चिंता का विषय है, देखते है आगे क्या होता है।ढेर सारा खून बिखरा पड़ा है
Adbhut update ke sath ek naye safar ki shuruwaat mubarak ho musafir bhaiदिल अपना प्रीत पराई 2
“”मैंने जानती थी तुम यही मिलोंगे “ चाची की आवाज ने मेरा ध्यान तोडा .
“इसके सिवा जाना ही कहा ” मैंने कहा
“अब तुम्हे समझाने की हिम्मत मुझमे तो नहीं है , माना की खेती का शौक है साहबजादे को पर हमारी और भी कितनी जमीने है वहां कर लो पर न जाने क्यों इस बंजर टुकड़े से इतना लगाव है तुम्हे . हालत देखो अपनी , पसीने से लथपथ क्यों करते हो इतनी मेहनत ये जमीन कभी कुछ नहीं देगी तुम्हे. ” चाची ने कहा .
“सकून तो देगी चाची, ”मैंने कहा
चाची- तुम्हे समझना बड़ा मुश्किल है , घंटो मगजमारी करते हो इस बंजर टुकड़े पर , क्या नहीं है हमारे पास देखो वो दूसरी तरफ के खेत हर साल फसल पैदा करते है , पानी की भी कोई कमी नहीं पर न जाने क्यों तुम इसी बंजर टुकड़े पर कस्सी चलाते रहते हो , कभी कभी तो लगता है की तुम खुद को सजा दे रहे हो . खैर खाना लायी हूँ खा लो .
“कमरे में रख दो मैं थोड़ी देर में आता हूँ ” मैंने कहा
चाची- याद से खा लेना,
चाची ने कहा और वापिस मुड गयी .
अब मैं भला क्या कहता उनको की इस बंजर जमीन और मेरा क्या रिश्ता था दोनों एक से ही थे. हाथो के छालो पर ध्यान न देते हुए मैंने चाची का लाया झोला खोला और खाना खाने लगा. दो तीन सब्जिया, रायता, सलाद और भी न जाने क्या क्या . नीम की छाया तले बैठे मैंने एक नजर तपते सूरज पर डाली और वापिस से खाना खाने लगा. इस बंजर जमीन की सबसे बड़ी खास बात अगर कुछ थी तो ये नीम का पेड़ जो बड़ा गहरा था , और हरा भरा यही बात मुझे हौंसला देती थी .
बेशक मुझे और कस्सी चलानी थी पर न जाने क्यों मेरा मन नहीं हुआ तो मैं कुवे की तरफ चल दिया. और शायद यही से ये कहानी शुरू होनी थी .
तपती गर्म लू, जैसे जान ही निकालने का सोच कर आई थी . गर्म हवा से कलेजा तक जल रहा था सूरज दादा ने जैसे आज अपने क्रोध से सब झुलसा देने का सोच ही लिया था ,
“नहा लेना चाहिए ” मैंने अपने आप से कहा और कुवे पर बने गुसलखाने की तरफ बढ़ने लगा. और जैसे ही मैं पास गया चूडियो की खनक ने मेरा ध्यान खींच लिया. और ठीक तभी वो हुआ जिसने इस कहानी की ऐसी शुरुआत की ..........
बाथरूम का दरवाजा झटके से खुला और मेरे सामने पानी की बूंदों में लिपटी चाची खड़ी थी . ऊपर से निचे तक पूर्ण रूप से नग्न दरवाजे के बीचो बीच वो पांच फुट का जिस्म जिसके दुधिया रंग पर वो अपनी की बूंदे किसी शीशे सी धुप में चमकने लगी थी .
“हाय दैया , तुम यहाँ मैं तो मर गयी ” चाची चीलाई और वापिस गुसलखाने में घुस गयी . दरअसल ये सब अचानक इतनी जल्दी हो गया की हम दोनों ही कुछ ना कर सके सिवाय शर्मिंदा होने के .
“मेरे कपडे , दो ” चाची ने अपना हाथ हलके से बाहर निकाल कर कहा .
“जी ” मैंने धीरे से कहा और पास टंगे घाघरा चोली चाची को दिए. कुछ देर बाद वो बाहर आई.
मैं- माफ़ करना चाची मुझे मालूम नहीं था आप यहाँ नहा रहे हो
मैंने नजरे नीची किये कहा .
चाची- आज बड़ी उमस है , तो सोचा यही नहा लू , खैर खाना खाया तुमने
चाची ने बात बदलते हुए कहा .
मैंने हाँ में सर हिलाया.
चाची- ठीक है मैं चलती हूँ और तुम भी समय से घर आ जाना .
मैं- साथ ही चलता हूँ
मैंने अपनी साइकिल ली और चाची के साथ पैदल पैदल चल पड़ा. वो मेरे पास पास चल रही थी हवा के उड़ते झोंके उनके बदन की खुशबु मेरे पास ला रहे थे . और कुछ ही देर पहले मैंने उन्हें नग्न देख लिया था .हालाँकि मैंने कभी कुछ गलत नहीं सोचा था उनके बारे में कभी भी पर न जाने क्यों बार बार वो द्रश्य मेरी आँखों के सामने आ रहा था .
“चुप क्यों हो , ” चाची ने कहा .
मैं- मुझे लगता है की हमें साइकिल पर बैठ कर चलना चाहिए , जल्दी पहुँच जायेंगे
चाची- ठीक है पर मुझे गिरा मत देना .
चाची साइकिल की पिछली सीट पर बैठ गयी और मैं पैडल मारने लगा.
चाची- थोडा डर लग रहा है , आदत नहीं है न ऐसे बैठने की , घर में गाड़िया खड़ी है पर तुझे न जाने क्या शौक है इसे ही लिए फिरता रहता है .
“मेरा इस से काम चल जाता है चाची ” मैंने कहा .
कुछ देर बाद हम घर पहुंचे, और मैं सीधा अपने चोबारे में चला गया . मैंने पंखा चलाया और बिस्तर पर पसर गया .
“तो आ गए साहबजादे , ” भाभी ने अन्दर आते हुए कहा.
“आप यहाँ भाभी ” मैंने कहा
भाभी- क्या मैं नहीं आ सकती यहाँ
मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं , वो दरअसल आपका ज्यादातर समय रसोई में ही बीतता है न तो थोडा अजीब लगा.
भाभी- क्या करे साहब, अब काम तो करना पड़ेगा न
मैं- माँ और चाची भी तो है वो मदद क्यों नहीं करती, मैं बात करूँगा उनसे
भाभी- नहीं,नहीं, और बताओ तुमने खाना खाया,
मैंने हाँ में सर हिलाया.
भाभी- तुम दोपहर का खाना घर पर क्यों नहीं खाते. मुझे समझ नहीं आता, क्या तुम्हे पसंद नहीं मेरे हाथ का खाना
मैं- ऐसी बात होती तो मैं रात का खाना भी बाहर खाता.
भाभी- तो क्या बात है .
मैं- सच कहूँ तो मुझे ये घर एक कैद लगता है ,वैसे तो मेरे पास सब कुछ है भाभी , किसी चीज़ की कमी नहीं पर न जाने क्यों मेरा मन नहीं लगता यहाँ पर .
भाभी- तुम्हारे भैया बड़ी फ़िक्र करते है तुम्हारी, कभी तुमसे कहते नहीं पर , परवाह करते है वो तुम्हारी .
मैं- जानता हूँ
भाभी- कल क्या तुम मुझे मंदिर ले चलोगे, मेरा व्रत है पूजा करनी है
मैं- हाँ चलेंगे उसमे क्या है . आप का कहा कभी टाला है मैंने
भाभी- मेरा कहा तुम मानते भी कहाँ हो
मैं- ये इल्जाम है मुझ पर आपका
भाभी- तो कबूल करो इस इल्जाम को
मैं- मैं समझ रहा हूँ आप क्या कहना चाहती है
भाभी- जब समझ ही रहे हो तो बता क्यों नहीं देते मुझे की तुम अपने भाई से बात क्यों नहीं करते
मैं- हम इस बारे में बात कर चुके है भाभी, एक नहीं न जाने कितनी बार
भाभी- और हर बार की तरह मैं फिर तुमसे पूछ रही हूँ,
मैं- आप भाई से क्यों नहीं पूछ लेती
भाभी- उनका जवाब भी तुम जैसा ही होता है , तुम दोनों के बीच के खालीपन को ये सारा घर महूसस करता है
मैं- मेरा कोई दोष नहीं इसमें .
भाभी- ठीक है मैं तुम पर जोर नहीं दूंगी .
भाभी ने उठते हुए कहा और चोबारे से बाहर चली गयी . उनके जाने के बाद मैंने तकिये का सहारा लिया और पास रखी किताब को उठा लिया. पर मन नहीं लगा तो मैं भी उठ कर छज्जे पर आया तो देखा आँगन में चाची कुछ कूट रही थी . मुसल चलाते हुए उनकी चूडिया खनक रही थी पर मेरी नजर उनके ब्लाउज से झांकती उनके उभारो की घाटी पर चली गयी और चली ही गयी .
दुधिया गोरी चुचिया जिनकी बस थोड़ी सी ही झलक ने मेरे मन में हलचल मचा दी थी . मेरी आँखों के सामने कुवे वाला वो नजारा आ गया जब मैंने उनको नंगी देखा था . अपने ख्यालो में ज्यादा देर नहीं रह पाया की बाहर से आती गाड़ी के हॉर्न ने मेरा ध्यान खींच लिया. ......
Rochak update mitr#2
मैंने देखा भाई घर लौट आया था और अब मेरा यहाँ रहना मुश्किल था . मैं निचे आया और घर से निकल गया .
“देवर जी चाय ” भाभी आवाज देते रह गयी पर मैंने अनसुना किया और वहां से दूर हो गया . ये जानते हुए भी मैं इस घर से दूर नहीं भाग सकता हार कर मुझे यही लौटना होता है , फिर भी मैं भागता था .आज का दिन बड़ा बेचैनी भरा था . मेरे मन में बार बार चाची की तस्वीर आ रही थी . न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बस उस द्रश्य पर ही जा रहा था . ऐसी बेचैनी मैंने पहले कभी भी महसूस नहीं की थी . अपनी तिश्नगी में भटकते हुए मैं जंगल की तरफ चल दिया.
अपनी साइकिल एक तरफ खड़ी की मैंने और पैदल ही झाडिया पार करते हुए अन्दर की तरफ बढ़ गया . काफी दूर जाने के बाद मैंने देखा एक लड़की , लकडिया काट रही थी . ढलती धुप में पसीने से भीगा उसका लाल हुआ चेहरा , मेरी नजर जो उसके चेहरे पर ठहरी बस ठहर ही गयी . उसने भी मुझे देखा , कुल्हाड़ी चलाते हुए उसके हाथ मुझे देख कर रुक गए.
“सुनो, ” उसने चिल्लाकर मुझसे कहा .
मैं उसके पास गया .
“लकडिया थोड़ी ज्यादा काट ली मैंने क्या तुम उठा कर मेरे सर पर रखवा दोगे ” उसने कहा .
मैं- जी,
वो - बस मेरा काम लगभग हो ही गया है , अच्छा हुआ तुम इस ओर आ निकले , मुझे आसानी हो जाएगी.
वो न जाने क्या बोल रही थी क्या मालूम मेरी नजर उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी , सांवला चेहरा धुप की रंगत में और निखर आया था . मैंने पसीने की कुछ बूंदे उसके लबो पर देखि और न जाने क्यों कलेजे में मैंने जलन सी महसूस की .
“क्या सोच रहे हो , उठाओ इंधन को ” उसकी आवाज जैसे मेरे कानो में शहद सा घोल गयी .
“हाँ, ” मैंने हडबडाते हुए कहा.
उसने अपने सर को बड़ी अदब से थोडा सा झुकाया और मैंने लकडियो का ढेर उसके सर पर रख दिया.
“शुक्रिया, ” उसने हौले से कहा . और आगे बढ़ गयी . मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . जब तक की वो नजरो से लगभग ओझल नहीं हो गयी. तभी न जाने मुझे क्या हुआ मैं दौड़ा उसकी तरफ . उसने मुझे हाँफते हुए देखा .
“क्या मैं ये लकडिया ले चलू, मेरी साइकिल पर रख दो इन्हें ” मैंने साँसों को काबू करते हुए कहा.
उसने एक पल मुझे देखा और बोली- ठीक है .
हम मेरी साइकिल तक आये और मैंने लकडियो का गठर उस पर रख लिया.
“चलो ” उसने कहा
“हाँ, ” मैंने कहा .
जैसा मैंने कहा , आज का दिन बड़ा अजीब था ढलते सूरज की लाली जैसे चारो तरफ बिखर सी गयी थी . वो बेखबर मेरे साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल रही थी . हवा बार बार उसकी चुन्नी को सर से हटा रही थी मुझे रश्क होने लगा था उन झोंको से . जी चाह रहा था की उस से बात करूँ, और शायद वो भी किसी उलझन में थी उसकी उंगलिया चुन्नी के किनारे से जो उलझने लगी थी .
“आप रोज यहाँ आती है ” मैंने पूछा
“नहीं तो ” उसने कहा .
उसने एक पल मुझे देखा और बोली- रोज तो नहीं पर तीसरे चौथे दिन आ ही जाती हूँ , बस यही रुक जाओ गाँव शुरू होने वाला है , अब ये लकडिया मुझे दे दो
मैं- मैं ले चलता हूँ न
वो- नहीं गाँव आ गया है ,
मैंने एक पल उसकी आँखों में देखा और जैसा उसने कहा वैसा किया . वो एक बार फिर से आगे बढ़ने लगी. जी तो किया की इसे यही रोक लू पर मेरा क्या बस चले किसी पर बस उसे जाते हुए देखता रहा एक तरफ वो जा रही थी दूसरी तरफ सूरज ढल रहा था .
घर आकर भी मुझे चैन नहीं था मैं चोबारे में गया और अपना डेक चलाया ”तुम्हे देखे मेरी आँखे इसमें क्या मेरी खता है ”
पिछले कुछ बक्त से ऐसा बहुत कम हुआ था की मैंने कोई गाना बजाया हो . मैं बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गया और सांझ की ठंडी हवा को दिल में उतरते महसूस करने लगा.
“वाह क्या बात है , ये शाम और ये गाना, क्या हुआ मेरे देवर को आज तेवर बदले बदले से लगते है ” भाभी ने मेरी तरफ आते हुए कहा .
उन्होंने चाय का कप मुझे पकडाया और पास बैठ गयी .
“कुछ नहीं भाभी , काफी दिनों से इसे देखा नहीं था लगा की कहीं खराब न हो जाये तो बजा लिया. ” मैंने कहा .
भाभी- चलो इसी बहाने तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान तो आई .
मैं- क्या भाभी आप भी .
भाभी- अब तुमसे ही तो मजाक करुँगी, हक़ है हमारा
मैं- सो तो है .
हम बाते कर ही रहे थे की चाची भी ऊपर आ गयी .
“मुझे तुमसे एक काम है , क्या तुम मेरे साथ शहर चलोगे कल ” चाची ने कहा
मैं- नहीं, मुझे अल कुछ काम है आप चाचा के साथ क्यों नहीं जाती
चाची- वो ले जाते ही नहीं , तुम्हे तो पता ही है उनका हिसाब कभी कभी तो लगता है की उनकी बीवी मैं नहीं बल्कि ये निगोड़ी किताबे है , कालेज से आने के बाद भी बस लाइब्रेरी में ही घुसे रहते है कभी कभी सोचती हूँ आग लगा दू इन किताबो को .
भाभी- कर ही दो चाची ये काम
चाची- तू भी छेड़ ले बहुरानी , खैर अकेली चली जाउंगी मैं .
बहुत देर तक हम तीनो बाते करते रहे, रात बस ऐसे ही बीत गयी . सुबह मैं भाभी को लेकर मंदिर की तरफ चला गया . भाभी को मैंने पूजा की थाली दी और अन्दर जाने को भाभी .
“तुम भी चलो साथ ,हमें अच्छा लगेगा ” भाभी ने कहा
मैं- नहीं भाभी मेरा मन नहीं है .
मैं वही सीढियों पर बैठ गया सुबह सुबह का वक्त,और अलसाया मेरा मन पर तभी कुछ ऐसा हुआ की ..................... ....... .
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इस से बेहतरीन सुबह और भला क्या होती , अचानक ही मेरी नजर उस पर पड़ी. और लगा की दिल साला कहीं ठहर से गया . लहराते आँचल से बेखबर वो दनदनाती हुई हाथो में थाली लिए सीढिया उतर कर मेरी तरफ ही आ रही थी . माथे पर बड़ा सा तिलक , हाथो में खनकती चूडिया . जी करे बस देखता ही रहूँ, और अचानक से ही हमारी नजरे मिली ,हमने इक दुसरे को देखा, मुस्कराहट को छुपाते हुए वो मेरे पास आई और बोली-”हाथ आगे करो ”
मैंने हथेली आगे की .
“ऐसे नहीं दोनों हाथ ” उसने जैसे आदेश दिया.
उसने एक लड्डू मेरे हाथ पर रखा और बोली- तुम यहाँ
मैं- वो भाभी आई है पूजा के लिए तो साथ आना पड़ा
वो- तो अन्दर क्यों नहीं गए.
मैं- अन्दर जाने की क्या जरुरत मुझे अब ,
अचानक ही वो हंस पड़ी .
“अच्छा रहता है यहाँ आना , आया करो ” उसने कहा
मैं- अब तो आना ही पड़ेगा
वो- खैर, मैं चलती हूँ देर हो रही है
मैं- मैं छोड़ दू आपको
वो- अरे नहीं,
उसने मेरी गाड़ी की तरफ देखते हुए कहा .
मैं- मुझे अच्छा लगेगा
वो- पर आदत तो मेरी बिगड़ जाएगी न
बेशक उसने बिना किसी तकल्लुफ के कहा था पर वो बात दिल को छू गयी .
“कुछ चीजों की आदत ठीक रहती है ” मैंने कहा
वो- और बाद में वहीँ आदते जंजाल बन जाती है , खैर फिर मुलाकात होगी अभी जाना होगा मुझे.
इतना कहकर उसने अपना रास्ता पकड़ लिया मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . मुझे लगा वो पलट कर देखेगी पर ऐसा नहीं हुआ. अब और करता भी क्या बस इंतज़ार ही था भाभी के आने का . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी . और हम घर की तरफ चल पड़े.
“क्या बात है देवर जी , चेहरे पर ये मुस्कान कैसी ” भाभी ने कहा
उनकी बात सुनकर मैं थोडा सकपका गया .
“नहीं भाभी कुछ भी तो नहीं ” मैंने कहा
भाभी- कुछ होना था क्या .
उन्होंने हँसते हुए कहा .
मैं- क्या भाभी आप भी , ऐसा करेंगी तो मैं फिर साथ नहीं आऊंगा.
भाभी- अच्छा बाबा,
हंसी ठिठोली करते हुए हम घर पहुंचे . मैंने देखा भाई आँगन में कुर्सी पर बैठा था . मैं उसे नजरंदाज करते हुए चोबारे में जाने लगा.
“छोटे, रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ” उसने कहा
मैं- पर मुझे कुछ नहीं कहना सुनना
भाई- बस तेरा ये रवैया ही तेरा दुश्मन है , मैं तेरे लिए एक मोटर साईकिल लाया था सोचा तू खुश होगा ,
मैं- मैं अपनी साइकिल से ही खुश हूँ , दूसरी बात मैं अपनी जरूरतों का ध्यान रख सकता हूँ मेरी चादर इतनी ही फैलती है जितनी मेरी औकात है . तीसरी बात मैं नहीं चाहता की हमारी वजह से इस घर की शान्ति भंग हो तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो .
“भाई हो तुम दोनों भाई एक दुसरे पर जान छिडकते है और तुम दोनों हो की जब भी एक दुसरे से बात करते हो , कलेश ही करते हो , आखिर क्या मन मुटाव है तुम्हारे बीच बताते तो भी नहीं . ” माँ ने हमारे बेच आते हुए कहा .
“भाइयो में कैसी नाराजगी माँ, छोटा है इसका हक़ है जो चाहे करे ,कोई बात नहीं इसे मोटर सायकल नहीं लेनी तो नहीं लेगा. छोटा है जिस दिन बड़ा होगा समझ जायेगा ” भाई ने माँ से कहा और अपने कमरे में चला गया .
रह गए मैं , माँ और भाभी .
मैं- ऐसे भाई नसीब वालो को मिलते है , इतना चाहता है तुझे कितनी परवाह करता है तेरी और तू है की ऐसा व्यवहार करता है .
मैं-माँ तू चाहे तो मुझे मार ले , पर इस बात को यही पर रहने दे,
माँ- या तो तुम अपने मसले हल कर लो वर्ना मैं तुम्हारे पिताजी को बता दूंगी फिर वो ही सुलटेंगे तुमसे, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है इस घर में .
मैं- ठीक है माँ, मेरी गलती हुई, मैं चलता हूँ
“देवर जी खाना तो खा लो, ” भाभी ने आँखों से मनुहार करते हुए कहा .
मैं- पेट भरा है भाभी , आजकल भूख ज्यदा नहीं लगती मुझे . वहां से मैं सीधा कुवे पर पहुंचा और जोर आजमाइश करने लगा अपने उसी बंजर टुकड़े के साथ , दोपहर फिर न जाने कब शाम हो गयी . दिन पूरा ही ढल गया था की मैंने चाची को आते देखा .
“आज फिर भाई से झगडा किया ” चाची ने मेरे पास बैठते हुए कहा .
मैं- इस बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता और माँ ने अगर आपको भेजा है तो बेशक चली जाओ
चाची- तुझे क्या लगता है किसी को जरुरत है मुझे तेरे पास भेजने की .थोड़ी देर पहले ही शहर से आई, आते ही मालूम हुआ की सुबह बिना रोटी खाए तू निकला है घर से तो खाना ले आई . देख सब तेरी पसंद का बना है .
मैं- भूख नहीं है
चाची- मुझसे झूठ बोलेगा इतना बड़ा भी नहीं हुआ है तू.
मैं- मेरा वो मतलब नहीं था चाची
चाची- ठीक है , चल मेरे हाथो से खाना खिलाती हूँ , मेरी तसल्ली के लिए ही थोडा सा खा ले .
चाची ने टिफिन खोला और एक निवाला मेरे मुह में दिया . न जाने क्यों मेरी रुलाई छूट पड़ी . और मैं चाची के सीने से लग कर रोने लगा. चाची ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मेरी को सहलाने लगी.
“बस हो गया ,अब खाना खा ले तू नहीं खायेगा तो मैं भी नहीं खाने वाली आज रात ” चाची ने कहा .
मैं- खाता हूँ .
खाने के बाद चाची ने बर्तन समेटे और बोली- घर चले.
मैं- मेरा मन नहीं है
चाची- मेरे घर तो चल , वैसे भी प्रोफेसर साहब आज कही बाहर गए है तो अकेले मुझे डर लगेगा.
मैं- माँ है भाभी है तो सही
चाची- तुझे कोई दिक्कत है क्या , वैसे तो मेरी चाची , मेरी चाची करते रहता है और चाची को ही परेशां देख कर अच्छा लगता है तुझे .
मैं- ठीक है चाची ,चलते है .
घर आने के बाद हमने बहुत देर तक बाते की , रात बहुत बीती तो मैं फिर सोने चला गया . न जाने कितनी देर आँख लगी थी की उन अजीब सी आती आवाजो ने मेरी नींद छीन ली. ऐसा लग रहा था की जैसे चुडिया तेजी से खनक रही थी . मैं उठा और उस तरफ गया दरवाजा खुला था और जो मैंने देखा , बस देखता ही रह गया .
Lajeej update dost#4
मैं नहीं जानता था की मेरी तक़दीर मेरे लिए कुछ ऐसा लिख रही है जो नहीं होना था , बल्ब की पीली रौशनी में मैंने देखा चाची बिस्तर पर अकेली , लहंगा पेट तक उठा हुआ, छाती खुली हुई , एक हाथ में वो कोई किताब लिए थी जिसे पढ़ते हुए वो दुसरे हाथ को जोर जोर से हिला रही थी जो उनकी जांघो के बीच था . बेशक कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था पर गर्मी कुछ बढ़ सी गयी हो ऐसा मुझे महसूस हो रहा था . जांघो के बीच वो हाथ अजीब सी हरकते कर रहा था और तब मुझे मालूम हुआ की वो दरअसल वो चाची की उंगलिया थी जो तेजी से उनकी योनी के अन्दर बाहर हो रही थी .
बेशक मैं योनी को ठीक से नहीं देख पा रहा था परन्तु बालो की उस काली घटा को जरुर महसूस कर रहा था , चाची का पूरा ध्यान उस किताब को पढने में था . मेरी साँसे फूलने लगी थी . दो दिन में ये तीसरी बार हुआ था जब मैं चाची के बदन को इस तरह महसूस कर पा रहा था . मैंने अपने सीने पर पसीने की बूंदों को दौड़ते हुए महसूस किया .
ये सब देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था पर अचानक से चाची बिस्तर पर गिर गयी . और लम्बी लम्बी साँसे भरने लगी . जैसे की बेहोशी छा गयी हो उनपर, पर फिर वो उठी, अपने ब्लाउज को बंद किया और उस किताब जिसे वो पढ़ रही थी तकिये के निचे रखा और बिस्तर से उठ गयी . मैं तुरंत वहा से हट गया क्योंकी अगर वो मुझे वहां पर देख लेती तो शायद हम दोनों ही शर्मिंदा हो जाते.
सुबह मैं उठा तो चाची ने मुझे चाय पिलाई, ऐसा लग ही नहीं रहा था की रात को यही औरत आधी नंगी होकर कुछ कर रही थी . खैर, मेरे दिमाग में बस यही था की उस किताब को देखूं की चाची क्या पढ़ रही थी , पर अफ़सोस तकिये के निचे अब वो किताब नहीं थी, शायद चाची ने उसे कहीं और रख दिया था .
घर जाते ही मेरा सामना मेरे पिता से हुआ. जो नाश्ता कर रहे थे .उन्होंने मुझे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा .
“एक ही घर में रहते हुए , हम आपस में मिल नहीं पाते है , थोडा अजीब है न ये ” उन्होंने कहा.
मैं- ऐसी बात नहीं है जी
पिताजी- तुमने मोटर साइकिल लेने से मना कर दिया , गाड़ी तुम्हे नहीं चाहिए , घर वालो से तुम घुल मिल नहीं पाते हो , दोस्त तुम्हारे नहीं है , बेटे हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है , कोई समस्या है तो बताओ, हम है तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ .
मैं- कोई समस्या नहीं है पिताजी , और मैं बस यही आस पास ही तो आता जाता हूँ, उसके लिए साइकिल ठीक है गाड़ी मोटर की क्या ही जरुरत है .
पिताजी- चलो मान लिया , पर बेटे हमें मालूम हुआ तुम कीचड़ में उतर गए एक बैल गाड़ी को निकालने के लिए, तुम हमारे बेटे हो तुम्हे समझना चाहिए .
मैं- किसी की मदद करना अच्छी बात होती है आप ने ही तो सिखाया है
पिताजी- बेशक हमें दुसरो की मदद करनी चाहिए पर आम लोगो में और हम में थोडा फर्क है , इस बात को तुम्हे समझना होगा . खैर, हम चाहते है की तुम आगे की पढाई करने बम्बई या दिल्ली जाओ .
मैं- क्या जरुरत है पिताजी वहां जाने की जब अपने ही शहर में पढ़ सकता हूँ मैं
पिताजी- हम तुम्हारी राय नहीं पूछ रहे तुम्हे बता रहे है
मैं- मैं नहीं जाऊंगा कही और
ये कहकर मैं उठ गया और आँगन में आ गया . मैंने इस घर को देखा , इसने मुझे देखा और देखते ही रहे . खैर मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और अपनी साइकिल उठा कर बाहर आया ही था की चाची मिल गयी .
चाची- किधर जा रहा है
मैं- और कहा जाना बस उधर ही जहाँ अपना ठिकाना है
चाची- दो मिनट रुक फिर मुझे भी साथ ले चलना
“नहीं खुद ही आना ” मैंने कहा और उन्हें वही छोड़ कर चल दिया. गलियों को पार करते हुए मैं बड़े मैदान की तरफ जा रहा था की तभी मैंने सामने से उसे आते हुए देखा .केसरिया सूट में क्या गजब ही लग रही थी . वो नजदीक आई , उसने मुझे देखा, उसके होंठो पर जो मुस्कान थी उसका रहस्य अजीब लगा . बस हलके से उसकी उडती चुन्नी मुझे छू भर सी गयी और न जाने मुझे क्या हो गया . एक रूमानी अहसास , उसके गीले बालो से आती क्लिनिक प्लस शम्पू की खुशबु मुझे पागल कर गयी .
मैं उस से बात करना चाहता था , पर वो बस आगे बढ़ गयी , हमेशा की तरह उसने पलट कर नहीं देखा, इसके बारे में मालूम करना होगा , दिल ने संदेसा भेजा और मैंने कहा , हाँ जरुर. दिन भर मैं क्रिकेट खेलता रहा पर दिल दिमाग में बस उसका ही अक्स छाया रहा . और फिर कुछ सोचकर मैं जंगल में उस तरफ गया जहाँ पहली बार मैं उस से मिला था .
यकीं मानिए, उस दिन मैंने जाना था की किस्मत भी कोई चीज़ होती है , थोड़ी ही दूर वो मुझे लकडिया काटते हुए दिखी, लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास गया .
“क्या ” उसने मुझे हांफता देख पर पूछा
मैं- आपसे बात करनी थी .
वो-क्या बात करनी है
मैं- वो तो मालूम नहीं जी,
मेरी बात सुनकर उसने कुल्हाड़ी निचे रखी और लगभग हंस ही पड़ी .
“तो क्या मालूम है तुम्हे ” उसने शोखी से पूछा
मैं- पता नहीं जी
वो- चलो, मेरी मदद करो लकडिया काटने में एक से भले दो , अब तुम मिल ही गए हो तो मेरा काम थोडा आसान हो जायेगा.
मैंने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने लगा. करीब आधे घंटे में ही अच्छा ख़ासा गट्ठर हो गया .
“तुम्हारा मुझसे बार बार यूँ मिलना क्या ये इत्तेफाक है “ उसने पूछा
मैं- आपको क्या लगता है
वो- मुझे क्या लगेगा कुछ भी तो नहीं .
मैंने गट्ठर साइकिल पर रखा और बोला- चले
वो - हाँ, पर उठने दो मुझे जरा
उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे थाम कर उठाया. ये हमारा पहला स्पर्श था.उसको क्या महसूस हुआ वो जाने , पर मैं बिन बादल झूम ही गया था .
“अब छोड़ भी दो न ” उसने उसी शोखी से कहा तो मैं थोडा लाज्जित हो गया और हम थोड़ी बहुत बाते करते हुए वापिस गाँव की तरफ चल पड़े. पिछली जगह पर हम अलग हुए ही थे की मैंने प्रोफेसर साहब की गाड़ी को खड़े देखा. चाचा की गाडी इस वक्त यहाँ जंगल की तरफ क्या कर रही थी मैं सोचने को मजबूर हो गया . और गाड़ी की तरफ बढ़ गया .
Naajneen update dost#5
पर गाडी के पास कोई नहीं था , थोड़ी दूर झाड़ियो में कुछ हलचल हो रही थी मैं दबे पाँव उस तरफ बढ़ा तो मैंने देखा की चाचा किसी आदमी से बात कर रहे थे , मैं थोडा दूर था इसलिए सुन नहीं पा रहा था पर उस अजीब से कपडे पहने आदमी को चाचा शायद कुछ समझाना चाह रहेथे उनके हाथो के इशारे इस प्रकार के ही थे.
फिर चाचा ने जेब से निकाल कर उसे कुछ पैसे दिए . मेरे लिए ये थोडा अजीब था क्योंकि चाचा एक अजीब ही प्रकार का चुतिया टाइप इन्सान था जो कालेज और खुद की लाइब्रेरी के सिवाय कही नहीं आता जाता था , पर फिर उनकी बाते खतम हो गयी और चचा गाड़ी की तरफ आने लगा तो मैं खिसक गया वहां से पर दिमाग में सवाल था की क्या बात कर रहा था .
सोचते सोचते मैं खेत पर आ पहुंचा , मौसम थोडा ठंडा हो चला था मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर पसर गया. आस पास गहरा सन्नाटा लिए हवा लहरा रही थी . बस मैं था और ये तमाम जहाँ की तन्हाई , मेरे दिमाग में पिताजी के कहे शब्द गूँज रहे थे , “दिल्ली या बम्बई एक जगह चुन लो जहाँ तुम्हे आगे पढने जाना है ”
ऐसा नहीं था की मुझे पढाई में दिलचस्पी नहीं रही थी बस मैं यहाँ से दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि मैं सोचता था की पढाई के लिए बड़े कालेज का होना जरुरी नहीं है , साधारण सरकारी कालेज की डिग्री का भी उतना ही महत्त्व होता है . पर बाप को कौन समझाए . सोचते सोचते कब अँधेरा हो गया मालूम ही नहीं हुआ. मैंने उठ कर बल्ब जलाया , मन नहाने का था तो पानी की खेली में उतर गया . ठन्डे पानी ने मेरे सुलगते विचारो को राहत दी.
गले तक पानी में डूबा मैं एक बार फिर से उस लहराते आँचल की छाँव को महसूस करने लगा. गीले बालो की उस खुशबु को मैं भूल कर भी नहीं भुला पा रहा था . मेरी आँखों के सामने बार बार वो सांवला चेहरा आकर खड़ा हो जाता था , वो मर्ग नयनी आँखे जैसे सीधा मेरे दिल में झांकती थी , वो होंठ जैसे कुछ कहना चाहते हो .
“किस ख्याल में खोये हो बरखुर दार ” चाची की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की , मैं चौंक गया .
“आप यहाँ ” मैंने सवाल किया
चाची- क्यों नहीं आ सकती क्या , वैसे मेरा ही खेत है
मैं- हाँ आपका ही है मेरा वो मतलब नहीं था मैं कहना चाहता था की रात घिर आई आप यहाँ क्या कर रही है आपको तो घर होना चाहिए था न .
मेरे यहाँ होने की वजह है घी का पीपा जो मैं दोपहर को भूल गयी थी ले जाना , चली तो शाम को ही थी रस्ते में मेरी एक सहेली के यहाँ बैठ गयी तो देर हो गयी , इधर आई तो रौशनी देख कर समझी तुम यही पर हो
मैं- ठीक है बस चलते है घर थोड़ी देर में
चाची- बेशक, वैसे तुम्हे मालूम तो होगा ही
मैं- क्या हुआ
चाची- अरे वो , बिमला थी न ,हलवाई की घरवाली वो किसी के साथ भाग गयी, गाँव में बड़ा शोर हुआ पड़ा है ,
मैं- शोर किसलिए उसकी मर्जी वो भागे या न भागे
चाची- कितना भोला है तू कब समझेगा तू दुनियादारी
मैं- चाची, उसकी जिन्दगी है वो चाहे कैसे भी जिए
चाची- समाज भी कुछ होता है , समाज के नियमो से दुनिया बंधी है
मैं- कोई और बात करते है
चाची- वैसे बहुरानी बता रही थी पूरी रात चोबारे में गाने बजते है आजकल क्या बात है
चाची ने चुटकी लेते हुए कहा
मैं- गाने सुनते सुनते आँख लग गयी थी तो बजता रहा बाजा , वैसे भी आवाज बेहद धीमी थी तो किसी को परेशानी नहीं हुई
“हाय रे ये लड़का ” चाची ने अपने माथे पर हाथ मारा
चाची- तू नहा ले तब तक मैं अन्दर होकर आती हु,
चाची अन्दर की तरफ जाने को दो कदम चली ही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो गीली जमीन पर गिर गयी .
“आह , मैं तो मरी ” चाची चिल्लाई
मैं तुरंत खेली से बाहर निकला और चाची को उठाया
चाची- आह, लगता है टखना मुड गया मेरा तो आह्ह्ह्हह्ह
मैं- रुको जरा , देखने दो .
“मुढे पर बिठा मुझे जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा .
मैंने चाची को बिठाया और चाची के कदमो में बैठते हुए उनके पांव को देखने लगा. इसी बीच चाची का लहंगा थोडा सा ऊँचा हो गया . बल्ब की रौशनी में मेरी नजर चाची की दोनों टांगो के बीच पहुँच गयी. बेहद गोरी जांघे मांस से भरी हुई , कांपते हुए हाथो से मैंने चाची के टखने को पकड़ा और कस कर दबाया .
“आईईईइ ” चाची जोर से चिल्लाई
मैं- बस हो गया .
मैंने टखने को घुमाते हुए कहा था . दरअसल मैं मोच देख रहा था पर मेरी आँखे कुछ और देख रही थी , न जाने मुझमे इतनी हिम्मत कहा से आ गयी थी मैंने चाची के पैर को उठा कर खुद के कंधे पर रखा चाची का लहंगा उनके पेट तक उठ गया और मैं उनकी दोनों नंगी जांघो को देख रहा और उस काली जालीदार कच्छी को भी जिसने उनकी योनी को छुपाया हुआ था .
मैंने देखा चाची की आँखे बंद दी. मैंने एक बार फिर से टखने को दबाया .
“आह, बस यही है दर्द ” चाची ने कहा .
मैं- बस हो गया .
मैंने अपना दूसरा हाथ चाची की ठोस जांघ पर रखा और कस कर उस मांसल भाग को दबाया. मैंने अपने निशान चाची की जांघो पर छपते हुए देखा. मेरी धडकने ईस्ट अरह भाग रहीथी जैसे की उन्हें कोई मैडल जीतना हो. पर तभी चाची ने अपनी आँखों को खोला और उनकी नजर मेरे उत्तेजित लिंग पर पड़ी, और दूसरी नजर उनकी अपनी हालत पर पड़ी जिसमे वो निचे से लगभग नंगी थी .
“हाय दैया ” चाची ने शर्म से अपनी आँखे मूँद ली और मैं वापिस बाहर भाग गया . ऐसा लग रहा था की दिल सीना फाड़ कर बाहर गिर जायेगा. उस से भी जायदा मुझे डर था की चाची मुझ पर गुस्सा करेंगी . मैंने जल्दी से गीला कच्छा फेंका और अपने कपडे पहन लिए. बेशक मैं अभी नहाया था पर अब डर से मुझे पसीना आने लगा. कुछ देर बाद चाची ने मुझे अन्दर आने को कहा तो मैं डरते हुए अन्दर गया .
चाची- तेरे दबाने से राहत तो हुई है मुझे लगता है मोच नहीं आई
मैं- घर चल कर मालिश करवा लेना आराम होगा .
चाची- दर्द हो रहा है घर तक कैसे चल पाऊँगी
मैं- साइकिल पर बिठा ले चलूँगा , घी कोई और ले जायेगा
चाची- ठीक है
मैंने चाची को सहारा देकर बाहर तक लाया और कमरे को ताला लगाया. पर चाची को पीछे बैठने में थोड़ी परेशानी हो रही थी .
मैं- एक काम करो आगे बैठ जाओ
चाची- न कोई देखेगा तो क्या कहेगा.
मैं- चारो तरफ अँधेरा है कौन देखेगा और बस्ती से पहले उतर जाना .
कुछ सोचकर चाची ने हाँ कह दी . मैंने चाची को साइकिल के डंडे पर बिठाया इसी बहाने मेरे हाथ उनके कुलहो को छू गए . उनकी आह को मैंने सुना . पैडल मारते हुए मेरे पैर बार बार चाची के कुलहो को छू रहे थे , उनके बदन की पसीने से भरी खुसबू मुझे पागल कर रही थी एक बार फिर मैं उत्तेजित होने लगा था और इसी उत्तेजना में ........ .....
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Khubsurat palo ko samete ek aur naayaab update fouji bhai ki#6
और इसी उत्तेजना में साइकिल का संतुलन बिगड़ गया और मैं चाची को लिए लिए ही कच्चे रस्ते पर गिर गया . बेशक रास्ता कच्चा था पर कंकड़ की रगड़ ने मेरी पिंडी को घायल कर दिया था . दूसरी तरफ चाची कराह रही थी .
“मुझे मालूम था तू यही करेगा ” चाची मुझे गालिया देते हुए कोसने लगी. बड़ी मुश्किल से मैं उठ पाया. मालूम हुआ की पेडल का नुकीला हिस्सा मांस में धंस गया था , ऊपर से चाची न जाने क्या क्या बक रही थी . पर तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरा ध्यान चाची से हटा दिया .
ऐसा लगा की मेरी आँखों में रौशनी पड़ी हो, इस रात में इस सुनसान में ऐसा होना मुमकिन नहीं था क्योंकि अक्सर इसके लिए तेज धुप और किसी प्रवार्त्तित करने वाले साधन की जरुरत होती है , पर ये मेरा वहम नहीं था ,
क्योंकि मैंने दूर वो चमकती आभा फिर देखी जिसकी चमक मेरी आँखों में पड़ी थी और न जाने मुझे क्या हुआ चाची को वहीँ पर छोड़ कर मैं उस तरफ चल दिया. जैसे मुझे अब और किसी की कोई परवाह ही नहीं थी .
“अब कहाँ जा रहा है तू ” चाची चिल्लाई पर क्या ही फर्क पड़ना था . वो चीखती रही मुझे कोसती रही पर कोई क्या ही करे जब नसीब ने एक नया रास्ता तलाश लिया हो . धीरे धीरे जैसे ये जहाँ ही पीछे छूट गया हो , मैं चलते चलते जब वहां पहुंचा तो मैंने देखा की वो एक पुराना कुवा था . जिसे मैंने शायद ही कभी पहले देखा हो .
वो लड़की हाँ वही लड़की कुवे से पानी खींच रही थी .पास ही एक लालटेन मंदी लौ में जल रही थी . और मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आया , आप ही सोचिये गर्मियों की एक उमस भरी रात में एक बियाबान कुवे पर पानी खींचती एक लड़की को अचानक देख कर आप क्या सोचेंगे, पर शायद मैं ही वहां पर अचानक से पहुँच गया था .
“तुम यहाँ इस वक्त ” उसने पूछा मुझसे .
अब मैं क्या कहता उस से .
“आप भी तो है यहाँ है ” मैंने कहा
वो- मेरा होना न होना क्या फर्क पड़ता है
मैं- पर अब जब हम दोनों इस पल यहाँ है तो फर्क पड़ता है
“तुम्हारे पैर से तो खून बह रहा है , क्या हुआ कैसे लगी ये चोट तुम्हे ” एक ही साँस में उसने बहुत सवाल पूछ लिए.
मैं- कुछ नहीं ठीक हो जायेगा
वो- देखने दो जरा मुझे
उसने मुझे एक पत्थर पर बैठने को कहा और मेरे पैर को देखने लगी .
“कुछ गहरा चुभा है, जख्म अन्दर तक हुआ है , रुमाल है क्या तुम्हारे पास ” उसने कहा.
मैंने जेब से रुमाल उसे दिया उसने वो जख्म पर कस कर बाँधा और बोली- डॉक्टर को दिखा लेना इसे, लगता है टाँके आयेंगे.
मैं- दिखा लूँगा पर फिलहाल मैं ये जानना चाहता हूँ की इस बियाबान में इतनी रात आप क्या कर रही है , एक मटके पानी के लिए इतनी दूर आना, जबकि पानी तो रोज ही घर आता है .रात को ऐसे अकेले घूमना ठीक नहीं
वो- तुम लड़के हो तो इतनी रात को घूम सकते हो पर मैं नहीं घूम सकती क्योंकि मैं लड़की हूँ .
तुरंत ही मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ
मैं- मेरा वो मतलब नहीं था
वो- जानती हूँ , आओ मेरे साथ .
उसने मटका उठाया और मेरे आगे चल पड़ी. उसकी पायल की आवाज अँधेरे में गूंजने लगी . जल्दी ही हम दोनों उस जगह पर खड़े थे जहाँ से न जाने मैं कितनी बार गुजरा था पर आज ये रात मुझे वो सिखाने वाली थी वो अहसास जगाने वाली थी जो आने वाले समय के मायने बदल देने वाली थी .
हम दोनों एक मूर्ति के सामने खड़े थे . लालटेन की रौशनी में मैंने देखा पत्थर पर लिखा था , “ सहीद हवालदार बलकार सिंह ”
“ये मेरा फौजी है , मेरे बाबा ” उसने गहरी सांस लेते हुए कहा .
“वो कुवा मेरे बाबा ने खोदा था , अक्सर जब भी मैं उदास होती हूँ मैं वहां से मटका भर लाती हूँ , ऐसा लगता है जैसे बाबा ने सर पर हाथ रख दिया हो बहुत छोटी थी मैं जब वो हमें छोड़ गए . बस अहसास है की उन चमकते तारो से आज भी वो मुझे देखते होंगे. ” उसकी आवाज भर्रा आई थी .
मैंने उसके हाथ को कस कर थाम लिया .मैंने देखा उसकी नाकाम कोशिश को जो वो अपने आंसू छुपाने की कर रही थी .
“बैठो मेरे पास ” मैंने उसके आंसू पोंछते हुए कहा और हम वही उस दहलीज पर बैठ गए.
“खुशकिस्मत हो आप , एक महान योद्धा की बेटी हो ” ,मैंने कहा
“बिन बाप की बेटी होना अपने आप में बदकिस्मती होता है ” उसने कहा
“आपकी इस तकलीफ को मैं कम तो नहीं कर सकता पर आपके दर्द को बाँट जरुर सकता हूँ , एक फौजी की बेटी है आप कमजोर तो हो नहीं सकती ” मैंने कहा
वो- फौजी की बेटी , शहीद की बेटी जमाना एक अरसे पहले भूल चूका है इन बातो को .
उसने फीकी मुस्कान से कहा.
मैं- ज़माने से क्या फर्क पड़ता है , आप तो नहीं भूली, वो आपके दिल में जिन्दा है और रहेंगे ,और इन दो चार मुलाकातों में मैं इतना तो जान चूका हूँ की एक दिन ऐसा भी आएगा जब ये ही जमाना कहेगा देखो ये है बलकार सिंह की बेटी .
“मैं वो ख्वाब हूँ जो किसी ने न देखा ” उसने कहा
मैं- आप वो किस्सा हो जिसे आने वाली पीढ़ी सुनेगी . मेरी ये बात याद रखना मैं नहीं जानता आपका और मेरा आज क्या रिश्ता है पर मैं आप से ये वादा करता हूँ आज के बाद आप कभी अकेली नहीं होंगी , किसी भी राह पर आप चलेंगी, किसी भी डगर पर आप लड़खड़ाई मैं कहीं भी रहू या न रहू आपको थाम लूँगा .
मैंने उसका हाथ थाम कर कहा.
लालटेन की रौशनी में उसके चेहरे पर उस लम्हे में जो मुस्कान आई थी , करोडो रूपये, हीरे जवाहरात भी उसका मोल नहीं कर सकते थे .
“रात बहुत हुई मैं आपको घर छोड़ देता हूँ ” मैंने कहा
उसने हाँ में गर्दन हिलाई और हम उसके घर की तरफ चल पड़े.
“बस यही , ” उसने गली के मुहाने पर कहा
मैं उसे छोड़कर मुड़ा ही था की पीछे से उसने कहा ,”मीता नाम है मेरा ”
“हम फिर कब मिलेंगे ” मैंने उस से पूछा
मीता- जल्दी ही
उस रात बड़ी अच्छी नींद आई मुझे पर मैं कहाँ जानता था आने वाली सुबह मेरे लिए क्या लेकर आई थी .
Jakash update mitr#7
“पिताजी बुला रहे है तुम्हे निचे ”भाभी ने मुझे उठाते हुए कहा .
“इतनी सुबह भला मुझसे क्या काम उनको, आप जाओ मुझे सोने दो ” मैंने प्रतिकार करते हुए कहा .
भाभी- अभी बुलाया है चलो जल्दी
न चाहते हुए भी एक हसीं नींद का साथ छोड़ कर मैं निचे आया . देखा हमेशा की तरह पिताजी अख़बार पढ़ते हुए नाश्ता कर रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और पास बैठने को कहा.
“जैसा हमने कहा था , दाखिले के लिए फॉर्म मंगवा लिए है दिल्ली या बम्बई जहाँ तुमहरा मन करे वहां केलिए फॉर्म भर कर दे दो हम आगे भिजवा देंगे ” पिताजी ने कहा
मैं- पिताजी, मुझे नहीं जाना कहीं भी
पिताजी ने अपना चश्मा उतारा और घुर कर देखा मुझे
“तो क्या करोगे, यहाँ दिन भर आवारागर्दी करोगे, हम चाहते है की अच्छे से पढ़ लिख कर हमारे काम को आगे ले जाओ तुम, तुम्हारा भाई कितनी मेहनत करता है तुम्हे उसके कंधे से कन्धा मिला कर चलना चाहिए पर वो तो उम्मीद ही क्या करे तुमसे. ” पिताजी ने सख्त लहजे में कहा
मैं- पिताजी माफ़ी चाहूँगा , पर ना मुझे इस धंधे में कोई इंटरेस्ट है और न मुझे बाहर पढने जाना है .
“हमें न सुनने की आदत नहीं है , शाम तक इन फॉर्म पर तुम्हारे दस्तखत और मंजूरी हो जानी चाहिए ” पिताजी ने कहा
मैं- ऐसा नहीं होगा .
“सटाक ”
इस से आगे मैं कुछ नहीं कह पाया .
”गुस्ताख तेरी इतनी हिम्मत जो इनके सामने आवाज ऊँची करे ” माँ ने मेरे गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा . ये पहली बार हुआ था जो मेरी माँ ने मुझ पर हाथ उठाया था , सभी लोग एकदम से सकते में आ गए .
माँ- जब इन्होने कहा की तुझे बाहर जाना है तो मतलब जाना है
मेरी आँखों में आंसू आ गए , गला भर आया मैं कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर मैंने दिल में बात दबा ली और घर से बाहर निकल आया .
घर से तो निकल आये पर जाए तो कहाँ जाये . कहने को तो सब कुछ था पर मैं जानता था जिंदगी में एक दिन ऐसा आएगा जब मुझे मेरे परिवार के बड़े नाम और मेरे जमीर में से एक को चुनना पड़ेगा. मैं चाहता ही नहीं था उस शान शोकत को , हर उस चीज़ को जो मुझे याद दिलाती थी की मेरा बाप कितना रसूखदार है . मैं बस मैं ही रहना चाहता था
अपने ख्यालो में भटकते हुए मैंने उसी आदमी को देखा जो प्रोफेसर साहब के साथ था उस दिन . अपना झोला टाँगे वो बड़ी जल्दी जल्दी कही जा रहा था , कोतुहलवश मैंने निश्चित दुरी बना कर उसका पीछा करना शुरू कर दिया . और उसकी हरकतों ने मुझे पूरा मौका दिया उसका पीछा करने का . वो ठीक उसी कुवे पर गया जहाँ कल रात मीता ने पानी का घड़ा भरा था . उसने झोले से निकाल कर एक बोतल भरी और जंगल की तरफ जाने लगा .
करीब घंटे भर तक वो आगे मैं पीछे चलता रहा और फिर मैंने वो देखा जो मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था ये बंजारों का टोला था . वो टोले में चला गया पर मैं किनारे पर रुक गया क्योंकि बंजारे अनजान लोगो को ज्यादा पसंद नहीं करते थे .
अब मैं करता भी क्या , बस वापिस लौट ही जाना था पर कहते हैं न जब किस्मत खुद कहानी लिखती है तो अपने अंदाज में लिखती है , कच्ची सड़क पर तेजी से एक गाडी गुजरी जो सीधा टोले में गयी और ये गाड़ी किसी और की नहीं बल्कि चाचा की थी , मेरे प्रोफेसर चाचा, जो अलग ही मिजाज के थे और ये हरकते उनके मिजाज के बिलकुल माफिक नहीं थी . अब मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी थी मैंने पक्का इरादा कर लिया की ये चल क्या रहा है,
मैं तुरंत वहां से वापिस हो लिया अब मुझे मिलना था चाची से . पर वो घर पर नहीं थी , न जाने मुझे क्या सुझा मैं उस कमरे की तरफ गया जो चाचा का पुस्तकालय थी पर अफ़सोस उस पर लॉक था .
“चाबी कहाँ होगी ” मैंने अपने आप से पूछा .
खैर मुझे चाची से मिलना था तो मैं यही बैठ गया . अचानक से ही मेरे मन में एक विचार उठा और मैं चाची के कमरे में गया . मैंने तकिये उठाकर देखे पर कुछ नहीं था . और जीवन में मैंने पहली बार ऐसी हरकत की जो किसी भी लिहाज से उचित नहीं थी . मैंने चाची की अलमारी खोली.
ऊपर से निचे तक कपडे ही कपडे भरे पड़े थे . फिर मैंने उसका ऊपर वाला हिस्सा खोला और मेरी आँखों में चमक आ गयी . वहां वो ही किताब रखी थी जो उस रात चाची देख रही थी . कांपते हाथो से मैंने उसके पन्ने पलटने शुरू किये और मेरी आँखों में अजीब सी चमक आ गयी . ढेरो रंगीन पन्ने जिसमे नंगे आदमी औरत तरह तरह के पोज में एक दुसरे संग काम क्रीडा कर रहे थे न जाने क्या सोच कर मैंने वो किताब अपनी पॉकेट में रख ली. और चाची का इंतज़ार करने लगा.
कुछ देर बाद चाची आई मैंने जो उसे देखा देखता ही रहगया . नीली साडी में क्या गजब लग रही थी वो . कसा हुआ ब्लाउज जिसमे से उठे दो पर्वत जैसे कह रहे हो आ नाप हमारी गहराई
“तू कब आया ” चाची ने कहा
मैं- थोड़ी देर हुई
चाची- अच्छा हुआ तू अपने आप आ गया सुबह से तुझे ही ढूंढ रही हूँ एक तो मुझे गिरा दिया. कितनी लगी मुझे और फिर वही छोड़ कर भाग गया तू
मैं- मैं घबरा गया था चाची .
चाची- तब नहीं घबराया जब बुलंद दरवाजा देख रहा था .
मैं क्या कहा आपने
चाची- कुछ नहीं , चाय बनाती हूँ तेरे लिए
मैं- नहीं चाय नहीं . मुझे कुछ किताबे चाहिए थी चाचा की लाइब्रेरी से
चाची- वो आये तब ले जाना , चाबी उनके पास ही रहती है उसकी .
मैं- ठीक है तो फिर चलता हु मैं .
चाची- तुझे मालूम है आज क्या हुआ
मैं- नहीं तो .
चाची- किस दुनिया में रहता है तू , गाँव के बैंक में चोरी हो गयी
मैं- गाँव के बैंक में चोरी, क्या मजाक है चाची, कौन मुर्ख करेगा ये वैसे ही गाँव के बैंक में कहाँ पैसे है , किसानो के कर्जो की फाइल के अलावा और है ही क्या
चाची- ताज्जुब की बात ये है की पैसे या कागज कुछ भी चोरी नहीं हुआ
मैं ये सुनकर हैरान हुआ .
“तो भला कैसी चोरी हुई ये . ” मैंने सवाल किया .
चाची- एक लाकर में चोरी हुई है .
.... चाची की बात ने मुझे और हैरान कर दिया .