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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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Babulaskar

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Good one sir...btw, aapne kaha tha ki jab aap is story kaa 25 updates doge to aap apni doosri story (anokhe sambandh) kaa bhi updates dekar us story ko khatam karoge (since aapne kaha tha ki woh story end ke kareeb hain). Any update on that?
मैं इस विषय पर कमेंट की प्रतीक्षा कर रहा था। अच्छा हुआ आप ने याद दिलाया।
फिलहाल यह कहानी चलमान है। इस के बाद जो अपडेट आयेगा उसके बाद "अनोखे सम्बंध" का अपडेट आयेगा।
एक हफ्ते के भीतर मैं ने काफी दो बड़े बड़े अपडेट दिए हैं। इस लिए इस कहानी का अगला अपडेट चार पांच दिन बाद आयेगा।
उसके एक हफ्ता के बाद "अनोखे सम्बंध" का अपडेट मिल जाएगा।
अगले महीने के शुरु में पक्का।
 

Mass

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मैं इस विषय पर कमेंट की प्रतीक्षा कर रहा था। अच्छा हुआ आप ने याद दिलाया।
फिलहाल यह कहानी चलमान है। इस के बाद जो अपडेट आयेगा उसके बाद "अनोखे सम्बंध" का अपडेट आयेगा।
एक हफ्ते के भीतर मैं ने काफी दो बड़े बड़े अपडेट दिए हैं। इस लिए इस कहानी का अगला अपडेट चार पांच दिन बाद आयेगा।
उसके एक हफ्ता के बाद "अनोखे सम्बंध" का अपडेट मिल जाएगा।
अगले महीने के शुरु में पक्का।
Dhanyawaad...intezaar rahega...
 

andyking302

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भाग 1

साल 1885, फागुन का महीना। दिन मंगलवार, तारीख पता नहीं।

हर दिन की तरह सूरज फिर एकबार 'तीन पहाड़ी' गावँ के पुर्व दिशा से अपनी किरनें को फैलाता हुया प्रकट होता है। सूरज के निकलने के साथ साथ जहाँ पुरा जगत फिर से एक नया दिन शुरु करने में लग जाता है, वहीं तीन पहाड़ी गावँ में रहने वाले किसान भी अपनी अपनी खेतों और निजी कामों में लगता शुरु कर देते हैं।
चुं की इस गावँ के पुर्व दिशा में तीन पहाड़ समान रुप से खडे नजर आते हैं, इस लिए गावँ का नाम तीन पहाड़ी चालू हो गया।

गावँ में रहने वालों की संख्या 100-120 के आस पास थी।
इसी गावँ के बिल्कुल बाहर क्षेत्र में कुसुम अपनी बेटी राधा और बेटा पवन के साथ रहती थी। घर से थोडी दुरी पर उनकी कुछ जमीन थी, जिस पे खेती करके कुसुम का गुजारा चलता था। उसके साथ उन्के पास कुछ गाये-भैंस और एक घोडा था।

सुबह का समय था। पवन अपनी माँ को "माँ मैं जा रहा हूँ। राधा के हाथों मेरी रोटी भेज देना। आज खेतों में बड़ा काम है।" कहकर निकलने लगता है।
"ठीक है बेटा, तुम जाओ। राधा तो गुरुजी के पास जाने वाली है। मैं लेकर आ जाऊँगी।" कुसुम रसोई घर से पवन की तरफ देखती हूई कहती है।

कुसुम जो की अभी सिर्फ 36 वर्ष की है, दो बच्चों की माँ थी, लेकिन शरीर से और मन से वह आज भी एक नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माती औरत थी। अपनी बेटी राधा के पास खडी होकर वह राधा की बड़ी बहन मालुम होती थी। लाल-पीली साड़ी में माँग में सिंदूर लगाये वह एक साधारण लेकिन बिल्कुल घरेलू बहु समान लगती थी। (इस बात का राज आप को जल्द पता चल जाएगा।)
अपने बेटे से बात करती हुई भी कुसुम बार बार शर्म से सहम जाती थी।

कुसुम रसोई घर में रोटी सेंक रही थी, राधा पीछे से आकर अपनी माँ को आवाज देती है,
"माँ, मैं चलती हुँ। आज गुरु माँ एक अनोखी चीज सिखाने वाली है हमें" राधा इतराती हूई बोलती है।

"अच्छा! फिर आ के मुझे भी सिखाना।" कुसुम मुस्कुराएं जवाब देती है।
"अच्छा बाबा सीखा दूँगी। वह गधी की बच्ची चंचल अभी तक शायद सो रही होगी। अच्छा मैं चलती हूँ।"
राधा की मनचली बातों से कुसुम मन ही मन मुस्कराने लगती है। यह बच्चे भी देखते ही देखते कितने बड़े हो गए। राधा की सहेली चंचल उसी की हमउम्र थी, जो आँचल की लड्की थी। आँचल कुसुम की बचपन की दोस्त है।
दोनों भाई बहन के जाने के बाद कुसुम अपने रोजमर्रा घर के कामों में जुट गई। उसने खाना बनाया, घरबार की साफ सफाई की, तबेले में गाये-भैंसों और घोड़े को चारा दिया। यही कुसुम का रोज का काम था।

काम निपटाकर कुसुम थोडी सुस्ता रही थी, बाहर से उसे आँचल आती दिखाई दी। साथ में सुधा।

"अरे कुसुम देख किसे पकड़के लाई हूँ?" सुधा को देख कुसुम उछल पडती है।
"इतने दिनों बाद तुझे गावँ की याद आई? रह जाती ना शहर में?"
"अब आ तो गई ना?" तीनों बरामदे में चारपाई पे बेठ जाती हैं।
"और बता तेरा पति केसा है? सब काम काज ठीक तो है ना? तेरे बच्चे सब केसे हैं?" कुसुम पूछती है।
"सब कुशल मंगल से है मेरी बहन। बड़े बेटे की शादी की बात चल रही है। सोच रही हूँ बड़ी बेटी की शादी भी एक साथ कर दूँ।" सुधा ने कहा।
"यह तो अच्छी बात है रे! तेरा बेटा फिर काफी बड़ा हो गया है?"
"हाँ, क्यों भुल गई क्या? हम तीनों एक साथ ही तो पहलीबार पेट से हूई थी। इस की बेटी आँचल और तेरा बेटा,,,,, क्या नाम था उसका,,,,,,,?"
"पवन" आँचल जवाब देती है।
"हाँ पवन, और मेरा बेटा रघुवीर। और हम सब ने एक ही महीने में बच्चों को जनम भी दिया था। याद है ना?" सुधा की बात पे तीनों हंसने लगते हैं।

"हाँ, सब याद है। और यह भी याद है तू पांच साल बाद गावँ में आई है।"
"अब क्या बताऊँ, रघुवीर के पिताजी का काम ही एसा है की कहीं आना जाना नहीं होता। वह तो बस सरकार ने उसके पिताजी को पास के जमींदार के पास कुछ काम देकर भेजा है, इस लिए मैं भी चली आई। वैसे कल चली जाऊँगी। माँ बाप तो है नहीं, सोचा चाचा चाची और तुम दोनों से मिलती चलूँ।"
"बहुत अच्छा किया। मैं भी अक्सर आँचल से तेरी बात करती हुँ, पता नहीं केसी होगी, कहाँ होगी, हाँ वैसे तेरे बच्चे कितने हुए? यह बता?" कुसुम पलके नचाती पूछती है।
"वह हो, देख शर्मा गई। चल तू रहने दे, मैं खुद बता देती हूँ। कुसुम! सुधा अभी पांच बच्चों की माँ बन चुकी है, और अभी यह फिर से माँ बनने जा रही है। बेचारी के पेट में दो महीना का बच्चा पल रहा है।" आँचल खिलखिलाती हूई बोल पड़ी। जिससे सुधा सचमुच शर्मा जाती है।
"मैं भी कितनी भोली हूँ, बातों बातों में पता ही नहीं चला, सुधा तू बेठ मैं खाने को कुछ लाती हुँ।" कुसुम उठने जाती है। सुधा उसका हाथ पकड़के बिठा देती है।
"अरे तू चुपचाप बैठ। मैं खाकर आई हुँ। तुम दोनों से बात कर लूँ यही सोचके आई हुँ। पता नहीं फिर कब आना हो या ना हो। अब इतनी दूर का सफर आना भी मुश्किल होता जा रहा है। तुम दोनों क्यों नहीं आ जाते मेरे पास? कभी आ कर देख के जाना, पुणे में सब कुछ मिलता है। विदेश से कितने अच्छे अच्छे कपड़े आते हैं क्या बताऊँ तुम दोनों को।"
",हाँ सुना तो है, पुणे कितना बड़ा शहर है। बड़े बड़े जहाज चलते हैं वहां।" आँचल बोलती है।
"हाँ बस सुना ही है, कभी देखा नहीं।" कुसुम कहकर हंसने लगती है।
"तू आज भी वैसी है कुसुम। अब तो मान ले तेरा पति अब लौट कर नहीं आनेवाला। आखिर कब तक यूं दिल को दिलासा देती रहेगी? आखिर पवन के पिताजी को आना होता तो अब तक जरुर आ जाता।" सुधा की बातों पे कुसुम थोड़ा मायुस हो जाती है। उसकी आँखें नम होने लगती है। और उन्हीं आंखों से फिर एक कतरा उछलके बाहर उमड पड्ता है।
"मुझे माफ करना कुसुम, मेरा मतलब तुझे ठेस पहुँचाना नहीं है। लेकिन अपने दिल को यूं झूठे तसल्ली से कब तक बान्धके रखेगी?"
"नहीं सुधा, चाहे दुनिया वाले कुछ भी कहे, लेकिन मुझे यकीन है वह एकदिन जरुर वापिस आयेगा। उसने वादा किया था। अपनी माँग की सिंदूर को मैं ने इसी लिये आज भी सजा के रखा है। मुझे पूरा विश्वास है वह जरुर वापिस आयेगा। तुम सब देख लेना।" कुसुम अपनी आंसू पोंछती है। आँचल और सुधा दोनों कुसुम की बातों से भाबुक हो जाती हैं। फिर माहोल थोड़ा हल्का करने के लिए आँचल कहती है,
"पर जो भी हो, भाईसाब बहुत ही अच्छे थे। हम में से किसी को उम्मीद ही नहीं थी तुझे एसा पति मिलेगा। सुमन काकी (कुसुम की माँ) तो कितनी खुश हुई थी। तुम दोनों की जोडी कितनी अच्छी लगती थी। गावँ वाले तो आज भी कहते हैं, कुसुम का पति एक जादुगर था। जो हर साल आता रहता था।"
"हाँ सही कहा तूने आँचल। हम तीनों में से इसका पति सबसे खुबसूरत और जोशीला नौजवान था। पता है तेरे पति को देख के मुझे जलन होने लगी थी? काश की मेरा भी एसा पति होता!"
"इसी लिए तू ने अपना पति बदल लिया, है ना!" कुसुम सुधा को छेड्ती है।
"तुम दोनों तो बचपन से मेरे पीछे पडे हो, कितना कहा तुम दोनों को, मैं और रघुवंश एक दुसरे को पहले से प्रेम करते थे। वह तो घरवालों की वजा से मुझे पहले मेरे जेठ से शादी करनी पड़ी। लेकिन उन्हें क्या पता, मेरे पेट में मोह मिलन से पहले ही रघुवंश का बच्चा आ गया था। और आज भी रघुवीर के पिता मुझ से उतना ही प्रेम करते हैं जीतना शादी से पहले। इसी लिये मुझे आज भी पेट में बच्चा लेना पड रहा है। लेकिन आँचल, अब लड्कीयाँ भी बड़ी हो रही है, उन्के सामने बड़ी शर्म आती है। वैसे भाईसाब अगर होते तो हमारी कुसुम भी अब तक कई बच्चों की माँ बन जाती!"

"हाँ वह तो है। आखिर इसकी जवानी का भरपुर स्वाद लेते रहते वह।" दोनों सहेली हंसने लगती है।
"अरे सुधा एसा नहीं है, हमारी कुसुम आज भी इतनी जवान है वह किसी भी जवान लड्की को मात दे दे। और क्या पता, अगर भाईसाब आ जाये तो हमारी कुसुम फिर से चार पांच बच्चों की माँ बन जाये।" आँचल भी ठहाके मारके हंसती है।

"तुम दोनों भी ना। कभी बाज नहीं आनेवाले। बचपन से लेकर अब तक।"
"तू भी कहाँ बाज आनेवाली है? तूने भी तो अपनी जवानी रोकके रखी है। बचपन से लेकर अब तक।"
Nice
 
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andyking302

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भाग 2

पवन अपने खेतों में सिंचाई का काम कर रहा था। तीन पहाड़ी से बहता हुआ झरना उसके घर और खेतों के पास से गुजरता था। जिससे उसके खेतों में पानी की समस्या नहीं थी।
खेतों में धान की फसल खडी थी। छोटी नदी का पानी एक नाली से गुजरता हुआ उसके खेतों में बह रहा था। पवन खेत के पास बने एक कुटिया झोपड़ के पास खडा अपनी फसलों को देख रहा था। सुबह उसने एक रोटी खाई थी, अभी दोपहर का समय हो रहा था, अब तक घर में से किसी को रोटी लेकर आ जाना चाहिए था। शायद राधा अभी लौटी नहीं और माँ अपने कामों में ब्यस्त हैं।' यही सोच कर पवन घर की और चल पड्ता है।

घर के आँगन में घुसते ही पवन ने देखा उसकी माँ, आँचल मौसी और एक दुसरी औरत के साथ बेठी हैं। पवन को देखके सुधा काफी आश्चर्य होती है। पवन को देखकर कुसुम कहने लगती है,
"यह मेरा बेटा पवन है। पवन वह मैं बातों बातों में भुल गई थी खाना ले जाने को। अच्छा हुया तुम आ गये। पवन यह तुम्हारी एक मौसी है, तुम ने इनका नाम तो सूना होगा, सुधा मौसी, जो पुणे शहर में रहती है।"
"नमस्ते मौसी, आप के बारे में बहुत कुछ सुन कर रखा है हम भाई बहन ने। माँ हमेशा हमें बताती रहती है।"
"जीते रहो बेटा। तुम तो बिलकुल अपने,,,,,,"
सुधा की बात काटते हूई आँचल बोलने लगती है, "हाँ यह बिलकुल अपने बाप जेसा दिखता है। हमें पता है। और इसे भी पता है। है ना पवन!"
"हाँ मौसी, पता है। अब जिस का बेटा हुँ उसके जेसा ही तो दिखूँगा।"
"पवन तुम नहाकर आ जाओ, हम एक साथ खाना खा लेंगे। राधा भी आती होगी।"
"मौसी आप सब बातें करो। मैं नहाकर आता हुँ। मैं एकदिन पुणे शहर जरुर घुमने जाऊँगा मौसी।"
"जरुर आना बेटा।" पवन के जाने के बाद सुधा बोल पडती है,
"कुसुम तूने बताया नहीं तेरा बेटा इतना बड़ा हो गया है? मुझे एक पल में लगा जैसे मैं बीस साल पहलेवाले भाईसाब को देख रही हूँ। यह तो पुरी तरह अपने बाप पे गया है। बिलकुल वही शक्ल, वही आवाज वही बोलने का अन्दाज। अगर आज सुमन काकी इसे देख लेती तो उन्हें भी हैरानी होती, वह भी तेरे बेटे को तेरा पति समझ बेठती।"

"सही कहा तूने सुधा। मैं तो हमेशा इसे कहती हूँ अगर भाईसाब नहीं आये तो अपने बेटे को ही अपना पति बना लेना। लेकिन यह कुसुम मेरी बात सुनती ही नहीं।"
"अब तुम दोनों फिर से शुरु हो गए? यह आँचल भी ना, हमेशा मुझे चिढ़ाती रहती है।"
"पर जो भी हो कुसुम तेरे बेटे को देख के मुझे बड़ी खुशी हुई। कितना अच्छा दिखता है।"
"नजर मत लगा मेरे बेटे पर।"
"हाँ हाँ अब तू इसे अपनी आँचल में बांध के रख ले। देख कहीं कोई इसे चुराके ना ले जा पाये।"

कुसुम, सुधा और आँचल की अपनी पुरानी बचपन की दोस्ती फिर से याद आने लगी थी। काफी देर तक उन्होने आपस में सुख दुख की बातें कीं फिर आँचल के साथ सुधा भी चली गई। जाते जाते सुधा कहती गई, "कुसुम, मेरी मझली बेटी अपर्णा के लिये पवन का रिश्ता भेजूंगी मैं। अभी बड़ी बेटी की शादी हो जाने दे, फिर मैं दोबारा आऊँगी तेरे पास। और हाँ, तुम दोनों को मैं शादी का न्योता भेजूंगी, आना जरुर।"

सुधा और आँचल चली जाती है।
"तू भी बड़ी मतलबी है। एकबार मुझ से पूछा भी नहीं? एकदम से पवन का रिश्ता माँगने बेठ गई?" आँचल चिंता जताकर बोलती है।
"तो क्या हूआ, इतना अच्छा लड़का है, मैं तो चाहूँगी ही अपर्णा का बियाह इसी से हो, लेकिन तुझे क्यों बुरा लगा?" सुधा पूछती है।
"मैं इस लिए जल रही हूँ क्यौंकि मैं ने भी चंचल के बियाह के बारे में पवन को सोचा है। लेकिन तुझे तो अपनी पड़ी है। अब तू अमीर है, कुसुम तो तेरे घर में ही रिश्ता करवाईगी।"
"गुस्सा मत कर। ठीक है, तू भी चंचल के लिए पवन का हाथ माँगना। अगर कुसुम राजी हो जाये तो मैं बीच में नहीं आउँगी।"
"ठीक है, मैं समय आने पर कुसुम से इस बारे में बात करूँगी।"
Nice update p
 
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andyking302

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भाग 3


रात का खाना खाकर पवन खेतों में चला गया था। उसे नदी का नाला बन्द करना था।

फागुन के महीने में रात के समय थोडी बहुत सर्दी का मौसम था। कुसुम अपनी बेटी के साथ चारपाई में पड़ी थी। पास ही एक दिया जल रहा था। मिट्टी के इस घर में दो अलग अलग कमरे बने हुए थे। इस घर को कुसुम के पिता ने बनाया था। जब से यह इसी तरह चला आ रहा है।


रात के समय पर दूर कहीं गीदड़ों की चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। जंगली माहोल में बने इस घर के अन्दर रात अपनी पुरी काया लेकर उपस्थित थी।

"माँ एक कहानी सुनाओ ना!!" राधा की आवाज से कुसुम जो आँखें बन्द किये पड़ी थी, आँखें खोलके अपनी बेटी को देखती है।


"मैं भला क्या सुनाऊँ तुझे! तू तो फिर भी गुरुजी गुरु माँ के पास कुछ सीखने जाती है। मुझे किसी गुरु ने कुछ नहीं सिखाया। मुझे जो कुछ भी आता है वह तेरी नानी ने सिखाया था।"


"तो क्या तुम्हारे समय पर गुरुजी किसी को कुछ नहीं सिखाते थे? मैं ने तो सुना है वह इस गावँ में पिछ्ले पचास साल से रहते आ रहे हैं। तो उस वक्त तो फिर तुम्हें भी सीखने का मौका मिला होगा?"


"एसा नहीं था। यह तो बस एक अनहोनी है जिस से हमारे गावँ में काफी कुछ बदल गया। हमारे समय पर गावँ में हम लड़कियों को शिक्षा लेने की आजादी नहीं थी। आज जो गुरुजी मौजूद हैं वह कभी यहां के जमींदार के पास रहा करते थे। उनके खानदान के बच्चों को वह पढ़ाते थे। इस के अलावा किसी और को शिक्षा लेने की अनुमती नहीं थी। फिर एक दिन जमींदार के घर में डाकुओं का एक बड़ा हमला हुया, जिससे जमींदार बाबू मारे गए। औरतों और बच्चों को डाकुओं ने छोड़ दिया। और जाते जाते डाकुओं ने जमींदार का सारा खज़ाना लुट लिया। बस उसके बाद से गुरुजी यहां इस गावँ में रहने लगे। और यहां के बच्चों को पढ़ाने लगे।"


"हाँ माँ, यह मैं ने भी सुना है। गुरुजी ने हमें बताया था। तो फिर उनका क्या हुया? जो औरतें और बच्चे बच गए थे?" राधा अपनी माँ की तरफ करवट लिए पड़ी थी।


"उस घटना के बाद वह सब शहर चले गये। क्यौंकि यहां उनकी देखभाल करने लायक कोई नहीं था। छोटी मालकिन का मायका पुणे शहर में था। और बड़ी मालकिन पास के जमींदार की बेटी थी। दोनों अपने अपने मायका चली गई अपने बच्चों के साथ। तब से वह सब वहीं रहते हैं।"


"हुँ समझी। इसी लिये जमींदार की कोठी पे कोई जाता नहीं। सब कहते हैं, वहां काली साया है,वह जगह शापित है।"


"वह तो है। अब जिस घर ने इतने सारे मौत देखे हों वह घर रहने योग्य केसे रह सकता है? अच्छा हुया वह सब चले गए नहीं तो पता नहीं डाकुओं का हमला यूं ही चलता रहता।"


"तो क्या डाकू अब हमारे गावँ में नहीं आते?"


"नहीं राधा, अब नहीं आते। क्यौंकि डाकू कभी भी गरीबों को नहीं लुटता, वह सिर्फ बड़े लोगों के घरों में डाका डालते हैं। और वैसे भी हम जेसे गरीबों को लूटकर उन्हें क्या मिलेगा?"


"माँ वह सुनाओ ना, तुम जब पिताजी से मिले थे उसके बाद क्या क्या हुया?"


"तू भी ना! कितनी बार सुनेगी? मुझे नींद आ रही है। सोने दे। तू भी सो जा।"


"क्या माँ, सुनाओ ना, वैसे भी अभी तुम्हें कहाँ नींद आने लग रही है? जब तक भईय्या नहीं आते तुम कहाँ सोती हो? सुनाओ ना!" राधा जिद करती है।


"तुम दोनों भाई बहन बिलकुल अपने बाप पे गए हो। एकदम जिद्दी। अच्छा बता कहाँ तक सुनी थी?"


"वही तुम, आँचल मौसी और सुधा मौसी मेले में गए थे, फिर गुरु माँ ने तुम सब से क्या क्या पूछा। उसके बाद।"


"अच्छा सब याद है तुझे? चल सुन फिर, तो जेसा की तूने सुना है हमारे गावँ में हर फागुन के महीने में मेला लगता था। तो,,,,,"


"तो अब क्यों नहीं लगता?"


"बताया तो, जमींदार बाबू जब मर गए फिर मेला भरना भी बन्द हो गया?"


"ओ अच्छा? फिर आगे??" राधा की 'ओ अच्छा' वाली बात पे कुसुम के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।


"तो उस मेले में आँचल सुधा और मैं तीनों गई थीं। तेरी नानी को मुझे लेकर बहुत उत्सुकता थी। हमारे गावँ में उस लड्की का बियाह पहले होता था, जिस का बाप ज्यादा द्हेज देता। अब तेरी नानी ठहरी गरीब, कहाँ से दहेज का बन्दोबस्त करती। लेकिन फिर भी माँ ने दहेज में देने के लिए दो गाये पाले थे, साथ में एक बीघा जमीन। तेरी नानी ने वैसे काफी कोशिश की थी मेरी शादी गावँ में कराने के लिए। वह इस लिए क्योंकी मेरी माँ मुझे दूर गावँ में भेजना नहीं चाहती थी। लेकिन दहेज के कारन कोई राजी नहीं हुआ।

तो हम सब मेले में पहुँचे। गुरु माँ के पास जब मैं गई तो उन्होने तेरी नानी से पूछा, 'लड्की की माहवारी कब से शुरु हूई है?"


मेरी माँ ने कहा, 'दो फागुन गुजर गया है। मतलब दो साल।"


"तो उस समय तुम कितनी उम्र की थी?" राधा ने पूछा।


"कितनी की हूँगी? यही कोई ** साल, ** साल से मेरा मासिक धर्म शुरु हुया और उस समय मैं ** उम्र की थी।"


"यह तो बहुत कम उम्र है माँ।" राधा आश्चर्य होती है।


"हाँ वह तो है, इसी लिए मैं अभी 36 साल की हुँ। और इसी उम्र में मैं दो बच्चों की माँ भी बन चुकी हूँ। हमारे समय पर लड़कियों की शादी इसी उम्र में होती थी। अब तुझे 'मोह-मिलन' के बारे में बताती हूँ। हर साल गावँ के मेले में मोह मिलन का अवसर बेठता था। इस अवसर में लड़का और लड़कियों की शादी होती थी। अब तेरी सुधा मौसी और आँचल मौसी का लगन तो पहले हो चुका था। लेकिन लडके के घर वालों ने कहा की वह लड्की का हाथ मोह मिलन अवसर पे मांगेंगे। तेरी नानी ने तो बहुत कोशिश की मेरे लिए दूल्हा खोजने की, लेकिन जो रिश्ता मेरे लिए आया उसके लिये तेरी नानी राजी नहीं थी।"


"मतलब समझी नहीं माँ, तुम्हारे लिए केसे रिश्ते आये थे?" राधा ने पूछा।


"अब तुझे केसे समझाऊँ! एक तरफ मेरी दोनों सहेलियाँ थी, जिनके लिए जवान लड़कों का रिश्ता आया था, और मेरी माँ चुं की गरीब थी इस लिए कोई अच्छा लड़का हाथ माँगने नहीं आया। गावँ के दो तीन पचास पचपन साल के बुढढे ने मेरा हाथ मांगा था।"


" छि: फिर क्या हुआ?" राधा हयरान होती है।


"तेरी नानी को बहुत दुख पहुँचा। तो मेरी माँ मुझे लेके मोह मिलन अवसर पर गई। जहाँ तेरे बापू से मेरा बियाह हुया।"


"तो मतलब बापू से तुम पहली बार मोह मिलन अवसर पर मिली थी?"


"नहीं, उससे पहले भी मैं तेरे बापू से मिल चुकी थी। हम दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। जब मैं ने उन्हें पहली बार देखा था उसी वक्त उनसे प्यार हो गया था। मैं उनसे प्रेम करने लगी थी। और शायद वह भी।"


"यह बात तो तुम ने बताई नहीं? मतलब बापू से तुम शादी से पहले ही मिल चुकी थी। फिर तुम्हें तो पता होना चाहिए था बापू कहाँ के रहने वाले हैं? और कहाँ जा सकते हैं?"


"नहीं पता मेरी बच्ची। अगर मुझे पता होता तो मैं जरुर उसे तलाश करके लाती।"


"माँ तुम्हें क्या लगता है, बापू फिर कभी लौट कर आयेंगे?"


"एसा मत बोल राधा, मैं इसी आस में तो जी रही हूँ। मुझे पूरा यकीन है तेरा बापू, मेरा सुहाग एक दिन जरुर लौट कर आयेगा।"

कहते हुए कुसुम का गला भारी होने लगता है। इसी बीच घर का दरवाजा खुलने की आवाज आई, और बाहर से पवन ने आवाज लगाई, "माँ मैं आ गया हूँ।"


अपने भाई की आवाज सुनकर राधा बोल पडती है, "लो अब तुम सो सकती हो माँ। तुम्हारा लाड्ला आ गया है।"
जबरदस्त भाई
 
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andyking302

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भाग 4


पवन अपने खेत में काम कर रहा था। उसके साथ उसका दोस्त चंदन, (आँचल का बेटा) था। दोनो का खेत पास पास था, इस लिए दोनों काम के वक्त भी साथ साथ रहते।


पवन के एक खेत में धान और दूसरे खेत में सब्जी का चारा लगा हुया था। पवन सब्जी के खेत में घास छांटने में लगा था। वहीं उसके काम में चंदन हाथ बटा रहा था।


"पवन सोच रहा हूँ इस सप्ताह को नगर घूमने चलूँ। वह चंचल ने परेशान कर रखा है। तू जाएगा क्या?"


"वहां तो अगले सप्ताह से मेला लगने वाला है शायद?"


"हाँ इसी लिए तो चंचल जिद कर रही है। तू भी चल ना राधा को लेकर! सुबह सूरज निकलने के बाद चल देंगें तो शाम तक घर लौट कर आ सकते हैं।"


"ठीक है देखता हुँ। वैसे भी तुझे पता तो है अम्मा राधा को कहीं जाने नहीं देती, वह भी परेशान हो जाती है। नहीं तो मेरा कितना शौक है मैं पुणे शहर में घुमने जाऊँ।"


"हाँ यार, मेरा भी बहुत मन है पुणे जाने का। सुधा मौसी ने बार बार कहा है जाने को। एक बात सूझी है, क्यों ना, हम मौसी के लडके की शादी के अवसर में चलें। कुसुम मौसी भी इन्कार नहीं कर पायेगी। क्या बोलता है?"


"हाँ, मैं ने भी सोचा है। देखते हैं, पहले मौसी की तरफ से न्योता आ जाये।"


"वह तो आ ही जाएगा।"


"अरे बुद्धू, आ जायेगा, वह हमें भी पता है, लेकिन किस समय जाना है उसके लिए तो न्योता चाहिए ना??" पवन की बात पे चंदन हंसने लगता है।


काफी देर तक दोनों काम में लगे रहे। फिर थोडी देर के लिए दोनों छप्पर के पास साये में आकर सुस्ताने लगे।


"यार पवन, तूने कुछ मालुम किया? आखिर कब तक एसा चलता रहेगा?" चंदन की बात पे पवन थोडी देर सोच में गमगीन हो जाता है।


"नहीं चंदन, मुझे कुछ भी मालुम नहीं हुया। मैं ने गावँ में कई बुजुर्गों से पूछा पर किसी को मेरे बाप के बारे में कुछ पता नहीं। सब ने कहा, मेरे बाप को ज्यादा किसी ने देखा नहीं। अब वह कहाँ से आये और कहाँ चले गए यह किसी को नहीं पता।"


"माँ कहती है तू बिल्कुल अपने बाप जेसा दिखता है। क्या यह सच है?"


"हाँ, मैं ने माँ से भी यही सुना है। और उस दिन जब सुधा मौसी हमारे घर आई थी, उन्होनें जब मुझे देखा तो बहुत हयरान हो गई थी, उन्हें लगा मैं माँ का पति हुँ। मुझे बड़ी शर्म आई। मैं तो सिर नीचे करके बस वहां से भाग गया।"


"क्या सच में?" चंदन चौंक जाता है।


"अरे हाँ यार। झूट क्यों बोलूंगा। अब मुझे भी लगने लगा है मैं वाकई अपने बाप जेसा दिखता हूँ। इसी लिये शायद माँ कभी कभी मुझ से बात करते हुए शर्मा जाती है।"


दोनों आपसी बातों में मगन थे इतने में दूर से चंदन को पवन की माँ कुसुम मौसी आती दिखाई दी।


"पवन, मौसी आ रही है। शायद तेरा खाना ला रही होगी।"


"हम्म।"


"मैं चलता हूँ फिर, मुझे माँ ने घर आने को कहा था। तू बाकी का काम निपटाके आ जाना।" चंदन जाने को लगता है।


"अरे खाना तो खाके जाता।"


"नहीं यार, देर हो जायेगी।" पवन ने उसे रोका नहीं। वैसे भी चंदन और पहले जाने लगा था।

कुसुम छप्पर के पास आकर पवन के पास बेठ जाती है। और बेठकर पोटली खोलके पवन के आगे रोटी निकाल कर देती है।


"काम निमट गया क्या बेटा?" कुसुम ने पवन को देखते हूए पूछा।


"थोड़ा और बाकी है।" पवन ने निवाला मुहं में डाला।

दोनों माँ बेटा एक दूसरे की और देखे जा रहे थे। कोई अजनबी आकर इन्हें देखके कह सकता था एक पत्नी अपने पति को बड़े प्यार से खाना खिला रही है। कुसुम जिसे अपने आप को एक विधवा मानने से इन्कार था। वह हमेशा एक सुहागन की तरह बनी सजी रहती थी। उसके गले में आज भी एक लाल धागा बंधा था। जो समय के साथ फीका पड़ गया था। यह लाल धागे का हार उसके पति का बाँधा हुया था। यह उसके पति ने उसे मंगलसूत्र के तौर पर दिया था। उसकी माँग में आज भी हर दिन की तरह चमचमाती सिंदूर की झलक थी। जो कुसुम हर रोज नहाने के बाद अपनी माँग में लगाया करती है। इतना सजना संवरना कुसुम इसी लिए करके रखती क्यौंकि उसके मन में आज भी यकीन है उसका पति एकदिन जरुर वापिस आयेगा। इसी लिये कुसुम आज भी शरीर और मन से एक यौवन कन्या से कम नहीं थी। उसे हर दिन एसा लगता है शायद आज उसका पति उससे मिलने आयेगा? इसी लिए वह हर रोज इस तरह सजी हुई रहती है।


कुसुम चाह कर भी अपने पति को भुला नहीं सकती थी। जेसे जैसे पवन बड़ा होता गया वह बिल्कुल अपने बाप जेसा दिखने लगा था। इस तरह कुसुम जब भी अपने बेटे को देखती उसे अपने पति की याद ताजा हो जाती। अपने बेटे को देख कुसुम सौ प्यार बरसा रही थी।


"माँ तुम से मुझे बहुत सारी बातें पूछनी है।"


"किस बारे में?"


"मेरे बाप के बारे में, मुझे अपने बाप को ढूँढना है।" पवन खाना खत्म करके हाथ धोकर पानी पीकर माँ के पास बेठता है।


"माँ, क्या बापू की कोइ निशानी है तुम्हारे पास? जिससे पता किया जा सके वह कहाँ के रहने वाले थे? क्या कभी उन्होने किसी जगह का नाम बताया था?"


"निशानी तो बस यही है मेरे पास!" कुसुम अपने गले का धागा दिखाती है।

"बाकी तेरे बापू ने कहा था वह राधानगर के रहने वाले थे। वह कहते थे, इस तीन पहाड़ी के उस पार से वह आये हैं। हमारे गावँवाले कभी उस तरफ गए नहीं थे। लम्बा पहाड़ तै करके कौन जाना चाहेगा। तेरी नानी ने एकबार एक सौदागर से पूछा था राधानगर के बारे में। लेकिन उसने बताया था तीन पहाड़ी के उसपार इस नाम से कोई जगह नहीं है। इस लिए मैं ने भी उम्मीदें छोड़ दी थी।" कुसुम मायुस हो पडती है।


"लेकिन माँ हमें जानना तो पड़ेगा ना! आखिर कब तक तुम इस तरह आस लगाये बैठी रहोगी।"


"लेकिन पवन मैं इस के अलावा और क्या कर सकती हूँ?"


"तुम चिंता मत करो माँ, मैं तुम्हारी हंसी और पुराना दिन फिर से वापिस लाऊँगा। बापू को ढूँढ के तुम्हारे पास लेके आऊँगा। यह मेरा वादा रहा। तुम्हारे इस सिन्दूर के दाग को मैं मिटने नहीं दूँगा। तुम सुहागन थी और हमेशा रहोगी।" अपने बेटे की साहस भरी बातों से कुसुम को पवन पर गर्व महसूस होता है। आज उसे लगता है सच में उसका बेटा उसके पति जेसा हो गया है।
जबरदस्त भाई
 
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andyking302

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भाग 5


तीन पहाड़ी गावँ में गुरुजी अमरनाथ और उनकी धर्मपत्नी गुरु माँ श्रीमती सरस्वती को सभी इज्जत और सम्मान की नजर से देखते थे। वह दोनों निसंतान थे, इस गावँ से पढ्ने आये बच्चों को वह अपनी सन्तान की तरह प्यार देते थे। जमींदार की उजाड कोठी के पास एक कुटिया में गुरुजी और गुरु माँ रहते थे। और घर के पास एक पेड़ के नीचे वह गावँ के बच्चों को शिक्षा देते थे। सुबह गावँ की लड़कियाँ और शाम को लडके पढ्ने को आते।

शाम का समय था, पढ्ने वाले लडके पढाई पुरी करके अपने अपने घर को चले गए थे। गुरुजी अमरनाथ बड़े पेड़ के नीचे कुछ देर बेठ कर आँखें बन्द करके अपने मन में मगन थे।


"गुरुजी आप केसे हैं?"


"कौन? वहह पवन बेटा! मैं ठीक हूँ। आओ बेठो यहां।" गुरुजी ने आंखें खोल पवन को देखा और अपने पास बिठाया।


"घर में तुम्हारी माँ केसी है? ठीक तो है ना!"


"जी गुरुजी ठीक है! आप बताएं गुरु माँ केसी है?"


"अब हमारी उम्र हो गई बेटा, अब ना तो दुनिया को हमारी जरुरत है और ना हमें दुनिया की। बस किसी तरह दिन गुजर जाये, यह जीवन किसी के काम आ जाये यही हर समय का संकल्प है।"


"आप बहुत अच्छा कर रहे हैं गुरुजी, नहीं तो आस पास के गावँ में कहाँ शिक्षा लेने की सुविधा है।"


"तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद बेटा। तुम ने मेरे से अच्छी शिक्षा ली है। यह बस तुम्हारी माँ की लगन थी अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना। नहीं तो गावँ में अभी भी काफी बच्चे पढ्ने नहीं आते। तुम्हारी माँ के अन्दर यह सूझ बूझ पहले से थी, तभी तो वह इतनी अच्छी तरह से अपने परिवार को आजतक समेटे संभालती आ रही है। बस कभी कभी जब तुम्हारी माँ के बारे में सोचता हूँ तो मन बिचलित हो जाता है। कितनी अभागन है बेचारी! तुम्हारा बाप भी छोड़ के चला गया।"


"मैं समझता हूँ गुरुजी। मैं इसी लिए आप के पास आया हुँ। क्या आप को मेरे पिताजी के बारे में कुछ पता है? मैं ने सुना है आप ने मेरी माँ और बापू का बियाह करवाया था। क्या यह सच है?"


पवन के सवाल पे गुरुजी कुछ देर आँखें बंद किये चुपचाप बेठे रहे।


"हम्म, यह सच है मैं ने तुम्हारे माता पिता का बियाह करवाया था। लेकिन इस के आगे तो मुझे ज्यादा कुछ याद नहीं है। मैं शायद तुम्हारे पिता से कभी मिला नहीं। अगर मिला होता तो जरुर उसके बारे में मुझे पता होता। मेरी याददाश्त बहुत तेज है बेटा।"


"हमें पता है गुरुजी। आप की स्मृति कितनी तेज है। आप इस गावँ के हर बच्चे के बाप दादा परदादा को जानते हैं। तो क्या मेरे पिता के बारे में आप को कुछ भी पता नहीं है?"


"नहीं बेटा, बस इतना जानता हुँ तुम्हारे पिता का नाम भी पवन था। और शायद तुम्हारी माँ ने भी तुम्हारा नाम पवन इस लिए रखा ताकी उसे तुम्हारे पिता चले जाने का गम न हो।"


"हाँ, माँ ने कहा था।"


"लेकिन बेटा तुम यह सब जानना क्यों चाहते हो? अगर तुम्हारे बाप को लौटकर आना होता तो वह अब तक जरुर आ जाता। इतने दिनों में जब वह वापिस नहीं आया तो अब अपने पिता के लौटने की उम्मीद क्यों कर रहे हो?"


"क्योंकि माँ को यकीन है मेरे पिता एक दिन जरुर वापिस आयेंगे। मैं भी उन्हें ढूँढने की कोशिश कर रहा हूँ।"


"बेटा पवन, तुम्हारी नानी ने भी काफी कोशिश की तुम्हारे पिताजी को ढूँढ निकालने की। लेकिन उसका कोई अता पता नहीं मिला। इस लिए मैं सलाह देता हूँ, बेकार में उम्मीदें मत बान्धो। तुम्हारा दिल टूट जाएगा जब कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।"


"कोई बात नहीं गुरुजी। मैं आप की सलाह का सम्मान करता हूँ। लेकिन मुझे किसी ना किसी तरह इसका हल जरुर निकलना होगा। ठीक है गुरुजी मैं चलता हूँ। गुरु माँ को प्रणाम।"


"खुश रहो बेटा।"
शानदार जबरदस्त
 
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