भाग 38/5
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काफी देर तक दोनों को कोई सुद्बूध नहीं रही। पवन अपने बलशाली नंगे शरीर के साथ मुलायम नाजुक कलि नंगी कुसुम के ऊपर पड़ा रहा।
फिर काफी समय बाद कुसुम ने आंखें खोली। मानो एक लम्बी नींद के बाद उसकी आंख्ँ खुली हो। पवन उसके पास लेट गया। बीर्य रस अब भी कुसुम की चूत की छेद से लगातार टपकता जा रहा था। कुसुम का पूरा शरीर सुन्न पड गया। उसने आंख्ँ खोलकर देखा, उसका सपने का राजकुमार उसके बाजू में लेटा उसके शरीर को सहला रहा है।
"क्या हुआ ? थक गई हो?" पवन के चेहरे पर एक अपनापन महसूस हुआ कुसुम को।
"हुँ," कुसुम ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई।
"तुम्हारा पहली बार है ना! धीरे धीरे तुम्हारी आदत हो जायेगी। अब हमें इस तरह हर समय करना है। अभी से थक जाओगी तो कैसे चलेगा।" पवन के मजाक पर कुसुम ने एक फीकी मुस्कान दी।
"मेरे शरीर में बिलकुल भी जान नहीं है। आह आह उई माँ,, मेरी टाँगे,,,, आह कितना दर्द कर रहा है यह।" कुसुम की आह व पुकार पे पवन उसके शरीर पर हाथ फेरने लगा। शाम ढल चुकी थी। आसपास अब अंधेरा सा होने लगा है।
"चलो कुसुम, घर चलते हैं। काफी समय हो चला है। तुम अपना कपडा पहन लो।" पवन ने कुसुम को सहारा देने की कोशिश की। कुसुम को पकडते हुए पवन ने उसकी पेतिकोट बांधी, उसकी साड़ी जैसे तैसे लगाया और फिर उसने अपना कपडा पहना। कुसुम को उठाने की कोशिश की, लेकिन उसके शरीर में कोई जान बाकी नहीं थी। वह पहली चुदाई में बुरी तरह से थक चुकी थी।
"मेरे से चला नहीं जाएगा। आह आह,, मैं,,,,,मैं चल नहीं पाऊँगी। आऊ मेरी बुर में कितना दर्द है।" कुसुम कराह रही थी।
"कोई बात नहीं, मैं तुम्हें उठाता हूँ। चलो।" पवन ने उसे अपने गोद में ले लिया। किसी बच्चे की मानींद हल्की फुल्की थी कुसुम। लेकिन उसका शरीर किसी मुलायम मखमल की तरह था। गांड में हाथ रखकर वह हाथ भी कुसुम के कूल्हों में समा जाता।
पवन कुसुम को गोदी में उठाकर घर तक ले आया।
सुमन देवी काफी देर से दोनों का इन्तज़ार कर रही थी। उन्होने कुसुम की सुहागरात के लिए कमरे के अन्दर अच्छे से बिछौना बिछा रखा था। अच्छा खाना पकाया। लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी जब कुसुम आई नहीं तो वह खुद जाकर दोनों को बुलाने चली गई थी। खेत के कुछ पास आकर जब उन के कान में कुसुम की कराहने की आवाजें आई, तब वह समझ गई, उनके दामाद ने कुसुम की चूत की सील तोड दी है। दोनों जिंदगी की पहली चुदाई का आनन्द लेने में खोये हुए हैं। सुमन देवी चुपचाप घर पे पवन कुसुम का इन्तज़ार करने लगी।
पवन की गोद में कुसुम को सुन्न पड़ा हूआ देखकर एक लम्हे के लिए सुमन देवी घबरा गई।
"बेटा, क्या हुआ कुसुम को?" सुमन देवी दौड़ी उसके पास चली आई। पवन कुछ बोलने जा रहा था लेकिन कुसुम पहले ही बोल पड़ी,
"कुछ नहीं माँ, मैं थोडी थक गई हूँ।" कुसुम ने धीमी आवाज में कहा।
"बेटा पवन, इसे कमरे में जाकर लिटा दो।" सुमन देवी के कहने पर पवन कमरे में जाकर कुसुम को लिटा देता है। कुछ पल के लिए वह कुसुम के पास बैठा रहा। फिर देखा सुमन देवी अपने हाथ एक बर्तन में कुछ लाई है।
"ले कुसुम, इसे पी ले। गरम दूध है, हल्दी मिलाकर लाई हुँ, तुझे आराम मिल जाएगा।" सुमन देवी कुसुम को सहारा देकर दूध पिलाने लगी। पवन माँ बेटी में इस प्यार को देखकर सोचने लगा, उसकी नानी वाकई बहुत अच्छी है। लेकिन यह बेचारी अब कुछ ही दिन की मेहमान है। राधा के जनम लेने के दो महीने बाद बेचारी मर जायेगी। यह पवन को भले पता हो लेकिन इस बेचारी को इसका कोई अंदाजा नहीं है।
"माँ जी, मैं आता हुँ। थोड़ा बाहर जा रहा हुँ। आप दोनों बातें करो।" पवन ने कहा।
"कहाँ बेटा? तुम ने खाना भी नहीं खाया?" सुमन देवी अभी भी कुसुम को दूध पिला रही थी।
"नहीं, एसी कोई बात नहीं है। मैं अभी आ रहा हूँ।" पवन ने मुस्कुराकर कहा। पवन कमरे से निकल गया। उसे असल में शौच करने जाना था। काफी देर से उसने रोककर रखा था। वह घर के पीछे आ गया जहाँ शौच करने की जगह थी। और इधर सुमन देवी कुसुम का हाल पूछने लगती है।
"पति से बड़ा प्यार हो गया है तुझे? मेरे पास तो बड़ी शर्मा रही थी। और खुद उसके पास जाकर नीचे लेट गई। क्यों?" सुमन देवी अपनी बेटी से मजाक में छेड़खानी करती है।
"मैं कहाँ लेटी? उसने खुद करा!" कुसुम दूध पीकर लेट गई।
"और तूने मना भी नहीं किया? क्यों?" सुमन देवी के चहरे पर मुस्कान थी।
"आह माँ मुझे मत छेड़ो। तुम नहीं जानती उसे, मुझे बहला फुसलाकर चोद लिया उसने। कहिँ मैं मना कर सकती थी क्या? तुम ही कहती थी, पति के आगे चुपचाप रहना। जो करे करने देना।" कुसुम धीरे धीरे बोलने लगी।
"अच्छा? और तू जो इतनी जोर जोर से चीख रही थी? चिल्ला रही थी। उसका क्या?"
"माँ? तुम भी ना! कितनी गंदी हो, भला एसा कोई करता है क्या? अपने दामाद बेटी की चुदाई कौन देखता है?" कुसुम ने शर्म के मारे अपना चेहरा छुपा लिया।
"अरे बाबा, मैं ने नहीं देखा, मैं तो बैठे बैठे परेशान हो रही थी। सोचा पता नहीं पवन को और तुझे भूक लगी होगी, इसी लिए बुलाने गई थी तुम दोनों को। लेकिन कुछ ही दूर जाने पर तेरी आवाज मेरे कान पड़ी। मुझे जो समझना था मैं समझ गई, इसी लिए वहां से चली आई। अब बता, तुझे अच्छा लगा ना! दर्द तो नहीं हुआ रे?" सुमन देवी कुसुम के माथे पर ममता का हाथ फेरने लगी।
"नहीं माँ, मुझे दर्द नहीं हुआ। शुरु में एकबार हुआ था। लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ, उसने एसा कुछ किया, दर्द बिलकुल गायब हो गया। चूत से कितना खून निकला मेरा। मैं तो बहुत डर गई थी माँ। पर उसने कितने प्यार से मुझे समझाया। कितना अच्छा है वह माँ। वह सिर्फ मेरा है माँ। मैं भी उससे बहुत प्यार करने लगी हूँ माँ।" कुसुम अपनी माँ से लिपट गई।
"भगवान करे तुझे वह सारी खुशी मिले जो एक औरत को चाहिए। अच्छा यह तो बता उसका वह कितना बड़ा है? ठीक ठाक तो है ना?" सुमन देवी को हर चीज जननी थी।
"ठीक ठाक क्या होता है माँ। तुमने जिस तरह मुझे सिखाया था, मर्द का लौड़ा इत्ना बड़ा होता है। उसका तो उससे भी काफी बड़ा और मोटा है। जानती हो माँ, एकबार तो डर हि गई थी। आखिर यह कैसे मेरे इतनी सी छेद में जा सकता है। कितना दानव है बिलकुल। कलाई जितना मोटा और लम्बा है उसका लौड़ा। कितना बेदर्दी से चोदा है मुझे। पूरी जान निकाल दी है मेरी। आह मेरी टाँगों में बिलकुल भी हिम्मत नहीं है। हिला हिला के पेला है मुझे।"
"चल, अब तेरा सहारा हो गया है। पवन जैसा इतना अच्छा लड़का तुझे पति मिला है। मैं बहुत खुश हूँ कुसुम। तेरा घर बस गया। अब अपने प्यार से पवन को बान्धने की कोशिश करना। नहीं तो वह फिर से एक दो महीने के बाद चला जाएगा।"
"नहीं माँ, मैं उसे कहिँ जाने नहीं दूँगी। मैं उसे कहुँगी हमारे खेत पर खेती करने के लिए। उसे अपने से अलग नहीं होने दूँगी माँ। मैं उससे प्यार करने लगी हूँ माँ। मैं उसके बिना नहीं जी सकती। वह बहुत अच्छा है।" कुसुम अपनी माँ से लिपटी रोने लगी।
"वह कहिँ नहीं जाएगा पागल। वह भी तेरे से प्यार करता है। यह सब छोड़, और यह बता तूने उसका पानी कहाँ गिरवाया? उसने अपना बीर्य तेरी चूत में गिराया है? या बाहर?"
"उसने तो सारा पानी अन्दर ही डाला है। उसी की वजह से मैं इत्नी थक गई हूँ माँ। कितना सारा बीर्य गिराया उसने। अभी तक वहीं घास पर लगा होगा। मेरे से अभी भी टपक रही है।"
"अरे पगली, इसे कामरस बोलते हैं। तेरा भी पानी गिरा है, इसी लिए थक गई है। तूने मेरा दिल खुश कर दिया मेरी प्यारी बेटी। अभी तुझे और लेना है। जितना हो सके उसका पानी अन्दर चूत में ही गिरवाना। इससे तू जल्दी से माँ बन सकती है। मेरी प्यारी बेटी।"
"तो क्या इसी तरह से बच्चा होता है माँ? चूत में पति का बीर्य गिरवाने से?"
"हाँ री पगली हाँ, और तूने गिरवा दिया है। भगवान करे, इसी मिलन से तेरे पेट में बच्चा ठहर जाये, पहले सम्भोग का बच्चा सबसे अच्छा और सौभाग्यशाली होता है। अब मेरे घर पर भी बच्चे की किलकारियां सुनने को मिलेगी। भगवान करे तेरी कोख से चांद सा लड़का पैदा हो। अब तू आराम कर ले। पवन को आने दे, तुम दोनों को एक साथ खाना देती हुँ। रात को वह तुझे छोड़ेगा नहीं। उस के लिए थोडी देर आराम कर ले।" सुमन देवी प्यार से अपनी बेटी का माथा चूमती है और उसे आराम करने के लिए कमरे में छोड़ देती है।
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इधर पवन और कुसुम के चले जाने के बाद उसी नीम पेड के नीचे वह जोड़े आ चुके थे, जो इतनी देर से पवन और कुसुम को मिलन में ब्यस्त देखने का मजा ले रहे थे। वह दोनों उस पेड के नीचे आये, और अपनी प्रेमगाथा को याद करने लगे। दोनों उसी अवस्था में प्यार में खोये अपने अतीत वर्तमान भविश्य के सपनें देखने लगे। और फिर उनके बीच दोबारा मिलन का प्रक्रिया शुरु हो जाता है और फिर उसी चीख व पुकार के बीच सम्भोग क्रिया जारी रहता है।