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Horror पुनर्जन्म का रहस्य

OnlyBhabhis

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Bhai lag to horror rahi hai building up bhi aapne pichle janm ka diya hai to lagya. RO ka pichla janam bhi kile me hi ho baki aage dekhne me majaa aayega I think horror honi chhahiye but aapne adultery likhi hai to scene dekhna bhi chahunga me....keep posting bro

भाई पहले मैने दूसरी कहानी पोस्ट की थी जो Adultery में ही शामिल थी लेकिन वो कई लोगों ने पढ़ी हुई थी Xossip पर इसलिए अब उसकी जगह दूसरी कहानी पोस्ट की है जो Horror ही है।

अब मुझे नाम और ये Tag change करना नहीं आता इसलिए पुरानी कहानी वाला ही शामिल रह गया और अगर आपको Adultery कहानी पसंद है तो चिंता मत करो अगली कहानी adultery ही रहेगी

👍
 
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sunoanuj

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OnlyBhabhis

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Update 6 -





हरिचरण ने डिक्की से रोहन का सामान निकाला ही था कि बँगले का दरवाज़ा खुला और काली वर्दी पहने दो नौकर दौड़े चले आये।




"कर्नल साहब, अंदर लाइब्रेरी में आपका इंतज़ार कर रहे हैं," एक नौकर ने रोहन को इत्तला दी। "आप अंदर जाकर उनसे मिल लीजिए। हम आपका सामान गेस्टरूम में पहुँचा देंगे।




"शुक्रिया," रोहन उनके पीछे पीछे बँगले के अंदर चल पड़ा।




बाहर के मुकाबले में बँगले के अंदर रोशनी काफी कम थी। खूबसूरत कालीन से सजी फ़र्श पर चलते हुए रोहन हॉल की तरफ़ बढ़ा। हॉल काफ़ी बड़ा था और उसकी छत से एक बहुत बड़ा और खूबसूरत झूमर लटक रहा था जो कि पूरे हॉल में रोशनी बिखेरने का काम कर रहा था। हॉल के दोनों तरफ़ से दो सीढ़ियाँ ऊपर की मंज़िल की तरफ़ जाती थीं। एक नौकर, रोहन का सामान लेकर उस सीधी पर चढ़ गया।




"लाइब्रेरी इस तरफ़ है सर," दूसरा नौकर सीढ़ियों के नीचे से होते हुए एक तंग गलियारे की तरफ़ बढ़ा, रोहन भी उसके पीछे हो लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद नौकर ने एक बड़े से दरवाज़े पर दस्तक दी।



"कम इन!" अंदर से आवाज़ आयी।




"आप अंदर जा सकते है, सर, " नौकर ने फ़ौजियों की तरह एकदम चुस्त अंदाज़ में कहा और बड़ी तेज़ी से वहाँ से निकल गया।





रोहन ने दरवाज़ा खोला और लाइब्रेरी के अंदर आ गया। लाइब्रेरी हॉल से भी बड़ी थी और उसकी हर दीवार पर एक बड़ी सी रैक लगी थी जिसमें सैकड़ों किताबें रखीं थी। ठीक बीच में एक आलीशान सोफा सेट था। सफेद रंग के मखमली सोफ़े के पास एक काँच की टेबल थी जिस पर शतरंज की बिसात बिछी हुई थी। सोफ़े पर नाईट गाउन पहने बैठा एक आदमी अकेले ही शतरंज खेल रहा था। रोहन ने अंदाज़ा लगाया कि वो ही कर्नल होंगें।




चौधरी के मुताबिक कर्नल की उम्र 60 साल से ऊपर की होगी मगर देखने में वो 45-50 साल से ज़्यादा के नहीं लगते रहे। चौधरी ने बताया था कि उनकी पत्नी गुज़र चुकी थीं और इकलौती बेटी अपनी शादी के बाद विदेश जा बसी थी। इसलिए वो इतने बड़े बँगले में अकेले ही रहते थे।





रोहन उनकी तरफ़ बढ़ चला। रोहन के कदमों की आहट सुनकर कर्नल ने शतरंज से नज़रें उठाकर उसे देखा और बड़े प्यार से मुस्कुराये।



"प्लीज़ड टू मीट यू, यंगमैन," कर्नल ने बड़ी गर्मजोशी से रोहन के साथ हाथ मिलाया।




"द प्लेशर इज़ ऑल माइन, सर," रोहन मुस्कुराया।




"बैठो, " सोफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए कर्नल ने कहा, "सफ़र कैसा रहा तुम्हारा?"




"जी, अच्छा ही था," रोहन सोफ़े पर बैठ गया।




"नारायण, 2 कप कॉफ़ी भिजवा दो, प्लीज़," कर्नल ने मेज़ पर रखे फ़ोन पर आर्डर दिया। "थैंक यू।"




"यहाँ आकर तुम्हें डर तो नहीं लग रहा?" कर्नल मुँह दबाये हँसे।




"नहीं तो सर," रोहन ने हाथ खड़े कर दिए, "यहाँ डर लगने जैसा क्या है?"




"मानो तो है, नहीं मानो तो नहीं है, " कर्नल ने सिगार का डब्बा खोला और रोहन की ओर बढ़ाया।




रोहन ने हाथ के इशारे से मना कर दिया। तभी नौकर एक ट्रे में कॉफ़ी के दो कप लिए आ गया। उसने ट्रे रोहन की तरफ़ बढ़ायी।




"थैंक यू," रोहन ने कॉफ़ी का कप लेते हुए कहा।




कर्नल को कॉफ़ी देने के बाद नौकर वहाँ से चला गया।



"और आप क्या मानते हैं, कर्नल साहब?" कॉफ़ी का एक घूँट पीकर रोहन ने पूछा।




"मेरे लिए ये सब वर्षों से चली आ रही मेवतगढ़ और किले की महज़ कहानियाँ हैं, " कॉफ़ी का स्वाद चखते ही कर्नल साहब की आँखों में चमक आ गयी।




“किस तरह की कहानियां” रोहन ने बड़ी उत्सुकता से पूछा



"क्यों तुम्हे मेवतगढ़ और उसके किले की कहानियों के बारे में नहीं पता, यहां की कहानियां तो दूर दूर तक प्रचलित है", कर्नल ने आश्चर्य से कहा




"सुना तो है लेकिन इतनी गहराई से नहीं पता है, जो चीजे मुझे इंटरनेट से प्राप्त हुई बस उसके बारे में ही पता है और इसकी खोज के लिए ही मै यहां आया हूं"



रोहन की बात से कर्नल मुस्कुराने लगे, "तो सुनना चाहोगे मेवटगढ़ के भूतिया किले की कहानी?"



"जी, ज़रूर, क्यों नहीं" रोहन ने कॉफ़ी के कप को मेज़ पर रख दिया।



"हज़ारों साल पहले, यहाँ सारणीया राजवंश की हुकूमत हुआ करती थी। उस राजवंश की दसवीं पीढ़ी के महाराज विक्रमदेव सारणीया से ये कहानी शुरू होती है। महाराज विक्रमदेव बड़े ही दयालु और कर्तव्यनिष्ठ राजा थे। मगर, राजा का कोई बेटा नहीं था जो उनके बाद, उनका राजकाज संभाल सके और शत्रुओं से अपने राज्य और प्रजा की रक्षा कर सके। राजा को हर वक़्त एक डर सताया करता था। राजा की बढ़ती उम्र के साथ उनका ये डर और चिंता और ज़्यादा बढ़ते गए।”




"राजा के उस ड़र का नाम था, महाराज दिग्विजय प्रताप। वो मेवटगढ़ के पड़ोसी देश, विराटपुर का राजा था और बड़ा ही क्रूर था। उसने अपनी प्रजा पर तरह तरह के ज़ुल्म ढाए थे। हर वक़्त बस, प्रजा को सता कर अपनी तिजोरियाँ भरने की फ़िराक़ में रहता था वो। मेवटगढ़ पर उसकी बुरी नज़र थी। राजा विक्रमदेव उस दुष्ट राजा दिग्विजय से किसी तरह का मन मुटाव नहीं चाहते थे। इसलिए, उन्होंने एक दिन दिग्विजय प्रताप को अपने महल आने का न्योता दे दिया ताकि दोनों आपसी बातचीत के ज़रिए कोई ऐसा रास्ता निकलें कि जिससे दोनों राज्य के बीच कभी जंग ने हो और अच्छे तालुकात बने रहें।




"राजा विक्रमदेव का न्योता स्वीकार कर विराटपुर से
कुछ लोग मेवटगढ़ आ गए। मेवटगढ़ की प्रजा के बीच किसी ने अफ़वाह उड़ा दी कि राजा विक्रमदेव, अपना राज्य महाराज दिग्विजय प्रताप को सौंप रहे हैं ताकि महाराज दिग्विजय उनकी और राजपरिवार की जान बक्श दें। प्रजा का गुस्सा भड़क गया और वो राजा के खिलाफ़ विरोध पर उतर आए। करीब आधी रात के वक़्त, मेवटगढ़ की पूरी प्रजा ने मिलकर राजमहल पर हमला कर दिया और यहां वहाँ आग लगा दी। "




"राजा के सैनिक भी विद्रोहियों को कुचलने में
नाकामयाब रहे और सब कुछ जलकर ख़ाक हो गया। महल के अंदर फँसे कई सारे बेकसूर लोग आग में झुलसकर मर गए। कहते हैं, मेवटगढ़ के किले के अंदर आज भी उन बेकसूर लोगों की आत्मा भटकती है। वो आत्माएँ, मेवटगढ़ के लोगों से अपनी मौत का बदला लेने को बेचैन हैं।"




"रात के अंधेरे में ये आत्माएँ बहुत ज़्यादा ताकतवर हो
जाती हैं। उस वक़्त जो किले के अंदर जाता है, वो कभी ज़िंदा वापस नहीं आता। और अगर किले से बच निकल भी जाये तो अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है।




“तो ये है मेवटगढ़ के भूतिया किले की दास्तान ।



“कैसी लगी ये कहानी तुमको ?"




"इंटरेस्टिंग! वेरी इंटरेस्टिंग, " रोहन ने ताली बजायी और कहा, "और मैं अपने शो के ज़रिए के साबित कर दूँगा कि ये सिर्फ़ एक कहानी है और वहाँ कोई भूत नहीं है।



"ऑल द बेस्ट!" कर्नल ने रोहन से हाथ मिलाया और कहा, "चलो, अब तुम फ्रेश हो जाओ। और ठीक 8 बजे डायनिंग रूम में पहुँच जाओ। आज तुम्हारे लिए बहुत स्पेशल खाना बना है। और सुनो देर मत करना, मैं वक़्त का बड़ा पाबंद हूँ।




"जी, बन्दा ठीक 8 बजे हाज़िर हो जाएगा," रोहन अपने सीने पर हाथ रखते हुए सोफ़े से उठा।




"ऊपर की मंज़िल पर दायीं तरफ़ पहला कमरा, गेस्टरूम है," कर्नल की नज़रें शतरंज की ओर लौट गयीं। "वहाँ तुम्हारी ज़रूरत की सारी चीज़ों का इंतज़ाम करवा दिया गया है। और भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो किचन में फ़ोन कर के शंकर को कह देना। इंटरकॉम के पास ही सारे नंबर लिखे हुए हैं।




"शुक्रिया, सर" रोहन लाइब्रेरी से बाहर चला आया और तेज़ी से ऊपर की तरफ़ जाती सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।




डिनर के बाद, रोहन गेस्टरूम के किंग साइज़ बेड पर
आराम से लेट गया। रोहन को अपने अंदर एक नया जोश महसूस हो रहा था। कर्नल आदमी बड़ा खुशमिज़ाज़ और मिलनसार था। कुछ ही घंटों में ही रोहन की उससे अच्छी दोस्ती हो गयी है। और खाना भी बड़ा लज़ीज़ था। रोहन का पेट और मन दोनों ही खुशी से भर गए थे।




रात के खाने का लुत्फ़ उठाने के बाद, दोनों ने लाइब्रेरी में बैठकर व्हिस्की पी और कर्नल ने अपने फ़ौजी जीवन के कुछ किस्से सुनाए। साथ ही, कर्नल ने उसे बहुत सारी ऐसी पेरानॉर्मल घटनाओं के बारे में भी बताया जो मेवटगढ़ के लोगों के साथ हुई थीं।





बँगले के सारे नौकर, रोहन को ऐसी नज़रों से देख रहे थे जैसे मानो कह रहे हों, 'क्यों भरी जवानी में शहीद होना चाहते हो?' उनके डरे हुए चेहरों की याद आते ही रोहन खिलखिलाकर हँस पड़ा।





"कर्नल ने जो कुछ किले के बारे में बताया, उससे मेरे शो के पहले एपिसोड के लिए काफ़ी मैटीरियल मिल गया है, " रोहन बेड पर उठकर बैठ गया।




रोहन ने पलंग के पास रखी मेज़ पर पड़े बैग से लैपटॉप निकाला और उस पर अपने शो की डिटेल्स टाइप करने लगा।




"शो की शुरुवात मैं, दो पड़ोसी राजाओं की आपसी दुश्मनी की कहानी सुनाकर करूँगा। उसके बाद, राजमहल में विद्रोहियों की लगायी आग और उस आग में जलकर मारे गए लोगों की आत्माओं के बारे में बताकर ऑडिएंस को डराउंगा।





हाँ, ये ठीक रहेगा।" रोहन ने चुटकी बजायी और लैपटॉप पर टाइप करने लगा। "उसके बाद, वहाँ के चप्पे चप्पे की रिकॉर्डिंग दिखाऊँगा । अगर, कहीं कोई पेरानॉर्मल एक्टिविटी नहीं दिखायी देती, मतलब नो भूत!" रोहन ने अपने लैपटॉप पर किले की तस्वीर को ग़ौर से देखा।




"कल दिन में ही हर तरफ़ सीसीटीवी कैमरे लगावाने होंगे। बॉस को बोल दिया है, कल तड़के ही वो टेक्निशियंस को भेजकर काम शुरू करवा देंगें। अगर, कल दिन में ही काम पूरा हो जाये तो रात होते ही शूटिंग शुरू कर दूँ। पूरे किले में घूमकर मुझे अकेले ही सब शूट करना होगा । "




रोहन ने एक बार फ़िर लैपटॉप पर किले की फ़ोटो को देखा और फ़िर उसे बन्द कर वापस बैग में रख दिया। वो बिस्तर पर लेट गया और मन ही मन अगले दिन के शूट की प्लानिंग करने लगा। कहाँ कहाँ कैमरा लगाना है। कौन सा शॉट कैसे लेना है। यही सब सोचते सोचते उसे नींद आ गयी।




पलकें झपकते ही उसकी आँखों के सामने मेवटगढ़
का किला आ गया। मगर इस बार, उसे खण्डर नहीं नज़र आये बल्कि राजमहल की संगमरमर से बनी दीवारों की सुंदर नक्काशी नज़र आयी । राजमहल के गलियारों में बिछी खूबसूरत कालीन नज़र आयी। ऊँची छत पर लटकते झूमर और खिडकियों के काँच पर बनी रंगीन तस्वीरें दिखीं। वो, राजमहल की शान-ओ-शौकत को बस देखता ही रह गया।




इतने में किसी के चीखने की आवाज़ सुनकर रोहन चौंक उठा। आवाज़ पीछे से आयी थी इसलिए वो फौरन पीछे मुड़ गया। उसने देखा एक खूबसूरत सी लड़की दौड़ती हुई उसके करीब आ रही थी। ये वही लड़की थी जिसे रोहन पिछले कई दिनों से अपने सपनों में देख रहा था। उसके पीछे 2 जल्लाद, हाथों में तलवारें लिए उसे पकड़ने के लिए भाग रहे थे। और उनके पीछे वर्दी पहने सैनिकों का एक जत्था था। वो लड़की दौड़ती हुई आयी और रोहन के सीने से लग गयी। फ़िर उसने रोहन के सीने से अपना सर ऊपर उठाया और उसकी आँखों में देखा। लड़की की कजरारी आँखों में आँसू भरे थे।




" आपने तो हमारी रक्षा करने का वचन दिया था, न?" उस लड़की ने सिसकियाँ भरते हुए पूछा, "जब हमें आपकी ज़रूरत पड़ी तो आप हमें छोड़कर कहाँ चले गए, वीरभद्र?"




उसकी बात सुनकर रोहन हैरान रह गया। रोहन के मन में हज़ारों सवाल तूफान की तरह उठे। मगर इससे पहले की वो कुछ कह पाता उन दोनों जल्लादों ने आगे बढ़कर उस लड़की को खींचकर रोहन से अलग कर दिया। उस लड़की की आँखों से आँसू छलककर उसके गालों पर फिसल आये। उसने अपना हाथ रोहन की तरफ़ बढ़ाया।




रोहन का अपने ऊपर बिल्कुल काबू न रहा और उसका हाथ खुद ब खुद उस लड़की की तरफ़ बढ़ गया। रोहन पर एक अजीब सा जुनून सवार हो गया। उसने हर हाल में उस लड़की को बचाने के लिए कमर कस ली। वो अकेला, निहत्था उन दो ताकतवर जल्लादों और उनकी पूरी सेना से लड़ने को तैयार हो गया।





फ़िर चाहे वो अपनी तलवारों से उसके टुकड़े टुकड़े क्यों न कर दे। मगर, अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी वो उसकी जान ज़रूर बचाएगा। रोहन नहीं जानता था उस लड़की से उसका क्या रिश्ता था मगर इतना ज़रूर जानता था कि वो उसके लिए अपनी जान से भी प्यारी थी। मगर इससे पहले कि रोहन उस लड़की तक पहुँच पाता उस जल्लाद ने लड़की की गर्दन की नस दबाकर उसे बेहोश कर दिया। और फ़िर उसके बेहोश जिस्म को कंधे पर लादकर अँधेरे में कहीं गायब हो गया।




अचानक ही वो अलीशान महल, खण्डर में तब्दील हो
गया। अब, चारों तरफ़ सिवाय अँधेरे के और कुछ नहीं था । रोहन आँखें फाड़े उस अँधेरे में उस लड़की को ढूंढता रहा। मगर, उसे कहीं कुछ भी नहीं दिखायी दिया। लेकिन, अगले ही पल वो खंडहर खौफ़नाक आवाज़ों से गूंज उठा। कहीं से लड़कियों के रोने चिल्लाने की आवाज़ें आती तो कहीं से जल्लादों के अट्टहास की। उन आवाज़ों से रोहन का सर फटने लगा और उसने अपने कानों पर हाथ रख लिया।



"न...ही...ईईई!" रोहन चीखते हुए उठा।




हाँफते हुए उसने देखा कि वो तो कर्नल के बँगले के गेस्टरूम में था। कमरे की लाइट अब भी जल रही थी। रोहन ने पानी पीकर खुद को शांत किया। ये डरावना सपना पिछली कई रातों से उसकी रातों की नींद हराम किये हुए था। रोहन जानता था कि जो सपने बार बार आते हैं उनमें कोई राज़, कोई संदेश ज़रूर छुपा होता है।




मगर, वो ये नहीं जानता था कि इस राज़ की तह तक कैसे पहुँचा जाए?



❤️❤️
 

sunoanuj

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हरिचरण ने डिक्की से रोहन का सामान निकाला ही था कि बँगले का दरवाज़ा खुला और काली वर्दी पहने दो नौकर दौड़े चले आये।




"कर्नल साहब, अंदर लाइब्रेरी में आपका इंतज़ार कर रहे हैं," एक नौकर ने रोहन को इत्तला दी। "आप अंदर जाकर उनसे मिल लीजिए। हम आपका सामान गेस्टरूम में पहुँचा देंगे।




"शुक्रिया," रोहन उनके पीछे पीछे बँगले के अंदर चल पड़ा।




बाहर के मुकाबले में बँगले के अंदर रोशनी काफी कम थी। खूबसूरत कालीन से सजी फ़र्श पर चलते हुए रोहन हॉल की तरफ़ बढ़ा। हॉल काफ़ी बड़ा था और उसकी छत से एक बहुत बड़ा और खूबसूरत झूमर लटक रहा था जो कि पूरे हॉल में रोशनी बिखेरने का काम कर रहा था। हॉल के दोनों तरफ़ से दो सीढ़ियाँ ऊपर की मंज़िल की तरफ़ जाती थीं। एक नौकर, रोहन का सामान लेकर उस सीधी पर चढ़ गया।




"लाइब्रेरी इस तरफ़ है सर," दूसरा नौकर सीढ़ियों के नीचे से होते हुए एक तंग गलियारे की तरफ़ बढ़ा, रोहन भी उसके पीछे हो लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद नौकर ने एक बड़े से दरवाज़े पर दस्तक दी।



"कम इन!" अंदर से आवाज़ आयी।




"आप अंदर जा सकते है, सर, " नौकर ने फ़ौजियों की तरह एकदम चुस्त अंदाज़ में कहा और बड़ी तेज़ी से वहाँ से निकल गया।





रोहन ने दरवाज़ा खोला और लाइब्रेरी के अंदर आ गया। लाइब्रेरी हॉल से भी बड़ी थी और उसकी हर दीवार पर एक बड़ी सी रैक लगी थी जिसमें सैकड़ों किताबें रखीं थी। ठीक बीच में एक आलीशान सोफा सेट था। सफेद रंग के मखमली सोफ़े के पास एक काँच की टेबल थी जिस पर शतरंज की बिसात बिछी हुई थी। सोफ़े पर नाईट गाउन पहने बैठा एक आदमी अकेले ही शतरंज खेल रहा था। रोहन ने अंदाज़ा लगाया कि वो ही कर्नल होंगें।




चौधरी के मुताबिक कर्नल की उम्र 60 साल से ऊपर की होगी मगर देखने में वो 45-50 साल से ज़्यादा के नहीं लगते रहे। चौधरी ने बताया था कि उनकी पत्नी गुज़र चुकी थीं और इकलौती बेटी अपनी शादी के बाद विदेश जा बसी थी। इसलिए वो इतने बड़े बँगले में अकेले ही रहते थे।





रोहन उनकी तरफ़ बढ़ चला। रोहन के कदमों की आहट सुनकर कर्नल ने शतरंज से नज़रें उठाकर उसे देखा और बड़े प्यार से मुस्कुराये।



"प्लीज़ड टू मीट यू, यंगमैन," कर्नल ने बड़ी गर्मजोशी से रोहन के साथ हाथ मिलाया।




"द प्लेशर इज़ ऑल माइन, सर," रोहन मुस्कुराया।




"बैठो, " सोफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए कर्नल ने कहा, "सफ़र कैसा रहा तुम्हारा?"




"जी, अच्छा ही था," रोहन सोफ़े पर बैठ गया।




"नारायण, 2 कप कॉफ़ी भिजवा दो, प्लीज़," कर्नल ने मेज़ पर रखे फ़ोन पर आर्डर दिया। "थैंक यू।"




"यहाँ आकर तुम्हें डर तो नहीं लग रहा?" कर्नल मुँह दबाये हँसे।




"नहीं तो सर," रोहन ने हाथ खड़े कर दिए, "यहाँ डर लगने जैसा क्या है?"




"मानो तो है, नहीं मानो तो नहीं है, " कर्नल ने सिगार का डब्बा खोला और रोहन की ओर बढ़ाया।




रोहन ने हाथ के इशारे से मना कर दिया। तभी नौकर एक ट्रे में कॉफ़ी के दो कप लिए आ गया। उसने ट्रे रोहन की तरफ़ बढ़ायी।




"थैंक यू," रोहन ने कॉफ़ी का कप लेते हुए कहा।




कर्नल को कॉफ़ी देने के बाद नौकर वहाँ से चला गया।



"और आप क्या मानते हैं, कर्नल साहब?" कॉफ़ी का एक घूँट पीकर रोहन ने पूछा।




"मेरे लिए ये सब वर्षों से चली आ रही मेवतगढ़ और किले की महज़ कहानियाँ हैं, " कॉफ़ी का स्वाद चखते ही कर्नल साहब की आँखों में चमक आ गयी।




“किस तरह की कहानियां” रोहन ने बड़ी उत्सुकता से पूछा



"क्यों तुम्हे मेवतगढ़ और उसके किले की कहानियों के बारे में नहीं पता, यहां की कहानियां तो दूर दूर तक प्रचलित है", कर्नल ने आश्चर्य से कहा




"सुना तो है लेकिन इतनी गहराई से नहीं पता है, जो चीजे मुझे इंटरनेट से प्राप्त हुई बस उसके बारे में ही पता है और इसकी खोज के लिए ही मै यहां आया हूं"



रोहन की बात से कर्नल मुस्कुराने लगे, "तो सुनना चाहोगे मेवटगढ़ के भूतिया किले की कहानी?"



"जी, ज़रूर, क्यों नहीं" रोहन ने कॉफ़ी के कप को मेज़ पर रख दिया।



"हज़ारों साल पहले, यहाँ सारणीया राजवंश की हुकूमत हुआ करती थी। उस राजवंश की दसवीं पीढ़ी के महाराज विक्रमदेव सारणीया से ये कहानी शुरू होती है। महाराज विक्रमदेव बड़े ही दयालु और कर्तव्यनिष्ठ राजा थे। मगर, राजा का कोई बेटा नहीं था जो उनके बाद, उनका राजकाज संभाल सके और शत्रुओं से अपने राज्य और प्रजा की रक्षा कर सके। राजा को हर वक़्त एक डर सताया करता था। राजा की बढ़ती उम्र के साथ उनका ये डर और चिंता और ज़्यादा बढ़ते गए।”




"राजा के उस ड़र का नाम था, महाराज दिग्विजय प्रताप। वो मेवटगढ़ के पड़ोसी देश, विराटपुर का राजा था और बड़ा ही क्रूर था। उसने अपनी प्रजा पर तरह तरह के ज़ुल्म ढाए थे। हर वक़्त बस, प्रजा को सता कर अपनी तिजोरियाँ भरने की फ़िराक़ में रहता था वो। मेवटगढ़ पर उसकी बुरी नज़र थी। राजा विक्रमदेव उस दुष्ट राजा दिग्विजय से किसी तरह का मन मुटाव नहीं चाहते थे। इसलिए, उन्होंने एक दिन दिग्विजय प्रताप को अपने महल आने का न्योता दे दिया ताकि दोनों आपसी बातचीत के ज़रिए कोई ऐसा रास्ता निकलें कि जिससे दोनों राज्य के बीच कभी जंग ने हो और अच्छे तालुकात बने रहें।




"राजा विक्रमदेव का न्योता स्वीकार कर विराटपुर से
कुछ लोग मेवटगढ़ आ गए। मेवटगढ़ की प्रजा के बीच किसी ने अफ़वाह उड़ा दी कि राजा विक्रमदेव, अपना राज्य महाराज दिग्विजय प्रताप को सौंप रहे हैं ताकि महाराज दिग्विजय उनकी और राजपरिवार की जान बक्श दें। प्रजा का गुस्सा भड़क गया और वो राजा के खिलाफ़ विरोध पर उतर आए। करीब आधी रात के वक़्त, मेवटगढ़ की पूरी प्रजा ने मिलकर राजमहल पर हमला कर दिया और यहां वहाँ आग लगा दी। "




"राजा के सैनिक भी विद्रोहियों को कुचलने में
नाकामयाब रहे और सब कुछ जलकर ख़ाक हो गया। महल के अंदर फँसे कई सारे बेकसूर लोग आग में झुलसकर मर गए। कहते हैं, मेवटगढ़ के किले के अंदर आज भी उन बेकसूर लोगों की आत्मा भटकती है। वो आत्माएँ, मेवटगढ़ के लोगों से अपनी मौत का बदला लेने को बेचैन हैं।"




"रात के अंधेरे में ये आत्माएँ बहुत ज़्यादा ताकतवर हो
जाती हैं। उस वक़्त जो किले के अंदर जाता है, वो कभी ज़िंदा वापस नहीं आता। और अगर किले से बच निकल भी जाये तो अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है।




“तो ये है मेवटगढ़ के भूतिया किले की दास्तान ।



“कैसी लगी ये कहानी तुमको ?"




"इंटरेस्टिंग! वेरी इंटरेस्टिंग, " रोहन ने ताली बजायी और कहा, "और मैं अपने शो के ज़रिए के साबित कर दूँगा कि ये सिर्फ़ एक कहानी है और वहाँ कोई भूत नहीं है।



"ऑल द बेस्ट!" कर्नल ने रोहन से हाथ मिलाया और कहा, "चलो, अब तुम फ्रेश हो जाओ। और ठीक 8 बजे डायनिंग रूम में पहुँच जाओ। आज तुम्हारे लिए बहुत स्पेशल खाना बना है। और सुनो देर मत करना, मैं वक़्त का बड़ा पाबंद हूँ।




"जी, बन्दा ठीक 8 बजे हाज़िर हो जाएगा," रोहन अपने सीने पर हाथ रखते हुए सोफ़े से उठा।




"ऊपर की मंज़िल पर दायीं तरफ़ पहला कमरा, गेस्टरूम है," कर्नल की नज़रें शतरंज की ओर लौट गयीं। "वहाँ तुम्हारी ज़रूरत की सारी चीज़ों का इंतज़ाम करवा दिया गया है। और भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो किचन में फ़ोन कर के शंकर को कह देना। इंटरकॉम के पास ही सारे नंबर लिखे हुए हैं।




"शुक्रिया, सर" रोहन लाइब्रेरी से बाहर चला आया और तेज़ी से ऊपर की तरफ़ जाती सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।




डिनर के बाद, रोहन गेस्टरूम के किंग साइज़ बेड पर
आराम से लेट गया। रोहन को अपने अंदर एक नया जोश महसूस हो रहा था। कर्नल आदमी बड़ा खुशमिज़ाज़ और मिलनसार था। कुछ ही घंटों में ही रोहन की उससे अच्छी दोस्ती हो गयी है। और खाना भी बड़ा लज़ीज़ था। रोहन का पेट और मन दोनों ही खुशी से भर गए थे।




रात के खाने का लुत्फ़ उठाने के बाद, दोनों ने लाइब्रेरी में बैठकर व्हिस्की पी और कर्नल ने अपने फ़ौजी जीवन के कुछ किस्से सुनाए। साथ ही, कर्नल ने उसे बहुत सारी ऐसी पेरानॉर्मल घटनाओं के बारे में भी बताया जो मेवटगढ़ के लोगों के साथ हुई थीं।





बँगले के सारे नौकर, रोहन को ऐसी नज़रों से देख रहे थे जैसे मानो कह रहे हों, 'क्यों भरी जवानी में शहीद होना चाहते हो?' उनके डरे हुए चेहरों की याद आते ही रोहन खिलखिलाकर हँस पड़ा।





"कर्नल ने जो कुछ किले के बारे में बताया, उससे मेरे शो के पहले एपिसोड के लिए काफ़ी मैटीरियल मिल गया है, " रोहन बेड पर उठकर बैठ गया।




रोहन ने पलंग के पास रखी मेज़ पर पड़े बैग से लैपटॉप निकाला और उस पर अपने शो की डिटेल्स टाइप करने लगा।




"शो की शुरुवात मैं, दो पड़ोसी राजाओं की आपसी दुश्मनी की कहानी सुनाकर करूँगा। उसके बाद, राजमहल में विद्रोहियों की लगायी आग और उस आग में जलकर मारे गए लोगों की आत्माओं के बारे में बताकर ऑडिएंस को डराउंगा।





हाँ, ये ठीक रहेगा।" रोहन ने चुटकी बजायी और लैपटॉप पर टाइप करने लगा। "उसके बाद, वहाँ के चप्पे चप्पे की रिकॉर्डिंग दिखाऊँगा । अगर, कहीं कोई पेरानॉर्मल एक्टिविटी नहीं दिखायी देती, मतलब नो भूत!" रोहन ने अपने लैपटॉप पर किले की तस्वीर को ग़ौर से देखा।




"कल दिन में ही हर तरफ़ सीसीटीवी कैमरे लगावाने होंगे। बॉस को बोल दिया है, कल तड़के ही वो टेक्निशियंस को भेजकर काम शुरू करवा देंगें। अगर, कल दिन में ही काम पूरा हो जाये तो रात होते ही शूटिंग शुरू कर दूँ। पूरे किले में घूमकर मुझे अकेले ही सब शूट करना होगा । "




रोहन ने एक बार फ़िर लैपटॉप पर किले की फ़ोटो को देखा और फ़िर उसे बन्द कर वापस बैग में रख दिया। वो बिस्तर पर लेट गया और मन ही मन अगले दिन के शूट की प्लानिंग करने लगा। कहाँ कहाँ कैमरा लगाना है। कौन सा शॉट कैसे लेना है। यही सब सोचते सोचते उसे नींद आ गयी।




पलकें झपकते ही उसकी आँखों के सामने मेवटगढ़
का किला आ गया। मगर इस बार, उसे खण्डर नहीं नज़र आये बल्कि राजमहल की संगमरमर से बनी दीवारों की सुंदर नक्काशी नज़र आयी । राजमहल के गलियारों में बिछी खूबसूरत कालीन नज़र आयी। ऊँची छत पर लटकते झूमर और खिडकियों के काँच पर बनी रंगीन तस्वीरें दिखीं। वो, राजमहल की शान-ओ-शौकत को बस देखता ही रह गया।




इतने में किसी के चीखने की आवाज़ सुनकर रोहन चौंक उठा। आवाज़ पीछे से आयी थी इसलिए वो फौरन पीछे मुड़ गया। उसने देखा एक खूबसूरत सी लड़की दौड़ती हुई उसके करीब आ रही थी। ये वही लड़की थी जिसे रोहन पिछले कई दिनों से अपने सपनों में देख रहा था। उसके पीछे 2 जल्लाद, हाथों में तलवारें लिए उसे पकड़ने के लिए भाग रहे थे। और उनके पीछे वर्दी पहने सैनिकों का एक जत्था था। वो लड़की दौड़ती हुई आयी और रोहन के सीने से लग गयी। फ़िर उसने रोहन के सीने से अपना सर ऊपर उठाया और उसकी आँखों में देखा। लड़की की कजरारी आँखों में आँसू भरे थे।




" आपने तो हमारी रक्षा करने का वचन दिया था, न?" उस लड़की ने सिसकियाँ भरते हुए पूछा, "जब हमें आपकी ज़रूरत पड़ी तो आप हमें छोड़कर कहाँ चले गए, वीरभद्र?"




उसकी बात सुनकर रोहन हैरान रह गया। रोहन के मन में हज़ारों सवाल तूफान की तरह उठे। मगर इससे पहले की वो कुछ कह पाता उन दोनों जल्लादों ने आगे बढ़कर उस लड़की को खींचकर रोहन से अलग कर दिया। उस लड़की की आँखों से आँसू छलककर उसके गालों पर फिसल आये। उसने अपना हाथ रोहन की तरफ़ बढ़ाया।




रोहन का अपने ऊपर बिल्कुल काबू न रहा और उसका हाथ खुद ब खुद उस लड़की की तरफ़ बढ़ गया। रोहन पर एक अजीब सा जुनून सवार हो गया। उसने हर हाल में उस लड़की को बचाने के लिए कमर कस ली। वो अकेला, निहत्था उन दो ताकतवर जल्लादों और उनकी पूरी सेना से लड़ने को तैयार हो गया।





फ़िर चाहे वो अपनी तलवारों से उसके टुकड़े टुकड़े क्यों न कर दे। मगर, अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी वो उसकी जान ज़रूर बचाएगा। रोहन नहीं जानता था उस लड़की से उसका क्या रिश्ता था मगर इतना ज़रूर जानता था कि वो उसके लिए अपनी जान से भी प्यारी थी। मगर इससे पहले कि रोहन उस लड़की तक पहुँच पाता उस जल्लाद ने लड़की की गर्दन की नस दबाकर उसे बेहोश कर दिया। और फ़िर उसके बेहोश जिस्म को कंधे पर लादकर अँधेरे में कहीं गायब हो गया।




अचानक ही वो अलीशान महल, खण्डर में तब्दील हो
गया। अब, चारों तरफ़ सिवाय अँधेरे के और कुछ नहीं था । रोहन आँखें फाड़े उस अँधेरे में उस लड़की को ढूंढता रहा। मगर, उसे कहीं कुछ भी नहीं दिखायी दिया। लेकिन, अगले ही पल वो खंडहर खौफ़नाक आवाज़ों से गूंज उठा। कहीं से लड़कियों के रोने चिल्लाने की आवाज़ें आती तो कहीं से जल्लादों के अट्टहास की। उन आवाज़ों से रोहन का सर फटने लगा और उसने अपने कानों पर हाथ रख लिया।



"न...ही...ईईई!" रोहन चीखते हुए उठा।




हाँफते हुए उसने देखा कि वो तो कर्नल के बँगले के गेस्टरूम में था। कमरे की लाइट अब भी जल रही थी। रोहन ने पानी पीकर खुद को शांत किया। ये डरावना सपना पिछली कई रातों से उसकी रातों की नींद हराम किये हुए था। रोहन जानता था कि जो सपने बार बार आते हैं उनमें कोई राज़, कोई संदेश ज़रूर छुपा होता है।




मगर, वो ये नहीं जानता था कि इस राज़ की तह तक कैसे पहुँचा जाए?




❤️❤️
Bahut hee badhiya or mast update diya hai aapne mitr …

Yeh Rohan ke sapne bhi kuch raaj chupaye honge …

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

kamdev99008

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पुनर्जन्म की कथा......
 

randibaaz chora

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भाई पहले मैने दूसरी कहानी पोस्ट की थी जो Adultery में ही शामिल थी लेकिन वो कई लोगों ने पढ़ी हुई थी Xossip पर इसलिए अब उसकी जगह दूसरी कहानी पोस्ट की है जो Horror ही है।

अब मुझे नाम और ये Tag change करना नहीं आता इसलिए पुरानी कहानी वाला ही शामिल रह गया और अगर आपको Adultery कहानी पसंद है तो चिंता मत करो अगली कहानी adultery ही रहेगी

👍
Bhai kahna ye nahi tha ki ise adultery banao aap jo bhi genre likho swagat rahega hamesha aapne mere kahne bhar se ek aur nahai likhne ki soch li thanku so much bhai...keep posting in this story
 

Harman11

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Update 6 -





हरिचरण ने डिक्की से रोहन का सामान निकाला ही था कि बँगले का दरवाज़ा खुला और काली वर्दी पहने दो नौकर दौड़े चले आये।




"कर्नल साहब, अंदर लाइब्रेरी में आपका इंतज़ार कर रहे हैं," एक नौकर ने रोहन को इत्तला दी। "आप अंदर जाकर उनसे मिल लीजिए। हम आपका सामान गेस्टरूम में पहुँचा देंगे।




"शुक्रिया," रोहन उनके पीछे पीछे बँगले के अंदर चल पड़ा।




बाहर के मुकाबले में बँगले के अंदर रोशनी काफी कम थी। खूबसूरत कालीन से सजी फ़र्श पर चलते हुए रोहन हॉल की तरफ़ बढ़ा। हॉल काफ़ी बड़ा था और उसकी छत से एक बहुत बड़ा और खूबसूरत झूमर लटक रहा था जो कि पूरे हॉल में रोशनी बिखेरने का काम कर रहा था। हॉल के दोनों तरफ़ से दो सीढ़ियाँ ऊपर की मंज़िल की तरफ़ जाती थीं। एक नौकर, रोहन का सामान लेकर उस सीधी पर चढ़ गया।




"लाइब्रेरी इस तरफ़ है सर," दूसरा नौकर सीढ़ियों के नीचे से होते हुए एक तंग गलियारे की तरफ़ बढ़ा, रोहन भी उसके पीछे हो लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद नौकर ने एक बड़े से दरवाज़े पर दस्तक दी।



"कम इन!" अंदर से आवाज़ आयी।




"आप अंदर जा सकते है, सर, " नौकर ने फ़ौजियों की तरह एकदम चुस्त अंदाज़ में कहा और बड़ी तेज़ी से वहाँ से निकल गया।





रोहन ने दरवाज़ा खोला और लाइब्रेरी के अंदर आ गया। लाइब्रेरी हॉल से भी बड़ी थी और उसकी हर दीवार पर एक बड़ी सी रैक लगी थी जिसमें सैकड़ों किताबें रखीं थी। ठीक बीच में एक आलीशान सोफा सेट था। सफेद रंग के मखमली सोफ़े के पास एक काँच की टेबल थी जिस पर शतरंज की बिसात बिछी हुई थी। सोफ़े पर नाईट गाउन पहने बैठा एक आदमी अकेले ही शतरंज खेल रहा था। रोहन ने अंदाज़ा लगाया कि वो ही कर्नल होंगें।




चौधरी के मुताबिक कर्नल की उम्र 60 साल से ऊपर की होगी मगर देखने में वो 45-50 साल से ज़्यादा के नहीं लगते रहे। चौधरी ने बताया था कि उनकी पत्नी गुज़र चुकी थीं और इकलौती बेटी अपनी शादी के बाद विदेश जा बसी थी। इसलिए वो इतने बड़े बँगले में अकेले ही रहते थे।





रोहन उनकी तरफ़ बढ़ चला। रोहन के कदमों की आहट सुनकर कर्नल ने शतरंज से नज़रें उठाकर उसे देखा और बड़े प्यार से मुस्कुराये।



"प्लीज़ड टू मीट यू, यंगमैन," कर्नल ने बड़ी गर्मजोशी से रोहन के साथ हाथ मिलाया।




"द प्लेशर इज़ ऑल माइन, सर," रोहन मुस्कुराया।




"बैठो, " सोफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए कर्नल ने कहा, "सफ़र कैसा रहा तुम्हारा?"




"जी, अच्छा ही था," रोहन सोफ़े पर बैठ गया।




"नारायण, 2 कप कॉफ़ी भिजवा दो, प्लीज़," कर्नल ने मेज़ पर रखे फ़ोन पर आर्डर दिया। "थैंक यू।"




"यहाँ आकर तुम्हें डर तो नहीं लग रहा?" कर्नल मुँह दबाये हँसे।




"नहीं तो सर," रोहन ने हाथ खड़े कर दिए, "यहाँ डर लगने जैसा क्या है?"




"मानो तो है, नहीं मानो तो नहीं है, " कर्नल ने सिगार का डब्बा खोला और रोहन की ओर बढ़ाया।




रोहन ने हाथ के इशारे से मना कर दिया। तभी नौकर एक ट्रे में कॉफ़ी के दो कप लिए आ गया। उसने ट्रे रोहन की तरफ़ बढ़ायी।




"थैंक यू," रोहन ने कॉफ़ी का कप लेते हुए कहा।




कर्नल को कॉफ़ी देने के बाद नौकर वहाँ से चला गया।



"और आप क्या मानते हैं, कर्नल साहब?" कॉफ़ी का एक घूँट पीकर रोहन ने पूछा।




"मेरे लिए ये सब वर्षों से चली आ रही मेवतगढ़ और किले की महज़ कहानियाँ हैं, " कॉफ़ी का स्वाद चखते ही कर्नल साहब की आँखों में चमक आ गयी।




“किस तरह की कहानियां” रोहन ने बड़ी उत्सुकता से पूछा



"क्यों तुम्हे मेवतगढ़ और उसके किले की कहानियों के बारे में नहीं पता, यहां की कहानियां तो दूर दूर तक प्रचलित है", कर्नल ने आश्चर्य से कहा




"सुना तो है लेकिन इतनी गहराई से नहीं पता है, जो चीजे मुझे इंटरनेट से प्राप्त हुई बस उसके बारे में ही पता है और इसकी खोज के लिए ही मै यहां आया हूं"



रोहन की बात से कर्नल मुस्कुराने लगे, "तो सुनना चाहोगे मेवटगढ़ के भूतिया किले की कहानी?"



"जी, ज़रूर, क्यों नहीं" रोहन ने कॉफ़ी के कप को मेज़ पर रख दिया।



"हज़ारों साल पहले, यहाँ सारणीया राजवंश की हुकूमत हुआ करती थी। उस राजवंश की दसवीं पीढ़ी के महाराज विक्रमदेव सारणीया से ये कहानी शुरू होती है। महाराज विक्रमदेव बड़े ही दयालु और कर्तव्यनिष्ठ राजा थे। मगर, राजा का कोई बेटा नहीं था जो उनके बाद, उनका राजकाज संभाल सके और शत्रुओं से अपने राज्य और प्रजा की रक्षा कर सके। राजा को हर वक़्त एक डर सताया करता था। राजा की बढ़ती उम्र के साथ उनका ये डर और चिंता और ज़्यादा बढ़ते गए।”




"राजा के उस ड़र का नाम था, महाराज दिग्विजय प्रताप। वो मेवटगढ़ के पड़ोसी देश, विराटपुर का राजा था और बड़ा ही क्रूर था। उसने अपनी प्रजा पर तरह तरह के ज़ुल्म ढाए थे। हर वक़्त बस, प्रजा को सता कर अपनी तिजोरियाँ भरने की फ़िराक़ में रहता था वो। मेवटगढ़ पर उसकी बुरी नज़र थी। राजा विक्रमदेव उस दुष्ट राजा दिग्विजय से किसी तरह का मन मुटाव नहीं चाहते थे। इसलिए, उन्होंने एक दिन दिग्विजय प्रताप को अपने महल आने का न्योता दे दिया ताकि दोनों आपसी बातचीत के ज़रिए कोई ऐसा रास्ता निकलें कि जिससे दोनों राज्य के बीच कभी जंग ने हो और अच्छे तालुकात बने रहें।




"राजा विक्रमदेव का न्योता स्वीकार कर विराटपुर से
कुछ लोग मेवटगढ़ आ गए। मेवटगढ़ की प्रजा के बीच किसी ने अफ़वाह उड़ा दी कि राजा विक्रमदेव, अपना राज्य महाराज दिग्विजय प्रताप को सौंप रहे हैं ताकि महाराज दिग्विजय उनकी और राजपरिवार की जान बक्श दें। प्रजा का गुस्सा भड़क गया और वो राजा के खिलाफ़ विरोध पर उतर आए। करीब आधी रात के वक़्त, मेवटगढ़ की पूरी प्रजा ने मिलकर राजमहल पर हमला कर दिया और यहां वहाँ आग लगा दी। "




"राजा के सैनिक भी विद्रोहियों को कुचलने में
नाकामयाब रहे और सब कुछ जलकर ख़ाक हो गया। महल के अंदर फँसे कई सारे बेकसूर लोग आग में झुलसकर मर गए। कहते हैं, मेवटगढ़ के किले के अंदर आज भी उन बेकसूर लोगों की आत्मा भटकती है। वो आत्माएँ, मेवटगढ़ के लोगों से अपनी मौत का बदला लेने को बेचैन हैं।"




"रात के अंधेरे में ये आत्माएँ बहुत ज़्यादा ताकतवर हो
जाती हैं। उस वक़्त जो किले के अंदर जाता है, वो कभी ज़िंदा वापस नहीं आता। और अगर किले से बच निकल भी जाये तो अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है।




“तो ये है मेवटगढ़ के भूतिया किले की दास्तान ।



“कैसी लगी ये कहानी तुमको ?"




"इंटरेस्टिंग! वेरी इंटरेस्टिंग, " रोहन ने ताली बजायी और कहा, "और मैं अपने शो के ज़रिए के साबित कर दूँगा कि ये सिर्फ़ एक कहानी है और वहाँ कोई भूत नहीं है।



"ऑल द बेस्ट!" कर्नल ने रोहन से हाथ मिलाया और कहा, "चलो, अब तुम फ्रेश हो जाओ। और ठीक 8 बजे डायनिंग रूम में पहुँच जाओ। आज तुम्हारे लिए बहुत स्पेशल खाना बना है। और सुनो देर मत करना, मैं वक़्त का बड़ा पाबंद हूँ।




"जी, बन्दा ठीक 8 बजे हाज़िर हो जाएगा," रोहन अपने सीने पर हाथ रखते हुए सोफ़े से उठा।




"ऊपर की मंज़िल पर दायीं तरफ़ पहला कमरा, गेस्टरूम है," कर्नल की नज़रें शतरंज की ओर लौट गयीं। "वहाँ तुम्हारी ज़रूरत की सारी चीज़ों का इंतज़ाम करवा दिया गया है। और भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो किचन में फ़ोन कर के शंकर को कह देना। इंटरकॉम के पास ही सारे नंबर लिखे हुए हैं।




"शुक्रिया, सर" रोहन लाइब्रेरी से बाहर चला आया और तेज़ी से ऊपर की तरफ़ जाती सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।




डिनर के बाद, रोहन गेस्टरूम के किंग साइज़ बेड पर
आराम से लेट गया। रोहन को अपने अंदर एक नया जोश महसूस हो रहा था। कर्नल आदमी बड़ा खुशमिज़ाज़ और मिलनसार था। कुछ ही घंटों में ही रोहन की उससे अच्छी दोस्ती हो गयी है। और खाना भी बड़ा लज़ीज़ था। रोहन का पेट और मन दोनों ही खुशी से भर गए थे।




रात के खाने का लुत्फ़ उठाने के बाद, दोनों ने लाइब्रेरी में बैठकर व्हिस्की पी और कर्नल ने अपने फ़ौजी जीवन के कुछ किस्से सुनाए। साथ ही, कर्नल ने उसे बहुत सारी ऐसी पेरानॉर्मल घटनाओं के बारे में भी बताया जो मेवटगढ़ के लोगों के साथ हुई थीं।





बँगले के सारे नौकर, रोहन को ऐसी नज़रों से देख रहे थे जैसे मानो कह रहे हों, 'क्यों भरी जवानी में शहीद होना चाहते हो?' उनके डरे हुए चेहरों की याद आते ही रोहन खिलखिलाकर हँस पड़ा।





"कर्नल ने जो कुछ किले के बारे में बताया, उससे मेरे शो के पहले एपिसोड के लिए काफ़ी मैटीरियल मिल गया है, " रोहन बेड पर उठकर बैठ गया।




रोहन ने पलंग के पास रखी मेज़ पर पड़े बैग से लैपटॉप निकाला और उस पर अपने शो की डिटेल्स टाइप करने लगा।




"शो की शुरुवात मैं, दो पड़ोसी राजाओं की आपसी दुश्मनी की कहानी सुनाकर करूँगा। उसके बाद, राजमहल में विद्रोहियों की लगायी आग और उस आग में जलकर मारे गए लोगों की आत्माओं के बारे में बताकर ऑडिएंस को डराउंगा।





हाँ, ये ठीक रहेगा।" रोहन ने चुटकी बजायी और लैपटॉप पर टाइप करने लगा। "उसके बाद, वहाँ के चप्पे चप्पे की रिकॉर्डिंग दिखाऊँगा । अगर, कहीं कोई पेरानॉर्मल एक्टिविटी नहीं दिखायी देती, मतलब नो भूत!" रोहन ने अपने लैपटॉप पर किले की तस्वीर को ग़ौर से देखा।




"कल दिन में ही हर तरफ़ सीसीटीवी कैमरे लगावाने होंगे। बॉस को बोल दिया है, कल तड़के ही वो टेक्निशियंस को भेजकर काम शुरू करवा देंगें। अगर, कल दिन में ही काम पूरा हो जाये तो रात होते ही शूटिंग शुरू कर दूँ। पूरे किले में घूमकर मुझे अकेले ही सब शूट करना होगा । "




रोहन ने एक बार फ़िर लैपटॉप पर किले की फ़ोटो को देखा और फ़िर उसे बन्द कर वापस बैग में रख दिया। वो बिस्तर पर लेट गया और मन ही मन अगले दिन के शूट की प्लानिंग करने लगा। कहाँ कहाँ कैमरा लगाना है। कौन सा शॉट कैसे लेना है। यही सब सोचते सोचते उसे नींद आ गयी।




पलकें झपकते ही उसकी आँखों के सामने मेवटगढ़
का किला आ गया। मगर इस बार, उसे खण्डर नहीं नज़र आये बल्कि राजमहल की संगमरमर से बनी दीवारों की सुंदर नक्काशी नज़र आयी । राजमहल के गलियारों में बिछी खूबसूरत कालीन नज़र आयी। ऊँची छत पर लटकते झूमर और खिडकियों के काँच पर बनी रंगीन तस्वीरें दिखीं। वो, राजमहल की शान-ओ-शौकत को बस देखता ही रह गया।




इतने में किसी के चीखने की आवाज़ सुनकर रोहन चौंक उठा। आवाज़ पीछे से आयी थी इसलिए वो फौरन पीछे मुड़ गया। उसने देखा एक खूबसूरत सी लड़की दौड़ती हुई उसके करीब आ रही थी। ये वही लड़की थी जिसे रोहन पिछले कई दिनों से अपने सपनों में देख रहा था। उसके पीछे 2 जल्लाद, हाथों में तलवारें लिए उसे पकड़ने के लिए भाग रहे थे। और उनके पीछे वर्दी पहने सैनिकों का एक जत्था था। वो लड़की दौड़ती हुई आयी और रोहन के सीने से लग गयी। फ़िर उसने रोहन के सीने से अपना सर ऊपर उठाया और उसकी आँखों में देखा। लड़की की कजरारी आँखों में आँसू भरे थे।




" आपने तो हमारी रक्षा करने का वचन दिया था, न?" उस लड़की ने सिसकियाँ भरते हुए पूछा, "जब हमें आपकी ज़रूरत पड़ी तो आप हमें छोड़कर कहाँ चले गए, वीरभद्र?"




उसकी बात सुनकर रोहन हैरान रह गया। रोहन के मन में हज़ारों सवाल तूफान की तरह उठे। मगर इससे पहले की वो कुछ कह पाता उन दोनों जल्लादों ने आगे बढ़कर उस लड़की को खींचकर रोहन से अलग कर दिया। उस लड़की की आँखों से आँसू छलककर उसके गालों पर फिसल आये। उसने अपना हाथ रोहन की तरफ़ बढ़ाया।




रोहन का अपने ऊपर बिल्कुल काबू न रहा और उसका हाथ खुद ब खुद उस लड़की की तरफ़ बढ़ गया। रोहन पर एक अजीब सा जुनून सवार हो गया। उसने हर हाल में उस लड़की को बचाने के लिए कमर कस ली। वो अकेला, निहत्था उन दो ताकतवर जल्लादों और उनकी पूरी सेना से लड़ने को तैयार हो गया।





फ़िर चाहे वो अपनी तलवारों से उसके टुकड़े टुकड़े क्यों न कर दे। मगर, अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी वो उसकी जान ज़रूर बचाएगा। रोहन नहीं जानता था उस लड़की से उसका क्या रिश्ता था मगर इतना ज़रूर जानता था कि वो उसके लिए अपनी जान से भी प्यारी थी। मगर इससे पहले कि रोहन उस लड़की तक पहुँच पाता उस जल्लाद ने लड़की की गर्दन की नस दबाकर उसे बेहोश कर दिया। और फ़िर उसके बेहोश जिस्म को कंधे पर लादकर अँधेरे में कहीं गायब हो गया।




अचानक ही वो अलीशान महल, खण्डर में तब्दील हो
गया। अब, चारों तरफ़ सिवाय अँधेरे के और कुछ नहीं था । रोहन आँखें फाड़े उस अँधेरे में उस लड़की को ढूंढता रहा। मगर, उसे कहीं कुछ भी नहीं दिखायी दिया। लेकिन, अगले ही पल वो खंडहर खौफ़नाक आवाज़ों से गूंज उठा। कहीं से लड़कियों के रोने चिल्लाने की आवाज़ें आती तो कहीं से जल्लादों के अट्टहास की। उन आवाज़ों से रोहन का सर फटने लगा और उसने अपने कानों पर हाथ रख लिया।



"न...ही...ईईई!" रोहन चीखते हुए उठा।




हाँफते हुए उसने देखा कि वो तो कर्नल के बँगले के गेस्टरूम में था। कमरे की लाइट अब भी जल रही थी। रोहन ने पानी पीकर खुद को शांत किया। ये डरावना सपना पिछली कई रातों से उसकी रातों की नींद हराम किये हुए था। रोहन जानता था कि जो सपने बार बार आते हैं उनमें कोई राज़, कोई संदेश ज़रूर छुपा होता है।




मगर, वो ये नहीं जानता था कि इस राज़ की तह तक कैसे पहुँचा जाए?




❤️❤️
Kya story post ki hai bhai lajawab update khubsurat
 
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