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७
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सुनी का अतितावलोकन
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मैं नाश्ता करके बाहर निकली तो ससुरजी घर की तरफ ही आ थे। मुझे देख कर उनके चेहरे पर ख़ुशी की मुस्कान आ गयी, " बेटे मैं शहर जा रहा हूँ कुछ खरीदना हो तो चलो मेरे साथ। "
मैंने लपक कर कहा , " पापाजी मैं सोच रही थी की कुछ दूसरी तरह के कपडे खरीद लूँ। "
"ज़रूर बेटा, चलो मैं ट्रक की चाभी ले कर अभी आता हूँ ," ससुरजी ने अंदर की तरफ जाते हुए कहा।
शहर में सबसे कीमती दुकान मैंने कई चोलियां , लहंगे , दुपट्टे , और भारी जीन्स और मोटी सूती चारखाने की कमीज़ें खरीदी।
ससुरजी और मैंने अच्छे रेस्तौरांत में लंच किया घर वापस चलने से पहले।
फिर मुझे ना जाने कहाँ से प्रेरणा आई और मैंने जब ससुरजी अपने एक दोस्त से बातें कर रहे थे तो पास के पुस्तकालय में जा कर भूजाल [ इंटरनेट ] पर अपने पति के लण्ड नाप का एक शिश्न का प्रतिरूप [ डिलडो ] ख़रीदा। छह इंच लम्बा और पांच इंच की परिधि, वेब बेस्ड यानि भूजाल-की दुकान इसको पार्सल से भेज देगी।
जैसे ससुरजी रास्ते पर ध्यान देते हुए ट्रक चला रहे थे वैसे ही मैं उन्हें कनखियों से प्यार भरी निगाहों से देख रही थी। ससुरजी छयालिस साल के हृष्ट पुष्ट भीमकाय कामकरषक पुरुष थे। मुझे उन्होंने कोई भी संकेत नहीं दिया की सुबह वो मेरे कमरे में शेरू को बाहर निकलने के लिए आये थे।
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जब मैं वापस कमरे पहुंची तो चकित रह गयी। मेरे सारे कपड़े बारे सलीके से अलमारियों और दराज़ों में थे। फिर मेरी नज़र मेज़ पर एक छोटे सी चिठ्ठी पर पड़ी।
"भाभी बुरा मत मानियेगा मैंने सोचा की आपकी सेवा करने की इच्छा से मैंने आपके कपड़े सम्भाल कर तरतीब से रख दिए हैं। इनाम [ खुद ही मैंने अपना इनाम भी तय कर लिया ] के एवज़ में मैंने आपकी पहनी हुई कच्छी और ब्रा रख ली है। आप जब चाहे अपनी दूसरी पहनी हुई ब्रा और कच्छी इनकी जगह छोड़ कर इन्हे ले जाएँ। आपका सेवक देवर राजू "
मैं पहले शरमाई फिर मुझे ध्यान आया की कल की ब्रा और कच्छी तो पूरे दिन के सफर से मेरे शरीर के रसों से भरी होगी। मेरा दिल अपने छोटे देवर की शरारत से प्यार से भर गया।
मै फिर से गरम हो गयी। तभी मुझे एक चालाक विचार आया। मुझे राजू ने अपना कमरा कौनसा है कल रात ही बताया था। मैं उसके कमरे में धीरे से घुसी। मेरी कच्छी और ब्रा राजू के तकिए पर थी। मेरी कच्छी के आगे और पीछे के हिस्से पूरे गीले थे। राजू ने ज़रूर उन्हें चूस चूस कर…………… मुझे इस की कल्पना से ही रोमांच हो गया।
मैंने भी राजू के स्नानघर में जा कर उसका कल का कच्छा ढून्ढ लिया। फिर एक छोटी सी चिठ्ठी लिखी " राजू कच्छी के बदले में कच्छा , तुम्हारी भाभी। "
जैसे ही मैं कमरे पहुंची तभी शेरू दौड़ता हुआ कमरे में दाखिल हो गया। मैंने कमरा बंद किया और कपडे जल्दी से उतार कर बिस्तर पर फ़ैल कर लेट गयी। मैंने राजू के कच्छे के आगे वाले हिस्से की जगह की सुगंध को सूंघा और मेरी उँगलियाँ स्वतः मेरी चूत को ढूंढने लगीं। मेरी चूत मेरे रति-रस से लबालब भरी थी।
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पूरे परिवार की वधु
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