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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

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Nevil singh

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#16

“मैं बस इतना जानता हूँ की मेरा दाखिले का फार्म क्यों रद्द किया गया है ” मैंने प्रिंसिपल से पूछा

“सारी सीट फुल है , ” उसने रुखा सा जवाब दिया.

मैं- पर अभी तो फॉर्म ही भरे जा रहे है . लिस्ट तो दस दिन बाद लगेगी न .

प्रिंसिपल- प्रशासनिक निर्णय होते है , लिस्ट बन चुकी है इसलिए मुझे मालूम है

मैं- पर ये तो गलत है न

प्रिंसिपल- देखो बेटे, कुछ चीजों पर चाह कर भी हमारा बस नहीं होता इस कालेज न सही किसी और कालेज में तुम्हारा दाखिला हो ही जायेगा. ,

न जाने क्यों मुझे उसकी बातो में दम नहीं लगा पर अचानक ही मुझे ख्याल आया की कही पिताजी ने तो इसे ऐसा करने को कहा हो .

मैं- क्या पिताजी ने आपको मजबूर किया है की आप मेरा दाखिला न करो

प्रिंसिपल- नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं . खैर, अब तुम जाओ मुझे काम

बहुत है



वहां से बाहर आने के बाद मैं अपना माथा पकड़ कर बैठ गया . दाखिला किसी ने रुकवाया था और ये पक्का पिताजी ही थे मुझे पक्का यकीं हो गया था इस बात का.

“कैंटीन में बैठते है थोड़ी देर ” मीता ने कहा

“शायद चाचा कुछ मदद कर सके, हमें उनसे मिलना चाहिए ” मैंने कहा और चाचा के डिपार्टमेंट में पहुँच गए .पर वहां जाकर कुछ और ही मालूम हुआ .चाचा पिछले महीने भर से छुट्टी पर चल रहे थे स्टडी लीव ली हुई थी उन्होंने . अब ये अलग तमाशा था .

“पर घर से तो रोज कालेज के लिए निकलते है .” मैंने मीता से कहा .

मीता- उनसे मिलके पूछना

मैं- सही कहती हो .

मैंने मीता को कालेज में छोड़ा और गाँव के लिए चल दिया. मेरे मन में हजारो सवाल थे पर मैं ये नहीं जानता था की एक सुलगता सवाल मेरा इंतज़ार कर रहा था. मेरे चोबारे में आग लग गयी थी . जब मैं घर पहुंचा तो घर वाल आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे .मैं भी दौड़ा उस तरफ पर सब ख़ाक हो चूका था अन्दर पूरा सामान बर्बाद हो गया था , राख हो गया था .

“कैसे हुआ ये ” मैंने पूछा

माँ- धुंआ निकलते देखा , कोई कुछ समझ पाता उस से पहले ही आग धधक उठी.

मेरा तो दिल ही टूट गया अन्दर ऐसा बहुत कुछ था जिससे बड़ा लगाव था मुझे, गानों की कसेट, श्रीदेवी के पोस्टर , धधक कुछ शांत सी हुई तो मैं अन्दर गया . देखा दीवारे गहरी काली पड़ गयी थी . मैं देखने लगा की कहीं कुछ बच गया हो तो .. मैंने देखा कुछ किताबे अधजली सी रह गयी थी . मैं उन्हें बाहर लाया. हालत बुरी थी . किताबे आधी जली थी तो कुछ ख़ाक थी अब भला किस काम की थी

ऐसे ही एक किताब को मैं बाहर फेंक रहा था की उसमे से कुछ निकल कर गिरा. ये एक तस्वीर थी . इसमें मैं था किसी के साथ , सरसों के पीले खेत में पर जिसके साथ था वो हिस्सा जल गया था . मैंने तस्वीर को जेब में रख लिया. एक किताब में मुझे मुरझाये फूल मिले. अजीब था मेरे लिए क्योंकि मुझे याद ही नहीं था की मैंने वो फूल कब रखे थे .



कोतुहल में मैंने कुछ और किताबे खंगाली . एक जला हुआ और कागज था जो किताब से अलग था क्योंकि वो हाथ से लिखा गया था . जला होने के बाद भी मैं उसके कुछ टुकडो को पढ़ पा रहा था .

“अब सहन नहीं होता, ये बंदिशे जान ले रही है मेरी. कल शाम तुम्हारा इंतजार करुँगी उसी जगह पर जहाँ मोहब्बत परवान चढ़ी थी . ”

दो लाइन और पढ़ी मैंने

“मुश्किल से ये खत भेज रही हूँ , तुम को आना ही होगा ” इस से पहले की कुछ और पढ़ पाता हवा के झोंके से वो कागज मेरे हाथ से उड़ गया और निचे की तरफ चला गया . मैं दौड़ा ,

“नहीं भाभी नहीं ” मैं चिलाया पर तब तक भाभी का पैर उस जले कागज़ पर रखा जा चूका था .

“ये क्या किया भाभी ”

भाभी- क्या हुआ कागज का टुकड़ा ही तो था .

मैंने कोई जवाब नहीं दिया अब भला क्या ही कहना था



तभी हाँफते हुए एक आदमी घर में दाखिल हुआ .

“मालकिन, चौधरी साहब कहा है . ” उसने एक सांस में कहा

मैं- क्या हुआ काका , हांफ काहे रहे हो .

“किसी ने , किसी ने मन्नत का पेड़ काट दिया ” उसने कहा

“ये नहीं हो सकता . कह दो ये झूठ है ” माँ दूर से ही चीख पड़ी .

मैंने माँ के चेहरे पर ज़माने भर का खौफ देखा .

“इसे घर पर ही रखना , ” माँ ने चाची से कहा और नंगे पाँव की घर से बाहर दौड़ पड़ी .

मैं माँ के पीछे जाना चाहता था पर चाची ने मुझे रोक लिया और थोड़े गुस्से से बोली- सुना नहीं तुमने, यही पर रहो . बहु तुम दरवाजा बंद करो .

पर वो कुछ करती उस से पहले ही मैं घर से बाहर निकल गया . मैं माँ के पीछे भागा जो निपट दोपहर में जलती रेत पर नंगे पाँव दौड़े जा रही थी और जब वो रुकी तो मैंने देखा की सफ़ेद सीढियों पर एक पेड़ गिरा हुआ था . ऐसा लगता था की जैसे किसी ने इसके दो टुकड़े कर दिए हो . जिंदगी में पहली बार मैंने माँ की आँखों में आंसू देखे वो रोये जा रही थी . फिर उन्होंने अपनी कटार से कलाई पर जख्म किया . रक्त की धार बह चली .

“माँ ये क्या कर रही है आप ”
माँ को ऐसा करते देख तड़प उठा मैं .माँ ने एक नजर मुझे देखा और फिर रक्त की धार उस पेड़ पर गिराने लगी . और हैरत की बात वो पेड़ सुलग उठा . उसमे आग लग गयी . एक हरा भरा पेड़ धू धू करके जलने लगा. आँखों में आंसू लिए माँ उस जलते पेड़ को देखती रही . तभी कुछ ऐसा हुआ की मैं सफ़ेद सीढियों पर लडखडा कर गिर पड़ा . मेरा कलेजा जैसे जलने लगा.
Nice update mitr
 

Nevil singh

Well-Known Member
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173
#17



पर तभी किसी ने मेरे सीने पर हाथ रखा और बर्फ सी ठंडक मैंने महसूस की . मैंने देखा ये वही सारंगी वाली औरत थी . जो मुझ पर झुकी हुई थी .

“बस थोड़ी देर और ” उसने जलते पेड़ की तरफ देखते हुए कहा .

धीरे धीरे सब शांत हो गया . मेरी जलन कम हो गयी उसने मुझे उठाया और माँ की तरफ देखते हुए बोली- “ठीक है ये , आगे भी ठीक ही रहेगा फ़िक्र न कर ”

माँ- वो मन्नत का पेड़

“तू मत सोच उसके बारे में ” उसने कहा और वापिस जाने को मुड गयी.

माँ ने मुझे अपने आगोश में लिया उअर पुचकारते हुए बोली- तू ठीक है न

मैं- हाँ माँ ठीक हूँ . पर ये हुआ क्या था .

माँ- जब तू हुआ था तो बीमार था , सब कहते थे की बड़ी मुश्किल से बच पायेगा पर ये जो शीला थी न इसने तुझे बचा लिया था . इसने ही ये पेड़ लगाया था . कहती थी जितना ये फलेगा तू उतना ही ठीक रहेगा.



“मैं ठीक हूँ माँ, और आपकी दुआ है न मेरे साथ फिर भला मुझे क्या होगा. ” मैंने कहा

घर आने के बाद भी चैन नहीं था . मेरा कमरा तहस नहस हो गया था .वो अलग समस्या थी . और मन में कुछ सवाल थे जिनका जवाब वो शीला ही दे सकती थी .बैठे बैठे मैं विचार कर ही रहा था की सामने से चाची आ गयी .और जो मैंने उन्हें देखा बस देखते ही रह गया .

पीली साडी में कतई सरसों का फूल हुई पड़ी थी .



चाची का मदमाता हुस्न . भरपूर नजरो से मैंने चाची को निहारा. उभरा हुआ सीना , थोडा सा फुला हुआ पेट. नाभि से तीन इंच निचे बाँधी साडी, जो जरा सा और निचे होती तो झांटे भी दिख जाती . और मुझे पूरा यकींन था की नीचे कच्छी तो बिल्कुल नहीं पहनी होगी उन्होंने.

“क्या देख रहा है इतने गौर से ” मेरे पास आते हुए कहा चाची ने .

मैं- उस चाँद को देख रहा हूँ जिसे पाने की हसरत हुई है मुझे.

चाची ने हलके से थपकी मारी मेरे सर पर और बोली- जिन्हें पाने की हसरत होती है वो पा लेते है ,बी बाते नहीं बनाते “

चाची की तरफ से ये खुला निमन्त्रण था . मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और चाची को अपनी बाँहों में भर लिया. इस हरकत पर वो हैरान रह गयी . खुले आँगन में मैं चाची को अपनी बाँहों में लिए खड़ा था .

चाची को एक पल समझ ही नहीं आया की उनके साथ क्या हुआ है .

“छोड़, निगोड़े, किसी ने देख लिया तो मैं कही की नहीं रहूंगी ” चाची ने कसमसाते हुए कहा .

मैं- देखने दो.

मैंने चाची के नितम्बो पर हाथ फेरते हुए कहा .

वो कुछ कहती इस से पहले किसी के आने की आहट हुई तो हम अलग हो गए, चाची ने चैन की साँस ली .

भाभी खाने के लिए बुलाने आई थी पर मुझे भूख अब किसी और चीज़ की थी . खाने की टेबल पर चाची मेरे सामने बैठी थी . बार बार हम दोनों की नजरे आपस में टकरा रही थी . चाची की आँखों में मैंने नशा चढ़ते महसूस किया . और मैं आज की रात उन्हें चोदने को बेकरार था . न जाने मुझे क्या सुझा मैंने अपना पाँव टेबल के निचे से ऊँचा किया और चाची की साडी में से ऊपर करते हुए चाची की चूत पर रख दिया.

“उन्ह उन्ह ” चाची अचानक से चिहुंक पड़ी .

“क्या हुआ चाची ” भाभी ने पूछा

चाची- मिर्च तेज है सब्जी में , तो धसक चली गयी .

भाभी ने पानी का गिलास दिया चाची को . चाची की चूत बहुत ज्यादा गर्म थी . और उन्होंने कच्छी भी नहीं पहनी थी . गहरे बालो को मैं अपने अंगूठे से महसूस करते हुए चाची की चूत को सहला रहा था . चाची के लिए खाना खाना मुश्किल हो गया . आँखे ततेरते हुए वो मुझे मना कर रही थी पर मुझे बड़ा मजा आ रहा था .

तभी बाहर से जीप की आवाज आई , जो बता रहित ही की पिताजी घर आ गए है तो मैंने पैर वहां से हटा लिया . और शांति से खाना खाने लगा. चाची ने भी चैन की सांस ली. खाने के बाद मैं बाहर आकर कुल्ला कर रहा था की पिताजी ने मुझे आवाज देकर अपने पास बुलाया



“ कल सुबह तुम दिल्ली जा रहे हो , इंद्र तुम्हे छोड़ आएगा ” पिताजी ने कहा

मैं- पर किसलिए

पिताजी- अब तुम वही रहोगे. पढना चाहो तो वही कालेज में दाखिला हो जायेगा और काम करना चाहो तो हमारे ठेके या होटल का बिजनेस देख लो, इंद्र का भी कुछ बोझ हल्का होगा .

मैं- मैं भाई के साथ रहूँगा ये हो नहीं सकता दूसरी बात मैं कहीं नहीं जाने वाला मेरी दुनिया अगर कही हैं तो यही इसी गाँव में

पिताजी- क्या है इस गाँव में , कुछ भी तो नहीं , अपने आस पास देखो, यहाँ के लोगो के पास क्या काम है दिहाड़ी मजदूरी के अलावा मैं तुम्हे एक बेहतर जीवन देने की कोशिश कर रहा हूँ और तुम हो की समझते नहीं हो .

मैं- बेहतर जीवन देना चाहते तो यहाँ के कालेज में दाखिला नहीं रुकवाते मेरा

पिताजी ने घूर का देखा मुझे और हाथ से इशारा किया की मैं दफा हो जाऊ.

बाहर आया तो सब लोग बैठे थे

“जब तक तुम्हारा कमरा ठीक नहीं हो जाता चाची के साथ वाले कमरे में रह लो तुम ” माँ ने कहा

मैंने हाँ में गर्दन हिला दी . मेरे लिए तो ये ठीक ही था . हम बाते ही कर रहे थे की तभी भाई भी आ गया . अब मेरा यहाँ रहना ठीक नहीं था तो मैं उठा और घर से बाहर निकल गया .

“कहाँ जा रहे हो ” चाची ने मुझे रोका

मैं- फिर मिलते है


मैंने साईकिल आगे बढाई और खेतो की तरफ चल पड़ा कुवे पर पहुंचा तो देखा की ढेर सारा खून बिखरा पड़ा है . खेली के पास बना छोटा सा चबूतरा सना पड़ा था . मेरे माथे पर बल पड़ गए की बेंचो ये क्या है अब . ...............
Unmaad ki rail ko pal me hi badal diya ik duji dagar per
Behtreen update mitr
 
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Naik

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#15

“क्यों नहीं समझते तुम, ये जमाना कभी तुम्हारा नहीं हो सकता , क्यों बार बार उस नींव को हिलाने की कोशिश करते हो जिसकी चोखट तुमहरा सर फोडती है . ” भाभी ने मुझे अपने आगोश में लिए कहा .



“क्या ही फरक पड़ता है भाभी , जमाना मुझसे है मैं इस ज़माने से नहीं , सच और झूठ की जंग तो सदा चलती आई है . आज मैंने आवाज उठाई है कल कोई और उठाएगा ” मैंने कहा

भाभी- बस तुम्हारी ये बाते ही सब फसाद की जड़ है

भाभी ने मुझे सहारा दिया और सीढियों के पास ले आई ऊपर चोबारे में ले जाने को .

“अभी के लिए यहाँ चैन नहीं मिलेगा , थोडा पानी पिला दीजिये ” मैंने कहा

भाभी- कहाँ जाओगे , और कब तक भागोगे यूँ इस तरह

मैं- कौन कमबख्त भाग रहा है भाभी, फिलहाल तो यूँ है की इन ज़ख्मो का मजा लेने दीजिये मुझे.

भाभी- मुझे मलहम लगाने दो फिर चाहे मर्जी चले जाना

मैं- इस दर्द के मजे से रुसवा करना चाहती है आप मुझे

भाभी- इतना तो हक़ है मेरा तुम पर , इतना तो कर्म करने दो मुझे .

मैंने हाथ से पानी के मटके की तरफ इशारा किया भाभी पानी लेने दौड़ पड़ी. मैं सीढियों पर ही बैठ गया . पीठ दिवार से जो टिकी बड़ा तेज दर्द हुआ और उसी दर्द की परछाई में एक पल के लिए आँख बंद सी हो गयी .

“इतना तो करम करने दो मुझे, इतना तो हक़ है मेरा ” ये फुसफुसाहट सी हुई, हवा जैसे इन शब्दों को घोल गयी थी मेरे कानो में .

“पानी ” भाभी की आवाज ने ध्यान तोडा मेरा.

कुछ तो ऐसा हो रहा था मेरे साथ जो समझ नहीं आ रहा था . हडबडाहट में मैं उठा और घर से बाहर निकल गया भाभी आवाज देते रह गयी . रात अपने परवान चढ़ रही थी . कुछ घर जागे थे कुछ सोये थे . पैदल ही मैं खेतो की तरफ जा रहा था . गाँव की पक्की सड़क छोड़ मैं कच्चे रस्ते से अपने कुवे का रस्ता पकड़ ही रहा था की मैंने मीता को एक खेत के डोले पर बैठे देखा .

“आप यहाँ ” मैंने पूछा उस से

वो- तुम भी तो हो यहाँ

मैं- अंधेरो से लगाव सा होने लगा है

वो- ये अँधेरे अक्सर लोगो को निगल जाते है . ये अँधेरे अपने अन्दर न जाने क्या क्या दबाये बैठे है .

मैं- जरा सहारा दो मुझे, बैठने दो . सांस कुछ भारी सी है

उसने अपना हाथ दिया मुझे. मैं डोले पर बैठा तो मेरी आह निकल गयी .

“क्या हुआ , सब ठीक तो हैं न ” उसने पूछा

मैं- हाँ सब ठीक ही है

मैंने कहा

“तुम भी न ” उसने मेरी पीठ पर धौल जमाई और उसका हाथ सन गया लहू में

मीता- ये क्या है गीला गीला , एक मिनट तुम्हे तो चोट लगी है , देखने दो जरा

मैं- कुछ नहीं है आप बैठो साथ मेरे

मीता- क्या कुछ नहीं है , क्या हुआ सच सच बताओ मुझे .

न चाहते हुए भी मीता को मुझे पूरी बात बतानी पड़ी

मीता ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा , उसकी आँख से निकला गर्म आंसू मैंने हथेली पर महसूस किया





वो- फिलहाल तो तुम मेरे साथ चलो . मैं मरहम पट्टी कर देती हूँ .

मैं-नहीं, आपको क्यों परेशां करना मेरी वजह

वो- तुम्हारी वजह से मुझे परेशानी होगी , ये तो नयी सी बात हुई . आओ मेरे साथ .



मैं- इस हसीं रात में आप मेरे साथ हो , इन ज़ख्मो की क्या परवाह मुझे अब

मीता- ये हसीन राते तो आती जाते रहेंगी फिलहाल तुम मेरे साथ चल रहे हो.

लगभग मुझे खींचते हुए वो बैध के पास ले आई. वैध ने कुछ लेप सा लगाया और पट्टी बाँधी तीन दिन बाद फिर आने को कहा .

मीता और मैं एक बार फिर आधी रात को गाँव के गलियारों में थे .

“आपको थोडा आजीब लगेगा पर मुझे भूख लग आई है ” मैंने कहा

मीता- कोई और समय होता तो खाना खिलाती तुम्हे

मैं- अब भी खिला सकती हो मैं मना नहीं करूँगा

मीता मुस्कुरा पड़ी और बोली- कभी कभी भूखे रहना भी ठीक होता है , भूख हमें बहुत कुछ सिखाती है , खैर रात बहुत हुई हमें घर चलना चाहिए .

मैं- किसके घर मेरे या आपके.

मीता- फिलहाल तो मैं मेरे घर जा रही हूँ , खैर मुझे याद आया तुम्हारा कालेज का फार्म रिजेक्ट हो गया है .

“क्यों भला ” मैंने हैरानी से कहा

मीता- मैंने कारन पूछा पर कालेज वालो ने कुछ नहीं बताया , खैर, कल हम प्रिंसिपल से मिलेंगे . वो ही बताएँगे

मैं ठीक है कल मिलते है फिर.

मीता- घर ही जाना

मैंने सर हिलाया और अपनी दहलीज की तरफ मुड गया , दिमाग में सवाल दौड़ रहा था की दाखिले का फॉर्म क्यों रिजेक्ट हो गया . घर पहुंचा तो देखा बत्तिया बुझी थी . धीमे कदमो से मैं चोबारे की तरफ बढ़ा ही था की भाभी मेरे सामने आ गयी .

“अपने ही घर में चोरो की तरह आ रहे हो ” भाभी ने कहा

मैं- आप जाग रही है अभी तक

भाभी- तुम भी तो नहीं सोये

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भाभी- फर्क पड़ता है . कम से कम मुझे फर्क पड़ता है . आओ मेरे साथ

भाभी मुझे रसोई में ले आई . लाइट जलाई .

भाभी- खाना खाओ

मैं- भूख नहीं है

भाभी- ठीक है फिर मैं भी अन्न को तभी हाथ लगाऊंगी जब तुम खाओगे तब तक मेरा भी व्रत है

मैं- ये कैसी जिद है

भाभी- जिद तो तुम्हारी है , याद है जब इस घर में आई थी तो तुमने मुझसे एक वादा किया था

भाभी की आँखे भर सी आई . और मैं बिलकुल उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था क्योंकि इस घर में बस वो ही थी जो मुझे समझती थी .

“अब क्यों देर करती हो , भूख बहुत है मुझे खाते है ” मैंने भाभी को मानते हुए कहा .

“तुम ही हो बहु जो इसे काबू में रख पाती हो , वर्ना ये किसी को भला क्या समझता है ” हमने दरवाजे की तरफ देखा चाची रसोई में अन्दर आ रही थी .

मैं- आप भी जागी है

चाची- इस घर में सब जागे है . खैर आओ खाना खाते है . हम तीनो ने मिलकर खाना खाया. रात भर हम बैठे बाते करते रहे पर मेरे दिमाग में बस एक ही सवाल चल रहा था की फॉर्म रद्द कैसे हुआ.


और अगली सुबह ठीक ग्यारह बजे मैं मीता के साथ राजकीय कालेज के बड़े से गेट के ठीक सामने खड़ा था .
Behtareen update bahot khoob shaandaar
 
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Naik

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“मैं बस इतना जानता हूँ की मेरा दाखिले का फार्म क्यों रद्द किया गया है ” मैंने प्रिंसिपल से पूछा

“सारी सीट फुल है , ” उसने रुखा सा जवाब दिया.

मैं- पर अभी तो फॉर्म ही भरे जा रहे है . लिस्ट तो दस दिन बाद लगेगी न .

प्रिंसिपल- प्रशासनिक निर्णय होते है , लिस्ट बन चुकी है इसलिए मुझे मालूम है

मैं- पर ये तो गलत है न

प्रिंसिपल- देखो बेटे, कुछ चीजों पर चाह कर भी हमारा बस नहीं होता इस कालेज न सही किसी और कालेज में तुम्हारा दाखिला हो ही जायेगा. ,

न जाने क्यों मुझे उसकी बातो में दम नहीं लगा पर अचानक ही मुझे ख्याल आया की कही पिताजी ने तो इसे ऐसा करने को कहा हो .

मैं- क्या पिताजी ने आपको मजबूर किया है की आप मेरा दाखिला न करो

प्रिंसिपल- नहीं बेटे ऐसी कोई बात नहीं . खैर, अब तुम जाओ मुझे काम

बहुत है



वहां से बाहर आने के बाद मैं अपना माथा पकड़ कर बैठ गया . दाखिला किसी ने रुकवाया था और ये पक्का पिताजी ही थे मुझे पक्का यकीं हो गया था इस बात का.

“कैंटीन में बैठते है थोड़ी देर ” मीता ने कहा

“शायद चाचा कुछ मदद कर सके, हमें उनसे मिलना चाहिए ” मैंने कहा और चाचा के डिपार्टमेंट में पहुँच गए .पर वहां जाकर कुछ और ही मालूम हुआ .चाचा पिछले महीने भर से छुट्टी पर चल रहे थे स्टडी लीव ली हुई थी उन्होंने . अब ये अलग तमाशा था .

“पर घर से तो रोज कालेज के लिए निकलते है .” मैंने मीता से कहा .

मीता- उनसे मिलके पूछना

मैं- सही कहती हो .

मैंने मीता को कालेज में छोड़ा और गाँव के लिए चल दिया. मेरे मन में हजारो सवाल थे पर मैं ये नहीं जानता था की एक सुलगता सवाल मेरा इंतज़ार कर रहा था. मेरे चोबारे में आग लग गयी थी . जब मैं घर पहुंचा तो घर वाल आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे .मैं भी दौड़ा उस तरफ पर सब ख़ाक हो चूका था अन्दर पूरा सामान बर्बाद हो गया था , राख हो गया था .

“कैसे हुआ ये ” मैंने पूछा

माँ- धुंआ निकलते देखा , कोई कुछ समझ पाता उस से पहले ही आग धधक उठी.

मेरा तो दिल ही टूट गया अन्दर ऐसा बहुत कुछ था जिससे बड़ा लगाव था मुझे, गानों की कसेट, श्रीदेवी के पोस्टर , धधक कुछ शांत सी हुई तो मैं अन्दर गया . देखा दीवारे गहरी काली पड़ गयी थी . मैं देखने लगा की कहीं कुछ बच गया हो तो .. मैंने देखा कुछ किताबे अधजली सी रह गयी थी . मैं उन्हें बाहर लाया. हालत बुरी थी . किताबे आधी जली थी तो कुछ ख़ाक थी अब भला किस काम की थी

ऐसे ही एक किताब को मैं बाहर फेंक रहा था की उसमे से कुछ निकल कर गिरा. ये एक तस्वीर थी . इसमें मैं था किसी के साथ , सरसों के पीले खेत में पर जिसके साथ था वो हिस्सा जल गया था . मैंने तस्वीर को जेब में रख लिया. एक किताब में मुझे मुरझाये फूल मिले. अजीब था मेरे लिए क्योंकि मुझे याद ही नहीं था की मैंने वो फूल कब रखे थे .



कोतुहल में मैंने कुछ और किताबे खंगाली . एक जला हुआ और कागज था जो किताब से अलग था क्योंकि वो हाथ से लिखा गया था . जला होने के बाद भी मैं उसके कुछ टुकडो को पढ़ पा रहा था .

“अब सहन नहीं होता, ये बंदिशे जान ले रही है मेरी. कल शाम तुम्हारा इंतजार करुँगी उसी जगह पर जहाँ मोहब्बत परवान चढ़ी थी . ”

दो लाइन और पढ़ी मैंने

“मुश्किल से ये खत भेज रही हूँ , तुम को आना ही होगा ” इस से पहले की कुछ और पढ़ पाता हवा के झोंके से वो कागज मेरे हाथ से उड़ गया और निचे की तरफ चला गया . मैं दौड़ा ,

“नहीं भाभी नहीं ” मैं चिलाया पर तब तक भाभी का पैर उस जले कागज़ पर रखा जा चूका था .

“ये क्या किया भाभी ”

भाभी- क्या हुआ कागज का टुकड़ा ही तो था .

मैंने कोई जवाब नहीं दिया अब भला क्या ही कहना था



तभी हाँफते हुए एक आदमी घर में दाखिल हुआ .

“मालकिन, चौधरी साहब कहा है . ” उसने एक सांस में कहा

मैं- क्या हुआ काका , हांफ काहे रहे हो .

“किसी ने , किसी ने मन्नत का पेड़ काट दिया ” उसने कहा

“ये नहीं हो सकता . कह दो ये झूठ है ” माँ दूर से ही चीख पड़ी .

मैंने माँ के चेहरे पर ज़माने भर का खौफ देखा .

“इसे घर पर ही रखना , ” माँ ने चाची से कहा और नंगे पाँव की घर से बाहर दौड़ पड़ी .

मैं माँ के पीछे जाना चाहता था पर चाची ने मुझे रोक लिया और थोड़े गुस्से से बोली- सुना नहीं तुमने, यही पर रहो . बहु तुम दरवाजा बंद करो .

पर वो कुछ करती उस से पहले ही मैं घर से बाहर निकल गया . मैं माँ के पीछे भागा जो निपट दोपहर में जलती रेत पर नंगे पाँव दौड़े जा रही थी और जब वो रुकी तो मैंने देखा की सफ़ेद सीढियों पर एक पेड़ गिरा हुआ था . ऐसा लगता था की जैसे किसी ने इसके दो टुकड़े कर दिए हो . जिंदगी में पहली बार मैंने माँ की आँखों में आंसू देखे वो रोये जा रही थी . फिर उन्होंने अपनी कटार से कलाई पर जख्म किया . रक्त की धार बह चली .

“माँ ये क्या कर रही है आप ”
माँ को ऐसा करते देख तड़प उठा मैं .माँ ने एक नजर मुझे देखा और फिर रक्त की धार उस पेड़ पर गिराने लगी . और हैरत की बात वो पेड़ सुलग उठा . उसमे आग लग गयी . एक हरा भरा पेड़ धू धू करके जलने लगा. आँखों में आंसू लिए माँ उस जलते पेड़ को देखती रही . तभी कुछ ऐसा हुआ की मैं सफ़ेद सीढियों पर लडखडा कर गिर पड़ा . मेरा कलेजा जैसे जलने लगा.
Shaandaar update bhai bahot khoob
 
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