• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


  • Total voters
    102
  • Poll closed .

snidgha12

Active Member
1,506
2,693
144
आप का प्रश्न अच्छा है। लेकिन इसका जवाब बड़ा पेचीदा है।

हिंदी फिल्मों में हम एक नायक और नायिका को देखकर बड़े हुए हैं तभी हम जैसे पाठकवर्ग हर एक कहानी में मूल नायक और नायिका का चयन पसंद करते हैं। यह सही भी है।

लेकिन समय के साथ साथ यह रूझान भी खत्म हो रहा है। आप हॉलीवुड की फिलों में हीरो और हीरोइन को ढूँढ नहीं पायेंगे। क्यौंकि वहां ज्यादतर कैरेक्टर बेस्ड फिल्में होती हैं। क्या आप ने आमिर खान की "पीके" मूवी या "दंगल" देखी है? जरा बताईये,, उनमें हीरो और हीरोइन कौन हैं?

असल में उनमें मेन कैरेक्टर होते हैं।

हाँ मानता हूँ यह एक प्रेम कथा है, इतोरिक स्टोरी है, इस लिहाज से इस में एक निश्चित हीरो और हीरोइन होना जरुरी है। और वह है भी। लेकिन वह कैरेक्टर मेरे हिसाब से हीरो या हीरोइन कम, मेन या साईड कैरेक्टर ज्यादा है।

अगर कहानी में हर एक कैरेक्टर को 10 तक रेटिंग दिया जाये, उनका रोल, उनका महत्वपूर्ण भुमिका के लिए, तो मैं कुछ इस तरह से इन्हें सजाऊँगा। गौर कीजिये।

पवन 10/10

कुसुम 9/10

पद्मलता 8/10

राधा 7/10

चंचल 7/10

मेनका 6/10

अपर्णा 6/10

आँचल 7/10

हेमलता 8/10

उम्मीद है आप के साथ और जित्ने पाठकों के मन में यह सवाल है, यह सूची उनको समझाने के लिए काफी है।​

IMG-20200830-104819
पवन और उसकी पत्नियां एवं प्रेमिकाएं ...
 
Last edited:

Naik

Well-Known Member
20,940
76,572
258
भाग 37/1

---------


पवन ने कुसुम की पसंद का काफी कुछ खरीदकर दिया, जिससे कुसुम का हाथ कपडों की पोटली और दूसरी चीजों से भर गया। अब वह दोनों घर की तरफ लौटने लगे।

घर के पास आकर पवन ने कहा, कुसुम मैं जरा उस पेड के नीचे जाकर बैठता हुँ। तुम यह कपड़े लेकर जाओ। बाद में आता हुँ।"

कुसुम एक नए नवेली शर्मिली दुल्हन की तरह बस सिर हिलाती है और घर के अन्दर चली जाती है।


कुसुम की माँ सुमन देवी खाना पकाने में ब्यस्त थी। कुसुम को घर में आता देखकर वह बोल पडती है, अरी कुसुम बेटी तू आ गई? पवन कहाँ है?" कुसुम ने सारा सामान वहीं बरामदे में रख दिया। और थकान के मारे माँ के पास बैठ गई और माँ से चिपक गई। सुमन देवी उसके सिर पे प्यार से हाथ फेरनी लगी।


"क्या बात है कुसुम? तू ठीक तो है ना!"


"नहीं माँ एसी कोई बात नहीं है। बस थोडी थक गई हूँ। तुम्हारे उस पागल दामाद ने पूरे मेले का चक्कर लगवाया।"


"अरे पगली, अभी से थक जायेगी तो रात को क्या करेगी? वह पवन तेरा पति कहाँ गया है?"


"माँ तुम भी ना! खुद ही जाकर देख लो। बैठा होगा खेत के पास।"


"हाए, मेरी बेटी शर्मा गई। देख अब तो तुझे ही उसका ध्यान रखना होगा। अब वह तेरा पति बन गया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है पवन के साथ तेरा बियाह हो गया। मुझे पूरा बिश्वास था, वही तेरे से बियाह करेगा। नहीं तो मैं तुझे आज मोह मिलन नहीं ले जाती।"


"क्या माँ, तुम्हें पता था? लेकिन अगर वह लाला, मतलब वह अगर आगे बड़कर शादी का प्रस्ताव स्वीकार ना करता फिर तो लाला से ही मेरी शादी होती?" कुसुम थोडी हयरान होती है।


"भला पवन एसा होने देता क्या? मैं चार पांच दिन से पवन का ही इन्तज़ार कर रही थी पगली। इसी लिए तुझ से कह रही थी, आज मेले में अच्छे रिश्ते वाले नहीं आये। लेकिन आज सुबह जब वह हमारे घर पर आया, और देख, कितने सारे कपड़े लेकर आया है वह। भला अगर उसे तुझ से प्यार ना होता तो क्या वह एसा करता? और इसी लिए मैं ने सोचा पवन को साथ लेकर चलती हूँ। जब उसके सामने लाला जैसा दानव आकर खडा होगा, वह कैसे बरदास्त कर लेगा। और इसी लिए उसने आगे बड़कर तेरा हाथ मांगा। तुझ से प्यार करता है पगली।" सुमन देवी मुस्कुराती हुई बोली। कुसुम कुछ बोलती नहीं, बस अपनी माँ से और ज्यादा चिपक जाती है।


"बहुत भूक लगी होगी तुम दोनों को? तू जाकर उसे बुला ला। खाना बस बनने वाला है।"


"नहीं माँ, मेरा पेट अभी भरा हुआ है। तुम्हारे दामाद ने ढाबे पे खिलाया है। वह शायद अभी नहीं खायेगा।"


"फिर तू यहां बैठकर क्या कर रही है? उसके पास जाकर बैठ। उससे बातें कर। बेचारा अपना घरबार छोड़कर तेरे से बियाह किया है, क्या पता उसके मन में क्या चल रहा है।"


"हाँ, तुम्हें तो उसी की फिक्र है। मेरी तो कोई फिक्र ही नहीं।"


"अरे पगली, अब मैं तेरा ध्यान कैसे रखूँ? अब तेरा पति हो गया है। इत्ना अच्छा इत्ना जोशीला मर्द मिला है तुझे। और क्या चाहिए तुझे? जा उसके पास जाकर बैठ। और हाँ, अगर वह कुछ करने को चाहे तो मना मत करना।" सुमन देवी ने एक तरह से जोर से ही कुसुम को खडा कर दिया।


"कुछ उलटा सीधा तो नहीं करेगा ना?" मासूम कुसुम की बात पे सुमन देवी की दाँत बाहर आने लगती है।

"अरे बाबा, नहीं करेगा। और करेगा भी तो चुपचाप बर्दाश्त कर लेना। लड्की जोकर पैदा हुई है इत्नी भी समझ नहीं है। और अगर समझती भी है तो अंजान बनी फिरती है। अब जा यहां से।"

यूँ तो कुसुम को सब पता है। लेकिन अपनी माँ के पास एसी बातों से उसी शर्म महसूस होती है, शायद इसी लिए वह इस तरह अंजान बनने का नाटक करती है। कुसुम घर के बाहर आकर देखती है, पवन दूर खेत के पास नीम के पेड के नीचे उदास होकर बैठा हुआ है।

----------------------------


भाग 37/2

-----------


पवन तन्हाई में बैठकर उसके साथ हुए आज के घटनाक्रम को समझने की कोशिश करने लगा था। कुछ दूरी पर आज सुबह उसका खोदा हूआ गडडा है। किस तरह से उसका जीवन बदलता जा रहा है।

पवन एक पल के लिए सोच में पड गया, तो क्या वह खुद कुसुम का पति है? लेकिन यह कैसे हो सकता है? तो क्या उसका कोई बाप नहीं? वह खुद ही बाप और बेटा है? पवन को इस उलझन में पाकर राजकुमार चंद्रशेखर अंतर्मन में बोल उठा,

"क्यों परेशान हो रहे हो पवन! तुम्हारे मन से यह दुविधा निकाल दो। जो हो चुका है उसे स्वीकार कर लो।"

"लेकिन कैसे राजकुमार, मैं ने जो कुछ भी किया! वह बस कुसुम को उस लाला के चुंगल से बचाने के लिए किया है। मानता हूँ मैं कुसुम को पसंद करने लगा हूँ और ना चाहते हुए भी सब कुछ भूलकर उसके प्यार में पड गया। लेकिन,,,," पवन कुछ बोल नहीं पाया। पर राजकुमार पवन की दुविधा समझ रहा था।


"मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूँ पवन। तुम्हारी जगह कोई भी होता, उसके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता। मैं तुम्हारी दुविधा दूर किए देता हूँ। तुम्हें यही संकोच है ना, कुसुम अगर तुम्हारी माँ है तो तुम्हारी बीबी कैसे बन सकती है?

देखो पवन तुम भविश्य से आये हो, आज जो भेडिया तुम ने देखा वह हमारे राज्य का था। उसे आना चाहिए था तुम्हारे समय पर। लेकिन देखो यह भेडिया यहां इस समयकाल में पहुँच गया। एसा कैसा हुआ? क्यौंकि यहां मैं मौजूद हूँ। मेरे कारन ही वह भेडिया समय चक्कर को पार करके यहां तक पहुँच पाया है। और उसके पीछे आनेवाले सिपाही उसे ढूँढ नहीं पाये।

तुम्हें याद है, कुसुम की माँ सुमन देवी ने कुसुम से क्या कह रखा था?"


"कौन सी बात?" पवन चुपचाप अंतर्मन में राजकुमार से वार्तालाप समझने में लगा था।


"वही की बेटी तेरे लिए दूर देश से,,,,,"


"कोई राजकुमार आयेगा और तुझे अपना बना लेगा।"


"हाँ पवन यही बात। वह राजकुमार कोई और नहीं मैं हूँ। तुम्हारे अन्दर शक्तियों का बढ़ना, तुम्हारे सम्भोग करने की ताकत बढ़ना, और भी जो शक्तियाँ जो शायद तुम्हें बाद में मिले, उसका स्रोत मैं हूँ। तुम जानते हो आज जो भेडिया तुम ने दफन किया है उसके अन्दर भी एक शक्ति है, जो तुम्हें मिलेगी। यह भेडिया मेरे पिताजी ने खास मेरे लिये पृथ्वी लोक से खोज निकाला था। और इसके अन्दर सोने का दिल बना हूआ है। तूम पूछ रहे थे, वह सोने की मुद्राएँ कहाँ से आई? वह मुद्राएँ इसी भेडिया से बनी हैं। मेरे पिताजी ने एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ ढालकर उस भेडिये का दिल बनाया था। समय के साथ साथ वह एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ तुम्हें मिलेगी। अब यह दुविधा और संकोच दिल से निकाल दो। सृस्टी में हर एक प्राणी का पिता होता है। तुम्हारा पिता कोई और नहीं मैं हूँ। और शायद इसी लिए मेरी आत्मा तुम्हारे साथ जुड़ पाई है!" पवन को समझते देर नहीं हुई। लेकिन अब उसका ध्यान इन सबसे हटकर उन सिक्कों पे चला गया। एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ? इत्नी दौलत तो किसी महाराज के पास भी नहीं होगी!


"तो वह मुद्राएँ सारी हमारी हैं? मतलब अब हमें जमींदार बनने से कोई नहीं रोक सकता। राजकुमार, यह सब तुम्हारे कारन हुआ है। मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूँगा।"


"नहीं मेरे दोस्त, मुझे शर्मिंदा न करो। तुम इस योग्य हो, इसी लिए यह तुम्हारी किस्मत थी। लेकिन मेरे से एक वादा करो पवन, समय आने पर तुम मेरी मदद करोगे। मुझे अपने राज्य में लौटने के लिए जो कुछ करना पडे वह तुम्हें करना होगा!"


"मैं तुम्हें वचन देता हूँ। समय आने पर तुम्हारा यह दोस्त तुम्हारी हर तरह से सहायता करेगा।"


"वह देखो, तुम्हारी नई नवेली दुल्हन तुम्हारे पास आ रही है।"


"अब तुम चुप रहो। तुम्हें जो कुछ करना है मेरे अंतर्मन से करते रहो। शरीर मेरा है मुझे सम्भालने दो।"

"जो आज्ञा मित्र!"
Behad shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

Well-Known Member
20,940
76,572
258
भाग 38/1

---------


कुसुम बिना कुछ कहे पवन के पास आकर बैठ गई। पवन ने बस एकबार उसकी तरफ चेहरा फेरकर मुस्कुराया। और फिर उसकी नजर आगे जाकर उस गड्डे पे टिक गयी।

"क्या बात है, तुम परेशान लग रहे हो?" कुसुम ने पवन के बाजू पर अपना हाथ रखा।


"नहीं तो, मैं ठीक हुँ। तुम बताओ, तुम खुश हो ना? कहीं मेरे से नाराज तो नहीं हो?"


"आज तुम ने मुझे डराया दिया था! आज अगर तुम आगे ना आते मैं अपनी जान दे देती। उस लाला से शादी करने से अच्छा मैं मर जाती।"


"ऐसा कैसा हो सकता है? और वह भी मेरे होते हुए? मैं अपनी कुसुम को कैसे दूसरे के हवाले कर सकता था? इतना प्यार जो करता हूँ।" पवन ने दोनों हाथों से कुसुम का चेहरा थाम लिया और अपने चेहरे के सामने लाकर प्यार भरी नजरों से देखने लगा। कुसुम ने एकबार तो देखा फिर लज्जा में अपनी आंखें बंद कर ली।


"तुम कितनी खुबसूरत हो कुसुम। तुम्हारी यह आँखें कितनी नशीली है। तुम्हारा यह चांद सा चेहरा देखकर मैं भला कैसे बिन प्यार किए रह सकता हूँ। आह मेरी कुसुम!"


दोपहर ढल चुका था। सूरज पच्छिम दिशा में डूबने को जाने लगा है। अभी तक सूरज की किरनें आसपास को जगाये हुई थी। मेले का शोर शराबा चीख पुकार धीमी आवाज में यहां तक पहुँच रही है। आज मेले का आखरी दिन है , इसी लिए गावँ वाले कमर बांधकर खरीदारी करने में लगे हैं। इस तरफ कुसुम का घर गावँ के बाहर और पहाडी शृँखला के पास होने के कारन किसी भी मनुष्य का नाम ओ निशान नहीं था।

सिवाए दो इन्सान के। जो छुपकर, और पवन-कुसुम से तीस चालीस हाथ दूर एक बड़े पत्थर के पीछे बैठे उनका यह प्रेम बिलाप देख रहे थे। उन में एक लड़का था और दूसरी एक महिला।


यह मौसम भी पवन और कुसुम के प्रेम के लिए तैयारी करने में जुटा है । पवन के मीठे बोल के साथ उसके होंठ आकर कुसुम के गाल को छू गई। कुसुम के पूरे शरीर में बिजली दौड गई। कुसुम और ज्यादा असहज हो गई।


"तुम ऐसी लड्की हो कुसुम, जो एकबार तुम्हें देखे प्यार किए बिना रह ना पाये! मैं भी पहले दिन से तुम्हारे प्यार में पड गया था। मेरी कुसुम!" पवन ने कुसुम को अपनी बाहों में भर लिया। कुसुम भी एक मासूम लड्की की तरह उसके बाहों में समा गई।


"क्या तुम भी मेरे साथ वह सब करोगे?" कुसुम पवन की बाहों में पड़ी फुसफुसाकर कहने लगी।

कुसुम की इस मासूम और सीधी बात पे पवन को हंसी आ जाती है। वह कुसुम को देखते हुए कहने लगा,

"क्या? मैं क्या करूँगा? तुम्हारे साथ?"


"क्यों तुम्हें नहीं पता? जो एक पति अपनी पत्नी से करता है।"


"और वह भला कौनसा काम है? जो एक पति और पत्नी करते हैं?" कुसुम कहते हुए शर्मा रही थी और पवन मुस्कुरा रहा था।


"नहीं, तुम झूट बोल रहे हो! तुम्हें सब पता है।"


"अरे बाबा, मुझे नहीं पता। अगर तुम कहोगी नहीं फिर मुझे मालुम कैसे होगा? तुम्हें किसने बताया?"


"और कौन? वह आँचल और सुधा है ना! उन्होनें!"


"क्या कहा उन्होनें?"


"कहती हैं, इस में बहुत दर्द होता है!"


"अच्छा! तो तुम्हें दर्द होने से डर लगता है। और अगर दर्द ना हो फिर? फिर तो करोगी ना!" कुसुम चुप रही। बस पवन की बाहों में उसे सुकून और आश्रय मिल रहा था। वह अपना माथा टिकाए अपनी उंगलियों से पवन के छाती में कुरेदने लगी।


"क्या हुआ, बताओ ना! क्या तुम्हें नहीं करना? जो एक पति और पत्नी करते हैं?" पवन ने उसका चेहरा पकड़कर आंखों में आंखें डालकर कहा। कुसुम ने पलकें बंद कर ली।


"अच्छा चलो, जब तुम्हें नहीं करना, तो मैं भी,,,,"


"मैं ने एसा कहा क्या?" कुसुम ने पवन के मुहं पर हाथ रख दिया।


"मेरी मासूम कुसुम! तुम कित्नी अच्छी हो। मैं तुम्हें प्यार किए बिना कैसे रह सकता हुँ। तुम्हारा यह रूप तुम्हारा यौवन तुम्हारा यह सौंदर्य मुझे इसका स्वाद चखना है कुसुम। अब तुम मेरी बीबी हो।"

पवन ने कुसुम को प्यार से अपने से और कसकर जकड़ लिया। और बेतहाशा कुसुम को चूमने लगा। पहली बार किसी मर्द के बाहों में रहकर प्यार के इस भंवर में कुसुम पागल होने लगी। पवन उसके होंठ चूसकर सारा रस पी रहा था। कुसुम मर्द के छूने से अन्दर ही अन्दर गरम होने लगी। फिर काफी देर प्यार भरे चुंबन के बाद पवन और कुसुम की नजरें एक दूसरे से मिली। लेकिन अब कुसुम को और ज्यादा शर्म महसूस होती है और वह चेहरा को अपने हाथों में छुपा लेती है।


"कुसुम, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था मुझे कभी किसी लड्की से इस हद तक प्यार होगा। तुम्हें देखकर मैं सबकुछ भूल जाता हुँ। आज हमारी शादी का पहला दिन है। सुना है पति अपनी पत्नी को पहली मुलाकात में कुछ उपहार देता है। अगर मुझे पहले से पता होता मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ लाता। लेकिन फिलहाल मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हुँ। यह लो मेरी तरफ से हमारी शादी का उपहार।"


पवन अपनी जेब से एक सोने का सिक्का निकालकर कुसुम को देता है। कुसुम उस सिक्के को काफी देर तक देखती रही। गावँ वालों के हाथ में सोना आना मतलब उनके हाथ में सूरज चांद आना बराबर था। उनकी इतनी हैसीयत नहीं होती की वह सोने के गहने पहन सके। कुसुम काफी खुश होती है और पवन के लिए इसका दिल और ज्यादा दीवाना होने लगता है। जो लड़का उसे सोना दे सकता है वह उसके लिए सबकुछ कर सकता है।

"यह तो सचमुच सोने का है?" कुसुम उसे ही देखने लगी।


"हाँ बिलकुल खरा सोना है। लेकिन अभी मेरे पास यही है। यह मेरे प्यार की निशानी है। इसे संभालकर रखना। तुम जब भी इसे देखोगी समझ लेना मैं तुम्हारे पास हूँ। एकदिन मैं तुम्हारी झोली में एसे सिक्कों का ढेर लगा दूँगा। तुम्हारे सारे अंग पे सोने के जेवरात से भर दूँगा। देख लेना।"


"मेरे लिए तो यही काफी है।" कुसुम मुस्कुराहट के साथ बोलती है। वह बारबार सिक्के को ही देख रही थी।

----------------
भाग 38/2

-----------


"अब घर चलते हैं। अम्मा बुला रही थी तुम्हें!" कुसुम पवन से अलग होने की कोशिश करती है।


"रुको ना! अभी क्या करेंगे जाके! तुम्हारे साथ यहां बैठना अच्छा लगता है मुझे! अभी शाम ढलने में काफी देर है।" मजबूरी में कुसुम उठ नहीं पाई। उसी तरह पवन ने उसे पकड़े रखा।


"तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया कुसुम!"


"कौनसा? किस बात का?"


"वही, तुमने मैं ने पूछा था, तुम्हें करना है या नहीं?"


"यहां पे?"


"हाँ कुसुम, यहीं पर, देखो इस सुहाने मौसम को, यह मीठी मीठी हवाएं, यह मखमल जैसे घास, दूर तक किसी का नाम व निशान नहीं, यह संकेत है कुसुम। मेरे और तुम्हारे प्यार की। इस उज्ज्वल रोशनी में मुझे अपनी कुसुम का रूप यौवन सुधा पान करना है। अपने पति को सूख नहीं दोगी तुम?"


"हुँ।"


"तुम्हारी अम्मा ने तुम्हें कुछ सिखाया नहीं? मैं ने तो सुना है गावँ में लड़कियों को सबकुछ पहले से बताकर रखते हैं?"


"और नहीं तो क्या? अम्मा ने मेरा दिमाग खा लिया। आज से थोडी? जब से मेरी शादी की बात चलने लगी है तब से।"


"क्या कहती थी तुम्हारी अम्मा?"


"वह मैं तुम्हें कैसे बता सकती हूँ। बड़ी लज्जा की बात है।"


"बताओ ना! क्या कहती थी?"


"तुम बड़े जिद्दी हो। और क्या, कहती थी, पति अगर कुछ करे तो उसे मना मत करना। चुपचाप सह लेना।"


"अच्छा! और क्या कहती थी?"


"कहती थी, पहली बार में बहुत दर्द होता है। सुना है खून निकलता है।"


"खून? खून कहाँ से निकलेगा?"


"ऊँ, तुम बड़े गंदे हो। मैं नहीं बताती जाओ।" कुसुम को सहज करने के लिए पवन ने उसे गोदी में बिठाकर रखा है। कुसुम बारबार शर्माती और अपना चेहरा पवन के सीने में छुपा लेती।


"अब बता भी दो, देखो अब तो हम पति पत्नी बन चुके हैं। तुम मुझे नहीं बताओगी तो किसे बताओगी? बताओ ना, खून कहाँ से निकलेगा?"


"आँआँ, तुम,,, तुम,,, बड़े ओ हो, और कहाँ से? लड़कियों की बुर से निकलता है।" इतना बोलते ही कुसुम फिर से अपना चेहरा लज्जा में छुपा लेती है।


"अरे मेरी कुसुम शर्माती भी है? लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा है, आखिर वहां से खून निकलेगा क्यों? आजतक कभी निकला है क्या?"


"तुम ना जानबूझकर मुझ से यह सब पूछ रहे हो! मैं नहीं बताती।"


"सच बता रहा हुँ। मुझे नहीं पता। अब तुम नहीं बताओगी तो कौन बतायेगा? बताओ ना!!"


"तुम्हें सच में नहीं पता? कित्ने बुद्दू हो तुम। हमारे गावँ के लड़कों को सब पता रहता है। पता है, कोई कोई लड़का तो शादी से पहले ही कर लेते हैं।"


"तुम ना, बार बार यही बोले जा रही हो! आखिर यह तो बताओ वह करते क्या हैं? और कहाँ करते हैं?"


"तुम सच में सुनना चाहते हो? तो सुनो। अम्मा ने भी किस पागल के साथ मेरा बियाह करवा दिया। देखो, लड़कियों की जो बुर होती हैं ना, उसमें एक छेद होता है। उस छेद में लड़कों के पास जो ल,,,,लन,,,,,,,लिंग होता है जब वह बुर में घुसता है तब लड़कियों को दर्द होता है और वहीं से खून निकलता है। बुद्धू! अब समझे?"

मासूमियत से भरी कुसुम के हावभव से पवन मन ही मन मुस्कुराने लगा। कुसुम की जबानी यह सब सुनकर पवन को बड़ा अच्छा लगने लगा था। नीचे उसका लौड़ा बहुत पहले से गुर्रा रहा था। उसे अब किसी भी हाल में एक छेद चाहिए। जिस के अन्दर जाकर वह वीर्य त्याग दे सके।


"अच्छा यह बात है। तब तो तुम्हारे पास भी वह छेद होगा। और मेरे पास वह,,,," पवन उसके कान में गुनगुनाने लगा। इससे कुसुम अब पूरी तरह लज्जा में मरी जाने लगी।


"मुझे भी तुम्हारे उस बुर के छेद में अपना लौड़ा घुसाना है कुसुम! बताओ ना, घुसाने दोगी ना मुझे!" पवन फुसफुसाकर कहते कहते कुसुम के कान की लट को अपनी दांतों से प्यार से काट लेता है।


"मैं अब तुम्हारी हो चुकी हूँ। अपनी कुसुम से जो मर्जी आये करो। मैं तुम्हें रोकने वाली नहीं हुँ। मैं तुम्हारी बनना चाहती हूँ। मुझे अपना बना लो पवन।" कुसुम भी अब उत्तेजना में पसर गई थी। वह भी पवन के प्यार का पूरा साथ देने लगी।


"आह मेरी कुसुम!! तुम कितनी खुबसूरत हो।" पवन उसे बेतहाशा चूमने लगता है। कभी पवन तो कभी कुसुम खुद एक दूसरे के होंठ को चूस रहे थे। धीरे धीरे यह खेल बढता गया। पवन चुंबन के साथ साथ कुसुम के शरीर को महसूस करता हुआ उसके पूरे शरीर को टटोलने लगा। और फिर कुसुम कुछ लम्हें के बाद आधी नंगी हो चुकी थी। पवन ने भी अपना कमीज खोल दिया।


मुलायम घास की चादरों पे कुसुम खुद ब खुद लेट जाती है और पवन उसके ऊपर। धीरे धीरे इस प्यार में दोनों खो गए और कुछ क्षण बाद कुसुम को पवन पूरा नंगा कर देता है। कुसुम के अमरूद जैसे सफेद दूध को देखकर पवन मानो पागल सा हो गया। वह कुसुम के गोल दूध पर टूट पड़ा। और एक प्यासे भूके की तरह दोनों अमरूद को बारि बारि से चूसने लगा।


"कुसुम अपना यह पेतिकोट भी खोल दो।" पवन उसके नाडे पे हाथ रखकर रस्सी की गट को ढीला कर देता है। कुसुम एक तरफ चेहरा फेरकर बस अपनी कमर को थोडी उंची करती है। जिससे पवन उसे खींचकर कुसुम को मादरजात नंगी कर देता है।

"तुम्हारे बुर पे एक भी बाल नहीं है कुसुम। कित्नी सुन्दर लग रही है यह?" पवन उसके दोनों टांगों को खोलकर बीच में बैठा कहने लगा।


"अम्मा रखने नहीं देती। यह वाला कल ही साफ किया है।" पवन उस मुलायम स्थान पे प्यार से हाथ फेरने लगा। कुसुम कद काठी में लम्बी थी, लेकिन अभी भी उसका शरीर एक नाजुक कलि जैसा है, लेकिन उसके बुर का आकार देखकर एसा प्रतीत होता है जैसे किसी युवती शरीर की बुर हो। बुर का घिराव और आयतन अपने आप में काफी लम्बा चौडा था। कुसुम की इस औरतवाली चूत को देखकर पवन उसमें कब लौड़ा डालेगा यही सोचने लगा।


"अच्छा किया तुम ने! मुझे साफ बुर बहुत पसंद है। इससे बुर की सौंदर्य दिखती है। तुम्हारी तरह तुम्हारी बुर भी कित्नी मदहोश करनेवाली है।" पवन भी अब अपना कमीज उतारने लगा। उसके कमर में धोती बंधी हुई है। उसे भी खोलकर एक तरफ रख देता है। पवन अब पूरा नंगा होकर कुसुम के पैरों के बीच व बीच बैठा था। पर कुसुम की सांसे अटक गई। उसकी आंखें बड़ी हो गई। उसका सीना जोर जोर से धडकने लगा। क्यौंकि उसने पवन का महा मोटा और लम्बा लौड़ा देख लिया है। क्या यही लौड़ा उसकी चूत को फाडने वाला है? कुसुम यह सोचने लगी।


"मुझे तुम्हारी चूत बहुत पसंद आई है कुसुम! तुम्हें कैसा लगा मेरा लौड़ा! अच्छा है ना यह?" पवन बेझिझ्क बोलता गया। पवन ने एक हाथ से लौड़े को पकड़ रखा है। लेकिन उसका चौड़ा हाथ भी लौड़े को ले नहीं पा रहा था। पवन का लौड़ा एक अजगर सांप की तरह दिखने लगा कुसुम को। उसकी हल्क सूखने लगी।


"यह बहुत बड़ा है।" कुसुम की आवाज में घबड़ाहट थी। पवन उसे समझ गया।


"कुछ नहीं होगा तुम्हें? यह लौड़ा तुम्हारे बुर के लिए ही बना है। और तुम्हारी चूत इस लौड़े का इन्तज़ार कर रही थी इतने दिनों से। आज इन दोनों का मिलन होगा।" पवन कुसुम के ऊपर झुक गया। और उसे चोदने को तैयार होने लगा।


"मुझे बहुत दर्द होगा। यह बहुत मोटा और बड़ा है। इतना बड़ा भी होता है क्या?" पवन झुककर कुसुम को एक चुम्मा देता है। "थोड़ा आराम से घुसाना तुम।" सहमी कुसुम डरते हुए बोली।


"मैं तुम्हारा पति हूँ कुसुम। तुम्हें मैं कैसे दर्द होने दे सकता हूँ। तुम बिलकुल चीन्ता मत करो। तुम अपना यह पैर थोड़ा खोलकर रखो। देखना मैं आराम से मेरे लौड़े को तुम्हारी इस नाजुक चूत के छेद में घुसा दूँगा।" पवन की बात पे कुसुम पुतली की मानींद अपना पैर खोल देती है। उसकी चूत का मुहाना अब पवन के लौड़े के लिए पूरी तरह से तैयार था।


"आअह आअह, धीरे डालना।" कुसुम चटपटाते हुई बोली। पवन ने अपना लौड़ा उसकी चूत के दाने पर घिसना शुरु कर दिया। पवन को क्ंवारी चूत मारने का तजुर्बा है। क्यौंकि इससे पहले उसने अपनी बहन राधा को चोदा है। लेकिन वह चुदाई पागलपन से भरी थी, उसमें जल्दबाजी थी। लेकिन इस मिलन और सम्भोग में प्यार है, कुसुम के लिये हमदर्दी है, और जल्दबाजी बिलकुल नहीं। इसी लिये पवन सब काम धीरे धीरे करना चाह रहा था। उसने लौड़े का सुपारा चूत के मुहाने मारना शुरु किया। सख्त लण्ड का दबाव कुसुम के चूत पे ऊपर पडते ही कुसुम अनजाने और आगमन आनन्द और भय में खुद को तैयार करने लगी।

-----------------
Behtareen zaberdast shaandaar update bhai
 

Naik

Well-Known Member
20,940
76,572
258
भाग 38/5

-----------


काफी देर तक दोनों को कोई सुद्बूध नहीं रही। पवन अपने बलशाली नंगे शरीर के साथ मुलायम नाजुक कलि नंगी कुसुम के ऊपर पड़ा रहा।

फिर काफी समय बाद कुसुम ने आंखें खोली। मानो एक लम्बी नींद के बाद उसकी आंख्ँ खुली हो। पवन उसके पास लेट गया। बीर्य रस अब भी कुसुम की चूत की छेद से लगातार टपकता जा रहा था। कुसुम का पूरा शरीर सुन्न पड गया। उसने आंख्ँ खोलकर देखा, उसका सपने का राजकुमार उसके बाजू में लेटा उसके शरीर को सहला रहा है।


"क्या हुआ ? थक गई हो?" पवन के चेहरे पर एक अपनापन महसूस हुआ कुसुम को।


"हुँ," कुसुम ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई।


"तुम्हारा पहली बार है ना! धीरे धीरे तुम्हारी आदत हो जायेगी। अब हमें इस तरह हर समय करना है। अभी से थक जाओगी तो कैसे चलेगा।" पवन के मजाक पर कुसुम ने एक फीकी मुस्कान दी।


"मेरे शरीर में बिलकुल भी जान नहीं है। आह आह उई माँ,, मेरी टाँगे,,,, आह कितना दर्द कर रहा है यह।" कुसुम की आह व पुकार पे पवन उसके शरीर पर हाथ फेरने लगा। शाम ढल चुकी थी। आसपास अब अंधेरा सा होने लगा है।


"चलो कुसुम, घर चलते हैं। काफी समय हो चला है। तुम अपना कपडा पहन लो।" पवन ने कुसुम को सहारा देने की कोशिश की। कुसुम को पकडते हुए पवन ने उसकी पेतिकोट बांधी, उसकी साड़ी जैसे तैसे लगाया और फिर उसने अपना कपडा पहना। कुसुम को उठाने की कोशिश की, लेकिन उसके शरीर में कोई जान बाकी नहीं थी। वह पहली चुदाई में बुरी तरह से थक चुकी थी।


"मेरे से चला नहीं जाएगा। आह आह,, मैं,,,,,मैं चल नहीं पाऊँगी। आऊ मेरी बुर में कितना दर्द है।" कुसुम कराह रही थी।


"कोई बात नहीं, मैं तुम्हें उठाता हूँ। चलो।" पवन ने उसे अपने गोद में ले लिया। किसी बच्चे की मानींद हल्की फुल्की थी कुसुम। लेकिन उसका शरीर किसी मुलायम मखमल की तरह था। गांड में हाथ रखकर वह हाथ भी कुसुम के कूल्हों में समा जाता।

पवन कुसुम को गोदी में उठाकर घर तक ले आया।

सुमन देवी काफी देर से दोनों का इन्तज़ार कर रही थी। उन्होने कुसुम की सुहागरात के लिए कमरे के अन्दर अच्छे से बिछौना बिछा रखा था। अच्छा खाना पकाया। लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी जब कुसुम आई नहीं तो वह खुद जाकर दोनों को बुलाने चली गई थी। खेत के कुछ पास आकर जब उन के कान में कुसुम की कराहने की आवाजें आई, तब वह समझ गई, उनके दामाद ने कुसुम की चूत की सील तोड दी है। दोनों जिंदगी की पहली चुदाई का आनन्द लेने में खोये हुए हैं। सुमन देवी चुपचाप घर पे पवन कुसुम का इन्तज़ार करने लगी।


पवन की गोद में कुसुम को सुन्न पड़ा हूआ देखकर एक लम्हे के लिए सुमन देवी घबरा गई।


"बेटा, क्या हुआ कुसुम को?" सुमन देवी दौड़ी उसके पास चली आई। पवन कुछ बोलने जा रहा था लेकिन कुसुम पहले ही बोल पड़ी,


"कुछ नहीं माँ, मैं थोडी थक गई हूँ।" कुसुम ने धीमी आवाज में कहा।


"बेटा पवन, इसे कमरे में जाकर लिटा दो।" सुमन देवी के कहने पर पवन कमरे में जाकर कुसुम को लिटा देता है। कुछ पल के लिए वह कुसुम के पास बैठा रहा। फिर देखा सुमन देवी अपने हाथ एक बर्तन में कुछ लाई है।


"ले कुसुम, इसे पी ले। गरम दूध है, हल्दी मिलाकर लाई हुँ, तुझे आराम मिल जाएगा।" सुमन देवी कुसुम को सहारा देकर दूध पिलाने लगी। पवन माँ बेटी में इस प्यार को देखकर सोचने लगा, उसकी नानी वाकई बहुत अच्छी है। लेकिन यह बेचारी अब कुछ ही दिन की मेहमान है। राधा के जनम लेने के दो महीने बाद बेचारी मर जायेगी। यह पवन को भले पता हो लेकिन इस बेचारी को इसका कोई अंदाजा नहीं है।


"माँ जी, मैं आता हुँ। थोड़ा बाहर जा रहा हुँ। आप दोनों बातें करो।" पवन ने कहा।


"कहाँ बेटा? तुम ने खाना भी नहीं खाया?" सुमन देवी अभी भी कुसुम को दूध पिला रही थी।


"नहीं, एसी कोई बात नहीं है। मैं अभी आ रहा हूँ।" पवन ने मुस्कुराकर कहा। पवन कमरे से निकल गया। उसे असल में शौच करने जाना था। काफी देर से उसने रोककर रखा था। वह घर के पीछे आ गया जहाँ शौच करने की जगह थी। और इधर सुमन देवी कुसुम का हाल पूछने लगती है।


"पति से बड़ा प्यार हो गया है तुझे? मेरे पास तो बड़ी शर्मा रही थी। और खुद उसके पास जाकर नीचे लेट गई। क्यों?" सुमन देवी अपनी बेटी से मजाक में छेड़खानी करती है।


"मैं कहाँ लेटी? उसने खुद करा!" कुसुम दूध पीकर लेट गई।


"और तूने मना भी नहीं किया? क्यों?" सुमन देवी के चहरे पर मुस्कान थी।


"आह माँ मुझे मत छेड़ो। तुम नहीं जानती उसे, मुझे बहला फुसलाकर चोद लिया उसने। कहिँ मैं मना कर सकती थी क्या? तुम ही कहती थी, पति के आगे चुपचाप रहना। जो करे करने देना।" कुसुम धीरे धीरे बोलने लगी।


"अच्छा? और तू जो इतनी जोर जोर से चीख रही थी? चिल्ला रही थी। उसका क्या?"


"माँ? तुम भी ना! कितनी गंदी हो, भला एसा कोई करता है क्या? अपने दामाद बेटी की चुदाई कौन देखता है?" कुसुम ने शर्म के मारे अपना चेहरा छुपा लिया।


"अरे बाबा, मैं ने नहीं देखा, मैं तो बैठे बैठे परेशान हो रही थी। सोचा पता नहीं पवन को और तुझे भूक लगी होगी, इसी लिए बुलाने गई थी तुम दोनों को। लेकिन कुछ ही दूर जाने पर तेरी आवाज मेरे कान पड़ी। मुझे जो समझना था मैं समझ गई, इसी लिए वहां से चली आई। अब बता, तुझे अच्छा लगा ना! दर्द तो नहीं हुआ रे?" सुमन देवी कुसुम के माथे पर ममता का हाथ फेरने लगी।


"नहीं माँ, मुझे दर्द नहीं हुआ। शुरु में एकबार हुआ था। लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ, उसने एसा कुछ किया, दर्द बिलकुल गायब हो गया। चूत से कितना खून निकला मेरा। मैं तो बहुत डर गई थी माँ। पर उसने कितने प्यार से मुझे समझाया। कितना अच्छा है वह माँ। वह सिर्फ मेरा है माँ। मैं भी उससे बहुत प्यार करने लगी हूँ माँ।" कुसुम अपनी माँ से लिपट गई।


"भगवान करे तुझे वह सारी खुशी मिले जो एक औरत को चाहिए। अच्छा यह तो बता उसका वह कितना बड़ा है? ठीक ठाक तो है ना?" सुमन देवी को हर चीज जननी थी।


"ठीक ठाक क्या होता है माँ। तुमने जिस तरह मुझे सिखाया था, मर्द का लौड़ा इत्ना बड़ा होता है। उसका तो उससे भी काफी बड़ा और मोटा है। जानती हो माँ, एकबार तो डर हि गई थी। आखिर यह कैसे मेरे इतनी सी छेद में जा सकता है। कितना दानव है बिलकुल। कलाई जितना मोटा और लम्बा है उसका लौड़ा। कितना बेदर्दी से चोदा है मुझे। पूरी जान निकाल दी है मेरी। आह मेरी टाँगों में बिलकुल भी हिम्मत नहीं है। हिला हिला के पेला है मुझे।"


"चल, अब तेरा सहारा हो गया है। पवन जैसा इतना अच्छा लड़का तुझे पति मिला है। मैं बहुत खुश हूँ कुसुम। तेरा घर बस गया। अब अपने प्यार से पवन को बान्धने की कोशिश करना। नहीं तो वह फिर से एक दो महीने के बाद चला जाएगा।"


"नहीं माँ, मैं उसे कहिँ जाने नहीं दूँगी। मैं उसे कहुँगी हमारे खेत पर खेती करने के लिए। उसे अपने से अलग नहीं होने दूँगी माँ। मैं उससे प्यार करने लगी हूँ माँ। मैं उसके बिना नहीं जी सकती। वह बहुत अच्छा है।" कुसुम अपनी माँ से लिपटी रोने लगी।


"वह कहिँ नहीं जाएगा पागल। वह भी तेरे से प्यार करता है। यह सब छोड़, और यह बता तूने उसका पानी कहाँ गिरवाया? उसने अपना बीर्य तेरी चूत में गिराया है? या बाहर?"


"उसने तो सारा पानी अन्दर ही डाला है। उसी की वजह से मैं इत्नी थक गई हूँ माँ। कितना सारा बीर्य गिराया उसने। अभी तक वहीं घास पर लगा होगा। मेरे से अभी भी टपक रही है।"


"अरे पगली, इसे कामरस बोलते हैं। तेरा भी पानी गिरा है, इसी लिए थक गई है। तूने मेरा दिल खुश कर दिया मेरी प्यारी बेटी। अभी तुझे और लेना है। जितना हो सके उसका पानी अन्दर चूत में ही गिरवाना। इससे तू जल्दी से माँ बन सकती है। मेरी प्यारी बेटी।"


"तो क्या इसी तरह से बच्चा होता है माँ? चूत में पति का बीर्य गिरवाने से?"


"हाँ री पगली हाँ, और तूने गिरवा दिया है। भगवान करे, इसी मिलन से तेरे पेट में बच्चा ठहर जाये, पहले सम्भोग का बच्चा सबसे अच्छा और सौभाग्यशाली होता है। अब मेरे घर पर भी बच्चे की किलकारियां सुनने को मिलेगी। भगवान करे तेरी कोख से चांद सा लड़का पैदा हो। अब तू आराम कर ले। पवन को आने दे, तुम दोनों को एक साथ खाना देती हुँ। रात को वह तुझे छोड़ेगा नहीं। उस के लिए थोडी देर आराम कर ले।" सुमन देवी प्यार से अपनी बेटी का माथा चूमती है और उसे आराम करने के लिए कमरे में छोड़ देती है।

-------------


इधर पवन और कुसुम के चले जाने के बाद उसी नीम पेड के नीचे वह जोड़े आ चुके थे, जो इतनी देर से पवन और कुसुम को मिलन में ब्यस्त देखने का मजा ले रहे थे। वह दोनों उस पेड के नीचे आये, और अपनी प्रेमगाथा को याद करने लगे। दोनों उसी अवस्था में प्यार में खोये अपने अतीत वर्तमान भविश्य के सपनें देखने लगे। और फिर उनके बीच दोबारा मिलन का प्रक्रिया शुरु हो जाता है और फिर उसी चीख व पुकार के बीच सम्भोग क्रिया जारी रहता है।
भाग 39/1

---------

नगर की हवेली

--------●-------


पिछ्ले कुछ दिनों से हेमलता बड़ी परेशान हैं। उसके मन में बड़ी उलझनें हैं। कई दिनों से उसे बुरे बुरे सपने आ रहे हैं। हेमलता अगर एक क्ंवारी लड्की होती, तब शायद यह सपने उसके लिए आनन्दपुर्ण होते। लेकिन एक बिधवा और तीन बच्चों की माँ, जमींदारनी की बीबी के लिए यह सपने किसी बुरे हादसे से कम नहीं हैं।

आज उसने अपनी दासी के जरिये तीन पहाडी की गुरु माँ को बुलाया है। उसका मकसद है इन बुरे सपनों से छुटकारा पाना।

हेमलता ने संगक्षेप में गुरु माँ को अपना हाल बताया। गुरु माँ ने सबकुछ सुनने के बाद कहा,


"रानी माँ, एक औरत के लिए गर्भवती होने का सपना देखना अच्छा श्गुन होता है। लेकिन आप एक बिधवा नारी हैं, इसी लिए आप परेशान हो रही हैं।"


"आप ने सही सोचा गुरु माँ, मैं एक बिधवा के साथ साथ जमींदार सूर्यप्रकाश सिंह जी की पत्नी हुँ। अब वह तो दुनिया से चले गए, एसे में अगर यह सपना सिर्फ सपना होता फिर चिंता की कोई बात नहीं थी। लेकिन एक जैसा सपना कई दिनों तक बार-बार देखना, मुझे बड़ी चिंता हो रही है। आप जरा सोचें लोग क्या कहेंगे? और भला इस उम्र में आकर किसी पराये मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाना, मैं सोच भी नहीं सकती।" हेमलता की बातों से उसकी परेशानी साफ झलक रही थी।


"रानी माँ, क्या आप का माहवारी अभी भी चालू है? शरीर में कोई दिक्कत तो नहीं है?"


"नहीं एसी कोई बात नहीं है। मेरी माहवारी अभी भी चालू है।"


"आप बुरा ना मानें तो क्या मैं एकबार आप का हाथ देख सकती हूँ?" गुरु माँ ने कहा।


"हाँ देख लीजिये! इसमें पूछने की क्या आवश्यकता है?" हेमलता हाथ आगे बढा देती है। रानी हेमलता जानती हैं, इस क्षेत्र में गुरु माँ से बेहतर कोई हाथों की रेखा पढ़नेवाला नहीं है। औरतें अपना हाथ गुरु माँ को दिखाती है और मर्द गुरु जी को।

गुरु माँ कुछ देर तक हाथों की लकीरों को परखती रही और फिर चेहरा उठाकर रानी हेमलता को देखने लगी।


"क्या लगा आप को? कुछ नया दिखा आप को? काफी साल पहले आप ने मेरा हाथ देखा था। जब पद्मलता पैदा हुई थी, उस से पहले आप ने हाथ देखकर कहा था, आप के भाग्य में दो लडके और एक लड्की पैदा होगो। और वही हुआ था।"


"हाँ रानी माँ, मुझे भी याद है। यह हाथों की लकीरें और रेखायें ग्रहों नक्षत्रों से जुड़े हुए होते हैं। ग्रह नक्षत्रों का उलट फेर कभी कभी हाथों की रेखाएं बदल देती हैं रानी माँ। आप की रेखाएं भी बदल चुकी हैं। रेखाएं बता रही हैं, आप की कोख से तीन सन्तान और पैदा होंगी। आप फिर माँ बनोगी।"


"क्या?"


"हाँ रानी माँ, यही संजोग है। मुझे नहीं पता आगे क्या होनेवाला है, लेकिन फिलहाल यही आपकी किस्मत है।" कुछ देर तक हेमलता और गुरु माँ दोनों खामोश बैठे रहे। फिर हेमलता ने गम्भीर होकर कहा,


"इस बात की खबर किसी को नहीं होनी चाहिए। यह बात मेरे और आप तक सीमित रहनी चाहिए। आप समझ रहे हैं ना?"


"आप चिंता न करे रानी माँ। जमींदार घराने का मान सम्मान बचाए रखने की जिम्मेदारी हमारी भी है। रानी माँ आप से एक और विषय पे बात करना चाहती हूँ, अगर आज्ञा हो तो?"


"कहिए! क्या बात है?"


"बात दर असल यह है, हम बरसों तक आप की हवेली के पास रहते आये हैं, लेकिन आगे पता नहीं क्या होगा! क्या मालुम नया जमींदार कैसा होगा? अगर आप नए जमींदार को कह देती तो हमारा आश्रय पक्का हो जाता?" गुरु माँ इल्तिजा करती है।


"हाँ यह एक समस्या है। अब नया जमींदार कौन होगा कैसा होगा हमें अभी तक उसका अनुमान नहीं है। और ना ही हम उनके आगे एसी छोटी बात की अर्जी रख सकते हैं। एसे में अगर नया जमींदार नहीं चाहता की आप वहां रहें तो आप हमारे यहां नगर में आ जायें, हम उसका इन्तज़ाम कर देंगे।"


"यह तो और अच्छी बात है। इश्वर आप का भला करे। मैं चलती हूँ।" गुरु माँ अपनी समस्या समाधान पुर्वक चली गई।

--------------------
भाग 39/2

-----------


दो दिन बीत गया लेकिन अभी तक पद्मलता का हार मिल नहीं पाया। नगर का हर एक आदमी अब यह जान चुका है हार लौटाने वाले को सौ सोने की मुद्राएँ पुरस्कार में दी जायेगी। इसी लिये नगर की नदी के आसपास आजकल हर समय लोगों की भीड लगी हुई है।

कुछ गोताखोर डुबकी लगाकर पानी के नीचे तक चला जाता और अपने साथ कीचड़ पत्थर और कंकर उठाकर लाता। ज्यादा लोगों की भीड एसे आदमियो की हैं जिन्हें बस यह माजरा देखने में मजा आ रहा था। उसी भीड में कुछ सिपाही भेस बदलकर मौजूद थे। यह रानी हेमलता का हुकम था, हार मिलने वाले से तुरन्त हार कब्जे में ले लिया जाये।

राजकुमारी पद्मलता आजकल अपनी माँ से डरी डरी रहने लगी थी, क्यौंकि उसे पता है उसने एक एसी गलती की है जिसकी कोई माफी नहीं हो सकती। लेकिन अभी भी उसे लगता है वह अंजान नौजबान युवक उसका हार लेकर जरुर वापिस आयेगा।

एक रात पद्मलता की दासी उसके सिर पर तेल लगा रही थी। एसे में रानी हेमलता उसके कक्ष में आती हैं।


"क्या बात पद्मा, आजकल तुम बाहर नहीं दिखती? और ना ही मेरे से बात करती हो?" हेमलता अपनी बेटी के पास बैठती है। दासी पास में हट जाती है।


"नहीं माँ एसी तो कोई बात नहीं है। बस शरीर थोड़ा,,,,,"


"मैं तुम्हारी माँ हुँ। तुम्हें अच्छी समझती हूँ। लाओ मुझे दो, मैं लगा देती हूँ। दासी, तुम जाओ।" हेमलता दासी को बाहर भेज देती हैं और खुद पद्मलता के बालों में तेल लगाने बैठ जाती हैं।


"तेरे बाल काफी बड़े हो गए हैं। इनका ख्याल रखा कर। और इतनी उदास मत रहा कर। एक ही तो बेटी है मेरी, तू भी अगर उदास रहेगी तो माँ होकर मैं कैसे बर्दाश्त कर सकती हूँ? अभी तक उस हार के लिए परेशान है ना! वह सब छोड़, हार मिल जाएगा।" हेमलता बड़े प्यार से तेल लगा रही थी। पद्मलता के बाल उसकी कमर के नीचे तक चला जाता था। पद्मलता की यह एक अलग खुबसूरती थी। जिसे वह चाहकर भी छुपा नहीं पाती।


"वह हार मिल जाएगा? पर कैसे माँ!"


"अरे मैं ने सिपाहियों को जासूस के भेस में शहर में लगा रखा है। इतना कीमती हार जिस किसी को मिलेगा वह हार को बेचने के लिए जरुर किसी सुनार के पास जाएगा। हार तो जरुर मिल जाएगा। लेकिन तुझे और ज्यादा सतर्क रहना चाहिए था। वह हमारी पुर्खों की हार है। तेरे दादाजी की निशानी है। तेरी दादी ने मरने से पहले मेरे से वादा लिया था, घर की बड़ी बहु को वह हार दूँ। अब तेरी कोई भाभी तो है नहीं कि मैं उसे यह हार पहनाऊँ, इस लिए तुझे मैं ने पहनने के लिए दिया था।"


"एसा क्या? मुझे यह बात नहीं पता थी माँ। नहीं तो मैं उसे और ज्यादा संभालकर रखती। उस दिन आप ने बताया था, इस तरह के दो ही हार बने है। वह दूसरा हार कहाँ है फिर?" पद्मलता मजे में अपनी माँ से माथे पर तेल लगवा रही थी।


"वह मुझे नहीं पता। यह बात तेरे पिताजी ने कही थी। लेकिन यह हार तेरे दादाजी ने तेरी दादी के लिए खरीदा था। बड़े प्यार करते थे अपनी बीबी को। तुझे अपने दादाजी के बारे में पता है ना!"


"नहीं तो? क्यों?"


"अरे, तुझे नहीं पता! राज्य के सब को पता है। और तू? मैं भी किस से पूछ रही हूँ। भला उस वक्त तो तू पैदा भी नहीं हुई थी। मुझे भी कहाँ पता था। तेरे पिताजी ने बताया था। यह एक लम्बी कहानी है।

तेरे दादाजी सुर्यबर्मण सिंह अपने पिता के एक एकलौता पुत्र थे। बहुत कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु हो गई। एसे में जमींदारी देखभाल करने की जिम्मेदारी उनके कंधे पे आ गई। लेकिन जमींदारी की देखभाली उनकी माँ रानी शान्तीलता करती थी। सुना है रानी शान्तीलता बहुत ही सुन्दर थी। तू भी अपनी दादी पे गई है। उनके भी बड़े बड़े बाल थे। शादी के काफी सालों तक उनकी कोख में बच्चा नहीं आ रहा था। फिर एक बड़े साधू के आशीर्वाद से रानी शान्तीलता पच्चीस साल की उम्र में गर्भवती हुई। और तेरे दादाजी सुर्यबर्मण पैदा हुए। धीरे धीरे समय बीतता गया।

और फिर जब सुर्यबर्मण की शादी की उम्र हुई तो रानी ने काफी लोगों से तेरे दादाजी की कुंडली बनाने को कहा। कुंडली तो बन गई, लेकिन उसके अनुसार राज्य या राज्य के बाहर किसी भी लड्की के साथ तेरे दादाजी की कुंडली मिल नहीं पा रही थी।

और देखते ही देखते तेरे दादाजी की उम्र पच्चीस साल हो गई। रानी शान्तीलता ने इस बीच काफी कोशिश की एक सुन्दर और सुशील लड्की ढूँढ निकालने की, लेकिन वह हो नहीं सका। आखिर जमींदार घराने में कुंडली देखकर ही बियाह कराया जाता है। और एकबार एक बड़े साधू आए, उनके आगे रानी ने अपनी परेशानी बताई। साधू ने कहा, इस पृथ्वी में एक ही एसी नारी है जिसके साथ तुम्हारे बेटे की कुंडली मिलती है। उसी से तुम्हारे बेटे की शादी हो सकेगी। रानी शान्तीलता ने जब पूछा, वह औरत कौन है? तो साधू ने वह और कोई नहीं खुद तुम हो। जो उसकी माँ है।

रानी शान्तीलता के पैर से जमीन खिसक गई। आखिर वह माँ थी। कैसे अपने ही बेटे से बियाह करती? लेकिन काफी सोच विचार के बाद शान्तीलता ने बियाह के राजी हुई। तब उनकी उम्र पचास के ऊपर थी। लेकिन देखने वालों ने कहा है, उस वक्त भी उनका रूप उनका यौवन किसी जवान लड्की की ईर्षा के कारन बन जाता। सुना है तेरे दादाजी और उनकी माँ ने एक पति पत्नी की तरह जीवन बिताया था। उनका प्यार एक माँ बेटा होते हुए भी एक सच्चे प्यार करने वाले प्रेमी प्रेमिका की तरह था। और उनके कोख से तेरे पिताजी ने जनम लिया। यह थी उनकी कहानी।" रानी हेमलता अपनी बेटी सुनाते सुनाते उसके बाल बान्ध चुकी थी।


"यह तो बहुत बड़िया प्रेम कहानी है माँ। और वह हार!" पद्मलता उत्तेजना में अपनी माँ की आमने सामने बैठ गई।


"वही तो, तेरे दादाजी अपनी माँ बनी बीबी से बहुत प्रेम करने लगे थे। और उन्होने इसी प्रेम को जताने के लिए वह हार पारस के सौदागरों से खरीदा था।"


"और इसी वजह से वह हार इतना महत्वपूर्ण है। माँ, तो क्या एक बेटा अपनी माँ से बियाह कर सकता है? दादाजी ने किया था।"


"बियाह तो दो प्यार करने वालों का मिलन है। साधारण लोग इस बात से डरते हैं लोग क्या कहेंगे? लेकिन एक जमींदार के ऊपर कौन सवाल उठायेगा? उस के बारे में कहने से पहले लोग दस बार सोचते हैं। और शायद इसी लिए उन्होने यह शादी की थी। एक जमींदार चाहे तो अपनी माँ से बियाह कर सकता है। क्यौंकि शादी करने से वह औरत दोबारा सुहागन बनती है। उसकी गरिमा और सम्मान दोबारा रानी के रूप में प्रतिष्ठा होती है। और वह फिर से बिधवा जीवन को त्याग देकर दोबारा बच्चों की माँ बन सकती है।"


"हाँ माँ यह सही कहा तुम ने। मुझे भी कभी कभी इच्छा होती मैं दोबारा तुम्हारी शादी करवाऊँ। तुम फिर से अपने पेट में बच्चा लो। मेरे और दो तीन भाई बहन हो जाये।" पद्मलता अपनी माँ को छेड़ती है।


"हट बदमाश, तेरा दिमाग भी क्या क्या सोचने लगा है! इस उम्र में मेरे पेट में कहाँ से बच्चा आयेगा?" हेमलता ने कह तो दिया, लेकिन उसका मन उसे यकीन दिला रहा था, नहीं हेमलता तुम अब भी गर्भवती हो सकती हो।।

-------------------
Behad khoobsurat shaandaar update bhai
 

Sanju@

Well-Known Member
4,695
18,821
158
बहुत अच्छी कहानी लिख रहे हैंआप
यह कहानी प्रजेंट , पास्ट और फ्यूचर पर आधारित है

आखिर पवन के डैड कौन है ? वो पास्ट में गया और अपनी मां से ही शादी कर लिया जबकि वो यह मालूम करने गया था कि उसकी मां की शादी किससे हुई थी । क्या वही खुद ही अपना पिता है या कोई और क्या दानव ही उसका पिता है
रानी हेमलता का हाथ देखकर गुरु मां ने कहा कि उसके अभी 3 बच्चे और होगे वो किसके होगे रानी पद्मलता को उसका हार कोन लाकर देगा कोन जमींदार होगा नया देखते हैं अगले अपडेट में पास्ट में में पवन और प्रेजेंट के पवन केसे एक हो सकता है ये प्रश्न बहुत ही पेचीदा आज रहा है वर्तमान पवन अपने बाप का पता लगाने पास्ट में गया और वह पे अपनी मां से ही शादी कर ली प्रेजेंट वाला पवन उसका बेटा है तो पास्ट वाला पवन कहा गया
 
Last edited:

snidgha12

Active Member
1,506
2,693
144
भाग 38/2

-----------


"अब घर चलते हैं। अम्मा बुला रही थी तुम्हें!" कुसुम पवन से अलग होने की कोशिश करती है।


"रुको ना! अभी क्या करेंगे जाके! तुम्हारे साथ यहां बैठना अच्छा लगता है मुझे! अभी शाम ढलने में काफी देर है।" मजबूरी में कुसुम उठ नहीं पाई। उसी तरह पवन ने उसे पकड़े रखा।


"तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया कुसुम!"


"कौनसा? किस बात का?"


"वही, तुमने मैं ने पूछा था, तुम्हें करना है या नहीं?"


"यहां पे?"


"हाँ कुसुम, यहीं पर, देखो इस सुहाने मौसम को, यह मीठी मीठी हवाएं, यह मखमल जैसे घास, दूर तक किसी का नाम व निशान नहीं, यह संकेत है कुसुम। मेरे और तुम्हारे प्यार की। इस उज्ज्वल रोशनी में मुझे अपनी कुसुम का रूप यौवन सुधा पान करना है। अपने पति को सूख नहीं दोगी तुम?"


"हुँ।"


"तुम्हारी अम्मा ने तुम्हें कुछ सिखाया नहीं? मैं ने तो सुना है गावँ में लड़कियों को सबकुछ पहले से बताकर रखते हैं?"


"और नहीं तो क्या? अम्मा ने मेरा दिमाग खा लिया। आज से थोडी? जब से मेरी शादी की बात चलने लगी है तब से।"


"क्या कहती थी तुम्हारी अम्मा?"


"वह मैं तुम्हें कैसे बता सकती हूँ। बड़ी लज्जा की बात है।"


"बताओ ना! क्या कहती थी?"


"तुम बड़े जिद्दी हो। और क्या, कहती थी, पति अगर कुछ करे तो उसे मना मत करना। चुपचाप सह लेना।"


"अच्छा! और क्या कहती थी?"


"कहती थी, पहली बार में बहुत दर्द होता है। सुना है खून निकलता है।"


"खून? खून कहाँ से निकलेगा?"


"ऊँ, तुम बड़े गंदे हो। मैं नहीं बताती जाओ।" कुसुम को सहज करने के लिए पवन ने उसे गोदी में बिठाकर रखा है। कुसुम बारबार शर्माती और अपना चेहरा पवन के सीने में छुपा लेती।


"अब बता भी दो, देखो अब तो हम पति पत्नी बन चुके हैं। तुम मुझे नहीं बताओगी तो किसे बताओगी? बताओ ना, खून कहाँ से निकलेगा?"


"आँआँ, तुम,,, तुम,,, बड़े ओ हो, और कहाँ से? लड़कियों की बुर से निकलता है।" इतना बोलते ही कुसुम फिर से अपना चेहरा लज्जा में छुपा लेती है।


"अरे मेरी कुसुम शर्माती भी है? लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा है, आखिर वहां से खून निकलेगा क्यों? आजतक कभी निकला है क्या?"


"तुम ना जानबूझकर मुझ से यह सब पूछ रहे हो! मैं नहीं बताती।"


"सच बता रहा हुँ। मुझे नहीं पता। अब तुम नहीं बताओगी तो कौन बतायेगा? बताओ ना!!"


"तुम्हें सच में नहीं पता? कित्ने बुद्दू हो तुम। हमारे गावँ के लड़कों को सब पता रहता है। पता है, कोई कोई लड़का तो शादी से पहले ही कर लेते हैं।"


"तुम ना, बार बार यही बोले जा रही हो! आखिर यह तो बताओ वह करते क्या हैं? और कहाँ करते हैं?"


"तुम सच में सुनना चाहते हो? तो सुनो। अम्मा ने भी किस पागल के साथ मेरा बियाह करवा दिया। देखो, लड़कियों की जो बुर होती हैं ना, उसमें एक छेद होता है। उस छेद में लड़कों के पास जो ल,,,,लन,,,,,,,लिंग होता है जब वह बुर में घुसता है तब लड़कियों को दर्द होता है और वहीं से खून निकलता है। बुद्धू! अब समझे?"

मासूमियत से भरी कुसुम के हावभव से पवन मन ही मन मुस्कुराने लगा। कुसुम की जबानी यह सब सुनकर पवन को बड़ा अच्छा लगने लगा था। नीचे उसका लौड़ा बहुत पहले से गुर्रा रहा था। उसे अब किसी भी हाल में एक छेद चाहिए। जिस के अन्दर जाकर वह वीर्य त्याग दे सके।


"अच्छा यह बात है। तब तो तुम्हारे पास भी वह छेद होगा। और मेरे पास वह,,,," पवन उसके कान में गुनगुनाने लगा। इससे कुसुम अब पूरी तरह लज्जा में मरी जाने लगी।


"मुझे भी तुम्हारे उस बुर के छेद में अपना लौड़ा घुसाना है कुसुम! बताओ ना, घुसाने दोगी ना मुझे!" पवन फुसफुसाकर कहते कहते कुसुम के कान की लट को अपनी दांतों से प्यार से काट लेता है।


"मैं अब तुम्हारी हो चुकी हूँ। अपनी कुसुम से जो मर्जी आये करो। मैं तुम्हें रोकने वाली नहीं हुँ। मैं तुम्हारी बनना चाहती हूँ। मुझे अपना बना लो पवन।" कुसुम भी अब उत्तेजना में पसर गई थी। वह भी पवन के प्यार का पूरा साथ देने लगी।


"आह मेरी कुसुम!! तुम कितनी खुबसूरत हो।" पवन उसे बेतहाशा चूमने लगता है। कभी पवन तो कभी कुसुम खुद एक दूसरे के होंठ को चूस रहे थे। धीरे धीरे यह खेल बढता गया। पवन चुंबन के साथ साथ कुसुम के शरीर को महसूस करता हुआ उसके पूरे शरीर को टटोलने लगा। और फिर कुसुम कुछ लम्हें के बाद आधी नंगी हो चुकी थी। पवन ने भी अपना कमीज खोल दिया।


मुलायम घास की चादरों पे कुसुम खुद ब खुद लेट जाती है और पवन उसके ऊपर। धीरे धीरे इस प्यार में दोनों खो गए और कुछ क्षण बाद कुसुम को पवन पूरा नंगा कर देता है। कुसुम के अमरूद जैसे सफेद दूध को देखकर पवन मानो पागल सा हो गया। वह कुसुम के गोल दूध पर टूट पड़ा। और एक प्यासे भूके की तरह दोनों अमरूद को बारि बारि से चूसने लगा।


"कुसुम अपना यह पेतिकोट भी खोल दो।" पवन उसके नाडे पे हाथ रखकर रस्सी की गट को ढीला कर देता है। कुसुम एक तरफ चेहरा फेरकर बस अपनी कमर को थोडी उंची करती है। जिससे पवन उसे खींचकर कुसुम को मादरजात नंगी कर देता है।

"तुम्हारे बुर पे एक भी बाल नहीं है कुसुम। कित्नी सुन्दर लग रही है यह?" पवन उसके दोनों टांगों को खोलकर बीच में बैठा कहने लगा।


"अम्मा रखने नहीं देती। यह वाला कल ही साफ किया है।" पवन उस मुलायम स्थान पे प्यार से हाथ फेरने लगा। कुसुम कद काठी में लम्बी थी, लेकिन अभी भी उसका शरीर एक नाजुक कलि जैसा है, लेकिन उसके बुर का आकार देखकर एसा प्रतीत होता है जैसे किसी युवती शरीर की बुर हो। बुर का घिराव और आयतन अपने आप में काफी लम्बा चौडा था। कुसुम की इस औरतवाली चूत को देखकर पवन उसमें कब लौड़ा डालेगा यही सोचने लगा।


"अच्छा किया तुम ने! मुझे साफ बुर बहुत पसंद है। इससे बुर की सौंदर्य दिखती है। तुम्हारी तरह तुम्हारी बुर भी कित्नी मदहोश करनेवाली है।" पवन भी अब अपना कमीज उतारने लगा। उसके कमर में धोती बंधी हुई है। उसे भी खोलकर एक तरफ रख देता है। पवन अब पूरा नंगा होकर कुसुम के पैरों के बीच व बीच बैठा था। पर कुसुम की सांसे अटक गई। उसकी आंखें बड़ी हो गई। उसका सीना जोर जोर से धडकने लगा। क्यौंकि उसने पवन का महा मोटा और लम्बा लौड़ा देख लिया है। क्या यही लौड़ा उसकी चूत को फाडने वाला है? कुसुम यह सोचने लगी।


"मुझे तुम्हारी चूत बहुत पसंद आई है कुसुम! तुम्हें कैसा लगा मेरा लौड़ा! अच्छा है ना यह?" पवन बेझिझ्क बोलता गया। पवन ने एक हाथ से लौड़े को पकड़ रखा है। लेकिन उसका चौड़ा हाथ भी लौड़े को ले नहीं पा रहा था। पवन का लौड़ा एक अजगर सांप की तरह दिखने लगा कुसुम को। उसकी हल्क सूखने लगी।


"यह बहुत बड़ा है।" कुसुम की आवाज में घबड़ाहट थी। पवन उसे समझ गया।


"कुछ नहीं होगा तुम्हें? यह लौड़ा तुम्हारे बुर के लिए ही बना है। और तुम्हारी चूत इस लौड़े का इन्तज़ार कर रही थी इतने दिनों से। आज इन दोनों का मिलन होगा।" पवन कुसुम के ऊपर झुक गया। और उसे चोदने को तैयार होने लगा।


"मुझे बहुत दर्द होगा। यह बहुत मोटा और बड़ा है। इतना बड़ा भी होता है क्या?" पवन झुककर कुसुम को एक चुम्मा देता है। "थोड़ा आराम से घुसाना तुम।" सहमी कुसुम डरते हुए बोली।


"मैं तुम्हारा पति हूँ कुसुम। तुम्हें मैं कैसे दर्द होने दे सकता हूँ। तुम बिलकुल चीन्ता मत करो। तुम अपना यह पैर थोड़ा खोलकर रखो। देखना मैं आराम से मेरे लौड़े को तुम्हारी इस नाजुक चूत के छेद में घुसा दूँगा।" पवन की बात पे कुसुम पुतली की मानींद अपना पैर खोल देती है। उसकी चूत का मुहाना अब पवन के लौड़े के लिए पूरी तरह से तैयार था।


"आअह आअह, धीरे डालना।" कुसुम चटपटाते हुई बोली। पवन ने अपना लौड़ा उसकी चूत के दाने पर घिसना शुरु कर दिया। पवन को क्ंवारी चूत मारने का तजुर्बा है। क्यौंकि इससे पहले उसने अपनी बहन राधा को चोदा है। लेकिन वह चुदाई पागलपन से भरी थी, उसमें जल्दबाजी थी। लेकिन इस मिलन और सम्भोग में प्यार है, कुसुम के लिये हमदर्दी है, और जल्दबाजी बिलकुल नहीं। इसी लिये पवन सब काम धीरे धीरे करना चाह रहा था। उसने लौड़े का सुपारा चूत के मुहाने मारना शुरु किया। सख्त लण्ड का दबाव कुसुम के चूत पे ऊपर पडते ही कुसुम अनजाने और आगमन आनन्द और भय में खुद को तैयार करने लगी।

-----------------
कुसुम

k62u-Hm-WK-t 4k7-MBcku-t IF5-ZHc-BT-t SKIow-Jcg-t rolnf-U31-t Z1-Qgz3j-X-t
 
Top