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सुनी का अतितावलोकन
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रात के खाने से पहले शाम के ड्रिंक्स की परंपरा थी मेरे ससुराल में। ससुरजी ने स्कॉच चुनी। विक्कू भैया ने भी स्कॉच चुनी। वीनू और राजू ने लाल और मैंने सफ़ेद मदिरा [वाइन ] चुनी। टीटू और बबलू की अभी क़ानूनी तौर से पीने की उम्र नहीं थी पर उन्हें थोड़ी सी मात्रा में पीने के इज़ाज़त थी।
मेरे पाँचों देवर हंसी मज़ाक में माहिर निकले। मैंने उन्हें अपनी जीवन की कहानी सुनाई और ससुरजी ने अपने परिवार की। मेरे पति निर्मल व्यव्हार से अपने पिता और भाइयों से बहुत अलग थे।
खाने की मेज पर भी हंसी मज़ाक चलता रहा।
" पापा , भाभी को नए घर में डर लगेगा , क्या मैं उनके साथ आज रात सो जाऊं ?" राजू ने बच्चों जैसे मासूमियत से पूछा।
वीनू ने हंस कर कहा ," राजू तुम्हारे कमरे में होते और कौनसा डर भाभी को परेशान कर सकता है ? तुम तो सबसे बड़े डर हो। "
राजू ने ने उदास सा मुंह बने नाटकीय अंदाज़ में।
शेरू सारी शाम मेरे बगल में ही बैठा रहा।
ससुरजी ने कहा , "बेटी तुम्हारे घर में आने देखो आधे ही दिन से कितनी रौनक आ गयी है। "
" पापाजी मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में इतनी ख़ुशी एक दिन में कभी नहीं महसूस की जितनी आज ," मैंने भावुक ना होने का निश्चय कर लिया था।
आखिर सोने का समय आ गया, " बेटे हम किसानों की तरह थोड़ा जल्दी उठते हैं पर तुम जब मन चाहे तब उठना। रसोई में सब कुछ साफ़ साफ़ इंगित है। "
जैसा मैंने सुना था उस लिहाज़ से मैंने ससुरजी के पैर छूने चाहे तो उन्होंने मुझे बीच में ही रोक लिया , " बेटी यह पुरातन रिवाज़ है। तुम तो हमारी लक्ष्मी हो। तुम्हारे चरण पवित्र है। बस तुम्हारा प्यार ही हमारे लिए प्रसाद के सामान है। " ससुरजी ने इतनी प्रगतिशील विचारों से मेरे ह्रदय बिलकुल जीत लिया।
मैं उनसे गले लग गयी। ससुरजी ने प्यार से मुझे चूमा और फिर शुभरात्रि कह कर अपने कमरे चले गए।
मेरे पाँचों देवरों ने भी गले मिल कर शुभरात्रि कहने के लिए पंक्ति बना ली। मैं हंस हंस कर शुभरात्रि बोलती रही। विक्कू ने मेरे नितम्ब कस कर सहलाए। वीनू ने मेरी पीठ सहलाई और अपने सीने से मेरे चूचियों को दबाया। राजू ने मेरे कान में फुसफुसाया , "भाभी मेरा कमरा दुसरे गलियारे में तीसरा है। जब भी मन करे बुला लेना। "
मैंने हँसते हुए हुए राजू को प्यार से दूर धकेला। बबलू और टीटू ने मुझे आगे और पीछे से पकड़ लिया और दोनों ने मुझे चूम कर शुभरात्रि कहा।
मैं ख़ुशी प्रेम से भरी अपने कमरे में गुनगुनाती हुई कपड़े उतारने लगी। तब मुझे शेरू की उपस्थिति का आभास हुआ।
मैंने हंस कर कहा , "शेरू तुम तो सबसे चालक देवर निकले। "
मैंने बिना कुछ पहने ही बिस्तर में कूद गयी। शेरू कुछ देर तक नीचे ही बैठा रहा फिर कूद कर बिस्तर के पैर की ओर जगह बना कर सोने लगा। मेरे कमरे का बिस्तर भी बहुत विशाल था। शायद सुपरकिंग से भी बड़ा।
मैंने न जाने कब अपनी चूचियाँ सहलाते सहलाते अपनी योनि में ऊँगली डालनी शुरू कर दी। मैं अब गहरी गहरी सांस ले रही थी। मेरे चुचूक सख्त हो चले, मेरा रति-रस मेरी यौनि से बहने लगा। मेरा भगशेफ सूज कर लम्बा और मोटा हो गया।
मेरे मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी।
शेरू के कान मेरी सिसकारियों को सुन कर हिलने लगे। मेरी उंगलिया अब बेदर्दी से मेरी चूत मार रहीं थीं। मैं जैसे जैसे झड़ने लगी मैंने कोशिश की कि मस्तिष्क में अपनी और अपने पति की चुदाई की कल्पना की छवि को फोटो की तरह देख सकूँ। वैसे ही अचानक मेरे दिमाग में मेरे देवरों की छवि आ गयी। मेरी उँगलियाँ और भी तेज़ी से मेरी चूत को छोड़ने लगीं। जैसे ही मैं हलकी सी चीख मार कर झड़ने लगी तो मेरे आँखों के सामने मेरे ससुरजी का मोहक सूंदर मरदाना चेहरा था।
मेरी चीख सुन कर शेरू तुरंत उठ गया और मेरा मुंह चाटने लगा। शायद उसे लगा की मैं दर्द से चीख उठी थी।
"शेरू यह दर्द बहुत मीठा है। काश मैं तुझे समझा सकती। पर तू बहुत प्यारा देवर है मेरा ," मैंने उसके मुंह को चूमा , "ठीक मेरे बाकि देवरों जैसा प्यारा। "
शेरू अब मेरे तकिए के पास ही लेट गया। और फिर हम दोनों गहरी नींद सो गए।