फांकों के बीच खिलकर बाहर आ चुके भग्नासे से जब अच्छे से रगड़ खाने लगा तब राजनी ने जोर से सिसकते हुए और oooooooooohhhhhhhhhh bbbbbbbbbbaaaaaaabbbbbbbbuuuuuuuuu की तेज मादक आवाज निकलते हुए
अपनी गांड को उछाल उछाल कर अपनी बूर के भग्नासे को अच्छे से पांच सात बार अपने बाबू के सुपाड़े और पूरे लंड पर रगड़ा और कराहते हुए उठ बैठी, लंड पक्क़ की आवाज के साथ उछलकर फिर टनटना कर खड़ा हो गया और झटके खाने लगा।

उदयराज मदहोश हो चुका था, oooohhhhhh...bbbbbeeeettttiiiiii, hhhhaaayyy mmmmeerrriiii rrraaaaannnniii धीरे धीरे उसके मुँह से निकल रहा था।

राजनी ने फट से धोती उठायी और लंड पर रखने से पहले लंड के सुपाडे को जिस पर अब उसकी बूर का रस भी लगा हुआ था मुँह में एक बार फिर भर कर जोर से चूस लिया, फिर दोनों आंड को मुँह में भरकर चूसा और फिर धोती से अपने बाबू के लंड को ढककर अपनी पैंटी पहनी और साड़ी नीचे कर बेमन से कोठरी से निकल गयी।
Nice
 

Vicky2009

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Update- 46

दोपहर को नीलम ने अपनी माँ से कहा- अम्मा शाम को कितने बजे निकलोगी नाना के घर जाने के लिए।

नीलम की माँ- अब आज कहाँ जाउंगी बेटी, तेरे बाबू को चोट जो लगी है, अब उन्हें आराम हो जाये तो मेरे मन को तसल्ली होगी तभी जाउंगी, आज तो मुश्किल है कल ही जाउंगी।

नीलम- अरे अम्मा फिर वो जामुन तो कल तक खराब हो जाएंगे न, इतनी मेहनत से तोड़ा है मैंने और बाबू ने।

मां- हाँ वो तो देखा है मैंने कितनी मेहनत से तोड़ा है तूने, हाँथ पैर तुड़वा के बैठ गयी, बोल रही थी की रहने दे जामुन मत तोड़ फिर भी, अब तो कल ही जाउंगी, जामुन को गीले सूत की बोरी में लपेट के रख दे, कल सुबह ही निकल जाउंगी, तब तक खराब नही होगा।

नीलम- अम्मा तू गुस्सा क्यों होती है, ठीक है तेरा मन कल है तो कल ही जाना, पर गुस्सा मत हो, हो गया जो होना था मैंने कोई जानबूझ के थोड़ी न किया, मुझे क्या पता था।

ये सुनकर नीलम की माँ का छोटा सा गुस्सा शांत हो गया- अरे नही मेरी बिटिया गुस्सा नही हो रही, पर चिंता तो होती है न, मैं चली गयी और पीठ पीछे कुछ दिक्कत हो तो मेरा मन भी तो नही लगेगा न वहां, इसलिए बोल रही थी कि तेरे बाबू को कल तक काफी आराम हो जाएगा तो कल चली जाउंगी सुबह।

नीलम ने भी ज्यादा जोर नही दिया, एक रात की ही तो बात थी, कर लेगी कैसे भी बर्दाश्त, काट लेगी एक रात करवट बदल बदल कर, जब इतनी रातें काटी हैं तो एक रात और सही, ज्यादा जोर देती तो उसकी माँ को भी शक होता, इसलिए उसने ज्यादा कुछ बोल नही।

दिन भर बिरजू खाट पर लेटा रहा, नीलम की माँ और नीलम घर का और बाहर का सारा काम करती रही, बिरजू लेटे लेटे उन्हें देखता रहा, नीलम काम से फुरसत निकाल कर अपने दीवाने बाबू के पास कभी कभी बीच बीच में आकर बैठ जाती और दोनों एक दूसरे को नीलम की माँ से नजर बचा कर निहारते, एक टक लगा कर एक दूसरे को देखते। नीलम अपनी माँ की नज़र बचा कर अपने बाबू की खाट पर बिल्कुल सटकर बैठ जाती, बिरजू उसके हाँथ को अपने हाँथ में ले लेता और नरम मुलायम उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर धीरे धीरे उसकी आँखों में देखता हुआ सहलाता, नीलम शर्मा जाती और मदहोशी में अपने बाबू के बदन की छुअन को महसूस कर आंखें बंद कर लेती।

ऐसे ही एक बार नीलम कोई काम करके दुबारा आयी और खाट पर बिरजू के बगल में झट से बैठ गयी, बिरजू ने हल्का सा सरककर उसको बैठने की जगह दी, बिरजू ने नीलम के हाँथ को अपने हाँथ में लिया और प्यार से सहलाने लगा और बोला- तेरी अम्मा कहाँ है?

नीलम- पीछे खेत में गयी है अम्मा, कुछ देर में आएंगी (नीलम ने ये बात जोर देकर कही), बाबू आपका दर्द कैसा है धीरे धीरे आराम हो रहा है न (नीलम बिरजू की आँखों में देखते हुए बोली)

बिरजू- अब मेरी प्यारी बिटिया मुझे बार बार आ के प्यार देगी और छुएगी तो धीरे धीरे तो आराम होगा ही।

नीलम- मेरा बस चलता तो आपका सारा दर्द एक चुटकी में गायब कर देती।

बिरजू- वो कैसे?

नीलम ने अपना चेहरा बिरजू पर झुकाया और धीरे से बोली- आपको पूरी तरह अच्छे से छूकर।

बिरजू- हाय, तो रोका किसने है मेरी बिटिया, मेरी जान।

नीलम- अभी तो फिलहाल अम्मा ने रोक रखा है (नीलम का अर्थ ये था कि अभी अम्मा घर पे हैं)

बिरजू- लेकिन वो तो पीछे खेत में गयी है न, तो फिर।

नीलम- कभी भी आ सकती है बाबू (फिर नीलम ने बहुत धीरे से बोला)- बेटी को बहुत तसल्ली से धीरे धीरे प्यार करना चाहिए, समझें बुध्धू राम, जल्दबाज़ी में नही। किसी चीज़ को जल्दबाज़ी में खाओगे तो पूरा मजा कैसे मिलेगा, बोलो, सही कहा न (और वो कहकर खिलखिला कर हंस दी)

बिरजू- ठीक है मैं अपनी बेटी की चिज्जी को धीरे धीरे ही खाऊंगा और बिरजू ने नीलम का हाँथ दबा दिया तो वो सिसक उठी फिर बोली- बेटी की चिज्जी?

बिरजू- हाँ, मेरी प्यारी बेटी की प्यारी सी चिज्जी।

नीलम का चेहरा शर्म से लाल हो गया यहां तक कि उसके कान भी लाल हो गए जोश में, शर्मा कर उसने अपना चेहरा हाँथ से छुपा लिया और मंद मंद मुस्कुराने लगी,बिरजू उसे शर्माते हुए देखता रहा, हालांकि नीलम रजनी के मुकाबले काफी बिंदास थी पर फिर भी अपने सगे बाबू के मुँह से ये सुनके न जाने क्यों उसे बहुत शर्म आयी और वो वासना से भर गई, बदन उसका सनसना गया, कुछ देर हाथों में चेहरा छुपाये बैठी रही फिर एकएक एक उंगली को हल्का सा साइड करके झरोखा बना के अपने बाबू को देखा तो वो मुस्कुराते हुए उसे ही देख रहे थे, फिर उसने हंसते हुए दुबारा अपने चेहरे को हांथों से छुपा लिया और एकाएक जब बिरजू ने नीलम के चेहरे से हाँथ हटाया तो वो झट अपने बाबू के ऊपर लेटकर गले से लग गयी और कान में बोली- धत्त!......पर ये चिज्जी है क्या बाबू? आपकी प्यारी सी बेटी की प्यारी सी कौन सी चिज्जी, और ये है कहाँ? (नीलम ने जानबूझकर सिसकते हुए पूछा)

बिरजू तो पहले नीलम के बाहों में आने से ही उसके गुदाज मखमली बदन से मदहोश हो गया फिर कुछ देर बाद बोला- नाभि के रास्ते नीचे की तरफ चलते जाओ कुछ दूर जाने पर एक घना जंगल आएगा, जैसे ही उस जंगल को पार करोगे चिज्जी वहीं मिलेगी, बहुत प्यारी सी होती है वो, मीठी मीठी, देखने में ही मदहोशी सी आ जाती है और खाने लगो तो जैसे जन्नत में पहुँच गए हों, मक्ख़न जैसी होती है बिल्कुल, नरम नरम।

नीलम की सांसें धौकनी की तरह चलने लगी ये सुनकर फिर भी वो उखड़ती सांसों से बोली- उसको खाते कैसे हैं बाबू? बताओ न?

बिरजू भी बदहवास सा हो गया ऐसी बातें करके फिर बोला- उसको पहले तो मुँह में भरकर खाते हैं फिर बड़े से मूसल से खाते हैं, उस मूसल को उसमे डाल के उसको अच्छे से खाते हैं।

नीलम- उसमे डालते हैं वो मूसल बाबू?

बिरजू- हाँ मेरी बेटी, मेरी रानी। पूरा अच्छे से अंदर तक डालकर उस चिज्जी को खाते हैं।

नीलम ने उखड़ती हुई भारी सी आवाज में कहा- कौन सा मूसल बाबू?, कैसा मूसल?

बिरजू जैसे ही नीलम का हाँथ पकड़कर अपने धोती में खड़े दहकते लंड की तरफ ले जाने लगा तो नीलम समझ गयी और सनसना कर चौकते हुए हाँथ वापिस खींच लिया और एक मुक्का अपने बाबू के सीने पर हल्का सा मारा और बोली- ईईईईईईईईशशशशशशशशश......धत्त....बाबू.....कोई देख लेगा.....अभी नही और हंसते हुए उनके सीने में मुँह छुपाकर लेट गयी।

बिरजू- तुमने ही तो पूछा था की मूसल क्या होता है, तो मैं तो बस वही दिखा रहा था।

नीलम- बहुत गन्दू होते जा रहे हो आप, जल्दी जल्दी, संभालो खुद को। बेटी की चिज्जी को चुपके चुपके खाते हैं, कोई देख लेगा तो?

नीलम शर्माते हुए अपने बाबू से लिपटी रही।
दोनों की सांसें बहुत तेज चलने लगी, बिरजू ने अपने खड़े लंड को ठीक किया।

फिर कुछ देर बाद नीलम उठकर बैठ गयी और अपने बाल ठीक करते हुए अपने बाबू की आंखों में देखते हुए बोली-बाबू अम्मा तो कल सुबह ही जाएगी नाना के यहां आज तो नही जाएंगी।

बिरजू- लो तुम तो बोल रही थी कि मैं कैसे भी करके आज ही भेजके रहूँगी, मेरी बिटिया रानी।

नीलम- मैंने बहुत कोशिश की पर वो नही मानी फिर मुझे लगा कि उन्हें शक होगा, इसलिए मैंने ज्यादा जोर नही दिया।

बिरजू- कोई बात नही बेटी, एक रात और सही, पर जामुन तो कल तक खराब हो जाएंगे तो तुम खिलाओगी कैसे?

नीलम मुस्कुराते हुए- अभी तक आप ये समझ रहे हैं कि जो बाल्टी में भरकर रखा है वो आपका जामुन है। (नीलम ने बड़े अचरज से पूछा)

बिरजू- हाँ, वही तो है जामुन न।

नीलम अपने बाबू के और नज़दीक आयी और फुसफुसाके बोली- अरे मेरे बुध्धू बाबू, आपका जामुन तो ये है, उससे भी बहुत मीठा।

और ऐसा कहते हुए नीलम ने बहुत शर्माते हुए आज पहली बार अपने बाबू बिरजू की बाएं हाँथ की तर्जनी उंगली को पकड़ा और धीरे से अपनी चोली में कसी हुई बड़ी ही उन्नत दायीं चूची के निप्पल पर रख दिया, दोनों को एकाएक मानो करंट सा लगा, बिरजू ने ऐसा सोचा भी नही था कि उसकी सगी शादीशुदा बेटी एकाएक ऐसा कर देगी और न ही नीलम ने सोचा था, ये तो बस न जाने कैसे वासना में होता चला गया, बिरजू बदहवास सा नीलम को अपनी दोनों उंगली से उसके निप्पल को पकड़े देखता रह गया और नीलम भी अपने बाबू का हाँथ पकड़े कुछ देर उन्हें देखती रही फिर बिरजू ने जोश में आकर नीलम के निप्पल को उंगलियों से मसल दिया तो वो तेज से चिहुँक कर सिसक पड़ी फिर अचानक पीछे मुड़कर देखी की कहीं अम्मा न आ जाएं।

बिरजू कुछ देर अपनी बेटी के मोटे जामुन जैसे बड़े बड़े निप्पल चोली के ऊपर से ही बावला सा होकर धीरे धीरे दबाता मसलता रहा। नीलम सिसकते हुए बोली- बाबू बस, जामुन फूट जाएंगे.....अभी बस करो....आआआ आआआआआआआहहहहहहह.......अम्मा आ जायेगी रुको न..........अम्मा को जाने दो फिर सब कर लेना अपनी सगी बेटी के साथ जो जी में आये...............मैं तो आपकी ही हूँ न.....रुको न बाबू बस करो।

वाकई में नीलम के निप्पल किसी जामुन जैसे ही बड़े बड़े थे और इस वक्त वासना में फूलकर सख्त हो चुके थे उनका आकार भी बड़ा हो गया था, बिरजू अपनी सगी बेटी के मोटे मोटे निप्पल को आज छूकर होशो हवास खो बैठा, जब निप्पल इतने बड़े बड़े हैं तो चूची कितनी मस्त होगी, जब वो उसे खोलकर देखेगा, तो कैसा लगेगा, कैसी होगी चूची मेरी सगी बेटी की और निप्पल कैसे रंग का होगा, काला या गुलाबी.....हाय, खोलकर दोनों चूची जब वो लेटेगी मेरे सामने तो उसके सीने पर गोल गोल उठी हुई विशाल चूचीयाँ देखकर कैसा लगेगा मुझे, कहीं मैं पागल न हो जाऊं, यही सब सोचते हुए बिरजू का लंड धोती में फिर टनटना गया और जैसे ही नीलम की चौड़ी गांड पर चुभा, नीलम भी लंड की छुवन से बौरा सी गयी पर उसने अपने आपको काबू करने की कोशिश की, कहीं अम्मा न आ जाये। बिरजू ने एकाएक अपनी सगी बेटी की बड़ी सी मादक फूली हुई चूची को अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम थोड़ा जोर से सीत्कार उठी, बिरजू हल्का हल्का मस्ती में आंखें बंद किये अपनी ही सगी बेटी की मखमली चूची दबाने लगा, नीलम शर्माते हुए सिसकने लगी, दोनों ही इस वक्त आगे नही बढ़ना चाहते थे पर न जाने क्यों खुद पर काबू ही नही हो रहा था जैसे तैसे नीलम ने अपने बाबू को रोका और समझाया, बिरजू ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका और संभलते हुए बोला- कल साड़ी पहनोगी?

नीलम- हाँ मेरे बाबू जरूर, आप बोलो और मैं न पहनूँ ऐसा हो नही सकता, किस रंग की पहनूँ बोलो?

बिरजू- लाल रंग की।

नीलम मुस्कुराते हुए- लाल जोड़े में महसूस करना है अपनी बेटी को?

बिरजू- हाँ, एक दुल्हन की तरह।

दोनों एक दूसरे को बड़े प्यार से देखने लगे।

फिर नीलम बोली- और वो किस रंग की।

बिरजू जानबूझकर अनजान बनते हुए- वो क्या?

नीलम ने धीरे से कान में झुककर कहा- वही आखिरी वस्त्र...........कच्छी..….वो किस रंग की पहनूँ बाबू (नीलम ये बोलकर गनगना गयी)

बिरजू सिरह गया- काले रंग की, चिज्जी को काले कपड़े में छुपाकर रखना।

नीलम शर्माते हुए मुस्कुरा दी और फिर से एक मुक्का हल्के से अपने बाबू के सीने पर दे मारा- बदमाश! काले कपड़े में चिज्जी चाहिए, पगलू को, ठीक है बाबू आपकी ख्वाहिश आपकी ये बिटिया जरूर पूरा करेगी, अब मुझे छोड़ो अम्मा आती होंगी, बहुत देर हो गयी है।

तभी सच में नीलम की माँ चारा लेके आ गयी, दोनों झट से अलग हो गए।

शाम को नीलम ने जल्दी ही खाना बना लिया था, बिरजू को एक बार फिर पट्टी बदल दी गयी अब तक उसे काफी आराम हो चुका था दर्द तो बिल्कुल गायब हो चुका था बस थोड़ी सूजन थी, नीलम की माँ बोली- कल तक ये हाँथ ठीक हो जाएगा।

नीलम बरामदे में सोती थी, बिरजू और नीलम की अम्मा बाहर द्वार पर अगल बगल खाट बिछा कर सोते थे।

खाना खाने के बाद नीलम की माँ और बिरजू अपनी अपनी खाट पर अगल बगल लेटे थे, नीलम बरामदे में अपनी खाट पर लेटी तड़प रही थी, बर्दाश्त तो बिरजू से भी नही हो रहा था, तभी नीलम को एक तरकीब सूझी, लालटेन हल्की रोशनी देते हुए जल रही थी, नीलम ने देखा कि अम्मा और बाबू की खाट अगल बगल है और बीच में जगह है अगर मैं दोनों खाट के बीच जाकर पटरा लेकर बैठ जाऊं तो बाबू मुझे छू सकते हैं, नीलम का इतना मन कर रहा था कि उससे अब बर्दाश्त नही हो रहा था।
नीलम ने अपनी खाट से उठकर तेल की शीशी ली और एक हाथ में पीढ़ा लिया और अपनी अम्मा के पास पहुँच गयी, दोनों खाट के बीच आ के खड़ी हो गयी, आते हुए लालटेन को थोड़ा और मद्धिम कर आई थी।

नीलम ने एक नजर अपने बाबू पर डाली तो वो बड़ी बेचैनी से उसे ही देख रहे थे, नीलम को बिल्कुल खाट के पास बैठता देख बिरजू का मन मयूर झूम उठा, वो समझ गया कि उसकी बेटी उसे छुप छुप कर मजे देने आयी है, उसकी बेटी अब उसकी हो चुकी है पूरी तरह और वो भी तड़प रही है मस्ती करने के लिए, बिरजू उसे देखकर मुस्कुरा उठा, नीलम ने इशारे से थोड़ा रुकने के लिए बोला फिर दोनों खाट के बीच अपने बाबू की तरफ पीठ करके और अपनी अम्मा की तरफ मुँह करके नीचे जमीन पर पटरा रखकर बैठ गयी और अपनी अम्मा से बोली- अम्मा ला तेरे सर पे तेल रख दूँ, आज तूने बहुत काम किया है दिन भर, बाबू के हिस्से का भी काम किया है न तूने, काफी थक गई होगी, ला तेल से मालिश कर दूं, कल तो चली ही जाएगी तू नाना के घर।

नीलम की माँ- हाँ मैं तो कल बनवास जा रही हूं न 14 बरस के लिए आऊँगी थोड़ी लौट के, परसों ही आ जाउंगी मैं, रुकूँगी थोड़ी वहां, और मैं थकी वकी नही हूँ, चल सो जा जाके तू भी, नींद आ रही है मुझे अब।

नीलम- अरे अम्मा गुस्सा क्यों होती है, ठीक है तू परसों ही चली आना, मत रुकना वहां पर तेल तो मालिश करवा लें सर पे, तू सोती रह मैं कर देती हूं मालिश, ला अपना सर इधर रख।

नीलम की माँ- अरे बेटी मैं गुस्सा नही हूँ, तेरे से भला गुस्सा क्यों होऊंगी, वो तो मुझे नींद लग गयी है न इसलिए बोल रही हूं, तू भी खामख्वाह परेशान हो रही है, जा सो जा जाके, तू भी तो मेरे साथ साथ दिन भर लगी थी, जा सो जा रहने दे।

नीलम- लो माँ की सेवा करने में क्या परेशानी, तू भी तो मेरे लिए ही कल इतनी दूर अकेले नाना के घर जाएगी न।

अचानक ही नीलम के मुँह से ये निकल गया, तो वो झट से चुप हो गयी, नीलम की माँ ने दबी आवाज में फुसफुसाके बोला- धीरे बोल पगली तेरे बाबू एकदम पास में ही तो हैं, सुन लेंगे तो फिर पूछने लगेंगे की क्या बात है, अभी कल ही पूछ रहे थे तो मैंने उन्हें नही बताया बात टाल दी, और तू है कि कुछ भी झट से बोल पड़ती है।

नीलम- अरे अम्मा मेरे मुँह से एकदम से निकल गया, तू भी तो नही मान रही है न मेरी बात, कब से बोल रही हूं इधर सर कर, पर माने तब न।

नीलम की माँ- अच्छा बाबा ले, तू मानेगी थोड़ी, जिद्दी तो बचपन से है तू। (इतना कहते हुए नीलम की माँ ने अपना सर घुमाकर किनारे कर लिया)

नीलम- हाँ तो, जब तू जानती है फिर भी बहस करती है मुझसे (इतना कहकर नीलम धीरे से हंस पड़ी)

बिरजू चुपचाप आंखें मूंदे ऐसे लेटा था जैसे पानी में मगरमच्छ चुपचाप पड़ा पड़ा सही वक्त आने के इंतजार करता है।

नीलम की माँ- हाँ दादी अम्मा तेरे से अब बहस भी नही कर सकती मैं, पहले लालटेन तो बुझा दे।

नीलम- हाँ अम्मा, ये तो मैं भूल ही गयी।

और नीलम ने जाकर लालटेन बुझा दी, फिर आकर बैठ गयी, ये तो अब और ही नीलम और बिरजू के मन का ही हो गया था, अब काफी अंधेरा हो गया, बिरजू ने आंखें खोल ली और नीलम की मदमस्त पीठ देखने लगा, नीलम की पीठ बस एक फुट दूर थी। नीलम ने एक बार अपने बाबू को पलटकर देखा और अंधेरे में दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए।

नीलम- अम्मा बाबू तो सो गए हैं, उन्होंने सुना नही होगा।

नीलम की माँ- चल अच्छा है नही सुना होगा तो, और तू अब बोल मत नींद आ रही है मुझे सोने दे, जल्दी से मालिश करके जा सो जा तू भी।

नीलम- ठीक है तू सो जा अम्मा, मैं मालिश करती हूं देख तुझे और भी अच्छी नींद आएगी।
Nice
 

Vicky2009

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Update- 49

बिरजू ने नीलम को बरामदे में खाट पर लिटाया और उसपर चढ़ गया, रात के अंधेरे में दोनों ने एक दूसरे को कस के बाहों में भर लिया और बेताहाशा चूमने लगे, दोनों एक दूसरे को बाहों में भरे पूरी पलंग पर दाएं और बाएं होने लगे, कभी बिरजू नीलम के ऊपर होता तो कभी नीलम बिरजू के ऊपर, दोनों एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे, बिरजू ने एकाएक अपने होंठ नीलम के होंठों पर रख दिये और दोनों बाप बेटी एक दूसरे के होंठों को मदहोशी में चूमने लगे, इस समय बिरजू ऊपर था और नीलम नीचे, अंधेरा था तो ज्यादा कुछ दिख नही रह था, काफी देर होंठों को चूसने के बाद नीलम बोली- बाबू देख देख के करते हैं न, कुछ दिख नही रहा मुझे मेरे पिता को देख देख के करना है?

बिरजू- पिता को देख देख के क्या करना है?

नीलम शर्मा गयी और बोली- बहुत कुछ और उसके बाद वो भी करना है।

बिरजू- क्या बहुत कुछ और उसके बाद क्या करना है?

नीलम धीरे से- मुझे अपने पिता को देख देख के अपनी चूची उनको पिलाना है, वो मेरी चूची से खेलेंगे तो मैं देखूंगी अपने बाबू को।

बिरजू- हाय! और? और क्या करना है

नीलम और शर्मा गयी फिर धीरे से बोली- फिर मुझे अपने पिता जी को अपनी बूर खोलके दिखाना है, फिर देखना है कि मेरे पिताजी अपनी सगी बेटी की बूर को कैसे देखेंगे, कैसे चाटेंगे और कैसे खाएंगे।

बिरजू- हाहाहाहाहाहाययययय.....मेरी बिटिया, उसके बाद क्या करना है और बता न, तेरे मुँह से सुनके मजा आ रहा है।

नीलम की आंखें मस्ती में बंद हो गयी बिरजू उसके ऊपर चढ़ा हुआ था, दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर रखा था, बिरजू का दहाड़ता लंड साड़ी के ऊपर से ही नीलम की महकती बूर पर ठोकर मार रहा था।

बिरजू ने फिर बोला- उसके बाद क्या करना है मेरी बिटिया को अपने बाबू के साथ रोशनी में देख देख कर।

नीलम ने बहुत धीरे से बिरजू के कान में कहा- चुदाई।

चुदाई शब्द बोलते ही दोनों बाप बेटी जोर से सिसक उठे, और बिरजू ने एक जोर का झटका अपने लंड से नीलम की बूर पर साड़ी के ऊपर से ही मारा, नीलम एकदम से कराह उठी- बाबू, धीरे, कितना मोटा तगड़ा है आपका, और दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने लगे, बिरजू ने नीलम के निचले होंठों को अपने होंठों में भर लिया और चूसने लगा, नीलम ने भी मस्ती में आँखें बंद कर ली और अपने बाबू के होंठों का आनंद लेने लगी, कभी बिरजू नीचे वाले होंठों को चूसता तो कभी ऊपर वाले होंठों को चूसता, नीलम भी बेताहाशा सिसकने लगी और आआ आआआहहहह...........सी......आआ आआआहहहह.......सी......ओओओफ़फ़फ़फ़.......करने लगी,

बिरजू- बेटी, अपनी जीभ निकाल न।

नीलम ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर नुकीली बना ली।

बिरजू ने भी अपनी जीभ नुकीली बनाई और अपनी जीभ के नोक को अपनी बेटी की जीभ के नोक से छुआने लगा (जैसे हम दो बिजली के तारों को छीलकर आपस में छुआते हैं और छूते ही उनमे चिंगारियां निकलती हैं), दोनों के जीभ के नोक आपस में छूने से बिरजू और नीलम के बदन में झनझनाहट सी होने लगी, नीलम ने अपनी जीभ और कस के बाहर निकाल ली, बिरजू अपनी जीभ को नीलम की जीभ के किनारे गोल गोल घुमाने लगा, नीलम का पूरा बदन मस्ती में झनझना जा रहा था, वो भी अपनी जीभ को अपने बाबू की जीभ से लड़ाने लगी, कभी बिरजू अपनी बेटी की जीभ को मुँह में भरकर चूसने लगता और फिर अपनी जीभ निकाल लेता और फिर नीलम अपने बाबू की जीभ को मुँह में भरकर चूसती, कभी दोनों जीभ लड़ाने लगते, माहौल बहुत गर्म होता जा रहा था, नीलम वासना से सराबोर होकर मस्ती में बहते हुए बेकाबू होती जा रही थी, उसका बदन बार बार गुदगुदा जाता, जीभ लड़ाने से बार बार उठने वाली गुदगुदी से पूरा बदन सनसना जाता, सिसकियां और कामुक सिसकारियां काफी तेज हो चुकी थी।

काफी देर ऐसे ही जीभ मिलन का खेल खेलने के बाद एकाएक बिरजू ने अपनी पूरी जीभ नीलम के मुँह में डाल दी और पूरे मुँह में हर तरफ गुमाते हुए अपनी बेटी के मुँह का चप्पा चप्पा जीभ से छूकर चूमने से लगा, नीलम का बदन गनगना गया, मस्ती में आँखें बंद कर वो तड़पते हुए अपने बदन को ऐंठकर अपने बाबू से लिपट गयी, जीभ चुसाई का खेल भी इतना मादक होगा इसका उसे आज से पहले आभास नही था, न ही ऐसा मजा पहले कभी आया था, वो बस अभी तक यही जानती थी कि संभोग का मतलब सिर्फ चूत में लंड डालना ही होता है, उसे क्या पता था कि शरीर के हर अंग के खेल का संभोग में अलग ही मजा है, और इन सबमे उसके बाबू इतने निपुड़ हैं, इस बात को सचकर ही वो वासना से गदगद हो गयी, समझ गयी कि अब जाकर उसे सही मर्द मिला है जो उसे अच्छे से चोदकर औरत बना देगा, एक अच्छे कलात्मक संभोग के बिना नारी कितनी अधूरी रहती है ये आज उसे पता चला था, वो संभोग ही क्या जिसमे औरत के जिस्म से अच्छे से खेला न गया हो, ये बात तो वो समझ ही गयी थी कि उसके बाबू के अंदर धैर्य बहुत है और औरत को एक अच्छी चुदाई के लिए कैसे तैयार किया जाता है ये उसके बाबू को बखुबी पता है।

काफी देर तक बिरजू नीलम के मुँह में अपनी जीभ डाले मस्ती करता रहा और नीलम अपने सगे बाबू की जीभ को मुँह में भरकर पीती रही फिर बिरजू ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली तो नीलम ने अब अपनी जीभ अपने बाबू के मुँह में भरकर मस्ती करनी शुरू कर दी, अपनी बेटी की अत्यंत नरम नरम पूरी जीभ अपने मुँह में पाकर बिरजू भी गनगना गया, रसमलाई के समान अपनी ही सगी बेटी की नरम मुलायम जीभ को मुँह में भरकर बिरजू बड़ी तन्मयता से चूसने लगा, काफी देर तक चूसता रहा। नीलम झनझनाहट में थरथराती जा रही थी, अद्भुत आनंद में दोनों खो गए।

कुछ देर बाद बिरजू- बेटी

नीलम- हां बाबू

बिरजू- मुझे बूर दिखा न अपनी

नीलम- बाबू लालटेन जलाइए न,

बिरजू ने उठकर लालटेन जलाई और बरामदे में पलंग के बगल में एक चादर भी टांग दिया ताकि ओट हो जाये, क्योंकि लालटेन जलने से रोशनी हो गयी थी और बाहर द्वार तक भी रोशनी जा रही थी, पलंग के बगल में चादर टांगने से रोशनी बाहर जाना काफी हद तक बंद हो गयी, बिरजू अपनी बेटी के पास आया और लालटेन बिल्कुल बगल में रख लिया, नीलम पलंग पर चित लेटी हुई थी, दोनों लालटेन की रोशनी में एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे, नीलम ने जैसे ही शर्मा कर अपने चेहरे को अपने दोनों हांथों से ढकने के लिए उठाया बिरजू की नजर अपनी सगी बेटी की कांख पर पड़ी, दोनों कांख पसीने से गीली हो गयी थी, कांख की जगह पर लाल ब्लॉउज गीला हो गया था और पसीने की बहुत मनमोहक महक आ रही थी, नीलम ने तो शरमा कर अपना चेहरा दोनों हांथों से ढक लिया पर उसे नही पता था कि उसके बाबू की नज़र कहाँ पर है।

बिरजू अपनी सगी बेटी की पसीने से भीगी कांख ब्लॉउज के ऊपर से देखकर बेकाबू हो गया और उसके ऊपर चढ़ने लगा, जैसे ही वो अब लालटेन की रोशनी में अपनी बेटी के ऊपर लेटा नीलम की जोर से आआआआआहहहहहह निकल गयी, बिरजू ने नीलम के चेहरे से बड़े प्यार से दोनों हाँथ हटाये तो नीलम मुस्कुरा कर अपने बाबू के चेहरे को बड़े प्यार से देखने लगी। बिरजू ने अपना मुँह जैसे ही अपनी बेटी के बाएं कंधे पर लगाया और फिर धीरे से दायीं कांख में मुँह घुसेड़ने लगा तो पहले तो नीलम समझ नही पाई फिर मुस्कुरा कर अपना हाथ उठा कर अपनी कांख खोल दी बिरजू ने नाक लगा कर अपनी सगी बेटी के मदहोश कर देने वाले पसीने को जोर से सुंघा तो नीलम भी सिसक पड़ी और अपने दूसरे हाँथ से उसने अपने बाबू के सर को सहलाते हुए अपनी कांख में दबा दिया, बिरजू ब्लॉउज के ऊपर से ही कांख को चाटने और सूंघने लगा, नीलम को गुदगुदी भी हो रही थी और मजा भी आ रहा था। वो धीरे धीरे आंखें बंद करती चली गयी और सिसकने लगी।

बिरजू अपनी सगी बेटी के पसीने की गंध को सूंघ सूंघ कर पागल होता गया, नीलम ने दूसरा हाँथ भी उठा लिया और बिरजू अपनी बेटी का इशारा समझ दूसरी कांख पर भी टूट पड़ा वो इतना मदहोश हो गया था कि उसने ब्लॉउज को पकड़कर फाड़ ही दिया और ऐसा फाड़ा की केवल कांख पर झरोखा सा बन गया काले काले हल्के हल्के बाल साफ दिखने लगे, चचरर्रर्रर्रर्रर की आवाज से ब्लॉउज फटा तो नीलम मादकता में और मदहोश हो गयी सिसकते हुए बोली- बाबू अपनी बेटी की इज़्ज़त लूटोगे क्या?

बिरजू- मन तो कर रहा है मेरी बेटी की तेरी इज्जत लूट लूं।

ये सुनकर नीलम और वासना में भर गई और बोली- हाय बाबू....सारे कपड़े फाड़ के अपनी सगी बेटी की इज़्ज़त को तार तार करोगे?

बिरजू- आह....हाँ मेरी बेटी, मन तो कर रहा है कि तेरे कपड़े फाड़ डालूं और तेरी इज़्ज़त को तार तार कर दूँ।

नीलम को अपने बाबू के मुँह से आज ये सब पहली बार सुन सुनके बहुत जोश चढ़ रहा था वासना की तरंगें पूरे बदन में दौड़ रही थी। नीलम जानबूझ के दिखाने के लिए सिसकते हुए बोलने लगी- नही बाबू, ये पाप है न, कोई पिता अपनी सगी बेटी की इज़्ज़त तार तार करता है क्या?.....आआआआआहहहह

ऐसा कहकर नीलम खुद भी सिसक गयी

बिरजू- मैं तेरी जवानी चखे बिना नही रह सकता अब मेरी बेटी, तेरी जवानी का मक्ख़न मुझे अब खाना है।

नीलम- हाय... बाबू....ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़..... पर ये गलत है न, कोई जान जाएगा तो क्या कहेगा, की बाप बेटी आपस में करते है, मैं किसी को क्या मुँह दिखाउंगी, ये महापाप है न बाबू, महापाप (नीलम ने महापाप शब्द पर जोर देकर बोला)

तभी बिरजू ने कराहते हुए लंड से एक घस्सा बूर पर साड़ी के ऊपर से ही मारा तो नीलम वासना में कराह उठी फिर बोली- बाबू......मैं आपके बच्चे की माँ बन जाउंगी न, मेरी कोख में आपका बीज आ जायेगा, आआआआहह ह....बाबू, किसी को पता चलेगा तो, की मैं आपसे गर्भवती हुई हूँ तो मेरे बाबू........बेटी के साथ ये गलत काम मत करो बाबू........बाप बेटी का मिलन गलत है न बाबू........अपनी बेटी को बक्श दो, ये महापाप मत करो बाबू, अम्मा जान जाएगी तो, अनर्थ हो जाएगा बाबू।

नीलम वासना में बोले भी जा रही थी और बेताहाशा अपने बाबू को चूमे और सहलाये भी जा रही थी, बिरजू अपनी बेटी का ऐसा कामुक खेल सुनकर बहुत उत्तेजित हो गया, वो तो जीभ से बस नीलम की दोनों कांखों को बदल बदल कर चाटे जा रहा था, नीलम की कांख अपने बाबू के थूक से बिल्कुल भीग गयी, कांख पर हल्के हल्के बाल थूक से बिल्कुल सन गए थे, नीलम वासना में आंखें बंद किये ये सब बोले और सिसके जा रही थी, और अपने हांथों से अपने बाबू के सर को सहलाये जा रही थी। जब बिरजू दायीं कांख को चाटता तब नीलम बाएं हाँथ से बिरजू के सर को सहलाती और जब वो बायीं कांख को चाटता तब वो दाएं हाँथ से सर को सहलाती।

बिरजू ने रुककर नीलम को देखा तो वो भी अपने बाबू को वसन्तामयी आँखों से देखने लगी और अपनी कही गयी बातें सोचकर मुस्कुरा दी, बिरजू बोला- अपनी सगी बेटी की इज़्ज़त तो मैं लूटकर रहूंगा, चाहे जो हो।

नीलम- हाय.... बाबू....तो लूटिए न....आपकी बेटी तो सिर्फ आपकी है।

बिरजू- पाप का मजा कुछ और ही है, किसी को कैसे पता चलेगा, तेरी अम्मा को भी कैसे पता चलेगा मेरी बेटी, तेरी कोख में मेरा बच्चा होगा तो कितना मजा आएगा।

ऐसा कहकर बिरजू ने लंड को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ने लगा तो नीलम तड़प गयी।

बिरजू नीलम को और ताबड़तोड़ चूमने लगा फिर से कांख को चाटने और चूमने लगा, कभी कभी गालों, होंठों और गर्दन पर चूमता, कान के नीचे गर्दन पर अपने होंठ रगड़ता, तो नीलम गनगना जाती और उसे बातों में रोमांच आ रहा था तो वो दुबारा सिसकते हुए बोलने लगी- हाँ बाबू, इस पाप का तो मजा ही कुछ और है, मुझे भी बहुत मजा आ रहा है, हम छुप छुप के ये पाप किया करेंगे किसी को क्या पता चलेगा आआआआआआआहहहह ........बाबू हाय...

बिरजू- हाँ मेरी बेटी हम ये पाप छुप छुप के करेंगे और इसका भरपूर आनंद लिया करेंगे।

नीलम- हाय मेरे बाबू, लंड और बूर का कोई रिश्ता नही होता न बाबू (नीलम बहुत वासना से नशे में हो चुकी थी)

बिरजू- हाँ मेरी बेटी, इन दोनों का कोई रिश्ता नही होता, ये तो बस होते ही मिलाने के लिए है, लंड और बूर एक दूसरे से मिलाने के लिए ही बने हैं

नीलम- हाहाहाहाहाहाययययययययययययय.........मेरे बाबू.......आपने तो मुझे मस्त कर दिया, कितना मजा आ रहा है गंदी बात करने में......आआआआआहहहहह.....इस गंदेपन में भी कितना मजा है।

बिरजू- बेटी

नीलम- हाँ मेरे बाबू

बिरजू- मुझे बूर दिखा न अपनी खोलके

नीलम- उठो फिर बाबू

बिरजू उसके ऊपर से उठा और पैर के पास बैठ गया नीलम ने अपनी लाल साड़ी को उठाकर सिर इतना ऊपर किया कि वो बस घुटनों तक ही रही पैर को उसने हल्का मोड़कर उठा लिया और फैला लिया अब साड़ी का एक गोल झरोखा से बन गया उस झरोखे के अंदर लालटेन की माध्यम रोशनी में अपनी सगी बेटी की मोटी मोटी मांसल केले के तने के समान सख्त जाँघे और जाँघों के जोड़ पर कसी हुई कच्छी देखकर बिरजू बौखला गया, आंखें फाड़े वो अपनी सगी बेटी की सुंदरता को देखता रह गया, काली रंग की कच्छी में कसी हुई फूली हुई बूर, आआआआआहहहहह, बिरजू एक टक अपनी बेटी की बूर को कच्छी के ऊपर से ही देखता रहा, तभी नीलम ने बड़ी अदा से सिसकते हुए अपना सीधा हाँथ बगल से लाकर अपनी कच्छी पर रखा और एक दो बार अपने बाबू को दिखाते हुए अपनी उंगली से अपनी बूर को कच्छी के ऊपर से ही सहलाया, बिरजू मदहोश हो गया।

नीलम ने सिसककर ये बोलते हुए की "देखो बाबू आपके लिए ये कितनी प्यासी है" महकती बूर के ऊपर से कच्छी को थोड़ा सा साइड करके अपनी प्यासी बूर को अपने बाबू की एक टक देखती आंखों के सामने खोल दिया, फिर उसने पैर को और अच्छे से फैलाया और कच्छी को और साइड करके पूरी बूर को अच्छे से अपने बाबू को दिखाया, यहां तक कि नीलम ने लालटेन को उठाकर अपने दाएं पैर के बिल्कुल बगल रख दिया, बिरजू तो एक अपनी सगी बेटी की दहकती महकती बूर को देखता रह गया, ऊऊऊऊऊऊफफफफ़फ़फ़फ़फ़ क्या कयामत बूर थी नीलम की, कितनी बड़ी और चौड़ी सी थी वो ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़, और उसपर वो हल्के हल्के काले काले बाल लालटेन की रोशनी में बूर साफ दिख रही थी, नीलम के पैर फैला लेने को वजह से बूर की मोटी मोटी मदहोश कर देने वाली फांकें हल्की सी खुल गयी थी, पेशाब और कामरस की भीनी भीनी खुशबू फैलने लगी, रसभरी बूर की मखमली फांकों के बीच से लिसलिसा कामरस हल्का हल्का बह रहा था, क्या बूर थी नीलम की....हाय, दोनों मोटी मोटी फाँकों के बीच गुलाब की पंखुड़ियों के समान नरम नरम दो पतली पतली पंखुड़ियां थी और उसके बीच ऊपर के तरफ मदहोश कर देने वाला भगनासा, कैसे जोश में फूला हुआ था वो, कैसे बाहर आ चुका था फूलकर, खिलकर। साइड साइड बालों की वजह से हल्का सा काला सा था और फांकें खुलने की वजह से बीच में गुलाबी गुलाबी।

नीलम मदहोशी में मुस्कुराते हुए अपने बाबू को अपनी बूर एक टक आंखे फाड़े देखते हुए देखे जा रही थी, उसने दाएं हाथ से अपनी कच्छी को पकड़कर साइड खींच रखा था और पैर दोनों अच्छे से फैला रखे थे, लाल साड़ी में गोरी गोरी जाँघों के बीच काली कच्ची के अंदर हल्के हल्के काले काले बालों से घिरी नीलम की बूर ने उसके बाबू को सम्मोहित सा कर दिया, उसपर नीलम ने एक काम और किया कि अपने दाएं हाथ को अपनी बूर पर ले गयी और उंगलियों को पहले तो फांकों पर दो तीन बार रगड़ा फिर फांकों की दरार में कराहते हुए रगड़ा और फिर एकदम से दोनों फांकों को दो उंगलियों से फैला दिया, फांक फैलने से बीच की गुलाबी पंखुड़ी भी खुल गयी और छोटा सा बूर का छेद लाल लाल दिखने लगा, बिरजू बौखला गया, नीलम सिसकते हुए ये सब करते हुए अपने बाबू को कामांध होकर निहारे जा रही थी।

जैसे ही बिरजू पागलों की तरह फैली हुई बूर पर टूटा नीलम ने एकदम से बूर को हाँथ से ढक लिया बिरजू के होंठ एकदम से उसके हाँथ पर जाकर पड़े, बिरजू ने बदहवासी में एकदम से नीलम की ओर देखा तो वो वासना में अपने बाबू की ओर ही देख रही थी वो अत्यधिक वासना में भरकर बोली- बाबू, एक बार पहले हल्का सा बोर दीजिए मेरी बूर में, बहुत मन कर रहा है मेरा, रहा नही जा रहा अब।

नीलम ने आग्रह किया

बिरजू- क्या मेरी रानी बेटी, क्या बोर दूँ हल्का सा

नीलम ने सिसकते हुए अपने बाबू से कहा- अपना लंड, अपना लंड बाबू, मोटा सा लंड, एक बार अपनी सगी बेटी की पनियायी बूर में बोर दीजिए, बस एक बार हल्का सा डुबा दीजिए इसमें बाबू, फिर खूब चाटना बाद में, बहुत मन कर रहा है मेरा, थोड़ा सा बोरिये न मेरी बूर में अपना लंड, लंड के आगे का चिकना चिकना सा भाग खोलकर बूर पर रगडिये न बाबू. .......हाय।

नीलम ने इस अदा से निवेदन किया कि बिरजू अपनी बेटी की अदा पर कायल ही हो गया।

बिरजू- आआआआआहहहहहह......मेरी बेटी, तू अपने आप ही लंड खोलकर बूर में बोर ले न मेरी रानी, डुबो ले जितना तेरा मन करे, ये तो तेरी ही अमानत है मेरी बेटी।

इतना कहकर बिरजू अपने दोनों हाँथ नीलम की कमर के अगल बगल टिकाकर नीलम के ऊपर झुक सा गया और अपनी बेटी की आँखों में देखने लगा दोनों मुस्कुरा दिए और कई बार एक दूसरे के होंठों को चूमा।

नीलम ने अपने एक हाँथ से कच्छी को साइड खींचा हुआ था और दूसरे हाँथ से उसने अपने बाबू के लोहे के समान हो चुके सख्त लंड को धोती के ऊपर से पकड़ लिया, 8 इंच लंबे और 3 इंच मोटे विशाल लंड को पकड़कर नीलम गनगना गयी, वासना की मस्ती उसके नसों में दौड़ गयी, कितना बड़ा लन्ड था बिरजू का, उसके बाबू का, उसपर वो उभरी हुई नसें, नीलम की मस्ती में आआआआहहहह निकल गयी।


नीलम- ओह बाबू कितना सख्त हो रखा है आपका लंड, कितना मोटा है ये.......हाय........ कितना लंबा है.......ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़


बिरजू- हाँ मेरी बेटी ये सिर्फ और सिर्फ अब तेरा है।


नीलम ने कुछ देर पूरे लन्ड को आँहें भरते हुए सहलाया फिर दूसरे हाँथ से कच्छी को छोड़कर हाँथ को पीछे कमर पर ले गयी और धोती को कमर पर से ढीला किया, बिरजू ने अपनी बेटी की आंखों में देखते हुए अपनी धोती को खोलने में मदद की, धोती काफी हद तक ढीली हो गयी थी बिरजू ने एक हाँथ से धोती खोलकर बगल रख दी, नीचे से वो पूरा नंगा हो गया ऊपर बनियान पहनी हुई थी, अपनी बेटी के ऊपर वो दुबारा झुक गया और उसकी आँखों में देखते हुए उसे चूम लिया, नीलम सिसकते हुए अपने बाबू के निचले नग्न शरीर पर हाँथ फेरने लगी, उसने जाँघों को छूते हुए बिरजू के लन्ड के ऊपर के घने बालों में हाँथ फेरा और फिर लंड को पकड़कर कराहते हुए सहलाने लगी, नीलम
लंड को मुट्ठी में पकड़कर पूरा पूरा सहलाने लगी, सिसकते हुए सहलाते सहलाते वो नीचे के दोनों बड़े बड़े आंड को भी हथेली में भरकर बड़े प्यार से दुलारने लगी और सहलाने लगी,
अपनी बेटी की नरम मुलायम हांथों की छुअन से बिरजू की नशे में आंखें बंद हो गयी।


नीलम ने सिसकते हुए अपने एक हाँथ से अपनी कच्छी को दुबारा साइड किया और दूसरे हाँथ से लंड को सहलाते हुए बड़े प्यार से उसकी आगे की चमड़ी को पीछे की तरफ खींचकर खोला, दो बार में उसने लन्ड की चमड़ी को उतारा, खुद ही तेजी से ऐसा करते हुए जोश में सिसक पड़ी, क्योंकि एक सगी बेटी के लिए अपने ही सगे पिता के लंड की चमड़ी खोलना बहुत ही वासना भरा होता है


पहली बार में तो उसने चमड़ी को सिसकते हुए खाली फूले हुए सुपाड़े तक ही उतारा और चिकने सुपाड़े पर बड़े प्यार से उंगलिया फेरते हुए कराहने लगी मानो 100 बोतलों का नशा चढ़ गया हो, दोनों बाप बेटी एक दूसरे की आंखों में नशे में देख रहे थे, बिरजू नीलम की कमर के दोनों तरफ अपना हाथ टिकाए उसके ऊपर झुका हुआ था और नीलम अपने दोनों पैर फैलाये साड़ी को कमर तक उठाये एक हाथ से अपनी कच्ची को साइड खींचें हुए, दूसरे हाँथ से अपने बाबू का लंड सहलाते हुए उसकी आगे की चमड़ी को पीछे को खींचकर उतार रही थी।


नीलम के मुलायम हाँथ अपने चिकने संवेदनशील सुपाड़े पर लगते ही बिरजू आँहें भरने लगा, अपने बाबू को मस्त होते देख नीलम और प्यार से उनके सुपाड़े को सहलाने और दबाने लगी, अपने अंगूठे से नीलम ने अपने बाबू के लंड के पेशाब के छेद को बाद प्यार से रगड़ा और सहलाया, उसकी भी मस्ती में बार बार आंखें बंद हो जा रही थी, बार बार सिरह जा रही थी वो, बदन उसका गनगना जा रहा था मस्ती में, फिर उसने अपने बाबू के लंड की चमड़ी को खींचकर पूरा पीछे कर दिया और अच्छे से अपने बाबू के पूरे लंड को अपने मुलायम हांथों से सहलाने लगी।


फिर काफी देर सहलाने के बाद नीलम ने एक हाँथ से अपनी कच्छी को साइड किया और अपने बाबू के लंड को अपनी बूर की रसीली फांकों के बीच रख दिया, जैसे ही नीलम ने बूर पे लंड रखा दोनों बाप बेटी मस्ती में जोर से सीत्कार उठे-


नीलम-आआआआआआआआआआआहहहहहहहहहह...........ईईईईईईईशशशशशशशशश..........हाहाहाहाहाहाहाहाहायययययय........बाबू....…...आआआआआआहहहहह


बिरजू- आआआआआआहहहहह.......मेरी बेटी.....कितनी नरम है तेरी बूबूबूबूररररर..........ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़........मजा आ गया।


आज जीवन में पहली बार बिरजू के लंड ने अपनी सगी बेटी के बूर को छुआ था, इतना असीम आनंद मिलेगा कभी सपने में भी नही सोचा था, नीलम कराहते हुए अपने बाबू के लंड का सुपाड़ा अपनी दहकती बूर की फांक में रगड़ती जा रही थी, दोनों के नितम्ब हल्का हल्का मस्ती में थिरकने लगे, बिरजू हल्का हल्का लंड को बूर की फांक में खुद रगड़ने लगा, पूरे बदन में चिंगारियां सी दौड़ने लगी, बूर से निकलता लिसलिसा रस लंड के आगे के चिकने भाग को अच्छे से भिगोने लगा, नीलम ने एक हाँथ से कच्छी को साइड खींचा हुआ था पर अब उसने उसको छोड़कर वो हाँथ अपने बाबू के हल्के हल्के धक्का लगाते चूतड़ पर रख कर कराहते हुए सहलाने लगी, बीच बीच में हाँथ से उनके चूतड़ को अपनी बूर की तरफ मचलते हुए दबा देती, दहाड़ते लंड का मोटा सा सुपाड़ा मखमली बूर की फाँकों में ऊपर से नीचे तक रगड़ खाने लगा, बिरजू को इतना मजा आया कि वह धीरे धीरे अपनी सगी बेटी के ऊपर लेटता चला गया, नीलम अपने दोनों हांथों को वहां से हटा कर बड़े प्यार से अपने बाबू को अपनी बाहों में भरकर मस्ती में दुलारने लगी, अत्यंत नशे में दोनों की आंखें बंद थी।


बिरजू अपनी बेटी के बाहों में समाए, उसपर लेटे हुए अपनी आंखें बंद किये अपने लंड को बूर की फाँकों में रगड़ते हुए नरम नरम फांकों का आनंद लेने लगा। नीलम हल्का हल्का मस्ती में आंखें बंद किये आआआहहहह ह......आआआहहहहह करने लगी।


नीलम ने बड़ी मुश्किल से अपनी नशीली आंखें खोली और लालटेन को बुझा दिया, गुप्प अंधेरा हो गया, नीलम का सारा ध्यान सिर्फ अपने बाबू के मोटे दहकते लन्ड पर था जो कि लगातार धीरे धीरे उसकी सनसनाती बूर की रसीली फांकों में नीचे से ऊपर तक बार बार लगातार रगड़ रहा था, वो मुलायम चिकना सुपाड़ा बार बार जब नीलम की बूर के फांकों के बीच भागनाशे से टकराता तो नीलम का बदन जोर से झनझना जाता, पूरे बदन में सनसनाहट होने लगती।


नीलम ने कराहते हुए अपने दोनों पैर मोड़कर अच्छे से फैला रखे थे, बिरजू एक लय में अपने मोटे लंड को अपनी सगी बेटी की बूर की फांकों में रगड़ रहा था, नीलम भी मादक सिसकारियां लेते हुए धीरे धीरे अपनी गांड को अपने बाबू के लंड से ताल से ताल मिला के उठाने लगी और अपनी बूर को नीचे से उठा उठा के लंड से रगड़ने लगी।


नीलम की कच्छी का किनारा बार बार बिरजू के लंड से रगड़ रहा था तो बिरजू ने धीरे से नीलम के कान में बोला- बेटी


नीलम- हाँ मेरे बाबू


बिरजू- अपनी कच्छी पूरा उतार न, तब अच्छे से मजा आएगा।


नीलम- हाँ बाबू उठो जरा।


बिरजू नीलम के ऊपर से उठ जाता है उसका लंड भयंकर जोश में झटके लिए जा रहा, 8 इंच लंबा लंड पूरा खुला हुआ था, लोहे के समान सख्त और खड़ा था, नीलम ने कराहते हुए अपनी छोटी सी कच्छी निकाल फेंकी और जल्दी से अपनी साड़ी भी खोल कर अंधेरे में बगल में रख दी, अब नीलम के बदन पर सिर्फ ब्लॉउज रह गया था नीचे से वो बिल्कुल नंगी हो गयी थी।


अपनी सगी बेटी को इस तरह अपने बाप के सामने आज पूरी नंगी होते देख बिरजू वासना में कराह उठा, अंधेरा तो जरूर था पर फिर भी आंखें तो अब अभ्यस्त हो ही गयी थी काफी हद तक दिख रहा था, बिरजू अपनी सगी बेटी का पुर्णतया नग्न निचला हिस्सा देखकर बौरा गया, नीलम ने कच्छी और साड़ी उतारकर फिर से अपनी दोनों जांघें अच्छे से फैला लो और अपनी बूर को अंधेरे में अपने बाबू को परोस दिया, बिरजू एक पल तो अपनी बेटी की मादक सुंदरता को देखता रह गया, फिर एकएक कराहते हुए उसने अपनी सगी शादीशुदा बेटी के पैरों को एड़ी और तलवों से चाटना शुरू किया, नीलम तेजी से सिसक उठी,
दोनों पैरों की एड़ी, तलवों को अच्छे से चूमता चाटता वह आगे बढ़ा, घुटनों को चूमता हुआ वह जांघ तक पहुँचा, दोनों जाँघों को उसने काफी देर तक अच्छे से खाली चूमा ही नही बल्कि जीभ निकाल के किसी मलाई की तरह अच्छे से चाटा, नीलम वासना से गनगना गयी, बिरजू अपनी बेटी की अंदरूनी जांघों को अच्छे से चूम और चाट रहा था, नीलम रह रह कर झनझना जा रही थी।


जांघों को चाटते हुए वह महकती बूर की तरफ बढ़ा, बूर लगातार लिसलिसा काम रस बहा रही थी, बिरजू ने एकाएक बूर को मुँह में भर लिया और एक जोरदार रसीला चुम्बन अपनी सगी बेटी की बूर पर लिया, नीलम जोर से सिसकारते हुए चिंहुककर उछल सी पड़ी, बदन उसका पूरी तरह गनगना गया, कराहते हुए नीलम ने खुद ही एक हाँथ से अपनी महकती पनियायी बूर को चीर दिया और बिरजू मस्ती में आंखें बंद किये अपनी बेटी नीलम की बूर को लपा लप्प चाटने लगा, नीलम हाय हाय करने लगी, नीलम कभी अपनी बूर की फांकों को फैलाती तो कभी अपने बाबू के गाल को सहलाती, कभी जोश में झनझनाते हुए अपने बाबू की पीठ पर कस के नाखून गड़ा देती, नीलम के ऐसा करने से बिरजू को और भी जोश चढ़ जा रहा था और वो और तेज तेज बूर को चाटे जा रहा था।


नीलम जब अपनी उंगली से बूर की फांक को फैलाती तो बिरजू तेज तेज बूर की लाल लाल फांक में जीभ घुमा घुमा के चाटता, कभी फूले हुए भागनाशे को जीभ से छेड़ता कभी मुँह में भरकर चूसता, फिर कभी बेटी की बूर के छेद में जीभ डालता और जीभ को अंदर डाल के हल्का हल्का गोल गोल घुमाता।


नीलम वासना में पगला सी गयी, जोर जोर से सिसकने लगी, कराहने लगी, अपने बाबू के सर को कस कस के अपनी रसभरी बूर पर दबाने लगी, अपनी गांड को उछाल उछाल के अपनी बूर चटवाने लगी,


ओओओओहहहह..............बाबू...............हाय मेरी बूर...............कितना अच्छा लग रहा है बाबू................हाय आपकी जीभ................ऊऊफ्फफ................ चाटो ऐसे ही बाबू...................मेरी बरसों की प्यास बुझा दो....................आआआआआआहहहहह................मेरे बाबू..........मेरे राजा.............मेरी बूर की प्यास सिर्फ आपसे बुझेगी.......................सर्फ आपसे.....................ऐसे ही बूर को खोल खोल के चाटो मेरे बाबू........................अपनी बेटी की बूर को चाट चाट के मुझे मस्त कर दो...................ऊऊऊऊईईईईईई अम्मा..................... कितना मजा आ रहा है..............ऊऊऊऊऊफ़्फ़फ़फ़


काफी देर तक यही सब चलता रहा और जब नीलम से नही रहा गया तो उसने अपने बाबू को अपने ऊपर खींच लिया, बिरजू अपनी बेटी के ऊपर चढ़ गया, लन्ड एक बार फिर जाँघों के आस पास टकराता हुआ बूर पर आके लगा, लंड पहले से ही खुला हुआ था नीलम ने कराहते हुए लंड को पकड़ लिया और मस्ती में आंखें बंद कर अपनी बूर की फांकों को दुबारा फैला कर उसपे रगड़ने लगी।


नीलम ने जोर से सिसकते हुए अपने बाबू को अपनी बाहों में भर लिया और बिरजू अपने लंड को अपनी बेटी की बूर की फांक में तेज तेज रगड़ने लगा, जब झटके से लंड बूर की छेद पर भिड़ जाता और अंदर घुसने की कोशिश करता तो नीलम दर्द से चिहुँक जाती पर जल्द ही लन्ड उछलकर ऊपर आ जाता और भग्नासे से टकराता तब भी नीलम जोर से सिस्कार उठती।


नीलम ने अपने बाबू से सिसकते हुए बड़ी मादक अंदाज़ में कहा- बाबू...अच्छा लग रहा है सगी बेटी की बूर का स्वाद।


बिरजू- आह बेटी मत पूछ कितना मजा आ रहा है, कितनी नरम और रसीली बूर है मेरी बेटी की......हाय


नीलम अपने बाबू के मुँह से ये सुनकर शरमा ही गयी।


नीलम- बाबू


बिरजू- हाँ मेरी बेटी


नीलम- अब बोरिये न लंड अपना मेरी बूर में, रहा नही जाता अब, डुबाइये न अपना लंड मेरी बूर के रसीले छेद में।


बिरजू अपनी बेटी के मुँह से इतना कामुक आग्रह सुनकर वासना से पगला गया और उसने अपनी बेटी के दोनों पैरों को उठाकर फैलाकर अच्छे से अपनी कमर पर लपेट लिया, नीलम भी अच्छे से पैर फैलाकर लेट गयी और बिरजू ने अपने लंड का मोटा सुपाड़ा अपनी सगी शादीशुदा बेटी की रस बहाती महकती प्यासी बूर की छेद पर लगाया, नीलम की बूर बिल्कुल संकरी नही थी क्योंकि अक्सर वो अपने पति से चुदती रहती थी पर फिर भी पिछले दो महीने से वो चुदी नही थी और ऊपर से उसके बाबू का लंड उसके पति के लंड से डेढ़ गुना बड़ा और मोटा था। नीलम की बूर रस छोड़ छोड़ के बहुत रसीली हो चुकी थी, चिकनाहट भरपूर थी, बिरजू ने अपने विशाल लंड का दबाव अपनी बेटी की बूर की छेद में लगाना शुरू किया और अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर अपनी बेटी की गांड को पकड़कर ऊपर को उठा लिया जिससे नीलम की बूर और ऊपर को उठ गई। नीलम से बर्दाश्त नही हो रहा था तो उसने कराहते हुए बोला- बाबू, डालिये न अपना मोटा लंड अपनी बेटी की बुरिया में, अब मत तड़पाओ बाबू।


बिरजू ने दहाड़ते हुए एक दो बार लंड को बूर के छेद पर फिरसे रगड़ा और एक हल्का सा धक्का मारा तो लंड फिसलकर ऊपर को चला गया, नीलम तेजी से वासना में चिहुँक उठी, हाहाहाहाहाहाहाहाहायययय .......अम्मा.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईईईई,


बूर रस बहा बहा कर बहुत चिकनी हो गयी थी और उसका छेद बिरजू के लंड के सुपाड़े के हिसाब से काफी छोटा था, जैसे ही लंड फिसलकर ऊपर गया और तने हुए भागनाशे से टकराया नीलम तड़प कर मचल गयी आआआआआहहहह.......उई अम्मा, बिरजू ने जल्दी से बगल में रखा तकिया उठाया और नीलम की चौड़ी गांड के नीचे लगाने लगा, नीलम ने भी झट गांड को उठाकर तकिया लगाने में मदद की, तकिया लगने से अब नीलम की बूर खुलकर ऊपर को उठ गई थी, क्या रिस रही थी नीलम की बूर, तड़प तड़प के लंड मांग रही थी बस, नीलम फिर बोली- बाबू अब डालिये न, अब चला जायेगा, नही फिसलेगा, डालिये न बाबू, चोद दीजिए मुझे अब।


बिरजू ने जल्दी से लंड को दुबारा दहकती बूर के खुल चुके छेद पर लगाया और एक तेज धक्का दहाड़ते हुए मार, मोटा सा लंड कमसिन सी बूर के छेद को चीरता हुआ लगभग आधा मखमली बूर में समा गया, नीलम की जोर से चीख निकल गयी,


हाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहाययययययय............बाबू..........आआआआहहहहहह............धीरे से बाबू...............फट गई मेरी बूर.............ओओओओओहहहहह बाबू............कितना मोटा है आपका.........बहुत दर्द हो रहा है बाबू...........ऊऊऊईईईईईईई.......अम्मा...............बस करो बाबू...........रुको जरा...............आआआआहहहहहह......कितना अंदर तक चला गया है एक ही बार में............आआआआहहहहहह


बिरजू की भी इतनी नरम कमसिन जवान बूर पा के मस्ती में आह निकल गयी,


बिरजू ने झट उसके मुँह पर हाथ रख दिया, नीलम का पूरा बदन ही ऐंठ गया, चार सालों से वो अपने पति से चुदवा रही थी लेकिन बूर उसकी आज जाके फटी थी, आज उसे पता चला था कि असली लंड क्या होता है, उसे अब असली मर्द मिला था और वो थे उसके अपने सगे पिता।


बिरजू ने झट से नीलम के मुँह को दबा लिया उसकी आवाज अंदर ही गूंजकर रह गयी, एक हांथ से बिरजू ने अंधेरे में ही नीलम का ब्लॉउज खोल डाला और ब्रा का बटन पीछे से खोलने लगा तो उससे खुल नही रहा था, नीलम ने दर्द से कराहते हुए ब्रा खोलकार अपने बाबू की मदद की और ब्लॉउज और ब्रा को निकालकर बगल रख दिया, बिरजू अपनी बेटी की इस वफाई पर कायल हो गया एक तो उसको काफी दर्द भी हो रहा था फिर भी वो अपने बाबू को अपना प्यार दे रही थी, ब्लॉउज और ब्रा खोलकर उसने खुद ही उतार दिया, इतना प्यार सिर्फ एक बेटी ही अपने पिता को दे सकती है, बिरजू ने बड़े प्यार से अपनी बेटी को चूम लिया।


नीलम की बड़ी बड़ी मादक तनी हुई विशाल चूचीयाँ उछलकर बाहर आ गयी, उन्हें देखकर बिरजू और पागल हो गया, निप्पल तो कब से फूलकर खड़े थे नीलम की चूची के, दोनों चूचीयों को देखकर बिरजू उनपर टूट पड़ा और मुँह में भर भरकर पीने लगा, दोनों हांथों से कस कस के दबाने लगा, कभी धीरे धीरे सहलाता कभी तेज तेज सहलाता, लगातार दोनों चूचीयों को पिये भी जा रहा था, निप्पल को बड़े प्यार से चूसे जा रहा था, लगतार अपने बाबू द्वारा चूची सहलाने, मीजने और चूमने, दबाने से नीलम का दर्द कम होने लगा और वो हल्का हल्का फिर सिसकने लगी, आह....सी......आह.... सी......ओह बाबू....ऐसे ही.....और चूसो......दबाओ इन्हें जोर से.........हाँ मेरे बाबू......पियो मेरी चूची को.........आह, बोलते हुए नीलम सिसकने लगी, उसका दर्द अब मस्ती में बदलने लगा, अपनी बेटी की मखमली रिसती बूर में अपना आधा लंड घुसाए बिरजू बदहवासी में उसे चूमे चाटे जा रहा था।


बिरजू ने नीलम के मुँह पर से हाँथ हटा लिया पर अभी भी वो दर्द से हल्का सा कराह दे रही थी, बिरजू ने उसे बाहों में भर लिया और नीलम भी अपने बाबू से मस्ती में कराहते हुए लिपट गयी, बिरजू नीलम को बेताहाशा चूमने लगा, नीलम की दर्द भरी कराहटें अब पूरी तरह मीठी सिसकियों में बदल रही थी, बिरजू अपनी बेटी के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूसने लगा, नीलम ने भी मस्ती में अपने बाबू के चेहरे को बड़े प्यार से अपने हांथों में लिया और आंखें बंद कर उनका साथ देने लगी, बिरजू ने हल्का सा अपनी गांड को गोल गोल घुमाया तो लन्ड बूर की रस भरी दीवारों से घिसने लगा, नीलम को ये बहुत अच्छा लगा और वो अपने बाबू का मोटा सा मूसल जैसा लंड अपनी बूर में अच्छे से महसूस करने लगी, कितना अच्छा लग रहा था अब, नीलम की तो नशे में आंखें बंद हो गयी।


नीलम ने खुद ही अब नशे में अपना हाँथ अपने बाबू की गांड पर ले जाकर उसे हल्का सा आगे की तरफ दबा कर और लंड डालने का इशारा किया, बिरजू अपनी बेटी के इस आमंत्रण पर गदगद हो गया और उसे चूमते हुए एक जोरदार धक्का गच्च से मारा, इस बार बिरजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड पूरा का पूरा नीलम की रस बहाती बूर में अत्यंत गहराई तक समा गया, नीलम की दर्द के मारे फिर से चीख निकल गयी पर इस बार उसने खुद ही अपना मुँह अपने बाबु के कंधों में लगाते हुए दर्द के मारे उनके कंधों पर दांत गड़ा दिए और उसके नाखून भी बिरजू की पीठ पर गड़ गए, बिरजू वासना में कराह उठा, एक बाप का लंड सगी बेटी की बूर की अत्यंत गहराई में उतर चुका था, पूरी बूर किसी इलास्टिक की तरह फैलकर लंड को जकड़े हुए थी।


बिरजू का लंड अपनी सगी बेटी की दहकती बूर के छेद की मखमली दीवारों को चीरकर उसे खोलता हुआ इतनी गहराई तक समा चुका था कि नीलम बहुत देर तक अपनी उखड़ती सांसों को संभालती रही, अपने बाबू के कंधों में मुँह गड़ाए काफी देर सिसकती रही और बीच बीच में गनगना कर कस के अपने बाबू से लिपट जाती और उनकी पीठ को दबोच कर दर्द से कराह जाती, बिरजू अपनी बेटी को बड़े प्यार से बार बार चूमने लगा, उसके पूरे बदन को वो बड़े प्यार से सहलाने लगा, कमर, जाँघे, पैर, बगलें, कंधे, गाल, गर्दन, और मस्त मस्त दोनों सख्त चूचीयाँ वो बार बार लगातार सहलाये जा रहा था साथ ही साथ लगातार उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसे जा रहा था।


नीलम को अपने बाबू का लंड अपनी बूर में इतनी गहराई तक महसूस हुआ कि वो दर्द के मारे एक पल के लिए दूसरी दुनियाँ में ही चली गयी, अभी तक जो लंड नीलम की बूर में जाता था वो बस इसका आधा ही जाता था और नीलम को लगता था कि बूर में बस इतनी ही जगह है पर आज उसे पता चल गया कि उसके बाबू के लंड ने उसकी मखमली बूर की अनछुई रसभरी गहराई को भेदकर, वहां तक अपना अधिकार स्थापित कर दिया है, उसकी बूर की अत्यंत गहराई में छुपे रसीले अनछुए रस को आज उसके बाबू का लंड वहाँ तक पहुंचकर बड़े अधिकार से उसपर विजय पताका फहरा कर बड़े प्यार से उसे अपना इनाम समझ कर पी रहा है और नीलम की मखमली बूर की रसभरी अंदरूनी दीवारें इस छोर से लेकर उस छोर तक पूरे 8 इंच लंबे 3 इंच मोटे लंड से पूरी तरह कसकर लिपटी हुई उस मेहमान का बड़े ही दुलार से चूम चूम के बूर के अंदर आने का जमकर स्वागत कर रही थी, पहले जो लंड आता था उससे खून का रिश्ता नही था पर आज जो लंड बूर में आया है उससे उनका खून का रिश्ता है, जैसे कोई राजकुमार कई वर्षों बाद अपने राजमहल में प्रवेश कर गया हो और हर तरफ खुशियां ही खुशियां, उत्साह ही उत्साह हो, दासियाँ उसपर फूल बरसा रही हो, क्यूंकि इतना आनंद तो खून के रिश्ते से ही आता है, ठीक उसी तरह बेटी की बूर की मखमली रसभरी अंदरूनी दीवारें उसके अंदर पूरी तरह घुसे हुए बाप के लंड से लिपटी उसे चूम चूम के उसका स्वागत कर रही थीं मानो कह रही हों कि अब तक कहाँ थे आप, कब से तरस गयीं थी हम आपको छूने और चूमने के लिए।


नीलम को ये सब महसूस कर दर्द के साथ साथ एक तरह से असीम आनंद भी होने लगा, बिरजू अपनी बेटी को उसकी बूर में अपना पूरा लंड ठूसे लगातार चूमे और सहलाये जा रहा था, वह नीलम के होंठों को अपने होंठों में भरकर पीने लगा, नीलम को अब फिर मजा आने लगा, दर्द सिसकियों में बदलना शुरू हो गया, लिपट गयी वो खुद ही अपने बाबू से अच्छी तरह और ताबड़तोड़ चूमने लगी बिरजू को, बिरजू समझ गया कि अब उसकी सगी बेटी तैयार है बूर चुदवाने के लिए, नीलम की बूर से लगातार रस बह रहा था।


काफी देर तक लंड बूर में पड़े रहने से बूर उसको अच्छे से लीलकर अभ्यस्त हो गयी थी।
बिरजू ने अपनी बेटी के पैरों को अपने कमर पर अच्छे से लपेटते हुए धीरे से लंड को थोड़ा बाहर खींचा और गच्च से दुबारा बूर की गहराई में उतार दिया, नीलम मीठे मीठे दर्द से सिरह उठी, बिरजू बार बार ऐसा ही करने लगा वह थोड़ा सा लंड को निकलता और दुबारा बूर में पेल देता, नीलम को ये सब बहुत अच्छा लग रहा था, बिरजू अपनी गांड को गोल गोल घुमा कर लंड को बूर की गहराई में अच्छे से रगड़ता तो नीलम मस्ती में कराह जाती, जोर जोर से उसकी सीत्कार निकलने लगी।


बिरजू अब पूरी तरह नीलम से लिपटते हुए धीरे धीरे लंड को बूर से बाहर निकाल निकाल के गच्च गच्च धक्के मारने लगा, उसने अपनी बेटी के होंठ अपने होंठों में भर लिए और चूसते हुए थोड़े तेज तेज अपनी बेटी को चोदने लगा।


नीलम का दर्द धीरे धीरे जाता गया और चुदाई के मीठे मीठे सुख ने उसकी जगह ले ली। नीलम को ऐसा लग रहा था कि आज उसकी बूर की बरसों की भूख मिट रही है, इतना आनंद आजतक उसे कभी नही आया था, मोटे से लंड की रगड़ बूर की गहराई तक हो रही थी, बिरजू का लंड अपनी ही सगी बेटी की बच्चेदानी के मुँह पर जाकर ठोकर मारने लगा जिससे नीलम का बदन बार बार वासना में थरथरा जा रहा था, एक असीम गहरे सुख में नीलम का बदन गनगना जा रहा था।


नीलम- आआआआआआहहहहह.......हाय बाबू.....चोदो मुझे........चोदो अपनी बेटी को.........कितना मजा आ रहा है, कितना प्यारा है आपका लंड........कितना मोटा और लम्बा है मेरे बाबू का लंड......... हाय बाबू.....ऐसे ही चोदते रहो अपनी सगी बेटी को.......हाय


बिरजु अब अपनी बेटी नीलम की रसभरी बूर में हचक हचक के थोड़ा और तेज तेज अपना मोटा लन्ड पेलने लगा, बूर बिल्कुल पनिया गयी थी, बहुत रसीली हो चुकी थी, लंड अब बहुत आसानी से बूर के अंदर बाहर होने लगा था, बिरजू ने अब और अच्छी पोजीशन बनाई और अपनी बेटी की चूचीयों को मसलते हुए उन्हें पीते हुए, निप्पल को मुँह में भर भरकर चूसते चाटते हुए कस कस के बूर में पूरा पूरा लंड हचक हचक कर पेलने लगा, बीच में बिरजू रुकता और अपनी गांड को गोल गोल घुमा कर अपने मोटे लंड को अपने बेटी की बूर की गहराई में किसी फिरकी की तरह घूमने की कोशिश करता जिससे लंड बूर की गहराई में अच्छे से उथल पुथल मचाता और रगड़ खाता, इससे नीलम मस्ती में हाय हाय करती हुई सीत्कार उठती।


दोनों की मादक सिसकारियां थोड़ी तेज तेज गूंजने लगी, नीलम लाख कोशिश करती की तेज सिसकी न निलके पर क्या करे मजा ही इतना असीम आ रहा था कि न चाहते हुए भी तेज सिसकियां निकल ही जा रही थी, बूर इतनी रसीली हो चुकी थी की बूर चोदने की फच्च फच्च आवाज़ आने लगी, एक लय में हो रही इस चुदाई की आवाज से दोनों बाप बेटी और मस्त होने लगे, नीलम तो अब मस्ती में नीचे से अपनी चौड़ी गांड उठा उठा के चुदाई में अपने बाबू का साथ देने लगी, 8 इंच लंबे लंड का रसीली प्यासी बूर में लगातार आवागमन नीलम को मस्ती के सागर में न जाने कहाँ बहा ले गया।


बिरजू अब नीलम को पूरी ताकत से हुमच हुमच कर जोर जोर चोदने लगा, पूरी पलंग उनकी चुदाई से चरमराने लगी, पलंग से हल्की हल्की चर्र चर्र की आवाज दोनों बाप बेटी की सिसकियों के साथ गूंजने लगी, साथ में चुदाई की फच्च फच्च आवाज भी आने लगी थी, माहौल बहुत गर्म हो चुका था, किसी को अब होश नही था, नीलम का पूरा बदन उसके बाबू के जोरदार धक्कों से हिल रहा था, बिरजू अपनी सगी बेटी पर चढ़ा हुआ उसे घचा घच्च लंबे लंबे धक्के लगाते हुए चोदे जा रहा था। बूर बिल्कुल खुल गयी थी अब, लंड एक बार पूरा बाहर आता और दहाड़ता हुआ बूर की गहराई में उतर जाता, हर बार तेज तेज धक्कों के साथ नीचे से अपनी गांड को उछाल उछाल के चुदाई में ताल से ताल मिलाते हुए नीलम सीत्कार उठती थी।


आह...........बाबू............हाय ऐसे ही चोदो मुझे............ऐसे ही चोदो अपनी बेटी को....
...........अपनी सगी बेटी को...............ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़................. ऊऊऊऊईईईईईई..............अम्मा.............फाड़ डालो बूर मेरी बाबू..............अच्छे से फाड़ो अपने लंड से मेरी बूर को बाबू...................आआआआआहहहहहहहह..........ये सिर्फ आपके मोटे लंड से ही फटेगी बाबू..........सिर्फ आपके लंड से............हाय......... चोदो मेरे बाबू और तेज तेज चोदो अपनी बेटी को..........हाय दैय्या........कितना मजा आ रहा है।


बिरजू भी मस्ती में करीब 20-25 मिनट तक लगातार नीलम की बूर में हचक हचक के लन्ड पेल पेल के चोदता रहा, नीलम और बिरजू के तन बदन में एक जोरदार सनसनाहट होने लगी, नीलम की बूर की गहराई में मानो चींटियां सी रेंगने लगी, लगातार अपने बाबू के जोरदार धक्कों से उसकी बूर में सनसनी सी होने लगी और एकाएक उसका बदन ऐंठता चला गया, गनगना कर वो चीखती हुई अपने नितम्ब को उठा कर अपने बाबू से लिपटकर झड़ने लगी,


आआआआआहहहहह...........बाबू मैं गयी...........आपकी बेटी झड़ रही है बाबू.............ओओओओहहहह ह........हाय....... मैं गयी बाबू........और तेज तेज चोदो बाबू..........कस कस के पेलो मेरी बूर........ऊऊऊऊईईईईई.......बाबू.........हाय मेरी बूर...…..….कितना अच्छा है आपका लंड.........आआआआआहहहहह


बिरजू का लंड तड़बतोड़ नीलम की बूर चोदे जा रहा था, नीलम सीत्कारते हुए जोर जोर हाय हाय करते हुए अपने बाबू से लिपटी झड़ने लगी, बिरजु को अपनी बेटी की बूर के अंदर हो रही हलचल साफ महसूस होने लगी, कैसे नीलम की बूर की अंदरूनी दीवारें बार बार सिकुड़ और फैल रही थी, काफी देर तक नीलम बदहवास सी सीत्कारते हुए अपने बाबू से लिपटी झड़ती रही।


बिरजु तेज तेज धक्के लगते हुए नीलम की बूर चोदे जा रहा था, वह बड़े प्यार से चोदते हुए अपनी बेटी को दुलारने लगा, इतना मजा आजतक जीवन में नीलम को कभी नही आया था, चरमसुख के असीम आनंद में वो खो गई, अब भी उसके बाबू का लंड तेज तेज उसकी बूर को चोदे जा रहा था, कभी कभी वो बीच बीच में तेजी से सिस्कार उठती, बूर झड़ने के बाद बहुत ही चिकनी हो गयी थी, बिरजू का लंड अपनी बेटी के रस से पूरा सन गया था, नीलम का बदन अब ढीला पड़ गया वो बस आंखें बंद किये हल्का हल्का सिसकते हुए चरमसुख के आनंद में डूबी हुई थी कि तभी बिरजू भी जोर से सिसकारते हुए एक तेज जबरदस्त धक्का अपनी सगी बेटी की बूर में मारते हुए झड़ने लगा, धक्का इतना तेज था कि नीलम जोर से चिहुँक पड़ी आह........ बाबू......... हाय
एक तेज मोटे गाढ़े वीर्य की पिचकारी उसके लंड से निकलकर नीलम की बूर की गहराई में जाकर लगी तो नीलम उस गरम गरम लावे को अपनी बूर की गहराई में महसूस कर गनगना गयी और तेजी से मचलकर सिसकारने लगी बड़े प्यार से उसने अपने बाबू को अपनी बाहों में कस लिया और उनके बालों को सहलाने लगी, प्यार से दुलारने लगी, बिरजू का मोटा लंड तेज तेज झटके खाता हुआ वीर्य की मोटी मोटी धार छोड़ते हुए अपनी बेटी की बूर को भरने लगा, अपनी सगी बेटी के गर्भ में उसका गाढ़ा गरम वीर्य भरने लगा, गरम गरम बिरजू का वीर्य नीलम की बूर से निकलकर गांड की दरार में बहने लगा और तकिए तक को भिगोने लगा, बिरजु काफी देर तक हाँफते हुए अपनी बेटी की बूर में झाड़ता रहा, कई वर्षों के बाद आज उसे एक जवान कमसिन मखमली बूर मिली थी और वो भी सगी बेटी की, बिरजू सच में अपनी सगी बेटी की बूर चोद कर निहाल हो चुका था, बिरजु और नीलम ने असीम चरमसुख का आनंद लेते हुए एक दूसरे को कस के बाहों में भर लिया और बड़े प्यार से एक दूसरे को चूमने लगे, और अपनी सांसों को काबू करते हुए एक दूसरे को बाहों में लिए लेटे रहे।
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बिरजू ने नीलम को बरामदे में खाट पर लिटाया और उसपर चढ़ गया, रात के अंधेरे में दोनों ने एक दूसरे को कस के बाहों में भर लिया और बेताहाशा चूमने लगे, दोनों एक दूसरे को बाहों में भरे पूरी पलंग पर दाएं और बाएं होने लगे, कभी बिरजू नीलम के ऊपर होता तो कभी नीलम बिरजू के ऊपर, दोनों एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे, बिरजू ने एकाएक अपने होंठ नीलम के होंठों पर रख दिये और दोनों बाप बेटी एक दूसरे के होंठों को मदहोशी में चूमने लगे, इस समय बिरजू ऊपर था और नीलम नीचे, अंधेरा था तो ज्यादा कुछ दिख नही रह था, काफी देर होंठों को चूसने के बाद नीलम बोली- बाबू देख देख के करते हैं न, कुछ दिख नही रहा मुझे मेरे पिता को देख देख के करना है?

बिरजू- पिता को देख देख के क्या करना है?

नीलम शर्मा गयी और बोली- बहुत कुछ और उसके बाद वो भी करना है।

बिरजू- क्या बहुत कुछ और उसके बाद क्या करना है?

नीलम धीरे से- मुझे अपने पिता को देख देख के अपनी चूची उनको पिलाना है, वो मेरी चूची से खेलेंगे तो मैं देखूंगी अपने बाबू को।

बिरजू- हाय! और? और क्या करना है

नीलम और शर्मा गयी फिर धीरे से बोली- फिर मुझे अपने पिता जी को अपनी बूर खोलके दिखाना है, फिर देखना है कि मेरे पिताजी अपनी सगी बेटी की बूर को कैसे देखेंगे, कैसे चाटेंगे और कैसे खाएंगे।

बिरजू- हाहाहाहाहाहाययययय.....मेरी बिटिया, उसके बाद क्या करना है और बता न, तेरे मुँह से सुनके मजा आ रहा है।

नीलम की आंखें मस्ती में बंद हो गयी बिरजू उसके ऊपर चढ़ा हुआ था, दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर रखा था, बिरजू का दहाड़ता लंड साड़ी के ऊपर से ही नीलम की महकती बूर पर ठोकर मार रहा था।

बिरजू ने फिर बोला- उसके बाद क्या करना है मेरी बिटिया को अपने बाबू के साथ रोशनी में देख देख कर।

नीलम ने बहुत धीरे से बिरजू के कान में कहा- चुदाई।

चुदाई शब्द बोलते ही दोनों बाप बेटी जोर से सिसक उठे, और बिरजू ने एक जोर का झटका अपने लंड से नीलम की बूर पर साड़ी के ऊपर से ही मारा, नीलम एकदम से कराह उठी- बाबू, धीरे, कितना मोटा तगड़ा है आपका, और दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने लगे, बिरजू ने नीलम के निचले होंठों को अपने होंठों में भर लिया और चूसने लगा, नीलम ने भी मस्ती में आँखें बंद कर ली और अपने बाबू के होंठों का आनंद लेने लगी, कभी बिरजू नीचे वाले होंठों को चूसता तो कभी ऊपर वाले होंठों को चूसता, नीलम भी बेताहाशा सिसकने लगी और आआ आआआहहहह...........सी......आआ आआआहहहह.......सी......ओओओफ़फ़फ़फ़.......करने लगी,

बिरजू- बेटी, अपनी जीभ निकाल न।

नीलम ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर नुकीली बना ली।

बिरजू ने भी अपनी जीभ नुकीली बनाई और अपनी जीभ के नोक को अपनी बेटी की जीभ के नोक से छुआने लगा (जैसे हम दो बिजली के तारों को छीलकर आपस में छुआते हैं और छूते ही उनमे चिंगारियां निकलती हैं), दोनों के जीभ के नोक आपस में छूने से बिरजू और नीलम के बदन में झनझनाहट सी होने लगी, नीलम ने अपनी जीभ और कस के बाहर निकाल ली, बिरजू अपनी जीभ को नीलम की जीभ के किनारे गोल गोल घुमाने लगा, नीलम का पूरा बदन मस्ती में झनझना जा रहा था, वो भी अपनी जीभ को अपने बाबू की जीभ से लड़ाने लगी, कभी बिरजू अपनी बेटी की जीभ को मुँह में भरकर चूसने लगता और फिर अपनी जीभ निकाल लेता और फिर नीलम अपने बाबू की जीभ को मुँह में भरकर चूसती, कभी दोनों जीभ लड़ाने लगते, माहौल बहुत गर्म होता जा रहा था, नीलम वासना से सराबोर होकर मस्ती में बहते हुए बेकाबू होती जा रही थी, उसका बदन बार बार गुदगुदा जाता, जीभ लड़ाने से बार बार उठने वाली गुदगुदी से पूरा बदन सनसना जाता, सिसकियां और कामुक सिसकारियां काफी तेज हो चुकी थी।

काफी देर ऐसे ही जीभ मिलन का खेल खेलने के बाद एकाएक बिरजू ने अपनी पूरी जीभ नीलम के मुँह में डाल दी और पूरे मुँह में हर तरफ गुमाते हुए अपनी बेटी के मुँह का चप्पा चप्पा जीभ से छूकर चूमने से लगा, नीलम का बदन गनगना गया, मस्ती में आँखें बंद कर वो तड़पते हुए अपने बदन को ऐंठकर अपने बाबू से लिपट गयी, जीभ चुसाई का खेल भी इतना मादक होगा इसका उसे आज से पहले आभास नही था, न ही ऐसा मजा पहले कभी आया था, वो बस अभी तक यही जानती थी कि संभोग का मतलब सिर्फ चूत में लंड डालना ही होता है, उसे क्या पता था कि शरीर के हर अंग के खेल का संभोग में अलग ही मजा है, और इन सबमे उसके बाबू इतने निपुड़ हैं, इस बात को सचकर ही वो वासना से गदगद हो गयी, समझ गयी कि अब जाकर उसे सही मर्द मिला है जो उसे अच्छे से चोदकर औरत बना देगा, एक अच्छे कलात्मक संभोग के बिना नारी कितनी अधूरी रहती है ये आज उसे पता चला था, वो संभोग ही क्या जिसमे औरत के जिस्म से अच्छे से खेला न गया हो, ये बात तो वो समझ ही गयी थी कि उसके बाबू के अंदर धैर्य बहुत है और औरत को एक अच्छी चुदाई के लिए कैसे तैयार किया जाता है ये उसके बाबू को बखुबी पता है।

काफी देर तक बिरजू नीलम के मुँह में अपनी जीभ डाले मस्ती करता रहा और नीलम अपने सगे बाबू की जीभ को मुँह में भरकर पीती रही फिर बिरजू ने अपनी जीभ बाहर निकाल ली तो नीलम ने अब अपनी जीभ अपने बाबू के मुँह में भरकर मस्ती करनी शुरू कर दी, अपनी बेटी की अत्यंत नरम नरम पूरी जीभ अपने मुँह में पाकर बिरजू भी गनगना गया, रसमलाई के समान अपनी ही सगी बेटी की नरम मुलायम जीभ को मुँह में भरकर बिरजू बड़ी तन्मयता से चूसने लगा, काफी देर तक चूसता रहा। नीलम झनझनाहट में थरथराती जा रही थी, अद्भुत आनंद में दोनों खो गए।

कुछ देर बाद बिरजू- बेटी

नीलम- हां बाबू

बिरजू- मुझे बूर दिखा न अपनी

नीलम- बाबू लालटेन जलाइए न,

बिरजू ने उठकर लालटेन जलाई और बरामदे में पलंग के बगल में एक चादर भी टांग दिया ताकि ओट हो जाये, क्योंकि लालटेन जलने से रोशनी हो गयी थी और बाहर द्वार तक भी रोशनी जा रही थी, पलंग के बगल में चादर टांगने से रोशनी बाहर जाना काफी हद तक बंद हो गयी, बिरजू अपनी बेटी के पास आया और लालटेन बिल्कुल बगल में रख लिया, नीलम पलंग पर चित लेटी हुई थी, दोनों लालटेन की रोशनी में एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे, नीलम ने जैसे ही शर्मा कर अपने चेहरे को अपने दोनों हांथों से ढकने के लिए उठाया बिरजू की नजर अपनी सगी बेटी की कांख पर पड़ी, दोनों कांख पसीने से गीली हो गयी थी, कांख की जगह पर लाल ब्लॉउज गीला हो गया था और पसीने की बहुत मनमोहक महक आ रही थी, नीलम ने तो शरमा कर अपना चेहरा दोनों हांथों से ढक लिया पर उसे नही पता था कि उसके बाबू की नज़र कहाँ पर है।

बिरजू अपनी सगी बेटी की पसीने से भीगी कांख ब्लॉउज के ऊपर से देखकर बेकाबू हो गया और उसके ऊपर चढ़ने लगा, जैसे ही वो अब लालटेन की रोशनी में अपनी बेटी के ऊपर लेटा नीलम की जोर से आआआआआहहहहहह निकल गयी, बिरजू ने नीलम के चेहरे से बड़े प्यार से दोनों हाँथ हटाये तो नीलम मुस्कुरा कर अपने बाबू के चेहरे को बड़े प्यार से देखने लगी। बिरजू ने अपना मुँह जैसे ही अपनी बेटी के बाएं कंधे पर लगाया और फिर धीरे से दायीं कांख में मुँह घुसेड़ने लगा तो पहले तो नीलम समझ नही पाई फिर मुस्कुरा कर अपना हाथ उठा कर अपनी कांख खोल दी बिरजू ने नाक लगा कर अपनी सगी बेटी के मदहोश कर देने वाले पसीने को जोर से सुंघा तो नीलम भी सिसक पड़ी और अपने दूसरे हाँथ से उसने अपने बाबू के सर को सहलाते हुए अपनी कांख में दबा दिया, बिरजू ब्लॉउज के ऊपर से ही कांख को चाटने और सूंघने लगा, नीलम को गुदगुदी भी हो रही थी और मजा भी आ रहा था। वो धीरे धीरे आंखें बंद करती चली गयी और सिसकने लगी।

बिरजू अपनी सगी बेटी के पसीने की गंध को सूंघ सूंघ कर पागल होता गया, नीलम ने दूसरा हाँथ भी उठा लिया और बिरजू अपनी बेटी का इशारा समझ दूसरी कांख पर भी टूट पड़ा वो इतना मदहोश हो गया था कि उसने ब्लॉउज को पकड़कर फाड़ ही दिया और ऐसा फाड़ा की केवल कांख पर झरोखा सा बन गया काले काले हल्के हल्के बाल साफ दिखने लगे, चचरर्रर्रर्रर्रर की आवाज से ब्लॉउज फटा तो नीलम मादकता में और मदहोश हो गयी सिसकते हुए बोली- बाबू अपनी बेटी की इज़्ज़त लूटोगे क्या?

बिरजू- मन तो कर रहा है मेरी बेटी की तेरी इज्जत लूट लूं।

ये सुनकर नीलम और वासना में भर गई और बोली- हाय बाबू....सारे कपड़े फाड़ के अपनी सगी बेटी की इज़्ज़त को तार तार करोगे?

बिरजू- आह....हाँ मेरी बेटी, मन तो कर रहा है कि तेरे कपड़े फाड़ डालूं और तेरी इज़्ज़त को तार तार कर दूँ।

नीलम को अपने बाबू के मुँह से आज ये सब पहली बार सुन सुनके बहुत जोश चढ़ रहा था वासना की तरंगें पूरे बदन में दौड़ रही थी। नीलम जानबूझ के दिखाने के लिए सिसकते हुए बोलने लगी- नही बाबू, ये पाप है न, कोई पिता अपनी सगी बेटी की इज़्ज़त तार तार करता है क्या?.....आआआआआहहहह

ऐसा कहकर नीलम खुद भी सिसक गयी

बिरजू- मैं तेरी जवानी चखे बिना नही रह सकता अब मेरी बेटी, तेरी जवानी का मक्ख़न मुझे अब खाना है।

नीलम- हाय... बाबू....ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़..... पर ये गलत है न, कोई जान जाएगा तो क्या कहेगा, की बाप बेटी आपस में करते है, मैं किसी को क्या मुँह दिखाउंगी, ये महापाप है न बाबू, महापाप (नीलम ने महापाप शब्द पर जोर देकर बोला)

तभी बिरजू ने कराहते हुए लंड से एक घस्सा बूर पर साड़ी के ऊपर से ही मारा तो नीलम वासना में कराह उठी फिर बोली- बाबू......मैं आपके बच्चे की माँ बन जाउंगी न, मेरी कोख में आपका बीज आ जायेगा, आआआआहह ह....बाबू, किसी को पता चलेगा तो, की मैं आपसे गर्भवती हुई हूँ तो मेरे बाबू........बेटी के साथ ये गलत काम मत करो बाबू........बाप बेटी का मिलन गलत है न बाबू........अपनी बेटी को बक्श दो, ये महापाप मत करो बाबू, अम्मा जान जाएगी तो, अनर्थ हो जाएगा बाबू।

नीलम वासना में बोले भी जा रही थी और बेताहाशा अपने बाबू को चूमे और सहलाये भी जा रही थी, बिरजू अपनी बेटी का ऐसा कामुक खेल सुनकर बहुत उत्तेजित हो गया, वो तो जीभ से बस नीलम की दोनों कांखों को बदल बदल कर चाटे जा रहा था, नीलम की कांख अपने बाबू के थूक से बिल्कुल भीग गयी, कांख पर हल्के हल्के बाल थूक से बिल्कुल सन गए थे, नीलम वासना में आंखें बंद किये ये सब बोले और सिसके जा रही थी, और अपने हांथों से अपने बाबू के सर को सहलाये जा रही थी। जब बिरजू दायीं कांख को चाटता तब नीलम बाएं हाँथ से बिरजू के सर को सहलाती और जब वो बायीं कांख को चाटता तब वो दाएं हाँथ से सर को सहलाती।

बिरजू ने रुककर नीलम को देखा तो वो भी अपने बाबू को वसन्तामयी आँखों से देखने लगी और अपनी कही गयी बातें सोचकर मुस्कुरा दी, बिरजू बोला- अपनी सगी बेटी की इज़्ज़त तो मैं लूटकर रहूंगा, चाहे जो हो।

नीलम- हाय.... बाबू....तो लूटिए न....आपकी बेटी तो सिर्फ आपकी है।

बिरजू- पाप का मजा कुछ और ही है, किसी को कैसे पता चलेगा, तेरी अम्मा को भी कैसे पता चलेगा मेरी बेटी, तेरी कोख में मेरा बच्चा होगा तो कितना मजा आएगा।

ऐसा कहकर बिरजू ने लंड को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ने लगा तो नीलम तड़प गयी।

बिरजू नीलम को और ताबड़तोड़ चूमने लगा फिर से कांख को चाटने और चूमने लगा, कभी कभी गालों, होंठों और गर्दन पर चूमता, कान के नीचे गर्दन पर अपने होंठ रगड़ता, तो नीलम गनगना जाती और उसे बातों में रोमांच आ रहा था तो वो दुबारा सिसकते हुए बोलने लगी- हाँ बाबू, इस पाप का तो मजा ही कुछ और है, मुझे भी बहुत मजा आ रहा है, हम छुप छुप के ये पाप किया करेंगे किसी को क्या पता चलेगा आआआआआआआहहहह ........बाबू हाय...

बिरजू- हाँ मेरी बेटी हम ये पाप छुप छुप के करेंगे और इसका भरपूर आनंद लिया करेंगे।

नीलम- हाय मेरे बाबू, लंड और बूर का कोई रिश्ता नही होता न बाबू (नीलम बहुत वासना से नशे में हो चुकी थी)

बिरजू- हाँ मेरी बेटी, इन दोनों का कोई रिश्ता नही होता, ये तो बस होते ही मिलाने के लिए है, लंड और बूर एक दूसरे से मिलाने के लिए ही बने हैं

नीलम- हाहाहाहाहाहाययययययययययययय.........मेरे बाबू.......आपने तो मुझे मस्त कर दिया, कितना मजा आ रहा है गंदी बात करने में......आआआआआहहहहह.....इस गंदेपन में भी कितना मजा है।

बिरजू- बेटी

नीलम- हाँ मेरे बाबू

बिरजू- मुझे बूर दिखा न अपनी खोलके

नीलम- उठो फिर बाबू

बिरजू उसके ऊपर से उठा और पैर के पास बैठ गया नीलम ने अपनी लाल साड़ी को उठाकर सिर इतना ऊपर किया कि वो बस घुटनों तक ही रही पैर को उसने हल्का मोड़कर उठा लिया और फैला लिया अब साड़ी का एक गोल झरोखा से बन गया उस झरोखे के अंदर लालटेन की माध्यम रोशनी में अपनी सगी बेटी की मोटी मोटी मांसल केले के तने के समान सख्त जाँघे और जाँघों के जोड़ पर कसी हुई कच्छी देखकर बिरजू बौखला गया, आंखें फाड़े वो अपनी सगी बेटी की सुंदरता को देखता रह गया, काली रंग की कच्छी में कसी हुई फूली हुई बूर, आआआआआहहहहह, बिरजू एक टक अपनी बेटी की बूर को कच्छी के ऊपर से ही देखता रहा, तभी नीलम ने बड़ी अदा से सिसकते हुए अपना सीधा हाँथ बगल से लाकर अपनी कच्छी पर रखा और एक दो बार अपने बाबू को दिखाते हुए अपनी उंगली से अपनी बूर को कच्छी के ऊपर से ही सहलाया, बिरजू मदहोश हो गया।

नीलम ने सिसककर ये बोलते हुए की "देखो बाबू आपके लिए ये कितनी प्यासी है" महकती बूर के ऊपर से कच्छी को थोड़ा सा साइड करके अपनी प्यासी बूर को अपने बाबू की एक टक देखती आंखों के सामने खोल दिया, फिर उसने पैर को और अच्छे से फैलाया और कच्छी को और साइड करके पूरी बूर को अच्छे से अपने बाबू को दिखाया, यहां तक कि नीलम ने लालटेन को उठाकर अपने दाएं पैर के बिल्कुल बगल रख दिया, बिरजू तो एक अपनी सगी बेटी की दहकती महकती बूर को देखता रह गया, ऊऊऊऊऊऊफफफफ़फ़फ़फ़फ़ क्या कयामत बूर थी नीलम की, कितनी बड़ी और चौड़ी सी थी वो ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़, और उसपर वो हल्के हल्के काले काले बाल लालटेन की रोशनी में बूर साफ दिख रही थी, नीलम के पैर फैला लेने को वजह से बूर की मोटी मोटी मदहोश कर देने वाली फांकें हल्की सी खुल गयी थी, पेशाब और कामरस की भीनी भीनी खुशबू फैलने लगी, रसभरी बूर की मखमली फांकों के बीच से लिसलिसा कामरस हल्का हल्का बह रहा था, क्या बूर थी नीलम की....हाय, दोनों मोटी मोटी फाँकों के बीच गुलाब की पंखुड़ियों के समान नरम नरम दो पतली पतली पंखुड़ियां थी और उसके बीच ऊपर के तरफ मदहोश कर देने वाला भगनासा, कैसे जोश में फूला हुआ था वो, कैसे बाहर आ चुका था फूलकर, खिलकर। साइड साइड बालों की वजह से हल्का सा काला सा था और फांकें खुलने की वजह से बीच में गुलाबी गुलाबी।

नीलम मदहोशी में मुस्कुराते हुए अपने बाबू को अपनी बूर एक टक आंखे फाड़े देखते हुए देखे जा रही थी, उसने दाएं हाथ से अपनी कच्छी को पकड़कर साइड खींच रखा था और पैर दोनों अच्छे से फैला रखे थे, लाल साड़ी में गोरी गोरी जाँघों के बीच काली कच्ची के अंदर हल्के हल्के काले काले बालों से घिरी नीलम की बूर ने उसके बाबू को सम्मोहित सा कर दिया, उसपर नीलम ने एक काम और किया कि अपने दाएं हाथ को अपनी बूर पर ले गयी और उंगलियों को पहले तो फांकों पर दो तीन बार रगड़ा फिर फांकों की दरार में कराहते हुए रगड़ा और फिर एकदम से दोनों फांकों को दो उंगलियों से फैला दिया, फांक फैलने से बीच की गुलाबी पंखुड़ी भी खुल गयी और छोटा सा बूर का छेद लाल लाल दिखने लगा, बिरजू बौखला गया, नीलम सिसकते हुए ये सब करते हुए अपने बाबू को कामांध होकर निहारे जा रही थी।

जैसे ही बिरजू पागलों की तरह फैली हुई बूर पर टूटा नीलम ने एकदम से बूर को हाँथ से ढक लिया बिरजू के होंठ एकदम से उसके हाँथ पर जाकर पड़े, बिरजू ने बदहवासी में एकदम से नीलम की ओर देखा तो वो वासना में अपने बाबू की ओर ही देख रही थी वो अत्यधिक वासना में भरकर बोली- बाबू, एक बार पहले हल्का सा बोर दीजिए मेरी बूर में, बहुत मन कर रहा है मेरा, रहा नही जा रहा अब।

नीलम ने आग्रह किया

बिरजू- क्या मेरी रानी बेटी, क्या बोर दूँ हल्का सा

नीलम ने सिसकते हुए अपने बाबू से कहा- अपना लंड, अपना लंड बाबू, मोटा सा लंड, एक बार अपनी सगी बेटी की पनियायी बूर में बोर दीजिए, बस एक बार हल्का सा डुबा दीजिए इसमें बाबू, फिर खूब चाटना बाद में, बहुत मन कर रहा है मेरा, थोड़ा सा बोरिये न मेरी बूर में अपना लंड, लंड के आगे का चिकना चिकना सा भाग खोलकर बूर पर रगडिये न बाबू. .......हाय।

नीलम ने इस अदा से निवेदन किया कि बिरजू अपनी बेटी की अदा पर कायल ही हो गया।

बिरजू- आआआआआहहहहहह......मेरी बेटी, तू अपने आप ही लंड खोलकर बूर में बोर ले न मेरी रानी, डुबो ले जितना तेरा मन करे, ये तो तेरी ही अमानत है मेरी बेटी।

इतना कहकर बिरजू अपने दोनों हाँथ नीलम की कमर के अगल बगल टिकाकर नीलम के ऊपर झुक सा गया और अपनी बेटी की आँखों में देखने लगा दोनों मुस्कुरा दिए और कई बार एक दूसरे के होंठों को चूमा।

नीलम ने अपने एक हाँथ से कच्छी को साइड खींचा हुआ था और दूसरे हाँथ से उसने अपने बाबू के लोहे के समान हो चुके सख्त लंड को धोती के ऊपर से पकड़ लिया, 8 इंच लंबे और 3 इंच मोटे विशाल लंड को पकड़कर नीलम गनगना गयी, वासना की मस्ती उसके नसों में दौड़ गयी, कितना बड़ा लन्ड था बिरजू का, उसके बाबू का, उसपर वो उभरी हुई नसें, नीलम की मस्ती में आआआआहहहह निकल गयी।


नीलम- ओह बाबू कितना सख्त हो रखा है आपका लंड, कितना मोटा है ये.......हाय........ कितना लंबा है.......ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़


बिरजू- हाँ मेरी बेटी ये सिर्फ और सिर्फ अब तेरा है।


नीलम ने कुछ देर पूरे लन्ड को आँहें भरते हुए सहलाया फिर दूसरे हाँथ से कच्छी को छोड़कर हाँथ को पीछे कमर पर ले गयी और धोती को कमर पर से ढीला किया, बिरजू ने अपनी बेटी की आंखों में देखते हुए अपनी धोती को खोलने में मदद की, धोती काफी हद तक ढीली हो गयी थी बिरजू ने एक हाँथ से धोती खोलकर बगल रख दी, नीचे से वो पूरा नंगा हो गया ऊपर बनियान पहनी हुई थी, अपनी बेटी के ऊपर वो दुबारा झुक गया और उसकी आँखों में देखते हुए उसे चूम लिया, नीलम सिसकते हुए अपने बाबू के निचले नग्न शरीर पर हाँथ फेरने लगी, उसने जाँघों को छूते हुए बिरजू के लन्ड के ऊपर के घने बालों में हाँथ फेरा और फिर लंड को पकड़कर कराहते हुए सहलाने लगी, नीलम
लंड को मुट्ठी में पकड़कर पूरा पूरा सहलाने लगी, सिसकते हुए सहलाते सहलाते वो नीचे के दोनों बड़े बड़े आंड को भी हथेली में भरकर बड़े प्यार से दुलारने लगी और सहलाने लगी,
अपनी बेटी की नरम मुलायम हांथों की छुअन से बिरजू की नशे में आंखें बंद हो गयी।


नीलम ने सिसकते हुए अपने एक हाँथ से अपनी कच्छी को दुबारा साइड किया और दूसरे हाँथ से लंड को सहलाते हुए बड़े प्यार से उसकी आगे की चमड़ी को पीछे की तरफ खींचकर खोला, दो बार में उसने लन्ड की चमड़ी को उतारा, खुद ही तेजी से ऐसा करते हुए जोश में सिसक पड़ी, क्योंकि एक सगी बेटी के लिए अपने ही सगे पिता के लंड की चमड़ी खोलना बहुत ही वासना भरा होता है


पहली बार में तो उसने चमड़ी को सिसकते हुए खाली फूले हुए सुपाड़े तक ही उतारा और चिकने सुपाड़े पर बड़े प्यार से उंगलिया फेरते हुए कराहने लगी मानो 100 बोतलों का नशा चढ़ गया हो, दोनों बाप बेटी एक दूसरे की आंखों में नशे में देख रहे थे, बिरजू नीलम की कमर के दोनों तरफ अपना हाथ टिकाए उसके ऊपर झुका हुआ था और नीलम अपने दोनों पैर फैलाये साड़ी को कमर तक उठाये एक हाथ से अपनी कच्ची को साइड खींचें हुए, दूसरे हाँथ से अपने बाबू का लंड सहलाते हुए उसकी आगे की चमड़ी को पीछे को खींचकर उतार रही थी।


नीलम के मुलायम हाँथ अपने चिकने संवेदनशील सुपाड़े पर लगते ही बिरजू आँहें भरने लगा, अपने बाबू को मस्त होते देख नीलम और प्यार से उनके सुपाड़े को सहलाने और दबाने लगी, अपने अंगूठे से नीलम ने अपने बाबू के लंड के पेशाब के छेद को बाद प्यार से रगड़ा और सहलाया, उसकी भी मस्ती में बार बार आंखें बंद हो जा रही थी, बार बार सिरह जा रही थी वो, बदन उसका गनगना जा रहा था मस्ती में, फिर उसने अपने बाबू के लंड की चमड़ी को खींचकर पूरा पीछे कर दिया और अच्छे से अपने बाबू के पूरे लंड को अपने मुलायम हांथों से सहलाने लगी।


फिर काफी देर सहलाने के बाद नीलम ने एक हाँथ से अपनी कच्छी को साइड किया और अपने बाबू के लंड को अपनी बूर की रसीली फांकों के बीच रख दिया, जैसे ही नीलम ने बूर पे लंड रखा दोनों बाप बेटी मस्ती में जोर से सीत्कार उठे-


नीलम-आआआआआआआआआआआहहहहहहहहहह...........ईईईईईईईशशशशशशशशश..........हाहाहाहाहाहाहाहाहायययययय........बाबू....…...आआआआआआहहहहह


बिरजू- आआआआआआहहहहह.......मेरी बेटी.....कितनी नरम है तेरी बूबूबूबूररररर..........ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़........मजा आ गया।


आज जीवन में पहली बार बिरजू के लंड ने अपनी सगी बेटी के बूर को छुआ था, इतना असीम आनंद मिलेगा कभी सपने में भी नही सोचा था, नीलम कराहते हुए अपने बाबू के लंड का सुपाड़ा अपनी दहकती बूर की फांक में रगड़ती जा रही थी, दोनों के नितम्ब हल्का हल्का मस्ती में थिरकने लगे, बिरजू हल्का हल्का लंड को बूर की फांक में खुद रगड़ने लगा, पूरे बदन में चिंगारियां सी दौड़ने लगी, बूर से निकलता लिसलिसा रस लंड के आगे के चिकने भाग को अच्छे से भिगोने लगा, नीलम ने एक हाँथ से कच्छी को साइड खींचा हुआ था पर अब उसने उसको छोड़कर वो हाँथ अपने बाबू के हल्के हल्के धक्का लगाते चूतड़ पर रख कर कराहते हुए सहलाने लगी, बीच बीच में हाँथ से उनके चूतड़ को अपनी बूर की तरफ मचलते हुए दबा देती, दहाड़ते लंड का मोटा सा सुपाड़ा मखमली बूर की फाँकों में ऊपर से नीचे तक रगड़ खाने लगा, बिरजू को इतना मजा आया कि वह धीरे धीरे अपनी सगी बेटी के ऊपर लेटता चला गया, नीलम अपने दोनों हांथों को वहां से हटा कर बड़े प्यार से अपने बाबू को अपनी बाहों में भरकर मस्ती में दुलारने लगी, अत्यंत नशे में दोनों की आंखें बंद थी।


बिरजू अपनी बेटी के बाहों में समाए, उसपर लेटे हुए अपनी आंखें बंद किये अपने लंड को बूर की फाँकों में रगड़ते हुए नरम नरम फांकों का आनंद लेने लगा। नीलम हल्का हल्का मस्ती में आंखें बंद किये आआआहहहह ह......आआआहहहहह करने लगी।


नीलम ने बड़ी मुश्किल से अपनी नशीली आंखें खोली और लालटेन को बुझा दिया, गुप्प अंधेरा हो गया, नीलम का सारा ध्यान सिर्फ अपने बाबू के मोटे दहकते लन्ड पर था जो कि लगातार धीरे धीरे उसकी सनसनाती बूर की रसीली फांकों में नीचे से ऊपर तक बार बार लगातार रगड़ रहा था, वो मुलायम चिकना सुपाड़ा बार बार जब नीलम की बूर के फांकों के बीच भागनाशे से टकराता तो नीलम का बदन जोर से झनझना जाता, पूरे बदन में सनसनाहट होने लगती।


नीलम ने कराहते हुए अपने दोनों पैर मोड़कर अच्छे से फैला रखे थे, बिरजू एक लय में अपने मोटे लंड को अपनी सगी बेटी की बूर की फांकों में रगड़ रहा था, नीलम भी मादक सिसकारियां लेते हुए धीरे धीरे अपनी गांड को अपने बाबू के लंड से ताल से ताल मिला के उठाने लगी और अपनी बूर को नीचे से उठा उठा के लंड से रगड़ने लगी।


नीलम की कच्छी का किनारा बार बार बिरजू के लंड से रगड़ रहा था तो बिरजू ने धीरे से नीलम के कान में बोला- बेटी


नीलम- हाँ मेरे बाबू


बिरजू- अपनी कच्छी पूरा उतार न, तब अच्छे से मजा आएगा।


नीलम- हाँ बाबू उठो जरा।


बिरजू नीलम के ऊपर से उठ जाता है उसका लंड भयंकर जोश में झटके लिए जा रहा, 8 इंच लंबा लंड पूरा खुला हुआ था, लोहे के समान सख्त और खड़ा था, नीलम ने कराहते हुए अपनी छोटी सी कच्छी निकाल फेंकी और जल्दी से अपनी साड़ी भी खोल कर अंधेरे में बगल में रख दी, अब नीलम के बदन पर सिर्फ ब्लॉउज रह गया था नीचे से वो बिल्कुल नंगी हो गयी थी।


अपनी सगी बेटी को इस तरह अपने बाप के सामने आज पूरी नंगी होते देख बिरजू वासना में कराह उठा, अंधेरा तो जरूर था पर फिर भी आंखें तो अब अभ्यस्त हो ही गयी थी काफी हद तक दिख रहा था, बिरजू अपनी सगी बेटी का पुर्णतया नग्न निचला हिस्सा देखकर बौरा गया, नीलम ने कच्छी और साड़ी उतारकर फिर से अपनी दोनों जांघें अच्छे से फैला लो और अपनी बूर को अंधेरे में अपने बाबू को परोस दिया, बिरजू एक पल तो अपनी बेटी की मादक सुंदरता को देखता रह गया, फिर एकएक कराहते हुए उसने अपनी सगी शादीशुदा बेटी के पैरों को एड़ी और तलवों से चाटना शुरू किया, नीलम तेजी से सिसक उठी,
दोनों पैरों की एड़ी, तलवों को अच्छे से चूमता चाटता वह आगे बढ़ा, घुटनों को चूमता हुआ वह जांघ तक पहुँचा, दोनों जाँघों को उसने काफी देर तक अच्छे से खाली चूमा ही नही बल्कि जीभ निकाल के किसी मलाई की तरह अच्छे से चाटा, नीलम वासना से गनगना गयी, बिरजू अपनी बेटी की अंदरूनी जांघों को अच्छे से चूम और चाट रहा था, नीलम रह रह कर झनझना जा रही थी।


जांघों को चाटते हुए वह महकती बूर की तरफ बढ़ा, बूर लगातार लिसलिसा काम रस बहा रही थी, बिरजू ने एकाएक बूर को मुँह में भर लिया और एक जोरदार रसीला चुम्बन अपनी सगी बेटी की बूर पर लिया, नीलम जोर से सिसकारते हुए चिंहुककर उछल सी पड़ी, बदन उसका पूरी तरह गनगना गया, कराहते हुए नीलम ने खुद ही एक हाँथ से अपनी महकती पनियायी बूर को चीर दिया और बिरजू मस्ती में आंखें बंद किये अपनी बेटी नीलम की बूर को लपा लप्प चाटने लगा, नीलम हाय हाय करने लगी, नीलम कभी अपनी बूर की फांकों को फैलाती तो कभी अपने बाबू के गाल को सहलाती, कभी जोश में झनझनाते हुए अपने बाबू की पीठ पर कस के नाखून गड़ा देती, नीलम के ऐसा करने से बिरजू को और भी जोश चढ़ जा रहा था और वो और तेज तेज बूर को चाटे जा रहा था।


नीलम जब अपनी उंगली से बूर की फांक को फैलाती तो बिरजू तेज तेज बूर की लाल लाल फांक में जीभ घुमा घुमा के चाटता, कभी फूले हुए भागनाशे को जीभ से छेड़ता कभी मुँह में भरकर चूसता, फिर कभी बेटी की बूर के छेद में जीभ डालता और जीभ को अंदर डाल के हल्का हल्का गोल गोल घुमाता।


नीलम वासना में पगला सी गयी, जोर जोर से सिसकने लगी, कराहने लगी, अपने बाबू के सर को कस कस के अपनी रसभरी बूर पर दबाने लगी, अपनी गांड को उछाल उछाल के अपनी बूर चटवाने लगी,


ओओओओहहहह..............बाबू...............हाय मेरी बूर...............कितना अच्छा लग रहा है बाबू................हाय आपकी जीभ................ऊऊफ्फफ................ चाटो ऐसे ही बाबू...................मेरी बरसों की प्यास बुझा दो....................आआआआआआहहहहह................मेरे बाबू..........मेरे राजा.............मेरी बूर की प्यास सिर्फ आपसे बुझेगी.......................सर्फ आपसे.....................ऐसे ही बूर को खोल खोल के चाटो मेरे बाबू........................अपनी बेटी की बूर को चाट चाट के मुझे मस्त कर दो...................ऊऊऊऊईईईईईई अम्मा..................... कितना मजा आ रहा है..............ऊऊऊऊऊफ़्फ़फ़फ़


काफी देर तक यही सब चलता रहा और जब नीलम से नही रहा गया तो उसने अपने बाबू को अपने ऊपर खींच लिया, बिरजू अपनी बेटी के ऊपर चढ़ गया, लन्ड एक बार फिर जाँघों के आस पास टकराता हुआ बूर पर आके लगा, लंड पहले से ही खुला हुआ था नीलम ने कराहते हुए लंड को पकड़ लिया और मस्ती में आंखें बंद कर अपनी बूर की फांकों को दुबारा फैला कर उसपे रगड़ने लगी।


नीलम ने जोर से सिसकते हुए अपने बाबू को अपनी बाहों में भर लिया और बिरजू अपने लंड को अपनी बेटी की बूर की फांक में तेज तेज रगड़ने लगा, जब झटके से लंड बूर की छेद पर भिड़ जाता और अंदर घुसने की कोशिश करता तो नीलम दर्द से चिहुँक जाती पर जल्द ही लन्ड उछलकर ऊपर आ जाता और भग्नासे से टकराता तब भी नीलम जोर से सिस्कार उठती।


नीलम ने अपने बाबू से सिसकते हुए बड़ी मादक अंदाज़ में कहा- बाबू...अच्छा लग रहा है सगी बेटी की बूर का स्वाद।


बिरजू- आह बेटी मत पूछ कितना मजा आ रहा है, कितनी नरम और रसीली बूर है मेरी बेटी की......हाय


नीलम अपने बाबू के मुँह से ये सुनकर शरमा ही गयी।


नीलम- बाबू


बिरजू- हाँ मेरी बेटी


नीलम- अब बोरिये न लंड अपना मेरी बूर में, रहा नही जाता अब, डुबाइये न अपना लंड मेरी बूर के रसीले छेद में।


बिरजू अपनी बेटी के मुँह से इतना कामुक आग्रह सुनकर वासना से पगला गया और उसने अपनी बेटी के दोनों पैरों को उठाकर फैलाकर अच्छे से अपनी कमर पर लपेट लिया, नीलम भी अच्छे से पैर फैलाकर लेट गयी और बिरजू ने अपने लंड का मोटा सुपाड़ा अपनी सगी शादीशुदा बेटी की रस बहाती महकती प्यासी बूर की छेद पर लगाया, नीलम की बूर बिल्कुल संकरी नही थी क्योंकि अक्सर वो अपने पति से चुदती रहती थी पर फिर भी पिछले दो महीने से वो चुदी नही थी और ऊपर से उसके बाबू का लंड उसके पति के लंड से डेढ़ गुना बड़ा और मोटा था। नीलम की बूर रस छोड़ छोड़ के बहुत रसीली हो चुकी थी, चिकनाहट भरपूर थी, बिरजू ने अपने विशाल लंड का दबाव अपनी बेटी की बूर की छेद में लगाना शुरू किया और अपने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर अपनी बेटी की गांड को पकड़कर ऊपर को उठा लिया जिससे नीलम की बूर और ऊपर को उठ गई। नीलम से बर्दाश्त नही हो रहा था तो उसने कराहते हुए बोला- बाबू, डालिये न अपना मोटा लंड अपनी बेटी की बुरिया में, अब मत तड़पाओ बाबू।


बिरजू ने दहाड़ते हुए एक दो बार लंड को बूर के छेद पर फिरसे रगड़ा और एक हल्का सा धक्का मारा तो लंड फिसलकर ऊपर को चला गया, नीलम तेजी से वासना में चिहुँक उठी, हाहाहाहाहाहाहाहाहायययय .......अम्मा.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईईईई,


बूर रस बहा बहा कर बहुत चिकनी हो गयी थी और उसका छेद बिरजू के लंड के सुपाड़े के हिसाब से काफी छोटा था, जैसे ही लंड फिसलकर ऊपर गया और तने हुए भागनाशे से टकराया नीलम तड़प कर मचल गयी आआआआआहहहह.......उई अम्मा, बिरजू ने जल्दी से बगल में रखा तकिया उठाया और नीलम की चौड़ी गांड के नीचे लगाने लगा, नीलम ने भी झट गांड को उठाकर तकिया लगाने में मदद की, तकिया लगने से अब नीलम की बूर खुलकर ऊपर को उठ गई थी, क्या रिस रही थी नीलम की बूर, तड़प तड़प के लंड मांग रही थी बस, नीलम फिर बोली- बाबू अब डालिये न, अब चला जायेगा, नही फिसलेगा, डालिये न बाबू, चोद दीजिए मुझे अब।


बिरजू ने जल्दी से लंड को दुबारा दहकती बूर के खुल चुके छेद पर लगाया और एक तेज धक्का दहाड़ते हुए मार, मोटा सा लंड कमसिन सी बूर के छेद को चीरता हुआ लगभग आधा मखमली बूर में समा गया, नीलम की जोर से चीख निकल गयी,


हाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहाययययययय............बाबू..........आआआआहहहहहह............धीरे से बाबू...............फट गई मेरी बूर.............ओओओओओहहहहह बाबू............कितना मोटा है आपका.........बहुत दर्द हो रहा है बाबू...........ऊऊऊईईईईईईई.......अम्मा...............बस करो बाबू...........रुको जरा...............आआआआहहहहहह......कितना अंदर तक चला गया है एक ही बार में............आआआआहहहहहह


बिरजू की भी इतनी नरम कमसिन जवान बूर पा के मस्ती में आह निकल गयी,


बिरजू ने झट उसके मुँह पर हाथ रख दिया, नीलम का पूरा बदन ही ऐंठ गया, चार सालों से वो अपने पति से चुदवा रही थी लेकिन बूर उसकी आज जाके फटी थी, आज उसे पता चला था कि असली लंड क्या होता है, उसे अब असली मर्द मिला था और वो थे उसके अपने सगे पिता।


बिरजू ने झट से नीलम के मुँह को दबा लिया उसकी आवाज अंदर ही गूंजकर रह गयी, एक हांथ से बिरजू ने अंधेरे में ही नीलम का ब्लॉउज खोल डाला और ब्रा का बटन पीछे से खोलने लगा तो उससे खुल नही रहा था, नीलम ने दर्द से कराहते हुए ब्रा खोलकार अपने बाबू की मदद की और ब्लॉउज और ब्रा को निकालकर बगल रख दिया, बिरजू अपनी बेटी की इस वफाई पर कायल हो गया एक तो उसको काफी दर्द भी हो रहा था फिर भी वो अपने बाबू को अपना प्यार दे रही थी, ब्लॉउज और ब्रा खोलकर उसने खुद ही उतार दिया, इतना प्यार सिर्फ एक बेटी ही अपने पिता को दे सकती है, बिरजू ने बड़े प्यार से अपनी बेटी को चूम लिया।


नीलम की बड़ी बड़ी मादक तनी हुई विशाल चूचीयाँ उछलकर बाहर आ गयी, उन्हें देखकर बिरजू और पागल हो गया, निप्पल तो कब से फूलकर खड़े थे नीलम की चूची के, दोनों चूचीयों को देखकर बिरजू उनपर टूट पड़ा और मुँह में भर भरकर पीने लगा, दोनों हांथों से कस कस के दबाने लगा, कभी धीरे धीरे सहलाता कभी तेज तेज सहलाता, लगातार दोनों चूचीयों को पिये भी जा रहा था, निप्पल को बड़े प्यार से चूसे जा रहा था, लगतार अपने बाबू द्वारा चूची सहलाने, मीजने और चूमने, दबाने से नीलम का दर्द कम होने लगा और वो हल्का हल्का फिर सिसकने लगी, आह....सी......आह.... सी......ओह बाबू....ऐसे ही.....और चूसो......दबाओ इन्हें जोर से.........हाँ मेरे बाबू......पियो मेरी चूची को.........आह, बोलते हुए नीलम सिसकने लगी, उसका दर्द अब मस्ती में बदलने लगा, अपनी बेटी की मखमली रिसती बूर में अपना आधा लंड घुसाए बिरजू बदहवासी में उसे चूमे चाटे जा रहा था।


बिरजू ने नीलम के मुँह पर से हाँथ हटा लिया पर अभी भी वो दर्द से हल्का सा कराह दे रही थी, बिरजू ने उसे बाहों में भर लिया और नीलम भी अपने बाबू से मस्ती में कराहते हुए लिपट गयी, बिरजू नीलम को बेताहाशा चूमने लगा, नीलम की दर्द भरी कराहटें अब पूरी तरह मीठी सिसकियों में बदल रही थी, बिरजू अपनी बेटी के होंठों को अपने होंठों में भरकर चूसने लगा, नीलम ने भी मस्ती में अपने बाबू के चेहरे को बड़े प्यार से अपने हांथों में लिया और आंखें बंद कर उनका साथ देने लगी, बिरजू ने हल्का सा अपनी गांड को गोल गोल घुमाया तो लन्ड बूर की रस भरी दीवारों से घिसने लगा, नीलम को ये बहुत अच्छा लगा और वो अपने बाबू का मोटा सा मूसल जैसा लंड अपनी बूर में अच्छे से महसूस करने लगी, कितना अच्छा लग रहा था अब, नीलम की तो नशे में आंखें बंद हो गयी।


नीलम ने खुद ही अब नशे में अपना हाँथ अपने बाबू की गांड पर ले जाकर उसे हल्का सा आगे की तरफ दबा कर और लंड डालने का इशारा किया, बिरजू अपनी बेटी के इस आमंत्रण पर गदगद हो गया और उसे चूमते हुए एक जोरदार धक्का गच्च से मारा, इस बार बिरजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड पूरा का पूरा नीलम की रस बहाती बूर में अत्यंत गहराई तक समा गया, नीलम की दर्द के मारे फिर से चीख निकल गयी पर इस बार उसने खुद ही अपना मुँह अपने बाबु के कंधों में लगाते हुए दर्द के मारे उनके कंधों पर दांत गड़ा दिए और उसके नाखून भी बिरजू की पीठ पर गड़ गए, बिरजू वासना में कराह उठा, एक बाप का लंड सगी बेटी की बूर की अत्यंत गहराई में उतर चुका था, पूरी बूर किसी इलास्टिक की तरह फैलकर लंड को जकड़े हुए थी।


बिरजू का लंड अपनी सगी बेटी की दहकती बूर के छेद की मखमली दीवारों को चीरकर उसे खोलता हुआ इतनी गहराई तक समा चुका था कि नीलम बहुत देर तक अपनी उखड़ती सांसों को संभालती रही, अपने बाबू के कंधों में मुँह गड़ाए काफी देर सिसकती रही और बीच बीच में गनगना कर कस के अपने बाबू से लिपट जाती और उनकी पीठ को दबोच कर दर्द से कराह जाती, बिरजू अपनी बेटी को बड़े प्यार से बार बार चूमने लगा, उसके पूरे बदन को वो बड़े प्यार से सहलाने लगा, कमर, जाँघे, पैर, बगलें, कंधे, गाल, गर्दन, और मस्त मस्त दोनों सख्त चूचीयाँ वो बार बार लगातार सहलाये जा रहा था साथ ही साथ लगातार उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसे जा रहा था।


नीलम को अपने बाबू का लंड अपनी बूर में इतनी गहराई तक महसूस हुआ कि वो दर्द के मारे एक पल के लिए दूसरी दुनियाँ में ही चली गयी, अभी तक जो लंड नीलम की बूर में जाता था वो बस इसका आधा ही जाता था और नीलम को लगता था कि बूर में बस इतनी ही जगह है पर आज उसे पता चल गया कि उसके बाबू के लंड ने उसकी मखमली बूर की अनछुई रसभरी गहराई को भेदकर, वहां तक अपना अधिकार स्थापित कर दिया है, उसकी बूर की अत्यंत गहराई में छुपे रसीले अनछुए रस को आज उसके बाबू का लंड वहाँ तक पहुंचकर बड़े अधिकार से उसपर विजय पताका फहरा कर बड़े प्यार से उसे अपना इनाम समझ कर पी रहा है और नीलम की मखमली बूर की रसभरी अंदरूनी दीवारें इस छोर से लेकर उस छोर तक पूरे 8 इंच लंबे 3 इंच मोटे लंड से पूरी तरह कसकर लिपटी हुई उस मेहमान का बड़े ही दुलार से चूम चूम के बूर के अंदर आने का जमकर स्वागत कर रही थी, पहले जो लंड आता था उससे खून का रिश्ता नही था पर आज जो लंड बूर में आया है उससे उनका खून का रिश्ता है, जैसे कोई राजकुमार कई वर्षों बाद अपने राजमहल में प्रवेश कर गया हो और हर तरफ खुशियां ही खुशियां, उत्साह ही उत्साह हो, दासियाँ उसपर फूल बरसा रही हो, क्यूंकि इतना आनंद तो खून के रिश्ते से ही आता है, ठीक उसी तरह बेटी की बूर की मखमली रसभरी अंदरूनी दीवारें उसके अंदर पूरी तरह घुसे हुए बाप के लंड से लिपटी उसे चूम चूम के उसका स्वागत कर रही थीं मानो कह रही हों कि अब तक कहाँ थे आप, कब से तरस गयीं थी हम आपको छूने और चूमने के लिए।


नीलम को ये सब महसूस कर दर्द के साथ साथ एक तरह से असीम आनंद भी होने लगा, बिरजू अपनी बेटी को उसकी बूर में अपना पूरा लंड ठूसे लगातार चूमे और सहलाये जा रहा था, वह नीलम के होंठों को अपने होंठों में भरकर पीने लगा, नीलम को अब फिर मजा आने लगा, दर्द सिसकियों में बदलना शुरू हो गया, लिपट गयी वो खुद ही अपने बाबू से अच्छी तरह और ताबड़तोड़ चूमने लगी बिरजू को, बिरजू समझ गया कि अब उसकी सगी बेटी तैयार है बूर चुदवाने के लिए, नीलम की बूर से लगातार रस बह रहा था।


काफी देर तक लंड बूर में पड़े रहने से बूर उसको अच्छे से लीलकर अभ्यस्त हो गयी थी।
बिरजू ने अपनी बेटी के पैरों को अपने कमर पर अच्छे से लपेटते हुए धीरे से लंड को थोड़ा बाहर खींचा और गच्च से दुबारा बूर की गहराई में उतार दिया, नीलम मीठे मीठे दर्द से सिरह उठी, बिरजू बार बार ऐसा ही करने लगा वह थोड़ा सा लंड को निकलता और दुबारा बूर में पेल देता, नीलम को ये सब बहुत अच्छा लग रहा था, बिरजू अपनी गांड को गोल गोल घुमा कर लंड को बूर की गहराई में अच्छे से रगड़ता तो नीलम मस्ती में कराह जाती, जोर जोर से उसकी सीत्कार निकलने लगी।


बिरजू अब पूरी तरह नीलम से लिपटते हुए धीरे धीरे लंड को बूर से बाहर निकाल निकाल के गच्च गच्च धक्के मारने लगा, उसने अपनी बेटी के होंठ अपने होंठों में भर लिए और चूसते हुए थोड़े तेज तेज अपनी बेटी को चोदने लगा।


नीलम का दर्द धीरे धीरे जाता गया और चुदाई के मीठे मीठे सुख ने उसकी जगह ले ली। नीलम को ऐसा लग रहा था कि आज उसकी बूर की बरसों की भूख मिट रही है, इतना आनंद आजतक उसे कभी नही आया था, मोटे से लंड की रगड़ बूर की गहराई तक हो रही थी, बिरजू का लंड अपनी ही सगी बेटी की बच्चेदानी के मुँह पर जाकर ठोकर मारने लगा जिससे नीलम का बदन बार बार वासना में थरथरा जा रहा था, एक असीम गहरे सुख में नीलम का बदन गनगना जा रहा था।


नीलम- आआआआआआहहहहह.......हाय बाबू.....चोदो मुझे........चोदो अपनी बेटी को.........कितना मजा आ रहा है, कितना प्यारा है आपका लंड........कितना मोटा और लम्बा है मेरे बाबू का लंड......... हाय बाबू.....ऐसे ही चोदते रहो अपनी सगी बेटी को.......हाय


बिरजु अब अपनी बेटी नीलम की रसभरी बूर में हचक हचक के थोड़ा और तेज तेज अपना मोटा लन्ड पेलने लगा, बूर बिल्कुल पनिया गयी थी, बहुत रसीली हो चुकी थी, लंड अब बहुत आसानी से बूर के अंदर बाहर होने लगा था, बिरजू ने अब और अच्छी पोजीशन बनाई और अपनी बेटी की चूचीयों को मसलते हुए उन्हें पीते हुए, निप्पल को मुँह में भर भरकर चूसते चाटते हुए कस कस के बूर में पूरा पूरा लंड हचक हचक कर पेलने लगा, बीच में बिरजू रुकता और अपनी गांड को गोल गोल घुमा कर अपने मोटे लंड को अपने बेटी की बूर की गहराई में किसी फिरकी की तरह घूमने की कोशिश करता जिससे लंड बूर की गहराई में अच्छे से उथल पुथल मचाता और रगड़ खाता, इससे नीलम मस्ती में हाय हाय करती हुई सीत्कार उठती।


दोनों की मादक सिसकारियां थोड़ी तेज तेज गूंजने लगी, नीलम लाख कोशिश करती की तेज सिसकी न निलके पर क्या करे मजा ही इतना असीम आ रहा था कि न चाहते हुए भी तेज सिसकियां निकल ही जा रही थी, बूर इतनी रसीली हो चुकी थी की बूर चोदने की फच्च फच्च आवाज़ आने लगी, एक लय में हो रही इस चुदाई की आवाज से दोनों बाप बेटी और मस्त होने लगे, नीलम तो अब मस्ती में नीचे से अपनी चौड़ी गांड उठा उठा के चुदाई में अपने बाबू का साथ देने लगी, 8 इंच लंबे लंड का रसीली प्यासी बूर में लगातार आवागमन नीलम को मस्ती के सागर में न जाने कहाँ बहा ले गया।


बिरजू अब नीलम को पूरी ताकत से हुमच हुमच कर जोर जोर चोदने लगा, पूरी पलंग उनकी चुदाई से चरमराने लगी, पलंग से हल्की हल्की चर्र चर्र की आवाज दोनों बाप बेटी की सिसकियों के साथ गूंजने लगी, साथ में चुदाई की फच्च फच्च आवाज भी आने लगी थी, माहौल बहुत गर्म हो चुका था, किसी को अब होश नही था, नीलम का पूरा बदन उसके बाबू के जोरदार धक्कों से हिल रहा था, बिरजू अपनी सगी बेटी पर चढ़ा हुआ उसे घचा घच्च लंबे लंबे धक्के लगाते हुए चोदे जा रहा था। बूर बिल्कुल खुल गयी थी अब, लंड एक बार पूरा बाहर आता और दहाड़ता हुआ बूर की गहराई में उतर जाता, हर बार तेज तेज धक्कों के साथ नीचे से अपनी गांड को उछाल उछाल के चुदाई में ताल से ताल मिलाते हुए नीलम सीत्कार उठती थी।


आह...........बाबू............हाय ऐसे ही चोदो मुझे............ऐसे ही चोदो अपनी बेटी को....
...........अपनी सगी बेटी को...............ऊऊऊऊउफ़्फ़फ़फ़................. ऊऊऊऊईईईईईई..............अम्मा.............फाड़ डालो बूर मेरी बाबू..............अच्छे से फाड़ो अपने लंड से मेरी बूर को बाबू...................आआआआआहहहहहहहह..........ये सिर्फ आपके मोटे लंड से ही फटेगी बाबू..........सिर्फ आपके लंड से............हाय......... चोदो मेरे बाबू और तेज तेज चोदो अपनी बेटी को..........हाय दैय्या........कितना मजा आ रहा है।


बिरजू भी मस्ती में करीब 20-25 मिनट तक लगातार नीलम की बूर में हचक हचक के लन्ड पेल पेल के चोदता रहा, नीलम और बिरजू के तन बदन में एक जोरदार सनसनाहट होने लगी, नीलम की बूर की गहराई में मानो चींटियां सी रेंगने लगी, लगातार अपने बाबू के जोरदार धक्कों से उसकी बूर में सनसनी सी होने लगी और एकाएक उसका बदन ऐंठता चला गया, गनगना कर वो चीखती हुई अपने नितम्ब को उठा कर अपने बाबू से लिपटकर झड़ने लगी,


आआआआआहहहहह...........बाबू मैं गयी...........आपकी बेटी झड़ रही है बाबू.............ओओओओहहहह ह........हाय....... मैं गयी बाबू........और तेज तेज चोदो बाबू..........कस कस के पेलो मेरी बूर........ऊऊऊऊईईईईई.......बाबू.........हाय मेरी बूर...…..….कितना अच्छा है आपका लंड.........आआआआआहहहहह


बिरजू का लंड तड़बतोड़ नीलम की बूर चोदे जा रहा था, नीलम सीत्कारते हुए जोर जोर हाय हाय करते हुए अपने बाबू से लिपटी झड़ने लगी, बिरजु को अपनी बेटी की बूर के अंदर हो रही हलचल साफ महसूस होने लगी, कैसे नीलम की बूर की अंदरूनी दीवारें बार बार सिकुड़ और फैल रही थी, काफी देर तक नीलम बदहवास सी सीत्कारते हुए अपने बाबू से लिपटी झड़ती रही।


बिरजु तेज तेज धक्के लगते हुए नीलम की बूर चोदे जा रहा था, वह बड़े प्यार से चोदते हुए अपनी बेटी को दुलारने लगा, इतना मजा आजतक जीवन में नीलम को कभी नही आया था, चरमसुख के असीम आनंद में वो खो गई, अब भी उसके बाबू का लंड तेज तेज उसकी बूर को चोदे जा रहा था, कभी कभी वो बीच बीच में तेजी से सिस्कार उठती, बूर झड़ने के बाद बहुत ही चिकनी हो गयी थी, बिरजू का लंड अपनी बेटी के रस से पूरा सन गया था, नीलम का बदन अब ढीला पड़ गया वो बस आंखें बंद किये हल्का हल्का सिसकते हुए चरमसुख के आनंद में डूबी हुई थी कि तभी बिरजू भी जोर से सिसकारते हुए एक तेज जबरदस्त धक्का अपनी सगी बेटी की बूर में मारते हुए झड़ने लगा, धक्का इतना तेज था कि नीलम जोर से चिहुँक पड़ी आह........ बाबू......... हाय
एक तेज मोटे गाढ़े वीर्य की पिचकारी उसके लंड से निकलकर नीलम की बूर की गहराई में जाकर लगी तो नीलम उस गरम गरम लावे को अपनी बूर की गहराई में महसूस कर गनगना गयी और तेजी से मचलकर सिसकारने लगी बड़े प्यार से उसने अपने बाबू को अपनी बाहों में कस लिया और उनके बालों को सहलाने लगी, प्यार से दुलारने लगी, बिरजू का मोटा लंड तेज तेज झटके खाता हुआ वीर्य की मोटी मोटी धार छोड़ते हुए अपनी बेटी की बूर को भरने लगा, अपनी सगी बेटी के गर्भ में उसका गाढ़ा गरम वीर्य भरने लगा, गरम गरम बिरजू का वीर्य नीलम की बूर से निकलकर गांड की दरार में बहने लगा और तकिए तक को भिगोने लगा, बिरजु काफी देर तक हाँफते हुए अपनी बेटी की बूर में झाड़ता रहा, कई वर्षों के बाद आज उसे एक जवान कमसिन मखमली बूर मिली थी और वो भी सगी बेटी की, बिरजू सच में अपनी सगी बेटी की बूर चोद कर निहाल हो चुका था, बिरजु और नीलम ने असीम चरमसुख का आनंद लेते हुए एक दूसरे को कस के बाहों में भर लिया और बड़े प्यार से एक दूसरे को चूमने लगे, और अपनी सांसों को काबू करते हुए एक दूसरे को बाहों में लिए लेटे रहे।
Very erotic update zabardast
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Update- 55

नगमा- अच्छा पैर दिखाओ, देखूं जरा चोट कहाँ लगी मेरे साजन को, मैं नही रहूँगी तो ऐसे ही बहक बहक के चलोगे न, चाहे चोट ही लग जाये, दिखाओ जरा

नगमा ने प्यार से थोड़ा शिकायत भरे लहजे में कहा।

चन्द्रभान- क्या करूँ मेरी बेटी जब तू ससुराल चली जाती है तो मुझे तेरी गुझिया की बहुत याद आती है और जब मीठी मीठी गुझिया खाने को नही मिलती तो मैं बावरा सा होने लगता हूँ। ऐसे ही तेरी याद में खोया एक दिन खेत से आ रहा था तो रास्ते में ठोकर लग गयी, ये देख....पर अब तो ठीक हो गया है।

नगमा- मैं इसलिए ही तो मायके आती हूँ, आपको अपनी गुझिया खिलाने, आपके बिना मैं भी कहाँ रह पाती हूँ मेरे साजन, अच्छा लाओ पैर इधर करो गर्म तेल लगा दूँ बिल्कुल ठीक हो जाएगा अब।

चन्द्रभान- सच मेरी बेटी अब तू अपने हाथ से इस चोट में तेल लगा देगी न तो ये बिल्कुल ठीक हो जाएगा।

नगमा ने गर्म गर्म तेल चन्द्रभान के अंगूठे पर लगाया और थोड़ा मालिश किया।

चंद्रभान खाट पर लेटने लगा नगमा खाट के पास खड़ी हो गयी और तेल की कटोरी को थोड़ा दूर रखा, चंद्रभान ने खाट पर लेटकर बाहें फैला दी और नगमा झट से अपने बाबू ले ऊपर चढ़ गई और उनकी बाहों में समा गई, और दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे।

नगमा- बाबू.....कहीं भैया आ न जाएँ। चलो पहले खाना खा लो फिर अपनी गुझिया खाना।

चंद्रभान ने नगमा के होंठों को चूमते हुए बोला- एक बार नाम तो बोल उसका।

नगमा- अब समझ जाइये न

चंद्रभान ने नगमा के गालों को हौले से चूमते हुए बोला- बोल भी दे न मेरी रानी बेटी, तेरे मुँह से सुनके बहुत जोश चढ़ता है, इस वक्त तो कोई नही है घर में, कौन सुनेगा?

नगमा कुछ देर चंद्रभान की आंखों में देखकर मुस्कुराती रही फिर धीरे से कान में बोली- बूबूबूबूबूबूरररररर.......आपकी बेटी की बूर......चलो खाना खा लो फिर उसके बाद अपनी बेटी की फूली फूली बूर खाना...........अब खुश

चंद्रभान- आह..... अब आया न मजा....खाना खिलाने से पहले नही खिलाओगी अपनी बूर, मेरा तो अभी ही मन कर रहा है।

नगमा- थोड़ा सब्र बाबू... ..अभी इस वक्त भैया कभी भी आ सकते हैं, खाना खा लो फिर उसके बाद, खाना खाने ले बाद मीठा खाने में और मजा आता है, आप तो अब खेत में सोते हो न बाबू मचान पर।

चंद्रभान- हाँ खेत में जाता हूँ सोने......इसलिए तो बोल रहा हूँ कि चखा दे इसे...... फिर तो मैं खेत में चला जाऊंगा...तो अपनी गुझिया कैसे खाऊंगा।

(चंद्रभान ने ये बात नगमा की बूर को साड़ी के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा, नगमा की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, साड़ी के ऊपर से चंद्रभान कुछ देर बूर को सहलाता रहा)

नगमा- बाबू आपको मैं आपकी गुझिया खेत में ही आकर रात को परोसुंगी, आप चिंता मत करो, रात को खेत में मचान पे लेटकर करने में बहुत मजा आएगा।

चंद्रभान ने मस्ती में कहा- क्या करने में मेरी बिटिया।

नगमा- वही

चंद्रभान- वही क्या मेरी बिटिया

नगमा ने धीरे से कहा- चोदा चोदी.... और क्या.....(नगमा फिर थोड़ा शरमा गयी)

चंद्रभान- लेकिन तू खेत में कैसे आएगी वो भी रात को।

नगमा- बाबू.....एक बेटी को जब उसके पिता के लन्ड की प्यास लगती है न तो वो कहीं भी चली आएगी, उसकी चिंता आप मत करो.....बस खेत में जाते वक्त जरा जोर से ये बोलकर जाना कि नगमा... ओ नगमा बेटी....मेरा बचा हुआ जामुन खेत में ही पहुँचा देना मैं वहीं खा लूंगा.....बस इतना कर देना।

(नगमा अपने मुँह से कई दिनों के बाद लन्ड शब्द बोलकर फिर से शरमा गयी और अपने बाबू के सीने सर छुपा लिया)

चंद्रभान- मतलब आज रात को खेत में बेटी की गुझिया खाने को मिलेगी।

नगमा- हां.....बाबू.......गरम गरम.....मीठी मीठी गुझिया......बेटी की

इतने में नीलम के मामा के आने की आहट हुई तो दोनों अलग हो गए और नगमा दालान से बाहर आ गयी अपने भैया को देखते ही बोली- भैया आ गए, चलो खाना खा लो, खाना तैयार है।

नीलम के मामा- दीदी तुम बाबू को खिला दो मैं तो आज मित्र के यहाँ किसी काम से गया था वही खा लिया खाना अब मुझे आ रही है नींद, खेत में भी आज बहुत काम था, थक गया हूँ काफी, तुम खा लो बाबू को खिला दो।

नगमा- अच्छा ठीक है फिर जाओ सो जाओ, भौजी तो कीर्तन में गयी है, थोड़ा देर से ही आएंगी।

नीलम के मामा- हाँ मुझे पता है, बताया था उसने मुझे, आएगी तो खा लेगी निकाल के खाना, तुम खा लो और बाबू जी को परोस दो खाना, तुम भी तो काफी थक गई होगी।

नगमा- ठीक है भैया जाओ सो जाओ मैं और बाबू खा लेंगे खाना

नीलम के मामा तो चले गए अपने कमरे में सोने।

नगमा- बाबू.....ओ बाबू चलो खाना खा लो अब, रात हो गयी काफी, देखो 9 बजने को हैं।

चंद्रभान- ठीक है बेटी तू खाना परोस मैं आता हूँ।

नगमा ने रसोई के बाहर दरी बिछा कर अपने बाबू का खाना परोस दिया। चंद्रभान आया और खाना खाने बैठ गया।

चंद्रभान- तेरा खाना कहाँ है।

नगमा- बाबू आप खा लीजिए मैं भौजी के साथ थोड़ा बाद में खाऊँगी।

चंद्रभान- अरे मेरे साथ खा न, बहू जब आएगी तो उसके साथ भी खा लेना।

चंद्रभान ने एक निवाला नगमा के मुँह में डाल दिया और दोनों एक ही थाली में खाना खाने लगे, नगमा भी अपने हांथों से प्यार से चंद्रभान को खाना खिलाने लगी, कुछ देर खाने के बाद नगमा बोली- अच्छा बाबू अब आप खाइए।

और वो उठने लगी तो चंद्रभान बोला- खाने में मेरी मनपसंद चीज़ इस बार नही मिली मुझे।

नगमा ने उंगली से इशारा करते हुए कहा- इस बड़ी कटोरी के नीचे वाली कटोरी में है बाबू आपकी मनपसंद चीज, पूरा खाना खाने के बाद उसका भोग करना और हंसते हुए रसोई में चली गयी और दाल चावल लाने, थोड़ा और दाल चावल लेके आयी और चंद्रभान की थाली में परोस दिया, चन्द्रभान ने जी भरके अपनी बेटी को निहारते हुए खाना खाया।

नगमा भी वहीं बैठे बैठे बड़े प्यार से अपने बाबू को निहारती रही, बीच बीच में चंद्रभान निवाला नगमा के मुँह में डालता तो वो आ करके मुँह खोलती और निवाला खाने लगती, दोनों हंस भी देते मस्ती करते हुए।

खाना खाने के बाद चंद्रभान ने नगमा को देखते हुए वो बड़ी कटोरी हटाई और उसके नीचे छोटी कटोरी उठा के सूँघा और बोला- वाह...... वही खुशबू...... मजा आ गया।

नगमा- मजा आ गया बाबू

चंद्रभान- बहुत, ये है असली चीज़

नगमा- मेरा पेशाब आपको इतना पसंद है

चंद्रभान- बहुत मेरी जान.....बहुत

नगमा- तो पी लो.....कम है तो और भर दूँ कटोरी में मूत के

नगमा वासना से भर गई

चंद्रभान- भरना है तो मेरा मुँह ही भर दे न मेरी रानी उसमे मूतकर.........खाने के बाद मुझे तेरे मूत की महक मिल जाय तो मानो जन्नत मिल गयी।

चंद्रभान ने कटोरी उठाकर नगमा को देखते हुए उसमे अपनी जीभ निकाल के डुबोई और जीभ से चाट चाट के अपनी बेटी का महकता पेशाब पीने लगा मानो कोई शेर मांस खाने के बाद नदी किनारे पानी पीने आया हो।

चन्द्रभान- वाह क्या स्वाद है मेरी बेटी की गुझिया के पानी का।

चन्द्रभान कुछ देर कटोरी में पेशाब को चाटता रहा फिर गट गट करके पी गया।

नगमा एक टक लगाए अपने बाप को देखती रही और मुस्कुरा दी, चंद्रभान की आंखों में वासना के डोरे साफ झलक रहे थे।

नगमा ने धीरे से कहा- हाय बाबू आपको याद है पहली बार जब आपने मेरी कच्ची बूर से पेशाब पिया था, मेरी बूर कितनी कच्ची थी उस वक्त।

(नगमा बूर शब्द बहुत धीरे से बोल रही थी कि कहीं उसके भैया न सुन ले, वैसे तो वो सो गया था पर फिर भी डर तो था ही)

चंद्रभान- तेरी कच्ची बूर का स्वाद मैं कभी नही भूल सकता बेटी, वो पेशाब जो मैंने पहली बार पिया था।

नगमा- उस वक्त मैं कितना रोई थी जब अपने पहली बार अपने मूसल से मुझे "चोदा" था, मैं रोये भी जा रही थी और चुदवा भी रही थी, सच बताऊं बाबू मैं रो भले रही थी पर बाद में मुझे बहुत मजा आने लगा था, तभी से तो मैं इसकी दीवानी हो गयी।

चंद्रभान- किसकी मेरी बिटिया..?

नगमा- अब आगे बताऊंगी खेत में.....की मैं किसकी दीवानी हूँ।

चंद्रभान- मूत पिलाएगी अपना न.....खेत में

नगमा- क्यों नही.....मेरे सजना.....मेरे बाबू जो जो पियेंगे वो वो पिलाऊंगी।

चंद्रभान- तो फिर अब मैं चलता हूँ खेत में......तू जल्दी आना।

नगमा- पर बाबू भौजी आ जाएगी तब ही आऊंगी..... पर आप एक बार बोल के जाइये...थोड़ा रुक जाइये....भौजी को आने दीजिए उनके सामने बोलके जाइये।

चंद्रभान- ठीक है मेरी जान जैसी तेरी मर्जी

चंद्रभान खाना खा के और अपनी बेटी का परोसा हुआ पेशाब पी के बाहर चला गया

थोड़ी देर में जैसे ही नीलम की मामी आयी चंद्रभान ने बाहर से आवाज लगाई।

चंद्रभान- नगमा बेटी

नगमा- हाँ बाबू

चंद्रभान- अरे तूने खाना तो खिला दिया पर जो तू जामुन लायी थी मेरे हिस्से का वो तो रह ही गया, मैंने बोला था मुझे खाना खाने के बाद देना, अब मैं जा रहा हूँ खेत में....एक काम करना वहीं पहुँचा देना।

नगमा ने भी दिखावे के लिए- हां बाबू आप चलिए मैं ले आऊंगी आपके हिस्से का जामुन खेत मे।
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